यूपीएससी तैयारी - विश्व एवं भारतीय भूगोल - व्याख्यान - 19

SHARE:

सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!

SHARE:

भारत - वनस्पति, मृदा और वन भाग - 2

[Read in English]


6.0 प्राकृतिक वनस्पति, पौधों और पशु जीवन के प्रमुख प्रकार

आमतौर पर प्राकृतिक वनस्पति शब्द में मानव द्वारा उगाये गए या कृषि के माध्यम से उत्पादित उत्पादों का समावेश नहीं किया जाता। लेकिन आज के परिदृश्य में, पूर्ण रूप से मानव के प्रभाव से मुक्त और इस प्रकार से पूर्ण रूप से प्राकृतिक वनस्पति मिलना काफी कठिन है। किसी क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति उस विशिष्ट क्षेत्र की जलवायु के सापेक्ष्य होती है। विश्व के विभिन्न इलाकों में पायी जाने वाली वनस्पतियों के स्वभाव के मुख्य घटक है क्षेत्र का तापमान और आर्द्रता की उपलब्धता। चूंकि भारत जलवायु की विविधताओं वाला देश है, अतः यहां प्राकृतिक वनस्पतियों की विविधता भी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। भारत एक ऊष्मकटिबन्धीय देश होने के नाते देश के सभी भागों का तापमान पौधों के विकास के लिए काफी अनुकूल है। इसलिए अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा पौध आच्छादन का सबसे महत्वपूर्ण नियंत्रक है। देश के वनों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। 

6.1 सदाबहार वन (Evergreen Forests)

सदाबहार वन मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहाँ 200 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इन क्षेत्रों में पश्चिमी घाट और उत्तरपूर्वी भारत के पर्वतीय क्षेत्र शामिल हैं, विशेष रूप से उप-हिमालयीन पट्टा। इन वनों के वृक्षों की मुख्य विशेषता है इनकी ठोस और कठोर लकडी, जैसे सागौन, शीशम, आबनूस और आयरनवुड। इन क्षेत्रों में बाँस भी आमतौर पर पाया जाता है। चूंकि इन क्षेत्रों में वर्ष के सभी दिनों में पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध रहती है, और तापमान भी उच्च रहता है, अतः यहाँ की वनस्पति पूरे वर्ष सक्रीय रहती है और पतझड़ का कोई विशेष मौसम नहीं होता। इसीलिए ये वन हमेशा हरे दिखाई देते हैं। इन प्रदेशों के वृक्ष बहुत ऊंचे होते हैं और इसलिए अनेक उपरिरोही पौधों को भी मददगार बनते हैं। 

6.2 पर्णपाती वन (Deciduous Forests)

ये उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहाँ वर्षा की मात्रा 150 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर होती है। हमारे देश में पर्णपाती वन प्रायद्वीपीय क्षेत्र के बडे़ भाग को व्याप्त करते हैं। इन क्षेत्रों में सागौन, साल, चंदन और शीशम जैसे वृक्षों का विकास अच्छा होता है। चूंकि यहाँ स्वभाव मौसमी है, अतः यहाँ के वृक्ष शुष्क मौसम में अपने पत्तों को गिरा देते हैं। ये वन सदाबहार तुलना में कम घने हैं, और इनके वृक्षों की लंबाई भी तुलनात्मक रूप से कम होती है। इन वनों में उपरिरोही पौधों की उपस्थिति नगण्य है। व्यावसायिक दृष्टी से ये वन देश के लिए अत्यंत हैं। वे उत्तम गुणवत्ता की लकड़ी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। 

6.3 शुष्क वन (Dry Forests) 

जिन क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा 75 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है, वे क्षेत्र शुष्क वनों के क्षेत्र कहलाते हैं। इस प्रकार की वनस्पति के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में राजस्थान के अर्ध-मरुस्थलीय क्षेत्र और पंजाब और हरियाणा के दक्षिणी भाग शामिल हैं। इन क्षेत्रों की प्रमुख वनस्पतियों में कंटीले वृक्ष और झाड़ियां हैं।

6.4 पर्वतीय वन (Hill Forests)  

इन्हें पहाड़ी वन भी कहा जाता है। ये वन दक्षिणी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों के ऊपरी भागों और हिमालय क्षेत्र में पाये जाते हैं। चूँकि ऊंचाई मौसम का एक प्रभावशाली नियंत्रक है, अतः इन वनों की वनस्पति का स्वरुप ऊंचाई के अनुसार बदलता रहता है। शिवालिक का तलहटी क्षेत्र साल और बांस आदि उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती जंगलों से आच्छादित है। समुद्र सतह से 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बांज (ओक) और अखरोट के जंगल और कुछ देवदार के जंगलों के गीले पहाड़ी जंगल पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के बाद जो क्षेत्र आता है वह है 1600 और 3300 मीटर के बीच के शंकुधारी वन के क्षेत्र। इस क्षेत्र के प्रमुख वृक्षों में चीड, देवदार, रजत देवदार और रेड पाइन मुख्य हैं। शंकुधारी वन क्षेत्र के ऊपरी भाग में विस्तारित हैं रजत देवदार, और संटी आदि वृक्षों वाले अल्पाइन वन, जो 3600 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्र से ऊपर के क्षेत्र में स्थित हैं। इनके बाद आते हैं अल्पाइन के घास के मैदान और छोटे झाड़ीनुमा वृक्ष वाले वन। इस प्रकार, पहाड़ी क्षेत्रों में वनस्पति का क्षेत्रीकरण खड़ा है, जिसमें उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों से लेकर टुंड्रा प्रदेश तक की सभी वनस्पतियां इन क्षेत्रों में पायी जाती हैं।

6.5 ज्वारीय वन (Tidal Forests)

