यूपीएससी तैयारी - स्वतंत्रता-पश्चात् भारत - व्याख्यान - 13

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भारतीय सेना

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1.0 प्रस्तावना

भारतीय सशस्त्र बल भारतीय गणतंत्र के सैन्य बल हैं। इनमें चार व्यावसायिक वर्दीधारी सेवाएं हैंः भारतीय थल सेना, भारतीय नौसेना, भारतीय वायुसेना और भारतीय तट रक्षक दल। इसके अतिरिक्त, भारतीय सशस्त्र सेनाओं की सहायता के लिए कई अर्ध-सैनिक संगठन (असम राइफल्स, विशेष सीमा बल, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आयटीबीपी, सीआयएसएफ) और सामरिक बल कमान जैसी विभिन्न अंतर-सेवा संस्थाएं भी मौजूद हैं। भारत के राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं। भारतीय सशस्त्र बल रक्षा मंत्रालय के व्यवस्थापन के अधीन हैं, जिसका नेतृत्व केंद्रीय रक्षा मंत्री के हाथों में होता है। 13 लाख से अधिक सक्रिय कर्मचारियों के शक्तिशाली बल के साथ, यह पी.आर.सी. (चीनी लोक गणतंत्र) और अमेरिका के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। 

2.0 भारतीय सेना की उत्पत्ति

भारतीय सेना का इतिहास असाधारण वीरता और शौर्य की घटनाओं से भरा पड़ा है, और इसका उद्गम भारत के प्राचीन काल में खोजा जा सकता है। भारतीय सेना का सबसे प्रारंभिक उल्लेख वेदों और महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों के साथ-साथ प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में हुआ है। भारतीय सेना का इतिहास इस बात पर बल देता है, कि की भारतीयों ने युद्धशास्त्र के विज्ञान को हाल ही में आत्मसात नहीं किया है, और उनकी युद्ध की परंपरा मात्र 200 वर्ष पुरानी नहीं है। प्राचीन काल में किये गए विशाल सैन्य अभियानों के ऐसे अनेक गौरवशाली उदाहरण मौजूद हैं, जो सुनिश्चित सैन्यविज्ञान द्वारा समर्थित और उत्कृष्ट रणनीतियों और युद्धकौशल पर आधारित थे। प्राचीन काल में, जब धर्म की व्यक्ति के दैनंदिन जीवन में प्रभावशाली भूमिका हुआ करती थी, तब अक्सर युद्ध करना आवश्यक होता था। शुरूआत में जिसे धर्मयुद्ध कहा जाता था, उसका निचोड़ रामायण और महाभारत के दो महाकाव्यों में मिलता है। किन्ही भी कपटी साधनों का उपयोग नहीं किया जाता था, और एक योद्धा, विजेता और पराजित व्यक्ति की गरिमा सदा बनाये रखी जाती थी। भारतीय सेना के इतिहास में उल्लिखित है, कि प्राचीन भारत में, सेना का संगठन साम्राज्यों के बदलने के साथ बदलता जाता था।

2.1 भारतीय सेना का प्राचीन इतिहास 

प्राचीन भारत में, हिंद-आर्यों के ऋग्वेदिक कबीले, अन्य कबीलों के साथ युद्ध किया करते थे। यह भी उल्लेख मिलता है, कि नोकदार कीलें लगे हुए घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों और पीतल से बने हथियारों का उपयोग किया जाता था। अति प्राचीन काल से लगभग 1000 ईस्वी तक सामान्य रूप से जिन हथियारों का उपयोग किया जाता था, उनमें धनुष और बाण, तलवारें, भाले और कुल्हाड़ी शामिल थे। मोहनजोदड़ो, साँची, उदयगिरि और हडप्पा के खंडहरों से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है की कुछ प्रकार के हथियारों का भी उपयोग किया जाता रहा होगा। पैदल सेना और घुड़सवार सेना बेलनाकार पाइप का उपयोग आधुनिक समय की तरह गोले दागने के लिए किया करती थीं। इससे प्राचीन भारत में बारूद के उपयोग के भी साक्ष्य मिलते हैं। साथ ही, प्राचीन सेना की रचना में पैदल सेना, घुड़सवार सेना, रथ, हाथी  और रसद विभाग का समावेश होता था। यहां तक कि नौवाहनविभाग या स्थिति का भी अपना स्वतंत्र विभाग होता था। कमान के उच्च-पदस्थ स्तर भी सुव्यवस्थित ढंग से संगठित और संचालित किये जाते थे, और यह व्यवस्था बड़ी संख्या में सेना के गणमान्य व्यक्तियों और अधिकारियों की दृष्टि से अत्यंत कारगर मानी जाती थी। प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारियां काफी विस्तार से निर्दिष्ट की जाती थीं, जिससे पता चलता है कि उस काल में भी युद्ध का अभ्यास और अध्ययन कितना गहन हुआ करता था। समय की आवश्यकता के अनुसार सशस्त्र सेना और संतुलन सेना की संरचना में परिवर्तन किया जाता था। 

खुफिया रणनीतियों का उपयोग भी बडे़ पैमाने पर किया जाता था, और निर्णयों का संरक्षण हमेशा संघर्ष के बजाय अन्य माध्यमों द्वारा करने का प्रयास किया जाता था। हालांकि रथों और घोड़ों का उपयोग बडे़ पैमाने पर किया जाता था, परंतु यह उपयोग गरिमा और दिखावे के प्रदर्शन के लिए अधिक होता था ना कि रणनीतिक श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए। अशोक के काल में गुप्तचर भी अस्तित्व में थे। 

2.2 भारतीय सेना का मध्ययुगीन इतिहास 

देश में मुस्लिम आक्रमण के साथ, देश के विभिन्न भागों में भारतीय सेना अच्छी तरह से सुगठित और संगठित थी। हालांकि अभी भी उनमे गतिशीलता की कमी थी, और सैन्य बलों का अधिकांश भाग पैदल सेना के रूप में था। छोटी और अच्छी तरह से प्रशिक्षित सेनाएं उस काल में भी सेनाओं का केंद्र बिंदु हुआ करती थीं, जबकि बडा भाग जागीरदार और आश्रितों का हुआ करता था। अफगानों ने जब विभिन्न दर्रों के माध्यम से देश की उत्तर पश्चिमी दिशा में घुसपैठ शुरू की, तो सैन्य विचार की दृष्टि से पुनः ठहराव की स्थिति बन गई। अकबर का काल आते-आते सेना संगठित और शक्तिशाली बन गई। हालांकि मुस्लिम शासकों ने अब तक अपने आपको दृढ़तापूर्वक स्थापित कर लिया था, फिर भी वे सैन्य संगठन में अपनी ओर से कुछ भी नया नहीं जोड़ पाये। इस प्रकार, इस समय तक सेना का झुकाव घुड़सवार सेना की ओर परिवर्तित हो गया क्योंकि उन्हें सैन्य अभियानों के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों की यात्रायें करनी पड़ती थीं। राजधानी की तत्काल सुरक्षा की दृष्टि से केंद्र में एक छोटी सेना अंगरक्षकों के रूप में रखी जाती थी। सेना से 

संबंधित विस्तृत जानकारी प्रांतीय गवर्नरों के अधीन बनाये रखी जाती थी। राजपूत, जिन्होंने प्रारंभ में सैन्य वर्गों का निर्माण किया था, उन्हें भी नए शासकों और उनके अपने स्वधर्मियों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया। सौ वर्ष के एक संक्षिप्त काल में, सिक्खों ने भी अपने आपको एक सैन्य वर्ग के रूप में संगठित कर लिया था। उनकी उत्पत्ति को भी देश के सैन्य इतिहास में एक मील के पत्थर के रूप में माना जाता है। 

