यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 13

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नागरिक अधिकार-पत्र (चार्टर)

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1.0 प्रस्तावना 

नागरिक चार्टर एक संगठन की सेवा वितरण की समय सीमा, गुणवत्ता व मानक दर्शाता है, एवं शिकायत निवारण व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है। भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग, अधिक उत्तरदायी और नागरिक अनुकूल शासन उपलब्ध कराने के प्रयासों में नागरिक चार्टर बनाने और संचालित करने के प्रयासों का समन्वय करता है। केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों, विभागों और संगठनों ने अपने नागरिक चार्टर तैयार और प्रस्तुत किये हैं। नागरिक चार्टरों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए संबंधित मंत्रालयों, विभागों और संगठनों में नोड़ल अधिकारियों की नियुक्ति की गई है। 

मूलतः एक सार्वजनिक संगठन एक कागज़ पर लिखेगा - ‘‘हम यह, यह और यह सेवा (सेवाएं) इस, इस और इस समय सीमा (सीमाओं) में प्रदान करते हैं। यदि आपको सम्बंधित सेवा दी गई समय सीमा में उपलब्ध नहीं हुई है, तो कृपया श्री X अधिकारी से संपर्क करें।‘‘

इस प्रकार के लिखित दस्तावेज को नागरिक अधिकार-पत्र (चार्टर) कहते हैं। इन नागरिक चार्टरों को हम लगभग सभी केंद्रीय मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की वेब साइटों पर देख सकते हैं।  ब्रिटिश प्रधान मंत्री श्री जॉन मेजर ने सबसे पहले नागरिक चार्टर की शुरुआत 1990 के दशक के प्रारंभ में की थी।

2.0 भारतीय परिदृश्य

पिछले कई वर्षों के दौरान भारत ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसके साथ-साथ पिछले दशक के दौरान साक्षरता की दर में अर्जित की गई पर्याप्त वृद्धि, 51.63 प्रतिशत से बढ़ कर 65.38 प्रतिशत (यह निरंतर बढ़ रही है), ने भारतीय नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति और अधिक जागरूक बनाया है। अब नागरिक और अधिक मुखर हो गए हैं, और प्रशासन की इस बात से ही संतुष्ट नहीं हैं, कि वह उनकी मांगों को पूरा करे, बल्कि वे चाहते हैं कि प्रशासन भविष्य में उठने वाली मांगों के प्रति सजग और सक्रिय रहे। इस माहौल में, 1996 के बाद से सरकार में प्रभावी और जवाबदेह प्रशासन पर एक आम सहमति विकसित होना शुरू हुई। 24 मई 1997 को नई दिल्ली में भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक सम्मेलन में केंद्र और राज्यों के स्तर पर एक ‘‘प्रभावी और उत्तरदायी सरकार के लिए कार्य योजना‘‘ को अपनाया गया। इस सम्मेलन में लिए गए निर्णयों में से एक महत्वपूर्ण निर्णय यह था, कि केंद्र और राज्य सरकारें नागरिक चार्टर बनाएंगे, जिनकी शुरुआत उन क्षेत्रों से होगी जिनमें आम जनता के साथ बडे़ पैमाने पर अंतरफलक था (उदाहरणार्थ, रेलवे, दूरसंचार, डाक एवं तार, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, इत्यादि)। शुरुआत में इन चार्टरों में सेवा के मानकों के साथ ही वे समय सीमायें, जिनमें नागरिक सेवा वितरण की यथोचित उम्मीद कर सकते हैं, शिकायत निवारण के रास्ते और नागरिक और उपभोक्ता समूहों की भागीदारी के माध्यम से स्वतंत्र जांच के प्रावधान शामिल किये जाने थे।

भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) ने नागरिक चार्टर के समन्यवन, निर्मिति और प्रचालित करने के कार्य की पहल की। चार्टर तैयार करने के दिशानिर्देशों के साथ-साथ ‘‘क्या करें और क्या ना करें‘‘ की एक सूची भी विभिन्न शासकीय विभागों, और संगठनों को भेजी गई, ताकि वे केंद्रित और प्रभावी चार्टर तैयार करने में सक्षम हो सकें। नागरिक चार्टरों के निर्माण के लिए, केंद्र और राज्यों की सरकारी एजेंसियों को एक टास्क फोर्स गठित करने की सलाह दी गई थी, जिसमें उपयोगकर्ताओं, वरिष्ठ प्रबंधन और अत्याधुनिक स्टाफ का प्रतिनिधित्व हो। 

चार्टरों में निम्न तत्वों के समावेश की अपेक्षा हैः

  1. विज़न और मिशन वक्तव्य
  2. संगठन द्वारा सम्पादित व्यवसाय का विवरण 
  3. ग्राहकों के विवरण
  4. प्रत्येक ग्राहक समूह के लिए उपलब्ध कराई गई सेवाओं के विवरण
  5. शिकायत निवारण व्यवस्था का विवरण और यह किस प्रकार उपयोग की जा सकेगी और
  6. ग्राहकों से अपेक्षाएं  

मूलतः यह ब्रिटिश मॉडल पर आधारित है, किंतु भारतीय नागरिक चार्टर में ‘ग्राहकों से अपेक्षाएं‘ नामक एक अतिरिक्त तत्व है, या दूसरे शब्दों में, ‘उपयोगकर्ताओं के दायित्व‘ ये नागरिक चार्टर उपयोगकर्ताओं की अपेक्षाओं और आवश्यकताओं की पूर्ती करने में सक्षम हो सकें यह सुनिश्चित करने के लिए चार्टर की निर्मिति में उपभोक्ता संगठनों, नागरिक समूहों, और अन्य हितधारकों के सहयोग और समावेश पर बल दिया गया था। चार्टर्स की आतंरिक और बाह्य एजेंसियों के माध्यम से नियमित निगरानी, समीक्षा और मूल्यांकन भी प्रदत्त की गई है।  

सन् 2014 तक केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों और संगठनों द्वारा 115 और साथ ही साथ राज्य सरकारों  की विभिन्न एजेंसियों और केंद्र शासित प्रदेशों प्रशासनों द्वारा 700$ नागरिक चार्टरों की निर्मिति की जा चुकी है। अधिकांश केंद्रीय चार्टर्स सरकारी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं और सार्वजनिक जांच के लिए खुले हैं। जिन संगठनों के चार्टर हैं उन्हें इन चार्टर्स के प्रचार के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और जागरूकता अभियानों के माध्यमों का उपयोग करने की सलाह दी गई है। 

