यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 5

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यूरोपीय संघ

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1.0 प्रस्तावना 

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों के विनाशकारी प्रभावों का परिणाम इन युद्धों में शामिल देशों द्वारा यूरोप के शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए किये गए विभिन्न उपायों में हुआ। ये देश यूरोपीय परिषद के साथ आधिकारिक रूप से 1949 में एकजुट होना शुरू हुए। 1950 में यूरोपीय कोयला एवं इस्पात समुदाय के साथ यह सहयोग और अधिक विस्तारित हुआ। इस प्रारंभिक संधि में शामिल छह देश थे बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्समबर्ग और नीदरलैंड़। आज इन देशों को ‘‘संस्थापक सदस्य‘‘ कहा जाता है। 

1950 के दशक के दौरान पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच जारी शीत युद्धों, प्रदर्शनों और विभाजनों ने यूरोप के अधिक एकीकरण की आवश्यकता को प्रदर्शित किया। यह करने के लिए 25 मार्च 1957 को रोम की संधि पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय आर्थिक समुदाय की निर्मिति हुई, जिसने व्यक्तियों और उत्पादों के संपूर्ण यूरोप में आवागमन का मार्ग प्रशस्त किया। अगले कई दशकों के दौरान अनेक अतिरिक्त देश भी इस समुदाय में शामिल होते चले गए। 

कानूनों की एक मानकीकृत व्यवस्था के माध्यम से यूरोपीय समुदाय ने संपूर्ण क्षेत्र के लिए एक एकल बाजार विकसित किया है, जिसमें ये कानून सभी सदस्य देशों पर लागू होते हैं।

50 करोड़ से अधिक, या विश्व जनसंख्या के 7.3 प्रतिशत निवासियों की संयुक्त जनसंख्या के साथ यूरोपीय संघ ने 2014 में 18.5 ट्रिलियन ड़ॉलर के नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद का उत्पादन किया, जो वैश्विक नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद का 23.9 प्रतिशत था, और क्रय शक्ति समता की दृष्टि से गणना करने पर यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 20 प्रतिशत होता था, जो क्रमशः विश्व का सर्वाधिक नाम-मात्र घरेलू उत्पाद और क्रय शक्ति समता की दृष्टि से सकल घरेलू उत्पाद है। यूरोपीय संघ 2012 के नोबेल शांति पुरस्कार का प्राप्तकर्ता है। 

यूरोप का और अधिक एकीकरण करने की दृष्टि से एकल यूरोपीय अधिनियम 1987 पर हस्ताक्षर किये गए जिसका उद्देश्य व्यापार के लिए अंततः एक ‘‘एकल बाजार‘‘ निर्मित करने का है। 1989 पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच की सीमा - बर्लिन की दीवार - को समाप्त करने के साथ ही यूरोप का और अधिक एकीकरण हुआ। 

2.0 आधुनिक समय का यूरोपीय संघ

1990 के समूचे दशक के दौरान ‘‘एकल बाजार‘‘ की विचारधारा ने व्यापार को, पर्यावरण और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर नागरिकों के अधिक संपर्क को और विभिन्न देशों के बीच आसान यात्रा को और अधिक सुविधाजनक बनाया। 

हालांकि 1990 के दशक के प्रारंभिक काल के पहले भी यूरोपीय देशों के बीच अनेक संधियाँ अस्तित्व में थीं, इस काल को आमतौर पर उस काल के रूप में जाना जाता है जब आधुनिक समय का यूरोपीय संघ यूरोपीय संघ पर 7 फरवरी 1992 को की गई मास्ट्रिच संधि के कारण उदित हुआ। यह संधि 1 नवंबर 1993 से प्रभावी हो गई। मास्ट्रिच संधि ने उन पांच लक्ष्यों को चिन्हित किया जो यूरोप को केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि अन्य मार्गों से भी एकीकृत करने के लिए बनाये गए थे।


ये लक्ष्य निम्नानुसार हैंः

  1. प्रतिभागी देशों के लोकतांत्रिक शासन तंत्र को सशक्त बनाना 
  2. देशों की कार्यकुशलता में सुधार करना 
  3. एक आर्थिक और वित्तीय एकीकरण की स्थापना करना 
  4. ‘‘सामुदायिक सामाजिक पहलू‘‘ को विकसित करना 
  5. शामिल देशों के लिए एक सुरक्षा नीति स्थापित करना 

इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मास्ट्रिच संधि में विभिन्न नीतियां विद्यमान हैं, जो उद्योग, शिक्षा और युवाओं जैसे मुद्दों से निपटती हैं। इसके अतिरिक्त वित्तीय एकीकरण की स्थापना के लिए इस संधि ने 1999 में यूरोप के लिए एक एकल मुद्रा ‘‘यूरो‘‘ की निर्मिति की। 2004 और 2007 में यूरोपीय संघ का विस्तार हुआ, जिसके कारण 2008 तक इसके सदस्यों की कुल संख्या बढ़ कर 27 हो गई। 

दिसंबर 2007 में सभी सदस्य देशों ने लिस्बन संधि पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य यूरोपीय संघ को जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय सुरक्षा और धारणीय विकास जैसे मुद्दों से निपटने के लिए अधिक लोकतांत्रिक और कुशल बनाया जा सके। 


3.0 यूरोपीय संघ की विभिन्न संस्थाएं

यूरोपीय संघ की सात संस्थाएं हैः (1) यूरोपीय संसद, (2) यूरोपीय संघ की परिषद, (3) यूरोपीय आयोग, (4) यूरोपीय परिषद, (5) यूरोपीय केंद्रीय बैंक, (6) यूरोपीय संघ के न्याय का न्यायालय, और (7) यूरोपीय लेखा परीक्षकों का न्यायालय। कानूनों की जांच और उनमें संशोधन की क्षमताओं को यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ की परिषद के बीच विभाजित किया गया है, जबकि कार्यकारी कार्य यूरोपीय आयोग और एक सीमित क्षमता तक यूरोपीय परिषद द्वारा निष्पादित किये जाते हैं (यूरोपीय परिषद को उपरोल्लिखित यूरोपीय संघ की परिषद के साथ भ्रमित नहीं करना है)। यूरोक्षेत्र की मौद्रिक नीति यूरोपीय केंद्रीय बैंक द्वारा शासित होती है। यूरोपीय संघ के कानूनों और संधियों की व्याख्या और उनका अनुप्रयोग यूरोपीय संघ के न्याय न्यायालय द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। यूरोपीय संघ के बजट की जांच यूरोपीय लेखा परीक्षकों के द्वारा की जाती है। अतिरिक्त यूरोपीय संघ में कुछ अन्य पूरक निकाय भी हैं, जो यूरोपीय संघ को सलाह प्रदान करते हैं, या किसी विशिष्ट क्षेत्र में कार्य करते हैं। 

यह गतिविज्ञान किस प्रकार से कार्य करता है? यूरोपीय संघ की व्यापक प्राथमिकताएं यूरोपीय परिषद द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के और यूरोपीय संघ स्तर के नेता एकत्रित होते हैं यूरोपीय संसद के सीधे निर्वाचित सदस्य यूरोपीय संसद में यूरोपीय नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यूरोपीय संघ के व्यापक और समग्र हितों का प्रयोजन यूरोपीय आयोग द्वारा किया जाता है, जिसके सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रीय सरकारों द्वारा की जाती है। यूरोपीय संघ में सरकारें स्वयं अपने देश के हितों का संरक्षण करती हैं। 

यूरोपीय परिषद यूरोपीय संघ की समस्त राजनीतिक दिशा का निर्धारण करती है - किंतु उसे कानून पारित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसका नेतृत्व इसके अध्यक्ष द्वारा किया जाता है - वर्तमान में हर्मन वान रोम्पुय - और इसमें देशों या सरकारों के राष्ट्रीय प्रमुख और आयोग के अध्यक्ष शामिल होते हैं, इसकी बैठक प्रत्येक छह महीनों में एक बार कुछ दिनों के लिए आयोजित की जाती है।

4.0 यूरोपीय संघ के कानून

यूरोपीय संघ की कानून प्रक्रिया में मुख्य रूप से तीन संस्थाएं शामिल हैंः

  1. यूरोपीय संसद, जो यूरोपीय संघ के नागरिकों का प्रतिनिधित्व पार्टी है, और सीधे उनके द्वारा निर्वाचित की जाती है। 
  2. यूरोपीय संघ की परिषद, जो व्यक्तिगत सदस्य देशों की सरकारों का प्रतिनिधित्व करती है। परिषद के अध्यक्ष का पद सदस्य देशों द्वारा चक्रीय पद्धति के आधार पर साझा किया जाता है। 
  3. यूरोपीय आयोग, जो समग्र रूप से यूरोपीय संघ के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। 

