यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 2

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बजट के संवैधानिक प्रावधान

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1.0 प्रस्तावना

कल्याणकारी राज्य के उद्गमन की वजह से ही सरकार की गतिविधियों के दायरे में वृद्धि हुई है। सरकारों को आज अनेक कार्य करने होते हैं जैसे कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना, आर्थिक और सामाजिक भलाई के लिए योजनाओं का कार्यान्वयन करना, व अपने क्षेत्रों की रक्षा करना। उन्हें लोगों के लिए विभिन्न प्रकार की सामाजिक सेवाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आवास प्रदान करनी होती है। इसलिए, सरकारों को प्रभावी ढंग से इन कार्यों का निर्वहन करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है। 

सरकारी व्यय को पूरा करने हेतु आवश्यक धन देश के संसाधनों द्वारा, जैसे दोनों प्रकार के कर - प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों प्रकार के ऋण - दीर्घकालिक और अल्पकालिक, जुटाए जाते हैं। भारत में राजस्व का मुख्य स्रोत सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क और व्यक्तियों तथा कंपनियों पर आयकर हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार मनमर्ज़ी से कराधान, व्यय और उधार ले सकती है। चूंकि संसाधनों की एक सीमा होती है, अतः विभिन्न सरकारी गतिविधियों के लिए अल्प संसाधनों के आवंटन हेतु उचित बजट की आवश्यकता होती है। एक विशिष्ट अवधि हेतु लक्षित कुल परिव्यय में से प्रत्येक व्यय की मद के बारे में अच्छी तरह सोचा जाना चाहिए। सरकार की स्थिरता और उचित कमाई हेतु बुद्धिमानीपूर्वक व्यय करना पूर्वाकांक्षित है। इसलिए, योजनागत व्यय और कमाई की दूरदर्शिता सुदृढ़ सरकारी वित्त के अपरिहार्य तत्व हैं।

भारतीय संविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री और उनकी मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकार चलाने के लिए, वित्तीय नियत्रंण एक महत्वपूर्ण पक्ष होता है। इसलिए भारतीय संविधान में सरकार की आय और व्यय से संबंधित प्रावधान दिये गये हैं तथा यह भी बताया गया है कि संसद किस तरह इस पर नियंत्रण रखेगी।

भारत के संविधान में ऐसे विशेष प्रावधान हैं जिनमें इन सिद्धांतों को शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 265 में प्रावधान है कि ‘‘कानून प्राधिकारी के सिवाय ना तो कोई कर नहीं लगाया और ना ही एकत्र किया जाएगा’’; विधान प्राधिकरण को छोड़कर कोई अन्य व्यय नहीं किया जा सकता है (अनुच्छेद 266); और राष्ट्रपति करेंगे, हर वित्तीय वर्ष के संबंध में, व्यय के कारणों को संसद के समक्ष रखे जाना, वार्षिक वित्तीय विवरण (अनुच्छेद 112)। हमारे संविधान के ये प्रावधान सरकार को संसद के प्रति जवाबदेह बनाते हैं।

2.0 बजटीय प्रक्रिया से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 109 - धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया 

  1. धन विधेयक राज्य सभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा। 
  2. धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और राज्य सभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोक सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी। 
  3. यदि लोक सभा, राज्य सभा को किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा। 
  4. यदि लोक सभा, राज्य सभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक, राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। 
  5. यदि लोक सभा द्वारा पारित और राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा, उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। 

अनुच्छेद 110 - ‘‘धन विधेयक’’ की परिभाषा

1.    इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेश्क धन विधेयक समझा जाएगा यदि समें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात -

(क)  किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन;

(ख)  भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन;

(ग)  भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी विधि में धन जमा करना या एसमें से धन निकालना;

(घ)  भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग;

(ड)  किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; या 

(च)  भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; या 

(छ)   उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।

2.    कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।

3.      यदि यह प्रश्न उठता हे कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा। 

4.       जब धन विधेयक अनुच्छेद 109 के अधीन राज्य सभा को पारेषित किया जाता है ओर जब वह अनुच्छेद 111 के अधीन अनुमति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर लोक सभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है। 

