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भारत - जनसांख्यिकी भाग - 2
6.0 जनसंख्या वृद्धि की दरें
यह महत्वपूर्ण है, कि 2001-2011 के दशक में दशकीय वृद्धि दर के प्रतिशत में आई गिरावट स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है।
1981-1991 के दशक में यह गिरावट 23.87 प्रतिशत थी, जबकि 1991-2001 के दशक में यह 21.54 प्रतिशत थी, अर्थात, 2.33 प्रतिशत अंकों की गिरावट। 2001-2011 की अवधि के लिए दशकीय वृद्धि 17.64 दर्ज की गई, अर्थात 3.90 प्रतिशत अंकों की और गिरावट।
इसी प्रकार, 2001-2011 की अवधि के लिए औसत घातांकीय वृद्धि दर घट कर 1.64 प्रतिशत वार्षिक रह गई है, जो 1991-2001 की अवधि में वार्षिक औसत 1.97 प्रतिशत थी। 1981-1991 के दशक के दौरान औसत वार्षिक घातांकीय वृद्धि दर 2.16 प्रतिशत थी।
उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक आबादी वाला राज्य बना हुआ है, और यहां लगभग 20 करोड़ लोग रहते हैं, जो ब्राज़ील की कुल आबादी से अधिक है, जो स्वयं विश्व का पांचवां सर्वाधिक आबादी वाला देश है। उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र (दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला राज्य) की संयुक्त जनसंख्या 31 करोड़ 20 लाख, अमेरिका, जो विश्व का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, की जनसंख्या से अधिक है। वर्तमान में, बीस ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जिनकी जनसंख्या एक करोड़ से अधिक है। दूसरे चरम पर, पांच ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जिनकी जनसंख्या अभी तक दस लाख तक भी नहीं पहुंची है।
जबकि उत्तरप्रदेश (19 करोड़ 96 लाख), महाराष्ट्र (11 करोड़ 24 लाख), बिहार (10 करोड़ 38 लाख), पश्चिम बंगाल (9 करोड़ 13 लाख), और आंध्र प्रदेश (8 करोड़ 47 लाख) 2001 की तुलना में 2011 के आंकड़ों के अनुसार जनसंख्या की दृष्टि से पहले पांच स्थानों पर बने हुए हैं, मध्य प्रदेश (7 करोड़ 26 लाख), तमिलनाडु (7 करोड़ 21 लाख) को अपने सातवे स्थान से धकेल कर छठे स्थान पर आ गया है, और अब तमिलनाडु सातवें स्थान पर स्थित है। भारत के प्रत्येक दस व्यक्तियों में से छह से थोडे़ अधिक व्यक्ति इन सात राज्यों में से एक में रहते हैं।
7.0 जनसंख्या वृद्धिः सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश
बीस सर्वाधिक आबादी वाले राज्यों, जिनकी आबादी एक करोड़ से अधिक है, में से दस राज्यों ने 2001-2011 के दौरान अपनी जनसंख्या में पिछले दशक की तुलना में कम जनसंख्या जोड़ी। यदि इन दस राज्यों ने इस अवधि के दौरान अपनी जनसंख्या में उतनी ही वृद्धि की होती जितनी उन्होंने पिछले दशक में कि थी, तो अन्य सारी बातें, समान रहते हुए, भारत ने 2001-2011 के दशक के दौरान अपनी कुल जनसंख्या में 97 लाख लोगों की अतिरिक्त वृद्धि दर्ज की होती। 2000-2011 के दौरान कम वृद्धि की धारणा दक्षिणी राज्यों की सीमाओं के पार जाने लगी है, जहां दक्षिण में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक की वृद्धि, उत्तर में पंजाब, पूर्व में पश्चिम बंगाल और ओडिशा और पश्चिम में महाराष्ट्र ने पिछले दशक की तुलना में 2001-2011 के दौरान 11 से 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। 2001 की जनगणना के अनंतिम आंकड़ों ने यह अनुमानित किया थाः ‘‘यह साफ दिख रहा है कि दक्षिण के चार राज्यों में प्रजनन दर गिरावट अब स्थापित हो चुकी है, व पड़ोसी महाराष्ट्र व ओड़िषा एवं प. बंगाल तक फैल रही है’’।
पिछली दशकीय वृद्धि दर की तुलना में इस दशक में पंद्रह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पांच प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की है। ये राज्य हैं, जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, महाराष्ट्र और गोवा, और केंद्र शासित प्रदेश हैं, दिल्ली, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप। ये पंद्रह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश मिलकर देश की जनसंख्या के उन्तालीस प्रतिशत से अधिक हैं। तुलनात्मक बडे़ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली ने संबंधित अवधि में छब्बीस प्रतिशत अंक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है, जिसके बाद हरियाणा (8.53), राजस्थान (6.97) और महाराष्ट्र (6.74) का क्रमांक है।