ये तीनों संस्थाएं साथ मिलकर ‘‘सामान्य विधायी प्रक्रिया‘‘ के माध्यम से (उदाहरणार्थ, ‘‘सह-निर्णय‘‘) नीतियों और कानूनों की निर्मिति करती हैं, जो संपूर्ण यूरोपीय संघ पर लागू होते हैं। सैद्धांतिक तौर पर आयोग नए कानूनों का प्रस्ताव करता है, और संसद और परिषद उन्हें अंगीकृत करती हैं। फिर आयोग और सदस्य देश उनका क्रियान्वयन करते हैं, और आयोग सुनिश्चित करता है कि संबंधित कानूनों का व्यवस्थित रूप से पालन और क्रियान्वयन किया जा रहा है। 

दो संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैंः

  1. यूरोपीय संघ का न्याय न्यायालय यूरोपीय कानून के नियम की मर्यादा बनाये रखता है,
  2. लेखा परीक्षकों का न्यायालय यूरोपीय संघ की गतिविधियों के वित्तपोषण की जांच करता है। 


इन समस्त संस्थाओं के अधिकार और उत्तरदायित्व संधियों में निर्धारित किये गए हैं, जो यूरोपीय संघ द्वारा किये जाने वाले प्रत्येक कार्य के मूल आधार हैं। वे उन नियमों और प्रक्रियाओं का भी निर्धारण करती हैं, जिनका पालन यूरोपीय संघ की विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया जाना आवश्यक है। इन संधियों पर यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के राष्ट्रपतियों/प्रधानमंत्रियों द्वारा सहमति प्रदान की गई है, और जिसकी प्रतिपुष्टि उनकी संबंधित सांसदों द्वारा की गई है। 

यूरोपीय संघ में बड़ी संख्या में अन्य संस्थाएं और अंतर संस्था निकाय भी हैं, जो विशेषीकृत भूमिकाएं निभाती हैंः

  1. यूरोपीय केंद्रीय बैंक यूरोपीय मौद्रिक नीति के लिए जिम्मेदार है 
  2. यूरोपीय विदेशी कार्य सेवा संघ के विदेशी मामलों और सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधि, वर्तमान में कैथरीन एश्टन, की सहायता करती है। वे विदेशी मामलों की परिषद की अध्यक्षता करती हैं, और साझा विदेश और सुरक्षा नीति का आयोजन करती हैं, साथ ही यूरोपीय संघ की विदेशी गतिविधियों की सुसंगति और समन्वय को भी सुनिश्चित करती हैं 
  3. यूरोपीय आर्थिक एवं सामाजिक समिति नागरिक समाज, कर्मचारियों और नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करती है 
  4. क्षेत्रीय समिति क्षेत्रीय और स्थानीय प्राधिकरणों का प्रतिनिधित्व करती है 
  5. यूरोपीय निवेश बैंक यूरोपीय संघ की निवेश परियोजनाओं का वित्तपोषण करती है, और यूरोपीय निवेश कोष के माध्यम से छोटे व्यापारों की सहायता करती है। 
  6. यूरोपीय लोकपाल दुरोपीय संघ की संस्थाओं और निकायों द्वारा कुप्रशासन की शिकायतों का अन्वेषण करता है 
  7. यूरोपीय डेटा संरक्षण पर्यवेक्षक लोगों के व्यक्तिगत डेटा का संरक्षण करता है 
  8. प्रकाशन कार्यालय यूरोपीय संघ से संबंधित जानकारी का प्रकाशन करता है 
  9. यूरोपीय कार्मिक चयन कार्यालय यूरोपीय संघ संस्थाओं और अन्य निकायों में भर्तियों और नियुक्तियों का कार्य करता है 
  10. यूरोपीय प्रशासनिक विद्यालय यूरोपीय संघ के सदस्य कर्मचारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करता है, और 
  11. अनेक विशेषीकृत अभिकरण और विकेंद्रीकृत निकाय अनेक प्रकार के तकनीकी, वैज्ञानिक और प्रबंधकीय कार्य करते हैं। 

यूरोपीय संघ विभिन्न संधियों की श्रृंखला पर आधारित है। जिन्होंने पूर्व में यूरोपीय समुदाय स्थापित किया, बाद में यूरोपीय संघ की स्थापना की, और बाद में इन संस्थापक संधियों में संशोधन किये। ये अधिकार प्रदान करने वाली संधियां हैं, जिन्होंने व्यापक नीतिगत लक्ष्य निर्धारित किये, और इन लक्ष्यों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक कानूनी अधिकारों के साथ संस्थाओं की स्थापना की। इन कानूनी अधिकारों में ऐसे कानून अधिनियमित करने की क्षमता है, जो सभी सदस्य देशों और उनके निवासियों को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। यूरोपीय संघ का एक कानूनी व्यक्तित्व है जिसे समझौतों और अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर करने के अधिकार प्राप्त हैं। 

सर्वोच्चता के सिद्धांत के तहत राष्ट्रीय न्यायालयों को उन संधियों, और इस प्रकार, उनके तहत अधिनियमित कानूनों का प्रवर्तन करना अनिवार्य है, जिनकी प्रतिपुष्टि उनके सदस्य देशों द्वारा कर दी गई है, चाहे उनके प्रवर्तन के लिए उन्हें विरोधाभासी राष्ट्रीय कानूनों, और (सीमा में रहकर) संवैधानिक प्रावधानों को भी नजरअंदाज क्यों न करना पडे़।

न्याय के न्यायालयः यूरोपीय संघ की न्यायिक शाखा - जिसे औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ का न्याय का न्यायालय कहा जाता है - में तीन न्यायालय शामिल हैंः न्याय का न्यायालय, सामान्य न्यायालय और यूरोपीय संघ लोक सेवा न्यायाधिकरण। ये तीनो मिलकर यूरोपीय संघ की संधियों और कानून की व्याख्या करते और उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करते हैं। 

न्याय का न्यायालय प्राथमिक रूप से उन मामलों का विचार करता है जो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों द्वारा और इसकी अन्य संस्थाओं द्वारा उठाये गए हैं, और ऐसे मामले जो इसके सदस्य देशों के न्यायालयों द्वारा उसे प्रेषित किये जाते हैं। सामान्य न्यायालय में उन मामलों पर विचार किया जाता है जो व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा सीधे यूरोपीय संघ के न्यायालयों में उठाये जाते हैं, और यूरोपीय संघ लोक सेवा न्यायाधिकरण यूरोपीय संघ और लोक सेवकों के बीच के विवादों के संबंध में न्यायनिर्णय करता है। सामान्य न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध न्याय के न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है, बशर्ते यह अपील केवल किसी कानूनी बिंदु से संबंधित है। 


मौलिक अधिकारः

संधियां घोषित करती हैं कि स्वयं यूरोपीय संघ की ‘‘स्थापना मानव गरिमा के लिए सम्मान, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता, कानून के शासन और मानवाधिकारों के सम्मान, जिसमें अल्पसंख्यक  समुदाय के व्यक्तियों के अधिकार भी शामिल हैं, के मूल्यों पर एक ऐसे समाज में की गई है जिसमें बहुलतावाद, गैर-भेदभाव, सहिष्णुता, न्याय, एकात्मता और पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता विद्यमान है।‘‘

2009 में की गई लिस्बन संधि ने यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के प्राधिकार को कानूनी स्वरुप प्रदान किया। यह प्राधिकार उन मौलिक अधिकारों का संहिताबद्ध सूचीपत्र है जिनके विरुद्ध यूरोपीय संघ के कार्यों को आंका जा सकता है। यह ऐसे अनेक अधिकारों को समेकित करता है जिनकी पहचान पूर्व में न्याय के न्यायालय द्वारा की गई थी, और जो ‘‘सदस्य देशों की साझा संवैधानिक परंपराओं‘‘ से व्युत्पन्न हैं। न्याय के न्यायालय ने काफी पहले ही मौलिक अधिकारों की पहचान कर ली है, और कई अवसरों पर इन मौलिक अधिकारों के पालन में असफल रहने के आधार पर यूरोपीय संघ के कानून को अमान्य कर दिया है। मौलिक अधिकारों का प्राधिकार 2000 में तैयार किया गया था। हालांकि प्रारंभ में यह कानूनी रूप से बंधनकारक नहीं था, फिर भी यूरोपीय संघ के न्यायालयों द्वारा अक्सर इसे उन कॅप्सुलीकृत अधिकारों के रूप में उद्धृत किया जाता था जिनकी पहचान न्यायालयों द्वारा यूरोपीय संघ के कानून के मौलिक सिद्धांतों के रूप में कर ली गई थी। हालांकि मानवाधिकारों के यूरोपीय सम्मेलन पर हस्ताक्षर यूरोपीय संघ की सदस्यता की एक पूर्व शर्त है, पूर्व में स्वयं यूरोपीय संघ सम्मेलन में शामिल नहीं हो पाया था क्योंकि न तो यह एक देश था, न ही शामिल होने की इसकी पात्रता थी। लिस्बन संधि और मानवाधिकारों के यूरोपीय सम्मेलन के प्रोटोकॉल 14 ने इस स्थिति को परिवर्तित कर दिया हैः जबकि पहला यूरोपीय संघ को इसमें शामिल होने को बाध्य करता है, वहीं दूसरा औचारिक रूप से इसकी अनुमति प्रदान करता है। 