2.3 ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय सेना का इतिहास

ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय सेना संगठित हुई। हालांकि भारत पर अनेक विदेशी शासकों ने शासन किया, फिर भी इसके हितों और इसकी सीमाओं की रक्षा हमेशा इस मिट्टी के लोगों द्वारा ही की गई। यहां तक कि ब्रिटिश शासन काल में भी, उपनिवेशवादियों के विरुद्ध विद्रोह वर्दीधारी लोगों द्वारा ही किया गया। राजाओं के शासन काल के दौरान सैनिकों की निष्ठा हमेशा अपने राजा के प्रति होती थी। बाद के काल के दौरान, इस संपूर्ण धारणा में आमूल परिवर्तन आया। यह परिवर्तन मूल रूप से बढ़ती हुई देश की धारणा के विचार के परिणामस्वरूप आया। ब्रिटिश शासन के अधीन सेना का संगठन और इसकी रचना पूर्णतः एक विदेशी आधार पर की गई, और यह आधार देश में उनके आतंरिक हितों की रक्षा और उनके लिए चीन और यूरोप जैसे सुदूर विदेशों में लड़ने से संबंधित था। 

एक एकीकृत भारतीय सेना के अंश अप्रैल 1895 के निर्णय में मिलते हैं, जिसके अनुसार चारों प्रेसीडें़सी (पंजाब, बंगाल, बंबई और मद्रास) की सेनाओं को एक भारतीय सेना के रूप में एकीकृत किया गया। इसे पंजाब, बंगाल, मद्रास और बंबई नामक चार कमानों में विभाजित किया गया था। भारतीय सेना की सर्वोच्च कमान गवर्नर जनरल इन कौंसिल के हाथों में सौंपी गई थी, जिसका पालन भारत के लिए राज्य सचिव द्वारा किया जाता था। 

स्वतंत्रता-पूर्व काल में, एक सेना विभाग हुआ करता था, जिसका, जनवरी 1938 में रक्षा विभाग के रूप में पुनः नामकरण किया गया। यही वह रक्षा विभाग था, जो अगस्त 1947 में एक केंद्रीय रक्षा मंत्री के अधीन भारत का रक्षा मंत्रालय बना।

2.4 आज़ाद हिंद फौज

इंडियन नॅशनल आर्मी (आयएनए) या आज़ाद हिंद फौज़ नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र भारतीय सेना थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में यह दक्षिण-पूर्व एशिया में एक सशस्त्र सेना थी। इस सेना का उद्देश्य जापान की मदद से भारत को अंग्रेज़ों के आधिपत्य से मुक्त कराना था। शुरुआत में इसका गठन जापान द्वारा मलाया के अभियान और सिंगापुर में पकडे़ गए भारतीय युद्ध बंदियों को शामिल करके किया गया, जिसमें बाद में म्यांमार में रह रहे हजारों की संख्या में भारतीय भी शामिल हुए। आज़ाद हिंद फौज़ में एक संपूर्ण रूप से महिलाओं की टुकड़ी भी थी (झाँसी की रानी पल्टन)। उस समय तक (और शायद आज तक भी) आज़ाद हिंद फौज़ एक मात्र ऐसी सेना है, जो एक देशभक्त नेता द्वारा स्थापित की गई थी, और जो इतनी अल्प अवधि में एक शोषणकर्ता शासन के विरुद्ध खड़ी हुई। हालांकि आज़ाद हिंद फौज़ भौतिक रूप से अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने में सफल नहीं हुई, परंतु यह भारतीयों को अंग्रेज़ों के विरुद्ध एकत्रित करने के अभियान में अत्यधिक सफल हुई। यह आज तक एक ऐसी संस्था बनी हुई है जिसके लिए देशवासियों के दिलों में अत्यंत सम्मान और अपार स्नेह है।  

3.0 भारतीय सशस्त्र सेनाएंः सुरक्षा बलों की महत्वपूर्ण विस्तृत जानकारी और संरचना 

भारतीय थल सेना 
थल सेना का आकार

11, 29, 000 सक्रिय कर्मी 
9,60, 000 आरक्षित कर्मी 
158 वायुयान 
62 प्राक्षेपिक मिसाइल रक्षा मंत्रालय का भाग 
भारतीय सशस्त्र सेना मुख्यालय, नई दिल्ली, भारत 

भारतीय थल सेना भारतीय सशस्त्र सेना का थल-आधारित अंग है, और यह भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सबसे बडा भाग है। आयआयएसएस के अनुसार, 2010 में भारतीय थल सेना में 11, 29, 000 सक्रिय कर्मी और 9, 60, 000 आरक्षित कर्मी थे, जो भारतीय थल सेना को विश्व की सबसे बड़ी तैयार स्वयंसेवक सेना बनाते हैं। 

भारतीय थल सेना का प्राथमिक उद्देश्य है राष्ट्रीय सुरक्षा और भारतीय गणतंत्र की बाहरी आक्रमणों और खतरों से सुरक्षा करना, और इसकी सीमाओं के अंदर शांति और सुरक्षा बनाये रखना। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 355 सरकार को इस संदर्भ में अधिकार प्रदान करता है। प्राकृतिक आपदाओं और अन्य उपद्रवों के दौरान भारतीय सेना मानवतावादी बचाव कार्य भी करती है। भारत के राष्ट्रपति भारतीय थल सेना के प्रधान सेनापति हैं। थल सेना अध्यक्ष (सीओएएस) एक चार सितारा सेनापति होता है, और वह थल सेना का नेतृत्व करता है। भारतीय थल सेना के दो अधिकारियों को फील्ड मार्शल का पद प्रदान किया जा चुका है, जो एक पांच सितारा पद है और यह अधिकारी एक समारोहिक प्रमुख के रूप में सेवा प्रदान करता है। 

भारतीय थल सेना 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अस्तित्व में आई, और इसे ब्रिटिश भारतीय सेना की वह अधिकांश अधोसंरचना विरासत में प्राप्त हुई, जो विभाजन के पश्चात भारत की सीमा में स्थित थी। भारतीय थल सेना एक स्वैच्छिक सेवा है, और हालांकि भारतीय संविधान में अनिवार्य सैनिक भर्ती का प्रावधान है, परंतु इसे कभी भी लागू नहीं किया गया। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय सेना अपने पड़ोसी पाकिस्तान के विरुद्ध चार युद्ध और चीन के विरुद्ध एक युद्ध लड चुकी है। भारतीय थल सेना द्वारा किये गए अन्य महत्वपूर्ण अभियानों में ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन मेघदूत और ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं जो क्रमशः गोवा (1961), सियाचिन (1984) एवं मालदीव्स (1988) में किये गये। संघर्षों के अतिरिक्त भारतीय थल सेना ने संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भी सक्रिय हिस्सा लिया है।

संरचनाः भारतीय थल सेना की संख्या लगभग दस लाख सैनिकों की है, जो 34 डिवीजनों में विभाजित हैं। इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है, जिसकी कमान थल सेनाध्यक्ष के हाथों में होती है, जो वर्तमान में जनरल दलबीर सिंह सुहाग हैं। प्रारंभ में, थल सेना का मुख्य उद्देश्य देश की सीमाओं की सुरक्षा था। हालांकि, बीते अनेक वर्षों में, सेना ने आतंरिक सुरक्षा प्रदान करने का दायित्व भी ग्रहण कर लिया है, विशेष रूप से विद्रोह-ग्रस्त कश्मीर और उत्तर-पूर्व में। हाल ही में, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए, थल सेना की संख्या में 90,000 से अधिक की वृद्धि करने का प्रस्ताव किया गया है। 

