यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 8

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जी-7, जी-20, आरसीईपी, आसियान, आरटीए भाग - 3

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8.0 ट्रांस पैसिफिक भागीदारी (टीपीपी)

ट्रांस पैसिफिक भागीदारी (टीपीपी) अब तक हुए सभी मुक्त व्यापार समझौतों में सर्वाधिक महत्वाकांक्षी समझौतों में से एक है। यह न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में 4 फरवरी 2016 को बारह प्रशांत देशों के बीच सात वर्षों की लंबी चर्चा प्रक्रिया के बाद हस्ताक्षर किया गया व्यापार समझौता है जिसे अभी प्रभावशाली होना बाकी है। 

 

इसकी शुरुआत मात्र चार देशों - ब्रुनेई, चिली, न्यूजीलैंड और सिंगापुर - के बीच हुए पी 4 व्यापार समझौते से हुई जो वर्ष 2005 में प्रभावशाली हुआ। इसे ‘‘ट्रांस पैसिफिक सामरिक आर्थिक भागीदारी समझौता‘‘ (टीपीएसईपी या पी 4) कहा जाता था। इस समझौते ने इन देशों के बीच व्यापार की जाने वाली अधिकांश वस्तुओं पर से प्रशुल्क समाप्त कर दिया, इसमें और अधिक कटौती करने का भी आश्वासन दिया गया था, साथ ही इसमें रोजगार प्रथाओं, बौद्धिक संपदा और प्रतिस्पर्धा नीतियों जैसे अधिक व्यापक मुद्दों पर सहयोग करने का भी आश्वासन शामिल था। 

बाद में सन 2008 से इस समझौते के दायरे का विस्तार हुआ और अब टीपीपी में 12 देश शामिल हैं - अमेरिका, जापान, मलेशिया, विएतनाम, सिंगापुर, ब्रूनेई, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा, मेक्सिको, चिली और पेरू। 

अमेरिकी सरकार टीपीपी को प्रस्तावित ट्रांसएटलांटिक व्यापार एवं निवेश भागीदारी (टीटीआईपी) के साथी समझौते के रूप में मानती थी, जो मोटे तौर पर केवल अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच उसी प्रकार का समझौता होता। टीपीपी और टीटीआईपी एकसाथ मिलकर अमेरिका को एक बार फिर से स्पष्ट रूप से वैश्विक व्यापार के केंद्र में रख देते थे। और इन दोनों ही समझौतों में चीन या भारत सदस्य देशों के रूप में शामिल नहीं हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका को टीपीपी से बाहर निकाल लिया जिसके बाद वह घटकर ग्यारह-सदस्यीय सीपी-टीपीपी बन गया।   

8.1 संक्षेप में टीपीपी

जैसा ऊपर कहा गया है, इसमें 12 देश (जैसा ऊपर सूचीबद्ध किया गया है) शामिल हैं। इस समझौते का उद्देश्य इन देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और अधिक गहरा करना, प्रशुल्कों को हटाना और संवृद्धि को बढावा देने के लिए व्यापार को उत्प्रेरित करना है। सदस्य देश आर्थिक नीतियों और विनियमों में अधिक निकट संबंधों के विषय में भी आशान्वित हैं। यह समझौता उसी प्रकार का एक नया एकल बाजार निर्मित कर सकता है जैसा यूरोपीय संघ का बाजार है। 

टीपीपी समझौते के 30 अध्याय सार्वजनिक नीति के अनेक मुद्दों से संबंधित हैं, साथ ही इसके घोषित लक्ष्य हैं ‘‘आर्थिक संवृद्धि का संवर्धन; नौकरियों के निर्माण और उन्हें बनाये रखने में सहायता देना; नवप्रवर्तन, उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि करना; जीवन स्तरों में वृद्धि करना; अपने देशों में गरीबी को कम करना; और पारदर्शिता, सुशासन वर्धित श्रम और पर्यावरणीय संरक्षण का संवर्धन करना।‘‘

टीपीपी में प्रशुल्कों जैसी व्यापार बाधाओं को कम करने के उपाय शामिल हैं, और साथ ही इसमें आइएसडीएस तंत्र - निवेशक - राज्य विवाद निवारण तंत्र - की स्थापना करना भी शामिल है। 

8.2 कौन सी वस्तुएं और सेवाएं प्रभावित होती हैं?

इसमें अधिकांश वस्तुएं और सेवाएं शामिल हैं परंतु इसमें सभी प्रशुल्क - वे जो आयतों पर अधिरोपित कर हैं - शामिल नहीं हैं, ये सभी हटाये जाने वाले हैं और इनमें से कुछ को हटाने में अन्य की तुलना में अधिक समय लग सकता है। कुल मिलाकर 18,000 प्रशुल्क प्रभावित हो रहे हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा है कि वे .षि उत्पादों और औद्योगिक वस्तुओं पर से प्रशुल्कों और अन्य प्रतिबंधात्मक नीतियों का या तो पूर्णतः उन्मूलन करेंगे या उन्हें कम करेंगे। अमेरिका द्वारा विनिर्मित वस्तुओं और लगभग सभी अमेरिकी कृषि उत्पादों पर समझौते की प्रतिपुष्टि होने के लगभग तुरंत बाद प्रशुल्क समाप्त हो जायेंगे।

वस्त्रों और कपडों पर वे सभी प्रशुल्क हटाएंगे, परंतु जबकि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कहते हैं कि समझौते की प्रतिपुष्टि होने के तुरंत बाद अधिकांश प्रशुल्क हट जायेंगे, परंतु ‘‘जैसी टीपीपी पक्षों के बीच सहमति बनी है कुछ संवेदनशील उत्पादों पर से प्रशुल्क हटाने में अधिक लंबी समयावधि लगेगी।’’ सेवाओं के व्यापार पर वे इस बात पर सहमत हुए हैं कि मुक्त व्यापार एक काफी अच्छी बात होगी, और कुछ क्षेत्रों में वे व्यापार का उदारीकरण करने वाले हैं। 

8.3 आलोचना 

हालांकि चीन ने टीपीपी का सतर्क स्वागत किया है, फिर भी आलोचकों का कहना है कि टीपीपी चीन का मुकाबला करने के लिए एक चाल है। अन्य लोग तर्क देते हैं कि यह कंपनियों के लिए ऐसी सरकारों के विरुद्ध मुकदमा दायर करने का मार्ग प्रशस्त करता है जो राज्य द्वारा प्रदत्त सेवाओं का पक्ष लेने के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों पर नीति में परिवर्तन करती हैं। टीपीपी देशों के श्रम बलों के बीच प्रतिस्पर्धा को भी अधिक तीव्र बनाएगा। परंतु इसकी सबसे बडी आलोचना इस बात पर होती रही है, जिसके बारे प्रचारकों का आरोप है कि वे गोपनीय वार्ताएं थीं, जिनमें ऐसा कहा गया कि मतदाताओं की जानकारी के बिना सरकारें व्यापक परिवर्तन करने का प्रयास कर रही थीं। 

इसके समर्थकों का कहना है की वार्ताएं सार्वजनिक इस कारण से नहीं की गईं क्योंकि कि उनपर कोई औपचारिक सहमति नहीं बनी थी। 


8.4 तो अब नाफ्टा का क्या होगा?

