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संयुक्त राष्ट्र
1.0 संयुक्त राष्ट्र संघ
संयुक्त राष्ट्र संघ एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना सन 1945 में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इसका पूर्ववर्ती अप्रभावशाली राष्ट्र संघ था जिसका पतन इसके शीर्ष सदस्यों के आतंरिक विरोधाभासों के कारण हुआ और अंतत द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ। इस अनुभव से विभिन्न देशों को सीख मिली और अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट ने राष्ट्र संघ के उत्तराधिकारी अभिकरण पर चर्चा शुरू की। इस प्रकार के किसी अन्य संघर्ष की रोकथाम की दृष्टि से ही संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ के लक्ष्य और कार्य इसके संस्थापक घोषणापत्र में शामिल उद्देश्यों और सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रचना और इस पर बातचीत सोवियत संघ, यूके, अमेरिका और चीन के प्रतिनिधियों के बीच वर्ष 1944 में हुए डंबार्टन ओक्स सम्मलेन के दौरान हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ आधिकारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थाई सदस्यों - फ्रांस, चीनी गणराज्य, सोवियत संघ, यूके और अमेरिका- और अन्य 46 हस्ताक्षरकर्ताओं के बहुमत द्वारा इसके घोषणापत्र की प्रतिपुष्टि करने के बाद 24 अक्टूबर 1945 को अस्तित्व में आया।
इसकी स्थापना के समय संयुक्त राष्ट्र संघ के 51 सदस्य देश थे; अब यह संख्या 193 है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयॉर्क शहर के मैनहटन में है और इसे अतिरिक्त क्षेत्रीयता प्राप्त है। इसके अन्य मुख्य कार्यालय जिनेवा, नैरोबी और विएना में स्थित हैं। इस संगठन का वित्त पोषण इसके सदस्य देशों से प्राप्त मूल्यांकित और स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से होता है। कुछ लोग कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना वास्तव में जनवरी 1942 में 26 संस्थापक सदस्य देशों की सरकारों द्वारा ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र’’ पर हस्ताक्षर करने के साथ हुई जिनमें पोलैंड की युद्धकालीन निर्वासन में सरकार भी शामिल थी जो उस समय लंदन में स्थित थी। यह प्रथम अवसर था जब ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ’’ आधिकारिक दस्तावेजों में उपयोग किया गया था।
इसके उद्देश्यों में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखना, मानवाधिकारों का संवर्धन, सामाजिक और आर्थिक विकास को बढावा देना, पर्यावरण का संरक्षण, और अकाल, प्राकृतिक आपदाओं और सशस्त्र संघर्षों में मानवतावादी सहायता प्रदान करने जैसे कार्य शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र (चार्टर) पर 26 जून 1945 को हस्ताक्षर किये गए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी स्थापना का 70 वां वर्ष मन रहा है।
अंतरशासकीय बैठकों और दस्तावेजों में उपयोग की जाने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की छह आधिकारिक भाषाएँ हैं अरबी, चीनी, अंग्रेजी फ्रांसीसी, रूसी और स्पेनिश। संयुक्त राष्ट्र संघ और इसके अभिकरणों को उन देशों के कानूनों से प्रतिरक्षा प्राप्त है जहाँ वे मेजबान और सदस्य देशों के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ की निष्पक्षता की सुरक्षा के लिए कार्यरत हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ नोबलमेयर सिद्धांत (Noblemaire Principle) का पालन करता है जो किसी भी प्रणालीगत संगठन पर बंधनकारक है। यह सिद्धांत उन वेतनों की मांग करता है जो विभिन्न देशों के नागरिकों को वहां ले जायेंगे और बनाये रखेंगे जहाँ वेतन अधिकतम हैं, साथ ही यह सिद्धांत कर्मचारियों की राष्ट्रीयता का विचार किये बिना समान मूल्य के कार्य के लिए समान वेतन की भी मांग करता है। कर्मचारियों के वेतन एक आतंरिक कर के अधीन होते हैं जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठनों द्वारा प्रशासित किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यला, नूयार्क शहर |
1.1 शीत युद्ध और संयुक्त राष्ट्र संघ
अमेरिका और सोवियत संघ और उनके संबंधित मित्र देशों के बीच जारी शीत युद्ध के कारण आरंभिक दशकों के दौरान विश्व शांति की रक्षा करने का संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य कोई आसान कार्य नहीं था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोरिया और कांगो में प्रमुख कार्रवाइयों में हिस्सा लिया, साथ ही वर्ष 1947 में इज़राइल देश के निर्माण के अनुमोदन के कार्य में भी संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1960 के दशक में हुए उपनिवेशों की राजनैतिक स्वतंत्रता के व्यापक दौर के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी सदस्य संख्या में अनेक नए देशों को जोडा, और 1970 के दशक तक आर्थिक और सामाजिक विकास कार्यक्रमों पर इसका बजट शांति स्थापना पर होने वाले व्यय की तुलना में कहीं अधिक हो गया था। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व भर में प्रमुख सैन्य और शांति स्थापना अभियान चलाये जिनमें उसे विविध अंशों में सफलता प्राप्त हुई।
1.2 संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणापत्र (चार्टर)
इसके घोषणापत्र में अंतर्निहित शक्ति के कारण और इसके विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ 21 वीं सदी में मानवता के समक्ष उपस्थित होने वाले मुद्दों पर कार्रवाई कर सकता है, जैसे शांति और सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, धारणीय विकास, मानव अधिकार, नि शस्त्रीकरण, आतंकवाद, मानवतावादी और स्वास्थ्य संबंधी अकस्मिकताएं, लैंगिक समानता, शासन, खाद्यान्न उर्पदं और अन्य अनेक। हालांकि आलोचकों का दावा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ उतना प्रभावशाली नहीं है जतना इसे होना चाहिए परंतु फिर भी जब भी कोई अंतर्राष्ट्रीय संकट उपस्थित होता है तो संयुक्त राष्ट्र संघ कठोर प्रयास करता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र पर 26 जून 1945 को सैन फ्रांसिस्को में हुए संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय संगठन के अधिवेशन के समापन के समय हस्ताक्षर हुए और यह घोषणापत्र 24 अक्टूबर 1945 से प्रभावशाली हो गया। अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय का कानून घोषणापत्र का अभिन्न हिस्सा है।
संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र पर हस्ताक्षर होते हुए २६ जून १९४५ |
1.2.1 संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र की संरचना
संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणापत्र प्रस्तावना और 19 अध्यायों (खंड़ों) से मिलकर बना है।
प्रस्तावना
अध्याय I (अनुच्छेद 1-2) उद्देश्य और सिद्धांत
अध्याय II (अनुच्छेद 3-6) सदस्यता
अध्याय III (अनुच्छेद 7-8) संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग
अध्याय IV (अनुच्छेद 9-22) संयुक्त राष्ट्र महासभा
अध्याय V (अनुच्छेद 23-32) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
अध्याय VI (अनुच्छेद 33-38) विवादों का शान्तिप्रद समाधान
अध्याय VII (अनुच्छेद 39-51) शांति के लिए खतरे के संबंध में की जाने वाली कार्रवाई, विश्व शांति का उल्लंघन और आक्रमणकारी कार्य
अध्याय VIII (अनुच्छेद 52-54) क्षेत्रीय व्यवस्थाएं
अध्याय VX (अनुच्छेद 55-60) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग
अध्याय X (अनुच्छेद 61-72) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद
अध्याय XI (अनुच्छेद 73-74) गैर-स्व-शासित प्रदेशों के संबंध में घोषणा
अध्याय XII (अनुच्छेद 75-85) अंतर्राष्ट्रीय न्यासधारिता प्रणाली
अध्याय XIII (अनुच्छेद 86-91) न्यासधारिता परिषद
अध्याय XIV (अनुच्छेद 92-96) अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय
अध्याय XV (अनुच्छेद 97-101) संयुक्त राष्ट्र सचिवालय
अध्याय XVI (अनुच्छेद 102-105) विविध प्रावधान
अध्याय XVII (अनुच्छेद 106-107) संक्रमणकालीन सुरक्षा व्यवस्थाएं
अध्याय XVIII (अनुच्छेद 108-109) संशोधन
अध्याय XVX (अनुच्छेद 110-111) अनुसमर्थन और हस्ताक्षर
1.2.2 संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र की प्रस्तावना
संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र |
2.0 संयुक्त राष्ट्र संघ के छह प्रमुख अंग (Six Principle Organs)
संयुक्त राष्ट्र संघ के छह प्रमुख अंग हैं। ये अंग निम्नानुसार हैं
- संयुक्त राष्ट्र महासभा (संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क) - प्रमुख विचारशील सभा
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क), अंतर्राष्ट्रीय मामलों में शांति एवं सुरक्षा के लिए कुछ विशिष्ट प्रस्तावों के निर्णय के लिए
- आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ईसीओएसओसी) (संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क) - अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक सहयोग और विकास के संवर्धन के लिए
- संयुक्त राष्ट्र सचिवालय (संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क) - अध्ययन, सूचनाएं एवं जानकारियां और संयुक्त राष्ट्र के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए, अत यह संयुक्त राष्ट्र का एक प्रशासनिक अंग है
- अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय (हेग, नीदरलैंड्स) - प्राथमिक न्यायिक अंग, एक सार्वभौमिक न्यायालय
- संयुक्त राष्ट्र न्यासधारिता परिषद - शेष अंतिम संयुक्त राष्ट्र न्यास प्रदेश पलाऊ की स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1994 से निष्क्रिय है।
2.1 संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA)
संयुक्त राष्ट्र महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य विचारशील, नीति निर्माता और प्रतिनिधिक अंग है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी 193 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व होता है, जो इसे संयुक्त राष्ट्र संघ का एकमात्र ऐसा निकाय बनाता है जिसमें सार्वभौमिक प्रतिनिधित्व है। प्रत्येक वर्ष सितंबर महीने में होने वाले वार्षिक संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन और सामान्य वाद-विवाद में संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र हॉल में होने वाली बैठक में हिस्सा लेते हैं, जिसमें अनेक राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं और इस अधिवेशन को संबोधित करते हैं। महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णयों के लिए, जैसे शांति एवं सुरक्षा से संबंधित विषय, नए सदस्यों को प्रवेश देने संबंधित विषय और बजट से संबंधित विषय, संयुक्त राष्ट्र महासभा के दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता होती है। अन्य विषयों से संबंधित निर्णय सामान्य बहुमत द्वारा लिए जाते हैं। प्रति वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा सदस्य देशों में से घूर्णन पद्धति (रोटेशन बेसिस) के आधार पर एक महासभा अध्यक्ष का चुनाव करती है जिनका कार्यकाल एक वर्ष का होता है, साथ ही इसके 21 उपाध्यक्ष भी होते हैं। इसका पहला अधिवेशन 10 जनवरी 1946 को लंदन में वेस्टमिंस्टर के मेथोडिस्ट केंद्रीय कक्ष में आयोजित किया गया था और इस अधिवेशन में 51 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की शीर्ष कार्यसूची
- बजट का अंगीकरण करती है
- सदस्य देशों या सुरक्षा परिषद को सुझावों के लिए गैर-अनिवार्य सिफारिशों का प्रस्ताव पारित कर सकती है
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गैर-स्थाई सदस्यों, ईसीओएसओसी के सभी सदस्यों, संयुक्त राष्ट्र महासचिव (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा उनके प्रस्ताव के बाद), और अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय के पंद्रह न्यायाधीशों का निर्वाचन करती है। प्रत्येक देश को एक मत प्राप्त होता है
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा दिए गए प्रस्ताव के पश्चात नए सदस्यों के प्रवेश पर निर्णय लेती है
जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में महत्वपूर्ण प्रश्नों पर मतदान होता है, तो इसके लिए उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। महत्वपूर्ण प्रश्नों के उदाहरणों में शांति एवं सुरक्षा पर की गई सिफारिशें; संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न खण्डों के लिए सदस्यों का निर्वाचन, सदस्यों का प्रवेश, निलंबन और निष्कासन, और बजट से संबंधित मामले शामिल हैं। अन्य सभी मामलों का निर्णय बहुमत द्वारा किया जाता है। प्रत्येक सदस्य देश को एक मत प्राप्त है। बजट संबंधी मामलों के अनुमोदन के अतिरिक्त अन्य प्रस्ताव सदस्य देशों पर बंधनकारक नहीं होते। संयुक्त राष्ट्र महासभा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विचाराधीन शांति और सुरक्षा के मामलों को छोड़कर संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यक्षेत्र में आने वाले अन्य किसी भी मामले पर अपनी सिफारिशें प्रदान कर सकती है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा को मसौदा प्रस्ताव आठ समितियों द्वारा प्रेषित किये जा सकते हैं सामान्य समिति, साख समिति (क्रेडेंशियल्स समिति), प्रथम समिति (निरस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा), द्वितीय समिति (आर्थिक एवं वित्तीय), तृतीय समिति (सामाजिक, मानवतावादी एवं सांस्कृतिक), चतुर्थ समिति (विशेष राजनीतिक एवं राजनैतिक स्वतंत्रता), पंचम समिति (प्रशासकीय एवं बजट संबंधी) और षष्टम समिति (न्यायिक)
सामान्य सभा |
2.2 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN SC)
संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के तहत अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की होती है। इसमें 15 सदस्य हैं - पांच स्थाई सदस्य जिन्हें वीटो करने का अधिकार प्राप्त है, और दस निर्वाचित सदस्य - और प्रत्येक सदस्य को एक मत प्राप्त होता है। घोषणापत्र के अनुच्छेद 25 की शर्तों के तहत परिषद के निर्णयों का अनुपालन करना प्रत्येक सदस्य देश का कर्तव्य है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ के किसी भी अंग के लिए उपलब्ध एकमात्र घटना है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता होती है जो घूमती है और प्रत्येक महीने में परिवर्तित होती है। सुरक्षा परिषद के निर्णयों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव कहा जाता है।
वर्तमान समय में सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य वे ‘‘महान शक्तियां‘‘ हैं जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में विजय प्राप्त की थी, अर्थात, चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। सुरक्षा परिषद के गैर-स्थाई सदस्य हैं अंगोला (जिसका कार्यकाल 2016 में समाप्त हो रहा है), चाड (2015), चिली (2015), जॉर्डन (2015), लिथुआनिया (2015), मलेशिया (2016), न्यूजीलैंड (2016), नाइजीरिया (2015), स्पेन (2016), और वेनेजुएला (2016) पांच स्थाई सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों को वीटो करने का अधिकार प्राप्त है, जिसके तहत कोई स्थाई सदस्य बिना किसी बहस के किसी प्रस्ताव के अंगीकरण को रोक सकता है। इस अधिकार की भारत जैसे देशों द्वारा तेजी से बदलते हुए 21 वीं सदी के परिदृश्य में एक कालभ्रमित स्थिति के रूप में आलोचना की जाती रही है। दस अस्थाई स्थान दो वर्ष के कार्यकाल के लिए होते हैं, जहां सदस्य देश क्षेत्रीय आधार पर सुरक्षा परिषद में मतदान करते हैं।
एक प्रस्तावित उपाय है स्थाई सदस्य संख्या में पांच स्थानों की वृद्धि करना, जिसमें, अधिकांश प्रस्तावों में ब्राजील, जर्मनी, भारत, जापान (जिन्हें जी-4 देश कहा जाता है), और एक स्थान अफ्रीका से (जिसमें अधिक संभावना मिस्र, नाइजीरिया या दक्षिण अफ्रीका में से एक की हो सकती है) और/या एक स्थान अरब लीग से। 21 सितंबर 2004 को जी-4 देशों ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया था जिसमें स्थाई दर्जे के लिए परस्पर एक दूसरे के दावे का समर्थन किया गया था, जिसमें दो अफ्रीकी देश भी शामिल थे। वर्तमान समय में इस प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद के दो-तिहाई सदस्य देशों (128 मतों) द्वारा स्वीकार किया जाना है।