भारत में नागरिक चार्टरों की समस्याएंः इन चार्टरों में वितरण के मापने योग्य मानकों की विस्तृत व्याख्या शायद ही दिखाई देती है। मानकों को बहुत ही घटिया ढ़ंग से परिभाषित किया गया है, परिणामस्वरूप, यह आकलन करना कठिन हो जाता है कि सेवा का अपेक्षित स्तर अर्जित किया गया है अथवा नहीं। अधिकांश चार्टरों में शब्द बाहुल्य प्रचुर मात्रा में है (बहुत अधिक मात्रा में शब्दों का प्रयोग किया गया है)।

चार्टर में निहित वादे अस्पष्ट और अर्थहीन थे (उन खोखले दूरदृष्टि और मिशन वक्तव्यों की तरह)। यदि सेवा का वितरण वादे के अनुसार नहीं हुआ है तो नागरिकों के लिए क्षतिपूर्ति प्राप्त करना अत्यंत कठिन काम है (उसे एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस के चक्कर काटने पड़ते हैं)। समय के अनुसार चार्टर संशोधित भी नहीं किये जाते। चार्टर का मसौदा बनाते समय वरिष्ठ नागरिकों और विकलांगों की आवश्यकताओं की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। बदलावों का विरोध किया जाता है। 

सार्वजनिक जागरूकता का अभावः चार्टर का मसौदा तैयार करते समय अंतिम उपयोगकर्ताओं (आम जनता) और गैर सरकारी संगठनों का परामर्श नहीं लिया जाता।

2.1 द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) की सिफारिशें 

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं

  1. यदि चार्टर में उल्लेख किये गए मानकों के अनुरूप सेवा की गुणवत्ता प्राप्त नहीं होती है इसके ऐवज़ में उपयोगकर्ता को प्राप्त होने वाले वैकल्पिक उपाय या क्षतिपूर्ति या सेवा प्रदान करने वाली संस्था को दिए जाने वाले दंड़ का स्पष्ट उल्लेख चार्टर में किया जाना चाहिए।  
  2. चार्टर बनाने से पहले संगठन को अपनी आतंरिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं का पुनर्गठन करना चाहिए। 
  3. एक आकार सभी के लिए सही नहीं है। चार्टर जमीनी वास्तविकता और स्थानीय स्थितियों के अनुरूप होने चाहिए। 
  4. चार्टर को अंतिम रूप देने से पहले (सिविल सोसायटी सहित) सभी हितधारकों से परामर्श करें। 
  5. ठोस प्रतिबद्धताएं बनायीं जानी चाहिए। निवारण व्यवस्था नागरिकों के लिए अनुकूल व मित्रवत होनी चाहिए। 
  6. संगठनों को समय-समय पर नागरिक चार्टर का मूल्यांकन करना चाहिए। 
  7. परिणामों के लिए अधिकारियों को जवाबदेह बनायें। 

नागरिक चार्टर का मूल्यांकनः विभिन्न सरकारी एजेंसियों के नागरिक चार्टर्स का मूल्यांकन भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग और एक गैर सरकारी संगठन, उपभोक्ता समन्वय परिषद, नई दिल्ली द्वारा अक्टूबर 1998 में किया गया था। इस नए प्रयोग को देखते हुए मूल्यांकन के परिणाम काफी उत्साहवर्धक थे। अपने-अपने चार्टर का आतंरिक मूल्यांकन करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक संक्षिप्त प्रश्नावली वितरित की गई है। इन संगठनों को अपने चार्टर के बाह्य मूल्यांकन की भी सलाह दी गई है, जहां तक संभव हो इस बाह्य मूल्यांकन का कार्य गैर सरकारी संगठनों को सौंपा जाना चाहिए। 

वर्ष 2002-03 के दौरान भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने नागरिक चार्टर के एक अधिक प्रभावी, व्यावहारिक और अवैयक्तिक ढ़ंग से आंतरिक और बाह्य मूल्यांकन के लिए एक मानकीकृत मॉड़ल विकसित करने के उद्देश्य से एक पेशेवर एजेंसी की सेवाएं ली। इस एजेंसी ने 5 केंद्रीय सरकारी संगठनों और आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों के 15 विभागों और संगठनों के कार्यान्वयन का मूल्यांकन भी किया। इस एजेंसी को चार्टर के बारे में संगठन के अंदर और उपयोगकर्ताओं के बीच जागरूकता के प्रसार के तरीके सुझाने का और चार्टर तैयार करने और तैनाती के कार्य में प्रबंधन और कर्मचारियों के उन्मुखीकरण के संभावित तरीके सुझाने का काम भी सौंपा गया था। 

एजेंसी द्वारा किये गए मूल्यांकन की रिपोर्ट के अनुसार मूल्यांकन के प्रमुख निष्कर्ष निम्नानुसार थेः

  1. अधिकांश मामलों में चार्टर्स का निर्माण एक परामर्शी प्रक्रिया के तहत नहीं किया गया था
  2. कुल मिलाकर सेवा प्रदाता चार्टर के दर्शन, लक्ष्यों और मुख्य विशेषताओं से परिचित नहीं हैं
  3. मूल्यांकन किये गए किसी भी विभाग ने चार्टर का पर्याप्त प्रचार नहीं किया था। अधिकांश विभागों में चार्टर कार्यान्वयन की प्रारंभिक अवस्था में थे और 
  4. नागरिक चार्टर के प्रति जागरूकता निर्माण करने के उद्देश्य से या चार्टर के विभिन्न घटकों के बारे में कर्मचारियों के उन्मुखीकरण के लिए किसी प्रकार की निधि के आवंटन की व्यवस्था नहीं की गई थी।

साथ ही साथ, रिपोर्ट में की गई प्रमुख सिफारिशों ने निम्नलिखित विषयों पर बल दियाः

  1. चार्टर की निर्मिति के प्रत्येक चरण में नागरिकों और कर्मचारियों से सलाह की आवश्यकता
  2. चार्टर की मुख्य विशेषताओं, लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में, विभागों के दूरदृष्टि और मिशन वक्तव्यों के बारे में, टीम निर्माण, शिकायतों से निपटने और संवाद कौशल जैसे कौशल्य के बारे में, कर्मचारियों के उन्मुखीकरण की आवश्यकता
  3. उपभोक्ता शिकायतों और शिकायतों के निवारण पर डेटाबेस के निर्माण की आवश्यकता
  4. प्रिंट मीडिया, पोस्टर, बैनर, पत्रक, इश्तहार, ब्रोशर, स्थानीय समाचार पत्रों आदि और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से चार्टर के व्यापक प्रचार की आवश्यकता
  5. जागरूकता और कर्मचारियों के उन्मुखीकरण के लिए विशेष बजट के निर्धारण की आवश्यकता, और
  6. इस क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रतिकृतिकरण की आवश्यकता। 

