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अमेरिकी क्रांति एवं 1812 का युद्ध
1.0 प्रस्तावना
अमेरिका में मानवीय अस्तित्व के चिन्ह 13000 ई.पू. (लगभग 15000 वर्ष पूर्व) के आसपास के पाये जाते हैं जब पेलियो इण्ड़ियन ने एशिया से अमेरिका की मुख्य भूमि की ओर पलायन किया। प्री-कोलम्बीयन - मिसीसीपी संस्कृति विकसित कृषि की संस्कृति के रूप में आगे बढ़ी और उसने राज्य-स्तरीय समाज का रूप ले लिया। 1507 में, जर्मन नक्शानवीश मार्टिन वाल्डसीमुलर के द्वारा बनाये गये संसार के एक नक्शे में, इतालवी खोजी और नक्शानवीश अमेरिगो वैस्पुकी के नाम पर पश्चिमी गोलार्द्ध में स्थित भूमि का नाम ‘‘अमेरिका’’ रखा गया।
सोलहवीं शताब्दी में, क्रिस्टोफर कोलंबस के द्वारा की गई प्रारंभिक खोजों के बाद तथा कुछ स्पेनी योद्धाओं (काँक्वेस्टाडोर) के बसने के बाद यह भूमि सम्पूर्ण यूरोप के लिए एक रंगमंच बन गई। उपनिवेशिकरण का अंतिम संघर्ष अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच हुआ, जिसमें अंततः अंग्रेज़ों को जीत हासिल हुई। स्थानीय इंडियन्स ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था।
उच्च जन्म दर, निम्न मृत्यु दर, और सतत बस्तियों के बसने के कारण इस उपनिवेश की जनसंख्या तीव्रता से बढ़ने लगी। इसी के साथ-साथ कम संख्या में रहने वाले स्थानीय लोग विलुप्त होने लगे। मूल अमेरिकी निवासियों को छोड़कर, जिन्हें जीतकर खदेड़ दिया गया था, 1770 में 13 उपनिवेशों की जनसंख्या 2.1 मिलियन थी, जो कि ब्रिटेन की जनसंख्या की एक-तिहाई थी। सतत रूप से नये लोगों के आने के बावजूद, स्वाभाविक जनसंख्या बढ़ोत्तरी की दर इतनी ज्यादा थी कि 1770 के अंत तक विदेशों में जन्मे अमेरिकीयों की संख्या बहुत ही कम हो गई थी। इस उपनिवेश की ब्रिटेन से दूरी ने भी इसे स्वराज्य के लिए उत्साहित किया, किंतु उनकी सफलता ने राजतंत्र को समय समय पर अमेरिका में शाही अधिकार थोपने के लिए प्रोत्साहित किया।
2.0 अमेरिकी क्रांति के कारण
तेरह उपनिवेश जो बाद में यूएसए (संयुक्त राज्य) बने, वास्तव में मूल रूप से ग्रेट ब्रिटेन के उपनिवेश थे। अमेरिकी क्रांति प्रारंभ होने तक, इन उपनिवेशों के निवासी ब्रिटिश शासन से थक चुके थे और इससे मुक्त होना चाहते थे। सभी ओर विद्रोह तथा असंतोष के स्वर उभर रहे थे। उन विश्लेषकों के लिए जो अमेरिकी सरकार और समाज में परिवर्तन को एक क्रांति मानते थे, दरअसल वो तो आर्थिक थी। ‘मदर इंग्लैण्ड‘ के विरूद्ध प्रारंभ हुए विद्रोह का मुख्य कारण इन उपनिवेशों पर लादा गया कराधान था। ब्रिटेन के द्वारा इसे आवश्यक माना गया क्योंकि उनका मानना था कि उन्हें इस उपनिवेश को फ्रांस से जीतने में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। इसके लिए ब्रिटेन में कर लगाने और राजस्व एकत्रित करने के लिए कानून बनाये गये।
2.1 नेविगेशन एक्ट (नौपरिवहन कानून)
अंग्रेजी नेविगेशन एक्ट, जो 17वीं और 18वीं शताब्दी में पारित किये गये थे, के द्वारा इंग्लैण्ड ने अपने उपनिवेशों के निदरलैण्ड, फ्रांस, अन्य यूरोपीय देशों आदि के साथ व्यापारिक संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया था ताकि यह व्यापार केवल इंग्लैण्ड से ही हो। इस सबंध में पहला कानून 1651 मे पारित किया गया जिसे 1660 और 1663 में नवीनीकृत किया गया, तथा परिणामस्वरूप इसमें छोटे-छोटे परिवर्तन किये गये। इन कानूनों के आधार पर अगले 200 वर्षों तक ब्रिटेन का विदेश व्यापार होता रहा। नेविगेशन एक्ट के माध्यम से, ब्रिटेन को तो संपन्नता मिली, किंतु इसने अमेरिकी क्रांति को उकसाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। नेविगेशन एक्ट इस बात के लिए बाध्य करते थे कि उपनिवेशों का सारा आयात या तो इंग्लैण्ड से हो या उन्हें केवल अंग्रेज व्यापारियों के द्वारा इंग्लैण्ड में पुनः विक्रय किया जाये, चाहे इसके लिए उपनिवेशां को कहीं अन्य ज़्यादा कीमत मिल रहीं हो, तो भी। प्रारंभ में इस अधिनियम को 1763 मे खत्म कर देने का प्रावधान था, किंतु 1764 में ब्रिटेन ने इसे शुगर एक्ट (चीनी कानून) के नाम पर नवीनीकृत कर दिया, जिसमें वेस्ट-इण्डीज़ से आयात की जाने वाली शकर पर कर लगा दिया गया। इस अधिनियम के द्वारा नीतिगत मामलों पर महत्वपूर्ण परिवर्तन लाये गयेः जहां पहले उपनिवेशिक कर ब्रिटेन के स्थानीय अधिकारियों को मजबूत करने के लिए लगाये जाते थे, वहीं शकर पर लगाये गये इस कर का उद्देश्य ब्रिटेन के खाली हो गये कोषागार को भरना था।
2.2 क्वार्टरिंग एक्ट, स्टैम्प एक्ट और मुद्रा
ब्रिटेन ने अमेरिकी कॉलोनियों को क्वार्टरिंग एक्ट (सैन्यवास कानून) के द्वारा और ज्यादा भड़का दिया, जिसमें उपनिवेशों को इस बात के लिए मजबूर किया गया था कि वे ब्रिटिश सैनिकों के लिए बैरक उपलब्ध करायें और उन्हें रसद की आपूर्ति करें। यह अधिनियम उपनिवेशों की इच्छा के विरूद्ध 2 जून 1765 को पारित किया गया था।
क्वार्टरिंग एक्ट उपनिवेशों पर एक अप्रत्यक्ष कर था। इस नियम के अनुसार, उपनिवेशों को ब्रिटिश सैनिकों के लिए क्वार्टर (वास), भोजन और परिवहन आदि की व्यवस्था करनी थी। अंग्रेजों ने उपनिवेशों को इसे मानने के लिए बाध्य किया क्योंकि वे उपनिवेशों की रक्षा फ्रांस से कर रहे थे। उपनिवेश फ्रांस को एक खतरा नहीं मानते थे और इसलिए वे अपनी सुरक्षा के लिए ब्रिटेन को किसी प्रकार का कर देने को तैयार नहीं थे।
स्टैम्प एक्ट जॉर्ज ग्रेनविल के द्वारा तैयार किया गया था और यह 1 नवंबर 1765 से प्रभावी हुआ। ब्रिटेन द्वारा अमेरिकी उपनिवेशों पर लगाया गया यह पहला प्रत्यक्ष कर था। इस अधिनियम के द्वारा उपनिवेशों में ब्रिटिश सैनिकों के रहने पर लगने वाले खर्च को उपनिवेशों पर लादने की योजना थी।
इस स्टैम्प एक्ट के माध्यम से, सभी छपी हुई सामग्री और वास्तविक दस्तावेजों, समाचारपत्रों, पैम्प्लेट, बिल, वैधानिक दस्तावेज, लाइसेंस आदि को कर के दायरे में लाया गया तथा इन पर एक विशेष स्टैम्प (मुद्रांक) अनिवार्य किया गया। इस प्रकार ब्रिटेन के अमेरिका में 150 साल के इतिहास में पहली मर्तबा, अमेरिकी लोगों को न केवल अपने स्थानीय कर अमेरिका में देने थे, किंतु साथ ही उसे ब्रिटेन को प्रत्यक्ष कर देना था।