15 अप्रैल 2011 को चीन ने स्पष्ट रूप से भारत की शरक्षा परिषद की महात्वाकांक्षा की पुष्टि किये बिना आधिकारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की बढ़ी हुई भूमिका का समर्थन किया था। हालांकि हाल ही में चीन ने सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के रूप में भारत की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है बशर्ते कि भारत जापान की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन वापस ले ले, इस प्रकार से भारत एकमात्र ऐसा देश बन गया है जिसे सभी स्थाई सदस्यों और अधिकांश अन्य सदस्य देशों का भी समर्थन किसी न किसी रूप में प्राप्त है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद विश्व शांति को किसी भी प्रकार के खतरे या आक्रामकता के कार्य के निर्धारण में नेतृत्व की भूमिका निभाती है। वह विवादित मामलों में संबंधित पक्षों से शांतिपूर्ण तरीके से विवाद को सुलझाने का आग्रह करती है और समाधान की शर्तों में समन्वय स्थापित करने वाले उपायों की सिफारिश करती है। कुछ मामलों में सुरक्षा परिषद प्रतिबंध अधिरोपित करने के तरीके का भी उपयोग कर सकती है और यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा प्रस्थापित करने के लिए बल प्रयोग करने का अधिकार भी प्रदान कर सकती है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र महासभा को संयुक्त राष्ट्र महासचिव की नियुक्ति और संयुक्त राष्ट्र संघ में नए सदस्यों के प्रवेश पर भी सिफारिश करती है। और संयुक्त राष्ट्र महासभा के साथ मिलकर संयुक्त रूप से यह अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय के न्यायाधीशों का चुनाव भी करती है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने के लिए उत्तरदाई है। यह अनिवार्य प्रस्तावों का भी अंगीकरण कर सकती है।
सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का प्रवर्तन सामान्यत संयुक्त राष्ट्र शांति सेनाओं द्वारा किया जाता है जो सदस्य देशों द्वारा स्वैच्छिक रूप से प्रदान किये गए सैन्य बल होते हैं, और इसका वित्तपोषण स्वतंत्र रूप से संयुक्त राष्ट्र के मुख्य बजट से किया जाता है। वर्ष 2016 की स्थिति के अनुसार 106,245 शांति सैनिक और 18,501 नागरिक 16 शांतिसेना अभियानों और 1 विशेष राजनीतिक अभियान पर तैनात किये गए थे। सुरक्षा परिषद की प्रभावशीलता के मूल्यांकन मिश्रित स्वरुप के हैं, और इसमें सुधारों की मांग इस निकाय की पहली बैठक के पहले से की जाती रही है; हालांकि इसकी संरचना में किस प्रकार का परिवर्तन किया जाए इस विषय पर बहुत थोड़ी आमसहमति बन पाई है।
सुरक्षा परिषद् |
2.3 आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC)
आर्थिक एवं सामाजिक परिषद समन्वय, नीतिगत समीक्षा, नीतिगत चर्चा और आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर सिफारिशों, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत विकास लक्ष्यों के क्रियान्वयन की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र संघ का एक महत्वपूर्ण और प्रमुख निकाय है। यह आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की गतिविधियों के लिए एक केंद्रीय तंत्र के रूप में कार्य करती है, और साथ ही यह सहयोगी और विशेषज्ञ निकायों के पर्यवेक्षण का कार्य भी करती है। इसमें 54 सदस्य हैं, जिनका निर्वाचन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अतिव्यापी तीन वर्षों के कार्यकालों के लिए किया जाता है। इसके अध्यक्ष का निर्वाचन एक वर्ष के कार्यकाल के लिए किया जाता है और इनका चयन ईसीओएसओसी में प्रतिनिधित्व करने वाली छोटी या मध्यम शक्तियों में से किया जाता है। यह धारणीय विकास पर परावर्तन, बहस और अभिनव विचारों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का केंद्रीय मंच है।
ईसीओएसओसी
- यह विभिन्न देशों के बीच आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के संबंध में सहयोग के लिए उत्तरदायी है;
- यह संयुक्त राष्ट्र संघ के असंख्य विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरणों के बीच सहयोग का समन्वय करता है;
- इसमें 54 सदस्य हैं, जिनका निर्वाचन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विचलता वाले तीन वर्ष की सेवा के कार्यकाल के अधिदेश के लिए किया जाता है।
ईसीओएसओसी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग और विकास के संवर्धन में संयुक्त राष्ट्र महासभा की सहायता करता है। इस परिषद की एक वार्षिक बैठक प्रति वर्ष जुलाई माह में या तो न्यूयॉर्क या जिनेवा में आयोजित की जाती है।
यह जिन विशेषज्ञता प्राप्त निकायों का समन्वय करता है उनसे इसे अलग देखा जाता है। ईसीओएसओसी के कार्यों में सूचनाएं एकत्रित करना, सदस्य देशों को सलाह एवं परामर्श देना, और सिफारिशें करने जैसे कार्य शामिल हैं। अनेक अभिकरणों के बीच समन्वय के इसके व्यापक अधिदेश के कारण अनेक अवसरों पर ईसीओएसओसी की अस्पष्ट या अप्रासंगिक के रूप में आलोचना भी की जाती है।
ईसीओएसओसी के सहयोगी निकायों में निम्न निकाय शामिल हैं - स्वदेशीय मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र स्थाई मंच, जो स्वदेशीय लोगों से संबंधित मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के अभिकरणों को सलाह देता है य वनों पर संयुक्त राष्ट्र मंच, जो धारणीय वन प्रबंधन का समन्वय और संवर्धन करता है य संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग, जो विभिन्न अभिकरणों और धारणीय विकास की दिशा में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों के बीच सूचनाएं एकत्रित करने के प्रयासों का समन्वय करता है। ईसीओएसओसी गैर-सरकारी संगठनों को परामर्शदाता का दर्जा भी प्रदान कर सकता है य वर्ष 2004 तक 2,200 से अधिक संगठनों को यह दर्जा प्राप्त हो चुका था।
बड़ी संख्या में गैर-सरकारी संगठनों को संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य में सहभागी होने के लिए परिषद के परामर्शदाता का दर्जा प्रदान किया जा चुका है।
जुलाई 2011 के आरंभ में जारी की गई एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र संघ ने श्एक प्रमुख ग्रहीय तबाहीश् की रोकथाम के लिए हरित प्रौद्योगिकियों पर लगभग 2 खरब डॉलर व्यय करने का आह्वान किया था, जिसमें यह चेतावनी दी गई थी कि ष्यह तेजी से ऐसी ऊर्जा के उपयोग का विस्तार कर रही है, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन से उत्प्रेरित है, इससे स्पष्ट हो जाता है कि क्यों मानवतावैश्विक उष्मन, जैव-विविधता की हानि और नाइट्रोजन चक्र संतुलन में व्यवधान और पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र की धारणीयता के अन्य उपायों के माध्यम से ग्रहीय धारणीयता की सीमाओं का उल्लंघन करने की कगार पर है।‘‘
इसका अभिकल्प (डिजाइन) ही इसका संदेश है संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन भवन में स्थित ईसीओएसओसी कक्ष स्वीडन से प्राप्त एक उपहार है। इसकी परिकल्पना स्वीडिश वास्तुविद स्वेन मार्केलियस द्वारा की गई थी। सार्वजनिक दीर्घा के ऊपर छत में बने पाइप और नालियां जानबूझ कर अनाच्छादित रखी गई थीं; वास्तुविद का मानना था कि किसी भी उपयोगी वस्तु को बिना ढंके रखना चाहिए। ष्अपूर्णष् छत इस बात का प्रतीकात्मक अनुस्मारक है कि संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक और सामाजिक कार्य कभी पूर्ण नहीं होता; विश्व के लोगों के जीवन की स्थितियों में सुधार के लिए जितना किया गया है या किया जा रहा है उससे कुछ अधिक करना निश्चित रूप से बाकी रहेगा।
आर्थिक अवं सामाजिक परिषद् |
2.4 संयुक्त राष्ट्र सचिवालय (Secretariat)
संयुक्त राष्ट्र का सचिवालय संयुक्त राष्ट्र महासचिव और ऐसे हजारों अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र कर्मचारियों से मिल कर बना है, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और इस संगठन के अन्य प्रमुख अंगों के अधिदेश के अनुसार संयुक्त दैनंदिन कार्य करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव संगठन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनकी नियुक्ति पांच वर्ष के नवीकरणीय कार्यकाल के लिए सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के कर्मचारी वर्ग की भर्ती अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और स्थानीय स्तर पर की जाती है और यह कर्मचारी वर्ग अपने कर्तव्य स्थलों पर और शांति सेनाओं के अभियानों पर विश्व भर में कार्यरत रहता है। परंतु एक हिंसक विश्व में शांति के लिए कार्य करना वास्तव में एक खतरनाक नौकरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय से ही सैकड़ों वीर पुरुषों एवं महिलाओं ने इसकी सेवा में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया है।
संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय व सचिवालय |
वर्तमान महासचिव बान की-मून हैं, जिन्हें वर्ष 2017 में प्रतिस्थापित किया जाना है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ के वस्तुत प्रवक्ता और नेता हैं। संयुक्त राष्ट्र घोषणा में इस पद की परिभाषा संगठन के ‘‘मुख्य प्रशासनिक अधिकारी‘‘ के रूप में की गई है। घोषणापत्र का अनुच्छेद 99 कहता है कि महासचिव सुरक्षा परिषद का ध्यान किसी भी ऐसे मामले की ओर दिला सकते हैं जो उनके विचार से अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखने की दृष्टि से खतरनाक हो सकता हैष्, यह एक ऐसा वाक्यांश है जिसकी व्याख्या ट्रीगवी ली से लेकर अब तक के महासचिवों ने इस प्रकार की है कि यह इस पद के कार्यक्षेत्र को इतना व्यापक बनाता है कि वे विश्व मंच पर कार्यवाही करने में सक्षम हैं।
इस पद का विकास एक दोहरी भूमिका के रूप में हुआ है जिसका कार्य संयुक्त राष्ट्र संगठन के प्रशासक के रूप में भी है और उसी समय एक राजनयिक और मध्यस्थ के रूप है जो सदस्य देशों के बीच के विवादों को संबोधित करता है और वैश्विक मुद्दों पर आमसहमति बनाने का कार्य करता है।
2.5 अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)
अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य न्यायिक अंग है। इसका स्थान हेग (नीदरलैंड) के शांति महल में स्थित है। इस न्यायालय की भूमिका विभिन्न देशों द्वारा उसके समक्ष प्रस्तुत किये गए न्यायिक विवादों का अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार समाधान करने की है, साथ ही संयुक्त राष्ट्र के अधिकृत अंगों और विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरणों द्वारा प्रेषित किये गए न्यायिक प्रश्नों पर अपनी सलाहकारी राय प्रदान करना भी है। इस न्यायालय ने युद्ध अपराधों से संबंधित, देशों द्वारा किये गए अवैध हस्तक्षेप से संबंधित, जातीय सफाई से संबंधित और अन्य अनेक मुद्दों से संबंधित मामलों की सुनवाई की है। अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय से संयुक्त राष्ट्र के अन्य संगठनों की ओर से परामर्शदात्री सलाह की मांग भी की जा सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिनका कार्यकाल 9 वर्ष का होता है और इनकी नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की जाती है; प्रत्येक आसीन न्यायाधीश अलग देश से होना चाहिए।
इस न्यायालय के कुछ उल्लेखनीय निर्णयों में यह निर्णय भी शामिल है जिसमें न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि वर्ष 2008 में कोसोवो द्वारा सर्बिया से स्वतंत्रता की एकतरफा घोषणा से अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं हुआ था।
न्यायालय के कार्यभार में व्यापक न्यायिक गतिविधियाँ शामिल हैं। न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिए जाने के बाद, कि निकारागुआ के विरुद्ध अमेरिका द्वारा किया गया छद्म युद्ध अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन था (निकारागुआ बनाम अमेरिका), अमेरिका ने 1986 में अनिवार्य कार्यक्षेत्र से अपना नाम वापस ले लिया था और उसने यह निर्णय किया कि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को मामला-दर-मामला आधार पर ही स्वीकार करेगा। संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र की अध्याय 14 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अधि.त करता है कि वह न्यायालय के निर्णय का प्रवर्तन सुनिश्चित करे। हालांकि यह प्रवर्तन परिषद के पांच स्थाई सदस्यों के वीटो अधिकार के अधीन है, जिसका उपयोग अमेरिका ने निकारागुआ मामले में किया था।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय |
अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय का गठन : अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पंद्रह न्यायाधीश होते हैं जिनका निर्वाचन संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्ष के कार्यकाल के लिए उन व्यक्तियों की सूची में से किया जाता है जिनका नामांकन राष्ट्रीय समूहों द्वारा स्थाई मध्यस्थता न्यायालय में किया गया है। न्यायालय के भीतर निरंतरता सुनिश्चित उद्देश्य से न्यायाधीशों का निर्वाचन विचलता से होता है जहां प्रत्येक तीन वर्षों में पांच न्यायाधीशों का चुनाव किया जाता है। यदि पद पर रहते हुए किसी न्यायाधीश की मृत्यु होती है तो प्रथा यह है कि संबंधित न्यायाधीश के बचे हुए कार्यकाल के लिए विशेष चुनाव के माध्यम से नए न्यायाधीश का चुनाव किया जाता है।
न्यायालय में कोई भी दो न्यायाधीश एक ही देश से नहीं हो सकते हैं। अनुच्छेद 9 के अनुसार न्यायालय की सदस्यता ‘‘सभ्यता के मुख्य रूपों और विश्व की प्रमुख न्यायिक प्रणालियों‘‘ का प्रतिनिधित्व करने वाली मानी जाती है। अनिवार्य रूप से इसका अर्थ है सामान्य कानून, नागरिक कानून और समाजवादी कानून (अब साम्यवादी कानून के पश्चात का कानून)।
एक अनौपचारिक मान्यता यह है कि स्थानों का वितरण भौगोलिक क्षेत्रों द्वारा किया जायेगा। पश्चिमी देशों को पांच स्थान मिलें तीन स्थान अफ्रीकी देशों को मिलें (जिनमें एक न्यायाधीश फ्रैंकोफोन नागरिक कानून से हो, एक न्यायाधीश एंग्लोफोन सामान्य कानून से हो एयर एक अरब हो), दो न्यायाधीश पूर्वी यूरोपीय देशों से हों, तीन एशियाई देशों से हों और दो न्यायाधीश लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों से हों।
संयुक्त राष्ट सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देशों (फ्रांस, रूस, चीन, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम) का एक न्यायाधीश हमेशा न्यायालय में रहता ही है, जिसके कारण तीन पश्चिमी देशों के स्थान भर जाते हैं, एक एशियाई स्थान और एक पूर्वी यूरोपीय स्थान भी हमेशा भरा रहता है। इसमें एकमात्र अपवाद चीन का था जिसका वर्ष 1967 से 1985 तक न्यायालय में कोई भी न्यायाधीश नहीं था क्योंकि चीन ने कभी भी इस पद के लिए अपना उम्मीदवार प्रस्तुत नहीं किया।
न्यायाधीश संयुक्त निर्णय भी दे सकते हैं या अपने स्वतंत्र निर्णय भी दे सकते हैं। निर्णय और सलाहकारी राय बहुमत से निर्धारित होती है, और समान वितरण की स्थिति में अध्यक्ष का मत निर्णायक बन जाता है। ऐसा तब हुआ था जब सशस्त्र संघर्ष के दौरान किसी देश द्वारा परमाणु अस्त्रों का उपयोग किये जाने की स्थिति की वैधता (विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुरोध की गई राय पर) (अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय रिपोर्ट 66) पर राय मांगी गई थी। न्यायाधीश स्वतंत्र परस्पर विरोधी राय भी दे सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का कार्यक्षेत्र : संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 93 में उल्लेख किये गए अनुसार सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश स्वचालित रूप से न्यायालय के कानून के पक्ष बन जाते हैं। अनुच्छेद 93(2) की प्रक्रिया के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ के गैर-सदस्य देश भी न्यायालय के कानून के पक्ष बन सकते हैं। उदाहरणार्थ, संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य देश बनने से पहले स्विट्जरलैंड ने इस प्रक्रिया का उपयोग पक्ष बनने के लिए 1948 में किया था, उसी प्रकार नाउरू वर्ष 1988 में ऐसा ही पक्ष बना था। एक बार यदि कोई देश न्यायालय के कानून का पक्ष बन जाता है, तो उसके लिया अनिवार्य है कि उसे न्यायालय के समक्ष मामले में सहभागी होना होगा। हालांकि कानून का पक्ष बनने मात्र से ही न्यायालय को संबंधित विवाद में शामिल पक्षों के विवाद में स्वचालित रूप से क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं होता। क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के दो प्रकार के मामलों में विचार किया जाता है विवादस्पद मुद्दे और परामर्शदात्री राय।
कुछ कठिन मामले
- मेन की खाड़ी (Gulf of Maine) क्षेत्र में अमेरिका और कनाडा को विभाजित करने वाली समुद्री सीमा के मार्ग पर हुआ विवाद
- कांगो लोकतांत्रिक गणतंत्र द्वारा की गई इस शिकायत पर कि यूगांडा द्वारा उसकी संप्रभुता का उल्लंघन किया गया था और इसके कारण कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य को अरबों डॉलर मूल्य के संसाधनों की हानि हुई थी। इस मामले का निर्णय कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के पक्ष में हुआ था
- अमेरिकी नौसेना के निर्देशित मिसाइल क्रूजर द्वारा ईरान एयर की उडान 655 को मार गिराने के बाद ईरान द्वारा की गई एक शिकायत
- वर्ष 1980 में अमेरिका द्वारा दायर की गई एक शिकायत कि ईरान अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए अमेरिकी राजनयिकों को तेहरान में बंदी बनाये हुए था
- तुनिशिया और लीबिया के बीच दोनों देशों के बीच की महाद्वीपीय जल-सीमा संबंध में हुए एक विवाद पर
आलोचना : अपने निर्णयों के संबंध में, प्रक्रियाओं के संबंध में, और इसके अधिकार के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की आलोचना भी हुई है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की आलोचना के संबंध में होता आया है सदस्य देशों द्वारा की गई अधिकांश आलोचनाएं इस निकाय को इसके घोषणा पत्र के माध्यम से प्रदान किये गए सामान्य अधिकारों से संबंधित हैं न कि निर्णय देने वाले न्यायाधीशों के गठन से संबंधित समस्याओं के संबंध में। न्यायालय की प्रमुख आलोचनाएं निम्नानुसार हैं -