कमानः थल सेना 7 परिचालन कमानों का संचालन करती है। प्रत्येक कमान का नेतृत्व जनरल आफिसर कमांडिंग-इन-चीफ द्वारा किया है, जिसका पद लेफ्टिनेंट जनरल का होता है। प्रत्येक कमान सीधे नई दिल्ली के सेना मुख्यालय से संबद्ध होती है। इन कमानों की सूची उनकी स्थापना वर्ष के अनुसार सही क्रम में दी जा रही है, साथ ही उनके स्थान (शहर) के नाम भी दिए गए हैं - मध्य कमान, मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश; पूर्वी कमान, मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल; उत्तरी कमान, मुख्यालय उधमपुर, जम्मू एवं कश्मीर; दक्षिणी कमान, मुख्यालय पुणे, महाराष्ट्र; दक्षिण-पश्चिमी कमान, मुख्यालय जयपुर, राजस्थान; पश्चिमी कमान, मुख्यालय चंडीमंदिर; और प्रशिक्षण कमान, मुख्यालय शिमला, हिमाचल प्रदेश। 

थल सेना की एक प्रशिक्षण कमान भी है, जिसका संक्षिप्त नाम एआरटीआरएसी है। प्रत्येक कमान मुख्यालय के कर्मचारियों का नेतृत्व सी-ओ-एस द्वारा किया जाता है, जो एक लेफ्टिनेंट-जनरल पद का अधिकारी होता है। इनके अतिरिक्त, थल सेना के अधिकारी सामरिक बल कमान और अंड़मान और निकोबार कमान जैसी त्रि-सेवा कमानों का नेतृत्व भी कर सकते हैं। 

4.0 भारतीय थल सेना की संरचना

जैसा कि पहले बताया गया है, भारतीय थल सेना विश्व की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है, जिसमें सैनिकों की संख्या दस लाख से अधिक है, और इसकी 34 डिवीजनें हैं। शुरुआत में भारतीय थल सेना का मुख्य उद्देश्य देश की सीमाओं की सुरक्षा था। हालांकि, बीते अनेक वर्षों में, सेना ने आतंरिक सुरक्षा प्रदान करने का दायित्व भी ग्रहण कर लिया है, विशेष रूप से विद्रोह ग्रस्त कश्मीर और उत्तर पूर्व में।

नीचे भारतीय थल सेना की क्षेत्र संरचनाएं दी गई हैं। 

सेक्शनः सेना का सबसे छोटा समूह जिसका संख्या बल 10 कर्मियों का है। इसका नेतृत्व हवलदार या सार्जेंट श्रेणी के एक अनायुक्त अधिकारी (छब्व्) द्वारा किया जाता है। 

प्लाटूनः एक कंपनी और सेक्शन के बीच की संरचना। एक प्लाटून का नेतृत्व आयुक्त (कमीशंड) अधिकारी की उपलब्धता के अनुसार एक कैप्टेन या लेफ्टिनेंट द्वारा किया जाता है, कभी-कभी इसका नेतृत्व एक कनिष्ठ आयुक्त अधिकारी (जेसीओ) सुबेदार द्वारा भी किया जाता है। इसमें सैनिकों की संख्या लगभग 32 होती है। 

कंपनीः इसका नेतृत्व एक मेजर या कैप्टेन द्वारा किया जाता है, और इसकी सैनिक संख्या 120 सिपाहियों की होती है। 

बटालियनः एक बटालियन का नेतृत्व एक कर्नल द्वारा किया जाता है, और यह पैदल सेना की मुख्य लड़ाकू इकाई होती है। इसमें 900 से अधिक युद्धक सैनिक होते हैं। 

ब्रिगेडः एक ब्रिगेड में आमतौर पर 3,000 सैनिकों के साथ कुछ सहायक कार्मिक भी होते हैं। एक पैदल सेना ब्रिगेड के अंतर्गत विभिन्न सहायक शस्त्रों और सेवाओं सहित साधारणतः 3 पैदल सेना बटालियनें होती हैं। इसका नेतृत्व ब्रिगेडियर द्वारा किया जाता है, कुछ सेनाओं में एक ब्रिगेडियर जनरल के समकक्ष। विभिन्न सेना डिवीजनों के अंतर्गत आने वाली ब्रिगेडों के अतिरिक्त भारतीय थल सेना में 5 स्वतंत्र बख्तरबंद ब्रिगेडें, 15 स्वतंत्र तोपखाना ब्रिगेडें, 2 स्वतंत्र वायु सुरक्षा समूह और 4 स्वतंत्र अभियांत्रिकी ब्रिगेडें हैं। ये स्वतंत्र ब्रिगेडें सीधे कोर कमांडर (जीओसी कोर) के अधीन संचालित होती हैं। 

डिवीज़नः प्रत्येक डिवीज़न का नेतृत्व मेजर जनरल श्रेणी के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) द्वारा किया जाता है। इसमें आमतौर पर 15,000 युद्धक सैनिक और 8,000 सहायक तत्व होते हैं। वर्त्तमान में भारतीय थल सेना में 37 डिवीजनें हैं, जिनमें 4 रैपिड (पुनर्गठित सेना मैदानी पैदल सेना डिवीज़न), 18 पैदल सेना डिवीज़नें, 10 पर्वतीय डिवीज़नें, 3 बख्तरबंद डिवीज़नें और 2 तोपखाना डिवीज़नें हैं। प्रत्येक डिवीजन में कई ब्रिगेडें समाविष्ट होती हैं। 

रेजिमेंटल संगठनः रेजिमेंटल संगठनों को ऊपर उल्लेख किये गए मैदानी कोरों के साथ भ्रमित नहीं करना चाहिए। ये संगठन सेना के कार्यशील प्रभाग होते हैं, जिन्हें विशिष्ट संपूर्ण-थलसेना आधारित कार्य सौंपे जाते हैं। भारतीय प्रादेशिक सेना की ऐसी कई बटालियनें हैं, जो विभिन्न पैदल सेना रेजिमेंटों और कुछ अन्य विभागों, जो या तो कोर ऑफ इंजीनियर्स या सेना चिकित्सा कोर या सेना सेवा कोर से हैं, के साथ संलग्न की गई हैं। विभिन्न रेजिमेंटल संगठन निम्नानुसार हैंः

बख्तरबंद कोर रेजिमेंट्सः बख्तरबंद कोर केंद्र और विद्यालय अहमदनगर में स्थित है। 

तोपखाना रेजिमेंटः तोपखाना विद्यालय नासिक के निकट देवलाली में स्थित है। 

सिग्नल्स कोरः महू का टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग का सैन्य कॉलेज (एमसीटीई) सिग्नल्स कोर के अधिकारियों के प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण संस्थान है। इस कोर के दो अन्य प्रशिक्षण केंद्र जबलपुर और बेलगाम में स्थित हैं। 

कोर ऑफ इंजीनियर्सः सैन्य इंजीनियरिंग महाविद्यालय पुणे के दापोड़ी में स्थित है। इसके अन्य केंद्र निम्नानुसार हैं - मद्रास इंजीनियर्स ग्रुप बैंगलोर में, बंगाल इंजीनियर ग्रुप रूड़की में और बॉम्बे इंजीनियर ग्रुप पुणे के खड़की में। 

सेना वायु रक्षा वाहिनीः इसका केंद्र ओडिशा राज्य के गोपालपुर में स्थित है। 

यंत्रीकृत पैदल सेनाः इसका रेजिमेंटल केंद्र अहमदनगर में स्थित है। 

सेना उड्डयन कोर (भारत): उनकी प्रशिक्षण संस्था, युद्ध आर्मी एविएशन ट्रेनिंग स्कूल नासिक में स्थित है।