अमेरिकी उपनिवेशों ने इस अधिनियमों का विरोध इसलिए नहीं किया की वे कर अदा नहीं कर सकते थे, बल्कि इसलिए किया कि यह इस मूलभूत सिंद्धांत के विरूद्ध था - ‘‘बिना प्रतिनिधित्व के कोई कर नहीं‘‘। इसके जवाब में, ग्रेनविल ने कहा कि उपनिवेशों को ‘‘आभासी प्रतिनिधित्व‘‘ मिलेगा। उसने और उसके सहयोगियों ने तर्क दिया कि सारे संसद सदस्य चाहे वे कहीं से भी चुने गये हों, सभी ब्रिटिश नागरिकों - जिसमें इंग्लैण्ड, उत्तरी अमेरिका आदि शामिल हैं, का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपनिवेश के लोगों ने इस अधिनियम का कड़ा विरोध किया तथा 18 मार्च 1766 को इसे रद्द कर दिया गया।
2.3 डिक्लेरेटरी एक्ट
यद्यपि ब्रिटिश संसद ने 1766 में स्टैम्प एक्ट (मुद्रांक कानून) को रद्द कर वापस ले लिया जिससे उपनिवेशों में खुशी की लहर दौड़ गई, किंतु साथ ही, चुपके से संसद ने उपनिवेशों को शासित करने के लिए तथा वहां अपने अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए अपना शासन बनाये रखने के लिए डिक्लेरेटरी एक्ट पारित कर दिया। डिक्लेरेटरी एक्ट, स्टै्रम्प एक्ट से भी ज्यादा घातक सिद्ध हुआ, क्योंकि इससे ब्रिटेन को यह लगने लगा कि वह उपनिवेशों के विरूद्ध सख्त कानून लागू कर सकता है। डिक्लेरेटरी एक्ट पारित होने के बाद, 1766 से 1773 के बीच उपनिवेशों ने क्राउन (संप्रभु) के विरूद्ध ज्यादा विद्रोह किये और यह विद्रोह हिंसक भी हो गये।
2.4 टाउनशेंड एक्ट
टाउनशेंड एक्ट से आशय उन चार कानूनों की श्रृंखला से है जिन्हें ब्रिटिश संसद द्वारा इस दावे के साथ पारित किया गया था कि उपनिवेशों पर शासन करना उसका एतिहासिक अधिकार है तथा सख्त प्रावधानों के द्वारा विद्रोही प्रतिनिधी सभाओं को निलंबित कर राजस्व वसूली करना भी उसका अधिकार है। इन अधिनियमों का नामकरण चार्ल्स टाउनशेंड के नाम पर किया गया था जिसने इन्हें प्रायोजित किया गया था।
सस्पेन्डींग एक्ट के माध्यम से न्यूयार्क विधानसभा को तब तक कार्य करने से रोका गया था जब तक की वह क्वार्टरिंग एक्ट के तहत ब्रिटिश सेनाओं के ठहरने के लिए वित्तीय खर्च का वहन करने के लिए तैयार नहीं हो जाती। दूसरा अधिनियम, जिसे सामान्यतः टाउनशेंड कर के नाम से जाना जाता था, के माध्यम से प्रत्यक्ष राजस्व कर थोपे गये थे। इन करों का उद्देश्य व्यापार को नियमित करने की अपेक्षा ब्रिटिश कोषालय के लिए धन इकट्ठा करना था। यह कर उपनिवेशों के बंदरगाहों पर भुगतान करने होते थे और सामान्यतः कांच, पेपर, रंग, चाय आदि पर लगाये जाते थे। यह उपनिवेशिक इतिहास में दूसरी मर्तबा ही हुआ था कि कोई कर केवल राजस्व इकट्ठा करने के लिए लगाया था। तीसरा अधिनियम और ज्यादा सख्त था, और यह अमेरिकी उपनिवेश में कर संगहण का स्वेच्छाचारी तरीका था, व इस कर को संग्रहित करने हेतु बनी व्यवस्था में अधिकारी, गुप्तचर, गार्ड्स, कोस्ट-गार्ड नौकाएं, खोज अधिकार व बॉस्टन में स्थित कस्टम आयुक्त बोर्ड भी शामिल थे। चौथें टाउनशेंड एक्ट के तहत चाय पर से सारे वाणिज्यिक कर हटा लिये गये, तथा इसे सभी ब्रिटिश उपनिवेशों में निर्यात के लिए कर-मुक्त कर दिया गया था।
इन अधिनियमों ने उपनिवेशों की स्वशासी सरकारों की स्थापित परम्परा के लिए, विशेषकर प्रांतीय एसेम्बलियों के माध्यम से किये गये कराधान पर, भय खड़ा कर दिया था। इन प्रावधानों का लगभग सभी जगह भाषणों और हिंसा के द्वारा, जानबूझकर कर ना देकर, व्यापारियों के बीच गैर-आयात समझौतों का नवीनीकरण कर और ब्रिटिश एजेण्टों के खिलाफ बॉस्टन में दुश्मनी-भरा व्यवहार कर, विरोध किया गया। इसी हलचल के बीच, बॉस्टन हत्याकांड़ वाले दिन ही - 5 मार्च 1770 को - चाय छोड़कर अन्य सभी राजस्व कर उठा लिए गये। क्वार्टरिंग कानून भी हट गया।
2.5 चाय अधिनियम (टी एक्ट)
चाय अधिनियम, संसद द्वारा 10 मई 1773 को पारित किया गया, जो बॉस्टन में क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए चिंगारी सिद्ध हुआ। इस अधिनियम का इरादा अमेरिकी उपनिवेश में राजस्व वसूली करना नहीं था, और वास्तव में इसके द्वारा कोई नया कर भी नहीं लगाया गया था। यह तो वास्तव मे ईस्ट इण्डिया कम्पनी की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया था, जो वित्तीय रूप से बहुत घाटे में चल रही थी और जिसके पास 18 मिलियन पाउण्ड चाय का स्टॉक बिना बिका हुआ पड़ा था। यह चाय उपनिवेशों में सीधे भेजी जानी थी, और इसे सस्ते दामों पर बेचा जाना था। टाउनशेंड कर अभी भी अस्तित्व में थे और अमेरिका के नेता अभी भी यह विश्वास करते थे कि यह अधिनियम सस्ती लोकप्रियता हासिल करने तथा जो कर लगाये गये है उन्हें तार्किक सिद्ध करने के लिए लाया गया है। ब्रिटिश एजेण्टों के द्वारा सीधे चाय की ब्रिकी से स्थानीय व्यापारियों का भी नुकसान हो सकता था।
फिलाडेल्फिया और न्यूयार्क के उपनिवेशों ने चाय के जहाजों को वापस ब्रिटेन भेज दिया। चार्ल्सटन में जहाज को डेक पर उसी के हाल पर सड़ने छोड़ दिया गया। बॉस्टन में शाही गवर्नर अपनी बात पर अड़ा रहा और जहाजों को बंदरगाह पर ही खड़ा रहने दिया, जबकि उपनिवेश के लोग उसे खाली नहीं करने दे रहे थे। बंदरगाह चाय के माल से भर गया, और ब्रिटिश जहाज के नाविक भी बोस्टन में फंसकर, काम करने में परेशानी का अनुभव कर रहे थे। इसी कारण अंततः बोस्टन टी पार्टी जैसी घटना हुई।
2.6 कोअरेसिव एक्ट (अनिवार्य कानून)
बॉस्टन के बंदरगाह पर हुए चाय के नुकसान तथा उपनिवेशों में हुए विरोध से अंग्रेज़ भौचक्के रह गये। अंग्रेजों के लिए यह प्रतिक्रियाएं इस बात का स्पष्ट संकेत थीं कि उपनिवेशों में उनके अधिकारों को चुनौती दी जा रही है, जिसे किसी भी कीमत पर वे रोकना चाहते थे। ब्रिटिश संसद ने इन घटनाओं को रोकने के लिए श्रृंखलाबद्ध रूप से कुछ अधिनियम बनाये जिन्हें ‘‘कोअरेसिव एक्ट‘‘ या उपनिवेशों में ‘‘असहनीय अधिनियम‘‘ कहा गया।