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को अधिकारों की पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है, क्योंकि सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य देश मामलों के प्रवर्तन पर वीटो के अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं, ऐसे मामलों पर भी जहां उन्होंने इन्हें मानने के लिए स्वीकृति दी थी
- ‘‘अनिवार्य‘‘ क्षेत्राधिकार केवल उन्हीं मामलों तक सीमित है जहां दोनों पक्ष न्यायालय के निर्णय के प्रति समर्पित होने के लिए राजी हो गए हैं, अत आक्रमण की घटनाएं अपने आप बढ़ने लगती हैं और इनका न्याय निर्णय सुरक्षा परिषद द्वारा किया जाता है
- अंतर्राष्ट्रीय कानून के संप्रभुता के सिद्धांत के अनुसार कोई भी देश दूसरे देश के विरुद्ध श्रेष्ठ या कनिष्ठ नहीं है। अत ऐसी कोई संस्था नहीं है जो देशों को कानून का पालन करने के लिए बाध्य कर सके, या यदि कानून के उल्लंघन की घटना होती है तो देशों को इसके लिए दण्डित किया जाता है।
- संगठन, निजी उपक्रम और व्यक्ति अपने मामले अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष नहीं ले जा सकते हैं, या किसी देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील भी नहीं की जा सकती है।
- अन्य विद्यमान अंतर्राष्ट्रीय विषयगत न्यायालय जैसे आईसीसी भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की छतरी के अंतर्गत नहीं आते। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के विपरीत आईसीसी जैसे अंतर्राष्ट्रीय विषयगत न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों के बीच इस प्रकार की दोहरी संरचना कई बार न्यायालयों के लिए यह कठिन बना देती है कि वे प्रभावी और सामूहिक क्षेत्राधिकार में शामिल हो पाएं।
3.0 कोष, कार्यक्रम, विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरण और अन्य
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, जिसे अनाधिकारिक तौर पर ‘‘संयुक्त राष्ट्र परिवार‘‘ भी कहा जाता है, का गठन स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ और अनेक सहयोगी कार्यक्रमों, कोषों और विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरणों से मिलकर हुआ है, जिनकी अपनी स्वतंत्र सदस्यता है, नेतृत्व है और बजट है। कार्यक्रमों और कोषों का वित्त पोषण मूल्यांकन किये गए योगदानों के बजाय स्वैच्छिक योगदानों के माध्यम से होता है। विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरण स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिनका वित्त पोषण स्वैच्छिक और मूल्यांकन किये गए अनुदानों के माध्यम से होता है।
3.1 कार्यक्रम और कोष
- यूएनडीपी - संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम : राष्ट्र संघ का वैश्विक विकास संजाल है, जिसका ध्यान लोकतांत्रिक शासन की चुनौतियों, गरीबी न्यूनीकरण, संकट निवारण और पुन प्राप्ति, ऊर्जा और पर्यावरण और एचआईवी/एड्स पर केंद्रित है। यूएनडीपी सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहस्राब्दी का भी समन्वय करता है जिनका उद्देश्य गरीबी न्यूनीकरण है।
- यूएनआईसीईएफ - संयुक्त राष्ट्र बाल कोष : यह बालकों और माताओं को दीर्घकालीन मानवतावादी और विकास सहायता प्रदान करता है।
- यूएनएचसीआर - संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त: यूएनएचसीआर विश्व स्तर पर शरणार्थियों की रक्षा करता है और उनके पुनर्वसन या घर वापसी को सुविधाजनक बनता है
- डब्लूएफपी - विश्व खाद्य कार्यक्रम : इसका लक्ष्य भूख और कुपोषण का उन्मूलन करना है। यह विश्व का सबसे बड़ा मानवतावादी अभिकरण है। प्रति वर्ष यह कार्यक्रम लगभग 75 देशों में लगभग 8 करोड़ लोगों को भोजन उपलब्ध कराता है।
- यूएनओडीसी - नशीले पदार्थों और अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र का कार्यालय : यह सदस्य देशों को नशीले पदार्थों, अपराधों और आतंकवाद से लड़ने में सहायता प्रदान करता है।
- यूएनएफपीए - संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष : यह एक ऐसा विश्व प्रदान करने के लिए प्रमुख संयुक्त राष्ट्र अभिकरण है जहां प्रत्येक गर्भावस्था वांछित है, प्रत्येक जन्म सुरक्षित है, और प्रत्येक युवा व्यक्ति की क्षमता की पूर्ति होती है।
- यूएनसीटीएडी - संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन : संयुक्त राष्ट्र का यह निकाय विकासात्मक मुद्दों के लिए उत्तरदायी है, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार - जो विकास का प्रमुख वाहक है।
- यूएनईपी - संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम : वर्ष 1972 में स्थापित यह संगठन संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर पर्यावरण की आवाज है। यूएनईपी वैश्विक पर्यावरण के समझदार उपयोग और धारणीय विकास के एक उत्प्रेरक, पैरोकार, शिक्षक और सुविधाप्रदाता के रूप में कार्य करता है।
- यूएनआरडब्लूए - संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन शरणार्थियों के लिए राहत एवं कार्य अभिकरण : इसने फिलिस्तीनी शरणार्थियों की चार पीढ़ियों के कल्याण और मानव विकास में योगदान दिया है। इसकी सेवाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा सुविधा, राहत एवं सामाजिक सेवाएं, शिविर अधोसंरचना और सुधार, सूक्ष्म वित्त और आपातकालीन सहायता जैसी सेवाएं शामिल हैं, जिसमें सशस्त्र संघर्ष के दौरान कार्य भी शामिल है। यह केवल संयुक्त राष्ट्र महासभा को ही रिपोर्ट करता है।
- संयुक्त राष्ट्र महिला : संयुक्त राष्ट्र महिला संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के चार पूर्व में विशिष्ट भागों के महत्वपूर्ण कार्यों का विलय करता है और उसका अधिक निर्माण करता है, जिसका ध्यान स्पष्ट रूप से लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित है।
- संयुक्त राष्ट्र आवास : संयुक्त राष्ट्र मानव बसाहट कार्यक्रम का उद्देश्य है सामाजिक दृष्टि से और पर्यावरणीय दृष्टि से धारणीय मानव बस्तियों का संवर्धन करना और सभी के लिए पर्याप्त आश्रय उपलब्ध करना।
3.2 संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरण
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरण स्वायत्त संगठन हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ कार्य कर रहे हैं। इन सभी का बातचीत के जरिए समझौते के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ संबंध स्थापित किया गया। इनमें से कुछ संगठन प्रथम विश्व युद्ध से पहले से अस्तित्व में थे। और कुछ राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) से संबंधित थे। अन्य सभी का गठन लगभग संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ ही हुआ था। और अन्य संगठनों का गठन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उभरने वाली आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया गया था।
- विश्व बैंकः विश्व बैंक का ध्यान अल्प ब्याज दरों के ऋण प्रदाय, ब्याज मुक्त ऋण प्रदाय, और अन्य बातों के अतिरिक्त विकासशील देशों को शिक्षा, स्वास्थ्य, अधोसंरचना, और संचार के साधन प्रदान करने के माध्यम से गरीबी न्यूनीकरण और विश्व व्यापी स्तर पर जीवन स्तर में सुधार पर केंद्रित है।
विश्व बैंक समूह
- अन्तर्कष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी)
- निवेश विवादों के निराकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीएसआईडी)
- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए)
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी)
- बहुपक्षीय निवेश गारंटी अभिकरण (एमआईजीए)
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोषः अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष विभिन्न देशों को भुगतान संतुलन समायोजन में सहजता लाने और तकनीकी सहायता के लिए अस्थाई वित्तीय सहायता प्रदान करके आर्थिक वृद्धि और रोजगार को बढ़ावा देता है। वर्तमान में विश्व के 74 देशों पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का 28 अरब डॉलर बकाया है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठनः विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक तीकरण अभियानों, सार्वजनिक स्वास्थ्य में आने वाली आपात स्थितियों में प्रतिक्रिया देने, सर्वव्यापी इन्लूएंजा के विरुद्ध प्रतिरक्षा करने, और पोलियो और मलेरिया जैसी जीवन के लिए खतरा बनने वाली बीमारियों के उन्मूलन के लिए अभियान चलाने के लिए उत्तरदायी है।
- संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एवं सांस्कृतिक संगठन (यूएनइएससीओ) (यूनेस्को): संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एवं सांस्कृतिक संगठन सभी प्रकार के शिक्षक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है ताकि वैश्विक स्तर पर शिक्षा के सुधार में सहायता प्रदान की जा सके, विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों की सुरक्षा की जा सके। इस वर्ष यूनेस्को ने अपूरणीय खजाने की सूची में 28 नए विश्व धरोहर स्थल शामिल किये हैं जिनका संरक्षण आज के पर्यटकों और भविष्य की पीढ़ियों के लिए किया जायेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठनः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन संगठन बनाने की स्वतंत्रता, सामूहिक सौदेबाजी, बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन, और अवसरों और व्यवहार की समानता पर अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित करने के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों के अधिकारों का संवर्धन करता है।
- खाद्य एवं कृषि संगठनः खाद्य एवं कृषि संगठन भुखमरी से लड़ने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करता है। यह विकासशील और विकसित देशों के बीच बातचीत के जरिये समझौते के लिए मंच का कार्य भी करता है और विकास में सहायता प्रदान करने के लिए तकनीकी ज्ञान के स्रोत के रूप में भी कार्य करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास निधिः 1977 से, जब से इसका गठन हुआ है, अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास निधि ने संपूर्ण रूप से ग्रामीण गरीबी के न्यूनीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है, यह संगठन विकासशील देशों में गरीब ग्रामीण जनसँख्या के साथ काम करता है ताकि गरीबी, भुखमरी और कुपोषण का उन्मूलन किया जा सके; उनकी उत्पादकता में वृद्धि की जा सके; और उनके जीवन स्तर में सुधार किया जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठनः अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ने एक व्यापक नौवहन विनियामक रूपरेखा का निर्माण किया है, जिसमें सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं, कानूनी मामलों, तकनीकी सहयोग, सुरक्षा और कौशल को संबोधित किया गया है।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठनः विश्व मौसम विज्ञान संगठन मौसम संबंधी आंकडों और जानकारी के निःशुल्क अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाता है और अन्य क्षेत्रों के अतिरिक्त विमानन, नौवहन, सुरक्षा और कृषि के क्षेत्रों में इसके उपयोग का संवर्धन करता है।
- विश्व बौद्धिक संपदा संगठनः विश्व बौद्धिक संपदा संगठन 23 अंतर्राष्ट्रीय संधियों के माध्यम से विश्व भर में बौद्धिक संपदा का संरक्षण करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठनः अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन हवाई यातायात पर नियम निर्धारित करता है, हवाई दुर्घटनाओं का अन्वेषण करता है, और हवाई सीमा-उल्लंघन प्रक्रियाओं का अन्वेषण करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघः अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ सूचना एवं दूरसंचार प्रौद्योगिकियों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरण है। यह संगठन विश्व के सभी लोगों को आपस में जोड़ने के पटती समर्पित और प्रतिबद्ध है - फिर वे चाहे कहीं भी रहते हों और उनके साधन कोई भी क्यों न हों। हमारे कार्य के माध्यम से हम प्रत्येक व्यक्ति के संचार के अधिकार की रक्षा करते हैं और उसका समर्थन करते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठनः संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशेषज्ञता प्राप्त अभिकरण है जो गरीबी न्यूनीकरण, समावेशी वैश्वीकरण और पर्यावरणीय धारणीयता के लिए औद्योगिक विकास का संवर्धन करता है।
- सार्वभौमिक डाक संघः सार्वभौमिक डाक संघ डाक क्षेत्र के खिलाड़ियों के बीच सहयोग के लिए प्राथमिक मंच है। यह अद्यतन उत्पादों और सेवाओं के सही अर्थों में सार्वभौमिक संजाल को सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करता है।
- विश्व पर्यटन संगठनः विश्व पर्यटन संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का वह अभिकरण है जो जिम्मेदार, धारणीय और सार्वभौमिक दृष्टि से सुलभ पर्यटन के संवर्धन के लिए उत्तरदायी है।
3.3 संयुक्त राष्ट्र संघ की अन्य संस्थाएं
यूएनएड्स : एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र का संयुक्त कार्यक्रम 10 अन्य संयुक्त राष्ट्र प्रणाली अभिकरणों द्वारा सह-प्रायोजित है रू यूएनएचसीआर, यूएनआईसीईएफ, डब्लूएफपी, यूएनडीपी, यूएनएफपीए, यूएनओडीसी, आईएलओ, यूनेस्को, विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक, और एचआईवी/एड्स के प्रसार को रोकने और इसे अधोमुख करने से संबंधित इसके दस लक्ष्य हैं।
संयुक्त राष्ट्र आपदा न्यूनीकरण कार्यालय : संयुक्त राष्ट्र आपदा न्यूनीकरण कार्यालय आपदा न्यूनीकरण के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट प्रणाली में एक केंद्रबिंदु के रूप में कार्य करता है।
संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा कार्यालय : संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा कार्यालय संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रचालनात्मक अंग है जो विश्व भर में इसके सहयोगियों की शांति निर्माण, मानवतावादी और विकास परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन में सहायता करता है।
3.4 संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्य संबंधित संगठन
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरणः अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण परमाणु क्षेत्र में सहयोग की दृष्टि से विश्व का केंद्र है। यह अभिकरण अपने सदस्य देशों और विश्व भर के बहुविध सहयोगियों के साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों के सकुशल, सुरक्षित, और शांतिपूर्ण उपयोग के संवर्धन के लिए काम करता है।
विश्व व्यापार संगठनः विश्व व्यापार संगठन सरकारों के लिए व्यापार समझौतों पर चर्चा और बातचीत के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, साथ ही यह एक ऐसा स्थान है जहाँ सदस्य देशों की सरकारें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित समस्याओं को हल करने का प्रयास करती हैं।
व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन के लिए तैयारी आयोगः व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन के लिए तैयारी आयोग व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (जो अभी तक प्रभावी नहीं हो पाई है) का संवर्धन करता है, और साथ ही एक सत्यापन शासन का निर्माण करता है ताकि यह तब प्रचालनात्मक हो सके जब व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि प्रभावशाली हो जाए।
रासायनिक हथियार प्रतिबंध संगठनः रासायनिक हथियार प्रतिबंध संगठन रासायनिक हथियार संधिपत्र का क्रियान्वयन निकाय है जो वर्ष 1997 से प्रभावशाली हुआ है। रासायनिक हथियार प्रतिबंध संगठन के सदस्य देश रासायनिक हथियार मुक्त विश्व के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साथ मिलकर काम करते हैं।
4.0 सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी)
सितंबर 2000 में हुई सहस्त्राब्दी शिखर परिषद में, जो इतिहास में विश्व नेतृत्व की अब तक बडी सभा थी, संयुक्त राष्ट्र सहस्त्राब्दी घोषणापत्र को अपनाया गया जिसमें विश्व के नेताओं ने चरम गरीबी को कम करने के लिए एक नाइ वैश्विक भागीदारी के प्रति अपने-अपने देशों की प्रतिबद्धता प्रदर्शित की, और साथ ही वे समयबद्ध निशानों की एक श्रृंखला निर्धारित करने पर भी सहमत हुए, जिसके लिए वर्ष 2015 की समय सीमा निर्धारित की गई। इन्हें ही सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य कहा जाता है।
सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य चरम गरीबी को उसके अनेक आयामों - आय की निर्धनता, भूख, बीमारी, पर्याप्त आश्रय का अभाव, और अपवर्जन - में संबोधित करने के लिए, साथ ही लनिगिक समानता, शिक्षा और पर्यावरणीय धारणीयता का संवर्धन करते हुए विश्व के समयबद्ध और परिमाणित निशाने हैं। वे मूलभूत मानवाधिकार भी हैं - पृथ्वी ग्रह के प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य, शिक्षा, आश्रय और सुरक्षा का अधिकार।