गंगा और महानदी जैसी बड़ी नदियों के ज्वारनदमुख (मुहाने) तटीय वनस्पतियों को प्रोत्साहित करते हैं। (तटीय का अर्थ है समुद्र का उथले पानी का क्षेत्र, मुख्य रूप से महाद्वीपीय कगार) इन वनों के अधिकांश वृक्ष ऐसे होते हैं जो दलदली परिस्थितियों में विकसित हो सकते हैं। सुन्दरी वृक्ष ऐसे वातावरणों में उगने वाले वृक्षों का एक उदाहरण है। ऐसे वनों को सदाबहार वन भी कहा जाता है। अचरा रत्नागिरी (महाराष्ट्र), कुन्दापुर (कर्नाटक) पिछावरम (तमिलनाडु) और वेम्बानद (केरल) में भी सदाबहार वन हैं। 




7.0 भारत में वनों की सीमा 

पिछले कुछ दशकों से भारत के कुल वन क्षेत्र के अनुपात में बदलाव होते रहे हैं। 1980 के दशक की शुरुआत तक भारतीय वन अधिनियम के तहत भूमि को वनों के अंतर्गत आच्छादित के रूप में अधिसूचित किया गया था, चाहे इन क्षेत्रों में वनों द्वारा आच्छादित क्षेत्रफल की वास्तविक स्थिति कुछ भी क्यों ना हो। इन दस्तावेजों के अनुसार देश में 71.8 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को वनों के अंतर्गत क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। हालाँकि उपग्रह डेटा पर आधारित मानचित्रण और विश्लेषण की उपलब्धता के बाद वनों के अंतर्गत आच्छादित वास्तविक क्षेत्रफल की सटीक जानकारी उपलब्ध होना शुरू हुआ है और 1980-82 के राष्ट्रीय दूर संवेदी एजेंसी के मानचित्रण चक्र के द्वारा किये गए मानचित्रण के अनुसार वनों के अंतर्गत आने वाला वास्तविक क्षेत्र अनुमानित 46 मिलियन हेक्टेयर था। उपग्रह आधारित जानकारी का उपयोग करके वन क्षेत्र का मानचित्रण अब निम्न परिभाषाओं के उपयोगानुसार किया गया हैः वन आच्छादन इसे निम्न रूप में परिभाषित किया गया है एक हेक्टेयर क्षेत्र से अधिक के क्षेत्र की वह समस्त भूमि जिसका वृक्ष मंडप घनत्व 10 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे समस्त भूक्षेत्र को सांविधिक रूप से वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है अथवा नहीं किया जा सकता। 

  1. बहुत सघन वनः ऐसी समस्त भूमि जिसके वन आच्छादन का मंडप घनत्व 70 प्रतिशत या उससे अधिक है। 
  2. मध्यम सघन वनः ऐसी समस्त भूमि जिसके वन आच्छादन का मंडप घनत्व 40-70 प्रतिशत है। 
  3. खुले वनः समस्त भूमि जिसके वन आच्छादन का मंडप घनत्व 10 से 40 प्रतिशत है। 
  4. सदाबहार आवरण (Mangrove cover): सदाबहार वन उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय तटीय और अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में मुख्य रूप से पाया जाने वाला नमक सहिष्णु वन है सदाबहार आवरण दूरसंवेदी डेटा की डिजिटल रूप में व्याख्या के अनुसार सदाबहार वनस्पति के अंतर्गत आच्छादित क्षेत्र है। यह वन आवरण का ही एक भाग है और इसे भी तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है बहुत सघन, मध्यम सघन और खुला। 

वनों के उपरोक्त वर्गीकरणों के अतिरिक्त छोटे झाड़ीनुमा वृक्षों के आवरण के लिए भी मानचित्रण किया गया है। इसमें वह सभी भूमि सम्मिलित है जो वन क्षेत्र के आस-पास है और जिसका वृक्ष मंडप घनत्व 10 प्रतिशत से कम है, साथ ही साथ, दर्ज किये गए वन क्षेत्र के बाहर के ज़मीन के उन टुकड़ों के लिए जो वृक्षाच्छादित हैं (ब्लॉक और रैखिक) जिन्हें वनाच्छादित क्षेत्र से बाहर रखा गया है, जिसका न्यूनतम मानचित्रणीय क्षेत्र 1 हेक्टेयर से कम है और दर्ज किये गए वन क्षेत्र के बाहर उगे हुए वृक्षों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है।

वनाच्छादित क्षेत्रों के आंकड़ें इन्हीं मानदंडों के आधार पर एकत्रित किया जाता है और यह जानकारी वार्षिक रूप से प्रकाशीत की जाती है 2010 में घोषित किया गया वनाच्छादित क्षेत्र 32.02 प्रतिशत है जो 2004 में घोषित 22.76 प्रतिशत से बढा हुआ है। हालाँकि बहुत सघन वन क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 2 प्रतिशत से भी कम है, और मध्यम वनाच्छादित क्षेत्र कुल वनाच्छादित क्षेत्र का आधा है। खुले वनों का क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 9 प्रतिशत है। देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत क्षेत्र सघन वनाच्छादित है। 

वनाच्छादित क्षेत्र देश के एक भाग से दूसरे भाग में बदलता रहता है। कुल वनाच्छादित क्षेत्र के पांच प्रमुख राज्य हैं मध्यप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ, ओड़िसा और महाराष्ट्र। इन सभी राज्यों में कुल वनाच्छादित क्षेत्र 4.68 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है। भारत एक ऐसा देश है जिसने पिछले दो दशकों में वनों की कटाई प्रवृत्ति को उलट दिया है। एफएओ के अनुसार, 1990 से 2000 के दौरान वनाच्छादन के क्षेत्र में भारत पांचवां सबसे बड़ा लाभान्वित देश था, और 2000 से 2010 के दौरान इस क्षेत्र में वह तीसरा सबसे बडा लाभान्वित देश था।

