यूपीएससी तैयारी - भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें - व्याख्यान - 7

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 पीडीएस, बफर भंडार एवं खाद्य सुरक्षा कानून भाग -2

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10.0 सुरक्षित भंडार एवं खाद्य सुरक्षा अधिनियम

सार्वजनिक क्षेत्र के खाद्यान्नों के भंडार भारत की खाद्य नीति और खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से तीन महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया गया है। 

  1. खरीद तंत्र के माध्यम से चावल और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रभावी क्रियान्वयन को स्थान प्रदान करने के लिए। 
  2. उत्पादन में वर्ष दर वर्ष उतार-चढ़ाव या अन्य आपातकालीन स्थिति के कारण निर्मित होने वाली मूल्य स्थिरता को बनाये रखने के लिए। 
  3. खाद्य और पोषण की सुरक्षा को बनाये रखने के लिए, विशेष रूप से अर्थव्यवस्था के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्गों के लिए सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और अन्य अनेक योजनाओं के लिए आपूर्ति के एक स्रोत के रूप में। 

भारतीय खाद्य निगम खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण और वितरण के कार्यों के लिए मुख्य अभिकरण है। लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत गेहूं और चावल की आवश्यकताओं के अतिरिक्त केंद्रीय भंडार के लिए आवश्यक है कि उसके पास इनका पर्याप्त भंडार उपलब्ध हो ताकि सूखे या फसल विनाश जैसी आपातकालीन स्थितियों का सामना किया जा सके, साथ ही मूल्य वृद्धि की स्थिति में खुले बाजार में हस्तक्षेप को सक्षम बनाया जा सके। 

10.1 सुरक्षित भंडारण के मापदंड (Buffer stocks norms)

‘‘सुरक्षित भंडार के मापदंड़‘‘ खाद्यान्नों के वे न्यूनतम भंडार हैं जो केंद्र को प्रत्येक तिमाही की शुरुआत में अपने केंद्रीय भंडार में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकताओं की दृष्टि आवश्यक रूप से रखने आवश्यक हैं। 

भंडारण की नीतियों के अनुसार भंडारों की संकल्पना कम से कम तीन दृष्टिकोणों के अदहार पर की जाती है, जिनमें से प्रत्येक का लक्ष्य सुरक्षित भंड़ारण की नीतियों के भिन्न कार्य को लक्षित करने का है। ये तीन कार्य हैं परिचालनात्मक, रणनीतिक और आधार भंडार। 

परिचालनात्मक भंडार (Operational Stocks): सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, अन्य कल्याणकारी योजनाओं और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे विभिन्न सुरक्षा जालों और कल्याणकारी योजनाओं में निरूपित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है। इस भंडार की मात्रा सरकार द्वारा इन योजनाओं के तहत जनता के प्रति की गई देयताओं के आधार पर निर्भर होती है वर्तमान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत यह देयता अनाज के लगभग 61.2 मिलियन टन की है। 

स्थिरीकरण के लिए रणनीतिक सुरक्षित भंडार (Strategic Reserves) : इनका उपयोग मुख्य रूप से किसी भी प्रकार के सूखे या अन्य किसी अप्रत्याशित झटके के विरुद्ध किये जाने के लिए होता है, जब आवश्यक खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी आती है या अनाजों की सामान्य गतिविधि बाधित होती है। ऐसी स्थितियों में आमतौर पर खुले बाजारों में मूल्य वृद्धि होने लगती है और तब इन रणनीतिक सुरक्षित भंडारों का उपयोग अनाजों के मूल्यों के स्थिरीकरण के लिए किया जा सकता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के वर्तमान अनुमानों के तहत, जिसके तहत उच्च स्तर के रियायती अनाज (आर्थिक लागत के एक बटा आठ से एक बटा दस पर) लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को प्रदान किये जाने हैं, ऐसे समय में बचे हुए बाजारों में मूल्य स्थिरीकरण का विषय कम महत्वपूर्ण हो जायेगा। 

आधार स्तरीय भंडार या ‘‘अविक्रेय भंडार‘‘(Dead Stocks): एक निश्चित मात्रा में भंडार, जो 2 से 3 महीने की अल्पकालिक सूचना पर उपलब्ध नहीं किये जा सकते। यह परिकल्पना किसी भी भंड़ार में ‘‘रहतिया माल‘‘ के सदृश है। 

सुरक्षित भंडार के मापदंड़ों में अंतिम परिवर्तन अप्रैल 2005 में किया गया था और इस मापदंड़ के अनुसारः केंद्रीय भंडार में 1 जनवरी को न्यूनतम चांवल का भंडार 118 लाख टन होना चाहिए, 1 अप्रैल को यह 122 लाख टन होना चाहिए, 1 जुलाई को 98 लाख टन, और 1 अक्टूबर को 52 लाख टन होना चाहिए। इसी प्रकार गेहूं का भंडार 1 जनवरी को 82 लाख टन, 1 अप्रैल को 40 लाख टन, 1 जुलाई को 171 लाख टन और 1 अक्टूबर को 110 लाख टन होना चाहिए। 

जनवरी 2016 में भारत सरकार ने सुरक्षित भंडार (गेहूं, चावल) आवश्यकता मापदंड़ो में निम्न परिवर्तन किये हैं (मिलियन टन में)।

खाद्यान्नों के भंडारण के मानदंडों का संबंध केंद्रीय संग्रहण में भंडार का वह स्तर है जो खाद्यान्नों की परिचलानात्मक आवश्यकता की पूर्ति की दृष्टि से और किसी भी समय निर्मित होने वाली आपातकालीन स्थितियों की दृष्टि से पर्याप्त है। 

