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भारत में फसलें एवं फसलों की पद्धतियां भाग - 2
5.0 विश्व फसल उत्पादन - प्रवृत्तियां
अनाज, जिसमें गेहूं, चावल, जौ, मक्का, राई, ओट्स और बाजरा शामिल हैं, कृषि क्षेत्र के उत्पादन के अधिकांश भाग का निर्माण करते हैं। ये सभी अनाज मानव उपभोग के महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत बने हुए हैं। फिर भी बाहरी कारक, जैसे बढ़ती आय और शहरीकरण आहार में उन आहारों की ओर परिवर्तन कर रहे हैं जो प्रोटीन, वसा और शर्करा में अधिक समृद्ध हैं। इसके अतिरिक्त पशुधन और जैव ईंधन के उत्पादन में फसल उत्पादन से अधिक तेजी से वृद्धि हुई है और होने की संभावना है। इसके कारण खाद्य, पशु आहार और जैव ईंधन की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गेहूं और चावल जैसी फसलों से दूर जाने की और उनके स्थान पर मोटे अनाजों और तेलबीजों के उत्पादन की ओर परिवर्तित होने की प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है। समग्र रूप से अनाजों में गेहूं, चावल की धान, जौ मक्का, पॉपकॉर्न, राई, ओट्स, बाजरा, चारा, मोथी, क्विनोआ, फोनियो, ट्रिटिकेल, पीतचटकी बीज, मिश्रित अनाज और अनाज शामिल हैं।
फसल उत्पादन विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न हो सकता है। इसे स्पष्ट करने के लिए यहाँ एक रेखाचित्र दिया गया है।
कृषि में विश्व व्यापार नीचे दर्शाया गया है।
भारत और विश्व उत्पादन के बीच तुलना नीचे दर्शाई गई है।
5.1 भारत में कृषि
वर्ष 1970-71 से भारतीय कृषि की प्रवृत्ति वृद्धि लगभग 3 प्रतिशत रही है, जो जनसंख्या वृद्धि से उपर तो है, परंतु फिर भी यह समग्र अर्थव्यवस्था से काफी नीचे रही है जिसमें कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र, तीनों शामिल हैं। अतः जबकि प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादन ने लगातार वृद्धि का अनुभव किया है, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी में कमी आई है। प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादन में हुई वृद्धि ने देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुर्भाग्यवश कृषि उत्पादन वृद्धि की विशेषता अस्थिरता रही है; प्रत्येक उच्च वृद्धि अवधि के बाद एक न्यून वृद्धि का चरण आता है। इस चक्रीय वृद्धि प्रवृत्ति ने स्वयं को दसवीं पंचवर्षीय योजना के 3 प्रतिशत, ग्यारहवीं योजना के 4 प्रतिशत और बारहवीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2016 की शुरुआत तक के प्रथम तीन वर्षों के दौरान मात्र 1.7 प्रतिशत में प्रतिबिंबित किया है। विशिष्ट उप क्षेत्र, अधिक उल्लेखनीय रूप से फसल क्षेत्र, क्रमिक गंभीर नकारात्मक झटकों से प्रभावित रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप गंभीर संकटों का सामना करना पडा है।
देश की फसल उत्पादन प्रवृत्ति में खरीफ मौसम में धान का और रबी के मौसम में गेहूं का वर्चस्व रहा है। ये दो फसलें देश के कुल फसल क्षेत्र के लगभग 38 प्रतिशत क्षेत्र को व्याप्त करती हैं। अनाज, जिनमें मोटे अनाज भी शामिल हैं, कृषि के अंतर्गत आने वाली कुल भूमि के आधे से अधिक क्षेत्र को व्याप्त करते हैं।
कुछ प्रवृत्तियां स्पष्ट हैं -
- खाद्यान्न उत्पादन के अंतर्गत आने वाला कुल क्षेत्र = 63.6 प्रतिशत, जिसमें से अनाजों का हिस्सा 50.9 प्रतिशत और दालों का हिस्सा 12.5 प्रतिशत है
- तेलबीजों की पैदावार के अंतर्गत आने वाला कुल क्षेत्र = 13.9 प्रतिशत
देश के सबसे महत्वपूर्ण कृषि राज्य हैं उत्तरप्रदेश (सबसे बड़ा), पंजाब और हरियाणा (पारंपरिक रूप से सबसे प्रमुख योगदानकर्ता) और मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल (जो काफी बडे़ उत्पादकों के रूप में उभर रहे हैं)। उत्तरप्रदेश क्षेत्रफल और उत्पादन, दोनों दृष्टि से सबसे बड़ा हिस्सेदार है। यह देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग पांचवे हिस्से का योगदान देता है।