 कुल क्षेत्र से वन क्षेत्र का अनुपात अंदमान और निकोबार द्वीपों के 90 प्रतिशत से हरियाणा के 10 से भी कम के रूप में विभिन्न राज्यों में बदलता रहता है। जिन राज्यों ने उनके कुल क्षेत्र में वनाच्छादित क्षेत्र का अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक दर्ज किया है वे हैं, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, जम्मू एवं काश्मीर, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश।

7.1 वानिकी एवं वन संरक्षण

वन संसाधनों का विकास, उनका उपयोग और उनका संरक्षण वानिकी के अंतर्गत आता है। खनन और कृषि की तरह ही वानिकी भी एक प्राथमिक गतिविधि है और काफी हद तक विकास के लिए भौतिक परिस्थितियों पर निर्भर रहती है। वानिकी को केवल उन जगहों पर एक आर्थिक गतिविधि के रूप में क्रियान्वित किया जा सकता है जहाँ जंगल विकसित होते हैं। वे काफी मात्रा में आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य उत्पाद प्रदान करते है, इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं, इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, और अन्य उत्पाद जैसे बांस गोंद और पत्ते। जबकि इमारती और जलाऊ लकडी को वनों के प्रमुख उत्पाद कहा जाता है, अन्य उत्पादों को गौण उत्पाद माना जाता है। 

देश में विद्यमान कुल वनों में से लगभग आधे वन पर्याप्त वृक्षों से आच्छादित माने जाते हैं। हालाँकि देश की विशाल जनसँख्या के कारण, प्रति व्यक्ति उत्पादक वन क्षेत्र केवल लगभग 0.05 हेक्टेयर है। इस आंकडे़ में जनसँख्या में वृद्धि के चलते 1951 के 0.2 हेक्टेयर की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है। वन उत्पादों की बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप उत्पादक वनों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में कमी आई है, और ऐसे कई क्षेत्र हैं जो पूर्व में घने वनीय क्षेत्र थे, आज वृक्षविहीन हो गए हैं। ऐसा माना जाता है, कि वर्त्तमान राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र किसी जमाने में घने वनों का क्षेत्र हुआ करता था।

इमारती लकड़ी का उत्पादन करने वाले वन उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है, और ऐसे वृक्षों की जो प्रजातियां भारत में पायी जाती हैं वे हैं सागौन, साल, शीशम, देवदार और चीड। इनमें से पहली तीन प्रजातियां भारत के मध्य और दक्षिणी उष्णकटिबंधीय वनों और हिमालय के तलहटी क्षेत्र में पायी जाती हैं, जबकि चीड और देवदार जैसे शंकुवृक्ष हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं। कुछ शंकुवृक्ष दक्षिणी भारत की ऊंची पर्वत मालाओं की ढलानों के ऊपरी क्षेत्रों में भी पाये जाते हैं। चंदन के वृक्ष, जो एक बहुमूल्य प्रजाति है, वह प्रायद्वीपीय क्षेत्र के कर्नाटक में पाये जाते हैं। मध्य प्रदेश सागौन का एक महत्वपूर्ण उत्पादक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शीशम के उत्पादक हैं, तो कर्नाटक चन्दन का मुख्य उत्पादक राज्य है। साल के अधिकांश वन पूर्वी प्रायद्वीप के छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्यों में पाये जाते हैं। वनों से प्राप्त होने वाले उत्पादों में कुछ अन्य उत्पाद भी महत्वपूर्ण हैं। बांस, गोंद और कुछ वृक्षों की पत्तियां वनों से प्राप्त होने वाले अन्य महत्वपूर्ण उत्पाद हैं। ये उत्पाद कई क्षेत्रों के वनों से प्राप्त होते हैं, विशेष रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओड़िषा के वनों से। राल हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के वनों में प्राप्त चीड के वृक्षों से प्राप्त किया जाता है। काथा (चमड़ा कमाने के काम आनेवाला एक पदार्थ) और लाख (मुहर लगाने का मोम या चपड़ा) भी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश और बिहार के वनों से प्राप्त होते हैं। 

उत्पादक वनों के क्षेत्र में तेजी से होने वाली कमी के परिणामस्वरूप वनों के संरक्षण और उन क्षेत्रों में पुनर्वनीकरण करने का विचार उत्पन्न हुआ जहां वनोन्मूलन के कारण महत्वपूर्ण वनस्पतियों में कमी आई है और बड़े पैमाने पर भूक्षरण हुआ है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण वन संसाधनों में गिरावट के अतिरिक्त भूक्षरण और कई पारिस्थितिकी खतरे पैदा हुए हैं। सरल शब्दों में, संरक्षण को संसाधनों के उस प्रबंधन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसके द्वारा वनों के लाभ अधिक से अधिक लोगों को अधिक से अधिक समय तक प्राकृतिक या पारिस्थिकी संतुलन को नुकसान पहुंचाए बिना प्रदान किये जा सकें। वनीकरण की समस्यों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय वन नीति में 1952 मेंसंशोधन किया गया। इसमें कार्यात्मक आधार पर संरक्षित वन और गाँव के वन के रूप में वनों के वर्गीकरण का प्रस्ताव रखा गया। इसमें, जहां संभव हो वहां मुक्त भूमि निर्मित करने और वन क्षेत्र को देश के कुल भू-क्षेत्र के 33 प्रतिशत तक ले जाने का उद्देश्य रखा गया। इसमें चारा, इमारती लकडी और जलाऊ लकड़ी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्तरोत्तर बढ़ती आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रावधान किया गया। वनों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से कई उपाय किये गए हैं राष्ट्रीय मुक्त रोपण त्योहार, वन महोत्सव हर साल देश भर में मनाया जाता है। मार्च 21 को विश्व वन दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

