सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
अभिवृत्ति : तत्व, संरचना एवं उपयोग भाग - 2
5.0 भावना और अभिवृत्ति परिवर्तन
भावना अनुनय, सामाजिक प्रभाव और अभिवृत्ति परिवर्तन में एक समान घटक है। अधिकांश अभिवृत्ति अनुसंधान ने प्रभावी या भावनात्मक घटकों के महत्त्व पर और दिया है। भावना संज्ञानात्मक प्रक्रिया, या हम किसी स्थिति के बारे में कैसे सोचते हैं, के साथ-साथ काम करती है। विज्ञापनों, स्वास्थ्य अभियानों और राजनीतिक संदेशों में भावनात्मक अपील अक्सर देखी जाती हैं। हाल के उदाहरणों में धूम्रपान विरोधी अभियानों, और ऐसे राजनीतिक विज्ञापनों को शामिल किया जा सकता है जो आतंकवाद के डर पर जोर देते हैं। अभिवृत्तियां और अभिवृत्ति वस्तुएं संज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक घटकों के कार्य हैं। अभिवृत्तियां मस्तिष्क के संबंधित संजाल का भाग हैं, ये ऐसी मकड़ी सदृश संरचनाएं हैं जो हमारी दीर्घकालीन स्मृति में स्थित होती हैं और जिनमें भावात्मक और संज्ञानात्मक गांठें होती हैं।
एक भावात्मक या भावनात्मक स्वर को सक्रिय करने से अभिवृत्ति परिवर्तन संभव है, हालांकि भावात्मक और संज्ञानात्मक घटक एक दूसरे के साथ गुंथे हुए होते हैं। मूल रूप से भावात्मक संजाल में अनुनय के विरोध में और अभिवृत्ति परिवर्तन में संज्ञानात्मक प्रति तर्क प्रदान करना अत्यंत कठिन है।
भावात्मक भविष्यवाणी, जिसे अन्यथा अंतर्ज्ञान या भावनाओं का पूर्वकथन भी कहा जाता है, भी अभिवृत्ति परिवर्तन को प्रभावित करती है। अनुसंधान बताता है कि संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के अतिरिक्त भावनाओं का पूर्वकथन भी निर्णय क्षमता का एक महत्वपूर्ण घटक है। हम किसी परिणाम के बारे में हमें क्या लगता है, यह भी शुद्ध संज्ञानात्मक तार्किकता पर हावी हो सकता है।
अनुसंधान कार्यप्रणाली की दृष्टि से अनुसंधानकर्ताओं के समक्ष की चुनौती है भवन का मापन और परिणामस्वरूप इसका अभिवृत्ति पर प्रभाव। चूंकि हम मस्तिष्क के अंदर नहीं देख सकते, अतः भावना और अभिवृत्ति की जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न मॉडल और मापन उपकरणों का निर्माण किया गया है। उदाहरणार्थ, डर का संबंध उठी हुई भौहों, बढ़ी हुई हृदयगति और बढे़ हुए शारीरिक तनाव के साथ है। अन्य पद्धतियों में नेटवर्क मानचित्रीकरण की संकल्पना और संबंधित युग के शब्दों और अभाज्य का उपयोग शामिल है।
5.1 भावनात्मक अनुनय के घटक
एक प्रेरक अनुनय में किसी भी भिन्न भावना का उपयोग किया जा सकता है; इसमें ईष्या, निराशा, आक्रोश, ड़र, नील, व्यथा, प्रेतवाधितता, और क्रोध को शामिल किया जा सकता है। संचार और सामाजिक प्रभाव अनुसंधान में डर सर्वाधिक अध्ययन किया गया भावनात्मक अनुनय है।
डर अनुनय अनुनयों के महत्वपूर्ण परिणामों में मुकाबले की संभावना शामिल है, जिसका परिणाम या तो संदेश अस्वीकृति या स्रोत अस्वीकृति और अभिवृत्ति परिवर्तन के अभाव में हो सकता है। अभिवृत्ति परिवर्तन को प्रेरित करने में इष्टतम भावनात्मक स्तर होता है। यदि प्रेरणा पर्याप्त नहीं है, तो अभिवृत्ति परिवर्तित नहीं होगी; यदि भावनात्मक अनुनय आवश्यकता से अधिक है, तो प्रेरणा शिथिल हो सकती है, जो अंततः अभिवृत्ति परिवर्तन को प्रतिबंधित कर देगी।
