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विश्व की प्रशासनिक प्रणालियां भाग - 1
1.0 प्रस्तावना
स्पष्ट रूप से परिभाषित संरचना भर्ती प्रक्रियाओं के साथ प्रशासन की एक मजबूत संरचना जीवंत लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। भारत जैसे कई देशों में प्रशासन की एक प्रणाली है जो समय के साथ विकसित हुई है। नौकरशाही व्यवस्था में भर्ती या तो बंदरबाट (लूट) प्रणाली या योग्यता प्रणाली के माध्यम से की जा सकती है।
योग्यता प्रणाली सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति देने और काम पर रखने की वह प्रक्रिया है जो उनके काम करने की क्षमता पर आधारित है, न कि राजनीतिक संबंधो पर।
दूषित बंदरबाट (लूट) भर्ती प्रणाली एक प्रथा है (इसे संरक्षण प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है) जहां राजनीतिक दल, चुनाव जीतने के बाद अपने समर्थकों, दोस्तों और रिश्तेदारों को जीत के लिए काम करने के लिए ईनाम के रूप में सरकारी नौकरी देते हैं, और दल में कार्य करते रहने के लिए प्रोत्साहन के रूप में भी।
2.0 अमेरिकी प्रशासनिक सेवा (अमेरिकी सिविल सर्विस)
अमेरिकन सिविल सेवाओं की एक लंबी विकास प्रक्रिया थी। वे विभिन्न अधिनियम जिन्होंने इन्हें प्रभावित किया था 1883 का पेंडलटन अधिनियम, 1940 का रैमस्पेक अधिनियम, ब्राउनलों समिति (1936-1937), प्रथम हूवर आयोग (1949) और द्वितीय हूवर आयोग (1955)।
2.1 केन्द्रीय कार्मिक एजेंसी
1978 तक, संयुक्त राज्य अमेरिकी सिविल सेवा आयोग अमेरिका में केन्द्रीय कार्मिक एजेंसी थी और इसलिए संघीय सिविल सेवा प्रबंधन करती थी। इसमें सीनेट की सहमति से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन सिविल सेवा आयुक्तों को शामिल किया गया था। उनका कार्यकाल अनिश्चित था और वे अकेले राष्ट्रपति द्वारा हटाये जा सकते थे। पेंडलटन अधिनियम के अनुसार आयोग द्विदलीय होना चाहिए इस प्रकार कि दो आयुक्तों को एक राजनीतिक दल से संबंधित होना चाहिए और शेष एक को अन्य राजनीतिक दल से संबंधित होना चाहिए। एक केन्द्रीय कार्मिक एजेंसी के रूप में, इसने वर्गीकरण, भर्ती, पदोन्नति, प्रशिक्षण, वेतन और सेवा शर्तों, अनुसंधानों और संबंधित कार्यों की एक बड़ी संख्या को संभाला। यह प्रशासन और योग्यता प्रणाली का अधिनिर्णय दोनों के लिए जिम्मेदार था। हालांकि, यह कार्मिक मामलों में राष्ट्रपति के लिए कर्मचारियों को देने में बहुत प्रभावी नहीं पाया गया और पेंडलटन अधिनियम और अन्य बाद के कानूनों और कार्यकारी आदेशों द्वारा योग्यता प्रणाली की रक्षा में अच्छा सिद्ध न हुआ। इसलिए 1978 के सिविल सेवा सुधार अधिनियम ने तीन सदस्य द्विदलीय संयुक्त राज्य अमेरिका सिविल सेवा आयोग को समाप्त कर दिया और तीन अलग और स्वतंत्र एजेंसियों को बनाया जिनके नाम थेः कार्मिक प्रबंधन कार्यालय (ओपीएम), मेरिट सिस्टम संरक्षण बोर्ड (एमएसपीबी) और संघीय श्रम संबंध प्राधिकरण (एफएलआरए)।
- कार्मिक प्रबंधन कार्यालय अमेरिका (ओ.पी.एम.) में केन्द्रीय कार्मिक एजेंसी है। यह संघीय सिविल सेवा प्रबंधन और योग्यता प्रणाली के विकास की दिशा निर्धारित करता है। इसने पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका सिविल सेवा आयोग के (अर्ध-न्यायिक को छोड़कर) सभी कार्यों को ग्रहण किया गया। इसमें निम्नलिखित जिम्मेदारियां शामिल हैः
- कार्मिक की नीतियों, नियमां और विनियमों को तैयार करना
- सिविल सेवा परीक्षा का प्रबंध करना
- सिविल सेवकां की भर्ती और पदोन्नति करना
- कर्मचारियों का विकास और प्रशिक्षण
- कार्मिक जांच
- कार्मिक कार्यक्रम के मूल्यांकन
- प्रबंध सेवानिवृत्ति और बीमा कार्यक्रम
- अन्य कर्मी एजेंसियों को मार्गदर्शन प्रदान करना
- ओपीएम का नेतृत्व एक निदेशक द्वारा किया जाता है। उसे सीनेट की सहमति से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। उसके कार्यालय का कार्यकाल चार वर्ष है।
- मेरिट सिस्टम संरक्षण बोर्ड (एमएसपीबी) ने पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका सिविल सेवा आयोग केअर्ध-न्यायिक कार्यों को ग्रहण किया। यह संघीय सिविल सेवा योग्यता प्रणाली की निगरानी एजेंसी है और बुरी तथा निषिद्ध कार्मिक प्रथाओं से सरकारी कर्मचारियों की सुरक्षा करती है। यह निष्कासन, निलंबन और अवनति जैसे प्रतिकूल कार्मिक कार्यों पर सरकारी कर्मचारियों से अपील सुनता है और निर्णय करता है। इसे अपने फैसले लागू करने और सुधारात्मक और अनुशासनत्मक कार्रवाई के आदेश करने का अधिकार है।
एमएसपीबी में तीन सदस्य होते है। वे सीनेट की मंजूरी के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं। उनके कार्यालय का कार्यकाल सात वर्ष का होता है। पूर्व सिविल सेवा आयोग की तरह, यह भी रचना में द्विदलीय है।
एमएसपीबी के तहत, विशेष सुझाव कार्यालय (ओएससी) बनाया गया था। यह एमएसपीबी के सम्मुख एक स्वतंत्र जांच और अभियोग संबंधी एजेंसी के रूप में कार्य करता है। इसकी मुख्य भूमिका निषिद्ध कार्मिक प्रथाओं, विशेषकर मुखबिरों के प्रति प्रतिशोध से कर्मचारियों की रक्षा करना है, जैसे कि प्रशासनिक एजेंसी द्वारा की जा रही बर्बादी, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की सूचना देना। ऐसे कर्मचारियों को ‘मुखबिर’ कहा जाता है व उन्हें प्रशासनिक एजेसिंयों के खिलाफ सूचना देने पर प्रतिशोधस्वरूप किसी भी प्रकार के नुकसान पहुंचाने के विरूद्ध संरक्षण प्रदान किया जाता है।
3. संघीय श्रम संबंध प्राधिकरण (एफएलआरए), संघीय श्रम प्रबंधन संबंधों में केंद्रीय नीति निर्माण कार्यों को मजबूत करने के लिए स्थापित किया गया था। यह 1978 की सिविल सेवा सुधार अधिनियम के तहत संघीय सेवा श्रम प्रबंधन संबंधों का प्रशासन करता है। एफएलआरए में तीन सदस्य होते है। वे सीनेट की मंजूरी से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते है। उनके कार्यालय का कार्यकाल पांच वर्ष है। एफएलआरए के भीतर, दो संस्थाएं और हैं - अर्थात् सामान्य परामर्शदाता का कार्यालय (ओजीसी) और संघीय सेवा गतिरोध पैनल (एफएसआयपी)। ओजीसी अनुचित श्रम प्रथाओं की जांच करता है। एफएसआयपी एजेंसियों और यूनियनों के बीच वार्तालाप गतिरोध को हल करने में सहायता प्रदान करता है।