वर्तमान में भारत सरकार द्वारा ओ.एम. दिनांक 22-01-2015 के मार्फत निर्धारित किये गये भंडारण मानदंड में निम्न बातें शामिल हैंः

  • परिचलानात्मक भंडारः लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और ओ.डब्ल्यु.एस. के अंर्तगत मासिक वितरण योग्य आवश्यकता की पूर्ति के लिये।
  • खाद्य सुरक्षा भंडार/संरक्षितः खरीद में आई कमी की पूर्ति के लिये।

भंडारण मानदंड एक तिमाही के लिये होते हैं और इसमें उस तिमाही के परिचलानात्मक भंडार और रणनीतिक संरक्षित शामिल होते हैं जो उत्पादन में आई कमी या प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये होते हैं। 

10.2 सुरक्षित भंडार के उद्देश्य 

सुरक्षित भंडारों की आवश्यकता लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से, खराब फसल वर्षों के दौरान ऐसी स्थितियों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से जब खाद्यान्नों की आपूर्ति सामान्य मांग से कम है, और उत्पादन में कमी के दौर में खुले बाजार में विक्रय के माध्यम से खाद्यान्नों की आपूर्ति सुनिश्चित करने की दृष्टि से आवश्यक है। 

सुरक्षित भंडारों के मापदंड़ों में परिवर्तनः बढ़ती खरीद और बढ़ती मांग के साथ ही सरकार ने राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र एवं नीति अनुसंधान केंद्र को निर्देश दिया था कि वह सुरक्षित भंडार के मापदंड़ों का अध्ययन करे और यदि मांग बढ़ गई है तो इसे बढ़ाने के विषय में सिफारिशें करे। एक तकनीकी समूह भी राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र एवं नीति अनुसंधान केंद्र की रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा है।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार सुरक्षित भंडार के मामले में भारत की स्थिति समाधानकारक है, जो कभी-कभी सुरक्षित भंडार मापदंड़ों से दुगने से भी अधिक रहे हैं। हालांकि इसने भारतीय खाद्य निगम की भंडारण क्षमता और देश के खुले गोदामों में सड़ते हुए अनाज पर गंभीर प्रश्न उठाये हैं। यह विषय एक बार फिर से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाया गया था, जिसने सुझाव दिया था कि सरकार को इन खाद्यान्नों को गरीबों में मुत में वितरित कर देना चाहिए। यह समस्या अत्यंत गंभीर है, परंतु इस समस्या का तत्काल समाधान संभव नहीं है। भारतीय खाद्य निगम को अपनी भंड़ारण क्षमता में वृद्धि करनी होगी, ताकि अच्छे मानसून के कारण इस वर्ष होने वाली रिकॉर्ड खरीद के लिए उचित सुरक्षित भंडारण स्थान निर्मित किया जा सके। 

10.3 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत परिचालनात्मक भंडारों की आवश्यकता 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का प्रयास वर्तमान सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यम से लगभग 61.2 मिलियन टन अनाज के वितरण का है, जिनमें मुख्य रूप से चावल और गेहूं का वितरण प्रमुख है। निहित कानूनी प्रतिबद्धता की पूर्ति के लिए आवश्यक है कि सार्वजनिक प्राधिकरणों के पास अनाज के पर्याप्त भंडार उपलब्ध हों। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक माह के लिए निर्धारित सुरक्षित भंडारों के मापदंडों का पुनर्विचार किया जाए। प्रत्येक तिमाही की शुरुआत में रखे जाने वाले परिचालनात्मक भंडारों की मात्रा का निर्णय सरकार द्वारा लोगों को प्रति माह की जाने वाली प्रतिबद्धताओं के समायोजन और प्रति माह इसके खरीद तंत्र के माध्यम से सरकार के गोदामों में होने वाले अनाज के अंतर्वाह के आधार पर किया जायेगा। 

आवश्यक परिचालनात्मक भंडार की मात्रा का निर्णय पहले सरकार द्वारा लोगों के प्रति प्रति माह की जाने वाली प्रतिबद्धता और प्रति माह इसके खरीद तंत्र के माध्यम से सरकारी गोदामों में अनाजों के होने वाले अंतर्वाह के आधार पर किया जायेगा, और फिर यह निर्धारित किया जाएगा कि प्रति माह या प्रत्येक तिमाही के लिए कितने खाद्यान्नों के भण्डारण की आवश्यकता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत देश की 67 प्रतिशत जनसंख्या को प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज प्रति माह की समान पात्रता के आधार पर चांवल, गेहूं और मोटे अनाज के क्रमशः 3, रुपये, 2 रुपये और 1 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यंत रियायती दरों पर खाद्यान्नों की आपूर्ति की जाएगी। अंत्योदय अन्न योजना के तहत के परिवारों की पात्रता, जिनमें गरीबों में से गरीबतम परिवारों का समावेश किया गया है, 35 किलोग्राम अनाज प्रति परिवार (अर्थात यदि परिवार में 5 व्यक्तियों का समावेश माना जाए तो प्रति व्यक्ति 7 किलोग्राम अनाज प्रति माह) प्रति माह को संरक्षित रखा जायेगा। यह प्रस्ताव भी किया गया है कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के वर्त्तमान खाद्यान्न आवंटन को संरक्षित रखा जायेगा, बशर्ते कि यह पिछले तीन वर्षों के (2009-10 से 2001-12) वार्षिक औसत उठाव तक सीमित होगा। तदनुसार, औसत मासिक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था उठाव की आवश्यकता की गणना 2.3 मिलियन टन गेहूं (वार्षिक 27.6 मिलियन टन), और 2.8 मिलियन टन चांवल (33.6 मिलियन टन वार्षिक) के रूप में की गई है। 

सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की इस मासिक 61.2 मिलियन टन खाद्यान्नों की आवश्यकता के विरुद्ध हमें यह भी देखना होगा कि पिछले पांच-छह वर्षों के दौरान कुल खरीद की मात्रा और उठाव की प्रवृत्ति किस प्रकार की रही है। 

10.4 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की अनुसूचियां 

इस अधिनियम में तीन अनुसूचियां हैं (इन्हें ‘‘अधिसूचना के माध्यम से‘‘ संशोधित किया जा सकता है) अनुसूची 1 में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लिए जारी मूल्य निर्दिष्ट किये गए हैं। अनुसूची 2 में मध्यान्ह भोजन, घर ले जाए जाने वाले राशन और संबंधित पात्रताओं के ‘‘पोषण मानक‘‘ निर्दिष्ट किये गए हैं। उदाहरणार्थ, 6 महीने से 3 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्रदान किये जाने वाले राशन में कम से कम 500 कैलोरी और 12 से 15 ग्राम प्रोटीन प्रदान करना अनिवार्य है। अनुसूची 3 में ‘‘खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रावधानों‘‘ की सूची तीन व्यापक शीर्षकों के तहत दी गई हैः

  1. कृषि का पुनरुद्धार (उदाहरणार्थ, कृषि सुधार, अनुसंधान और विकास, लाभदायक मूल्य);
  2. खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण और परिवहन (उदाहरणार्थ, विकेंद्री.त खरीद); और 
  3. अन्य प्रावधान (उदाहरणार्थ, पेयजल, स्वछता, स्वास्थ्य सुविधा, और ‘‘वरिष्ठ नागरिकों, विकलांगों और एकल महिलाओं‘‘ के लिए ‘‘पर्याप्त निवृत्ति वेतन‘‘)

11.0 भारत का खाद्य सुरक्षा अधिनियम और विश्व व्यापार संगठन

नए खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के कारण भारत ने विश्व व्यापार संगठन को की गई अपनी समर्थन की कुल माप का उल्लंघन कर दिया होता। विश्व व्यापार संगठन के अनेक सदस्यों ने यह तर्क दिया कि भारत का नया खाद्य सुरक्षा अधिनियम, जो देश की 1.25 बिलियन जनसंख्या के 70 प्रतिशत भाग को अस्थायी मूल्यों पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, अप्राकृतिक रूप से स्थानीय कीमतों को कम कर देगा, और देश में उनके उत्पादों को चोट पहुंचाएगा। 

भारत के विवादित खाद्य सुरक्षा अधिनियम, जो 82 करोड़ लोगों को प्रति माह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज 1 से 3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्रदान करने का वादा करता है, के क्रियान्वयन के लिए प्रति वर्ष कम से कम 62 मिलियन टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। 

भारत का तर्क यह था कि पश्चिमी देश जो अपने स्वयं के कृषि क्षेत्र को कई बिलियन डॉलर की विशाल अनुवृत्तियां प्रदान करते हैं परंतु गरीब देशों द्वारा उनके देशों के सीमांत किसानों को वास्तविक सहायता या गरीब जनसंख्या को सस्ता खाद्यान्न प्रदान करने के मुद्दे का विरोध करते हैं। चूंकि विकासशील देशों में खाद्यान्नों के मूल्य और सहायता प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या में पिछले दो दशकों के दौरान जब कृषि पर समझौता तैयार किया गया तब से वृद्धि हुई है, अतः इन अनुवृत्तियों में भी काफी मात्रा में वृद्धि हुई है। भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विजय के रूप में विश्व व्यापार संगठन ने बाली चक्र के दौरान सदस्य देशों को बिना किसी दंडात्मक कार्यवाही के मुख्य भोजन फसलों पर अनुवृत्तियां प्रदान करने की अनुमति प्रदान की, एक रियायत जिसने विश्व व्यापार चर्चा के अंतिम चक्र (दिसंबर 2013) को विफल होने की कगार से बचा लिया। यह समझौता भारत जैसे देशों को कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने और  मुख्य भोजन रियायती मूल्यों बेचने की अनुमति प्रदान करता है। यह समझौता देशों को आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक खाद्यान्नों के भंडारण की अनुमति भी प्रदान करता है। 

अंत में, भारत ने विश्व व्यापार संगठन के अब तक के सबसे पहले टीएफए पर फरवरी 2016 में हस्ताक्षर किए।

12.0 अनाज की आर्थिक लागतें

अनाज जितने प्रतीत होते हैंं उससे कई अधिक महगें होते हैं। निम्न तालिका इसे स्पष्ट करती है।





13.0 वन नेशन वन राशन कार्ड (एक देश एक राशन कार्ड)

‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ योजना खाद्य सुरक्षा लाभों की पोर्टेबिलिटी की अनुमति देगी। इसे 1 जुलाई, 2020 (उम्मीद से) से पूरे देश में उपलब्ध होने का लक्ष्य रखा गया है।

13.1 प्रमुख विचार

एक गरीब प्रवासी श्रमिक देश के किसी भी राशन की दुकान से रियायती चावल एवं गेहूं खरीद सकेगा, जैसे ही उनके राशन कार्ड आधार से लिंक हो जांएगे। वर्तमान में, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाभ (पीओएस) का लाभ उठाने के लिए, उन्हें अपने आधार को पीडीएस प्रणाली से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है। सभी राज्यों को राशन की दुकानों में पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों का उपयोग करने एवं योजना को लागू करने के लिए एक एवं वर्ष दिया गया था। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान के अनुसार, पहले से ही, देश भर में 77 प्रतिशत राशन की दुकानों में पीओएसमशीनें हैं एवं 85 प्रतिशत से अधिक लोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अंतर्गत आते हैं, उनके कार्ड आधार से जुड़े हुए हैं। (अलग से आधार कार्ड के मुद्दे पर निजता से सबंधित गंभीर चिंताएं थीं)

