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ब्रह्मांड एवं सौर-मण्डल भाग - 2
5.0 सौर मंडल के ग्रह
एक तारे के चारों ओर अंडाकार कक्षा में घूम रहे एक खगोलीय पिंड को ग्रह कहा जाता है। ग्रहों को आमतौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता हैः (i) आंतरिक ग्रह (बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह), और (ii) बाह्य ग्रह (बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो- बौना ग्रह)। हाँ बर्फीले दिग्गज भी (ii) के तहत एक श्रेणी है।
चार आतंरिक या लौकिक ग्रहों में घनी, पथरीली रचनाएँ हैं, कुछ या कोई चंद्रमा नहीं, और चक्रपथ प्रणाली नहीं होती। वे काफी हद तक दुर्दम्य खनिजों से बने हुए हैं, जैसे सिलिकेट, जो उनकी परत को बनाते हैं, और धातुओं, जैसे लोहा और गिलट, जो उनके अन्तर्भाग को बनाते हैं। चार आतंरिक ग्रहों में से तीन ग्रह (शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह) में इतना पर्याप्त वायुमंडल है जो मौसम का निर्माण करने के लिए पर्याप्त है; इन सभी में प्रभाव खड्ड और विवर्तनिक सतह विशेषताएं होती हैं, जैसे दरार घाटियां और ज्वालामुखी। आतंरिक ग्रह शब्द को अवर ग्रहों से भ्रमित नहीं करना चाहिए, जिसका अर्थ है वे ग्रह जो पृथ्वी की तुलना में सूर्य के अधिक निकट हैं (अर्थात बुध और शुक्र)।
चार बाह्य ग्रह, या गैस दीर्घकाय (कभी-कभी इन्हें बृहस्पति-संबद्ध ग्रह भी कहा जाता है), संयुक्त रूप से उस पिंड का 99 प्रतिशत भाग बनाते हैं जो सूर्य की परिक्रमा करता है। बृहस्पति और शनि के पिंड पृथ्वी के पिंड से अनेक दसों गुना बडे़ हैं, और इनपर हाइड्रोजन और हीलियम बहुतायत से पायी जाती है। उनकी तुलना में यूरेनस और नेपच्यून कहीं अधिक छोटे हैं (पृथ्वी पिंड के 20 गुना से कम) और इनकी रचना में अधिक बर्फ का भाग है। इन्हीं कारणों से अनेक खगोलविदों का कहना है कि वे अपनी स्वयं की श्रेणी के हैं-‘‘बर्फीले दीर्घकाय।‘‘ सभी चारों गैस दीर्घकायों के अपने चक्रपथ हैं, हालांकि केवल शनि के चक्रपथ का ही पृथ्वी से आसानी से अवलोकन किया जा सकता है। श्रेष्ठतर ग्रह शब्द पृथ्वी की कक्षा से बाहर के ग्रहों के लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द है, और इस प्रकार इनमें दोनों बाह्य ग्रह और मंगलग्रह शामिल हैं।
6.0 पृथ्वी
व्यासः 12,756 किलोमीटर (7,926 मील)
पिंडः 5,976 मिलियन, मिलियन, मिलियन टन
तापमानः- 88 अंश सेल्सियस से 58 सेल्सियस
सूर्य से दूरीः150 मिलियन किलोमीटर (93 मिलियन मील)
दिन की लंबाईः23.92 घंटे
वर्ष की लंबाईः365.25 पृथ्वी दिवस
सतह का घनत्वः1 किलोग्राम बराबर 1 किलोग्राम
पृथ्वी का आकार एक गेंद जैसा है, परंतु यह संपूर्णतः गोल नहीं है। पृथ्वी का पूर्णतः चक्रानुक्रम बल विश्व को भूमध्यरेखा पर हल्के से उभार देता है, और उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर इसे हल्का सा चपटा बनाता है। अतः पृथ्वी एक चपटा गोला है, या एक ‘‘जिऑईड़‘‘ है।