जिन भावनाओं को नकारात्मक माना जाता है, या ऐसा माना जाता है कि उसमें कोई खतरा निहित है, उनका अध्ययन हास्य विनोद जैसी सकारात्मक भावनाओं की तुलना में अधिक किया जाता है। हालांकि हास्य विनोद की आतंरिक कार्यपद्धति के बारे में स्वीकृति नहीं है, फिर भी हास्य विनोद का अनुनय मस्तिष्क में असंगति निर्मित करके काम कर सकता है। हाल के अनुसंधान ने हास्य विनोद के राजनीतिक संदेशों के प्रसंस्करण पर प्रभाव का अध्ययन किया है। हालांकि इसके साक्ष्य अपूर्ण हैं, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि जिन व्यक्तियों की राजनीतिक संदेशों के प्रति भागीदारी कम है उनको लक्षित करने की संभावना अधिक है।
भावनात्मक अनुनय के प्रभाव को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में आत्म प्रभाविता, अभिवृत्ति सुलभता, मुद्दे की भागीदारी, और संदेश ध् स्रोत विशेषतायें शामिल हैं। आत्म प्रभाविता स्वयं के मानवी अभिकरण की अवधारणा है य दूसरे शब्दों में, यह हमारी स्वयं की स्थिति से निपटने की क्षमता की अवधारणा है। भावनात्मक अनुनय संदेशों में यह एक महत्वपूर्ण चर है, क्योंकि यह व्यक्ति की भावना और स्थिति, दोनों से निपटने की क्षमता को निर्धारित करती है। उदाहरणार्थ, यदि व्यक्ति वैश्विक पर्यावरण को प्रभावित करने की क्षमता के प्रति आत्म प्रभावोत्पादक नहीं हैं, तो वे विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि के प्रति अपनी अभिवृत्ति या व्यवहार परिवर्तित नहीं करेंगे। दिलॉर्ड़ (1994) ने सुझाव दिया है कि स्रोत गैर मौखिक संवाद, संदेश सामग्री, और प्राप्तकर्ता भिन्नताओं जैसी संदेश विशेषतायें भी डर के अनुनय के भावनात्मक प्रभाव को प्रभावित कर हैं। संदेश की विशेषतायें इसलिए हैं क्योंकि एक ही संदेश भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न स्तर की भावनाएं निर्मित कर सकता है। अतः यह कहा जा सकता है, कि भावनात्मक अनुनय के संदेशों में एक ही आकार सभी के लिए ठीक नहीं बैठता।
अभिवृत्ति सुलभता का संबंध किसी अभिवृत्ति को स्मृति से सक्रिय करने से है, दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु, मुद्दे या स्थिति के बारे में अभिवृत्ति कितनी सुलभता से उपलब्ध है। मुद्दे में भागीदारी व्यक्ति की किसी मुद्दे या स्थिति के विषय में अनुकूलता और प्रमुखता होती है। मुद्दा भागीदारी को अभिवृत्ति सुलभता और अभिवृत्ति दृढ़ता, दोनों के साथ जोड़ा गया है। पुराने अध्ययन इस बात की पुष्टि कर चुके हैं की सुलभ अभिवृत्तियां परिवर्तन के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं।
5.2 अभिवृत्ति-व्यवहार संबंध