हालांकि यूरोपीय संघ यूरोपीय परिषद से स्वतंत्र है, फिर भी वे प्रयोजन और विचारों को साझा करते हैं, विशेष रूप से कानून के शासन पर, मानवाधिकारों पर और लोकतंत्र पर। साथ ही मानवाधिकारों का यूरोपीय सम्मेलन और यूरोपीय सामाजिक प्राधिकार, जो मौलिक अधिकारों के प्राधिकार के कानून का स्रोत है, इनकी रचना यूरोपीय परिषद द्वारा ही की गई थी। यूरोपीय संघ ने मानवाधिकारों के मुद्दे को व्यापक विश्व में भी प्रायोजित किया है। यूरोपीय संघ मृत्यु दंड का विरोध करता है, और इसने वैश्विक स्तर पर इसके उन्मूलन का प्रस्ताव किया है। मृत्यु दंड का उन्मूलन भी यूरोपीय संघ की सदस्यता की एक पूर्व शर्त है। 

अधिनियमः यूरोपीय संघ के मुख्य कानूनी अधिनियम तीन प्रकारों के हैंः विनियम, दिशानिर्देश, और निर्णय। एक विनियम जैसे ही प्रभावशील हो जाता है, वैसे ही वह कानून बन जाता है, इसके लिए किन्ही क्रियान्वयन उपायों की आवश्यकता नहीं होती, और स्वचालित रूप से विद्यमान घरेलू प्रावधानों को प्रत्यादिष्ट कर देता है। दिशानिर्देशों के लिए सदस्य देशों को एक निश्चित परिणाम प्राप्त करना आवश्यक है, जबकि इन्हें परिणाम प्राप्त करने के निर्देशों के रूप में ही छोड दिया जाता है। इन्हें किस प्रकार क्रियान्वित करना है इसकी जिम्मेदारी संबंधित सदस्य देशों पर छोड दी जाती है। जब दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन की समय सीमा समाप्त हो जाती है, तो इनका, कुछ विशिष्ट स्थितियों के तहत, सदस्य देशों के राष्ट्रीय कानून पर, उनके विरुद्ध सीधा प्रभाव पड सकता है। 

निर्णय, कानून के उपरोल्लिखित दोनों प्रकारों का एक विकल्प प्रदान करता है। ये कानूनी गतिविधियां होती हैं जो केवल विशिष्ट व्यक्तियों, कंपनियों या एक विशिष्ट सदस्य देश पर ही लागू होती हैं। अक्सर इनका उपयोग प्रतिस्पर्धा कानून या राज्य की सहायता पर निर्णय के मामले में ही किया जाता है, फिर भी कई बार इनका उपयोग संस्थाओं के अंदर प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक मामलों में भी किया जाता है। विनियमों, दिशानिर्देशों और निर्णयों का न्यायिक मूल्य सामान होता है, और ये बिना किसी औपचारिक क्रमानुक्रम के लागू होते हैं।

5.0 यूरोपीय संघ का व्यापार

विश्व व्यापार में यूरोपीय संघ का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके व्यापार शासन का खुलापन इसे वैश्विक व्यापार क्षेत्र का सबसे बड़ा सदस्य बनाता है। 28 भिन्न-भिन्न व्यापारी रणनीतियों के बजाय एक आवाज के साथ एकजुट कार्य करने के कारण यूरोपीय संघ ने विश्व व्यापार पटल पर एक मजबूत स्थान प्राप्त कर लिया है। 

यूरोपीय संघ एक ऐसी व्यापार नीति का पालन करने के प्रति प्रतिबद्ध है, जो न केवल यूरोप में आर्थिक विकास में वृद्धि करती है, और रोजगार की निर्मिति करती है, बल्कि यह विश्व भर के देशों को व्यापार को आर्थिक विकास के एक साधन के रूप में उपयोग करने में सक्रिय रूप से सहायता भी प्रदान करती है। 

5.1 मुक्त व्यापार में योगदान 

यूरोपीय संघ विकासशील देशों को व्यापार का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने में भी सक्रिय सहायता प्रदान करता है। यूरोपीय संघ विकासशील देशों को ‘‘व्यापार के लिए सहायता‘‘ प्रदान करने वाला विश्व का सबसे बड़ा प्रदाता है - जो प्रति वर्ष 7 बिलियन यूरो से भी अधिक है। यह सहायता विकासशील भागीदारी देशों को सफल व्यापार के लिए आवश्यक अधोसंरचना और कौशल विकास विकसित करने में सहायक होती है, ताकि सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। यूरोपीय संघ निम्न मूल्यों को प्रोत्साहित करता हैः

  1. अपने पर्यावरण के संरक्षण की लडाई और ग्लोबल वार्मिंग को उलटने में सहायता;
  2. विकासशील देशों के श्रमिकों की कार्य की परिस्थितियों में सुधार के प्रयास, और 
  3. हम जिन उत्पादों का क्रय-विक्रय कर रहे हैं उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करना।  

एक एकल निकाय के रूप में यूरोपीय संघ विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक गुट है, और 2011-12 के दौरान इसके आयात और निर्यात निरंतर बढ़ते रहे हैं, हालांकि अन्य देशों के अधिक तीव्र गति के विकास के कारण विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी कम होती जा रही है। वस्तुओं और सेवाओं में यूरोपीय संघ के बाहर के देशों के साथ व्यापार में भी यूरोपीय संघ एक खुली अर्थव्यवस्था है, जिसका 2011 के सकल घरेलू उत्पाद का प्रदर्शन 33 प्रतिशत से अधिक था। इसके नियम और प्रक्रियाएं भी पूर्णतः पारदर्शी हैं, इसके सदस्य देशों के बीच की और अर्थव्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था, और सार्वजनिक संस्थाओं की व्यापक विविधता के बावजूद यह एक उच्च प्रकार की एकीकृत अर्थव्यवस्था है, जिसकी व्यापार नीति एक है, और अधिकांश व्यापार से संबंधित क्षेत्रों में समान कानून हैं। 

वर्षों के दौरान यूरोपीय संध की नीति का केंद्रबिंदु वित्तीय संकट पर रहा है, और इस दौरान अन्य क्षेत्रों में व्यापार नीतियों, कानूनों और संस्थाओं में अत्यल्प परिवर्तन हुए हैं। हालांकि इनमें संरक्षणवाद की ओर वापस जाने जैसा कोई तत्व शामिल नहीं किया गया है, यह तथ्य भी अपने आप में एक सकारात्मक चिन्ह है। संकट के कारणों में ऋण तक आसान पहुंच और सरकारी और निजी क्षेत्र के लिए आर्थिक विकास की तुलना में उधार की न्यून लागतों जैसे मुद्दों पर वित्तीय सुधारों का अभाव रहा है, जिनका परिणाम यह हुआ कि निजी और/या सार्वजनिक क्षेत्र के कर्ज का स्तर और कुछ बैंकों के इस प्रकार के कर्जों की जोखिम अधारणीय हो गई। संकट को बढ़ाने वाला एक अन्य संबंधित कारक यह रहा कि कुछ सदस्य देशों में प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो गई क्योंकि उनकी इकाई श्रम लागत और वास्तविक प्रभावी विनिमय दरें अपेक्षाकृत अधिक तेजी से बढ़ती गईं। 

