सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
पीडीएस, बफर भंडार एवं खाद्य सुरक्षा कानून भाग -1
1.0 प्रस्तावना
यह सुनिश्चित करना कि भारत के खाद्यान्न और कृषि उत्पादन का सही ढंग से अनुश्रवण किया जा रहा है, और यह राज्य के हस्तक्षेप के माध्यम से भारतीयों की खाद्य सुरक्षा से जुडा हुआ है, राष्ट्रीय नीति निर्माण और क्रियान्वयन के मुख्य पहलुओं में से एक है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कृषि बहुसंख्य भारतीय जनसंख्या के जीवनयापन का स्रोत है, और साथ ही भारत में ऐसे गरीब व्यक्तियों की संख्या काफी अधिक है जिन्हें खाद्य सहायता की आवश्यकता है। अनाजों, दालों और अन्य पैदावारों के भारी उत्पादन को लक्षित करने का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक उनके भंडारण, परिवहन और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उचित मूल्यों पर वितरण सुव्यवस्थित नहीं है। किसी भी दृष्टि से यह एक बहुत विशाल कार्य है।
यह हमारी सरकार का अच्छा काम है कि पिछले अनेक वर्षों के दौरान ये महत्वपूर्ण गतिविधियाँ अत्यंत व्यावसायिक ढंग से की जाती रही हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सुरक्षित भंडारण और खाद्य सुरक्षा अधिनियम से संबंधित गतिविधियाँ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत हैं, जो उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले दो विभागों में से एक है।
इस विभाग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
- खाद्यान्नों की खरीद, संचलन, भंडारण और वितरण संबंधी राष्ट्रीय नीतियां तैयार करना और कार्यान्वित करना;
- गरीबों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का कार्यान्वयन करना;
- खाद्यान्नों का केन्द्रीय आरक्षित स्टॉक रखने के लिए भंडारण सुविधाओं की व्यवस्था करना और वैज्ञानिक भंडारण को बढ़ावा देना;
- खाद्यान्नों के निर्यात और आयात, बफर स्टॉक रखने, गुणववत्ता नियंत्रण तथा मानदण्डों के संबंध में राष्ट्रीय नीतियां तैयार करना;
- चावल, गेहूं और मोटे अनाजों के संबंध में खाद्य सब्सिडी की व्यवस्था करना;
- चीनी और गन्ना क्षेत्र से संबंधित नीतिगत मामले, चीनी फैक्ट्रियों द्वारा देय गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) निर्धारित करना, चीनी उद्योग का विकास और विनियमन करना (चीनी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने सहित) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए चीनी की आपूर्ति करना;
- खाद्य तेलों की मानीटरिंग, मूल्य नियंत्रण एवं आपूर्ति करना।
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की स्थापना भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत और राज्य सरकारों के साथ संयुक्त प्रबंधन में अभावग्रस्तता प्रबंधन और खाद्यान्नों के सस्ते दामों पर वितरण की व्यवस्था के रूप में की गई थी। बीते वर्षों के दौरान सार्वजनिक वितरण व्यवस्था देश में सरकार की खाद्य अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा प्रबंधन व्यवस्था नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। खाद्यान्नों का वितरण सार्वजनिक वितरण दुकानों के संजाल के माध्यम से किया जाता है, जिन्हें राशन की दुकानें भी कहा जाता है, जो विभिन्न राज्यों में देश भर में स्थापित की गई हैं। सरकारी स्वामित्व का निगम, भारतीय खाद्य निगम, खाद्यान्नों की खरीद करता है और सार्वजनिक वितरण व्ययस्था का रखरखाव करता है। सार्वजानिक वितरण व्यवस्था का स्वरुप अनुपूरक है और इसका उद्देश्य परिवारों को या समाज के किन्ही विशिष्ट वर्गों को इनके तहत वितरित विभिन्न खाद्य वस्तुओं की संपूर्ण आपूर्ति उपलब्ध कराने का नहीं है।
सार्वजानिक वितरण व्यवस्था का परिचालन केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से केंद्र सरकार राज्य सरकारों के लिए खाद्यान्नों के खरीद, भंड़ारण, परिवहन और थोक आवंटन की जिम्मेदारी उठाती है। राज्यों के भीतर आवंटन, गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करने, और उचित मूल्य की दुकानों के पर्येक्षण जैसे परिचालनात्मक कार्य राज्य सरकारों के जिम्मे होते हैं। वर्तमान में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को गेहूं, चांवल, शक्कर और मिट्टी के तेल जैसी खाद्य सामग्री वितरित की जाती है। कुछ राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सार्वजानिक वितरण व्यवस्था की दुकानों के माध्यम से जनता द्वारा उपभोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं का भी वितरण करते हैं, जैसे कपड़ा, शालेय शिक्षण सामग्री, दालें, नमक और चाय इत्यादि।
2.0 सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का क्रमिक विकास
भारत में अनाज के वितरण के क्रमिक विकास की जडें ब्रिटिशों द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू की गई ‘‘राशनिंग‘‘ प्रणाली में मिलती है। 1939 में ब्रिटिशों ने भारत में अनाजों पहला संरचित सार्वजानिक वितरण राशनिंग व्यवस्था - पात्र परिवारों को (राशन कार्ड़ धारकों) निर्धारित मात्रा में रसद (चावल या गेहूं) - के माध्यम से निर्दिष्ट कस्बों/ शहरों में शुरू किया। मुंबई वह पहला शहर था जहां यह व्यवस्था शुरू की गई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद 1950 में अर्थव्यवस्था में फिर से मुद्रास्फीति के दबाव के कारण भारत इस व्यवस्था को फिर से शुरू करने के लिए मजबूर हुआ।
1965 में भारतीय खाद्य निगम और कृषि मूल्य आयोग के गठन ने सार्वजानिक वितरण व्यवस्था की स्थिति को और अधिक मजबूत कर दिया। अब सरकार धान और गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने और ऐसी मात्राओं को खरीदने के प्रति प्रतिबद्ध थी जिन्हें बाजार में यह न्यूनतम मूल्य भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। इसके द्वारा निर्मित भंडारों का उपयोग सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यम से वितरण के लिए किया जाता था, और इनमें से एक भाग का उपयोग सुरक्षित भंड़ार बनाये रखने के लिए किया जाता था। वास्तव में यदि भंडार सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यम से वितरित किये जाने के स्तर से अपर्याप्त होते थे तो सरकार को अपने सार्वजनिक वितरण व्यवस्था उपभोक्ताओं की मांगों के प्रति प्रतिबद्धता की पूर्ति के लिए आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। भारतीय कृषि के सभी उतार-चढावों के दौरान, सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सरकार की एक संकल्पित सामाजिक नीति के रूप में निम्न उद्देश्यों के लिए जारी रखा गयाः
- समाज के भेद्य वर्गों को खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुएं उचित (रियायती) मूल्यों पर प्रदान करना
- खुले बाजारों में अनाजों की कीमतों पर एक मध्यस्थता प्रभाव निर्मित करने के लिए, जिनका वितरण कुल बाजार अधिशेष का एक बडा हिस्सा होता है, और
- आवश्यक वस्तुओं के वितरण के मामले में समाजीकरण का प्रयास करने के लिए।
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का उद्देश्य लाभार्थियों को चावल और गेहूं जैसे दो अनाज और शक्कर, खाद्य तेल, नरम कोयला और मिट्टी के तेल जैसी चार आवश्यक वस्तुएं प्रदान करना है। हालांकि राज्य सरकारें, जो वास्तव में इस व्यवस्था को जमीनी स्तर पर प्रबंधित करती हैं, दालों, नमक, मोमबत्तियों, माचिस, साधारण कपडे़, शालेय शिक्षण सामग्री और ऐसी ही अन्य वस्तुएं भी इस व्यवस्था में जोड़ने के प्रति प्रेरित हुई हैं। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यम से अतिरिक्त वस्तुओं की आपूर्ति विशेष रूप में भीतरी और दूर-दराज के क्षेत्रों में अधिक प्रासंगिक है, जो बाजारों से दूर हैं, और जहां एक या दो पारंपरिक दुकानदार, जो साथ-साथ साहूकारी का व्यवसाय भी करते हैं, बाजार पर एकाधिकार बनाये रखते हैं। अनेक राज्य सरकारों ने ऐसी आवश्यक वस्तुएं सीधे विनिर्माताओं से खरीदने के लिए सार्वजनिक आपूर्ति या आवश्यक वस्तु निगम गठित किये हैं, और वे उन वस्तुओं के बाजार की तुलना में रियायती मूल्यों पर विक्रय के लिए विद्यमान सार्वजनिक वितरण व्यवस्था संरचना का उपयोग करती हैं।
हरित क्रांति के परिणामस्वरूप जैसे ही राष्ट्रीय कषि उत्पादन में भारी मात्रा में वृद्धि हुई, वैसे ही 1970 और 1980 के दशक में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की पहुंच जनजातीय खंड़ों और गरीबी की बढ़ती घटनाओं वाले क्षेत्रों तक विस्तारित कर दी गई।
1992 तक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था किसी भी विशिष्ट लक्ष्य के बिना सभी उपभोक्ताओं के लिए एक सामान्य पात्रता योजना थी। पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था जून 1992 में देश के 1775 खंडों में शुरू की गई। पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में खाद्यान्न वितरण का पैमाना प्रति कार्ड 20 किलोग्राम तक का था।
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था जून 1997 से शुरू की गई।
3.0 सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत प्रदान की जाने वाली सुविधाएं
3.1 लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (Targeted PDS)
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था एक केंद्र द्वारा प्रायोजित योजना है, जिसका लक्ष्य गरीबों को रियायती खाद्य और ईंधन प्रदान करना है। जून 1997 में शुरू की गई लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था सार्वजनिक वितरण व्यवस्था से ही विकसित हुई। जबकि सार्वजनिक वितरण व्यवस्था सभी उपभोक्ताओं के लिए एक सामान्य पात्रता योजना थी, वहीं लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की शुरुआत खाद्य अनुवृत्ति को गरीबों की दिशा में अधिक बेहतर ढंग से वितरित करने के उद्देश्य से की गई थी। नीचे हम विद्यमान लक्षित सार्वजानिक वितरण व्यवस्था, उसके क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों, लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में प्रस्तावित सुधारों और सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के विकल्पों की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं।