- बोस्टन पोर्ट बिल 1 जून 1774 से प्रभावी हुआ। ब्रिटिश सम्राट ने बॉस्टन बंदरगाह को ब्रिटिश जहाजों को छोड़कर अन्य सभी के लिए बंद कर दिया।
- क्वार्टरिंग एक्ट 24 मार्च 1765 को स्थापित किया गया। सम्राट ने बड़ी संख्या में ब्रिटिश सैनिक बॉस्टन भेजे। उपनिवेश के लोगों को उनके लिए रहने और खाने का प्रबंधन करना था। यदि वे ऐसा करने से इंकार करते तो उन्हें गोलियों से भून दिया जाता।
- जस्टिस एक्ट का प्रशासन 20 मई 1774 से प्रभावी हुआ। ब्रिटिश अधिकारियों पर अपराधों के लिए भी उपनिवेश की अदालतों में मुकदमा नहीं चल सकता था। इससे ब्रिटिश अधिकारी उपनिवेशों मे कुछ भी करने को स्वतंत्र हो गये।
- मैसाच्यूसेट्स अधिनियम 20 मई 1774 से प्रभावी हुआ। इसके तहत बॉस्टन में होने वाली सभी नागरिक सभाओं के लिए ब्रिटिश गवर्नर प्रभारी बनाया गया था। इस प्रकार बोस्टन में स्वशासन समाप्त हो गया था।
- क्यूबेक अधिनियम 20 मई 1774 को लागू किया गया। इस बिल के तहत कनाड़ा की सीमा को फैला कर पश्चिमी उपनिवेशों जैसे कनेक्टिकट, मैसाच्यूसेट्स् और वर्जिनिया को काट दिया गया था।
3.0 क्रांति का प्रथम दौर
3.1 बोस्टन हत्याकांड़
स्टैम्प एक्ट के विरूद्ध विद्रोह में उपनिवेश के लोगों को किसी हद तक सफलता मिली थी। गैर-आयात अनुबंध जो सबसे पहले 1766 में किये गये थे, मजबूत किये गये। यद्यपि टाउनशेंड का प्रारंभिक विरोध, स्टैम्प एक्ट के विरूद्ध हुई प्रतिक्रियाओं से कमतर था, धीरे-धीरे यह बढ़ता चला गया। गैर-आयात अनुबंध इस मर्तबा ब्रिटिश व्यापारियों को नुकसान पहुचाने की दृष्टि से ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुए। कुछ ही वर्षों में, उपनिवेशों का प्रतिरोध हिंसक और घातक हो गया। अनिश्चितता के इस माहौैैल में, ब्र्रिटेन ने अपने 4000 सैनिक 1768 में बॉस्टन भेजे। बोस्टन में उस समय केवल 20 हजार लोग रहते थे।
बोस्टन हत्याकांड़ 5 मार्च 1770 को घटित हुआ, जो वास्तव में एक गली की लड़ाई के समान थी, जिसमें एक ‘‘देशभक्त’’ भीड़ ने ब्रिटिश सैनिकां के उपर बर्फ के गोलों और पत्थर, लकड़ी आदि से हमला किया। दंगों की शुरूआत तब हुई जब 50 नागरिकों ने ब्रिटिश सैनिकों के उपर हमला किया। एक ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन थॉमस प्रेस्टन ने अतिरिक्त सैनिक बुला लिये, और इन सब पर भी आक्रमण हुआ, इसलिए सैनिकों ने भीड़ पर गोली चला दी जिसमें तीन लोग मारे गये तथा 8 घायल हो गये, जिनमें से दो लोगों की बाद में मृत्यु हो गई।
शहर की सभा बुलाकर यह मांग रखी गई कि तत्काल ब्रिटिश सैनिकों को वहां से हटाया जाये और कैप्टन प्रेस्टन तथा उसके सैनिकों पर हत्या का मुकद्मा दायर हो। मुकदमे के दौरान जॉन एडम और जोशिया क्वीन्सी प्प् ने अंग्रेजों का बचाव किया, जिससे ब्रिटिश सैनिक इस हत्याकाण्ड से बरी हो गये।
हालांकि बाद में दो ब्रिटिश सैनिक हत्याकांड के दोषी पाये गये। बोस्टन की घटना क्रांतिकारी युद्ध के पूर्व की एक बड़ी घटना थी। इसने गवर्नर को मजबूर किया की वह बॉस्टन से सेना हटा ले। इसके पश्चात शीघ्र ही शेष बचे हुए उपनिवेशों में भी सशस्त्र विद्रोह फैल गया।
3.2 बोस्टन चाय पार्टी
इस प्रतिक्रिया का उद्गम संसद के उन प्रयासों का परिणाम था जो वित्तीय रूप से कमजोर पड़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मजबूत करने के लिये था, ताकि उसकी भारत में लाभप्रद पकड़ बनी रहे। 10 मई 1773 को पारित हुआ टी एक्ट इस तरह से बनाया गया था कि कम्पनी अपनी चाय तस्करों से भी बहुत सस्ते दामों पर, बिना किसी कर के अमेरिका में बेच सके। कम्पनी ने अपने एजेण्ट बोस्टन, न्यूयार्क, चार्ल्स्टन और फिलाडेल्फिया में नियुक्त किये और 5 लाख पाउण्ड चाय जहाजों में भरकर सितम्बर के महीने में वहां भेज दी।
देशभक्त समूहों के दबाव में, चार्ल्सटन, न्यूयार्क और फिलाडेल्फिया के एजेण्टों ने चाय के जहाजों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया किंतु बॉस्टन में व्यापारियों ने ऐसा नहीं किया। डार्टमाउथ नाम का पहला जहाज, 27 नवंबर को बोस्टन पहुंचा तथा इसके बाद दो और जहाज आये। इसी दौरान, जन समूहों की कुछ सभाएं भी आयोजित की गई, जिसमें यह मांग रखी गई थ्क् इन जहाजों को वापस इंग्लैण्ड भेज दिया जाये। तनाव तब और बढ़ गया जब सैमुअल एडम्स जैसे देशभक्त नेताओं ने गवर्नर को भी ऐसा करने को कहा। 16 दिसम्बर को ओल्ड साउथ चर्च में हुई एक बड़ी सभा में गवर्नर थॉमस हचिन्सन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। लगभग आधी रात को, एडम्स और सन्स ऑफ लिबर्टी नामक एक छोटे समूह ने मोहॉक इण्डियन्स के भेष में जहाज पर चढ़ कर सारी चाय समुद्र में फेंक दी। संसद के लिए बोस्टन चाय पार्टी ने मैसाच्यूसेट्स की भूमिका वैधानिक ब्रिटिश शासन के विरूद्ध विद्रोहियों के रूप में तय कर दी थी।
इस घटना के मिले-जुले परिणाम हुएः कुछ अमेरिकियों की नजर में बॉस्टन चाय पार्टी के लोग नायक के रूप में उभरे जबकि कुछ लोगों ने उनका विरोध किया। संसद इस बात को लेकर बहुत नाराज़ हुई और उसने 1774 में कोअरेसिव एक्ट पारित किये। उपनिवेश के लोगों ने तत्काल इनका नाम बदलकर ‘‘असहनीय अधिनियम’’ कर दिया।
3.3 पत्राचार समितियां
1772 में, बॉस्टन के सेमुअल एडम्स ने पहली पत्राचार समिति बनाई, जिसका उद्देश्य सदस्यों के बीच विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए पत्र और पेमप्लेट लिखना था। कुछ ही वर्षों में, इसी प्रकार की समितियां पूरे अमेरिका में अन्य शहरों में भी बन गईं। परिणामस्वरूप, यह अलग-थलग पड़े समूह अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए तथा ताज का विरोध करने के लिए अब एक मंच पर आ गये। पत्राचार की यह समितियां उपनिवेश के लोगों को एकत्रित करने, सूचनाएं वितरित करने तथा उपनिवेश की आवाज को बुलन्द करने की दृष्टि से बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई।
3.4 पहली महाद्वीपीय कांग्रेस (काँटिनेंटल कांग्रेस)
ब्रिटिश संसद के द्वारा अमेरिकी उपनिवेशों के लिए लागू किये गये कोअरेसिव एक्ट के विरोध में, महाद्वीपीय कांग्रेस का पहला सत्र, 1774 में फिलाडेल्फिया के कारपेंटर्स हॉल में आयोजित किया गया। सभी उपनिवेशों के 56 प्रतिनिधियों (जॉर्जिया को छोड़कर) ने अधिकारों के घोषणा पत्र का मसौदा तैयार किया और वर्जिनिया के पेटॉन रेण्डोल्फ को कांग्रेस का पहला अध्यक्ष चुना। पेट्रीक हैनरी, जॉर्ज वाशिंगटन, जॉन एडम्स और जॉन जे अन्य प्रतिनिधियों में से थे। 1774 से 1789 तक, इस कांग्रेस ने 13 अमेरिकी उपनिवेशों की सरकार के रूप में काम किया और बाद में वह युनाईटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका की सरकार बनी।
उनकी सभा के दो उद्देश्य थेः
पहला, वे इस बात को स्थापित करना चाहते थे कि उनकी केन्द्रीय सरकार एक तानाशाह के रूप में पतन की ओर अग्रसर हो रही थी। 150 वर्षों के बाद, ‘‘ग्रेट ब्रिटेन’’ की सरकार ने उपनिवेशों में अंग्रेजों के अधिकारों का हनन करना प्रारंभ कर दिया था। फिलाडेल्फिया में हुई पहली सभा इन अर्थों में जरूरी थी कि 11 वर्षों तक लगातार उन्होंने अपनी चिंताएं याचिकाओं के माध्यम से सरकार के सामने रखी थीं, किंतु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। यह अधिकार जो ब्रिटेन के नागरिकों को मैग्ना कार्टा के माध्यम से मिला हुआ था तथा इसका वे 1215 से स्वतंत्रता-पूर्वक उपयोग कर रहे थे। सरकारी अधिकारी भी उनकी याचिकाओं को सुनने या उस पर ध्यान देने को तैयार नहीं थे, इसलिए 1774 की यह सभा स्वाभाविक थी और मुक्ति की दिशा में अगला कदम थी।
दूसरा, ये प्रतिनिधि इस बात पर अर्थपूर्ण चर्चा करना चाहते थे कि इन 13 उपनिवेशों के स्वतंत्र लोग, कानून की सीमा में, स्थिति को सुधारने के लिए तथा सरकार की स्वेच्छाचारी नीतियों के विरोध में क्या कदम उठा सकते थे।
यहां यह उल्लेखनीय है कि सारे प्रतिनिधि फिलाडेल्फिया अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने नहीं पहुंचे थे। वे वहां पर स्वयं को ग्रेट ब्रिटेन से अलग करने भी नहीं पहुंचे थे। उनका इरादा सरकार की ओर से किसी चीज को बंद करना या ‘‘सरकार के प्रति आक्रामक‘‘ होना नहीं था। कोई भी पूर्वनिर्धारित परिणाम नहीं था। फिलाडेल्फिया की सभा का एक मात्र उद्देश्य यह निर्धारित करना था कि सारे प्रतिनिधि मिलकर किस अहिंसक और विधि सम्मत काम को कर सकते थे जो केन्द्रीय सरकार को कानून की परिधि में वापस लाने का काम करे। अक्टूबर 1774 में, काँटिनेंटल कांग्रेस के एक माह पश्चात, प्रतिनिधि ऐसे कार्यक्रम के लिए तैयार हो गये जो अमेरिका में जनप्रतिक्रिया का प्रारंभिक मॉडल था और जो कानून की सीमा में भी था।
काँटिनेंटल कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने यह भी निर्धारित किया कि जब तक कोअरेसिव एक्ट हटाये नहीं जाते तब तक ब्रिटिश सामान का बहिष्कार - गैर-आयात - जारी रहेगा तथा सभी उपनिवेशों का प्रशासनिक संगठन भी उसका बहिष्कार करेगा। देशभक्त अमेरिकियों ने तर्क दिया कि किसी भी ब्रिटिश उत्पाद की खरीदी करना लंदन से सम्बंध बनाये रखने के समान है तथा इससे यह संकेत जायेगा कि हम इन वणिकवादी संबंधों को बनाये रखना चाहते हैं।
4.0 क्रांति का द्वितीय दौर
4.1 लेक्सिंग्टन और कॉनकॉर्ड का युद्ध
लेक्सिंग्टन और कॉनकॉर्ड का युद्ध दो झड़पों से मिलकर बना है, जो 18 अप्रैल 1775 को प्रारंभ हुई थीं। ब्रिटिश सैनिकों को कॉनकॉर्ड भेजा गया ताकि वे जॉन हैनकॉक और सैमुअल एडम्स को पकड़ सकें, किंतु दोनों ही लोगों को ब्रिटिश आक्रमण की सूचना मिल गई। 18 अप्रैल की रात को पॉल रेवर ने कॉनकॉर्ड में घोड़े पर सफर करते हुए हर किसी को ब्रिटिश आक्रमण की चेतावनी दे दी। इसलिए जब ब्रिटिश सैनिक विद्रोहियों पर आक्रमण के लिए आये, तो मिनटमेन, वे अमेरिकी जो ’’एक मिनट में युद्ध के लिए तैयार थे’’, लेक्सिंग्टन में आक्रमण का इंतजार ही कर रहे थे। अमेरिकी लोग पीछे हट रहे थे तब किसी ने गोली चला दी, और ब्रिटिश सैनिकों ने मिनटमेन पर गोलियां चला दीं। ब्रिटिश सैनिकों ने अमेरिकियों पर संगीनों से हमला कर दिया। कोई नहीं जानता किसने पहले गोली चलाई।
मिनटमेन के कमाण्डर जॉन पार्कर ने कहा, ‘‘तब तक गोली मत चलाना जब तक कि वे इसकी शुरूआत न करें। किंतु यदि वे युद्ध चाहते है तो इसे यहीं प्रारंभ होने दें।‘‘ ब्रिटिश सैनिकों ने लेक्सिंग्टन के युद्ध में कई मिनटमेन को मार दिया और अन्य कई घायल हो गये। बचे हुए मिनटमेन जंगलों की ओर भाग गये।
लड़ाई के पश्चात, अंग्रेजों ने पाया कि हैनकाक और एडम्स भाग निकलने में सफल हुए हैं। इसलिए उन्होनें गोला-बारूद की खोज में कॉनकॉर्ड की ओर कूच किया। जैसे ही अंग्रेज सैनिक पास के एक शस्त्रागार को ढूंढ़ते एक खेत में पहुंचे, कॉनकॉर्ड की नार्थ ब्रिगेड के मिनटमेन के एक समूह ने उन पर आक्रमण किया। वहां एक बड़ी लड़ाई हुई तथा मिनटमेन ने अंग्रेजों को पीछे हटने पर मजबूर किया।
लेंक्सिग्ंटन और कॉनकॉर्ड की लड़ाईयों में कई जानें गईं। दिन की समाप्ति तक, अंग्रेजों के 273 सैनिक, जबकि अमेरिकियों के सिर्फ 94 सैनिक मारे गये। लेक्सि्ांग्टन की लड़ाई के दौरान इनमें से 18 अमेरिकी मारे गये। इस प्रकार, क्रांतिकारी युद्ध की शुरूआत हुई। प्रसिद्ध अमेरिकी कवि राल्फवाल्ड़ो एमर्सन ने लेक्सिंग्टन की लड़ाई को वह ‘‘गोलीचालन कहा जो सारे संसार में सुनी गई’’, क्योंकि इस लड़ाई से क्रांति की शुरूआत हुई।
4.2 द्वितीय काँटिनेंटल कांग्रेस
द्वितीय काँटिनेटल कांग्रेस, लेक्सिंग्टन और कॉनकॉर्ड की लड़ाई के कुछ सप्ताह पश्चात् हुई जिसमें यह चर्चा की गई की स्थिति से कैसे निपटा जाये। सारे 13 उपनिवेशों के प्रतिनिधि पुनः एक बार फिलाडेल्फिया में चर्चा के लिए इकट्ठे हुए। युद्ध को टालने की इच्छा अभी भी प्रबल थी, और जुलाई 1775 में, पेन्सिल्वेनिया के प्रतिनिधि जॉन डिंकिन्सन ने ‘‘ओलिव ब्रांच पिटिशन‘‘ (शांति प्रार्थना) लिखी और उसे ब्रिटेन भेजा। सभी प्रतिनिधियों ने इस याचिका पर हस्ताक्षर किये थे, जिसमें किंग जॉर्ज तृतीय के प्रति वफादारी की घोषणा की गई थी और उनसे मांग रखी गई थी की वे बॉस्टन से ब्रिटिश सैनिक हटा लें ताकि उपनिवेशों और ब्रिटेन के बीच शांति स्थापित हो सके। शीघ्र ही जॉर्ज तृतीय ने याचिका को नकार दिया।
कांग्रेस ने घोषणा की - ‘‘हम यह स्वतः-सिद्ध सत्य को स्वीकार करते हैं कि सारे मनुष्य समान रूप से रचे गये हैं, और उन्हें उनके निर्माता द्वारा कुछ निश्चित व अनन्यक्राम्य मानवाधिकारों से सम्पन्न किया गया है, जिसमें जीवन, मुक्ति और खुशी पाने का अधिकार भी शामिल है।‘‘
ओलिव ब्रांच पिटिशन को नकार दिये जाने के बाद, प्रतिनिधियों ने यह माना कि राज्यों को किसी भविष्य की ब्रिटिश प्रतिक्रिया के लिहाज से सुरक्षा की आवश्यकता है। इसलिए उन्होंने एक सेना तथा एक छोटी नौसेना गठित करने के लिए कोष एकत्रित किया। बहुत वाद-विवाद के पश्चात, उन्होंने जॉर्ज वाशिंगटन को बॉस्टन के लिए सेना की कमाण्ड सौंप दी, तथा उसका नामकरण काँटीनेंटल आर्मी किया। वॉशिंगटन वर्जिनिया के एक उच्च प्रतिष्ठित बागान मालिक थे, और उनके नेतृत्व ने क्रांति के लिए उत्तरी और दक्षिणी राज्यों को एकत्रित किया।
उपनिवेश के लोगों की शांति की आशा जून 1775 में तब समाप्त हो गई जब बॉस्टन के बाहर बंकर हिल लड़ाई लड़ी गई। यद्यपि ब्रिटिश इस लड़ाई में अंततः जीत गये, फिर भी उन्हें 1000 जानें गंवानी पड़ीं। इसके कारण अंग्रेज़ अधिकारियों को अमेरिका में हो रहे विद्रोह को पहली मर्तबा अत्यंत गम्भीरता से लेना पड़ा। सम्राट जॉर्ज तृतीय ने अधिकारिक रूप से घोषणा कि उपनिवेश में विद्रोह की स्थिति है। समझौते की कोई भी उम्मीद तथा 1763 के पूर्व की यथास्थिति लाने की सम्भावना समाप्त हो चुकी थी।
4.3 युद्ध में ब्रिटिश और अमेरिकी शक्ति की तुलना
ब्रिटिश शक्तिः जब 1775 में युद्ध की शुरूआत हुई, तो यह स्पष्ट प्रतीत होता था कि ब्रिटेन युद्ध जीत जायेगा। इसके पास एक बड़ी, सुसंगठित सेना तथा अद्वितीय शाही नौसेना थी। ब्रिटिश सैनिकों में से कई फ्रांस और भारत के विरूद्ध युद्धों में भाग ले चुके थे। दूसरी ओर, अमेरिकी सेना के पास नौसिखिये और अनुभवहीन सैनिक थे जो पहले कभी नहीं लड़े थे। अमेरिकी नौसेना भी बहुत छोटी थी तथा ब्रिटेन की रॉयल नेवी से उसकी तुलना भी नहीं कि जा सकती थी। जॉर्ज वाशिंगटन के काँटिनेटल आर्मी के कमाण्डर बनने के बाद स्थितियां कुछ सुधरीं थीं, िंकतु फिर भी बहुत समस्याएं थीं और परिस्थितियां ब्रिटेन के पक्ष में दिखाई दे रहीं थीं।
अमेरिकी शक्तिः इस तथ्य के बावजूद, अमेरिकियों को विश्वास था कि उनके पास सफलता का एक सुनहरा अवसर है। वे इन अर्थों में फायदे मे थे कि, अंग्रेज़ों से परे, वे अपने घर में ही अपने घरों और परिवारों को बचाने के लिए लड़ रहे थे। शायद सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, वे एक लोकप्रिय युद्ध लड़ रहे थे - बहुसंख्यक उपनिवेशी राज्यों के लोग देशभक्त थे जो स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। अंततः, यद्यपि अधिकांश अमेरिकियों के पास युद्ध का कोई पूर्व अनुभव नहीं था, उनकी सैन्य इकाईया ऐसे आदमियों के हाथों में रक्षा-पंक्ति में बंधी हुई थीं जो अपने घरों को बचाने के लिए सामूहिक रूप से लड़ रहे थे। उन्होनें अपने अधिकारी स्वयं चुने थे - सामान्यतः वे लोग जिनके पास कुछ सैन्य प्रशिक्षण था किंतु वे अपने भौगोलिक क्षेत्र को अच्छी तरह जानते थे। यह स्थानीय सैनिकों का समूह शक्ति का एक बड़ा स्रोत था, और परिणामस्वरूप, अमेरिकी इच्छा-शक्ति अंग्रेज़ सेना की इच्छा-शक्ति से ज़्यादा प्रबल थी।
4.4 स्वतंत्रता की घोषणा
1776 की मुख्य घटना युद्ध क्षेत्र में नहीं होना थी।
जनवरी 1776 में यह स्पष्ट हो गया था कि उपनिवेशों के लिए सम्राट एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार नहीं था। थॉमस पेन का पैम्प्लेट कॉमनसेंस भी तभी प्रकाशित हुआ। पेन जो अभी-अभी इंग्लैण्ड से उपनिवेश पहुंचा था, ने उपनिवेशिक स्वतंत्रता का पक्ष लिया तथा राजतंत्र और वंशानुगत शासन की अपेक्षा लोकतंत्र को वैकल्पिक सरकार के रूप में प्रस्तुत किया। ‘कॉमनसेंस’ में प्रकट विचार कोई नये नहीं थे, और शायद इसने कांग्रेस की विचार प्रणाली को प्रभावित भी नहीं किया; इसका महत्व इस बात के लिए ज्यादा है कि इसनें इस विषय पर सार्वजनिक बहसों को जन्म दिया, जिस पर अभी तक लोग बोलने से ड़रते थे। इस पेम्प्लेट की लगभग 1 लाख से अधिक प्रतियां बिकीं।
7 जून को कांग्रेस के समक्ष स्वतंत्रता की घोषणा का प्रस्ताव लाया गया। लगातार चली चर्चाओं के बाद, कांग्रेस ने अंतिम फैसला 1 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया, किंतु साथ ही घोषणा का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया। थॉमस जेफर्सन की अध्यक्षता में इस समिति ने 28 जून को प्रारूप तैयार कर लिया। इस समय तक न्यूयॉर्क को छोड़कर सारे राज्य स्वतंत्रता हेतु अपनी सहमति दे चुके थे, यद्यपि पेन्सिल्वेनिया अभी भी सहमत नहीं था। अंततः कांग्रेस ने 2 जुलाई को कुछ सुधारों के साथ स्वतंत्रता की घोषणा को स्वीकार कर लिया। 4 जुलाई 1776 को कांग्रेस के द्वारा ‘स्वतंत्रता की घोषणा’ पर हस्ताक्षर के साथ इसे सहमति दे दी गई, यद्यपि न्यूयार्क ने इस पर 15 जुलाई तक हस्ताक्षर नहीं किये थे।
स्वतंत्रता की घोषणा अमेरिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इसने अमेरिकियों को एक स्पष्ट लक्ष्य दिया जिसका उनके पास अभी तक अभाव था। इसने विदेशियों शक्तियों को, विद्रोहियों को मदद देने के लिए सहमत किया, तथा इस भय से भी मुक्त किया कि उपनिवेशों तथा ब्रिटेन के बीच किसी भी प्रकार का समझौता विदेशी मद्दगारों के लिए एक धोखा हो सकता है। इसने इस आशा को भी धूमिल कर दिया कि अब कोई शांतिपूर्ण हल निकल सकता है क्योंकि स्वतंत्रता की घोषणा को आसानी से वापस नहीं लिया जा सकता ।
स्वतंत्रता की घोषणा से संबंधित प्रस्ताव का अंश यों थाः
यह प्रस्तावित किया जाता है कि सभी संयुक्त उपनिवेश, जिन्हें यह अधिकार होना चाहिए, कि वे स्वतंत्र और मुक्त राज्य हों, कि वे ब्रिटिश ताज से पूर्णतः मुक्त हों, तथा उनके और ग्रेट ब्रिटेन के बीच सारे राजनीतिक संबंध आज से विच्छेद माने जाएं।
4.5 महत्वपूर्ण पड़ाव
कई लड़ाईयों के बाद, 1777 में साराटोगा की लड़ाई में जो न्यूयार्क के पास लड़ी गई थी, एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। जब अमेरिकी सेनायें जीत गईं तो उनकी जीत ने फ्रांस को इस बात के लिए उत्साहित किया कि वे युनाईटेड स्टेट्स की मदद करें और इस प्रकार फ्रांस-अमेरिका गठबंधन 1778 में अस्तित्व में आया। एक वर्ष बाद, स्पेन भी युद्ध में ब्रिटेन के विरूद्ध कूद पड़ा। स्पेन इस आशा के साथ युद्ध में उतरा था कि वह ब्रिटेन को उत्तरी अमेरिका से खदेड़ देगा, इसलिए उसने अमेरिकी लोगों की चतुराईपूर्ण तरीके से अस्त-शस्त्र और रसद आदि देने में मदद करी। इन देशों के युद्ध में प्रवेश के कारण अमेरिकियों का तनाव कम हो गया क्योंकि अब ब्रिटेन की शक्ति स्पेन से लड़ने में भी लग रही थी। अंततः, निदरलैण्ड भी 1780 में ब्रिटेन के विरूद्ध युद्ध में कूद पड़ा।
इसी बीच, इंग्लैण्ड में भी युद्ध का समर्थन कमजोर पड़ गया । संसद में भी कई व्ह्गि्स, जिसमें ब्रिटिश राजनेताओं का धार्मिक अविश्वासियों का समूह, उद्योगपति व सुधारक आदि शामिल थे, ने भी युद्ध को अन्यायपूर्ण कहते हुए नकार दिया। आठ वर्ष के सतत प्रयासों के बाद, एक निर्णायक युद्ध जीतने में असमर्थ शाही सेना के कारण, क्रांतिकारी युद्ध अपने अंतिम दौर में पहुंच गया।
4.6 युद्ध का अंत और पेरिस की संधि
फ्रांस-अमेरिकी गठबंधन से घिरा हुआ इंग्लैण्ड, 1781 तक अमेरिकियों के साथ युद्ध जारी रख सका, जब लॉर्ड चार्ल्स कॉर्नवॉलिस के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेनाओं को यॉर्क टाउन वर्जिनिया में घेर लिया गया। तब बिखरी हुई ब्रिटिश सेनाओं ने 1783 में शांति की पहल की।
यॉर्क-टाउन की घटना के बाद लंदन में भी युद्ध के प्रति राजनीतिक समर्थन घट गया। मार्च 1782 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ ने त्यागपत्र दे दिया। अप्रैल 1782 में, हाउस ऑफ कॉमन में सांसदों ने युद्ध को समाप्त करने के लिए वोट दे दिया। नवंबर 1782 में, पेरिस में, प्रारंभिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। युद्ध का औपचारिक समापन 3 सितम्बर, 1783 तक पेरिस की संधि और वर्साय की संधि निर्धारित हो जाने तक नहीं हुआ। 25 नवम्बर 1783 को अंतिम ब्रिटिश सैन्य दल ने न्यूयॉर्क शहर छोड़ा, और युनाईटेड स्टेट्स कांग्रेस ने 14 जनवरी, 1784 को पेरिस की संधि का अनुमोदन किया।
ब्रिटेन ने उसके अमेरिकी मूल इण्ड़ियन साथियों से सलाह मशवरा किये बगैर पेरिस की संधि पर अपनी सहमति दे दी जिसके अनुसार अपालचियन पर्वत से मिसीसिपी नदी तक का क्षेत्र यूनाईटेड स्टेट्स माना गया। स्थानीय दशज अमेरिकी लोगों ने अनिच्छा से इसे स्वीकार कर तो लिया, किंतु भविष्य में होने वाली संधियों और युद्धों से यह सीमा बदली जानी थी, जिनमें सबसे बड़ा युद्ध होना था, उत्तर-पश्चिम इण्ड़ियन युद्ध। अंग्रेज़ों ने स्थानीय इण्ड़ियन्स को नये बने अमरीकी राष्ट्र के विरूद्ध लड़ाई में समर्थन देना जारी रखा, 1812 के युद्ध तक।
युनाइटेड स्टेट्स को उसकी आशाओं से ज्यादा मिला खासकर पश्चिमी प्रांत हासिल हो जाने से। दूसरे सहयोगियों के लिए परिणाम बहुत आशाजनक नहीं रहे। फ्रांस को जरूर कुछ फायदा हुआ, किंतु उसे जो मिला उसकी तुलना में उसे बहुत ज्यादा वित्तीय घाटा हुआ। फ्रांस पहले से ही वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा था तथा उसने युद्ध के लिए जो कर्ज लिये थे उसे भुगतान करने में और ज्यादा वित्तीय संकट खड़ा हो गया जिसने 1780 के दशक का उसका इतिहास ही बदल दिया। इतिहासकार इस वित्तीय संकट को बोरबोन वंश के विनाश के लिए भी जिम्मेदार मानते है, जिसके कारण क्रांति हुई तथा आम लोगों ने राजा व पूर्ण वंश को मार डाला। हालैण्ड को स्पष्ट रूप से सभी बिंदुओं पर नुकसान हुआ। स्पेन के लिए परिणाम मिश्रित रहे। वे उनका प्राथमिक उद्देश्य जिब्राल्टर तो नहीं पा सके, किंतु उन्होंने अन्य राज्य जीते। हालांकि फ्लोरिड़ा मामले को देखें तो वास्तव में इसका कोई मूल्य नहीं था। मैसूर के टीपू सूल्तान का 1799 में ब्रिटेन के हाथों पतन भी इसी से जोड़कर देखा जाता है।
5.0 1812 के युद्ध के कारण
संयुक्त राज्य और ब्रिटेन के बीच उत्पन्न हुए तनाव, जो अमेरिकी क्रांति के कारण प्रारंभ हुआ था, इसके समाप्त होने के साथ खत्म नहीं हुआ।
क्रांति के पश्चात भूमि के विभाजन ने किसी को भी संतुष्ट नहीं किया। ओहायो नदी घाटी तथा ‘फर ट्रेड रूट‘ चले जाने के कारण कनाड़ा और ब्रिटेन के व्यापारी नाराज थे। यह रास्ता बड़ी संख्या में अमेरिकी इण्डियन जनसंख्या के लिए भी उपयोगी था जिसने युद्ध के दौरान ब्रिटेन का समर्थन किया था और जो अब ईरी झील के पश्चिम में एक इण्डियन राज्य बसाने के पक्ष में थे। निश्चित रूप से, ब्रिटेन ने इस विचार का समर्थन किया, क्योंकि न केवल इससे फर ट्रेड (खाल व्यापार) को मदद मिलती, किंतु यह अमेरिका के लिए कनाड़ा जाने वाले मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा भी होता।
इसी बीच, अमेरिकियों को लगने लगा कि अमेरीकी इण्डियन्स उनके विस्तारवादी नीति के मार्ग में एक रोड़ा हैं, क्योंकि वे अपनी शिकार वाली भूमि अमेरिकी उपयोग के लिए नहीं देना चाहते। अमेरिका की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अमेरीकी इण्यिन्स और उनको दिये जा रहे ब्रिटेन के समर्थन से भयभीत था। भय ये था कि निर्मम इण्ड़ियन्स अमरीकी बस्तियों में हत्याकांड कर सकते थे। अमेरिका के लोगों का भय एक नये नेता चीफ टेकुमसेह के आने से और ज्यादा बढ़ गया, जिसने उन आदिवासी समूहों के एकीकरण का प्रयास किया।
अमेरिकी जहाजों ने फ्रांस, स्पेन आदि यूरोपीय शक्तियों के बीच हो रहे विवाद का फायदा उनके व्यापारिक मार्गों तथा व्यापार को पाने में उठाया। यू.एस. बंदरगाह पर जहाज रूकने के तरीके बनाकर, वे 1756 के उस ब्रिटिश कानून से बच निकलने में सफल हुए थे जिसके तहत ऐसा कोई भी निरपेक्ष देश जिससे शांतिकाल में व्यापारिक समझौता ना हो, युद्ध के समय भी उसे अनुमति नहीं दी जा सकती। 1805 में, एसेक्स मामले में, एक ब्रिटिश अदालत ने यह निर्णय दिया कि वे अमेरिकी जहाज जो पूर्ण यात्रा को किसी अमेरिकी बंदरगाह पर विराम देते हैं, वे 1756 के कानून के तहत बने प्रतिबंधों से बच नहीं सकते। परिणामस्वरूप ग्रेट ब्रिटेन भी आगे बढ़ा और उसने आने वाले वर्षो में यूरोपीय किनारों पर अमेरिकी जहाजों को पकड़ना व यूरोपीय तटरेखा को आंशिक प्रतिबंधित करना प्रारंभ कर दिया। नेपोलियन, जो कि फ्रांसीसी सम्राट था इस आदेश के विरूद्ध गया व उसने उसके अधिकार वाले सभी यूरोपीय बंदरगाहों पर ब्रिटिश जहाजों को प्रतिबंधित कर दिया। बाद में उसने यह नीति उन निरपेक्ष जहाजों के लिए लागू की जो महाद्वीप में प्रवेश के पहले ब्रिटिश बंदरगाहों पर पहुंचते थे। ब्रिटेन ने इस संबंध में कई सारे आदेश निकालकर अपनी प्रतिक्रिया दी। इसके तहत सभी निरपेक्ष जहाजों को यूरोप की ओर यात्रा करने से पहले ब्रिटिश बंदरगाहों से लाइसेंस लेना पड़ता था।
ब्रिटेन के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी, किंतु अमेरिकी अर्थव्यवस्था उसके यूरोप के साथ व्यापार पर निर्भर करती थी, और फ्रांस तथा संयुक्त राज्य की सरकारों के बीच उच्च-स्तरीय संपर्क हो चुके थे। इसलिए ब्रिटिश आदेशों ने अमेरिका के व्यापार को नकारात्मक तरीके से प्रभावित किया। 1812 तक ब्रिटेन के जहाजों ने लगभग 400 अमेरिकी नावों को जब्त कर लिया था, कुछ को तो अमेरिकी बंदरगाहों के समीप ही, जिससे अमेरिकी निर्यात व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा था। अक्सर, अमेरिकी लोगों को ब्रिटिश जहाजों पर काम करने के लिए सूचीबद्ध किया जाता था।
6.0 अमेरिका द्वारा युद्ध की घोषणा
1 जून 1812 को, राष्ट्रपति जेम्स मेडिसन ने कांग्रेस को ग्रेट ब्रिटेन के विरूद्ध एक शिकायत भरा प्रस्ताव भेजा, यद्यपि यह युद्ध की घोषणा जैसा कुछ नहीं था। मेडिसन के संदेश के बाद, हाउस ऑफ रिप्रजे़न्टेटीव (प्रतिनिधि सभा) ने वोट डालने के पहले लगभग चार दिन तक विचार किया तथा इसके बाद 61 प्रतिशत लोगों ने इसके पक्ष में वोट डाला, जिसे युद्ध की पहली घोषणा कहा जाता है। 18 जून 1812 को झड़प औपचारिक रूप से प्रारंभ हो गयी, जब मेडिसन ने इस प्रस्ताव पर कानूनी तौर पर हस्ताक्षर कर दिये और अगले दिन इसकी घोषणा कर दी। यह पहली मर्तबा था कि युनाइटेड स्टेट ने किसी दूसरे देश के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी, और कांग्रेस का वोट इस दिशा में निर्णायक सिद्ध हुआ।
11 मई को लंदन में, प्रधानमंत्री स्पेंसर परसिवल को एक हत्यारे ने मार डाला, जिसका परिणाम यह हुआ कि रॉबर्ट बैंकस् जेंकिंसन सत्ता में आया। वह चाहता था कि संयुक्त राज्य के साथ बहुत प्रयोगात्मक रिश्ते रहें। 23 जून, को उसने काउंसील में पारित सारे आदेश वापस ले लिये, किंतु यूनाइटेड स्टेट्स इस बात से अनभिज्ञ रहा, क्योंकि यह खबर अटलांटिक से वहां तक पहुंचने में तीन सप्ताह लगे।
7.0 युद्ध के विभिन्न क्षेत्र
युद्ध तीन विभिन्न क्षेत्रों में लड़ा जा रहा थाः
- अटलांटिक महासागर में और उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट पर
- बड़ी झीलों और कनाड़ा की सीमा पर
- दक्षिणी राज्यों में
युद्ध की शुरूआत कनाड़ा पर अमेरिकी आक्रमण से हुई। इसके दो उद्देश्य थे-
- जमीन जीतना, और
- टेकुमसेह इण्डियन परिसंघ तक ब्रिटिश आपूर्ति रेखा को बाधित करना जो संयुक्त राज्य के लिए बहुत बड़ी समस्या थी।
कनाड़ा में हुई प्रारंभिक झड़पें उतनी आसान नहीं थी जितनी की आशा की जा रही थी और अनुभवहीन अमेरिकी सैनिक शीघ्र ही पीछे धकेल दिये गये। किस्मत से ऐसी जीतें मिलीं जिनसे संयुक्त राज्य पर एक गंभीर उत्तरी हमला टाला जा सका। टेकुमसेह एक स्थानीय अमेरिकी शाही नेता था जिसे वहां के आदिवासी समुदाय का समर्थन प्राप्त था, जिसने 1812 के युद्ध के दौरान युनाइटेड स्टेट्स का विरोध किया था। जनरल विलियम हेनरी की सेनाओं ने टेकुमसेह को मारने तथा 1813 में टेम्स् युद्ध जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मध्य-अटलांटिक किनारों पर, ब्रिटिश सैनिक चेसापीक की खाड़ी के क्षेत्र में 1814 में पहुंचें, और वॉशिंगटन की ओर बढ़ने लगे। यूएस जनरल विलियम विण्डर ने ब्रिटिश सेनाओं को रोकने का प्रयास किया। यू.एस. सेना को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। वॉशिंगटन शहर जीत लिया गया, और ब्रिटिश सैनिकों ने केपिटोल और व्हाईट हाउस तथा उत्तरी वाशिंगटन के गैर-रहवासी इलाकों को बुरी तरह जला दिया।
ब्रिटिश सेनायें आगे की ओर बढ़ने लगीं और एडमिरल कोचरेन बाल्टीमोर पर आक्रमण करना चाहता था। जनरल रॉस मारा गया जब उसकी सेनायें शहर की ओर बढ़ने लगीं। कोचरेन की सेनाओं ने मेक्हेनरी के किले पर गोलीबारी की, जो बाल्टीमोर के बंदरगाह की रक्षा कर रहा था, किंतु वो इसे जीत ना सका। इस घटना के दौरान, कोचरेन के एक जहाज पर कैद वकील फ्रांसिस स्कॉट की ने उत्साहित वो राष्ट्रगान लिख दिया - ‘‘द स्टार-स्पैंगल्ड़ बैनर‘‘ बाल्टीमोर में असफल रहने पर कोचरेन ने टूटे हुए समुद्री जहाजों को ठीक करने के लिए जमाईका में छोड़ दिया, और न्युओरलेंस पर आक्रमण की तैयारी करने लगा। उसे आशा थी की ऐसा करके वह अमेरिकीयों को मिसिसिपी नदी से काट देगा।
हालांकि 1814 के मध्य तक, 1812 का यह युद्ध दोनों ही पक्षों के लिए कठिन होते जा रहा था। ब्रिटेन, जो कि नेपोलियन के साथ महंगे युद्ध में उलझा हुआ था, स्वयं को अमेरिका से निकलने का रास्ता खोजने लगा। बेल्जियम के शहर घेंट में, अमेरिकी वार्ताकार जिनमें जॉन क्विंसी एडम्स और हैनरी क्ले शामिल थे, ब्रिटिश कूटनीतिज्ञों से मिले। लम्बी चली बहस के बाद, वार्ताकारों ने, 24 दिसम्बर 1814 को गेंट की संधि पर हस्ताक्षर किये, और इस तरह आधिकारिक रूप से युद्ध का अंत हुआ। इस संधि से यूएस-ब्रिटेन के सम्बंध उसी स्तर पर पहुच गये, जो युद्ध के पूर्व थे। यूएस को न तो कोई क्षेत्र मिला और न ही उसका कोई क्षेत्र छीना गया। युद्ध से कोई भी मुद्दा हल नहीं हुआ।
आधिकारिक रूप से युद्ध समाप्त हो गया था, किंतु अमेरिका तक यह खबर बहुत धीरे पहुंची। न्यूओरलिंस में, कॉचरेन ने ब्रिटिश सेनाओं के साथ डेरा ड़ाला, जो अभी भी वहां अपने नये कमांड़र का ब्रिटेन से आने का इंतजार कर रहे थे। 8 जनवरी 1815 को एन्ड्रयू जैक्सन की कमज़ोर सेना ने ब्रिटेन की मजबूत सेना को न्यूओरलिंस के युद्ध में मजबूती से पराजित किया। यह लड़ाई हालांकि व्यर्थ में लड़ी गई क्योंकि संधि पर हस्ताक्षर तो हो चुके थे, किंतु पूरे अमेरिका में अमेरिकी राष्ट्रवाद का सकारात्मक उबाल देख रहे थे। यद्यपि युद्ध ने न्यू इंग्लैण्ड के विनिर्माण क्षेत्र को ब्रिटेन से आती प्रतिस्पर्धा से बचा लिया था, न्यू इंग्लैण्ड के व्यापारियों के जहाजों का गम्भीर नुकसान हुआ था, और इनका एक समूह (फेडरलिस्ट) 1814 में अपनी समस्याओं पर चर्चा करने के लिए हार्टफोर्ड कनवेंशन में मिला। कुछ लोगों ने तो अमेरिकी संघ से संबंध-विच्छेद की बात की, िंकंतु अधिकांश लोग यह चाहते थे कि अमेरिका भविष्य में युद्ध की घोषणा कभी ना कर सके। जब गेंट संधि की खबर वहां पहुंची तो ये लोग धोखेबाज़ लगने लगे। इस प्रकार हार्टफोर्ड कनवेंशन फेडरल पार्टी के लिए एक अंत साबित हुआ।
7.1 1812 के युद्ध की महत्वपूर्ण लड़ाईयां
1812
- फोर्ट सेंट जोसेफ और मेकीनेक पर कब्जा - 17 जुलाई
- फोर्ट मेल्डेन और डेट्राइट पर कब्जा - 16 अगस्त
- क्वीनस्टन हाईट्स और ब्रोक की मृत्यु - 13 अक्टूबर
1813
- प्रोस्काट और आग्डेन्सबर्ग पर कब्जा - 22 फरवरी
- यॉर्क पर कब्जा - 27 अप्रैल
- फोर्ट जॉर्ज की लड़ाई - 27 मई
- स्टोनीक्रीक की लड़ाई - 6 जून
- बीवर डैम की लड़ाई - 24 जून
- लेक ईरी की लड़ाई - 10 सितम्बर और टेम्स की लड़ाई - 5 अक्टूबर
- माँट्रियल के विरूद्ध अमेरिका का असफल अभियान, 26 अक्टूबर की लड़ाई
1814
- 5 जुलाई, 1814 को हुई चिप्पावा की लड़ाई और 25 जुलाई, 1814 को हुई ल्युंडी्स लेन की लड़ाई
- 4 अगस्त 1814 से 21 सितम्बर 1814 तक फोर्टईरी की घेराबंदी
8.0 एक लुप्त युद्ध
क्रांति और गृह युद्ध के बीच फंसा हुआ 1812 का यह युद्ध अमेरिका का भूला-बिसरा युद्ध माना जाता है। इतिहासकारों का एक समूह तो यह तर्क देता है कि युद्ध पूर्णतः निरर्थक था जिससे ज़िंदगियों और संसाधनों का नुकसान हुआ। पहली बात तो यह कि यह अनावश्यक था। जब ब्रिटेन जेम्स मेडिसन की मांगों को पूरा करने में असफल हुआ कि वह ऑर्डर इन कांउसिल को वापस ले तो कांग्रेस ने युद्ध घोषित कर दिया। घोषणा के एक सप्ताह के अंदर ही ब्रिटेन ने उकसाने वाले आदेश वापस ले लिये, और इस प्रकार युद्ध का मूल कारण समाप्त हो गया था। थोड़े से धैर्य, या प्रभावी वार्तालाप से युद्ध टाला जा सकता था।
{अमेरिका का गृह युद्ध 1861-1865 के बीच युनाइटेड स्टेट्स में तब लड़ा गया जब कुछ दक्षिणी गुलाम राज्यों ने स्वंय का संबंध यूएस के साथ विच्छेद घोषित कर दिया था।}
उनका यह भी तर्क है कि युद्ध अपरिणामदायी रहा। तीन साल के युद्ध के पश्चात और लगभग 6000 अमेरिकियों के मारे जाने के बाद यूएस और ग्रेट ब्रिटेन जिस संधि पर राजी हुए उसमें किसी भी ऐसी समस्या का हल नहीं निकला जिसके कारण युद्ध हुआ। वास्तव में, व्यापार नीतियों और समुद्री अधिकारों, जिनको लेकर युद्ध शुरू हुआ था, की समस्याएं 1820 तक जारी रहीं, जैसे कि युद्ध हुआ ही ना हो।
यद्यपि कुछ इतिहासकार इस बात पर जोर देते है कि इस युद्ध के कारण अमेरिका में राष्ट्रवाद का उदय हुआ। 1810 के कांग्रेस चुनाव ने बड़ी संख्या में नये प्रतिनिधि जीतकर आये। पहली मर्तबा जीते हुए इन नये प्रतिनिधियों ने ज्यादा प्रभावी और चुनौतीपूर्ण अमेरिकी राष्ट्रवाद को सामने रखा। इन नेताओं पर इस बात का प्रभाव था कि ब्रिटेन की समुद्र नीति अमेरिका के खिलाफ है। इस समूह के इतिहासकारों का मानना है कि इन युद्ध-समर्थको का कहना था कि अमेरिका के राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा की जाए।
युद्ध का तृतीय विवेचन यह रहा कि यह ब्रिटिश राजनीति के भीतर सत्ता संघर्ष से उद्भवित हुआ। यह विवेचन नये इंग्लैंड के संघवादियों द्वारा अनजाने ही युद्ध के बारे में निभायी गई भूमिका पर जोर देता है। रिपब्लिकन राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन और जेम्स मेडिसन ने व्यावसायिक दबाव के माध्यम से अमेरिकी वाणिज्यिक और समुद्री अधिकारों हेतु ब्रिटिश मान्यता के लिए मजबूर करने की कोशिश की, वहीं संघीय विपक्ष ने उनके प्रयासों को कम आंका। न्यू इंग्लैंड के संघवादियों के 1807 के जैफरसन के प्रतिबंध को न मानने के कार्य ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था पर वास्तविक दबाव बनाने के लिए मौका मिलने के पूर्व कांग्रेस के प्रतिबंध को निरस्त करने के लिए मजबूर किया। इसके अलावा, संघवादियों का रिपब्लिकन नीतियों के प्रति स्पष्ट रूप से जाहिर प्रतिरोध ने ब्रिटेन को तेजी से बढ़ते शत्रुतापूर्ण रूख की ओर प्रोत्साहित किया।
सर्वाधिक सटीक विश्लेषण ‘विशिष्ट विचारधारा’ (स्कूल ऑफ थॉट्स) के इन तीनों विचारों से प्राप्त होगा। 1812 के युद्ध को वास्तविक रूप से समझने के लिए, मात्र वॉर हॉक का प्रभाव तथा संघवादियों का विश्लेषण काफी नहीं है वरन् उन ब्रिटिश नीतियों को समझना आवश्यक है जिनके कारण अंतर्राष्ट्रीय विवाद उत्पन्न हुआ। सबसे महत्वपूर्ण है कि हम जेम्स मेडिसन की भूमिका का पता लगाएं। थॉमस जेफरसन के राज्य सचिव के रूप में, और फिर राष्ट्रपति के रूप में, मेडिसन ने बड़े पैमाने पर वे विदेश नीतियां बनाई जिसकी वजह से अमेरिका ने युद्व किया। हालांकि 1810 में युद्ध-समर्थकों (वॉर हॉक्स) ने कांग्रेस में चुने जाने पर युद्ध की घोषणा सुनिश्चित करने के लिए मेडिसन को मत प्रदान किये, और इन वर्षों में, गणतंत्रवादी नीतियों का संघवादियों द्वारा किये गये विरोध ने विदेश और सैन्य नीतियों को और जटिल बना दिया, किंतु यह मुख्य रूप से जेम्स मेडिसन का युद्ध था।
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