5.2 सीमा शुल्क प्रक्रिया 

सीमा शुल्क प्रक्रियाओं के मामले में यूरोपीय संघ तेजी से समस्त यूरोपीय संघ क्षेत्र व्यापी इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की ओर बढ़ रहा है, जिसमें समाशोधन केंद्रीकृत है। इसकी अंतिम समय सीमा 2020 रखी गई है। सरल प्रक्रियाओं के लिए एकल प्राधिकार समीक्षा अवधि के दौरान अधिक से उपयोग किया गया ऐसा देखा गया है। यूरोपीय संघ के बाहर से आने वाले माल के लिए अब बंदरगाह में आते ही सीमा शुल्क की सारी औपचारिकताएं पूर्ण की जा सकती हैं चाहे माल का गंतव्य स्थान किसी अन्य सदस्य देश में ही क्यों न हो, साथ ही अब ‘‘प्रवेश सारांश घोषणा‘‘ प्रवेश के पहले बिंदु के बजाय गंतव्य पर भी प्रस्तुत की जा सकती है। 

यूरोपीय संघ में सामान्य तौर पर शुल्कों और बाजार पहुंच की दृष्टि से कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुए हैं। हालांकि शुल्क मुक्त शुल्क पंक्तियां काफी बड़ी संख्या में विद्यमान हैं, और सबसे पसंदीदा देशों के लिए औसत शुल्क 6.5 प्रतिशत है, कुछ क्षेत्र, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र कई बार जटिल या मौसमी शुल्कों के माध्यम से अब भी अच्छी तरह से संरक्षित हैं। हालांकि सबसे पसंदीदा देशों के आधार पर बहुत ही कम देश यूरोपीय संघ के साथ व्यापार करते हैं क्योंकि यूरोपीय संघ की अन्य देशों एक साथ अनेक व्यापार सन्धियां मौजूद हैं, साथ ही जीएसपी और जीएसपी और ईबीए योजनाएं भी हैं। 

विभिन्न सदस्य देश मूल्य संवर्धित कर और उत्पादन शुल्क की भिन्न-भिन्न दरें अधिरोपित करते हैं, जबकि निगमित करों और व्यक्तिगत करों की दरें एक देश से दूसरे देश में व्यापक रूप से भिन्न हैं। कर व्यवस्था की जटिलता, जिनमें संग्रहण और भुगतान, दोनों शामिल हैं, उदाहरणार्थ मूल्य संवर्धित कर, का परिणाम आर्थिक परिचालकों के लिए अतिरिक्त अनुपालन लागतों में हो सकता है, जबकि कुछ उत्पादों के लिए कम किये गए मूल्य संवर्धित कर के अनुप्रयोग का परिणाम किन्ही अन्य क्षेत्रों में राजस्व हस्तांतरण के रूप में हो सकता है, जिनमें आमतौर पर व्यापार नहीं होता। यदि सभी कम की गई दरें समाप्त कर दी जाती हैं, तो मूल्य संवर्धित कर की मानक दरें सैद्धांतिक रूप से कुछ सदस्य देशों में 7.5 प्रतिशत तक गिर सकती हैं, जिनका राजस्व पर समग्र रूप से कोई प्रभाव नहीं पडे़गा। 

व्यक्तिगत कराधान संरचनाओं के संबंध में यूरोपीय संघ देशों में कुछ असमानताएं हैं। साथ ही राज्य द्वारा नियंत्रित उपक्रमों के विषय में बहुत ही अल्प जानकारी उपलब्ध है। यह मुक्त व्यापार संकल्पना में वि.तियां निर्मित कर सकता है।

5.3 बौद्धिक संपत्ति का अधिकार 

बौद्धिक संपत्ति के अधिकार विश्व व्यापार का एक महत्वपूर्ण भाग बन गए हैं। यूरोपीय संघ कानून के विद्यमान निकायों के पुनरीक्षण और विकास की व्यापक प्रक्रिया जारी रखे हुए है ताकि एक सुसंगत और संतुलित रूपरेखा की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।  इस उद्देश्य से यूरोपीय संघ में रचनात्मकता और नवोन्मेष को बढ़ावा देने की दृष्टि से यूरोपीय आयोग की मई 2011 की मूल योजना ने बौद्धिक संपत्ति के अधिकारों के शासन के लिए एक व्यापक रणनीति का सुझाव दिया है। समीक्षाधीन अवधि के दौरान के सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में है एकात्मक प्रभाविता के साथ यूरोपीय पेटेंट की निर्मिति। यह भविष्य के बौद्धिक संपत्ति अधिकार ग्रहण करने वालों को यह सहूलियत प्रदान करेगा कि वे ऐसे पेटेंट की मांग कर सकेंगे जो समान संरक्षण प्रदान करेगा और स्वचालित रूप से 25 भागीदारी सदस्य देशों में वैध होगा। इसके सामानांतर एक एकीकृत पेटेंट मुकदमा व्यवस्था स्थापित की जाएगी। यूरोपीय संघ की व्यापार चिन्ह (ट्रेड़मार्क) व्यवस्था और प्रतिलिप्याधिकार (कॉपीराइट) व्यवस्था की भी महत्वपूर्ण समीक्षा की जा रही है। इस प्रक्रिया के एक भाग के रूप में प्रतिलिप्याधिकार के क्षेत्र में आयोग ने बड़ी संख्या में विधायी प्रस्ताव प्रस्तुत किये हैं, जिनमें प्रतिलिप्याधिकार के संयुक्त प्रबंधन और बहुक्षेत्रीय अनुज्ञप्तिकरण से संबंधित प्रस्ताव, और सामान्य रूप से कानूनी रूपरेखा की समीक्षा भी शामिल हैं। 


5.4 भौगोलिक संकेत 

भौगोलिक संकेतों के क्षेत्र में भी एक अधिक सुसंगत शासन व्यवस्था की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया हैः गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्पादों और खाद्यान्नों के लिए एक एकीकृत रूपरेखा का गठन किया गया है, जिनमें फसल के उत्पादन के क्षेत्र और उस क्षेत्र के भौगोलिक संकेत भी शामिल हैं। साथ ही गैर कृषि उत्पादों के भौगोलिक संकेतों के संरक्षण के लिए एक समान कानूनी रूपरेखा की स्थापना का परीक्षण भी जारी है। अंत में, सुधारित सीमा शुल्क विनियमों के आसन्न अंगीकरण का उद्देश्य है यूरोपीय संघ की बाहरी सीमाओं में बौद्धिक संपत्ति के अधिकारों का प्रवर्तन। इस उद्देश्य से इसके दायरे में वृद्धि की जाएगी, सीमा शुल्क की प्रक्रियाओं को आसान बनाया जायेगा, और यूरोपीय संघ से गुजरने वाली वस्तुओं के संबंध में सीमा शुल्क की क्या कार्रवाई की जानी है इसपर भी अधिक स्पष्टता लायी जाएगी। यूरोपीय संघ के आतंरिक बाजार में बौद्धिक संपत्ति के अधिकारों के दीवानी प्रवर्तन की विद्यमान कानूनी रूपरेखा को अद्यतन करना आवश्यक है क्या, और यदि आवश्यक है, तो किस प्रकार के अद्यतन की आवश्यकता है यह भी निरंतर परामर्श की प्रक्रिया के रूप में जारी है।

समीक्षा के दौरान कृषि नीति में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किया गया था, क्योंकि इस दौरान पिछले सुधारों के क्रियान्वयन का दौर जारी था। पिछले सुधारों और कृषि वस्तुओं की अधिक अंतर्राष्ट्रीय कीमतों का परिणाम .षि क्षेत्र को प्रदान किये गए पूर्ण संरक्षण में आई कमी में हुआ है। इसके कारण यूरोपीय संघ की कीमतों और अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के बीच का अंतर कम हो रहा है। 

अत्यधिक मछली पकड़ना यूरोपीय संघ के लिए एक गंभीर समस्या बना हुआ है, क्योंकि स्वीकृत पकड़ नियमित रूप से धारणीय सीमा से अधिक ही रही है। हालांकि अब कुछ समय से यूरोपीय संघ दीर्घकालीन नियोजन पर अपना जोर बढ़ाता जा रहा है और सामान्य मत्स्यपालन नीति में अधिक सुधार की आवश्यकता है। 