दस राज्य - आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना एवं त्रिपुरा - पहले से ही इस पोर्टेबिलिटी देते हैं। अखिल भारतीय लक्ष्य 30 जून, 2020 निर्धारित किया गया था। प्रवासी केवल केंद्र द्वारा समर्थित सब्सिडी के लिए पात्र होंगे, जिसमें 3 रु./किग्रा एवं गेहूं 2 रु./किग्रा बेचे गए चावल शामिल हैं, भले ही कोई लाभार्थी एक ऐसे राज्य में चला जाए जहाँ अनाज मुत में दिया जाता हो, लेकिन वह व्यक्ति उन लाभों को प्राप्त नही कर सकेगा, क्योंकि वे राज्य द्वारा वित्त पोषित होते हैं।

13.2 सुविधाएँ

कोई भी प्रवासी मजदूर केवल एक अलग राज्य के लिए (अलग राज्य में) हकदार होगा। ऑफर (यानी चावल 3 रुपये किलो एवं गेहूं 2 रुपये किलो पर बेचा जाता है)। उसे उस नए राज्य की सुविधाएं नहीं मिलेंगी क्योंकि वह वहां का नहीं है।

आधार सीडिंग गृह राज्य में भी की जा सकती है, एवं नए राज्य में इसे करना आवश्यक नहीं है।

यह योजना सुनिश्चित करेगी कि कोई भी गरीब व्यक्ति सब्सिडी वाले अनाज से वंचित न रहे। राज्य सरकारों को इसके कार्यान्वयन को तेजी से ट्रैक करना है, एवं इसे 30 जून, 2020 तक नवीनतम रूप से काम करना है। प्रवासी केवल केंद्र द्वारा समर्थित सब्सिडी के लिए पात्र होंगे, जिसमें 3 रु./किग्रा एवं गेहूं 2 रु./किग्रा बेचे गए चावल शामिल हैं, भले ही कोई लाभार्थी एक ऐसे राज्य में चला जाए जहाँ अनाज मुत में दिया जाता हो, लेकिन वह व्यक्ति उन लाभों को प्राप्त नही कर सकेगा, क्योंकि वे राज्य द्वारा वित्त पोषित होते हैं। इसके अलावा, लाभार्थियों के बीच पोषण संबंधी कमियों को कम करने के लिए, केंद्र 15 जिलों में एक पायलट परियोजना शुरू करेगा जिसमें लोहे, फोलिक एसिड, विटामिन ए एवं विटामिन बी 12 के साथ चावल को फोर्टिफाईड किया जाएगा। पहला फोर्टिफाईड अनाज इस नवंबर से राशन की दुकानों में उपलब्ध होगा।

14.0 भारत की हरित क्रांति एवं कुपोषण

खाद्यान्न उत्पादन में तेज प्रगति के बावजूद, भारत में कुपोषण बना हुआ है। हरित क्रांति हुए (एवं सफल रहे) पहले से ही, पांच दशक बीत चुके हैं।

14.1 हरित क्रांति

1960 के दशक के मध्य में फसलों की विफलता एवं अकाल की स्थितियों के कारण इसकी शुरूआत की गई थी। इसका मुख्य लक्ष्य भारत की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना था। लेकिन यह भारत के सभी लोगों के लिए भूख को समाप्त करने एवं पर्याप्त एवं उचित पोषण प्रदान करने में विफल रहा है। लॉन्च की गई नीतियों में उर्वरक एवं भूजल निकासी के लिए सब्सिडी, खाद्यान्न के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (विशेष रूप से चावल एवं गेहूं ) एवं अनाज की खरीद तथा सार्वजनिक वितरण (ज्यादातर चावल एवं गेहूं) शामिल हैं। 

विपुल उत्पादन : आज, भारत गेहूं एवं चावल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। कुल उत्पादन में हुई वृद्धि के बावजूद, सभी खाद्य पदार्थों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता केवल मामूली रूप से बढ़ी है क्योंकि 1960 के दशक के मध्य से जनसंख्या तीन गुना से अधिक हो गई है।

प्रति व्यक्ति : प्रति व्यक्ति शुद्ध उपलब्धता 1951 में प्रति वर्ष 144 किलोग्राम से बढ़कर 1971 में 171 किलोग्राम हो गई, जो मोटे तौर पर गेहूं की अधिक उपलब्धता के कारण थी, लेकिन पिछले 50 वर्षों में इसमें 170 एवं 180 किलोग्राम के बीच में उतार-चढ़ाव आया है। बदलाव यह हुआ है कि गेहूं एवं चावल ने बड़े पैमाने पर अधिक पौष्टिक दालों एवं अन्य अनाज जैसे कि बाजरा की खपत में को विस्थापित कर दिया है। ऐसा क्यों हुआ?

