यूपीएससी तैयारी - अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं - व्याख्यान - 2

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अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक भाग - 2

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5.0 विश्व बैंक

विश्व बैंक 1944 में आयोजित हुए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन का परिणाम है। इसकी शुरुआत अनेक विश्व प्रतिनिधियों, और अमेरिका और ब्रिटेन के महत्वपूर्ण नीति निर्माताओं की उपस्थिति में अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के साथ ही हुई थी। 

विश्व बैंक एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो विकासशील देशों को पूंजीगत कार्यक्रमों के लिए ऋण प्रदान करती है। विश्व बैंक का आधिकारिक लक्ष्य है गरीबी निवारण। इसके समझौते के अनुच्छेद के अनुसार (जैसे कि इसे 16 फरवरी 1989 में संशोधित किया गया था) इसके सभी निर्णय विदेशी निवेश और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संवर्धन और पूंजी निवेश को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्यों द्वारा निर्देशित होंगे। 

5.1 प्रबंधन 

विश्व बैंक के अध्यक्ष संपूर्ण विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष होते हैं। इसके अध्यक्ष, जो वर्तमान में जिम योंग किम हैं, बैंक के निदेशक मंडल और समग्र प्रबंधन की बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। पारंपरिक रूप से बैंक के अध्यक्ष हमेशा से एक अमेरिकी नागरिक ही रहते आये हैं, जिनका नामांकन बैंक के सबसे बडे़ अंशभाग धारक अमेरिका द्वारा किया जाता है। संबंधित नामांकन की पुष्टि कार्यकारी निदेशक मंड़ल द्वारा की जाना आवश्यक है। इनका कार्यकाल पांच वर्ष की अवधि का होता है, जो नवीनीकृत किया जा सकता है। जबकि अधिकांश विश्व बैंक अध्यक्षों के पास बैंकिंग का अनुभव था, फिर भी ऐसे भी अनेक अध्यक्ष रहे हैं जिन्हें बैंकिंग का अनुभव नहीं था। 

बैंक के उपाध्यक्ष इसके प्रमुख प्रबंधक होते हैं, जो विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों, वित्तीय क्षेत्रों, नेटवर्क्स, और कार्यों के प्रभारी होते हैं। बैंक में दो कार्यकारी उपाध्यक्ष, तीन वरिष्ठ उपाध्यक्ष और 24 उपाध्यक्ष होते हैं। 

 

इसके निदेशक मंडल में विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष और 25 कार्यकारी निदेशक होते हैं। बैंक के अध्यक्ष निदेशक मंडल के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, आमतौर पर इनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता। केवल समान मतविभाजन की स्थिति में अध्यक्ष का मत निर्णायक मत के रूप में उपयोग किया जाता है। व्यक्तिगत रूप से कार्यकारी निदेशकों के पास कोई अधिकार नहीं होते, न ही वे निदेशक मंडल की विशेष अनुमति के बिना बैंक की किसी प्रतिबद्धता का आश्वासन दे सकते हैं या बैंक का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। 1 जनवरी 2010 से शुरू हुए कार्यकाल से कार्यकारी निदेशकों की संख्या एक सदस्य से बढ़ कर 25 हो गई है। विश्व बैंक समूह 5 विभिन्न संगठनों से मिलकर बना है। 

  1. अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी)
  2. अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए)
  3. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी)
  4. बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (एमआईजीए)
  5. निवेश संबंधी विवादों के निपटान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीएसआईडी)

आईबीआरडी

1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापना हुई 

  1. द्वितीय विश्व युद्ध से प्रभावित देशों को वित्तपोषण करना 
  2. गरीब देशों के विकास में सहायता प्रदान करना 
  3. विश्व बैंक की केंद्रीय संस्था है 
  4. अपेक्षाकृत उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले देशों को ऋण प्रदान करता है 
  5. धन का उपयोग निम्न कारणों के लिए किया जाता है 

  • विकास परियोजनाओं के लिए (अर्थात, महामार्ग, विद्यालय इत्यादि)
  • ऐसे कार्यक्रमों के लिए जो सरकारों को उनके अर्थव्यवस्था प्रबंधन में बदलाव के लिए सहायक हों 
  • परियोजनाओं में तकनीकी सहायता प्रदान करना 

