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जी-7, जी-20, आरसीईपी, आसियान, आरटीए भाग - 1
1.0 आर्थिक एकीकरण की अवधारणा
यदि कोई भी देश पूर्ण रूप से अकेला रहने का निर्णय करता है, विश्व के किसी भी देश के साथ व्यापार नहीं करने का निर्णय लेता है, तो वह एक एकांतमय विश्व होगा। मानवता के प्राचीन और मध्ययुगीन इतिहास के बडे भाग में वास्तव में वह ऐसा था। उदाहरणार्थ, मध्ययुगीन चीनी और जापानी साम्राज्य, जो पूर्ण रूप से बंद संस्थाएं थीं।
परंतु धीरे-धीरे देशों ने महसूस किया कि दूसरे देशों के साथ व्यापार करना बुद्धिमानी का काम है, क्योंकि भिन्न देशों (राज्यों/साम्राज्यों) के पास भिन्न-भिन्न कौशल थे। जब इस प्रकार के विनिमय शुरू हुए तो अनेक प्रकार के लाभ प्रवाहित होने लगे। परंतु फिर वाणिज्यवाद और विश्वव्यापी औपनिवेशिक विस्तार के उदय के साथ अन्य समस्याएं उभरना शुरू हुईं, जैसे वस्तु मुद्रा के स्थान पर अधिदिष्ट मुद्रा की आवश्यकता।
1.1 वास्तव में क्या होता है
आर्थिक एकीकरण का संबंध देशों के समूहों के बीच होने वाले ऐसे समझौतों से है जहाँ व्यापर की बाधाओं को न्यूनतम किया जाता है या पूरी तरह से समाप्त किया जाता है। ऐसे संभावित समझौतों की एक विलक्षण श्रृंखला है और आज हमारा विश्व - सार्वभौमिक वैश्वीकरण के दावों के बावजूद - क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (आरटीए) और मुक्त व्यापार क्षेत्रों (एफटीए) की एक बाढ़ की अनुभूति कर रहा है। अर्थव्यवस्थाएं जितनी अधिक एकीकृत बनेंगी व्यापार बाधाएं उतनी ही कम होती जाएँगी और सदस्य देशों के बीच और अधिक आर्थिक और राजनीतिक समन्वय प्रस्थापित होगा। आर्थिक एकीकरण देशों के बीच की व्यापार बाधाओं को कम करता है या उनका पूरी तरह से उन्मूलन करता है, साथ ही यह मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों को समन्वित करता है।
वैश्विक स्टार पर आर्थिक एकीकरण के चरण
एक से अधिक देशों की अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण करने से, प्रशुल्कों या अन्य व्यापार बाधाओं से प्राप्त होने वाले अल्पकालिक लाभ कम होता है। परंतु इसमें एक समस्या है - अर्थव्यवस्थाएं जितनी अधिक एकीकृत होंगी, उतनी ही सदस्य देशों की सरकारों की उनके लिए लाभप्रद साबित होने वाले समायोजन करने की शक्तियां उतनी ही कम हो जाएँगी। दूसरे शब्दों में, ‘‘देशों की संप्रभुता कम होती है।‘‘
इसका उद्देश्य है उपभोक्ताओं और उत्पादकों के लिए लागतों में कमी करना, साथ ही समझौते में शामिल देशों के बीच के व्यापार को बढ़ाना। अर्थव्यवस्थाएं जितनी अधिक एकीकृत होंगी, व्यापार बाधाएं उतनी ही कम होंगी और वे राजनीतिक दृष्टि से अधिक समन्वित होंगी।
1.2 एक मिश्रित वरदान
हालांकि यह एक मिश्रित वरदान है। आर्थिक संवृद्धि की अवधियों के दौरान, एकीकृत होने का परिणाम अधिक दीर्घ-कालीन आर्थिक लाभों के रूप में हो सकता है य हालांकि कमजोर आर्थिक संवृद्धि की अवधियों के दौरान एकी.त होने के परिणाम वास्तव में अधिक बुरे हो सकते हैं। आर्थिक एकीकरण के बारे में अच्छी बात यह है कि इसके सदस्य व्यापार के लिए छोटे खर्चों का भुगतान करते हैं, जो आर्थिक संवृद्धि को उत्प्रेरित कर सकता है।
परंतु यदि अर्थव्यवस्था या संवृद्धि धीमी हो जाती है तो किसी आर्थिक गुट का एक सदस्य अन्य देशों को भी आर्थिक दृष्टि से नीचे ला सकता है। अर्थव्यवस्थाएं जितनी अधिक एकीकृत बनेंगी उतनी ही सदस्य देशों की सरकारों की उन्हें लाभान्वित करने वाले समायोजन करने की क्षमता में कमी आती जाएगी।