3.0 उपहार सूत्र

जैनेल बारलो और क्लॉस मोलर द्वारा तैयार किया गया आठ चरण ‘‘गिफ्ट’’ फॉर्मूला अत्यंत उपयोगी है। यह फॉर्मूला एक कदम-दर-कदम प्रक्रिया है, जो अपने इष्टतम रूप में, एक तयशुदा क्रम में वितरित किया जाता है। फिर भी उल्लेखनीय है, कि कुछ ऐसे अवसर हो सकते हैं जब इस क्रम में परिवर्तन करना उपयुक्त होगा। इसके विभिन्न चरण निम्नानुसार हैंः

  1. ‘‘धन्यवाद‘‘ कहें 
  2. सामने वाले को समझाएं कि आपने शिकायत की सराहना क्यों की 
  3. गलतियों के लिए क्षमा मांगें 
  4. आश्वासन दें कि आप इस समस्या के समाधान के लिए शीघ्र ही कुछ करेंगे 
  5. आवश्यक सम्पूर्ण जानकारी की मांग करें 
  6. गलती को तत्काल सुधारें 
  7. ग्राहक की संतुष्टि की जांच करें, और
  8. भविष्य की गलतियों को रोकें। 

‘‘धन्यवाद‘‘ कहें। इस बात का विचार ना करें कि ग्राहकों की शिकायतें उचित हैं अथवा नहीं। शिकायत को एक महत्वपूर्ण जानकारी के रूप में माने और इस उपहार के लिए उन्हें धन्यवाद दें। आपकी अभिव्यक्ति उतनी ही स्वाभाविक और उत्स्फूर्त होनी चाहिए जितनी हम उपहार/तोहफा प्राप्त करते समय प्रदर्शित करते हैं। सुनिश्चित करें कि आपकी शारीरिक भाषा शिकायत की सराहना को दर्शाती है, और यह भी दर्शाती है कि सेवा प्रदाता ग्राहक के शिकायत करने के अधिकार का सम्मान करता है। आँख का संपर्क, एक समझदार इशारा और एक मैत्रीपूर्ण मुस्कराहट चमत्कार कर सकती है। 

सामने वाले को समझाएं कि आपने शिकायत की सराहना क्यों की। अपने आप में ‘‘धन्यवाद‘‘ शब्द खोखला प्रतीत होता है। आपको कुछ ऐसा कह कर इसका औचित्य दर्शाना होगा, कि यह शिकायत आपको इस समस्या का बेहतर समाधान निकालने में किस प्रकार सहायक होगी। 

गलती के लिए क्षमा मांगें। ग्राहकों से क्षमा याचना करना महत्वपूर्ण है, किंतु यह सर्वप्रथम नहीं करना चाहिए। ‘‘धन्यवाद, आपने यह बात मेरे ध्यान में लायी इसकी मैं सराहना करता हूँ‘‘, यह कह कर आप ग्राहकों के साथ अधिक शक्तिशाली संबंध स्थापित कर सकते हैं। क्षमा उसके बाद आती है। 

समस्या के समाधान के लिए तत्काल कुछ करने का आश्वासन दें। एक बार आप क्षमा याचना कर लेते हैं, तो तुरंत कुछ पूछने से बचें। ग्राहक का साक्षात्कार लेने की शुरुआत ना करें। सेवा बहाली के दो पहलू हैं 

  1. मनोवैज्ञानिक
  2. वास्तविक

मनोवैज्ञानिक आयाम हर किसी को उस स्थिति के बारे में बेहतर महसूस में मदद करता है जिसके कारन असंतोष पैदा हुआ है। वास्तविक आयाम स्थिति को ठीक करने के लिए कुछ कर रहा है। वास्तविक प्रतिक्रियाएं वे कदम हैं जिनमें पैसा या समय खर्च होगा। उपहार सूत्र के एक से लेकर चार तक के चरण मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियों के भाग हैं, उनमे कुछ भी खर्च नहीं होता और वे क्रियान्वित करने के लिए आसान हैं। 

आवश्यक सम्पूर्ण जानकारी की मांग करें। ‘‘क्या आप कृपया मुझे थोड़ी औरअधिक जानकारी देंगे, ताकि मैं आपको और भी शीघ्र सेवा प्रदान कर सकूँ?‘‘ ऐसा ना कहें कि ‘‘मुझे कुछ और जानकारी चाहिए, अन्यथा मैं आपकी सहायता नहीं कर सकता‘‘। आप ग्राहकों से सहायता मांग रहे हैं। ग्राहक तो वे हैं जो आपके लिए उपहार लाये हैं। जितनी जानकारी आवश्यक है उतनी ही पूछें। परंतु ध्यान रखें कि प्रासंगिक सारा विवरण जान लें क्योंकि इस बातचीत से आपको असली समस्या समझ में आ जाएगी। कभी-कभी वे कोई बात केवल आप की जानकारी में लाना चाहते हैं, उन्हें आपसे आवश्यक रूप से कुछ नहीं चाहिए होता। 

गलती को तत्काल सुधारें। अपने जो कुछ करने का आश्वासन दिया है वह अवश्य करें। तात्कालिकता की भावना की ग्राहक सराहना करेंगे। आपकी तात्कालिक प्रतिक्रियाएं ये दर्शाती हैं कि आप सेवा बहाली के प्रति गंभीर हैं। तात्कालिकता की भावना आपको ग्राहक के साथ संतुलन कायम करने में मददगार होती है। यदि आप समस्या को ग्राहक की संतुष्टि के अनुरूप ठीक नहीं कर पाये तो उपहार का सूत्र पर्याप्त नहीं होगा। 

ग्राहक की संतुष्टि की जांच करें और उसका उचित अनुवर्तन (फॉलोअप) करें। क्या हुआ यह जानने के लिए ग्राहक से दुबारा संपर्क करें। उनसे सीधे पूछें कि आपने जो कुछ भी किया क्या वे उससे संतुष्ट हैं? यदि उचित हो तो उन्हें बताएं कि भविष्य में यह समस्या पुनः ना हो इसके लिए आप क्या कर हैं, ताकि उन्हें महसूस हो कि उन्होंने समस्या आपको बता कर ठीक किया है। उन्हें उनकी शिकायतों के लिए पुनः धन्यवाद दें। अब आप उनके साथ भागीदारी में आ गए है। 