भारतीय सेना की कुछ महत्वपूर्ण रेजिमेंटें हैं

5.0 भारतीय सेना के हथियार 

पी8आई पोसाईडनः पी8आय का सुझाव भारतीय नौसेना को बोइंग द्वारा दिया गया था। 2009 में भारत के रक्षा मंत्रालय ने 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत वाले आठ पी8आय पोसाईडन की आपूर्ति के लिए बोइंग के साथ एक समझौता किया था। ये वायुयान भारतीय नौसेना के उम्रदराज टुपोलेव टीयू -142 एम समुद्री निगरानी टर्बोप्रॉप का स्थान लेंगे। प्रत्येक वायुयान की लागत लगभग 220 मिलियन अमरीकी डॉलर है। इस सौदे ने ना केवल भारत को बोइंग का पहला अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक बना दिया, परंतु यह सौदा बोइंग द्वारा भारत को किया गया पहला सैन्य विक्रय भी बन गया। 

12 मई 2010 को बोइंग ने घोषणा की कि उसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड से भारतीय नौसेना के पी8आय के लिए डेटा लिंक II संचार तकनीक नियत समय से एक महीना पूर्व अप्रैल में प्राप्त हो गई है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने यह भारतीय बनावट की संचार प्रणाली सौंपी है, जो भारतीय नौसेना के वायुयानों, जहाजों और और तटीय प्रतिष्ठानों के बीच सामरिक डेटा आदान-प्रदान में सहायक होगी। 2012 में भारत को इनमें से तीन वायुयान प्राप्त भी हो चुके थे। 

स्पायडर और बराक 8 सैमः स्पायडर एक निचले स्तर की त्वरित प्रतिक्रिया सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है (एलएलक्यूआरएम), जिसकी क्षमता वायुयानों, हेलीकॉप्टरों, मानव रहित वायुयानों, ड्रोनों और परिशुद्धता निर्देशित युद्ध सामग्री को शामिल करने की है। यह प्रणाली युद्ध क्षेत्रों में स्थाई परिसंपत्तियों को हवाई सुरक्षा प्रदान करने और गतिमान बलों को विशिष्ट स्थानों और क्षेत्रों की सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है। 

स्पायडर-एसआर (कम दूरी की) प्रणाली की 360 डिग्री शामिल करने की क्षमता है, और लक्ष्य की पुष्टि होने पर यह मिसाइल पूर्ण तैयारी के साथ पांच सेकंड से भी कम समय में दागी जा सकती है। इसकी मारक क्षमता 1 किलोमीटर से कम से लेकर 15 किलोमीटर से अधिक की आंकी गई है। ऊँचाई की सीमा 20 मीटर से लेकर 9,000 तक आंकी गई है। इस प्रणाली की क्षमता एक साथ कई लक्ष्यों को भेदने की और एकल, बहुल और तरंग गोलीबारी की भी है। यह प्रणाली दिन और रात और सभी प्रकार के मौसमों में कार्यरत रह सकती है। 

रफेल स्पायडर-एमआर नामक एक मध्यम दूरी के संस्करण का विकास कर रहा है, जिसकी मारक क्षमता 35 किलोमीटर से अधिक और ऊँचाई की सीमा 20 मीटर से 16 किलोमीटर तक होगी। स्पायडर-एमआर 8 मिसाइल्स को धारण कर सकती है, जबकि स्पायडर -एसआर की मिसाइल ग्रहण क्षमता 4 मिसाइल्स की है। स्पायडर-एमआर में एक नवीन आयएआयध्एल्टा एमएफ-स्टार निगरानी रडार भी है। 

स्पायडर प्रणाली के मुख्य घटक ट्रक पर लगे हुए आदेश और नियंत्रण यूनिट, पाइथन 5 और डर्बी मिसाइल्स के साथ मिसाइल फायरिंग यूनिट, एक फील्ड सर्विस वाहन और मिसाइल आपूर्ति वाहन हैं। यह प्रणाली संक्रिया के दो तरीके से मिसाइल्स दाग सकती हैः लांच से पहले लॉक करना (एलओबीएल) और लांच के बाद लॉक करना (एलओएएल)। 

एक विशिष्ट स्पायडर स्क्वार्ड्न में एक चलित कमान और नियंत्रण इकाई (सीसीयू) और चार चलित गोले दागने वाली इकाइयां (एमएफयू) होती हैं। चलित सीसीयू में एक निगरानी रडार और दो संचालन केंद्र लगे होते हैं जिसका रेडियो डेटा संबंध सीसीयू और चारों एमएफयू से जुड़ा होता है। 

ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाला ब्रह्मोस II: यह मिसाइल अपने विकास के अंतिम चरण में है। ब्रह्मोस वैज्ञानिक अब भारत से एसयू - 30एमकेआय वायुयान का इंतजार कर रहे हैं, जिसे इस मिसाइल के परीक्षण लांच के लिए प्लॅटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। 

हवा से मार करने वाला संस्करण जमीन आधारित संस्करण से हल्का और छोटा होगा, ताकि इसे वायुयान के साथ संलग्न किया जा सके। इस हथियार प्रणाली के हवा संस्करण में से मिसाइल में से दो में से एक गति बूस्टर निकाल दिए गए हैं, क्योंकि 1.5 माक से भी अधिक गति से चलने वाले वायुयान से दागे जाने के बाद, मिसाइल अपने आप अपनी गतिशीलता अर्जित कर लेगी और अपनी 2.8 माक की गति बनाये रखेगी।

वायुयान से छूटने के बाद, मिसाइल की क्रियाशील होने से पहले और लक्ष्य की ओर उड़ने से पहले लगभग 150 मीटर की मुक्त गिरावट होगी। इसकी सीमा और गति इसके पृथ्वी और जहाज से दागे जाने वाले संस्करण के सामान ही होगी। 

वायुयान के मिसाइल के साथ समन्वय के लिए दो भारतीय वायुसेना एसयू-30 विमानों का उपयोग किया जायेगा। ये विमान उन 40 एसयू-30 विमानों का हिस्सा होंगे जिनके लिए 2006 में आदेश दिए जा चुके हैं। 

एक भारत-रूस संयुक्त कंपनी ने क्रूज मिसाइल को विकसित करने की शुरुआत कर दी है, जिसकी उडान गति क्षमता 5 माक होगी, जो इसे ‘‘अवरोधन के लिए असंभव‘‘ बना देगी। ब्रह्मोस-2 भारतीय सेना द्वारा उपयोग की जा रही अत्यधिक सफल ब्रह्मोस मिसाइल की अगली पीढ़ी की मिसाइल होगी। 

ब्रह्मोस मिसाइल (इस संक्षिप्त नाम का अर्थ है ब्रह्मपुत्र-मॉस्को) को विकसित करने की प्रक्रिया 1998 से जारी है, और इसका पहला परीक्षण लांच 2001 में किया गया था। परियोजना के आधार के अनुसार रूस ने अपने पी-800 ओनिक्स मिसाइल का डिजाइन प्रदान किया था, जबकि भारत ने इसकी मार्गदर्शक प्रणाली विकसित की थी। इसकी अधिकतम गति 2.8 माक है, जो इसे विश्व की सबसे तेज़ मिसाइल बनाती है। 

ऐसा अनुमान है, कि ब्रह्मोस-2 की गति वर्तमान संस्करण से दुगनी होगी जो, विकसनकर्ता बताते हैं, कि इसे विद्यमान सभी मिसाइल सुरक्षा प्रणालियों से अभेद्य बना देगी। 

एफ-इंसासः एफ-इंसास एक अत्याधुनिक कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य भारतीय पैदल सेना को भविष्य के हथियारों, संचार नेटवर्क और युद्धभूमि की त्वरित जानकारी प्राप्त करने की प्रणाली से लैस करना है। 