नीचे दी गई तालिका इसे स्पष्ट करती है -
उत्पादन और सिंचित क्षेत्र के अनुपात, इन दोनों ही चरों में पंजाब का स्थान प्रथम है और हरियाणा का दूसरा है। बडे उत्पादकों में मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र अपेक्षाकृत कम उपज का प्रदर्शन करते हैं। सिंचित क्षेत्र के अनुपातों में भी राजस्थान और महाराष्ट्र न्यून अनुपातों का प्रदर्शन करते हैं। बिहार में सिंचित क्षेत्र का अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है परंतु ऐसा उत्पादन के क्षेत्र में नहीं है। इसका अत्यंत संभावित कारण बाढ़ की उच्च आवृत्ति हो सकता है जो अक्सर खड़ी फसलों को नष्ट कर देती है।
चावल की पैदावार और उत्पादन के वैश्विक आंकड़ों की तुलना नीचे की तालिका में दी गई है।
गेहूं के मामले में प्रति हेक्टेयर पैदावार की दृष्टि से भारत अमेरिका से आगे है। चीन गेहूं का एकमात्र ऐसा प्रमुख उत्पादक है जिसकी उत्पादकता भारत से कहीं अधिक है। फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम गेहूं में सुपर उच्च उत्पादकता को प्रदर्शित करते हैं परंतु फिर भी उनके उत्पादन भारत और चीन की तुलना में काफी हद तक कम हैं।
5.2 बीटी कपास का आश्चर्यजनक मामला
एक आश्चर्यजनक विश्लेषण कपास की फसल की पैदावार है, जो आनुवंशिक संशोधित बीजों का उपयोग करने वाली एकमात्र परीक्षण की गई फसल है।
बीटी कपास की शुरुआत से पहले की अधिकतम पैदावार, जो वर्ष 1996-97 में प्राप्त की गई थी, वह थी 265 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर। परंतु उसके बाद पैदावार में लगातार गिरावट होती गई, जो कम होते-होते वर्ष 2001-02 में 186 कि.ग्रा. हो गई। भारत में बीटी कपास को अपनाने की शुरुआत वर्ष 2002 में हुई और उसके अंतर्गत आने वाला क्षेत्र तेजी से बढ़ा और बढ़ते-बढ़ते वर्ष 2014 तक 1.16 करोड़ हेक्टेयर, या कुल कपास उत्पादन क्षेत्र के 95 प्रतिशत तक पहुँच गया। पैदावार में लगातार वृद्धि होती गई और वर्ष 2013-14 में यह अधिकतम 532 कि ग्रा प्रति हेक्टेयर तक पहुँच गई। सबसे बडे़ कपास उत्पादन करने वाले तीन राज्यों, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात के किसानों को भारी लाभ की अनुभूति हुई। वर्ष 2001 से 2010 के बीच बीटी कपास ने कीटनाशकों के उपयोग में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी करने में सहायता प्रदान की। जबकि पारंपरिक किस्मों के तहत प्रवृत्ति वृद्धि दरें उसके पहले के दशकों में इससे काफी कम थीं, ऐसी स्थिति में यह अकल्पनीय है कि उन किस्मों के तहत पैदावार 499 कि ग्रा प्रति हेक्टेयर तक की उच्च स्थिति तक जा सकती थी।
भारत में बीटी कपास की सफलता और विश्व में अन्यत्र अन्य अनेक आनुवंशिक संशोधित बीजों ने यह दिखा दिया है कि कृषि में उत्पादकता को प्रमुख रूप से बढ़ावा देने में आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी की क्षमता क्या है। परंतु भारत में और अन्यत्र भी (जैसे यूरोप में) आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकियां विवादित हैं। बीटी कपास शुरुआत होकर 13 वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है परंतु बीटी कपास के उपयोगकर्ताओं या बीटी कपास के किसानों के क्षेत्र में अन्य फसलों पर इसके दुष्प्रभावों की कोई भी वैज्ञानिक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुई है। परंतु भारत ने किसी भी नए आनुवंशिक संशोधित बीज की शुरुआत नहीं की है। वर्ष 2010 में सभी संबंधित आधिकारिक निकायों द्वारा बीटी बैंगन को मंजूरी दे देने के बाद भी पर्यावरण मंत्रालय ने इसका मार्ग रोक दिया। बैंगन की अनेक पारंपरिक किस्मों में प्रत्येक तीसरे-चौथे दिन कीटनाशकों के अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है, जिसका परिणाम उपभोक्ता तक पहुँचते समय इसपर काफी मात्रा में कीटनाशकों के अवशिष्ट के रूप में दिखाई देता है। बीटी बैंगन ने संभवतः इस समस्या को कीटनाशकों के उपयोग में कमी के माध्यम से काफी हद तक कम कर दिया होता।