4. 1978 की सिविल सेवा सुधार अधिनियम के द्वारा बनाई उपरोक्त तीन स्वतंत्र एजेंसियों के अलावा, यहां समान रोजगार अवसर आयोग (ईईओसी) नामक एक स्वतंत्र कार्मिक एजेंसी है। यह नागरिक अधिकार अधिनियम द्वारा 1964 में बनाया गया था और संघीय रोजगार 1978 में अपने अधिकार क्षेत्र में रखा गया था। यह जाति, रंग, नस्ल, धर्म, लिंग, राष्ट्रीय मूल, विकलांगता या उम्र के आधार पर भेदभाव निजी व लोक सेवा, दोनों में को समाप्त करता है। 1978 में, पूर्व सिविल सेवा आयोग के संघीय समान रोजगार कार्य ईईओसी को हस्तांतरित किये गये। इसमें पांच सदस्य होते हैं। उन्हें सीनेट की मंजूरी के साथ राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्षों के लिए नियुक्त किया जाता है।
2.2 वर्गीकरण
अमेरिका में स्थिति वर्गीकरण प्रणाली है जो ब्रिटेन, फ्रांस और भारत में प्रचलित पद वर्गीकरण प्रणाली के उलट है। अमेरिकी प्रणाली के स्थिति वर्गीकरण के तहत, सिविल सेवा के पदों को कर्तव्य, जिम्मेदारियां और योग्यता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
अमेरिका में पहले संघीय वर्गीकरण कार्यक्रम हेतु वर्गीकरण अधिनियम 1923 लाया गया। यह श्रेणी, योग्यता और वेतन सीमा को परिभाषित करता है। अधिनियम 1949 में संशोधित किया गया। 1949 का संशोधित वर्गीकरण अधिनियम संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय कर्मचारियों को पांच सेवाओं में वर्गीकृत करता है। वे हैंः
- व्यावसायिक और वैज्ञानिक
- उप व्यावसायिक और उप वैज्ञानिक
- लिपिकीय, प्रशासनिक और वित्तीय
- अभिरक्षा से संबंधित
- यांत्रिक
नौकरियों और वेतनमानों के अनुसार, संघीय कर्मियों को 18 जनरल, अनुसूची श्रेणी (जीएस-1 से जीएस-18) में बांटा जाता है। जीएस-16 से जीएस-18 ‘उच्च श्रेणियां हैं जिनमें प्रबंधन कार्यों में शामिल शीर्ष स्तर के लोक सेवक शामिल हैं। इन उच्च श्रेणी के सदस्य ब्रिटिश प्रशासनिक वर्ग के ‘पेशेवर अव्यवसायी‘ के उलट एक ‘पेशेवर विशेषता‘ में विशेषज्ञ होते हैं। ये पेशेवर विशिष्ट वर्ग के वरिष्ठ कार्यकारी सेवा (एस.ई.एस.) का हिस्सा हैं।
एसईएस 1978 के सिविल सेवा सुधार अधिनियम के द्वारा द्वितीय हूवर आयोग की सिफारिश पर बनाया गया था और 1979 में परिचालन में आया था। यह विशेषज्ञ और सामान्य दोनों का मिश्रण है और नियमित योग्यता प्रणाली के बाहर प्रबंधकों के एक कुलीन वर्ग को शामिल करता है। इसमें लगभग 9000 वरिष्ठ नीति बनाने और पर्यवेक्षी कार्यकारी शाखा पदों को शामिल किया गया जो पहले वर्गीकृत सेवा की श्रेणी में थे। वे ‘‘प्रतिस्पर्धी सेवा‘‘ (यानी वर्गीकृत सेवा) के उलट ‘वर्जित सेवा‘ की श्रेणी में आते हैं। वर्जित सेवा के पदों पर परीक्षा के बिना नियुक्ति होती है एवं वे सिविल सेवा कानून के दायरे से बाहर हैं।
2.3 भर्ती
अमेरिका में भर्ती प्रणाली की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैंः
- ओपीएम सरकारी नौकरियों के लिए सिविल सेवा परीक्षाओं का आयोजन करता है। परीक्षाएं प्रकृति से व्यवाहारिक हैं।
- ‘पार्श्व-प्रवेश’ की एक प्रणाली है। यह सभी उम्र और सभी स्तरों पर सिविल सेवा में उम्मीदवार के प्रवेश की सुविधा उपलब्ध कराती है। यह सरकार और निजी उद्यमों के बीच उम्मीदवारों की गतिविधि में मदद करता है।
- परीक्षण चार प्रकार के होते हैं - मौखिक परीक्षण, लिखित परीक्षण, प्रदर्शन परीक्षण और रैंकिंग परीक्षण (यानी उम्मीदवार का मूल्यांकन उनकी शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुभव के आधार पर होता है।)
- परीक्षाएं या तो ‘समूह में (असेम्बल्ड)‘ या ‘पृथक रूप से (अनअसेम्बल्ड)’ होती हैं जैसा कि इसे अमेरिका की प्रशासनिक शब्दावली में जाना जाता है। ‘समूह’ परीक्षा के मामले में, उम्मीदवारों का एक निर्दिष्ट स्थान पर बड़े समूह में एक साथ परीक्षण किया जाता है। यह लिपिक प्रकृति के पदों को भरने के लिए आयोजित की जाने वाली लिखित परीक्षा है। ‘पृथक रूप से (अनअसेम्बल्ड)’ परीक्षा के मामले में, उम्मीद्वारों की व्यक्तिगत रूप से पृथक रूप से जांच की जाती है। वहां कोई भी औपचारिक परीक्षा नहीं होती है और चयन साक्षात्कार और विवरण के माध्यम से होता है। इसे उच्च पदों को भरने में उपयोग किया जाता है।
- संघीय सेवा प्रवेश परीक्षा और व्यावसायिक और प्रशासनिक पेशेवर परीक्षा - ये दो प्रमुख परीक्षाएं होती हैं।
- कोई निश्चित शैक्षिक योग्यता निर्धारित नहीं है। प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कोई भी सिविल सेवा में प्रवेश कर सकता है। हालांकि आवासीय योग्यता पूरी होनी चाहिए।
- किसी खास काम के लिए परीक्षा में उत्तीर्ण-उम्मीदवारों को उनके श्रेणी के क्रम में एक सूची पर रखा जाता है। हालांकि, वरिष्ठ उम्मीदवारों को पांच अंक अतिरिक्त प्रदान किए जाते हैं। शारीरिक अक्षम वरिष्ठ उम्मीदवारों (दस अंक) तथा कुछ दक्ष उम्मीदवारों के आश्रितों को भी अतिरिक्त अंक दिये जाते हैं।
- एक संघीय एजेंसी में जब रिक्तियां होती हैं, योग्य अधिकारी द्वारा सूची में पहले तीन व्यक्तियों में से, जो इस काम के लिए योग्य है उनमें से एक का चयन करके इसे भरना चाहिए। चयन की इस विधि को ‘तीन का नियम‘ कहा जाता है।
2.4 प्रशिक्षण
अमेरिका ने पूर्व-प्रविष्टि प्रशिक्षण और सेवाकालीन प्रशिक्षण दोनों की एक प्रणाली विकसित की है। अमेरिका में पूर्व प्रवेश प्रशिक्षण के दो रूप, प्रशिक्षण और शिक्षुता है। प्रशिक्षण प्रशासनिक या पेशेवर काम के साथ संबंधित है जबकि शिक्षुता व्यापार या शिल्प कौशल से संबंधित है।
कार्मिक प्रबंधन कार्यालय (ओपीएम), संघीय एजेंसिया, विश्वविद्यालय और विशेष संस्थान सिविल सेवकों के प्रशिक्षण में शामिल होते हैं। ओपीएम प्रशिक्षण कार्यक्रम के समग्र पर्यवेक्षण और समन्वय के लिए जिम्मेदार है। संघीय एजेंसियां अपने कर्मियों के लिए विशेष और सामान्य प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। नागरिकता और सार्वजनिक मामलों का मैक्सवेल ग्रेजुएट स्कूल (सायराकूज़ विश्वविद्यालय), लोक प्रशासन संस्थान (मिशिगन विश्वविद्यालय), लोक और व्यापार प्रशासन स्कूल (कार्नेल विश्वविद्यालय), व्हाटर्न स्कूल (पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय), व्यापार और नागरिक प्रशासन (कोलंबिय विश्वविद्यालय) के स्कूल, लोक प्रशासन के हार्वर्ड स्कूल और सार्वजनिक मामलों के राष्ट्रीय संस्थान (वाशिंगटन) सिविल सेवकों को प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