यह कार्यक्रम अन्य देशों के भविष्य कालीन सैनिक कार्यक्रमों के समान ही है। एफ-इंसास में सभी प्रकार के भूभागों, सभी प्रकार के मौसमों में कार्यक्षम एक पूर्णतः नेटवर्क युक्त व्यक्तिगत उपकरण प्लेटफॉर्म, और भविष्यकालीन डिजिटल युद्ध क्षेत्र में बढ़ी हुई गोलाबारी क्षमता और गतिशीलता उपलब्ध करने की क्षमता उपलब्ध है। सैनिकों द्वारा उठाये जाने वाले वजन को कम से कम 50 प्रतिशत तक कम करना पडे़गा। 

कल की पूरी तरह से एकीकृत पैदल सेना को अपने दोस्त सैनिक दल, उप-इकाई, और समग्र रूप से सी 412 प्रणाली (कमान, नियंत्रण, संचार कंप्यूटर, सूचना और खुफिया जानकारी) के साथ एकीकृत मिशन उन्मुख उपकरणों से लैस किया जाएगा। 

फालकन अवाक्सः भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान गतिरोध के मद्देनजर फालकन का समावेश जबरदस्त शक्ति गुणक साबित होगा। इस प्रकार की क्षमता प्रदान करने वाले एकमात्र प्लेटफॉर्म हैं रॉ के विमानन अनुसंधान केंद्र के खुफिया विमान और भारतीय वायुसेना के इसराइल द्वारा निर्मित हेरॉन और खोजी-II ड्रोन के बेडे। 

यह वायुयान यह कार्य फालकन नामक इजराइल-निर्मित एईडब्लू मिशन सुइट का उपयोग करके कर सकेगा, जो एक रूस द्वारा निर्मित आयएल-76 परिवहन विमान पर लदा होगा। यह प्रणाली हवाई और सतह लक्ष्यों की सामरिक निगरानी और 400 किलोमीटर से अधिक अर्धव्यास के क्षेत्र की खुफिया जानकारी प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। ठोस चरणबद्ध सरणी एल्टा ईएलध्एम-2075 रडार विमानकबंध के ऊपर एक रडोम पर आरोहित होता है। इलेक्ट्रॉनिक रूप से चलित बीम विमान के चारों ओर एक 360 डिग्री कवरेज प्रदान करता है, और इस पर वायुसेना के कर्मी भी ले जाए जाते हैं, जो डेटा का विश्लेषण करके लडाकू विमान को दिशा प्रदान करते हैं। 

‘‘एईडब्लू में लचीलेपन के तिहरे लाभ हैं-वे कहीं भी संचालित किये जा सकते हैं, और एक उठे हुए प्लेटफॉर्म पर आरोहित होने के कारण अधिक बेहतर कवरेज प्रदान करते हैं, और ये अपने साथ नियंत्रण प्रणालियां और डेटलिंक लिए होते हैं, जिन्हें अपने खुद के युद्धक विमान को सदिश करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।‘‘ यह कहना है पश्चिमी वायु कमान के पूर्व कमांडर, एयर मार्शल वी के भाटिया का।

एमएमआरसीए-राफेलः भारतीय वायु सेना के लिए मध्यम बहु भूमिका लडाकू  विमान (एमएमआरसीए) प्रतिस्पर्धा, जिसे आमतौर पर एमआरसीए निविदा कहा जाता है, यह भारतीय वायुसेना को 126 मध्यम बहु भूमिका लडाकू  विमानों की आपूर्ति करने के लिए लगातार जारी प्रतिस्पर्धा है। रक्षा मंत्रालय ने इन विमानों के क्रय के लिए रू. 42, 000 करोड़ आवंटित किये हैं (लगभग 10.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर)।

इस बहु-बिलियन डॉलर अनुबंध के लिए छह विमान कंपनियों ने बोली लगायी। इसे भारत का अब तक का सबसे बड़ा एकल रक्षा सौदा माना जा रहा है। भारत ने राफेल को विजयी के रूप में चुना। जून 2014 में रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने संकेत किया कि यह समझौता अगले तीन महिनो मे पूर्ण हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो अनुमानित है कि पहले 18 विमान 2016 के मध्य तक भारत आ जाएँगे। बचे 108 विमानों का र्निमाण एच.ए.एल. द्वारा किया जा रहा है तथा उनका बहिर्वेल्लन 2018 से अपेक्षित है।

आयएनएस विक्रमादित्य और आयएसी 1ः आयएनएस विक्रमादित्य पूर्व रूसी विमान वाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव का नया नाम है, जो भारत द्वारा क्रय किया गया है, और जो भारतीय नौसेना की सेवा में 2013 के बाद आने की संभावना है। 

विक्रमादित्य, 1978-1982 के दौरान यूक्रेन के काला सागर शिपयार्ड, मयकोलाइव में निर्मित टाइप 1143-कीव श्रेणी के विमान वाहक पोत का सुधारा हुआ रूप है। वर्तमान में इस जहाज में रूस के सेवमाश शिपयार्ड में बडे़ पैमाने पर परिवर्तन किये जा रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि यह, वर्तमान में भारत के एकमात्र सेवारत विमान वाहक पोत आयएनएस विराट का स्थान लेगा। 

विक्रांत श्रेणी के विमान वाहक पोत (पूर्व के परियोजना 71 ‘‘वायु सुरक्षा जहाज‘‘ (एडीएस,) भारत द्वारा डिजाइन और निर्मित भारतीय नौसेना के पहले विमान वाहक पोत हैं। उनकी निर्मिति कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) द्वारा की जा रही है।

विक्रांत श्रेणी के पोत सीएसएल द्वारा निर्मित सबसे बडे़ युद्ध पोत होंगे। इस श्रेणी के प्रमुख पोत पर काम 2008 में शुरू हुआ। 2010 में इसकी शुरुआत से पहले इसका 80 प्रतिशत काम पूर्ण हो जायेगा। आशा कि इस श्रेणी का पहला पोत 2012 तक सेवा में प्रवेश कर लेगा, परंतु इसमें एक वर्ष का विलंब हुआ। जानकारी के अनुसार इस विलंब का कारण रूस द्वारा एबी/ए वर्ग के इस्पात की आपूर्ति करने में अक्षमता बताया गया। इसने सेल को इस वर्ग का इस्पात भारत में निर्माण करने की सुविधा विकसित करने के लिए प्रेरित किया, और इसके सक्षम बनाया।

प्राक्षेपिक मिसाइल प्रतिरक्षाः भारतीय प्राक्षेपिक मिसाइल प्रतिरक्षा कार्यक्रम बहु-सतही प्राक्षेपिक मिसाइल प्रतिरक्षा के विकास और तैनाती के लिए की गई पहल है। 

पाकिस्तान से प्राक्षेपिक मिसाइल प्रतिरक्षा खतरे के परिपेक्ष्य में शुरू किया गया यह कार्यक्रम एक द्वि स्तरीय प्रणाली है जिसमें उच्च ऊँचाई अवरोध के लिए पृथ्वी वायु रक्षा (पीएडी) और कम ऊँचाई अवरोध के लिए उन्नत वायु रक्षा (एएडी) नामक दो अवरोधक मिसाइलें हैं। द्वि स्तरीय कवच 5000 किलोमीटर की दूरी से लांच किये गए किसी भी आने वाली मिसाइल को अवरुद्ध करने में सक्षम होंगे। 

पीएडी का परीक्षण नवंबर 2006 में किया गया, और इसके बाद एएडी का परीक्षण दिसंबर 2007 में किया गया। पीएडी मिसाइल के परीक्षण के साथ ही भारत अमेरिका, रूस और इस्राइल के बाद सफलतापूर्वक प्राक्षेपिक मिसाइल अवरोधी प्रणाली विकसित करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया। 6 मार्च 2009 को भारत ने एक बार फिर से अपने वायु प्रतिरक्षा कवच का सफल परीक्षण किया, जिसके दौरान एक ‘‘शत्रु‘‘ मिसाइल को 75 किलोमीटर की ऊँचाई पर अवरुद्ध किया गया। 