बचे हुए सत्रह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 1991-2001 की तुलना में 2001-2011 में एक से पांच प्रतिशत के बीच गिरावट दर्ज की है। ये सत्रह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश मिलकर देश की कुल आबादी का 52 प्रतिशत से अधिक बनाते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक दस में से नौ से अधिक लोग उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रहते हैं, जिन्होनें जनसंख्या वृद्धि में ऋणात्मक वृद्धि दर दर्ज की है।
यह हमें 1991-2001 की तुलना में 2001-2011 में गिरावट की दर के सीमांकन की दृष्टि से जनसंख्या वितरण में एक अलग प्रकार के परिवर्तन का इशारा करता है। उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, जिन्होंने दशकीय आठ प्रतिशत से कम की वृद्धि दर दर्ज की है, जो हमारी राष्ट्रीय वृद्धि दर है, की संख्या 1991-2001 की दस की तुलना में, 2001-2011 में बढ़ कर सत्रह हो गई है, जबकि उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या, जिन्होंने दशकीय वृद्धि दर आठ प्रतिशत से अधिक दर्ज की है, पिछली पच्चीस से काफी कम होकर अठारह पर आ गई है। जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आठ प्रतिशत से कम की वृद्धि दर दर्ज की है उनकी कुल जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होकर यह 1991-2001 की 34 प्रतिशत की तुलना में 2001-2011 के दशक में उल्लेखनीय रूप से बढ़ कर 47 प्रतिशत हो गई है। बारह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, जिनकी कुल जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या के चौबीस प्रतिशत से थोड़ी अधिक है, की जनसंख्या वृद्धि 2001-2011 में पंद्रह प्रतिशत से कम है। ऐसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 1991-2001 में केवल तीन थी।
8.0 उपसंहार
- हांलाकि 1950 के बाद से प्रजनन क्षमता के घटते स्तर के कारणकिसी भी समय धीमी गति से ही सही विश्व की जनसंख्या का बढ़ना जारी है। 2019 में दुनिया भर में अनुमानित 7.7 बिलियन लोग थे जिनका 2030 तक लगभग 8.5 बिलियन, 2050 में 9.7 बिलियन एवं 2100 में 10.9 बिलियन हो जाना संभावित है।
- अनुमानित एक अरब से अधिक लोगों के बढ़ने के साथ, उप-सहारा अफ्रीका के देश 2019 एवं 2050 के बीच दुनिया की आबादी के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, एवं इस क्षेत्र की आबादी के शताब्दी के अंत तक बढ़ते रहने का अनुमान है। दूसरे क्षेत्रों की आबादी कम होने लगेगी।
- उच्च-प्रजनन वाले देशों में प्रति महिला आजीवन लगभग दो बच्चों के जन्म की दर तक गिरने के बावजुद, 2050 तक वैश्विक जनसंख्या के अनुमानित विकास का दो-तिहाई हिस्सा वर्तमान आयु संरचनाओं द्वारा संचालित किया जाएगा।
- 2050 तक वैश्विक आबादी में अनुमानित वृद्धि के आधे से अधिक सिर्फ नौ देशों में केंद्रित होंगे- लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, मिस्र, इथियोपिया, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, संयुक्त गणराज्य तंजानिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका।
- उर्वरता के निम्न स्तर, एवं कुछ स्थानों पर, उत्प्रवास की उच्च दर के कारण 55 देशों या क्षेत्रों की जनसंख्या 2019 एवं 2050 के बीच एक प्रतिशत या उससे अधिक घटने का अनुमान है।
- 2018 में, इतिहास में पहली बार, 55 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों ने पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों को जन्म दिया। अनुमानों से पता चलता है कि 2050 तक 65 से ऊपर के दोगुने से अधिक लोग होंगे जो पाँच से कम उम्र के बच्चे होंगे।
- विश्व की जनसंख्या के लिए जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 2019 में 72.6 वर्ष तक पहुंच गई, जो कि 1990 की तुलना में 8 वर्ष से अधिक का सुधार था।
यहां भारत एवं विश्व के लिए कुछ उपयोगी संकेतक दिए गए हैं।
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