सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
स्वतंत्रता
1.0 परिचय
स्वतंत्रता प्राप्त करने के साथ देश ने केवल पहला कदम आगे बढ़ाया और वह था ब्रिटिश शासन को भारत से उखाड़ फेंकना। स्वतंत्रता ने केवल राष्ट्र के पुनर्गठन में बाधक प्रमुख तत्व को निकाल बाहर किया मगर सदियों से फैला पिछड़ापन, पूर्वाग्रह, असमानता और अज्ञान तो अब तक देश में व्याप्त थी और इसे न जाने कितने समय तक ढ़ोया जाना था। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी मृत्यु से चार माह पहले सन 1941 में कहा थाः
‘‘भाग्य चक्र के पहिए एक दिन घूमेंगे और ब्रिटिश शासन को इस देश से जाना ही पडे़गा। मगर वे किस तरह का भारत पीछे छोड़कर जाएंगे? कितनी कष्टकारी स्थिति निर्मित करके जाएंगे? जब सदियों से चलते आ रहे उनके शासन की धाराएं सूख जाएंगी तो अपने पीछे वे किस तरह की गंद और मिट्टी छोड़कर जाने वाले हैं।’’
2.0 युद्ध के बाद की महत्वपूर्ण घटनाएं
2.1 वावेल योजना
लार्ड लिनलिथगो के बाद लार्ड वावेल ने भारत के वायसराय का पद संभाला। भारतीय राजनीति के गतिरोध को समाप्त करने के लिए उसने एक योजना बनाई जो इतिहास में वावेल योजना (1945) के नाम से प्रसिद्ध है। इस योजना के महत्वपूर्ण बिंदु निम्नानुसार थेः
- संविधान के निर्माण के पहले एक अंतरिम सरकार का गठन करना
- अंतरिम सरकार में सभी संप्रदाय के लोगों को बराबर संख्या को शामिल करना जिसमें हिंदू और मुस्लिम भी शामिल थे
- गवर्नर जनरल और कमांड़र-इन-चीफ के अलावा केन्द्रीय कार्यकारी समिति के सभी सदस्य भारतीय ही हां
- सत्ता के भारतीयों को स्थानांतरण तक भारतीय सुरक्षा विभाग ब्रिटिश हाथों में रहे
अपने इस प्रस्ताव के सभी बिंदुओं पर चर्चा करने के लिए वावेल ने 25 जून 1945 को भारतीय नेताओं का एक सम्मेलन शिमला में आयोजित किया।
2.2 शिमला सम्मेलन
शिमला सम्मेलन में रखे गए प्रस्ताव का कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही किन्हीं मुद्दों को लेकर विरोध किया। कांग्रेस के विरोध का मुद्दा था कि उसे केवल एक हिंदू दल के रूप में माना जा रहा है जबकि कांग्रेस भारत की बहुसंख्यक जनता का प्रतिनिधित्व करती है न कि किसी धर्म विशेष के लोगों का। मुस्लिम लीग ने भी कई आपत्तियां दर्ज कीं। उनका कहना था कि मुस्लिम लीग जो सूची देगी उसे ही अंतिम समझना चाहिए और वायसराय द्वारा पुनः पैनल के सदस्यों की सूची मांगे जाना पूरी तरह से गलत है। इसके अलावा, कैबिनेट में जो भी मुस्लिम लिए जाएं, वे मुस्लिम लीग से ही हों।
शिमला सम्मेलन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मतभेदों का दृश्य भी प्रस्तुत किया। कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा कांग्रेस के राष्ट्रीय चरित्र को स्पष्ट करते हुए सरकार द्वारा इसे केवल एक हिंदू बहुल दल का दर्जा दिए जाने की भर्त्सना की गई। आजाद स्वयं मुस्लिम थे और अन्य मुस्लिमों के साथ मिलकर वे पार्टी के धर्मनिरपेक्ष रूप को दिखा सकते थे और कांग्रेस को सहयोग कर सकते थे। दूसरी ओर वे स्वतंत्रता की बात को बार-बार दोहराते रहे जो सम्मेलन के आधारभूत मुद्दों में गुम ही हो गया था। मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना का कथन था कि वह किसी भी ऐसे संविधान की बात से सहमत नहीं होंगे जिसमें पाकिस्तान की मांग शामिल न की गई हो। उसने मुस्लिमों के लिए अलग प्रांतीय सरकार बनाने के लिए लीग को बराबरी का दर्जा देने की मांग रखी और कार्यकारी समिति में मुस्लिम प्रतिनिधि को स्वयं नियुक्त करने की भी मांग रखी। हालांकि कांग्रेस ने समय की मांग को समझते हुए इस प्रस्ताव के साथ कुछ हद तक जाने के लिए सहमति दिखाई मगर मुस्लिम लीग ने इसे मानने के बजाय अपनी दो मांगों को रखते हुए इस प्रस्ताव से असहमति दिखाई। ये मांगे इस तरह थीं
- युद्ध के बाद मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम राज्य का गठन किया जाए; और
- कार्यकारी समिति में मुस्लिमों को बहुमत पार्टी ही मानकर कार्यकारी समिति में बराबरी की सदस्य संख्या दी जाए