पीडीएस एवं गेहूं/चावल : देश भर में 5,00,000 उचित मूल्य की दुकानों से सार्वजनिक वितरण योजना (पीडीएस) के तहत, गरीबों को अत्यधिक रियायती मूल्य पर गेहूं, चावल एवं चीनी की आपूर्ति की जाती है। कैलोरीयों के उपभोग को प्रोत्साहित करने तथा अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों को बाहर रखने के लिए इसकी आलोचना की जाती है।

14.2 विश्व क्षुधा सूचकांक - ग्लोबल हंगर इंडेक्स

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) 2019 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) में भारत 119 देशों में 102 रें स्थान पर है एवं दुनिया में कुपोषित लोगों की सबसे बड़ी संख्या का घर है, जो भारत में कुल वैश्विक कुपोषण का लगभग एक चौथाई है। भारत में आज कुपोषण पांच साल से कम उम्र के बच्चों में केंद्रित है। जबकि पिछले एक या दो वर्षों में बाल कुपोषण की दर कम हुई है, फिर भी बच्चों में कुपोषण बरकरार है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार, 2015 में पांच वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों में से 21 प्रतिशत कमजोर थे एवं 38 प्रतिशत अविकसित थे ।

14.3 कुपोषण की समस्या

अति-पोषण की समस्या : भारत अति-पोषण में भी तेजी से वृद्धि का अनुभव कर रहा है, जिसका मुख्य कारण कैलोरी की अधिक खपत है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से किशोरों एवं वयस्कों, लेकिन 5-19 वर्ष के बच्चों में भी में अधिक वजन एवं मोटापे की बढ़ती घटनाओं से स्पष्ट है। इससे मधुमेह एवं अन्य गैर-संचारी रोगों के होने की संभावना की दर उच्च होती है।

कम कृषि निवेश : 1981-2014 से, कृषि में सार्वजनिक (केंद्रीय एवं राज्यों) निवेश एवं सिंचाई की वृद्धि क्रमशः 4.6 प्रतिशत एवं 4.0 प्रतिशत रही, जो विकास के तुलनीय स्तर पर चीन की निवेश दरों से नीचे है। कुपोषण, विशेष रूप से शरीर का विकास ना होना, ग्रामीण एवं निम्न आय वाले परिवारों, मुख्य रूप से किसानों में अधिक होती है।

दूसरा कारण : लगातार बाल कुपोषण का दूसरा कारण हरित क्रांति कृषि एवं खाद्य नीतियों की अक्षमता एवं विकृतियां है। 1975 में शुरू की गई एकीकृत बाल विकास योजना एवं 1995 में शुरू की गई मिड-डे मील योजना जैसे बाल पोषण पर केंद्रित कार्यक्रमों ने कैलोरी के प्रति सार्वजनिक वितरण योजना के पूर्वाग्रह को ठीक नहीं किया। सब्सिडी ने चावल एवं गेहूं पर निर्भरता जारी रखी एवं अधिक विविध एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल नहीं किया।

तीसरा कारण : स्वच्छता की कमी भारत में लगातार उच्च बाल कुपोषण का एक ओर कारण है। जिसमें अशुद्ध पेयजल एवं अस्वच्छता शामिल है। भारत ने सुरक्षित पेयजल उपलब्धता को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन 2018 ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में, खुले में शौच की व्यापकता, जो कि विशेष रूप से बच्चों में बीमारी का एक प्रमुख, कारण हैं, अभी भी लगभग 40 प्रतिशत तक थी। उप-सहारा अफ्रीका में गरीबी दर भारत की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है, एवं दोनो क्षेत्रों में कुपोषण की दर लगभग बराबर है, लेकिन खुले में शौच भारत में अधिक प्रचलित है, एवं इसलिए बच्चे कमजोर एवं अविकसीत हैं।

14.4 सारांश

आज, भारत में बाल कुपोषण एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए दीर्घकालिक परिणामों के साथ अति-पोषण तत्काल संकटों में से है। आवश्यक प्रतिक्रियाओं में शामिल हैं -

  1. गेहूँ एवं चावल से अधिक पौष्टिक अनाज, दालों, सब्जियों एवं फलों पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए मूल्य समर्थन, इनपुट सब्सिडी, खरीद एवं सार्वजनिक वितरण की हरित क्रांति नीतियों को सुधारना।
  2. अब तक शामिल खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक व्यापक श्रेणी के खाद्य प्रदार्थों के बायोफोर्टिफिकेशन को तेजी से बढ़ाना।
  3. स्वच्छता सुविधाओं में सुधार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ गरीबी एवं बाल कुपोषण केंद्रित है।

1960 के दशक में, भारत ने खुद को एवं दुनिया को यह साबित कर दिखाया कि वह भूख को कम करने एवं खुद को खिलाने में सक्षम है। कुल मिलाकर भारत अब खाद्य सुरक्षा की तलाश में एक और महत्वपूर्ण मोड़ पर है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (विश्व क्षुधा सूचकांक)

  • यह क्या है : ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) वैश्विक, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से भूख को मापने एवं ट्रैक करने के लिए डिजाइन किया गया उपकरण है। जीएचआई स्कोर की गणना हर साल भूख का मुकाबला करने में प्रगति एवं असफलताओं का आकलन करने के लिए की जाती है। जीएचआई को भूख के खिलाफ संघर्ष के बारे में जागरूकता एवं समझ बढ़ाने के लिए बनाया गया है, यह देशों एवं क्षेत्रों के बीच भूख के स्तरों की तुलना करने का एक तरीका प्रदान करता है, एवं दुनिया के उन क्षेत्रों पर ध्यान देता है जहां भूख का स्तर उच्चतम है एवं जहां भूख को समाप्त करने के लिए अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
  • भूख को मापना जटिल है। जीएचआई जानकारी का सबसे प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए, यह जानना जरूरी है कि जीएचआई स्कोर की गणना कैसे की जाती है एवं वे हमें इससे क्या पता चलता है एवं क्या नही।
  • जीएचआई स्कोर की गणना कैसे की जाती है? जीएचआई स्कोर की गणना एक तीन-चरण प्रक्रिया का उपयोग करके की जाती है जो भूख के बहुआयामी प्र.ति को समझने के लिए विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध डेटा का उपयोग करती है।
  • चार संकेतक : सबसे पहले, प्रत्येक देश के लिए, चारो संकेतकों के लिए मान निर्धारित किए जाते हैं -