1.3 आर्थिक एकीकरण मॉडल्स के प्रकार
भिन्न-भिन्न स्तर के आर्थिक एकीकरण विद्यमान हैं, जिनमें अधिमान्य व्यापार समझौते (पीटीए), मुक्त व्यापार क्षेत्र (एफटीए), सीमाशुल्क संघ, साझा बाजार और आर्थिक और मौद्रिक संघ शामिल हैं। विभिन्न देश विभिन्न स्तरों के आर्थिक एकीकरण पर सहमत हो सकते हैंः
अधिमान्य व्यापार समझौता (पीटीए) एक ऐसा व्यापार गुट है जहाँ सदस्य देश उनके समस्त क्षेत्र में आयात या निर्यात की जाने वाली कुछ विशिष्ट वस्तुओं पर प्रशुल्क कम करते हैं या उन्हें पूर्ण रूप से समाप्त करते हैं।
मुक्त व्यापार क्षेत्र (एफटीए) एक ऐसा गुट है जिसमें देश सदस्य देशों के बीच होने वाले समस्त वस्तुओं के व्यापार पर प्रशुल्क कम करते हैं या उन्हें पूरी तरह से समाप्त करते हैं। इसका एक उदाहरण है उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता।
एक सीमाशुल्क संघ में सदस्य देश अपने बीच प्रशुल्कों को कम या समाप्त करते हैं और गैर-सदस्य देशों पर एक समान प्रशुल्क अधिरोपित करते हैं।
साझा बाजार गुट में शामिल देश सभी वस्तुओं, सेवाओं, श्रम और पूँजी का मुक्त रूप से विनिमय करते हैं।
आर्थिक संघ सदस्य देशों के बीच एक साझा बाजार गुट है जो गैर-सदस्य देशों के साथ एकल व्यापार नीति को साझा करते हैं।
और मौद्रिक संघ में विभिन्न सदस्य देश एकल मुद्रा साझा करते हैं, जैसे यूरो।
2.0 मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को समझना
परिवर्णी शब्द एफटीए का अर्थ है मुक्त व्यापार समझौता, जो इस भावना को प्रतिबिंबित करता कि संबद्ध पक्ष देशों के बीच आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार मुक्त या अनिर्बंध होना चाहिए। इस प्रकार, एफटीए की अवधारणा का मूल अबंध-नीति (लैसे-फेयर) व्यापार की परंपरा में है।
2.1 इतिहास
मुक्त व्यापार की समकालीन उत्पत्ति का श्रेय 16 वीं सदी के प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्रियों एडम स्मिथ और डेविड रिकार्डो के विचारों को दिया जाता है जो वाणिज्यवादी नीतियों के विरोधी थे। वाणिज्यवाद का मूल सरकारों की घरेलू उद्योगों का बाह्य आर्थिक झटकों से संरक्षण करने की आकांक्षा में अंतर्निहित है, और यह सर्वाधिक सामान्य रूप से आयात की गई वस्तुओं और सेवाओं पर अधिरोपित किये जाने वाले प्रशुल्कों के रूप में प्रकट होती है। यह देखते हुए कि 1500 और 1750 के बीच लगभग सभी यूरोपीय आर्थिक विचार व्यापक रूप से वाणिज्यवादी थे, स्मिथ और रिकार्डो का यह तर्क कि मुक्त, बेरोक व्यापार अर्थव्यवस्था की दृष्टि से अधिक लाभदायक है, काफी क्रांतिकारी माना गया था।
पश्चिमी देशों की वर्तमान आर्थिक सफलता का श्रेय उनकी अबंध-नीतियों और धीरे-धीरे अप्रचलित संरक्षणवादी नीतियों को तोडकर प्रगतिशील मुक्त व्यापार के एक रेखीय आख्यान में समाविष्ट होने को देना आसान है, जिन्होंने यूरोप और अमेरिका को आर्थिक महानता की दिशा में अग्रसर किया। हालांकि यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन जैसे अब के औद्योगिक देश अक्सर संरक्षणवादी हो जाते थे।