अतः शिमला सम्मेलन जो कि सभी दलों की आशाओं का केन्द्र था, भविष्य के अधूरे सपनों, जिनसे किसी को भी लाभ नहीं होने वाला था, के साथ समाप्त हो गया। बाद में सभी दलों ने ब्रिटिश शासन की निंदा की कि इसके बहाने से वे भारतीय दलों में धर्म के आधार पर फूट डालना चाहते थे जिसे दोनों दलों ने नकार दिया। सम्मेलन की इसके लिए भी निंदा की गई कि इसके द्वारा कांग्रेस और लीग के अधिकारों को कम आंकते हुए उन्हें स्वतंत्र और स्वशासित राष्ट्र बनने से रोका जा रहा था जिसके बिना दूसरे विश्वयुद्ध में भारतीयों की हिस्सेदारी अर्थविहीन थी।
2.3 कैबिनेट मिशन योजना
19 फरवरी 1946 को क्लीमेंट एटली ने यह घोषणा की कि एक तीन सदस्यीय समिति, जिसके सदस्य लार्ड पैथिक लारेंस, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और मि. एम.वी. अलेक्जेंडर होंगे, भारत जाएगीं और संवैधानिक नियमों और उनकी क्रियान्वयन विधि पर भारतीय नेताओं के साथ बातचीत करके सहमति बनाने का प्रयास करेगी। इस समिति को कैबिनेट मिशन का नाम दिया गया। इस समिति के दो मुख्य उददेश्य थे। एक तो यह कि शक्ति के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के जरिए भारत को स्वतंत्रत करना और दूसरा यह कि भारतीयों को स्वयं का संविधान बनाने में मदद करना। मिशन 24 मार्च 1946 को दिल्ली पहुंचा।
मगर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच किसी तरह के समझौते के आसार नजर नहीं आ रहे थे। गांधीजी ने समिति से भारत के भविष्य के बारे में अपना प्रस्ताव रखने के लिए कहा। 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन ने भारतीयों के संविधान के मुद्दों के हल के बारे में अपनी दीर्घावधि की योजना रखी।
कैबिनेट मिशन की योजना इस प्रकार थी
- भारत के समस्त राज्यों और ब्रिटिश शासनाधीन भारत को मिलाकर केन्द्र में एक संघीय गणराज्य की स्थापना की जाएगी।
- केन्द्र सरकार सुरक्षा, विदेश नीति और संचार के क्षेत्र में काम करेगी। शेष शक्तियां प्रांत और राज्यों के बीच बांटी जाएंगी। ब्रिटिश शासनाधीन भारत को तीन समूहों में बांटा जाएगा। समूह अ में पंजाब, उत्तर-पूर्वी सीमांत प्रांत, सिंध और बलुचिस्तान शामिल होंगे। समूह ब में बंगाल और असम और समूह क में शेष बचे प्रांत शामिल किए जाएंगे। इस तरह पहले दो समूह मुस्लिम बहुल क्षेत्र होंगे और तीसरा क्षेत्र हिंदू बहुल होगा।
- 296 सदस्यों की एक संविधानिक सभा द्वारा संघीय संविधान का निर्माण होगा, व इन सदस्यों को प्रांतीय विधानसभा और राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाएगा जो कि संघ में शामिल किए जाएंगे। तीन समूहों के प्रतिनिधियों को पृथक रूप से आपस में मिलकर हर प्रांत के संविधान को आकार देना था।
- प्रत्येक प्रांत को यह अधिकार दिया जाना था कि वे संघ से कभी भी अलग होकर अपने प्रांत में चुनाव करा सकते हैं।
- संविधान के निर्माण तक एक अंतरिम सरकार का प्रावधान रखा जाना था।
इस अंतरिम सरकार में 14 सदस्य प्रस्तावित थे। जिनमें से 6 कांग्रेस के, 5 मुस्लिम लीग के, एक इसाई, एक सिख और एक पारसी होगा। कांग्रेस और लीग ने इस योजना को अपनी समझ के अनुरूप समझा। पटेल ने कहा कि इस योजना में पाकिस्तान के निर्माण का प्रस्ताव नहीं है जबकि लीग को लगा कि मुस्लिम बहुल समूह बनाने में पाकिस्तान का निर्माण स्वयं ही निहित है। लीग ने 6 जून 46’ को यह योजना स्वीकार की मगर 29 जुलाई को अपना समर्थन वापस ले लिया।
वायसराय वावेल चिंतित था कि अंतरिम सरकार का गठन जल्द से जल्द होना चाहिए। मगर कांग्रेस ने वायसराय के अंतरिम सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया और और संविधान सभा में शामिल होकर संविधान निर्माण में सहयोग करने की सहमति दी।
कैबिनेट मिशन 29 जून 1946 को वापस लौट गया। इसके बाद हुए आम चुनाव में 296 सीटों में से कांग्रेस को 212 और लीग को केवल 73 सीटें मिली। शेष ग्यारह सीटें अन्य छोटे दलों के सदस्यों ने जीतीं।
2.4 सीधी कार्यवाही
