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समुद्र विज्ञान भाग - 2
10.0 सुनामी
भूकंपीय तरंगे जो महासागर और समुद्री जल से होकर गुजरती हैं, उच्च समुद्री तरंगों में परिणामित होती हैं, इन्हें सुनामी कहा जाता है। ष्सुनामीष् एक जापानी शब्द है, जिसे भूकंपीय समुद्री तरंगों का वर्णन करने के लिए विश्व भर में अपनाया गया है। ये तरंगें कुछ तटीय क्षेत्रों में भयंकर विनाश करने में सक्षम होती हैं, विशेष रूप से जहां अन्तः समुद्री भूकंप होते हैं। एक बार एक सुनामी की शुरुआत हो जाती है, तो इसका ढ़लवांपन (ऊँचाई से लंबाई का अनुपात) कम होता है। ढलवांपन की यह कमी, जिसके साथ तरंग का अति दीर्घ काल जुड़ा होता है (5 से 6 मिनट), इसे समुद्र में जहाज के नीचे से बिना जानकारी के गुजरने में सहायक होता है। जैसे ही भूकंपीय तरंग तट के निकट आती है, तो स्थिति तेजी से और आमतौर पर नाटकीय रूप से बदल जाती है। जबकि तरंग की अवधि स्थिर रहती है, वहीं इसकी गति कम हो जाती है, और तरंग की ऊँचाई में बडे़ पैमाने पर वृद्धि हो जाती है। जैसे ही शिखर का तट पर आगमन होता है, तो पानी एक बहुत ऊंचे तेज ज्वार के रूप में आगे बढ़ता है। भूकंप के उपरिकेंद्र के क्षेत्र में सुनामी तरंगें 30 मीटर (100 फुट) से अधिक ऊंची हो सकती हैं।
सुनामी 100 से 150 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से यात्रा करती है, और इसकी गति 650 950 किलोमीटर प्रति घंटे तक बढ़ सकती है। उसी प्रकार, यह विशाल दूरी तक यात्रा कर सकती है। सुनामी अक्सर महासागरीय खाइयों में या उनके आसपास पाई जाती हैं। प्रशांत महासागर में उनकी आवृत्ति अधिक है। हालांकि एटलांटिक महासागर और हिंद महासागर भी भूकंपीय तरंगों से अछूते नहीं हैं। 1 अप्रैल 1946 को अलेयूशियन खाई की एक दरार से एक सुनामी की शुरुआत हुई थी, जिसने शीघ्र ही अलेयूशियन खाई के युनिमार्क द्वीप के स्कॉच कैप प्रकाशस्तंभ को घेरे में लिया। प्रकाशस्तंभ पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया, और प्रकाशस्तंभ में कार्यरत पांच तटरक्षकों की मृत्यु हो गई थी।
हाल के भूत काल की कुछ भयंकर ताम सुनामियों में जापान सुनामी (11 मार्च 2011) शामिल है जिसने सेंडई शहर के और इसके आसपास के 25000 लोगों की जान ली थी, और फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को तहसनहस कर दिया था। परमाणु विकिरण ने जापान, चीन, उत्तर और दक्षिण कोरिया की जनसंख्या को खतरे की चेतावनी दे दी थी, और यह खतरा अमेरिका और कनाड़ा तक बढ़ गया था। बांदा आचे (सुमात्रा) भूकंपीय तरंग, जो 26 दिसंबर 2004 को सुंड़ा खाई में हुई थी, उसने पड़ोसी देशों के लगभग दो लाख लोगों की जान ली थी। इस सुनामी का प्रभाव अंडमान निकोबार द्वीप और भारत के तमिलनाडु तट पर काफी गंभीर था। सुदूर देशों के तटीय क्षेत्र, जैसे श्रीलंका, मालदीव्स, ओमान और सोमालिया भी इससे काफी प्रतिकूल प्रभावित हुए थे, जिसका परिणाम व्यापक जनहानि और संपत्ति की हानि में हुआ था।
1703 में आवा (जापान) में खतरनाक तीव्रता वाली भूकंपीय तरंगों के कारण एक लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। 27 अगस्त 1883 को इंडोनेशिया के क्राकाटोआ में हुए विस्फोटक ज्वालामुखी विस्फोट में 35 मीटर ऊंची लहरें निर्मित हुई थीं, जिन्होंने 163 गांवों को नष्ट कर दिया था और जिसमें 36,000 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी। 1755 के भूकंप के दौरान पुर्तगाल का लिस्बन शहर सुनामी (ऊँचाई में 15 मीटर) के कारण जलमग्न हुआ था, जिसमें लगभग 60,000 लोगों की जान गई थी।