      6. इसका वित्तपोषण निम्न द्वारा किया जाता है 

  • अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों में इसके बांड्स के विक्रय द्वारा 
  • इसकी पूंजी में सदस्यों द्वारा प्रदान किये गए योगदान द्वारा 
  • बैंक सदस्यों के योगदान के केवल 10 प्रतिशत का उपयोग करता है 
  • ‘‘प्रतिदेय पूंजी‘‘ (सदस्यों के योगदान का वह भाग जो बैंक उधार के रूप में प्राप्त करता है)

आईडीए 

  1. 1960 में स्थापना हुई 
  2. सबसे गरीब देशों को सहायता प्रदान करता है 
  3. ऐसे देशों को ऋण प्रदान करता है जिनकी वार्षिक प्रति व्यक्ति आय 800 डॉलर या उससे कम है 
  4. इसके ऋणों को ‘‘साख‘‘ कहा जाता है 
  5. इसके 161 सदस्य हैं 
  6. इसका वित्तपोषण निम्न द्वारा किया जाता हैः

  • अधिकांश सरकारों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा       
  • पुनःपूर्ति          
  • प्रत्येक कुछ वर्षों में लगने वाले अतिरिक्त योगदान द्वारा 

आईएफसी 

  1. गरीबी को कम करने और पर्यावरण और सामाजिक दृष्टि से जिम्मेदार तरीके से लोगों जीवन सुधारने के लिए इसकी स्थापना 1956 में हुई (इसके 174 सदस्य हैं)
  2. निजी क्षेत्र के निवेश के लिए वित्तपोषण करता है, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से पूंजी जुटाता है, और सरकारों और व्यवसायों को तकनीकी सहायता और सलाह देता है।
  3. विकासशील देशों में व्यापार उद्यमों को ऋण और इक्विटी, दोनों प्रकार का वित्तपोषण करता है  

एमआईजीए 

  1. 1988 में स्थापना हुई 
  2. विकासशील देशों को विदेशी निवेश आकर्षित करने में सहायता प्रदान करता है 
  3. अपने सदस्य देशों को निवेश विपणन सेवा और कानूनी सलाह प्रदान करता है
  4. इसके 152 सदस्य हैं 

आईसीएसआईडी 

  1. अंतर्राष्ट्रीय निवेश प्रवाहों को बढाने के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए इसकी स्थापना 1966 में की गई 
  2. सरकारों और विदेशी निवेशकों के बीच विवादों में सुलह के लिए सेवाएं प्रदान करता है

5.2 विश्व बैंक की भूमिका के विषय में बदलती अवधारणाएं 

इसकी शुरुआत में जो कार्य योजना अपनाई गई थी वह विश्व बैंक को एक ऐसी संस्था के रूप में स्थापित करने की थी जिसकी रचना निवेश और ऋण प्रदान करने की थी। चिली और पोलैंड़ के अनुरोधों को अस्वीकार करके, विश्व बैंक से सहायता प्राप्त करने वाला पहला देश फ्रांस था। 250 मिलियन ड़ॉलर का ऋण कठोर पुनर्भुगतान शर्तों के तहत प्रदान किया गया था। समय के साथ औचित्य का जोर परिवर्तित हो गया, और अनेक गैर यूरोपीय देशों को इस मान्यता और गणना के आधार पर सहायता प्रदान की गई, कि ऋण प्राप्त करने वाले देश की नियत समय में ऋण का पुनर्भुगतान करने की क्षमता है। अविकसित और विकासशील देशों को परिवहन सुविधाओं और विद्युत संयंत्रों के विकास के वित्तपोषण के लिए ऋण प्रदान किये गए। 

बाद में इसका ध्यान गरीबी उन्मूलन और विभिन्न देशों को उनके लोगों को मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुंच बनाने में सक्षम करने पर केंद्रित हो गया। जैसे-जैसे वित्तीय सहायता अधोसंरचना आवश्यकताओं और सामाजिक सेवाओं के लिए प्रदान की जाने लगी वैसे वैसे बैंक के ऋण की मात्रा और ऋणों की संख्या में वृद्धि होती चली गई। निधियों के नए तकनीकतंत्री प्रबंधन को क्रियान्वित करने का श्रेय 1968 में इसके अध्यक्ष रहे रोबर्ट मक्नामारा को जाता है। 