6.0 फसलें और फसल पद्धतियां
6.1 फसल वर्गीकरण प्रणाली
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने एक फसल वर्गीकरण प्रणाली तैयार की है, जो नीचे विस्तार से दी गई है।
फसलों के 9 समूह हैं, और प्रत्येक फसल स्थाई भी हो सकती है या अस्थाई भी हो सकती है।
- अनाज
- सब्जियां और खरबूजे
- फल और नट
- तेलबीजों की फसलें
- उच्च श्वेतसार सामग्री के साथ मूल (जड) / कंद फसलें
- पेय और मसालों की फसलें
- फलीदार फसलें
- शर्करा फसलें
- अन्य फसलें
विस्तृत तालिका इसे अधिक स्पष्ट करती है।
अनाज और छद्म अनाज - ये अनाजों की फसलें होती हैं। ये अनिवार्य रूप से घास होती हैं, जिनका संबंध पोएसी या गार्मिन परिवार के अंतर्गत एकबीजपत्री वनस्पति से होता है। उदाहरणार्थ चावल, गेहूं, डुरम गेहूं, कक्का, जौ बाजरा इत्यादि। परिपक्व अनाज की कटाई खाद्य या पशु आहार के लिए की जाती है। इन्हें श्वेतसार, माल्ट, जैव ईंधन और स्वीटनर जैसे उत्पादों में प्रसंस्करित भी किया जाता है। अनाज वार्षिक पौधे होते हैं, परंतु इन्हें सदाबहार पौधों में विकसित करने के लिए अनुसंधान कार्य जारी है! छद्म अनाज घास नहीं होते बल्कि इनका उपयोग मोटे अनाज के प्रयोजन से किया जाता है। उदाहरणार्थ क्विनोआ, मोथी, अमरनाथ इत्यादि।
6.2 भारतीय राज्यों में फसलें
शुरू करने के लिए, भारत के विभिन्न शीर्ष कृषि राज्यों के 2015 से आंकडें़ दिए गए हैं।
यहाँ एक और चित्र दिया गया है जो उत्पादन पैमाने की सापेक्षता हमारे लिए स्पष्ट करता है।
6.3 भारत के प्रमुख कृषि मौसम
भारत में फसल की पैदावार के तीन मुख्य मौसम हैं।
1. खरीफ का मौसम (खरीफ = शरद ऋतु, अरबी में; भारत में मुगलों द्वारा इस शब्द की शुरुआत की गई)
ये ग्रीष्मकालीन या मानसून फसलें हैं जिनकी पैदावार दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान इत्यादि) में की जाती है। फसलों की बुवाई दक्षिण-पश्चिमी मानसून के शुरुआत में की जाती है और इनकी कटाई दक्षिण-पश्चिम मानसून के अंत में की जाती है। अतः भारत में इसकी शुरुआत मई से जुलाई के दौरान होती है और इसका अंत अधिक से अधिक जनवरी में होता है। परंतु अधिक सामान्य रूप से इसकी अवधि जून से अक्टूबर के दौरान मानी जाती है।
बुवाई का मौसमः मई से जुलाई
कटाई का मौसमः सितंबर से अक्टूबर
महत्वपूर्ण फसलेंः ज्वार और बाजरा, चावल (धान और गहरे पानी का), मक्का, मूंग (हरा चना), काला चना, ग्वार, मटर, मूंगफली, कपास, मूंगफली, जूट, भांग, तंबाकू इत्यादि।
2. रबी का मौसम (रबी = वसंत, अरबी में; भारत में इस शब्द की शुरुआत मुगलों द्वारा की गई)
रबी की फसलें कृषि फसलें होती हैं जिनकी बुवाई सर्दी के मौसम में की जाती है और कटाई दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान इत्यादि) में वसंत में की जाती है। इनके बढ़ने की अवधि के दौरान इन फसलों को ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, परंतु बीजों के अंकुरण और परिपक्व होने के समय गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। रबी के मौसम की शुरुआत उत्तर-पूर्वी मानसून की शुरुआत के साथ अक्टूबर में होती है अतः बुवाई नवंबर के मध्य में की जाती है (जब मानसून समाप्त हो जाता है) और इनकी कटाई अप्रैल / मई में होती है।
बुवाई का मौसमः अक्टूबर से दिसंबर
कटाई का मौसमः फरवरी से अप्रैल
महत्वपूर्ण फसलेंः अनाज (गेहूं, ओट, जौ, मक्का) बीज पौधे (तिल, धनिया, सरसों, मेंथी, इसबगोल), सब्जियां (मटर, प्याज, टमाटर, आलू, काबुली चना इत्यादि)।