प्रतिभागी देशों के बीच के वर्तमान व्यापार समझौते, जैसे उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता, उन प्रावधानों तक सीमित हो जायेंगे जिनका टीपीपी से कोई टकराव नहीं है, या जो टीपीपी से अधिक व्यापार उदारीकरण प्रदान करते हैं। अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इन समझौतों के बाद विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता क्या रह जाएगी। 

जो इसके पक्ष में हैं उनका कहना है कि यह व्यापार समझौता शामिल देशों के बीच नई आर्थिक संवृद्धि की संभावनाओं को खोलेगा। जो इसके विरुद्ध हैं - विशेष रूप से कुछ अमेरिकी - उन्हें इस बात का भय है कि इसका अर्थ यह हो सकता है कि अमेरिका से नौकरियां विकासशील देशों में चली जाएँगी। उन्हें यह तथ्य भी पसंद नहीं है कि पांच वर्ष लंबी चर्चाएं अधिकांशतः गोपनीय रूप से संपन्न हुईं। राष्ट्रपति ट्रंप ने नाफ्टा को पुनःसंरचित कर यूएस-एम-सी-ए अनुबंध बनवाया। 

9.0 ट्रांसअटलांटिक व्यापार एवं निवेश भागीदारी (टीटीआईपी)

टीटीआईपी विश्व की दो आधुनिकतम अर्थव्यवस्थाओं - अमेरिका और यूरोपीय संघ - के बीच प्रस्तावित एक क्षेत्रीय समझौता है। टीटीआईपी का उद्देश्य इन दोनों समूहों (अमेरिका एक देश है और यूरोपीय संघ संप्रभु यूरोपीय देशों का संघ है) के बीच द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक वृद्धि का संवर्धन करना है। यह एक व्यापार समझौता है परंतु संभवतः इसका परिणाम सामरिक संबंधों के सशक्तिकरण में भी हो सकता है। 


टीटीआईपी समझौता (ए) बाजार तक पहुँच, (बी) विशिष्ट विनियमों और (सी) सीमा नियमों और सहयोग के तरीकों को समाविष्ट करता है। टीटीआईपी को प्रभावशाली होने में वर्ष 2019 तक का समय लग सकता है। अमेरिकी सरकार टीटीआईपी को ट्रांस पैसिफिक भागीदारी (टीपीपी) का साथी समझौता मानती है। 

पहले से अमेरिका के ही 20 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते मौजूद हैं। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, कनाडा, चिली, कोलंबिया, कोस्टारिका, डॉमिनिक गणराज्य, एल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरस, इजराइल, जॉर्डन, कोरिया, मेक्सिको, मोरक्को, निकारागुआ, ओमान, पनामा, पेरू और सिंगापुर। टीटीआईपी पर वार्ता 2019 आते-आते थम गई।

9.1 अमेरिका क्या सोचता था

यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच आर्थिक बाधाएं अपेक्षाकृत कम रही हैं, यह न केवल उनकी विश्व व्यापार संगठन की लंबे समय से चली आ रही सदस्यता के कारण है बल्कि यह हाल के यूरोपीय संघ - अमेरिका के खुले आसमान समझौते और ट्रांसएटलांटिक आर्थिक परिषद द्वारा किये गए कार्यों के कारण भी है।

समझौते के महत्वाकांक्षी, व्यापक और उच्च मानदंड के परिप्रेक्ष्य में अमेरिकी सरकार को लगता है कि टीटीआईपी अमेरिका में निर्मित वस्तुओं और सेवाओं के लिए यूरोपीय बाजार में बढ़ी हुई पहुँच के माध्यम से अमेरिकी परिवारों, श्रमिकों, व्यापारों, कृषकों और पशु फार्म संचालित करने वालों के लिए अवसरों को खोलने में सहायक होगा। यह अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता, नौकरियों और संवृद्धि के संवर्धन में सहायक होगा। अमेरिकी और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाएं विश्व की दो आधुनिकतम, सर्वाधिक विकसित और उपभोक्ता संरक्षण के उच्च मानकों के लिए सर्वाधिक प्रतिबद्ध अर्थव्यवस्थाएं हैं। टीटीआईपी का उद्देश्य इस पहले से ही मजबूत संबंध को इस प्रकार से बढ़ाने का है जिससे ट्रांसएटलांटिक व्यापार और निवेश द्वारा पहले से ही समर्थित आर्थिक वृद्धि और 1.3 करोड़ अमेरिकी और यूरोपीय संघ के रोजगारों में औरअधिक वृद्धि की जा सके। 

9.2 यूरोपीय संघ क्या सोचता था

यूरोपीय आयोग कहता है कि टीटीआईपी यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था में 120 अरब यूरो की वृद्धि करेगा, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 90 अरब यूरो की वृद्धि करेगा, और शेष विश्व की अर्थव्यवस्था में 100 अरब यूरो की वृद्धि करेगा। तदनुसार, टीटीआईपी का उद्देश्य ‘‘एक-तिहाई वैश्विक व्यापार का उदारीकरण‘‘ करने का है, जो, उनके तर्क के अनुसार, लाखों नए सवेतन रोजगार पैदा करेगा। इस मान्यता में अनेक आपत्तियां उभर कर सामने आई हैं, क्योंकि विश्व व्यापार संगठन पहले से ही मौजूद है, और प्रति परिवार लाभ इससे पैदा होने वाली संभावित समस्याओं से अधिक प्रतीत नहीं होते हैं। 

9.3 सांख्यिकी

अमेरिका और यूरोपीय संघ एक साथ मिलकर विश्व जीडीपी के 60 प्रतिशत हिस्से का, वस्तु व्यापार में विश्व के 33 प्रतिशत हिस्से का, और सेवाओं के व्यापार में विश्व के 42 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दो शक्तियों के बीच काफी व्यापारी टकराव हैं, परंतु ये दोनों ही एक दूसरे के आर्थिक बाजारों पर निर्भर हैं, और ये विवाद कुल व्यापार के केवल 2 प्रतिशत को ही प्रभावित करते हैं। दोनों के बीच प्रस्तावित टीटीआईपी संभवतः इतिहास के सबसे बडे मुक्त व्यापार समझौते का प्रतिनिधित्व करेगा, जिसमें विश्व जीडीपी का 46 प्रतिशत हिस्सा समाविष्ट होगा। 

9.4 विवाद 

यूरोपीय आयोग का दावा है कि ट्रांसएटलांटिक व्यापार समझौता पारित होने से संबंधित गुटों के समग्र व्यापार में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। हालांकि आर्थिक संबंध तनावपूर्ण हैं और अक्सर दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार विवाद होते रहते हैं, जिनमें से अनेक विवाद विश्व व्यापार संगठन के समक्ष जाकर समाप्त होते हैं। इस संबंध में विभिन्न आलोचनाएं निम्नानुसार हैं -

  1. गोपनीयता - चूंकि भारी मात्रा में प्रस्तावित सामग्री जनता से गोपनीय रखी गई है, अतः टीटीआईपी के श्रम पर होने वाले प्रभाव के संबंध में वास्तविक चिंताएं हैं। 
  2. टीटीआईपी के विरुद्ध समूह - अनेक समूहों के लिए टीटीआईपी विवादित रहा है। श्रम संगठन, दानी संस्थाएं, गैर-सरकारी संगठन और पर्यावरणविद, विशेष रूप से यूरोप में, नकारात्मक प्रभावों की श्रृंखला का वर्णन करते हैं जैसे बडे़ व्यापारों के लिए नियामक बाधाओं का न्यूनीकरण, खाद्य सुरक्षा कानून जैसी बातें, बैंकिंग विनिमयन और व्यक्तिगत देशों की संप्रभु शक्तियां।‘‘ वे आगे अधिक आलोचनात्मक दृष्टि से यह भी कहते हैं कि ‘‘यह राष्ट्रपारीय निगमों द्वारा यूरोपीय और अमेरिकी समाजों पर किया गया आक्रमण है।‘‘
  3. टीटीआईपी के विरुद्ध नागरिक - यूरोपीय नागरिकों की पहल, जो यूरोपीय नागरिकों को एक कानूनी अधिनियम प्रस्तावित करने के लिए यूरोपीय आयोग से सीधे बात करने की सुविधा प्रदान करती है, ने एक वर्ष के भीतर टीटीआईपी और सीईटीए के विरुद्ध 32 लाख हस्ताक्षर प्राप्त किये हैं। 
  4. श्रम मानक, श्रमिकों के अधिकार और रोजगार की सुरक्षा - ऐसी आशंका व्यक्त की जाती है कि टीटीआईपी रोजगार की सुरक्षा और यूरोपीय संघ द्वारा स्वीकृत वर्तमान न्यूनतम श्रम मानकों को कम करेगी। यूरोपीय संसद की एक रिपोर्ट के अनुसार श्रमिकों की स्थिति पर पडने वाले प्रभाव, आर्थिक मॉडल और भविष्यवाणियों के लिए उपयोग की गई मान्यताओं के आधार पर नौकरी प्राप्ति से नौकरी समाप्ति तक कुछ भी हो सकते हैं।
  5. आईएसडी के कारण लोकतंत्र और संप्रभुता पर खतरा - निवेशक-राज्य विवाद निवारण (आईएसडी) एक ऐसा साधन है जो निवेशक को यह अनुमति प्रदान करता है कि वह निवेशक की उत्पत्ति वाले देश के हस्तक्षेप के बिना उसके निवेश की मेजबानी करने वाले देश के विरुद्ध सीधे मामला उठा सकता है। 1980 के दशक के उत्तरार्ध से कुछ व्यापार संधियों ने आईएसडी के लिए प्रावधान बनाये हैं जिनके अनुसार विवाचन के न्यायाधिकरण में उस देश के विरुद्ध क्षतिपूर्ति के लिए दावा दायर किया जा सकता है। हाल के समय में देश इस प्रकार के उपनियमों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बन गए हैं। टीटीआईपी के आलोचक कहते हैं कि ‘‘आईएसडी के प्रावधान देशों की सरकारों की अपने नागरिकों के हितों की दिशा में काम करने की शक्तियों में कमी करते हैं‘‘, और यहाँ तक कि ‘‘टीटीआईपी स्थानीय सरकार के लोकतांत्रिक अधिकार को भी कम कर सकता है, और इस प्रकार से वह लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करता है। फ्रांस और जर्मनी चाहते हैं कि निवेशक-राज्य विवाद निवारण को टीटीआईपी संधि से हटा दिया जाये। 
  6. यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में है - पिछले एक दशक से कुछ बड़ी, विशेष रूप से अमेरिकी, कंपनियों, जैसे तंबाकू समूह फिलिप मॉरिस, ने अधिकार का दावा करने के लिए टीटीआईपी का उपयोग किया है। सैद्धांतिक रूप से ये प्रावधान राष्ट्रीय संसदों द्वारा लिए गए निर्णयों के कारण निजी निवेशकों को भविष्य के लाभों में होने वाली हानि के लिए सरकारों के विरुद्ध मुकदमा दायर करने की अनुमति देंगे। आलोचकों का कहना है कि इसका उपयोग विशिष्ट सेवाओं के निजीकरण को पलटने के लिए अधिक कठिन बनाकर यूके के एनएचएस पर आक्रमण करने के लिए किया जा सकता है।

9.5 वार्ताओं के दौर

चर्चाएं एक हते लंबे चर्चा सत्रों में बारी-बारी से ब्रुसेल्स और अमेरिका के बीच आयोजित होती हैं। वार्ताओं का पहला दौर 7-12 जुलाई 2013 के दौरान वाशिंगटन डीसी में अयूजित हुआ था। वार्ता का ग्यारहवां दौर 19-23 अक्टूबर 2015 के दौरान मियामी में संपन्न हुआ था। वार्ता का बारहवां दौर 22-26 फरवरी 2016 के बीच ब्रुसेल्स में संपन्न हुआ। टीटीआईपी पर वार्ता 2019 आते-आते थम गई। 

9.6 टीटीआईपी बनाम विश्व व्यापार संगठन 

आलोचकों का कहना है कि यूरोपीय संघ और अमेरिका को इस बात की जानकारी होना आवश्यक है कि अकेले टीटीआईपी के साथ जाना काफी महंगा हैः यह पहल आर्थिक गट निर्माण को प्रोत्साहित करती है न कि अधिक प्रशंसित वैश्वीकरण की रचना को। गुट निर्माण में यह अंतर्निहित है कि भविष्य में देशों के साथ कम समानता का व्यवहार होगा। वैश्विक नियम निर्धारित करने की अन्य देशों की क्षमता उतनी ही सीमित होगी जितनी यूरोपीय संघ और अमेरिका की है, परंतु पूर्ववर्ती अपनी स्वयं की पहलों को आगे बढाने का प्रयास करेंगे। चीन पहले से ही एशिया प्रशांत में क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर चर्चा कर रहा है। इस प्रकार, उदारीकरण स्वचालित रूप से विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य देशों तक विस्तारित नहीं होगा य बल्कि यह केवल कुछ विशिष्ट व्यापार भागीदारों तक ही सीमित रहेगा। इस प्रकार, यदि हम इस बात का स्मरण करें कि विश्व व्यापार संगठन का क्या उद्देश्य था तो ऐसा प्रतीत होता है कि टीटीआईपी ठीक इसकी उलटी दिशा में जा रहा है। 

इस गतिविधि का विकासशील देशों पर प्राथमिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पडेगा; वे उदारीकरण के संघर्ष में स्वयं को बनाये रख पाने में अक्षम हो जायेंगे, और वे अपवर्जित हो जायेंगे। उसी समय, व्यापार नियमों और नियामक मानदंडों की और अधिक जटिल व्यवस्था सभी के लिए घातक साबित होगी। यदि यूरोपीय संघ और अमेरिका वास्तव में उनके मूल्यों के अनुसार वैश्वीकरण का निर्माण करना चाहते हैं तो वे विश्व व्यापार संगठन और अन्य बहुपक्षीय मंचों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। एकमात्र विश्व व्यापार संगठन ही ऐसे व्यापार के नियमों पर चर्चा का अवसर प्रदान करता है जो वास्तविक अर्थों में वैश्विक हैं, जिसमें सभी सदस्य देशों की भागीदारी और अंतःक्रय शामिल है। जिस प्रकार नैरोबी में हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान प्रदर्शित हुआ, समझौता करने की इच्छा कम है, न कि टीटीआईपी जैसे समझौतों के कारण न्यूनतम है। 

परंतु विश्व व्यापार संगठन की अत्यधिक कठिन और कभी-कभी अत्यंत धीमी चर्चा प्रक्रियाएं एक मात्र मार्ग प्रतीत होता है जिससे महंगे आर्थिक गुटों के निर्माण से बचा जा सकता है। अब केवल यूरोपीय संघ और अमेरिका वैश्वीकरण के नियम निर्धारित नहीं कर पाएंगे।

10.0 नाफ्टा (NAFTA)

उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (नाफ्टा) में कनाड़ा, अमेरिका और मेक्सिको शामिल हैं, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र (सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से) बनाता है। नाफ्टा की स्थापना व्यापारिक लागतों को कम करने, व्यापार निवेश को बढ़ाने और उत्तरी अमेरिका को वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए की गई थी। यह जानकारी रोचक है कि विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1 जनवरी 1995 को की गई थी। 

जनवरी 2008 में इन तीनों देशों के बीच के सभी शुल्कों को समाप्त कर दिया गया था। 1993 से 2009 के बीच व्यापार 297 बिलियन ड़ॉलर से तिगुना होकर 1.6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया था। 

नाफ्टा पर राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्लू. बुश, मेक्सिको के राष्ट्रपति सेलिनास और कनाड़ाई प्रधानमंत्री ब्रायन मूलरोनेय ने 1992 में हस्ताक्षर किये थे। तीनों देशों की विधायिकाओं ने 1993 में इसकी पुष्टि कर दी थी। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने 17 नवंबर 1993 को इसे 200 की तुलना में 234 मतों से स्वीकृति प्रदान की थी। तीन दिन बाद 20 नवंबर को अमेरिकी सीनेट ने 38 की तुलना में 60 मतों से इसे मंजूरी प्रदान की। 

8 दिसंबर 1993 को राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने नाफ्टा पर एक कानून के रूप में हस्ताक्षर किये, और 1 जनवरी 1994 से यह प्रभावशाली हो गया। हालांकि इसपर हस्ताक्षर राष्ट्रपति बुश द्वारा किये गए थे, परंतु राष्ट्रपति क्लिंटन के लिए यह एक प्राथमिकता बन गया था, और इसका पारित होना उनकी पहली सफलताओं में से एक थी। 

नाफ्टा समझौते का अनुच्छेद 102 इसके उद्देश्य को रेखांकित करता हैः

  1. हस्ताक्षरकर्ता देशों को सबसे पसंदीदा देश का दर्जा प्रदान करना 
  2. व्यापार बाधाओं को समाप्त करना और वस्तुओं के सीमापार आवागमन को सुविधाजनक बनाना 
  3. निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की स्थितियों को प्रोत्साहित करना 
  4. निवेश के अवसरों में वृद्धि करना 
  5. संरक्षण प्रदान करना और बौद्धिक संपत्ति के अधिकारों का प्रवर्तन 
  6. व्यापार विवादों के निराकरण के लिए उपयुक्त प्रक्रियाएं निर्मित करना 
  7. नाफ्टा के लाभों के विस्तार के लिए अधिक त्रिपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग की रूपरेखा प्रस्थापित करना

2018 तक, ट्रंप ने यह सुनिष्चित किया कि नाफ्टा को यूएस-एम-सी-ए के रूप में पुनर्गठित किया जाये।

10.1 अमेरिका के विनिर्माण क्षेत्र पर प्रभाव 

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय के अनुसार नाफ्टा के साथ वस्तुओं और सेवाओं में अमेरिकी व्यापार 2009 में कुल 1.6 ट्रिलियन ड़ॉलर था, और 1994 में नाफ्टा के क्रियान्वयन से अब तक इसमें उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई थी। अमेरिका अपने बाहरी व्यापार का एक बड़ा भाग अपने दो पड़ोसी देशों के साथ करता है, अतः नाफ्टा अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बडे़ भाग का प्रतिनिधित्व करता है। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार, 2010 में मेक्सिको के साथ निर्यात कुल 163.3 बिलियन ड़ॉलर का हुआ, और मेक्सिको से होने वाला आयात कुल 229.7 बिलियन ड़ॉलर का था। जैसा कि हम दिए गए आंकड़ों से देख सकते हैं, कनाड़ा एवं मेक्सिको दोनों ही के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, किंतु इसका उल्टा उस हद तक सच नहीं है। 

अमेरिका के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते के माध्यम से जुड़ने का मेक्सिको के लिए एक स्पष्ट लाभ यह था कि एक विकासशील देश होने के कारण उसके यहां वेतन की दरें अमेरिका की तुलना में काफी कम थीं, और ऐसी वस्तुओं के विनिर्माण में उसे एक प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त था जिनमें श्रम की अधिक आवश्यकता होती थी। निश्चित रूप से अधिक श्रम की आवश्यकता वाली विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियाँ (जैसे तैयार कपडे़) मेक्सिको को स्थानांतरित हो गई हैं, क्योंकि वह ऐसे विनिर्माताओं को लागत लाभ प्रदान करती थीं जो अपना उत्पादन उस देश में स्थान्तरित करके कर रहे थे। 

नाफ्टा का नकारात्मक प्रभाव अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र पर सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र की तुलना में अधिक हुआ है। उदाहरणार्थ, वस्त्रों और तैयार कपड़ों का अमेरिकी रोजगार 1993 और 2007 के दौरान 16,62,000 से घट कर 7,50,000 रह गया था (अमेरिकी श्रम विभाग, श्रम सांख्यिकी ब्यूरो; 1994, 2008)। इसका प्रमुख कारण था अमेरिका में पूंजी सघन परिचालन का अनुपूरण। उदाहरण के रूप में, एरिज़ोना में स्थित संगीत वाद्यों के विनिर्माता फेंडर गिटार, नाफ्टा से पूर्व अपने सभी उत्पादों का उत्पादन कैलिफोर्निया में करते थे, परंतु अब वे अपना अधिकांश उत्पादन मेक्सिको की सीमा के ठीक दक्षिण में करते हैं। आर्थिक नीति संस्थान के अनुसार नाफ्टा के कारण उत्पादन में हुए विस्थापन के कारण 1993 और 2003 के दौरान अमेरिका को अपने विनिर्माण क्षेत्र में 879280 नौकरियों का नुकसान उठाना पड़ा। इस घटना का बड़ी अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं को लाभ हुआ, परंतु इसने अमेरिका के विनिर्माण क्षेत्र के रोजगार को हानि पहुंचाई है। आज भी इसका समग्र प्रभाव निर्धारित करना कठिन है, क्योंकि नाफ्टा के कारण अमेरिका में विजयी और पराजित, दोनों शामिल हैं। 

नाफ्टा ने बडे़ अमेरिकी विनिर्माताओं को व्यापक रूप से लाभान्वित किया है, जिनकी पहुंच अब मेक्सिकन श्रमिकों के रूप में अधिक और सस्ती निविष्टियों तक हो गई है। हालांकि उन्होंने अपनी विनिर्माण गतिविधियाँ अमेरिका से मेक्सिको प्रतिस्थापित कर दी हैं, फिर भी उनके उत्पादों की मांग बढ़ती ही गई है, और इसी कारण उनके लाभ भी बढ़ते गए हैं। मेक्सिको के साथ मुक्त व्यापार को खोलने के कारण केवल अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र के उद्योगों के रोजगार को ही नुकसान नहीं पहुंचा है, बल्कि इसके कारण अमेरिका का लघु उद्योग क्षेत्र भी ध्वस्त हो गया है। नाफ्टा से पहले, अमेरिका के लघु उद्योग क्षेत्र के विनिर्माता उन रिक्त स्थानों की पूर्ति कर देते थे जो बडे़ विनिर्माताओं द्वारा छोड़ दिए जाते थे, परंतु चूंकि बडे विनिर्माताओं ने सस्ते मेक्सिकन श्रम का लाभ लेना शुरू कर दिया है, और बाजार को सस्ते उत्पादों से पाट दिया है, अतः अब छोटे उत्पादकों के उत्पाद उनसे प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं।

अमेरिकी गतिविधियाँ मेक्सिको में स्थानांतरित होने के साथ ही अमेरिकी श्रमिकों को नाफ्टा के कारण कुछ महत्वपूर्ण अन्य नुकसान भी उठाने पडे़ हैं। व्यापार के कारण जो गतिविधियाँ स्थानांतरित हुई थीं, वे सभी उच्च वेतन गतिविधियाँ थीं, जिन्होंने अमेरिकी श्रमिकों को मध्यम वर्ग का दर्जा प्रदान किया था। गतिविधियों की मेक्सिको में स्थानांतरित होने की संभावनाओं ने अमेरिकी श्रम संगठनों की सौदेबाजी की शक्ति को भी कमजोर कर दिया था। इस प्रभाव को मात्रा में व्यक्त करना कठिन है, परंतु इसका अमेरिकी श्रमिकों की सौदेबाजी की क्षमता पर व्यापक प्रभाव हुआ है। क्योंकि बडे़ प्रतिष्ठान, यदि उनकी मांगें नहीं मानी जाती थीं, तो मेक्सिको में अपनी गतिविधि स्थलांतरित करने की धमकी देने लगे, जहां तक श्रमिकों के साथ बातचीत का प्रश्न था, तो नाफ्टा के बाद बडे़ प्रतिष्ठानों की स्थिति इस दृष्टि से काफी मजबूत हो गई थी। यह अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिकों के वास्तविक वेतन लाभों के दमन का अंतिम प्रभाव है। 

अंत में, इसका प्रभाव अमेरिका में असमानता में वृद्धि करने में भी हुआ है, क्योंकि श्रमिकों के अपना सब कुछ खो दिया है, और निवेशकों को उन उद्योगों में निवेश का अतिरिक्त लाभ प्राप्त होने लगा जहां उन्होंने निवेश किया था।

इस रोजगार विस्थापन का प्रभाव संपूर्ण अमेरिका में एकसमान नहीं रहा है। जहां कई राज्यों को अन्य राज्यों की तुलना में अधिक नुकसान उठाना पड़ा है। अमेरिका के औद्योगिक मर्मस्थल को इसका सबसे अधिक नुकसान हुआ है, क्योंकि उन्होंने अपने यहां के उद्योगों को बंद होते, और गतिविधि को मेक्सिको विस्थापित होते देखा और अनुभव किया है। ऑटो पार्ट्स उद्योग, जिसका एक बड़ा भाग मिशिगन और उसके आसपास के मध्य पश्चिम राज्यों में स्थित था, उसने अपनी अधिकांश उत्पादक क्षमता मेक्सिको स्थलांतरित कर दी है, जहां मेक्सिको में उसे शक्तिशाली श्रम संगठनों से नहीं निपटना पड़ता। एक और उद्योग जिसने अपनी बडी उत्पादन क्षमता को विस्थापित होते देखा है वह है वस्त्र और तैयार कपडा उद्योग, साथ ही ऐसे अनेक उद्योग भी हैं जिनकी गतिविधियाँ अधिकांश श्रम सघन हैं। 