वन क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से उठाये गए अन्य कदमों में छठी पंच वर्षीय योजना में शुरू की गई सामाजिक वनीकरण की योजना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस योजना का उद्देश्य समुदायों की इमारती लकडी, जलाऊ लकड़ी और चारे की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए कृषि वनों का सृजन करना है, जिसके अंतर्गत सार्वजनिक और निजी भूमि पर स्थानीय स्तर पर उपयुक्त पौधे लगाना है। जिन क्षेत्रों में वनस्पति आच्छादन में गिरावट आई है, वहां बडे़ पैमाने पर पुनर्वनीकरण किया रहा है। सरकार ने 1980 में वन (संरक्षण) अधिनियम अधिनियमित किया और अन्य उपयोगों के लिए वन भूमि के विपथन को कम करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। सार्वजनिक भूमि और कुछ हद तक निजी भूमि से पेड़ों की कटाई के लिए कुछ निर्बंध लागू किये गए हैं। इमारती और जलाऊ लकड़ी के उत्पादन में ठेकेदारों की भूमिका को न्यूनतम करने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं। जैविक दबाव के कारण जंगलों में गिरावट भी एक चिंता का कारण है। इस संबंध में, कार्ययोजनाएं तैयार करने और जंगलों में कटाई के लिए दिशानिर्देश तैयार किये गए हैं। 

1990 में मंत्रालय ने ऐसे क्षेत्रों से उपभोग का एक हिस्सा लेने के आधार पर अवक्रमित वनों के संरक्षण और विकास में गांव समुदायों को शामिल करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। इस कदम ने देश में संयुक्त वन प्रबंधन की अवधारणा की शुरुआत की। सभी राज्यों ने पहले ही संयुक्त वन प्रबंधन के लिए प्रस्ताव जारी कर दिए हैं, और इस कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 17 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र का प्रबंधन विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से किया जा रहा है। यह प्रस्ताव सभी राज्यों ने स्वीकार कर लिया है। 

सरकार ने फलोपभोग साझेदारी के आधार पर अवक्रमित वनों के उत्थान में अनुसूचित जनजाति और ग्रामीण गरीबों के सहयोग की पूरी तरह से केंद्र प्रायोजित योजना की पहल की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मुख्य रूप से जनजातीय क्षेत्रों में अवक्रमित वनों के पुनर्वास में स्थानीय लोगों को शामिल करना है। जिन राज्यों में जनजातीय जनसँख्या का आधिक्य है, उनमें से कई राज्यों में जनजातीय समुदायों को मजदूरी रोजगार और फलोपभोग योजना भी शुरू की गई है।

सरकार ने एक एकीकृत वन संरक्षण योजना तैयार की है, जिसके उद्देश्य बुनियादी ढ़ांचा विकास, कार्य योजनाएं तैयार करना और जंगल की आग का नियंत्रण और प्रबंधन हैं। यह योजना दसवीं पंचवार्षिक योजना में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल करने के उद्देश्य से तैयार की गई थी। 

देहरादून की भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद वानिकी अनुसंधान के कार्य में लगी हुई शीर्ष संस्था है। परिषद के अंतर्गत कई वानिकी अनुसंधान संस्थान और केन्द्र हैं जो उनके संबंधित पर्यावरण जलवायु क्षेत्रों में वानिकी अनुसंधान करने के लिए जिम्मेदार हैं। इन संस्थानों और केन्द्रों में वानिकी अनुसंधान संस्थान, देहरादूनय शुष्क वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुरय वर्षावन अनुसंधान संस्थान, जोरहाटय उष्णकटिबंधीय वानिकी अनुसंधान संस्थान, जबलपुरय वन अनुवांशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूरय हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमलाय वन उत्पादकता संस्थान, रांचीय सामाजिक वानिकी और पर्यावरण पुनर्वासकेंद्र, इलाहाबाद; और वानिकी अनुसंधान एवं मानव संसाधन विकास संस्थान, छिंदवाड़ा शामिल हैं। मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय भारतीय प्लाईवुड़ उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, बंगलौर, यांत्रिक लकड़ी उद्योग प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान और प्रशिक्षण में लगा हुआ है। वानिकी के क्षेत्र में एक और स्वायत्त संगठन है भोपाल का भारतीय वन प्रबंधन संस्थान। यह संस्थान वन प्रबंधन में शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान और परामर्श कार्य करता है।

8.0 वन्य जीवन 

प्राकृतिक भूगोल, जलवायु और प्राकृतिक वास में एक विशाल विविधता के साथ, भारत के विभिन्न भागों में जानवरों और पक्षियों की एक विस्तृत श्रृंखला है। भारत में पशुओं, पक्षियों और कीटों की प्रजातियों की कुल संख्या हजारों में है। केवल पक्षियों की प्रजातियां ही 1200 से अधिक हैं। ऐसा अनुमान है, कि दुनिया भर में पायी जाने वाली वन्य जीवन प्रजातियों में से 80 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व भारत में उपस्थित है। 

भारत में पायी जाने वाली स्तनधारी प्रजातियों में हाथी सबसे विशाल है, और हालाँकि उनकी संख्या में काफी गिरावट आई है, फिर भी उनकी संख्या हजारों में है। हाथी मुख्य रूप से असम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड़, मध्य-भारत और दक्षिण के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु राज्यों में  पाये जाते हैं। भारत में पाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा स्तनधारी है गैंड़ा, जो किसी जमाने में समूची गंगा घाटी में बहुतायत में पाया जाता था हालांकि वर्तमान में उनकी संख्या घट कर 1500 से भी कम रह गई है। वर्तमान में वे पश्चिम बंगाल और असम के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते हैं। उनमें से अधिकांश गैंडे़ असम के मानस और काजीरंगा अभयारण्यों में और पश्चिम बंगाल के जलदापारा अभयारण्य में संरक्षित रूप से जीवित हैं। एक और विशाल स्तनधारी, जंगली भैंस, असम के कुछ क्षेत्रों और छत्तीसगढ के जंगलों में पायी जाती है। मध्य क्षेत्र के वन जंगली भैंसों के घर हैं। 