आईएनएस अरिहंतः आईएनएस अरिहंत (एस-73) भारत की अरिहंत श्रेणी की परमाणु शक्ति से सुसज्जित पनडुब्बियों का एक नेतृत्व पोत है। यह 5000-6000 टन वजनी जहाज विशाखापत्तनम के जहाज निर्माण केंद्र में उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (एटीवी) परियोजना के तहत निर्मित किया गया। 

अरिहंत के लिए प्रतीकात्मक प्रारंभ समारोह 26 जुलाई 2009 को विजय दिवस (कारगिल युद्ध विजय दिवस) की वर्षगांठ उपलक्ष में आयोजित किया गया था। बताया गया कि इस पनडुब्बी की शुरुआत के समय परमाणु रिएक्टर एवं अन्य प्रणालियां शामिल नहीं की गई थीं। 

प्रमुख प्रणालियों का पूर्ण एकीकरण और समुद्री परीक्षण व्यापक स्तर पर होने की संभावना है। इसका नाम अरिहंत संस्कृत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है शत्रुओं का विनाशक। 

आईएनएस अरिहंत की पूर्णता भारत को विश्व के उन छह देशों में से एक बना देगी जिनके पास स्वयं की पनडुब्बियों की डिजाइन, निर्मिति और परिचालन की क्षमता है। (अन्य देश हैं अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, फ्रांस और चीन)

पीएके एफए और एफजीएफएः सुखोई पीएके एफए एक पांचवी पीढ़ी का लडाकू विमान है जिसका विकास सुखोई ओकेबी द्वारा रूसी वायुसेना के लिए किया जा रहा है। 

वर्तमान आद्यरूप है सुखोई का टी-50। पीएके एफए जब पूर्ण रूप से विकसित हो जाएगा तो ऐसी आशा है कि यह रूसी इन्वेंट्री में मिग-29 फलक्रम और एसयू-27 लैंकर को प्रतिस्थापित कर देगा, और भारत के साथ विकसित किये जा रहे सुखोई एचएएल एफजीएफए परियोजना के आधार के रूप में कार्य करेगा। पांचवी पीढ़ी का यह जेट लडाकू विमान इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि यह लॉकहीड मार्टिन के एफ-22 रैप्टर और एफ-35 लाइटनिंग द्वितीय से सीधी प्रतिस्पर्धा करेगा। टी-50 ने अपनी पहली उडान 29 जनवरी 2010 को भरी। उसकी दूसरी उड़ान 6 फरवरी, और तीसरी 12 फरवरी को हुई। 

सुखोई के निदेशक मिखाइल पोगोस्यां ने अगले चार दशकों में 1000 विमानों का अनुमान लगाया है, जो भारत के साथ संयुक्त भागीदारी में उत्पादित किये जायेंगे, भारत और रूस, दोनों के लिए 200-200 और 600 अन्य देशों के लिए। सुखोई/एचएएल पांचवी पीढ़ी का लडाकू विमान (एफजीएफए) भारत और रूस द्वारा विकसित किया जाने वाला एक पांचवी पीढी का लडाकू विमान है। यह एक पीएके एफए (टी-50 इसका आद्यरूप है) से व्युत्पत्तिलब्ध परियोजना है, जो भारतीय वायुसेना के लिए विकसित की जा रही है। (एफजीएफए भारतीय संस्करण के लिए आधिकारिक पदनाम है)

6.0 भारतीय थलसेना के अभियान

ऑपरेशन पोलो (1948): भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने हैदराबाद के निज़ाम का शासन समाप्त कर दिया और हैदराबाद के इस दक्षिण भारतीय राजशाही राज्य के भारत संघ में विलय की अगुवाई की। 

ऑपरेशन विजय (1961): भारतीय सेना द्वारा किया गया अभियान जिसका परिणाम 1961 में पुर्तगाली औपनिवेशिक कब्जे से गोवा, दमन एवं दिउ और अंजीदीव द्वीपों की मुक्ति में हुआ। 

ऑपरेशन ब्लू स्टार (3-6 जून 1984): यह भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेशानुसार अमृतसर के स्वर्णमंदिर से सिख अलगाववादियों को खदेड़ने के लिए किया गया एक भारतीय सैन्य अभियान था। संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले के नेतृत्व में अलगाववादी, इस मंदिर में बड़े पैमाने पर हथियार जमा कर रहे थे। 

ऑपरेशन बुडरोसः यह भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार के कुछ महीनों बाद चलाया गया एक सैन्य अभियान था। इस अभियान का उद्देश्य था पंजाब में ‘‘व्यापक सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों को रोकना‘‘। सरकार ने सिक्ख राजनीतिक दल अकाली दल के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिए और एक बडे़ विद्यार्थी संगठन, आल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन पर प्रतिबंध लगा दिया। 

ऑपरेशन ब्लैक टोर्नेडोः 29 नवंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) ने ऑपरेशन ब्लैक टोर्नेडो क्रियान्वित किया। इसका उद्देश्य था 26/11/2008 के मुंबई हमले के बचे हुए आक्रमणकारियों को निकालना। इसके परिणामस्वरूप ताज होटल में बचे हुए सारे हमलावर मारे गए, जिससे पूरा संघर्ष समाप्त हो गया। 

ऑपरेशन ट्राइडेंट और पायथॉनः यह अभियान भारतीय नौसेना द्वारा शुरू किया गया था, जिसमें उसने 1971 के युद्ध के दौरान कराची के एक बडे़ भाग पर कब्जा कर लिया था। यह अभियान पाकिस्तानी थलसेना द्वारा चलाये गए ऑपरेशन चंगेज़ खान की एक समयानुरूप प्रतिक्रिया थी। 

ऑपरेशन पवन (1987): यह अभियान भारत-श्रीलंका संधि के अनुसार भारतीय शांति सेना द्वारा 1987 के अंत में चलाया गया अभियान था, जिसके तहत उन्हें जाफना को एलटीटीई के कब्जे से मुक्त कराना था, ताकि एलटीटीई को हथियार डालने के लिए मजबूर किया जा सके। 

ऑपरेशन विराट (1988): यह भारतीय शांति सेना द्वारा अप्रैल 1988 में उत्तरी श्रीलंका में एलटीटीई के विरुद्ध चलाया गया एक उग्रवाद विरोधी अभियान था। 

ऑपरेशन त्रिशूल (1988): ऑपोरेशन विराट के साथ ही यह भी भारतीय शांति सेना द्वारा अप्रैल 1988 में उत्तरी श्रीलंका में एलटीटीई के विरुद्ध चलाया गया एक उग्रवाद विरोधी अभियान था। 

ऑपरेशन चेकमेट (1988): यह भी भारतीय शांति सेना द्वारा जून 1988 में एलटीटीई के विरुद्ध उत्तरी श्रीलंका के वदमाराची में चलाया गया एक उग्रवाद विरोधी अभियान था। 

ऑपरेशन कैक्टस (1988): भारतीय सशस्त्र सेनाओं द्वारा तमिल राष्ट्रवादी ‘‘प्लोटे के भाडे़ के सैनिकों को खदेड़ने के लिए चलाया गया अभियान था, जिन्होंने मालदीव्स के माले में तख्तापलट को उकसाया था। 

ऑपरेशन विजय (1999): यह उस सफल भारतीय अभियान का नाम था, जिसमें भारतीय सेना ने सफलता पूर्वक घुसपैठियों को 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान कारगिल क्षेत्र से खदेड़ दिया था। 

ऑपरेशन पराक्रमः भारतीय संसद पर हुए हमले के बाद और अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के संयम बरतने के आव्हान के बीच भारत ने अपनी फौजों को कश्मीर और भारतीय क्षेत्र के पंजाब में जमा करने के लिए रवाना किया था। यह भारत द्वारा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद का सबसे बडा सैन्य जमावडा था। इस जमावट को ऑपरेशन पराक्रम नाम दिया गया था। 