तदनुसार, अपने आधुनिक अवतार में एफटीए व्यापक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात की उन नीतियों का परिणाम थे जिनका समर्थन उस राख के ढे़र से फीनिक्स की तरह उठने वाले पुनर्स्त्थानशील अमेरिका ने किया था जो औद्योगिक प्रभुत्व के संकटकाल और शीत युद्ध के आरंभ द्वारा प्रेरित हुआ था। यह तथ्य आश्चर्यजनक नहीं है कि अनेक विकासशील देशों ने यूरोप और अमेरिका पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने मुक्त व्यापार के आदर्शों का निर्यात तभी किया जब उन्होंने संरक्षणवाद के सभी लाभ प्राप्त कर लिए जिन्होंने उन्हें पूरी तरह से औद्योगिक बनाने की सुविधा प्रदान की थी।
2.2 सिद्धांत
मुक्त व्यापार समझौते का सामान्य आधार है हस्ताक्षर करने वाले देशों के बीच कोटा पद्धति या प्रशुल्कों के रूप में मूल्य नियंत्रणों का उन्मूलन या नियंत्रण। हालांकि इसकी बारीकियां चर्चा करने वाले देशों पर छोड़ दी गई हैं; बहस के क्षेत्रों में मानक सीमाशुल्क प्रक्रियाओं के प्रकार, व्यापार विवाद निवारण तंत्र, बौद्धिक अधिकार प्रबंधन तंत्र इत्यादि शामिल हैं।
एक जाना-माना एफटीए नाफ्टा उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता, जो अमेरिका, कनाडा और मेक्सिको के बीच हुआ था। नाफ्टा समझौते पर राष्ट्रपति बुश, राष्ट्रपति मुलरोनी और राष्ट्रपति सेलिनास के बीच वर्ष 1992 में हस्ताक्षर हुए थे, और इसके प्रावधानों में बौद्धिक संपत्ति, पर्यावरण, कृषि और अधोसंरचना शामिल हैं।
2.3 द्विपक्षीय बनाम बहुपक्षीय
द्विपक्षीय व्यापार समझौते का है, जैसा इससे ध्वनित होता हैः दो देशों के बीच हुआ एक व्यापार समझौता। बहुपक्षीय समझौते का संबंध एक ऐसे समझौते से है जो तीन या इससे अधिक देशों के बीच संपन्न हुआ है। आमतौर पर द्विपक्षीय व्यापार समझौते बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक प्रचलित हैं, इसके स्पष्ट कारण हैं अधिक सुविधा, लचीलापन और जोखिम के विरुद्ध बचाव। विद्यमान द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की सूची नीचे दी गई है।
सैद्धांतिक दृष्टि से एफटीए आर्थिक विशेषज्ञताओं का लाभ लेकर उपभोक्ताओं को लाभान्वित करते हैं। उदाहरणार्थ, चीन कृषि उत्पादों का विशाल उत्पादक है, जबकि कोरिया के पास उच्च कौशल वाली मानव पूँजी का विशाल भंडार है। चीन-कोरिया-जापान एफटीए का एक अपेक्षित लाभ है कोरिया और जापान में सस्ते उत्पादों का अंतर्वाह और चीन में कुशल प्रतिभा का बहिर्वाह, जिनके कारण अधिक सस्ती सेवाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
2.4 सभी एफटीए को समान नहीं बनाया गया है
इन बाहरी कारकों का विश्लेषण हमें एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष की ओर ले जाता हैः व्यवहार में, सहभागी देशों को कभी भी समान लाभ प्राप्त नहीं होता। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि नाफ्टा में अमेरिका निर्विवाद रूप से विजेता है, जो कनाडा की इमारती लकड़ी और तेल भंडारों से (कनाडा अमेरिका को तेल की आपूर्ति करने वाला सबसे बडा आपूर्तिकर्ता है) और मेक्सिको के श्रम और विनिर्माण से अनुपातहीन रूप से लाभान्वित होता है। कनाडा को मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात से अत्यधिक कम लाभ होता है, जबकि मेक्सिको मनुष्यों और पूँजी के पलायन से सक्रिय रूप से ग्रस्त प्रतीत होता है, जिसका परिणाम उस देश में आर्थिक उदासीनता और खोई हुई संभावनाओं में हुआ है।