8 लक्ष्यों और 18 निशानों की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृत रूपरेखा को 48 तकनीकी संकेतकों द्वारा भी पूरित किया गया था ताकि सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की दिशा में की गई प्रगति को मापा जा सके। तभी से इन संकेतकों को संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, ओईसीडी और विश्व बैंक के विशेषज्ञों द्वारा अपनाया गया है।
4.1 आठ सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों का विस्तृत वर्णन
लक्ष्य 1ः चरम भुखमरी और गरीबी का उन्मूलन करें
निशाना 1ः वर्ष 1990 और 2015 के बीच ऐसे व्यक्तियों के अनुपात को आधा करें जिनकी आय प्रतिदिन 1 डॉलर से कम है
संकेतक
- 1 डॉलर (1993 पीपीपी) प्रतिदिन से कम आय वाली जनसंख्या का अनुपात (विश्व बैंक)
- निर्धनता अंतर अनुपात ख्भार गुणा निर्धनता की गहराई, (विश्व बैंक)
- राष्ट्रीय उपभोग में निर्धनतम पंचमक का हिस्सा (विश्व बैंक)
निशाना 2ः वर्ष 1990 और 2015 के बीच ऐसे व्यक्तियों का अनुपात आधा करें जो भुखमरी से ग्रस्त हैं
संकेतक
4. पांच वर्ष से कम आयु के कम वजन वाले बच्चों की व्यापकता (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
5. न्यूनतम आहार ऊर्जा खपत के स्तर से नीचे रहने वाली जनसंख्या का अनुपात (खाद्य एवं कृषि संगठन)
लक्ष्य 2ः सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा लाना
निशाना 3ः सुनिश्चित करें कि वर्ष 2015 तक सभी स्थानों के बच्चे, लडके और लड़कियां, प्राथमिक स्कूली शिक्षा के संपूर्ण पाठ्यक्रम को पूर्ण करने में सक्षम हों
संकेतक
6. प्राथमिक शिक्षा में शुद्ध नामांकन अनुपात (यूनेस्को)
7. कक्षा 1 शुरू करने वाले ऐसे बच्चे जो कक्षा 5 तक पहुँच पाते हैं (यूनेस्को)
8. 15-24 वर्ष आयु वर्ग की साक्षरता दर (यूनेस्को)
लक्ष्य 3ः लैंगिक समानता का संवर्धन करें और महिलाओं को सशक्त बनाएं
निशाना 4ः अधिमानतः वर्ष 2005 तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में लैंगिक असमानता को दूर करें, और शिक्षा के सभी स्तरों पर इसे अधिक से अधिक वर्ष 2015 तक दूर करें
संकेतक
9. प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा में बालिकाओं का बालकों के साथ अनुपात (यूनेस्को)
10. 15-24 वर्ष आयु वर्ग में अशिक्षित महिलाओं का पुरुषों के साथ अनुपात (यूनेस्को)
11. गैर-कृषि क्षेत्र में मजदूरी रोजगार में महिकाओं की हिस्सेदारी (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन)
12. राष्ट्रीय संसद में महिलाओं के स्थानों का अनुपात (आईपीयू)
लक्ष्य 4ः शिशु मृत्यु दर को कम करें
निशाना 5ः वर्ष 1990 से 2015 के बीच पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को दो-तिहाई से कम करें
संकेतक
13. पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
14. शिशु मृत्यु दर (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
15. 1 वर्ष की आयु के बच्चों में खसरे के विरुद्ध रोग - प्रतिरक्षा का अनुपात (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
लक्ष्य 5ः मातृत्व स्वास्थ्य में सुधार करें
निशाना 6ः वर्ष 1990 से 2015 के बीच मातृत्व मृत्यु दर का अनुपात तीन-चौथाई से कम करें
संकेतक
16. मातृत्व मृत्यु - दर अनुपात (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
17. कुशल स्वास्थ्य कर्मियों की देखरेख में हुए जन्मों का अनुपात (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
लक्ष्य 6ः एचआईवी/एड्स, मलेरिया और अन्य बीमारियों का मुकाबला करें
निशाना 7ः वर्ष 2015 तक इसकी रोकथाम की गई और एचआईवी/एड्स प्रसार की दिशा उलटी होना शुरू हो गई
संकेतक
18. 15-24 आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में एचआईवी की व्यापकता (यूएनएड्स - विश्व स्वास्थ्य संगठन - यूनिसेफ)
19. गर्भनिरोधक दर में निरोध के इस्तेमाल की व्यापकता दर (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग)
- अंतिम उच्च जोखिम यौन क्रिया में निरोध का इस्तेमाल (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
- 15-24 आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत जिसे एचआईवी/एड्स का व्यापक सही ज्ञान है (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
- गर्भनिरोधक व्यापकता दर (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग)
20. 10-14 वर्ष आयु वर्ग के स्कूल जाने वाले अनाथ बच्चों के साथ स्कूल जाने वाले गैर-अनाथ बच्चों का अनुपात (यूनिसेफ -यूएनएड्स - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
निशाना 8ः वर्ष 2015 तक मलेरिया और अन्य प्रमुख बीमारियों को रोक दिया गया है और इनकी घटनाओं में व्युत्क्रम शुरू हो गया है
संकेतक
21. मलेरिया से संबंधित व्यापकता और मृत्यु दरें (विश्व स्वास्थ्य संगठन)
22. मलेरिया जोखिम वाले क्षेत्रों में मलेरिया के प्रभावी निवारण और उपचार उपायों का उपयोग करने वाली जनसंख्या का अनुपात (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
23. क्षयरोग से संबंधित व्यापकता और मृत्यु दरें (विश्व स्वास्थ्य संगठन)
24. डॉट्स (अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिफारिश की गई क्षयरोग रणनीति) के तहत क्षयरोग के ज्ञात हुए मामलों और उनके ठीक होने का अनुपात (विश्व स्वास्थ्य संगठन)
लक्ष्य 7ः पर्यावरणीय धारणीयता सुनिश्चित करें
निशाना 9ः धारणीय विकास के सिद्धांतों को देश के अंदर की नीतियों और कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करें और पर्यावरणीय संसाधनों की हानि को व्युत्क्रम करें
संकेतक
25. वनों द्वारा आच्छादित भूक्षेत्र का अनुपात (खाद्य एवं कृषि संगठन)
26. जैव विविधता को बनाये रखने के लिए संरक्षित किये गए क्षेत्र का कुल सतही क्षेत्र के साथ अनुपात (यूएनईपी - डब्लूसीएमसी)
27. ऊर्जा उपयोग (किलोग्राम तेल के समकक्ष) प्रति 1 डॉलर जीडीपी (पीपीपी) (आईईए, विश्व बैंक)
28. प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (यूएनएफसीसीसी, यूएनएसडी) और ओजोन में कमी करने वाले सीएफसी (ओडीपी टन) का उपभोग (यूएनईपी - ओजोन सचिवालय)
29. ठोस ईंधन उपयोग करने वाली जनसंख्या का अनुपात (विश्व स्वास्थ्य संगठन)
निशाना 10ः वर्ष 2015 तक उन व्यक्तियों के अनुपात को आधा करें जिनके पास सुरक्षित पेयजल और मूलभूत स्वच्छता सुविधाओं तक धारणीय पहुँच नहीं है
संकेतक
30. उन्नत जल स्रोत तक धारणीय पहुंच प्राप्त जनसंख्या का अनुपात, शहरी और ग्रामीण (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
31. उन्नत स्वच्छता सुविधाओं तक धारणीय पहुँच प्राप्त जनसंख्या का अनुपात, शहरी और ग्रामीण (यूनिसेफ - विश्व स्वास्थ्य संगठन)
निशाना 11ः वर्ष 2020 तक कम से कम 10 करोड़ गंदी बस्तियों में रहनेवालों के जीवन-स्तर में उल्लेखनीय सुधार करें
संकेतक
32. सुरक्षित कार्यकाल तक पहुँच प्राप्त परिवारों का अनुपात
लक्ष्य 8ः विकास के लिए एक वैश्विक भागीदारी विकसित करें
निशाना 12ः एक खुली, नियम आधारित, पूर्वानुमेय, अभेदात्मक व्यापार और वित्तीय प्रणाली का और अधिक विकास करें (इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर सुशासन, विकास और निर्धनता न्यूनीकरण के प्रति प्रतिबद्धता शामिल है)
निशाना 13ः अल्पतम विकसित देशों की विशेष आवश्यकताओं को संबोधित करें (इसमें अल्पतम विकसित देशों के लिए प्रशुल्क और कोटा मुक्त पहुँच, निर्यात, अत्यधिक ऋणग्रस्त गरीब देशों के लिए वर्धित ऋण राहत कार्यक्रम और आधिकारिक द्विपक्षीय ऋण समाप्ति और गरीबी न्यूनीकरण के प्रति प्रतिबद्ध देशों के लिए अधिक उदार आधिकारिक विकास सहायता शामिल है)
निशाना 14ः संपूर्ण स्थलसीमा से घिरे और छोटे द्वीप विकासशील देशों की विशेष आवश्यकताओं को संबोधित करें (छोटे द्वीप विकासशील देशों और 22 वें महासभा प्रावधानों के धारणीय विकास के लिए अनुयोजन कार्यक्रम के माध्यम से)
निशाना 15ः ऋण को दीर्घकाल में धारणीय बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उपायों के माध्यम से विकासशील देशों की ऋण समस्याओं के साथ व्यापकता से निपटें
संकेतक
आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए)
33. शुद्ध ओडीए, कुल और अल्पतम विकसित देशों के लिए ओईसीडी/विकास सहायता समिति (डीएसी) दानदाताओं की सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) (ओईसीडी) के प्रतिशत के रूप में
34. ओईसीडी/डीएसी दानदाताओं के कुल द्विपक्षीय, क्षेत्र आवंटनीय ओडीए से मूलभूत सामाजिक सेवाओं का अनुपात (मूलभूत शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सुविधा, पोषण, सुरक्षित जल और स्वच्छता) (ओईसीडी)
35. ओईसीडी/डीएसी दानदाताओं के शर्त-रहित द्विपक्षीय ओडीए का अनुपात (ओईसीडी)
36. संपूर्ण भूस्थल से घिरे विकासशील देशों में प्राप्त ओडीए, उनके जीएनआइ के अनुपात के रूप में (ओईसीडी)
37. छोटे द्वीप विकासशील देशों में प्राप्त ओडीए, उनके जीएनआइ के अनुपात के रूप में (ओईसीडी)
बाजार पहुँच
38. विकासशील देशों और अल्पतम विकसित देशों से होने वाले कुल विकसित देश आयात का अनुपात, जिसे पूर्णतः शुल्क मुक्त प्रवेश दिया गया है ‘‘अंकटाड (यूएनसीटीएडी), विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक‘‘
39. विकासशील देशों के कृषि उत्पादों और वस्त्रों पर विकसित देशों द्वारा अधिरोपित औसत प्रशुल्क (यूएनसीटीएडी, विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक)
40. ओईसीडी देशों के जीडीपी के प्रतिशत के रूप में ओईसीडी देशों को प्रदान की गई कृषि सहायता के अनुमान (ओईसीडी)
41. व्यापार क्षमता निर्माण में मदद के लिए प्रदान किये गए ओडीए का अनुपात (ओईसीडी, विश्व व्यापार संगठन)
ऋण धारणीयता
42. उन देशों की कुल संख्या जो उनकी भारी ऋणग्रस्त गरीब देशों की पहलों (एचआईपीसी) के निर्णय बिन्दुओं तक पहुँच चुके हैं, और ऐसे देशों की संख्या जो अपने एचआईपीसी पूर्णता बिन्दुओं तक पहुँच चुके हैं (संचयी) (अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष - विश्व बैंक)
43. एचआईपीसी पहलों के तहत प्रतिबद्ध ऋण राहत (अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष - विश्व बैंक)
44. वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के प्रतिशत के रूप में ऋण चुकौती (अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष - विश्व बैंक)
निचे दिए गए कुछ संकेतकों की निगरानी अल्पतम विकसित देशों, अफ्रीका, संपूर्ण भूक्षेत्र से घिरे विकासशील देशों और छोटे द्वीप विकासशील देशों के लिए अलग से की जाती है।
निशाना 16ः विकासशील देशों के सहयोग से युवाओं के लिए प्रतिष्ठित और उत्पादक काम के लिए रणनीतियां विकसित करें और उन्हें क्रियान्वित करें
संकेतक
45. 15-24 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की बेरोजगारी की दर, प्रत्येक लिंग और कुल (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन)
निशाना 17ः औषधि कंपनियों के सहयोग से विकासशील देशों में सस्ती अनिवार्य औषधियों तक पहुँच प्रदान करें
संकेतक
46. धारणीय आधार पर सस्ती अनिवार्य औषधियों तक पहुँच प्राप्त जनसंख्या का अनुपात (विश्व स्वास्थ्य संगठन)
निशाना 18ः निजी क्षेत्र के सहयोग से नई प्रौद्योगिकियों के लाभ उपलब्ध कराएं, विशेष रूप से सूचना और संचार प्रौद्योगिकियां
संकेतक
47. प्रति 100 की जनसंख्या पर टेलीफोन लाइनें और सेलुलर ग्राहक (आईटीयू)
48. प्रति 100 की जनसंख्या पर उपयोग किये जा रहे व्यक्तिगत कंप्यूटर, और प्रति 100 की जनसंख्या पर इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या (आईटीयू)
4.2 भारत का प्रदर्शन
4.3 विश्व का प्रदर्शन
5.0 धारणीय विकास के लक्ष्य (एसडीजी)
1 जनवरी 2016 को धारणीय विकास के लिए वर्ष 2030 की कार्यसूची के 17 धारणीय विकास के लक्ष्य - जिन्हें विश्व नेतृत्व द्वारा सितंबर 2015 में हुई ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र शिखर परिषद के दौरान अपनाया गया - आधिकारिक रूप से प्रभावशाली हो गए। अगले 15 वर्षों के दौरान इन नए लक्ष्यों के साथ, जो सार्वभौमिक रूप से सभी पर लागू होते हैं, सभी देश सभी प्रकार की गरीबी को समाप्त करने के लिए प्रयास जुटाएंगे, असमानताओं के विरुद्ध लडेंगे, और जलवायु परिवर्तन से निपटेंगे, इस दौरान वे सुनिश्चित करेंगे कि कोई भीइससे पीछे नहीं रह गया है। ये लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव ए/आरईएस/70/1 दिनांक 25 सितंबर 2015 के 54 वें परिच्छेद में अंतर्निहित हैं।
ये एसडीजी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की सफलता से मजबूत होंगे और आगे इनका उद्देश्य सभी प्रकार की गरीबी को समाप्त करना है। ये नए लक्ष्य इस दृष्टि से विशिष्ट हैं कि वे सभी देशों से इनपर काम करने की मांग करते हैं, जिनमें पृथ्वी ग्रह की रक्षा करते हुए गरीब देश, समृद्ध देश और मध्य-आय वाले देश, इन सभी को समृद्धि और खुशहाली का संवर्धन करना है। वे मानते हैं कि गरीबी का उन्मूलन ऐसी रणनीतियों के साथ किया जाना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय सुरक्षा से निपटते हुए आर्थिक संवृद्धि का निर्माण करती हों और शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, और रोजगार के अवसर सहित सामाजिक आवश्यकताओं की एक श्रृंखला को संबोधित करती हों।
हालांकि ये एसडीजी कानूनी रूप से बंधनकारक नहीं हैं फिर भी सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इनकी जिम्मेदारी लें और इन 17 लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय रूपरेखाएं स्थापित करें। इन लक्ष्यों के क्रियान्वयन में की गई प्रगति का अनुवर्तन और समीक्षा करने की प्राथमिक जिम्मेदारी देशों पर है, जिसके लिए गुणवत्ता, और अभिगम्य और समयबद्ध आंकडे़ं एकत्रित करना आवश्यक है। क्षेत्रीय अनुवर्तन और समीक्षा राष्ट्र-स्तरीय विश्लेषणों पर आधारित होगी और यह वैश्विक स्तर पर अनुवर्तन और समीक्षा में योगदान देंगी।
इस प्रकार, धारणीय विकास लक्ष्य (एसडीजी), जिन्हें आधिकारिक रूप से हमारे विश्व को परिवर्तित करनाः धारणीय विकास के लिए 2030 की कार्यसूची कहा गया है, अंतरशासन आकांक्षा लक्ष्यों का समुच्चय हैं जिनके 169 निशाने हैं। यह प्रस्ताव एक व्यापक अंतरशासन समझौता है कि, 2015 के पश्चात की विकास कार्यसूची (सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों का उत्तराधिकारी) के रूप में काम करते हुए उन सिद्धांतों को आगे बढ़ाती है जो प्रस्ताव ए/आरईएस/66/288 के तहत मान्य किये गए हैं, इस प्रस्ताव को प्रचलित रूप से हमें जो भविष्य चाहिए कहा गया है।
5.1 17 धारणीय विकास लक्ष्य (एसडीजी)
25 सितंबर 2015 को अपनाई गई धारणीय विकास की कार्यसूची में 92 परिच्छेद हैं, जिनमें से मुख्य परिच्छेद (51) 17 धारणीय विकास लक्ष्यों और इसके 169 निशानों को रेखांकित करता है। इसमें निम्नलिखित लक्ष्यों को शामिल किया गया हैः
एसडीजी 1 - गरीबी - सभी स्थानों से सभी प्रकार की गरीबी का अंत करें
एसडीजी 2 - खाद्य - भुखमरी का अंत करें, खाद्य सुरक्षा और उन्नत पोषण को प्राप्त करें और धारणीय कृषि को संवर्धित करें
एसडीजी 3 - स्वास्थ्य - स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करें और सभी अयुओं में सभी की खुशहाली का संवर्धन करें
एसडीजी 4 - शिक्षा - समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करें और सभी के लिए आजीवन शिक्षा अवसरों का संवर्धन करें
एसडीजी 5 - महिलाऐं - लैंगिक समानता प्राप्त करें और सभी महिलाओं और बालिकाओं का सशक्तिकरण करें
एसडीजी 6 - जल - जल की उपलब्धता और उसके धारणीय प्रबंधन को सुनिश्चित करें और सभी के लिए स्वच्छता सुनिश्चित करें
एसडीजी 7 - ऊर्जा - सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, धारणीय और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करें
एसडीजी 8 - अर्थव्यवस्था - निरंतर, समावेशी और धारणीय आर्थिक संवृद्धि का संवर्धन करें और सभी के लिए संपूर्ण और उत्पादक रोजगार और प्रतिष्ठित कार्य सुनिश्चित करें
एसडीजी 9 - अधोसंरचना - स्थिति-स्थापक अधोसंरचना का निर्माण करें, समावेशी और धारणीय औद्योगीकरण का संवर्धन करें और नवप्रवर्तन को बढ़ावा दें
एसडीजी 10 - असमानता - देशों के अंदर और देशों के बीच की असमानता को कम करें
एसडीजी 11 - निवास - शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, स्थिति-स्थापक और धारणीय बनाएं
एसडीजी 12 - उपभोग - धारणीय उपभोग और उत्पादन पद्धतियाँ सुनिश्चित करें
एसडीजी 13 - जलवायु - जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से मुकाबला करने के लिए तुरंत उपाय करें
एसडीजी 14 - समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र - धारणीय विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण करें और उनका धारणीय उपयोग करें
एसडीजी 15 - पारिस्थितिकी तंत्र - प्रादेशिक पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा करें, उन्हें पुनर्स्थापित करें और उनके धारणीय उपयोग का संवर्धन करें, वनों का धारणीय रूप से प्रबंधन करें, निर्वनीकरण से लडें और उलटे भू-अपक्षय की रोकथाम करें और जैवविविधता की क्षति को रोकें
एसडीजी 16 - संस्थान - धारणीय विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों का संवर्धन करें, सभी के लिए न्याय तक पहुँच सुलभ बनाएं और सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थाओं का निर्माण करें
एसडीजी 17 - धारणीयता - क्रियान्वयन के साधनों का सशक्तिकरण करें और धारणीय विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करें
5.2 धारणीय विकास क्या है?