ऑपरेशन सफेद सागरः यह भारतीय वायुसेना के उस अभियान का सांकेतिक नाम था, जिसके तहत उसने ऑपरेशन विजय के दौरान थलसेना की सहायत की थी, ताकि पाकिस्तान की सेना के नियमित और अन्य अनियमित घुसपैठियों को नियंत्रण रेखा पर कारगिल क्षेत्र से बाहर खदेड़ा जा सके। 

ऑपरेशन मेघदूतः यह उस अभियान का नाम था जिसके तहत भारतीय थलसेना ने विवादित कश्मीर क्षेत्र के सियाचिन हिमनद कब्जे में लेने के लिए आक्रमण किया था, जिसने सियाचिन संघर्ष को जन्म दिया। 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया यह अभियान इस दृष्टि से अनोखा था कि यह विश्व के सबसे ऊंचे युद्ध मैदान पर किया गया पहला आक्रमण था।

भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों (यूएनपीकेओ) के सबसे महत्वपूर्ण समर्थकों में से एक है। 1,00,000 से भी अधिक भारतीय सैन्य और पुलिस कर्मी संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की 65 में से 40 विभिन्न देशों में की गई गतिविधियों में भाग ले चुके हैं, और 2014 में भारतीय शांति सैनिक 7 अलग-अलग यूएनपीकेओ में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे थे।

1950 से भारत ने जिन अभियानों में भाग लिया है, वे निम्नानुसार हैंः

  1. कोरिया (1950-54): पराचिकित्सा इकाईः इसमें 17 अधिकारी 9 जेसीओ और 300 अन्य रैंक के कर्मी शामिल थे जिनका कार्य कोरिया में घायल और बीमार सैनिकों की वापसी था। लेटिनेंट जनरल के एस थिम्मैया को संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (एनएनआरसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। भारत ने मेजर जनरल एस पी पी थोरात के अधीन एक अभिरक्षक बल भी प्रदान किया था, जिसमें 231 अधिकारी, 203 जेसीओ और 5696 अन्य रैंक थे। 
  2. इंडो-चाइना (1954-70): भारत ने इंडो-चाइना के नियंत्रण के लिए एक पैदल सेना बटालियन और सहायक कर्मचारी प्रदान किये थे, जिसमें वियतनाम, कम्बोडिया और लाओस के तीन देश शामिल थे। इनके कार्यों में अन्य कार्यों के अलावा निगरानी, संघर्ष विराम और युद्ध बंदियों का प्रत्यावर्तन शामिल था। 1854-70 की अवधि के दौरान कुल 970 अधिकारी, 140 जेसीओ और 6157 अन्य रैंक प्रदान किये गए थे। 
  3. मध्य पूर्व (1956-67): संयुक्त राष्ट्र आपात्कालीन बल (यूएनईएफ), जहां पहली बार सशस्त्र बलों की टुकडियां तैनात की गई थीं। भारत का योगदान था एक पैदल सेना बटालियन और अन्य सहायता कर्मी। 11 वर्ष की अवधि के दौरन 393 अधिकारी, 409 जेसीओ और 12383 अन्य रैंक, जिन्होंने इस अभियान में भाग लिया था। 
  4. कंबोडिया (1992-93) (यूएनटीएसी): इसका गठन संघर्ष विराम की निगरानी, लडाकों को निःशस्त्र करना, विस्थापितों का प्रत्यावर्तन और मुक्त और निष्पक्ष चुनाव के आयोजन की निगरानी। भारतीय थलसेना की ओर से कुल 1373 सभी रैंक्स ने हिस्सा लिया। 
  5. मोजाम्बिक (1992-94) (ओएनयूएमओजेड): दो इंजीनियर कंपनियां एचक्यू कंपनी, संभार तंत्र कंपनी, स्टाफ अधिकारी और सैन्य पर्यवेक्षक प्रदान किये गए थे। कुल 1083 सभी रैंक्स ने भाग लिया। 
  6. सोमालिया (1993-94) (यूइनआईटीएएफ और यूएनओएसओएम-2): भारतीय नौसेना और भारतीय थलसेना ने यूएन गतिविधियों में सक्रिय हिस्सा लिया। भारतीय थलसेना ने एक ब्रिगेड ग्रुप प्रदान किया था, जिसमें 5000 सभी रैंक्स थे, और नौसेना ने चार लडाकू पोत प्रदान किये थे। 
  7. रवांडा (1994-96) (यूएनएएमआईआर): एक पैदल सेना बटालियन, एक सिग्नल कंपनी और इंजीनियर कंपनी, स्टाफ अधिकारी और सैन्य पर्यवेक्षक प्रदान किये गए थे। कुल 956 सभी रैंक्स ने भाग लिया। 
  8. अंगोला (1989-99) (यूएनएवीईएम): एक उप बल कमांडर प्रदान करने के अलावा एक पैदल सेना बटालियन और एक इंजीनियर कंपनी प्रदान की गई जिसमें कुल 1014 सभी रैंक्स ने भाग लिया। भारत ने यूएनएवीईएम-1  के लिए 10 मिलोब्स,  यूएनएवीईएम-2 के लिए 25 और यूएनएवीईएम-3 के लिए 20 मिलोब्स, 37 एसओ और 30 वरिष्ठ एनसीओ प्रदान किये। 
  9. सिएरा लियॉन (1999-2001) (यूएनएमएसआईएल): दो पैदल सेना बटालियन, दो इंजीनियर कंपनियां, त्वरित प्रतिक्रिया कंपनी, आक्रमण हेलीकाप्टर इकाई, चिकित्सा इकाई और संभार तंत्र समर्थन प्रदान किया। इसके अतिरिक्त एचक्यू और बल मुख्यालय कर्मचारी भी प्रदान किये। 

वर्तमान अभियानः भारतीय सशस्त्र सेनाएं वर्तमान में निम्न संयुक्त राष्ट्र अभियानों में भाग ले रही हैं। (वर्तमान में जारी कुल 14 अभियानों में से) योगदान का स्वरुप भी दिया गया है। 