एम.ए. जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 के दिन को ‘‘सीधी कार्यवाही’’ के दिन के रूप में तय किया। जिन्ना ने मुस्लिमों से आग्रह किया कि वे रैली और सभाओं द्वारा एक अलग देश पाकिस्तान की मांग को सामने रखें। जैसे ही कलकत्ता की सडकों पर रैली निकलनी शुरु हुई, हिंसा का वातावरण निर्मित हो गया। कलकत्ता की गलियां और सड़कें खून से सन गईं।
कई दिनों तक कलकत्ता की सड़कों ने सांप्रदायिक दंगों के वीभत्स रूप को देखा। बंगाल पहले ही मुस्लिम लीग के अधीन था क्योंकि वहां का शासन हुसैन शाहिद सोहरावर्दी के हाथ में था। सांप्रदायिक दंगे केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं रहे, वे भारत के अन्य भागों में भी आग की तरह फैल गए। बिहार, लाहौर और रावलपिंड़ी जल्दी ही सांप्रदायिक दंगों के शिकार हो गए।
ब्रिटिश सरकार इस दुविधा में थी कि क्या वे मुस्लिम लीग की सहमति की प्रतीक्षा करें या कांग्रेस के साथ ही सरकार बनाएं। राज्य के सचिव के जोर ड़ालने पर केवल कांग्रेस की सदस्यता से सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ जिसका नेता नेहरु को बनाया गया। मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल नहीं हुई। अतः सरकार में केवल कांग्रेस के लोग जैसे नेहरु, सरदार पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्री राजगोपालचारी, डा.जान मथाई, सरदार बलदेव सिंह, सर शफत अहमद खान, श्री जगजीवन राम, सियद अली जहीर, श्री सी एच भाभा, श्री आसफ अली और श्री शरतचन्द्र बोस शामिल थे। कालांतर में 13 अक्तूबर 1946 को मुस्लिमों के हितों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग ने अंतरिम सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया। नई सरकार किसी विभाजित घर की तरह थी।.
लीग का मुख्य उददेश्य था कांग्रेस के हर काम, हर निर्णय का विरोध करना। नेहरु ने खुले रूप से लीग को ‘‘राजा का दल’’ कहा था। कांग्रेस और लीग के बीच की खाई को पाटा न जा सका और सांप्रदायिक दंगे भड़कते गए। पूर्वी बंगाल के नोआखली जिले में कई हिंदुओं पर मुस्लिमों ने अत्याचार किया और उनका कत्ल कर दिया। इसने बिहार के हिंदुओं को उकसाया और उन्होंने बदला लेने की गरज से ऐसा ही व्यवहार वहां बसे मुस्लिमों के साथ किया। नेहरु बिहार पहुंचे और कांग्रेस सरकार ने इसे रोकने के लिए कडे़ कदम उठाए।
9 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा की पहली बैठक हुई औए संविधान निर्माण की प्रक्रिया शुरु हुई।
लीग ने संविधान सभा का पूरी तरह बहिष्कार किया। अतः कांग्रेस ने लीग से अंतरिम सरकार से भी इस्तीफा देने के लिए कहा। नेहरु ने 11 दिसंबर 1946 को अपना प्रसिद्ध संकल्प दिया जिसमें भारत को स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य बनाने की बात कही गई।
मुस्लिम लीग कांग्रेस से दूर रहने के प्रयत्न में लगी रही। इसने अंतरिम सरकार में गतिरोध पैदा कर दिया था। दोनों के बीच के मतभेद इतने बढ़ गए थे कि नेहरु के प्रधानमंत्रित्व में अंतरिम सरकार का काम करना असंभव हो गया। हिंदू-मुस्लिम मतभेदों ने देश की राजनीतिक स्थिति को बुरी तरह से प्रभावित किया था। चारों ओर अराजकता और अनिश्चितता का वातावरण था।
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री सर क्लीमेट एटली ने महसूस किया कि जब तक कोई त्वरित और ठोस निर्णय नहीं लिया जाएगा, इस रक्तपात को रोकना असंभव है। वे हमेशा से ही भारत को शक्ति हस्तांतरण करने के पक्ष में थे। अतः उन्होंने भारत से ब्रिटिश शक्ति को समेटने और जिम्मेदार सरकार के हाथ भारत की बागड़ोर सौंपने के लिए एक तारीख निश्चित की।
पूर्ण स्वतंत्र सरकार के लिए तारीख निश्चित हुई 3 जून 1948। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि लीग अंतरिम सरकार या संविधान सभा में शामिल नहीं होती तो हस्तांतरण किसी योग्य प्राधिकारी को किया जाएगा। उन्होंने आगे घोषणा की कि इस महान कार्य को करने के लिए स्वयं लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय के रूप में पद ग्रहण करेंगे।
3.0 माउंटबेटन योजना (3 जून)