जब यह योजना शुरू की गई थी, तब इसका उद्देश्य लगभग 6 करोड परिवारों को लाभ पहुंचाने का था जिनके लिए वार्षिक लगभग 72 लाख टन खाद्यान्न सुरक्षित के रूप में रखा गया था। इस योजना के तहत गरीबों की पहचान 1993-94 के लिए योजना आयोग के राज्य वार अनुमानों के अनुसार राज्यों द्वारा की जाती थी, जिसकी कार्यप्रणाली स्वर्गीय प्रोफेसर लकड़ावाला की अध्यक्षता वाले ‘‘गरीबों की संख्या और अनुपात के आकलन पर विशेषज्ञ समूह‘‘ पर आधारित थी।
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को खाद्यान्नों का आवंटन पिछले औसत उपभोग के आधार पर किया जाता था, अर्थात, लक्षित सार्वजानिक वितरण व्यवस्था के शुरुआत के समय के सार्वजानिक वितरण व्यवस्था के पिछले दस वर्षों के औसत वार्षिक खाद्यान्न उठाव के आधार पर किया जाता था।
1 दिसंबर 2000 से गरीबी की रेखा के नीचे के परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है, इसका कारण यह है कि जनसंख्या आधार को पूर्व के 1995 के जनसंख्या अनुमानों के बजाय महापंजीयक के 1 मार्च 2000 के अनुमानों पर परिवर्तित किया गया था। इस वृद्धि के साथ गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों की कुल संख्या जून में जब लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था शुरू हुई थी उस समय के पूर्व के 596.23 लाख परिवारों के अनुमानों के बजाय 652.03 लाख परिवार थी।
अंतिम खुदरा मूल्य का निर्धारण थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के नफे, परिवहन लागतों, शुल्कों, स्थानीय करों इत्यादि को ध्यान में रखने के बाद राज्य/केंद्र शासित राज्यों की सरकारों द्वारा किया जाता है। लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया था कि खाद्यान्न गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के लिए केंद्र द्वारा जारी मूल्य से 50 पैसे तक के अंतर मूल्य पर जारी किये जाएँ। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत केंद्र द्वारा जारी मूल्य के 50 पैसे अंतर मूल्य से प्रतिबंध हटा कर खुदरा जारी मूल्य निर्धारित करने की छूट प्रदान की गई है, इसमें केवल अंत्योदय अन्न योजना को अपवाद रखा गया है जहां अंतिम खुदरा मूल्य गेहूं के लिए 2 रुपये प्रति किलोग्राम और चांवल के लिए 3 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित किया गया है।
टीपीडीएस के अधीन गरीबी रेखा से नीचे जनसंख्या की गणना के लिए अगस्त, 1996 में आयोजित खाद्य मंत्रियों के सम्मेलन में यह सर्वमान्य मत था कि स्वप्रो. लाकड़ावाला की अध्यक्षता में योजना आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह द्वारा प्रयोग की गई कार्यप्रणाली को अपनाया जाए। बीपीएल परिवारों का निर्धारण 1995 के भारत के महापंजीयक के जनसंख्या अनुमानों तथा वर्ष 1993-94 के लिए योजना आयोग के राज्यवार गरीबी अनुमानों के आधार पर निर्धारित किया गया था। इस प्रकार बीपीएल परिवारों की कुल संख्या का निर्धारण 596.23 लाख किया गया था।
टीपीडीएस के कार्यान्वयन हेतु मार्गदर्शी सिद्धांत जारी किए गए थे जिसके लिए राज्य सरकारों को सलाह दी गई थी कि वे ग्राम पंचायत तथा नगर पालिका को शामिल करते हुए बीपीएल परिवारों की पहचान करें। ऐसा करते समय हमें समाज के वास्तविक रुप से निर्धन और कमजोर वर्ग जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में, खेतिहर मजदूर, सीमांत किसान, ग्रामीण कारीगर जैसे कुम्हार, टैपर, बुनकर, लोहार, कारपेंटर आदि तथा शहरी क्षेत्रों और झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले भूमिहीन तथा ऐसे लोग जो अनौपचारिक क्षेत्र में अपने जीवन के लिए दैनिक आधार पर अपनी जीविका चलाते हैं जैसे पोटर्स, रिक्शा चलाने वाले, ठेला खींचने, पटरियों पर फल एवं फूल बेचने वालों पर ध्यान देना होगा। पात्र परिवारों की पहचान के लिए ग्राम पंचायतों तथा ग्राम सभाओं को भी शामिल किया जाना है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश, 2001 तथा लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश, 2015 के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की पहचान हेतु दिशा-निर्देश राज्य सरकारों द्वारा तैयार किए जाने हैं और इस बात का ध्यान रखा जाना है कि इस प्रकार पहचान किए गए परिवार वास्तव में सबसे गरीब हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कवरेज को गरीबी से अलग कर दिया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश, 2001 को एनएफएसए के अनुरूप बनाने के लिए दिनांक 20.03.2015 को अधिसूचित लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश, 2015 (टीपीडीएस) के अनुसार राज्य सरकार को प्राथमिकता वाले परिवारों की पहचान और पात्र परिवारों अर्थात प्राथमिकता वाले परिवारों और अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों की सूची को अंतिम रूप देने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना और उन्हें अधिसूचित करना अपेक्षित है।
3.2 अंत्योदय अन्न योजना (AAY)
आबादी के अत्यंत निर्धन वर्ग पर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को केन्द्रित तथा लक्षित करने के उद्देश्य से ‘अंत्योदय अन्न योजना’ (एएवाई) की शुरुआत एक करोड़ परिवारों हेतु दिसम्बर, 2000 में की गई थी।
अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) की शुरुआत दिसम्बर, 2000 में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों में से पहचान किए जाने वाले एक करोड़ परिवारों के लिए की गई थी। तब से इस स्कीम के अंतर्गत कवरेज को तीन बार अर्थात वर्ष 2003-04, 2004-05 तथा 2005-06 में प्रत्येक बार 50 लाख अतिरिक्त परिवारों को कवर करते हुए बढ़ाया गया है। इस प्रकार एएवाई के अंतर्गत कुल कवरेज बढ़ाकर 2.50 करोड़ एएवाई परिवार (अर्थात बीपीएल का 38 प्रतिशत) किया गया था।
इसके अंतर्गत प्रत्येक अंत्योदय परिवार को मासिक 25 किलोग्राम खाद्यान अत्यंत रियायती मूल्य पर प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें गेहूं प्रति किलोग्राम 2 रुपये और चावल प्रति किलोग्राम 3 रुपये की दर से प्रदान करने का प्रावधान था। इस योजना के तहत समाविष्ट किये जाने वाले परिवारों की कुल संख्या एक करोड़ निर्धारित की गई थी। अंत्योदय अन्न योजना गरीबी रेखा के नीचे की जनसंख्या के गरीबतम परिवारों में भुखमरी को कम करने की दिशा में उठाया गया एक कदम थी। एक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण प्रयोग इस वास्तविकता की ओर इशारा करता है कि देश की लगभग 5 प्रतिशत जनसंख्या प्रतिदिन दो समय के आहार के बिना सोने के लिए मजबूर है। जनसंख्या के इस वर्ग को ‘‘भूखे‘‘ कहा जा सकता है।
अंत्योदय अन्न योजना का उद्देश्य गरीब से गरीबतम परिवारों को 2 रुपये प्रति किलोग्राम के अत्यंत रियायती मूल्य पर गेहूं और 3 रूपपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल प्रदान करना था। राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों पर यह जिम्मेदारी थी कि वे वितरण लागत का वहन करें जिनमें व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं का नफा और परिवहन व्यय भी शामिल था। इस प्रकार इस योजना के तहत संपूर्ण अनुवृत्ति उपभोक्ताओं को प्रदान की जा रही है।
इन परिवारों की पहचान के लिए बनाये गए दिशानिर्देशों में निम्न मानदंड निर्धारित किये गए थेः
- भूमिहीन कृषि मजदूर, सीमांत कृषक, ग्रामीण कारीगर/शिल्पकार, जैसे कुम्हार, चमड़ा कमाने वाले, बुनकर, लोहार, बढ़ई, झुग्गियों में रहने वाले, और ऐसे लोग शामिल थे जो दैनिक आधार पर कमाई के माध्यम से जीवन निर्वाह करते हैं जैसे हमाल, कुली, रिक्शा चलाने वाले, हाथ गाड़ी चलाने वाले, फल और फूल बेचने वाले, संपेरे, कचरा बीनने वाले, मोची, निराश्रित और अन्य तत्सम् वर्ग, फिर चाहे वे ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी हों या शहरी क्षेत्रों के।
- ऐसे परिवार जिनके मुखिया या तो विधवा महिलाएं थीं या ऐसे व्यक्ति थे जो बीमारी के कारण मरणासन्न हैं या विकलांग व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति थे जिनकी आयु 60 वर्ष से अधिक थी और फिर भी उनके पास निर्वाह का कोई निश्चित साधन या सामाजिक सहायता उपलब्ध नहीं थे।
- विधवा महिलाऐं, मरणासन्न बीमार व्यक्ति, या विकलांग या 60 वर्ष की आयु से ऊपर के व्यक्ति अकेले पुरुष या महिलाऐं जिनके पास निर्वाह के स्थाई साधन या सामाजिक सहायता उपलब्ध नहीं है।
- सभी आदिम जाति परिवार।
इस विभाग द्वारा अंत्योदय अन्न योजना स्कीम के तहत षामिल करने के लिये अंत्योदय अन्न योजना परिवारों के लिये जारी की गई निर्धारित संख्यात्मक सीमा संबंधी दिशा-निर्देश में निर्धारित मानदंडों की तुलना में अंत्योदय अन्न योजना स्कीम की सूची में एचआईवी पॉजिटिव लोगों के सभी पात्र बीपीएल परिवारों को षामिल करने के लिए उपरोक्त दिशा-निर्देश में पुनः संशोधन किया गया है।
वर्तमान में, इस योजना के तहत 2.50 करोड़ परिवारों को कवर किया जाएगा।
4.0 सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के क्रियान्वयन की प्रक्रिया
भारत में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का क्रियान्वयन खाद्यान्नों की खरीद, भंड़ारण, परिवहन, वितरण और विक्रय के माध्यम से किया जाता है। इन विभिन्न प्रक्रियाओं का विवरण नीचे दिया गया है।
- खरीद
- भंडारण
- परिवहन
- वितरण
- गुणवत्ता नियंत्रण
यह संपूर्ण व्यवस्था न केवल अतिविशाल है बल्कि अत्यंत जटिल भी है। अंत-से-अंत कम्प्यूटरीकरण सभी के लिये षानदार लाभ लायेगा।