अनुच्छेद 111 - विधेयकों पर अनुमति जब कोई विधेयक संसद् के सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है। 

परंतु राष्ट्रपति अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो, सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि वे विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संशोधनों के पुरःस्थान की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन विधेयक पर तद्नुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति नहीं रोकेगा। 

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया

अनुच्छेद 112 - वार्षिक वित्तीय विवरण 

  • राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद् के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में ‘‘वार्षिक वित्तीय विवरण’’ कहा गया है।
  • वार्षिक वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्रक्कलनों में -

    1. इस संविधान में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के रूप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, और 
    2. भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थपित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक-पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा। 

  • निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भारित व्यय होगा, अर्थात -

    1. राष्ट्रपति की उपलब्धियां ओर भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय;
    2. राज्य सभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते;
    3. ऐसे ऋण भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संबंधित अन्य व्यय हैं;
    4. (1)उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन;

  • फेडरल न्यायालय के न्यायधीशों को या उनके संबंध में संदेय पेंशन;
  • उस उच्च न्यायालय के न्यायधीशें को या उनके संबंध में दी जाने वाली पेंशन, जो भारत के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करता है या जो भारत डोमिनियन के राज्यपाल वाले प्रांत के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय अधिकारिता का प्रयोग करता था;

    1. भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक जो, या उसके संबंध में, संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन;
    2. किसी न्यायालय या माध्यस्थम् अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तृष्टि के लिए अपेक्षित राशिया;
    3. कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद् द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया जाता है। 

अनुच्छेद 113 - संसद में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया

  1. प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से संबंधित हैं वे संसद् में मतदान के लिए नहीं रखे जाएंगे, किन्तु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद के किसी सदन में उन प्राक्कलनों में से किसी प्राक्कलन पर चर्चा को निवारित करती है।
  2. उक्त प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबंधित हैं वे लोक सभा के समक्ष अनुदानों की मांगों के रूप में रखे जाएंगे और लोक सभा को शक्ति होगी कि वह किसी मांग को अनुमति दे या अनुमति देने से इंकार कर दे अथवा किसी मांग को, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को कम करके, अनुमति दे। 
  3. किसी अनुदान की मांग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं।

अनुच्छेद 114 - विनियोग विधेयक

  • लोक सभा द्वारा अनुच्छेद 113 के अधीन अनुदान किए जाने के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, भारती संचित निधि में से -

    1. लोक सभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनुदानों की, और
    2. भारत की संचित निधि पर भारित, किंतु संसद् के समक्ष पहले रखे गए विवरण में दर्शित रकम से किसी भी दशा में अनधिक व्यय की पूर्ति के लिये अपेक्षित सभी धनराशियों के विनियोग का उपबंध करने के लिए विधेयक पुरःस्थापित किया जाएगा। 

  • .इस प्रकार किए गए किसी अनुदान की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे किसी विधेयक में संसद् के किसी सदन में प्रस्थापित नहीं किया जाएगा और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राहय है या नहीं। 
  • अनुच्छेद 115 और अनुच्छेद 116 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत की संचित निधि में से इस अनुच्छेद के उपबंधों के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला जाएगा, अन्यथा नहीं।

अनुच्छेद 115 - अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान

  •  यदि -

    1. अनुच्छेद 114 के उपबंधों के अनुसार बनाई गई किसी विधि द्वारा किसी विशिष्ट सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किए जाने के लिए प्राधिकृत कोई रकम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनुध्यात न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या 
    2. किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर, उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गई रकम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है, तो राष्ट्रपति, यथास्थिति, संसद के दोनों सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रकम को दर्शित करने वला दूसरा विवरण रखवाएगा या लोक सभा में ऐसे आधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवाएगा।

  • ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संबंधित अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में भी, अनुच्छेद 112, अनुच्छेद 113 और अनुच्छेद 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण और उसमें वर्णित व्यय या किसी अनुदान की किसी मांग के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं। 