धारणीय विकास को ऐसे विकास के रूप में परिभाषित किया गया है जो भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति से समझौता किये बिना वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसके लिए लोगों और पृथ्वी ग्रह के भविष्य के लिए समावेशी, धारणीय और स्थिति-स्थापक निर्माण की दिशा में किये जाने वाले ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इसे प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि तीन मूलभूत तत्वों के बीच सामंजस्य होः आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक समावेशन और पर्यावरणीय संरक्षण। ये सभी तत्व परस्पर जुडे हुए हैं और ये सभी व्यक्तियों और समाजों के कल्याण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
सभी रूपों और आयामों में गरीबी का उन्मूलन करना धारणीय विकास की मूलभूत और अपरिहार्य आवश्यकता है। इस प्रयोजन से धारणीय, समावेशी और समसमान आर्थिक संवृद्धि का संवर्धन, सभी के लिए अधिक अवसरों का निर्माण, असमानताओं में कमी करना, मूलभूत जीवन-स्तर में वृद्धि करना, न्यायसंगत सामाजिक विकास और समावेशन का संवर्धन, और प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्रों का एकीकृत और धारणीय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है।
5.3 क्या धारणीय विकास लक्ष्य कानूनी रूप से बंधनकारक हैं?
नहीं धारणीय विकास लक्ष्य कानूनी रूप से बंधनकारक नहीं हैं। फिर भी देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इनकी जिम्मेदारी लें और इन 17 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा की स्थापना करें। इनका क्रियान्वयन और इनकी सफलता स्वयं देशों की धारणीय विकास नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों पर निर्भर होंगे। देशों की प्राथमिक जिम्मेदारी अगले 15 वर्षों के दौरान इन लक्ष्यों और निशानों के क्रियान्वयन में हुई प्रगति की राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अनुवर्तन और समीक्षा की है। प्रगति के निरीक्षण के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर की गई कार्रवाइयों के लिए गुणवत्ता, अभिगम्य और समयबद्ध आंकडे़ं संग्रह और क्षेत्रीय अनुवर्तन और समीक्षा की आवश्यकता होगी।
5.4 जलवायु परिवर्तन का धारणीय विकास के साथ किस प्रकार का संबंध है?
जलवायु परिवर्तन पहले से ही सार्वजनिक स्वास्थ्य, खाद्य एवं जल सुरक्षा, प्रवासन, शांति एवं सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है। यदि जलवायु परिवर्तन को अनियंत्रित छोड़ा गया तो यह हमारे द्वारा पिछले दशकों के दौरान किये गए विकास के लाभों को पीछे खदेड देगा और आगे के लाभों की प्राप्ति को असंभव बना देगा।
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी और जलवायु तन्यकता की निर्मिति के माधयम से धारणीय विकास में किये गए निवेश जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में सहायक होंगे। इसके विपरीत, जलवायु परिवर्तन पर की गई कार्रवाई धारणीय विकास को उत्प्रेरित करेगी। जलवायु परिवर्तन से निपटना और धारणीय विकास को बढ़ावा देना एक ही सिक्के के दो परस्पर मजबूत बनाने वाले पहलू हैं; जलवायु पर कार्रवाई के बिना धारणीय विकास प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत, धारणीय विकास लक्ष्यों में से अनेक लक्ष्य जलवायु परिवर्तन के मूलभूत उत्प्रेरकों को संबोधित करने वाले ही हैं।
5.5 धारणीय विकास लक्ष्य सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों से किस प्रकार भिन्न हैं?
169 निशानों के साथ 17 धारणीय विकास लक्ष्यों का दायरा अधिक व्यापक है और गरीबी और सभी लोगों के लिए काम करने वाले विकास की सार्वभौमिक आवश्यकता की जडों को संबोधित करने के माध्यम से ये सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों से काफी आगे जाते हैं। ये लक्ष्य धारणीय विकास के तीन आयामों को समाविष्ट करते हैंः आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक समावेशन और पर्यावरणीय संरक्षण। सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों से मिली सफलता और गति के आधार पर नए वैश्विक लक्ष्य अधिक क्षेत्र को व्याप्त करते हैं, जिनमें असमानताओं, आर्थिक संवृद्धि, प्रतिष्ठित रोजगार, शहरों और मानव बस्तियों, औद्योगीकरण, महासागरों, पारिस्थितिकी तंत्रों, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, धारणीय उपभोग और उत्पादन, शांति एवं न्याय को संबोधित करने की महत्वाकांक्षा है। नए लक्ष्य सार्वभौमिक हैं और ये सभी देशों पर लागू होते हैं, जबकि सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य केवल विकासशील देशों में कार्य के लिए प्रस्तावित थे। धारणीय विकास लक्ष्यों की एक मूलभूत विशेषता है क्रियान्वयन के साधनों - वित्तीय संसाधनों को जुटाना - क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी, साथ ही आंकड़ों और संस्थाओं पर उनका मजबूत ध्यान होना। नए लक्ष्य इस बात को मान्यता देते हैं कि धारणीय विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटना अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य है। धारणीय विकास लक्ष्य 13 का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से मुकाबला करने के लिए तत्काल कार्रवाई का संवर्धन है।
6.0 संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियां
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एक विनाशकारी युद्ध के दुष्परिणाम के बाद अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को स्थिर करने में सहायता प्रदान करने और शांति को एक सुरक्षित नींव प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। परमाणु युद्ध के खतरे और अंतहीन क्षेत्रीय संघर्षों के बीच शांति प्रस्थापित करना संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए एक अधिभावी चिंता का विषय बन गई है। इस प्रक्रिया के दौरान नीले हेलमेट वाले शांति सैनिक इस विश्व संगठन से जुडे़ सर्वाधिक दृश्य भूमिका निभाने वाले कार्यकर्ता बन कर उभरे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ अन्य अनेक क्षेत्रों में भी कार्य करता है जैसे शिशु उत्तरजीविता और विकास, पर्यावरणीय संरक्षण, मानवाधिकार, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अनुसंधान, परिवार नियोजन, आपातकालीन और आपदा राहत, हवाई और समुद्री यात्रा, परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग, श्रमिकों एवं कर्मचारियों के अधिकार, इत्यादि।
- शांति एवं सुरक्षा बनाये रखना - सितंबर 1996 तक कुल 42 शांति सेना बलों और पर्यवेक्षण अभियानों की तैनाती करके संयुक्त राष्ट्र संघ आगे बढ़ने के लिए बातचीत की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से शांति प्रस्थापित करने में सफल हुआ है साथ ही यह लाखों लोगों को संघर्षों में हताहत होने से बचाने में भी सफल हुआ है। वर्तमान समय में कुल 16 सक्रिय शांति सैनिक बल कार्यरत हैं। जनवरी 2016 में विश्व भर में 18 अभियानों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुल 1,07,076 शांति सैनिक तैनात किये हैं। ये बल सदस्य देशों द्वारा स्वैच्छिक आधार पर प्रदान किये जाते हैं। वर्ष 2013 में 98,200 पुलिस, सैन्य टुकड़ियों और विशेषज्ञों में से यूरोपीय देशों ने लगभग 6,000 इकाइयों का योगदान दिया था, पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश ने सर्वाधिक व्यक्तिगत संख्याओं का योगदान दिया था, जिनमें से प्रत्येक देश ने लगभग 8,000 इकाइयां प्रदान की थीं। अफ्रीकी देशों ने कुल संख्या के आधे अर्थात 44,000 इकाइयों का योगदान दिया था।
- शांति प्रस्थापित करना - वर्ष 1945 से संयुक्त राष्ट्र संघ को शांतिपूर्ण ढंग से बातचीत के माध्यम से 172 समाधान निकालने का श्रेय दिया जाता है, जहां शांतिपूर्ण ढंग से क्षेत्रीय विवादों का समाधान किया गया है। हाल के मामलों में ईरान-इराक युद्ध की समाप्ति, अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं की वापसी, और एल साल्वाडोर में गृह युद्ध की समाप्ति शामिल हैं। आसन्न युद्धों को टालने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने शांत कूटनीति का उपयोग किया है।
- लोकतंत्र का संवर्धन - संयुक्त राष्ट्र संघ ने 45 से भी अधिक देशों के लोगों को मुक्त और निष्पक्ष चुनावों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया है, इनमें कंबोडिया, नामीबिया, एल साल्वाडोर, इरीट्रिया, मोजाम्बिक, निकारागुआ और दक्षिण अफ्रीका में संपन्न हुए चुनाव भी शामिल हैं। इस संगठन ने मतदाता परामर्श, सहायता और परिणामों का पर्यवेक्षण प्रदान किया है।
- विकास का संवर्धन - संयुक्त राष्ट्र प्रणाली ने मानव कौशल और क्षमताओं के विकास के संवर्धन के लिए अन्य सभी प्रकार के बाह्य सहायता प्रयासों से अधिक ध्यान और संसाधन प्रदान किये हैं। इस प्रणाली का वार्षिक आवंटन, जिनमें ऋण और अनुदान शामिल हैं, 10 अरब डॉलर से भी अधिक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, 170 से अधिक सदस्य देशों और अन्य संयुक्त राष्ट्र अभिकरणों के सहयोग से, .षि, उद्योग, शिक्षा और पर्यावरण के लिए परियोजनाएं बनाता है और उनका क्रियान्वयन करता है। यह 1.3 अरब डॉलर के बजट के साथ 5,000 से भी अधिक परियोजनाओं को सहायता प्रदान करता है। यह अनुदान विकास सहायता का सबसे बडा बहुपक्षीय स्रोत है। विश्व बैंक ने, जो विश्व भर के विकासशील देशों के लिए सहायता जुटाने वाला अग्रणी संगठन है, वर्ष 1946 से अब तक अकेले ने ही 333 अरब डॉलर के ऋण प्रदान किये हैं। इसके अतिरिक्त, यूएनआईसीएफ (यूनिसेफ) 138 देशों में प्राथमिक रोग-प्रतिरक्षण, स्वास्थ्य सुविधा, पोषण और प्राथमिक शिक्षा पर प्रति वर्ष 80 करोड़ डॉलर से अधिक की धन राशि खर्च करता है।
- मानवाधिकारों का संवर्धन - वर्ष 1948 में मानवाधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणापत्र को अपनाने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर दर्जनों व्यापक समझौतों के अधिनियमन में सहायता प्रदान की है। मानवाधिकारों के दुरूपयोग की व्यक्तिगत शिकायतों के अन्वेषण के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने विश्व का ध्यान अत्याचारों, लापता होने के मामलों और मनमाने ढंग से हिरासत में रखने के मामलों की ओर आकर्षित किया है, साथ ही इसने विभिन्न देशों की सरकारों पर उनकी मानवाधिकार स्थितियों में सुधार के लिए वैश्विक दबाव बनाया है।
- पर्यावरण का संरक्षण - संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण की रक्षा के लिए निर्मित वैश्विक कार्यक्रम के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ष्पृथ्वी शिखर परिषदष्, जो वर्ष 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन था, का परिणाम जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन पर हुई संधियों में हुआ, और इसके परिणामस्वरूप सभी देशों ने ‘‘एजेंडा 21‘‘ को अपनाया - जो धारणीय विकास या प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हुए आर्थिक संवृद्धि की संकल्पना के लिए एक महत्वपूर्ण रूपरेखा थी।
- परमाणु प्रसार की रोकथाम - परमाणु ऊर्जा अभिकरण के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि परमाणु सामग्री का उपयोग सैन्य प्रयोजनों के लिए नहीं किया जा रहा है, 90 देशों के परमाणु प्रतिघातकों का निरीक्षण करके परमाणु युद्ध के खतरे को न्यूनतम करने में सहायता प्रदान की है।
- आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता का संवर्धन - संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन देशों में स्वतंत्रता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो अब उसके सदस्य देशों में शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून का सशक्तिकरण - मानवाधिकार सन्धिपत्रों से लेकर बाह्य अंतरिक्ष और समुद्र तल के उपयोग पर किये गए समझौतों जैसे विविध विषयों पर हुई 300 से भी अधिक अंतर्राष्ट्रीय संधियां संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों के माध्यम से ही अधिनियमित हो पाई हैं।
- प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय विवादों के न्यायिक समाधान प्रदान करना - न्यायिक निर्णय और सलाहकारी राय प्रदान करके अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने ऐसे अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में सहायता प्रदान की है जो प्रादेशिक मुद्दों, देशों के आतंरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप, राजनयिक संबंधों, बंधक बनाने की स्थितियों, शरण के अधिकार, मार्गाधिकार और आर्थिक अधिकारों से जुडे हुए थे।
- दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को समाप्त करना - हथियार प्रतिबंध से लेकर पृथकृत खेल आयोजनों तक के उपाय लागू करके संयुक्त राष्ट्र संघ ने दक्षिण अफ्रीका में जारी ऐसी रंगभेद व्यवस्था को समाप्त करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘‘मानवता के विरुद्ध अपराध‘‘ के रूप में वर्णित किया था। दक्षिण अफ्रीका में अप्रैल 1994 में चुनाव संपन्न हुए जिसमें सभी दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों को समानता के आधार पर शामिल होने की अनुमति दी गई थी, जिसके परिणामस्वरुप देश में एक बहुमत की सरकार की स्थापना हुई।
- विभिन्न संघर्षों के पीडितों को मानवतावादी सहायता प्रदान करना - वर्ष 1951 से अब तक युद्ध, अकाल या उत्पीडन से पलायन करने वाले 3 करोड़ से भी अधिक शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा निरंतर रूप से किये जाने वाले समन्वय के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त की ओर से सहायता प्राप्त हुई है, इसमें अक्सर अन्य अभिकरण भी शामिल रहे हैं। ऐसे 1.9 करोड़ से भी अधिक शरणार्थी है, जिनमें से अधिकांश बच्चे और महिलाऐं है, जिन्हें भोजन, आश्रय, चिकित्सा सुविधा, शिक्षा और प्रत्यावासन सहायता प्राप्त हो रही है।
- फिलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता - वर्ष 1950 से संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य अभिकरण (यूएनआरडब्लूए) ने फिलीस्तीनियों की चार पीढियों को वस्तुतः बिना किसी रूकावट के निःशुल्क स्कूली शिक्षा, अनिवार्य चिकित्सा सुविधा, राहत सहायता और प्रमुख सामाजिक सेवाओं के साथ स्थिर किया हुआ है। मध्य पूर्व में ऐसे 29 लाख शरणार्थी हैं जिनकी सेवा यूएनआरडब्लूए द्वारा निरंतर रूप से की जा रही है।