1948 से एक अंतर्राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी नेटवर्क प्रशांत महासागर के आसपास के लोगों को सम्भाव्य खतरे की चेतावनी देने के उद्देश्य से कार्यरत है। इसका मुख्यालय होनोलुलु में स्थित है। हालांकि चूंकि भूकंपों का आगमन अचानक होता है, और सुनामी की गति लगभग एक हजार किलोमीटर प्रति घंटे की हो सकती है, अतः इसके कारण अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो पाई है। इस प्रकार सुनामी एक महान प्राकृतिक आपदा है।
11.0 पर्यावरणीय परिवर्तन
जनसंख्या और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बढ़ते दबाव के साथ समुद्री मार्ग काफी भीड़-भाड़ वाले हो गए हैं। महासागरीय संसाधनों के अत्यधिक उपयोग का परिणाम खतरनाक पदार्थों के दुर्घटनात्मक (या अनजाने में) रिसाव में हो सकता है। समुद्री प्रदूषण पानी की गुणवत्ता को परिवर्तित कर सकता है, या भौतिक या जैविक पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है। समुद्री प्रदूषण के मुख्य कारण हैं, (1) ज्वालामुखी विस्फोट, (2) तेल प्रदूषण प्राकृतिक रिसाव, (3) तट के निकट का बेधन और तेल जहाजों की दुर्घटनाएं (4) परिष्कृत तेल का छलकन (5) अपशिष्टों का रशिपातन इत्यादि।
इस आंकडे़ से देखा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग गंभीर रूप से प्रदूषित हो गए हैं। सभी महासागरों में से उत्तरी एटलांटिक महासागर, अरब सागर, लाल सागर, भूमध्य सागर, उत्तरी सागर, बाल्टिक सागर, मालक्का का जलड़मरूमध्य, चीन सागर विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र हैं। पर्यावरणीय परिवर्तन एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है, जो तब से जारी है जब से लगभग 4,600 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी अस्तित्व में आई है। पहले यह मान्यता थी कि मनुष्य पृथ्वी का एक उत्पाद है (कुमारी सेम्पल) परन्तु अब मानव पर्यावरण को काफी मात्रा में प्रभावित कर रहे हैं।
मानव की गतिविधियाँ - जैसे समुद्र में कचरे का राशिपातन, महासागरों में तेल का छलकन, जापान (फुकुशिमा) से परमाणु रिसाव इत्यादि - पारिस्थितिकी को काफी क्षति पहुंचा रही हैं।
महासागर जिन कुछ पर्यावरणीय समस्याओं का सामना कर रहा है, वे निम्नानुसार हैंः
महासागरीय ऊष्मनः जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप बढ़ते वैश्विक तापमानों के कारण महासागर के उच्च तापमान 3,000 मीटर से भी अधिक की गहराई पर भी खोजे गए हैं। साक्ष्य दर्शाते हैं कि गर्म होते महासागरों के तापमान उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता की वृद्धि के लिए, साथ ही वैश्विक मत्स्य पालन के विनाश के लिए भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि मूल्यवान मछली समूह ध्रुवों के निकट ठंडे पानी की ओर प्रव्रजित हो रहे हैं। गर्म पानी प्रवाल भित्तियों के लिए भी प्रमुख खतरा बनते जा रहे हैं, जो उन्हें विरंजन और अन्य क्षति और अम्लीकरण के प्रभावों के प्रति और अधिक भेद्य बना रहे हैं। कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने संकेत दिए हैं कि औद्योगिक पूर्व तापमानों से 1.7 अंश सेल्सियस से अधिक पर सभी गर्म पानी की प्रवाल भित्तियां विरंजित हो जाएँगी, और 2.5 अंश सेल्सियस तक लुप्त हो जाएँगी।