मक्नामारा ने उपयोगिताओं और विद्यालयों, अस्पतालों के निर्माण, और कृषि सुधारों और साक्षरता में सुधार के लिए निधियां उपलब्ध कराईं। ऋण संस्वीकृति से पूर्व किये जाने वाले अन्वेषणों के कारण न केवल ऋण शीघ्रता से उपलब्ध कराये जा सके बल्कि इसके कारण ऋणों की मात्रा में भी वृद्धि हुई। पूंजी बढ़ाने के लिए बांड़ बाजार का उपयोग किया गया। 1980 के दशक तक इसका केंद्रबिंदु संरचनात्मक समायोजन और अनेक विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को युक्तियुत बनाने पर था। आज विश्व बैंक अपने ऋण प्रदाय को पर्यावरणीय और अधोसंरचनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एकीकृत करता है। नए ‘‘हरित‘‘ केंद्रबिंदु के कारण अनेक विकासशील और अविकसित देशों को पूंजी उपलब्ध कराइ गई है ताकि वे अपने निर्यातों में सुधार कर सकें, आर्थिक समानता प्राप्त कर सकें, और साथ ही अपने नागरिकों के लिए उन्नत उपयोगिताएँ और सेवाएं सुनिश्चित कर सकें।

5.3 विश्व बैंक के विषय में प्रचलित विवाद 

विश्व बैंक के प्रति नापसंदगी और अविश्वास के अनेक विशिष्ट कारण हैं। विश्व बैंक पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि इसके द्वारा समर्थित परियोजनाओं में यह पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की अनदेखी करता है। उदाहरणार्थ विश्व बैंक ने ब्राजील के पोलोनोरोएस्ट विकास कार्यक्रम का वित्तपोषण किया, जिसका उद्घाटन रोनोड़ोनिया राज्य के अमजोनिया में 1981 में किया गया था। वनों में मुख्य महामार्ग को सुधार कर, भूमि को विभाजित करके और वहां बस्ने वाले लोगों को भूमि का स्वामित्व प्रदान करके इस कार्यक्रम के कारण बडे़ पैमाने पर प्रव्रजन हुआ और भूमि के लिए मांग बढ़ी, जिसके कारण उस वर्षा वन की बडे़ पैमाने पर क्षति हुई। विश्व बैंक ने भारत में भी एक बांध निर्माण परियोजना के लिए वित्तपोषण किया था, जिसके कारण 1978 और 1993 के बीच बडे़ पैमाने पर नर्मदा घाटी के लोगों का बलपूर्वक पुनर्वास किया गया। क्योंकि बांध नदियों पर बनाये जाते हैं, अतः जो क्षेत्र इतिहासपूर्व काल से आबाद रहे हैं वे मानव निर्मित जलाशयों के कारण नष्ट हो गए, जिसके कारण बडे़ पैमाने पर सामाजिक उथल-पुथल और नाराजी पैदा होती है, जिसका दोष विश्व बैंक को दिया गया। इसी प्रकार विश्व बैंक पर इस कारण भी हमला हुआ है कि उसने चीन में पश्चिमी गरीबी उन्मूलन परियोजना को वित्तपोषण किया है, जिसपर तिब्बत पर चीन के नियंत्रण का विरोध करने वालों का कहना है कि इसके कारण 37000 जातीय चीनी तिब्बत के क्षेत्र में पुनर्स्थापित हो जायेंगे। अभी हाल ही में बाकू-सेहन पाइपलाइन का भी विरोध हुआ है क्योंकि इसके आलोचकों का कहना है कि इसके कारण क्षेत्र में और विश्व व्यापी स्तर पर प्रदूषण बढे़गा, क्योंकि जीवाश्म ईंधन का बडे़ पैमाने पर उपयोग होगा, जो मानवाधिकारों के हनन में भी योगदान देता है। विश्व बैंक के विरुद्ध एक और मुख्य शिकायत यह है कि विश्व बैंक (और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष भी) विकासशील देशों में उच्च ऋणग्रस्तता की निर्मिति कर रहा है। हालांकि विश्व बैंक के ऋण देशों की सहायता के लिए हैं, फिर भी ये ऋण देशों को ऐसे ऋण प्राप्त करने को प्रोत्साहित करते हैं जिनपर उन्हें ब्याज का भुगतान करना है, और इस कारण वे बैंक की शर्तों के अधीन रहते हैं। पिछले 20 वर्षों के दौरान ये ऋण इतने बढ़ गए हैं, कि आलोचकों का कहना है कि वे ‘‘चिरस्थाई ऋण‘‘ हैं, जिनपर विश्व के गरीब लोग बैठे हुए हैं। 50 इयर्स इस एनफ के अनुसार ‘‘उप सहारा अफ्रीका (जिसमें दक्षिण अफ्रीका शामिल नहीं है) का प्रति व्यक्ति बाह्य ऋण 365 ड़ॉलर है, जबकि प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद मात्र 308 डॉलर है।’’ इन आलोचकों का कहना है कि अनेक देश ऋण की ब्याज देयता पर अधिक व्यय करते हैं जबकि इसकी तुलना में मूलभूत सामाजिक सेवाओं पर बहुत कम व्यय करते हैं।