भविष्य की गलतियों को रोकें। शिकायत के बारे में संगठन में सभी को जानकारी दें, ताकि भविष्य में इस प्रकार की शिकायतों को रोका जा सके। कर्मचारियों पर दोषारोपण करने की जल्दबाजी करने के बजाय व्यवस्था को सुधारें। अपनी पद्धतियों को दंड़ दें, ना कि अपने कर्मचारियों को। इससे यदि कर्मचारियों को महसूस होता है, कि शिकायतों के प्रति व्यवस्थापन का यह दृष्टिकोण है, तो वे शिकायतें व्यवस्थापन तक पहुँचाने के लिए प्रेरित होंगे। 

शिकायतों की प्रणालियां तब तक पूर्णरूप से प्रभावी और सफल नहीं हो सकती जब तक उन्हें उच्च व्यवस्थापन का समर्थन और मार्गदर्शन प्राप्त नहीं होता। उच्च अधिकारियों को नियमित रूप से शिकायतों की जानकारी की समीक्षा करनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभाग की प्रत्येक निष्पादन रिपोर्ट में शिकायत हैंडलिंग अन्तर्निहित हो। प्रत्येक विभाग अपने डिस्प्ले बोर्ड पर यह प्रतिज्ञा प्रदर्शित करने पर भी विचार कर सकते हैं कि वे शिकायतों का स्वागत करते हैं। 

4.0  2011 का नागरिक चार्टर विधेयक 

यह नागरिको को समयबद्ध तरीके से सेवाऐं सुनिश्चित करने का पहला व्यवस्थित प्रयास था। हालांकि विधेयक कालबाह्य हो गया फिर भी यह आने वाले समय में एक रोचक मार्गदर्शक बन कर रह गया है।

प्रमुख विशेषताएं

माल और सेवाओं के समयबद्ध वितरण के नागरिकों के अधिकार एवं उनकी शिकायतों का निवारण विधेयक, 2011

विधेयक की विशेषतायें 

  • विधेयक नागरिकों के लिए माल और सेवाओं का समय पर वितरण सुनिश्चित करने के लिए एक व्यवस्था बनाने का प्रावधान करना चाहता है। 
  • प्रत्येक लोक प्राधिकरण के लिए आवश्यक है, कि वह अधिनियम के लागू के छह महीने के भीतर एक नागरिक चार्टर प्रकाशित करे। चार्टर प्रदान की जाने वाली सेवाओं और उनके वितरण की समयसीमा का सम्पूर्ण विवरण देगा। 
  • नागरिक निम्न से सम्बंधित किसी भी शिकायत को दर्ज कर सकेगाः

  1. नागरिक चार्टर
  2. लोक प्राधिकरण का कामकाज, अथवा 
  3. कानून, नीति या योजना का उल्लंघन

  • विधेयक सभी लोक प्राधिकरणों के लिए शिकायतों के निवारण के लिए अधिकारियों की नियुक्ति को अनिवार्य बनाता है। शिकायतों का निवारण 30 कार्य दिवसों के भीतर होना चाहिए। विधेयक में केन्द्र और राज्य लोक शिकायत निवारण आयोगों की नियुक्ति का प्रावधान भी है। 
  • सेवाएं प्रदान करने में विफलता के लिए जिम्मेदार अधिकारी या शिकायत निवारण अधिकारी पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। 

महत्वपूर्ण मुद्दे और विश्लेषण

  1. राज्य के सरकारी अधिकारियों के कामकाज को विनियमित करना संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं हो सकता है, क्योंकि राज्य लोक सेवाएं राज्य की विधानसभाओं के दायरे में आती हैं। 
  2. यह विधेयक एक समानांतर शिकायत निवारण व्यवस्था निर्मित कर सकता है, क्योंकि कई केंद्रीय और राज्य कानूनों ने इसी तरह की व्यवस्था की स्थापना की है। 
  3. एक सांविधिक दायित्व या एक लाइसेंस के तहत सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के लिए नागरिक चार्टर प्रकाशित करना और शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना आवश्यक बनाया जा सकता है। 
  4. आयुक्तों को दुर्व्यवहार या अक्षमता के आरोप पर न्यायिक जांच के बिना हटाया जा सकता है। यह अन्य कानूनों के अंतर्गत प्रक्रिया से अलग है। 
  5. भ्रष्टाचार के मामलों पर आयोगों के निर्णयों पर अपील लोकपाल या लोकायुक्त के समक्ष की जा सकेंगी। लोकपाल और कुछ लोकायुक्त स्थापित नहीं किये जा सके हैं। 
  6. विधेयक के अंतर्गत केवल नागरिक ही शिकायतों के निवारण मांग सकते हैं। विधेयक ड्राइविंग लाइसेंस, बिजली, इत्यादि जैसी सेवाओं का उपयोग करने वाले विदेशी नागरिकों को शिकायते दायर करने के लिए सक्षम नहीं बनाता। 

प्रमुख विशेषतायें : विधेयक, लोक प्राधिकरणों के लिए विधेयक के लागू होने के छह महीने के भीतर एक नागरिक चार्टर प्रकाशित करना अनिवार्य बनाता है। चार्टर को लोक प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं और सेवाओं की गुणवत्ता को निर्दिष्ट करना चाहिए। विभागों के प्रमुख नागरिक चार्टर का प्रसार और इसका अद्यतन करने के लिए जिम्मेदार होंगे। 

लोक प्राधिकरण

  • 1.लोक प्राधिकरणों में निम्नलिखित संस्थाएं शामिल हैंः

  1. संवैधानिक और सांविधिक प्राधिकारी 
  2. एक अधिसूचना के तहत स्थापित संस्थाएं और 
  3. सार्वजनिक निजी भागीदारी। इनमें, काफी हद तक सरकार द्वारा वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन, सरकारी कम्पनियाँ, और एक लाइसेंस या सांविधिक दायित्व के अधीन सेवाएं प्रदान करने वाली कम्पनियाँ भी शामिल हैं। 

  • लोक प्राधिकरणों को सेवाओं के कुशल और प्रभावी वितरण और शिकायतों के निवारण के लिए सूचना सुविधा केन्द्रों की स्थापना करना आवश्यक है। सूचना सुविधा केन्द्रों में कस्टमर केयर सेंटर, कॉल सेंटर, सहायता डेस्क और लोगों के समर्थन केंद्र शामिल किये जा सकते हैं।