व्यवहार पर अभिवृत्तियों के प्रभाव मनोविज्ञान अंदर एक महत्वपूर्ण अनुसंधान उद्यम को प्रदर्शित करता है। इस अनुसंधान पर दो सैद्धांतिक दृष्टिकोणों का वर्चस्व रहा है; तार्किक क्रिया का सिद्धांत और इसके सैद्धांतिक परिणाम, और नियोजित व्यवहार का सिद्धांत। इन दोनों सिद्धांतों का संबंध इसेक अज्जेन से है। ये दोनों सिद्धांत अभिवृत्ति और व्यवहार के बीच संबंधों का एक जानबूझ कर की गई प्रक्रिया के रूप में वर्णन करते हैं, जिसमें व्यक्ति अभिवृत्ति से संबंधित व्यवहार करना पसंद करता है। एक वैकल्पिक मॉड़ल रस्सेल एच. फजिओ द्वारा भी प्रदान किया गया है, जिसे मोड़ (डवजपअंजपवद ंदक व्चचवतजनदपजल ें क्मजमतउपदंदजे) कहते हैं, अर्थात ‘‘प्रेरणा और अवसर निर्धारक के रूप में कार्य करते हैं’’, जिसमें जानबूझ कर अभिवृत्ति संबंधित व्यवहार के होने में प्रेरणा और अवसरों पर जोर दिया गया है। मोड एक दोहरी प्रक्रिया सिद्धांत है जो जानबूझ कर अभिवृत्ति- व्यवहार के बीच संबंध - यह वैसा ही है जैसा नियोजित व्यवहार के सिद्धांत के मॉडल्स में दर्शाया गया है - तभी होता जब व्यक्ति को अपनी अभिवृत्तियों को प्रतिबिंबित करने के लिए प्रेरणा मिलती है।
6.0 भविष्य कथन माड़ल
6.1 नियोजित व्यवहार का सिद्धांत
नियोजित व्यवहार के सिद्धांत की शुरुआत 1980 में तार्किक क्रिया के सिद्धांत के रूप में हुई थी, जिसका उद्देश्य एक विशिष्ट समय और स्थान पर व्यक्ति के व्यवहार की इच्छा का पूर्व कथन करना था। इस सिद्धांत का उद्देश्य उन सभी व्यवहारों को समझाना था जिनपर व्यक्ति आत्म नियंत्रण करने में सक्षम हैं। इस मॉडल का महत्वपूर्ण घटक है व्यवहारात्मक इच्छा; व्यवहारात्मक इच्छाएं व्यक्ति की उन अभिवृत्तियों से प्रभावित होती हैं जीने बारे में विचार करते समय व्यक्ति इस विषय में सोचता है कि इस व्यवहार का इसके संभावित परिणाम पर क्या प्रभाव होगा, साथ ही वह उस परिणाम के लाभों और जोखिमों का भी मूल्यांकन करता है।
नियोजित व्यवहार के सिद्धांत का सफलतापूर्वक उपयोग स्वास्थ्य व्यवहारों की एक विस्तृत श्रृंखला के पूर्वानुमान और इन्हें समझाने के लिए किया गया है, जिनमें अन्य के अलावा धूम्रपान, मदिरा पान, स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग, स्तनपान, और पदार्थों के उपयोग शामिल हैं। नियोजित व्यवहार का सिद्धांत कहता है कि व्यवहारात्मक उपलब्धि प्रेरणा (प्रयोजन) और क्षमता (व्यवहारात्मक नियंत्रण), दोनों पर निर्भर करती है। यह तीन प्रकार की मान्यताओं के बीच भेद करता है - व्यवहारात्मक, मानकीय और नियंत्रण। नियोजित व्यवहार का सिद्धांत छह संरचनाओं से मिलकर बना है, जो संयुक्त रूप से व्यक्ति के व्यवहार पर वास्तविक नियंत्रण को प्रदर्शित करती हैं।
अभिवृत्तियां - इसका संबंध उस स्तर से है जिसपर व्यक्ति का रूचि के व्यवहार के प्रति अनुकूल या प्रतिकूल मूल्यांकन होता है। इसमें व्यवहार के निष्पादन के परिणाम का विचार निहित होता है।
व्यवहारात्मक प्रयोजन - इसका संबंध उन प्रेरक कारकों से होता है जो एक दिए गए व्यवहार को प्रभावित करते हैं। जहां व्यवहार के निष्पादन का प्रयोजन जितना अधिक तीव्र होगा, उतनी ही उस व्यवहार के निष्पादन की संभावना बढ़ जाएगी।
व्यक्तिपरक मानक - इसका संबंध व्यक्ति की उन मान्यताओं से है, जहां वह सोचता है कि अधिकांश लोग इस व्यवहार को स्वीकार करेंगे या अस्वीकार करेंगे। इसका संबंध व्यक्ति की उन मान्यताओं से है जहां वह इस बात का विचार करता है कि उसके साथी या उसकी दृष्टि से महत्वपूर्ण व्यक्ति चाहेंगे या नहीं चाहेंगे कि वह इस व्यवहार में शामिल हो।