महासागरों का अम्लीकरणः औद्योगिक क्रांति के बाद से महासागरों ने लगभग 30 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित किया है। इसने एक विशाल प्रतिरोधी का है, जिसने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को क्षीण किया है। परंतु इसकी महासागरीय रसायनशास्त्र और पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में हमें विशाल कीमत चुकानी पडी है। वायुमंडल में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के कारण महासागरों ने अपने औसत पीएच स्तर में 30 प्रतिशत की कमी का अनुभव किया है। वर्तमान दर से 2100 तक पीएच के स्तर में और 200 प्रतिशत की कमी हो जाएगी, जो एक ऐसी दर है जो महासागरों द्वारा 55 मिलियन वर्षों के दौरान अनुभव किये गए किसी भी परिवर्तन की गति की तुलना में दस गुना अधिक है, और जो महासागरों की भविष्य में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता को और भी कम कर देगी। साथ ही यह उन समुदायों की खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा निर्मित कर देगी जो भेद्य सीपदार मछली की प्रजातियों पर निर्भर हैं।
समुद्री संसाधनों का आधारणीय उपयोगः एफएओ के अनुमानों के अनुसार 85 प्रतिशत मत्स्य संसाधनों का या तो पूर्ण रूप से शोषण हो चुका है या वे अत्यधिक मात्रा में शोषित किये जा चुके हैं या तो समाप्त हो चुके हैं, या समाप्ति से वापस उबरने का प्रयास कर रहे हैं। अतिरिक्त जलवायु सम्बन्धी मत्स्य पालन हानियां उष्णकटिबंधीय न्यूनतम विकसित देशों में संकेंद्रित हो रही हैं, जिनमें से अनेक अफ्रीका और दक्षिण पूर्वी एशिया में स्थित हैं, जिसके कारण मत्स्यपालन समुदाय और भी अधिक प्रभावित हो रहे हैं। विश्व की कुल 80 मिलियन मछली पकड़ में से अवैध, असूचित और अविनियमित मत्स्यपालन 11 मिलियन से 26 मिलियन टन तक बेहिसाब मछलियों के नुकसान के लिए जिम्मेदार है। विनाशकारी मछली पकड़ने की पद्धतियाँ - जिनमें एक फुटबॉल मैदान जितने बडे़ जालौन का समुद्र तल में घसीटना भी शामिल है - प्रजनन, पशुगृह और समुद्री जीवों और मछलियों के आवासों को अपरिमित हानि पहुंचा रही हैं। अध्ययन अनुमान लगाते हैं कि 73 मिलियन शार्क मछलियाँ मछली के परों के व्यापार की आपूर्ति के लिए प्रति वर्ष मारी जा रही हैं। कुछ प्रजातियों की आबादी 70 से 80 प्रतिशत तक कम हो गई है।
समुद्र स्तरों में वृद्धिः समुद्र स्तरों की वृद्धि के कारण अनेक द्वीप राष्ट्रों और तटीय शहरों के समक्ष अस्तित्व का खतरा निर्माण हो गया है, और इसके कारण अनेक विशाल क्षेत्र, जिनका उपयोग खाद्यान्न उत्पादन के लिए किया जाता है, जलमग्न होने के खतरे में हैं। वैश्विक औसत समुद्र स्तर की वृद्धि की दर बढ़ती जा रही हैः पिछले 50 वर्षों के दौरान समुद्र स्तर लगभग 1.8 मिलीमीटर की दर से बढे़ हैं, जबकि 1990 के दशक में यह दर दुगनी होकर 3.1 मिलीमीटर प्रति वर्ष हो गई थी, और 2003-2007 की अवधि के दौरान यह दर 2.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष रही है। अनुमानों में अंतर है, परंतु समुद्री स्तरों की वृद्धि के बारे में सभी अनुमानों में सहमति है कि यदि अधिक तापमान वृद्धि ध्रुवी बर्फ गलाव की पद्धतियों को शासित करने वाले जटिल प्रतिपुष्टि छोरों को अधिक गतिमान बनाते हैं तो 2100 से पहले ही समुद्र स्तरों में 2 मीटर से अधिक की वृद्धि हो सकती है। 1978 से आर्कटिक की गर्मी के मौसम की बर्फ प्रति दशक 7.4 प्रतिशत की दर से घट रही है।
एकाधिक तनावकारकः 40 प्रतिशत से अधिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ही उपरोल्लिखित दबावों में से अनेक का सामना कर रहे हैं। ये परस्पर जुडे़ मुद्दे महासागरों की रासायनिक और उष्मगतिक बुनियादों को खतरे में डाल रहे हैं, जिससे विपत्तिपूर्ण परिणामों के खतरे बढ़ते जा रहे हैं - जैसे भेद्य समुद्री प्रजातियों की सामुदायिक लुप्तता। इन अतिव्यापी खतरों के सामूहिक प्रभाव इस बात का मुख्य कारण है कि ये प्रभाव पूर्व अनुमानित अनुमानों से इतनी तेज गति से क्यों दिखाई