अनुच्छेद 116 - लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान

  • इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को -

    1. किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिए प्राक्कलित व्यय के संबंध में कोई अनुदान, उस अनुदान  के लिए मतदान करने के लिए अनुच्छेद 113 में विहित प्रक्रिया के पूरा होने तक और उस व्यय के संबंध में अनुच्छेद 114 के उपबंधो के अनुसार विधि के पारित होने तक, अग्रिम देने की;
    2. जब किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित रूप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ वर्णित नहीं की जा सकती है जो वार्षिक वित्तीय विवरण में सामान्यतया दिया जाता है तब भारत के संपत्ति स्त्रोतों पर अप्रत्याशित मांग की पूर्ति के लिए अनुदान करने की;

  • खंड (1) के अधीन किए जाने वाले किसी अनुदान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में अनुच्छेद 113 और अनुच्छेद 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में कोई अनुदान करने के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं। 

अनुच्छेद 117 - वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध

  1. अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्य सभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा, परंतु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी। 
  2. कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञपित्यों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादनश् परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है। 
  3. जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक संसद के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है।

3.0 नियंत्रण के प्रकार 

  • वार्षिक वित्तीय लेखा-जोखाः धारा 112ः इस धारा के अंतर्गत, भारत के राष्ट्रपति संसद के दोनों ही सदनों के सम्मुख वित्त वर्ष के लिए सरकार के आय और व्यय का अनुमानित लेखा-जोखा मांगते हैं। इस वक्तव्य को वार्षिक वित्तीय लेखा-जोखा कहते हैं। वार्षिक वित्तीय लेखा-जोखा धारा 112 के अंतर्गत वह दस्तावेज होता है, जिसमें भारत सरकार की अनुमानित आय और व्यय का विवरण होता है। प्राप्तियों और विवरणों को तीन शीर्षकों में बताया जाता है जिसमें सरकारी लेखा होते हैं। (1) समेकित निधि, (2) आकस्मिकता निधि एवं (3) लोकखाता।

संविधान के अंतर्गत वार्षिक वित्तीय लेखा, राजस्व लेखा के व्यय से अन्य व्ययों को अलग करता है। इसलिए सरकारी बजट, राजस्व बजट और पूंजीगत बजट को इकट्ठा प्रस्तुत करता है। वार्षिक वित्तीय लेखा में समाहित अनुमानित आय और व्यय के सकल प्रतिदेय और वसूलियों के व्यय के लिए होता है जैसा कि विभिन्न लेखाओं में प्रतिबिंबित होता है। 

  • अनुदानां की माँगः धारा 113ः संविधान की धारा 113 कहती है कि भारत की समेकित निधि के अनुमानित व्यय जो कि वार्षिक वित्तीय लेखा में शामिल है मत विभाजन के योग्य नहीं होगा। लोकसभा द्वारा जिन व्ययों पर मत विभाजन हो सकता है उन्हें अनुदान माँगों में शामिल किया गया है। अनुदान माँगों को वार्षिक वित्तीय लेखा के साथ लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। सामान्यतः प्रत्येक मंत्रालय या विभाग से संबंधित एक अनुदान मांग शामिल होती है।
  • विनियोजन (स्वायत्तीकरण) विधेयकः धारा 114 (3): संविधान की धारा 114(3) के अंतर्गत समेकित निधि से तब तक कोई राशि नहीं निकाली जा सकती जब तक कि संसद से ऐसे कानून को पारित ना कर दिया जाये। अनुदान मांगों को लोकसभा से पारित करने के पश्चात्, संसद से समेकित निधि से धन निकालने को मंजूरी दी जाती है तथा विनियोजन विधेयक के माध्यम से समेकित निधि से आवश्यक व्यय को मंजूर किया जाता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया संसद में बजट के प्रस्तुतीकरण से प्रारम्भ होकर अनुदानों की माँगों पर चर्चा तथा मत विभाजन तक जारी रहती है, और इसमें पर्याप्त लम्बा समय लगता है। इसलिए संविधान के द्वारा लोकसभा को यह शक्ति प्रदान की गई है की वह किसी भी अनुमानित खर्च (आने वाले वर्ष के) के एक हिस्से को, अनुदान मांग प्रक्रिया चलते रहते वक्त, अग्रिम रूप से स्वीकृति दे सके।
  • वित्त विधेयकः धारा 110(अ): वार्षिक वित्तीय लेखा को संसद के सामने प्रस्तुत करते समय संविधान की धारा 110 (1)(अ) की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वित्त विधेयक भी प्रस्तुत किया जाता है जिसमें बजट में प्रस्तावित करों का लगाया जाना, मिटाया जाना, सुधार या विनिमयन शामिल होता है। एक वित्त विधेयक संविधान की धारा 110 के अंतर्गत परिभाषित धन विधेयक होता है। एक ज्ञापन इसके साथ संलग्न होता है जिसमें, इसमें शामिल प्रावधानों की व्याख्या होती है।