  1. कुपोषण : कुपोषित आबादी का हिस्सा (जिन्हें अप्रर्याप्त कैलोरी मिल रही है) कितना है।
  2. बच्चों में क्लांतता : पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का वह हिस्सा जो क्लांत हैं (जिनमें उनकी ऊंचाई के तुलना में अभीष्ट वजन नही है, जो कि त्रीव कुपोषण का सूचक है)।
  3. अविकसित बच्चे :  पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों का वह हिस्सा जो अविकसित है (जिनमें उनकी ऊंचाई के तुलना में अभीष्ट वजन नही है, जो कि हरे कुपोषण का सूचक है)। तथा
  4. शिशु मृत्यु दर :  पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (आंशिक पोषण एवं अस्वास्थ्यकर वातावरण के घातक मिश्रण का एक प्रतिबिंब)।

  • प्रक्रिया :  दूसरा, चार घटक संकेतकों में से प्रत्येक को हाल के दशकों में वैश्विक स्तर पर सूचक के लिए उच्चतम अवलोकन स्तर के आधार पर 100 अंकों के पैमाने पर एक मानकी.त स्कोर दिया गया है। तीसरा, एचआई स्कोर की गणना करने के लिए मानकी.त स्कोर एकत्र किए जाते हैं, प्रत्येक देश के लिए, तीन आयामों में से प्रत्येक के साथ (अपर्याप्त खाद्य आपूर्ति, बाल मृत्यु दर एवं बाल कुपोषण - जिसमें बाल क्लांतता एवं बाल विकास में कमी को समान रूप से शामिल किया जाता है) को समान भार दिया गया है। इस तरह से तीन-चरणीय प्रक्रिया के परिणाम 100 प्वांईंट की पर जीएचआई गंभीरता स्केल, जहां 0 सर्वश्रेष्ठ स्कोर (भूख नहीं है) एवं 100 सबसे खराब स्कोर है। व्यवहार में, इनमें से कोई भी चरम सीमा तक नहीं पहुंचता है।
  • चार संकेतकों का उपयोग करके :  भूख को मापने के लिए संकेतकों के इस संयोजन का उपयोग करना कई फायदे प्रदान करता है। जीएचआई फार्मूले में शामिल संकेतक कैलोरी की कमी के साथ-साथ कुपोषण को दर्शाते हैं। अल्पपोषण संकेतक जनसंख्या के पोषण की स्थिति को संपूर्ण रूप से पकड़ लेता है, जबकि बच्चों के लिए विशिष्ट संकेतक जनसंख्या की विशेष रूप से कमजोर उपसमुच्चय के भीतर पोषण की स्थिति को दर्शाते हैं, जिनके लिए आहार ऊर्जा, प्रोटीन एवं/या सूक्ष्म पोषक तत्वों (आवश्यक विटामिन एवं खनिजों) की कमी से बीमारी, खराब शारीरिक एवं संज्ञानात्मक विकास एवं मृत्यु का उच्च जोखिम होता है। बच्चे को कमजोर करने एवं बच्चे के अविकसित होने दोनों को शामिल करने से जीएचआई को तीव्र एवं पुरानी दोनों प्रकार के कुपोषण का दस्तावेजीकरण करने की अनुमति मिलती है। कई संकेतकों को मिलाकर, सूचकांक या.च्छिक माप त्रुटियों के प्रभाव को कम करता है।
  • जीएचआई गंभीरता पैमाना : जीएचआई गंभीरता पैमाने को परिभाषित किया गया है - घ् 9.9 = कम, 10.0-19.9 = मध्यम, 20.0-34.9 = गंभीर, 35.0-49.9 = खतरनाक, .0 50.0 = अत्यंत खतरनाक।
  • भारत :  2019 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में, भारत 119 देशों में 102 रे स्थान पर रहा। 31.1 के स्कोर के साथ, भारत ने, क्षुधा के गंभीर स्तर का सामना किया है।