लोक शिकायत निवारण आयोग

  1. विधेयक केन्द्र और राज्य शिकायत निवारण आयोगों की स्थापना करता है। प्रत्येक आयोग में एक मुख्य आयुक्त होगा, और 10 तक आयुक्त शामिल किये जा सकते हैं। आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति (राज्यपाल) द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी। इस समिति में प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री), लोकसभा (विधान सभा) में विपक्ष के नेता और उच्चतम न्यायालय (उच्च न्यायालय) के एक विद्यमान न्यायाधीश का समावेश होगा। 
  2. आयुक्तों को निम्नलिखित में से एक होना चाहिएः

  • केंद्रीय (राज्य) सरकार के वर्तमान या पूर्व सचिवय या
  • उच्चतम न्यायालय  के वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश, या उच्च न्यायालय के वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश (10 वर्ष के लिए जिला न्यायालय के न्यायाधीश, या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश); या
  • एक प्रासंगिक क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिग्री के साथ सामाजिक क्षेत्र में कम से कम 20 वर्ष (15 वर्ष) के अनुभव के साथ प्रतिष्ठित व्यक्ति। आयुक्तों को कुछ शर्तों के तहत राष्ट्रपति (राज्यपाल) के एक आदेश से हटाया जा सकता है।

शिकायत तंत्र 

  • शिकायतः कोई भी नागरिक निम्न के लिए शिकायत कर सकता हैः
  1. नागरिक चार्टर में उल्लिखित वस्तुओं और सेवाओं के वितरण में विफलता 
  2. लोक प्राधिकरण के कामकाज संबंधित, और 
  3. किसी भी कानून, नीति, कार्यक्रम, आदेश या योजना का उल्लंघन। शिकायतों का निवारण 30 कामकाजी दिवसों के भीतर करना आवश्यक है। 
  • शिकायतें शिकायत निवारण अधिकारी (जीआरओ) को करना होती हैंः प्रत्येक लोक प्राधिकरण को केंद्रीय, राज्य, जिला, उप-जिला, नगरपालिका, और पंचायत स्तर पर शिकायत निवारण अधिकारियों की नियुक्ति करना आवश्यक है। जीआरओ को निम्न सुनिश्चित करना आवश्यक हैः

  1. शिकायतों का निवारण 30 दिनों के भीतर सुनिश्चित करना 
  2. यदि किसी अधिकारी ने अपने कर्तव्यों में लापरवाही की है, तो दोषी अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करना, एवं 
  3. यदि किसी अधिकारी ने जानबूझ कर वस्तुओं या सेवाओं के वितरण में लापरवाही की है, या उसके विरुद्ध प्रथम दृष्टया 1988 के भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत मामला बनने का आधार है, तो दंड या क्षतिपूर्ति की अनुशंसा करना। 

  • अपीलः जीआरओ के आदेशों को पदांकित अधिकारी (डीए) के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। डीए एक ऐसा अधिकारी होगा जो जीआरओ के पद से ऊपर होगा और संबंधित लोक प्राधिकरण के बाहर का होगा (कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री द्वारा दिए गए एक बयान के अनुसार डीए एक जिला स्तर का अधिकारी होगा)। शिकायत मिलने के तीस दिनों के भीतर डीए उसका निपटारा करेंगे। यदि किसी शिकायत का निपटारा जीआरओ द्वारा तीस दिनों के भीतर नहीं किया जाता, तो उन्हें उस शिकायत को एक अपील के रूप में डीए को प्रेषित करना होगा। डीए संबंधित दोषी अधिकारीयों को दंडित कर सकते हैं। 
  • द्वितीय अपीलः डीए के आदेशों के विरुद्ध अपील 30 दिनों के भीतर केंद्रीय या राज्य लोक शिकायत निवारण आयोग के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है केंद्र (या राज्य) शासन के विभागों के कामकाज के विरुद्ध शिकायतें केंद्र (या राज्य) आयोग के समक्ष की जाएंगी। आयोगों को शिकायतों का निपटारा 60 कामकाजी दिवसों के भीतर करना होगा। 
  • तृतीय अपीलः 1988 के भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत अपराधों से संबंधित मामलों में, आयोग के निर्णय के विरुद्ध अपील लोकपाल या लोकायुक्त के समक्ष की जा सकेगी। 
  • स्वप्रेरणा तंत्रः केंद्रीय और राज्य आयोग स्वप्रेरणा से वस्तुओं और सेवाओं के अपरिदान के मामले संबंधित विभागों के प्रमुखों को प्रेषित कर सकते हैं। ऐसे मामलों में जहां आयोग को महसूस होता है, कि मामले की जांच करने के पर्याप्त आधार हैं, तो आयोग स्वप्रेरणा से जांच शुरू कर सकते हैं। 
  • कुछ अन्य मामलों में भी आयोगों को शिकायतें की जा सकती हैं। आयोगों का उत्तरदायित्व है, कि वे ऐसे व्यक्तियों की शिकायतों की जांच करें रू

  1. जो डीए के समक्ष अपील प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं
  2. जिनकी शिकायत का निवारण अस्वीकृत कर दिया गया हो
  3. जिनकी शिकायतों का निपटारा 30 दिनों के भीतर नहीं हुआ है और 
  4. जो नागरिक चार्टर के उपयोग से इसलिए वंचित रह गए हैं, क्योंकि या तो वह बना ही नहीं है, या व्यापक रूप से प्रचारित नहीं किया गया है। 

दंड़ 

  1. जीआरओः विधेयक जीआरओ के लिए दंड़ की सिफारिश ड़ीए को करना उन मामलों में अनिवार्य बनाता है, जबः

  • वह आश्वस्त है, कि चूक किसी अधिकारी की लापरवाही के कारण हुई है और 
  • भ्रष्टाचार के प्रथम दृष्टया साक्ष्य उपलब्ध हैं।

ड़ीए एवं आयोगः 

  1. विधेयक डीए और आयोगों को दोषी अधिकारीयों और जीआरओ के विरुद्ध अधिकतम 50,000 रुपये का दंड अधिरोपित करने की अनुमति देता है। दोषी अधिकारी पर दंड तब लगाया जा सकता है जब उसने बदनीयत से काम किया है, या वह उचित तरीके से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में विफल रहा है। दंड़ का एक भाग शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में प्रदान किया जा सकता है। 
  2. यदि दोषी अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के सबूत मिलते हैं, तो डीए और आयोगों को मामला उपयुक्त अधिकारियों को प्रेषित करना होगा। इसके अतिरिक्त, ऐसे मामलों में ड़ीए स्वयं कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। 
  3. यदि ऐसे सबूत मिलते हैं कि कार्रवाई बदनीयत से की गई थी, तो जीआरओ, डीए और आयोग दोषी अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। 
  4. अपील कार्यवाही में, जहां यह आरोप लगाया गया है कि जीआरओ ने शिकायत का निवारण नहीं किया है, तो सिद्धि का भार जीआरओ पर होगा। 