4.0 एफ.आर.बी.एम.अधिनियम, 2003

कड़े वित्तीय अनुशासन के लिए, सूक्ष्म-आर्थिक प्रबंधन को सुधारने तथा लोक निधियों के संतुलित बजट प्रबंधन के लिए संसद द्वारा राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंध अधिनियम, 2003 पारित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य देश के राजस्व घाटे को समाप्त करना (राजस्व शेष का निर्माण करना) और मार्च 2008 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत के सहनीय स्तर तक लाना था। यद्यपि 2007 की वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण अधिनियम में दी गई समय सीमा को प्रारंभ में स्थगित किया गया और 2009 में समाप्त कर दिया गया। 2011 में इसकी भरपाई के लिए आर्थिक सलाहकार परिषद् ने भारत सरकार को सार्वजनिक रूप से सलाह दी की इस अधिनियम के प्रावधानों पर पुनर्विचार किया जाये। 

4.1 अनिवार्य दस्तावेज

राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंध अधिनियम, 2003 के द्वारा घोषित अनिवार्य दस्तावेज निम्नानुसार हैं

  1. वित्त विधेयक के प्रावधानों की व्याख्या करने वाला ज्ञापन
  2. सबंधित वित्त वर्ष का सूक्ष्म आर्थिक ढांचा
  3. वित्त वर्ष का राजकोषीय नीति का रणनीतिक वक्तव्य
  4. मध्यावधि राजकोषीय नीति वक्तव्य

5.0 अन्य दस्तावेज 

उपरोक्त दस्तावेजों के अतिरिक्त अन्य दस्तावेज व्याख्यात्मक प्रवृत्ति के वक्तव्य होते हैं, जो उपरोक्त दस्तावेजों का समर्थन करते हैं। 

इसके अतिरिक्त प्रत्येक विभाग/मंत्रालय भी संसद के सामने प्रस्तुत करने के लिए अनुदानों की मांग, निर्धारित बजट और वार्षिक रिपोर्ट तैयार करता है।

5.1 आर्थिक सर्वेक्षण

यह देश की आर्थिक प्रवृत्तियों को दर्शाता है और तथा संसाधनों की गतिशीलता को उचित दिशा देता है और उसके अनुसार बजट निर्धारित करता है, एवं इसका निर्माण वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा किया जाता है। आर्थिक सर्वे संसद के सम्मुख केन्द्रीय बजट के पूर्व प्रस्तुत किया जाता है। 

5.2 परिणाम फ्रेमवर्क दस्तावेज़ (आर.एफ.डी.)

विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के प्रदर्शन प्रबंधन के निरीक्षण के लिए सरकार द्वारा परिणाम फ्रेमवर्क दस्तावेज़ पद्धति को अपनाया गया है। विभिन्न मंत्रालय/विभागों में इस पद्धति को चरणगत प्रक्रिया में लागू किया जाता है। 2012-13 में यह पद्धति 70 मंत्रालयों/विभागों में लागू की गई।

सरकार में प्रबंधन प्रदर्शन एक नई अवधारणा है जो निर्धारित लक्ष्यों नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं/परियोजनाआें के आधार पर प्रदर्शन सूचकांक को सुनिश्चित करता है। निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए और दी गई नीतियों कार्यक्रमों और परियोजनाओं की सफलता सुनिश्चित करने के लिए आर.एफ.डी. में आवश्यक संसाधनों और आवश्यक अधिकारों को भी शामिल किया गया है। 

