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भारत में नैनोप्रोद्यौगिकी
1.0 प्रस्तावना
नैनो-विज्ञान और नैनो-प्रौद्योगिकी के पीछे के विचार और संकल्पनाएं नैनो-प्रौद्योगिकी शब्द के उपयोग से काफी पहले भौतिकशास्त्री रिचर्ड फेनमैन द्वारा 29 दिसंबर 1959 को कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान में अमेरिकी भौतिक समाज की बैठक में ‘‘तल में पर्याप्त स्थान उपलब्ध है‘‘ (”There’s Plenty of Room at the Bottom”) शीर्षक वाले भाषण से शुरू हुई। अपने भाषण में फेनमैन ने एक प्रक्रिया का वर्णन किया जिसमें वैज्ञानिक व्यक्तिगत परमाणुओं और अणुओं में हेराफेरी करने और उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम होंगे। इसके एक दशक से अधिक समय के बाद अपनी अति परिशुद्धता मशीनीकरण की खोजों में प्रोफेसर नोरिओ तनिगुची ने नैनो प्रौद्योगिकी शब्द का गठन किया। 1981 तक क्रमवीक्षण सुरंगन के विकास के साथ, जो व्यक्तिगत परमाणुओं को ‘‘देख‘‘ सकती थी, आधुनिक नैनो-प्रौद्योगिकी की शुरुआत नहीं हो पाई थी।
प्राथमिक रूप से नैनो-प्रौद्योगिकी का संबंध लगभग 100 एन.एम. और उससे नीचे के आयामों पर पदार्थ को समझने और उसे नियंत्रित करने से है। इसका अनुप्रयोग क्षेत्र-पार और अभिविन्यास अंतर्विषयक है। इस पैमाने पर पदार्थों के भौतिक, रासायनिक और जीववैज्ञानिक गुण व्यक्तिगत परमाणुओं और अणुओं या थोक पदार्थ से भिन्न होते हैं, जो अद्भुत अनुप्रयोग सक्षम बनाते हैं। नैनो प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास सुधारित पदार्थों, उपकरणों और प्रणालियों को समझने और उनके निर्माण की दिशा में निर्देशित हैं, जो खोज और चित्रीकरण के साथ ही इन गुणों का दोहन करते हैं।
2.0 नैनो-प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग
नैनो-प्रौद्योगिकी के अनेक अनुप्रयोग हैं, जैसे औषधि, रसायनशास्त्र और पर्यावरण, ऊर्जा, कृषि, सूचना और दूरसंचार, भारी उद्योग और उपभोक्ता वस्तुओं क्षेत्रों में। इस प्रौद्योगिकी की कथित क्षमता ने विश्व भर के विकसित और विकासशील, दोनों प्रकार के देशों का ध्यान आकर्षित किया है। अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिष्ठान (एनएसएफ) ने इसे छह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है; यह यूरोपीय संघ के यूरोप के अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकीय विकास की रूपरेखाओं की विषयवस्तुओं में से एक है; और यह विश्व भर के देशों में अनुसंधान का केंद्रबिंदु रही है। वैश्विक स्तर पर निवेश किये गए हैं, नैनो प्रौद्योगिकी कार्यक्रम शुरू किये गए हैं, और अनुसंधान और विकास हुआ है। ऐसा देखा गया है कि नैनो प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास प्रयासों में अमेरिका, जापान और जर्मनी का वर्चस्व है जहां विशिष्ट देशों के केंद्रबिंदु उनकी अपनी विशेषज्ञताएं और आवश्यकताएं हैं। वैश्विक स्तर पर नैनो प्रौद्योगिकी विकासों पर सरकारों और निजी कंपनियों के व्ययों में काफी वृद्धि हुई है।
नैनो प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास पर 2007 के कुल वैश्विक व्यय (सार्वजनिक और निजी) में 2006 के व्यय की तुलना में 23 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई और यह बढ़ कर 6.6 बिलियन डॉलर हो गया, और पहली बार इस व्यय ने सरकारी व्यय को पार किया था।
वाणिज्यिक दृष्टि से नैनो प्रौद्योगिकी पदार्थों और विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और स्वास्थ्य सेवाओं, और जीवन विज्ञानों को मुख्य रूप से प्रभावित करती है। उभरती नैनो प्रौद्योगिकियों पर विद्वानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की परियोजना वुड्रो विल्सन के अनुसार 1000 से अधिक कंपनियों द्वारा चिन्हित नैनो प्रौद्योगिकी उत्पाद बाजार में हैं, जिनमें से अधिकांश उत्पाद अमेरिका में स्थित कंपनियों द्वारा उत्पादित किये जा रहे हैं। नैनो प्रौद्योगिकी उत्पादों का वर्गीकरण स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती उत्पादों (सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र, व्यक्तिगत रखरखाव और खेल उपकरण) के क्षेत्रों में संकेंद्रण को दर्शाता है। उत्पाद वर्गीकरण का विश्लेषण दर्शाता है कि नैनो-प्रौद्योगिकी मुख्य रूप से उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योगों को प्रभावित करती है। लक्स अनुसंधान द्वारा किये गए अनुमान दर्शाते हैं कि नैनो प्रौद्योगिकी जनित राजस्व 2014 में अनुमानित वैश्विक विनिर्माण उत्पादन (2.6 ट्रिलियन डॉलर) के 15 प्रतिशत को प्राप्त कर लेंगे, जो 2006 में केवल 0.1 प्रतिशत (50 बिलियन डॉलर) थे।
3.0 भारत में की गई नैनो-प्रौद्योगिकी पहलें
2001 में भारत सरकार ने नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल को नियुक्तवद स्वरुप कार्यक्रम के रूप में शुरू किया जिसके लिए लगभग 6 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग केंद्रीय अभिकरण के रूप में कार्य करता रहा है। इस पहल को अब नैनो मिशन कहा जाता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (योजना अवधि 2007-12) का नियोजित बजट 193 बिलियन रुपये रखा गया था। सी.एन.आर. राव और भूतपूर्व भारतीय राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने नैनो प्रौद्योगिकी के लिए यह सघन सरकारी समर्थन जुटाने के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसके लिए मुख्य प्रेरक बल इस प्रौद्योगिकीय लहर के अग्रणी भाग पर रहने की इच्छाशक्ति रही है, ताकि कहीं ‘‘गाड़ी छूट ना जाये‘‘ शुरू से ही सरकार की प्राथमिकता नैनो विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी के विकास के लिए एक मजबूत संस्थागत आधार, सहायता और कौशलपूर्ण मानवशक्ति निर्माण करने की रही है। इन दिशाओं की ओर एक कदम है उत्कृष्टता केन्द्रों की एक श्रृंखला का निर्माण। नैनो मिशन के तहत एक बहिर्गामी दृष्टि वाला केंद्रबिंदु अपनाया गया है, जिसका अधिक जोर अनुप्रयोगों पर है। सार्वजानिक-निजी भगीदारियों पर अधिक ध्यान दिया गया है, और नैनो मिशन संगठनों में उद्योग जगत के सदस्यों को भी शामिल किया गया था, जिनपर पूर्व में सार्वजनिक अनुसंधान संस्थाओं के वैज्ञानिकों का वर्चस्व था।
3.1 भारत में नैनो प्रौद्योगिकी के लिए संस्थागत आधार