4.1 खरीद (Procurement)
खाद्यान्न खरीद की विद्यमान नीतिः केंद्र सरकार धान, अपरिष्कृत अनाज और गेहूं को भारतीय खाद्य निगम और राज्य अभिकरणों के माध्यम से मूल्य समर्थन प्रदान करती है। प्रत्येक रबी और खरीफ फसल की कटाई से पहले केंद्र सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (विनिर्देशों के साथ) की घोषणा करती है, आयोग अन्य कारकों के साथ ही विभिन्न कृषि निविष्टियों और किसानों को उनके उत्पाद के लिए यथोचित नफे का विचार भी करता है। खाद्यान्नों की खरीद को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्य सरकारों से सलाह के साथ भारतीय खाद्य निगम और विभिन्न राज्य अभिकरण विभिन्न मंडियों में और महत्वपूर्ण स्थानों पर बड़ी संख्या में खरीद केंद्रों की स्थापना इस प्रकार करते हैं ताकि कृषकों को अपने उत्पादों की बिक्री के लिए 8-10 किलोमीटर से अधिक दूर नहीं जाना पडे़। केंद्रों की संख्या और उनके स्थानों का निर्धारण विभिन्न मानदंड़ों के आधार पर राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है ताकि न्यूनतम समर्थन मूल्य गतिविधियों को अधिकतम उपयोगी बनाया जा सके। विक्रय के लिए प्रस्तुत निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप संपूर्ण खाद्यान्न इन केंद्रों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय कर लिया जाता है। उत्पादकों को यह स्वतंत्रता प्रदान की जाती है कि उनके लाभ के अनुसार वे अपने उत्पादों को भारतीय खाद्य निगम, राज्य अभिकरणों को बेचें या खुले बाजार में बेचें। राज्य सरकारों और उनके अभिकरणों द्वारा खरीदा गया खाद्यान्न अंततः भारतीय खाद्य निगम द्वारा देश भर में वितरण के लिए अधिग्रहित कर लिया जाता है।
सरकारी अभिकरणों द्वारा खाद्यान्नों की खरीद के उद्देश्यः
- समर्थन मूल्य के तहत खरीद मुख्यतः कृषकों को उनके उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है जो बेहतर उत्पादन प्राप्त करने एक प्रलोभन के रूप में कार्य करता है, साथ ही उन्हें समर्थन मूल्य से नीचे की दरों पर मजबूरन बिक्री करने से रोकता है।
- सरकार की लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था और अन्य योजनाओं की पूर्ति के लिए ताकि खाद्यान्नों की आपूर्ति गरीबों और जरूरतमंदों को रियायती मूल्यों पर की जा सके।
- प्रभावी बाजार हस्तक्षेप के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, जिसके माध्यम से मूल्यों को नियंत्रित रखा जाता है।
- खाद्यान्नों के सुरक्षित भंडार निर्माण करने के लिए।
4.1.1 परिचालन एवं दर्शन
सरकार की खाद्यान्न अधिप्राप्ति नीति के मुख्य उद्देश्य किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा कमजोर वर्ग के लिए सस्ते दामों पर खाद्यान्नों की उपलब्धता को सुनिनिश्चत करना है। यह बाजार में प्रभावी हस्तपेक्ष को सुनिश्चित कर मूल्यों पर नियंत्रण करने के साथ-साथ देश की संपूर्ण खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती है।
- भारतीय खाद्य निगम जोकि भारत सरकार की केन्द्रीय एजेंसी है वह अन्य राज्य एजेंसियों के साथ मिलकर समर्थन मूल्य योजना के तहत गेहूँ और धान की तथा सांविधिक लेवी योजना के तहत चावल की अधिप्राप्ति करता है।
- केन्द्रीय पूल के लिए मोटे अनाजों की अधिप्राप्ति, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा की जाती है।
- समर्थन मूल्य के तहत अधिप्राप्ति करने का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनके उत्पाद के लिए लाभप्रद मूल्य सुनिश्चित करना है जोकि बेहतर उत्पादन को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कार्य करता है।
- प्रत्येक रबी/खरीफ मौसम के दौरान, फसल की कटाई से पहले, भारत सरकार, .षि लागत तथा मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा अन्य तथ्यों के साथ-साथ .षि संबंधी विभिन्न निवेशों और किसानों को उनके उत्पाद के लाभ को ध्यान में रखते हुए दी गई सिफारिशों के आधार पर अधिप्राप्ति हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करती है।
- खाद्यान्नों की अधिप्राप्ति को सुगम बनाने हेतु, भारतीय खाद्य निगम तथा विभिन्न राज्य एजेंसियां राज्य सरकारों के साथ परामर्श करके विभिन्न मंडियों तथा मुख्य स्थानों पर बड़ी संख्या में खरीद केन्द्रों की स्थापना करती हैं।
- राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न मानको के आधार पर खरीद केन्द्रों तथा उनके प्रमुख स्थानों का निर्णय किया जाता है, ताकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कार्यों का विस्तार किया जा सके। उदाहरण के लिए रबी फसल मौसम वर्ष 2015-16 के दौरान गेहूं की अधिप्राप्ति के लिए 20,000 से अधिक और चावल की अधिप्राप्ति के लिए 44,000 से अधिक प्रोक्योरमेंट सेंटर खोले गए। इस प्रकार के विस्तृत तथा प्रभावी समर्थन मूल्य ऑपरेशंस से काफी समय तक किसानों की आय बनी रहती है तथा उत्पादकता में सुधार हेतु कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश की प्रेरणा मिलती है।
- भारत सरकार के विनिर्देशनों (specification) के अंतर्गत आने वाला जो भी अनाज खरीद केन्द्रों में लाया जाता है उन्हें निश्चित समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। यदि किसानों को समर्थन मूल्य की तुलना में दूसरे खरीदारों जैसे व्यापारी/मिल मालिकों से बेहतर मूल्य प्राप्त होता है तो वे अपने उत्पाद को उन्हें बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। भारतीय खाद्य निगम तथा राज्य सरकार/इसकी एजेंसियां यह सुनिश्चित करती हैं कि किसानों को समर्थन मूल्य से कम दामों पर अपना उत्पाद बेचने के लिए मजबूर न होना पड़े।
4.1.2 भारतीय खाद्य निगम की अधिप्राप्ति संबंधी नीति और प्रणाली
- केन्द्र सरकार, भारतीय खाद्य निगम और राज्य एजेंसियों के माध्यम से गेहूं और धान का समर्थन मूल्य प्रदान करती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अधिप्राप्ति एक खुली प्रणाली है अर्थात किसानों द्वारा अधिप्राप्ति की निर्धारित अवधि में जो भी खाद्यान्न दिया जाता है और जो भारत सरकार द्वारा निर्धारित गुणवत्ता विनिर्देशनों को पूरा करता है उसे भारतीय खाद्य निगम सहित सरकारी एजेंसियों द्वारा केन्द्रीय पूल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (और बोनसध्प्रोत्साहन आदि कोई है तो)पर खरीद लिया जाता है। कुछ राज्य, एमएसपी के ऊपर और अधिक, गेहूं और धान पर स्टेट बोनस की भी घोषणा करते हैं। सरकारी एजेंसियां, मंडियों/सरकारी खरीद केन्द्रों/संग्रहण बिन्दुओं पर एमएसपी संबंधी कार्य करती हैं। खोले जाने वाले खरीद केन्द्रों के स्थान और संख्या का निर्धारण राज्य सरकारों सेध्द्वारा सलाह लेकर किया जाता है।
- अधिप्राप्ति की पद्धतिः गेहूं-भारतीय खाद्य निगम विकेंदीकृत राज्यों में सीधी खरीद करता है। मुख्य/अधिक अधिप्राप्ति वाले राज्यों जैसे कि पंजाब और हरियाणा में, गेहूं की खरीद मुख्यतः राज्य एजेंसियों द्वारा की जाती है और वे अपने अनुरक्षण में भण्डारों को रखती है जिसके लिए उन्हें केरी-ओवर चार्जिज का भुगतान किया जाता है । भारतीय खाद्य निगम, आवश्यकता/परिचालन योजना के अनुसार खपत वाले राज्यों को प्रेषण हेतु स्टॉक को लेता है। स्टॉक लेने के बाद, भारत सरकार द्वारा जारी कॉस्ट शीट्स के अनुसार राज्य सरकार/एजेंसियों को भुगतान किया जाता है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में, राज्य एजेंसियों द्वारा अधिप्राप्त गेहूं को भारतीय खाद्य निगम द्वारा भण्डारणध्प्रेषण के लिए तुरंत ले लिया जाता है। विकेन्द्रीकृत राज्य, उदाहरणतः मध्य प्रदेश राज्य में, गेहूं की अधिप्राप्ति राज्य एजेंसियों द्वारा की जाती है तथा टीपीडीएस/एनएसएफए तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत राज्य की आवश्यकता से अधिक गेहूं को अन्य खपत वाले क्षेत्रों को भेजने के लिए भारतीय खाद्य निगम द्वारा ले लिया जाता है ।
- चावल खरीदः चावल की अधिप्राप्ति दो माध्यमों से की जाती हैः कस्टम मिल्ड(सीएमआर) और लेवी चावल। सीएमआर का उत्पादन, राज्य सरकारध्राज्य एजेंसियों और भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त धान की मिलिंग द्वारा किया जाता है। आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में धान की अधिप्राप्ति मुख्यतः राज्य सरकार/राज्य एजेंसियों द्वारा की जाती है और जिसके परिणामी चावल को, राइस मिलरों से धान को मिलिंग करा कर राज्य सरकार और भारतीय खाद्य निगम को चावल की पूर्ति की जाती है।
- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में लेवी रूट के माध्यम से भी केन्द्रीय पूल में चावल की अधिप्राप्ति की जाती है। चावल मिल मालिक अपने उत्पादन के एक निश्चित भाग की पूर्ति, भारत सरकार की सहमति से संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी राज्य लेवी आदेशों के तहत निर्धारित प्रतिशत पर और भारत सरकार द्वारा निर्धारित अधिसूचित लेवी मूल्यों पर करता है। तथापि, भारत सरकार ने 01.10.2015 से चावल अधिप्राप्ति की लेवी प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय लिया है ।
- गेहूं और धान की अधिप्राप्ति की मुख्य जिम्मेदारी राज्य एजेंसियों द्वारा उठाई जाती है जबकि भारतीय खाद्य निगम, केन्द्रीय पूल के लिए अधिप्राप्त कुल चावल के लगभग 70 प्रतिशत की अधिप्राप्ति करता है ।
- मोटे अनाजः मोटे अनाजों की अधिप्राप्ति राज्य सरकारों द्वारा केन्द्रीय पूल के लिए की जाती है।
- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान (कुछ भागों) जैसे गेहूं और धान की अधिप्राप्ति वाले प्रमुख राज्यों में संबंधित राज्य के एपीएमसी एक्ट के अनुसार आढ़तियों के माध्यम से भारतीय खाद्य निगम/राज्य एजेंसियों द्वारा अधिप्राप्ति की जाती है जिसके लिए पंजाब और हरियाणा राज्यों में एमएसपी का 2.5 प्रतिशत की दर से और राजस्थान में 2 प्रतिशत की दर से कमीशन का भुगतान किया जाता है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में सहकारी समितियों के माध्यम से अधिप्राप्ति की जाती है और उन्हें निम्नलिखित दरों से एक निर्धारित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।