5.0 आलोचनाएँ

संघीय भावना के विरुद्धः भाजपा का कहना था, कि नागरिक चार्टर विधेयक राज्य और केंद्रीय स्तर पर जीआरओ और शिकायत आयोग का प्रावधान करता है। किंतु  इस प्रकार के कानून को अधिनियमित करना संसद के क्षेत्राधिकार के बाहर है। संविधान की 7 वीं अनुसूची की प्रविष्टि 41 राज्य लोक सेवाओं को राज्यसूची में सम्मिलित करती है। इसका अर्थ यह है, कि राज्य लोक सेवाओं से संबंधित कानून बनाने का क्षेत्राधिकार केवल राज्यों की विधायिकाओं को है। 

दस से अधिक राज्यों ने पहले ही अपने संबंधित राज्यों में नागरिक चार्टर अधिनियम या लोक सेवा गारंटी अधिनियम लागू किये हैं। जम्मू एवं कश्मीर, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड़, और हिमाचल प्रदेश, इन राज्यों में उनके अपने कानून मौजूद हैं। 

इनमें से कई राज्यों के कानूनों के प्रावधान प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों से बेहतर हैं। 

केंद्र सरकार केंद्रीय सेवाओं के लिए नागरिक चार्टर अधिनियमित कर सकती है, और उसे करना भी चाहिए, परंतु उसे राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। अधिक से अधिक केंद्रीय सरकार एक आदर्श कानून का सुझाव दे सकती है। हालांकि, कार्मिक मंत्रालय ने यह कह कर इस विधेयक का बचाव किया था, कि ‘‘विधेयक के प्रावधान कार्रवाई योग्य खामियों से संबंधित हैं, जो समवर्ती सूची में आता है।’’

काम का दोहरावः दिल्ली, पंजाब और बिहार जैसे कुछ राज्यों ने भी अपने शिकायत निवारण कानून अधिनियमित किये हैं। इन कानूनों के अंतर्गत की गई व्यवस्था, विधेयक में दी गई व्यवस्था से भिन्न है। 

अतः यह कामों और संगठनों का दोहराव होगा। इसी प्रकार, मनरेगा अधनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2011 का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक और 2012 का सार्वजनिक खरीद विधेयक इन सभी के अपने शिकायत निवारण फोरम हैं - अतः यह काम का दोहराव है। 

सूचना का अधिकार अधिनियम की तरह ही यह विधेयक भी उन संगठनों पर लागू होगा, जो सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। (उदाहरणार्थ, एयर इंडिया, सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकें, भारतीय जीवन बीमा निगम) हालांकि, यदि ये संगठन समय पर सेवाएं प्रदान नहीं करती हैं, तो ये मामले क्रमशः उपभोक्ता न्यायालयों, बैंकिंग लोकपाल, आईआरडीए के क्षेत्राधिकारों में आते हैं - अतः यह काम का दोहराव है। इन सब बातों से ऐसा लगता है, कि सरकार ने अपना गृह कार्य सही तरीके से नहीं किया है, और वे केवल लोकपाल जैसे अन्य महत्वपूर्ण मसलों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए विधेयक को पारित कराना चाहती है। 

स्वायत्तताः विधेयक के अनुसार, आयुक्तों को न्यायिक जांच के बिना हटाया जा सकता है। 

शासकीय अधिकारी जानबूझ कर सेवा वितरण में विलंब करते हैं, क्योंकि उन्हें रिश्वत चाहिए। अतः संपूर्ण  नागरिक चार्टर का तामझाम लोकपाल और लोकायुक्तों के बिना अपूर्ण है। 

गैर-नागरिकों का बहिष्करणः केवल नागरिक ही निवारण की मांग कर सकते हैं, अनिवासी भारतीय और भारतीय मूल के व्यक्ति इसके लिए अधि.त नहीं हैं।

उत्तरदायित्वों का वितरणः सेवाओं के वितरण के लिए उत्तरदायित्वों का वितरण अस्पष्ट है। उदाहरणार्थ, एक पासपोर्ट इसलिए रुका पडा है, क्योंकि पुलिस सत्यापन में बहुत विलंब हुआ, ऐसे मामले में क्या पासपोर्ट अधिकारी उत्तरदायी है? या पुलिस को उत्तरदायी बनाया जायेगा? इन समस्याओं के बारे में विधायक में कोई प्रावधान नहीं है। इससे निवारण चाहने वालों के साथ केवल दोष को दूसरों पर धकेलने का खेल होगा, जिसके परिणामस्वरूप और अधिक समय व्यर्थ बर्बाद होगा। 

6.0 मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नागरिक चार्टर 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी अपना नागरिक चार्टर प्रस्तुत किया है। इसके मिशन में निम्न बातें शामिल हैंः

  1. सभी पात्र व्यक्तियों को और विशेष रूप से कमजोर वर्गों को समानता के साथ उच्च शिक्षा के उपयोग के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना। 
  2. वर्तमान में मौजूद क्षेत्रीय या अन्य असंतुलन को दूर करने के उद्देश्य से सार्वजनिक प्रयासों के पूरक, मौजूदा संस्थानों का समर्थन नए संस्थानों की स्थापना, राज्य सरकारों के समर्थन और गैर सरकारी संगठनों/सिविल सोसायटी द्वारा पहुँच का विस्तार। 
  3. शोध और नवाचारों को मजबूत बनाने के लिए नीतियां और कार्यक्रम शुरू करना और संस्थाओं को प्रोत्साहित - सार्वजनिक या निजी - करने के लिए ज्ञान की सीमाओं को विस्तारित करना। 
  4. बुनियादी ढ़ांचें और संकाय में निवेश द्वारा शैक्षिक सुधारों को बढ़ावा देना, अब तक वंचित समुदायों के शामिल किए जाने की दिशा में प्रशासन और संस्थागत पुनर्गठन में सुधार के द्वारा उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देना। 

मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रदान की जाने वाली सेवाएं और उनके मानक निम्नानुसार हैंः