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा उत्कृष्टता केंद्रों के निर्माण के बाद अन्य अनेक सरकारी अभिकरण भी इसमें शामिल हो गए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने नैनो प्रौद्योगिकी के लिए विशिष्ट कार्यक्रम समर्पित किये हैं और जैवप्रौद्योगिकी विभाग, परमाणु ऊर्जा विभाग और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भी नैनो प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों के लिए वित्तपोषण करते रहे हैं। द्विपक्षीय नैनो प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों के लिए भारत ने यूरोपीय संघ, जर्मनी, इटली, ताइवान और अमेरिका के साथ समझौते भी किये हैं। इसके दृश्य परिणामों में हैं 2004 में अमेरिका, जर्मनी, जापान, रूस और यूक्रेन के सहयोग से निर्मित राष्ट्रीय नैनो सामग्री केंद्र। अप्रैल 2008 में भारतीय योजना आयोग ने सिफारिश की थी कि कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने की दृष्टि से नैनो प्रौद्योगिकी को निवेश के छह क्षेत्रों में से एक बनाया जाए। कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने भी नैनो प्रौद्योगिकी विकास की सहायता करने की पहलें की हैं।
भारतीय उद्योग क्षेत्र नैनो प्रौद्योगिकी की क्षमताओं और संभावनाओं के प्रति अपेक्षाकृत देर से जागा परंतु उनकी सहभागिता धीरे-धीरे बढ़ रही है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने नैनो प्रौद्योगिकी में उद्योगों की सहभागिता बढ़ाने की पहल की है। अनुमान है कि टाटा स्टील, टाटा केमिकल्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, निकोलस पिरामल और इंटेल जैसी कंपनियों ने नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास में 1.2 बिलियन रुपये से भी अधिक का निवेश किया है। भारत के दो विशाल उद्योगों, रिलायंस और टाटा केमिकल्स ने पुणे में नैनो प्रौद्योगिकी अनुसन्धान और विकास केंद्रों की स्थापना की है।
हालांकि इस क्षेत्र में सामाजिक खिलाड़ी लगभग अनुपस्थित हैं, फिर भी 2007 में एक गैर-सरकारी संगठन परिदृश्य पर उभरकर आया है। कनाड़ा के अंतर्राष्ट्रीय विकास अनुसंधान केंद्र द्वारा वित्तपोषित ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) ने नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गतिविधियों की एक श्रृंखला शुरू की है। बड़ी संख्या में प्रकाशनों और कार्यशालाओं के माध्यम से उन्होंने शासन, आविष विज्ञान और क्षमता निर्माण जैसे मुद्दों पर ध्यान आकृष्ट किया है।
3.2 नियामक रूपरेखा
भारत में अभी भी नैनो-प्रौद्योगिकी के लिए एक नियामक तंत्र का अभाव है। जोखिम संबंधी क्षेत्रों का एक बड़ा वर्ग पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के जिम्मेदारी क्षेत्र के तहत आता है परंतु मंत्रालय का कोई भी अधिनियम और कानून नैनो कणों को स्पष्ट रूप से संभावित खतरनाक के रूप में चिन्हित नहीं करता।
भारतीय आविष अनुसंधान विज्ञान संस्थान और राष्ट्रीय औषधि शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान ने नैनो-प्रौद्योगिकी के पर्यावरणीय स्वास्थ्य और सुरक्षा के पहलुओं पर अध्ययन आयोजित किये थे। इन संस्थाओं के साथ ही पिछले दशक के अंत तक टेरी (TERI) ही ऐसा एकमात्र संस्थान था जिसने नैनो प्रौद्योगिकी से संबंधित पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और सुरक्षा के मुद्दों, और नैतिक, न्यायिक और सामाजिक मुद्दों पर अधिक ध्यान आकृष्ट किया था।
जहां तक मानकीकरण का प्रश्न है, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने मानकीकरण पर अंतर्राष्ट्रीय संगठन के नैनो-प्रौद्योगिकी मानकों की तकनीकी समिति में सहभागिता के निमंत्रण को स्वीकारा था। इसके परिणामस्वरूप इस दृष्टि से अनेक अध्ययन किये गए हैं पर उनकी प्रगति अभी तक अस्पष्ट है।
नैनो-प्रौद्योगिकी जैसी पूंजी सघन प्रौद्योगिकी के विकास की मांगों की पूर्ति के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी बढ़ाने पर विशेष और स्पष्ट जोर है। नैनो मिशन अपने एक उद्देश्य के रूप में यह निर्धारित करता है कि ‘‘औद्योगिक क्षेत्र को नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास में शामिल करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से या सार्वजनिक-निजी भागीदारी उद्यमों के माध्यम से विशेष प्रयास किये जायेंगे।‘‘ मिशन के तहत शुरू की गई छह सार्वजनिक-निजी भगीदारियों में से तीन भगीदारियां औषधि क्षेत्र में हैं। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) का प्रमुख कार्यक्रम ‘‘नई सहस्त्राब्दी भारतीय प्रौद्योगिकी नेतृत्व पहल (एनएमआईटीएलआई)’’, भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक निजी भागीदारी योजना के पास भी कुछ नैनो परियोजनाएं हैं और सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, ताकि सार्वजनिक वित्तपोषण द्वारा किये जा रहे अनुसंधान और विकास में उद्योग को भी शामिल किया जा सके। योजना आयोग द्वारा किये गए एक अध्ययन में भी मांग की गई है कि राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान व्यवस्था के तहत एक राष्ट्रीय कृषि नैनो प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएनए) का निर्माण किया जाए।
3.3 वित्तपोषण
भारत में नैनो प्रौद्योगिकी के लिए वित्तपोषण पर मुख्य रूप से दो आधारों पर बहस होती है; वित्तपोषण की राशि और वित्तपोषण के तरीकों पर चिंताएं। जबकि कुछ लोग नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास के लिए उपलब्ध धनराशि से संतुष्ट हैं वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि निवेश की गई धनराशि पर्याप्त नहीं है। दूसरी ओर जो लोग वित्तपोषण के स्तर से संतुष्ट हैं वे सरकार के निवेश की प्रशंसा करते हैं और मानते हैं कि इस क्षेत्र में होने वाले वित्तपोषण का स्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में अनुसंधान पर हो रहे वित्तपोषण की तुलना में काफी उच्च है। दूसरी ओर इसके आलोचक प्रति व्यक्ति अल्प वित्तपोषण और वित्तपोषण पहलों के सीमित समुच्चय और भारतीय उद्योग की नैनो प्रौद्योगिकी में निवेश के प्रति उदासीनता की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं। साथ ही आलोचकों का यह भी तर्क है कि कुछ अन्य देशों की तुलना में भारत के निवेश ‘‘सागर में बूँद के समान‘‘ हैं। यह चर्चा नैनो मिशन शुरू होने से पहले ही शुरू हो गई थी परंतु पर्याप्त निवेश पहलों के बावजूद भी यह चर्चा जारी रही। कुछ चर्चाएं उद्यम पूंजी उपलब्धता पर भी केंद्रित रही हैं। कथित रूप से जो कुछ निवेशक भारतीय बाजारों में देखे जा सकते हैं, वे भी केवल तैयार उत्पादों में ही रूचि रखने वाले हैं, और उनकी रूचि उन कंपनियों में ही है जिन्होंने उद्यम वित्तपोषण के चरण को पार कर लिया है।