चीन के विशाल मानव संसाधनों और आर्थिक रसूख को देखते हुए, वह भविष्य में शामिल होने वाले किसी भी एफटीए में विजेता ही बनने की ओर अग्रसर है। परंतु कठिनाई यहाँ हैः अधिकांश पड़ोसी देशों के पास कोई विकल्प नहीं हैं कि वे चीन के साथ किसी एफटीए पर हस्ताक्षर करें या नहीं। उनके मूल में एफटीए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते होते हैंः दस वर्ष पूर्व चीन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिमान का हिस्सा नहीं था। अब भी चीन संभवतः अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए घृणा का पात्र होगा। अधिकांश एशियाई देशों के लिए चीन के साथ आर्थिक एकीकरण एक अपरिहार्यता बन गई है। प्रश्न केवल यह है कि उन्हें आर्थिक या सैन्य दबाव के माध्यम से जबरदस्ती एकीकृत होना है या अपनी शर्तों पर शांतिपूर्ण तरीके से एकीकृत होना है, जहाँ कम से कम कुछ इज्जत (और आर्थिक लाभ) तो बचाई जा सकती है।
3.0 जी-7 समूह क्या है
सात सबसे अधिक औद्योगिक रूप से समृद्ध देशों का समूह दुनिया की सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। उनके राजनीतिक नेता एक अनौपचारिक माहौल में महत्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वर्ष मे एक बार साथ आते हैं। यह मंच व्यक्तिगत रूप से गहन विचार-विमर्श में मदद करने का प्रमुख आधार है। फ्रांस, इटली, जापान, जर्मनी, कनाडा, संयुक्त राज्य एवं यूनाइटेड किंगडम कुल 7 देश इसके सदस्य है। इस शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ भी प्रतिनिधित्व करता है ।
3.1 जी -7 की उत्पत्ति
जी 7 का गठन निरंतर हो रहे वैश्विक वित्तीय संकट के कारण हुआ था। इसका मुख्य कारण ऑयल पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग ऑर्गेनाइजेशन (OAPEC) के संगठन द्वारा तेल संकट का सामना करना था। यह ‘1973 का तेल संकट’ था। ब्रेटन वुड्स द्वारा तय की गई विनियम दर प्रणाली टूटने, एवं निक्सन शॉक के समय ही तेल संकट का झटका विश्व को लगा। यह राज्य एवं सरकार के प्रमुख अधिकारियों के लिए अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीति पर परामर्श करने के लिए पर्याप्त आधार था। 1979 में एक ओर संकट आया।
3.2 प्राकृतिक तेल संकट 1973
यह अक्टूबर 1973 में तब शुरू हुआ जब OAPEC के सदस्यों ने तेल व्यापार निषेध की (oil embargo) घोषणा की। इसमें योम किपुर युद्ध के दौरान इजराइल का समर्थन करने वाले देशों के साथ साथ कनाडा, जापान, नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका को भी लक्षित किया गया था। मार्च 1974 में इस तेल व्यापार निषेध का अंत होते-होते, तेल लगभग 400 प्रतिशत महंगा हो गया था (वैश्विक स्तर पर प्रति बैरल युएस डॉलर 3 से बढकर युएस डॉलर 12 तक पहुँच गया था। इस स्वाभाविक आर्थिक मंदी ने दुनिया के कई देशों को प्रभावित किया।
3.3 प्रारंभिक वर्ष
इस पर विचार करने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति राष्ट्रपति वैलेरी गिस्कार्ड एवं चांसलर हेल्मुट श्मिट ने पहल की थी। उन्होने 1975 में पेरिस में पहली शिखर बैठक के लिए प्रोत्साहित किया। शिखर सम्मेलन में फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, यूनाइटेड किंगडम एवं इटली के राज्य प्रमुखों ने तेल संकट, वित्तीय संकट एवं मंदी से बाहर निकलने के उपायो पर विचार-विमर्श किया। इस पहले जी-6 शिखर सम्मेलन में, उन्होंने एक 15-सूत्रीय विज्ञप्ति रामबोइलेट को अपनाने की घोषणा की एवं एक नियमित आवर्तन अध्यक्षता के तहत भविष्य में साल में एक बार मिलने के लिए सहमत हुए। 1976 में कनाडा इस समूह में शामिल हो गया, उसके बाद से यह समूह जी 7 के रूप में जाना जाने लगा।
