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भारत में ई-शासन
1.0 प्रस्तावना
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी विविध सदस्यों की सेवा करते हुए कार्य संस्कृति के परिवर्तन में वृद्धि कर सकती है, नागरिकों को बेहतर सार्वजनिक सेवाओं का वितरण, सरकार का उद्योग एवं व्यापार के साथ सुधारित संपर्क, सूचना तक पहुंच और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी के माध्यम से नागरिकों का सशक्तिकरण और अधिक कुशल सरकारी प्रबंधन कर सकती है। ई-शासन से तात्पर्य केवल नए प्रौद्योगिकी साधनों की शुरुआत या उपयोग नहीं है, बुनियादी तौर पर यह कार्य संस्कृति और विचारधारा में परिवर्तन लाने का प्रयास करती है, ताकि सरकारी प्रक्रियाओं और कार्यों का नागरिकों की बेहतर ढंग से सेवा करने के लिए एकीकरण किया जा सके। इस प्रक्रिया में यह महत्वपूर्ण है कि आलोचना के प्रति सरकार के खुले होने की क्षमता हो, साथ ही सभी हितधारकों के बीच नए सामाजिक अनुबंधों के प्रति खुलापन हो, ताकि परिवर्तन की प्रक्रियाओं पर साझा जिम्मेदारी की प्रतिपुष्टि हो सके।
एक नागरिक और एक सरकारी अभिकरण का पारस्परिक विचार-विमर्श एक सरकारी कार्यालय में होता है। उभरती हुई सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के साथ यह संभव हो पाया है कि ग्राहकों के निकट के सेवा केंद्रों को ढूँढ़ा जा सके। सभी मामलों में जनता पारंपरिक रूप से उन जानकारियों और सेवाओं की ओर देखती है जो उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके, और दोनों ही मामलों में गुणवत्ता, प्रासंगिकता और कौशल सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। अतः ई-शासन की स्थापना के लिए समाज में विद्यमान आवश्यकताओं का सही ज्ञान होना आवश्यक है. जो सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके प्रदान की जा सकें। सरकार में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों की प्रभावशीलता सरकार की संस्कृति परिवर्तन को प्रेरित करने की क्षमता से निकट से जुड़ी हुई है, जो अपनी संस्थाओं में नेटवर्क को पारदर्शिता और जानकारी के आदानप्रदान और निर्मिति के एक साधन के रूप में स्थापित कर सके।
2.0 अवधारणात्मकता
ई-गवर्नेंस को इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग करते हुए जनता के लिए सरकारी सेवाओं के वितरण और जानकारी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जानकारी के वितरण के इस प्रकार के माध्यम को आमतौर पर सूचना प्रौद्योगिकी या संक्षेप में ‘‘आईटी‘‘ कहा जाता है। सरकारी उपयोगिताओं में आईटी का उपयोग जनता और अन्य अभिकरणों को जानकारी के प्रसार के लिए, और शासकीय प्रशासनिक कार्यों के निष्पादन के लिए एक कुशल, तात्कालिक और पारदर्शी प्रक्रिया है। इस प्रकार ई-शासन का संबंध आईटी से नहीं है, बल्कि इसका संबंध शासन से है।
शासन शब्द को उस प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया जा सकता है जिसके द्वारा समाज अपने आपको मार्गदर्शित करता है। इस प्रक्रिया में राज्य, निजी उपक्रमों और नागरिक समाज के बीच परस्पर विचार-विमर्श को सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के प्रभाव के माध्यम से अधिकाधिक अनुकूलित बनाया जा रहा है और निरंतर परिवर्तित किया जा रहा है, जो अंततः ई-शासन की संकल्पना की निर्मिति कर रहा है।
गतिकी के इन परिवर्तनों को निम्न उदाहरणों द्वारा उद्धृत किया जा सकता हैः
- राय जुटाने के लिए और उनको प्रभावित करने वाली निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठनों और पेशेवर संस्थाओं द्वारा इंटरनेट का उपयोग
- सरकारी और वाणिज्यिक सेवाओं का बढता इलेक्ट्रॉनिक वितरण और जानकारी
- जनता की प्रतिक्रिया के लिए मसौदा कानूनों और दिशानिर्देश के वर्णन का इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशन
- अधोसंरचना की दिशा में, दूरसंचार बाजारों का उदारीकरण और वेब सक्षम मोबाइल टेलीफोन और डिजिटल टेलीविजन की ओर रुझान इस विकास को सुविधाजनक बना रहे हैं
2.1 अवधारणा और व्यापकता
इस प्रकार ई-शासन ई-सरकार की तुलना में एक अधिक व्यापक अवधारणा है, जिसका अर्थ है सरकारी सेवाओं के प्रसार के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग। विकास के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के राष्ट्रमंडल नेटवर्क (कॉमनेट-आईटी) ने यूनेस्को के सहयोग से और उसकी वित्तीय सहायता से राष्ट्रीय रूपरेखाएं विकसित की हैं जिनमें इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति और विकास का विस्तार से वर्णन किया गया है। जबकि इन अध्ययनों में वाणिज्यिक, गैर सरकारी संगठनों और पेशेवर क्षेत्रों में ई-शासन के प्रभाव को शामिल किया गया है, फिर भी इनका मुख्य केंद्रबिंदु विशिष्ट सरकारी पहलों पर केंद्रित है, जैसे
- साइबर कानूनों का विकास
- दूरसंचार क्षेत्र का उदारीकरण
- ई-शासन के लिए योजनाएं
- सामुदायिक ई-केंद्रों के विकास की योजनाएं
- सामुदायिक ई-केंद्रों का विकास
- दिशानिर्देश के वर्णन, मसौदा कानूनों इत्यादि पर जनता की प्रतिक्रिया के उदाहरण
- सरकारी अभिकरणों की वेबसाइटें, विशेष रूप से यदि ये केवल एक सार्वजनिक संबंध छवि से अधिक मूल्य प्रदान कर रही हैं
इस प्रक्रिया में यह महत्वपूर्ण है कि सरकार का रवैया आलोचना के प्रति खुला हो, साथ ही सभी हितधारकों के बीच नए सामाजिक अनुबंध के अनुप्रयोग के प्रति भी खुला हो, जिससे परिवर्तन की प्रक्रिया पर साझा जिम्मेदारी की पुष्टि होती हो। सार्वजनिक विचारविमर्श के लिए जनता की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए और उसे बनाये रखने के लिए मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना आवश्यक है। इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक प्रक्रिया में जनता को केंद्र में रखने के लिए सरकारी कर्मियों को नेटवर्किंग करना सीखना होगा।
इस प्रकार, सरकार में सूचना एवं दूरसंचार प्रौद्योगिकी की प्रभावशीलता सरकारों की परिवर्तन की संस्कृति को प्रेरित करने की क्षमता से निकट से जुड़ी हुई है, जिसमें उन्हें नेटवर्किंग को अपनी संस्थाओं में पारदर्शिता और ज्ञान के आदान-प्रदान और निर्मिति के साधन के रूप में स्थान देना होगा। यह उस स्थिति पर पुनर्विचार करने को मजबूर करता है कि क्रमानुक्रम संरचना किस प्रकार निर्मित की गई है। एक अधिक शासकीय क्षैतिज संरचना की दिशा में परिवर्तन, जिसमें कार्यों का एकीकरण एक अधिक बड़ी भूमिका निभाता है, में समय लगता है क्योंकि इसके प्रमुख खिलाड़ियों के लिए अपने दृष्टिकोण और व्यवहार में परिवर्तन करना आवश्यक है, चूंकि वे नए कौशल और ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, जो कार्य संस्कृति में उनमें अधिक आत्मविश्वास पैदा करते हैं।
हाल में जारी हुए आंकडों के अनुसार अधोसंरचना के विकास, शिक्षा, लोकतंत्रीकरण राजनीतिक नेतृत्व और सुशासन के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता के स्तरों और विभिन्न देशों में स्थापित ई-शासन के स्तर और उसकी गुणवत्ता के बीच निकट संबंध है। यह ई-तैयारी और ऐसे प्रयासों की अवसर लागत के मजबूत संकेतक हैं। इनसे निर्माण होने वाले लाभ हैं भ्रष्टाचार में कमी, पारदर्शिता में वृद्धि, अधिक सुविधा, कार्यक्षमता, राजस्व में वृद्धि और लागत में कमी, और इन सब के साथ ही बढ़ी हुई वैधता।
2.2 शासकीय संगठनों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी
पारंपरिक रूप से एक नागरिक और शासकीय अभिकरण के बीच परस्पर विचार-विमर्श सरकारी कार्यालय में होता है। उभरती हुई सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों के कारण ग्राहकों के निकट के सेवा केंद्रों को ढूंढ़ना आसान हो गया है। ऐसे केंद्रों में शासकीय अभिकरण में संभवतः एक मानवरहित कियोस्क होगा, और शासकीय अभिकरण के बाहर ग्राहक के निकट एक सेवा कियोस्क होगा, या घर या कार्यालय में एक निजी कंप्यूटर उपयोग में लाया जा रहा होगा। इन सभी मामलों में पारंपरिक रूप से जनता उस सूचना की उम्मीद कर रही होती है जो उसकी आवश्यकता की पूर्ति करती हो, और दोनों ही मामलों में गुणवत्ता, प्रासंगिकता और कार्यक्षमता सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। फिर भी कुछ स्थितियों में ई-शासन क्रेताओं और विक्रेताओं की संक्षिप्त आवश्यकताओं को समझने में पीछे रह जाता है। ई-शासन के विकास में निम्न बातें शामिल हैंः
- प्रकाशन
- विचार-विमर्श
- लेनदेन
उपरोक्त गतिविधियों का उद्देश्य है सरकारी जानकारी की पहुंच को विस्तारित करना, जैसे कानून, विनियम, और आंकडे़ं; निर्णय प्रक्रिया में जनता की भागीदारी में वृद्धि करना, उदाहरणार्थ सरकारी अधिकारियों के ई-मेल पते प्रकाशित करना और ऑनलाइन शासकीय मंचों का निर्माण करना, शासकीय दस्तावेजों की ई-फाईलिंग या ऑनलाइन मंजूरियों के माध्यम से शासकीय सेवाओं को जनता के लिए अधिक सुविधाजनक ढ़ंग से उपलब्ध कराना।
आज तक ई-शासन में अधिकांश प्रयास केवल प्रकाशन तक केंद्रित है और विचार-विमर्श और लेनदेन के इसके अगले चरण तक नहीं पहुंचा है। सरकारों को, विशेष रूप से विकासशील देशों में, ई-शासन में तेजी से आगे बढ़ने के मार्ग में संसाधनों की सीमितता का सामना करना पड़ता है, अतः वंचित परिणाम प्राप्त करने के लिए और ई-शासन की प्रभावशीलता को निर्धारित करने के लिए जनता, सरकार, व्यापार और नागरिक समाज के बीच एक मजबूत भागीदारी आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
ई-शासन शब्द का संबंध सूचना प्रौद्योगिकी की उस प्रक्रिया से है जिसका उपयोग सरकार के आतंरिक परिचालन और नागरिकों और अन्य व्यवसायों के साथ उसके बाह्य संपर्क के स्वचालन के लिए किया जाता है। आतंरिक परिचालन के स्वचालन से लागतो में कमी आने के साथ-साथ उनके प्रतिक्रिया समय में भी सुधार होता है, साथ ही यह सरकारी प्रक्रियाओं को अधिक विस्तृत बनाता है ताकि उनकी प्रभावशीलता में वृद्धि हो सके। नागरिकों के साथ परस्पर विचार-विमर्श के स्वचालन के कारण सरकार और नागरिकों, दोनों के लिए अतिरिक्त खर्चों में कमी होती है, इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मूल्य निर्मिति होती है।
2.3 ई-शासन की रूपरेखा
इस प्रकार के जटिल समाधानों की रचना एवं विकास जटिल चुनौतियां पेश करता है। ऐसी ही एक चुनौती यह है कि वर्तमान विकास के वातावरण में अनुप्रयोग विकासकर्ताओं को मतिहीनता के निचले स्तर पर काम करना होता है। इसका अर्थ यह है कि अनुप्रयोग के तर्क को परिभाषित करते समय निचले स्तर के मामलों पर ध्यान देना, जैसे परस्पर काटती हुई संदेश सेवा, उपकरणों का एकीकरण और डेटा मॉडलिंग। उसी प्रकार समाधान के पुनर्विन्यासन और प्रबंधन के लिए समाधान प्रशासक के लिए आवश्यक है कि उसके पास अनुप्रयोग के तर्क के बारे में विस्तृत समझदारी हो, अन्यथा कार्य अत्यधिक समय लेने वाला और त्रुटि प्रवण हो जायेगा।
इन चुनौतियों से प्रभावी ढ़ंग से निपटने के लिए आवश्यकता है अत्यंत उच्च क्षमता और अनुभव प्राप्त पेशेवर सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों की और प्रभावी ई-शासन समाधानों के लिए विकास लागतों में वृद्धि करने की। आमतौर पर समाधान प्रशासकों के पास इन क्षमताओं का अभाव होता है, जिसके कारण परिवर्तन प्रबंधन असंभव हो जाता है। आज तक विकसित किये गए समाधानों में प्रत्येक ई-शासन समाधान का एक विद्यमान अनुकूलित उत्पाद उपलब्ध है, जो निजी सरकारी अभिकरण की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। हालांकि यह समाधान विकसित करने का हर बार एक मितव्ययी तरीका नहीं हो सकता। अधिकांश उद्योगों में एक विशिष्ट उद्योग की सभी कंपनियों में लगभग 85 प्रतिशत प्रक्रियाएं समान होती हैं। प्रक्रियाओं का यही समान अनुपात विभिन्न सरकारी समाधानों में भी प्रत्याशित किया जा सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि एक बार इन प्रक्रियाओं को विकसित करना वांछनीय है, और फिर उनका अनेक समाधानों के लिए पुनः उपयोग किया जा सकता है।
यह डेटा मॉडल्स, उपयोक्ता अंतरपृष्ठ इत्यादि के लिए भी सत्य होना संभव है। उदाहरणार्थ, वाहन चालन अनुज्ञप्ति नवीनीकरण समाधान में पते की पुष्टि की प्रक्रिया को ही पासपोर्ट नवीनीकरण समाधान के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। उसी प्रकार, यातायात उल्लंघन रिकॉर्ड़ सत्यापन प्रक्रिया को एक सेवा के रूप में बीमा व्यवसाय को भी प्रदान किया जा सकता है, जिसे मोटर वाहन बीमा समाधान के रूप में पुनः उपयोग किया जा सकता है। उपलब्ध प्रक्रियाओं और घटकों पर जानकारी का अभाव, और इन्हें एक विशिष्ट आवश्यकता के लिए अनुकूलित करने में आने वाली कठिनाई वर्तमान में उनके बहुविध समाधानों में उपयोग में रूकावट पैदा कर रही है। ऊपर की गई चर्चा के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि एक ऐसी रूपरेखा की आवश्यकता है जो ई-शासन के विकास, परिनियोजन और प्रबंधन का सरलीकरण कर सके।
3.0 ई-शासन का विकास
सरकारों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी के अधिकाधिक परिनियोजन का वैश्विक परिवर्तन विश्व व्यापी वेब (डब्लू डब्लू डब्लू) के उदय के साथ 1990 के दशक से उभारना शुरू हुआ। उसके बाद के समय में यह प्रौद्योगिकी और ई-शासन पहलें बहुत आगे बढ़ी हैं। इंटरनेट और मोबाइल संपर्कों की वृद्धि के साथ नागरिक अपने इन नए साधनों का उपयोग कार्यों की एक विस्तारित श्रृंखला में करना सीख रहे हैं। उन्होंने सरकार और निगमित संगठनों से अधिकाधिक जानकारी और सेवाओं की ऑनलाइन उपलब्धता की उम्मीद करना शुरू कर दिया है, ताकि वे अपने नागरिक, पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में सुधार कर सकें, जो इस बात का पर्याप्त सबूत है कि ‘‘ई-नागरिकता‘‘ विकसित होती जा रही है।