वित्तपोषण के स्तर के विषय में इन भिन्न-भिन्न विचारों से जुड़ी हुई कुछ चिंताएं निवेश के तरीकों से भी संबंधित हैं, विशेष रूप से स्पष्ट विकास रणनीति के अभाव के संबंध में। समय-समय पर विभिन्न लोगों ने ऐसी रणनीति की मांग की है जो वर्तमान योजनाओं की तुलना में अधिक पारदर्शी और विस्तृत हों। अनेक वैज्ञानिकों से जब नैनो प्रौद्योगिकी को बढ़ाने के उपयोग के विषय में पूछा गया तो उनकी सिफारिशें थीं कि .... नैनो प्रौद्योगिकी के उपयोग के विभिन्न क्षेत्रों में भारत की दृष्टि से प्रासंगिक (उदाहरणार्थ, ऊर्जा क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, इत्यादि क्षेत्रों में इसका अनुप्रयोग) एक स्पष्ट सरकारी नीति निर्धारित की जानी चाहिए।
लाभों के वितरण पर परस्पर विरोधी विचारों पर प्रतिक्रिया देते हुए अनेक भारतीय प्रवासी वैज्ञानिकों ने सिफारिश की है कि भारत को बुनियादी अनुसंधान पर जातिगत निवेश करने के बजाय सामरिक क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित करना चाहिए। टेरी ने अधिक विस्तृत वितरण योग्य उद्देश्यों वाले मानचित्र के निर्माण की सिफारिश की है।
3.4 क्षमता
भारत में नैनो प्रौद्योगिकी के विषय में बार-बार उठने वाली चर्चा का एक और मुद्दा है भारत की नैनो प्रौद्योगिकी में सफल होने की क्षमता का मुद्दा। यहां भी हमें परस्पर विरोधी स्थिति दिखाई देती है। विशेष रूप से वैज्ञानिक कार्यशक्ति की क्षमता के संदर्भ में जो कुछ विचार व्यक्त किये गए हैं, उनसे अधिक परस्पर विरोधी विचार शायद ही देखने को मिलें। अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत में ‘‘प्रतिभा की अति’’ की स्थिति है, अतः वह नैनो प्रौद्योगिकी से ‘‘लाभ प्राप्त करने की ओर अग्रसर‘‘ (सेन 2008) है, जबकि उसी समय अन्य वैज्ञानिकों का मत है कि इस क्षेत्र में तकनीकी मानवशक्ति एक प्रमुख बाधा है। शीघ्र ही यह बहस शिक्षा के मुद्दों पर आकर संकुचित हो जाती है। हालांकि भारत के नैनो प्रौद्योगिकी उद्योग के भविष्य के लिए इसके वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी को केवल शिक्षित करना, उनकी भर्ती करना और उनका निरंतर समर्थन करना न केवल महत्वपूर्ण है बल्कि यह अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य भी है।
3.5 वाणिज्यीकरण और विज्ञान-उद्योग के साथ जुड़ाव
नैनो प्रौद्योगिकी उत्पादों का वाणिज्यीकरण और विज्ञान और उद्योग के बीच का जुड़ाव शायद ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें अक्सर संबोधित किया जाता है। फिर भी भारत के (तत्कालीन) राष्ट्रपति ने बार-बार नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विज्ञान को उद्योगों के साथ जोड़ने के मुद्दे को संबोधित किया है।
हालांकि नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शामिल अनेक उद्योग हैं, फिर भी अक्सर यह सुझाव दिया जाता है कि उत्पादों की मात्रा विशाल आकांक्षाओं या किये गए निवेशों के अनुरूप नहीं है। क्षमता और वित्तपोषण के मुद्दों के विपरीत, जहां चर्चाएं इस विषय पर केंद्रित होती हैं कि क्या क्षमता और वित्तपोषण का तथाकथित अभाव वास्तविक है, वाणिज्यीकरण के मामले में इस बात पर लगभग आमसहमति प्रतीत होती है कि वाणिज्यीकरण वास्तव में एक बड़ी समस्या है।
अधिक स्पष्ट रूप से, वाणिज्यीकरण के विषय में चर्चाएं अक्सर विज्ञान और उद्योग के बीच के जुड़ाव पर केंद्रित होती हैं, तर्क यह दिया जाता है किः भारत का विस्तृत होता नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान वैज्ञानिक संस्थानों और उद्योग के बीच के कमजोर जुड़ाव के कारण बाजार उन्मुख उत्पादों में परिवर्तित नहीं हो पाता। इसका दोष कंपनियों और वैज्ञानिकों, दोनों पर है।
3.6 जोखिमों का विनियमन
भारत में लंबे समय तक केवल लाभों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा खतरों का विनियमन काफी अरसे बाद चर्चा के विषय के रूप में शामिल हुआ, जबकि नैनो प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास में शामिल अन्य अनेक देशों में जोखिम का मुद्दा ध्यानाकर्षण का मुद्दा पहले ही बन चुका था। जैसे कि टेरी के दो कर्मचारियों, श्रीवास्तव और चौधरी का कहना है ..... वर्तमान संस्थागत और नीतिगत रूपरेखा का संपूर्ण अभिविन्यास प्रौद्योगिकी विकास और उद्योगों द्वारा उसे स्वीकार करने के सशक्तिकरण की दिशा में है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि पर्यावरणीय, स्वास्थ्य, सुरक्षा और नैतिक आयामों से संबंधित नियामक पहलुओं को बडे़ पैमाने पर नजरअंदाज किया गया है।
फिर भी 1995 के बाद से नैनो प्रौद्योगिकी के संभावित खतरे बडे स्तर पर चर्चा के मुद्दे बने, जिनके लिए कुछ हद तक टेरी के प्रयास कारण रहे हैं। रिपोर्ट्स, लेखों और समाचारों की एक श्रृंखला के माध्यम से टेरी ने लगातार भारतीय संदर्भ में नैनो प्रौद्योगिकी के पर्यावरण, और मानव स्वास्थ्य को होने वाले संभावित खतरों को चर्चायोग्य मुद्दे बनाने के विषय को संबोधित किया है। इसके कुछ वर्ष पहले भारतीय आविष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के विषविज्ञानियों के एक समूह ने नैनो प्रौद्योगिकी के खतरों की खोज करना प्रारंभ कर दिया था, जिसके लिए कुछ हद तक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वित्तपोषण किया था और कुछ हद तक यूरोपीय रूपरेखा कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तपोषण प्राप्त किया गया था। 2000 के दशक के अंत तक इसके खतरों को मजबूती से विषयसूची पर रख दिया गया था।
संभावित खतरों के विषय में लगभग संपूर्ण चर्चा अन्य रूप से नियामक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती है। परंतु उद्योग के लिए विनियमन को नैनो प्रौद्योगिकी विकास की एक संभावित बाधा के रूप में देखा जाता है। शायद चिंता विशेष रूप से इस बात को लेकर अधिक होती है कि विनियमन प्रौद्योगिकी विकास की गति को धीमी कर देते हैं, उद्योगों के अनुसंधानकर्ताओं की मांग है कि नियामक प्राधिकरणों की ओर से मंजूरियां अधिक तेजी से मिलनी चाहियें, साथ ही उनकी यह भी मांग है कि नियामक तंत्रों के लिए एकल खिड़की संकल्पना का निर्माण किया जाना चाहिए।
3.7 लाभों का वितरण