खरीफ और रबी, दोनों मौसमों में अनेक फसलें उगाई जाती हैं। भारत में पैदा की जाने वाली कृषि फसलें मौसमी होती हैं और इनकी निर्भरता इन दो मानसून पर अत्यधिक होती है।
3. ज़ायद मौसम (जैद = वृद्धि, प्रगति)
रबी और खरीफ के मौसम के बीच में ऐसी अनेक फसलें उगाई जाती हैं जिन्हें वर्षा की आवश्यकता नहीं होती, परंतु ये सिंचाई का उपयोग कर सकती हैं। आमतौर पर ये फसलें गर्मी के मौसम में एक ऐसे मौसम में उगाई जाती हैं जिसे “जैयद् फसल मौसम“ कहा जाता है। इन फसलों को फूल आने के दौरान गर्म, शुष्क मौसम और लंबे दिनों की आवश्यकता होती है।
बुवाई का मौसमः फरवरी से मार्च
कटाई का मौसमः अप्रैल-मई
महत्वपूर्ण फसलेंः तरबूज, खरबूजा, ककडी, गन्ना और अन्य सब्जियां
6.4 भारत की प्रमुख फसलें
फसलों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है, और इनमें से एक लोकप्रिय प्रकार है इन्हें तीन प्रमुख समूहों में विभाजित करना - खाद्य फसलें, नकद फसलें (गैर-खाद्य फसलें) और बागवानी फसलें।
6.4.1 खाद्य फसलें
ये वे फसलें हैं जिनकी पैदावार सीधे मनुष्यों या पशुओं द्वारा उपभोग के लिए की जाती है। महत्वपूर्ण उदाहरण हैं चावल, गेहूं, बाजरा, मक्का और दालें। इनका विपणन और विक्रय भी किया जा सकता है, और तब ये फसलें नकद फसलें बन जाती हैं। इनमें से अनेक फसलों का वैश्विक स्तर पर व्यापार किया जाता है। आइये हम एक-एक करके इनपर नजर डालें।
1. चावल (खरीफ फसल)
वृद्धि के लिए आवश्यकताएँ -
उच्च गर्मी और उच्च आर्द्रता, 100-200 से मी वर्षा, विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जाता है - अम्लीय / क्षारीय परंतु खेत में पानी जमा करने की क्षमता होनी चाहिए
किन क्षेत्रों में उगाई जाती है -
संपूर्ण भारत में - केवल हिमालय के उच्च भागों और रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोडकर। उत्तर में प्रति वर्ष केवल एक फसल ली जाती है क्योंकि सर्दी का मौसम बहुत ही ठंडा होता है; दक्षिण और पूर्वी क्षेत्रों में एक वर्ष में दो या तीन फसलें ली जाती हैं।
उत्पादन और व्यापार -
भारत चावल का दूसरा सबसे बडा उत्पादक और उपभोक्ता है। प्रमुख राज्य हैंः पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तरप्रदेश और आंध्र प्रदेश
टिप्पणियां -
चावल भारत का प्रमुख आहार है। भारत विश्व के सबसे बडे़ सफेद चावल और ब्राउन चावल के उत्पादकों में से एक है। चीन के बाद भारत विश्व का प्रमुख चावल उत्पादक देश है। चावल एक उष्णकटिबंधीय पौधा है, जो गर्म और आर्द्र जलवायु में आसानी से विकसित होता है। अतः इसकी पैदावार मुख्य रूप से वर्षा आधारित क्षेत्रों में की जाती है जहाँ भारी वर्षा होती है। अतः भारत में मूल रूप से यह एक खरीफ फसल है। इसे लगभग 25 अंश सेल्सियस या उससे अधिक तापमान की आवश्यकता होती है और साथ ही 100 से मी वर्षा की आवश्यकता होती है। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ वर्षा कम होती है उन क्षेत्रों में भी चावल की फसल सिंचाई के माध्यम से प्राप्त की जाती है। पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में एक वर्ष में चावल की दो फसलें ली जाती हैं। उत्तर पश्चिमी भारत में चावल की पैदावार की दृष्टि से सर्दी का मौसम अत्यधिक ठंडा होता है। तटीय भारत में चावल को सबसे प्रमुख फसल माना जाता है और पूर्वी भारत के कुछ अन्य क्षेत्रों में जहाँ गर्मी के मौसम का मॉनसूनी वर्षा का मौसम उच्च तापमान और भारी वर्षा ये दोनों स्थितियां चावल की फसल के लिए आदर्श स्थिति की निर्मिति करते हैं। गर्मी के मौसम में चावल की खेती के लिए भारत का लगभग संपूर्ण क्षेत्र उपयुक्त है बशर्ते पानी उपलब्ध है। इस प्रकार, चावल की खेती पश्चिमी उत्तरप्रदेश, पंजाब और हरियाणा के उन स्थानों में भी की जाती है जहाँ गर्मी के मौसम के मानसून के दौरान निचले क्षेत्र जलमग्न होते हैं।
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