5.5 वित्तीय सेवाएं 

वित्तीय सेवाओं की दिशा में सुधारों के नीतिगत उद्देश्य चार स्तरीय रहे हैंः

  1. एक एकल पर्यवेक्षण तंत्र के माध्यम से एक बैंकिंग संघ का निर्माण, एक यूरोपीय जमा प्रत्याभूति व्यवस्था, और दिवालियेपन की स्थिति में बैंकों के लिए एक यूरोपीय संकल्प रूपरेखा;
  2. यूरोपीय पर्यवेक्षण प्राधिकरणों की स्थापना के माध्यम से स्थिरता में सुधार के लिए वित्तीय संस्थाओं और बाजारों में सुधार, बैंकों और बीमा कंपनियों के लिए उच्च पूंजी आवश्यकताएं, साथ ही साख रेटिंग अभिकरणों, लेखा परीक्षकों, शेयर बाजारों और व्युत्पादों और सट्टा व्यापार प्रथाओं के लिए विशिष्ट विनियम, जिनके कारण बाजार में अत्यधिक उथलपुथल हो सकती है;
  3. तीसरा उद्देश्य है उपभोक्ताओं की ओर वित्तीय व्यवस्था की अधिक जवाबदेही का सुदृढ़ीकरण य और चौथा है कुछ सदस्य देशों के लिए वित्तीय सेवा कर की संस्था। इन सुधारों ने तृतीय पक्ष पहुंच को बनाये रखा है, और इस दिशा में नए नियामक साधनों को विकसित किया है, जैसे  तुल्यता की धारणा। 

5.6 पर्यावरण 

पर्यावरण सेवाओं की दिशा में सबसे उल्लेखनीय घटनाक्रम यह हुआ है कि प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई कानूनी रूपरेखा में सुधार किया गया। एकला विमानन बाजार के नियम एक ‘‘उपयुक्तता जांच‘‘ की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, जबकि जमीनी प्रबंधन, स्लॉट्स और शोर के लिए सुधारों पर विचार किया जा रहा है। सामुदायिक अनुच्छेद का सामान्यीकरण किया जा चुका है। सामुद्रिक परिवहन पर समीक्षा अवधि के दौरान हुए प्रमुख घटनाक्रम प्रतिस्पर्धा के मुद्दे से संबंधित हैं, जिनमें सरकारी सहायता और विश्वसनीयता विरोधी दिशानिर्देशों को संशोधित किया जा रहा है। तीसरे ऊर्जा पैकेज के पाइपलाइन परिवहन पर प्रभाव हैं जिनमें प्रबलित माल खोलना और तृतीय पक्ष पहुंच शामिल हैं। 

6.0 यूरोपीय संप्रभु ऋण संकट 

यूरोपीय सरकारी ऋण संकट ऐसी समयावधि के दौरान हुआ जिसमें अनेक यूरोपीय देशों को वित्तीय संस्थाओं के पतन, उच्च सरकारी ऋणों और सरकारी प्रतिभूतियों में तेजी से बढ़ती बॉन्ड आय प्रसार का सामना करना पड़ा। इसकी शुरुआत वर्ष 2008 में आइसलैंड के बैंकिंग तंत्र के पतन के साथ हुई, और फिर 2009 के दौरान यह पहले यूनान, आयरलैंड और पुर्तगाल में फैला। इसका परिणाम यूरोपीय व्यापारों और अर्थव्यवस्थाओं के लिए विश्वास के संकट में हुआ।  

वर्ष 2009 के अंत तक, जब यूनान, स्पेन, आयरलैंड, पुर्तगाल और सायप्रस जैसे यूरो क्षेत्र के परिधीय देश अपने सरकारी ऋणों को चुकाने में असफल हुए, या अपनी संकटग्रस्त बैंकों को यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी), अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष आईएमएफ), और यूरोपीय वित्तीय स्थिरता सुविधा (ईएफएसएफ) जैसी तृतीय पक्ष वित्तीय संस्थाओं की वित्तीय सहायता के बिना संकट से बाहर निकालने में असफल हुए। 2010 में सत्रह यूरो क्षेत्र देशों ने ईएफएसएफ के निर्माण के लिए मतदान किया, विशेष रूप से यूरोपीय सरकारी ऋण संकट को संबोधित करने और सहायता करने के लिए।  

सरकारी ऋण संकट को बढ़ाने में योगदान देने वाले कुछ कारणों में 2007-2008 का वित्तीय संकट, 2008-2012 की महामंदी शामिल हैं, साथ ही क्योंकि अनेक देशों में रियल एस्टेट बाजार संकट और अचल संपत्ति खदबदाने लगा है और सरकारी व्ययों और राजस्वों के संबंध में उपरोल्लिखित देशों की वित्तीय नीतियों ने भी इसमें योगदान दिया है। इसका समापन वर्ष 2009 में तब हुआ जब यूनान ने यह उजागर किया कि उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने अपने बजटीय घाटे को काफी कम करके प्रदर्शित किया था, जो यूरोपीय संघ की नीति का उल्लंघन तो था ही इसके कारण राजनीतिक और वित्तीय संसर्ग से यूरो के पतन का भी भय पैदा हो गया।  

वर्ष 2012 में अमेरिकी कांग्रेस के लिए निर्मित एक रिपोर्ट इसका संक्षेप निम्नानुसार करती हैः ‘‘यूरो क्षेत्र ऋण संकट की शुरुआत वर्ष 2009 के उत्तरार्ध में हुई, जब यूनान की एक नई सरकार ने यह बात उजागर की कि पूर्ववर्ती सरकारें सरकारी बजट के आंकड़ों की गलत रिपोर्ट देती रही थीं। अपेक्षा से कहीं उच्च निवेशकों के स्तरों ने निवेशकों के विश्वास को नष्ट कर दिया था, जिसके कारण बॉन्ड प्रसार अरक्षणीय स्तर तक बढ़ गए। शीघ्र इस इस बात से भय व्याप्त हो गया कि अनेक यूरो क्षेत्र देशों की वित्तीय स्थिति और ऋण स्तर अरक्षणीय हो गए थे।‘‘ 

आयरलैंड़ः ग्रीस के विपरीत, संकट शुरू होने से पहले आयरलैंड का बजट काफी संतुलित था। हालांकि वहां भी एक विशाल रियल एस्टेट बुलबुला था, जो शायद अमेरिका से भी बडा था। संकट से पहले उसकी अर्थव्यवस्था सामान्य अर्थव्यवस्थाओं के 10 प्रतिशत से भी कम की तुलना में 25 प्रतिशत गृह निर्माण में शामिल थी सितंबर 2008 में जब संकट शुरू हुआ, तो यह बुलबुला फूट गया, और बाजारों को शांत रखने के प्रयास में सरकार ने घोषणा की कि वह सभी बैंकों के नुकसान को आवरण प्रदान करेगी। यह वादा विनाशकारी साबित हुआ, क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र का फटना जारी रहा। जनवरी 2009 में, आयरलैंड़ ने अपने प्रमुख बैंकों में से एक का राष्ट्रीयकरण कर दिया, और अक्टूबर 2010 में कुछ अन्य बैंकों के लिए एक बेलआउट योजना आयोजित की। इस बिंदु पर उसका बजट घाटा बढ़ कर सकल घरेलू उत्पाद के 32 प्रतिशत के बराबर हो गया था। उसके अगले महीने, यूरोपीय संघ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने आयरलैंड के लिए 90 बिलियन डॉलर के खैरात की शुरुआत की। इस पिछले मार्च में सरकार सत्ता से बाहर हो गई, और नई सरकार ने यह संकल्प लिया कि वह यूरोपीय संघ/अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के बेलआउट के तहत आवश्यक ब्याज के भुगतान में कमी करेगी, एक ऐसा वादा, जिसे उन्होंने जुलाई में पूरा किया। 12 जुलाई को मूडीस ने आयरलैंड के ऋणों को कचरा दर्जे तक अवनत कर दिया।  

पुर्तगालः आयरलैंड और ग्रीस के विपरीत, आर्थिक संकट के पहले दौर के दौरान पुर्तगाल का वापसी का रिकॉर्ड़ सर्वश्रेष्ठ में से एक था। हालांकि ग्रीक ऋण संकट की घबराहट के कारण इस देश को भी 2009 के अंत में और 2010 की शुरुआत में ऋण संकट ने घेर लिया, जो व्यापक स्तर पर इस चिंता के कारण हुआ कि दीर्घकाल में यह देश वृद्धि नहीं कर पायेगा, साथ ही बढते घाटे की भविष्यवाणी भी इसका एक कारण था। इसकी उत्पादकता औसत से कम है, और इसकी न्यायिक संरचना जिसे कुछ लोग कालग्रस्त मानते हैं, और कठोर श्रम बाजार विनियम, जिसके बारे में कुछ लोगों का विचार है कि वे विकास को बाधित करते हैं। नवंबर 2010 तक, बाजार ने ब्याज दरों को इस सीमा तक ऊपर धकेल दिया था, कि देश पर बेलआउट के लिए अनुरोध करने का दबाव बढ रहा था। चिंता तब और अधिक बढ गई, जब मार्च में बजट कटौतियों को पारित करने में संसद विफल रही, और यूरोपीय नेताओं ने एक संभावित बचाव पैकेज पर विचार के लिए बैठक की। अंत में अप्रैल में पुर्तगाली सरकार ने एक यूरोपीय संघ खैरात के लिए अनुरोध किया। यह मई में मंजूर हुआ, और यह पैकेज कुल 116 बिलियन डॉलर का था। पुर्तगाल की मध्य-दक्षिणपंथी पार्टी चुनावों में सत्ता में आई, और वह बेलआउट के प्रति प्रतिबद्ध है।  

6.1 यूनान, आयरलैंड और पुर्तगाल का मामला  

वर्ष 2010 के प्रारंभ में इन कठिन घटनाओं का प्रतिबिंबन यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल और स्पेन, और सर्वाधिक उल्लेखनीय रूप से जर्मनी जैसे यूरो क्षेत्र के परिधीय प्रभावित देशों के बीच सरकारी बॉन्ड्स के प्रतिफल पर बढ़ते प्रसार में हुआ। वर्ष 2010 के प्रारंभ में यूनान का प्रतिफल भिन्न हो गया जब यूनान को मई 2010 में यूरो क्षेत्र की सहायता की आवश्यकता महसूस हुई। यूनान को अगले पांच वर्षों के दौरान यूरोपीय संघ से दो खैरातें मिलीं जिस अवधि के दौरान ने यूरोपीय संघ के अधिदेश के अनुसार मितव्ययिता के उपाय अपनाये जबकि वह और अधिक आर्थिक मंदी और सामाजिक अशांति का सामना करता रहा। जून 2015 में विभाजित राजनीतिक और वित्तीय नेतृत्व और लगातार जारी मंदी के साथ यूनान सरकारी व्यतिक्रम का सामना कर रहा था। हालांकि 5 जुलाई 2015 को यूनान के लोगों ने यूरोपीय संघ के और अधिक मितव्ययिता के उपायों के विरुद्ध मतदान किया, जिसमे संभावना यह है कि यूनान पूरी तरह से यूरोपीय मौद्रिक संघ को छोड़ देगा। यूरोपीय मौद्रिक संघ से एक देश का बाहर जाना अभूतपूर्व है और इसके यूनान की अर्थव्यवस्था पर अनुमानित प्रभाव हो सकते हैं यदि उनकी मुद्रा वापस ड्राचमा की श्रृंखला में आ जाती है तो शायद वह एक पूर्ण आर्थिक पतन से आश्चर्यजनक वापसी भी कर सकती है।  

6.2 अब आगे क्या  

नवंबर 2010 में बेलआउट की आवश्यकता में आयरलैंड भी यूनान के ही रास्ते अग्रसर हुआ, जबकि मई 2011 में पुर्तगाल भी इसी राह पर अग्रसर हुआ। इटली और स्पेन भी भेद्य थे, जबकि स्पेन को सायप्रस के साथ ही जून 2012 में आधिकारिक सहायता की आवश्यकता हुई। वर्ष 2014 तक अनेक वित्तीय सुधारों, घरेलू मितव्ययिता उपायों और अन्य विशिष्ट आर्थिक कारकों  के चलते आयरलैंड, पुर्तगाल और स्पेन सफलतापूर्वक अपने बेलआउट कार्यक्रमों से बाहर निकल पाये, और बाद में उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ी। पूर्ण आर्थिक पुनःप्राप्ति का मार्ग अभी भी जारी है। सायप्रस ने भी धीमी परंतु स्थिर निरंतर पुनःप्राप्ति का प्रदर्शन किया है और अब तक किसी अगले वित्तीय संकट से स्वयं को बचाये रखा है। 

यूरो क्षेत्र पर पडने वाले प्रभावः अनेक विशेषज्ञों का तर्क है कि यूरोपीय संघ का मॉडल, जिसने मौद्रिक नीति को यूरोपीय केंद्रीय बैंक में संकेंद्रित कर दिया है, जबकि वित्तीय नीति को व्यक्तिगत देशों के लिए छोड दिया है, यह स्वाभाविक रूप से धारणीय नहीं है, क्योंकि यह सदस्य देशों को मौद्रिक नीति के लचीलेपन से वंचित करता है, जिनके माध्यम से वे वापसी का प्रयास कर पाएं। यह घाटे द्वारा वित्तपोषित वित्तीय उत्तेजना को भी कठिन बना देता है, क्योंकि मौद्रिक नीति का उपयोग उधार की लागतों को कम रखने के लिए किया जा सकता है। जब अलग-अलग देशों का मंदी पर अलग-अलग प्रभाव पडता है, जैसा कि अभी हुआ है, तो एकी.त मौद्रिक प्राधिकरण इस प्रकार की कार्रवाई करेगा, जो कुछ देशों की दृष्टि से लाभदायक होगी, परंतु कुछ अन्य देशों के लिए उतनी लाभदायक नहीं होगी। यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने मुद्रा प्रसार रोकने की नीति का पालन किया है, जिसके कारण शायद जर्मनी जैसे उच्च विकास दर देशों में मुद्रास्फीति नियंत्रण में रह सकती है, परंतु शायद यही नीति ग्रीस, स्पेन और अन्य लडखडाती अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की स्थिति को और अधिक बिगाड देगी। 

अधिकांश लोगों को लगता है कि दो में से एक विकल्प आगे आने की संभावना है। पहला, एह कि यूरो क्षेत्र को अपने ग्रीस, स्पेन और इटली जैसे सदस्यों को खोना पड सकता है, या तो उनके द्वारा यूरो क्षेत्र को छोडने से या इनमें से किसी भी एक द्वारा व्यतिक्रम के कारण, जो संपूर्ण मौद्रिक संघ को उधेड कर रख देगा।  बर्कले के अर्थशास्त्री बैरी ऐचेंग्रीन ने कहा है कि इसके कारण विशाल बैंक धावे होंगे और यह ष्सभी वित्तीय संकटों की जननीष् होगा। एक अन्य विकल्प है एक अधिक सन्निकट यूरोपीय वित्तीय संघ, ताकि वित्तीय नीति को महाद्वीपीय स्तर पर उतनी ही अच्छी तरह से समन्वित किया जा सकेगा जितनी अच्छी तरह को मौद्रिक नीति को किया जाता है, जो यूरोपीय संघ को लगभग सार्वभौम राज्य बनने के निकट ले आएगा।  

अमेरिका के लिए इसके क्या मायने हैंः अमेरिकी वित्तीय संस्थाओं में काफी मात्रा में यूरोपीय वित्तीय परिसंपत्तियां हैं, और यदि यूरो क्षेत्र एक संपूर्ण संकट की स्थिति में प्रवेश कर जाता है, तो इनके मूल्य बोझ बन जायेंगे। उदाहरणार्थ, यूरोपीय ऋण संपूर्ण मुद्रा बाजार निधियों के लगभग आधे भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपरोल्लिखित तथाकथित पीआईआईजीएस देशों को सीधा अनावरण सीमित है, परंतु फ्रांस और जर्मनी को अकनवकरण अधिक है, और उदाहरण के लिए यदि मान लिया जाए कि फ्रांस का इटली की वित्तीय व्यवस्था से गहरा जुडाव है, तो इटली का एक व्यतिक्रम फ्रांस, और उसके साथ ही अमेरिका को भी निचोड देगा। 

इस संकट का परिणाम भारी व्यय कटौती और कम उधार में हो रहा है, जो अमेरिका के यूरोप को होने वाले निर्यातों को चोट पहुंचाते हैं, जिससे अमेरिका की आर्थिक बेहतरी भी खतरे में पड़ती जा रही है।  

अंतिम विश्लेषण में, यूरोपीय एकीकरण प्रयोग की ईमानदारी की गहराई को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस प्रकार के विविध संस्कृतियों और भाषाओँ वाले देशों ने शांतिपूर्ण तरीके से एकसाथ आने का प्रयास किया है। इस प्रकार का प्रयोग निश्चित रूप से भविष्य के एक ‘‘विश्व सरकार‘‘ के लिए आदर्श हो सकता है।  

यूरोपीय ऋण संकट की शुरुआत को अक्टूबर 2009 में देखा जा सकता है, जब यूनान की नई सरकार ने यह स्वीकार किया कि बजट घाटा पिछली सरकार के अनुमानों से दुगना होगा, जो सकल घरेलू उत्पाद के 12 प्रतिशत के स्तर को छू लेगा। वर्षों के अनियंत्रित व्यय और अस्तित्वहीन वित्तीय सुधारों के बाद यूनान ऐसा पहला देश बना जो आर्थिक दबाव के आगे पूरी तरह से टूट गया।  

2007 में सब कुछ ठीकठाक चलता प्रतीत हो रहा था। यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन काफी अच्छा होता प्रतीत हो रहा था। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो रही थी, और मुद्रास्फीति भी कम थी। हालांकि सार्वजनिक ऋण थोडे़ उच्च स्तर पर था, परंतु यह मानते हुए कि आर्थिक विकास होता रहेगा, इसे चिंताजनक नहीं माना गया। इस दृष्टि से केवल यूनान ही इकलौता चिंताजनक कारक था। सार्वजनिक ऋण की दृष्टि से केवल यूनान ही चिंता का कारण था। हालांकि अमेरिका में शुरू हुए ‘‘सबप्राइम संकट‘‘ ने घटनाओं की एक श्रृंखला की शुरुआत कर दी।


बैंक घाटेः
साख संकुचन के दौरान अनेक यूरोपीय वाणिज्यिक बैंकों को अपना पैसा अमेरिकी अप्राप्य ऋणों में किये निवेश के कारण खोना पड़ा (उदाहरणार्थ सबप्राइम बंधक ऋण गट्ठे)।

मंदीः साख संकुचन के कारण बैंकों की ऋण देयताओं में और निवेश में कमी हुई य इसके कारण गंभीर मंदी की स्थिति निर्मित हो गई (आर्थिक मंदी)।

मकानों की कीमतों में गिरावटः मंदी और साख संकुचन के कारण यूरोपीय मकानों की कीमतों में भी गिरावट हुई, जिसके कारण अनेक यूरोपीय बैंकों का घाटा बढ़ गया। 

सरकारी ऋण में वृद्धिः सरकारी ऋणों का दोहरा प्रभाव पड़ा। मंदी के कारण कर राजस्वों में कमी हुई, जिसके कारण सरकार की वित्तीय स्थिति गड़बड़ हो गई। मंदी के दौरान सरकार को बेरोजगारी लाभों में व्यय को बढ़ाना पड़ता है। इसके कारण सरकारी ऋणों में तेजी से वृद्धि हुई। 

 ऋण से सकल घरेलू उत्पाद के अनुपातों में वृद्धिः नियंत्रणीय ऋण के स्तरों का सबसे उपयोगी मार्गदर्शक सकल घरेलू उत्पाद का ऋण के साथ अनुपात होता है। अतः सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट और ऋण में वृद्धि का अर्थ है कि यह तेजी से बढेगा। उदाहरणार्थ, 2007 और 2001 के बीच यूके का सार्वजनिक क्षेत्र का ऋण 36 प्रतिशत के स्तर से लगभग दुगना होकर 61 प्रतिशत तक पहुंच गया (यूके ऋण - और इसमें वित्तीय क्षेत्र की खैरात शामिल नहीं है)। 2007 और 2010 के बीच आयरिश सरकार का ऋण  सकल घरेलू उत्पाद के 27 प्रतिशत से बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 90 प्रतिशत हो गया। 

 बाजार यह मान कर चल रहे थे कि यूरो क्षेत्र का ऋण सुरक्षित थाः निवेशक यह मान कर चल रहे थे कि सभी यूरो क्षेत्र सदस्यों के लिए समर्थन के साथ यह प्रत्याभूति निहित थी कि सभी यूरो क्षेत्र ऋण सुरक्षित होंगे, और इनमें व्यतिक्रम का किसी भी प्रकार का खतरा नहीं था। अतः हालांकि कुछ देशों का ऋण का स्तर काफी उच्च था (उदाहरणार्थ, ग्रीस, इटली), फिर भी निवेशक कम ब्याज दरों के साथ भी अपने ऋणों को बनाये रखने के प्रति इच्छुक थे। एक प्रकार से शायद इन्ही कारणों ने ग्रीस जैसे देशों को अपने ऋण स्तरों को गंभीरता से लेने के प्रति हतोत्साहित किया (वे झूठी सुरक्षा की भावना से ग्रसित थे)।

बढ़ती हुई संदेह की भावनाः साख संकुचन के कारण निवेशकों की भावनाएं बदल गईं। वे संदेही बन गए, और यूरोपीय वित्तों पर प्रश्न उठाने लगे। ग्रीस को देखते हुए उन्हें लगने लगा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए सार्वजनिक ऋणों का आकार काफी बडा था। लोगों ने ग्रीक बांड्स को बेचना शुरू दिया, जिसके कारण ब्याज की दरों में वृद्धि हो गई। 

कोई रणनीति नहींः दुर्भाग्य से ऋण स्तरों पर अचानक खलबली की इस स्थिति से निपटने के लिए यूरोपीय संघ के पास कोई रणनीति नहीं थी। यह स्पष्ट हो गया कि जर्मन करदाता ग्रीक बांड्स का निम्नांकन करने के लिए तैयार नहीं था। किसी प्रकार का वित्तीय संघ मौजूद नहीं था। यूरोपीय खैरतों ने कभी भी समस्याओं से निपटने पर विचार नहीं किया। अतः बाजारों को यह अंदाज हो गया कि वास्तव में रउरो ऋण प्रतिभूत नहीं था। ऋण व्यतिक्रम का वास्तविक खतरा मौजूद था। इसके कारण बांड्स का विक्रय बढ़ गया - जिसके परिणामस्वरूप बांड्स का अधिक प्रतिफल मिलना शुरू हो गया। 

कोई अंतिम ऋणदाता नहीं थाः आमतौर पर जब निवेशक बाँड्स (बंधकपत्र) का विक्रय करते हैं, और ‘‘ऋण का रोल ओवर‘‘ कठिन हो जाता है, तो उस देश की केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप करती है, और सरकारी बाँड्स का क्रय करती है। इससे बाजार में विश्वसनीयता निर्मित होती है, तरलता का अभाव नहीं होता, बांड दरें नीची रहती हैं, और भगदड़ नहीं मचती। परंतु यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने बाजारों को यह स्पष्ट कर दिया था, कि वह यह नहीं करेगी। यूरो क्षेत्र के देशों के लिए अंतिम उपाय का कोई ऋणदाता नहीं है। बाजारों को यह पसंद नहीं है, क्योंकि यह तरलता के संकट को इस हद तक बढा देता है कि वास्तव में व्यतिक्रम की स्थिति निर्मित हो जाती है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक अंतिम उपाय के ऋणदाता का कार्य करती है।  

अब यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं दुविधा का सामना कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ऋण संकट से निपटने के लिए दो .ष्टिकोणों का सहारा लिया जा सकता है; सरकारी व्यय में कटौती की जाए, या सरकारी व्ययों में कटौती नहीं की जाए। परंतु ये दोनों समाधान अपने साथ अपनी स्वयं की समस्याएं लेकर आते हैं। 

व्यय में कटौती की जाएः इसका अर्थ यह होगा कि बेरोज़गारी में वृद्धि होगी, क्योंकि सरकारी व्यय ही अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा रोज़गार निर्माता होता है। स्पेन में बेरोजगारी की दर पहले ही 20 प्रतिशत से अधिक है। साथ ही सरकार द्वारा व्यय में कटौती करने से मजदूरी में और भी अधिक कमी आ जाएगी। साथ ही मजदूरी में कमी लोगों की ऋणों के भुगतान की क्षमता को और भी अधिक कठिन बना देगी, जिसका अर्थ यह होगा कि लोग अपने व्ययों में और अधिक कटौती करेंगे, या ऋणों का भुगतान बंद कर देंगे। और मजदूरी में कमी का परिणाम निर्यातों में तेजी से वृद्धि में भी नहीं होगा, यदि सभी यूरोपीय निर्यात बाजार भी मंदी की चपेट में होंगे। हडताल और विरोध प्रदर्शनों में वृद्धि हो जाएगी।, श्रम संगठनों की सक्रियता बढ़ जाएगी जो वित्तीय बाजारों को अधिक बेचौन कर देंगी। 

व्ययों में कटौती नहीं की जाएः इसके साथ संपूर्ण वित्तीय पतन का विशाल खतरा जुड़ा हुआ है। आर्थिक गतिहीनता और उच्च बेरोजगारी के कारण 2008 से सार्वजनिक ऋण का विस्फोट हुआ है। शायद अन्य यूरोपीय देशों के पास किसी देश को संकट से बाहर निकालने के लिए आवश्यक पर्याप्त वित्तीय संसाधन  हों। यूरोपीय केंद्रीय बैंक का कहना है कि उसके नियम उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं देते। प्रश्न यह उठता है, कि सरकार के व्यय में वृद्धि करने के लिए आवश्यक धन आखिर कहाँ से आएगा?

1997 में स्थिरता और विकास संधि के तहत यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं इस बात पर सहमत हुईं थीं कि वे सरकारी उधार को सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत तक सीमित रखेंगी। हालांकि स्पेन के अतिरिक्त कोई भी अन्य देश इस सीमा का पालन नहीं कर पाया। इटली इनमें से सबसे बडा अपराधी था। उसने नियमित रूप से 3 प्रतिशत उधार की इस सीमा को तोडा परंतु वास्तव में जर्मनी- इटली के साथ - 3 प्रतिशत की सीमा को तोडने वाला पहला बडा देश था। इसके बाद फ्रांस का क्रमांक आता था। 2008 के वित्तीय संकट तक स्पेन ने 3 प्रतिशत की ऋण सीमा को बनाये रखा। इन चारों में से अर्थव्यवस्था के आकार की तुलना में स्पेन की सरकार के ऋण का आकार भी सबसे छोटा है। ग्रीस अपने आप में एक अलग ही श्रेणी में है। उसने कभी भी 3 प्रतिशत के लक्ष्य का पालन नहीं किया, परंतु अपने उधार के आंकडों में हेरफेर करता रहा ताकि वे बेहतर दिखें, यही कारण था कि उसे यूरो क्षेत्र में प्रवेश मिला। 

2012 में जर्मनी के आग्रह पर यूरोपीय संघ के देश अपनी सरकारों के ‘‘संरचनात्मक‘‘ उधार (अर्थात, मंदी के कारण लिए गए किसी ऋण को छोड कर) को उनकी अर्थव्यवस्था के वार्षिक उत्पादन के केवल 0.5 प्रतिशत के स्तर तक सीमित करने पर सहमत हुए। 

हालांकि यूरो क्षेत्र संकट आज भी जारी है, और अपने व्यय में वृद्धि नहीं करने के जर्मनी के निर्णय के कारण वापसी की आशा अत्यंत क्षीण है। 

भारत पर प्रभाव 

यह स्थिति प्रयासरत भारतीय अर्थव्यवस्था की दृष्टि से बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती, और हमारी अर्थव्यवस्था पर इसके निम्न प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं 

  1. वस्त्रोद्योग जैसे भारत के श्रम सघन क्षेत्रों में उत्पादन में कमी 
  2. बढे़ हुए व्यापार घाटे के कारण चालू खाता घाटा उच्च स्तर पर रहेगा 
  3. यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौते में और अधिक विलंब होगा 

 भारत के निर्यात में यूरोपीय संघ देशों का हिस्सा 18.6 प्रतिशत है, और यह हमारे निर्यातों का दूसरा सबसे बडा गंतव्य है। यूरो क्षेत्र में जारी अस्थिरता का हमारे निर्यातों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ही। यूरो क्षेत्र संकट ने भारत के शेयर बाजार को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, क्योंकि उनकी ओर से संस्थागत विदेशी निवेश की भारी निकासी हुई है। भारत आर्थिक विकास के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की ओर देख रहा है। गहराते यूरो क्षेत्र संकट में इस योजना को नष्ट करने की क्षमता है।




 

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exchange,9,Formal and informal economy,13,Fossil fuels,14,Fundamentals of the Indian Economy,10,Games SportsEntertainment,1,GDP GNP PPP etc,12,GDP-GNP PPP etc,1,GDP-GNP-PPP etc,20,Gender inequality,9,Geography,10,Geography and Geology,2,Global trade,22,Global treaties,2,Global warming,146,Goverment decisions,4,Governance and Institution,2,Governance and Institutions,773,Governance and Schemes,221,Governane and Institutions,1,Government decisions,226,Government Finances,2,Government Politics,1,Government schemes,358,GS I,93,GS II,66,GS III,38,GS IV,23,GST,8,Habitat destruction,5,Headlines,22,Health and medicine,1,Health and medicine,56,Healtha and Medicine,1,Healthcare,1,Healthcare and Medicine,98,Higher education,12,Hindu individual editorials,54,Hinduism,9,History,216,Honours and Awards,1,Human rights,249,IMF-WB-WTO-WHO-UNSC etc,2,Immigration,6,Immigration and citizenship,1,Important Concepts,68,Important Concepts.UPSC Mains GS III,3,Important Dates,1,Important Days,35,Important exam concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati Raj,1,Institutionsandbodies,1,Instiutions and Bodies,1,Intelligence and security,1,International Institutions,10,international relations,2,Internet,11,Inventions and discoveries,10,Irrigation Agriculture Crops,1,Issues on Environmental Ecology,3,IT and Computers,23,Italy,1,January 2020,26,January 2021,25,July 2020,5,July 2021,207,June,1,June 2020,45,June 2021,369,June-2021,1,Juridprudence,2,Jurisprudence,91,Jurisprudence Governance and Institutions,1,Land reforms and productivity,15,Latest Current Affairs,1136,Law and order,45,Legislature,1,Logical Reasoning,9,Major events in World History,16,March 2020,24,March 2021,23,Markets,182,Maths Theory Booklet,14,May 2020,24,May 2021,25,Meetings and Summits,27,Mercantilism,1,Military and defence alliances,5,Military technology,8,Miscellaneous,454,Modern History,15,Modern historym,1,Modern technologies,42,Monetary and financial policies,20,monsoon and climate change,1,Myanmar,1,Nanotechnology,2,Nationalism and protectionism,17,Natural 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Nationalism,26,Racism,1,Rainfall,1,Rainfall and Monsoon,5,RBI,73,Reformers,3,Regional conflicts,1,Regional Conflicts,79,Regional Economy,16,Regional leaders,43,Regional leaders.UPSC Mains GS II,1,Regional Politics,149,Regional Politics – Regional leaders,1,Regionalism and nationalism,1,Regulator bodies,1,Regulatory bodies,63,Religion,44,Religion – Hinduism,1,Renewable energy,4,Reports,102,Reports and Rankings,119,Reservations and affirmative,1,Reservations and affirmative action,42,Revolutionaries,1,Rights and duties,12,Roads and Railways,5,Russia,3,schemes,1,Science and Techmology,1,Science and Technlogy,1,Science and Technology,819,Science and Tehcnology,1,Sciene and Technology,1,Scientists and thinkers,1,Separatism and insurgencies,2,September 2020,26,September 2021,444,SociaI Issues,1,Social Issue,2,Social issues,1308,Social media,3,South Asia,10,Space technology,70,Startups and entrepreneurship,1,Statistics,7,Study material,280,Super powers,7,Super-powers,24,TAP 2020-21 Sessions,3,Taxation,39,Taxation and revenues,23,Technology and environmental issues in India,16,Telecom,3,Terroris,1,Terrorism,103,Terrorist organisations and leaders,1,Terrorist acts,10,Terrorist acts and leaders,1,Terrorist organisations and leaders,14,Terrorist organizations and leaders,1,The Hindu editorials analysis,58,Tournaments,1,Tournaments and competitions,5,Trade barriers,3,Trade blocs,2,Treaties and Alliances,1,Treaties and Protocols,43,Trivia and Miscalleneous,1,Trivia and miscellaneous,43,UK,1,UN,114,Union budget,20,United Nations,6,UPSC Mains GS I,584,UPSC Mains GS II,3969,UPSC Mains GS III,3071,UPSC Mains GS IV,191,US,63,USA,3,Warfare,20,World and Indian Geography,24,World Economy,404,World figures,39,World Geography,23,World History,21,World Poilitics,1,World Politics,612,World Politics.UPSC Mains GS II,1,WTO,1,WTO and regional pacts,4,अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं,10,गणित सिद्धान्त पुस्तिका,13,तार्किक कौशल,10,निर्णय क्षमता,2,नैतिकता और मौलिकता,24,प्रौद्योगिकी पर्यावरण मुद्दे,15,बोधगम्यता के मूल तत्व,2,भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास,47,भारत का स्वतंत्रता संघर्ष,19,भारत में कला वास्तुकला एवं साहित्य,11,भारत में शासन,18,भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें,10,भारतीय संविधान,14,महत्वपूर्ण हस्तियां,6,यूपीएससी मुख्य परीक्षा,91,यूपीएससी मुख्य परीक्षा जीएस,117,यूरोपीय,6,विश्व इतिहास की मुख्य घटनाएं,16,विश्व एवं भारतीय भूगोल,24,स्टडी मटेरियल,266,स्वतंत्रता-पश्चात् भारत,15,
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PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 5
यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 5
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
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