न्यायसंगत विकास के लिए यह अनिवार्य है कि नैनो प्रौद्योगिकी के लाभ सभी तक पहुंचें। इस पहलू पर भी दो प्रकार की विचारधाराएं हैं। एक ओर अनेक लोग अपना ध्यान इस बात पर केंद्रित करते हैं कि नैनो प्रौद्योगिकी ‘‘भारत के जनसमूह‘‘ क्या कर सकती है। वैज्ञानिक, सरकारी अधिकारी और गैर-सरकारी संगठन सभी एक सुर में यह आशा व्यक्त कर रहे हैं कि नैनो प्रौद्योगिकी ऐसे उत्पादों के निर्माण की क्षमता विकसित करती है जो भारत की जनसंख्या के गरीबतम भाग की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं, जिनमें अधिकांश का ध्यान ऊर्जा, कृषि और जल आपूर्ति पर केंद्रित है।
इस प्रकार के अनुप्रयोग के विषय में अक्सर जो उदाहरण दिया जाता है, विशेष रूप से विदेशी समालोचकों द्वारा, वह है क्षयरोग के निदान के लिए तैयार किया गया एक वहनीय उपकरण समूह, जिसका विकास भारत के केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन द्वारा किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह उपकरण समूह अधिक शीघ्र कार्य करता है, सस्ता है, और क्षयरोग के निदान के लिए उपयोग किये जा रहे विद्यमान उपकरणों की तुलना में कम मात्रा में रक्त का उपयोग करता है, अतः यह उपकरण समूह कमजोर अधोसंरचना वाले ग्रामीण क्षेत्रों की दृष्टि से अधिक उपयुक्त होगा।
दूसरी ओर, उस आर्थिक विकास पर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है जो नैनो प्रौद्योगिकी की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि कई लेखक गरीब समर्थक अनुप्रयोगों का उल्लेख करते हैं, फिर भी मुख्य ध्यान इसकी अपार बाजार क्षमता पर केंद्रित है, जो नैनो प्रद्योगिकी कथित रूप से अपने माध्यम से लाती है। उदाहरणार्थ भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने टिप्पणी की थी कि अगले दशक में नैनो प्रौद्योगिकी वैश्विक व्यापार पर्यावरण में प्रमुख भूमिका निभाएगी, साथ ही टेरी ने भी लिखा है किः चूंकि नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी अभी भी उभर रही है, अतः यह विकासशील देशों को न केवल अपने विकसित समकक्षों के साथ आने का अवसर प्रदान करती है, बल्कि यह महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक लाभ की स्थिति विकसित करने की भी संभावना प्रदान करती है। हालांकि संभावित लाभों के वितरण पर ये दोनों विचारधाराएँ अनिवार्य रूप से परस्पर विरोधी नहीं हैं। यह सुनिश्चित करना कि नैनो प्रौद्योगिकी के लाभ अधिकांश तक पहुंचें, इसकी भी उच्च लाभ की संभावना है।
3.8 जोखिम का नियंत्रण
जोखिम नियंत्रण में वे कानून, प्रक्रियाएं और संस्थाएं शामिल होंगी जिनके माध्यम से जोखिम विश्लेषण, दूरसंचार और प्रबंधन के संबंध में निर्णय लिए जाते हैं और उनका क्रियान्वयन किया जाता है। यह संरचनाओं (अर्थात, जो संस्थाएं निर्णय की प्रक्रिया में शामिल हैं) और प्रक्रियाओं (अर्थात, जो प्रक्रियाएं समग्र शासन रूपरेखा के तहत निर्णय प्रक्रिया को वैध और सहभागी बनाती हैं), दोनों पर विचार करता है। तब एक समावेशी जोखिम शासन रूपरेखा के लिए महत्वपूर्ण कारकों के सशक्तिकरण के माध्यम से विज्ञान का लोकतंत्रीकरण करना आवश्यक होगा, ये महत्वपूर्ण कारक है,- नीतिनिर्माता, विनियामक, व्यापार, वैज्ञानिक और नागरिक समाज और समुदाय। उअह समावेशी रूपरेखा सुनिश्चित करेगी कि नैनो प्रौद्योगिकी से उत्पन्न खतरों से जुड़ी बहस का ध्रुवीकरण नहीं हो। इसके लिए एक निष्पक्ष और पारदर्शी जोखिम सूरसंचार और नैनो प्रौद्योगिकी के संबंध में उठने वाले प्रचार और भय को संबोधित करने के लिए सभी हितधारकों की सहभागिता की आवश्यकता होगी।
इसके जैविक और अजैविक अनुप्रयोगों के कारण नैनो प्रौद्योगिकी अभिसरण प्रक्रिया के लिए बहुत सहज अनुगामी है। प्रौद्योगिकी अभिसरण राज्य और गैर-राज्य भागीदारों (जो यहां औषधि क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियां और विशेषज्ञ अंतर्राष्ट्रीय संगठन हैं) को भी एकत्रित लाता है, जो बढ़ती सक्रियता से अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के विनियमन और शासन में सहभागी हैं, जिनमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भी शामिल है। इस संदर्भ में इन भागीदारों को संस्थागत क्षमता के शीर्षक के अंतर्गत चिन्हित करना अनिवार्य है, जो एक उभरती हुई प्रौद्योगिकी के विकास को काफी हद तक बाध्य करेगा और अनुकूल बनाएगा। संस्थागत क्षमता, जिसमें परिसंपत्तियां, कौशल और क्षमताएं शामिल हैं, एक दिए गए समाज के अंदर ज्ञान संरचना का निर्माण करती है। यह ज्ञान आधार किस हद तक विकसित हो सकता है यह कुछ अन्य कारकों पर निर्भर करता है, जो वैज्ञानिक समुदाय के त्वरित हितों से बाहर के हैं। उदाहरणार्थ प्रतिबंधक पेटेंट शासन के कारण प्रौद्योगिकी तक पहुंच का इंकार इससे होने वाले लाभों को प्राप्त करने की देश की क्षमता को सीमित कर देगा। साथ ही, प्रत्येक जोखिम नियंत्रण रूपरेखा में नैनो अनुप्रयोगों के विनियमन, उत्पादन और उपभोग द्वारा प्रभावित होने वाले हितधारकों को शामिल करना चाहिए।
जबकि अनुसंधान करने के लिए और जोखिम पर निर्णय करने की स्थानीय और राष्ट्रीय क्षमता निर्माण हो रही है, वहीं विकासशील देशों को मानकीकृत क्रमाचार, संदर्भ सामग्री और अन्य आंकड़ों को विकसित करने के लिए वैश्विक समुदाय के साथ शामिल होना होगा। नैनो सामग्री और नैनो अनुप्रयोगों से उत्पन्न होने वाली जोखिम और ईएचएस प्रभावों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक दीर्घकालीन और गतिशील रणनीति अनिवार्य है।
4.0 एक राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता
भारत नैनो प्रौद्योगिकी के मामले में पीछे नहीं रह जाए इसके लिए स्पष्ट राष्ट्रीय रणनीतियों का निर्माण करना आवश्यक है। प्रौद्योगिकी को सामाजिक प्राथमिकताओं और लक्ष्यों के साथ जोड़ना होगा। सामान्यतः विकासशील देशों में कुल नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास में सार्वजनिक निवेश निजी कहेतर की तुलना में काफी अधिक है। हालांकि निजी क्षेत्र के बढ़ते महत्त्व को कम नहीं आंका जा सकता, परंतु यह देखते हुए कि नैनो प्रद्योगिकी का प्रौद्योगिकी आधार अभी भी भ्रुण अवस्था है, उद्योग क्षेत्र एक वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी अधोसंरचना की स्थापना के लिए आवश्यक अनुसंधान प्रयास को वहन नहीं कर पायेगा।
अतः बुनियादी अनुसंधान के लिए सरकारी समर्थन की अत्यंत आवश्यकता है। सरकार ने नैनो प्रौद्योगिकी के अनुसंधान प्रयासों में वित्तपोषण, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी अधोसंरचना की स्थापना और मानवी कौशल और क्षमता के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