गेहूंः रु. 27.00/प्रति क्विंटल
धान (ग्रेड-ए): रु. 32/प्रति क्विंटल
धान (कॉमन): रु. 31.25/प्रति क्विंटल
4.1.3 केन्द्रीकृत और विक्रेन्द्रीकृत अधिप्राप्ति प्रणाली
केन्द्रीकृत (गैर डीसीपी) अधिप्राप्ति प्रणालीः क्रेन्द्रीकृत अधिप्राप्ति प्रणाली के तहत केन्द्रीय पूल में खाद्यान्नों की अधिप्राप्ति या तो भारतीय खाद्य निगम द्वारा सीधे अथवा राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा की जाती है और उसे भारतीय खाद्य निगम को भण्डारण हेतु सौंप दिया जाता है और उसके पश्चात उसी राज्य में भारत सरकार के आबंटनों के प्रति जारी किया जाता है अथवा अन्य राज्यों को सरप्लस भण्डारों का परिचालन किया जाता है। राज्य एजेंसियों द्वारा जैसे ही भारतीय खाद्य निगम को भण्डारों की डिलीवरी की जाती है, अधिप्राप्त खाद्यान्नों की लागत की प्रतिपूर्ति भारतीय खाद्य निगम द्वारा भारत सरकार द्वारा जारी कॉस्ट शीट्स के अनुसार की जाती है।
विकेन्द्रीकृत (डीसीपी) अधिप्राप्तिः विक्रेन्द्रीकृत प्रणाली के तहत, राज्य सरकारध्इसकी एजेंसियों द्वारा राज्य के भीतर चावल/गेहूं/मोटे अनाजों की अधिप्राप्ति, भण्डारण और वितरण (टीपीडीएस और ओडब्ल्यूएस के लिए भारत सरकार के आबंटन के प्रति) किया जाता है। राज्य सरकारध्इसकी एजेंसियों द्वारा अधिप्राप्त अतिरिक्त भण्डारों (चावल और गेहूं) को केन्द्रीय पूल में भारतीय खाद्य निगम को सौंप दिया जाता है। विक्रेन्द्रीकृत भण्डारों की अधिप्राप्ति, भण्डारण और वितरण पर राज्य सरकार द्वारा वहन किए गए व्यय की प्रतिपूर्ति भारत सरकार द्वारा दिये गये सिद्धांतों पर की जाती है। कुछ व्यय जैसे कि एमएसपी, आढ़तिया/सोसायटी का कमीशन, प्रशासनिक प्रभार, मण्डी श्रमिक प्रभार, यातायात प्रभार, कस्टडी और रख-रखाव प्रभार, ब्याज प्रभार, बोरियों की लागत, मिलिंग प्रभार और वैधानिक करों की प्रतिपूर्ति वास्तविक आधार पर की जाती है। भारतीय खाद्य निगम को सौंपे गए अतिरिक्त भण्डारों की लागत की प्रतिपूर्ति भारतीय खाद्य निगम द्वारा भारत सरकार कॉस्ट शीट्स के अनुसार राज्य सरकार ध्एजेंसियों को की जाती है।
आज की तारीख में निम्नलिखित राज्य डीसीपी प्रणाली के तहत चावलध्गेहूं की अधिप्राप्ति कर रहे हैंः
4.2 भंड़ारण (Storage)
भंड़ारण गतिविधियों का लक्ष्य सार्वजानिक वितरण व्यवस्था को बनाये रखने के लिए आवश्यक परिचालनात्मक और सुरक्षित भंडार की क्षमता प्रदान करना है। बाजारों और खरीद केंद्रों पर खरीदे गए खाद्यान्न सबसे पहले निकटस्थ डेपो में संग्रहित किये जाते हैं। भारतीय खाद्य निगम के पास उसके द्वारा खरीदे गए कई मिलियन टन खाद्यान्नों के वैज्ञानिक संग्रहण की व्यवस्था उपलब्ध है। साथ ही अल्पता की स्थिति में और दूरस्थ और पहुंच की दृष्टि से दुर्गम क्षेत्रों को आसान भौतिक पहुंच प्रदान करने के लिए भारतीय खाद्य निगम के पास देश भर में फैले उपभोक्ता क्षेत्रों के रणनीतिक स्थानों पर स्थित भंडार डिपो का संजाल उपलब्ध है। इन डिपो में कुशूल, गोदाम और भारतीय खाद्य निगम द्वारा घरेलू स्तर पर विकसित आवरण और न्याधार शामिल हैं। हालांकि खाद्यान्नों का भंडारण आच्छादित गोदामों में किया जाता है, परंतु जब कभी भी स्थान की कमी महसूस होती है या आपातस्थिति में गेहूं और धान के भंडारों को खुले स्थानों पर रखना आवश्यक हो जाता है, और इसी व्यवस्था को आवरण और न्याधार (Covered & Plinth - CAP) कहा जाता है। आवरण और न्याधार शब्द का प्रयोग खुले किंतु संपूर्ण और पर्याप्त सावधानी के साथ भंड़ारण किये गए खाद्यान्नों के लिए किया जाता है जिसमें चूहे और नमी निरोधक चबूतरे, खाद्यान्नों के ढ़ेरों को विशेष रूप से निर्मित पॉलिथीन से ढ़ांकना इत्यादि शामिल है। भारतीय खाद्य निगम के अतिरिक्त सार्वजानिक क्षेत्र में अन्य दो अभिकरण हैं जो बडे पैमाने पर भंडारण सुविधाओं, गोदामों और भांडागार क्षमता निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं, जो हैं केंद्रीय भंडारण निगम और 17 राज्य भंडारण निगम। समय के साथ इन सार्वजनिक क्षेत्र के अभिकरणों द्वारा बडी मात्रा में वैज्ञानिक भंडारण क्षमता विकसित की गई है, और ये अभिकरण इस क्षमता में और अधिक वृद्धि करने की योजना बना रहे हैं। जबकि भारतीय खाद्य निगम के पास उपलब्ध क्षमता का उपयोग मुख्य रूप से अनाज के भंड़ारण के लिए किया जाता है, वहीं केंद्रीय भंडारण निगम और राज्य भंडारण निगमों की भंडारण क्षमता का उपयोग खाद्यान्नों के साथ-साथ कुछ अन्य वस्तुओं के भंड़ारण के लिए भी किया जाता है। अतः भारतीय खाद्य निगम के गोदामों के भंड़ारण क्षमता के अतिरिक्त भण्डारण की आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारतीय खाद्य निगम केंद्रीय भंड़ारण निगम और राज्य भंडारण निगमों से और अन्य निजी भाण्डागारों से किराये पर गोदाम लेता है।
अपनी भंडारण क्षमता के अलावा, भारतीय खाद्य निगम ने केंद्रीय भंडारण निगम, राज्य भंडारण निगम, राज्य एजेंसियों तथा प्राइवेट पार्टियों से अल्पावधि और निजी उद्यमी गारंटी योजना के तहत गारंटिड अवधि के लिए भंडारण क्षमताएं किराये पर ली है। भारतीय खाद्य निगम द्वारा नये गोदामों का निर्माण मुख्यतः निजी उद्यमी गारंटी योजना के तहत निजी भागीदारी के माध्यम से कराया जा रहा है। भारतीय खाद्य निगम भी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिये साइलो के रूप में अपनी भंडारण क्षमता को बढ़ा रहा है और इसे आधुनिक बना रहा है। पिछले पांच वर्षों में केंद्रीय पूल स्टाक्स के लिए भंडारण क्षमता -
4.3 परिवहन (Movement)
भारत जैसे विशाल आकार के देश में खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करना एक अत्यंत कठिन कार्य है। देश के आधिक्य वाले राज्यों से अल्पता वाले राज्यों में खाद्यान्नों का परिवहन किया जाता है। खाद्यान्नों का आधिक्य मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों तक ही सीमित है य परिवहन के लिए देश के विशाल अंतर को पार करना पड़ता है। बाजारों और खरीद केंद्रों से खरीदे गए खाद्यान्न को पहले निकटस्थ डेपो में संग्रहित किया जाता है, और वहां से उसे अल्प समय में ही प्राप्तकर्ता राज्यों के लिए रवाना किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम लगभग 250 लाख टन अनाज का औसतन 1500 किलोमीटर का परिवहन करता है। उत्तरी राज्यों से खरीदे गए गेहूं और चावल का नियमित रूप से इम्फाल, मणिपुर या तमिलनाडु के कन्याकुमारी जैसे दूर-दूर के क्षेत्रों, और हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में परिवहन किया जाता है। औसतन 12,00,000 बोरे (50 किलोग्राम के) खाद्यान्न का उत्पादक राज्यों से उपभोक्ता राज्यों को प्रतिदिन परिवहन किया जाता है, जो रेल मार्ग, सडक मार्ग और अंतर्देशीय जल मार्ग इत्यादि के माध्यम से किया जाता है। छोटी दूरियों के लिए सड़क परिवहन को अधिक पसंद किया जाता है, क्योंकि यह सस्ता पड़ता है। कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, सिक्किम, और मेघालय जैसे क्षेत्रों के भंडार, जहां रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है, ऐसे क्षेत्रों में परिवहन सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है, वहीं अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों को परिवहन अंतर्देशीय जलमार्ग द्वारा किया जाता है। इस प्रकार, परिवहन व्यवस्था के प्रभावी नियोजन और प्रबंधन के माध्यम से भारतीय खाद्य निगम नियमित रूप से खरीद केंद्रों से संबंधित क्षेत्रों को परिवहन करता है।
पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश अपनी खपत की तुलना में गेहूं की अधिप्राप्ति के मामले में सरप्लस वाले राज्य हैं। पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा अपनी खपत की तुलना में चावल की अधिप्राप्ति के मामले में सरप्लस वाले राज्य हैं। इन राज्यों में उपलब्ध गेहूं और चावल के सरप्लस भंडारों को कमी वाले राज्यों को टीपीडीएस और अन्य योजनाओं के तहत उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने तथा बफर स्टॉक के लिए भेजा जाता है। भारतीय खाद्य निगम द्वारा एक वर्ष के भीतर पूरे देश में 40 से 50 मिलियन टन खाद्यान्नों का परिचालन किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम पूरे देश में खाद्यान्नों का व्यापक परिचालन कार्य करता है, जिसमें भारतीय खाद्य निगम के लगभग 2000 डिपो (अपने़किराए के), 440 रेल-हैड्स (भारतीय रेलवे तथा अन्य के स्वामित्व वाले) तथा भारतीय खाद्य निगम की अपनी 103 साइडिंग शामिल हैं।
निम्न को ध्यान में रखते हुए मासिक आधार पर परिचालन योजना बनाई जाती हैः
- सरप्लस वाले क्षेत्रों में उपलब्ध मात्रा
- कमी वाले क्षेत्रों द्वारा अपेक्षित मात्रा
- संभावित अधिप्राप्ति
- खपत और अधिप्राप्ति वाले दोनों क्षेत्रों में खाली भंडारण क्षमता
परिचालन के साधनः 90 प्रतिशत खाद्यान्न भण्डारों का परिचालन रेल द्वारा और शेष का परिचालन सड़क द्वारा किया जाता है । सड़क द्वारा अंतर्राज्यीय परिचालन मुख्यतरू देश के उन भागों में किया जाता है जो रेल मार्ग से नहीं जुड़े हैं। थोड़ी मात्रा में परिचालन समुद्री पोतों द्वारा लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए एवं तटीय शिपिंग और नदी मार्ग के द्वारा केरलध्अगरतला (त्रिपुरा) के लिए किया जाता है।
भारतीय खाद्य निगम के पास 103 अपनी रेलवे साइडिंग हैं, जहां खाद्यान्न के रेकों को सीधे भारतीय खाद्य निगम के डिपुओं में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त खाद्यान्न को भारतीय रेलवे के नजदीकी रेल-हैडो से भी “एक स्थान से दूसरे स्थान” को भेजा जाता है।