  1. लेबनान (यूएनआईएफआईएल) (दिसंबर 1998 से): एक पैदल सेना बटालियन, और स्त्तर-2 का अस्पताल इसमें अभी तक 650 सभी रैंक्स और 23 स्टाफ अधिकारी शामिल हुए हैं। 
  2. कांगो (एमओएनयूसी/एमओएनयूएससीओ) (जनवरी 2005 से): विस्तारित अध्याय 7 अधिदेश। संवर्धित पैदल सेना ब्रिगेड ग्रुप (चार पैदल सेना बटालियन) साथ ही स्तर 3 का अस्पताल। उपयोगिता हेलीकॉप्टर्स के साथ सेना उड्डयन दल। बडी संख्या में मिलोब्स और एसओ भी प्रदान किये गए हैं। इसके अतिरिक्त दो गठित पुलिस इकाइयां उदा. 2009 से सीमा सुरक्षा बल और आईटीबीपी भी तैनात किये गए हैं। भारत के लेटिनेंट जनरल चंदर प्रकाश अभी हाल तक एमओएनयूएससीओ में बल कमांडर थे। एमओएनयूएससीओ का नया अधिदेश अब क्रियान्वित किया जा रहा है। (प्रस्ताव 2098 (2013) साथ ही एवी द्वारा एक हस्तक्षेप ब्रिगेड भी प्रदान की गई है, जिसकी तैनाती संयुक्त राष्ट्र की कमान के तहत की जा रही है।
  3. सूडान (यूएनएमआईएस ध् यूएनएमआईएसएस) (अप्रैल 2005 से): दो पैदल सेना बटालियन, क्षेत्र मुख्यालय, इंजीनियर कंपनी, सिग्नल कंपनी, स्तर-2 अस्पताल और बडी मात्रा में मिलोब्स और एसओ। पुराने उपकरण अब संयुक्त राष्ट्र के खर्चे पर प्रत्यावर्तित किये जा रहे हैं। हमनें एक उप-बल कमांडर (ब्रिगेडियर असित मिस्त्री) और एक पुलिस उपयुक्त (श्री संजय कुंडू जिनकी हाल ही में नियुक्ति हुई है)। यूएनएमआईएसएस के लिए एमओयू शीघ्र ही हस्ताक्षरित किये जाने की संभावना है। भारत सरकार की सहमति का इंतजार है। 
  4. गोलान ऊंचाइयां (यून्डोफ) (फरवरी 2006 से): एक संभार तंत्र बटालियन जिसमें 190 कर्मी है, यून्डोफ के संभार तंत्र की सुरक्षा पर देखरेख करने के लिए तैनात की गई है। जुलाई 2012 से मेजर जनरल आई.एस. सिंघा बल कमांडर हैं। सीरिया के संघर्ष के कारण वर्तमान संकट निर्माण हुआ है। अब स्थिति नियंत्रण में है। 
  5. आइवरी कोस्ट (यूएनओसीआई) (अप्रैल 2004 से): शुरुआत से ही इस अभियान को भारतीय एसओ और मिलोब्स समर्थन कर रहे हैं। 
  6. हैती (एमआईएनएसटीएएच) (दिसंबर 1997 से): तीन भारतीय एफपीयू, अर्थात, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ और असम राइफल्स से, जो वहां काफी सफल रहे हैं, इस अभियान के भारतीय स्टाफ अधिकारियों का समर्थन शुरुआत से ही प्राप्त है। 
  7. लाइबेरिया (यूएनएमआईएल) (अप्रैल 2007 से) लाइबेरिया में भारत पुरुष और महिला, दोनों एफपीयू प्रदान कर रहा है, उदा सीआरपीएफ/आरएएफ। महिला एफपीयू विशेष रूप से मेजबान देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं, और विश्व भर के अन्य देशों की महिला एफपीयू के लिए पथ-जनक बन गई हैं। अभी हाल तक, भारत के श्री गौतम स्वांग वहां पुलिस आयुक्त थे।

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concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati Raj,1,Institutionsandbodies,1,Instiutions and Bodies,1,Intelligence and security,1,International Institutions,10,international relations,2,Internet,11,Inventions and discoveries,10,Irrigation Agriculture Crops,1,Issues on Environmental Ecology,3,IT and Computers,23,Italy,1,January 2020,26,January 2021,25,July 2020,5,July 2021,207,June,1,June 2020,45,June 2021,369,June-2021,1,Juridprudence,2,Jurisprudence,91,Jurisprudence Governance and Institutions,1,Land reforms and productivity,15,Latest Current Affairs,1136,Law and order,45,Legislature,1,Logical Reasoning,9,Major events in World History,16,March 2020,24,March 2021,23,Markets,182,Maths Theory Booklet,14,May 2020,24,May 2021,25,Meetings and Summits,27,Mercantilism,1,Military and defence alliances,5,Military technology,8,Miscellaneous,454,Modern History,15,Modern historym,1,Modern technologies,42,Monetary and financial policies,20,monsoon and climate change,1,Myanmar,1,Nanotechnology,2,Nationalism and protectionism,17,Natural disasters,13,New Laws and amendments,57,News media,3,November 2020,22,Nuclear technology,11,Nuclear techology,1,Nuclear weapons,10,October 2020,24,Oil economies,1,Organisations and treaties,1,Organizations and treaties,2,Pakistan,2,Panchayati Raj,1,Pandemic,137,Parks reserves sanctuaries,1,Parliament and Assemblies,18,People and Persoalities,1,People and Persoanalities,2,People and Personalites,1,People and Personalities,189,Personalities,46,Persons and achievements,1,Pillars of science,1,Planning and management,1,Political bodies,2,Political parties and leaders,26,Political philosophies,23,Political treaties,3,Polity,485,Pollution,62,Post independence India,21,Post-Governance in India,17,post-Independence India,46,Post-independent India,1,Poverty,46,Poverty and hunger,1,Prelims,2054,Prelims CSAT,30,Prelims GS I,7,Prelims Paper I,189,Primary and middle education,10,Private bodies,1,Products and innovations,7,Professional sports,1,Protectionism and Nationalism,26,Racism,1,Rainfall,1,Rainfall and Monsoon,5,RBI,73,Reformers,3,Regional conflicts,1,Regional Conflicts,79,Regional Economy,16,Regional leaders,43,Regional leaders.UPSC Mains GS II,1,Regional Politics,149,Regional Politics – Regional leaders,1,Regionalism and nationalism,1,Regulator bodies,1,Regulatory bodies,63,Religion,44,Religion – Hinduism,1,Renewable energy,4,Reports,102,Reports and Rankings,119,Reservations and affirmative,1,Reservations and affirmative action,42,Revolutionaries,1,Rights and duties,12,Roads and Railways,5,Russia,3,schemes,1,Science and Techmology,1,Science and Technlogy,1,Science and Technology,819,Science and Tehcnology,1,Sciene and Technology,1,Scientists and thinkers,1,Separatism and insurgencies,2,September 2020,26,September 2021,444,SociaI Issues,1,Social Issue,2,Social issues,1308,Social media,3,South Asia,10,Space technology,70,Startups and entrepreneurship,1,Statistics,7,Study material,280,Super powers,7,Super-powers,24,TAP 2020-21 Sessions,3,Taxation,39,Taxation and revenues,23,Technology and environmental issues in India,16,Telecom,3,Terroris,1,Terrorism,103,Terrorist organisations and leaders,1,Terrorist acts,10,Terrorist acts and leaders,1,Terrorist organisations and leaders,14,Terrorist organizations and leaders,1,The Hindu editorials analysis,58,Tournaments,1,Tournaments and competitions,5,Trade barriers,3,Trade blocs,2,Treaties and Alliances,1,Treaties and Protocols,43,Trivia and Miscalleneous,1,Trivia and miscellaneous,43,UK,1,UN,114,Union budget,20,United Nations,6,UPSC Mains GS I,584,UPSC Mains GS II,3969,UPSC Mains GS III,3071,UPSC Mains GS IV,191,US,63,USA,3,Warfare,20,World and Indian Geography,24,World Economy,404,World figures,39,World Geography,23,World History,21,World Poilitics,1,World Politics,612,World Politics.UPSC Mains GS II,1,WTO,1,WTO and regional pacts,4,अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं,10,गणित सिद्धान्त पुस्तिका,13,तार्किक कौशल,10,निर्णय क्षमता,2,नैतिकता और मौलिकता,24,प्रौद्योगिकी पर्यावरण मुद्दे,15,बोधगम्यता के मूल तत्व,2,भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास,47,भारत का स्वतंत्रता संघर्ष,19,भारत में कला वास्तुकला एवं साहित्य,11,भारत में शासन,18,भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें,10,भारतीय संविधान,14,महत्वपूर्ण हस्तियां,6,यूपीएससी मुख्य परीक्षा,91,यूपीएससी मुख्य परीक्षा जीएस,117,यूरोपीय,6,विश्व इतिहास की मुख्य घटनाएं,16,विश्व एवं भारतीय भूगोल,24,स्टडी मटेरियल,266,स्वतंत्रता-पश्चात् भारत,15,
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PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - स्वतंत्रता-पश्चात् भारत - व्याख्यान - 13
यूपीएससी तैयारी - स्वतंत्रता-पश्चात् भारत - व्याख्यान - 13
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
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