माउंटबेटन योजना में यह घोषित किया गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान को अधिराज्यों के स्तर पर सत्ता हस्तांतरण किया जाएगा। माउंटबेटन ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव का भी समर्थन किया कि रियासतों को उनकी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल होने की स्वतंत्रता दी जाए। साइरिल रेडक्लिफ के नेतृत्व में एक बाउंड्री कमीशन का भी गठन किया गया। माउंटबेटन की योजना भारत को विभाजित करने के साथ साथ एकता को कायम रखने की भी थी। माउंटबेटन योजना के मुख्य बिंदु इस तरह थे
- यदि मुस्लिम बहुल क्षेत्र यह मांग रखते हैं तो उन्हें पृथक राज्य गठित करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस हेतु पृथक संविधान सभा का भी गठन होना चाहिए। मगर बंगाल और पंजाब में हिंदुओं का भी प्रतिशत अधिक होने की स्थिति में इन प्रांतों का विभाजन ही एकमात्र उपाय होगा।
- उत्तर-पूर्वी सीमांत प्रदेश पाकिस्तान में शामिल होंगे या भारत में, इसका निर्णय जनमत संग्रह के द्वारा किया जाएगा।
- जनमत संग्रह के बाद ही यह तय किया जाएगा कि बंगाल का सिलहट जिला मुस्लिम क्षेत्र में शामिल होगा या नहीं।
- बंगाल और पंजाब में हिंदु-मुस्लिम प्रांतों की सीमाओं के निर्धारण का काम बाउंड्री कमीशन के आधीन होगा।
- रियासतों को यह स्वतंत्रता रहेगी कि वे अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकती हैं या चाहे तो स्वतंत्र रह सकती हैं।
- संसद 1947 के अंत तक दोनों राज्यों के प्रतिनिधियों को सत्ता हस्तांतरण करने के लिए कानून बनाएगी मगर यह कार्य संविधान सभा द्वारा राष्ट्रमंडल में शामिल होने के सारे पूर्वाग्रहों को दूर रखते हुए किया जाएगा।
3 जून की योजना को स्वीकृति मिली और इसके चलते इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए वार्तालाप शुरु हुए। भारत सरकार के संदर्भ में स्टाफ का संगठन और विभाजन, सेवाएं, संस्थाएं, संपत्ति, जिम्मेदारियां आदि के बारे में सामान्य चर्चाएं की गईं। चर्चा में इसके अलावा भविष्य के आर्थिक संबंध, अधिवास, राजनयिक संबंध आदि को भी शामिल किया गया। बंटवारे संबंधी मुद्दों पर सहायता के लिए इसमें पार्टीशन परिषद और विशेषज्ञ समिति बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया। लॉर्ड माउंटबेटन ने अंततः एक पार्टीशन परिषद का गठन किया जिसमें सरदार पटेल, लियाकत अली खान और अब्दुल रब निष्तार शामिल थे और माउंटबेटन स्वयं अध्यक्ष की भूमिका में थे। बंटवारे का फैसला होने के बाद इस परिषद के स्थान पर नई पार्टीशन परिषद का गठन हुआ। कंग्रेस के प्रतिनिधियों के रूप में पटेल, राजेन्द्र प्रसाद और वैकल्पिक सदस्य के रूप में राजगोपालाचारी थे और लीग की ओर से जिन्ना, लियाकत अली खान तथा वैकल्पिक सदस्य के रूप में अब्दुल रब निश्तार शामिल थे। परिषद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 47 के तहत 15 अगस्त के बाद भी कार्य करना जारी रखा। इसकी संरचना में दोनों राज्यों की ओर से दो सदस्यों को शामिल किया गया। जिसमें भारत की ओर से पटेल और राजेन्द्र प्रसाद थे और पाकिस्तान की ओर से वे मंत्री शामिल होते थे जो दिल्ली में होने वाली सभा में शिरकत कर सकें।
पार्टीशन समिति दो वरिष्ठ अधिकारियों की संचालन समिति के सहयोग से काम करती थी। एच.एम.पटेल आईसीएस ने भारत का और चौधरी मोहम्मद अली ने पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया। संचालन समिति में भारत और पाकिस्तान के दस विशेषज्ञ भी शामिल किए गए। इन विशेषज्ञों में प्रशासन के सभी क्षेत्रों, संस्थाएं, संधारण, कार्मिक, संपत्ति और जिम्मेदारियां, केन्द्रीय कराधान, अनुबंध, नोट और सिक्के, आर्थिक प्रबंधन, अधिवास, विदेशी संबंध और सेना जैसे सभी क्षेत्रों के जानकार शामिल थे।
माउंटबेटन की योजना का क्रियान्वयन भारतीय सेना के विभाजन के रूप में सामने आया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने जोर डाला कि 15 अगस्त से पहले उनके पास उनकी अपनी सेना होनी चाहिए। वायसराय और दोनों दलों के नेता इस बात पर विचार करने के लिए एकत्रित हुए कि यह विभाजन संप्रदाय के आधार पर हो या प्रादेशिक आधार पर। अंत में तय हुआ कि विभाजन नागरिकता के आधार पर किया जाएगा। जो लोग किसी क्षेत्र विशेष में अल्पसंख्यक थे उन लोगों को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे दूसरे राज्य (भारत या पाकिस्तान) की नागरिकता ले सकते थे। पार्टीशन समिति ने यह भी तय किया कि 15 अगस्त को भारत और पाकिस्तान अपनी अपनी प्रादेशिक सेना का स्वामित्व व नियंत्रण हासिल कर सकेंगे जो क्रमशः ज्यादातर गैर गुस्लिमों और मुस्लिम सैनिकों द्वारा गठित होगी।
3.1 बाउंड्री कमीशन (सीमा आयोग)
3 जून की योजना के अनुसार दो बाउंड्री कमीशन बनाने का निर्णय लिया गया। एक कमीशन बंगाल के विभाजन और असम से सिलहट के विभाजन का काम देखेगा और दूसरा पंजाब के विभाजन को देखेगा। हर कमीशन में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होंगे जिनमें से क्रमशः दो-दो कांग्रेस और मुस्लिम लीग के होंगे। सर साइरिल रेडक्लिफ जो बाद में लार्ड कहलाए गए, दोनों कमीशन के अध्यक्ष बनाए गए। बाकी सदस्यों में सभी हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे। बंगाल कमीशन में जस्टिस सीसी विश्वास, बीके मुखर्जी, अबु सलेह मोहम्मद अकरम और एस.ए.रहमान शामिल थे जबकि पंजाब कमीशन में जस्टिस मेहर चंद महाजन, तेजा सिंह, दीन मोहम्मद और मुहम्मद मुनीर शामिल थे।
इस कमीशन को अपने इलाके में हिंदू और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की पहचान करते हुए उनकी सीमाओं को रेखांकित करना था। बंगाल कमीशन को सिलहट में मुस्लिम बहुलता और असम के जुडे़ हुए क्षेत्रों में गैर मुस्लिम लोगों की पहचान करनी थी। बंगाल में केवल दो जिलों के ऐसे समूह थे जिनमें कोई तकलीफ थी। मिदनापुर, बांकुरा, हुगली, हावड़ा और बर्दवान के गैर-मुस्लिम क्षेत्र थे और चटगांव, नोआखली, तिपेरा, ढाका, मैननसिंग, पाबना तथा बोगरा के मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे। इन क्षेत्रों के अलावा सभी जिले, यहां तक कि कलकत्ता भी विवाद और प्रतिद्वंदिता के दावे के क्षेत्र थे। इसी तरह पंजाब में अंबाला विभाग के एक हिस्से को लेकर भी विवाद था। लाहौर, मुलतान और जालंधर को लेकर विवाद बना हुआ था।
3.2 बंगाल और पंजाब का मसला और रेडक्लिफ अवार्ड
न तो पंजाब और न ही बंगाल किसी संतोषप्रद समझौते पर पहुंच सके। अंत में यह निष्कर्ष निकाला गया कि अध्यक्ष का फैसला ही अंतिम माना जाएगा। अतः माउंटबेटन ने तय किया कि जैसे ही उन्हें रेडक्लिफ से अवार्ड (निर्णय) मिलेंगे, वे उन्हें कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं को दे देंगे। कांग्रेस ने पश्चिमी बंगाल के 59 प्रतिशत हिस्से पर और 46 प्रतिशत जनता के लिए दावा प्रस्तुत किया था। रेडक्लिफ अवार्ड के अनुसार उस क्षेत्र की केवल 36 प्रतिशत क्षेत्र और 35 प्रतिशत जनसंख्या पश्चिमी बंगाल को दिए गए। बंगाल की मुस्लिम जनसंख्या का केवल 16 प्रतिशत पश्चिमी बंगाल में आया जबकि करीब 42 प्रतिशत गैर मुस्लिम जनता पूर्वी बंगाल में ही रह गई। बंगाल के गैर-मुस्लिमों ने शिकायत की कि अवार्ड के अनुसार पश्चिमी बंगाल का क्षेत्रफल अनुमानित विभाजन की तुलना में 4000 वर्ग मील कम है। उन्होंने खुलाना और चटगांव के पहाड़ी क्षेत्रों को पूर्वी बंगाल में मिलाने और दार्जिलिंग और पश्चिमी बंगाल के बीच किसी तरह की कडी शेष न रखने पर शासन की निंदा की और इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। दूसरी तरफ मुस्लिमों ने कलकत्ता, मुर्शिदाबाद और नादिया जिले के हिस्से उन्हें न मिलने पर इस विभाजन की निंदा की।