भारतीय खाद्य निगम अपने उचित योजना के द्वारा सभी राज्यों में खाद्यान्नों की समुचित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सक्षम है।
खाद्यान्नों के परिचालन में की गई अन्य पहल
- रेल द्वारा परिचालन के साथ-साथ आंध्र प्रदेश से केरल को खाद्यान्न तटीय परिचालन के माध्यम से एक वैकल्पिक साधन के रूप में भेजा जा रहा है। वर्ष 2014-15 के दौरान पहली बार इस साधन के जरिए लगभग एक लाख एमटी चावल आंध्र प्रदेश से केरल को भेजा गया है ।
- उत्तर-पूर्व में, रेलवे, मीटर गेज को ब्रॉड गेज में बदलने का काम कर रहा है जिसके कारण त्रिपुरा सहित उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों के लिए रेल परिचालन को रोक दिया गया है और त्रिपुरा को स्टॉक का परिचालन असम के ब्रॉडगेज रेल-हैडो से सड़क द्वारा किया जा रहा है। त्रिपुरा मे इस सड़क परिचालन के साथ साथ बंगलादेश के जरिए मल्टीमॉडल मोड (नदी मार्ग) के अंतर्गत खाद्यान्न का परिचालन एक वैकल्पिक साधन के रूप में किया जा रहा है। अभी तक कोलकाताध्आंध्र प्रदेश से बंगलादेश के जरिए त्रिपुरा को लगभग 20,000 एम टी खाद्यान्न का परिचालन किया गया है।
4.4 वितरण
भारतीय खाद्य निगम के स्वामित्व वाले या किराये से लिए डिपो पर खाद्यान्नों को पहुंचानाः अधिशेष राज्यों/क्षेत्रों से खरीदे गए खाद्यान्न का उपभोक्ता राज्यों/क्षेत्रों में स्थित भारतीय खाद्य निगम के स्वयं के और उसके द्वारा किराये से लिए गए डेपो को परिवहन किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम के डेपो को खाद्यान्न भंड़ारण डेपो कहा जाता है। कुछ स्थानों पर जहां भारतीय खाद्य निगम के स्वयं के डेपो नहीं हैं, वहां वह इन्हें केंद्रीय भंड़ारण निगम/राज्य भंडारण निगम/एआरडीसी या निजी व्यक्तियों से किराये पर लेता है।
सार्वजानिक वितरण व्यवस्था नियंत्रण आदेश 2001 (अनुच्छेद 4 (1)) के अनुसार भारतीय खाद्य निगम या इस कार्य के लिए केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट कोई भी अन्य अभिकरण केंद्र सरकार द्वारा किये गए आवंटन के आधार पर राज्य सरकारों द्वारा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत वितरित किये जाने वाले निष्पक्ष औसत गुणवत्ता वाले खाद्यान्नों की सुपुर्दगी राज्य सरकारों द्वारा भुगतान की प्राप्ति और जारी करने के आदेश की प्राप्ति से दो हते के अंदर सुनिश्चित करेगा।
भारतीय खाद्य निगम के डेपो से खाद्यान्न उठाना और उचित मूल्य दुकानों तक पहुंचाना
सार्वजानिक वितरण व्यवस्था नियंत्रण आदेश 2001 (अनुच्छेद 6) अनुसार,
- केंद्र से खाद्यान्नों का निर्धारित आवंटन प्राप्त होने के बाद राज्य सरकारें जिला वार निर्धारित आवंटन आदेश जारी करेंगी जिनके तहत उनके अभिकरणों या मनोनीतों को अधिकृत करेंगी कि वे भारत सरकार द्वारा जारी निर्धारित आवंटन आदेश की प्राप्ति से दस दिन के अंदर भारतीय खाद्य निगम से खाद्यान्न प्राप्त करें।
- राज्य सरकार का नामित प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि उचित मूल्य दुकान के लिए जारी किये गए निर्धारित आवंटन आदेश की एक प्रतिलिपि उसी समय ग्राम पंचायतों को या नगरपालिकाओं को या सतर्कता समितियों को या संबंधित राज्य सरकार द्वारा उचित मूल्य दुकानों की निगरानी के लिए नियुक्त किसी भी अन्य निकाय को प्रदान की जाए, और इस आदेश में निम्न बातें निर्दिष्ट होंगीः
- कार्ड़ों और इकाइयों की संख्या
- मौजूद अधिशेष; और
- संबंधित उचित मूल्य दुकान को प्रतिमाह किया गया निर्धारित आवंटन।
- ग्राम पंचायतें, नगरपालिकाएं, या सतर्कता समितियां या राज्य सरकार द्वारा उचित मूल्य दुकानों की निगरानी के लिए नियुक्त अन्य निकाय उस महीने के लिए उस उचित मूल्य दुकान को आवंटित आवश्यक वस्तुओं के भंड़ार की सूची अपने कार्यालयों के बाहर सूचना पटलों पर प्रदर्शित करेंगी।
- उचित मूल्य दुकान को बाद का मासिक आवंटन करते समय राज्य सरकारों के नामित प्राधिकरण संबंधित उचित मूल्य दुकान स्वामी के पास पिछले आवंटन से अवतरित बचे अधिशेष भंड़ार को ध्यान में रखेंगे।
- केंद्र सरकार द्वारा जारी आवश्यक वस्तुओं की सुपुर्दगी प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारें भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से अपने अभिकरणों या नामित निकायों के माध्यम से उचित व्यवस्था करेंगी, साथ ही जिस महीने के लिए आवंटन किया गया है उसके पहले सप्ताह के अंदर इन वस्तुओं का वितरण संबंधित उचित मूल्य दुकानों को वितरित करने की व्यवस्था भी सुनिश्चित करेंगी।
- राज्य सरकारें इस बात का उचित नियंत्रण भी सुनिश्चित करेंगी कि आवंटित संपूर्ण मात्रा भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से उठाई गई है, और वह संपूर्ण मात्रा उचित मूल्य दुकानों तक पहुंचाई जा रही है।
- उचित मूल्य दुकान के मालिक खाद्यान्नों की आपूर्ति राज्य सरकार के अधिकृत नामितों से प्राप्त करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवश्यक वस्तुएं उनकी दुकानों में महीने के पहले सप्ताह में संबंधित लाभार्थियों को वितरित करने के लिए उपलब्ध हैं।
- सार्वजानिक वितरण व्यवस्था के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार जिला प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि उचित मूल्य दुकानों को आवंटित भंडार नामित अभिकरणों के माध्यम से भौतिक रूप से नियत समयावधि में उचित मूल्य दुकानों तक पहुंच रहे हैं।
- कोई भी प्राधिकारी या उनके द्वारा अधि.त कोई भी अन्य व्यक्ति या कोई भी अन्य सामान्य व्यक्ति जो सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत आवश्यक वस्तुओं को सँभालने या वितरण में संलग्न है जानबूझ कर केंद्रीय भंडार से उचित मूल्य दुकान तक या उचित मूल्य दुकान से वस्तुओं की अदलाबदली नहीं करेंगे, या उनमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं करेंगे या उनकी चोरी नहीं करेंगे।
5.0 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
ऐतिहासिक खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 ने जरूरतमंद भारतीयों को न्यूनतम खाद्यान्न उपलब्धता की कानूनी गारंटी प्रदान की।
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत समावेश और पात्रताः ग्रामीण जनसंख्या का 75 प्रतिशत भाग और शहरी जनसंख्या का 50 प्रतिशत भाग लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत समाविष्ट होगा, जिसके तहत प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 5 किलोग्राम समान खाद्यान्न वितरित किया जायेगा। हालांकि चूंकि अंत्योदय अन्न योजना के तहत गरीबों में से गरीबतम परिवार समाविष्ट किये गए हैं, और वर्तमान में ये परिवार 35 किलोग्राम प्रति परिवार प्रति माह खाद्यान्न के लिए पात्र हैं, अतः अंत्योदय अन्न योजना के तहत परिवारों की 35 किलोग्राम की पात्रता को बनाये रखा जायेगा।
राज्य-वार कार्यक्षेत्र व्याप्तिः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की क्रमशः 75 प्रतिशत और 50 प्रतिशत की अखिल भारतीय व्याप्ति के अनुरूप केंद्र को राज्य वार व्याप्ति निर्धारित करनी है। एनएसएसओ पारिवारिक उपभोग सर्वेक्षण आंकड़ों का उपयोग करते हुए योजना आयोग ने राज्य वार व्याप्ति निर्धारित की है।
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत रियायती मूल्य और उनमें संशोधनः अधिनियम के प्रभावशाली होने के समय से तीन वर्षों तक लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत खाद्यान्न चावल, गेहूं और मोटे अनाजों के क्रमशः 3/2 और 1 रुपये प्रति किलोग्राम के रियायती मूल्यों पर उपलब्ध कराये जायेंगे। उसके बाद इनकी कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्यों के साथ उचित रूप से जोड़ दी जाएँगी।
यदि प्रस्तावित कानून के तहत किसी राज्य को किया गया निर्धारित आवंटन उनके वर्तमान निर्धारित आवंटन से कम है, तो उसे केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गई कीमतों पर पिछले तीन वर्षों के औसत उठाव के स्तर तक संरक्षित किया जाएगा। गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के लिए निर्धारित विद्यमान मूल्य, अर्थात गेहूं के लिए 6.10 रुपये प्रति किलोग्राम और चावल के लिए 8.30 रुपये प्रति किलोग्राम, को अतिरिक्त आवंटन के लिए जारी मूल्य के रूप में निर्धारित किया गया है, ताकि पिछले तीन वर्षों के औसत उठाव को संरक्षित किया जा सके।
बच्चों की पात्रताएंः छह महीने से 6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए अधिनियम स्थानीय आंगनवाडी के माध्यम से आयु के अनुसार उपयुक्त मुत भोजन सुनिश्चित करता है। 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए सरकारी विद्यालयों में, सरकार से सहायता प्राप्त विद्यालयों में और स्थानीय शासन द्वारा चलाये जाने वाले विद्यालयों में कक्षा 8 वीं तक एक मुत मध्यान्ह भोजन प्रति दिन (विद्यालयों की छुट्टी के दिनों को छोड़कर) प्रदान किया जायेगा। छह माह से कम आयु के बच्चों के लिए ‘‘अनन्य स्तनपान को प्रोत्साहित किया जायेगा।‘‘
स्थानीय आंगनवाड़ियों के माध्यम से कुपोषित बच्चों की पहचान की जाएगी और उन्हें ‘‘स्थानीय आंगनवाडियों के माध्यम से‘‘ मु¬फ्त भोजन उपलब्ध कराया जायेगा।
गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पात्रताएंः प्रत्येक गर्भवती महिला और स्तनपान कराने वाली माता (गर्भावस्था के दौरान और शिशु के जन्म से छह महीने तक) स्थानीय आंगनवाड़ी से एक मुत भोजन प्राप्त करने के लिए पात्र होगी, साथ ही वे किस्तों में प्रदान किये जाने वाले 6,000 रुपये के मातृत्व लाभ प्राप्त करने के लिए भी पात्र होंगी।
[ टिपण्णी (1) अधिनियम में ‘‘भोजन‘‘ को निम्नानुसार परिभाषित किया गया है, ‘‘गर्म पका हुआ भोजन या खाने के लिए तैयार भोजन या घर ले जा सकने योग्य राशन, जैसा भी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए। प्रत्येक ‘‘भोजन‘‘ को अनुसूची 2 में निर्दिष्ट पोषण मापदंड़ों के अनुसार होना अनिवार्य है। (2) महिलाओं और बच्चों की पात्रताओं को राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित ‘‘लागत साझा करने सहित अन्य दिशानिर्देशों के अनुरूप‘‘ होना अनिवार्य है, वितरित किया जायेगा। (3) प्रत्येक विद्यालय और आंगनवाड़ी में ‘‘भोजन पकाने की सुविधाएं, पेयजल और स्वच्छता सुविधाएं‘‘ होना अनिवार्य है। (4) राशन कार्ड जारी करने के लिए परिवार की सबसे अधिक आयु की महिला (जिसकी आयु 18 वर्ष से कम न हो) को परिवार की मुखिया माना जायेगा।]
पात्र परिवारों की पहचानः इस अधिनियम में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत पात्र परिवारों की पहचान (प्राथमिकता प्राप्त या अंत्योदय परिवार) के लिए कोई मापदंड़ निर्धारित नहीं किये गए हैं। केंद्र सरकार सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की राज्य वार व्याप्ति ग्रामीण/शहरी जनसंख्या के अनुपात की दृष्टि से निर्धारित करेगी। उसके बाद पात्र व्यक्तियों की संख्या की गणना जनगणना के आंकड़ों के आधार पर की जाएगी। पात्र परिवारों की पहचान करने का कार्य राज्यों पर छोड़ा गया है, जिसमें योजना के अंत्योदय के दिशानिर्देशों और प्राथमिकता प्राप्त परिवारों के लिए राज्य सरकारों द्वारा ‘‘निर्धारित‘‘ दिशानिर्देशों का ध्यान रखना आवश्यक होगा। पात्र परिवारों की सूचियों को सार्वजनिक प्रक्षेत्र में रखना होगा और राज्य सरकारों द्वारा उन्हें ‘‘प्रमुखता से प्रदर्शित‘‘ करना होगा।
खाद्य आयोगः अधिनियम में राज्य खाद्य आयोगों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। प्रत्येक आयोग में एक अध्यक्ष, पांच अन्य सदस्य और एक सदस्य सचिव (इन सदस्यों में कम से महिला सदस्य और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से एक-एक सदस्य भी शामिल हैं) होगा।
राज्य आयोग का मुख्य कार्य है अधिनियम के क्रियान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन करना, राज्य सरकारों और उनके अभिकरणों को सलाह डीएनए और पात्रताओं के उल्लंघन के मामलों की जांच करना (या तो स्वयं संज्ञान लेकर या इस संबंध में प्राप्त शिकायत पर, और जांच के दौरान आयोग को ‘‘नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत चलाये जाने वाले मुकदमों के दौरान दीवानी न्यायालयों को प्राप्त समस्त अधिकार प्राप्त होंगे‘‘) राज्य आयोगों को जिला शिकायत निवारण अधिकारियों के आदेशों के विरुद्ध की गई अपीलों की सुनवाई करने का कार्य भी सौंपा गया है, और उनके कार्य का एक भाग यह भी है कि उन्हें अपने कार्यों की एक वार्षिक रिपोर्ट बना कर राज्य की विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत करनी है।
राज्य आयोग ‘‘किसी भी मामले को‘‘ अधिकारक्षेत्र प्राप्त मजिस्ट्रेट को भी प्रेषित कर सकते हैं, और संबंधित मजिस्ट्रेट इस मामले की उसी प्रकार से सुनवाई करेंगे जैसे मामला दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अनुच्छेद 36 के तहत प्रेषित किया गया है।
पारदर्शिता और शिकायत निवारणः अधिनियम में दो स्तरीय शिकायत निवारण संरचकना का प्रावधान किया गया है, जिसमें जिला शिकायत निवारण अधिकारी और राज्य खाद्य आयोग को शामिल किया गया है। राज्य सरकारों को एक आतंरिक शिकायत निवारण तंत्र की भी स्थापना करना आवश्यक है जिसमें सभी कॉल सेंटरों, हेल्पलाइन सेवाओं, नोडल अधिकारियों के पदनामों, ‘‘या ऐसे किसी भी निर्धारित तंत्र को‘‘ शामिल किया जा सकता है।
6.0 भारत में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की समस्याएं
भारत की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था निम्न प्रमुख संरचनात्मक और परिचालनात्मक समस्याओं से ग्रस्त हैः
- सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में अत्यंत भारी मात्रा में रिसाव हैं। विभिन्न अध्ययनों ने इन रिसावों का 51 प्रतिशत तक के उच्च स्तर का होने का अनुमान किया है।
- सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में लाभार्थियों का चयन और उनकी पहचान समावेश और अपवर्जन दोनों प्रकार की त्रुटियों से ग्रस्त है। ऐसी उम्मीद है कि आधार कार्ड़ का उपयोग और प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण का उपयोग इस समस्या का शमन करने में सफल होंगे।
- सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की दुकानों में उपलब्ध खाद्यान्नों की गुणवत्ता के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं
- फर्जी कार्ड़ों की बड़ी संख्या, भंड़ारों की जमाखोरी, अवैध व्यपवर्जन और अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार गरीबों के लिए पोषक और पौष्टिक आहार की उपलब्धता को कठिन बना देते हैं, और इस प्रकार ये सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के मूल उद्देश्य को ही नष्ट कर देते हैं।
- सार्वजनिक वितरण व्यवस्था व्यापक स्तर पर अपनी पहुंच बना पाने में सक्षम नहीं हो पाई है।
इन सभी कारकों के कारण सार्वजनिक वितरण व्यवस्था मूल्य स्थिरीकरण और खाद्य सुरक्षा के अपने दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल साबित हुई है।
6.1 लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के सशक्तिकरण के लिए किये गए उपाय
6.1.1 नागरिक चार्टर
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की कार्यप्रणाली के संबंध में सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के अनुसार नागरिकों द्वारा उपयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा क्रियान्वयन और अंगीकरण के लिए जुलाई 2007 में एक संशोधित नागरिक चार्टर जारी किया गया है।
6.1.2 सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (नियंत्रण) आदेश, 2001
आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाये रखने और उपलब्धता और वितरण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 31 अगस्त 2001 को सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (नियंत्रण) आदेश, 2001 अधिसूचित किया गया है। इस आदेश में मुख्य रूप से निम्न विषयों से संबंधित प्रावधान शामिल किये गए हैंः
- गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों का चिन्हीकरण;
- राशन कार्ड;
- निर्गम मूल्य और व्याप्ति;
- खाद्यान्नों का वितरण
- अनुज्ञप्तिकरण
- निगरानी
यह आदेश राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाता है कि गरीबी रेखा से नीचे के परिवार और अंत्योदय अन्न योजना के तहत परिवार वास्तव में गरीबों में गरीबतम हों। यह आदेश राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के लिए यह भी अनिवार्यता करता है कि वे अपनी गरीबी रेखा से नीचे और अंत्योदय अन्न योजना परिवारों की सूचियों की प्रति वर्ष समीक्षा करवाएं ताकि अपात्र परिवारों को इन सूचियों से बाहर किया जा सके और नए पात्र परिवारों को इनमें जोड़ा जा सके। यह आदेश राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों पर यह जिम्मेदारी भी सौंपता है कि वे राशन कार्ड़ों का नियमित रूप से निरीक्षण करें ताकि अपात्र व्यक्तियों को दिए गए कार्ड़ और फर्जी राशन कार्डों को समाप्त किया जा सके। राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को उपयोग प्रमाणपत्र भी जारी करने आवश्यक हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत आने वाले लाभार्थियों के लिए जारी किये गए खाद्यान्न उठा लिए गए हैं और उनका उचित वितरण किया गया है। इस आदेश के उल्लंघन द्वारा किये गए अपराध आवश्यक वस्तुएं अधिनियम, 1955 के तहत आपराधिक दायित्व के लिए पात्र होंगे।
6.1.3 क्षेत्रीय अधिकारी योजना
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग में 21 फरवरी 2000 को क्षेत्रीय अधिकारी योजना शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य था राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की नियमित और प्रभावी समीक्षा और निगरानी के लिए राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के व्यवस्थापनों के साथ समन्वय के लिए एक तंत्र प्रदान करना। समय-समय पर विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए उप-सचिव, निदेशक या अन्य समकक्ष स्तर के अधिकारियों को क्षेत्रीय अधिकारियों के रूप में नामित किया जाता है। इस योजना की व्यापक विशेषताएं निम्नानुसार हैंः
- क्षेत्रीय अधिकारी को प्रत्येक तिमाही में अपने आवंटित क्षेत्र के दो जिलों का दौरा करना है और तय प्रश्नावली और अनुदेशों/दिशानिर्देशों के अनुसार लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की समीक्षा करनी है;
- उन्हें अपने दौरे की रिपोर्ट दौरा हो जाने के दस दिन के भीतर प्रस्तुत करनी है, जिसमें स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण विषयों को उजागर करना है, और कार्रवाई योग्य बिन्दुओं पर अपने निष्कर्ष और सिफारिशें प्रदान करने हैं;
- क्षेत्रीय अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के खाद्य सचिवों को भेजी जाती है ताकि उनके द्वारा लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के सुचारू क्रियान्वयन के लिए सुधारकात्मक कार्रवाई की जा सके।
6.1.4 बैठकें/सम्मेलन
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में सुधार के उपायों की चर्चा करने के लिए केंद्रीय खाद्य सचिव की अध्यक्षता में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के खाद्य सचिवों की एक बैठक 8 फरवरी 2008 को हैदराबाद में आयोजित की गई थी। इस बैठक के कार्यवृत्त सभी संबंधितों को उचित कार्रवाई के लिए भेजे गए थे।
नवंबर 2015 में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की बहिर्वेल्लन स्थिति की अखिल भारतीय समीक्षा आयोजित की थी। इसमें उठे महत्वपूर्ण बिंदु निम्नानुसार थे -