बडे़ मांसाहारी जीवों में बाघ एक महत्वपूर्ण प्राणी है। भारत के अधिकांश बाघ वन्य जीव रिजर्व, अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में रह रहे हैं। उनका वास हिमालय की तलहटी, पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों और मध्य प्रदेश और उससे लगे हुए कुछ क्षेत्रों में है। भारत में सिंहों की भी काफी बड़ी तादाद विद्यमान है। हालाँकि उनकी संख्या में काफी गिरावट आई है, और वर्तमान में केवल गुजरात के गीर के जंगलों तक सीमित हैं। संरक्षण के चलते, बाघों और सिंहों, दोनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जंगली भेडें और बकरियां हिमालय क्षेत्र में, विशेष रूप से जम्मू एवं कश्मीर में पायी जाती हैं। भारत के वन कई अन्य प्रकार के वन्य पशुओं के भी वास हैं, जिनमें भालुओं की विभिन्न किस्में, चीते, तेंदुए हिरण और बारहसिंघों की विभिन्न किस्में शामिल हैं। हिमालय क्षेत्र में याक का भी वास है। इसके अतिरिक्त यहाँ लकड़बग्घे, लोमड़ी, जंगली कुत्ते, और बिल्लियों की विभिन्न प्रजातियां भी पायी जाती हैं। भतार में बंदरों और लंगूरों की भी अनेक किस्में उपलब्ध हैं। 

सरीसृपों की विविधता भी बहुत विशाल है। केवल सर्पों की प्रजातियां और उप प्रजातियां ही हजारों में हैं। भारत में पाये जाने वाले सबसे जहरीले सांपों में कोबरा (किंग कोबरा सहित), करैत, और वाईपर हैं। इसके अतिरिक्त गैर जहरीले सांपों, जलीय सांपों की और अजगरों की भी अनेक किस्में भारत में पायी जाती हैं। भारत के जलीय क्षेत्रों में निवास करने वाले सरीसृपों में मगरमच्छ और घड़ियाल काफी महत्वपूर्ण हैं। गंगा और कई अन्य नदियां भारत के राष्ट्रीय जलीय जानवर गांगेय डॉल्फिन के महत्वपूर्ण निवास स्थान हैं। गंगा और महानदी के निचले क्षेत्र आज भी मुहाने पर रहने वाले मगरमच्छों के घर हैं। नदियों, समुद्रों और झीलों आदि जैसे जल निकायों में कछुए औए कछुओं की विभिन्न किस्मे प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्रसिद्ध रिडले कछुए का प्रजनन क्षेत्र ओडिशा का तटीय क्षेत्र है, जबकि हॉक्सबिल कछुए तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र में प्रजनन करते हैं। 

भारत बड़ी संख्या में पक्षी प्रजातियों का भी घर है। स्थानीय पक्षियों के अतिरिक्त सर्दी के मौसम में भारत अनेक प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों का अस्थायी निवास भी बन जाता है जो सुदूर साइबेरिया के उत्तरी भागों जैसे ठंडे प्रदेशों से यहाँ आते हैं। ठंडे प्रदेशों से आने वाले या पक्षी उस समय भारत में आते हैं जब सर्दी के मौसम में उनके गर्मी के मौसम के निवास स्थान अत्यधिक ठंडे हो जाते हैं। भारत में आने वाले प्रवासी पक्षियों में साइबेरिया का सारस सबसे बडा पक्षी है। मोर और जंगली मुर्गी सर्वाधिक सुंदर पक्षियों में गिने जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में पाया जाने वाला मोनल पक्षी बहुत ही खूबसूरत पक्षी है और इसका शिकार इतने बडे़ पैमाने पर हुआ है कि आज वह लगभग लुप्तप्राय हो चुका है। इनमें से कुछ ही पक्षी हैं जो संरक्षित क्षेत्रों में संरक्षण में जी रहे हैं।

8.1 वन्यजीव संरक्षण 

आज भारत का वन्य जीवन अत्यधिक दबाव में है। कई स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों की प्रजाइयों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। वन्य पशुओं की संख्या कम होने का एक महत्वपूर्ण कारण है पूर्व में किये गए शिकार। प्राचीन समय में बाघों, सिंहों, हाथियों, गेंडों और सरीसृपों का बहुत बड़े पैमाने पर शिकार किया गया है। बड़े मांसभक्षी वन्य पशुओं में से एक भारतीय चीता लगभग छह दशक पहले ही लुप्त हो चुका है। इसी प्रकार बाघों और सिंहों का शिकार भी इस हद तक हुआ की ये लुप्त होने की कगार पर आ गए थे। मगरमच्छों और कछुओं का भी यही हश्र हुआ है कई पक्षियों का शिकार उनके मांस और पंखों के लिए किया गया। उदाहरणार्थ मोनल पक्षी का शिकार इतने बडे़ पैमाने पर हुआ है कि यह लगभग विलुप्त हो गया है। नमूने के तौर पर इनमें से कुछ पक्षी कहीं-कहीं चिड़िया-घरों में बचे हुए हैं अन्यथा ये अब तक लुप्त हो चुके होते। वन्य पशुओं की घटती संख्या का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण है वन क्षेत्रों में होने वाली कमी। वनों को नष्ट करने का मतलब है वन्य जीवों के निवासों को नष्ट करना, और इसी कारण से उनकी संख्या में निरंतर गिरावट आती जा रही है। वन वन्य जीवों को केवल भोजन ही उपलब्ध नहीं कराते, बल्कि वे उन्हें आवश्यक एकांतवास भी प्रदान करते हैं और इन वासों के नष्ट होने से इन वन्यजीवों में से कई के प्रजनन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। 