  1. (अल्पसंख्यक शिक्षण और फोकस समूहों सहित) उच्च शिक्षा से संबंधित नीति निर्धारणरू - परामर्श, सम्मेलन (कुलपति स्तर की तरह आदि), चर्चा, बातचीत सत्र आदि। 
  2. इस विभाग की विभिन्न योजनाओं के अधीन निधियों का वितरण, जिसका विवरण वेबसाइट  www-education-nic.in पर उपलब्ध है, और देय संस्थानों को निधि का वितरणः सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन के बाद 25 कार्य दिवसों के भीतर। 
  3. उच्च शिक्षा के बारे में सूचना का प्रसार - वेबसाइट पर और विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से उच्च शिक्षा पर जानकारी अद्यतन करना। 
  4. नीतियों/कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी करना। 

परियोजनाएंः मासिक प्रगति 

उच्च शिक्षा क्षेत्र, संसदीय समितियों में सुधार के लिए विचार करने के लिए केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) जैसे विभिन्न मंचों पर परामर्श सम्मेलनों, चर्चाओं, संवाद सत्रों और बैठकों आदि के माध्यम से।

उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे विश्वविद्यालय और कॉलेज के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति के अनुदान www-education-nic-in पर उपलब्ध विशिष्ट योजना के दिशा निर्देशों के अनुसार। 

उच्च शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के समकक्ष रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), विदेशी सरकारों, अंतरराष्ट्रीय साझेदारों से सहयोगः चार्टर के अनुसार। 

कॉपीराइट का पंजीकरणः रजिस्टर का संक्षिप्त कॉपीराइट रजिस्ट्रार द्वारा काम के पंजीकरण के 15 कार्य दिवसों के भीतर आवेदक को भेजा जाना है। 

आईएसबीएन पंजीकरणः आवेदक को आईएसबीएन आवंटित करना और आईएसबीएन रजिस्ट्री द्वारा पुस्तक के पंजीकरण के 7 दिनों के भीतर उसे भेजना।

7.0 सुशासन की पहलें 

7.1 मायगव (मेरा शासन)

मायगव सरकार द्वारा शुरू किया गया एक ऐसा अभिनव मंच है जिसके माध्यम से निर्णय प्रक्रिया में देश के नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है, ताकि भारत निर्माण के लिए ‘‘सुशासन‘‘ के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। यह पहल विश्व के विभिन्न भागों में बसे भारतीय नागरिकों और शुभ-चिंतकों के लिए एक अवसर है, जिसके द्वारा वे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार सीधे भारत के प्रधानमंत्री के साथ साझा कर सकते हैं।

यह मंच मायगव नागरिकों और विदेश में बसे लोगों को ‘‘चर्चा करो‘‘ और ‘‘करो‘‘ के लिए प्रोत्साहित करता है। मायगव पर बहुविध विषय आधारित चर्चाएं होती हैं जहां लोग अपने विचार साझा कर सकते हैं। साथ ही किसी भी योगदानकर्ता द्वारा साझा किये गए विचार पर वैचारिक मंचों में चर्चाएं की जाएँगी, जिसके कारण रचनात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हो सकेंगी, और इनपर प्रतिभागियों के बीच चर्चा संभव होगी। देश में सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मायगव जनता और सरकार के बीच के सेतु स्थापित करने के उद्देश्य से शुरू की गई योजना है। जो लोग चर्चा से आगे जाकर जमीनी स्तर पर योगदान करना चाहते हैं, उनके लिए मायगव विविध अवसर प्रदान करता है। नागरिक विभिन्न कार्यों को करने की अपनी इच्छा प्रदर्शित कर सकते हैं, और उनके लिए अपनी प्रविष्टियाँ भेज सकते हैं। फिर इन कार्यों की अन्य सदस्यों और विशेषज्ञन द्वारा समीक्षा की जाएगी। स्वीकृत हो जाने के बाद, ये कार्य कार्य पूरा करने वाले प्रतिभागियों और मायगव मंच के अन्य सदस्यों द्वारा साझा किये जायेंगे। प्रत्येक स्वीकृत कार्य के लिए कार्य पूरा हो जाने के बाद श्रेय अंक अर्जित किये जा सकेंगे। 

7.2 लोकसत्ता आंदोलन 

लोक सत्ता आंदोलन लोकतांत्रिक सुधारों के लिए शुरू किया गया एक निर्दलीय आंदोलन है, जिसका नेतृत्व आंध्र प्रदेश के एक कार्यकर्ता और भूतपूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी डॉ. जयप्रकाश नारायण द्वारा किया जा रहा है। इस आंदोलन की शुरुआत 1996 में एक गैर-सरकारी संगठन के रूप में की गई थी, जो आगे चल कर लोक सत्ता पार्टी में परिवर्तित हुआ। 

आंध्र प्रदेश में जन आंदोलन का देश का सबसे बड़ा आधार निर्माण करने के अलावा लोक सत्ता अब विभिन्न राज्यों में गठबंधन निर्माण करके और स्थानीय पहलों को प्रोत्साहित करके एक व्यवहार्य राष्ट्रीय मंच निर्माण करने के कार्य में गंभीरता से लगा हुआ है, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से चुनाव सुधारों के लिए एक प्रभावी और उच्च विश्वसनीयता वाला मंच तैयार किया जा सके। अक्टूबर 2006 में इसने अपने राजनीतिक दल के अंग की भी शुरुआत की है, और इसमें इसे यथोचित सफलता भी मिली है। 

आंध्र प्रदेश चुनाव निगरानी - 2001 और 2004 में राजनीतिज्ञों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जाँच करना। 

सुनिश्चित करना कि पिछडे़ समुदाय मतदान करने में सक्षम हों - 2001 

लक्ष्य 

  1. राजनीतिक दलों का लोकतांत्रिकरण करना, ताकि उन्हें सभी दृष्टि से अधिक खुला, सदस्यों द्वारा नियंत्रित, पारदर्शी, और जवाबदेह बनाया जा सके। 
  2. चुनावों को वास्तविक दृष्टि से लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए चुनाव सुधार य ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में केवल सर्वोत्कृष्ट पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी हो, और चुनावी भ्रष्टाचार को रोका जा सके। 
  3. केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और स्थानीय सरकारों के बीच कार्यों का संतुलित विभाजन, साथ ही उनके कार्यों के अनुरूप उन्हें पर्याप्त संसाधन और शक्तियों का न्यागमन प्राप्त हो सके। 
  4. संवैधानिक और लोकतांत्रिक शासन के प्रतिभागी के रूप में स्थानीय सरकारों के सशक्तिकरण के माध्यम से शासन का प्रभावी विकेंद्रीकरण, और जहां तक संभव हो हितधारकों के रूप में जनता का सशक्तिकरण। 
  5. सभी स्तरों पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की प्रभावी कार्यपद्धति, जिसमें उपयुक्त नियंत्रण और संतुलन उपलब्ध हो। 
  6. लोगों को शीघ्र, कुशल, सस्ता, और सुलभ न्याय प्राप्त होने की दृष्टि से उपाययोजना 
  7. नौकरशाही को सभी स्तरों पर वास्तविक रूप से जनता के प्रति जवाबदेह, अनुक्रियाशील और कार्यकुशल बनाने के लिए उपाययोजना। 