6.0 भविष्य में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की भूमिका

इन सभी विवादों के बावजूद इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे अनेक देश हैं जिनमें दुर्भाग्य से बडे़ पैमाने पर आवश्यकताओं और संसाधनों का अभाव रहेगा। अतः निरंतर रूप से विकास के वित्तपोषण और विकास के लिए सहायता की आवश्यकता जारी रहेगी, यह आवश्यकता केवल धन की ही नहीं रहेगी बल्कि अनुभव की भी होगी। संस्थाएं अपना विशिष्ट केंद्रबिंदु परिवर्तित कर सकती हैं, परंतु गरीब देशों की उपस्थिति की बुनियादी समस्या तो रहेगी ही। भविष्य का सबसे गंभीर प्रश्न यह है कि यदि ऋणग्रस्तता बढ़ती ही जाएगी, तो उस धन का क्या होगा जो हम अभी विकास के लिए लगा रहे हैं? विकास बैंकों की भूमिका तो रहेगी ही, परंतु भविष्य उनपर जी-7 का प्रभाव नहीं रह जायेगा। नेतृत्व पर ब्रिक्स का गंभीर दावा है। इसका इन संस्थाओं पर अनुकूल प्रभाव पडेगा रू ब्रिक्स संस्थाओं को उन देशों के निकट लाएगा जिनकी सहायता करने का वे प्रयास कर रही हैं। इस परिवर्तन की ओर अनेक युवा देश भी देखेंगे कि नेतृत्व में उनके लिए भी भविष्य है।




7.0 ग्लोबलाइजेशन 4.0

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक साझा भविष्य निर्माण के लिए एक साथ आए। 2020 में यह फिर करना होगा। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के दशक में धीमी एवं असमान वापसी के कारण, समाज का एक बड़ा हिस्सा न केवल राजनीति एवं राजनेताओं से, बल्कि वैश्वीकरण एवं इसके अंर्तगत पूर्ण आर्थिक व्यवस्था, से कमजोर हुआ है। जिसके कारण दुनिया भर में दक्षिणपंथी सोच की आबादी में भारी वृद्धि हुई है।

7.1 वैश्वीकरण एवं वैश्विकता

लोकलुभावन प्रवचन अक्सर दो अवधारणाओं - वैश्वीकरण एवं वैश्विकता - के बीच के विशिष्ट भेदों को समझ नही पाता है। वैश्वीकरण प्रौद्योगिकी एवं विचारों, लोगों एवं वस्तुओं की आवाजाही से प्रेरित एक घटना है। वैश्विकता एक विचारधारा है जो राष्ट्रीय हितों पर वैश्विक हितों को प्राथमिकता देती है। कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि हम एक वैश्वी.त दुनिया में रह रहे हैं। लेकिन क्या हमारी सभी नीतियां “वैश्विकवादी” होनी चाहिए, अत्यधिक बहस योग्य है।

यह हमारे वैश्विक-शासन मॉडल के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। ‘वैश्विक ताकतों’ से ‘नियंत्रण वापस लेने’ की मांग करने वाले अधिक से अधिक मतदाताओं के साथ, चुनौती एक ऐसी दुनिया में संप्रभुता को बहाल करने की है जिसे सहयोग की आवश्यकता है। संरक्षणवाद एवं राष्ट्रवादी राजनीति के माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं को बंद करने के बजाय, हमें नागरिकों एवं उनके नेताओं के बीच एक नई सामाजिक संरचना बनाना चाहिए, ताकि हर कोई घर पर पर्याप्त रूप से सुरक्षित महसूस करे और बड़े पैमाने पर दुनिया के लिए खुला रह सके। असफल होने पर, हमारे सामाजिक ताने-बाने का चलन अंततः लोकतंत्र के पतन का कारण बन सकता है।

7.2 चौथी औद्योगिक क्रांति (Fourth industrial Revolution)

चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) से जुड़ी चुनौतियाँ पारिस्थितिक बाधाओं के तेजी से उभरने, तेजी से बढ़ रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के आगमन एवं बढ़ती असमानता के साथ मेल खा रही हैं। ये एकी.त विकास भूमंडलीकरण के एक नए युग की शुरुआत कर रहे हैं। क्या यह मानव स्थिति में सुधार करेगा या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कॉर्पोरेट, स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शासन समय में अनुकूल हो सकते हैं या नहीं।

इस बीच, वैश्विक सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिए एक नया ढांचा तैयार हो रहा है। सार्वजनिक-निजी सहयोग निजी क्षेत्र एवं खुले बाजारों के दोहन के बारे में है, जो कि सार्वजनिक विकास के लिए आर्थिक विकास को चलाने के लिए, पर्यावरणीय स्थिरता एवं सामाजिक समावेश के साथ हमेशा ध्यान में रखते हैं। लेकिन जनता का भला करने के लिए, हमें पहले असमानता के मूल कारणों की पहचान करनी चाहिए।

उदाहरण के लिए, खुले बाजार एवं बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में विजेता एवं परास्त पैदा करती हैं, राष्ट्रीय स्तर की असमानता पर उनका ओर भी अधिक स्पष्ट प्रभाव हो सकता है। इसके अलावा, अमीरो एवं गरीबो के बीच बढ़ते विभाजन को 4प्त् व्यवसाय मॉडल द्वारा प्रबलित किया जा रहा है, जो अक्सर पूंजी या बौद्धिक संपदा के अधिकार से लाभ प्राप्त करती हैं। उस विभाजन को बंद करने के लिए हमें यह पहचानने की आवश्यकता है कि हम एक नए प्रकार की नवाचार-चालित अर्थव्यवस्था में रह रहे हैं, एवं यह कि सार्वजनिक विश्वास की रक्षा के लिए नए वैश्विक मानदंडों, मानकों, नीतियों एवं सम्मेलनों की आवश्यकता है।

7.3 तकनीकी परिवर्तन

तकनीकी परिवर्तन की तीव्र गति का अर्थ है कि स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, उत्पादन, वितरण एवं ऊर्जा जैसी हमारी कुछ प्रणालियाँ पूर्णतः रूपांतरित हो जाएंगी। उस परिवर्तन को प्रबंधित करने के लिए राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय सहयोग से न केवल नए ढांचे की आवश्यकता होगी, बल्कि श्रमिकों को नए कौशल सिखाने के लक्षित कार्यक्रमों के साथ शिक्षा का एक नया मॉडल भी बनाना होगा। उम्रदराज समाजों के संदर्भ में रोबोटिक्स एवं .त्रिम बुद्धिमत्ता में प्रगति के साथ, हमें उत्पादन एवं उपभोग को पीछे छोड़ कर शेयरिंग एवं केयरिंग की ओर आगे बढ़ना होगा।

वैश्वीकरण 4.0 शुरू हो चुका है, लेकिन हम इसके लिए तैयार नही है। एक पुरानी मानसिकता पर काबू पाने एवं हमारी मौजूदा प्रक्रियाओं एवं संस्थानों में थोड़ा बहुत बदलाव करने से काम नही चलेगा। इसके बजाय, हमें उन्हें आरंभ से पुनः डिजाइन करने की आवश्यकता है, ताकि हम जबकि आज सामना कर रहे व्यवधानों से बचे रहे एवं उन नए अवसरों को भुना पाए जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। हम नही चाहते कि अंत में हमारे हाथों में कुछ ना रहे। यह मुक्त व्यापार की तुलना में संरक्षणवाद, प्रौद्योगिकी की तुलना में नौकरियों का समाप्त होना, आव्रजन की तुलना में नागरिकों की रक्षा तथा विकास की तुलना में समानता का मामला नहीं है। ये सभी तुलनाएँ अनर्थक है। 

7.4 आगे की राह

इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दो चीजों की आवश्यकता होगी - व्यापक जुड़ाव एवं उन्नत सोच। निरंतर संवाद में सभी हितधारकों का जुड़ना महत्वपूर्ण होगा, वैसे ही अपने अल्पकालिक संस्थागत एवं राष्ट्रीय विचारों से परे व्यवस्थित रूप से सोचने की आवश्यकता होगी।