- विकासशील देशों में चिरकालिक भुखमरी और गरीबी उन्मूलन - अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष ने निर्धनतम और सर्वाधिक हाशिये पर रहने वाले समूहों के लिए, अक्सर अत्यंत छोटी धनराशि के, ऋण प्रदान करने की एक प्रणाली विकसित की है जिसके कारण लगभग 100 विकासशील देशों के 23 करोड से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं।
- अफ्रीकी विकास पर ध्यान केंद्रित करना - संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए अफ्रीका लगातार सर्वोच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र बना हुआ है। 1986 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अफ्रीका की आर्थिक पुनःप्राप्ति और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता जुटाने के उद्देश्य एक विशेष अधिवेशन आयोजित किया था। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं की पूर्ति और चुनौतियों की पूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यवस्था-व्यापक कार्य-बल का भी गठन किया है। अफ्रीका परियोजना विकास सुविधा ने नए उपक्रमों के लिए वित्तपोषण खोजने में 25 देशों के उद्यमियों को सहायता प्रदान की है। इस सुविधा ने 130 परियोजनाएं पूर्ण कर ली हैं जिनमें अब तक 23.3 करोड़ डॉलर का निवेश किया जा चुका है और जिनके माध्यम से अब तक 13,000 नए रोजगार निर्मित हुए हैं। आशा है कि ये नए उद्यम प्रति वर्ष लगभग 13.1 करोड़ डॉलर मूल्य की विदेशी मुद्रा या तो अर्जित कर पाएंगे या बचत कर पाएंगे।
- महिलाओं के अधिकारों का संवर्धन - संयुक्त राष्ट्र संघ का एक दीर्घकालीन उद्देश्य महिलाओं के जीवन में सुधार करने या अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करने के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण का रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रायोजित अंतर्राष्ट्रीय महिला दशक के दौरान हुए अनेक सम्मेलनों में शेष शताब्दी के लिए महिलाओं के उन्नयन और महिलाओं के अधिकारों की कार्यसूची निर्धारित की गई। संयुक्त राष्ट्र महिला विकास कोष और महिला उन्नयन के लिए अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान ने 100 से भी अधिक देशों में महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों और परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की है। इनमें ऋण और प्रशिक्षण, नई खाद्य उत्पादन प्रौद्योगिकियों और विपणन अवसरों तक पहुंच और महिलाओं के कामों के संवर्धन के अन्य साधन शामिल हैं।
- सुरक्षित पेय जल प्रदान करना - पिछले दशक के दौरान संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अभिकरणों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे 1.3 अरब लोगों के लिए साफ और सुरक्षित पेय जल उपलब्ध कराने की दिशा में काफी कार्य किया गया है।
- चेचक का उन्मूलन - विश्व स्वास्थ्य संगठन के 13 वर्ष के प्रयासों का परिणाम 1980 से पृथ्वी ग्रह से चेचक के संपूर्ण उन्मूलन में है। इस उन्मूलन ने टीकाकरण और निगरानी में प्रति वर्ष व्यय होने वाली अनुमानित 1 अरब डॉलर की धनराशि की बचत की है, जो इस बीमारी के उन्मूलन में लगी लागत से लगभग तिगुनी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पश्चिमी गोलार्ध से पोलियो के उन्मूलन में भी सहायता प्रदान की है।
- सार्वभौमिक रोग-प्रतिरक्षा के लिए दबाव बनाना - पोलियो, धनुस्तंभ (टिटनेस), खसरा, काली खांसी, डिप्थीरिया और क्षयरोग आज भी प्रति वर्ष 80 लाख बच्चों की मृत्यु का कारण बनते हैं। वर्ष 1974 में विकासशील देशों के केवल 5 प्रतिशत बच्चों को इन रोगों के विरुद्ध रोग-प्रतिरक्षा प्रदान की जाती थी। यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रयासों के परिणामस्वरूप आज रोग-प्रतिरक्षा की दर 80 प्रतिशत हुई है, जिसके कारण प्रति वर्ष लगभग 30 लाख बच्चों की जान बच रही है।
- शिशु मृत्यु दरों का न्यूनीकरण - मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा के माध्यम से और संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अभिकरणों द्वारा किये जा रहे जल, स्वच्छता और अन्य स्वास्थ्य एवं पोषण उपायों के माध्यम से विकासशील देशों की शिशु मृत्यु दरें 1960 की तुलना में आधी हो गई हैं, जिनके कारण जीवन प्रत्याशा 37 वर्ष से बढ़कर 67 वर्ष हो गई है।
- परजीवी रोगों से मुकाबला - उत्तरी अफ्रीका में खतरनाक पेचकृमि, एक ऐसा परजीवी जो मनुष्य और पशुओं के मांस का भक्षण करता है, के उन्मूलन के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के अभिकरणों द्वारा किये जा रहे प्रयासों के कारण इस परजीवी के प्रसार की रोकथाम की जा सकी है, जिसका प्रसार मक्खियों द्वारा मिस्र, तुनिशिया, उप-सहाराई अफ्रीका और यूरोप में किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक कार्यक्रम ने नदी अंधेपन से अंधे होने वाले 70 लाख बच्चों के जीवन की रक्षा की है, साथ ही इसने गिनी कृमि और अन्य उष्णकटिबंधीय रोगों से भी अन्य अनेक बच्चों की रक्षा की है।
- विकासशील देशों में निवेश का संवर्धन करना - संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के प्रयासों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ ने उत्तर-दक्षिण, दक्षिण-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम निवेश में ‘‘मैच मेकर‘‘ के रूप में कार्य किया है, जिसके कारण उद्यमशीलता, आत्मनिर्भरता, औद्योगिक सहयोग और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और लागत-प्रभावी, पारिस्थितिकी तंत्र की दृष्टि से संवेदनशील उद्योगों का संवर्धन और विकास हुआ है।
- सामाजिक आवश्यकता की ओर आर्थिक नीति का उन्मुखीकरण - संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक अभिकरणों ने आर्थिक समायोजन और नीतियों और कार्यक्रमों की पुनर्रचना के निर्धारण में मानवी आवश्यकताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया है, जिनमें गरीबों की रक्षा के उपाय भी शामिल हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा, और ‘‘बच्चों के लिए ऋण विनिमय‘‘ के क्षेत्रों में।
- प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों का न्यूनीकरण - विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने लाखों लोगों को प्रा.तिक और मानव जनित आपदाओं के अनर्थकारी प्रभावों से बचाया है। इसकी आरंभिक चेतावनी प्रणाली ने, जिसमें हजारों सतही मॉनीटर्स और उपग्रहों का उपयोग है, तेल के रिसाव के प्रसार की सूचना प्रदान की है, साथ ही इसने दीर्घकालीन सूखे की भी सफल भविष्यवाणी की है। इस प्रणाली ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खाद्य सहायता के कुशल वितरण में भी सहायता प्रदान की है, जैसा 1992 में दक्षिणी अफ्रीका में किया गया था।
- आकस्मिकता पीडितों को खाद्यान्न प्रदान करना - विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा प्रति वर्ष 20 लाख टन खाद्यान्न का वितरण किया जाता है। वर्ष 1994 में 36 देशों में खाद्यान्न की तीव्र कमी का सामना करने वाले लगभग 3 करोड से अधिक लोग इससे लाभान्वित हुए हैं।
- बारूदी सुरंगों की सफाई - संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय प्रयास का नेतृत्व कर रहा है जो अफगानिस्तान, अंगोला, कंबोडिया, एल साल्वाडोर, मोजाम्बिक, रवांडा, और सोमालिया के पूर्व युद्ध क्षेत्रों से बारूदी सुरंगें साफ करने का प्रयास कर रहा है, जिनके कारण आज भी प्रति वर्ष हजारों निरीह लोगों की मृत्यु हो रही है या वे पंगु हो रहे हैं।
- ओजोन परत का संरक्षण - संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम विज्ञान संगठन पृथ्वी की ओजोन परत को होने वाली क्षति के बारे में जानकारी प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। एक संधि के परिणामस्वरूप, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है, ओजोन परत को कम करने वाले पदार्थों के रासायनिक उत्सर्जन में कमी की दृष्टि से वैश्विक स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। यह प्रयास लाखों लोगों को पराबैंगनी विकिरण के प्रति अतिरिक्त अनावरण के कारण कर्करोग के बढ़ते खतरे से बचाने में सहायक होगा।
- वैश्विक उष्मन की रोकथाम - वैश्विक पर्यावरण सुविधा के माध्यम से, देशों द्वारा ऐसी स्थितियों में कमी करने के लिए काफी संसाधन प्रदान किये जा रहे हैं जिनके कारण वैश्विक उष्मन होता है। जीवाश्म ईंधन के ज्वलन से बढ़ने वाले उत्सर्जन और भूमि उपयोग की पद्धतियों में परिवर्तन के कारण वायुमंडल में ऐसी गैसों के निर्माण में वृद्धि हुई है जिनके कारण, विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी के तापमान में उष्मन अधिक हो रहा है।
- अत्यधिक मत्स्य-ग्रहण की रोकथाम - खाद्य एवं कृषि संगठन समुद्री मत्स्यपालन उत्पादन पर नजर रखता है और अत्यधिक मत्स्य-ग्रहण के कारण होने वाली क्षति की रोकथाम के लिए चेतावनी जारी करता है।
- निर्वनीकरण को सीमित करना और धारणीय वन विकास का संवर्धन करना - खाद्य एवं कृषि संगठन, यूएनडीपी और विश्व बैंक ने एक उष्णकटिबंधीय वन कार्य योजना कार्यक्रम के माध्यम से 90 देशों में वानिकी कार्य योजनाएं चलाई हैं।
- प्रदूषण की सफाई - यूएनईपी ने भूमध्यसागर की स्वच्छता के लिए एक व्यापक सफाई प्रयास शुरू किया है। इसने सीरिया और इजराइल, तुर्की और यूनान जैसे विरोधियों समुद्र तटों को स्वच्छ करने के लिए एकसाथ मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसके परिणामस्वरूप 50 प्रतिशत से अधिक ऐसे समुद्र-तट, जो पहले काफी प्रदूषित थे, आज उपयोग के योग्य बन गए हैं।
- उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा - बाजारों में बिकने वाले खाद्य पदार्थों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के अभिकरणों ने 200 से अधिक खाद्य वस्तुओं के लिए मानक स्थापित किये हैं, साथ ही इन्होने 3,000 से अधिक खाद्य कंटेनरों के लिए सुरक्षा सीमाएं स्थापित की हैं
- प्रजनन दरों का न्यूनीकरण - संयुक्त राष्ट्र कोष ने अपने परिवार नियोजन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को सूचित विकल्पों को चुनने का अवसर प्रदान किया है, और इसके परिणामस्वरूप परिवारों को, और विशेष रूप से महिलाओं को, उनके जीवन पर अधिक नियंत्रण प्रदान किया है। इस प्रयास के परिणामस्वरूप विकासशील देशों में अब महिलाऐं कम बच्चे पैदा कर रही हैं - 1960 के दशक में प्रति महिला जहाँ 6 बच्चे पैदा करती थी वहीं आज यह दर कम होकर केवल 3.5 पर आ गई है। 1960 के दशक में विश्व के केवल 10 प्रतिशत परिवार परिवार नियोजन के प्रभावी साधनों का उपयोग करते थे। अब यह संख्या 55 प्रतिशत हो गई है।
- नशीले पदार्थों के दुरूपयोग के विरुद्ध लड़ाई - संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मादक द्रव्य कार्यक्रम ने अवैध नशीले पदार्थों की मांग में कमी करने, मादक पदार्थों की तस्करी को दबाने की दिशा में कार्य किया है, और साथ ही इसने किसानों को आय के अन्य विश्वसनीय स्रोतों के कृषि उत्पादन की ओर जाने के लिए प्रेरित करके मादक पदार्थों की फसलों की पैदावार पर उनकी निर्भरता को कम करने में सहायता की है।
- वैश्विक व्यापार संबंधों में सुधार - संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन ने विकासशील देशों द्वारा उनके उत्पाद विकसित देशों को निर्यात करने के लिए विशेष व्यापार अधिमान प्राप्त करने की दिशा में कार्य किया है। इसने विकासशील देशों को सही मूल्य प्राप्त हो यह सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वस्तु समझौतों पर बातचीत की है। और शुल्क तथा व्यापार पर सामान्य समझौते के माध्यम से, जिसे विश्व व्यापार संगठन ने भी अनुपूरित किया है,संयुक्त राष्ट्र संघ ने व्यापार के उदारीकरण का समर्थन किया है जिससे विकासशील देशों में आर्थिक विकास के अवसरों में वृद्धि होगी।
- आर्थिक सुधारों का संवर्धन - विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक देशों को उनके आर्थिक प्रबंधन में सुधार करने में सहायता दी है, सरकारी वित्तीय अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया है, और भुगतान संतुलन में अस्थाई समस्याओं का सामना कर रहे देशों को वित्तीय सहायता प्रदान की है।
- श्रमिकों के अधिकारों का संवर्धन - अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने संघ बनाने के अधिकार की स्वतंत्रता, संगठन का अधिकार, सामुदायिक सौदेबाजी, स्वदेशीय और जनजातीय लोगों के अधिकारों, रोजगार और समान वेतन के संवर्धन के क्षेत्रों में काफी कार्य किया है साथ ही इसने भेदभाव और बाल श्रम के उन्मूलन का भी प्रयास किया है। इसीके साथ सुरक्षा के मानक निर्धारित करके अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने काम से संबंधित दुर्घटनाओं में जाने वाली जानों में भी कमी लाने का प्रयास किया है।
- उन्नत कृषि तकनीकों की शुरुआत करना और लागतों में कमी करना - खाद्य एवं कृषि संगठन की सहायता से फसल उत्पादन सुधार हुआ है, एशिया के चावल उत्पादकों ने कीट नाशकों पर एक वर्ष में लगभग 1.2 करोड़ डॉलर की बचत की है जबकि सरकारों ने कीट नाशकों पर दी जाने वाली अनुवृत्तियों पर लगभग 15 करोड़ डॉलर की बचत की है।
- विश्व के महासागरों में सुव्यवस्था और स्थिरता का संवर्धन - तीन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से, जिनमें से तीसरा सम्मेलन नौ वर्ष से भी अधिक समय तक चला, संयुक्त राष्ट्र संघ ने महासागरों के संरक्षण, परिरक्षण और शांतिपूर्ण विकास के लिए व्यापक वैश्विक समझौते के संवर्धन के प्रयास का नेतृत्व किया है। समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, जो वर्ष 1994 से प्रभावशाली हुआ, राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्राधिकार के निर्धारण, गहरे समुद्र में नौवहन, तटीय एवं अन्य देशों के अधिकार एवं कर्तव्य समुद्री पर्यावरण की रक्षा एवं परिरक्षण, समुद्री वैज्ञानिक अनुसन्धान के आयोजन, और जीवित संसाधनों के परिरक्षण के संबंध में नियम निर्धारित करता है।