- इस सम्मेलन में 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण और भारत के महापंजीयक कार्यालय के अधिकारियों के साथ ही सचिव (खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण), अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (भारतीय खाद्य निगम), और विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी चर्चा में भाग लिया।
- केंद्र और राज्य सरकारों को भेद्य लोगों से सीधे जोड़ने की दृष्टि से सार्वजनिक वितरण व्यवस्था एक महत्वपूर्ण योजना है। तत्कालीन सार्वजनिक वितरण व्यवस्थाओं में तीन श्रेणियों - एएवाय, बीपीएल और एपीएल - को रियायती खाद्यान्न प्रदान किये जा रहे थे। गेहूं और चावल क्रमशः 2 और 3 रुपये प्रति किलोग्राम पर उच्चस्तरीय रियायती खाद्यान्नों के रूप में 67 प्रतिशत जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए वर्ष 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का अधिनियमन किया गया। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत समावेश को गरीबी के अनुमानों से अलग कर दिया गया है।
- लाभार्थियों की पहचान के लिए अधिनियम में प्रदान किये गए प्रारंभिक एक वर्ष के दौरान (अर्थात 2013-14 के दौरान) केवल 11 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने अधिनियम का क्रियान्वयन शुरू किया। लाभार्थियों की पहचान की प्रक्रिया और अन्य प्रारंभिक गतिविधियों को पूर्ण करने में कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को आई समस्याओं को देखते हुए सरकार ने समय सीमा को 30 सितंबर 2015 तक बढ़ा दिया।
- अधिनियम को क्रियान्वित करने की अपनी आतुरता में कुछ राज्यों ने अधिनियम की इस मूल भावना को नजरअंदाज कर दिया कि खाद्यान्न अभिप्रेत लाभार्थियों तक 100 प्रतिशत पारदर्शिता के साथ पहुँचने चाहिए।
- यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से खाद्यान्न उठाने के समय से ही राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि खाद्यान्न उचित मूल्य की दुकानों तक बिना किसी रिसाव के पहुँचते हैं और समय से लाभार्थियों को वितरित किये जाते हैं।
- यह सब कुछ सुनिश्चित करने के लिए उन्हें निम्न करना आवश्यक है (ए) लाभार्थियों की सही और सटीक पहचान, (बी) लाभार्थी डेटाबेस का अंकरूपण करना, और (सी) इसे सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के पोर्टल पर रखना, साथ ही एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र विकसित करना।
- राज्य सरकारों को लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के कम्प्यूटरीकरण में सहायता के लिए सरकार तकनीकी और वित्तीय, दोनों प्रकार की सहायता प्रदान कर रही है। साथ ही केंद्र सरकार खाद्यान्नों के राज्यान्तर्गत परिवहन और ढुलाई और उचित मूल्य विक्रेताओं के मुनाफे के मदों पर हुए व्यय की पूर्ति के लिए भी सहायता प्रदान कर रही है।
- हालांकि वर्ष 2015 में 11 अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने भी अधिनियम का क्रियान्वयन शुरू किया है, तथापि 14 राज्य / केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जिन्हें अभी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की शुरुआत करना शेष है।
- अभिप्रेत लाभार्थियों को खाद्यान्नों का रिसाव मुक्त वितरण सुनिश्चित करने के लिए उचित मूल्य दुकानों का स्वचालन करने की आवश्यकता है। इसके लिए राज्यों के लिए यह अनिवार्य है कि वे लाभार्थियों की पहचान सही ढंग से करें और सूची का आधार बीज के साथ अंकरूपण करें।
- तमिलनाडु के अतिरिक्त (जिसका सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का सफलतापूर्वक संचालित अपना संस्करण है), अन्य सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अप्रैल 2016 तक अधिनियम के क्रियान्वयन की शुरुआत कर पाएंगे ऐसी संभावना है। तमिलनाडु ने ऐसे संकेत दिए हैं कि लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का कम्प्यूटरीकरण जून 2016 तक पूर्ण कर लिया जाएगा, जिसके बाद अधिनियम का क्रियान्वयन किया जाएगा।
- लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के परिचालन के अंत-से-अंत कम्प्यूटरीकरण और एफपीएस स्वचालन की समीक्षा की गई। लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के कम्प्यूटरीकरण की शुरुआत दिसंबर 2012 में हुई और पिछले तीन वर्षों के दौरान राज्यों ने इस योजना के अंतर्गत काफी काम किया है। इस संदर्भ में अखिल भारतीय प्रगति निम्नानुसार हैः
- समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि मार्च 2016 तक राज्यों द्वारा लगभग 1.5 लाख उचित मूल्य दुकानों का स्वचालन पूर्ण करने की संभावना है।
- सामान्य रूप से धान/चावल की खरीद में सुधार करने के लिए, और विशेष रूप से पूर्वी क्षेत्रों में, राज्य सरकारों को बेहतर अधोसंरचना सुविधाओं की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे और अधिक खरीद केंद्र, भंडारण, दलने की क्षमता इत्यादि। साथ ही, पारदर्शिता की शुरुआत करने के लिए और बैंक खातों के माध्यम से किसानों को त्वरित भुगतान सुनिश्चित करने के लिए खरीद संचालन का कम्प्यूटरीकरण करना आवश्यक है।
7.0 सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत अन्य गतिविधियाँ
7.1 कल्याणकारी योजनाएं
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत खाद्यान्नों की आपूर्ति के अलावा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था द्वारा आहार से संबंधित अन्य कल्याणकारी कार्य भी किये जाते हैं। इनमें से कुछ योजनाएं निम्नानुसार हैंः
- मध्यान्ह भोजन योजना
- गेहूं आधारित पोषण कार्यक्रम
- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग छात्रावासों/कल्याणकारी संस्थाओं को खाद्यान्न आपूर्ति की योजना
- अन्नपूर्णा योजना
- संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना
- राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना
- किशोर युवतियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए खाद्यान्न
- आपातकालीन आहार कार्यक्रम
- ग्राम अनाज बैंक योजना
- विश्व खाद्य कार्यक्रम
7.2 सुरक्षित भंडार
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की गेहूं और चावल की आवश्यकताओं के अतिरिक्त केंद्रीय निकाय के पास इनके पर्याप्त भंडार होना आवश्यक है ताकि सूखे या फसल नुकसान जैसी स्थितियों में खाद्यान्नों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके, साथ ही मूल्य वृद्धि की स्थिति में खुले बाजार में हस्तक्षेप करना भी संभव हो सके।
7.3 खुला बाजार विक्रय योजना
लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत खाद्यान्न प्रदान करने के अतिरिक्त सरकार के निर्देश पर भारतीय खाद्य निगम खुले बाजार में गेहूं और चावल जैसे खाद्यान्नों का पूर्वनिर्धारित मूल्यों पर विक्रय भी करता रहा है जिसका उद्देश्य निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करना हैः
- खाद्यान्नों की आपूर्ति में वृद्धि करना, विशेष रूप से कमजोर मौसम के दौरान, ताकि खुले बाजार में कीमतों पर सुदृढ़ और मध्यस्थता प्रभाव कायम रह सके।
- केंद्रीय भंडार के अतिरिक्त भंड़ार को बाजार में वितरित किया जा सके और जहां तक संभव हो खाद्यान्नों के रखरखाव की लागत में कमी की जा सके।
- खाद्यान्नों की गुणवत्ता में मानव उपभोग के लिए अपक्षय होने से बचा जा सके।
- ताकि आने वाले मौसम में गेहूं चावल के भंडारण के लिए मूल्यवान भंडारण स्थान उपलब्ध हो सके।
8.0 सार्वजनिक वितरण व्यवस्था नियंत्रण आदेश, 2001 के तहत अधिकार
8.1 दंड़
यदि कोई व्यक्ति इस आदेश के अनुच्छेद 3 (गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों का चिन्हीकरण), अनुच्छेद 4 (राशन कार्ड़ जारी करना), अनुच्छेद 6 (वितरण), और अनुच्छेद 7 (अनुज्ञप्तिकरण) के प्रावधानों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है तो वह आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अनुच्छेद 7 के तहत सजा का पात्र होगा।
8.2 तलाशी और अधिग्रहण का अधिकार
- राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई भी प्राधिकारी ऐसे किसी भी दस्तावेज को बुलाने या उनका निरीक्षण करने के लिए सक्षम होगा जो उसे निरीक्षण के लिए आवश्यक प्रतीत हों, साथ ही वह उसके समक्ष प्रस्तुत किये गए किसी भी दस्तावेज की प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए भी सक्षम होगा।
- यदि ऐसे प्राधिकारी को शिकायत प्राप्त होने पर यह मानने के लिए उचित आधार है कि इस आदेश के किन्ही प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है, या इस आदेश के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए वह किसी भी उचित मूल्य की दुकान या उस दुकान के व्यवसाय के ऐसे किसी भी संबंधित स्थान में प्रवेश कर सकता है, उसका परीक्षण कर सकता है, या उसकी तलाशी ले सकता है।
- यह प्राधिकृत प्राधिकारी किन्हीं भी दस्तावेजों, या पुस्तकों या आवश्यक वस्तुओं की तलाशी ले सकता है, उनका निरीक्षण कर सकता है या उन्हें दुकान से उठवा सकता है, जिनके विषय में उसे यह मानने के लिए पर्याप्त आधार हैं कि उनका उपयोग इस आदेश के उल्लंघन के लिए किया गया है, या किया जा सकता है।
- उप अनुच्छेद (3) के तहत तलाशी और जब्ती करने वाला प्राधिकारी तलाशी के निष्कर्षों, ली गई तलाशी और इसके द्वारा जब्त किये गए आवश्यक वस्तुओं के भंड़ारों की जानकारी राज्य सरकार, या उसके द्वारा इस कार्य के लिए अधिकृत किये गए अधिकारी को देगा।
- तलाशी और जब्ती के संबंध में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद 100 के प्रावधान इस आदेश के तहत की गई तलाशी और जब्ती पर भी लागू होंगे।
9.0 भारत में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के क्रियान्वयन के लिए संगठनात्मक संरचना