ऐसा नहीं है कि भारत केवल वन क्षेत्रों में कमी आई है, बल्कि वनों की अंधाधुंद कटाई के कारण वन क्षेरों की निरंतरता में भी बाधाएं निर्माण हुई हैं। प्राचीन काल के निरंतर विशाल वनों के विपरीत, आज मध्य भारत के बहुतांश वन अलग-अलग क्षेत्रों में छोटे-छोटे टुकड़ों में जीवित हैं। वनों के इस बेतरतीब विभाजन के कारण वन छोटे-छोटे एकांत स्थलों में विभाजित हो चुके हैं। इसके कारण वन्य जीवों को वन के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भ्रमण करने में भी दिक्कतें आ रही हैं। इसलिए किसी एक प्रजाति की किसी एक वन क्षेत्र में विशाल संख्या में उपस्थिति आज दुर्लभ नहीं रह गई है। अधिकांश बाघ संरक्षण केन्द्रों में बाघों की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई है कि ये क्षेत्र उन बाघों को उचित रूप से संभाल पाने में असमर्थ हो रहे हैं, और इसीलिए वन्यजीव विशेषज्ञ इनमें से कुछ बाघों को अन्य स्थानों पर स्थानांतरित करने के बारे में विचार कर रहे हैं। वन क्षेत्रों की निरंतरता में बाधाओं के कारण वन्यजीवों को विषम परिस्थितियों में भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे अकाल सदृश स्थितियों में या किसी बीमारी के फैलने की स्थिति में या दवानलों की घटनाओं में इन वन्यजीवों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वनों के छोटे टुकड़ों में विभाजन के कारण ऐसी कठिन स्थितियों में वन्य जीवों को दूसरे क्षेत्रों में स्थानांतरण करना मुश्किल हो जाता है। अकाल, बीमारी या जंगलों की आग की स्थिति में वनों के छोटे से क्षेत्र में रहने वाले वन्य जीवों की विभिन्न प्रजातियों की पूरी आबादी के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है। 

कई कारणों से वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों की संख्या में भारी कमी आई है। कुछ प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं, और कई की गणना लुप्तप्राय में हो चुकी है। वन्यजीवों की विलुप्ति का एक महत्वपूर्ण परिणाम है जैवविविधता का विनाश। इसका परिणाम होगा प्रतिकूल पारिस्थितिक स्थितियां। इसीलिए वन्यजीवों के संरक्षण की नितांत आवश्यकता है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 1952 में वन्य जीवों के लिए भारतीय बोर्ड की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था वन्यजीवों के संरक्षण और सुरक्षा के उपायों पर सरकार को परामर्श देना, राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और प्राणी उद्यानों की निर्मित करना और आम जनता में देश में वन्यजीवों की समस्याओं के प्रति जागृति निर्माण करना। 1972 का वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम देश में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए लक्षित एक व्यापक कानून है। प्रावधानों को और अधिक कठोर बनाने के लिए अधिनियम को संशोधित किया गया है, और इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कई प्रजातियों को लुप्तप्राय घोषित किया गया है।

राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य योजना में देश में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए रूपरेखा, रणनीति और कार्यक्रम तैयार करने के प्रावधान हैं। पहली राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य योजना 1983 में बनाई गई थी, व इसे अब संशोधित किया गया है, और अब नई राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य योजना (2002-2016) स्वीकृत की गई है। दिसंबर 2001 में वन्यजीवों के लिए भारतीय बोर्ड का भी पुनर्गठन किया गया। देश के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला यह बोर्ड वन्यजीवों के संरक्षण के लिए तैयार की गई विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन की देख-रेख करने वाली और दिशा-निर्देश देने वाली सर्वोच्च परामर्शदात्री संस्था है। अर्तमान में देश में 102 राष्ट्रीय उद्यान और लगभग 515 अभयारण्य हैं, और संयुक्त रूप से ये लगभग 1.56 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र व्याप्त करते हैं। 

जम्मू एवं कश्मीर को छोटे कर सभी राज्यों ने वन्यजीव अधिनियम 1972 को अंगीकृत किया है। यह अधिनियम लुप्तप्राय और दुर्लभ प्रजातियों में व्यापार को प्रतिबंधित करता है। भारत वन्य वनस्पतियों और जीवों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार के सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता है। भारत साइबेरियाई क्रेन के संरक्षण के विषय में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाला देश भी है। पर्यावरण मंत्रालय राष्ट्रीय पार्कों के विकास और बेहतर प्रबंधन के लिए, वन्य जीवन की सुरक्षा और अवैध शिकार और वन्य जीवन उत्पादों में अवैध व्यापार का नियंत्रण, राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों में पर्यावरण के विकास, हाथी और उसके निवासों का संरक्षण और असम में गेंडों के संरक्षण के लिए राज्यों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। 

1973 में प्रोजेक्ट टाइगर नामक एक विशेष योजना केवल बाघ को लुप्तता से संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई। इस परियोजना के अंतर्गत अब तक विभिन्न राज्यों में 45 बाघ रिजर्व स्थापित किये जा चुके हैं। प्रोजेक्ट टाइगर योजना 17 राज्यों में क्रियान्वित की जा चुकी है। प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता को देखते हुए 1992 में प्रोजेक्ट हाथी शुरू किया गया। इस योजना के अंतर्गत हाथियों को उनके प्राकृतिक वासों में संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से जिन राज्यों में हाथियों की खुली आबादी है, उन्हें उसे बढ़ाने और संरक्षित करने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है। यह परियोजना 12 राज्यों में क्रियान्वित की जा रही है। अभी तक 26 हाथी रिजर्व स्थापित किये गए हैं। पशु कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान बल्लभगढ़, फरीदाबाद में स्थापित किया गया है। एक और महत्वपूर्ण संगठन भारत का पशु कल्याण बोर्ड है। इसका मुख्य कार्यालय चेन्नई में है।