भारत में ई-शासन का उदगम 1970 के दशक के दौरान हुआ, जब अधिक ध्यान रक्षा, आर्थिक निगरानी, नियोजन जैसे क्षेत्रों में सरकारी अनुप्रयोगों के आतंरिक विकास पर केंद्रित था, साथ ही सूचना प्रैद्योगिकी का परिनियोजन चुनाव, जनगणना, कर प्रशासन इत्यादि संबंधी सांख्यिकी सघन कार्यों पर केंद्रित था। 1980 के दशक के दौरान सभी जिला मुख्यालयों को जोड़ने के राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एनआईसी) के प्रयास एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटनाक्रम था।
1990 के दशक के प्रारंभ से सूचना प्रौद्योगिकी प्रौद्योगिकियां सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी प्रौद्योगिकियों से अनुपूरित हुईं, जिसके कारण इसका उपयोग अधिक व्यापक क्षेत्रीय अनुप्रयोगों के लिए किया जाने लगा, जहां नीति के केंद्रबिंदु में ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच बनाना था, साथ ही इस कार्य के लिए गैर सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र से अधिक से अधिक निविष्टियां प्राप्त करने का उद्देश्य भी था। विकासशील देशों में ई-शासन कानूनों और प्रौद्योगिकियों के विकास को उत्प्रेरित करने के लिए ई-शासन की रूप रेखा के तहत अंतर्राष्ट्रीय दानदाता अभिकरणों की बढ़ती भागीदारी भी रही है।
जबकि अधिक जोर स्वचालन और कम्प्यूटरीकरण पर ही रहा है, राज्य सरकारों ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकी साधनों के संयोजकता, नेटवर्किंग, सूचना के प्रसंस्करण के लिए प्रणालियां स्थापित करने, और सेवाओं के वितरण के लिए उपयोग करने के भी प्रयास किये हैं। सूक्ष्म स्तर पर इसकी व्यापकता व्यक्तिगत विभागों में सूचना प्रौद्योगिकी स्वचालन, इलेक्ट्रॉनिक फाइलों का रखरखाव और कार्यप्रवाह प्रणालियां, पात्रता तक पहुंच, लोक शिकायत प्रणाली, बडे पैमाने पर दैनंदिन लेनदेन के लिए सेवा वितरण, जैसे बिलों और कर देयताओं के भुगतान से लेकर उद्यमिकी मॉडल्स और बाजार की जानकारी की उपलब्धता के माध्यम गरीबी उन्मूलन लक्ष्यों की प्राप्ति तक की रही है। इसके उपयोग का केंद्रबिंदु विभिन्न पहलों के साथ भिन्न-भिन्न रहा है, जहां कई स्थानों पर जोर विभिन्न शासकीय सेवाओं के लिए नागरिक-राज्य अंतरफलक पर रहा है, वहीं अन्य स्थानों पर जोर लोगों के जीवनस्तर को सुधारने पर अधिक रहा है। प्रत्येक राज्य ने राज्य के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नीति दस्तावेज की रूपरेखा तैयार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कार्यबल गठित करने की पहल की है, और सरकारी वेबसाइटों पर नागरिक चार्टर नजर आने लगे हैं।
सरकारों के लिए शारीरिक प्रक्रियाओं से सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम प्रक्रियाओं की ओर परिवर्तन की अधिक प्रकट प्रेरणा शायद प्रशासन और सेवा वितरण में बढ़ी हुई कार्यक्षमता रही होगी, परंतु इस परिवर्तन को एक सार्थक निवेश माना जा सकता है, जिसमें परिणाम देने का सामर्थ्य है।
3.1 ई-शासन के चरण
एक अंतर्राष्ट्रीय परामर्शी फर्म गार्टनर ने एक चार चरणों वाला ई-शासन मॉड़ल तैयार किया है। यह सरकारों के लिए इस बात के संदर्भ के लिए उपयोगी हो सकता है कि एक व्यापक ई-शासन रणनीति में परियोजना कहां फिट बैठती है इसे स्थित किया जाए।
पूर्ण ई-शासन की प्राप्ति के इस महा व्यापक प्रयास की पूर्ति विभिन्न चरणों में करना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण समय और धन की एक व्यवहार्य रूपरेखा के तहत प्रत्येक चरण की पूर्णता के पश्चात सिंहावलोकन की अनुमति प्रदान करेगा, साथ ही आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने की क्षमता भी प्रदान करेगा। प्रत्येक कदम की रचना और उद्देश्य को सभी सरकार से नागरिकों, सरकार से व्यापार, और सरकार से सरकार के क्षेत्रों की प्रासंगिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना आवश्यक होगा।
प्रथम चरण - उपस्थिति
पहले चरण की आवश्यकता है सरकार के इरादों और उद्देश्यों की जानकारी प्रदान करना। एक समावेशी सरकारी वेबसाइट का विकास, या विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को समर्पित विभिन्न साइटों का संजाल आगे की प्रगति के लिए मंच तैयार कर देगा। ये साइटें सरकार की पहलों को प्रसारित करेंगी, और आधिकारिक पते, कामकाज के घंटे, साथ ही प्रारूपों और आवेदन प्रारूपों संबंधी जानकारियां प्रदान करेंगी, जो सरकारी अभिकरणों के लिए जनता के, आर्थिक समीक्षा के, व्यापार के निगमित विनियमों के, बजट आवंटन के और व्यय के संदर्भ के लिए उपलब्ध होंगे।
इस प्रथम चरण के साथ अधोसंरचना निर्मिति, जैसे दूरसंचार, का महत्वपूर्ण कार्य संपन्न हो जायेगा।
द्वितीय चरण - पारस्परिक विचार-विमर्श
यह चरण सरकार के साथ बुनियादी विचार-विमर्श की अनुमति प्रदान करेगा। आसान नेविगेशन के लिए साइटों पर सर्च इंजन खडे़ करने के अतिरिक्त जनता के लिए विस्तृत जानकारी प्रदान करने वाले सामाजिक रिकार्ड्स और रोजगार आवेदन प्रारूप, व्यापार और व्यवसायों के लिए अनुज्ञा पत्र और अनुज्ञप्तियों के दस्तावेज, और स्थानीय शासकीय अधिकारियों द्वारा केंद्र के लिए जनगणना की जानकारी, अनुरोधों और अनुमोदनों का प्रस्तुतीकरण भी प्रदान करना होगा। इसके अतिरिक्त भुगतानों, अनुज्ञप्ति नवीनीकरण, कुल राय इत्यादि, व्यवसायों के लिए ऑनलाइन कर विवरण प्राप्त करना, सहकारिता बजट निर्माण, सरकारी अभिकरणों के लिए कर रिकार्ड्स इत्यादि भी यहाँ उपलब्ध कराने के प्रयास किये जा सकते हैं।
तृतीय चरण - लेनदेन
इस चरण के बाद से सरकार और संबंधित संस्था के बीच प्रत्यक्ष पारस्परिक विचार-विमर्श प्रकट होगा। अधोसंरचना पूर्ण हो जाने के साथ ही जनता, व्यापार और व्यवसायों और सरकारी अभिकरणों के लिए संपूर्ण ऑनलाइन सेवा सुइट्स प्रदान किये जा सकते हैं। जनता के लिए बिल और जुर्माना जैसी सेवाएं।
चतुर्थ चरण - परिवर्तन
यह अंतिम चरण ई-शासन के सही दृष्टिकोण को प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
- घटक इकाइयों के लिए एक एकल संपर्क बिंदु सरकारी सेवाओं और संगठनों के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करेगा, जो नागरिकों और व्यापार व्यवसाय के लिए पूर्णतः पारदर्शी होगा।
- ‘‘आभासी अभिकरणों‘‘ पर जोर होगा, जहां सभी के लिए शासकीय जानकारी तत्परता से उपलब्ध होगी, जो लेनदेन में शामिल संबंधित अभिकरणों को एक निर्बाध अंतरफलक प्रदान करेगी।
- अत्याधुनिक इंट्रानेट जो विभिन्न अभिकरणों के कर्मचारियों को जोडें़गे और एक्स्ट्रानेट जानकारी के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करेंगे, और इस प्रकार सरकारी अभिकरणों, गैर सरकारी संगठनों और जनता के बीच सहयोगी निर्णय की सुविधा प्रदान करेंगे।
ई-शासन के क्रियान्वयन के समय निम्न कारकों पर ध्यान देना आवश्यक होगाः
- राजनीतिक स्थिरताः लोकतंत्र या तानाशाही शासन
- सरकार की विश्वसनीयता का स्तरः सेवाओं के स्तर की अवधारणा
- सरकारी पहचान का महत्त्वः विखंडन या एकीकरण
- आर्थिक संरचनाः शिक्षा, कृषि, उद्योग या नौकरी
- सरकार की संरचनाः केंद्रीकृत या विकेंद्रित
- परिपक्वता के विभिन्न स्तरः श्रृंखला का सबसे कमजोर भाग गति को निर्धारित करता है
- घटकों की मांगः धकेलने वाली या खींचने वाली
अंतर्निहित अधोसंरचना के निर्माण के कार्य को इन दो चरणों के माध्यम से धारणीय बनाना होगा, ताकि उन्नत अनुप्रयोगों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके, जैसा कि परिणामी चरणों द्वारा अनुलेखित किया गया है।
3.2 ई-शासन का विकास और क्रियान्वयन
प्रस्तुत किया गया मॉड़ल सरकारों के लिए एक संदर्भ के रूप में कार्य कर सकता है, कि उनके ई-शासन क्रियान्वयन के समग्र विकास में परियोजना कहां फिट बैठ रही है। यह मॉडल सरकारों को एक ई-शासन दृष्टिकोण और रणनीति को परिभाषित करने में भी सहायक हो सकता है।
दृष्टिकोण एक उच्च स्तरीय लक्ष्य या सरकार का ई-शासन के लोकतंत्र, शासन और व्यापार के पहलुओं के संदर्भ में महत्वाकांक्षा का स्तर है। रणनीति में योजनाएं शामिल होती हैं जो दृष्टिकोण को एसएमएआरटी (स्मार्ट) (सरल, मापनीय, जवाबदेह, वास्तविक और समयबद्ध) परियोजनाओं में परिवर्तित करती हैं। एक क्रियान्वयन प्रक्रिया के सुधार में गति बनाये रखने के लिए एक अच्छी रणनीति अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, बजट उपलब्ध होने चाहिये, समय लेने वाले कानूनी परिवर्तनों को शुरू किया जाना चाहिए और त्वरित परिणाम प्राप्त किये जाने चाहियें, और उन्हें जनता सहित सभी हितधारकों को सूचित किया जाना चाहिए।
ई-शासन के क्रियान्वयन में एक अच्छा दृष्टिकोण है कि अल्प अवधि चरणों (परियोजनाओं) और दीर्घ अवधि लक्ष्यों (दृष्टिकोण) को मिश्रित किया जाना चाहिए। जब परियोजनाएं एक दृष्टिकोण में अंतर्निहित की जाएंगी और उनकी सहायता के लिए एक रणनीति होगी तो उन्हें विकास के लिए एक अधिक संरचनात्मक मूल्य प्राप्त होगा। एक्सेंटर ने ई-शासन परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक दृष्टिकोण को परिभाषित किया हैः ‘‘बड़ा सोचो, छोटे से शुरुआत करो और पैमाना तेजी से बढ़ाओ।‘‘
वैश्विक उद्देश्यों से ठोस लक्ष्यों की ओर जाने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है। यह एक सभी हितधारकों द्वारा किया गया एक संयुक्त प्रयास है। आईआईसीडी की प्रमुख गतिविधि है कार्यशालाएं आयोजित करना जिनमें इस प्रक्रिया को समझाया जाता है और पहला कदम उठाया जा सकता है।
4.0 भारत में ई-शासन
4.1 राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी)
राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी) से देश भर में ई-शासन प्रयासों का एक समग्र चित्र लिया जाता है, जिसमें उन्हें एक मिले-जुले नजरिए के लिए सामूहिक दृष्टिकोण में समेकित किया जाता है। इस विचार से देश के दूरस्थल ग्रामों में एक देश व्यापी मूल संरचना पहुंचना और अभिलेखों का बड़े स्तर पर डिजीटाइजेशन किया जा रहा है ताकि इंटरनेट के माध्यंम से इस तक आसानी और विश्ववसनीय रूप से पहुंचा जा सके। इसका वास्तविक उद्देश्य् लोक सेवाओं को नागरिकों के घर के नजदीक पहुंचना है, जैसा कि एनईजीपी के संकल्पना वक्तव्य में बताया गया है।
‘सभी सरकारी सेवाएं सामान्य सेवा प्रदायगी बिंदुओं के माध्यम से आम आदमी के नजदीक पहुंच योग्य बनाना और उक्त् सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और विश्वनसनीयता आम आदमी की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए सही लागत पर उपलब्ध कराना’।
सरकार ने 18 मई 2006 को 27 मिशन मोड परियोजनाओं (एमएमपी) और 8 घटकों सहित राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी) का अनुमोदन किया। सरकार ने एनईजीपी की संकल्पना, मार्ग, कार्यनीति, मुख्य घटक, कार्यान्वयन विधि तथा प्रबंधन संरचना को अनुमोदन प्रदान किया। जबकि एनईजीपी के अनुमोदन में सभी मिशन मोड परियोजनाओं (एमएमपी) और इसके तहत घटकों का वित्तीय अनुमोदन निहित नहीं है। एमएमपी श्रेणी में मौजूदा या जारी परियोजनाओं का कार्यान्व्यन विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों और राज्यं विभागों द्वारा उचित रूप से बढ़ाया जाएगा तथा इसे एनईजीपी के उद्देश्यों के साथ मिलने के लिए उन्नत बनाया जाएगा।
सरकारी विभागों के कंप्यूटरीकरण से लेकर शासन के लघुतर बिंदुओं को क्रमिक रूप से शामिल करने के प्रयास से विकासित हुआ है, जैसे कि नागरिक केंद्रिकता, सेवा अभिविन्यास और पारदिर्शिता। पिछले ई-शासन से सीखे गए पाठों से देश की प्रगामी ई-शासन कार्यनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस अवधारणा पर उपयुक्त संज्ञान लिया गया है कि राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर सरकार की विभिन्न शाखाओं में ई-शासन कार्यान्वयन में गति लाने के लिए कार्यक्रम आधारित मार्ग अपनाने की जरूरत है, जिसे सामान्य दृष्टिकोण और कार्यनीति से मार्गदर्शित किया जाए। इस मार्ग में केंद्रीय मूल संरचना को समर्थन और आकार देने, मानकों के माध्यम से अंतः प्रचालनीयता और सरकार से नागरिकों की ओर अबाधित विचार प्रस्तुत करने में भारी बचत करने की संभाव्यता है।
4.2 ई-क्रांतिः राष्ट्रीय ई-शासन योजना 2.0
जैसा पहले कहा गया है, राष्ट्रीय ई-शासन योजना नामक राष्ट्रीय स्तर के ई-शासन कार्यक्रम की पहल वर्ष 2006 में की गई थी। राष्ट्रीय ई-शासन योजना के अंतर्गत 31 मिशन मोड परियोजनाएं शामिल थीं जिनमें विविध प्रक्षेत्र शामिल किये गए थे जैसे कृषि, भू-अभिलेख, स्वास्थ्य शिक्षा, पासपोर्ट, पुलिस, न्यायालय, नगरपालिकाएं, वाणिज्यिक कर, राजकोष इत्यादि। इनमें से 24 मिशन मोड परियोजनाएं क्रियान्वित की जा चुकी हैं और इन्होने प्रस्तावित सेवाओं को या तो संपूर्ण रूप से या आंशिक रूप से प्रदान करना शुरू कर दिया है।
हालांकि एनईजीपी (प्रथम संस्करण) ने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए। एनईजीपी 1.0 के मजबूती, कमजोरी, अवसर और खतरे (स्वॉट) विश्लेषण ने नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने, परिवर्तन करने वाली प्रक्रियाओं और क्रियान्वयन में सुधार से संबंधित ऐसे मुद्दों को उजागर किया जिन्हें तुरंत संबोधित किया जाना आवश्यक है। यह 31 ई-शासन मिशन मोड योजनाओं के क्रियान्वयन में विशेषज्ञ समूहों की रिपोर्टों और विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ काम करने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के अनुभवों से प्राप्त किये गए हैं।
यह स्पष्ट हो गया था कि अपेक्षित परिवर्तन लाने के लिए ई-शासन मिशन मोड योजनाओं की वर्तमान रूप रेखा में काफी सुधार करना आवश्यक है। साथ ही यह भी स्पष्ट था कि वर्तमान रूपरेखा के तहत कमजोरियां और खतरे विभिन्न मिशन मोड योजनाओं के क्रियान्वयन को प्रतिकूल प्रभावित करते हैं, जिसका परिणाम उपनुकूलतम परिणामों में होता है। दूसरी ओर, नागरिकों को शासकीय सेवाओं के वितरण में सुधार के लिए अवसर देश की संपूर्ण ई-शासन रूपरेखा के व्यापक संशोधन का सम्मोहक मामला प्रदर्शित करते हैं ताकि ई-शासन की संपूर्ण क्षमता प्राप्त की जा सके।