6.0 विभिन्न निधियों के संबंध में संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 264 - निर्वचन इस भाग में, ‘‘वित्त आयोग‘‘ से अनुच्छेद 280 के अधीन गठित वित्त आयोग अभिप्रेत है।

अनुच्छेद 265 - विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना कोई कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित या संगृहीत किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

अनुच्छेद 266 - भारत और राज्यों की संचित निधियां और लोक-लेखे

  1. अनुच्छेद 267 के उपबंधों के तथा कुछ करों और शुल्कों के शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः राज्यों को सौंप दिए जाने के संबंध में इस अध्याय के उपबंधो के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, एस सरकार द्वारा राज हुंडियां निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में एस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ‘‘भारत की संचित निधि’’ के नाम से ज्ञात होगी तथा किसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियां निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में एस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ‘‘राज्य की संचित निधि’’ के नाम से ज्ञात होगी। 
  2. भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियां, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएंगी। 
  3. भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि में से कोई धनराशियां विधि के अनुसार तथा इस संविधान में उपबंधित प्रयोजनों के लिए और रीति से ही विनियोजित की जाएंगी, अन्यथा नहीं। 

अनुच्छेद 267 - आकस्मिकता निधि

  1. संसद, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगी जो ‘‘भारत की आकस्मिकता निधि’’ के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियां समय-समय पर जमा की जाएंगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 115 या अनुच्छेद 116 के अधीन संसद द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राष्ट्रपति को समर्थ बनाने के लिए एक्त निधि राष्ट्रपति के व्ययनाधीन रखी जाएगी। 
  2. राज्य का विधान मंडल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जो ‘‘राज्य की आकस्मिकता निधि’’ के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियां समय-समय पर जमा की जाएंगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान मंडल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राज्य के राज्यपाल के व्ययनाधीन रखी जाएगी। 

7.0 भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India)

भारत का संविधान एक समेकित निधि केंद्र और प्रत्येक राज्य को प्रदान करता है। सरकार द्वारा प्राप्त सभी आय इस कोष में जमा की जाती है। इन आय में समस्त राजस्व शामिल हैं। (i) कर या गैर-कर; (ii) सभी प्रकार के अल्पकालिक ऋण जैसे ट्रेजरी बिल्स व अर्थोपाय और (iii) पूर्व में दिये गये ऋण की अदायगी के रूप में सरकार द्वारा प्राप्त राजस्व।

कुछ व्यय जैसे भारत के राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के वेतन और भत्ते सुप्रीम कोर्ट संचित निधि पर भारित हैं। विधायी मंजूरी के बिना इनका भुगतान होता है। ये व्यय गैर-मतदेय हैं। सभी सरकारी व्यय इस निधि से किये जाते हैं सिवाय आकस्मिकता निधि अथवा सार्वजनिक खाते से विशेष मद के किये गए व्यय। 

 संसद की मंजूरी के बिना इस निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती है। बजट के समय राशि निकाली जा सकती है। बजट उपयोगी प्रयोजनों के लिये इकट्ठा पैसों को निकालने की एक प्रक्रिया है। भारत के समेकित कोष के गैर-मतदेय व्ययों को कटौती प्रस्तावों के तहत कम नहीं किया जा सकता। 

अनुच्छेद 112 के प्रावधानों के अनुसार, निम्नलिखित व्यय भारत के समेकित कोष पर अधिरोपित होते हैं 

  1. राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्ते और उनके कार्यालय से जुडे अन्य व्यय;
  2. राज्यसभा के सभापति और उपसभापति और लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते;
  3. ब्याज ऋण, शोधन निधि, सिंकिंग फण्ड, और मोचन शुल्क, रिडेम्पशन चार्ज, जैसे ऋण व्यय और ऋण सेवाएं जिनका भुगतान करना भारत सरकार का दायित्व है;
  4. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के संबंध में देय वेतन और पेंशन;
  5. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को देय वेतन और पेंशन;
  6. किसी भी अदालत के फैसले, डिक्री या किसी निर्णय को पूरा करने के लिए आवश्यक धनराशि; तथा
  7. संविधान द्वारा या संसद अथवा कानून द्वारा घोषित किसी भी प्रकार का अन्य प्रभारित व्यय।