अमेरिका में प्रशिक्षण की एक महत्वपूर्ण विशेषता कार्मिक प्रबंधन कार्यालय (ओपीएम) द्वारा आयोजित ‘इंटर एजेंसी प्रतिपूर्ति परीक्षण‘ प्रणाली है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में, ओपीएम संघीय एजेंसियों के लिए एक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रदान करता है और प्रयोजन एजेंसी से शुल्क लेता है। यह कार्यक्रम विभिन्न विषयों को समाहित करता है, जैसे प्रबंधन, विज्ञान, वित्तीय प्रबंधन, कार्मिक प्रबंधन, संचालन अनुसंधान, प्रशिक्षकां का प्रशिक्षण, संचार, स्वचालित डेटा संसाधन, और भी ऐसे ही‘।
पदोन्नति के प्रयोजन के लिए दक्षता श्रेणी निर्धारण की एक प्रणाली है। दक्षता श्रेणी निर्धारण के चार प्रकार होते हैंः
- उत्पादन अभिलेख प्रणाली
- विशेषता श्रेणी निर्धारण प्रणाली (ग्राफिक क्रम निर्धारण मान प्रणाली)
- साधारण लाफन प्रणाली (प्रमाणित करने वाला साक्ष्य प्रणाली विवरण)
- व्यक्तिगत सूची प्रणाली (विश्लेषण श्रेणी निर्धारण की सूची प्रणाली या प्रोबस्ट प्रणाली की जांच)
2.5 वेतन और सेवा शर्तें
- अमेरिका में नौकरी की प्रकृति के आधार पर भुगतान की अनेक योजनाएं हैं। प्रत्येक योजना ग्रेड (यानी स्तर) की एक श्रृंखला है, प्रत्येक स्तर के भीतर वेतन की एक श्रृंखला के साथ। कार्मिक प्रबंधन और श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के कार्यालय वेतन प्रशासन में शामिल हैं।
- वेतन (मुआवजे) के अलावा, सिविल सेवकों को भी विभिन्न प्रकार के भत्ते दिए जाते हैं जो प्रचलित मूल्य सूचकांक के आधार पर तय किए जाते है।
- सिविल सेवकों को किसी भी सेवा संघ का सदस्य बनने का अधिकार दिया जाता है। 1912 का लॉयड ला फोलेट अधिनियम यह अधिकार तय करता है। 1978 का सिविल सेवा सुधार अधिनियम भी श्रम संगठन बनाने और सामूहिक सौदेबाजी के लिए संघीय सिविल सेवकों के अधिकार की पुष्टि करता है। महत्वपूर्ण सरकारी कर्मचारी राज्य संघ हैं - अमेरिकी सरकारी कर्मचारियों का संघ, संघीय कर्मचारियों का राष्ट्रीय संघ, आदि।
- सिविल सेवकों को हड़ताल का अधिकार नहीं है। उन्हें 1947 के टाफ्ट-हार्टले अधिनियम (अर्थात् श्रम प्रबंधन संबंधी अधिनियम) द्वारा इससे वंचित किया गया है। यह अधिनियम 1935 के वैगनर अधिनियम (अर्थात् राष्ट्रीय श्रम संबंधी अधिनियम) का एक प्रमुख संशोधन है। 1978 का सिविल सेवा सुधार अधिनियम भी हड़ताल, धरना या सरकारी कार्यों को बाधित करना पर प्रतिबंध लगाता है।
- चुनावों में मतदान के अधिकार के सिवाय तथा राजनीतिक विषयों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छोड़कर, सिविल सेवकों के अन्य सभी राजनीतिक अधिकार अमेरिका में गंभीर रूप से प्रतिबंधित हैं। जबकि 1939 का पहला हैच अधिनियम (यानी राजनीतिक गतिविधि अधिनियम) सरकारी कर्मचारियों की राजनीतिक गतिविधियों पर सीमाएं डालता है, 1940 का दूसरा हैच अधिनियम (जो 1974 में निरस्त कर दिया गया था) राज्य और स्थानीय कर्मचारियों पर भी इसी तरह का प्रतिबंध लगाता है।
- सिविल सेवकों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 65 से 70 वर्ष है। 1920 के सेवानिवृत्ति अधिनियम ने (1930 और 1956 में संशोधित) सिविल सेवकों के लिए एक पेंशन प्रणाली की स्थापना की।
3.0 ब्रिटिश सिविल सेवा
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, ब्रिटेन में सिविल सेवा में सरपरस्ती (संरक्षण) प्रणाली थी। सिविल सेवा के पदों को राजनीतिक ईनाम या निजी अनुग्रह के रूप में दिया जाता था। एक साधारण नागरिक जिसके पास आवश्यक योग्यता थी लेकिन कोई संरक्षण नहीं था, सिविल सेवा में प्रवेश नहीं कर सकता था। इस प्रकार की सिविल सेवा प्रशासन में भ्रष्टाचार और अक्षमता को जन्म देती है। हालांकि, बढ़े हुए भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था, दक्षता और सार्वजनिक कार्यालयों हेतु दिये गये लोकप्रिय अधिकार ने 19वीं सदी के मध्य तक आधुनिक सिविल सेवा को जन्म दिया।
ब्रिटिश सिविल सेवा, जो इस दौरान विकसित हुई, 1854 के नार्थकोट-ट्रेवलेयान रिपोर्ट के सिद्धांतों की सिफारिश पर संगठित हुई। बाद में, प्ले फेयर आयोग (1875), रिडले आयोग (1886-90), मेकडोनेल आयोग (1912-15), हाल्डेन समिति (1918), ब्रौडबरी समिति (1918-1919), टॉमलिन आयोग, बारलो समिति (1943), एसहेटन समिति (1944), मास्टरमेन समिति (1948), प्रिस्टले आयोग (1953-55), सार्वजनिक व्यय के नियंत्रण पर प्लोडेन समिति (1961), और मॉर्टन समिति (1963) की सिफारिश के अनुसार इसमें कुछ बदलाव किये गये। 1968 की फुल्टन समिति की रिपोर्ट द्वारा किए गए निदान के आधार पर 1960 के दशक के अंत में एक बड़े पैमाने पर इसे पुनर्गठित किया गया था। हाल ही में, कुछ मामूली परिवर्तन 1969 की डेविस रिपोर्ट (विधि द्वितीय पर), 1972 की फ्रैंक्स रिपोर्ट (1911 की सरकारी गोपनीयता अधिनियम पर), 1982 की मेगॉ रिपोर्ट, 1983 की एटकिंसन रिपोर्ट, 1988 की सर रोबिन्स रिपोर्ट और 1988 के ईब्स रिपोर्ट द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर सिविल सेवा में लागू किए गए।
3.1 नार्थकोट-ट्रेवेल्यान रिपोर्ट (1854)
अप्रैल 1853 में नार्थकोट-ट्रेवेल्यान समिति की नियुक्ति ब्रिटिश राजकोष द्वारा की गई थी। इसकी रिपोर्ट ‘ब्रिटेन में स्थायी नागरिक सेवा के संगठन‘ 1954 में प्रकाशित हुई थी। इसकी मुख्य सिफारिशे हैंः
- भर्ती में संरक्षण प्रणाली को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
- भर्ती खुली प्रतियोगी परीक्षा द्वारा की जाना चाहिए।
- एक सिविल सेवा आयोग की स्थापना की जानी चाहिए। यह एक स्वायत्त न्यायिक निकाय हो और भर्ती प्रक्रिया के उचित प्रशासन के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।
- सेवा के भीतर पदोन्नति योग्यता के आधार पर की जानी चाहिए, वरिष्ठता के आधार पर नहीं।
- प्रशासन के बौद्धिक पक्ष को यांत्रिक पक्ष से अलग किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दां में, सिविल सेवा को दो वर्गों में, अर्थात् उच्च वर्ग और न्यून वर्ग में विभाजित किया जाना चाहिए। उच्च वर्ग को बौद्धिक कार्य जबकि न्यून वर्ग को यांत्रिकी कार्य करना चाहिए। इन दो वर्गों हेतु भर्ती प्रक्रिया भिन्न होनी चाहिए।