नियामक उद्देश्यों को परिभाषित करने में, और क्षेत्र के विकास और इसके बाद उपकरण समूह से उन उपकरणों का चयन करने में, जो उद्देश्यों की प्राप्ति को सुविधाजनक बनायें, राज्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। आमतौर पर किसी भी समय सरकार की प्राथमिकता भी चुने गए नियामक विकल्पों के चयन को प्रभावित करती है। हालांकि सरकार को किसी प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने और उसके खतरों को विनियमित करने के बीच एक संतुलन कायम करना चाहिए। साथ ही सरकार नैनो प्रौद्योगिकी विकास के संबंध में वैश्वीकरण के दबावों को रोकने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अनुसंधान और विकास के अंतर्राष्ट्रीय रुझानों का परिणाम किन्ही विशिष्ट उत्पादों के विकास में हो सकता है, जिन्हें उच्च विलासिता वस्तुओं या उत्पादों की गुणवत्ता वृद्धि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो समाज के एक छोटे वर्ग को लाभ पहुंचाते हैं। विशेष रूप से विकासशील देश में राज्य एक विषयसूची निर्धारित कर सकता है, और इस प्रकार जो अनुसंधान उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करते उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय रुझानों को अपनाने से स्वयं को प्रतिबंधित कर सकता है।
नैनो प्रौद्योगिकी की आवश्यकताओं को प्रतिक्रिया देने के लिए राष्ट्रीय क्षमता के मूल्यांकन की एक प्रत्ययात्मक रूपरेखा के लिए विकासशील देशों के लिए आवश्यक है कि इस प्रौद्योगिकी द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अधोसंरचना पर अधिरोपित मांगों की दृष्टि से और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वरुप को परिवर्तित करके प्रस्तुत अवसरों और चुनौतियों को संबोधित किया जाए। नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की समीक्षा से अनेक मुद्दे उपस्थित होते हैंः
- अनुसंधान और विकास को सुविधापूर्ण बनाने और उत्प्रेरित करने और नैनो उत्पादों के वाणिज्यीकरण के लिए एक मजबूत अधोसंरचना की आवश्यकता है
- प्रौद्योगिकी के सफल अनुप्रयोग के लिए उपयोगकर्ताओं के बीच फैले निग्रह और चिंताओं को संबोधित करना अत्यंत आवश्यक है
- एक उभरती हुई प्रौद्योगिकी के साथ सहभागी होने के लिए उपयुक्त रणनीतियों, नीतियों और संस्थाओं की आवश्यकता है
- नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के लिए बहु विषयक दृष्टिकोणों वाले मानव संसाधन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं
- सामाजिक परिपेक्ष्य में नैनो प्रौद्योगिकी से निर्मित होने वाले खतरों को संबोधित करने की आवश्यकता है
- अनुसंधान के प्रयासों को एक निश्चित दिशा में निर्देशित करने की दृष्टि से नैनो प्रौद्योगिकी के लिए नियामक निगरानी और तैयारी आवशयक है
- नियामक और निगरानी करने वाले अभिकरणों का क्षमता निर्माण
- नैनो प्रौद्योगिकी में नियामक संरचना की रचना और क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जनभागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
इस प्रकार, उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में क्षमता विकास के लिए निम्न आवश्यकताएं होंगी
- नियामक निकायों सहित वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक प्रकार के कौशल,
- इस प्रकार की प्रौद्योगिकियों के सफल बाजार अनुप्रयोग के लिए शैक्षणिक समुदाय, नीति निर्माताओं और उद्योगों जैसे विभिन्न खिलाड़ियों के बीच अधिक जुड़ाव,
- नैनो प्रौद्योगिकी में अंतर्विषयक दृष्टिकोणों के लिए एक भिन्न अनुसंधान और विकास रणनीति की मांग होगी, साथ ही इसके लिए विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, वित्तपोषण करने वाले अभिकरणों और उद्योगों की विज्ञान और प्रौद्योगिकी गतिविधियों के पुनर्विन्यास की भी आवश्यकता होगी, ताकि एक अनुकूल संस्थागत परिदृश्य निर्मित हो सके जो संवादात्मक शिक्षा को सुविधाजनक बनाये और नैनो प्रौद्योगिकी की आवश्यकताओं पर प्रतिक्रिया दे सके और उसे विकसित कर सके,
- ऐसी अनुकूलनीय और प्रतिक्रियाशील संरचनाओं की निर्मिति करना जो समाज में नैनो प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को उचित रूप से विनियमित कर सकें, और
- एक लचीला और गतिशील नीति वातावरण, जिसमें ज्ञानार्जन और उसके प्रभावी उपयोग के लिए आवश्यक स्थितियां उत्पन्न करने की क्षमता हो, एक महत्वपूर्ण अयं निर्मित करेगा जो क्षमताओं के विकास की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करेगा।
5.0 नियामक रूपरेखा
नैनो प्रौद्योगिकी विनियम के विषय में होने वाली बहसों में एक प्रमुख बहस यह है कि नैनो प्रौद्योगिकी के विषय में चल रही चिंताओं के चलते एक स्वतंत्र नैनो प्रौद्योगिकी विशिष्ट विनियम की आवश्यकता है अथवा नहीं। नैनो प्रौद्योगिकी के विद्यमान और संभावित अनुप्रयोगों के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान कानूनों और नियमों के समुच्चय पर निकट से दृष्टि डालने से पता चलता है कि फिलहाल भारत में नैनो प्रौद्योगिकी विशिष्ट कानून की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। अधिकांश चुनौतियों और चिंताओं का निराकरण अधीनस्थ कानून के स्तर पर हस्तक्षेप के माध्यम से या विद्यमान कानून में संशोधन के माध्यम से या क्रियान्वयन के स्तर पर हस्तक्षेप के माध्यम से किया जा सकता है। साथ ही, चूंकि नैनो प्रौद्योगिकी एक उभरती हुई प्रौद्योगिकी है, अतः इसके बारे में काफी अनिश्चितता है, साथ ही इसके प्रभावों के बारे में अधिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं है, अतः एक निश्चित नैनो प्रौद्योगिकी विशिष्ट कानून के बजाय नए खतरों से निपटने के लिए विद्यमान विनियमों की क्षमता को सुनिश्चित करना एक व्यवहार्य मार्ग होगा। सबसे अधिक व्यवहार्य मार्ग होगा विद्यमान विनियमों की क्षमता को सुनिश्चित करना।
उनकी प्रकृति, अन्य प्रौद्योगिकियों के साथ परस्पर क्रिया, और विस्तार के कारण नैनो प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग पहले से ही अनेक विनियमों के अधीन हैं। हालांकि नैनो प्रौद्योगिकी से जुड़ी जोखिमों को विनियमित करने से पहले इनमें से अधिकांश विद्यमान विनियमों को संशोधित किये जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, निवारक सिद्धांत, जिसे पहले से ही पर्यावरणीय विनियमों में अपनाया जा चुका है, को नैनो प्रौद्योगिकी की अनिश्चितताओं को देखते हुए नैनो प्रौद्योगिकी विनियमों तक विस्तारित किया जाना चाहिए। हालांकि इस सिद्धांत का उपयोग एक मध्य मार्ग का पालन करते हुए विवेकपूर्ण ढं़ग से किया जाना चाहिए ताकि यह इसके खतरों को संबोधित कर सके और प्रौद्योगिकी को विकासात्मक आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिए सुविधाजनक बना सके।