3.4 यूरोपीय संघ का शामिल होना
1977 में लंदन में पहली बार जी-7 एवं यूरोपीय समुदाय के बीच सीधी बातचीत हुई। जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष को आमंत्रित किया गया था। आज यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष भी शिखर बैठकों में भाग लेते हैं। इसलिए आज 7 + 2 = 9 सदस्य सभी शिखर सम्मेलन में भाग लेते हैं।
3.5 समय के साथ विकास
1980 के दशक में जी-7 ने विदेशी एवं सुरक्षा नीति के मुद्दों को अपनाने के लिए अपने हितों को बढ़ाया। उस समय की अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों में ईरान तथा इराक एवं सोवियत कब्जे वाले अफगनिस्तान के बीच लंबे समय से जारी संघर्ष शामिल था। समूह ने बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के लिए अपने क्षेत्र का विस्तार किया। जिसमें ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दे, लिंग समानताए गरीबी एवं जी 7 की अध्यक्षता को धारण करने वाले किसी अन्य विषय की कार्यसूची पर रखने का विकल्प है। जी 7 राष्ट्रों को दुनिया के सात सबसे धनी एवं सबसे उन्नत राष्ट्रों के रूप में माना जाता है क्योंकि चीन, जो कि दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा नेट मूल्य रखता है, फिर भी प्रति व्यक्ति कम नेट मूल्य एवं उसकी अर्थव्यवस्था है जो अभी तक पूरी तरह से आधुनिक नहीं हुई है।
जी-7 समूह विश्व के अनेक शीर्ष देशों को शामिल करता है : जिसमें सर्वाधिक निर्यात करने वाले शीर्ष देश, सबसे बड़े स्वर्ण भंडार, सबसे बड़ी परमाणु ऊर्जा उत्पादक एवं संयुक्त राष्ट्र बजट में सर्वाधिक अंशदान करने वाले देश इत्यादि शामिल है।
3.6 जी-7 समूह द्वारा आमंत्रित अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन
सात देशों का समूह - जी 7 ने, 1990 के दशक के अंत में अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों को शिखर सम्मेलन में आमंत्रित करने की परंपरा शुरू की, जो इस प्रकार है -
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
- विश्व बैंक
- संयुक्त राष्ट्र
- विश्व व्यापार संग्ठन
- अफ्रीकी संघ
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी
अन्य राष्ट्रों को भी समय-समय पर इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया जैसे कि जी-20 एवं जी 8 $ 5, जो कि आर्थिक प्रगति में रूचि रखने वाले देशों के भिन्न-भिन्न समूह थे।
3.7 रूस की भूमिका
ईस्ट-वेस्ट संघर्ष की समाप्ति के बाद जी-7 ने कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव मिखाइल गोर्बाचेव को जी-7 शिखर सम्मेलन के समानांतर, 1991 में लंदन में बातचीत के लिए आमंत्रित किया। सोवियत संघ जल्द ही 1991 में ढह गया, एवं रूसी संघ अस्तित्व में आया। 2013 तक रूस ने नियमित रूप से शिखर बैठकों में भाग लिया। 1998 में रूस को औपचारिक रूप से समूह में शामिल किया गया जिससे यह जी-8 बन गया एवं बर्मिंघम शिखर सम्मेलन में यह आठ प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह का सदस्य बन गया।
3.8 जी-8 का अंत