- न्यून पदों के लिए भर्ती की उम्र 17-23 और उच्च पदों के लिए 19-25 वर्ष की जानी चाहिए। इस प्रकार, सिविल सेवा में प्रवेश केवल युवा पुरूषों तक ही सीमित हो गई और परिपक्व पुरूषों की भर्ती के विचार को खारिज कर दिया गया।
- श्रेष्ठ सिविल सेवकों को सामान्य बौद्धिक प्राप्ति और विशेष ज्ञान के आधार पर चुना जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, खुली प्रतियोगी परीक्षा तकनीकी या पेशेवर विषयों की तुलना में शिष्ट कला में होनी चाहिए, साथ ही विश्वविद्यालय स्तरीय होनी चाहिए।
- एकीकृत भर्ती और अंतर-विभागीय पदोन्नति द्वारा सिविल सेवा का एकीकरणः समिति को लगा कि इस एकीकरण से सिविल सेवा के ‘खंडित चरित्र‘ का उपचार होगा। सिविल सेवा आयोग की स्थापना 1855 में भर्ती के लिए उम्मीदवारों का परीक्षण करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के रूप में एक आदेश में परिषद द्वारा की गई। शुरूआत में, परीक्षा द्वारा केवल उन उम्मीदवारों का परीक्षण किया गया जिन्हें विभागों के प्रमुख द्वारा मनोनीत किया गया था। लेकिन 1870 के बाद, इनके द्वारा आयोजित खुली प्रतियोगिता सिविल सेवा में प्रवेश का एकमात्र तरीका बन गया। ऐसी योग्यता प्रणाली 1870 में ब्रिटेन में एक वास्तविकता बन गई।
3.2 फुल्टन रिपोर्ट (1968)
1966 में, ब्रिटिश सरकार ने होम सिविल सेवा की संरचना, भर्ती, प्रशिक्षण और प्रबंधन की जांच करने के लिए और सुधार के लिए सिफारिशें करने के लिए सिविल सर्विस पर फुल्टन समिति की नियुक्ति की। समिति ने 1968 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और पाया कि ‘‘होम सिविल सेवा अभी भी मौलिक रूप से, उन्नीसवीं सदी की नार्थकोट- ट्रिवेल्यान रिपोर्ट पर ही आधारित है, पर इन्हें जो कार्य करना होते हैं वे बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के हैं। यह है जो हमें मिला है; यह वह है जिसका हमें उपचार करना है।‘‘ इसमें कुल 158 सिफारिशें हैं और कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का नीचे उल्लेख किया गया है।
- एक नया सिविल सेवा विभाग सिविल सेवा का प्रबंधन करने के लिए बनाया जाना चाहिए। यह प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में किया जाना चाहिए और इसे सिविल सेवा आयोग को आत्मसात कर लेना चाहिए। सिविल सेवा विभाग के स्थायी सचिव को, गृह सिविल सेवा के प्रमुख के रूप में नामित किया जाना चाहिए।
- सभी वर्गों के उपर से नीचे तक सभी लोक सेवकों को समाहित करना और एकीकृत श्रेणीबद्ध संरचना द्वारा समाप्त और प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। प्रत्येक पद का सही श्रेणीबद्ध कार्य मूल्यांकन के द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए।
- एक लोक सेवा महाविद्यालय कॉलेज रंगरूटों को प्रवेश के बाद प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए स्थापित किया जाना चाहिए। इसे प्रशासन में प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम, प्रबंधन, अर्थशास्त्र और अन्य संबद्ध विषयों की पेशकश करनी चाहिए। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी विशेषज्ञों के लिए प्रबंधन प्रशिक्षण में शामिल होना चाहिए। इसके अलावा, कॉलेजों द्वारा छोटे पाठ्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध कराई जाना चाहिए और महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य कराए जाना चाहिए।
- सिविल सेवा और अन्य रोजगारों के बीच गतिशीलता होनी चाहिए, जैसे कि विश्वविद्यालय और निजी क्षेत्र। देरी से प्रवेश और अल्पकालिक नियुक्तियों के लिए अवसरों का विस्तार किया जाना चाहिए।
- विश्वविद्यालयीन स्नातकों की भर्ती करते समय उनके पाठ्यक्रमों की नौकरी से प्रासंगिकता को ध्यान में रखना चाहिए। दूसरे शब्दों में, भर्ती करते समय वरीयता, प्रासंगिक श्रेणी को दी जानी चाहिए।
3.3 केन्द्रीय कार्मिक एजेंसी
31 अक्टूबर 1968 तक, ब्रिटिश कोषागार केंद्रीय कार्मिक एजेंसी था और इसने सिविल सेवा का प्रबंधन किया। लेकिन 1 नवंबर 1968 को सिविल सेवा विभाग, फुल्टन समिति की रिपोर्ट की सिफारिश पर स्थापित किया गया। इस विभाग ने कोषागार की जगह केंद्रीय कार्मिक एजेंसी की जगह ली और सिविल सेवा आयोग को स्वतंत्र इकाई के रूप में स्वयं में समाहित कर लिया। हालांकि, यह विभाग 1981 में मितव्ययिता को लागू करने के लिए भंग कर दिया गया था, और इसके कार्यों को कोषागार और प्रबंधन और कार्मिक कार्यालय के बीच वितरित कर दिया गया। 1987 में, सिविल सेवा मंत्री विभाग ने, प्रबंधन और कार्मिक कार्यालय को समाप्त और प्रतिस्थापित कर दिया गया था। ब्रिटिश सिविल सेवा का अब कोषागार (ट्रेजरी) द्वारा प्रबंधन किया जाता है और सिविल सेवा मंत्री के कार्यालय द्वारा भी, जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के नियंत्रण में काम करता है।
भर्तीः ब्रिटेन में सिविल सेवा में भर्ती सिविल सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं पर आधारित है। आयोग नियुक्ति के लिए विभागों के प्रमुखों को सफल उम्मीदवारों की सूची भेजता है।
1945 तक, विधि I उच्चतर सिविल सेवा में प्रवेश का एक ही पथ था, जो प्रशासनिक श्रेणी है। विधि I के तहत परीक्षा में योग्यता लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार भी शामिल था। लिखित परीक्षा में निबंध, भाषा, समसामयिक मामले और वैकल्पिक विषय शामिल थे।
1945 में, विधि II नामक एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश किया गया था। इस विधि में व्यक्तिगत और समूह साक्षात्कारों की एक श्रृंखला पर बल दिया गया, एक योग्यता लिखित परीक्षा के अतिरिक्त। उम्मीदवारों को दो दिनों के लिए एक विस्तृत साक्षात्कार हेतु सिविल सेवा चयन बोर्ड द्वारा एक कंट्री हाउस ले जाया गया। इसलिए इस विधि को कंट्री हाउस विधि भी कहा गया। इसलिए, विधि II के तहत चयन ‘विस्तृत साक्षात्कार‘ या ‘पुननिर्माण प्रतियोगिता‘ की विधि द्वारा किया गया। 1969 में, विधि I पूरी तरह से बंद कर की गई थी। इसलिए 1970 से, विधि II सिविल सेवा में प्रवेश के लिए उम्मीदवारों की योग्यता और उपयुक्तता का परीक्षण करने का एकमात्र साधन है। 1971 में, विधि II की तर्ज पर प्रशासनिक प्रशिक्षुओं के चयन की प्रणाली, नए प्रशासनिक समूह में कॅरियर के लिए, फुल्टन की सिफारिशों के आधार पर पेश हुई। चयनित उम्मीदवारों (प्रशासनिक प्रशिक्षुओं) को सिविल सर्विस कॉलेज में सोलह सप्ताह के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के बाद दो साल की परिवीक्षा अवधि के लिए नियुक्त किया गया।