अतः राष्ट्रीय ई-शासन योजना 1.0 में जो सबसे बडी कमियां महसूस की गईं वे थीं (ए) सरकारी अनुप्रयोगों और आंकडों में संयोजन का अभाव, (बी) शासकीय प्रक्रिया पुनर्रचना की न्यूनता, (सी) मोबाइल, मेघ इत्यादि जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों से लाभ ले पाने की गुंजाइश।
इन सभी में परिशोधन करने के लिए भारत सरकार ने मार्च 2015 में ई-क्रांति कार्यक्रम को मंजूरी प्रदान की जिसका दर्शन था शासन में परिवर्तन के लिए ई-शासन में परिवर्तन।
नई जारी की गईं ई-शासन परियोजनाएं और विद्यमान परियोजनाएं, जिनमें सुधार किया जा रहा है, अब ई- क्रांति के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का पालन करेंगी, अर्थात ‘‘परिवर्तन न कि अनुवाद‘‘, एकीकृत सेवाएं न कि व्यक्तिगत सेवाएं‘‘, शासन प्रक्तिया पुनरभियांत्रीकरण सभी मिशन मोड योजनाओं में अनिवार्य होना चाहिए‘‘, ‘मांग पर आईसीटी अधोसंरचना‘‘, डिफॉल्ट से मेघ‘‘, ‘‘मोबाइल सर्वप्रथम‘‘, शीघ्र ट्रैकिंग अनुमोदन‘‘, मानकों और प्रोटोकॉल्स की अनिवार्यता‘‘, भाषा का स्थानीयकरण‘‘, ‘‘राष्ट्रीय जीआईएस (भू-स्थानिक सूचना तंत्र)‘‘, ‘‘सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक डेटा संरक्षण‘‘।
मिशन मोड परियोजनाओं की संख्या 31 से 44 तक हुई है। ई-क्रांति के तहत महिला एवं बाल विकास, सामाजिक लाभ, वित्तीय समावेश, शहरी शासन, ई-भाषा जैसे नए सामाजिक क्षेत्र नई मिशन मोड योजनाओं के रूप में में जुडे हैं।
4.3 ‘‘ई-क्रांति‘‘ के उद्देश्य
इस क्रांतिकारी नई दूरदर्शिता के 6 विशिष्ट उद्देश्य हैं।
- एनईजीपी को परिवर्तनशील और परिणाम उन्मुख ई-शासन पहलों के साथ पुनः परिभाषित करना।
- नागरिक केंद्रित सेवाओं के ढ़ांचें में वृद्धि करना।
- केंद्रीय सूचना एवं दूर संचार प्रौद्योगिकी का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना।
- ई-शासन अनुप्रयोगों की वेगवान पुनरावृत्ति और एकीकरण का संवर्धन करना।
- उभरती प्रौद्योगिकियों का उत्तोलन करना।
- अधिक चुस्त क्रियान्वयन तंत्रों का उपयोग करना।
ई-क्रांति के प्रमुख सिद्धांत हैंः
- परिवर्तन न कि रूपांतरण
- एकीकृत सेवाएं न कि व्यक्तिगत सेवाएं
- प्रत्येक एमएमपी में सरकारी प्रक्रिया में री-इंजीनियरिंग (जीपीआर) को अनिवार्य किया जाना
- मांग पर आईसीटी बुनियादी सुविधा
- डिफॉल्ट रूप से क्लाउड
- मोबाइल प्रथम
- फास्ट ट्रैक स्वीकृति
- मानक और प्रोटोकॉल अनिवार्य
- भाषा स्थानीयकरण
- राष्ट्रीय जीआईएस (भू-स्थानिक सूचना प्रणाली)
- सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक डेटा संरक्षण
ई-क्रांति डिजिटल भारत कार्यक्रम का महत्वपूर्ण स्तंभ है। ई-क्रांति की परिकल्पना है ‘‘शासन के परिवर्तन के लिए ई-शासन का परिवर्तन करना‘‘। ई-क्रांति का लक्ष्य है बहुविध माध्यमों के माध्यम से एकीकृत और अन्तर्संचालित तंत्रों के माध्यम से नागरिकों को सभी शासकीय सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रदान करना, जबकि ऐसा करते समय ये सभी सेवाएं सस्ती लागतों पर कौशल, पारदर्शिता और विश्वसनीयता को भी सुनिश्चित करते हुए नागरिकों को उपलब्ध कराना।
ई-क्रांति का दृष्टिकोण और इसकी कार्यप्रणाली पूर्ण रूप से डिजिटल भारत कार्यक्रम के साथ संयोजित हैं। डिजिटल भारत कार्यक्रम के लिए अनुमोदित कार्यक्रम प्रबंधन संरचना का उपयोग ई-क्रांति की निगरानी और क्रियान्वयन के लिए किया जायेगा साथ ही इसका उपयोग सभी हितधारकों के विचारों को जानने, क्रियान्वयन की देखरेख करने, अंतर मंत्रालय मुद्दों को सुलझाने और परियोजनाओं की वेगवान मंजूरी सुनिश्चित करने के लिए भी किया जायेगा। प्रबंधन संरचना के महत्वपूर्ण घटकों में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति शामिल होगी जो वित्तीय प्रावधानों के अनुसार परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान करेगी, साथ ही इसमें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में डिजिटल भारत पर निगरानी समिति, डिजिटल भारत परामर्श समूह, जिसकी अध्यक्षता दूर संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री करेंगे, मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में एक शीर्ष समिति और व्यय वित्त समिति/गैर-योजना व्यय समिति भी शामिल होंगी। मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता वाली शीर्ष समिति उपयुक्त पाई जाने वाली मिशन मोड परियोजनाओं को जोडने और कम करने का कार्य करेगी और यह समिति अंतर मंत्रालय मुद्दों को भी सुलझाएगी।
4.4 डिजिटल इंडिया कार्यक्रम
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का विजन ‘‘भारत को डिजिटली सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करना’’ है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का विजन तीन प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित हैः
- प्रत्येक नागरिक को सरल उपयोगिता के रूप में डिजिटल बुनियादी ढ़ांचा
- मांग पर आधारित शासन और सेवाएँ
- नागरिकों की डिजिटल सशक्तता
एक-एक करके हम इन्हें देखेंगे।
4.4.1 विजन क्षेत्र 1ः प्रत्येक नागरिक को मूल उपयोगिता के रूप में डिजिटल बुनियादी ढ़ांचा
एक अच्छी तरह संयोजित राष्ट्र ही अच्छी सेवा प्रदान करने वाला राष्ट्र बन सकता है। दूरस्थ भारतीय ग्रामीण डिजिटल ब्रॉडबैंड और उच्च गति के इंटरनेट के माध्यम से जुड़े हुए हों, तभी हर नागरिक को इलेक्ट्रॉनिक सरकारी सेवाएं, लक्षित सामाजिक लाभ और वित्तीय समावेशन का तत्कालीन वितरण हो सकता है। डिजिटल इंडिया का प्रमुख ध्यान जिन क्षेत्रों पर केंद्रित है उनमें से एक ‘‘प्रत्येक नागरिक को मूल उपयोगिता के रूप में डिजिटल बुनियादी ढ़ांचा‘‘ है।
इस दृष्टि के तहत इसका एक महत्वपूर्ण घटक विभिन्न सेवाओं के ऑनलाइन वितरण की सुविधा के लिए उच्च गति इंटरनेट उपलब्ध कराना है। डिजिटल पहचान, वित्तीय समावेशन और आम सेवा केन्द्रों की आसान उपलब्धता को सक्षम करने के लिए बुनियादी सुविधाओं की स्थापना करने की योजना बनाई गयी है। इसे ‘‘डिजिटल लॉकर‘‘ के साथ नागरिकों को प्रदान करने का प्रस्ताव है जिसमें सार्वजनिक क्लाउड पर साझा किए जाने योग्य निजी स्पेस होगा और जहाँ सरकारी विभागों और एजेंसियों द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों को आसान ऑनलाइन पहुँच के लिए भंडारित किया जा सकता है। साथ ही साइबर स्पेस को सुरक्षित और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने की योजना भी बनाई गयी है।
- कोर उपयोगिता के रूप में उच्च गति इंटरनेटः सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) में देश के भीतर न डिजिटल डिवाइड को खत्म करने की क्षमता है (आईसीटी के लिए आसान और प्रभावी उपयोग के मामले में) बल्कि अर्थव्यवस्था के विकास, रोजगार और उत्पादकता में योगदान देने कि भी क्षमता है। वायरलेस तकनीक के माध्यम से सस्ती विश्वसनीय और प्रतिस्पर्धी रुप से आईसीटी बुनियादी सुविधाओं, ऑप्टिकल फाइबर और लांस्ट-माइल कनेक्टिविटी विकल्प के द्वारा देश में उच्च गति के इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने पर जोर दिया जा रहा है।
- क्रेडल-टू-ग्रेव डिजिटल पहचानः एक आदर्श पहचान, विशिष्ट रूप से पर्याप्त, नकली और फर्जी अभिलेखों को नामंजूर करने के लिए पर्याप्त मजबूत, आसान और डिजिटल तरीके से सस्ती प्रामाणिक और आजीवन होनी चाहिए। आधार, भारत सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी किए गए 12 अंकों व्यक्तिगत पहचान संख्या है जो इन आवश्यकताओं को पूरा करती है। यह अनिवार्य रूप से उसकी/उसके पूरे जीवन को कवर करने के लिए निवासी को प्राप्त एक कागज रहित ऑनलाइन कभी भी-कहीं भी पहचान पत्र है। पहचान का सत्यापन यूआईडीएआई के सेंट्रल पहचान भंडार से कनेक्ट प्रमाणीकरण उपकरणों की मदद से ऑनलाइन किया जाता है और यूआईडीएआई के पास उपलब्ध जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक डेटा पर आधारित ‘‘जिस व्यक्ति ने इसका दावा किया है, क्या वह वही व्यक्ति है?‘‘ की प्रमाणिकता के लिए एक ‘‘हां‘‘ या ‘‘नहीं‘‘ प्रतिक्रिया देनी पड़ती है। आधार के लिए निवासी की पहचान स्थापित करने की जरूरत है जो आवेदन के द्वारा प्रयोग किया जा सकता है औरध्या आवेदन के द्वारा पेश सेवाओं/लाभ हक को निवासी के लिए सुरक्षित पहुँच प्रदान करता हैं। डीईआईटीवाई ने, मोबाइल फोन का व्यक्तिगत पहचान का इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन के साधन के रूप में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, के विभिन्न पहलुओं पर मंथन करने के लिए अक्टूबर 2014 में विभिन्न हितधारकों के साथ एक परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला और विचार-विमर्श का महत्वपूर्ण परिणाम ‘‘डिजिटल पहचान‘‘ के लिए व्यक्ति की पहचान स्थापित करते समय गतिशीलता को सक्षम करना था। डिजिटल पहचान के साधन के रूप में मोबाइल का उपयोग, तीन संभावित मोबाइल पहचान समाधान के रुप में सामने आयारू (1) मोबाइल नंबर के साथ आधार को जोडनाय (2) डिजिटल हस्ताक्षर के साथ मोबाइलय और (3) वाइस बॉयोमैट्रिक्स के साथ मोबाइल (स्टैंडअलोन या मोबाइल नंबर से जुड़ाव)। नागरिकों को मोबाइल-आधारित क्रेडल-टू-ग्रेव डिजिटल पहचान सक्षम करने के लिए कारगर और प्रभावी समाधान को लागू करने का कार्य प्रगति पर है।
- मोबाइल और बैंकिंग के माध्यम से डिजिटल और वित्तीय स्पेस में भागीदारीः भारतीय दूरसंचार क्षेत्र दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता दूरसंचार क्षेत्र है। भारत में मोबाइल फोन की भारी और बढ़ती पैठ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से सार्वजनिक सेवाओं का उपयोग और वितरण के लिए व्यापक आधार प्रदान करता है। मोबाइल के माध्यम से डेटा के उपयोग का लोकप्रियता हासिल करना जारी और आज भारत में लगभग 80 प्रतिशत इंटरनेट उपयोगकर्ता मोबाइल उपकरणों का उपयोग करते है। यह सामान्य और विशेष रूप से डिजिटल-सह-वित्तीय-समावेशन में ई-शासन को आशा और क्षमता प्रदान करता है। मोबाइल स्पेस में, डीईआईटीवाई ने सरकारी विभागों में परिवर्तनवादी होल-ऑफ-गवर्नमेंट मोबाइल शासन पहल को सक्षम करने, देश भर में एजेंसियों से नागरिकों को सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने और एसएमएस, यूएसएसडी, मोबाइल एप्लिकेशन, वाइस आईवीआरएस जैसी विभिन्न मोबाइल आधारित चौनलों में मोबाइल उपकरणों के माध्यम से व्यवसाय के लिए एक मोबाइल सेवा की शुरूआत की है। वित्तीय स्पेस में, डीईआईटीवाई ने पेजीओवी (PayGov) प्रदान करने, सभी सरकारी विभागों को सुविधाजनक बनाने के लिए केंद्रीकृत मंच उपलब्ध कराने और सार्वजनिक सेवाओं के लिए नागरिकों से ऑनलाइन सेवाओं के भुगतान के लिए एनएसडीएल डाटाबेस मैनेजमेंट लिमिटेड (एनडीएमएल) के साथ सहयोग किया है। पेजीओवी विभिन्न भुगतान जैसे नेट बैंकिंग (65़ बैंक), डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, कैश कार्ड/प्रीपेड कार्ड/जेब, और एनईएफटी/आरटीजीएस आदि का विकल्प चुन सकते हैं, जो नागरिकों को एंड-टू-एंड लेनदेन का अनुभव प्रदान करता है। ‘‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना‘‘ को देश के सभी परिवारों को व्यापक वित्तीय समावेशन में लाने के लिए एकी.त .ष्टिकोण के साथ राष्ट्रीय मिशन के रूप में शुरू किया गया है। योजना में हर घर में कम से कम एक बुनियादी बैंकिंग खाते, वित्तीय साक्षरता, ऋण, बीमा और पेंशन की सुविधा का उपयोग के साथ बैंकिंग सुविधाओं की सार्वभौमिक पहुँच कि परिकल्पना की गई है। इसके साथ ही यह लाभार्थियों के बैंक खातों में सरकारी लाभों को चुनौती देने का प्रावधान है। मोबाइल पहचान बुद्धिशीलता परामर्श कार्यशाला के दौरान ‘‘वित्तीय समावेशन के साधन के रूप में मोबाइल‘‘ पर एक विशेष ट्रैक अक्टूबर 2014 में डीईआईटीवाई द्वारा आयोजित किया गया था। कार्यशाला और विचार-विमर्श में दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के व्यापक वितरण नेटवर्क के साथ ही उनके द्वारा प्रदान की वास्तविक कवरेज और कनेक्टिविटी जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता, नकदी प्रबंधन, सुरक्षा और नकदी अंदरध् नकदी बाहर के रूप में बैंकिंग सेवाओं के सुचारू संचालन में आने वाली चुनौतियों के समाधान की क्षमता पर चर्चा हुई। मोबाइल वित्तीय समावेशन के लिए व्यवहार्य और प्रभावी पूरक चौनल के रूप में सेवा कर सकता हैं।
- सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) तक आसान पहुँचः डीईआईटीवाई द्वारा तैयार एनईजीपी के तहत कार्यान्वित, सीएससी को .षि, स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन, बैंकिंग, बीमा, पेंशन, उपयोगिता भुगतान, आदि के क्षेत्रों में सरकारी, वित्तीय, सामाजिक और निजी क्षेत्र की सेवाओं के वितरण के लिए ग्राम स्तर पर सेवा वितरण प्वाइंट (कियोस्क) आईसीटी-सक्षम किया जा रहा हैं। सीएससी एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल और सीएससी ऑपरेटर से मिलकर तीन स्तरीय ढांचा (ग्राम स्तरीय उद्यमी या वीएलई के रूप में जाना जाता है), सर्विस सेंटर एजेंसी (एससीए) कुछ जिलों से मिलकर क्षेत्र और राज्य में कार्यान्वयन प्रबंधन के लिए एक राज्य मनोनीत एजेंसी (एसडीए) में सीएससी की स्थापना का कार्य करता हैं। सीएससी, सरकारी सक्षम निजी और सामाजिक क्षेत्र के संगठनों के साथ संयोजन के माध्यम से देश के कोने-कोने में ग्रामीण आबादी के लाभ के लिए उनके सामाजिक और व्यावसायिक लक्ष्यों को संरेखित कर आईटी आधारित और साथ ही गैर-आईटी आधारित सेवाएं उपलब्ध कराता है। इसका प्रारंभिक लक्ष्य हर छह गांवों के लिए एक सीएससी के अनुपात में 6,00,000 गांवों में 1,00,000 सीएससी स्थापित करने के लिए किया गया था। आज भर में 1,37,000 से अधिक देश सीएससी का परिचालन किया जा रहा हैं। प्रस्तावित सीएससी कार्यक्रम 2.0 के तहत, नागरिकों के लिए सीएससी की आसान पहुँच की सुविधा के लिए (सभी पंचायतों को कवर) सीएससी की संख्या 2,50,000 तक बढ़ाने की योजना बनाई है।
- सार्वजनिक मेघ पर साझा करने योग्य निजी स्थान - डिजिटल लॉकर तक आसान और प्रमाणीकरण आधारित पहुँच, अर्थात, सार्वजनिक मेघ पर एक साझा करने योग्य निजी स्थान, धीरे-धीरे कागजविहीन लेनदेन को काफी हद तक सुविधाजनक बना सकती है। नागरिक सरकार द्वारा जारी किये गए डिजिटल दस्तावेजों और प्रमाण-पत्रों को डिजिटल रूप में सुरक्षित बनाए रख सकते हैं और साथ ही भौतिक रूप से दस्तावेज या उनकी प्रतियां भेजे बिना भी उन्हें विभिन्न अभिकरणों के साथ साझा कर सकते हैं। डिजिटल लॉकर में जारी करने वाले प्राधिकरणों के लिए संग्राहकों (डिजिटल संग्राहक) के संग्रह होंगे ताकि वे अपने दस्तावेजों (डिजिटल दस्तावेज) को एक मानकीकृत प्रपत्र के रूप में अपलोड कर सकें। नागरिकों को प्रदान किये गए व्यक्तिगत लॉकर लिंक्स (जिसे दस्तावेज यूआरआई कहा गया है) के भंडारण के लिए एक मंच का कार्य भी करेंगे ताकि वे इन संग्राहकों से सीधे दस्तावेजों को प्राप्त कर पाएंगे। यह मंच नागरिकों को अपने दस्तावेज सुरक्षित रूप से सेवा प्रदाता के साथ साझा करने में भी सहायक होगा, जबकि सेवा प्रदाता जारी करने वाले प्राधिकरण के माध्यम से एक प्रमाणीकृत मार्ग से सीधे भी इन दस्तावेजों को प्राप्त कर सकते हैं। मेघ आधारित सेवाओं के वितरण को अधिक गतिशील बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने मेघराज मेघ पहल शुरू की है। इसमें विभिन्न केंद्रीय और राज्य मेघ शामिल होंगे जो विद्यमान या नई (संवर्धित) अधोसंरचना पर निर्मित किये जाएंगे, जिसमें भारत सरकार द्वारा जारी एक सामान्य प्रोटोकॉल, दिशानिर्देशों और मानकों के समुच्चय का पालन किया जाएगा। मेघ आधारित सेवाओं के अभिग्रहण को प्रोत्साहित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने दो नीतिगत रिपोर्ट्स भी जारी की हैं, ‘‘जीआई मेघ रणनीतिक दिशानिर्देश पत्र‘‘ और ‘‘जीआई मेघ अभिग्रहण एवं क्रियान्वयन मार्ग मानचित्र‘‘
- विश्वसनीय और सुरक्षित साइबर-स्पेसः ऑनलाइन डिजिटल एसेट्स, प्रोटोकॉल, पहचान आदि के लिए बातचीत और प्रबंध साइबरस्पेस है। साइबरस्पेस को सभी संगठनों और उपयोगकर्ताओं के लिए विश्वसनीय और सुरक्षित बनाना आवश्यक है। राष्ट्रीय सूचना सुरक्षा नीति को साइबर स्पेस में कमजोरियों को कम करने, रोकने और साइबर खतरों के जवाब में क्षमता का निर्माण करने और संस्थागत ढांचा, लोग, प्रक्रियाओं, प्रौद्योगिकी और सहयोग के संयोजन के माध्यम से साइबर घटनाओं से होने वाले नुकसान को कम से कम करने, जानकारी और सूचना-बुनियादी ढांचे की रक्षा के लिए बनाया गया है। डीईआईटीवाई की इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (आईसीईआरटी/सीईआरटी-इन) ने जोखिम और खतरों पर उपयोगकर्ताओं के लिए जारी दिशा निर्देशों और उपायों को ध्यान में रख कर व्यापक पोर्टल ‘‘अपने पीसी को सुरक्षित रखें‘‘ बनाया है। इसके अलावा, डिजिटल इंडिया के तहत प्रमुख परियोजनाओं के तहत विश्वसनीय और सुरक्षित साइबर स्पेस प्रदान करने के लिए साइबर सुरक्षा पर राष्ट्रीय समन्वय केंद्र प्रस्तावित किया गया है।
4.4.2 विजन क्षेत्र 2ः मांग पर आधारित शासन और सेवाएँ
पिछले वर्षों में, ई-शासन के युग में प्रवेश के लिए विभिन्न राज्य सरकारों और केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा कई पहल किए गए हैं। सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में सुधार और उन तक पहुँचने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कई स्तरों पर निरंतर प्रयास किए गए हैं। भारत में ई-शासन का विकास नागरिक केन्द्रित, सेवा अभिविन्यास और पारदर्शिता लाने के लिए सरकारी विभागों के कम्प्यूटरीकरण द्वारा विकसित किया गया है।
राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी) को एक सामूहिक दृष्टि से एकीकृत करने और देश भर में ई-शासन पहल पर समग्र दृष्टिकोण के लिए 2006 में अनुमोदित किया गया था। इस विचार के आधार पर दूरदराज के गांवों में बड़े पैमाने पर देश भर में बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जा रहा है, और इंटरनेट की आसान और विश्वसनीय पहुँच को सक्षम करने के लिए अभिलेखों का बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण किया जा रहा है। इसकी स्थापना अपने क्षेत्र में आम आदमी के लिए सभी सरकारी सेवाओं को दुकानों के माध्यम से सामान्य सेवा वितरण, आम आदमी की बुनियादी जरूरतों को पुरा करने के लिए सस्ती कीमत पर दक्षता, पारदर्शिता और इस तरह की सेवाओं की विश्वसनीयता सुनिश्चित करके सुलभ बनाने के उद्देश्य से की गई थी। देश के सभी नागरिकों और अन्य हितधारकों को मांग के आधार पर शासन और सेवाएं उपलब्ध करने के लिए छह तत्व महत्वपूर्ण है।
- विभागों या न्यायालयों में समेकित एकीकृत सेवाएंः कुछ सेवाओं तक पहुंच उपलब्ध कराने के लिए सेवा उपलब्ध कराने वाले विभाग/क्षेत्राधिकारी से दस्तावेज, अनुमोदन और मंजूरी आवश्यक है। आज, सेवाओं के लिए एकल विंडो पहुंच प्रदान करने पर ध्यान दिया जा रहा है जिससे नागरिकों और व्यवसायों के विभागों या न्यायालय में समय और प्रयास को कम किया जा सके। एनईजीपी के तहत ई-बिज और ई-व्यापार परियोजनाएं इसका उदाहरण है। एकीकृत सेवा प्रदान करने के लिए, डीईआईटीवाई ने ई-गवर्नेंस के मानकों को अधिसूचित किया है (https://egovstandards.gov.in पर उपलब्ध है। इसके अलावा, ओपन एपीआई और ओपन सोर्स नीतियों को भी डीईआईटीवाई द्वारा अंतिम रूप दिया जा रहा है। नागरिकों और अन्य हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए डेटा और सेवाओं का उपयोग प्रदान करने, ई-गवर्नेंस अनुप्रयोगों और प्रणालियों के लिए सॉटवेयर अंर्तकार्यकारी को बढ़ावा देने और ओपन एपीआई का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा एपीआई नीति को लागू किया गया है। इसके अलावा, विभागों और राज्यों में अंतःप्रचालनीय और एकी.त सेवाओं के प्रयोजनों के लिए मेघराज क्लाउड प्लेटफार्म, मोबाइल सेवा, पेजीओवी और ई-संगम जैसे सामान्य प्लेटफार्मों को डीईआईटीवाई द्वारा स्थापित किया गया है।
- ऑनलाइन और मोबाइल प्लेटफार्मों के माध्यम से वास्तविक समय पर उपलब्ध सेवाएँः आज, एक वास्तविक समय के आधार पर सेवाओं और शिकायत से निपटने के लिए ई-शासन अनुप्रयोग जैसे डेस्कटॉप कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट, मोबाइल फोन का तंत्र विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित है। पंचायत स्तर पर उच्च गति ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए,नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) परियोजना को दूरसंचार विभाग (डीओटी) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। जिसका उद्देश्य देश में सभी पंचायतों को गीगाबीट फाइबर उपलब्ध कराकर कनेक्टिविटी समस्याओं को हल करना है। डीईआईटीवाई की मोबाइल सेवा परियोजना, एक बेहद सफल परियोजना है जो मोबाइल आधारित सेवाओं और मोबाइल एप्लिकेशन को उपलब्ध कराने के लिए केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर सभी सरकारी विभागों और एजेंसियों के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय मंच प्रदान करती है। देश भर में 1900 से अधिक सरकारी विभाग और एजेंसियाँ मोबाइल समर्थित सेवाओं के लिए मोबाइल मंच का उपयोग कर रही हैं। इस पहल ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार जीता है। मोबाइल सेवा ने ‘‘होल-ऑफ-गवर्मेंट की सूचना में प्रयास को बढ़ावा‘‘ श्रेणी के तहत संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार (2014) जीता है। यह 2014 में भारत कि तरफ से अकेला विजेता है।
- नागरिकों के सभी अधिकार पोर्टेबल और क्लाउड पर उपलब्धः क्लाउड टेक्नोलॉजीज द्वारा आवेदनों की डिजाइन और होस्टिंग करते समय लचीलापन, दक्षता, लागत प्रभावशीलता और पारदर्शिता का ध्यान रखा जाना चाहिए। क्लाउड कम्प्यूटिंग के लाभों का दोहन और उपयोग करने के लिए, भारत सरकार ने ‘‘जीआई क्लाउड‘‘ के रुप में एक महत्वाकांक्षी पहल पर शुरूआत की है, जिसे श्मेघराजश् के रूप में नामित किया गया है। इस पहल का उद्देश्य केंद्र सरकार की आईसीटी के खर्च का अनुकूलन करके देश में ई-सेवाओं के वितरण में तेजी लाना है। क्लाउड मंच सभी संभव अधिकारों जिससे सच्चाई स्रोत प्रदान करने के लिए ऑनलाइन भंडार का होस्ट कर सकता हैं। इसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बीपीएल अधिकार, सामाजिक क्षेत्र के लाभ, रसोई गैस और अन्य सब्सिडी, आदि जैसे क्षेत्रों शामिल है। मंच द्वारा कई सरकारी योजनाओं के तहत स्वचालित पंजीकरण, रखरखाव और नागरिक अधिकारों का वितरण सक्षम कर सकते हैं। यह कहीं भी, कभी भी के आधार पर इन नागरिक अधिकारों का वितरण प्रदान करेगा। एक नागरिक को किसी नई जगह पर जाने पर उसकी/उसके अधिकारों में कोई परिवर्तन नहीं होगा और नए सिरे से लाभ जारी रखने के लिए रजिस्टर कराने और आपूर्ति दस्तावेजों के लंबी प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा। यह योजना पूरे देश में नागरिक अधिकारों की निरंतरता सुनिश्चित करने की दिशा में पोर्टेबिलिटी मुद्दे के समाधान के लिए क्लाउड मंच का लाभ उठाने के लिए है। यूनिवर्सल खाता संख्या (यूएएन) के माध्यम से भविष्य निधि पोर्टेबिलिटी के शुभारंभ के साथ अक्टूबर 2014 में एक बढ़ी सफलता हासिल की गई थी। कर्मचारियों को अब अपना स्थान बदलने के लिए उनकी भविष्य निधि खातों में जमा धनराशि के स्थानांतरित करने के बारे में चिंता की जरूरत नहीं है।
- डिजीटल सेवाओं में परिवर्तन द्वारा व्यापार कर की सुविधा में सुधारः कोई कारोबार शुरू करना, निर्माण अनुमति के साथ लेनदेन, बिजली प्राप्त करना, संपत्ति का पंजीकरण कराना,क्रेडिट प्राप्त करना, निवेशकों की रक्षा, कर अदा करना, सीमा पार का व्यापार, प्रवर्तनीय ठेके, दिवाला और अन्य मंजूरी आदि। देश में व्यापार करना कितना आसान या मुश्किल है को परिभाषित करते है और विभिन्न अनुभव प्रदान करते है। देश में व्यवसायों के लिए सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप से प्रदान कर व्यापार में सुधार किया जाएगा। एनईजीपी के तहत मौजूदा एमएमपी को नवीनतम उपकरणों और तकनीकों का प्रयोग कर सुदृढ़ किया जाएगाः (a) एकल विंडो तंत्र के माध्यम से सभी व्यवसायों और निवेशकों को व्यावसायिक उद्यम की स्थापना के लिए ई-बिज परियोजना को विभिन्न केंद्रीय और राज्य विभागों/एजेंसियों में एकीकृत सेवाएं प्रदान किया गया है। (b) ‘‘एमसीए 21‘‘ एमएमपी का उद्देश्य सांविधिक आवश्यकताओं और अन्य व्यवसाय से संबंधित सेवाओं के लिए इलेक्ट्रॉनिक सेवाएं प्रदान करना है। (c) ई-ट्रेड एमएमपी, व्यापारियों को एजेंसियों से ऑनलाइन सेवाओं का लाभ उठाने को सक्षम कर विदेशी व्यापार में शामिल विभिन्न नियामक/सुविधाजनक एजेंसियों द्वारा सेवाओं की प्रभावी और कुशल डिलीवरी को बढ़ावा देकर भारत में विदेशी व्यापार की सुविधा प्रदान करता है।
- वित्तीय लेनदेन को इलेक्ट्रॉनिक और नगद रहित बनानाः इलेक्ट्रॉनिक भुगतान और धन स्थानान्तरण प्रणाली कि सुविधा ने बिचौलियों की भागीदारी से होने वाले नुकसान से बचाकर लाभार्थियों को लक्षित और प्रत्यक्ष वितरण का लाभ दिया है। इसी तरह, सार्वजनिक सेवाएं की फीस के भुगतान के लिए कुछ ऑनलाइन तंत्र नागरिकों को एक पारदर्शी, दोस्ताना और शीघ्र चौनल प्रदान करती हैं। एक सीमा से ऊपर सभी वित्तीय लेनदेन इलेक्ट्रॉनिक और नगद रहित किया जाएगा। डीईआईटीवाई ने देश के सभी सरकारी विभागों और एजेंसियों के लिए एक केंद्रीकृत भुगतान गेटवे के रूप में पेजीओवी भारत बनाया है। इसे नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, एनएसडीएल डाटाबेस मैनेजमेंट लिमिटेड (एनडीएमएल) द्वारा बनाया और संचालित किया गया है। पेजीओवी भारत को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए डेटाबेस में जानकारी साझा करने में सक्षम करने के लिए, राष्ट्रीय और राज्य सेवा डिलिवरी गेटवे (एनएसडीजी और एसएसडीजी) और मोबाइल सेवा के तहत मोबाइल सेवा डिलिवरी गेटवे (एमएसडीजी) के साथ सुरक्षित रूप से एकीकृत किया गया है। नागरिक ई-भुगतान विकल्प के लिए नेट बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, प्रीपेड कैश कार्ड/बैलेट, तत्काल भुगतान सेवा (आईएमपी) और मोबाइल बैलेट के रूप में होस्ट चुन सकते हैं।
- निर्णय समर्थन प्रणाली और विकास के लिए भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का इस्तेमालः विभिन्न सरकारी सेवाओं को ई-शासन अनुप्रयोगों में जीआईएस प्रौद्योगिकी के समुचित उपयोग से बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। राष्ट्रीय भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (एनजीआईएस), को ई-शासन अनुप्रयोगों के लिए एक जीआईएस मंच विकसित करने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान-केन्द्र (एनआईसी), एनआरएसए और पृथ्वी विज्ञान (एमओईएस) मंत्रालय में संगठनों के भू-स्थानिक डेटा को एकी.त करने के लिए लागू किया जा रहा है। इस जीआईएस मंच का विभिन्न मिशन मोड परियोजनाओं और अन्य ई-गवर्नेंस पहल के लाभ के रूप में उद्यामन किया जाएगा। एनजीआईएस द्वारा भी परियोजनाओं की भौतिक प्रगति की निगरानी, आपदा प्रबंधन और सार्वजनिक सुरक्षा एजेंसियों की विशेष जरूरतों के लिए उद्यामन किया जा सकता है।
4.4.3 विजन क्षेत्र 3ः नागरिकों का डिजिटल सशक्तिकरण
डिजिटल कनेक्टिविटी बहुत सापेक्षिक स्तर पर है। जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में, डिजिटल नेटवर्क द्वारा भारतीय मोबाइल फोन और कंप्यूटर के माध्यम से एक दूसरे के साथ तेजी से कनेक्ट हो रहे हैं। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का ध्यान भी डिजिटल साक्षरता, डिजिटल संसाधनों और सहयोगात्मक डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से भारत को डिजिटल सशक्त समाज में बदलने पर केंद्रित है। इसके साथ ही यह यूनिवर्सल डिजिटल साक्षरता और डिजिटल संसाधनोंध्सेवाओं की उपलब्धता को भारतीय भाषाओं में प्रदान करने पर जोर देता है।
- यूनिवर्सल डिजिटल साक्षरताः डिजिटल साक्षरता सही मायने में और पूरी तरह से संभावित डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के लाभ के लिए व्यक्तिगत स्तर पर सर्वोपरि महत्व रखती है। यह नागरिकों को पूरी तरह सशक्त बनाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का फायदा उठाने की क्षमता प्रदान करता है। यह उन्हें बेहतर आजीविका के अवसरों की तलाश और आर्थिक रूप से सुरक्षित होने में मदद करता है। इस समय हर घर में कम से कम एक व्यक्ति को ई-साक्षर बनाने पर ध्यान दिया जा है। सीएससी के रूप में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्थापित कोर आईसीटी अवसंरचना, देश के दूर-दराज के स्थानों के लिए डिजिटल साक्षरता उपलब्ध कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। देश के सभी पंचायतों को उच्च गति कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) को रोल आउट करने के लिए दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) की स्थापना की गई है। बीबीएनएल, द्वारा देश में 2,50,000 ग्राम पंचायतों को ऑप्टिक फाइबर केबल ले आउट करना होगा, सभी हितधारकों द्वारा 100 एमबीपीएस लिंक उपलब्ध कराकर देश भर के सभी गांवों में डिजिटल पहुँच सुनिश्चित करने के लिए सूचना हाइवे के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। यह पंचायत कार्यालय, स्कूलों, स्वास्थ्य केन्द्रों, पुस्तकालयों, आदि के रूप में स्थानीय संस्थाओं को डिजिटलीकरण और कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेंगे। यह उद्योग राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन के माध्यम से ई-साक्षरता के लक्ष्य का समर्थन करने के लिए भी आगे आ गया है। डीईआईटीवाई के तहत स्वायत्त सोसायटी, राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईईएलआईटी), ने पाठ्यक्रम पर प्रशिक्षण जो कंप्यूटर और अन्य बुनियादी गतिविधियों जैसे इंटरनेट ब्राउजिंग, ई-मेल आदि के माध्यम से ई-शासन में लेन-देन का कार्य करने के लिए देश भर में 5000 से अधिक सुविधा केंद्रों की पहचान की है। एनआईईएलआईटी ने भी संयुक्त रूप से डिजिटल साक्षरता पर ऑनलाइन परीक्षा और पाठ्यक्रम आयोजित करने की दिशा में उद्योग भागीदारों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
- सार्वभौमिक सुलभ डिजिटल संसाधनः डिजिटल संसाधन सही मायने सार्वभौमिक सुलभ तभी होगें जब वे हर जगह और हर किसी को आसानी से उपलब्ध हो। ओपन संसाधनों को व्यापक रूप से और सस्ते में उपलब्ध कराया जा रहा है इनका व्यापक रूप से प्रयोग करने योग्य होने और अनुकूलन होने का फायदा है। इस सीमा में बनाई या कार्यान्वित स्वामित्व प्रणाली से विकसित डिजिटल संसाधनों को हर जगह पहुँचा जा सकता है। सबंधित विभाग और एजेंसियाँ अपने डिजिटल संसाधनों की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी है, इसलिए इसका प्रयोग और अनुकूलन जटिल नहीं होगा। नेशनल डाटा शेयरिंग एंड एसेसिबिलीटी (एनडीएसएपी) को ओपन प्रारूप में उनके डेटासेट जारी करने के लिए सरकारी संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है। डीईआईटीवाई की एजेंसी, एनडीएसएपी को भारत में ओपन गवर्मेंट प्लेटफार्म (http://data.gov.in) के माध्यम से एनआईसी द्वारा कार्यान्वयवित किया जा रहा है। जो विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा प्रकाशित सभी ओपन प्रारूप डेटासेट के लिए एक एकल प्वाइंट एसेस प्रदान करता है। डीईआईटीवाई भी, सरकारी संगठनों द्वारा उपलब्ध कराए गए सभी डेटा और जानकारी को पठनीय बनाने के लिए ओपन एपीआई पर एक नीति तैयार कर रहा है। जो अन्य ई-शासन अनुप्रयोगोंध्प्रणालियों और जनता द्वारा प्रयुक्त की जा सकती है। डीईआईटीवाई एपीआई के मानकों को स्थापित करने और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच सूचना को निर्बाध साझा करने के लिए एक गेटवे डिजाइन करने के लिए जिम्मेदार है। डिजिटल संसाधन उपयोगकर्ताओं को मोबाइल फोन, टैबलेट्स, कंप्यूटर, या अन्य उपकरणों के रुप में उपयोगी उपकरण प्रदान कर रहे हैं। ये उपकरण, जहां डिजिटल संसाधन उपलब्ध हैं वहाँ सभी साइटों का उपयोग करने में सक्षम है, जो समर्थन परिवर्तित मानक के आधार पर, या सामग्री प्रस्तुति और लेआउट की विभेदित शैलियों का समर्थन हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। ऐसे मामलों में, सामग्री को सभी उपकरणों में सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। डीईआईटीवाई के लिए आवश्यक स्टाइल शीट और अन्य सर्वर साइड समाधान के आवेदन के लिए मानकों को अधिसूचित और एजेंसियों तक डिजिटल संसाधनों की सार्वभौमिक पहुंच को प्राप्त करने के लिए सरकारी आंकड़ों और संम्बधित विभागों की मदद कर सकते है। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत, सरकार नागरिकों को विशेष जरूरतों के लिए डिजिटल संसाधनों तक पहुंच उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है, जैसे .श्य या सुनाई विकलांग (आंशिक या पूर्ण हो सकता है) के रूप में, सीखने या संज्ञानात्मक विकलांग, शारीरिक विकलांग जिनको फोन, टेबलेट और कंप्यूटर जैसे सर्वव्यापी पहुँच वाले उपकरणों के संचालन में बाधा हो।
- सभी दस्तावेजों/प्रमाण पत्रों को क्लाउड पर उपलब्ध कराने के लिएः नागरिकों को ऐसे सरकारी दस्तावेज या प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए, जो पहले से ही भौतिक रूप में सरकार के कुछ विभागोंध्संस्थाओं में उपलब्ध हैं। सभी इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित की जानी चाहिए। उदाहरण के रूप में, शैक्षिक संस्थानों को अपने सभी डिग्री एंव प्रमाणपत्र डिजीटल और उपयुक्त पहुँच प्रोटोकॉल के साथ ऑनलाइन भंडार में रखा जाना सुनिश्चित करना चाहिए। नागरिक द्वारा आवेदन फार्म भरते समय उसकीध्उसके शैक्षिक प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रतियां प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए, लेकिन नागरिक द्वारा ऑनलाइन भंडार में उपलब्ध इन प्रमाणपत्रों की जानकारी को सूचक का उपयोग कर संबंधित एजेंसी द्वारा देखा जा सकता है। सरकारी द्वारा जारी किए गए सभी प्रमाण पत्रों/दस्तावेजों को इन प्रमाण पत्रोंध्दस्तावेजों की प्रमाणिकता का एक स्रोत प्रदान करने के लिए क्लाउड मंच पर होस्ट किया जाना चाहिए। इनमें डिजिटली हस्ताक्षरित शैक्षिक प्रमाण पत्र, भूमि रिकार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, परमिट आदि श्रेणियों के डेटा शामिल हो सकते हैं। निवेदन विभाग या उपयोगकर्ता को क्लाउड पर उपलब्ध डिजिटल रिपोजिटरी तक प्रमाणीकृत पहुँच प्रदान किया जा सकता है।
- डिजिटल संसाधनों की उपलब्धताध्भारतीय भाषाओं में सेवाएंः भारत के विभिन्न भागों में बोली और लिखी जाने वाली भाषाओं के संदर्भ में उल्लेखनीय विविधता है। यहाँ 22 आधिकारिक भाषाएं और 12 लिपियाँ हैं। अंग्रेजी का ज्ञान देश की आबादी के बहुत छोटे वर्ग तक सीमित है। बाकी लोग डिजिटल संसाधनों को समझ या उपयोग नहीं सकते जो मुख्य रूप से अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। डीईआईटीवाई ने अभिनव उपयोगकर्ता उत्पादों और सेवाओं को एकीकृत करने के उद्देश्य और भाषा अवरोधों, बहुभाषी ज्ञान संसाधनों तक पहुँच बनाने, सूचना प्रोसेसिंग उपकरणों एंव तकनीकों को विकसित करने और मानव-मशीन की सुविधा के लिए भारतीय भाषाओं प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम (टीडीआईएल) कि पहल की है। यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानकीकरण निकायों जैसे आईएसओ, यूनिकोड, विश्व-वाइड वेब कंसोर्टियम (डबल्यू3सी) और भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से भाषा प्रौद्योगिकी मानकीकरण को बढ़ावा देता है। डीईआईटीवाई ने भी मिशन मोड परियोजनाओं और अन्य सरकारी अनुप्रयोगों के अंतर्गत आवेदन के स्थानीयकरण में मदद करने के लिए स्थानीयकरण परियोजना प्रबंधन फ्रेमवर्क (एलपीएमएफ) की शुरूआत कर दी है। इसके साथ ही डीईआईटीवाई भारत में बड़े पैमाने पर अंग्रेजी न जानने वाली जनसंख्या में स्थानीय भाषा में डिजिटल सामग्री का प्रसार करने के लिए ई-भाषा नाम से एक नई मिशन मोड परियोजना तैयारी कर रहा है। इसमें अक्षम लोगों के लिए अनुकूल सामग्री और सुलभता मानकों के अनुसार प्रणालियों का विकास किया जा रहा है।
- सहभागी शासन के लिए सहयोगात्मक डिजिटल प्लेटफॉर्मः परंपरागत रूप से, डिजिटल प्लेटफार्म का इस्तेमाल उपयोगकर्ताओं के लिए सूचना और सेवाओं के प्रावधान में प्रसार के लिए किया गया है। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से, सरकार नागरिकों के साथ संवाद स्थापित कर सकती है हालांकि, ज्यादातर यह वन-वे ही हो सकती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म को प्रौद्योगिकी के रुप में आवश्यक क्षमता के साथ, समय पर बनाया गया हैं और अब इसके द्वारा सरकारी विभाग नागरिकों से टु-वे संचार और बातचीत कर सकते है। यह प्लेटफार्म उपयोगकर्ताओं की अधिक से अधिक भागीदारी की सुविधा द्वारा अधिक सहयोगात्मक हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से नागरिकों से कभी भी संपर्क किया जा सकता है जिससे सरकार को सहभागी शासन में सुविधा मिलेगी। यह प्लेटफॉर्म विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने, सरकार को सुझाव देने, शासन पर प्रतिक्रिया देने, सरकार के कार्यों/नीतियां/पहल का आकलन करने, सक्रिय रूप से वांछित परिणाम हासिल करने और अभिनव समाधान प्राप्त करने के लिए एक तंत्र प्रदान करेगा। डीईआईटीवाई ने हाल ही में सहयोगी और सहभागी शासन को सुविधाजनक बनाने के लिए ‘‘माईजीओवी‘‘ (www.mygov.in) के नाम से राष्ट्रव्यापी डिजिटल प्लेटफार्म कि शुरूआत की है। इसके अलावा डीईआईटीवाई ने एनईजीपी के माध्यम से प्रदान की जा रही ई-गवर्नेंस सेवाओं पर प्रकाश डालने के लिए एक सोशल मीडिया पेज भी बनाया है, https://www.facebook.com/NationaleGovernancePlan
4.5 डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली इस प्रकार हैंः
इसके नौ पहलू हैं।
- मंत्रालय/विभाग/राज्यों को भारत सरकार द्वारा स्थापित सार्वजनिक और समर्थन आईसीटी बुनियादी सुविधा का लाभ उठाना होगा। डीईआईटीवाई को भी, विकसित मानक निर्धारित और नीतिगत दिशानिर्देश, क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं विकास कार्य, तकनीकी समर्थन आदि जारी रखना होगा।
- मौजूदा चल रही ई-शासन पहलों का उपयुक्त डिजिटल इंडिया के सिद्धांतों के साथ पुर्नोत्थान किया जाएगा। नागरिकों को सरकारी सेवाओं की प्रदायगी में तेजी लाने के लिए कार्यक्षेत्र (स्कोप) में वृधि, रि-इंजीनियरिंग प्रक्रिया, एकीकृत और अंतरप्रचालनीय प्रणालियों के इस्तेमाल और क्लाउड और मोबाइल जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के परिनियोजन और उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
- राज्यों को विशिष्ट परियोजनाओं का चुनाव करने की सुविधा दी जाएगी जो उनकी सामाजिक-आर्थिक जरूरतों के लिए प्रासंगिक हैं।
- ई-शासन को एक विकेन्द्रीकृत कार्यान्वयन मॉडल अपनाने, नागरिक केन्द्रित सेवा अभिविन्यास, विभिन्न ई-शासन अनुप्रयोगों और आईसीटी बुनियादी ढांचे/संसाधनों का इष्टतम उपयोग के अंतर को सुनिश्चित करने के लिए, आवश्यक हद तक एक केंद्रीकृत पहल के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा।
- सफलताओं की पहचान की जाएगी और जहाँ भी उनकी प्रतिकृति आवश्यक होगी वहाँ उनकी उत्पादकता और अनुकूलन में वृद्धि की जाएगी।
- ई-शासन परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी को जहां भी आवश्यक होगा वहाँ पर्याप्त प्रबंधन और रणनीतिक नियंत्रण के साथ लागू किया जाएगा।
- विशिष्ठ आईडी को प्रमाणीकरण और लाभ वितरण की सुविधा के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- केन्द्र और राज्य स्तर पर सभी सरकारी विभागों के समर्थन को मजबूत करने के लिए एनआईसी का पुनर्गठन किया जाएगा।
- विभिन्न ई-शासन परियोजनाओं का निर्माण, विकास और उनको तेजी से लागू करने के लिए 10 प्रमुख मंत्रालयों में मुख्य सूचना अधिकारी (सीआईओ) की नियुक्ति की जाएगी। सीआईओ के पद को संबंधित मंत्रालय में अधिक शक्तियों के साथ अपर सचिवध्संयुक्त सचिव स्तर पर नियुक्ति किया जाएगा।
4.6 डिजिटल भारत के कार्यक्रम स्तंभ
डिजिटल भारत एक आवरण कार्यक्रम है जिसमें बहुविध शासकीय मंत्रालय और विभाग शामिल हैं। यह बड़ी संख्या में विचारों और कल्पनाओं को एक ही व्यापक दूरदर्शिता में बुनता है ताकि इनमें से प्रत्येक का क्रियान्वयन एक अधिक विशाल लक्ष्य के रूप में किया जा सके। प्रत्येक व्यक्तिगत घटक स्वयं अपने पैरों पर खडा है, परंतु फिर भी वह अधिक विशाल परिदृश्य का हिस्सा है। डिजिटल भारत का क्रियान्वयन संपूर्ण सरकार को करना है जिसमें समस्त संयोजन का कार्य इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाएगा। डिजिटल भारत का लक्ष्य है वृद्धि क्षेत्रों के नौ स्तंभों को अत्यावश्यक प्रेरणा प्रदान करना। ये नौ स्तंभ हैं ब्रॉडबैंड महामार्ग, मोबाइल कनेक्टिविटी तक सार्वभौमिक पहुँच, सामाजिक इंटरनेट पहुँच कार्यक्रम, ई-शासनः प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकार में सुधार लाना, ई-क्रांति - सेवाओं का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वितरण, सभी के लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण, रोजगार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और आरंभिक फसल कार्यक्रम। इनमें से प्रत्येक कार्यक्रम अपने आप में एक जटिल कार्यक्रम है और यह बहुविध मंत्रालयों और विभागों के बीच समन्वय स्थापित करता है।
स्तंभ 1. ब्रॉडबैंड हाईवे
इसके तहत तीन उप घटकों अर्थात् सभी के लिए ब्रॉडबैंड - ग्रामीण, सभी के लिए ब्रॉडबैंड शहरी और राष्ट्रीय सूचना संरचना (एनआईआई) को शामिल किया गया।
सभी के लिए ब्रॉडबैंड - ग्रामीण
2,50,000 ग्राम पंचायतों को दिसंबर 2016 तक राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) के तहत कवर किया जाएगा। दूरसंचार विभाग (डीओटी) इस परियोजना के लिए नोडल विभाग है।
सभी के लिए ब्रॉडबैंड - शहरी
नए शहरी विकास और इमारतों में सेवा वितरण और संचार सुविधाओं को अनिवार्य करने के लिए वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटरों का उद्यामन किया जाएगा।
राष्ट्रीय सूचना संरचना (एनआईआई)
एनआईआई देश में पंचायत स्तर पर विभिन्न सरकारी विभागों के लिए उच्च गति कनेक्टिविटी और क्लाउड मंच प्रदान करने के लिए नेटवर्क और क्लाउड अवसंरचना द्वारा एकीकृत होगा। इन अवसंरचना के घटकों में, स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (स्वान), राष्ट्रीय सूचना नेटवर्क (एनकेएन), राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन), सरकारी प्रयोक्ता नेटवर्क (जीयूएन) और मेघराज क्लाउड नेटवर्क शामिल है। एनआईआई का उद्देश्य स्वान, एनकेएन, एनओएफएन, जीयूएन और जीआई क्लाउड के रूप में सभी आईसीटी अवसंरचना के घटकों को एकीकृत करना है। इसे क्रमशरू 100, 50, 20 और 5 सरकारी कार्यालयोंध्सेवा आउटलेटस् का राज्य, जिला, ब्लॉक और पंचायत स्तर पर क्षैतिज कनेक्टिविटी के लिए प्रावधान करना होगा। डीईआईटीवाई इस परियोजना के लिए नोडल विभाग होगा।
स्तंभ 2. मोबाइल कनेक्टिविटी तक सार्वभौमिक पहुँच
इस पहल का ध्यान देश में नेटवर्क की पहुंच और कनेक्टिविटी के अंतराल को कम करने पर केंद्रित है।
देश में करीब 55,619 गांव ऐसे है जहाँ मोबाइल कवरेज नहीं हैं। नॉर्थ ईस्ट के लिए व्यापक विकास योजना को ऐसे गांवों में मोबाइल कवरेज प्रदान कराने के लिए शुरू किया गया है। मोबाइल कवरेज से वंचित गांवों को चरणबद्ध तरीके से मोबाइल कवरेज मुहैया कराया जाएगा।
दूरसंचार विभाग इस परियोजना के लिए नोडल विभाग होगा और इसकी लागत 2014-18 के दौरान 16,000 करोड़ रु. के आसपास होगी।
स्तंभ 3. पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम
पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम के दो उप घटक, सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) और बहु-सेवा केन्द्रों के रूप में डाक घर हैं।
सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी)
सीएससी को मजबूत किया जाएगा और इसके परिचालन की संख्या वर्तमान में लगभग 250,000 तक बढ़ जाएगी, अर्थात प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सीएससी। सीएससी को सरकारी और व्यापार सेवाओं के वितरण के लिए व्यवहार्य और बहुआयामी एंड-प्वाइट दिया जाएगा। डीईआईटीवाई इस योजना को लागू करने के लिए नोडल विभाग होगा।
डिजिटल भारत के उद्देश्य के तहत ‘‘सीएससी 2.0 - आगे बढ़ने की राह‘‘ - ‘‘भारत को डिजिटल रूप से सक्षम समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करना‘‘ - का लक्ष्य ग्रामीण नागरिकों के आसपास स्व धारणीय मनुष्य समर्थित ई-सेवा वितरण केंद्रों के संजाल का निर्माण करके डिजिटल विभाजन की खाई पर पुल के रूप में कार्य करने का है। इसके क्रियान्वयन के बाद ऐसा अनुमान है कि देश की सभी ग्राम पंचायतों में स्व-धारणीय सीएससी दुकानों का संजाल होगा जो नगरिओं को आवश्यक शासकीय सेवाएँ और अन्य जीवन को परिवर्तित करने वाली सेवाएं प्रदान करेंगे जिसके लिए जिला/राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन और सीएससी विशेष प्रयोजन वाहन हाथ पकड़ने वाले सहायकों के रूप में काम करेंगे। सीएससी 2.0 का लक्ष्य नागरिकों के ई-सेवा वितरण को अधिकतम करने के लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को इसमें शामिल करने का है।
संक्षिप्तः
- इसका लक्ष्य डिजिटल भारत - स्तंभ 3 - सार्वजनिक इंटरनेट पहुँच कार्यक्रम के तहत 2.5 लाख सीएससी केंद्रों का स्व-धारणीय संजाल -राष्ट्रीय ग्रामीण इंटरनेट अभियान - निर्माण करके विभिन्न नागरिक केंद्रित सेवाएं वितरित करने का है।
- क्रियान्वयन अभिकरणः सीएससी - शासन सेवा इंडिया लिमिटेड (सीएससी एसपीवी), 6 सी.जी.ओ. संकुल, नई दिल्ली
- सीएससी 2.0 मॉडल की परिकल्पना एक लेनदेन आधारित और सेवा वितरण आधारित मॉडल के रूप में की गई है, जो एक एकल मंच के माध्यम से ई-सेवाओं के बडे समुच्चय का वितरण करता है, यह देश भर में सीएससी की धारणीयता में वृद्धि करेगा।
- इस परियोजना के अंतर्गत सेवा उपलब्धता के मानकीकरण की सुनिश्चितता और इसमें शामिल सभी हितधारकों के क्षमता निर्माण की सुनिश्चितता के माध्यम से सीएससी संजाल के सशक्तिकरण का प्रस्ताव है।
- यह योजना एसडीए और डीईजीएस, दोनों को श्रमशक्ति प्रदान करने की परिकल्पना करती है, ताकि वे अपनी अपेक्षित भूमिकाएं निभा पाने में सक्षम हो सकें, जैसे सहायता, ई-शासन सेवाओं के वितरण तक परियोजना के क्रियान्वयन के लिए समन्वय, देखरेख और मूल्यांकन। सीएससी एसपीवी द्वारा सहायता केंद्र सहायता भी प्रदान की जाएगी।
उद्देश्यः
- अन्य एमएमपी की दृष्टि से पहले से ही निर्मित ‘‘पश्च सिरा अधोसंरचना का उपयोग करके सीएससी को संपूर्ण वितरण केंद्रों के रूप में बनाकर ग्रामीण नागरिकों को ई- सेवाओं तक भेदभाव रहित पहुँच प्रदान करना।
- ग्राम पंचायत स्तर तक स्व-धारणीय सीएससी संजाल का विस्तार - 2.5 लाख सीएससी, अर्थात प्रत्येक ग्राम पंचायत में कम से कम एक सीएससी।
- क्रियान्वयन के लिए जिला प्रशासन के तहत जिला ई-शासन सोसाइटी का सशक्तिकरण।
- बहिर्वेल्लन और परियोजना प्रबंधन के लिए संस्थागत रूपरेखा का निर्माण और उनका सशक्तिकरण, ताकि राज्य और जिला प्रशासन तंत्र की सहायता की जा सके और स्थानीय भाषा सहायता केंद्रों के माध्यम से वीएलई की सहायता।
- एक प्रौद्योगिकी मंच के तहत ऑनलाइन सेवाओं का सक्रियकरण और समेकन, ताकि सभी हितधारकों के बीच एक प्रौद्योगिकी संचालित संबंध के साथ सीएससी दुकानों पर सेवा वितरण को जवाबदेह, पारदर्शी, कुशल और अनुरेखणीय बनाया जा सके।
- ई-सेवाओं के वितरण के माध्यम से अर्जित अधिकतम दलाली को साझा करके वीएलई की धारणीयता में वृद्धि करना और महिलाओं को वीएलई के रूप में प्रोत्साहित करना।
बहु-सेवा केन्द्रों के रूप में डाक घर
150,000 डाक घरों को बहु सेवा केंद्रों में तब्दील करने का प्रस्ताव है। डाक विभाग इस योजना को लागू करने के लिए नोडल विभाग होगा।
स्तंभ 4. ई-शासन - प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकारी तंत्र में सुधार
सरकारी सेवाओं के वितरण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सरकारी प्रक्रियाओं को सरल और अधिक कुशल बनाना आवश्यक है इसके लिए आईटी का उपयोग कर री-इंजीनियरिंग महत्वपूर्ण है, इसलिए विभिन्न सरकारी डोमेन और सभी मंत्रालयों/विभागों द्वारा इसे कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकारी तंत्र में सुधार के लिए प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैंः
- फार्मों (आवेदन पत्रों) का सरलीकरण और आकार में कमी-फार्म को सरल एंव उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाया जाना चाहिए और केवल न्यूनतम और आवश्यक जानकारी एकत्र किया जाना चाहिए।
- ऑनलाइन एप्लिकेशन और ट्रैकिंग - ऑनलाइन एप्लिकेशन और स्थिति ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
- ऑनलाइन संग्रह - प्रमाण पत्र, शैक्षणिक डिग्री, पहचान दस्तावेजों आदि के लिए ऑनलाइन संग्रह का प्रयोग। जिससे नागरिकों को खुद भौतिक रूप से प्रस्तुत होकर इन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की आवश्यकता न हो।
- सेवाओं और प्लेटफार्मों का एकीकरण - सेवाओं और प्लेटफार्मों का एकीकरण उदाहरण। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) का आधार प्लेटफार्म, भुगतान गेटवे, मोबाइल सेवा प्लेटफार्म, नागरिकों और व्यवसायों में सेवा डिलीवरी की सुविधा के लिए राष्ट्रीय और राज्य सेवा डिलिवरी गेटवे (एनएसडीजी/एसएसडीजी) के रूप में ओपन एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) और मिडलवेयर के माध्यम से डाटा के आदान-प्रदान के लिए इसे एकीकृत और अंतःप्रचालनीय किया जाना चाहिए।
सभी डेटाबेस और जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में होना चाहिए न की मैनुअल रुप में। सरकारी विभागों और एजेंसियों के अंदर कार्यप्रवाह को सक्षम करने के लिए सरकारी प्रक्रियाओं को स्वचालित किया जाना चाहिए और साथ ही नागरिकों को इन प्रक्रियाओं की दृश्यता की अनुमति देनी चाहिए। आईटी, को स्वचालित रूप से डेटा का विश्लेषण, जवाब और समस्याओं की पहचान करने एंव हल करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसे सुधार की प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
स्तंभ 5. ई-क्रांति
कृपया एनईजीपी के साथ पूर्व के अनुभव पर इस पुस्तिका में दिए गए संपूर्ण आलेख का संदर्भ लें।
सरकार ने 31 मिशन मोड परियोजनाओं और 8 घटकों के साथ राष्ट्रीय ई-शासन योजना को 18 मई 2006 को अनुमोदन दिया। सरकार ने राष्ट्रीय ई-शासन योजना की दूरदर्शिता, रणनीति, मुख्य घटकों, क्रियान्वयन कार्यविधि और प्रबंधन संरचना को मंजूरी प्रदान की है। हालांकि, राष्ट्रीय ई-शासन योजना की मंजूरी में इस योजना के तहत सभी मिशन मोड परियोजनाओं और घटकों के वित्तीय अनुमोदन शामिल नहीं किये गए हैं। मिशन मोड परियोजना वर्ग में विद्यमान और जारी परियोजनाओं का, जिनका क्रियान्वयन विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों और राज्यों के विभागों द्वारा किया जा रहा है, उपयुक्त रूप से संवर्धन और उन्नयन किया जाएगा ताकि वे सभी राष्ट्रीय ई-शासन योजना के उद्देश्यों के साथ संरेखित हो सकें।
ई-क्रांति, डिजिटल इंडिया पहल का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। देश में ई-शासन, मोबाइल शासन और सुशासन की जरूरत को ध्यान में रखते हुए तथा “गवर्नेन्स के कायाकल्प के लिए ई-गवर्नेन्स का कायाकल्प” की दृष्टि से ई-क्रांति के दृष्टिकोण और प्रमुख घटक को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 25.03.2015 को अनुमोदित किया गया है।
सभी नई और वर्तमान में जारी ई-गवर्नेंस परियोजनाओं तथा मौजूदा परियोजनाओं जिनका पुनरूत्थान किया जा रहा है, अब इन परियोजनाओं को ई-क्रांति के प्रमुख सिद्धांतों अर्थात् ‘परिवर्तन न कि रूपांतरण‘, ‘एकीकृत सेवाएं न कि व्यक्तिगत सेवाएं‘, ‘प्रत्येक एमएमपी में सरकारी प्रक्रिया में री-इंजीनियरिंग (जीपीआर) को अनिवार्य किया जाना‘, ‘मांग पर आईसीटी बुनियादी सुविधा‘, ‘डिफॉल्ट रूप से क्लाउड, ‘मोबाइल प्रथम‘, ‘फास्ट ट्रैक स्वी.ति‘, ‘मानक और प्रोटोकॉल अनिवार्य‘, ‘भाषा स्थानीयकरण‘, ‘राष्ट्रीय जीआईएस (भू-स्थानिक सूचना प्रणाली), तथा ‘सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक डेटा संरक्षण‘ के अनुरुप होना चाहिए।
ई-क्रांति के तहत 44 मिशन मोड परियोजनाएं अपने कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।
सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकीः नागरिकों को समय रहते एहतियाती उपाय करने एंव जीवन और संपत्ति के नुकसान को कम करने के लिए मोबाइल आधारित आपातकालीन सेवाएं और आपदा से संबंधित सेवाएं वास्तविक समय के आधार पर प्रदान की जाएगी।
न्याय के लिए प्रौद्योगिकीः अंतःप्रचालनीय आपराधिक न्याय प्रणाली, को कई संबंधित आवेदनों जैसे ई-न्यायालयों, ई-पुलिस, ई-जेलों और ई-अभियोजन द्वारा सुदृढ़ किया जाएगा।
वित्तीय समावेशन के लिए प्रौद्योगिकीः मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो एटीएम प्रोग्राम और सीएससीध्डाकघरों का उपयोग कर वित्तीय समावेशन को सु.ढ़ किया जाएगा।
साइबर सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकीः राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वय केन्द्र को देश के भीतर विश्वसनीय और सुरक्षित साइबर-स्पेस सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया जाएगा।
ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना
ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना देश के जिला/अधीनस्थ न्यायालयों के आईसीटी सक्रियकरण के लिए राष्ट्रीय ई-शासन परियोजना है। परियोजना का उद्देश्य है याचिकाकर्ताओं, वकीलों और न्यायपालिका को न्यायालयों के आईसीटी सक्रियकरण के माध्यम से नामोद्दिष्ट सेवाएं प्रदान करना है।
इसके प्रथम चरण में आईसीटी सक्रियकरण के लिए मूलभूत अधोसंरचना शामिल है जिसमें विभिन्न मापांक शामिल हैं, प्राथमिक रूप से - जैसे प्रत्येक न्यायालय संकुल में कंप्यूटर हार्डवेयर, स्थानीय क्षेत्र संजाल (लोकल एरिया नेटवर्क), इंटरनेट कनेक्टिविटी और मानक अनुप्रयोग सॉटवेयर अधिष्ठापन और सर्वोच्च न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों/पीठों की आईसीटी अधोसंरचना का उन्नयन। इसमें न्यायिक अधिकारियों के घरेलू कार्यालयों में लैपटॉप, लेजर प्रिंटर, ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना और उन्हें आईसीटी प्रशिक्षण प्रदान करना भी शामिल है। आईसीटी अधोसंरचना के लिए इन न्यायालय संकुलों में डीजल जनरेटर सेट और निर्बाध विद्युत आपूर्ति (यूपीएस) के माध्यम से विद्युत बैक अप भी प्रदान किया गया था। परियोजना के मुख्य घटकों के लिए 30 सितंबर 2015 तक क्रियान्वयन की स्थिति निम्नानुसार हैः