पंजाब में कांग्रेस ने सिखों के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन की सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, सिंचाई के संसाधनों, नदियों और नहरों के तर्कसंगत विभाजन की मांग रखी। इस तरह से उन्होंने पूर्वी पंजाब हेतु चिनाब नदी के पूर्वी तरफ के क्षेत्र पर दावा किया। सिखों ने कांग्रेस की मांग का समर्थन करते हुए मोंटगोमरी, लायलपुर और मुलतान का कुछ हिस्सा भी मांगा। दूसरी ओर मुस्लिम लीग ने रावलपिंड़ी, मुलतान और लाहौर के पूरे क्षेत्र और जालंधर तथा अंबाला की कुछ तहसीलों की मांग रखी। रेडक्लिफ अवार्ड के अनुसार पूर्वी पंजाब को केवल 13 जिले जिनमें पूरा जालंधर और अंबाला क्षेत्र, लाहौर का अमृतसर जिला और गुरदासपुर और लाहौर के कुछ जिले दिए थे। पूर्वी पंजाब ने पांच में से तीन नदियों व्यास, सतलुज और रावी पर कब्जा कर लिया। पूर्वी पंजाब को 38 प्रतिशत क्षेत्र और 45 प्रतिशत जनसंख्या दी गई थी। पश्चिमी पंजाब ने अवार्ड के अनुसार 62 प्रतिशत क्षेत्र और 55 प्रतिशत जनसंख्या पर दावा किया जिसके साथ प्राचीन प्रांत की आय भी शामिल थी। पंजाब के गैर-मुस्लिम लोगों विशेषकर सिखों ने लाहौर तथा शैखुपुरा, लायलपुर और मोंटगोमरी की नहरों के नुकसान के खिलाफ तीव्र विरोध किया जबकि मुस्लिमों ने पूर्वी पंजाब के मंड़ी हायड्रोइलेक्ट्रिक संयंत्र और पश्चिमी पंजाब की कुछ तहसीलों के विभाजन के प्रति विरोध प्रदर्शन किया। कुल मिलाकर रेडक्लिफ का अवार्ड किसी भी दल को संतुष्ट न कर सका। यह पंजाब और बंगाल के हिंदुओं के प्रति मनमाने व्यवहार और अन्याय का प्रतीक था। पाकिस्तान ने भी इस अवार्ड को पक्षपातपूर्ण निर्णय कहा।
4.0 आखिरकार, स्वतंत्रता!
अंततः 15 अगस्त 1947 का वह गौरवशाली दिन भारतीय उप-महाद्वीप की धरती पर आ गया जो कि अपने भीतर स्वतंत्रता और विभाजन की दोहरी वास्तविकता को छिपाए हुए था। हमेशा की तरह नेहरु और गांधी जनता की भावनाओं के दो आइनों के रूप में प्रस्तुत हुए। गांधीजी ने सतत हो रहे नरसंहार को रोकने के लिए कलकत्ता में प्रार्थना की। उनकी निकटतम अनुयायी मृदुला साराभाई मुंबई में एक 14 वर्षीय अपहृत कन्या को सांत्वना दे रही थीं। गांधीजी की प्रार्थना अज्ञानतावश हो रहे कत्लेआम, अपहरण और बलात्कार के प्रायश्चित के रूप में थी, जबकि नेहरु की आंखें नए क्षितिज पर लगी हुई थीं। वे नए भारत के नए प्रभात को उदित होते देख रहे थे। ‘आधी रात होते ही जब सारी दुनिया गहरी नींद में डूबी होगी, भारत नए प्रकाश और स्वतंत्रता के प्रभात का दर्शन करेगा’। उनकी कविता की तरह कही गई पंक्तियों ने ‘‘बहुत पहले हमनें भाग्य से भेंट की थी’’लोगों को याद दिलाया कि उनका आज का पाशविक और वहशियाना व्यवहार ही एकमात्र सत्य नहीं है। इससे भी बड़ा सच था स्वतंत्रता के लिए किए गए गौरवशाली संग्राम का, कड़ी लड़ाई और कड़ी जीत का, जिसमें कई शहीद हुए और कई लोगों ने कितने ही त्याग किए, केवल उस दिन के लिए जब भारत स्वतंत्र होगा। वह दिन आ गया था। भारत के लोगों ने भी इसे देखा और 15 अगस्त को अपने दिल में कसक रहे बंटवारे के दर्द के बाद भी वे सड़कों पर खुशी से नाचे।
- On 17th August 1947, the Radcliffe Line was declared as the boundary between India and Pakistan, following the Partition of India. The line was named after Sir Cyril Radcliffe who was commissioned to equitably divide 4,50,000 km sq of territory with 88 million people.
- The idea behind this partition was to create a boundary to divide India along religious demographics, under which Muslim majority provinces would become part of the new nation of Pakistan and Hindu and Sikh majority provinces would remain in India.
- The hurriedly-passed Indian Independence Act 1947 of the Parliament of the United Kingdom came into force on 15th July 1947. It stated that India would be free from British rule on 15th August 1947 (exactly a month from then). The act also agreed on the Partition of the provinces of British India into the two new nations of the Union of India and the Dominion of Pakistan (which would further be divided in 1971 into the Islamic Republic of Pakistan and the People’s Republic of Bangladesh). Pakistan was intended to be a homeland for Indian Muslims and India with a Hindu majority was to be a secular nation.