ये दावोस-क्लोस्टर्स में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की आगामी वार्षिक बैठक के दो आयोजन सिद्धांत होंगे, जो ‘वैश्वीकरण 4.0 - चौथी औद्योगिक क्रांति के युग में एक नई वास्तुकला को आकार देने’ के विषय के तहत होगा। चाहे हम तैयार हो या ना हो - एक नई दुनिया हमारे लिए तैयार है।

ब्रेटन वुड्स संस्थान एवं 2030 का रास्ता

  • ब्रेटन वुड्स संस्थानों के उद्देश्य क्या हैं? अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक दोनों को ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर, संयुक्त राज्य अमेरिका में जुलाई 1944 में बुलाई गई एक अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में बनाया गया था। सम्मेलन का लक्ष्य आर्थिक सहयोग एवं विकास के लिए एक रूपरेखा स्थापित करना था जिससे स्थिर एवं समृद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था प्राप्त हो। हालांकि यह लक्ष्य दोनों संस्थानों के लिए केंद्रीय है, लेकिन नए आर्थिक विकास एवं चुनौतियों के कारण दोनो के कामों में लगातार बदलाव हो रहा है।

  • IMF का उद्धेश्य - IMF अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देता है एवं देशों को मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने एवं बनाए रखने में मदद करने के लिए नीति सलाह एवं क्षमता विकास सहायता प्रदान करता है। आईएमएफ ऋण भी देता है एवं जब अंतरराष्ट्रीय भुगतानों को चुकाने के लिए आसानी से पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त नहीं होता है तो देशों को भुगतान की समस्याओं के समाधान के लिए नीतिगत कार्यक्रम डिजाइन करने में मदद करता है। आईएमएफ के ऋण लघु एवं मध्यम अवधि के होते हैं एवं मुख्य रूप इसके सदस्य राष्ट्रों द्वारा प्रदान वित्त से पोषित होते हैं। आईएमएफ कर्मचारी मुख्य रूप से व्यापक आर्थिक एवं वित्तीय नीतियों में व्यापक अनुभव रखने वाले अर्थशास्त्री हैं।
  • विश्व बैंक का उद्धेश्य - विश्व बैंक लंबी अवधि के आर्थिक विकास एवं गरीबी में कमी को लाता है ताकि देशों को कुछ क्षेत्रों में सुधार करने या विशिष्ट परियोजनाओं को लागू करने में मदद मिल सके या जैसे कि स्कूलों एवं स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण, पानी एवं बिजली प्रदान करना, बीमारी से लड़ना एवं पर्यावरण की रक्षा। विश्व बैंक की सहायता आम तौर पर दीर्घकालिक होती है एवं सदस्य देश के योगदान एवं बांड जारी करने के माध्यम से दोनों को वित्त पोषित किया जाता है। विश्व बैंक के कर्मचारी अक्सर विशेष मुद्दों, क्षेत्रों, या तकनीकों के विशेषज्ञ होते हैं।
  • सहयोग के लिए रूपरेखा - आईएमएफ एवं विश्व बैंक सदस्य देशों की सहायता करने एवं कई पहलों पर एक साथ काम करने के लिए नियमित रूप से कई स्तरों पर सहयोग करते हैं। 1989 में, साझा सहयोग के क्षेत्रों में प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करने के लिए उनके सहयोग की शर्तें तय की गई।
  • उच्च-स्तरीय समन्वय - आईएमएफ एवं विश्व बैंक के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के वार्षिक बैठकों के दौरान, राज्यपाल, अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र एवं वित्त में वर्तमान मुद्दों पर अपने देशों के विचारों एवं परामर्शो को प्रस्तुत करते हैं। राज्यपालों के बोर्ड तय करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों को कैसे हल किया जाए एवं संगठनों के लिए प्राथमिकताएं तय की जाएं। आईएमएफ एवं विश्व बैंक के गवर्नर्स का एक समूह भी विकास समिति के हिस्से के रूप में मिलता है, जिनकी बैठकें आईएमएफ एवं विश्व बैंक की स्प्रिंग एवं वार्षिक बैठकों के साथ होती हैं। इस समिति की स्थापना 1974 में दोनों संस्थानों को महत्वपूर्ण विकास के मुद्दों एवं कम आय वाले देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों पर सलाह देने के लिए की गई थी।
  • गरीबी को कम करना - 1999 में, आईएमएफ एवं विश्व बैंक ने गरीबी उन्मूलन रणनीति पेपर (PRSP) को HIPC पहल के तहत ऋण राहत के लिए एक प्रमुख घटक एवं रियायती ऋण द्वारा फंड उपजब्ध कराने में एक महत्वपूर्ण बैंक, के रूप में लॉन्च किया। जबकि PRSPs HIPC इनिशिएटिव, वर्ल्ड बैंक एवं IMF द्वारा क्रमशः जुलाई 2014 एवं जुलाई 2015 में अपनाए गए, देश के जुड़ाव के नए .ष्टिकोणों को जारी रखते हैं, जिन्हें अब PRSPs की आवश्यकता नहीं है। आईएमएफ ने विस्तारित क्रेडिट सुविधा (ईसीएफ) या पॉलिसी सपोर्ट इंस्ट्रूमेंट (पीएसआई) के तहत समर्थित कार्यक्रमों के लिए गरीबी में कमी के दस्तावेज के लिए अपनी आवश्यकता को सुव्यवस्थित किया।
  • 2030 का विकास एजेंडा - 2004 से 2015 के बीच आईएमएफ एवं बैंक ने संयुक्त रूप से वार्षिक वैश्विक निगरानी रिपोर्ट (जीएमआर) प्रकाशित की, जिसमें मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी) को पूरा करने की दिशा में प्रगति का आकलन किया गया। 2015 में, 2030 वैश्विक विकास एजेंडा के तहत सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के साथ एमडीजी के प्रतिस्थापन के साथ, आईएमएफ एवं बैंक सक्रिय रूप से विकास एजेंडा का समर्थन करने के वैश्विक प्रयास में लगे हुए हैं। प्रत्येक संस्था ने अपने एसडीजी तक पहुंचने में सदस्य देशों का समर्थन करने के लिए, उनके संबंधित रीमेट्स के भीतर नई पहल करने के लिए प्रतिबद्ध किया है। वे संयुक्त सदस्यता की बेहतर सहायता के लिए भी साथ काम कर रहे हैं, जिसमें विकासशील देशों में मजबूत कर प्रणालियों के संवर्धित समर्थन एवं अफ्रीका में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अफ्रीका के साथ जी -20 कॉम्पैक्ट का समर्थन शामिल है।