COMMENTS

Name

01-01-2020,1,04-08-2021,1,05-08-2021,1,06-08-2021,1,28-06-2021,1,Abrahamic religions,6,Afganistan,1,Afghanistan,35,Afghanitan,1,Afghansitan,1,Africa,2,Agri tech,2,Agriculture,150,Ancient and Medieval History,51,Ancient History,4,Ancient sciences,1,April 2020,25,April 2021,22,Architecture and Literature of India,11,Armed forces,1,Art Culture and Literature,1,Art Culture Entertainment,2,Art Culture Languages,3,Art Culture Literature,10,Art Literature Entertainment,1,Artforms and Artists,1,Article 370,1,Arts,11,Athletes and Sportspersons,2,August 2020,24,August 2021,239,August-2021,3,Authorities and Commissions,4,Aviation,3,Awards and Honours,26,Awards and HonoursHuman Rights,1,Banking,1,Banking credit finance,13,Banking-credit-finance,19,Basic of Comprehension,2,Best Editorials,4,Biodiversity,46,Biotechnology,47,Biotechology,1,Centre State relations,19,CentreState relations,1,China,81,Citizenship and immigration,24,Civils Tapasya - English,92,Climage Change,3,Climate and weather,44,Climate change,60,Climate Chantge,1,Colonialism and imperialism,3,Commission and Authorities,1,Commissions and Authorities,27,Constitution and Law,467,Constitution and laws,1,Constitutional and statutory roles,19,Constitutional issues,128,Constitutonal Issues,1,Cooperative,1,Cooperative Federalism,10,Coronavirus variants,7,Corporates,3,Corporates Infrastructure,1,Corporations,1,Corruption and transparency,16,Costitutional issues,1,Covid,104,Covid Pandemic,1,COVID VIRUS NEW STRAIN DEC 2020,1,Crimes against women,15,Crops,10,Cryptocurrencies,2,Cryptocurrency,7,Crytocurrency,1,Currencies,5,Daily Current Affairs,453,Daily MCQ,32,Daily MCQ Practice,573,Daily MCQ Practice - 01-01-2022,1,Daily MCQ Practice - 17-03-2020,1,DCA-CS,286,December 2020,26,Decision Making,2,Defence and Militar,2,Defence and Military,281,Defence forces,9,Demography and Prosperity,36,Demonetisation,2,Destitution and poverty,7,Discoveries and Inventions,8,Discovery and Inventions,1,Disoveries and Inventions,1,Eastern religions,2,Economic & Social Development,2,Economic Bodies,1,Economic treaties,5,Ecosystems,3,Education,119,Education and employment,5,Educational institutions,3,Elections,37,Elections in India,16,Energy,134,Energy laws,3,English Comprehension,3,Entertainment Games and Sport,1,Entertainment Games and Sports,33,Entertainment Games and Sports – Athletes and sportspersons,1,Entrepreneurship and startups,1,Entrepreneurships and startups,1,Enviroment and Ecology,2,Environment and Ecology,228,Environment destruction,1,Environment Ecology and Climage Change,1,Environment Ecology and Climate Change,458,Environment Ecology Climate Change,5,Environment protection,12,Environmental protection,1,Essay paper,643,Ethics and Values,26,EU,27,Europe,1,Europeans in India and important personalities,6,Evolution,4,Facts and Charts,4,Facts and numbers,1,Features of Indian economy,31,February 2020,25,February 2021,23,Federalism,2,Flora and fauna,6,Foreign affairs,507,Foreign exchange,9,Formal and informal economy,13,Fossil fuels,14,Fundamentals of the Indian Economy,10,Games SportsEntertainment,1,GDP GNP PPP etc,12,GDP-GNP PPP etc,1,GDP-GNP-PPP etc,20,Gender inequality,9,Geography,10,Geography and Geology,2,Global trade,22,Global treaties,2,Global warming,146,Goverment decisions,4,Governance and Institution,2,Governance and Institutions,773,Governance and Schemes,221,Governane and Institutions,1,Government decisions,226,Government Finances,2,Government Politics,1,Government schemes,358,GS I,93,GS II,66,GS III,38,GS IV,23,GST,8,Habitat destruction,5,Headlines,22,Health and medicine,1,Health and medicine,56,Healtha and Medicine,1,Healthcare,1,Healthcare and Medicine,98,Higher education,12,Hindu individual editorials,54,Hinduism,9,History,216,Honours and Awards,1,Human rights,249,IMF-WB-WTO-WHO-UNSC etc,2,Immigration,6,Immigration and citizenship,1,Important Concepts,68,Important Concepts.UPSC Mains GS III,3,Important Dates,1,Important Days,35,Important exam concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati Raj,1,Institutionsandbodies,1,Instiutions and Bodies,1,Intelligence and security,1,International Institutions,10,international relations,2,Internet,11,Inventions and discoveries,10,Irrigation Agriculture Crops,1,Issues on Environmental Ecology,3,IT and Computers,23,Italy,1,January 2020,26,January 2021,25,July 2020,5,July 2021,207,June,1,June 2020,45,June 2021,369,June-2021,1,Juridprudence,2,Jurisprudence,91,Jurisprudence Governance and Institutions,1,Land reforms and productivity,15,Latest Current Affairs,1136,Law and order,45,Legislature,1,Logical Reasoning,9,Major events in World History,16,March 2020,24,March 2021,23,Markets,182,Maths Theory Booklet,14,May 2020,24,May 2021,25,Meetings and Summits,27,Mercantilism,1,Military and defence