- हवाई और समुद्री यात्रा में सुधार करना - संयुक्त राष्ट्र के अभिकरण हवाई और समुद्री यात्रा के सुरक्षा मानकों के निर्धारण के लिए उत्तरदायी हैं। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन के प्रयासों ने हवाई यात्रा को परिवहन का सबसे सुरक्षित साधन बनाने में योगदान दिया है। अर्थात, 1947 में जब 90 लाख लोग हवाई यात्रा करते थे तो इनमें से 590 व्यक्तियों की हवाई दुर्घटनाओं में मृत्यु होती थी; वर्ष 1993 में 1.2 अरब हवाई यात्रियों में से दुर्घटनाओं में मृत्यु होने वालों की संख्या 936 थी। पिछले दो दशकों के दौरान टैंकर्स से होने वाले प्रदूषण में लगभग 60 प्रतिशत तक की कमी हुई, इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन द्वारा किये गए काम को धन्यवाद देना चाहिए।
- बौद्धिक संपदा की रक्षा - विश्व बौद्धिक संपदा संगठन नए नवप्रवर्तनों को सुरक्षा प्रदान करता है, और यह लगभग 30 लाख राष्ट्रीय व्यापार चिन्हों का रजिस्टर रखता है। संधियों के माध्यम से यह विश्व भर के कलाकारों, रचनाकारों और लेखकों के कामों की भी रक्षा करता है। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन का काम व्यक्तियों और उद्यमों के लिए उनके संपत्ति अधिकारों का प्रवर्तन आसान और कम लागत वाला बनाता है। साथ ही यह नए विचारों और उत्पादों के वितरण के अवसरों को संपत्ति के अधिकारों पर नियंत्रण का त्याग किये बिना अधिक व्यापक भी बनाता है।
- सूचना के मुक्त प्रवाह का संवर्धन - लोगों को ऐसी जानकारी और सूचनाएं प्राप्त करना सुविधाजनक बनाने के लिए जो सेंसरशिप से मुक्त हों और सांस्कृतिक रूप से निष्पक्ष हों, यूनेस्को ने संचार प्रणाली के विकास और सशक्तिकरण के लिए सहायता प्रदान की है, नए अभिकरणों की स्थापना की है और स्वतंत्र प्रेस का समर्थन किया है।
- वैश्विक दूर संचार में सुधार - सार्वभौमिक डाक संघ ने अंतर्राष्ट्रीय डाक वितरण को बनाये रखा है और इसे विनियमित किया है। अंतर्राष्ट्रीय दूर संचार संघ ने रेडियो स्पेक्ट्रम के उपयोग का समन्वय किया है, स्थिर उपग्रहों के स्थिति निर्धारण में सहयोग का संवर्धन किया है, और संचार के अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित किये हैं, और इन सभी प्रयासों के माध्यम से संपूर्ण विश्व में जानकारी के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित किया है।
- बेजुबान लोगों का सशक्तिकरण - संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रायोजित अन्तर्राष्टीय वर्षों और सम्मेलनों ने सरकारों को ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकताओं और योगदानों को मान्यता देने के लिए मजबूर किया है जिन्हें आमतौर पर निर्णय प्रक्रिया से वंचित रखा जाता है, जैसे वृद्ध होते व्यक्ति, बच्चे, युवा, निराश्रित, स्वदेशीय और विकलांग व्यक्ति।
- ‘‘बच्चों की शांति क्षेत्र‘‘ स्थापना - एल साल्वाडोर से लेकर लेबनान तक, और सूडान से लेकर पूर्व यूगोस्लाविया तक, यूनिसेफ ने ष्प्रशांति के दिनोंष् की स्थापना और ‘‘शांति के गलियारों‘‘ की शुरुआत करने में अग्रणी भूमिका निभाई है ताकि सशस्त्र संघर्ष की चपेट में आये बच्चों को नितांत आवश्यक टीके और अन्य सहायता प्रदान की जा सके।
- बच्चों की आवश्यकताओं के समर्थन में विश्वव्यापी प्रतिबद्धता को उत्प्रेरित करना - यूनिसेफ के प्रयासों के माध्यम से बाल अधिकारों पर हुआ सम्मेलन 1990 में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून के रूप में प्रभावशाली हुआ और वर्ष 1994 तक यह 166 देशों में कानून का रूप ले चुका था; यूनिसेफ द्वारा आयोजित 1990 में हुई विश्व बाल शिखर परिषद के बाद 150 से अधिक सरकारों ने प्रतिबद्धता दर्शाई है कि वर्ष 2000 तक वे बच्चों के जीवन में आमूल सुधार लाने के लिए आवश्यक 20 विशिष्ट मापन योग्य लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे।
- विकासशील देशों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाना - संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में विकासशील देशों के 60 प्रतिशत से भी अधिक वयस्क अब पढ़ और लिख सकने में सक्षम हैं, और इन देशों के 90 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में जाते हैं।
- महिला साक्षरता में सुधार करना - महिलाओं की शिक्षा और उन्नयन के संवर्धन का लक्ष्य रखने वाले कार्यक्रमों ने विकासशील देशों में महिला साक्षरता में वृद्धि करने में सहायता प्रदान की है, जो वर्ष 1970 की 36 प्रतिशत से 1990 में बढ़कर 56 प्रतिशत हुई।
- ऐतिहासिक संस्कृति और वास्तुशिल्प स्थलों की रक्षा एवं संरक्षण - यूनान, मिस्र, इटली, इंडोनेशिया और कंबोडिया सहित 81 देशों के प्राचीन स्मारकों का संरक्षण यूनेस्को के प्रयासों के माध्यम से संभव हो पाया है और सांस्कृतिक संपत्ति और विरासत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को अपनाया गया है।
- शैक्षणिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना - यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ ने विद्वत्तापूर्ण और वैज्ञानिक सहयोग, संस्थानों की नेटवर्किंग और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के संवर्धन को प्रोत्साहित किया है, जिनमें अल्पसंख्यकों और स्वदेशीय लोगों को भी शामिल किया गया है।
7.0 नोबेल शांति पुरस्कार
संयुक्त राष्ट्र संघ और इसके विभिन्न संगठनों को पांच बार नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है
1954ः संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय जिनेवा को शरणार्थियों को सहायता प्रदान करने के लिए
1965ः संयुक्त राष्ट्र बाल कोष को विश्व के बच्चों की जीवन रक्षा में सहायता के लिए
1969ः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, जिनेवा को श्रमिकों के अधिकार प्रस्थापित करने और इनका संरक्षण करने के लिए
1981ः संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय जिनेवा को एशियाई शरणार्थियों की सहायता के लिए
1988ः संयुक्त राष्ट्र शांति सेना बलों को उनके शांति प्रतिस्थापना के कार्यों के लिए
यह पुरस्कार निम्न व्यक्तियों को भी प्रदान किया जा चुका हैः
1945ः भूतपूर्व राज्य सचिव कोर्डेल हल को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना में उनके नेतृत्व के लिए
1949ः लॉर्ड जॉन बॉयड ओर्र, यूनाइटेड किंगडम, खाद्य एवं कृषि संगठन के प्रथम महानिदेशक
1950ः राल्फ बुंचे, अमेरिका, फिलिस्तीन में संयुक्त राष्ट्र संघ के मध्यस्थ (1948), इजराइल, मिस्र, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया द्वारा 1949 में किये गए युद्धविराम समझौतों में उनके नेतृत्व कौशल के लिए
1957ः लेस्टर पियर्सन, कनाडा, भूतपूर्व राज्य सचिव, संयुक्त राष्ट्र महासभा के 7 वें अधिवेशन के अध्यक्ष, उनके द्वारा आजीवन किये गए शांति कार्य के लिए और सुएज नहर संकट के समाधान में संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गए प्रयासों के लिए
1961ः डैगहैमरस्क्जोंल्ड, स्वीडन, संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव, कांगो संकट के समाधान के लिए उनके द्वारा की गई सहायता के लिए
1974ः सीन मैक्ब्रीड, आयरलैंड, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के नामीबिया कार्यालय के संयुक्त राष्ट्र आयुक्त, जिनेवा, यूरोपीय शरणार्थियों को उनके द्वारा प्रदान की गई सहायता के लिए
संयुक्त राष्ट्र व नोबेल पुरस्कार
- 2013 - रासायनिक हथियारों के निषेध संगठन (ओपीसीडब्ल्यू) - रासायनिक हथियारों को खत्म करने के व्यापक प्रयासों के लिए ‘नोबेल शांति पुरस्कार 2013’ प्रदान किया गया।
- 2007 - जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) एवं अल्बर्ट अर्नोल्ड (अल) गोर जूनियर - जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) एवं अल्बर्ट अर्नोल्ड (अल) गोर जूनियर को जलवायु परिवर्तन पर उनके प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इन कार्यों में मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के बारे में अधिक से अधिक ज्ञान का प्रचार एवं प्रसार, एवं उन उपायों के लिए नींव रखना जो इस परिवर्तन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं, शामिल थे।
- 2005 - अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) एवं मोहम्मद अल बारदेई - नोबेल समिति ने IAEA एवं उसके महानिदेशक मोहम्मद अल बारदेई को, परमाणु ऊर्जा को सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने से रोकने एवं शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा को उपयोग सुरक्षित तरीके से किया जाना, सुनिश्चित करने के लिए, 2005 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया।
- 2001 - संयुक्त राष्ट्र एवं कोफी अन्नान - संयुक्त राष्ट्र एवं उसके महासचिव कोफी अन्नान को एक बेहतर संगठित एवं अधिक शांतिपूर्ण दुनिया बनाने के उनके प्रयासों के लिए ‘शांति का नोबेल पुरस्कार’ दिया गया है।
- 1988 - संयुक्त राष्ट्र शांति सेना - नोबेल समिति ने पुरस्कार से सम्मानित किया क्योंकि ‘संयुक्त राष्ट्र की शांति सेनाओं ने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में, तनाव को कम करने में योगदान दिया है जहाँ एक युद्धविराम पर बातचीत हुई है लेकिन एक शांति संधि अभी तक स्थापित नहीं हुई है’।
- 1981 - शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (UNHCR) का कार्यालय - “शरणार्थियों के लिए उच्चायुक्त का कार्यालय, ‘नोबेल, समिति की राय में, कई राजनीतिक दबावों के बावजूद शरणार्थियों की सहायता के लिए इन्होंने कठिनाइयों एवं संघर्ष के बावजुद महत्वपूर्ण काम किया है।
- 1969 - द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) - सामाजिक न्याय सुनिश्चित करके राष्ट्रों में भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए सर्वाधिक कार्य करने पर। ‘जिनेवा में प्स्व् के मुख्य कार्यालय में एक शिलालेख है, जिस पर लिखा है - ‘सी विज पेसम, कोल जस्टिटीम’ अर्थात ‘यदि आप शांति की अपेक्षा रखते हैं, तो न्यायपूर्ण रहें’
- 1965 - संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) - पुरस्कार देने के बाद, नोबेल समिति ने कहा कि ‘सर्वाधिक अनिच्छुक व्यक्ति भी युनिसेफ की यह बात मानने पर बाध्य है कि करुणा राष्ट्र-सीमाओं से परे है।’
- 1961 - डेग हम्मरस्कॉल्ड (मरणोपरांत) - नोबेल समिती ने बताया कि ‘बावजुद इसके कि, डेग हम्मार्सजॉल्ड को आलोचना, हिंसा एवं अनर्गल हमलों का सामना करना पड़ा उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के एक प्रभावी और रचनात्मक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में विकास के रास्ते को नही छोड़ा’
- 1954 - शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (UNHCR) का कार्यालय - UNHCR ‘हमें सिखाता है कि स्थायी शांति के निर्माण की नींव दुर्भाग्यपूर्ण विदेशीयों को अपने में से एक समझने तथा अन्य मनुष्यों, भले ही वे हम से राष्ट्रों की सीमाओं के कारण अलग प्रतित होते है, के साथ सहानुभूति रखने से ही डाली जा सकती है”।
- 1950 - राल्फ बुन्चे, अरब और यहूदियों के बीच 1948 के संघर्ष के दौरान फिलिस्तीन में संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थ - राल्फ बुनचे ने फिलिस्तीन संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थ के रूप में अपने 1940 के दशक के उत्तरार्ध के लिए 1950 का नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने खुद को ‘लाइलाज आशावादी’ बताया। बंच पहले अफ्रीकी-अमेरिकी-अश्वेत व्यक्ति थे जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र नोबल पुरस्कार विजेता सूची |
8.0 जिनेवा सम्मेलन की 70 वीं वर्षगांठ - 2019
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की संधि, जिसमें चार कन्वेंशन एवं तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल शामिल थे, ने युद्ध के समय मानवीय व्यवहार के लिए आधुनिक, अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मानकों की स्थापना की। 12 अगस्त 1949 को इस पर सहमति हुई एवं कुछ अपवादों के साथ, दुनिया भर के 196 देशों द्वारा इसे अपनाया गया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ने ऐतिहासिक जेनेवा सम्मेलन की 70 वीं वर्षगांठ की स्मृति में, इस ‘कानून के महत्वपूर्ण निकाय’ की सराहना की तथा इसे ‘सशस्त्र संघर्षों की क्रूरता को सीमित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका’ के रूप में वर्णित किया।
ये कन्वेंशन दुनिया के लगभग हर देश द्वारा मान्यता प्राप्त एवं प्रशंसित हैं, इसलिए इन सम्मेलनों में निहित सिद्धांतों एवं कानूनी मानदंडों को प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून ;प्भ्स्द्ध के रूप में भी मान्यता प्राप्त है एवं यह सार्वभौमिक रूप से भी लागू है। यह किसी भी बहुपक्षीय संधि के लिए एक दुर्लभ गुण है।
‘जिनेवा कन्वेंशन’ शब्द आमतौर पर 1949 के समझौतों को दर्शाता है, द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद हुई बातचीत में, जिसने 1929 की दो संधियों की शर्तों को अद्यतन रखा गया एवं दो नए सम्मेलनों को जोड़ा गया। जिनेवा सम्मेलनों ने बड़े पैमाने पर युद्धबंदियों (नागरिकों एवं सैन्य कर्मियों) के बुनियादी अधिकारों को परिभाषित किया, घायल एवं बीमार लोगों के लिए सुरक्षा स्थापित की, एवं युद्ध-क्षेत्रएवं आसपास के नागरिकों के लिए सुरक्षा स्थापित की। क्योंकि जिनेवा कन्वेंशन युद्ध में रत लोगों के बारे में हैं, इसकी धाराएँ युद्ध को उचित तरीके से परिभाषित नहीं करती हैं - युद्ध में प्रयुक्त हथियार - जो हेग सम्मेलनों (प्रथम हेग सम्मेलन, 1899य दूसरा हेग सम्मेलन 1907) एवं जैव-रासायनिक युद्ध जिनेवा प्रोटोकॉल (एस्फाइशींग, जहर या अन्य गैसों के युद्ध में उपयोग के निषेध एवं युद्ध के जीवाणुविज्ञानी तरीको कें निषेध के लिए प्रोटोकॉल, 1925) का विषय है।
8.1 इतिहास
एक स्विस व्यवसायी हेनरी डुनंट 1859 में सोलफेरिनो की लड़ाई के बाद घायल सैनिकों से मिलने गए थे। वह इन सैनिकों की मदद के लिए उपलब्ध सुविधाओं, कर्मियों एवं चिकित्सा सहायता की कमी से हैरान थे एवं उन्होंने जो भयावहता देखी उस पर उन्होंने 1862 में एक किताब ‘ए मेमोरी ऑफ सोलफेरिनो’ लिखी थी। उन्होंने दो चीजों का प्रस्ताव दिया :