अनुदान के लिए मांगः लोकसभा प्रत्येक मंत्रालय के व्यय प्रस्तावों पर विचार-विमर्श करती है, और यह अनुदान के लिए मांग कहलाती है- यह एक प्रक्रिया है जिसमें कई सप्ताह लग जाते हैं और अगले वित्त वर्ष तक चली जाती है।

विनियोग विधेयक का सरकार को भारत की संचित निधि में से व्यय करने का अधिकार देने का प्रयोजन है। इस विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया अन्य धन विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया के सामान ही है। इस विधेयक का केवल बजट प्रस्तावों पर सामान्य चर्चा और अनुदान पर मतदान पूरा होने के बाद ही प्रस्तावित रखा जाता है।  

लेखानुदानः अनुदान की मांग के लिए समय लगता है, और सरकार मंत्रालयों के व्यय प्रस्तावों (1 अप्रैल से होने वाले) के अनुमोदन हेतु संसद की मंजूरी का इंतजार नहीं कर सकती। इसलिए, संविधान ने लोकसभा को एक वोट-ऑन-अकाउंट (अनुच्छेद 116) देने का अधिकार दिया हैं ताकि सरकार आवश्यक विचार-विमर्श के बाद बजट प्रस्ताव पारित होने के पूर्व नए वित्त वर्ष में व्यय कर सके। वोट-ऑन-अकाउंट में आम तौर पर दो महीने के लिए सरकार के आवश्यक व्यय शामिल होते हैं।

7.1 भारत की आकस्मिकता निधि - अनुच्छेद 267(1) (Contingency Fund of India)

भारत की आकस्मिकता निधि अग्रदाय प्रकृति की है अर्थात पैसे को विशेष उद्देश्य के लिए अनुरक्षित किया जाता है। अप्रत्याशित व्यय (जैसे विपत्ति, प्राकृतिक आपदाएं और व्यापार व्यवधान) को पूरा करने के लिए अग्रिम देना भारत के राष्ट्रपति के निर्णयाधीन रखा गया है, संसद द्वारा प्राधिकरण के अधीन लंबित। यदि संसद इस तरह के व्यय को मंजूरी देती है, इस तरह संचित निधि से आकस्मिकता निधि में बराबर राशि का स्थानांतरण होगा ताकि कुल कोष 500 करोड़ रुपए का कोष बना रहे। यह निधि भारत के राष्ट्रपति की ओर से वित्त सचिव के अधिकार में रहती है और इसे कार्यकारी आनुयोजन द्वारा संचालित किया जा सकता है।

प्रत्येक राज्य सरकार की आकस्मिकता निधि संविधान के अनुच्छेद 267(2) के तहत स्थापित है - यह एक पेशगी रकम प्रकृति का है जो राज्यपाल के निर्णयाधीन होता है जिसके द्वारा वे तत्काल अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए अग्रिम प्रदान कर सकते हैं, जो राज्य विधानमंडल द्वारा अनुमोदित हैं। इस तरह के खर्च और संचित निधि से एक बराबर राशि की निकासी के लिए विधानमंडल की स्वीकृति तत्पश्तात प्राप्त की जाती है। कोष राज्यों में भिन्न-भिन्न होता है और मात्रा विधायिकाओं द्वारा तय की जाती है।

7.2 भारत के लोक-लेखे - अनुच्छेद 266(2) (Public Account of India)

सरकार द्वारा प्राप्त सभी पैसा जो भारत की संचित निधि में शामिल नहीं हैं को लोक खाते में जमा किया जाता है, जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 266(2) में किया गया है। इसलिए, भुगतान के लिए संसदीय अनुमति ज़रूरी नहीं है। इस खाते के अंतर्गत प्राप्तियां मुख्य रूप से सरकार द्वारा बचत पत्र, जनरल प्रोविडेंट फंड और पब्लिक प्रोविडेंट फंड में अंशदान, सुरक्षा जमा और बयाना जमा के विक्रय से होती हैं। ऐसी प्राप्तियों के संबंध में सरकार एक बैंकर या ट्रस्टी के रूप में काम कर रही है तथा अनुबंध/घटना के पूरा होने के बाद पैसा वापस कर देती है। इसलिए ये भारत सरकार की देनदारियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। लोक लेखा के छः उप-प्रभाग हैंः