3.4 प्रशिक्षण
ब्रिटेन में उच्च सिविल सेवा के लिए औपचारिक प्रशिक्षण की संस्था 1944 में एसहेटन समिति की सिविल सेवकों के प्रशिक्षण की रिपोर्ट पर आधारित है। जो समिति सर राल्फ एसहेटन की अध्यक्षता में 1943 में नियुक्त की गई थी, उसने उच्चतर सिविल सेवा के लिए प्रशिक्षण नवागंतुकों के लिए केंद्रीकृत व्यवस्था की सिफारिश की। इसकी सिफारिश पर, प्रशिक्षण और शिक्षा विभाग के उच्च सिविल सेवकों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम समन्वय और प्रशासन के लिए ब्रिटिश कोषागार (खजाने) में विभाग स्थापित किया गया था। ब्रिटेन में प्रमुख प्रशिक्षण केन्द्र हैंः
- प्रशासनिक स्टाफ कॉलेज, प्रबंधन में बाहरी प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए हेनले-ऑन-टेम्स में 1948 में स्थापित
- प्रशासनिक अध्ययन के लिए केन्द्र, लंदन में 1963 में स्थापित
- लंदन में रक्षा अध्ययन का रॉयल कॉलेज, राजनायिक सेवा के लिए प्रशिक्षण प्रदान करता है
- सिविल सेवा कॉलेज
सिविल सेवा कॉलेज ब्रिटेन में मुख्य प्रशिक्षण केन्द्र है। वह फुल्टन समिति रिपोर्ट की सिफारिश पर 1969 में स्थापित किया गया था। इसमें मुख्यालय व दो क्षेत्रीय केन्द्र शामिल हैं। क्षेत्रीय केन्द्र लंदन और एडिनबर्ग में हैं जबकि मुख्यालय सनींगडेल पार्क में है। यह निम्नलिखित चार मुख्य कार्य करता है।
- यह प्रशासन के वित्तीय, आर्थिक या सामाजिक क्षेत्रों में (प्रशासनिक या सामान्यतः) नई भर्तियों के लिए प्रवेश के बाद प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- यह प्रशासन और प्रबंधन में विशेषज्ञों के लिए विशेष पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
- यह प्रशासन से संबंधित समस्याओं पर अनुसंधान करता है।
- यह विभागों को सामान्य मार्गदर्शन और सलाह देता है जो कार्यकारी और लिपिक कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित करते हैं।
पदोन्नतिः सिविल सेवा में पदोन्नति एक विभागीय मामला है। हर विभाग में, विभागीय पदोन्नति बोर्ड प्रमुख द्वारा गठित किए जाते हैं। वे पदोन्नति के मामलों पर मंत्री और स्थायी सचिव को सलाह देते हैं।
वार्षिक रिपोर्ट में, कर्मचारियों का मूल्यांकन उत्कृष्ट, बहुत अच्छा, संतोषजनक, उदासीन और खराब के रूप में किया जाता है। फिर, उम्मीदवारों को निम्नलिखित चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता हैः
- पदोन्नति के लिए असाधारण रूप से योग्य।
- पदोन्नति के लिए अत्यधिक योग्य।
- पदोन्नति के लिए योग्य
- अभी तक पदोन्नति के लिए योग्य नहीं
ब्रिटेन में पदोन्नति की प्रणाली के महत्वपूर्ण तत्व हैंः
- उम्मीदवारों को पदोन्नति के समय अच्छी तरह से सूचित किया जाता है कि कौनसे पद रिक्त हैं
- पदोन्नति के लिए उम्मीदवारों की उपयुक्तता एक ही व्यक्ति के बजाए एक बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाती है
- पीड़ित पक्ष की पदोन्नति के विषय में निर्णय के खिलाफ अपील करने का अधिकार है। हालांकि, विभाग प्रमुख के अतिरिक्त किसी भी उच्च अधिकारी को याचिका नहीं की जा सकती।
- व्यवहार में, प्रधानमंत्री की सहमति स्थाई सचिव, उप सचिव, वित्त अधिकारी और स्थापना अधिकारी के पदों के लिए पदोन्नति के लिए आवश्यक है।
3.5 वेतन और सेवा शर्तें
- 1971 से ब्रिटेन में लोक सेवकों के वेतन ‘‘प्रीस्टली फार्मूला’’ के आधार पर निर्धारित होते हैं। इस फॉर्मूले ने सरकार की आय नीतियों के आधार पर और निजी क्षेत्र के वेतनमानों से तुलनात्मक उच्च वेतनमानों की सिफारिश की थी। वेतन का निर्धारण और नियंत्रण ब्रिटिश राजकोष और कार्मिक विभाग द्वारा किया जाता है।
- वेतन (मूल वेतन) के अतिरिक्त ब्रिटेन में लोक सेवकों को विभिन्न प्रकार के भत्ते भी प्रदान किये जाते हैं, जो विद्यमान मूल्य सूचकांक के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं।
- ब्रिटेन में लोक सेवकों को संगठन का अधिकार भी प्रदान किया गया है। अपनी राजनीतिक विचारधारा की रक्षा के लिए उन्हें श्रमिक संघों में सहभागिता का अधिकार भी प्रदान किया गया है। हालांकि केवल डाक विभाग कर्मचारी संघ ही लेबर पार्टी से संबंधित है।
- कानून के अनुसार ब्रिटेन के लोक सेवकों को हड़ताल से विशेष रूप से वंचित नहीं रखा गया है। किंतु लोक सेवकों द्वार हडताल करना अनुशासनात्मक अपराध माना जाता है।
- ब्रिटेन में उच्च पदस्थ लोक सेवकों के राजनीतिक अधिकारों और गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध है। यह प्रतिबंध मध्यम और निम्न श्रेणी के लोक सेवकों के लिए उत्तरोत्तर शिथिल होता जाता है। निम्न श्रेणी के लोक सेवक लगभग सभी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं। लोक सेवकों की राजनीतिक गतिविधियों पर राजकोष द्वारा निगरानी रखी जाती है। लोक सेवकों की राजनीतिक गतिविधियों के लिए स्थापित मास्टरमैन समिति ने अपनी 1949 की रिपोर्ट में कहा था किः
‘‘एल लोकतांत्रिक समाज में राज्य के कार्यों के विषय में प्रत्येक नागरिक द्वारा अभिप्राय, और जितना हो सके उतने अधिक से अधिक लोगों द्वारा सार्वजनिक जीवन में सक्रिय भाग लेना वांछनीय है। इस देश की प्रशासनिक संरचना के एक अनिवार्य भाग के रूप में लोक हित मांग करता है कि लोक सेवा में राजनीतिक निष्पक्षता, और उस निष्पक्षता में लोगों का विश्वास बनाये रखा जाये।’’
अतः मास्टरमैन समिति ने उल्लेख किया कि ‘‘राजनीतिक निष्पक्षता की विद्यमान परंपरा में किसी भी प्रकार की कमजोरी एक ‘‘राजनीतिक’’ लोक सेवा की निर्मिति में पहला कदम होगी.... इस प्रकार की प्रणाली लोक हित के विरुद्ध होगी, और लंबे समय में लोक सेवा के हितों के भी विरुद्ध होगी।‘‘
लोक सेवकों की सेवा निवृत्ति आयु 60 से 65 वर्ष है। उन्हें सामान्य सेवा निवृत्ति लाभ भी प्राप्त होते हैं।
3.6 व्हिटली परिषदें
ब्रिटेन में नियोक्ता (राज्य) और नियुक्त(कर्मचारी) के बीच सेवा शर्तों से संबंधित विवादों पर बातचीत और समाधान के लिए व्हिटली परिषद नामक संस्था विद्यमान है। ब्रिटेन की इस अनूठी संस्था के विषय में निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया जा सकता है।