वर्ष 2014 में इसके टूटने का कारण रूस द्वारा यूक्रेन की संप्रुभता भंग कर क्रीमिया को हथिया लेना, बना। फिर, जी-7 के राज्य एवं सरकार के प्रमुखों ने रूसी राष्ट्रपति पद के तहत सोची में नियोजित जी-8 शिखर सम्मेलन में शामिल न होने का फैसला लिया। जी-7 के राष्ट्र जी-8 शिखर सम्मेलन में तब तक भाग नहीं लेने वाले थे, जब तक कि रूस अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव कर फिर से एक ऐसा वातावरण उत्त्पन्न नहीं कर देता जिसमें जी-8 देशों के लिए उचित विचार-विमर्श करना संभव है।
3.9 45 वाँ जी-7 शिखर सम्मेलन 2019
45 वाँ जी-7 शिखर सम्मेलन 24 से 26 अगस्त, 2019 के बीच फ्रांस के बिरिट्ज (Biarritz) में आयोजित किया गया था। इसमें आय एवं लैंगिक असमानता से लड़ने एवं जैव विविधता की रक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
मार्च 2014 में, जी-7 ने घोषणा की कि वर्तमान में रूस के साथ जी-8 के संदर्भ में एक अर्थपूर्ण चर्चा संभव नहीं है तब से ही जी-7 प्रक्रिया के अंर्तगत बैठकें जारी हैं।
जी-7 2019 में भाग लेने वाले लोगों में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, जर्मन के चांसलर एंजेला मार्केल, इटली कार्यवाहक प्रधानमंत्री गिउसेप कोंटे, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रपति बोरिस जॉनसन (पहली बारद्ध, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एवं यूरोपीय संघ परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क शामिल थे।
4.0 आठ राष्ट्रों का समूह (जी-8)
4.1 आठ राष्ट्रों का समूह क्या है (जी-8)
यह समूह आठ अत्यधिक औद्योगिक देशों का समूह है - जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा एवं रूस शामिल हैं - जो वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास व संकट प्रबंधन, वैश्विक सुरक्षा, ऊर्जा एवं आतंकवाद जैसे मुद्दो पर बातचीत करने एवं इनसे संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए एक वार्षिक बैठक का आयोजन करते थे। यह मंच राष्ट्रपतियों एवं प्रधानमंत्रियों के साथ-साथ उनके वित्त एवं विदेश मंत्रियों को भी अनौपचारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करने का अधिकार देता है। इसकी छोटी एवं स्थिर सदस्यता, हालांकि, वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं अंर्तराष्ट्रीय सुरक्षा की महत्वपूर्ण वार्ताओं में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को शामिल नही करती है एवं एक अनौपचारिक समूह के रूप में, इन राज्यों के पास अन्य सदस्यों पर बहुत कम लाभ होता है जिनके साथ उन्हें प्रतिष्ठा लागतों से परे, अनुमतियों को सुरक्षित करना होता है।
4.2 जी-8 की सदस्यता
जब 1975 में इस समूह का गठन किया गया था, तब इसे जी-6 के रूप में जाना जाता था, जिसमें पश्चिम जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे। शीत युद्ध की राजनीति अंततः समूह के एजेंडे शामिल हो गई। बाद में 1976 में जी-8 में कनाडा के अलावा इसके छह चार्टर सदस्यों को भी शामिल किया गया एवं रूस 1998 तक पूरी तरह से भाग लेने वाला सदस्य बन गया। यूरोपीय संघ एक ऐसा नौवां ‘गैर-एनुमेरेटेड’ सदस्य है जिसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद एवं यूरोपीय आयोग के अध्यक्षों द्वारा किया जाता है, यूरोपीय संघ समान रूप से भाग लेता है। जी 8 राष्ट्र, वैश्विक अर्थव्यवस्था के कुल उत्पाद का, लगभग 50 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पादन करता है ।