लौकिक ग्रहों (बुध, शुक्र, पृथ्वी, और मंगल ग्रह) में अपने आकार और सूर्य से इसकी दूरी के कारण पृथ्वी अनोखी है। सौर मंडल में पृथ्वी इस दृष्टि से अनोखी है कि यह जीवन का समर्थन करती हैः इसके आकार, गुरुत्वाकर्षण खिंचाव और सूर्य से इसकी दूरी, इन सभी विशेषताओं ने जीवन के विकास के लिए अनुकूल स्थितियों का निर्माण किया है। यह इतनी पर्याप्त बड़ी है कि यह एक वातावरण और जलमण्डल का विकास कर सके और उसे बनाये रख सके। पृथ्वी पर तापमान की सीमा ऐसी है कि पानी इसकी सतह पर तरल, ठोस और गैस के रूप में अस्तित्व में रह सकता है। किसी अन्य विशेषता की तुलना में पानी पृथ्वी को अधिक विशिष्ट और अनोखी बनाता है। पृथ्वी एक नाजुक गेंद है जो सफेद बादलों के पतले वेष्टन से आच्छादित है। नीला पानी और बादलों का घूमता हुआ स्वरुप जो इसके दृश्य पर हावी रहता है, पृथ्वी की व्यवस्था में पानी के महत्त्व को रेखांकित करता है। अतः पृथ्वी पर विद्यमान जीवन को विभिन्न कारकों के भाग्यशाली संयोजन का एक अत्यंत संयोगवश हुआ परिणाम माना जा सकता है, हालांकि ये सभी कारक मनुष्य के नियंत्रण से बाहर के हैं।
6.1 पृथ्वी का वायुमंडल
पृथ्वी की रचना के प्रारंभिक चरणों के दौरान निरंतर होने वाले ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण राख, लावा, कार्बन और भाप इस ग्रह की सतह पर रिसते रहे। पानी ने महासागरों का निर्माण किया, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में प्रविष्ट हो गई, या महासागरों में घुल गई। पानी की बूंदों से बने बादलों ने सूर्य के विकिरण के कुछ भाग को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर दिया। पृथ्वी का तापमान स्थिर होता गया और जीवन के प्रारंभिक प्रकार उभरने शुरू हुए, जिन्होंने कार्बन डाइऑक्साइड को जीवनदायी ऑक्सीजन में परिवर्तित करना शुरू कर दिया।
पृथ्वी के महासागर और समुद्र 367 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को व्याप्त करते हैं अर्थात, मंगलग्रह की सतह से दुगना और चंद्रमा की सतह से नौ गुना अधिक क्षेत्र।
प्रशांत महासागर क्षेत्र में पृथ्वी की सतह के सबसे गहरे क्षेत्र हैं - सागर खाईयां। सबसे अधिक गहरा है चैलेंजर, जो मरिआना खाई में पृथ्वी की परत के अंदर 11022 मीटर तक जाता है।
यदि पृथ्वी के सबसे ऊंचे बिंदु माउंट एवरेस्ट को, जिसकी ऊँचाई 8848 मीटर है, इस खाई में गिराया जाए तो इसकी चोटी प्रशांत की सतह तक भी नहीं पहुँच पायेगी।
7.0 क्षुद्र ग्रह
क्षुद्र गृह छोटे सौर मंडलीय पिंड हैं जो मुख्यतः दुर्दम्य चट्टानों और धातुवत खनिजों से निर्मित हैं, जिनमें कहीं-कहीं कुछ बर्फ भी है।
क्षुद्र ग्रहों की पट्टी मंगलग्रह और बृहस्पति के बीच की कक्षा में व्याप्त है, जो सूर्य से 2.3 और 3.3 ए.यू. के बीच है। इन्हें सौर मंडल की निर्मिति के दौरान के उन अवशेषों के रूप में माना जाता है जो बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण हस्तक्षेप के कारण संगठित होने में असफल रहे।
आकार के मामले में क्षुद्र ग्रह सैकड़ों किलोमीटर जितने बडे़ से लेकर सूक्ष्मदर्शी से देखने योग्य जितने छोटे भी हो सकते हैं। केवल सबसे बडे़ सेरेस क्षुद्रग्रह को छोड़ कर बाकी क्षुद्र ग्रहों को छोटे सौर मंडलीय पिंड माना जाता है।