  1. लघु बचत, भविष्य निधि आदि
  2. रिजर्व फंड
  3. जमा और अग्रिम
  4. रहस्य और विविध
  5. प्रेषण
  6. नकदी शेष


8.0 समेकित निधि, आकस्मिक निधि और लोक खाता (लेखा) का महत्व

भारत की समेकित निधि का अस्तित्व संविधान की धारा 266 के अनुसार है। सरकार के द्वारा प्राप्त सारा राजस्व, इसके द्वारा लिये गये सारे कर्ज और सरकार द्वारा दिये विभिन्न ऋणों के पुनर्भुगतान से समेकित निधि का निर्माण होता है। सरकार के सारे व्यय समेकित निधि से लिये जाते हैं और इसमें से कोई भी राशि संसद की अनुमति के बिना निकाली नहीं जा सकती।

संविधान की धारा 267 आकस्मिक निधि का निर्माण करती है, जो एक अग्रिम व्यवस्था होती है तथा यह भारत के राष्ट्रपति को सरकार के तात्कालिक आवश्यक व्ययों को उपलब्ध कराने की समस्या से मुक्ति दिलाती है। इस किस्म के अनपेक्षित व्यय की संसद से कार्योत्तर मंजूरी लेनी होती है और आकस्मिक निधि की भरपाई के लिए उतनी ही राशि समेकित निधि से जमा की जाती है। वर्तमान में संसद द्वारा प्राधिकृत आकस्मिक निधि की राशि रू. 500 करोड़ है।

सरकार द्वारा न्यास में लिया गया धन जैसे कि भविष्य निधि, छोटी बचतें, सरकार की आय, विशिष्ट उद्देश्यों जैसे सड़क विकास, प्राथमिक शिक्षा, विशिष्ट कोष आदि पर खर्च किये जाते हैं। लोक लेखा कोष सरकार के नहीं होते हैं और अंततः उन्हीं संस्थाओं को लौटाने होते हैं जो इन्हें जमा करते हैं। इसलिए इस प्रकार के भुगतानों का संसद से अनुमोदन अनिवार्य नहीं होता है।


9.0 राजस्व और पूँजी बजट के गुण-धर्म

राजस्व और पूँजीगत बजट के विशिष्ट गुणधर्म निम्नानुसार हैंः

राजस्व बजट सरकार की राजस्व प्राप्तियों (कर और अन्य साधनों से प्राप्त राजस्व) से बना होता है और इन राजस्व प्राप्तियों से होने वाले व्यय का विवरण भी इसमें होता है। कर राजस्व से आशय केन्द्र सरकार द्वारा अधिरोपित करों और अन्य शुल्क से होता है। वार्षिक वित्तीय लेखा में दर्शायी गयीं अनुमानित राजस्व प्राप्तियां वित्त विधेयक के विभिन्न कर प्रस्तावों के द्वारा प्रभावी होती हैं। सरकार की अन्य प्राप्तियां मुख्यतः ब्याज और सरकार द्वारा किये गये निवेश में लाभांश, फीस तथा सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं के शुल्क आदि से निर्मित होती हैं। सामान्यतः सरकार के व्यय विभिन्न विभागों के संचालन, कर्जो पर ब्याज भुगतान और सब्सिडी आदि में होते हैं। मुख्यतः वह व्यय जो भारत सरकार के लिए किसी प्रकार की संम्पत्ति का निर्माण नहीं करते राजस्व व्यय कहलाते हैं। राज्य सरकारों/केन्द्र शासित प्र्रदेशों और दूसरे अन्य समूहों को दिये गये सभी प्रकार के अनुदान राजस्व व्यय माने जाते हैं यद्यपि कुछ अनुदानों का उपयोग परिसंपत्तियों के निर्माण में भी हो सकता है।