दे रहे हैं। अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि इन मुद्दों की ओर सामूहिक रूप से और स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक, सभी स्तरों पर ध्यान दिया जाए, न कि विशेष मुद्दे की ओर ध्यान दिया जाए जैसा कि वर्तमान में किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तनः जीवाष्म ईंधनों का बढ़ता उत्सर्जन महासागरों को प्रभावित करने वाले वैश्विक तनावों का सीधा कारण है - अम्लीकरण, ऊष्मन और समुद्र स्तरों में वृद्धि, इनके प्रभाव के कारण प्रदूषण और अत्यधिक मछली पकड़ जैसे विद्यमान खतरों में पहले से ही अत्यधिक वृद्धि होना शुरू हो चुकी है।
12.0 महासागरों का सामरिक महत्त्व
12.1 प्रशांत महासागर
प्रशांत विश्व अकर्थव्यवस्था का एक प्रमुख योगदानकर्ता है, विशेष रूप से वे देश जिन्हें इसका जल सीधे छूता है। यह पूर्व और पश्चिम के बीच कम लागत का समुद्री परिवहन प्रदान करता है, विस्तृत मछली पकड़ने के क्षेत्र प्रदान करता है, अपतटीय तेल और गैस क्षेत्र प्रदान करता है, साथ ही खनिज, और निर्माण उद्योग के लिए रेत और कंकड़ भी प्रदान करता है।
12.2 एटलांटिक महासागर
उत्तर एटलांटिक व्यापार मार्ग विश्व जहाजरानी उद्योग में सबसे महत्वपूर्ण में से एक है। यूरोप के अंदर बंदरगाहों की प्रमुख अधोसंरचना का उन्नयन इस गलियारे की नौवहन मांगों को प्रतिबिंबित करने के लिए निरंतर किया जाता रहा है।
इस व्यापार मार्ग की सामरिक महत्त्व की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण अधोसंरचना है पनामा नहर, जो एटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच प्रवेश प्रदान करती है, और जो सुदूर पूर्व और उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के बीच एक संपूर्ण जल मार्ग प्रदान करती है। वर्तमान में पनामा नहर को चौड़ा और गहरा किया जा रहा है ताकि अभी परिचालित होने वाले जहाजों की तुलना में विशाल जहाजों को परिवहन की सुविधा प्रदान की जा सके। 2015 में जब यह कार्य पूरा हो जायेगा तो यह नहर लगभग 13,000 टीईयू आकार के कंटेनर जहाजों को परिवहन की सुविधा प्रदान करने की संभावना है, जो वर्तमान में परिवहन करने वाले जहाजों की तुलना में तिगुने बडे़ होंगे।
एटलांटिक प्रवेशद्वार एक महत्वाकांक्षी रणनीति है जिसका उद्देश्य 250,000 रोजगारों (140,000 रोजगार सीधे एटलांटिक प्रवेशद्वार परियोजनाओं से जुडे़ हुए हैं) की निर्मिति करना है। 14 बिलियन पौंड़ के नियोजित निवेश के साथ निर्धारित किया गया लक्ष्य वास्तविकता से काफी ऊपर है। इस प्रकार के विकास कार्य यूरोप की महत्वपूर्ण न्यून कार्बन रेल और नहर परिवहन नेटवर्क्स से भी जुडे़ हुए हैं।
12.3 हिंद महासागर
हिंद महासागर के समुद्र मार्ग सामरिक दृष्टि से विश्व के सबसे महत्वपूर्ण समुद्र मार्ग माने जाते हैं - हिंद महासागर क्षेत्र की पत्रिका के अनुसार विश्व के 80 प्रतिशत से अधिक समुद्री तेल व्यापार का पारगमन हिंद महासागर क्षेत्र के अवरोध बिन्दुओं से संचालित होता है, जिसमें से 40 प्रतिशत होर्मुज के जलड़मरूमध्य से होकर गुजरता है, 35 प्रतिशत मलक्का के जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है, जबकि 8 प्रतिशत बाब एल-मंदाब जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।
परंतु इसका महत्त्व केवल समुद्री मार्गों और व्यापार तक ही सीमित नहीं है। वर्तमान में विश्व के आधे से अधिक सशस्त्र संघर्ष हिंद महासागर क्षेत्र में ही हो रहे हैं, जबकि महासागरीय जलक्षेत्र निरंतर विकसित होती हुई सामरिक घटनाओं का भी केंद्र बना हुआ है, जिनमें चीन और भारत के प्रतिस्पर्धी उदय, भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु संघर्ष, इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप, इस्लामिक आतंकवाद, अफ्रीका के सींग के पास के क्षेत्र में बढ़ती समुद्री डकैती की घटनाएँ, और घटते मत्स्य संसाधनों का प्रबंधन शामिल हैं।