पद का दुरूपयोग रोकने के लिए संस्थागत नियंत्रण, जिसमें पारदर्शी शासन के लिए सूचना की स्वतंत्रता भी शामिल है; अपराध अन्वेषण और मुकदमों का दलगत खिंचावों और राजनीतिक सनक से अलगाव; एक प्रभावी, स्वतंत्र भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र की स्थापना; और संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों के लिए एक स्वतंत्र तंत्र की निर्मिति। 

सिद्धांतः लोक सत्ता के अनुसार उपरोक्त सामान्य सिद्धांतों से उत्पन्न विशिष्ट सुधार लोकतंत्र के निम्न बुनियादी सिद्धांतों के अनुरूप होने चाहियेंः

  1. स्वतंत्रता   
  2. स्वशासन 
  3. नागरिकों का सशक्तिकरण  
  4. कानून का शासन 
  5. स्वयं सुधार करने योग्य संस्थागत तंत्र

लोक सत्ता पार्टी की शुरुआत जयप्रकाश नारायण द्वारा 2 अक्टूबर 2006 को स्वच्छ राजनीति, सुशासन और भारत के सुधार के प्रमुख उद्देश्यों के साथ की गई थी। जब उन्होंने अपनी इस पार्टी की शुरुआत की थी उस समय उन्होंने कहा था कि इस पार्टी का लक्ष्य भारतीय राजनीतिक परि.श्य को इसके सही अर्थों में समृद्ध बनाना है। उन्हें लगा कि इसे किसी भी अन्य राजनीतिक दल के विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है, क्योंकि यह चुनावों में अवैध धन, शराब या जातिव्यवस्था शामिल किये बिना भारत में एक सच्चा और विश्वसनीय राजनीतिक चित्र के निर्माण के उद्देश्य से बनी है। 

7.3 लोकतांत्रिक सुधार संघ 

लोकतांत्रिक सुधार संघ (एडीआर) 1999 में प्रो. त्रिलोचन शास्त्री, प्रो. जगदीप चोकर और अजीत रनाडे द्वारा सह स्थापित एक गैर-राजनैतिक संगठन है। एडीआर का जन्म तब हुआ जब भारतीय प्रबंध संस्थान और बैंगलोर के प्राध्यापकों के एक समूह द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की आपराधिक, वित्तीय और शैक्षणिक पृष्ठभूमि को उजागर करने के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गई। 2000 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका के पक्ष में निर्णय दिया, परंतु दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। हालांकि 2002 में, और बाद में 2003 में, सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों के लिए यह अनिवार्यता बनाई कि चुनाव से पहले वे अपनी आपराधिक, वित्तीय और शैक्षणिक पृष्ठभूमि एक शपथपत्र के माध्यम से भारत के निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत करेंगे। इस प्रक्रिया के कारण मतदाताओं में राजनेताओं के विरुद्ध जारी आपराधिक मामलों के प्रति जागरूकता निर्माण हुई। 

राष्ट्रीय चुनाव निगरानी (NEW) के साथ, जो 1200 संगठनों समूह है, एडीआर का उद्देश्य है चुनावों में धनबल और बाहुबल में कमी करने के प्रयास के माध्यम से भारतीय राजनीति में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही प्रस्थापित करना। 

एडीआर की कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां निम्नानुसार हैंः

मई 2002 और मार्च 2003ः एडीआर की याचिका का परिणाम सर्वोच्च न्यायालय की ओर से दो ऐतिहासिक फैसलों में हुआ जिनके माध्यम से चुनाव प्रत्याशियों के लिए यह अनिवार्य हुआ कि वे स्वयं द्वारा हस्ताक्षरित एक शपथपत्र के माध्यम से अपनी संपत्ति और आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करें। 

अप्रैल 2008ः एडीआर को केंद्रीय सूचना आयोग की ओर से एक ऐतिहासिक निर्णय प्राप्त हुआ जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों के कर निर्धारण आदेशों सहित आयकर विवरण अब सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो सकेंगे। 

जून 2011ः सूचना के अधिकार की दो वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद अंत में ‘‘सदस्यों के हितों के रजिस्टर‘‘ की महत्वपूर्ण जानकारी को केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा जून 2011 से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने की अनिवार्यता प्रतिपादित की। लोकसभा की ‘‘आचार समिति‘‘ की दूसरी रिपोर्ट में एडीआर की सिफारिशों का उल्लेख किया गया है कि राज्यसभा की तरह ही सदस्यों के कार्यों और वित्तीय हितों की घोषणा करने वाला एक सदस्यों के हितों का रजिस्टर प्राप्त किया जाए।

जून 2013ः केंद्रीय सूचना आयोग ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसके अनुसार छह राष्ट्रीय राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के दायरे में आ गए, इस निर्णय में उन सभी दलों को ‘‘सार्वजनिक प्राधिकरण‘‘ घोषित किया था। यह एडीआर की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। 

जुलाई 2013ः लिली थॉमस और लोक प्रहरी गैर-सरकारी संगठन (एडीआर के हस्तक्षेप वाला) द्वारा दायर याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया, जिसके अनुसार लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 8(4) को रद्द कर दिया गया, जिसके कारण न्यायालय द्वारा अपराधी घोषित किये जाने के बाद सांसदों और विधायकों को पद पर बने रहने से प्रतिबंधित किया गया। 

सितंबर 2013ः संस्था ‘‘कॉमन कॉज़‘‘ द्वारा दायर याचिका में भी एडीआर ने हस्तक्षेप किया था, जिसके द्वारा यह मांग की गई थी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर ‘‘उपरोक्त में से कोई नहीं‘‘ (नोटा) का भी एक विकल्प शामिल किया जाये। 27 सितंबर 2013 को सर्वोच्च न्यायालय ने इसके पक्ष में निर्णय दिया, और 2014 के लोकसभा चुनाव से ईवीएम में नोटा बटन को समाविष्ट किया गया। 

मई 2014ः राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च की निगरानी के लिए एडीआर द्वारा दायर याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किये हैं।

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PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 13
यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 13
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PT's IAS Academy
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