पूँजीगत बजट पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतानों से मिलकर बना होता है। पूँजीगत प्राप्तियां वह राशि होती है, जो सरकार जनता से, बाज़ार से, रिर्ज़व बैंक से और ट्रेजरी बिल की ब्रिकी द्वारा, विदेशी सरकारों और संगठनों से प्राप्त कर्ज, विनिवेश तथा राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारों को दिये गये कर्ज के पुनर्भुगतान आदि से सरकार को प्राप्त होती है। पूँजीगत भुगतान भूमि, भवन, मशीनरी, यंत्रों की प्राप्तियों के खर्च, शेयर में निवेश और केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों और केन्द्र शासित प्रदशों की सरकारों, सरकारी कम्पनीयों कार्पोरेशन और अन्य संगठनों पर किये गये व्यय से निर्मित होता है।

10.0 कटौती प्रस्ताव (Cut Motion)

प्रक्रियागत नियमों के नियम 209, 210, 211 और 212 तथा लोकसभा संचालन और सभापति के निर्देशन क्रमांक 43 के अनुसार लोकसभा में कटौती प्रस्ताव रखने की सभी औपचारिकताएं विस्तार से उल्लेखित हैं।

10.1 कटौती प्रस्ताव क्या है?

अनुदान की माँग कम करने के प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव कहा जाता है। किसी कटौती प्रस्ताव का उद्देश्य सदन का ध्यान उस प्रस्ताव में शामिल किसी विशिष्ट मुद्दे की ओर आर्कषित करना होता है।

कटौती प्रस्ताव मुख्यः 3 श्रेणियों में विभाजित होते हैं। नीतिगत कटौती की अस्वीकृति; आर्थिक कटौती; सांकेतिक कटौती;

10.2 नीतिगत कटौती की अस्वीकृति

जहाँ किसी प्रस्ताव का उद्देश्य नीति को अस्वीकार करना होता है और इसका रूप होता है - ‘‘मांग की गई की राशि को घटाते हुए रूपये एक में बदल देना चाहिए’’। ऐसे किसी भी कटौती प्रस्ताव पर नोटिस देते हुए सदस्यों को संक्षिप्त में यह बताना पड़ता है कि किस नीति पर परिचर्चा के लिए प्रस्ताव दिया है। इस प्रकार की परिचर्चा विशिष्ट बिन्दुओं पर केंद्रित होती है जो कि नोटिस में दर्शाये गये हैं। और यह सदस्य का अधिकार होता है कि वह किसी वैकल्पिक नीति के पक्ष में अपने तर्क रखे।

10.3 आर्थिक कटौती

जहाँ प्रस्ताव का उद्देश्य व्यय में कटौती करना होता है, उसका रूप होता है - ‘‘यह कि मांग की गई राशि घटाकर इतनी निश्चित कर देनी चाहिए‘‘। कम करने के लिए प्रस्तावित राशि या तो कोई एकमुश्त कटौती होती है या किसी एक चीज में कोई संक्षिप्त कटौती। दिये जाने वाले नोटिस में संक्षिप्त में यह सूचित किया जाता है कि किस मुख्य मुद्दे पर चर्चा होनी है और सारे भाषण इसी एक बिन्दु के आसपास केन्द्रित होते हैं कि इससे किस तरह अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।

10.4 सांकेतिक कटौती 

जहां प्रस्तावों का उद्देश्य विशिष्ट शिकायतों को भारत सरकार की जिम्मेदारियों के अन्तर्गत प्रकट करना होता है उसे सांकेतिक कटौती कहा जाता है और इसका रूप ‘‘मांग की राशि घटाकर 100 रू. कर देनी चाहिए’’, होता है। इस प्रकार के कटौती प्रस्ताव की चर्चा उन शिकायतों पर केन्द्रित होती है जो प्रस्तावों में दर्शायी गयी हैं। कटौती प्रस्ताव में यह आवश्यक है कि उसका उद्देश्य संक्षिप्त में दर्शाया जाना चाहिए चाहे वह किसी भी प्रकार का कटौती प्रस्ताव हो। वास्तव में किसी भी नीति की विशिष्टताएं संक्षिप्त एवं सार रूप में दर्शाना, प्रमुख मुद्दे या शिकायतें, सदस्य जिन मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं - चाहे वह अस्वीकार करना हो या आर्थिक कटौती या सांकेतिक कटौती - की परम्परा की शुरूआत 1925 के बजट सत्र के दौरान हुई।





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