सदस्यता के लिए कोई औपचारिक मानदंड तय नहीं हैं केवल सदस्य राष्ट्रों को लोकतांत्रिक एवं अत्यधिक विकसित अर्थव्यवस्थाएँ होना चाहिए । जी 8, संयुक्त राष्ट्र के विपरित एक भिन्न समुह है जिसकी कोई औपचारिक संस्था एवं कोई चार्टर या सचिवालय नहीं है।
4.3 रूस एवं जी-8
रूस औपचारिक रूप से 1998 में लोकतांत्रिकरण की ओर बढते हुए इस समूह में शामिल हो गया एवं समुह को जी 8 के नाम से जाना जाने लगा। शीत युद्ध के समाप्त होने साथ कई विश्व नेताओं विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की ओर इशारा करते हुए रूस को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया। रूस के पास न तो पूरी तरह से उदारी.त अर्थव्यवस्था थी एवं न ही पश्चिमी-शैली का लोकतंत्र लेकिन जी 7 के नेताओं को उम्मीद थी कि रूस के समावेश से उसकी लोकतांत्रिक प्रगति सुरक्षित होगी। रूस ने दो बार अपने यहाँ इस सभा का आयोजन किया है। पहली बार 2006 एवं बाद में 2014 में। 2014 की सभा समुद्र के समीप के शहर सोची में आयोजित की गई थी जहाँ 2014 के शीतकालीन ओलंपिक भी हुए थे। रूस की सदस्यता विवादास्पद रही है। चूंकि जी -8 को समान विचारधारा वाले लोकतंत्रों के लिए एक मंच के रूप में बनाया था, इसलिए रूस के अधिनायकवाद के प्रति रवैये ने मानवाधिकार अधिवक्ताओं के बीच चिंताएं बढ़ा दी हैं। 2013 में इस मुद्दे को अधिक महत्व दिया गया क्योंकि रूस ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन को अन्य जी-8 सदस्यों के पदों के साथ हथियारों के साथ वित्तपोषण एवं कूटनीतिक मदद का समर्थन करना जारी रखा।
4.4 क्रीमिया पर कब्जा
मार्च 2014 में, पड़ोसी देश युक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र जो कि रूस के काला सागर टुकड़ी का मुख्यालय एवं कई रूसी जातियों का घर है, पर आक्रमण करने एवं इसकी राजधानी कीव में राजनीतिक बदलाव के होते, रूस को अंर्तराष्ट्रीय समुदाय से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। यूरोपीय परिषद एवं यूरोपीय आयोग के अध्यक्षों के साथ जी-8 के सात अन्य सदस्यों ने ‘रूसी संघ की यूक्रेन की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के स्पष्ट उल्लंघन की निंदा की। सोची शिखर सम्मेलन की प्रारंभिक वार्ता का बहिष्कार करते हुए उन्होंने कहा कि यह कार्यवाही ‘उन सिद्धांतों एवं मूल्यों का उल्लंघन करती है जिन पर जी 7 एवं जी 8 संचालित होते है।
4.5 जी-8 की आलोचना
जी-8 की विशिष्टता के कारण इसकी काफी आलोचना की जाती है, लेकिन इसका छोटा आकार एवं इसके सदस्यों की समान विचारधारा इसकी प्रभावकारिता का स्रोत है। जी 8 की आलोचना, रूस की सदस्यता से परे ओैर भी कई बातो के लिए की जाती है। जी 8 के लगतार व्यापार उदारीकरण पर जोर देते हुए शिखर सम्मेलनों को अक्सर गैर-उदारीकरण विराधों को सामना करना पड़ता है। अन्य आलोचकों का तर्क है कि समूह की विशिष्टता विकासशील देशों की कीमत पर औद्योगिक राष्ट्रों की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करती है। जी 8 की .ढ़ता को अक्सर ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका) के वैकल्पिक कॉकस के रूप में उभरने का कारण बताया गया है। जी 8 को अब दुनिया की सबसे बड़ी या सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं को समायोजित करने के रूप में नहीं देखा जाता है।
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