- इन परिषदों की स्थापना नियोक्ता और नियुक्त के बीच संबंधों पर व्हिटली समिति की सिफारिशों के अनुसार 1917 में पहली बार निजी उद्योगों में की गई।
- रैमसे-बनिंग समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के आधार पर 1919 में लोक सेवा के कार्यक्षेत्र में व्हिटली परिषदों की स्थापना की गई।
- लोक सेवाओं में व्हिटली परिषदें राष्ट्रीय, विभागीय और स्थानीय स्तरों पर कार्य करती हैं। राष्ट्रीय परिषद सेवा शर्तों से संबंधित उन मामलों पर विचार करती है, जो समग्र रूप से लोक सेवा को प्रभावित करते हैं।
- सभी स्तरों की व्हिटली परिषदों में समान संख्या में सरकार (नियोक्ता) और कर्मचारियों (नियुक्त) के प्रतिनिधि होते हैं। अधिकारी श्रेणी (अर्थात, निर्देशक एवं पर्यवेक्षी कर्मचारी) सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि मध्यम और निम्न श्रेणियों के कर्मचारी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सरकारी पक्ष और कर्मचारी पक्ष तीन स्तरों पर कार्यरत व्हिटली परिषद तंत्र के माध्यम से बातचीत करते है। अतः सेवा शर्तों से संबंधित उत्पन्न विवादों को सुलझाने की दृष्टि से व्हिटली प्रणाली विभिन्न स्तरों पर सरकार और कर्मचारियों के बीच चर्चा और बातचीत की एक आवधिक चर्चा प्रणाली है।
- राष्ट्रीय व्हिटली परिषद में उभय पक्षों के 27, अर्थात कुल 54 सदस्य होते हैं। परिषद का अध्यक्ष सरकार पक्ष से होता है, जबकि उपाध्यक्ष कर्मचारियों के पक्ष से होता है। गृह नागरिक सेवा के प्रमुख, परिषद के सभापति के रूप में कार्य करते हैं।
- इन व्हिटली परिषदों के पास केवल सिफारशी अधिकार होते हैं, किसी प्रकार के निर्णय के अधिकार नहीं होते। वे केवल परामर्शदाता निकाय हैं। उसी प्रकार, परिषदें व्यक्तिगत मामलों पर विचार नहीं करती हैं। मंत्रालयों के अंतर्गत विभागीय परिषदें (जो संख्या में लगभग 70 हैं) कार्यरत हैं, और राष्ट्रीय परिषद सरकार के लिए केंद्रीय परामर्शदाता की भूमिका निभाती है।
- जब कभी वेतन, सेवा के घंटों और छुट्टियों के विषय में सरकारी पक्ष और कर्मचारियों के पक्ष में किसी विषय में असहमति होती है, तो इसे निपटने के लिए मध्यस्थता का प्रावधान बनाया गया है।
- लोक सेवा मध्यस्थता न्यायाधिकरण की स्थापना 1936 में की गई थी और इसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त दो और सदस्य होते हैं। न्यायाधिकरण के अधिनिर्णय अंतिम होते हैं, जिन पर अधिभावी अधिकार ब्रिटेन की संसद में निहित हैं।
- व्हिटली परिषदों के उद्देश्य निम्नानुसार हैंः
- कर्मचारियों की सेवा शर्तों से संबंधित शिकायतों की आवाज उठाने और उन पर चर्चा करने के लिए उचित तंत्र प्रदान करना।
- राज्य (नियोक्ता के रूप में) और लोक सेवकों के सामान्य निकाय (कर्मचारियों के रूप में) के बीच लोक सेवा की कार्यकुशलता में सुधार और कर्मचारियों की भलाई की दृष्टि से अधिकतम सहयोग सुनिश्चित करना।
- समस्यों को सुलझाने के लिए प्रशासनिक, कार्यकारी और लिपिक श्रेणी के लोक सेवकों के अनुभव और भिन्न-भिन्न विचारधाराओं को साथ में लाना।
11. उपरोल्लिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्हिटली परिषदें निम्नलिखित कार्य निष्पादित करती हैंः
- कर्मचारियों के अनुभव और विचारों के यथोचित उपयोग के लिए सर्वोत्कृष्ट साधन उपलब्ध कराना।
- जिन परिस्थितियों के अंतर्गत वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं, उनके निर्धारण और उचित पालन के लिए कर्मचारियों के लिए उत्तरदायित्वों का बड़ा भाग सुरक्षित करना।
- कर्मचारी भर्ती, कार्य के घंटों, पदोन्नतियों, अनुशासन, अवधि, वेतन और सेवा निवृत्ति को शासित करने वाले सामान्य सिद्धांतों का निर्धारण करना। पदोन्नतियों और अनुशासन से संबंधित व्यक्तिगत मामलों की चर्चा की अनुमति नहीं है।
- उच्च प्रशासन और संगठन में लोक सेवकों की आगे की शिक्षा और प्रशिक्षण को बढावा देना।
- कार्यालय तंत्र और संगठन में सुधार करना, और इस विषय पर कर्मचारियों द्वारा दिए गए सुझावों पर अधिकतम विचार के अवसर प्रदान करना।
- लोक सेवकों की रोजगार से संबंधित स्थिति पर अधिकाधिक प्रभावी कानून प्रस्तावित करना।
4.0 जापानी लोक सेवा
1868 के मेइजी पुनरुद्धार के पश्चात् जापानी लोक सेवा में मूलभूत बदलाव आया। इसे जर्मन तर्ज पर नियोजित किया गया (अर्थात, नौकरशाही का वेबेरियन मॉडल)। इस प्रकार, जापान की आधुनिक लोक सेवा या नौकरशाही की उत्पत्ति का श्रेय मेइजी पुनरुद्धार को दिया जा सकता है।
मेइजी युग के प्रारंभिक वर्षों में, लोक सेवकों की नियुक्ति संरक्षण विचारों के आधार पर की जाती थी। भर्ती के योग्यता सिद्धांत को 1885 से अपनाया जाने लगा। भर्ती के लिए प्रथम प्रतियोगी परीक्षा 1887 में आयोजित की गई थी।
हालांकि, जापानी लोक सेवा की वैधता अब भी लोगों से प्राप्त ना होकर सम्राट से प्राप्त थी। आधिकारिक तौर पर एक लोक सेवक को सम्राट का चुना हुआ सेवक माना जाता था ना कि जनता का सेवक। वह सम्राट के प्रति उत्तरदायी था, ना कि जनता के प्रति। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, आधिपत्य अधिकारियों (1945-1952) ने जापानी लोक सेवा में अमेरिकी तर्ज पर सुधार किया। उन्होंने जापानी लोक सेवा को लोकतान्त्रिक, आधुनिक, युक्तिसंगत, और पेशेवर बनाया।
1946 में, संयुक्त राज्य अमेरिका कार्मिक सलाहकार आयोग को जापान की विद्यमान लोक सेवा प्रणाली के अध्ययन, और इसमें सुधार के लिए उपाय सुझाने के लिए जापान भेजा गया। इसकी सिफारिशों के आधार पर डाइट द्वारा 1947 में राष्ट्रीय लोक सेवा कानून अधिनियमित किया गया। जापान की लोक सेवा को विनियमित करने की दृष्टि से यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण कानून है। यह जापानी लोक सेवा को अमेरिकी लोक सेवा की तर्ज पर संचालित करने पर जोर देता है।
1947 के मैकआर्थर संविधान ने जापान की लोक सेवा की संपूर्ण अवधारणा को बदल दिया। इस संदर्भ में इसने निम्नलिखित प्रावधान कियेः
- सभी सरकारी अधिकारी समूचे समुदाय के सेवक हैं उसके किसी विशेष समूह के नहीं (अनुच्छेद 15)
- यदि किसी व्यक्ति को किसी लोक सेवक के गैर कानूनी कृत्य के कारण नुकसान उठाना पड़ा है, तो हर व्यक्ति राज्य या सार्वजनिक इकाई द्वारा प्रदत्त कानून के अंतर्गत निवारण के लिए मुकदमा दायर कर सकता है (अनुच्छेद 17)