सामाजिक मानक - इसका संबंध सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में या एक सामाजिक समूह में मान्य प्रथागत व्यवहार संहिता से है। व्यक्तियों के समूह में सामाजिक मानकों को मानक या मानकीय माना जाता है।
मान्य शक्ति - इसका संबंध उन कारकों की मान्य उपस्थिति से है जो एक व्यवहार के निष्पादन को सुलभ बनाएंगे या उसे बाधित करेंगे। मान्य शक्ति का योगदान इन प्रत्येक कारकों पर व्यक्ति के मान्य व्यवहारात्मक नियंत्रण में होता है।
मान्य व्यवहारात्मक नियंत्रण - इसका संबंध व्यक्ति के रूचि के व्यवहार के निष्पादन की सुलभता या कठिनाई से है। मान्य व्यहारात्मक नियंत्रण स्थिति और कार्यों के अनुसार बदलता है, इसका परिणाम यह होता है कि स्थिति के अनुसार व्यक्ति का मान्य व्यवहारात्मक नियंत्रण अलग-अलग होता है। सिद्धांत की यह संरचना बाद में जोडी गई थी, और इसने तार्किक कार्य के सिद्धांत से नियोजित व्यवहार के सिद्धांत में परिवर्तन कर दिया।
6.2 नियोजित व्यवहार के सिद्धांत की सीमायें
नियोजित व्यवहार के सिद्धांत की अनेक सीमायें हैं, जो निम्नानुसार हैंः
- यह सिद्धं यह मान कर चलता है कि व्यक्ति ने किसी व्यवहार के निष्पादन में सफल होने के लिए आवश्यक अवसर और संसाधन प्राप्त कर लिए हैं, फिर चाहे उसका प्रयोजन कुछ भी क्यों न हो।
- यह सिद्धांत व्यवहारात्मक प्रयोजन और प्रेरणा को प्रभावित करने वाले भय, खतरा, मनोदशा, या पुराना अनुभव जैसे अन्य कारकों का विचार नहीं करता।
- हालांकि यह सिद्धांत मानकीय प्रभावों का विचार करता है, फिर भी यह ऐसे पर्यावरणीय या आर्थिक कारकों का विचार नहीं करता जो किसी व्यवहार के निष्पादन की व्यक्ति की इच्छा को प्रभावित करते हैं।
- यह सिद्धांत मान कर चलता है कि व्यवहार रैखिक निर्णय प्रक्रिया का परिणाम है, और यह सिद्धांत नहीं मानता कि समय के साथ इसमें परिवर्तन हो सकता है।
- जबकि मान्य व्यवहारात्मक नियंत्रण की संरचना का जुडाव इस सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण तत्व था, फिर भी यह व्यवहार पर वास्तविक नियंत्रण के बारे में कोई स्पष्टीकरण प्रदान नहीं करता।
- इस सिद्धांत में "प्रयोजन" और "व्यवहारात्मक कार्य" के बीच की समयावधि का भी विचार नहीं किया गया है।
नियोजित व्यवहार के सिद्धांत की उपयोगिता स्वास्थ्य मान्यता मॉडल की तुलना में सार्वजनिक स्वास्थ्य में अधिक रही है, फिर भी चूंकि इसने पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों का विचार नहीं किया है, अतः यह भी इस सिद्धांत की एक कमजोरी या सीमा है। पिछले अनेक वर्षों के दौरान अनुसंधानकर्ताओं ने नियोजित व्यवहार के सिद्धांत की कुछ संरचनाओं का उपयोग किया है, और इसमें व्यवहारात्मक सिद्धांत के कुछ घटकों को जोड़ा भी है ताकि इस सिद्धांत को अधिक एकीकृत सिद्धांत बनाया जा सके। यह नियोजित व्यवहार के सिद्धांत की सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं की पूर्ति में आने वाली बाधाओं की प्रतिक्रियास्वरूप किया गया है।
COMMENTS