6.0 चुनौतियाँ
पर्याप्त बड़ी मात्रा में नैनो सामग्री का लगातार गुणवत्तापूर्ण सस्ती लागतों पर उत्पादन करना एक चुनौती है। नैनो सामग्री की इस प्रकार अपूर्ति (जैसे कि उचित कणों का आकार, सतही रसायनशास्त्र, प्रसार क्षमता, विभिन्न माध्यमों के साथ अनुकूलता, इत्यादि) जो प्रक्रिया में एकीकरण को सुविधाजनक बनाये। नैनो आधारित व्यवस्था को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तित करना और रूचि के अनुसार निर्माण करना। नैनो उत्पादों के उपयोग और निपटान में पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना। नैनो प्रौद्योगिकी का अंतर्विषयक स्वरुप और इसके अनुप्रयोगों का विस्तार सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रही है। इसके कारण विभिन्न अभिकरणों द्वारा चिन्हित अनुसंधान और विकास के समर्थन क्षेत्रों में काफी अधिव्यापन रहा है।
अनेक अन्य प्रौद्योगिकियों की ही तरह बुनियादी अनुसंधान और अनुप्रयोग के बीच का अंतर भी नैनो प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती रही है। प्रयोगशाला और उद्योग के बीच कमजोर एकीकरण है, जिसमें कुशल मानवशक्ति की कमी के कारण और वृद्धि हुई है, जो अन्यथा प्रौद्योगिकी और वाणिज्यिक क्षेत्र के बीच जुड़ाव प्रदान कर सकती थी।
चूंकि यह प्रौद्योगिकी लागत और जोखिम सघन प्रौद्योगिकी है, और चूंकि यह परिष्कृत और जटिल उपकरणों, तकनीकी ज्ञान और क्षमता, वित्तीय व्यवरोध पर निर्भर है, अतः यह भी इस संदर्भ में एक बडे़ व्यवधान का कार्य करता है। वर्तमान में नियामक संस्थाओं के समक्ष जो सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं वे नियामक क्षमता, सूचना असममिति और अंतर अभिकरण समन्वय के अभाव से संबंधित हैं।
- नैनो प्रौद्योगिकीविदों को अपने अनुसंधान में जिस एक अन्य चुनौती को संबोधित करना चाहिए वह है जोखिम अनुसंधान को उचित प्राथमिकता प्रदान करना। वर्तमान में नैनो प्रौद्योगिकी से होने वाले खतरों के विश्लेषण के लिए जो वित्तपोषण प्रदान किया जा रहा है वह इसके वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में निवेश की गई विशाल राशि की तुलना में अत्यंत अल्प है। दूसरी ओर, अन्य विशेषज्ञ तर्क देते हैं कि विषाक्तता और जोखिम मूल्यांकन से संबंधित अनुसंधान तब किया जाना अनिवार्य होना चाहिए जब विशिष्ट नैनो अनुप्रयोगों की प्रयोजनीयता सुनिश्चित हो जाती है, विशेष रूप से तब जब उत्पाद की प्रतिकृति विकसित की जा चुकी है और जमीनी परीक्षण के लिए उपलब्ध है। यह रणनीति शायद प्रौद्योगिकी विकास और जोखिम के मुद्दों के संबोधन के बीच एक संतुलित .ष्टिकोण को सुविधापूर्ण बनाने में सहायक हो सके। साथ ही, यह पहले से ही लाचार वित्तीय संसाधनों के न्यायोचित आवंटन को भी सुविधापूर्ण बना सकेगा, और जोखिम मुद्दों के अतिउत्साही केंद्रीकरण को भी रोक सकेगा, विशेष रूप से उत्पाद विकास के प्रारंभिक स्तरों पर, जो शायद सामाजिक दृष्टि से उपयोगी और महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के निर्माण को बाधित कर देगा।
- इस क्षेत्र में उद्यम पूंजी तंत्र लगभग अनुपस्थित ही हैं। इसके कारण अनुसंधान को प्रौद्योगिकी विकास की दृष्टि से आगे बढ़ाने की गति धीमी हुई है।
यह मानते हुए कि नैनो प्रौद्योगिकी अपने विस्तार में बहुग्राही है और स्वरुप में अंतर्विषयक है, इसके अनुप्रयोगों और विनियमन से जुडे हुए खिलाड़ियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
वैज्ञानिक अनुसंधान को सार्वजनिक अभिज्ञता और प्रौद्योगिकी के सामाजिक विश्लेषण पर विह्वल नहीं होना चाहिए। वर्तमान में सकारात्मकता और वैज्ञानिक समुदाय के बीच विश्वास का अभाव दिखाई देता है, और सामाजिक हित समूहों द्वारा नैनो प्रौद्योगिकी की क्षमताओं के संबंध में संदेह व्यक्त किया जाता है। इस अंतर को कम करना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा कि विकास के मोर्चे पर अपनी क्षमताओं में वृद्धि करने के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय अवसरों का किस हद तक उपयोग कर सकता है।
7.0 भारत में नैनो प्रौद्योगिकी संस्थाऐं
नैनो प्रौद्योगिकी एक ऐसी ज्ञान सघन और ‘‘समर्थकारी प्रौद्योगिकी‘‘ है जिससे उम्मीद की जा रही है कि वह व्यापक रूप से उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगी जिसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और विकास पर दूरगामी परिणाम होंगे। भारत सरकार ने मई 2007 में 5 वर्षों के लिए 1000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर मिशन (नैनो मिशन) की शुरुआत की अनुमति प्रदान की थी।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग नैनो मिशन के क्रियान्वयन के लिए केंद्रीय अभिकरण है। अनुसंधान के इस उभरते क्षेत्र में क्षमता निर्माण नैनो मिशन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा ताकि भारत इस क्षेत्र में एक वैश्विक ज्ञान केंद्र के रूप में उभर कर आये। इसके लिए नैनो विज्ञान के बुनियादी पहलुओं पर अनुसंधान और बड़ी संख्या में श्रमशक्ति के प्रशिक्षण पर सर्वाधिक ध्यान दिया जायेगा। इसके साथ उतने ही महत्वपूर्ण रूप से नैनो मिशन राष्ट्रीय विकास के लिए उत्पादों और प्रक्रियाओं के विकास के लिए प्रयासरत होगा, विशेष रूप से राष्ट्रीय महत्त्व से जुडे क्षेत्रों में जैसे स्वच्छ पेय जल, पदार्थ विकास, संवेदक विकास, औषधि वितरण इत्यादि। इसके लिए यह शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों और उद्योगों के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास करेगा और सार्वजनिक निजी भागीदारियों का संवर्धन करेगा।
नैनो मिशन की संरचना इस प्रकार से की गई है ताकि नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न अभिकरणों के राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयासों के बीच तालमेल स्थापित किया जा सके और नए कार्यक्रमों की शुरुआत अनुकूल वातावरण में की जा सके। जहाँ आवश्यक होगा वहां अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी अनुसंधान प्रयास भी किये जायेंगे।