इस प्रकार, नए संविधान ने लोक सेवा को लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत शासन का साधन बना दिया है।
जापान की लोक सेवा में एक महत्वपूर्ण रुझान, इसमें बडे पैमाने पर सरकारी अधिकारियों में हुई बेतहाशा वृद्धि है। 1940 से 1965 के दौरान इसमें सात गुना वृद्धि हुई। 1965 में, केंद्र सरकार के असैनिक अधिकारियों की संख्या 16 लाख से अधिक थी। प्रशासनिक कर्मचारियों की इस विस्तारित होती संख्या को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए निम्न उपाय किये गए थेः
- सभी मंत्रालयों, आयोगों और एजेंसियों में समाहित अधिकारियों की संख्या को तय करने के लिए डाइट ने 1969 में ‘‘कुल कर्मचारी संख्या कानून’’ अधिनियमित किया। इस सीमा के अंदर सरकार प्रत्येक मंत्रालय, आयोग या एजेंसी में अधिकारियों की संख्या निर्धारित कर सकती है।
- सरकारी अधिकारियों के आकार में कटौती करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय कार्मिक कटौती योजना अपनायी।
उपरोक्त उपायों के परिणामस्वरूप, हाल के वर्षों में जापान में सरकारी रोजगार का स्तरीकरण हुआ है। वर्तमान में, विश्व के अन्य प्रमुख औद्योगिक राष्ट्रों की तुलना में जापान का प्रशासनिक अमला सबसे छोटा है।
जापान में अब तक, दो प्रशासनिक सुधार आयोगों की नियुक्ति की गई है। वे हैंः
- प्रशासनिक सुधार के लिए प्रथम अनंतिम आयोग। इसकी स्थापना 1962 में की गई थी, और इसकी रचना अमेरिका के द्वितीय हूवर आयोग (1955) पर आधारित थी।
- प्रशासनिक सुधार के लिए द्वितीय अनंतिम आयोग। यह 1981 में तोशियो डोको की अध्यक्षता में स्थापित किया गया था।
4.1 राष्ट्रीय कार्मिक प्राधिकरण
एनपीए अमेरिका के दिमाग की उपज है। इसकी रचना अमेरिका के लोक सेवा आयोग के आधार पर की गई है (जिसे समाप्त कर दिया गया था, और जिसे 1978 में कार्मिक प्रबंधन कार्यालय द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था)। भारत में इसका समकक्ष संघ लोक सेवा आयोग और कार्मिक मंत्रालय के संयोजन के रूप में विद्यमान है। दूसरे शब्दों में, भारत में जो कार्य उक्त दोनों एजेंसियां करती हैं, वे जापान में अकेले एनपीए द्वारा संपन्न किये जाते हैं। यह एक सांविधिक निकाय है, संवैधानिक निकाय नहीं है। यह एक स्वायत्त निकाय है, अर्थात, यह डाइट और मंत्रिमंडल से अलग, स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। यह राष्ट्रीय लोक सेवा कानून को प्रशासित करता है, और इस प्रकार जापान में लोक सेवा के प्रबंधन की देखरेख करता है।
अमेरिका के पूर्व लोक सेवा आयोग की तरह ही एनपीए भी एक त्रि-सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष और दो आयुक्त हैं। उनकी नियुक्ति मंत्रिमंडल द्वारा की जाती है। उनकी नियुक्ति के लिए डाइट का अनुमोदन और सम्राट के सत्यापन की आवश्यकता होती है। कोई भी दो आयुक्त एक ही राजनीतिक दल के सदस्य या एक ही विश्वविद्यालय के एक ही विभाग के स्नातक नहीं हो सकते। आयुक्तों की नियुक्ति चार वर्षों के लिए की जाती है। वे पुनर्नियुक्त किये जा सकते हैं। हालांकि वे लगातार 12 वर्षों से अधिक समय के लिए पद पर नहीं रह सकते।
एनपीए के उत्तरदायित्वों में लोकतांत्रिक पद्धतियों की शुरुआत करना, वैज्ञानिक प्रबंधन प्रदान करना, और रोजगार वर्गीकरण प्रणाली विकसित करना शामिल हैं। इसके कार्यों में निम्नलिखित कार्य शामिल हैंः
- भर्ती परीक्षाओं का आयोजन
- पद वर्गीकरण योजना विकसित करना, और उसे लागू करना
- लोक सेवकों का प्रशिक्षण
- सरकारी अधिकारियों की कार्यकुशलता में सुधार करना
- लोक सेवकों की पदोन्नतियां
- सरकारी अधिकारियों की शिकायतों की जांच करना और उनका निराकरण करना
- लोक सेवाओं में अनुशासन को बनाये रखना
- क्षतिपूर्ति और अन्य सेवा शर्तों के बारे में सिफारिशें करना
- कार्मिक प्रशासन के विभिन्न पहलुओं पर प्रक्रियाएं और मानक स्थापित करना
- कार्मिक प्रशासन में निष्पक्षता बनाये रखना। एनपीए अपनी गतिविधियों पर एक वार्षिक रिपोर्ट डाइट और मंत्रिमंडल को प्रस्तुत करता हैः
एनपीए के अलावा, निम्नलिखित तीन एजेंसियों को भी जापान की लोक सेवा के प्रबंधन में शामिल किया गया हैः
- प्रधानमंत्री का कार्यालय
- प्रबंधन एवं संयोजन एजेंसी (प्रशासनिक सुधारों के लिए द्वितीय अनंतिम आयोग की सिफारिश पर इसकी स्थापना 1984 में की गई थी)
- वित्त मंत्रालय में बजट ब्यूरो।
4.2 वर्गीकरण
राष्ट्रीय लोक सेवा कानून, राष्ट्रीय लोक सेवा को विशेष सेवा और नियमित सेवा में विभाजित करता है। जापान में लोक सेवा के पदों को, वेतन प्रबंधन के उद्देश्य से निम्नलिखित सोलह सेवाओं में वर्गीकृत किया गया हैः
- प्रशासनिक सेवा (I)
- प्रशासनिक सेवा (II)
- सार्वजनिक सुरक्षा सेवा (I)
- सार्वजनिक सुरक्षा सेवा (II)
- शैक्षणिक सेवा (I)
- शैक्षणिक सेवा (I)
- शैक्षणिक सेवा (III)
- शैक्षणिक सेवा (IV)
- समुद्री सेवा (I)
- समुद्री सेवा (II)
- चिकित्सा सेवा (I)
- चिकित्सा सेवा (II)
- चिकित्सा सेवा (III)
- कराधान सेवा
- अनुसंधान सेवा
- पदांकित सेवा
जापान में लोक सेवकों के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी एनपीए की होती है। इस उद्देश्य से एनपीए ने टोक्यो के निकट सैतामा प्रांत में एक लोक प्रशासन संस्थान (आयपीए) की स्थापना की है। आयपीए मध्यम और वरिष्ठ स्तर के लोक सेवकों के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है। इसके प्रमुख के पद पर एक करियर लोक सेवक होता है, जो सीधे एनपीए के अधीन कार्य करता है।
1967 से, आयपीए करियरमैन - प्रमुख वरिष्ठ ए - वर्ग प्रवेश परीक्षा के सफल उम्मीदवार - सहित सभी उच्चतर लोक सेवा भर्तियों के लिए एक संयुक्त परिचयात्मक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता आ रहा है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की अवधि चार दिन की होती है, और इसके उद्देश्य हैंः
- उनके बीच संघ-भाव और आपसी समझ को बढ़ावा देना।
- उनमें लोक सेवकों की भावना निर्माण करना।
- उन्हें समुदाय (समाज) के प्रति जागरूक बनाना।