भारत में पीडीएस - नवीनतम अद्यतन

भारत सरकार - उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय

  • यह क्या है : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए) के तहत, पात्र गृहस्थ, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से खाद्यान्न, अर्थात् - गेहूं, चावल एवं मोटे अनाज (पोषक तत्व) प्राप्त करने के हकदार हैं। भारत में फेयर प्राइस शॉप्स (एफपीएस) की कुल संख्या 5,34,992 है। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक में आधार सिस्टम के अलावा ईपीओएस (इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल्स) मशीनें भी हैं।
  • इतिहास : भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा वितरण नेटवर्क है। इसे द्वितीय विश्व युद्ध के आसपास युद्धकालीन राशनिंग उपाय के रूप में पेश किया गया था। 1960 के दशक से पहले, वितरण आयातित खाद्य पदार्थों पर निर्भर था। यह उस समय की भोजन की कमी की प्रतिक्रिया के रूप में 1960 के दशक में विस्तारित किया गया। तब सरकार ने पीडीएस के लिए खाद्यान्नों की घरेलू खरीद एवं भंडारण में सुधार के लिए एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन (बाद में सीएसीपी) एवं भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना की। 1970 के दशक तक, पीडीएस सब्सिडी वाले भोजन की एक सार्वभौमिक योजना के रूप में विकसित हुआ था। 1990 के दशक में, पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों एवं गरीबों तक खाद्यान्न की पहुंच में सुधार के लिए इस योजना को पुर्नयोजित किया गया।
  • एंटाइटेलमेंट : अधिनियम के एंटाइटेलमेंट (हक) के अनुसार, अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत परिवार, प्रति माह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं, जबकि प्राथमिकता वाले घरों (पीएचएच) के लाभार्थी प्रति माह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं। पीडीएस के तहत प्रति माह 1 किलो प्रति एएवाई परिवार की सब्सिडी वाली चीनी का वितरण भी जारी है।
  • राज्य अन्य वस्तुओं को भी बेच सकते हैं : इसके अलावा, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) (नियंत्रण) आदेश, 2015 के खंड 9 (9), राज्य/ केंद्रशासित प्रदेशों को उचित मूल्य की दुकानों के संचालन की व्यवहार्यता में सुधार करने के लिए, इनके माध्यम से खाद्यान्न के वितरण के अलावा अन्य वस्तुओं की बिक्री की अनुमति भी देता है। 
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन (आईएम-पीडीएस) : विभाग ने 2018-19 एवं 2019-20 के दौरान कार्यान्वयन के लिए एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना “जन वितरण प्रणाली का एकी.त प्रबंधन (आईएम-पीडीएस)” शुरू की। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य केंद्रीय प्रणालियों/पोर्टलों के साथ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मौजूदा पीडीएस सिस्टम/पोर्टल्स को एकी.त करना, देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) से खाद्यान्न उठाने के लिए राशन कार्ड धारकों की राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी की शुरुआत करना तथा राष्ट्रीय स्तर पर राशन कार्ड/लाभार्थी के दोहरावों को भी समाप्त करना था। राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी का कार्यान्वयन दो समूहों यानी आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना (क्लस्टर- 1) एवं गुजरात एवं महाराष्ट्र (क्लस्टर- 2) में 1 अगस्त 2019 से पायलट आधार पर किया जाएगा। 
  • फोर्टिफाइड राशन का वितरण : बच्चों की आबादी के सभी आयु समूहों के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता एवं अनुशंसित आहार भत्ते (आरडीए) को राष्ट्रीय पोषण संस्थान - भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (एनआईएन-आईसीएमआर) द्वारा समय-समय पर संशोधित किया जाता है। बच्चों में पोषक तत्व बच्चों की उम्र, लिंग एवं पोषण की स्थिति के साथ भिन्न होते हैं। भारतीय जनसंख्या के लिए आरडीए को एनआईएन-आईसीएमआर द्वारा विशेषज्ञ समूह की सिफारिशों के आधार पर अंतिम रूप दिया जाता है, जो आदतन आहार से अलग-अलग परिवर्तनशीलता एवं पोषक तत्वों की जैवउपलब्धता पर आधारित होता है। अब हमारे पास चावल के फोर्टिफिकेशन के माध्यम से ‘केंद्र प्रायोजित पायलट योजना’ है एवं इसके वितरण के माध्यम के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली। उत्तर-पूर्वी, पहाड़ी एवं द्वीप राज्यों के मामले में 90 प्रतिशत तक एवं बाकी राज्यों के मामलो में 75 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता बढ़ाई गई है। भारत सरकार ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को विशेषकर उन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से गेहूं का आटा वितरित कर रहे हैं, को फोर्टिफाईड गेहूं का आटा को वितरित करने की सलाह दी है।
  • पीडीएस के तहत शिकायत निवारण : राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के संचालन में दक्षता एवं पारदर्शिता में सुधार के लिए टीपीडीएस संचालन के ’एंड-टू-एंड कम्प्यूटरीकरण’ की योजना लागू कर रहा है। इस योजना में राशन कार्ड/लाभार्थी एवं अन्य डेटाबेस का डिजिटलीकरण, ऑनलाइन आवंटन, आपूर्ति-श्रृंखला प्रबंधन का कम्प्यूटरीकरण, पारदर्शिता पोर्टल की स्थापना एवं शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं। योजना के तहत सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ऑनलाइन शिकायत निवारण सुविधा/टोल-फ्री (1967/1800-सीरीज) नंबर लागू किया गया है।
  • राशन कार्डों की संख्या राज्य/संघ राज्य क्षेत्र वार : पूरी कवायद काफी बड़ी है। संख्याएँ हैं - 1. अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह - 14,602, 2. आंध्र प्रदेश - 92,93,081, 3. अरुणाचल प्रदेश - 1,77,607, 4. असम - 57,87,581, 5. बिहार - 1,63,44,784, 6 , चंडीगढ़ - 70,220, 7. छत्तीसगढ़ - 52,85,760, 8. दादरा एवं नगर हवेली - 45,210, 9. दमन एवं दीव - 19,949, 10. दिल्ली - 17,19,074, 11. गोवा - 1,41,428, 12. गुजरात - 66,26,069, 13. हरियाणा - 26,65,586, 14. हिमाचल प्रदेश - 6,82,721, 15. जम्मू एवं कश्मीर - 16,75,723, 16. झारखंड - 57,03,023, 17. कर्नाटक - 1,24,48,653, 18 । केरल - 36,63,684, 19. लक्षद्वीप द्वीप समूह - 5,157, 20. मध्य प्रदेश - 1,17,47,674, 21. महाराष्ट्र - 1,46,01,093, 22. मणिपुर - 5,87,197, 23. मेघालय - 4,21,455 , 24. मिजोरम - 1,47,562, 25. नागालैंड - 2,84,934, 26. ओडिशा - 86,84,037, 27. पुदुचेरी - 1,76,571, 28. पंजाब - 35,33,250, 29. राजस्थान - 1,05,99,974 , 30. सिक्किम - 95,116, 31. तमिलनाडु - 1,00,70,930, 32. तेलंगाना राज्य - 49,72,809, 33. त्रिपुरा - 5,78,852, 34. उत्तर प्रदेश - 3,53,37,547, 35. उत्तराखंड - 13,24,139, 36. पश्चिम बंगाल- 5,63,13,364, कुल - 23,18,46,416