भारत में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का क्रियान्वयन भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से केंद्र सरकार और राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश के अभिकरणों के माध्यम से संयुक्त रूप से किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है। यह विभाग भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत आता है।
9.1 खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग
सार्वजनिक वितरण विभाग पर प्राथमिक रूप से यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह देश की खाद्य अर्थव्यवस्था का उचित प्रबंधन करे। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के प्रमुख कार्य निम्नानुसार हैंः
- खाद्यान्नों की खरीद, परिवहन, भंड़ारण, और वितरण के संबंध में राष्ट्रीय नीतियां बनाना और उनका क्रियान्वयन करना;
- गरीबों पर विशेष ध्यान देते हुए सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का क्रियान्वयन करना;
- खाद्यान्नों के केंद्रीय सुरक्षित भंड़ारों के भंड़ारण को बनाये रखने के लिए प्रावधान करना और वैज्ञानिक भंडारण को बढ़ावा देना;
- आयात और निर्यात, सुरक्षित भंड़ार, गुणवत्ता नियंत्रण और खाद्यान्नों के विनिर्देशों से संबंधित राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करना;
- चावल, गेहूं और मोटे अनाज से संबंधित खाद्य अनुवृत्तियों का व्यवस्थापन करना;
- शक्कर कारखानों द्वारा देय गन्ने के सांविधिक न्यूनतम समर्थन मूल्यों का निर्धारण करना, उद्योग का विकास और विनियमन (जिसमें शक्कर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रशिक्षण भी शामिल है), उद्ग्रहण शक्कर का मूल्य निर्धारण और सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को इसकी आपूर्ति और मुक्त बाजार में शक्कर की आपूर्ति को विनियमित करना;
- ऐसे उद्योगों को सहायता प्रदान करना जिनका नियंत्रण संघ द्वारा संसद के कानून द्वारा सार्वजनिक हित में घोषित किया जा चुका है, जहां ये उद्योग वनस्पति, तेलबीजों, वनस्पति तेलों, खली और वसा से संबंधित हैं; और
- वनस्पति, तेलबीजों, वनस्पति तेलों, खली और वसा की आपूर्ति और वितरण के अंतर राज्य व्यापार और वाणिज्य में मूल्यों की निगरानी करना।
अपने विभिन्न कार्यों का निर्वहन करते समय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत तीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम आते हैं, अर्थात, भारतीय खाद्य निगम, केंद्रीय भंड़ारण निगम और हिंदुस्तान वनस्पति तेल निगम लिमिटेड; दो संलग्न कार्यालय हैं, जिनके नाम हैं शक्कर निदेशालय और वनस्पति, वनस्पति तेल एवं वसा निदेशालय, और अधीनस्थ कार्यालय हैं, अर्थात, राष्ट्रीय शक्कर संस्थान, कानपुर य नई दिल्ली, बैंगलोर, भोपाल, भुबनेश्वर, कोलकाता, हैदराबाद, लखनऊ और पुणे स्थित गुणवत्ता नियंत्रण कक्ष कार्यालय, भारतीय अनाज प्रबंधन अनुसंधान संस्थान, हापुड़ और हैदराबाद और लुधियाना में स्थित इसके दो क्षेत्रीय केंद्र आते हैं।
9.2 भारतीय खाद्य निगम
भारतीय खाद्य निगम केंद्र सरकार की खाद्य नीतियों को क्रियान्वित करने वाला प्रमुख अभिकरण है। भारतीय खाद्य निगम के प्राथमिक कार्य निम्नानुसार हैंः
- कृषकों के हितों के संरक्षण के लिए प्रभावी मूल्य समर्थन गतिविधियाँ
- सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लिए संपूर्ण देश में खाद्यान्नों का वितरण
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्नों का संतोषजनक परिचालनात्मक और सुरक्षित भंडार बनाये रखना।
9.3 केंद्रीय भंडारण निगम
केंद्रीय भंडारण निगम की स्थापना 1957 में कृषि उत्पाद (विकास एवं भांड़ागारण) निगम अधिनियम, 1956 के तहत की गई थी। इस अधिनियम को बाद में भांडागारण निगम अधिनियम, 1962 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। केंद्रीय भंडारण निगम के कार्य निम्नानुसार हैंः
- जैसा उसे उचित लगे उस प्रकार भारत में या विदेशों में उचित स्थानों पर गोदामों और भांडगारों का निर्माण करना;
- कृषि उत्पाद, बीजों, खादों, उर्वरकों, कृषि उपकरणों और व्यक्तिगत सहकारी संस्थाओं और अन्य संस्थानों द्वारा प्रस्तुत अधिसूचित वस्तुओं के भंडारण के लिए भाण्ड़ागारों की व्यवस्था करना;
- कृषि उत्पादों, बीजों, खादों, उर्वरकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं के भांड़ागारों से और उन तक परिवहन की व्यवस्था करना;
- राज्य भंडारण निगमों की अंश पूंजी में योगदान प्रदान करना;
- कृषि उत्पादों, बीजों, खादों, उर्वरकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं की खरीद, बिक्री, भंडारण, और वितरण के लिए सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना;
- इस अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की पूर्व अनुमति के साथ किसी केंद्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा या उनके तहत स्थापित किन्ही निगमों के साथ संयुक्त उपक्रम में शामिल होना, या कंपनी अधिनियम, 1956 तहत पंजीकृत विदेशी कंपनियों सहित किसी कंपनी के साथ उसकी सहायक कंपनियों के माध्यम से संयुक्त उपक्रम में शामिल होना;
- सहायक कंपनियां स्थापित करना; और
- निर्धारित किये गए अन्य सभी प्रकार के कार्य करना।
9.4 शक्कर एवं वनस्पति तेल निदेशालय
यह निदेशालय शक्कर और वनस्पति तेल के उत्पादन, वितरण और उपभोग से संबंधित नीतियों के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है। इस निदेशालय द्वारा किये जाने वाले कार्यों में निम्न शामिल हैंः
- आवश्यक वस्तुएं अधिनियम, 1955 और एक पहलू शक्कर (नियंत्रण) आदेश, 1956 के तहत उद्ग्रहण शक्कर की कीमतों की गणना करना और उनका निर्धारण करना,
- एसडीएफ नियम, 1983 के तहत सुरक्षित भंडार योजना का व्यवस्थापन
- उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी औद्योगिक उद्यम ज्ञापन की निगरानी एवं तत्सम कार्य,
- शक्कर मीलों के विस्तार और नई परियोजनाओं के लिए प्रलोभन प्रदान करना,
- शक्कर का आयात एवं निर्यात,
- निरीक्षण इत्यादि के माध्यम से शक्कर का गुणवत्ता नियंत्रण,
- उद्ग्रहण एवं मुक्त बिक्री शक्कर के कोटा जारी करना,
- गन्ना कीमतों के बकाया के भुगतान की देखरेख और निगरानी करना,
- शक्कर के उत्पादन, उसकी मूल्य स्थिति इत्यादि पर सांख्यिकीय आंकडे बनाये रखना।
यह निदेशालय सरकारी स्तर पर (केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर) वनस्पति तेलों, वसा एवं वनस्पति में विशेषज्ञता रखने वाला इकलौता संगठन है। वनस्पति, वनस्पति तेल एवं वसा निदेशालय में सुशिक्षित और योग्य तकनीकी कर्मी प्रदान किये गए हैं। यह मंत्रालय को वनस्पति तेलों के समन्वित प्रबंधन में सहायता प्रदान करता है, विशेष रूप से गुणवत्ता नियंत्रण और कीमतों की निगरानी के क्षेत्र में।
9.5 राष्ट्रीय चीनी संस्थान, कानपुर
राष्ट्रीय चीनी संस्थान कानपुर एक प्रतिष्ठित संस्थान है जो चीनी प्रौद्योगिकी, चीनी अभियांत्रिकी, शराब प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करता है, साथ ही यह कार्यकारी स्तर प्रशिक्षण चीनी क्वथन प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम, चीनी अभियांत्रिकी प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम, और कटाई पूर्व-परिपक्वता सर्वेक्षण प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है यह संस्थान देश के चीनी और किण्वन उद्योग की प्रशिक्षित तकनीकी कर्मियों की आवश्यकता की भी पूर्ति करता है।
9.6 गुणवत्ता नियंत्रण केंद्र
देश में खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सीधे नियंत्रण के तहत नई दिल्ली, बैंगलोर, भोपाल, भुबनेश्वर, कोलकाता, लखनऊ, पुणे और हैदराबाद जैसे स्थानों पर आठ गुणवत्ता नियंत्रण केंद कार्यरत हैं। इन केन्द्रों का मुख्य उद्देश्य है खरीद, भंडारण और वितरण के समय खाद्यान्नों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना। खरीद केन्द्रों, भंडारण डेपो, रेल केंद्रों, चावल मिलों और उचित मूल्य की दुकानों का औचक निरीक्षण इन केंद्रों के अधिकारियों द्वारा किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि खाद्यान्नों की गुणवत्ताक भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों/मानकों के अनुरूप है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि भारतीय खाद्य निगम और राज्यों के अभिकरणों द्वारा खाद्यान्नों के भंडारण और रखरखाव के लिए सरकार द्वारा जारी किये गए दिशानिर्देशों का सही ढंग से पालन किया जा रहा है अथवा नहीं। ये केंद्र राज्य सरकारों, अति विशिष्ट व्यक्तियों, मीडिया और जनता की ओर से खाद्यान्नों की खरीद, भंड़ारण और वितरण के विषय में की गई शिकायतों पर भी ध्यान देते हैं। प्राप्त शिकायतें अन्वेषण के लिए भारतीय खाद्य निगम या राज्य सरकारों को प्रेषित की जाती हैं, जबकि कुछ मामलों का अन्वेषण गुणवत्ता नियंत्रण अधिकारियों द्वारा सीधे भी किया जाता है।
9.7 भारतीय अनाज भंडारण प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान
हापुड़ स्थित भारतीय अनाज भंडारण प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान और इसके हैदराबाद और लुधियाना स्थित दो क्षेत्रीय केंद्र खाद्यान्नों के भंडारण और संरक्षण के विषय में अनुसंधान एवं विकास गतिविधियाँ करते हैं। साथ ही भारतीय अनाज भंडारण प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान भंडारण अभिकरणों, कीट नियंत्रण ऑपरेटरों, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा प्रायोजित विदेशी नागरिकों के लाभ के लिए खाद्यान्नों के वैज्ञानिक भंडारण और निरीक्षण, कीट नियंत्रण प्रौद्योगिकी इत्यादि विषयों में दीर्घकालीन और अल्पकालिक विशेषज्ञ कार्यक्रम भी चलाता है। कृषि मंत्रालय के पौध संरक्षण संगरोध और भंडारण निदेशालय ने कीट नियंत्रण ऑपरेटरों को अनुज्ञप्ति प्रदान करने के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और विशेषज्ञ अल्पकालिक पाठ्यक्रम को मान्यता प्रदान की है।
COMMENTS