अंर्तराष्टीय मुद्रा कोष - आईएमएफ एवं विश्व व्यापार संगठन - डब्ल्युटीओ - क्या समान है

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 189 सदस्य देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए काम करता है। IMF के कार्यो में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार एवं संतुलित विकास की सुविधा, विनिमय स्थिरता को बढ़ावा देना, एवं भुगतान समस्याओं के देशों के संतुलन के क्रमबद्ध सुधार के लिए अवसर प्रदान करना शामिल है। IMF की स्थापना 1945 में हुई थी।
  • विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) 164 सदस्यों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के बीच व्यापार के नियमों से संबंधित है। अगस्त 2012 में रूस के परिग्रहण के साथ, विश्व व्यापार संगठन सभी प्रमुख व्यापारिक अर्थव्यवस्थाओं को शामिल करता है। विश्व व्यापार संगठन अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रवाह को सुचारू, आशाजनक एवं स्वतंत्र रूप से चलाने में मदद करता है, एवं यह व्यापार मुद्दों पर विवादों से निपटने के लिए रचनात्मक एवं निष्पक्ष समाधान प्रदान करता है। डब्ल्यूटीओ, 1947 में स्थापित टैरिफ एंड ट्रेड (जीएटीटी) पर सामान्य समझौते  के स्थान पर, 1995 में अस्तित्व में आया।

  • IMF एवं WTO का कार्य पूरक है। जीवंत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने के लिए एक उत्तम अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता होती है, जिससे सुचारू रूप से बहने वाले व्यापार से भुगतान असंतुलन एवं वित्तीय संकट के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ एवं ‘सभी देशो के लिए उपलब्ध भुगतान’ की एक मजबूत व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए दोनों संस्थान एक साथ काम करते हैं। इस तरह की प्रणाली आर्थिक विकास को सक्षम करने, जीवन स्तर को बढ़ाने एवं दुनिया भर में गरीबी को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • आईएमएफ एवं डब्ल्यूटीओ वैश्विक आर्थिक नीति निर्धारण में अधिक सामंजस्य सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कई स्तरों पर एक साथ काम करते हैं। विश्व व्यापार संगठन के निर्माण के कुछ ही समय बाद, दोनों संगठनों के बीच, उनके संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