नाफ्टा का विनिर्माण क्षेत्र पर अमेरिका के रूबरू मेक्सिको पर वास्तव में कितना प्रभाव पड़ा है इसकी आंकड़ों में गणना करना कठिन है, क्योंकि 1990 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी, और 21 वीं सदी के पहले दशक में इसकी गति कम हुई। बढ़ती अर्थव्यवस्था ने सभी क्षेत्रों में रोजगार निर्मित किये, और एक सुस्त होती अर्थव्यवस्था ने सभी क्षेत्रों में रोजगार पर प्रतिबंध लगा दिये। चूंकि व्यापार चक्र में ये तेज परिवर्तन उसी दौरान हुए जब नाफ्टा क्रियान्वित हुआ, अतः सटीक रूप से यह कहना कठिन है कि अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार की कमी नाफ्टा के कारण ही हुई थी। एक और कारण जो इसके निर्धारण को कठिन बनाता है कि अमेरिका में रोजगार की कमी नाफ्टा के कारण हुई, वह यह है कि अमेरिका ने एशियाई देशों के साथ भी अपने व्यापार को खोल दिया है, और संभव है कि रोजगार का यह विस्थापन चीन जैसे एशियाई देशों के साथ अमेरिकी व्यापार को खोलने के कारण भी हुआ होगा। परंतु यह निष्कर्ष निकालना सुरक्षित होगा कि अमेरिका ने अपने विनिर्माण क्षेत्र के कुछ रोजगार को मेक्सिको के पक्ष में निश्चित रूप से खोया है नाटा के तहत मेक्सिको को अमेरिकी निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई, परंतु यह आयात की गति के आगे काफी कम थी। बीएलएस आंकड़ों के अनुसार अमेरिका का नाफ्टा संबंधित रोजगार विस्थापन 1993 के 97,060 से 2002 में बढ़ कर 9,76,339 हो गया था (बीएलएस 2002) और बीएलएस के इन्ही आंकड़ों के अनुसार नाफ्टा से हुए कुल रोजगार नुकसान में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा 78 प्रतिशत था। अधिकांश मामलों में विस्थापित श्रमिक सेवा क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं, परंतु ये रोजगार श्रम संगठनों वाले विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में काफी कम वेतन प्रदान करते हैं। अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिक, जो नाफ्टा के क्रियान्वयन के बाद मेक्सिको को होने वाले वस्तुओं के निर्यात के लिए अधिकांश रूप से जिम्मेदार रहे है, उन्हों वास्तविक दृष्टि से इसका लाभ हुआ है, परंतु ऐसे श्रमिकों की संख्या विशाल अमेरिकी श्रमशक्ति की तुलना में अत्यल्प है।

10.2 मेक्सिको के कृषकों पर प्रभाव 

नाफ्टा के आलोचकों का तर्क है कि अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र की ही तरह नाफ्टा के तहत मेक्सिको के कृषि क्षेत्र को भी भारी नुकसान हुआ है। नाफ्टा के विरोधकों का दावा है कि नाफ्टा के कारण मेक्सिको के गरीब किसान सबसे अधिक नुकसान में रहे हैं। नाफ्टा प्रभावी होने से पहले कृषि क्षेत्र में अमेरिका को मेक्सिको पर स्पष्ट रूप से काफी अधिक लाभ प्राप्त था। अमेरिका में अधिकांश कृषि विशाल खेतों में बडे़ निगमों द्वारा की जाती है, जिन्हें पैमाने की मितव्ययिता उपलब्ध है। अपहलंद और प्रौद्योगिकी की दृष्टि से भी अमेरिका अधिक उन्नत है, और विज्ञान की इस प्रगति का अमेरिकी कृषि को भी काफी लाभ पहुंचा है। कीट रोधी बीजों से लेकर संयुक्त कटाई तक अमेरिकी कृषकों को कृषि उत्पादों में भारी लाभ प्राप्त हैं। इन लाभो के अतिरिक्त, लंबे समय से अमेरिका की अपने कृषकों को अनुवृत्ति के माध्यम से सहायता प्रदान करने की नीति रही है। 2002 के अमेरिकी कृषि कानून ने 259 बिलियन डॉलर की कृषि अनुवृत्ति प्रदान करने का अधिकार प्रदान किया, और संघीय अनुवृत्तियों में अमेरिकी कृषि अनुवृत्तियों का हिस्सा लगभग 40 प्रतिशत था। नाफ्टा के बाद मेक्सिको में लागत से कम मक्के की मानो बाढ सी आ गई थी और अनेक ग्रामीण मेक्सिकन कृषकों को अपना व्यवसाय बंद करना पड़ा क्योंकि वे इस अनुवृत्ति प्राप्त मक्के के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ थे। बाद में इसका अमेरिका पर बड़ा प्रभाव पड़ने वाला था, क्योंकि नाफ्टा द्वारा विस्थापित हुए अनेक किसान आने वाले वर्षों में अमेरिका स्थलांतरित हो गए।

मेक्सिकन कृषक अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में काफी नुकसान में हैं, क्योंकि उन बडे़ पैमानों, अनुवृत्तियों और वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत बीजों और उर्वरकों तक उनकी पहुंच नहीं है, जो अमेरिकी कृषकों को उपलब्ध हैं। नाफ्टा से पहले बड़ी संख्या में मेक्सिको के ग्रामीण कृषक छोटे-छोटे खेतों में मक्के की पैदावार करते थे, मुख्यतः अपने स्वयं के उपयोग के लिए, परंतु जिसका वे उपभोग करते थे उसके व्यापार के लिए भी। सिएरा क्लब के अनुसार, बाजार में अमेरिकी मक्के की बाढ़ आने के बाद इन किसानों को अपने उत्पादन की जो कीमत प्राप्त होती थी वह नाफ्टा क्रियान्वित होने से पहले की कीमत की तुलना में 70 प्रतिशत कम थी। सिएरा क्लब ने यह भी पाया कि नाफ्टा के क्रियान्वयन के बाद लगभग 2 मिलियन मेक्सिकन किसान अपनी आजीविका कृषि को छोड़ने को मजबूर हुए। 2007 के यूएनसीटीएडी के अनुमानों के अनुसार नाफ्टा ने मेक्सिको में केवल 7,00,000 विनिर्माण रोजगारों की निर्मिति की थी, परंतु ये रोजगार कृषि क्षेत्र में खोये हुए 2 मिलियन रोजगारों की तुलना में बहुत ही अल्प थे। केवल यही नहीं, नाफ्टा क्रियान्वित होने के बाद कई मेक्सिकन कृषकों की वास्तविक आय में निरंतर गिरावट हुई है, क्योंकि इसके बाद मक्के की कीमतों में भारी गिरावट हुई है। और अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र की ही तरह मेक्सिकन सरकार ने अपने कृषि क्षेत्र को जो भी सहायता प्रदान की है वह अधिकांश उसके बडे़ किसानों और कृषि व्यापार को ही गई है, और नाफ्टा के तहत छोटे किसानों को केवल नुकसान ही हुआ है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, नाफ्टा के बाद मेक्सिको में गरीबी के स्तर में नाटकीय वृद्धि हुई है। 

नाफ्टा की एक अन्य आलोचना यह की जाती है कि इसने कृषि में आत्मनिर्भर मेक्सिको जैसे देश को अपनी खाद्यान्न की आवश्यकता के लिए अमेरिका पर निर्भर बना दिया है, क्योंकि मेक्सिको मक्के का एक बड़ा उपभोक्ता है, और मक्का एक औसत मेक्सिकन परिवार के आहार का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा है। अतः इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नाफ्टा के कारण मेक्सिको के किसानों और कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है।

10.3 नाफ्टा के पश्चात अमेरिका की ओर हुआ मेक्सिकन प्रव्रजन 

निरंतर विकसित होती नाफ्टा की कहानी का अंतिम अध्याय रहा है बडे़ पैमाने पर विस्थापित मेक्सिकन किसानों और श्रमिकों का अमेरिका की ओर प्रव्रजन। अपनी निर्वाह कृषि से खदेडे़ जाने के बाद अनेक मेक्सिकन गरीब किसानों के पास आजीविका की खोज में अमेरिका प्रव्रजित होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था। चूंकि अमेरिका प्रव्रजन को प्रतिबंधित करता है, अतः इनमें से अनेक लोग अवैध रूप से अमेरिका में घुसपैठ करके काम की अनुज्ञा के बिना ही काम कर रहे हैं। शुरुआत में इनमें से अधिकांश लोगों ने कृषि क्षेत्र में काम किया, परंतु अंततः वे अन्य व्यवसायों की ओर मुड़ गए, जैसे होटलों या निर्माण क्षेत्र में काम करना। प्रवासियों की संख्या में 1990 के दशक के अंत से 2000 की शुरुआत से ही वृद्धि होना शुरू हुई, और 2007 में यह अपने चरम पर पहुंच गई, जिसके बाद यह स्थिर हुई, जिसका मुख्य कारण था अमेरिकी निर्माण बाजार का पतन। गृहसुरक्षा विभाग के अनुमानों के अनुसार, अपने चरम पर मेक्सिको से अवैध प्रवासियों की संख्या लगभग 10 मिलियन थी। इन मेक्सिकन श्रमिकों द्वारा किये गए विप्रेषण का मेक्सिको की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ा।


सामान्य मान्यता के विपरीत मेक्सिको से अमेरिका गए हुए सभी प्रवासी अवैध नहीं थे, हालांकि अवैध प्रवासियों की संख्या वैध प्रवासियों की तुलना में काफी अधिक थी। पहला, अनेक मेक्सिकन प्रवासी, जो अमेरिकी नागरिक बन जाते हैं, वे अमेरिकी आप्रवासन कानून के परिवार आधारित प्रावधान के तहत अपने परिवार के सदस्यों के प्रवास को प्रायोजित करते हैं। दूसरा, अमेरिका बहुत ही कम संख्या में मेक्सिकन श्रमिकों के लिए अस्थायी कृषि कार्य वीजा जारी करता है। तीसरा, महाविद्यालयीन डिग्री के साथ मेक्सिकन पेशेवर, जिन्हें अमेरिका में नौकरी मिल जाती है, वे अमेरिका में टीएन वीजा के तहत कार्य करते हैं, जो प्राप्त करना भी पारंपरिक एच-1 बी वीजा की तुलना में काफी आसान है। टीएन वीजा नाफ्टा समझौते का एक प्रावधान है, जिसका उद्देश्य उत्तरी अमेरिका में श्रम आवागमन को प्रोत्शित करना था। 

इस विशाल प्रवासी जनसंख्या के अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं। पहला, इसने अमेरिकी कृषि, निर्माण और होटल उद्योग को सस्ता श्रम उपलब्ध कराया है, और इस प्रकार मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में सहायता की है। परंतु उसी समय, इसके कारण अनेक अमेरिकी श्रमिक विस्थापित हुए हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में मेक्सिकन प्रवासी श्रमिक कानूनी न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी पर काम करने को तैयार होते हैं। अवैध प्रव्रजन के आलोचकों का दावा है कि अवैध प्रवासी सार्वजनिक सेवाओं का कर का भुगतान किये बिना उपयोग करते हैं। इन अवैध प्रवासियों के समर्थकों का दावा है कि ये अप्रवासी वे काम करते हैं, जो आमतौर पर अमेरिकी नागरिक नहीं करते, और इस प्रकार अमेरिकी श्रम बाजार के एक महवपूर्ण रिक्ति की पूर्ति करते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि अल्प मजदूरी पर कार्य करने वाले अवैध प्रवासियों की प्रतिस्पर्धा के कारण बहुत नहीं भी हो तो भी कुछ अमेरिकी श्रमिकों को अपना रोजगार निश्चित रूप से गंवाना पड़ा है।

10.4 उपसंहार 

हालांकि नाफ्टा ने विवाद निर्माण किया है, और इसके काफी समर्थक और काफी आलोचक भी रहे हैं, फिर भी वास्तविकता यह है कि नाफ्टा ने अमेरिका और मेक्सिको, दोनों देशों में विजयी और पराजित दोनों प्रकार के लोग पैदा किये हैं। ध्यान देने योग्य एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इसके विशिष्ट प्रभाव निर्धारित करने के प्रयास अन्य आर्थिक घटनाएँ होने के कारण जटिल बन गए हैं, अतः अमेरिकी और मेक्सिकन अर्थव्यवस्थाओं पर हुए नाफ्टा के प्रभावों की मात्रात्मक गणना कठिन है। नाफ्टा के बाद के 1990 के दशक के वर्ष अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए उच्च आर्थिक वृद्धि के वर्ष रहे हैं, इसी दौरान एशियाई देशों के साथ अमेरिकी व्यापार को खोला गया, और मेक्सिको का मुद्रा संकट और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी 2000 के दशक में इसी दौर में हुई कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं। यदि हम नाफ्टा के बाद के अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र के रोजगार का विश्लेषण करते हैं, तो हमें नाफ्टा से हुए प्रभावों को पृथक करना पडे़गा, क्योंकि आर्थिक विकास, मंदी, अन्य देशों के साथ व्यापार का खुलना, इत्यादि भी ऐसे कारक हैं जो अमेरिकी विनिर्माण रोजगार के स्तर को प्रभावित करते हैं। 

नाफ्टा के क्रियान्वयन के कारण जो विजयी हुए हैं वे हैं अमेरिकी कृषि व्यवसायी, मेक्सिको में सस्ते श्रम का उपयोग करने वाली विनिर्माण कंपनियां, और अमेरिकी उपभोक्ता। इसके परिणामस्वरूप मेक्सिको से हुए बडे़ पैमाने पर अकुशल श्रमिकों के प्रव्रजन ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए सस्ते श्रम की आपूर्ति की है, और इस प्रकार उसे मुद्रास्फीति को नियंत्रित स्तर पर रखने में सहायता प्रदान की है। मेक्सिकन श्रमिकों को उनके विनिर्माण क्षेत्र में लाभ हुआ है, उसी प्रकार मेक्सिकन पेशेवर श्रमिकों को भी लाभ हुआ है, क्योंकि टीएन वीजा प्रावधान के कारण अब उन्हें अमेरिका में काम करने के अधिक अवसर उपलब्ध हुए हैं। नाफ्टा के कारण अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिकों और छोटे अमेरिकी विनिर्माताओं को भारी नुकसान हुआ है। नाफ्टा के कारण सबसे बड़ी पराजय गरीब मेक्सिकन किसानों की हुई है, क्योंकि यह इकलौती ऐसी श्रेणी है जिसका संपूर्ण जीवन नाफ्टा के कारण उध्वस्त हो गया है।

11.0 आसियान (ASEAN)

दक्षिण पूर्वी देशों का संघ (आसियान) दक्षिण पूर्व एशिया में स्थित दस देशों का एक भू-राजनीतिक और आर्थिक संगठन है, जिसका गठन 8 अगस्त 1967 को इंड़ोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड़ द्वारा किया गया था। तब से इसकी सदस्य संख्या में वृद्धि हुई है, जब इसमें ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोड़िया, लाओस, और वियतनाम भी शामिल हुए। इसके उद्देश्यों में इसके सदस्य देशों के बीच आर्थिक विकास में तेजी लाना, सामाजिक प्रगति, और सांस्.तिक विकास करना शामिल है, साथ ही क्षेत्रीय शांति और स्थिरता का संरक्षण और सदस्य देशों को अपने मतभेद शांतिपूर्ण मार्गों से सुलझाने के अवसर प्रदान करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल हैं। 

आसियान की व्याप्ति 4.46 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूक्षेत्र तक है, जो पृथ्वी के कुल भू क्षेत्र का 3 प्रतिशत है, और इसकी कुल जनसंख्या लगभग 600 मिलियन है, जो विश्व की जनसंख्या का 8.8 प्रतिशत है। आसियान का समुद्री क्षेत्र इसके भू-क्षेत्र से लगभग तीन गुना बड़ा है। 2011 में इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो गया था। यदि आसियान एक एकल निकाय होता, तो इसकी गणना विश्व की आठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में होती।

11.1 विश्लेषणात्मक रूपरेखा 

ताकत 

  1. प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन 
  2. दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा देशों का समूह 
  3. सघन धान की कृषि 
  4. विविध कृषि पारिस्थितिकी 
  5. खाद्य सुरक्षा और निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रावधान करता है 

कमजोरियां 

  1. अनाकर्षक उत्पादन कीमतें 
  2. कृषि निविष्टियों की उच्च लागतें (जैसे उर्वरक)
  3. अपर्याप्त अधोसंरचना (सड़कें, बाजार, सिंचाई, बाजार की जानकारी)
  4. ग्रामीण ऋण की पहुंच का अभाव 
  5. कृषकों के लिए स्वामित्व और कमजोर अनुसन्धान और विकास

अवसर 

  1. चांवल निर्यात बाजार के प्रमुख खिलाड़ी हैं 
  2. छोटी अधोसंरचना में निवेश और अधिक विद्युतीकरण कीमत निर्स्त्साह को कम कर सकते हैं
  3. अधूरी पड़ी हुई सिंचाई योजनाओं को पूरा करने से उच्च उत्पादकता को बढ़ावा मिल सकता है 
  4. निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी 
  5. अधिक रोजगार के अवसर 

खतरे 

  1. कीमतों की वर्तमान विक्तुतियों और निरुत्साह के कारण उत्पादकता में कमी आ सकती है 
  2. भूमि के उपयोग पर प्रतिबंधों के लिए आवश्यक नियामक तंत्र का अभाव 
  3. जलवायु परिवर्तन 
  4. प्राकृतिक साधनों का अपक्षरण 
  5. डेल्टा क्षेत्र में मृदा संरचना और आयन विषाक्तता की समस्या, ऐसा क्षेत्र जहां केवल चांवल के बाद चांवल होता है (विशेष रूप से आयेयरवाड्य)

11.2 आसियान लक्ष्य 

2015 

निम्न उपायों से चांवल के निर्यात  वृद्धि करना 

  1. 70 प्रतिशत उच्च उत्पाददन किस्मे 
  2. 30 प्रतिशत उच्च गुणवत्ता किस्में 
  3. आसियान के मुक्त व्यापार में प्रतिस्पर्धा के साथ 

2030 

  1. कृषि औद्योगीकरण 
  2. ग्रामीण कृषकों के लिए अच्छी गुणवत्ता के चांवल का उत्पादन 
  3. क्षेत्र में उच्च प्रतिस्पर्धात्मकता 
  4. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद को 3500-4000 डॉलर तक बढ़ाना 

11.3 चुनौतियाँ 

प्राथमिक चुनौतियाँ 

  1. शासन और संस्थाओं का सशक्तिकरण 
  2. समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को बनाये रखना 
  3. अर्थव्यवस्था का विविधीकरण, और कृषि, नियोजन, वाणिज्य और सार्वजनिक-निजी भागीदारी का सशक्तिकरण 

द्वितीयक चुनौतियाँ 

  1. मानव पूंजी को प्रोत्साहित करना 
  2. औद्योगिक आधार का सशक्तिकरण 
  3. वर्ष-दर-वर्ष आर्थिक अधोसंरचना को विकसित करना 

11.4 नीतिगत विकल्प 

  1. अच्छी कृषि पद्धतियों का प्रोत्साहन, बुनियादी रूप से सुधारित बीज व्यवस्था, कटाई पश्चात की प्रौद्योगिकी के साथ कृषक समूहों और सहकारी संस्थाओं का सशक्तिकरण
  2. संपूर्ण चांवल आपूर्ति श्रृंखला का वित्तपोषण ऐसे उद्यमों के माध्यम से ऋण प्रदान करके किया जाए जो कृषकों और निजी क्षेत्र के साथ अनुबंध कृषि में सहयोगी हैं 
  3. जोखिम प्रबंधन को सुविधाजनक बनाने के लिए आधुनिक संस्थानों का विकास, और संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला पर प्रलोभनों में सुधार और जानकारी सम्प्रेषित करना 
  4. भविष्यकालीन भागीदारियों के लिए कृषकों के कृषि व्यापार और म्यांमार कृषि व्यापार सार्वजनिक सहयों को प्रोत्साहित करना 

11.5 भारत और आसियान 

आसियान के साथ भागीदारी अब नई दिल्ली की ‘‘पूर्व की ओर देखो’’ नीति का एक महत्वपूर्ण बिंदु बना हुआ है। 

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसिलो बमभंग युधोयोनो ने जनवरी 2011 में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया था। इसी प्रकार की सुकर्णो की यात्रा भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान आयोजित की गई थी जिसका उद्देश्य था उन देशों के तत्कालीन गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संबंधों को मजबूत बनाना जो शीत युद्ध के किसी भी पक्ष में शामिल नहीं होना चाहते थे। 

2011 की प्रधानमंत्री की यात्रा ने न केवल भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच अधिक सहयोग को प्रोत्साहित किया, बल्कि उसने यह भी संकेत दिया कि दो बडे़ लोकतंत्र उस समय निकट आ रहे थे, जब अधिनायकवादी चीन अधिक खतरनाक होता जा रहा था। 

भारत-इंड़ोनेशियाई सहयोग का आधार का इतिहास दोनों देशों के संस्थापकों - जवाहरलाल नेहरू और सुकर्णो - तक पीछे जाता है, जिन्होंने एक अलग विदेश नीति का वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान किया को उनके साझा औपनिवेशिक अनुभवों पर आधारित था। 

पिछले दशक के दौरान नई दिल्ली और जकार्ता, दोनों के वैश्विक दृष्टिकोण में भले ही थोड़ा परिवर्तन हुआ हो, परंतु दोनों के बीच भागीदारी की संभावनाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अपनी पूर्व की ओर देखो की नीति के साथ भारत ने क्षेत्र में अपनी उपस्थिति में काफी वृद्धी की है, वहीं इंड़ोनेशिया ने विश्व की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से एक को आसियान के निकट लाने में नेतृत्व की भूमिका निभाई है। भारत और इंड़ोनेशिया, दोनों एशिया के इस ऐतिहासिक आर्थिक विकास द्वारा प्रदान किये गए अवसरों का लाभ प्राप्त करने को तत्पर हैं। 

दोनों के बीच आर्थिक सहयोग में तेजी से वृद्धि हो रही है, और इसमें 2010 में भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद और अधिक तेजी आई है। इस सौदे में नई दिल्ली पर यह प्रतिबद्धता है वह आसियान के साथ किये जा रहे व्यापार की 80 प्रतिशत वस्तुओं पर शुल्कों में कटौती करेगा। इसका उद्देश्य था आर्थिक दृष्टि से विश्व के सबसे गतिशील क्षेत्र में भारत की बढ़ती उपेक्षा की प्रवृत्ति को उलटना। 

भारत और 10 सदस्यीय आसियान के बीच सेवाओं और निवेश में मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत अंतिम निष्कर्ष तक पहुंची है। उम्मीद की जा रही है कि यह मुक्त व्यापार समझौता 2022 तक द्विपक्षीय व्यापार को 200 बिलियन ड़ॉलर के स्तर तक ले जायेगा, और अंततः यह क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी पर चर्चा का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड़ भी शामिल होंगे। 

दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत के आर्थिक सहयोग में इंड़ोनेशिया की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते से भी आगे भारत और इंड़ोनेशिया ने व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर भी बातचीत शुरू कर दी है, जो व्यापार का और अधिक उदारीकरण करेगा। इंड़ोनेशिया भारत के लिए ऊर्जा और कच्चे माल का एक एक महत्वपूर्ण स्रोत है। 2015 तक भारत और इंड़ोनेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान 16.80 बिलियन डॉलर के स्तर से 45 बिलियन डॉलर के स्तर तक पहुंचने की संभावना है। 

बिरला समूह, टाटा समूह, एस्सार, जिंदल इस्पात और बजाज मोटर्स सहित प्रमुख भारतीय कंपनियां इंड़ोनेशिया में परिचालित हो रही हैं। भारत का निवेश अन्य उद्योगों के अलावा बैंकिंग, खनन, तेल एवं गैस, लोहा एवं इस्पात, अलुमिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी, वस्त्र और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है। 

लोकतांत्रिक शासन पद्धतियों और व्यापक विदेश नीति दृष्टिकोणों की समानताओं ने नाटकीय रूप से सहायता प्रदान की हैः भारत की सामुद्रिक उपस्थिति की सौम्यता को देखते हुए इंड़ोनेशिया ने भारत को क्षेत्र के तटवर्ती राज्यों को जलड़मरूमध्य की सुरक्षा बनाये रखने में मदद के लिए खुले रूप से आमंत्रित किया है। 

यह सब इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चीन द्वारा उसके जलक्षेत्र के लिए अपनाये गए दृष्टिकोण के ठीक विरुद्ध है, जो अक्सर स्पष्ट आक्रमण के खतरे तक बिगड़ चुका है। क्षेत्र में चीन की बढती उपस्थिति के विपरीत, जिसे क्षेत्र में एक अविश्वास और चेतावनी की नजर से देखा जा रहा है, भारत इस प्रकार का कोई खतरा पैदा नहीं करता। सन 2019 में, आसियान ने उभरते हुए हिंद-प्रशांत मामले पर अपना स्पष्ट रूख जाहिर कर दिया था। 

12.0 अन्य प्रमुख व्यापारिक ब्लाक



 


                                                                                            



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exchange,9,Formal and informal economy,13,Fossil fuels,14,Fundamentals of the Indian Economy,10,Games SportsEntertainment,1,GDP GNP PPP etc,12,GDP-GNP PPP etc,1,GDP-GNP-PPP etc,20,Gender inequality,9,Geography,10,Geography and Geology,2,Global trade,22,Global treaties,2,Global warming,146,Goverment decisions,4,Governance and Institution,2,Governance and Institutions,773,Governance and Schemes,221,Governane and Institutions,1,Government decisions,226,Government Finances,2,Government Politics,1,Government schemes,358,GS I,93,GS II,66,GS III,38,GS IV,23,GST,8,Habitat destruction,5,Headlines,22,Health and medicine,1,Health and medicine,56,Healtha and Medicine,1,Healthcare,1,Healthcare and Medicine,98,Higher education,12,Hindu individual editorials,54,Hinduism,9,History,216,Honours and Awards,1,Human rights,249,IMF-WB-WTO-WHO-UNSC etc,2,Immigration,6,Immigration and citizenship,1,Important Concepts,68,Important Concepts.UPSC Mains GS III,3,Important Dates,1,Important Days,35,Important exam concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati Raj,1,Institutionsandbodies,1,Instiutions and Bodies,1,Intelligence and security,1,International Institutions,10,international relations,2,Internet,11,Inventions and discoveries,10,Irrigation Agriculture Crops,1,Issues on Environmental Ecology,3,IT and Computers,23,Italy,1,January 2020,26,January 2021,25,July 2020,5,July 2021,207,June,1,June 2020,45,June 2021,369,June-2021,1,Juridprudence,2,Jurisprudence,91,Jurisprudence Governance and Institutions,1,Land reforms and productivity,15,Latest Current Affairs,1136,Law and order,45,Legislature,1,Logical Reasoning,9,Major events in World History,16,March 2020,24,March 2021,23,Markets,182,Maths Theory Booklet,14,May 2020,24,May 2021,25,Meetings and Summits,27,Mercantilism,1,Military and defence alliances,5,Military technology,8,Miscellaneous,454,Modern History,15,Modern historym,1,Modern technologies,42,Monetary and financial policies,20,monsoon and climate change,1,Myanmar,1,Nanotechnology,2,Nationalism and protectionism,17,Natural disasters,13,New Laws and amendments,57,News media,3,November 2020,22,Nuclear technology,11,Nuclear techology,1,Nuclear weapons,10,October 2020,24,Oil economies,1,Organisations and treaties,1,Organizations and treaties,2,Pakistan,2,Panchayati Raj,1,Pandemic,137,Parks reserves sanctuaries,1,Parliament and Assemblies,18,People and Persoalities,1,People and Persoanalities,2,People and Personalites,1,People and Personalities,189,Personalities,46,Persons and achievements,1,Pillars of science,1,Planning and management,1,Political bodies,2,Political parties and leaders,26,Political philosophies,23,Political treaties,3,Polity,485,Pollution,62,Post independence India,21,Post-Governance in India,17,post-Independence India,46,Post-independent India,1,Poverty,46,Poverty and hunger,1,Prelims,2054,Prelims CSAT,30,Prelims GS I,7,Prelims Paper I,189,Primary and middle education,10,Private bodies,1,Products and innovations,7,Professional sports,1,Protectionism and Nationalism,26,Racism,1,Rainfall,1,Rainfall and Monsoon,5,RBI,73,Reformers,3,Regional conflicts,1,Regional Conflicts,79,Regional Economy,16,Regional leaders,43,Regional leaders.UPSC Mains GS II,1,Regional Politics,149,Regional Politics – Regional leaders,1,Regionalism and nationalism,1,Regulator bodies,1,Regulatory bodies,63,Religion,44,Religion – Hinduism,1,Renewable energy,4,Reports,102,Reports and Rankings,119,Reservations and affirmative,1,Reservations and affirmative action,42,Revolutionaries,1,Rights and duties,12,Roads and Railways,5,Russia,3,schemes,1,Science and Techmology,1,Science and Technlogy,1,Science and Technology,819,Science and Tehcnology,1,Sciene and Technology,1,Scientists and thinkers,1,Separatism and insurgencies,2,September 2020,26,September 2021,444,SociaI Issues,1,Social Issue,2,Social issues,1308,Social media,3,South Asia,10,Space technology,70,Startups and entrepreneurship,1,Statistics,7,Study material,280,Super powers,7,Super-powers,24,TAP 2020-21 Sessions,3,Taxation,39,Taxation and revenues,23,Technology and environmental issues in India,16,Telecom,3,Terroris,1,Terrorism,103,Terrorist organisations and leaders,1,Terrorist acts,10,Terrorist acts and leaders,1,Terrorist organisations and leaders,14,Terrorist organizations and leaders,1,The Hindu editorials analysis,58,Tournaments,1,Tournaments and competitions,5,Trade barriers,3,Trade blocs,2,Treaties and Alliances,1,Treaties and Protocols,43,Trivia and Miscalleneous,1,Trivia and miscellaneous,43,UK,1,UN,114,Union budget,20,United Nations,6,UPSC Mains GS I,584,UPSC Mains GS II,3969,UPSC Mains GS III,3071,UPSC Mains GS IV,191,US,63,USA,3,Warfare,20,World and Indian Geography,24,World Economy,404,World figures,39,World Geography,23,World History,21,World Poilitics,1,World Politics,612,World Politics.UPSC Mains GS II,1,WTO,1,WTO and regional pacts,4,अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं,10,गणित सिद्धान्त पुस्तिका,13,तार्किक कौशल,10,निर्णय क्षमता,2,नैतिकता और मौलिकता,24,प्रौद्योगिकी पर्यावरण मुद्दे,15,बोधगम्यता के मूल तत्व,2,भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास,47,भारत का स्वतंत्रता संघर्ष,19,भारत में कला वास्तुकला एवं साहित्य,11,भारत में शासन,18,भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें,10,भारतीय संविधान,14,महत्वपूर्ण हस्तियां,6,यूपीएससी मुख्य परीक्षा,91,यूपीएससी मुख्य परीक्षा जीएस,117,यूरोपीय,6,विश्व इतिहास की मुख्य घटनाएं,16,विश्व एवं भारतीय भूगोल,24,स्टडी मटेरियल,266,स्वतंत्रता-पश्चात् भारत,15,
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PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 8
यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 8
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
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