13.0 दक्षिण एशिया में द्वीप पुंजों की निर्मिति
पर्वतों और अन्य भू-आकृतियों की ही तरह द्वीप-पुंज भी आंशिक रूप से विवर्तनिकी गतिविधियों के कारण निर्मित होते हैं। जब जलस्तर के नीचे के ज्वालामुखी या गर्म स्थान मैग्मा को समुद्र में रिसने की अनुमति प्रदान करते हैं, तो जल के अंदर चट्टान आकृतियां निर्मित हो जाती हैं। जैसे-जैसे अधिकाधिक मैग्मा निर्मुक्त होता है, तो चट्टान आकृतियां समुद्र के जलस्तर से ऊपर निकल आती हैं, जिसके कारण द्वीप निर्मित हो जाते हैं।
मलय द्वीप-पुंज, जो दक्षिण पूर्व एशिया महादेश और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थित है, वह लगभग 25,000 द्वीपों का समूह है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व का सबसे बड़ा द्वीप-पुंज है। प्लेट विवर्तनिकी स्थिति की दृष्टि से इंडोनेशियाई द्वीप-पुंज तीन प्रमुख प्लेटों के तिहरे संगम पर स्थित है, ये तीन प्लेटें हैं-इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट, यूरेशियाई प्लेट और प्रशांत प्लेट। इन तीन प्रमुख प्लेटों की परस्पर क्रिया एक जटिल विवर्तनिकी का निर्माण करती है, विशेष रूप से उस प्लेट सीमा में जो पूर्वी इंड़ोनेशिया में स्थित है। यूरेशियन महाद्वीपीय प्लेट के नीचे की हिंद महासागरीय प्लेट के प्रविष्ठन ने पश्चिमी इंडोनेशिया में एक ज्वालामुखी-चाप का निर्माण किया जो पृथ्वी के सबसे अधिक भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है, जहां शक्तिशाली विस्फोटों और भूकंपों का एक लंबा इतिहास रहा है। सक्रिय ज्वालामुखियों की इस श्रृंखला ने सुमात्रा, जावा, बाली और नूसा टेंग्गरा द्वीपों की रचना की, जिनमें से अधिकांश भाग, विशेष रूप से जावा और बाली पिछले 2-3 मिलियन वर्ष पूर्व ही उभरा है। प्रशांत और ऑस्ट्रेलियाई प्लेटों की गतिविधि ने इंड़ोनेशिया के पूर्वी भाग की विवर्तनिकी को नियंत्रित किया।
लोम्बोक और सुम्बावा के द्वीप सुंड़ा वृत्त-चाप के मध्य भाग में स्थित हैं। सबसे प्राचीन उजागर चट्टानें हैं मिओसिन, जो इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि पश्चिम के जावा और सुमात्रा की तुलना में प्रविष्ठन और ज्वालामुखी काफी बाद में शुरू हुआ, जहां मध्यजीवीय युग के उत्तरार्ध के काफी बड़ी मात्रा में ज्वालामुखी और हस्तक्षेप करने वाली चट्टानें मौजूद हैं।
फिलीपींस का प्रदेश अनेक द्वीप वृत्त-चापों से निर्मित है, जो प्रविष्ठन की अनेक घटनाओं के कारण निर्मित हुए हैं। इन द्वीप वृत्त-चापों को संयुक्त रूप से फिलीपींस द्वीप वृत्त-चाप प्रणाली कहा जाता है। प्रत्येक प्रमुख फिलीपींस द्वीप का एक जटिल प्राकृतिक इतिहास रहा है। पलवान, मिंड़ोरो, और रोमबलों के अपवादों को छोड़कर ऐसा माना जाता है कि अधिकांश फिलीपींस द्वीप उन द्वीप वृत्त-चापों के भाग हैं जो फिलीपींस समुद्री प्लेट के किनारे पर लाखों वर्षों पूर्व निर्मित हुए थे। फिलीपींस समुद्री प्लेट के एक भाग के रूप में, जब प्लेट दक्षिणावर्त घूमी तो ये द्वीप उत्तर की ओर चले गए। ये गतिशील द्वीप, जिन्हें फिलीपींस मोबाइल पट्टी भी कहा जाता है, अंततः सुंदलैंड के साथ टकरा गए। इस टकराव का परिणाम, अन्य बातों के अलावा, यह हुआ कि फिलीपींस द्वीप-पुंज के चारों ओर प्रविष्ठनों की एक श्रृंखला निर्मित हो गई।
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