ग्लोबल इकोनॉमी 2020 एवं आगे

  • व वैश्विक विकास में गिरावट है। अप्रैल 2019 के विश्व आर्थिक आउटलुक WTO की रिपोर्ट के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुछ चीनी आयातों पर शुल्क बढ़ा दिया एवं चीन ने अमेरिकी आयातों के सबसेट पर शुल्क बढ़ाकर प्रतिशोध लिया। जून ळ20 शिखर सम्मेलन के बाद अतिरिक्त प्रशुल्क वृद्धि को रोका गया था। अमेरिकी प्रतिबंधों की संभावना से वैश्विक प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को खतरा था, ब्रेक्सिट-संबंधित अनिश्चितता जारी रही एवं बढ़ती भू-राजनीतिक तनावों ने ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि की।
  • इस पृष्ठभूमि में, 2019 में वैश्विक विकास दर 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान था, जो 2020 में 3.5 प्रतिशत तक बढ़ सकता है (दोनों वर्षों में अप्रैल ॅम्व् अनुमानों की तुलना में 0.1 प्रतिशत कम)। जीडीपी इस साल अब तक जारी है, आम तौर पर मुद्रास्फीति को नरम करने के साथ, कमजोर-प्रत्याशित वैश्विक गतिविधि की एवं इशारा करता है। उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए निवेश एवं मांग उन्नत एवं उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं में दब गई है क्योंकि फर्म एवं घर लंबे समय तक खर्च पर नियंत्रण करना जारी रखते हैं। तदनुसार, वैश्विक व्यापार, जो मशीनरी एवं उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं में गहन है, सुस्त बना हुआ है। 2020 में अनुमानित वृद्धि बढ़ोतरी अनिश्चित है, जो वर्तमान में तनावग्रस्त बाजार में स्थिरीकरण का अनुमान लगा रही है एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं एवं व्यापार नीति मतभेदों को हल करने की दिशा में प्रगति कर रही है।
  • पूर्वानुमान के जोखिम मुख्य रूप से नकारात्मक पक्ष के हैं। वे आगे के व्यापार एवं प्रौद्योगिकी तनाव में शामिल हैं जो सेंध एवं धीमी गति से निवेश करते हैंय जोखिम के फैलाव में एक लंबी वृद्धि, जो वित्तीय कमजोरियों को उजागर करती है, जो कम ब्याज दरों के वर्षों के बाद जमा होती रहती हैंय एवं ऋण वितरण की कठिनाइयों को बढ़ाने वाले विघटनकारी दबाव, मौद्रिक नीति की नीति को नीचे की एवं धकेलने के लिए विवश करते हैं, एवं प्रतिकूल झटके को सामान्य से अधिक बनाए रखते हैं।
  • वैश्विक विकास को मजबूत बनाने के लिए बहुपक्षीय एवं राष्ट्रीय नीति क्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। दबाव की जरूरतों में व्यापार एवं प्रौद्योगिकी तनाव को कम करना एवं व्यापार समझौतों (यूनाइटेड किंगडम एवं यूरोपीय संघ के बीच एवं कनाडा, मैक्सिको एवं संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल मुक्त व्यापार क्षेत्र के बीच अनिश्चितता को हल करना) शामिल हैं। विशेष रूप से, देशों को टैरिफ का उपयोग द्विपक्षीय व्यापार संतुलन को लक्षित करने या सुधार के लिए दूसरों पर दबाव डालने के लिए संवाद के विकल्प के रूप में नहीं करना चाहिए। वंचित अंतिम मांग एवं मौन मुद्रास्फीति के साथ, उन्नत मौद्रिक एवं उभरते बाजार एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में, जहां उम्मीदे हैं, में मौद्रिक नीति उपयुक्त है। राजकोषीय नीति में कई उद्देश्यों को संतुलित करना चाहिए। आवश्यकतानुसार सुचारू मांग, कमजोरियों की रक्षा करना, संरचनात्मक सुधारों का समर्थन करने एवं खर्च करने के साथ विकास क्षमता को बढ़ाना एवं मध्यम अवधि के लिए स्थायी सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करना। यदि विकास आधार रेखा के सापेक्ष कमजोर हो जाता है, तो देश की परिस्थितियों के आधार पर, मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियों को अधिक व्यवस्थित तरिके से मोड़ने की आवश्यकता होगी। सभी अर्थव्यवस्थाओं में प्राथमिकताएँ समावेश को बढ़ाना, लचीलेपन को मजबूत करना, एवं संभावित उत्पादन वृद्धि पर अवरोधों को संबोधित करना है।

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