उपरोक्त के अतिरिक्त,
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की आईसीटी अधोसंरचना का उन्नयन किया गया है।
- 14,309 न्यायिक अधिकारियों को लैपटॉप प्रदान किये जा चुके हैं।
- एक मामला सूचना तंत्र सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है और सभी कम्प्यूटरीकृत न्यायालयों में तैनाती के लिए यह उपलब्ध कराया गया है।
- मामला आंकड़ों की प्रविष्टि शुरू की गई है, और इसके तहत 13,000 से अधिक न्यायालयों के 4.5 करोड़ से अधिक लंबित और निर्णय दिए जा चुके मामलों के संबंध में जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है।
- सभी कम्प्यूटरीकृत न्यायालयों में न्यायिक सेवा केंद्र स्थापित किये गए हैं।
- 14,000 से अधिक न्यायिक अधिकारियों को यूबीयूएनटीयू - लिनक्स ओएस के उपयोग की दृष्टि से प्रशिक्षित किया गया है और 4000 से अधिक न्यायालय कर्मियों को सीआईएस सॉफ्टवेयर में प्रशिक्षित किया गया है।
- वर्तमान नियमों, प्रक्रियाओं, कार्यविधियों और प्रपत्रों में सरलीकरण के अध्ययन और सुझावों के लिए सभी उच्च न्यायालयों में प्रक्रिया पुनरभियांत्रीकरण की शुरुआत की गई है।
- 500 न्यायालयों और संबंधित कारागृहों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंगः पांच जिलों में शुरू की गई पायलट परियोजनाएं पूर्ण की जा चुकी हैं और देश के अन्य भागों में बहिर्वेल्लन की प्रक्रिया जारी है।
- सेवा वितरण और राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड रू राष्ट्रीय ई-न्यायालय पोर्टल (http://www.ecourts.gov.in) क्रियाशील हो चुका है। यह पोर्टल याचिकाकर्ताओं को मामला पंजीकरण, कारणों की सूची, मामले की विद्यमान स्थिति, दैनिक आदेश, अंतिम निर्णय इत्यादि जैसी जानकारियां प्रदान करता है। वर्तमान में याचिकाकर्ता 5.5 करोड़ से भी अधिक लंबित और निर्णित मामलों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं साथ ही वे जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित 1.79 करोड से अधिक आदेश/निर्णयों की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
इस पोर्टल को ई ताल (e Tall) से जोड़ा गया है जो मिशन मोड परियोजनाओं सहित केंद्रीय और राज्य स्तर की ई-शासन परियोजनाओं के ई-लेनदेन सांख्यिकी के विकीर्णन के लिए एक वेब पोर्टल है और इस पोर्टल ने अब तक 25.49 करोड लेनदेनों को दर्ज किया है जो अन्य सभी ई-शासन परियोजनाओं में सर्वाधिक नहीं तो कम से कम शीर्ष पांच में निश्चित तौर पर है।
ई-न्यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना का द्वितीय चरण
सभी न्यायालयों के सार्वभौमिक कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से अगले आईसीटी संवर्धन को परिकल्पित करते हुए मेघ संगणना, पिछले कम से कम 20 वर्षों के मामलों के दस्तावेजों का डिजिटीकरण और ई-फाइलिंग के माध्यम से अधिवक्ताओं और याचिकाकर्ताओं को ई-सेवाओं की संवर्धित उपलब्धता, ई-भुगतान प्रवेश द्वार और मोबाइल अनुप्रयोगों इत्यादि का उपयोग, परियोजना के द्वितीय चरण को भी चार वर्षों की अवधि के दौरान 1670 करोड की लागत के अंदर मंजूरी प्रदान की गई है। यह परियोजना भारत सरकार के डिजिटल भारत कार्यक्रम के साथ संरेखित होकर कार्य करेगी।
परियोजना का द्वितीय चरण न केवल देश भर के सभी न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण पर ध्यान केंद्रित करेगा वरन यह कार्यप्रवाह प्रबंधन के स्वचालन में भी सहायक होगा जो न्यायालयों को मामलों के प्रबंधन पर अधिक नियंत्रण रखने में सहायक होगा। द्वितीय चरण के दौरान जिन सेवाओं को शामिल करने की योजना बनाई गई है, जो नागरिकों को उपलब्ध होगी, उसमें प्रत्येक न्यायालय संकुल में प्रिंटर्स सहित टच स्क्रीन आधारित कियोस्क का अधिष्ठापन, मोबाइल के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना, परिवर्तन प्रबंधन और प्रक्रिया पुनरभियांत्रीकरण के माध्यम से न्यायालयों के बेहतर निष्पादन को सुविधाजनक बनाना, सभी न्यायालय संकुलों और संबंधित कारागृहों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा का अधिष्ठापन, ई-फाइलिंग का उपयोग, ई-भुगतान और मोबाइल अनुप्रयोग और न्यायिक सेवा केंद्रों के माध्यम से सेवाओं के समग्र समुच्चय प्रदान करना भी शामिल है। साथ ही, प्रक्रिया सर्वर के लिए सहायक प्रक्रिया सेवा उपकरणों के प्रदाय के माध्यम से इस परियोजना से न्यायपालिका भी लाभान्वित हो सकती है ताकि न्यायालय सूचनाओं और सम्मन का पारदर्शी और समयबद्ध वितरण सुनिश्चित किया जा सके, न्यायालय के अधिकारियों को डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र ताकि वे अधिवक्ताओं और याचिकाकर्ताओं को प्रमाणित ई-दस्तावेज जारी करने में सक्षम हों, साथ ही न्यायिक अधिकारियों को लैपटॉप और प्रिंटर प्रदान करना। डिजिटलीकरण, दस्तावेज प्रबंधन, न्यायिक ज्ञान प्रबंधन और शिक्षा उपकरण प्रबंधन के माध्यम से इस परियोजना के तहत न्यायालय प्रबंधन तंत्र का निर्माण भी किया जाएगा। साथ ही कुछ न्यायालय संकुलों में सौर ऊर्जा के उपयोग का भी प्रस्ताव किया गया है जिससे न्यायालय पर्यावरण संरक्षण में भी सक्रिय सहायता प्रदान कर सकेंगे।
भारत सरकार के डिजिटल भारत कार्यक्रम के साथ ही, जो नागरिक केंद्रित सेवाओं पर जोर देता है, यह परियोजना सभी नागरिकों के लिए केंद्रीय उपयोगिता के रूप में डिजिटल अधोसंरचना पर भी ध्यान केंद्रित करेगी ताकि नागरिकों को मांग पर शासन और सेवाएं प्रदान की जा सकें और अंततः सभी नागरिकों को डिजिटल रूप से सशक्त किया जा सके।
शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी - ई-शिक्षा
सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ा जाएगा। सभी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में मुक्त वाईफाई प्रदान किया जाएगा (यह कवरेज तकरीबन 250,000 स्कूलों तक होगा)। डिजिटल साक्षरता पर एक राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम लाया जाएगा। ई-शिक्षा के लिए बड़े पैमाने पर ऑनलाइन ओपन पाठ्यक्रम (एमओओसीओस) का विकास और उद्यामन किया जाएगा।
हेल्थ के लिए प्रौद्योगिकी - ई-हेल्थकेयर
ई-हेल्थकेयर के अन्तर्गत ऑनलाइन चिकित्सा परामर्श, ऑनलाइन मेडिकल रिकॉर्ड, दवाओं की ऑनलाइन आपूर्ति, रोगी की जानकारी का पूरे भारत में आदान प्रदान, आदि को कवर किया जाएगा। इसे 2015 में आरम्भ किया जाएगा और पूर्ण कवरेज 3 साल में प्रदान किया जाएगा।
किसानों के लिए प्रौद्योगिकी
इससे किसानों को वास्तविक समय में कीमत की जानकारी, इनपुट का ऑनलाइन आदेश एंव ऑनलाइन कैस, ऋण और मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से राहत भुगतान प्राप्त करने में सुविधा होगी।
स्तंभ 6. सभी के लिए सूचना
ओपन डाटा प्लेटफार्म - ओपन डाटा प्लेटफार्म मंत्रालयोंध्विभागों को उपयोग, पुनरू उपयोग और पुनर्वितरण के लिए ओपन प्रारूप में डेटासेट के सक्रिय रीलीज की सुविधा देता है। सूचना और दस्तावेजों की ऑनलाइन होस्टिंग से नागरिकों को ओपन और आसानी से जानकारी प्राप्त करने की सुविधा होगी।
सरकार सोशल मीडिया के माध्यम से सक्रिय रुप से संलग्न करेगी - सरकार सोशल मीडिया और वेब आधारित प्लेटफॉर्म के माध्यम से नागरिकों को सूचित करने और उनसे बातचीत करने के लिए सक्रिय रुप से संलग्न करेगी। MyGov.in, शासन से नागरिकों को जोड़ने का प्लेटफॉर्म है, जिसे सरकार के साथ विचारोंध्सुझावों का आदान-प्रदान करने के माध्यम के रूप में, 26 जुलाई 2014 को माननीय प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया है। इसमें सुशासन के लिए नागरिकों और सरकार के बीच टू-वे संचार की सुविधा होगी।
ऑनलाइन संदेश - विशेष अवसरोंध्कार्यक्रमों पर नागरिकों को ऑनलाइन संदेश ई-मेल और एसएमएस के माध्यम से मदद की जाएगी।
ओपन डाटा प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया भागीदारी और ऑनलाइन संदेश - ओपन डाटा प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया भागीदारी और ऑनलाइन संदेश के लिए मोटे तौर पर मौजूदा बुनियादी ढांचे और सीमित अतिरिक्त संसाधनों के उपयोग की आवश्यकता होगी।
स्तंभ 7. इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण
नेट ज़ीरो आयात के असाधारण लक्ष्य को हासिल करना
इस स्तंभ आशय का एक असाधारण प्रदर्शन के रूप में 2020 तक नेट शून्य आयात के लक्ष्य के साथ देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई क्षेत्रों में समन्वित कार्यवाही की आवश्यकता है, जैसेः
- कराधान, प्रोत्साहन
- अर्थव्यवस्था का पैमाना, लागत नुकसान को कम करना
- फोकस क्षेत्र - बिग टिकट आइटम
- फैबस, फैब लेस डिजाइन, सेट टॉप बॉक्स, वीसैट, मोबाइल, उपभोक्ता और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट ऊर्जा मीटर, स्मार्ट कार्ड और माइक्रो-एटीएम।
- इन्क्यूबेटर, क्लस्टर
- कौशल विकास,पीएचडी कर रहें छात्रों को प्रोत्साहित करना।
- सरकारी खरीद
- सुरक्षा के मानक - अनिवार्य पंजीकरण, प्रयोगशालाओं और लघु उद्योगों के लिए सहायता
- राष्ट्रीय पुरस्कार, विपणन, ब्रांड बिल्डिंग
- राष्ट्रीय केंद्र - लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, सुरक्षा बल
- इलेक्ट्रॉनिक्स में आर एंड डी
वर्तमान में चल रहें कई कार्यक्रमों को ठीक से समायोजित किया जाएगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मौजूदा ढांचा अपर्याप्त हैं और इसे मजबूत बनाने की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की मांग 22 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ बढ़ती जा रही है और 2020 तक 400 अरब डालर तक पहुँचने की उम्मीद है। भारत सरकार भी इस क्षेत्र में विनिर्माण और निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है जिससे भारत का निवेश करने के लिए संभावित स्थानों की सूची में उच्च स्थान है।
इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति (एनपीई)
भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति को 2012 (एनपीई 12) में मंजूरी दी है, जो भारत में बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (ईएसडीएम) क्षेत्र में निवेश के लिए वैश्विक और घरेलू कंपनियों को आकर्षित करने के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में प्रेरित, समग्र और निवेशकों के अनुकूल बाजार उपलब्ध कराती है। यह कंपनियों को ईएसडीएम के क्षेत्र में गंतव्य के रूप में भारत पर विचार करने का अद्वितीय और दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण हब का हिस्सा बनने का अवसर देता है, साथ ही मध्यम और उच्च प्रौद्योगिकी के निर्माण में वैल्यू एडेड निर्माण को शामिल करने का भी अवसर प्रदान करता हैं।
2012 फ्रेमवर्क (एनपीई) की मजबूत नींव कि स्थापना के लिए भारत सरकार द्वारा उल्लेखनीय प्रगति की गयी है। इससे मध्यम और उच्च प्रौद्योगिकी से जुड़े मूल्यवर्धित विनिर्माण को मदद मिलेगी। भारत सरकार द्वारा की गई नीतिगत पहल के मुख्य आकर्षण में निम्नलिखित शामिल हैः
- संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (एमएसआईपी) के पूंजीगत व्यय (एसईजेड में 20 प्रतिशत) पर 25 प्रतिशत की सब्सिडी उपलब्ध है और सभी आबकारीध्सीवीडी के पूंजीगत उपकरणों पर भुगतान प्रतिपूर्ति देय है।
- इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टर योजना, बुनियादी ढांचे के विकास एंव ग्रीनफील्ड कलस्टर (इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण बिंदु से अविकसित या अविकसित क्षेत्र) में आम सुविधाओं के लिए 50 प्रतिशत और ब्राउन कलस्टर (क्षेत्र जहां, मौजूदा ईएमसी की महत्वपूर्ण संख्या मौजूद है) की लागत का 75 प्रतिशत प्रदान करती है। नए इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण कलस्टरों के लिए भूमि भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है। वर्तमान में लगभग 30 इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टर अधिसूचित हैं और भारत सरकार ने 2020 तक 200 इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टरों के निर्माण का लक्ष्य लक्षित किया है।
- सरकारी खरीद में घरेलू स्तर पर निर्मित वस्तुओं को वरीयता। सरकारी खरीद में इसकी हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से कम नहीं होगी। लगभग 30 इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को पहले ही इस योजना के तहत अधिसूचित किया गया हैं।
- घरेलू स्तर पर निर्मित सेट टॉप बॉक्स और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात, विदेश व्यापार नीति के तहत फोकस प्रोडक्ट स्कीम में 2-5 प्रतिशत प्रोत्साहन के योग्य हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईपी जनरेशन में स्टार्ट-अप के समर्थन विचाराधीन है, इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और नवाचार के लिए इलेक्ट्रॉनिक विकास फंड सक्रिय कर दिया गया है।
- विभाग द्वारा देश में दो अर्धचालक वफर फैब्रीकेशन (फैब) विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना को मंजूरी दी गई है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी में अधिक से अधिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा उद्योग की विशिष्ट आवश्यकताओं के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए देश के विश्वविद्यालयों में पीएचडी छात्रों को सहायता निधि दी जाएगी। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटीध्आईटीईएस के क्षेत्र में इस कार्यक्रम के माध्यम से 3000 पीएचडी छात्र तैयार किये जाएगें।
- दो सेक्टर कौशल परिषद् - दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक्स के माध्यम से निजी क्षेत्र के लिए कौशल विकास का अवसर प्रदान करना। इस योजना के तहत भारत सरकार कौशल विकास को समर्थन प्रदान करने के लिए कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों के उद्योग विशेष कौशल प्रशिक्षण के लागत का 75 प्रतिशत से 100 प्रतिशत प्रदान करती है।