- Before this Partition, more than 40% of India was covered by princely states which were not British possessions and hence were not part of British India. Hence, the British could neither give them independence, nor partition them. The rulers of these states were fully independent and had to choose which of the two nations they wanted to join (or if they wanted to remain independent). However, all the rulers swiftly decided to join India or Pakistan, though only a small number did not.
- Since the Partition of India was done on the basis of religious demographics, Muslim majority regions in the north of India were to become part of Pakistan. Baluchistan and Sindh (which had a clear Muslim majority) automatically became part of Pakistan. The challenge however, lay in the two provinces of Punjab (55.7% Muslims) and Bengal (54.4% Muslims) which did not have an overpowering majority. Eventually, the Western part of Punjab became part of West Pakistan and the Eastern part became part of India (Eastern Punjab was later divided into three other Indian states). The state of Bengal was also partitioned into East Bengal (which became part of Pakistan) and West Bengal, which remained in India. After Independence, the North West Frontier Province (located near Afghanistan) voted with a decision to join Pakistan.
- Since the population of Punjab was scattered, it was difficult to draw a line which would clearly divide Hindus, Muslims and Sikhs. Similarly, no line drawn was favoured by the Muslim League headed by Jinnah, nor the Congress headed by Nehru and Sardar Patel. Hence, it was decided that what was required was a well drawn line which would reduce the separation of farmers from their fields, while also minimizing the number of people who would have to relocate, hence reducing the feeling of alienation, which a new place brings to people.
- A rough border of sorts had already been drawn by Lord Wavell, the Viceroy of India, before he was replaced by Lord Mountbatten in February 1947. In June 1947, Radcliffe started his work through the two Boundary Commissions (one for Punjab and the other for Bengal), to determine which territories will be assigned to which nation. The Boundary Commission was asked to demarcate areas in Punjab based on religious majority. While defining the boundary, Radcliffe also took into consideration “natural boundaries, communications, watercourses and irrigation systems”, while paying heed to socio-political affairs. Each Boundary Commission had four representatives, two from the Congress and two from the Muslim League and given the tension between the both, the decision regarding the boundary ultimately lay with Radcliffe.
- Radcliffe arrived in India on 8th July 1947 and was given five weeks to work on the border. Upon meeting with Mountbatten, Radcliffe travelled to Lahore and Kolkata to meet his Boundary Commission members, who were primarily Jawaharlal Nehru representing the Congress and Muhammad Ali Jinnah representing the Muslim League. Both parties were keen that the boundary be finalised by 15th August 1947, in time for the British to leave India. As requested by both Nehru and Jinnah, Radcliffe completed the boundary line a few days before Independence, but due to some political reasons the Radcilffe Line was only formally revealed on 17th August 1947.
- Rabindarnath Tagore : He was born on 7th of May, 1861. He is one of the proud sons of India who was the first one to receive the Nobel Prize for literature from Asia. This multitalented personality was a philosopher, poet, dramatist, painter, novelist, educationist and a composer. Challenging the conventional education system, he founded an entirely new kind of educational institution called Shanti Niketan. His pen name was Bhani Singha Thakur (Bhonita).
- Life and times : He had a great talent in painting and played a vital role in modernizing Bengali art. Greatly moved by the Jallianwallabagh massacre and to express his deep reverence for freedom, he gave up his knighthood conferred by the British.
- Began writing poetry from childhood : Tagore wrote his first verse in poetry at the age of 8. In 1884, at 16, he published Bhanusimha Thakurer Padabali, a collection of poems under the pseudonym Bhanusimha. From 1877, he began writing short stories and dramas under his own name. He also regularly contributed to Bharati, a family magazine.
- First out of Europe to win the Nobel Prize : Rabindranath Tagore won the Nobel Prize for his acclaimed poetical work called Gitanjali. Notably he was the first non-European to get this most coveted honor. In choosing him for this honour, the Nobel committee stated, “because of his profoundly sensitive, fresh and beautiful verse, by which, with consummate skill, he has made his poetic thought, expressed in his own English words, a part of the literature of the West".
- Nobel Prize : Tagore's Nobel Prize was stolen from the safety vault of the Visva-Bharati University, along with several other of his belongings on March 25, 2004. However, on December 7, 2004, the Swedish Academy decided to present two replicas of Tagore's Nobel Prize, one made of gold and the other made of bronze, to the Visva-Bharati University. It inspired the fictional film Nobel Chor.
- Visva-Bharati - Challenging the Conventional Education : In 1921, Tagore founded the Viswa Bharati University at Santiniketan. This organization challenged the conventional methods of classroom instruction and took education several steps beyond the traditional standards. Stating his motive behind this great finding, Tagore stated, “Humanity must be studied somewhere beyond the limits of nation and geography.”
- Composed the National Anthems of three nations : Three nations have honoured Rabindranath Tagore by making his poems their national anthems. The world famed national anthem of India namely “Jana Gana Mana”. In addition, the Bangladesh National Anthem worded as “Amar Sona Banlga” was composed by Tagore. The national anthem of Sri Lanka is fully based on a song composed by Tagore in Bengali, which was translated in Sinhalese and adopted as the national anthem in 1951.