- युद्ध के समय में मानवीय सहायता के लिए एक स्थायी राहत एजेंसी, एवं
- एक सरकारी संधि जो एजेंसी की तटस्थता को स्थापित करती है एवं उसे युद्ध क्षेत्र में सहायता प्रदान करने की अनुमति देती है।
पूर्व प्रस्ताव ने जिनेवा में रेड-क्रॉस की स्थापना को आधार दिया तथा बाद वाले प्रस्ताव ने 1864 के जेनेवा कन्वेंशन का मार्ग प्रशस्त किया गया, जो पहली कोडित अंतर्राष्ट्रीय संधि थी जिसे युद्ध के मैदान में बीमार एवं घायल सैनिकों को सहायता प्रदान करने के लिए किया गया था।
जिनेवा कन्वेंशनों को 21 अक्टूबर, 1950 को अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर लाया गया। दशकों में इनकी सदस्यता बढ़ी - 1950 के दशक के दौरान 74 राष्ट्रों, 1960 के दशक में 48 राष्टों, 1970 के दशक के दौरान 20 राज्यों ने तथा 1980 के दशक में अन्य 20 राष्ट्रों ने इस पर हस्ताक्षर किए। छब्बीस देशों ने 1990 के दशक की शुरुआत में, मुख्य रूप से सोवियत संघ, चेकोस्लोवाकिया एवं पूर्व युगोस्लाविया के ब्रेक-अप के बाद इन सम्मेलनों को मान्यता दी। 1949 के चार कन्वेंशन अब 196 राज्यों द्वारा अनुमोदित किए जा चुके हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र के दोनों ऑबज़र्वर राष्ट्र होली-सी, एवं फिलिस्तीन तथा कुक आईलैंड शामिल हैं।
8.2 जिनेवा सम्मेलनों ने क्या किया
सम्मेलनों ने सशस्त्र संघर्ष में कमजोर समूहों अर्थात् घायलों एवं बीमारों, युद्ध-कैदियों, नागरिकों, तथा कब्जे वाले क्षेत्रों में रह रहे नागरिको की सुरक्षा सुनिश्चित की। आधुनिक संघर्षों में मानव जीवन की रक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती सशस्त्र बलों एवं गैर-राज्य सशस्त्र समूहों द्वारा मौजूदा नियमों का पालन एवं सम्मान है। यदि मौजूदा नियमों का पालन किया जाता है, तो समकालीन सशस्त्र संघर्षों में अधिकांश मानव पीड़ित नहीं होंगे।
8.3 भविष्य के गंभीर जोखिम - आधुनिक प्रौद्योगिकियां
कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं स्वायत्त हथियार प्रणाली, जैसे कि सैन्य रोबोट एवं साइबर-हथियार, युद्ध के दौरान मानव कारकों की भूमिका एवं नियंत्रण को कम करते हैं, आईएचएल के सामान्य नियमों में अंधाधुंध एवं अमानवीय हथियारों को प्रतिबंधित किया जाता है, ‘उनका उल्लंघन किया जा रहा है’।
जिनेवा सम्मेलनों के तहत दो प्भ्स् सिद्धांत जो विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं, (ए) नागरिकों, युद्ध-बंदियों, घायलो एवं जलपोत के डुबने पर बचने वाले सैनिकों, की रक्षा करने का दायित्व एवं (ख) सशस्त्र संघर्ष में पार्टियों के हथियारों को चुनने एवं वे इसके संचालन के अधिकारों की सीमाएं ।
आज यह स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सिद्धांत दबाव में हैं एवं नई चुनौतियों की जटिलता संघर्ष स्थितियों के वर्गीकरण की प्रक्रिया को बाधित करती है एवं लागू होने वाले सटीक नियमों को निर्धारित करना मुश्किल बनाती है।
8.4 मानवता के लिए एक ऐतिहासिक क्षण
चार कन्वेंशन IHL के ‘मूल’ में हैं। पहले तीन सम्मेलन उस समय पूरी तरह से नए नहीं थे, चौथा सम्मेलन ‘पहली संधि थी जो विशेष रूप से युद्ध के समय में नागरिक व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए समर्पित थी’।
अनुच्छेद 3 में, ऐसे लोग जो लड़ाई में शामिल नही है, जिनमें नागरिकों के अलावा ऐसे सैकिन भी आते हैं जिन्होंने हथियार डाल दिए हैं, घायल हैं या बंधक हैं, के लिए मानवीय व्यवहारों के बुनियादी नियमों का एक प्रावधान बनाया गया है। यह मानवता के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि यह पहला उदाहरण था जिसमें गैर-अंतर्राष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों को एक बहुपक्षीय संधि द्वारा विनियमित किया गया था। इस तथ्य से संवर्धित था कि जिनेवा सम्मेलनों का अब सार्वभौमिक रूप से पालन किया जाएगा।
यह दर्शाता है कि, जब राज्य कानून एवं मानवीय सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए सामूहिक एवं व्यक्तिगत कार्रवाई करते हैं तो सब कुछ संभव है। एक अर्थ में, जिनेवा कन्वेंशन मनूष्यों की अपनी बर्बरता से दूर मानवता की एक मिसाल पेश करता है।
8.5 विवरण
यहाँ ‘कन्वेंशन’ शब्द का उपयोग एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते, या संधि के लिए किया गया है। जिनेवा कन्वेंशन युद्ध एवं सशस्त्र संघर्ष के समय सरकारों पर लागू होते हैं जिन्होंने इसकी शर्तों को मान्यता दी है। प्रयोज्यता का विवरण सामान्य लेख 2 एवं 3 में लिखा गया है। हालांकि 1949 के जिनेवा सम्मेलनों के बाद से युद्ध में नाटकीय रूप से बदलाव आया है, फिर भी उन्हें, अभी भी समकालीन अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून की आधारशिला माना जाता है।
- फील्ड में सशस्त्र बलों में घायल एवं बीमार की स्थिति के संशोधन के लिए ‘पहला जेनेवा कन्वेंशन’ (पहली बार 1864 में अपनाया गया, 1906, 1929 एवं अंत में 1949 में संशोधित)।
- दूसरा जिनेवा कन्वेंशन ‘सीड में सशस्त्र बलों के घायल, बीमार एवं जहाज के सदस्यों के संशोधन के लिए’ (पहली बार 1949 में अपनाया गया, हेग कन्वेंशन के उत्तराधिकारी (एक्स) 1907)।
- तीसरा जेनेवा कन्वेंशन ‘युद्ध के कैदियों के उपचार के सापेक्ष’ (पहली बार 1929 में अपनाया गया, 1949 में अंतिम संशोधन)।
- चौथे जिनेवा कन्वेंशन ‘युद्ध के समय में नागरिक व्यक्तियों के संरक्षण के सापेक्ष’ (1949 में पहली बार अपनाया गया, 1899 के हेग कन्वेंशन (2) एवं हेग कन्वेंशन (4) 1907 के कुछ हिस्सों पर आधारित)।
दो जिनेवा सम्मेलनों को संशोधित किया एवं अपनाया गया, एवं दूसरा एवं चौथा जोड़ा गया, 1949 में पूरे सेट को ‘1949 के जिनेवा सम्मेलनों’ या केवल ‘जिनेवा सम्मेलनों’ के रूप में जाना जाता है। आमतौर पर केवल 1949 के जिनेवा सम्मेलनों को ही फर्स्ट, सेकंड, थर्ड या फोर्थ जेनेवा कन्वेंशन कहा जाता है। 1949 की संधियों को पूरे या आरक्षण के साथ, 196 देशों द्वारा अनुमोदित किया गया था। भारत ने 1950 में हस्ताक्षर किए।
इसके अलावा, ‘अतिरिक्त प्रोटोकॉल’ हैं - प्रोटोकॉल 1, प्रोटोकॉल 2 एवं प्रोटोकॉल 3 ।
8.6 विशिष्ट परिस्थितियाँ
यूक्रेन (क्रीमिया) में 2014 के संघर्ष में जिनेवा सम्मेलनों का उपयोग एक परेशानी की बात बन गई, क्योंकि यूक्रेनियन के खिलाफ लड़ाई में लगे कुछ कर्मियों को प्रतीक चिन्ह से नहीं पहचाना गया था, हालांकि उन्होंने सैन्य शैली के फेटिग्स पहन रखे थे। अमेरिकी सेना द्वारा ‘अनियमित विरोधियों’ को ‘गैरकानूनी शत्रु लड़ाकों’ के रूप में चित्रित करने पर हुए विवाद विशेषतौर पर गुआंतानामो बे ब्रिगेड सुविधा में, हम्दी बनाम रम्सफेल्ड, हम्डन बनाम रम्सफेल्ड एवं रसूल बनाम बुश, आदि मामलों में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट निर्णयों में।
2019 की शुरुआत में पुलवामा आतंकी हमले को लेकर भारत एवं पाकिस्तान में झड़पें हुईं, इसके बाद भारतीय वायु सेना के बालाकोट आतंकी शिविरों पर हमला हुआ। एक वायु सेना अधिकारी को पाकिस्तानियों द्वारा पकड़ा गया (बाद में सुरक्षित रूप से वापस लौटा), एवं जेनेवा कन्वेंशन के कई संदर्भों का उपयोग किया गया। वे वास्तव में मान्य नहीं थे, क्योंकि यह ‘युद्ध’ नहीं था। राजनयिक सम्मेलन बाद में बचाव में आए।
9.0 अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस एवं रेड क्रिसेंट आंदोलन
ICRC का कार्य 1949 के जिनेवा सम्मेलनों, उनके अतिरिक्त प्रोटोकॉल, उसके कानून - एवं अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस एवं रेड क्रीसेंट आंदोलन - एवं रेड क्रॉस एवं रेड क्रीसेंट के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के प्रस्तावों पर आधारित है। प्ब्त्ब् एक स्वतंत्र, तटस्थ संगठन है जो सशस्त्र संघर्ष के पीड़ितों एवं हिंसा की अन्य स्थितियों के लिए मानवीय सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित करता है। यह आपात स्थिति के जवाब में कार्रवाई करता है एवं साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के लिए सम्मान एवं राष्ट्रीय कानून में इसके कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
इंटरनेशनल रेड क्रॉस एवं रेड क्रीसेंट मूवमेंट के दुनिया भर में 1.7 करोड़ से अधिक स्वयंसेवक, सदस्य एवं कर्मचारी हैं। यह मानव जीवन एवं स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए, सभी मनुष्यों के लिए सम्मान सुनिश्चित करने एवं मानव पीड़ा को रोकने एवं कम करने के लिए स्थापित किया गया था। आंदोलन में कई संगठन एक दूसरे से स्वतंत्र हैं, लेकिन आम बुनियादी सिद्धांतों, उद्देश्यों, प्रतीकों, विधियों एवं शासी संगठनों के माध्यम से आंदोलन के भीतर एकजुट हैं।
9.1 आंदोलन के तीन प्रमुख भाग हैं :
- द इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस (ICRC) - यह एक निजी मानवीय संस्था है जिसकी स्थापना 1963 में स्विटजरलैंड के जेनेवा में हेनरी डुनेंट एवं गुस्तेव मोयनेयर ने की थी। इसकी 25 सदस्यीय समिति के पास अंतरराष्ट्रीय एवं आंतरिक सशस्त्र संघर्षों के पीड़ितों के जीवन एवं सम्मान की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत अनूठे अधिकार है। ICRC को तीन अवसरों (1917, 1944 एवं 1963 में) पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
- इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज (IFRC) की स्थापना 1919 में हुई थी एवं आज यह 190 नेशनल रेड क्रॉस एवं रेड क्रीसेंट सोसाइटियों के बीच गतिविधियों का समन्वय करता है। एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, फेडरेशन राष्ट्रीय समाजों के साथ निकट सहयोग में, संगठित होता है, राहत सहायता मिशन बड़े पैमाने पर आपात स्थितियों में कार्य करता है। सचिवालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित है। 1963 में, फेडरेशन (तब रेड क्रॉस सोसाइटीज के नाम से जाना जाता था) को प्ब्त्ब् के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
- राष्ट्रीय रेड क्रॉस एवं रेड क्रिसेंट सोसाइटीज दुनिया के लगभग हर देश में मौजूद हैं। वर्तमान में 190 राष्ट्रीय सोसायटी आईसीआरसी द्वारा मान्यता प्राप्त हैं एवं फेडरेशन के पूर्ण सदस्य के रूप में भर्ती हैं। प्रत्येक इकाई अपने देश में अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून एवं इंटरनेशनल मुवमेंट के के सिद्धांतों पर कार्य करती है। उनकी विशिष्ट परिस्थितियों एवं क्षमताओं के आधार पर, राष्ट्रीय सोसायटी अतिरिक्त मानवीय कार्यों को ले सकती हैं जो अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों एवं इंटरनेशनल मुवमेंट द्वारा सीधे परिभाषित नहीं हैं। कई देशों में, उन्हें आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के लिए संबंधित राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली से जोड़ा जाता है।
9.2 सात मूलभूत सिद्धांत
सात मूलभूत सिद्धांत हैं - मानवता, निष्पक्षता, तटस्थता, स्वतंत्रता, स्वैच्छिक सेवा, एकता एवं सार्वभौमिकता। ये रेड क्रॉस एवं रेड क्रीसेंट मूवमेंट के काम को एक नैतिक, परिचालन एवं संस्थागत ढांचा प्रदान करते हैं। सशस्त्र संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य आपात स्थितियों के दौरान लोगों की मदद करने के लिए वे इसके दृष्टिकोण के मूल में हैं।
ये सिद्धांत आंदोलन के घटकों को एकजुट करते हैं - प्ब्त्ब्ए राष्ट्रीय सोसायटी एवं अंतर्राष्ट्रीय महासंघ - एवं इसकी अलग पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन सिद्धांतों के पालन से मूवमेंट के काम की मानवीय प्रकृति सुनिश्चित होती है एवं यह दुनिया भर में होने वाली गतिविधियों की व्यापक श्रेणी में स्थिरता लाता है।
9.3 प्रतीक एवं चिन्ह
अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस एवं रेड क्रीसेंट आंदोलन के चिन्हों को, जिनेवा सम्मेलनों के तहत, मानवीय एवं चिकित्सा वाहनों एवं इमारतों पर लगाया जाना होता है, एवं चिकित्सा कर्मियों एवं अन्य लोगों जो मानवीय कार्य करते हैं, को युद्धस्थल पर सैन्य हमले से बचाने के लिए, पहनना होता है। चार ऐसे प्रतीक हैं, जिनमें से तीन उपयोग में हैं - रेड क्रॉस, रेड क्रीसेंट एवं रेड क्रिस्टल। लाल शेर एवं सूर्य भी एक मान्यता प्राप्त प्रतीक है, लेकिन अब उपयोग में नहीं आता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर्सरकारी पैनल (IPCC)
- जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान के आकलन के लिए जलवायु परिवर्तन पर अंतर्सरकारी पैनल (IPCC) अंतरराष्ट्रीय निकाय है।
- यह जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों एवं भविष्य के जोखिमों एवं अनुकूलन एवं शमन के लिए विकल्पों का नियमित आकलन प्रदान करता है।
- 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा बनाया गया, IPCC का उद्देश्य सरकारों को हर स्तर पर वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करना है जिसका उपयोग वे जलवायु नीतियों को विकसित करने के लिए कर सकते हैं। आईपीसीसी रिपोर्ट भी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में एक महत्वपूर्ण इनपुट है।
- IPCC सरकारों का एक संगठन है जो संयुक्त राष्ट्र या WMO के सदस्य हैं। आईपीसीसी में वर्तमान में 195 सदस्य हैं। दुनिया भर के हजारों लोग IPCC के काम में योगदान देते हैं।
- मूल्यांकन रिपोर्टों के लिए, आईपीसीसी के वैज्ञानिक हर साल प्रकाशित होने वाले हजारों वैज्ञानिक पत्रों का आकलन करने के लिए अपना समय देते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारकों, इसके प्रभावों एवं भविष्य के जोखिमों एवं अनुकूलन एवं शमन को कम कर सकते हैं।
- एक उद्देश्य एवं पूर्ण मूल्यांकन सुनिश्चित करने एवं विचारों एवं विशेषज्ञता की विविध रेंज को प्रतिबिंबित करने के लिए, दुनिया भर के विशेषज्ञों एवं सरकारों द्वारा एक खुली एवं पारदर्शी समीक्षा IPCC प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा है। अपने मूल्यांकन के माध्यम से, आईपीसीसी विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक समझौते की शक्ति को पहचानता है एवं इंगित करता है कि आगे कहां शोध की आवश्यकता है। आईपीसीसी स्वयं अनुसंधान संचालन नहीं करता है।
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