क्षुद्र ग्रह पट्टी में एक किलोमीटर व्यास से बडे़ दसों हजार, या संभवतः कई मिलियन पिंड मौजूद हैं। इसके बावजूद क्षुद्र ग्रह पट्टी का कुल पिंड पृथ्वी के पिंड के एक हजारवें भाग से अधिक होना संभव नहीं है। क्षुद्र ग्रह पट्टी में ये पिंड काफी बिखरे-बिखरे हैं। अंतरिक्षयान नियमित रूप से इनके बीच से बिना दुर्घटना के निकलते रहते हैं। एक मीटर व्यास तक के क्षुद्र ग्रहों को उल्कापिंड कहा जाता है। एक उल्कापिंड़ पृथ्वी के वायुमंड़ल में प्रवेश करता है, तो उसे उल्का कहते हैं, और यदि वह सतह तक पहुंचा, तो उसे उल्का (मिटियेरॉईट) कहते हैं।
7.1 धूमकेतू
धूमकेतू सौरमंडल के सबसे दर्शनीय और अप्रत्याशित पिंडों में माने जाते हैं। उनकी तुलना विशाल गंदे स्नोबॉल से की जाती है, क्योंकि वे जड़ीकृत गैसों से बने होते हैं (पानी, अमोनिया, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड), जो छोटे चट्टानी और धातुवत टुकड़ों को साथ में बांधे रखते हैं। कई धूमकेतू काफी दीर्घीभूत कक्षाओं के क्षेत्र में यात्रा करते हैं, जो उन्हें प्लूटो के पार ले जाती हैं। उनकी वापसी पर धूमकेतू तभी दिखाई देना शुरू होते हैं जब वे शनि की कक्षा के अंदर प्रविष्ट होते हैं। एक अपेक्षाकृत बड़ा धूमकेतू हैली धूमकेतु है। हैली धूमकेतु की कक्षा उसे प्रत्येक 76 वर्षों में पृथ्वी के निकट लाती है। इसका अंतिम दौरा 1986 में हुआ था।
7.2 उल्कापिंड
उल्का पदार्थ के पिंड हैं जो तीव्र गति से अंतरिक्ष में यात्रा करते हैं जो पृथ्वी से लगभग 200 किलोमीटर ऊँचाई पर जब वायुमंडल (योण क्षेत्र) में प्रवेश करते हैं तो प्रकाशमान हो जाते हैं, क्योंकि वे घर्षण से गर्म हो जाते हैं। आम तौर पर यह बाद की प्रक्रिया सामग्री को उल्का धूल में फैला देती है। एक उल्का को प्रचलित भाषा में ‘‘उल्कापात‘‘ या ‘‘टूटता तारा‘‘ कहा जाता है।
7.3 उल्का
ठोस पदार्थ का कोई छोटा सा अंश जो अंतरिक्ष से पृथ्वी, चंद्रमा या किसी दूसरे ग्रह पर गिरा है उसे उल्का कहते हैं। इसकी रचना निकल-लोहा मिश्र धातु के विभिन्न अनुपातों (आमतौर पर 10 प्रतिशत निकल और 90 प्रतिशत लोहा) और सिलिकेट खनिजों से बनी होती है।
एरिजोना (अमेरिका) में एक उल्का गड्ढा 4,200 फुट (1,300 मीटर) गहरा है, जो विश्व का सबसे बड़ा उल्का गड्ढा है। यह 10,000 वर्ष से भी अधिक समय पहले बना था।
8.0 चंद्रमा
अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास के साथ चंद्रमा सौर मंडल का सबसे अच्छी तरह से जाना-पहचाना ग्रहीय पिंड़ बन गया है। चंद्रमा पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है, जिसका व्यास 3,470 किलोमीटर है। चंद्रमा कई बिलियन गड्ढों के छालों से ढँका हुआ है, जिनमें चट्टानों के नमूनों की सतह पर बने आकार में सूक्ष्म गड्ढों से लेकर विशाल गोलाकार घाटियां हैं जिनका व्यास सैकड़ों किलोमीटर है। इनमें से प्रत्येक गड्ढा चट्टानों के टुकड़ों के चंद्रमा की सतह पर टकराने से बना होगा।
चंद्रमा पृथ्वी की तुलना में बहुत धीमी गति से घूमता है, और एक चक्र पूर्ण करने में 27 दिन से कुछ अधिक समय लेता है। चूंकि यह पृथ्वी के चारों ओर घूमने में लगभग समान समय लेता है, अतः इसका समान चेहरा हमेशा पृथ्वी के सामने होता है। एक पूर्ण चन्द्र से अगला पूर्ण चंद्र आने में 29.5 दिन का समय लगता है। महीने के विभिन्न समय के दौरान चंद्रमा विभिन्न आकार लिए हुए दिखाई देता है, क्योंकि पृथ्वी के संबंध में इसकी स्थिति रहती है। इन विभिन्न आकारों को चंद्रमा के चरण कहा जाता है।
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