जापान के इस कार्यक्रम की तुलना मसूरी की राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी द्वारा आयोजित भारतीय संयुक्त बुनियादी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम से की जा सकती है। किंतु इनमें भी एक अंतर है। भारतीय कार्यक्रम जापान के कार्यक्रम की तुलना में अवधि (चार महीने) की दृष्टि से और व्याप्ति की दृष्टि से अधिक व्यापक है।
इस संयुक्त परिचयात्मक प्रशिक्षण कार्यक्रम की समाप्ति के बाद, परिवीक्षार्थी आवंटित मंत्रालयों में अपने करियर की शुरुआत करते हैं। वहां वे अनौपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं (काम पर प्रशिक्षण), अर्थात, वास्तव में काम करते हुए वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में काम सीखते हैं। साथ ही, वे अपने संपूर्ण कार्यकाल के दौरान उसी मंत्रालय में रहते हैं। यह उन्हें अपने मंत्रालयों के कार्य में विशेषज्ञ बना देता है।
जापान के विदेश मंत्रालय के परिवीक्षार्थियों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण अधिक व्यापक, विस्तारित और लंबी अवधि का होता है- लगभग तीन से चार वर्षों का। उनके प्रशिक्षण के विभिन्न घटक, प्रत्येक की समयावधि के साथ नीचे दिए गए हैंः
- विदेश सेवा संस्थान में दिया जाने वाला संस्थागत प्रशिक्षण 4 माह
- विदेशी मामलों के मंत्रालय के मुख्यालय में काम पर प्रशिक्षण 1 वर्ष
- विदेशी भाषा की जानकारी के लिए सहचारी के रूप में राजनयिक मिशन में पदस्थापना 2 या 3 वर्ष
राष्ट्रीय लोक सेवा कानून में, जापान की लोक सेवा में पदोन्नतियों के संबंध में निम्न दो प्रावधान हैंः
- पदोन्नति के संबंध में सरकार के विचाराधीन पदों पर निचले स्तर में कार्यरत कर्मियों की पदोन्नति एक प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से की जाएगी।
- ऐसे मामलों में, जिनमें कार्यरत कर्मियों के बीच परीक्षा आयोजित करना एनपीए को अव्यवहारिक प्रतीत होता है, तो ऐसे कार्यरत कर्मियों के पिछले कार्यकाल के रिकॉर्ड के आधार पर मूल्यांकन के माध्यम से भी पदोन्नति की जा सकती है।
संक्षेप में, कानून में पदोन्नति के लिए दो प्रावधान किये गए हैं - परखी हुई योग्यता और प्रदर्शन मूल्यांकन। हालांकि व्यवहार में, पदोन्नतियां सेवा ज्येष्ठता के आधार पर ही की जाती हैं। दूसरे शब्दों में, जापानी कॉल सेवा में सेवा ज्येष्ठता का सिद्धांत मजबूती के साथ स्थापित है। पदोन्नति के बारे में विचार करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण घटक है लोक सेवक की शैक्षणिक पृष्ठभूमि, अर्थात्, जिस विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की है और शैक्षणिक विशेषज्ञता का क्षेत्र या संकाय।
लोक सेवक अपनी सेवा के दौरान 15 वर्षों की सेवा के पश्चात अनुभाग प्रमुख, 20 वर्षों पश्चात् निदेशक, 25 से 28 वर्षों पश्चात महानिदेशक और 28 से 30 वर्षों पश्चात् प्रशासनिक उप मंत्री के पद तक पहुँच सकता है प्रशासनिक उप मंत्री का पद वह सर्वोच्च पद है, जिसकी एक लोक सेवक कामना कर सकता है। यह पद भारत सरकार के सचिव के समकक्ष होता है। लोक सेवकों की प्रभागीय प्रमुख (निदेशक) और उसके ऊपर की पदोन्नतियों के लिए एनपीए का पूर्व अनुमोदन आवश्यक है। जापानी प्रणाली में वरिष्ठ प्रशासनिक स्तर की पदोन्नतियों की एक और विशेषता है सामूहिक वरिष्ठता की प्रणाली (बैच आधारित वरिष्ठता)।
इससे तात्पर्य यह है कि जिन लोक सेवकों की वरिष्ठता समान है, उन सभी की पदोन्नति एक साथ ही की जावेगी। दूसरे शब्दों में, बैच आधारित पदोन्नति का परिणाम थोकबंद पदोन्नतियों में होता है। उच्चतर पदों पर पदोन्नतियों के सीमित अवसरों के कारण जिनकी पदोन्नति नहीं हो पाती, वे त्यागपत्र देकर लोक सेवा छोड देते हैं। इस प्रकार, पदोन्नति और त्यागपत्र साथ-साथ चलते हैं। त्यागपत्र दिए हुए लोक सेवक या तो निजी क्षेत्र की कंपनियों में जाते हैं, या अर्ध-स्वशासी सार्वजनिक उपक्रमों में चले जाते हैं, या सक्रीय राजनीति में आ जाते हैं। जापान में इसे ‘‘दूसरे करियर’’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जापान में डाइट का एक बडा प्रतिशत, युद्ध के पश्चात के 20 प्रतिशत काबीना मंत्री और युद्ध पश्चात के आधे प्रधानमंत्री भूतपूर्व लोक सेवक रहे हैं।
4.5 वेतन और सेवा शर्तें
- राष्ट्रीय लोक सेवा कानून में प्रावधान है कि कर्मियों को उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के आधार पर प्रतिफल प्रदान किया जाएगा। तदनुसार, जापान ने अपने लोक सेवकों के वेतन निर्धारण के लिए बाहरी संगठनों के साथ ‘‘निष्पक्ष तुलना’’ के सिद्धांत को अपनाया है। निजी क्षेत्रों में वेतनमानों का पता लगाने के लिए एनपीए प्रति वर्ष हजारों कंपनियों का सर्वेक्षण करता है। इनके निष्कर्षों के आधार पर एनपीए एक वेतन योजना बना कर डाइट और मंत्रिमंडल को प्रस्तुत करता है।
- नियमित वेतन के अतिरिक्त, लोक सेवकों को विभिन्न भत्ते भी दिए जाते हैं, जैसे आवास भत्ता, विशेष क्षेत्र कार्य भत्ता, अतिरिक्त समय भत्ता, ठंडा जिला भत्ता, कुटुंब भत्ता, विशेष कार्य भत्ता, और अन्य।
- अमेरिका की तरह जापान भी अपने लोक सेवकों को संगठन का अधिकार प्रदान करता है। हालांकि पुलिस कर्मियों, समुद्री सुरक्षा एजेंसी में कार्यरत कर्मियों या दंड संस्थाओं में कार्यरत कर्मियों को इस अधिकार से वंचित रखा जाता है।
- अमेरिका की ही तरह, जापान भी अपने लोक सेवकों को हड़ताल का अधिकार नहीं देता। इस प्रकार, जापान में लोक सेवकों के लिए हडताल में भाग लेना गैर कानूनी है।
- अमेरिका की तरह ही जापान भी अपने लोक सेवकों के लिए राजनीतिक गतिविधियाँ प्रतिबंधित करता है। मताधिकार के अतिरिक्त उन्हें अन्य कोई भी राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
- 1985 में लोक सेवकों की सेवा निवृत्ति आयु 60 वर्ष निर्धारित की गई थी। उससे पूर्व, किसी भी प्रकार का अनिवार्य सेवा निवृत्ति प्रावधान नहीं था। यह प्रथाओं द्वारा शासित होता था। सेवा निवृत्ति पर सरकार एक लोक सेवक को किसी निजी निगम में पदस्थापना प्रदान करके उपकृत करती है। इस पद्धति को ‘‘अमकुदारी’’ कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘‘स्वर्ग से अवतरित हुआ’’ सेवा निवृत्ति के पश्चात की पदस्थापना का कार्य उस मंत्रालय के अंतर्गत ही एक समिति द्वारा किया जाता है, जिसमें उसने अपना संपूर्ण शासकीय कार्यकाल व्यतीत किया है।
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