- अनिवार्य मानक व्यवस्था के तहत प्रयोगशाला परीक्षण के बुनियादी ढांचे में निवेश के अवसर को बल मिलेगा।
- आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सहित कई राज्य सरकारों ने पहले ही अपनी राज्य इलेक्ट्रॉनिक नीतियों में पूरक प्रोत्साहनों की घोषणा कर दी है। इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टर की घोषणा मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब और केरल राज्यों द्वारा की गई है। अन्य राज्य भी इसी तरह की पहल करने की प्रक्रिया कर रहे हैं, जिससे ईएसडीएम निवेशकों को प्रोत्साहन और सुविधा उपलब्ध हो सके।
- इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (ईएसडीएम) के क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों (एमएसएमई) की पहचान करने और प्रेरित करने के लिए, भारत सरकार (जीओआई) ने एक राष्ट्रीय योजना कि घोषणा की है। इस योजना का उद्देश्य भारतीय विनिर्माण में गुणवत्ता का निर्माण करने के साथ ही निर्यातकों को प्रोत्साहित करना और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत एमएसएमई में निर्माताओं को प्रतिपूर्ति के रूप में समर्थन प्रदान किया जाएगा। अनुदान में सहायता के रूप में वित्तीय सहायता द्वारा इस योजना से इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में निर्माताओं, घरेलू उद्योग, निर्यातकों को फायदा होने की उम्मीद है। इसके साथ ही यह योजना मध्यम और उच्च प्रौद्योगिकी से जुड़े विनिर्माण को आकर्षित करने में मदद करेगी। योजना निम्नलिखित गतिविधियों के लिए जीआईए प्रदान करेगीः
- डीईआईटीवाई द्वारा अधिसूचित ‘‘भारतीय मानक‘‘ के साथ इलेक्ट्रॉनिक सामान के अनुपालन से संबंधित व्यय की प्रतिपूर्ति। एक मॉडल के लिए कुल जीआईए एक लाख तक सीमित है, केवल 200 मॉडलों (अधिकतम) के लिए।
- निर्यात के लिए परीक्षण और प्रमाणन के व्यय की प्रतिपूर्ति जरूरी है। योजना के तहत एक मॉडल के लिए कुल जीआईए 1.25 लाख है, 800 मॉडल (अधिकतम)।
- नैदानिक अध्ययन, साट हस्तक्षेप और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट आदि तैयार करने के लिए एमएसएमई द्वारा इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण कलस्टरों का विकास। योजना के तहत कलस्टर विकास के लिए उपलब्ध कुल जीआईए 10 लाखध्क्लस्टर (अधिकतम) जो 20 क्लस्टरों की स्थापना के लिए उपलब्ध होगा।
यह सभी प्रोत्साहन इलेक्ट्रॉनिक्स डिजाइन और विनिर्माण इकाई के लिए उपलब्ध हैं। यह सभी प्रोत्साहन विदेश से विनिर्माण संयंत्र के स्थानांतरण पर भी उपलब्ध है। इन क्षेत्रों में सेमीकंडक्टर फैब, दूरसंचार उत्पाद, एलईडी फैब एंव उत्पाद, ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर एटीएमपीएस, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरण, स्मार्टफोन और टैबलेट्स सहित हैण्ड-हेल्ड उपकरण, सामरिक इलेक्ट्रॉनिक्स, ईएमसी, हवाई जहाज और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स आदि शामिल हैं। उत्पाद आधारित आर एंड डी के व्यय को भी एमएसआईपीएस के तहत शामिल किया गया है।
इन नीतियों के विवरण के लिए विभाग की वेबसाइटः www.deity.gov.in/esdm पर जाया जा सकता है।
स्तंभ 8. रोजगार हेतु आईटी
इस स्तंभ का ध्यान आईटीध्आईटीईएस के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान कराने पर केंद्रित है। इस स्तंभ के तहत आठ घटक है जिनकी गतिविधियों में विशिष्ट स्कोप हैः
- छोटे कस्बों और गांवों के लोगों के लिए आईटी प्रशिक्षण
- इस घटक का लक्ष्य 5 वर्षों में आईटी क्षेत्र की नौकरियों के लिए छोटे शहरों और गांवों के एक करोड़ छात्रों को प्रशिक्षित करना है। डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल विभाग है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में आईटी/आईटीईएस
- इस घटक का लक्ष्य राज्यों में आईसीटी सक्षम वृद्धि की सुविधा के लिए हर उत्तर-पूर्वी राज्य में बीपीओ की स्थापना पर केंद्रित है। डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल विभाग है।
- प्रशिक्षण सेवा डिलिवरी एजेंट
- व्यवहार्य रूप में बिजनेस डिलिवरी और आईटी सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए तीन लाख सेवा डिलिवरी एजेंटों के प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित है। डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल विभाग है।
- टेलीकॉम और दूरसंचार से संबंधित सेवाओं पर ग्रामीण श्रमिकों का प्रशिक्षण।
- इस घटक का ध्यान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पांच लाख ग्रामीण श्रमिकों को दूरसंचार सेवा प्रदाता (टीएसपीएस) के प्रशिक्षण पर केंद्रित है। दूरसंचार विभाग (डीओटी) इस योजना के लिए नोडल विभाग है।
उत्तर पूर्व बीपीओ संवर्धन योजना (एनईबीपीएस)
भारतीय बीपीओ उद्योग में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है और भारत धीरे-धीरे विश्व स्तर पर बीपीओ के प्रमुख निर्दिष्ट स्थान के रूप में उभरा है। परिचालन लागत प्रभावशीलता, कुशल मानव शक्ति और रोजगार के अवसरों के लिए बढ़ती मांग सहित कई अन्य कारकों ने देश में बीपीओ उद्योग के तीव्र विकास में योगदान दिया है। हालांकि, जहां पूर्वोत्तर क्षेत्रों सहित देश के विभिन्न भागों से कुशल जनशक्ति रोजगार की तलाश में आती है वहाँ बीपीओ उद्योग का ध्यान काफी हद तक और बड़े (टीयर-I) शहरों के आसपास केंद्रित है।
बड़े (टीयर-I) शहरों में, कंपनी के लिए आवर्ती जनशक्ति लागत विशेष रूप से कर्मचारियों के आवास और बड़ी दूरी की यात्रा पर अपेक्षा.त उच्च लागत को ध्यान में रखते हुए अधिक हो जाती है। इसीलिए, बीपीओ कंपनी द्वारा अधिक जनशक्ति व्यय से संबंधित खर्च को कम करने और कंपनी के परिचालन को अधिक लाभदायक बनाने के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र के छोटे (टीयर- II/III) शहरों की ओर पलायन करना समझदारी होगी। पूर्वोत्तर में बीपीओ की स्थापना के लिए प्रमुख मुद्दा इन क्षेत्रों में विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी और बिजली की आपूर्ति से संबंधित हैं।
स्तंभ 9. शीघ्र कटाई कार्यक्रम
शीघ्र कटाई कार्यक्रम में मूल रूप से उन परियोजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा हैं जिन्हें कम समय के भीतर लागू किया जाना है।
संदेशों के लिए आईटी प्लेटफार्मः मास मैसेजिंग एप्लिकेशन को डीईआईटीवाई द्वारा विकसित किया गया है, जिसके तहत निर्वाचित प्रतिनिधियों और सभी सरकारी कर्मचारियों को कवर किया जाएगा। 1.36 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन और 22 लाख ई-मेल इस डेटाबेस का हिस्सा हैं। इस पोर्टल को 15 अगस्त 2014 को जारी किया गया। डेटा संग्रह और डेटा छटाई की प्रक्रियाएं चल रही हैं।
सरकारी शुभकामनाएं ई-शुभकामनाओं के रूप में होंगीः ई-शुभकामना टेम्पलेट्स उपलब्ध कराये गये है। मेरी सरकार मंच के माध्यम से ई-शुभकामनाओं की समूह सोर्सिंग को सुनिश्चित किया गया है। समूह सोर्सिंग को स्वतंत्रता दिवस, शिक्षक दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर ई-ग्रीटिंग्स डिजाइन बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। ई-ग्रीटिंग्स पोर्टल को 14 अगस्त 2014 को लाइव किया गया।
बॉयोमैट्रिक उपस्थितिः इसके साथ दिल्ली में केन्द्र सरकार के सभी कार्यालयों को कवर किया जाएगा। 150 संगठनों के 40,000 से अधिक सरकारी कर्मचारियों को पहले ही काँमन बॉयोमैट्रिक उपस्थिति पोर्टल http://attendance.gov.in (लिंक बाहरी है) पर पंजीकृत किया है। 1000 से अधिक बायोमेट्रिक उपस्थिति टर्मिनलों को वाई-फाई एसेस प्वाइंट और मोबाइल कनेक्टिविटी के साथ जोड़ा जाएगा, जो विभिन्न केन्द्रीय सरकार के भवनों के प्रवेश गेटवे पर स्थापना के अधीन हैं। सरकारी कर्मचारी दिल्ली में केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में से किसी से अपनी उपस्थिति चिह्नित करने में सक्षम हो जाएगे।
सभी विश्वविद्यालयों में वाई-फाईः राष्ट्रीय सूचना नेटवर्क (एनकेएन) पर सभी विश्वविद्यालयों को इस योजना के तहत कवर किया जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) इस योजना को लागू करने के लिए नोडल मंत्रालय है।
सरकार के भीतर सुरक्षित ई-मेलः ई-मेल सरकार के भीतर संचार का प्राथमिक मोड होगा। सरकारी ई-मेल की अवसंरचना को बढ़ाया और उन्नत किया जाएगा। 10 लाख कर्मचारियों के लिए पहले चरण के तहत बुनियादी ढांचे के उन्नयन को पहले ही पूरा कर लिया गया है। दूसरे चरण के तहत, अवसंरचना को 98 करोड़ रु. की लागत से मार्च, 2015 तक 50 लाख कर्मचारियों को कवर करने के लिए उन्नत किया जाएगा। डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल विभाग है।
सरकारी ई-मेल डिजाइन का मानकीकरणः सरकारी ई-मेल के लिए मानकी.त टेम्पलेट्स तैयार रहना होगा। इसे डीईआईटीवाई द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
सार्वजनिक वाई-फाई हाँटस्पाँटः 1 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों और पर्यटन केंद्रों में डिजिटल शहरों को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक वाई-फाई हाँटस्पाँट उपलब्ध कराया जाएगा। योजना को डीओटी और शहरी विकास मंत्रालय (एमओयूडी) द्वारा लागू किया जाएगा।
विद्यालयी पुस्तकों की ई-पुस्तकों के रूप में उपलब्धताः सभी किताबों को ई-बुक में परिवर्तित किया जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालयध् डीईआईटीवाई इस योजना के लिए नोडल एजेंसियाँ हैं।
एसएमएस आधारित मौसम की जानकारी, आपदा अलर्टः एसएमएस आधारित मौसम की जानकारी और आपदा अलर्ट मुहैया कराई जाएगी। डीईआईटीवाई की मोबाइल सेवा प्लेटफार्म को इसी उद्देश्य के लिए उपलब्ध कराया गया है। भू-विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) (भारतीय मौसम विभाग - आईएमडी)/गृह मंत्रालय (एमएचए) (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण - एनडीएमए) इस योजना को लागू करने के लिए नोडल संगठन होगें।
खोया और पाया बच्चों के लिए राष्ट्रीय पोर्टलः इसमें खोया और पाया बच्चों पर वास्तविक समय की जानकारी एकत्र करने एंव साझा करने में सुविधा होगी, इसे अपराध की जांच और समय पर प्रतिक्रिया में सुधार करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा। पोर्टल को निम्नलिखित विशेषताओं के साथ री-डिजाइन किया जा रहा हैः
- मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से नागरिकों की भागीदारी बढ़ाना।
- पुलिस (बाल कल्याण अधिकारी) के लिए मोबाइलध्एसएमएस अलर्ट सिस्टम।
- नागरिकों के लिए बेहतर नेविगेशन योजना।
- चाइल्ड सेवाओं को एकी.त करने के लिए सुविधा।
- प्रणाली/वेब पोर्टल को लोकप्रिय बनाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग।
- डीईआईटीवाई और महिला एवं बाल विकास विभाग (डीओडब्लूसीडी) इस परियोजना के लिए नोडल विभाग हैं।
- Citizens can access their digital documents anytime, anywhere and share it online. This is convenient and time saving.
- It reduces the administrative overhead of Government departments by minimizing the use of paper.
- Digital Locker makes it easier to validate the authenticity of documents as they are issued directly by the registered issuers.
- Self-uploaded documents can be digitally signed using the eSign facility (which is similar to the process of self-attestation).
- Collection, analysis and dissemination of information on cyber incidents
- Forecast and alerts of cyber security incidents
- Emergency measures for handling cyber security incidents
- Coordination of cyber incident response activities
- Issue guidelines, advisories, vulnerability notes and whitepapers relating to information security practices, procedures, prevention, response and reporting of cyber incidents Website.http://www.cert-in.org.in/
- Direct access by Citizens through e-District portal as a registered user.
- Existing Atal Jana Snehi Kendra's / B1 / K1 service centres.
- Common Service Centres (To be established upto Grama Panchayat Level). Website.https://edistrict.gov.in/
- PMIS is an integrated information system
- PMIS offers information on cost, time and performance parameters of a project
- PMIS is decision oriented
- PMIS is capable of providing exception reports Website.http://pmis.negd.gov.in/
- Creation of employment opportunities for the local youth in NER, by promoting the IT/ITES Industry particularly by setting up the BPO/ITES operations.
- Promotion of investment in IT/ITES Sector in NER in order to expand the base of IT Industry and secure balanced regional growth.
- To provide a platform for maintaining code repositories and version control for government source code
- To promote a culture of open collaborative application development between public agencies and private organizations, citizens and institutions
- To reduce development cycles and fasten the rollout of e-governance applications in the country
- To deliver e-governance services and solutions of higher quality and security through increased transparency and mass peer review
- To reduce e-governance project cost and bring down total cost of ownership through a system of reuse, remixing and sharing
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