alliances,5,Military technology,8,Miscellaneous,454,Modern History,15,Modern historym,1,Modern technologies,42,Monetary and financial policies,20,monsoon and climate change,1,Myanmar,1,Nanotechnology,2,Nationalism and protectionism,17,Natural disasters,13,New Laws and amendments,57,News media,3,November 2020,22,Nuclear technology,11,Nuclear techology,1,Nuclear weapons,10,October 2020,24,Oil economies,1,Organisations and treaties,1,Organizations and treaties,2,Pakistan,2,Panchayati Raj,1,Pandemic,137,Parks reserves sanctuaries,1,Parliament and Assemblies,18,People and Persoalities,1,People and Persoanalities,2,People and Personalites,1,People and Personalities,189,Personalities,46,Persons and achievements,1,Pillars of science,1,Planning and management,1,Political bodies,2,Political parties and leaders,26,Political philosophies,23,Political treaties,3,Polity,485,Pollution,62,Post independence India,21,Post-Governance in India,17,post-Independence India,46,Post-independent India,1,Poverty,46,Poverty and hunger,1,Prelims,2054,Prelims CSAT,30,Prelims GS I,7,Prelims Paper I,189,Primary and middle education,10,Private bodies,1,Products and innovations,7,Professional sports,1,Protectionism and Nationalism,26,Racism,1,Rainfall,1,Rainfall and Monsoon,5,RBI,73,Reformers,3,Regional conflicts,1,Regional Conflicts,79,Regional Economy,16,Regional leaders,43,Regional leaders.UPSC Mains GS II,1,Regional Politics,149,Regional Politics – Regional leaders,1,Regionalism and nationalism,1,Regulator bodies,1,Regulatory bodies,63,Religion,44,Religion – Hinduism,1,Renewable energy,4,Reports,102,Reports and Rankings,119,Reservations and affirmative,1,Reservations and affirmative action,42,Revolutionaries,1,Rights and duties,12,Roads and Railways,5,Russia,3,schemes,1,Science and Techmology,1,Science and Technlogy,1,Science and Technology,819,Science and Tehcnology,1,Sciene and Technology,1,Scientists and thinkers,1,Separatism and insurgencies,2,September 2020,26,September 2021,444,SociaI Issues,1,Social Issue,2,Social issues,1308,Social media,3,South Asia,10,Space technology,70,Startups and entrepreneurship,1,Statistics,7,Study material,280,Super powers,7,Super-powers,24,TAP 2020-21 Sessions,3,Taxation,39,Taxation and revenues,23,Technology and environmental issues in India,16,Telecom,3,Terroris,1,Terrorism,103,Terrorist organisations and leaders,1,Terrorist acts,10,Terrorist acts and leaders,1,Terrorist organisations and leaders,14,Terrorist organizations and leaders,1,The Hindu editorials analysis,58,Tournaments,1,Tournaments and competitions,5,Trade barriers,3,Trade blocs,2,Treaties and Alliances,1,Treaties and Protocols,43,Trivia and Miscalleneous,1,Trivia and miscellaneous,43,UK,1,UN,114,Union budget,20,United Nations,6,UPSC Mains GS I,584,UPSC Mains GS II,3969,UPSC Mains GS III,3071,UPSC Mains GS IV,191,US,63,USA,3,Warfare,20,World and Indian Geography,24,World Economy,404,World figures,39,World Geography,23,World History,21,World Poilitics,1,World Politics,612,World Politics.UPSC Mains GS II,1,WTO,1,WTO and regional pacts,4,अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं,10,गणित सिद्धान्त पुस्तिका,13,तार्किक कौशल,10,निर्णय क्षमता,2,नैतिकता और मौलिकता,24,प्रौद्योगिकी पर्यावरण मुद्दे,15,बोधगम्यता के मूल तत्व,2,भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास,47,भारत का स्वतंत्रता संघर्ष,19,भारत में कला वास्तुकला एवं साहित्य,11,भारत में शासन,18,भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें,10,भारतीय संविधान,14,महत्वपूर्ण हस्तियां,6,यूपीएससी मुख्य परीक्षा,91,यूपीएससी मुख्य परीक्षा जीएस,117,यूरोपीय,6,विश्व इतिहास की मुख्य घटनाएं,16,विश्व एवं भारतीय भूगोल,24,स्टडी मटेरियल,266,स्वतंत्रता-पश्चात् भारत,15,
ltr
item
PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - विश्व एवं भारतीय भूगोल - व्याख्यान - 19
यूपीएससी तैयारी - विश्व एवं भारतीय भूगोल - व्याख्यान - 19
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-hTSuo7lx73hCttBy592-zJgqwNLp247dlXWak9_hqUFNjxAiLeLCNf7pZy7Y1rg-uZKcnK1ZZYr-Vusc8BX3ufygajw3B6Lw9mEi448MB010jlkNWPY__QQTYG60Q0WKnTJR-AFFfnXkDuC0J77CSBXGGBJ3RixzGKwOIJiQZUaYw-HQGtMGrTQEAw/s16000/h9.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-hTSuo7lx73hCttBy592-zJgqwNLp247dlXWak9_hqUFNjxAiLeLCNf7pZy7Y1rg-uZKcnK1ZZYr-Vusc8BX3ufygajw3B6Lw9mEi448MB010jlkNWPY__QQTYG60Q0WKnTJR-AFFfnXkDuC0J77CSBXGGBJ3RixzGKwOIJiQZUaYw-HQGtMGrTQEAw/s72-c/h9.jpg
PT's IAS Academy
https://civils.pteducation.com/2021/08/UPSC-IAS-exam-preparation-World-and-Indian-Geography-Lecture-19-Hindi.html
https://civils.pteducation.com/
https://civils.pteducation.com/
https://civils.pteducation.com/2021/08/UPSC-IAS-exam-preparation-World-and-Indian-Geography-Lecture-19-Hindi.html
true
8166813609053539671
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow TO READ FULL BODHI... Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy