यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 4

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विश्व व्यापार संगठन

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1.0 प्रस्तावना 

विष्व व्यापार संगठन वैष्विक बहुपक्षीय व्यापार विनियमन करने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसके 164 सदस्य देष हैं, व शामिल होने के कई अन्य देश भी इच्छुक हैं, अतः सदस्यता के लिए आवेदन कर रहे हैं। इसका प्रमुख कार्य यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न देशों के बीच जारी व्यापार जहां तक हो सके सुचारू ढंग से, उम्मीद के अनुसार और मुक्त रूप से चल सके। यह एक सभा की तरह कार्य करता है, जिसमें सदस्यता ग्रहण करने के लिए विभिन्न देशों की सरकारें आवेदन करती हैं। यदि उनका आवेदन स्वीकार हो जाता है तो सदस्य देश इसके नियमों का अनुसरण करने की स्वीकृति प्रदान करते हैं और अपने विवाद स्वीकृत मार्गों से निपटाते हैं। अधिकांश सभाओं की तरह ही इसके सदस्यों को भी उनकी सदस्यता पुरस्कार भी प्रदान करती है, और उनपर कुछ अनिवार्यताएं भी लागू होती हैं। विश्व व्यापार संगठन के मामले में सदस्य देशों को इससे मिलने वाले लाभ हैं उदारीकृत व्यापार से मिलने वाले लाभ; जबकि अनिवार्यताओं में व्यवहार की कुछ संहिताएं हैं जिनका सदस्य देशों को पालन करना होता है, जो मिलने वाले लाभों के प्रतिफल के रूप में स्वीकार्य माने जाते हैं। 2015 में कज़ाकस्तान व सेषेल्स भी सदस्य बन गये। 

2.0 उत्पत्ति

शुल्क और व्यापार पर आम सहमति (जीएटीटी) का विकास 1947 में क्यूबा के हवाना में संयुक्त राष्ट्र के व्यापार एवं रोजगार पर हुए सम्मेलन के दौरान हुआ था। यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता था, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों को निर्दिष्ट किया गया था, और इसी में इस समझौते को शासित करने के लिए अनौपचारिक संरचना की निर्मिति की गई थी। समझौते की इबारत की कानून के साथ तुलना की जा सकती है, और इसकी संरचना और विवाद निराकरण प्रक्रिया की संसद और न्यायालयों के मिश्रण से तुलना की जा सकती है। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में शुल्क एवं व्यापार पर आम सहमति (जीएटीटी) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। 

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विश्व व्यापार संगठन बातचीत के आठवें चक्र का परिणाम था, जिसे उरुग्वे चक्र (1986-93) कहा जाता है। इसे उस देश के लिए नामित किया गया था, जिसने सम्मेलन (पुंटा डेल एस्टे में) का आयोजन किया था, जिसमें आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया था। 1980 के दशक तक विश्व व्यापार में ऐसी अनेक समस्याएं थीं जिनका समाधान किया जाना थाः कृषि जैसे कुछ क्षेत्र थे जो जीएटीटी के नियमों के क्षेत्राधिकार से बाहर रखे गए थे, और वस्त्रोद्योग जैसे कुछ ऐसे क्षेत्र भी थे जो अन्य समझौतों के तहत चलाए किये जाते थे; सेवा क्षेत्र और बौद्धिक संपत्ति के व्यापार व्यापक रूप से समझौते के क्षेत्राधिकार से बाहर थे; गैर-शुल्क बाधाएं और कुछ नए प्रकार के संरक्षणवाद पैदा हो रहे थे; और सदस्यों की संख्या 90 से अधिक हो गई थी, जिसके कारण इस संगठन में सुधार करना आवश्यक होता जा रहा था। 

उरुग्वे चक्र बातचीत जटिल थी, जिसे जीएटीटी में विद्यमान अपर्याप्तताओं के समाधान ढूंढ़ने के लिए आयोजित किया गया था। अनेक बार बातचीत अटक भी गई थी। दिसंबर 1991 में जीएटीटी के सचिवालय ने एक महत्वाकांक्षी मसौदा समझौता तैयार किया था, परंतु कृषि के मुद्दों पर अमेरिका और यूरोपीय समुदाय के बीच मामला हल होने के बाद ही एक अंतिम समझौता दिसंबर 1993 में तैयार किया जा सका था। अप्रैल 1994 में मर्राकेश में, 111 देशों के प्रतिनिधियों ने समझौते के समावेश के अंतिम अधिनियम पर हस्ताक्षर किये, जो जनवरी 1995 से प्रभावी हुआ, जब विश्व व्यापार संगठन की शुरुआत हुई।

अब विश्व व्यापार संगठन में अधिक सदस्य हैं (यह लिखे जाने तक 164), अधिक गतिविधियों को समाविष्ट करने वाले नियम हैं, और सदस्य देशों के बीच विवादों को सुलझाने के अधिक प्रभावी साधन उपलब्ध हैं। इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित है। 

जीएटीटी और विश्व व्यापार संगठन के बीच मुख्य अंतर विश्व व्यापार संगठन द्वारा निम्न प्रकार से वर्णित किये गए हैंः

  1. जीएटीटी अनंतिम था। इसके अनुबंधित पक्षों ने कभी भी सामान्य अनुबंध की प्रतिपुष्टि नहीं की थी, और इसमें किसी भी संगठन की निर्मिति का प्रावधान नहीं किया गया था। 
  2. विश्व व्यापार संगठन और इसके समझौते स्थायी हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में विश्व व्यापार संगठन का एक मजबूत कानूनी आधार है, क्योंकि इसके सभी सदस्य देशों ने समझौते की पुष्टि की है, और ये समझौते ही बताते हैं कि विश्व व्यापार संगठन किस प्रकार से कार्य करेगा। 
  3. विश्व व्यापार संगठन में ‘‘सदस्य‘‘ हैं, जबकि जीएटीटी में ‘‘अनुबंधित पक्ष’’ थे, जो इस बात को रेखांकित करते थे कि आधिकारिक रूप से जीएटीटी एक कानूनी दस्तावेज था। 
  4. जीएटीटी में केवल वस्तुओं का व्यापार समाविष्ट था, जबकि विश्व व्यापार संगठन में वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं और बौद्धिक संपत्ति का व्यापार भी षामिल है। 
  5. पुरानी जीएटीटी व्यवस्था की तुलना में विश्व व्यापार संगठन का विवाद निवारण तंत्र अधिक त्वरित और स्वचालित है। इसके निर्णय को रोक नहीं जा सकता। 
  6. विश्व व्यापार संगठन ने एक व्यापार नीति समीक्षा पद्धति की शुरुआत की है, जो सदस्य देशों की व्यापार नीति और व्यवहार में अधिक पारदर्शिता लाती है। 

3.0 संरचना

विश्व व्यापार संगठन की संरचना में इसकी सर्वोच्च शक्ति का वर्चस्व होता है, जिसे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन कहते हैं, जिसमें विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं। यह अनिवार्य है कि इसकी दो वर्ष में एक बार बैठक अवश्य हो, और यह किन्हीं भी परस्पर व्यापार समझौतों के तहत सभी मामलों पर निर्णय ले सकता है। 

हालांकि विश्व व्यापार संगठन के दैनंदिन कार्य अनेक निकायों के तहत विभक्त होते है; मुख्य रूप से सामान्य परिषद, जो स्वयं भी सभी सदस्य देशों से बनी होती है, जिसे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को अपने कार्यों का ब्यौरा देना होता है। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की ओर से अपने कार्यों को करने के साथ-साथ, सामान्य परिषद दो प्रकार से आयोजित की जाती है - विवाद निवारण प्रक्रिया की देखरेख के लिए एक विवाद निवारण निकाय के रूप में, और व्यापार नीति समीक्षा निकाय के रूप में, जो नियमित रूप से व्यक्तिगत सदस्य देशों की व्यापार नीतियों की समीक्षा करती है।  

सामान्य परिषद अपनी जिम्मेदारियां तीन अन्य प्रमुख निकायों को प्रत्यायोजित करती है - वस्तु व्यापार परिषद, सेवा व्यापार परिषद और बौद्धिक संपत्ति से संबंधित पहलुओं के लिए परिषद। वस्तु व्यापार परिषद सभी समझौतों (विश्व व्यापार संगठन समझौते का पूरक अंश 1 ए) के क्रियान्वयन और कार्यवाही पर नजर रखती है, जिसमें वस्तुओं का व्यापार समाविष्ट होता है, हालांकि वर्तमान में इनमें से अनेक समझौतों अपने विशिष्ट निगरानी निकाय हैं। 

बाद की दो परिषदों की अपने-अपने विश्व व्यापार संगठन समझौतों की जिम्मेदारी है। (पूरक अंश 1 बी और 1सी), और ये स्वयं अपने सहयोगी निकायों की स्थापना कर सकती हैं। 

मंत्रिस्तरीय परिषद ने तीन अन्य निकायों की स्थापना की है, और यह सामान्य परिषद को ब्यौरा देते हैं। व्यापार और विकास समिति विकासशील देशों के मामलों से संबंधित है, और इनमें से भी विशेष रूप से ‘‘न्यूनतम विकसित‘‘ सदस्य देशों से। जीएटीटी के अनुच्छेद 12 और 18 के तहत भुगतान संतुलन समिति विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों और उन देशों के बीच सलाह के लिए जिम्मेदार है, जो व्यापार प्रतिबंधक उपाय लागू करते हैं, ताकि भुगतान संतुलन कठिनाइयों को सुलझाया जा सके। अंत में, विश्व व्यापार संगठन के वित्तपोषण और बजट संबंधी मामलों का निपटारा बजट समिति द्वारा किया जाता है। 

विश्व व्यापार संगठन के चार बहुपक्षीय समझौतों में से प्रत्येक - नागरिक विमानों के लिए, सरकारी खरीद के लिए, ड़ेयरी उत्पादों और गोजातीय मांस के लिए - अपने स्वयं के प्रबंधन निकायों की स्थापना करता है, जिन्हें सामान्य परिषद को ब्यौरा देना आवश्यक है।

3.1 विश्व व्यापार संगठन सचिवालय 

विश्व व्यापार संगठन का एक 640 कर्मियों का सचिवालय है, जिसकी अध्यक्षता महानिदेशक द्वारा की जाती है। इसके निम्नलिखित कार्य हैंः

  1. विभिन्न परिषदों, समितियों और सम्मेलनों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ यह विकासशील देशों को भी तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है 
  2. विश्व व्यापार का विश्लेषण करता है, और जनता और मीड़िया को विश्व व्यापार संगठन की गतिविधियों की जानकारी उपलब्ध कराता है 
  3. विवाद निवारण प्रक्रिया के तहत कुछ मामलों में किसी न किसी प्रकार की कानूनी सहायता उपलब्ध कराता है, और विश्व व्यापार संगठन के सदस्य बनने के लिए आवेदन करने वाली सरकारों को परामर्श और सलाह प्रदान करता है। 

अनेक विश्लेषक इस संरचना को और विश्व व्यापार संगठन को विवादों के निपटान की दृष्टि से एक अति कानूनी निकाय के रूप में देखते हैं, जिसके कारण सदस्य देशों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने प्रतिनिधि जिनेवा में भी बनाये रखें और अपने देश में अपने विदेश या व्यापार मंत्रालय में भी बनाये रखें ताकि इस प्रकार के मामलों से सुचारू रूप से निपटा जा सके। यह अपेक्षाकृत छोटे, और विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक अतिरिक्त बोझ बन जाता है। इसका यह भी अर्थ है कि कुछ सदस्य देश अन्य देशों की तुलना में कम लाभ की स्थिति में बने रहते हैं। 

विश्व व्यापार संगठन के सचिवालय का वार्षिक बजट लगभग 160 मिलियन स्विस फ्रैंक (135 मिलियन ड़ॉलर) का है। यह राशि सदस्य देशों के उनके विश्व व्यापार में हिस्से के आधार पर योगदान के रूप में प्राप्त होती है। अकेला सबसे बड़ा योगदानकर्ता सदस्य देश अमेरिका है, जिसका वार्षिक योगदान लगभग 21.5 मिलियन ड़ॉलर है, हालांकि यूरोपीय संघ के सदस्य देश संयुक्त रूप से वार्षिक लगभग 57 मिलियन ड़ॉलर का योगदान देते हैं। विश्व व्यापार संगठन का बजट अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र की भी सहायता करता है, जो एक क्षमता निर्माण संगठन है, जिसकी सहायता संयुक्त रूप से विश्व व्यापार संगठन और संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (यू.एन.सी.टी.ड़ी.) द्वारा की जाती है, साथ ही सदस्य देश तकनीकी सहायता के लिए विशेष योगदान प्रदान करते हैं। 

4.0 समझौतों का स्वरुप 

विश्व व्यापार संगठन के मूल में तीन प्रकार के समझौते हैं - वस्तु, सेवा व बौद्धिक-संपदा संबंधित। इन तीनों के संपूर्ण समुच्चय में लगभग 60 अलग-अलग समझौते, निर्णय एवं घोषणाएं और प्रतिबद्धताओं की सूचियां समाविष्ट हैं - जिन्हें अनुसूचियां कहा जाता है - जो प्रत्येक सदस्य देश द्वारा बनाई हुई होती हैं। इन सनुसूचियों में स्वीकृत सीमा शुल्क दरों और प्रतिबद्धताओं की सूची होती है, जो संबंधित देशों द्वारा उनके सेवा उद्योगों को प्राप्त पहुँच के संबंध में की गई हैं। सब मिलाकर यह संपूर्ण सामग्री 25,000 से अधिक पन्नों की होती है। 

समझौतों में विश्व व्यापार संगठन के कुछ संगठनात्मक भाग का प्रतिबिंब होता है। इनमें से प्रमुख का संबंध निम्न से हैः

  1. शुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता (जीएटीटी), जिसकी अनिवार्यता है देश-राज्यों की सीमाओं के पार पूंजी और वस्तुओं की आवाजाही पर लगी बची हुई प्रशुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं का उन्मूलन करना;
  2. सेवा व्यापार पर सामान्य समझौता (जीएटीएस), जो सेवा व्यापार के क्षेत्र में पहला बहुपक्षीय, कानूनी रूप से प्रवर्तनीय समझौता है। अब इस बात पर बातचीत जारी है कि जीएटीएस की व्याप्ति को बढ़ाया जाये ताकि इसमें सभी संभावित सेवाओं को समाविष्ट किया जा सके, जिनमें प्रमुख सार्वजनिक सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय निगमों और निजी क्षेत्रों के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए खुला किया जा सके; 
  3. व्यापार संबंधी बौद्धिक संपत्ति अधिकार (टीआरआईपीएस), जो पेटेंट्स, कॉपीराइट, और व्यापार-चिन्हों पर प्रवर्तनीय वैश्विक नियम निर्धारित करता है, जो जीवनरक्षी औषधियों की पहुँच को प्रतिबंधित करता है, और अनेक प्रकार के वनस्पति और पशु प्रकारों, साथ ही बीजों के पेटेंट की अनुमति प्रदान करता है जिसके कारण जैव चोरी और जैव-विविधता के वस्तुकरण के रास्ते खुल जाते हैं;
  4. व्यापार संबंधी निवेश उपाय (टीआरआईएमएस), जो निर्देशित करता है कि विदेशी निवेश को विनियमित करने के संबंध में सरकारें क्या-क्या कर सकती हैं, और क्या नहीं कर सकतीं;
  5. स्वच्छता और पादपस्वच्छता मानकों के अनुप्रयोग पर समझौता (एसपीएस), जो खाद्य सुरक्षा और पशुओं और पौधों के स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी नीतियों पर प्रतिबंध लागू करता है, जिनमें कीटनाशकों और जैव प्रदूषकों के उपयोग को प्रतिबंधित करने से लेकर खाद्य परिक्षण, उत्पाद लेबलिंग, और आनुवंशिक रूप से परिवर्तित खाद्य पदार्थों से संबंधित नीतियां शामिल हैं; 
  6. वित्तीय सेवाएं समझौता (एफएसए), इसकी स्थापना वित्तीय सेवा निगमों की मुक्त आवाजाही को बाधित करने वाली बाधाओं को हटाने के उद्देश्य से की गई थी, जिनमें बैंकें और बीमा कंपनियां भी शामिल थीं। यह वित्तीय क्षेत्र में महा-विलयों और स्थानीय आर्थिक नियंत्रण की हानि के रास्ते खोलता है;
  7. कृषि समझौता (एओए), जो अंतर्राष्ट्रीय खाद्य व्यापार के लिए नियम निर्धारित करता है, और घरेलू कृषि नीति को प्रतिबंधित करता है, जिनमें ड़ंपिंग के विरुद्ध संरक्षण, अपने घरेलू बाजार के लिए उत्पादन करने वाले छोटे कृषकों को संरक्षण, कृषकों और धारणीय कृषि पद्धतियों के लिए सरकारी सहायता, आपातकालीन खाद्यान्न भंडार बनाये रखना, और यह सुनिश्चित करना कि नागरिकों को पर्याप्त खाद्यान्नों की आपूर्ति हो रही है, इत्यादि शामिल हैं;
  8. अनुवृत्तियों और प्रतिकारी उपायों पर समझौता (एएससीएम), यह सरकारों के लिए सीमायें निर्धारित करता है, कि वे किन वस्तुओं पर अनुवृत्ति प्रदान कर सकती हैं, इसमें अनेक खामियां हैं, जो समृद्ध देशों और कृषि व्यवसायों के लिए ही लाभदायक हैं;
  9. व्यापार की तकनीकी बाधाओं पर समझौता (टीबीटी), व्यापार में हस्तक्षेप करने वाले राष्ट्रीय विनियमों (गैर-शुल्क बाधाएं) को सीमित करने के लिए गठित हुआ है, जैसे पारिस्थितिकी लेबलिंग विनियमन 
  10. सरकारी खरीद पर समझौता (एजीपी), जो सरकारी खरीद पर सीमा निर्धारित करता है, जिसमें ‘‘घरेलू घटक‘‘ भी शामिल है, या सामुदायिक विकास अनिवार्यताएं। 



5.0 विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सिद्धांत

5.1 सिद्धांत 

विश्व व्यापार संगठन व्यवस्था निम्नलिखित सिद्धांतों के आधार पर परिचालित होती हैः

  1. व्यापार व्यवस्था को बिना किसी भेदभाव के परिचालित होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि सदस्य देश को अपने व्यापार भागीदारों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी देशों के साथ सर्वाधिक पसंदीदा देश (एम.एफ.एन.) और राष्ट्रीय व्यवहार के आधार पर व्यवहार करना चाहिए। उदाहरणार्थ, आयात करने वाले देश को विभिन्न सदस्य निर्यातक देशों के समान उत्पादों या समान उत्पाद उत्पादित करने वाले उत्पादकों पर भिन्न-भिन्न शुल्क लागू नहीं करना चाहिए; प्रत्येक निर्यातक देश के लिए आयातक देश द्वारा लागू शुल्क न्यूनतम (सबसे पसंदीदा) होना चाहिए। राष्ट्रीय व्यवहार का अर्थ है कि प्रत्येक देश अपने देश में विदेशी और घरेलू उत्पादों को समान रूप से देखे। 
  2. समय के साथ-साथ व्यापार व्यवस्था अधिकाधिक मुक्त होती जानी चाहिए, जिसमें प्रत्येक बातचीत के चक्र के साथ शुल्क और गैर-शुल्क बाधाएं कम होती जानी चाहियें। यह शुल्क संबंधी बाधाओं के संबंध में व्यापक पैमाने पर हासिल किया जा चुका है, परंतु गैर शुल्क बाधाओं, और सेवा व्यापार के संबंध में सभी प्रकार की बाधाओं को कम करने की दिशा में अभी भी व्यापक सुधार की गुंजाईश है। 
  3. पूर्वकथनीयता तीसरा सिद्धांत है। इसका संबंध विदेशी कंपनियों, निवेशकों और सरकारों को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता से है कि व्यापार बाधाएं मनमाने ढंग से लागू नहीं की जाएंगी, साथ ही व्यापार से संबंधित सभी नीतियां विदेशियों के लिए पारदर्शी हों।  
  4. व्यापार व्यवस्था को अधिक प्रतियोगी बनाने की आवश्यकता है। जिसके लिए अनुचित पद्धतियों को हतोत्साहित करना होगा, जैसे निर्यात का अनुवृत्तिकरण करना और विदेशी बाजारों में उत्पादों को डंप करना। डंपिंग तभी होता है, जब घरेलू बाजार की तुलना में विदेशी बाजारों में उत्पाद कम कीमत पर बेचे जाते हैं, इससे विदेशी बाजारों में उद्योगों को हानि होती है। 
  5. यह मान्य किया गया है कि सभी देश समान नहीं हैं, और अल्प विकसित देशों को विशेष व्यवहार की आवश्यकता हो सकती है; उदाहरणार्थ, उनके उद्योगों को शुल्क कम करने से उत्पन्न होने वाली स्थिति से सामंजस्य बिठाने के लिए अधिक समय दिया जाना आवश्यक है। 

5.2 किसी प्रकार के मात्रात्मक प्रतिबंध (क्यूआर) नहीं होने चाहिये

ऊपर उल्लेख किये गए सिद्धांतों के अतिरिक्त विश्व व्यापार संगठन के वस्तुओं के व्यापार पर लागू होने वाला एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। वस्तुओं के संबंध में विश्व व्यापार संगठन यह शर्त लगाता है कि शुल्क की मात्रा केवल घरेलू उद्योगों को संरक्षित करने तक ही सीमित होनी चाहिए। 

पारंपरिक रूप से वस्तुओं का अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह अनेक प्रकार की गैर शुल्क बाधाओं का सामना करता है, जैसे कोटा और अनुज्ञप्तियां। अर्थशास्त्री मान्य करते हैं कि घरेलू उद्योगों के संरक्षण के रूप में कोटा जैसी गैर शुल्क बाधाएं अधिक हानिकारक होती हैं, क्योंकि कोटा शुल्कों की तुलना में अधिक विकृतियां निर्माण करती हैं। इस प्रकार जीएटीटी (विश्व व्यापार संगठन का पूर्ववर्ती) यह प्रावधान करता है कि यदि कुछ प्रतिबंध आवश्यक हैं, तो वे शुल्कों के रूप में होने चाहियें (कोटा के रूप में नहीं)।

हालांकि वास्तविकता यह है कि कृषि उत्पाद (और कपडा और वस्त्र) लंबे समय से विभिन्न मात्रात्मक प्रतिबंधों के अधीन रहे हैं। पहले कृषि उत्पाद के 30 प्रतिशत से अधिक भाग को कोटे या अन्य मात्रात्मक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता था। उरुग्वे चक्र, जिसमें 1986-1994 के दौरान बातचीत की गई थी, ने कृषि उत्पादों को जीएटीटी/विश्व व्यापार संगठन के मूल सिद्धांतों के अधिक निकट लाकर रख दिया था। अब बाजार पहुंच के नए नियम अधिकांश ‘‘केवल शुल्क‘‘ प्रकार के हैं। नई व्यवस्था के तहत सभी गैर-शुल्क बाधाओं को शुल्कों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना है। संरक्षण का प्रारंभिक स्तर समान हो सकता है; अर्थात, यदि कोटे के कारण घरेलू कीमतें विश्व कीमतों से 50 प्रतिशत अधिक हैं, तो नया शुल्क 50 प्रतिशत हो सकता है। इस प्रक्रिया को ‘‘शुल्कीकरण‘‘ कहा जाता है। सदस्य देशों ने स्वीकार किया है कि विकसित देश नए प्रतिबद्ध शुल्कों में छह वर्ष की अवधि के दौरान समान दर से औसत 36 प्रतिशत की कटौती करेंगे, जबकि विकासशील देश दस वर्षों की अवधि के दौरान 24 प्रतिशत की कटौती करेंगे।

5.3 विश्व व्यापार संगठन के सिद्धांतों की वास्तविक कार्य पद्धति 

इन मजबूत सिद्धांतों के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन के विभिन्न समझौतों में उपायों की व्यापक श्रृंखला विद्यमान है जो कम से कम सदस्य देशों को अपने दायित्वों में परिवर्तन करने की या उनसे बचने की अनुमति प्रदान करते हैं। इसके कुछ उदाहरण निम्नानुसार हैंः

  1. पूर्व विद्यमान वरीयताओं को जारी रखनाः इसका अर्थ यह है कि समझौते पर हस्ताक्षर करते समय यदि एक देश अपने कुछ व्यापारी भागीदारों को वरीयता का दर्जा दे रहा है, तो वह यह व्यवस्था जारी रख सकता है। 
  2. क्षेत्रीय व्यापार समझौते (आरटीए)ः विभिन्न देश क्षेत्रीय व्यापार समझौतों और विश्व व्यापार संगठन के एक ही समय में सदस्य बने रह सकते हैं, चाहे फिर उनमें दायित्व भिन्न-भिन्न ही क्यों न हों। यह सर्वाधिक पसंदीदा देश के सिद्धांत की अप्रतिष्ठा करता है, परंतु किन्ही विशिष्ट स्थितियों में इसकी स्वीकृति प्रदान की जाती है। 
  3. अधित्यजनः कुछ अपवादात्मक परिस्थितियों में दायित्वों से अधित्यजन (वेवर) की अनुमति प्रदान की जाती है। उदाहरणार्थ, अमेरिका को कनाडा-अमेरिका मोटर वाहन समझौते (वाहन समझौता) में छूट प्राप्त हुई थी। 
  4. राष्ट्रीय व्यवहार का अनुपालन नहींः राष्ट्रीय व्यवहार का सिद्धांत सरकारी खरीद या घरेलू उत्पादन के लिए अनुवृत्तियों के प्रावधान पर लागू नही होता। 
  5. सामान्य अपवादः सामान्य अपवाद की अनुमति उन मामलों में प्रदान की जाती है जहां सरकारी उपाय, हालांकि वे व्यापार के लिए प्रतिबंधक हैं, निम्न कारणों से अनिवार्य हैं; सार्वजनिक नैतिकता, मानव, पशु और वनस्पति के जीवन और स्वास्थ्य; घरेलू विनिमयों का अनुपालन; सोने और चांदी का व्यापार; कैदियों द्वारा निर्मित उत्पादों; प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण; राष्ट्रीय संपत्ति का संरक्षण; और अंतर्राष्ट्रीय जींस समझौतों में भागीदारी। 
  6. राष्ट्रीय सुरक्षाः राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण के लिए कार्रवाई की जा सकती है। 
  7. खाद्य एवं मानव सुरक्षाः खाद्यान्नों और आवश्यक वस्तुओं की अत्यधिक कमी की स्थिति में अस्थायी निर्यात प्रतिबंधों की अनुमति प्रदान की जाती है। 
  8. भुगतान संतुलनः भुगतान संतुलन की समस्या को हल करने के लिए कोई देश उपाय कर सकता है। 
  9. सुरक्षा उपाय और प्रतिकारी शुल्कः उत्पादों के अचानक रूप से बड़े हुए आयात के कारण घरेलू उद्योगों को होने वाली क्षति से बचाने के लिए सुरक्षा उपाय करने के लिए रियायत प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त किसी देश को डंपिंग के मामलों को हल करने की क्षमता भी प्रदान की जाती है, साथ ही अनुवृत्तियों के विरुद्ध प्रतिकारी शुल्क लागू करने की क्षमता भी प्रदान की जाती है। 
  10. रियायतेंः किसी भी देश को उसके द्वारा प्रदान की गई रियायतों को कम करने या उन्हें वापस लेने की क्षमता भी प्रदान की जाती है। 
  11. विकासशील देशः विकासशील देशों के लिए विशेष शर्तों प्रावधान किया गया है। 

5.4 विश्व व्यापार संगठन की विवाद निवारण समझ (डीएसयू) (Dispute Settlement Understanding)

जीएटीटी के तहत विवाद निवारण इतिहास इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर प्रदान नहीं करता कि विवाद निवारण ‘‘सुलह‘‘ की ओर उन्मुख है या ‘‘नियमों के प्रति प्रतिबद्धता‘‘ की ओर उन्मुख है। दूसरी ओर, अनेक विशेषज्ञों और राजनयिकों को लगता है कि जीएटीटी/विश्व व्यापार संगठन केवल बातचीत के मंच हैं। दूसरी ओर ऐसे चिन्ह हैं कि ऐसी व्यवस्था विकसित हो रही है जो ‘‘नियमों के प्रति प्रतिबद्धता‘‘ की दिशा में जा रही है। 

5.4.1 प्रक्रिया 

विवाद निवारण निकाय (डीएसबी), जिसमें सभी विश्व व्यापार संगठन सदस्य देश शामिल हैं, को पैनल स्थापित करने का, और पैनल और अपीलीय निकाय की रिपोर्ट्स को अपनाने का अधिकार है, निर्णय और सिफारिशों के क्रियान्वयन की निगरानी करने का अधिकार है, और विश्व व्यापार संगठन समझौतों के तहत रियायतों और अन्य दायित्वों को स्थगित करने का अधिकार है। यदि किसी सदस्य देश को लगता है कि उसे विश्व व्यापार संगठन समझौतों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त लाभ नष्ट हो रहा है, या कम हो रहा है, तो पहले उसे आपसी परामर्श करना होगा। यदि यह परामर्श विवाद को सुलझाने में असफल हो जाता है तो शिकायतकर्ता पक्ष एक पैनल के गठन का अनुरोध कर सकता है। और जब तक डीएसबी आमसहमति से ऐसा करने से मना नहीं कर देता, तब तक ऐसा पैनल गठित करना अनिवार्य होगा। 

एक पैनल में आमतौर पर तीन सदस्य होते हैं और इसका विचार-विमर्श गोपनीय रखा जाता है। पैनल को छह महीने के अंदर परीक्षण करना अनिवार्य है। विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को पैनल की रिपोर्ट प्रसारित होने के 60 दिन के अंदर इस रिपोर्ट को एक डीएसबी बैठक में अपनाया जाना अनिवार्य है, जब तक की विवाद में शामिल एक पक्ष इस बात की घोषणा नहीं कर देता कि वह अपील में जाना चाहता है, या डीएसबी आमसहमति से यह निर्णय नहीं करता कि रिपोर्ट को नहीं अपनाया जाए। अपीलीय निकाय, जिसका गठन उरुग्वे चक्र के दौरान एक स्थायी न्यायाधिकरण के रूप में किया गया था, किसी भी अपील पर सुनवाई करता है। इस न्यायाधिकरण में सात सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन किसी भी दिए गए मामले की सुनवाई करते हैं। अपीलीय निकाय की गतिविधि 60 दिन से अधिक नहीं चल सकती, और यह भी गोपनीय होती है। जब एक पैनल या अपीलीय निकाय यह निर्णय देता है कि संबंधित उपाय जारी समझौते के विरुद्ध है, तो उसे यह सिफारिश करनी होगी कि संबंधित सदस्य देश अपने उपाय को विश्व व्यापार संगठन के समझौते के अनुरूप बनाये। डीएसबी की सिफारिशों और निर्णय को क्रियान्वित करने का अंतिम उपाय उस सदस्य देश के लिए यह है कि वह उपरोक्त रियायतों को निलंबित करे (जवाबी कार्रवाई)।

6.0 टीआरआईपीएस, टीआरआईएमएस और जीएटीएस (ट्रिप्स, ट्रिम्स और गैट्स) (TRIPS, TRIMs, GATS)

6.1 टीआरआईपीएस (TRIPs)

व्यापार संबंधी बौद्धिक संपत्ति अधिकार (टीआरआईपीएस) का प्रयास उत्पादों और उत्पादन प्रक्रियाओं के विकासकर्ताओं या निवेशकों के हितों की रक्षा करना है, ताकि अन्य लोगों द्वारा उनकी नकल नहीं की जा सके। 

टीआरआईपीएस समझौते की मुख्य विशेषतायें निम्नानुसार हैंः

  1. प्रत्येक सदस्य को संरक्षण के न्यूनतम मानक प्रदान करने होंगे 
  2. प्रत्येक सदस्य देश द्वारा आईपीआर के प्रवर्तन के लिए घरेलू प्रक्रियाएं स्थापित करनी होंगी 
  3. विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के बीच विवादों का निराकरण

टीआरआईपीएस के समझौते में निम्न क्षेत्रों को समाविष्ट किया जाता है - कॉपीराइट एवं अन्य संबंधित अधिकार, व्यापार चिन्ह, जिनमें सेवा चिन्हों का भी समावेश है, औद्योगिक डिजाइन, भौगोलिक संकेत, पेटेंट्स, एकीकृत परिपथों के लेआउट डिजाइन और अघोषित जानकारी या व्यापार रहस्यों की सुरक्षा। 

विश्व व्यापार संगठन का टीआरआईपीएस समझौता इस बात का प्रयास है कि जिस प्रकार से इन अधिकारों का संरक्षण किया जाता है उसमें विश्व के विभिन्न देशों के बीच की खाई को कम करना। टीआरआईपीएस के समझौते के विवाद विश्व व्यापार संगठन की विवाद निराकरण प्रक्रियाओं द्वारा शासित होंगे। टीआरआईपीएस समझौते का यह प्रयास है कि बौद्धिक संपत्ति अधिकारों का संरक्षण करते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की विकृतियों और बाधाओं को कम करना। 

6.1.1 ट्रिप्स समझौते के सकारात्मक परिणाम 

पेटेंट्सः समझौते के तहत पेटेंट्स, कॉपीराइट, लेआउट डिजाइंस इत्यादि को संरक्षण प्रदान किया जाता है। उदाहरणार्थ, जब किसी पेटेंट कराई गई औषधि को किसी विशेष अवधि के लिए संपूर्ण विपणन अधिकार प्राप्त हो जाते हैं, और कोई अन्य कंपनी उस उत्पाद के नाम का उपयोग करना चाहती है, तो उन्हें पेटेंट धारक से अनुमति लेनी होती है। यह अनुमति केवल रॉयल्टी या शुल्क के लिए किये गए समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ही प्रदान की जा सकती है। 

टीआरआईपीएस के समझौते ने औषधि, अभियांत्रिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स इत्यादि के क्षेत्रों में अनुसन्धान और विकास को भी काफी बढ़ावा दिया है। इस प्रकार, टीआरआईपीएस के समझौते ने विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों को काफी लाभ प्रदान किये हैं। 

सार्वजनिक स्वास्थ्यः नवंबर 2001 में कतर के दोहा में हुए दोहा सम्मेलन ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के संरक्षण और सभी के लिए औषधियां उपलब्ध कराने की आवश्यकता को मान्यता प्रदान की। यहां विकासशील देशों को जीवनावश्यक औषधियों के लिए विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर जाने की आवश्यकता नहीं है, जिनके पास इनके पेटेंट हैं। भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों को इससे लाभ होगा क्योंकि उनके पास जीवनावश्यक औषधियों के विनिर्माण के लिए आवश्यक संसाधन और प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, और ये देश इन औषधियों को अन्य देशों को पेटेंट धारकों से अनिवार्य अनुज्ञप्ति प्राप्त किये बिना भी निर्यात कर सकेंगे। 

भौगोलिक संकेत स्तर (जीआईएस)ः विश्व व्यापार संगठन कुछ वस्तुओं के लिए जीआईएस भी प्रदान करता है। एक बार किसी देश को जीआईएस प्राप्त हो जाता है तो केवल उसी देश की फर्म को वह अनुवांशिकी ब्रांड़ नाम उपयोग करने की अनुमति होगी। उदाहरणार्थ, भारत को दार्जिलिंग चाय और अन्य उत्पादों के लिए जीआईएस प्राप्त है। इसका अर्थ यह है कि केवल भारतीय फर्मों को ही दार्जिलिंग चाय ब्रांड उपयोग करने की अनुमति है, जो यह दर्शाता है कि भारत में निर्मित दार्जिलिंग चाय अद्वितीय है। 

6.1.2 ट्रिप्स समझौते के नकारात्मक परिणाम 

विकसित देशों का अनुग्रह करता हैः समझौते विकसित देशों का पक्ष लेते हैं क्योंकि टीआरआईपीएस संरक्षण पेटेंट्स, व्यापार चिन्हों, और लेआउट डिजाइनों इत्यादि जैसी बौद्धिक सम्पत्तियों को संरक्षण प्रदान करते हैं। इस प्रकार यह विकसित देशों का पक्ष लेता है, क्योंकि विकसित देशों के पास बड़ी मात्रा में पेटेंट्स उपलब्ध होते हैं। 

कृषिः कृषि के क्षेत्र में पौधों की किस्मों को पेटेंट प्रदान करने का कार्य ट्रिप्स के तहत किया जाता है। इसके विकासशील देशों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास उनकी वित्तीय संसाधनों और विशेषज्ञता की क्षमता के कारण लगभग सभी नई किस्मों को विकसित करने की क्षमता होती है। इसके कारण लगभग सभी लाभ बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्राप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। 

सूक्ष्म जीवः सूक्ष्म जीवों का अनुसंधान कृषि, औषधियों और औद्योगिक जैवप्रौद्योगिकी के विकास के साथ निकट से जुडा हुआ है। फिर से, सूक्ष्म जीवों के लिए पेटेंट प्रदान करना बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए ही अधिक लाभदायक सिद्ध होगा। 




6.2 टीआरआईएमएस (ट्रिम्स) (TRIMs)

व्यापार से संबंधित निवेश उपायों का समझौता (टीआरआईएमएस) उन उपायों की शुरुआत को शामिल करता है जो सदस्य देशों को अपनाना है, तथा जिसके तहत उन्हें विदेशी निवेश को घरेलू निवेश के समकक्ष रखना है, और आयतों पर से मात्रात्मक प्रतिबंधों को हटाना है। यह राष्ट्रीय सरकार द्वारा किया जाने वाला वह प्रयास है, जिसके तहत कोई सरकार उस देश की भौगोलिक सीमा के अंदर परिचालन करने की इच्छुक विदेशी कंपनियों पर शर्तें लगाती है। 

कुछ निवेश उपाय, जो विदेशी निवेश के विरुद्ध भेदभाव करते हैं, उन्हें वापस लिया जाना था, जैसेः

  1. विदेशी निवेशकों के लिए अनिवार्यता कि उन्हें स्थानीय उत्पादक सामग्री का ही उपयोग करना है 
  2. आयात निविष्टियां प्राप्त करने के लिए एक शर्त के रूप में यह शर्त कि केवल निर्यात के लिए ही उत्पादन किया जाना है 
  3. निर्यात दायित्वों की पूर्ति 
  4. स्थानीय लोगों को रोज़गार 
  5. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की अनिवार्यता 
  6. एक विशिष्ट उत्पादन प्रौद्योगिकी के ही उपयोग की शर्त 
  7. स्थानीय इक्विटी की अनिवार्यता, और 
  8. आयातित निविष्टियों के उपयोग पर नियंत्रण। 

व्यापार संबंधी निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विश्व व्यापार संगठन के भारत सहित सभी सदस्य देशों ने इन उपायों को वापस ले लिया है। टीआरआईएमएस दो प्रकार के हैंः

सकारात्मक टीआरआईएमएसः इनमें देश में जाने के लिए या उस देश के किसी विशिष्ट गंतव्य पर जाने के लिए प्रदान किये जाने वाले निवेश प्रलोभन। 

नकारात्मक टीआरआईएमएसः इनमें स्थानीय इक्विटी अनिवार्यता, अनुज्ञप्तियों की अनिवार्यता, विदेशी विनिमय प्रतिबंध, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की अनिवार्यता, व्यापार संतुलन की अनिवार्यता, आयात-निर्यात अनिवार्यता, इत्यादि शामिल हैं।

6.2.1 टीआरआईएमएस समझौते के सकारात्मक प्रभाव 

टीआरआईएमएस समझौते के विकासशील देशों पर सकारात्मक प्रभाव होते हैं, क्योंकि विदेशी निवेश को घरेलू निवेश की तरह ही समझा जाता है। उदाहरणार्थ, टीआरआईएमएस समझौता विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके कारण बडे़ पैमाने पर प्रतिस्पर्धा निर्माण होगी। स्पर्धा में बने रहने के लिए भारतीय फर्मों को प्रतिस्पर्धात्मक रणनीतियों के साथ सक्रिय होना पडे़गा, जिसके कारण न केवल उनका प्रदर्शन सुधरेगा, बल्कि उपभोक्ताओं को भी बेहतर सेवाएं और वस्तुएं उपलब्ध होंगी। 

6.2.2 टीआरआईएमएस समझौते के नकारात्मक प्रभाव

विकासशील देशों ने (भारत सहित) अनेक उपाय वापस ले लिए हैं जो देश में विदेशी निवेश के प्रवेश को प्रतिबंधित करते थे। टीआरआईएमएस समझौता भी विकसित देशों का पक्ष लेता है। विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां, अपने विशाल वित्तीय और प्रौद्योगिकी संसाधनों के माध्यम से भारतीय कंपनियों को प्रतिस्थापित करके अधिक वर्चस्व की भूमिका निभाएंगी। साथ ही, विदेशी कंपनियां अपने लाभ, लाभांश इत्यादि अपनी मूल कंपनी को हस्तांतरित करने के लिए भी स्वतंत्र होंगी। इससे विकासशील देशों में विदेशी विनिमय का बहिर्वाह शुरू हो जायेगा। 

6.3 जीएटीएस (GATS) 

उरुग्वे चक्र में पहली बार बैंकिंग, बीमा, यात्रा, परिवहन इत्यादि सेवाओं के व्यापार को बातचीत के तहत लाया गया। सेवाओं में सामान्य समझौता (जीएटीएस) सेवा क्षेत्र के व्यापार में पहला बहुपक्षीय समझौता है। सभी सदस्य देशों के लिए अनिवार्य किया गया है कि वे अपने सेवा क्षेत्र घरेलू निजी और विदेशी प्रतिस्पर्धा के लिए खुले करें। 

जीएटीएस की दो प्रमुख अनिवार्यताएं हैं 

  1. सेवा व्यापार की दृष्टि से अन्य सदस्य देशों को बिना भेदभाव के आधार पर सबसे पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा प्रदान करना, और 
  2. पारदर्शिता को बनाये रखना। साथ ही प्रगतिशील उदारीकरण की प्रतिबद्धता भी है। 

समझौते में सेवाओं को शामिल करना विश्व अर्थव्यवस्था में उनके बढ़ते महत्त्व को दर्शाता है। जीएटीएस के तहत भारत ने 33 सेवाओं के विषय में प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है जहां विदेशियों को प्रवेश की अनुमति है। गतिविधियों का चयन पूंजी अंतर्वाह पर प्रभाव, प्रौद्योगिकी, रोजगार इत्यादि जैसे राष्ट्रीय लाभों के आधार पर रखा गया है। 

विकासशील देशों में उदारीकरण और बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा के कारण उभरने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार का परिणाम कौशल, उत्पादकता, उपभोक्ता कल्याण और विकास में वृद्धि में होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सेवा गुणवत्ता के क्षेत्र में विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच काफी भिन्नता है। सेवा क्षेत्र व्यापार को शामिल करने से संभवतः विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों को अधिक लाभ होगा। 

6.3.1 जीएटीएस का सकारात्मक प्रभाव

जीएटीएस केवल अन्य सदस्य देशों से सेवा उपलब्ध कराने का अवसर ही प्रदान नहीं करता, बल्कि यह प्रतिस्पर्धा के कारण अपनी स्वयं की सेवा गुणवत्ता में सुधार करने का अवसर भी प्रदान करता है। अनेक सेवा क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों को अनुमति प्रदान की गई है। विदेशी कंपनियां संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से या भारतीय कंपनियों के साथ भागीदारी के माध्यम से भारत में प्रवेश कर सकती हैं। यह भारतीय कंपनियों को पेशेवर विशेषज्ञता और विदेशी सहायता से अपने सेवा क्षेत्रों के विस्तार और विविधता के अवसर प्रदान करेगा। अनेक विकासशील देशों में यात्रा और पर्यटन, होटल, खुदरा व्यापार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा और दूरसंचार जैसे क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए खुले किये गए हैं। 

6.3.2 जीएटीएस का नकारात्मक प्रभाव

जीएटीएस समझौते में सदस्य देशों को सेवा क्षेत्र विदेशी कंपनियों के लिए खुला करना पडता है। भारत सहित विकासशील देशों ने बैंकिंग, बीमा, संचार, दूरसंचार, परिवहन इत्यादि क्षेत्र विदेशी कंपनियों के लिए खुले कर दिए हैं। विकसशील देशों के लिए संसाधनों और पेशेवर कौशल्य के अभाव में विशाल बहुराष्ट्रीय विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना कठिन होगा। 

7.0 विश्व व्यापार संगठन और भारतीय अर्थव्यवस्था 

विश्व व्यापार संगठन के समझौतों पर हस्ताक्षर करने के भारत की अर्थव्यवस्था के लिए दूरगामी परिणाम होंगे, न केवल भारत के विदेशी व्यापार पर, बल्कि इसकी घरेलू अर्थव्यवस्था पर भी। हालांकि विश्व व्यापार संगठन का अंतिम उद्देश्य विश्व के सभी देशों के हितों की दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को मुक्त करने का है, फिर भी यास्तविकता यह है कि विश्व व्यापार संगठन के समझौतों का लाभ विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों को अधिक हुआ है। 

7.1 सकारात्मक प्रभाव

विश्व व्यापार संगठन के भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव को निम्न बिंदुओं के आधार पर देखा जा सकता हैः

निर्यात प्राप्तियों में वृद्धिः विश्व बैंक के आर्थिक सहयोग और विकास संगठन और जीएटीटी सचिवालय द्वारा किये गए आकलन दर्शाते हैं कि उरुग्वे चक्र पैकेज के क्रियान्वयन का आय प्रभाव होगा कारोबारी माल वस्तुओं में वृद्धि। ऐसा अनुमान है कि विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी में सुधार होगा। 

कृषि निर्यातः कृषि में व्यापार बाधाओं और घरेलू अनुवृत्तियों में कमी आने से संभवतः कृषि उत्पादों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि होगी। भारत इससे इस रूप में लाभान्वित होने की संभावना देख रहा है कि कृषि से अधिक निर्यात आय प्राप्त होगी। यह संभव भी प्रतीत होता है क्योंकि भारत के सभी प्रमुख कृषि विकास कार्यक्रमों को विश्व व्यापार संगठन समझौते से छूट प्राप्त होगी। 

कपड़ा एवं वस्त्रों का निर्यातः एमएफए (बहु-तंतु समझौता) के चरणबद्ध तरीके से समाप्त होने के साथ कपडे़ और वस्त्रों के निर्यात में वृद्धि होगी, और यह भारत के लिए लाभदायक होगा। एमएफए को चरणबद्ध तरीके से पूरी तरह समाप्त करने के लिए विकसित देशों ने 15 वर्षों की अवधि की मांग की थी, भारत सहित विकासशील देशों की मांग थी कि इसे 10 वर्ष की अवधि में पूरी तरह समाप्त किया जाए। उरुग्वे चक्र ने विकासशील देशों की मांग को मान्य किया। परंतु चरणबद्ध समाप्ति का कार्यक्रम विकसित देशों के पक्ष में रहा क्योंकि कोटा व्यवस्था का एक बड़ा भाग दसवें वर्ष अर्थात 2005 में ही समाप्त किया गया। कोटा व्यवस्था की समाप्ति न केवल भारत के लिए बल्कि अन्य सभी देशों के लिए लाभदायक थी।   

बहुपक्षीय नियम और विषयः उरुग्वे चक्र के समझौते ने बहुपक्षीय नियमों और विषयों का सशक्तिकरण किया है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण डंपिंग रोधी, अनुवृत्तियों और प्रतिकारी उपायों, सुरक्षा उपायों और विवाद निराकरण से संबंधित हैं। इसके कारण संभवतः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्थाओं की अधिक सुरक्षा और पूर्वकथनीयता सुनिश्चित हो पायेगी, और इस कारण से भारत के लिए नई विश्व आर्थिक व्यवस्था में अधिक अनुकूल वातावरण निर्मित होगा। 

सेवा निर्यातों की वृद्धिः जीएटीए समझौते के तहत सदस्य देशों ने सेवा क्षेत्र का उदारीकरण कर दिया है। भारत इस समझौते से लाभान्वित होगा। उदाहरणार्थ, भारत के सेवा क्षेत्र के निर्यात 1995 के लगभग 5 बिलियन डॉलर से 2018 में बढ़ कर 150 बिलियन डॉलर तक पहुंच गए। सेवा निर्यातों में सॉटवेयर सेवाओं का योगदान लगभग 45 प्रतिशत का था। 

7.2 नकारात्मक प्रभाव 

टीआरआईपीएसः उरुग्वे चक्र के दौरान टीआरआईपीएस के तहत हुआ समझौता भारी मात्रा में बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विकसित देशों के पक्ष में भारित रहा है, क्योंकि उनके पास पेटेंट्स की विशाल श्रृंखला है। टीआरआईपीएस के तहत हुआ समझौता विभिन्न दृष्टियों से भारत के विरुद्ध होगा, और इसके कारण पेटेंट धारक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकाधिकार स्थापित होने की संभावना है। विश्व व्यापार संगठन के एक सदस्य देश के रूप में भारत को टीआरआईपीएस मानकों का पालन करना पडे़गा। 

औषधि क्षेत्रः पेटेंट अधिनियम 1970 के तहत रसायनों, औषधियों और दवाओं के क्षेत्र में केवल प्रक्रिया पेटेंट स्वी.त किये गए थे। इसका अर्थ यह था कि एक भारतीय औषधि निर्माता कंपनी को औषधि के उत्पादन और बिक्री के लिए केवल एक प्रक्रिया विकसित करने और उस प्रक्रिया का पेटेंट प्राप्त करने की आवश्यकता थी। यह भारतीय औषधि निर्माता कंपनियों की दृष्टि से काफी लाभदायक सिद्ध हुआ क्योंकि इसके माध्यम से वे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में गुणवत्तापूर्ण औषधियों की बिक्री करने में सक्षम हुईं। हालांकि पेटेंट समझौते के तहत उत्पाद पेटेंट सेवव.त करना आवश्यक है। यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाभांवित करेगा, और इस बात का भय है की वे औषधियों की कीमतों में भारी वृद्धि करेंगी, जिसके कारण ये औषधियां गरीबों की पहुंच से बाहर हो जाएँगी। साथ ही अनेक भारतीय औषधि निर्माता कंपनियों को या तो अपना व्यापार बंद करना पडे़गा, या वे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अधिग्रहित कर ली जाएंगी। 

कृषिः टीआरआईपीएस समझौते को पौधों की किस्मों के पेटेंट की प्रक्रिया के माध्यम से कृषि क्षेत्र में भी विस्तारित किया गया है। इसके भारतीय कृषि पर गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। पौध किस्मों के पेटेंट के कारण संपूर्ण लाभ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में हस्तांतरित हो जायेंगे, जो अपने विशाल वित्तीय और विशेषज्ञता संसाधनों के माध्यम से लगभग सभी नई किस्मों का विकास करने में सक्षम हो जाएँगी। 

सूक्ष्म जीवः टीआरआईपीएस समझौता सूक्ष्म जीवों तक भी विस्तारित किया गया है। सूक्ष्म जीवों के पेटेंट भी एक बार फिर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए लाभप्रद होंगे, क्योंकि उनके पास पहले से ही अनेक क्षेत्रों में पेटेंट उपलब्ध हैं, और वे अन्य नए पेटेंट भी तेज गति से प्राप्त कर लेंगी। 

टीआरआईएमएसः टीआरआईएमएस पर समझौता प्रावधान करता है कि विदेशी निवेश को घरेलू निवेश के साथ समकक्ष रखा जाये। यह समझौता भी विकसित देशों के पक्ष में भारित है। इस समझौते में विदेशी निवेशकों की प्रतिबंधात्मक व्यापार पद्धतियों को नियंत्रित करने के लिए कोई अंतर्राष्ट्रीय नियम नहीं हैं। भारत जैसे विकासशील देशों के मामले में टीआरआईएमएस समझौते के पालन का अर्थ यह होगा कि उन्हें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्रौद्योगिकी और संसाधनों पर आधारित सभी स्वावलंबन रणनीतियों को त्यागना होगा। 

जीएटीएसः उरुग्वे चक्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक थी चर्चा में सेवा व्यापार का समावेश। यह भी विकसित देशों के पक्ष में ही जायेगा। विकासशील देशों की घरेलू कंपनियों के लिए संसाधनों और पेशेवर कौशल्य के अभाव में विशाल विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना कठिन होगा। 

गैर शुल्क बाधाएंः विश्व व्यापार संगठन के गठन के साथ ही अनेक देशों ने व्यापार बाधाएं और गैर-शुल्क बाधाएं जारी  हैं। इससे विकासशील देशों से होने वाले निर्यात प्रभावित हुए हैं। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने 13 ऐसे विभिन्न गैर शुल्क बाधाएं चिन्हित की हैं, जो भारत के विरुद्ध 16 विभिन्न देशों ने लागू की हैं। उदाहरणार्थ, अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लागू किया गया एमएफए (बहु तंतु व्यवस्था) भारतीय वस्त्र निर्यात के लिए एक बड़ी बाधा बन गया है। 

कृषि पर समझौता (एओए)ः एओए विकसित देशों के पक्ष में भेदभावपूर्ण है। एओए में विकासशील देशों की खाद्य सुरक्षा के विषय में ध्यान नहीं दिया गया है। खाद्यान्नों के वैश्विक अधिशेष का अर्थ यह नहीं है कि गरीब देश इन्हें खरीदने में सक्षम होंगे। खाद्यान्नों जैसी आवश्यक वस्तुओं की निर्भरता भुगतान संतुलन की स्थिति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी। 

विश्व व्यापार संगठन की संरचना में आतंरिक असमानताः विश्व व्यापार संगठन की संरचना में आतंरिक असमानता है क्योंकि इसके समझौते और संशोधन विकसित देशों के पक्ष में ही रहे हैं। सदस्य देशों को विश्व व्यापार संगठन के सभी समझौतों को मान्य करना आवश्यक है, फिर उनके विकास का स्तर चाहे कुछ भी क्यों ना हो।

न्यूनतम विकसित देशों (एलडीसी) के निर्यातः 6ठा मंत्री स्तरीय सम्मेलन दिसंबर 2005 में हांगकांग में आयोजित हुआ था। इस सम्मेलन में इस बात पर स्वी.ति बनी थी कि सभी विकसित सदस्य देश और सभी ऐसे विकासशील सदस्य देश जो यह घोषित करने की स्थिति में हैं कि वे ऐसा करने में सक्षम होंगे, न्यूनतम विकसित देशों से उत्पन्न होने वाले सभी उत्पादों के लिए स्थायी आधार पर शुल्क मुक्त और कोटा मुक्त बाजार पहुंच प्रदान करेंगे। भारत ने इसे मान्यता प्रदान की है। अब भारतीय निर्यातों को एलडीसी देशों के सस्ते निर्यातों के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी होगी। केवल यही नहीं, बल्कि सस्ते एलडीसी निर्यात भारत में भी आएंगे, और घरेलू स्तर पर उत्पादित उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। 

विश्व व्यापार संगठन के समझौतों का पालन करने की प्रक्रिया में भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पडे़गा, परंतु बदलते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के वातावरण का लाभ उठाते हुए भारत इससे लाभान्वित भी हो सकेगा। इसके लिए उसे अपनी मूल क्षमताओं के क्षेत्रों को विकसित करना होगा, और उन पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। 

7.3 भारत-विश्व व्यापार संगठन गतिरोध 

सन् 2013 व 2014 में भारत सरकार और विश्व व्यापार संगठन के बीच कृषि भण्डारण और अनुवृत्तियों की गणना को लेकर लगभग पूर्ण गतिरोध की स्थिति निर्मित हो गई थी। इस मुद्दे के मूल में वह व्यापार सुविधा समझौता (एफटीए) था जिसका उद्देश्य है नौकरशाही प्रक्रियाओं में कटौती करके विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं का गमनागमन त्वरित गति से किया जाए। हालांकि इस व्यापार सुविधा समझौते में एक अनुच्छेद है जो कहता है कि सरकारें कृषि उत्पादन के 10 प्रतिशत से अधिक मूल्य की अनुवृत्तियां प्रदान नहीं कर सकतीं। 

2013 में भारतीय संसद ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम अधिनियमित किया जिसके अंतर्गत यह उद्देश्य रखा गया है कि भारतीय जनसंख्या के सबसे अधिक भेद्य वर्गों को अत्यंत सस्ते दामों पर सस्ते खाद्यान्न उपलब्ध कराये जायेंगे। इस प्रक्रिया में उपभोक्ताओं को सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यम से अनुवृत्तियां प्रदान की जाती हैं। कृषि उत्पादकों से उनके उत्पाद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय किये जाएंगे, और उन्हें भी उर्वरकों और बिजली जैसी निविष्टियों पर अनुवृत्तियों के माध्यम से रियायतें प्रदान की जाएँगी। 

अनुवृत्तियों पर 10 प्रतिशत की सीमा 1986-88 की कीमतों के आधार पर निर्धारित की गई है, जब कीमतें बहुत ही कम थीं। इसके कारण यह सीमा और भी कम हो जाती है। अनुवृत्तियों पर यह 10 प्रतिशत की सीमा लागू करना भारत के लिए संभव नहीं होगा, अतः खाद्यान्नों की वर्तमान कीमतों को ध्यान में रखते हुए इस सीमा को अद्यतन किया जाना चाहिए। अनुवृत्ति-प्राप्त खाद्यान्न प्रदान करने के लिए भारत को अपना भंडारण अंतर्राष्ट्रीय निगरानी के लिए खोलना होगा। शांति उपनियम में षर्तों के कारण चाह कर भी उसके लिए मसूर जैसे प्रोटीन समृद्ध अनाजों का समावेश करना संभव नहीं हो पायेगा। 

अमेरिका ने 1955 में ही कृषि में व्यापक पैमाने पर दायित्वों से छूट प्राप्त कर ली थी। यूरोपीय संघ ने बड़ी मात्रा में अनुवृत्तियों के माध्यम से अपने कृषकों को संरक्षण प्रदान करने की एक व्यापक व्यवस्था क्रियान्वित की हुई है। इसका परिणाम कृषि उत्पादों के उत्पादन और व्यापार में अनेक विकृतियों में हुआ। कृषि पर हुए उरुग्वे समझौते के माधयम से कृषि में कुछ हद तक अनुशासन शुरू किया गया। जब दोहा चक्र की शुरुआत हुई, तो चर्चा के दौरान ऐसी संभावना व्यक्त की गई थी कि इन विकृतियों का यदि पूर्ण रूप से उन्मूलन नहीं भी किया जा सका फिर भी इनमें भारी कमी होगी। अमेरिका अपने कृषकों को वार्षिक लगभग 20 बिलियन डॉलर की अनुवृत्तियां प्रदान करता है, परंतु उसे कृषि अनुवृत्तियों की 10 प्रतिशत सीमा से छूट मिली हुई है। 

दिसंबर 2013 में, बाली में एक समझौते को अंतिम रूप दिया गया, जिसमें यह निर्णय किया गया था कि खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक भंडारण पर एक अंतरिम उपाय के तौर पर, कृषि समझौते के प्रासंगिक प्रावधानों के पालन नहीं किये जाने की स्थिति में उत्पन्न होने वाले विवादों में विकासशील देशों को संरक्षण प्रदान किया जायेगा। यह संरक्षण तब तक प्रदान किया जायेगा जब तक कोई स्थायी समाधान नहीं किया जाता, जिसके लिए समय सीमा 2017 निर्धारित की गई थी। 

टीएफए पर स्वीकृति प्रदान करने की अंतिम समय सीमा 31 जुलाई 2014 थी। हालांकि भारत चाहता था कि खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक भंडारण पर बातचीत तुरंत की जाये, चूंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर भारत की कुछ घरेलू मजबूरियां हैं। सरकार के लिए उसके सीमान्त कृषकों के जीवनयापन का मुद्दा एक राजनीतिक मुद्दा है, विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा अधिकार अधिनियम की अनिवार्यताओं के परिपेक्ष्य में। भारत ने इस बात पर जोर दिया था कि व्यापार सुविधा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बदले में उसे उस समानांतर संधि पर अधिक प्रगति दिखाई देनी चाहिए जो उसे अनुवृत्ति प्रदान करने और भंड़ारण करने की विश्व व्यापार संगठन द्वारा स्वीकृत सीमा से अधिक की स्वतंत्रता प्रदान करेगा। भारत की नई सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि व्यापार सुविधा समझौते के साथ-साथ ही अनुवृत्ति प्राप्त खाद्यान्नों के भंडारण पर एक स्थायी समझौता अस्तित्व में आये, जो पिछले वर्ष दिसंबर में बाली में तय 2017 की निर्धारित समय सीमा से काफी पहले ही अस्तित्व में आ जाना चाहिए। इसका परिणाम यह हुआ कि टीएफए की तय समय सीमा समाप्त होने से दो घंटे पहले भारत को इसे रोकने के लिए अपने वीटो अधिकार का उपयोग करना पड़ा। 

नवंबर 2014 में ऑस्ट्रेलिया में हुए जी-20 देशों के सम्मेलन के दौरान महीनों के गतिरोध के बाद भारत और अमेरिका खाद्यान्न भंडारण पर अपने मतभेदों को दूर करने पर सहमत हुए, और इस प्रकार दोनों ने भविष्य में विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुविधा समझौते के क्रियान्वयन के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया। जो समझौता हुआ उसके अनुसार अमेरिका एक ‘‘शांति उपनियम‘‘ पर सहमत हो गया, जो कृषि अनुवृत्ति सीमा का उल्लंघन करने वाले सदस्य देशों को विश्व व्यापार संगठन में चुनौती देने से संरक्षण प्रदान करता है। यह शांति उपनियम उस समय तक जारी रहेगा, जब तक कि इस विषय का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल लिया जाता। अमेरिका ने ऐसे सदस्य देशों को पर्याप्त संरक्षण करने के लिए शांति उपनियम को पुनः लिखने की भारत की मांग को स्वीकार कर लिया। 

विश्व व्यापार संगठन की ग्यारहवीं मंत्री-स्तरीय वार्ता दिसंबर 2017 में अर्जेंटिना में हुई।    सन 2020 में मंत्री-स्तरीय सम्मेलन आयोजित करने वाला कज़ाकस्तान पहला मध्य-एश्यिई देश बना

8.0 विश्व व्यापार संगठन की आलोचना

विश्व के देशों की एक कानूनी संस्था होने के बावजूद - दोनों, विकसित देशों और विकासशील देशों की - विश्व व्यापार संगठन पर लगाये जाने वाले आरोप वास्तविक के साथ-साथ अवास्तविक भी हैं। इस संसार की अन्य सभी चीजों की ही तरह इसका सत्य भी इन दो प्रकार के आरोपों के बीच में कहीं होगा। 

विश्व व्यापार संगठन मूल रूप से अलोकतांत्रिक हैः विश्व व्यापार संगठन की नीतियां समाज और पृथ्वी ग्रह के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करती हैं, परंतु यह एक लोकतांत्रिक, पारदर्शी संस्था नहीं है। विश्व व्यापार संगठन के नियम बातचीत में अंदरूनी पहुंच प्राप्त निगमों द्वारा और निगमों के लिए लिखे जाते हैं। उदाहरणार्थ, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि को बातचीत के लिए 17 ‘‘औद्योगिक क्षेत्र परामर्श समितियों‘‘ से भारी निविष्टियां प्राप्त होती हैं। उपभोक्ता, पर्यावरण, मानवाधिकार और श्रम संगठनों की ओर से प्राप्त नागरिक निविष्टियों को लगातार नजरअंदाज किया जाता है। जानकारी के लिए सामान्य अनुरोधों को भी अस्वीकार कर दिया जाता है, और इसकी प्रक्रिया गोपनीय रूप से चलाई जाती है। अतः एक विशुद्ध प्रश्न यह हो सकता है - कि इस गोपनीय वैश्विक सरकार को किसने चुना है?

विश्व व्यापार संगठन हमें अधिक सुरक्षित नहीं बनाएगाः विश्व व्यापार संगठन इस आधार पर निर्मित है कि ‘‘मुक्त व्यापार‘‘ के विश्व की निर्मिति से वैश्विक समझदारी और शांति प्रस्थापित होगी। इसके विपरीत समृद्ध देशों द्वारा अपने व्यक्तिगत हितों के लाभ के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रभुत्व गुस्से और असंतोष का कारण बनेगा, जो हमें अधिक असुरक्षित बनाएगा। वास्तविक वैश्विक सुरक्षा निर्माण करने के लिए हमें ऐसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की आवश्यकता है जो लोगों के लोकतंत्र के अधिकारों का सम्मान करते हों, और ऐसी व्यापार व्यवस्थाओं की आवश्यकता है जो वैश्विक न्याय को प्रोत्साहन देती हों।

विश्व व्यापार संगठन मानव अधिकारों को कुचल देता हैः विश्व व्यापार संगठन निगमों के लाभ के ‘‘अधिकारों‘‘ को मानव और श्रम अधिकारों से ऊपर रखता है। विश्व व्यापार संगठन अंतर्राष्ट्रीय मान्यताप्राप्त श्रम मानकों को प्रोत्साहित करने के बजाय मजदूरों को एक दूसरे के विरुद्ध लड़ा कर मजदूरी के मामले में ‘‘रसातल की ओर दौड़‘‘ को प्रोत्साहित करता है। विश्व व्यापार संगठन ने यह निर्णय दिया है कि किसी भी सरकार के लिए यह गैर-कानूनी है कि वह वस्तुओं की निर्माण पद्धति के आधार पर उसे प्रतिबंधित करे, जैसे बाल श्रमिकों के माध्यम से निर्मित वस्तुएं। उसने यह भी निर्णय दिया है कि सरकारों को खरीदारी के निर्णय करते समय मानवाधिकारों, या उन कंपनियों के व्यवहार, जो बर्मा जैसे विभिन्न तानाशाहों के साथ व्यापार करती हैं, जैसे ‘‘गैर वाणिज्यिक मूल्यों‘‘ का विचार नहीं करना चाहिए। 

विश्व व्यापार संगठन आवश्यक सेवाओं का निजीकरण कर देगाः विश्व व्यापार संगठन का आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण का ख्प्रयास चल रहा है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, पानी और ऊर्जा। निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक परिसंपत्तियों को - जैसे रेडियो वायु तरंगें और विद्यालय - निजी निगमों (आमतौर पर विदेशी) को बेचना है, ताकि वे सार्वजनिक कल्याण के बजाय लाभ के उद्देश्य से चलें। विश्व व्यापार संगठन का सेवा व्यापार, या जीएटीएस, लगभग 160 जोखिम भरी सेवाओं का समावेश करता है, जिनमें वृद्धों और बच्चों की देखभाल, मल निस्सारण, कूडा-कचरा, बगीचों का रखरखाव, दूरसंचार, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, जहाजरानी, डाक सेवा और पर्यटन जैसी सेवाएं शामिल हैं। कुछ देशों में निजीकरण शुरू भी कर दिया गया है। जो लोग आवश्यक सेवाओं के लिए न्यूनतम भुगतान भी नहीं कर सकते - कामकाजी समुदाय, और रंगभेद वाले समुदाय - ये वही समुदाय हैं जो सबसे अधिक कष्ट उठाते हैं। 

विश्व व्यापार संगठन पर्यावरण को नष्ट कर रहा हैः विश्व व्यापार संगठन का उपयोग निगमों द्वारा कठिनाई से अर्जित स्थानीय और राष्ट्रीय पर्यावरणीय संरक्षणों को नष्ट करने के लिए किया जा रहा है, जिनपर ‘‘व्यापार के लिए बाधाएं‘‘ कह कर आक्रमण किया जा रहा है। पहले ही विश्व व्यापार संगठन पैनल ने यह निर्णय दिया था कि अमेरिका के स्वच्छ हवा अधिनियम का एक प्रावधान, जो घरेलू और विदेशी उत्पादकों को स्वच्छ गैसोलीन उत्पादित करना अनियरी बनाता है, अवैध है। विश्व व्यापार संगठन ने लुप्तप्राय प्रजातियों के अधिनियम के एक प्रावधान को अवैध घोषित किया था जो अमेरिका में बिकने वाले झींगे को पकडने के लिए सस्ते उपकरण के उपयोग को अनिवार्य बनाता है, ताकि लुप्तप्राय कछुए इससे बच कर निकल सकें। विश्व व्यापार संगठन लकडी के गठ्ठा बनाने, मछली पकड़ने, जल उपयोगिताओं और ऊर्जा वितरण सहित उद्योगों को विनियमित करने का प्रयास कर रहा है, जिसके कारण इन प्रा.तिक संसाधनों का और अधिक शोषण होगा। 

विश्व व्यापार संगठन असमानताएं बढ़ा रहा हैः मुक्त व्यापार बहुसंख्य विश्व के लिए कार्य नहीं कर रहा है। विश्व व्यापार और निवेश की तेजी से वृद्धि के अत्यधिक हाल के समय एक दौरान (1960 से 1998) असमानता की स्थिति, देशों में भी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी, और अधिक बिगडी है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ब्यौरा देता है कि विश्व की 20 प्रतिशत सर्वाधिक समृद्ध जनसंख्या विश्व के 86 प्रतिशत संसाधनों का उपभोग करती है, जबकि सबसे गरीब 80 प्रतिशत जनसंख्या केवल 14 प्रतिशत का उपभोग करती है। विश्व व्यापार संगठन के नियमों ने देशों को विदेशी निवेश के लिए खुला करके, और उत्पादन के लिए सबसे सस्ते श्रम तक पहुंचना आसान बना कर, और आसानी से उनका शोषण करके और जहां पर्यावरणीय लागतें कम हैं इन रुझानों को और अधिक गतिशील बनाया है। 

विश्व व्यापार संगठन गरीबों को, और गरीब देशों को समृद्ध और शक्तिशाली देशों के पक्ष में चोट पहुंचाता हैः माना जाता है कि विश्व व्यापार संगठन एक आमसहमति के आधार पर परिचालित होता है, जिसमें निर्णय लेने का सभी का अधिकार समान है। जबकि वास्तविकता यह है कि अनेक महत्वपूर्ण निर्णय ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से लिए जाते हैं, जहां गरीब देशों के मध्यस्थों को बंद कमरों की बैठकों के लिए आमंत्रित भी नहीं किया जाता - और फिर ऐसे ष्समझौतोंष् की घोषणा की जाती है, जिनके बारे में गरीब देशों को यह भी पता नहीं होता है कि इनपर कभी चर्चा भी हुई थी। अनेक देशों के पास इतने व्यापार कर्मियों की पर्याप्त संख्या भी नहीं होती जो सभी चर्चाओं में सहभागी हो सकें, या विश्व व्यापार संगठन में स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त कर सकें। इससे गरीब देशों को अपने हितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाने के कारण गंभीर हानि होती है। इसी प्रकार, कुछ देश इतने गरीब हैं कि वे विश्व व्यापार संगठन की चुनौतियों से अपना संरक्षण करने में भी अक्षम हैं, अतः अपनी रक्षा पर खर्च करने के बजाय वे अपने कानूनों को परिवर्तित कर देते हैं। 

















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PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 4
यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 4
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
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