- Tagore’s relationship with Gandhi and Einstein : Tagore and Gandhi had great love and reverence for each other. Tagore conferred the title ‘Mahatma’ on the father of nation. However, in several issues Tagore greatly differed from Gandhi. Tagore and Einstein met four times between 1930 and 1931. They revered each other moved by their mutual curiosity to grasp other’s contributions, their search for truth and love for music. In describing Einstein, Tagore wrote, “There was nothing stiff about him - there was no intellectual aloofness. He seemed to me a man who valued human relationship and he showed toward me a real interest and understanding.”
- Death : He passed away on 7 August 1941, at Jorasanko Thakur Bari, Kolkata, at the age of 80 years. There are 8 Tagore museums, 3 in India and 5 in Bangladesh - Rabindra Bharati Museum, at Jorasanko Thakur Bari, Kolkata, Tagore Memorial Museum, at Shilaidaha Kuthibadi, Shilaidaha, Bangladesh, Rabindra Memorial Museum at Shahzadpur Kachharibari, Shahzadpur, Bangladesh, Rabindra Bhavan Museum, in Santiniketan, India, Rabindra Museum, in Mungpoo, near Kalimpong, India, Patisar Rabindra Kacharibari, Patisar, Atrai, Naogaon, Bangladesh, Pithavoge Rabindra Memorial Complex, Pithavoge, Rupsha, Khulna, Bangladesh, and the Rabindra Complex, Dakkhindihi village, Phultala Upazila, Khulna, Bangladesh.
- 1757 : East India Company won the Battle of Plassey, and in 1764, Battle of Buxar in Bihar. The two wins gave the company the power to collect revenues and appoint its first Governor-General, Warren Hastings
- The company then started expanding its dominions in Mumbai (then Bombay) and Chennai (then Madras)
- After 1765 : The company faced strong opposition from the Marathas, Tipu Sultan and the Sikhs
- East India Company subjugated all these powers to get control over India
- 1767 - 1799 : Haider Ali rose to power in Mysore and went on to extend his kingdom up to the Krishna River. He was a big threat to the British and from 1767 to 1799, the company undertook four wars to destroy him and son Tipu Sultan
- After the first Mysore war, a treaty was signed between the company and Haider Ali which said that the company will help Haider Ali if somebody else attacks him in future. However, the company did not help him when Marathas declared a war on him. This event resulted in more Mysore wars
- Involvement of English in the internal politics of the Marathas resulted in the first Anglo-Maratha war
- 1800 : The early years of 1800, the British power grew when the Maratha chief got involved in a bitter strife with one another
- 1818 : The defeat of the Marathas in the Anglo-Maratha wars was the result of the Marathas failing to unite with each other
- 1845 : After Ranjit Singh's death in Punjab, Englishmen attempted to extend their powers at the borders. This resulted in the first Anglo-Sikh war
- 1848 : Lord Dalhousie arrived in India as the Governor General, an ambitious man who greatly accelerated territory acquisition via Doctrine of Lapse, greatly angering many Kings (setting the stage for 1857 revolt)
- Two other developments in the 1800s led to growing unrest among Indians. One was the growing number of Christian missionaries coming to India to preach Christianity, which clashed with the beliefs of the Hindus and the strong beliefs of Indian Muslims.
- 1857 Great India Mutiny : Matters came to a head at this time. Muslim troops thought pig grease was being used in the bullet cartridges, while Hindu troops thought the British were using grease from cows, which they hold sacred. This resulted in a serious rebellion. The rule passed from Company to the Crown in 1858
- British Raj : Britain ruled about 60 per cent of Indians directly and the other 40 per cent indirectly through native princes who followed British policies
- The Delhi Durbar 1911 : King George V of Great Britain (1865 - 1936) and Queen Mary (1867 - 1953) arrived for the Coronation Durbar in Delhi. Capital of India had been recently shifted from Calcutta to Delhi
- 1940 : The Tata Iron Works is set up, which was the world's largest Iron factory at that time
- They continued developing India with railroad and telegraph lines
- By mid-nineteenth century, the British introduced the railways, telegraph and postal service in India
- The British passed many acts but every time they passed a bill, it was met with dissatisfaction from the Indians as the primary purpose always was perpetuation of British hegemony
- 1885 : The founding of the Indian National Congress was to ultimately lead to a pan-India independence movement, which brought large sections of Indian population together to fight the British non-violently. The Non-Cooperation Movements and Civil Disobedience Movements were great experiments in resisting a huge empire only with the power of truth
- 1914-19 and 1939-45 : World War I and World War II led to Indian participation as part of the British Empire. The second war helped India push its case for Independence
- Two years after the World War II ended, the British granted India its Independence on August 15, 1947. Many factors were finally responsible - the mass movements over three decades, the great political awareness in masses, Netaji Bose’s INA attacks from eastern front, weakening of the British empire due to World War II, revolts in the RAF and RIN, etc.
COMMENTS