उल्लेखनीय रूप से विविध और नए गुणधर्मों के साथ पदार्थों के निर्माण के लिए परमाणु और आणविक पैमाने पर पदार्थ के प्रहस्तन की विधि, नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान का तेजी से फैलता क्षेत्र है जिसमें हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने और कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों की हमारी समस्याओं में प्रौद्योगिकी; समाधान प्रदान करने की अपार संभावनाएं हैं। इस क्षमता का संपूर्ण उपयोग करने के लिए हमें नैनो कणों के संश्लेषण को नियंत्रित करने, नैनो उपकरणों के निर्माण, नैनो पैमाने पर पदार्थों के निरूपण और पर्यावरण और स्वास्थ्य पर इन वस्तुओं के प्रभावों को समझने की क्षमता निर्माण करना आवश्यक है। आईएनएसटी केमिस्टों, भौतिक विज्ञानियों और पदार्थ वैज्ञानिकों को नैनो पैमाने पर पदार्थों के निर्माण और निरूपण के विज्ञान में सबसे आगे लाकर खड़ा करेगा, जहां जीवविज्ञानी और जीव रसायनशास्त्री इन खोजों का कृषि, चिकित्सा और जीव विज्ञान के क्षेत्रों में अनुप्रयोग करेंगे। यह विभिन्न पृष्ठभूमियों वाले अनुसंधान सक्रिय मूलभूत और अनुप्रयोग वैज्ञानिकों को एक अंतरंग वातावरण में एकसाथ लाता है ताकि वे अपने संबंधित क्षेत्रों की आवश्यकताओं और उनमें हुई वैज्ञानिक प्रगति के बारे में ज्ञान प्राप्त कर पाएं और साथ ही आपस में चर्चा और सहयोग कर सकें।
मोहाली (पंजाब) का नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1960 के तहत भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है। नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय मिशन (नैनो मिशन) की छत्रछाया में, जिसका उद्देश्य देश के लाभ के लिए नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास का संवर्धन करना है, आईएनएसटी की स्थापना नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य और उत्पादों/उपकरणों का निर्माण करने के लिए की गई है। आईएनएसटी ने अपने परिचालन की शुरुआत प्रोफेसर अशोक के. गांगुली के निदेशकत्व में जनवरी 2013 से कर दी है। संस्थान का लक्ष्य नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विविध और तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य करने का है जिसमें निम्न क्षेत्रों में विशेष जोर दिया गया हैः कृषि नैनो प्रौद्योगिकी, संवेदक, चिकित्सा नैनो प्रौद्योगिकी, सूक्ष्मद्रव आधारित प्रौद्योगिकियां, ऊर्जा और पर्यावरण के लिए नैनो प्रौद्योगिकी आधारित समाधान, नैनो जैवप्रौद्योगिकी। नीचे कुछ उल्लेखनीय घटनाओं का वर्णन दिया गया है।
7.1 धातु फोम बंदूक की गोली को विरूपित कर देता है - और यह तो केवल शुरुआत है
संग्रथित धातु फोम (सीएमएफ) कवच को भेदने वाली बंदूक की गोली को स्पर्श होते ही धूल में विरूपित करने की दृष्टि से पर्याप्त कठोर होते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि ये फोम धातु के मुलम्मे (परत) से हलके भी होते हैं। इस पदार्थ में शरीर पर धारण किये जाने वाले और वाहनों के नए प्रकार के कवच के निर्माण के निहितार्थ भी हैं - और यह इसके संभावित उपयोगों की केवल शुरुआत मात्र है। एनसी राज्य के यांत्रिकी और अंतरिक्ष अभियांत्रिकी के प्रोफेसर अफसनेह रबीइ ने सीएमएफ को विकसित करने और उनके असामान्य गुणों के अन्वेषण के लिए अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं। यहाँ दिखाया गया वीडियो संग्रथित धातु फोम से निर्मित संग्रथित कवच को दर्शाता है। वीडियो में दर्शाई गई बंदूक की गोली 7.62 गुणा 63 मिलीमीटर एम 2 कवच भेदने वाली प्रक्षेपी है, जिसे राष्ट्रीय न्याय संस्थान (एनआईजे) द्वारा स्थापित मानक परीक्षण प्रक्रियाओं के अनुसार दागा गया था। और इसके परिणाम अत्यन्त नाटकीय थे।
रबीइ कहते हैं कि ‘‘हम कुल एक इंच से भी कम मोटाई पर ही गोली को रोक पाए जबकि पीठ पर अभिस्थापन (निशान) 8 मिलीमीटर से भी कम था।‘‘ ‘‘इसे प्रसंगतः बनाने के लिए एनआईजे मानक किसी भी कवच की पीठ पर 44 मिलीमीटर तक अभिस्थापन (निशान) की अनुमति देता है।‘‘ इस अध्ययन के परिणाम वर्ष 2015 में प्रकाशित किये गए थे।
परंतु ऐसे अनेक अनुप्रयोग हैं जो पदार्थ के केवल अत्यधिक हलका और मजबूत होने से भी अधिक आवश्यक हैं। उदाहरणार्थ, अंतरिक्ष की खोज से लेकर परमाणु अपशिष्ट के नौवहन तक के अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक है कि पदार्थ न केवल हल्का और मजबूत हो बल्कि वह चरम उच्च तापमान को वहन करने में और विकिरण को रोकने में भी सक्षम होना आवश्यक है।
7.2 नया पदार्थ हड्डी का अनुकरण करता है ताकि बेहतर जैव चिकित्सा प्रत्यारोपण निर्मित किये जा सकें
एक ऐसे ‘‘धातु फोम‘‘, जिसकी लोच हड्डी के समान है, का अर्थ जैव चिकित्सा प्रत्यारोपण की नई पीढ़ी हो सकता है जो टाइटेनियम जैसे अधिक कठोर प्रत्यारोपण पदार्थ के कारण अक्सर होने वाली हड्डी की अस्वीकार्यता को टालता है। उत्तर कैरोलिना राज्य विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने ऐसे धातु फोम का विकास किया है जो ठोस एल्युमीनियम से भी कहीं अधिक हल्का है और इसे 100 प्रतिशत इस्पात या इस्पात और एल्युमीनियम के मिश्रण से भी बनाया जा सकता है।
एक नए लेख में अनुसंधानकर्ताओं ने हाल के विष्कर्ष परिणामों की जानकारी दी है कि उनके नवीन संग्रथित फोम की असामान्य उच्च ऊर्जा अवशोषण क्षमता और कम वजन के अतिरिक्त फोम की ‘‘लोच का मापांक‘‘ हड्डी के लगभग समान है। लोच का मापांक दबाव देने पर पदार्थ के विकृत होने और दबाव हटाने पर वापस अपनी मूल स्थिति में आने की क्षमता का मापन करता है। फोम की खुरदुरी सतह प्रत्यारोपण के अंदर हड्डी की वृद्धि को भी बढ़ावा देगी जिसके कारण प्रत्यारोपण की मजबूती में भी सुधार होगा। प्रोफेसर अफसानेह रबिई कहते हैं कि
‘‘जब किसी हड्डी या हड्डी के हिस्से को प्रतिस्थापित करने के लिए शरीर में आर्थोपेडिक या दंत प्रत्यारोपण रखा जाता है तो उसे अपने आसपास की हड्डियों के ही समान भार को वहन करना आवश्यक है। यदि प्रत्यारोपण की लोच का मापांक मूल हड्डी से बहुत अधिक बड़ा है तो प्रत्यारोपण भार वहन अपने ऊपर ले लगा और आसपास की हड्डी मरना शुरू हो जाएगी। इसके कारण प्रत्यारोपण ढीला हो जायेगा और अंततः यह असफलता में परिणामित हो जायेगा। इसे ‘‘तनाव परिरक्षण‘‘ कहते हैं। जब यह होता है तो मरीज को प्रत्यारोपण को प्रतिस्थापित करने के लिए फिर से शल्यचिकित्सा करवाना आवश्यक हो जाता है। हमारा संग्रथित फोम तनाव परिरक्षण से बचने के लिए एक प्रत्यारोपण के रूप में इसका सटीक मेल हो सकता है।
8.0 इंटेल और उसकी अद्भुत नैनो यात्रा!