खाद्य भंड़ार - मानक व वस्तुस्थिति

  • अवलोकन : फूडग्रेन स्टॉकिंग मानदंड केंद्रीय पूल में स्टॉक के स्तर को संदर्भित करता है जो किसी भी समय खाद्यान्नों आवश्यकता को पूरा करने एवं आपातकाल के लिए पर्याप्त हो। पहले इस अवधारणा को बफर नॉर्म्स एवं स्ट्रैटेजिक रिजर्व कहा जाता था।
  • वर्तमान मानदंड : वर्तमान में भारत सरकार द्वारा निर्धारित स्टाकिंग मानदंड ओएमडी दिनांक 22.01.2015 से शामिल हैं -
  • ऑपरेशनल स्टॉक : टीपीडीएस एवं ओडब्ल्यूएस के तहत मासिक वितरण आवश्यकता को पूरा करने के लिए।
  • खाद्य सुरक्षा स्टॉक/भंडार : खरीद में कमी को पूरा करने के लिए।
  • त्रैमासिक : स्टॉकिंग मानदंड एक तिमाही के लिए हैं एवं उत्पादन एवं प्रा.तिक आपदाओं में कम गिरावट का ख्याल रखने के लिए तिमाही एवं रणनीतिक रिजर्व के लिए परिचालन स्टॉक से मिलकर बनता है।
  • एफसीआई की भंडारण क्षमता : सामान्य खरीद सीजन के दौरान पीक स्टॉक आवश्यकता के आधार पर, देश में केंद्रीय पूल खाद्यान्न के लिए आवश्यक समग्र भंडारण क्षमता लगभग 650 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) है। इसके विरुद्ध, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्युसी) एवं राज्य एजेंसियों (स्वामित्व एवं किराए पर ली गई क्षमता) के साथ उपलब्ध कुल संग्रहण क्षमता 851.54 एलएमटी (31.12.2018 को), 724.79 एलएमटी ढंके हुए गोदामों में तथा 126.75 एलएमटी कवर एवं प्लिंथ (सीएपी) भंडारण में। वैसे, राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय पूल खाद्यान्नों के भंडारण की पर्याप्त क्षमता है।
  • वैज्ञानिक भंडारण : खाद्य पदार्थों को वैज्ञानिक रूप से विभिन्न संरक्षण उपायों जैसे कि धूमन एवं कीटनाशकों के साथ उपचार के साथ संग्रहीत किया जाता है। आवश्यक देखभाल एवं सावधानी बरतने के बावजूद, प्रा.तिक आपदाओं, पारगमन में नुकसान, अधिकारियों की लापरवाही आदि विभिन्न कारणों से खाद्यान्न की छोटी मात्रा खराब हो जाती है।
  • नई योजनाएँ : ये देश के गोदामों एवं साईलो के निर्माण के लिए नई योजनाएँ हैं।

  1. निजी उद्यमी गारंटी (पीईजी) योजना : इस योजना के तहत, जिसे 2008 में तैयार किया गया था, भंडारण क्षमता का निर्माण निजी कंपनियों, सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्ल्यूसी) एवं राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा किया जाता है। इस योजना के शुरू होने के बाद से 31.12.2018 तक 142.12 एलएमटी की क्षमता बनाई गई है।
  2. केंद्रीय क्षेत्र योजना (पहले की योजना योजना) : यह योजना कुछ अन्य राज्यों के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों में लागू की गई है। सरकार द्वारा एफसीआई को एवं सीधे राज्य सरकारों को गोदामों के निर्माण के लिए फंड जारी किया जाता है। 01.04.2013 से 31.12.2018 तर्क पिछले 5 वर्षों के दौरान एफसीआई एवं राज्य सरकारों द्वारा 2,01,200 एमटी की कुल क्षमता पूरी की गई है।
  3. स्टील साईलोस का निर्माण : भारत सरकार ने, देश में, भंडारण के बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण एवं संग्रहीत खाद्यान्नों के शेल्फ जीवन को बेहतर बनाने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में 100 एलएमटी की क्षमता के स्टील साईलोस के निर्माण की एक कार्य योजना को भी मंजूरी दी है। इसके अंर्तगत 31.12.2018 तक, 6.25 एलएमटी क्षमता के स्टील साइलो बनाए गए हैं।

  • राज्यों द्वारा खरीदे गए खाद्यान्न का अधिकतम उपयोग किया जाता है, इसके बाद, अगले खरीद सीजन के लिए जगह बनाने के लिए स्टॉक को कमी वाले क्षेत्रों में ले जाया जाता है। इसी प्रकार, प्राप्तकर्ता (उपभोग करने वाले) राज्यों में, भंडारण क्षमता का निरंतर उपयोग एवं स्टॉक की पुनःपूर्ति द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत बेहतर उपयोग किया जाता है। इस प्रकार, भंडारण क्षमता आवश्यकतानुसार होती है। एफसीआई समय-समय पर भंडारण क्षमता की निगरानी एवं आकलन करता है एवं भंडारण अंतर के मामले में अतिरिक्त भंडारण क्षमता बनाने के लिए कदम उठाता है। यह आवश्यकता होने पर विभिन्न राज्य एजेंसियों एवं निजी क्षेत्र के माध्यम से क्षमता को बनाए रखता है।

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concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati 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