वर्ष 1971 में इंटेल नामक एक छोटी सी कंपनी ने 4004 जारी किया, जो उसका अब तक का पहला माइक्रोप्रोसेसर था। 12 वर्ग मिलीमीटर लंबे आकार वाली चिप में 2,300 ट्रांजिस्टर - संख्या 1 और 0 का प्रतिनिधित्व करने वाले अत्यंत छोटे विद्युत स्विच जो संगणकों की बुनियादी भाषा है। प्रत्येक ट्रांजिस्टर के बीच का अंतर आकार में 10,000 नैनोमीटर (एक मीटर का अरब वां हिस्सा) था, जो आकार में लगभग एक लाल रक्त कोशिका के बराबर था। परिणाम सूक्ष्मीकरण का एक चमत्कार था, परंतु फिर भी यह मानव पैमाने के बहुत निकट था। एक समुचित सूक्ष्मदर्शी के साथ एक बच्चा भी 4004 के व्यक्तिगत ट्रांसिस्टर्स को गिन सकता था।
इंटेल द्वारा बनाए जाने वाले स्काईलेक चिप के ट्रांजिस्टर इससे भी कहीं छोटे हैं ! स्वयं चिप का आकार ही 4004 के आकार का दसगुना है, परंतु 14 नैनोमीटर (एनएम) के अंतर वाले इनके ट्रांजिस्टर अदृश्य हैं, क्योंकि ये मनुष्य की आँख और सूक्ष्मदर्शी द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्रकाश के तरंग दैर्ध्य से भी कहीं अधिक छोटे हैं। वर्ष 1965 में बाद के इंटेल के संस्थापक गॉर्डन मूर ने यह टिपण्णी करते हुए एक लेख लिखा था कि एक एकीकृत परिपथ में ठूँसे जा सकने वाले इलेक्ट्रॉनिक घटकों की संख्या प्रति वर्ष दुगनी होती जा रही है। इस घातांकी वृद्धि को ऐज जाकर मूर का नियम कहा जाने लगा।
1970 के दशक में दुगना होने की दर प्रत्येक दो वर्ष में एक बार के रूप में कम हो गई। फिर भी 1971 में इंटेल के किसी एक 4004 को देखने और यह विश्वास करने के लिए आपको काफी साहसी होना होता था कि ऐसा नियम अगले 44 वर्ष तक जारी रहेगा। अंततः यदि आप किसी वस्तु को 22 बार दुगना करते हैं तो आपको उसका 4 एम गुना अधिक प्राप्त होता है, या संभवतः 4 एम गुना अधिक बेहतर। परंतु वास्तव में ऐसा हुआ है। इंटेल अपने स्काईलेक की ट्रांजिस्टर गिनती को प्रकाशित नहीं करता, परंतु जहाँ 4004 में ऐसे 2,300 ट्रांजिस्टर थे, वहीं 2014 में शुरू हुए कंपनी के जिऑन हॅसवेल ई-5 में 5 अरब ट्रांजिस्टर हैं, जो केवल 22 एनएम की दूरी पर हैं।
मूर का नियम न्यूटन के गति के नियम के समान नियम नहीं है। परंतु इंटेल, जो विगत कई दशकों से माइक्रोप्रोसेसर्स का शीर्ष निर्माता बना हुआ है, और शेष उद्योग ने उसे स्वतः-परिपूर्ण भविष्यवाक्य के रूप में परिवर्तित कर दिया है।
यह परिपूर्णता मुख्यतः इस कारण हो पाई क्योंकि ट्रांसिस्टर्स का यह गुण होता है कि वे जितने सूक्ष्म होते जाते हैं उतने अधिक बेहतर होते जाते हैं; एक छोटे ट्रांजिस्टर को बडे ट्रांजिस्टर की तुलना में कम बिजली और अधिक गति से चालू और बंद किया जा सकता है। इसका अर्थ यह था कि आप अधिक बिजली की आवश्यकता के बिना या अधिक अपशिष्ट ऊष्मा निर्मित किये बिना भी अधिक और अधिक गति वाले ट्रांसिस्टर्स का उपयोग कर सकते थे, साथ ही यह भी कि चिप बडे़ और बेहतर हो सकते थे।
घटक सूक्ष्मता की मूलभूत सीमा की ओर बढ़ रहे हैंः परमाणु
मूर का नियम समाप्त नहीं हुआ है। चिप निर्माता ऐसे नए डिजाइनों और सामग्रियों पर अरबों खर्च कर रहे हैं जिनके कारण ट्रांजिस्टर और अधिक संकुचन के अनुकूल बन सकें और घातीय क्रैंक के कुछ और चक्कर समाहित कर सकें। वे ऐसे रास्ते भी खोजने में लगे हैं जिनसे अनुकूलित डिजाइन और अधिक समझदार प्रोग्रामिंग के साथ प्रदर्शन में और अधिक सुधार किया जा सके। पूर्व में गणना शक्ति के लगातार द्विगुणन और पुनः द्विगुणन का अर्थ यह था कि अन्य प्रकार के सुधारों के साथ प्रयोग के लिए अधिक प्रोत्साहन नहीं था।
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