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अभिवृत्ति : तत्व, संरचना एवं उपयोग भाग - 1
1.0 प्रस्तावना
अभिवृत्तियों को लंबे समय से सामाजिक मनोविज्ञान की केंद्रीय संकल्पना माना गया है। वास्तव में प्रारंभिक लेखकों ने सामाजिक मनोविज्ञान को अभिवृत्तियों के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है (उदाहरणार्थ, थॉमस और जननिकी, 1918) और 1954 में गॉरड़न अलपोर्ट ने उल्लेख किया था, ‘‘यह संकल्पना शायद समकालीन अमेरिकी सामाजिक मनोविज्ञान की सर्वाधिक विशिष्ट और अपरिहार्य संकल्पना है।‘‘ जैसे कि किसी ऐसी संकल्पना के बारे में हम कल्पना कर सकते हैं, जिसकी ओर अनेक दशकों से ध्यान दिया गया है, अभिवृत्तियों की संकल्पना में भी बीते वर्षों के दौरान अनेक परिवर्तन हुए हैं। इसकी प्रारंभिक परिभाषाएं व्यापक थीं, और इनमें संज्ञानात्मक, प्रभावी और व्यवहार संबंधी सामग्री का समावेश किया गया था। उदाहरणार्थ, अलपोर्ट (1935) ने अभिवृत्ति को निम्न प्रकार से परिभाषित किया था ‘‘तैयारी की एक मानसिक और निष्पक्ष अवस्था, जिसे अनुभव के माध्यम से संयोजित किया गया है, और जो व्यक्ति की सभी वस्तुओं और स्थितियों की उन प्रतिक्रियाओं पर निर्देशक और गतिमान प्रभाव डालती है जिनसे वह संबंधित है।‘‘ एक दशक के बाद क्रेच और क्रचफील्ड़ (1948) ने लिखा ‘‘एक अभिवृत्ति को प्रेरक, भावनात्मक, अवधारणात्मक और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के एक टिकाऊ संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो व्यक्ति के विश्व के कुछ पहलुओं से सम्बंधित है।"
अभिवृत्ति को किन्हीं व्यक्तियों, वस्तुओं, घटनाओं, गतिविधियों, विचारों या आपके पर्यावरण में आने वाली किसी भी चीज के सकारात्मक या नकारात्मक मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, हालांकि इसकी संक्षिप्त परिभाषा के विषय में विवाद हैं। उदाहरणार्थ, ईगली और चौकेन अभिवृत्ति को निम्न प्रकार से परिभाषित करते हैं, ‘‘एक मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति जिसका किसी विशिष्ट अस्तित्व के साथ पसंदगी या नापसंदगी के अंश के साथ मूल्यांकन किया जाता है।‘‘ हालांकि कभी-कभी अभिवृत्ति को किसी वस्तु के प्रति असर के रूप में परिभाषित करना आम है, फिर भी असर (अर्थात, असतत भावना या समग्र उत्तेजना) आमतौर पर अभिवृत्ति से पसंदगी के पैमाने के रूप में अलग समझा जाता है।
अभिवृत्तियों की परिभाषा के भिन्न-भिन्न पहलुओं के कारण किसी अभिवृत्ति वस्तु का मूल्यांकन चरम नकारात्मक से चरम सकारात्मक के रूप में भिन्न होता है। उसी समय लोग किसी वस्तु के विषय में टकरावपूर्ण या द्वैधवृत्तिक हो सकते हैं। ऐसा भी संभव है कि वे एक ही वस्तु के बारे में अलग-अलग समय में सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते हैं। इसके कारण इस विषय पर भी काफी चर्चा हुई है कि क्या व्यक्ति किसी वस्तु के विषय में बहुविध अभिवृत्तियां रख सकते हैं या नहीं।
अभिवृत्तियां व्यक्त (अर्थात, जानबूझकर निर्मित की गईं) हैं या अव्यक्त (अर्थात, अवचेतन), यह भी काफी अनुसंधान का विषय रहा है। अव्यक्त अभिवृत्तियों पर किये गए अनुसंधान, जो आमतौर पर अमान्य होते हैं या जागरूकता से बाहर होते हैं, में परिष्कृत पद्धतियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें लोगों का उत्तेजनाओं का प्रतिक्रिया समय यह दर्शाने के लिए शामिल किया जाता है कि अव्यक्त अभिवृत्तियों (शायद उसी वस्तु के प्रति व्यक्त अभिवृत्तियों के साथ मिलकर) का अस्तित्व विद्यमान है। व्यक्त और अव्यक्त अभिवृत्तियां लोगों के व्यवहार को प्रभावित करती हुई प्रतीत होती हैं, हालांकि यह प्रभाव भिन्न-भिन्न हो सकता है। वे एक-दूसरे के साथ मजबूती से जुड़ी हुई नहीं होती, हालांकि कुछ मामलों में वे एक-दूसरे के साथ मजबूती से जुड़ी हुई भी हो सकती हैं। इन दोनों के बीच के संबंध को ठीक तरह से समझा ही नहीं जा सका है।
1.2 यूंग की परिभाषा (Jung’s definition)
मनोवैज्ञानिक प्रकारों के अध्याय 11 में यूंग की 57 परिभाषाओं में से अभिवृत्ति एक है। अभिवृत्ति की यूंग की परिभाषा निम्नानुसार है, ‘‘मानसिकता की किसी विशिष्ट प्रकार से क्रिया या प्रतिक्रिया करने की तैयारी।‘‘ अभिवृत्तियां आमतौर पर जोड़ियों में आती हैं, जिनमें से एक सचेतन होती है और दूसरी अवचेतन होती है। इसी समग्र परिभाषा के तहत यूंग विभिन्न अभिवृत्तियों को परिभाषित करते हैं।
मुख्य (परंतु अकेली नहीं) अभिवृत्ति द्वंद्व जो यूंग द्वारा परिभाषित किये गए हैं, निम्नानुसार हैंः
- चेतना और अचेतन ‘‘दो अभिवृत्तियों की उपस्थिति बहुत ही आम होती है, एक है चेतना और दूसरी अचेत। इसका अर्थ यह है सामग्री के बारे में चेतना का नक्षत्र अचेत से भिन्न होता है, एक ऐसा द्वंद्व जो विशेष रूप से विक्षिप्तता में देखा जा सकता है।‘‘
- बहिर्मुखता और अंतर्मुखता यह द्वंद्व यूंग के प्रकारों के सिद्धांत के लिए इतना प्राथमिक है कि उन्होंने इन्हें ‘‘अभिवृत्ति के प्रकार‘‘ की संज्ञा दी है।
- तार्किक और अतार्किक अभिवृत्तियां ‘‘मैं तर्क को एक अभिवृत्ति के रूप में मानता हूँ।‘‘
- तार्किक अभिवृत्ति मनोवैज्ञानिक कार्यों को विचारों और भावनाओं में विभाजित करती है, जिनकी प्रत्येक की अपनी अभिवृत्ति होती है।
- अतार्किक अभिवृत्ति मनोवैज्ञानिक कार्यों को संवेदन और अंर्तज्ञान में विभाजित करती है, जिनकी प्रत्येक की अपनी अभिवृत्ति होती है। ‘‘इस प्रकार एक विशिष्ट प्रकार की विचार, भावना, संवेदना और सहज ज्ञान युक्त अभिवृत्ति होती है।‘‘
- व्यक्तिगत और सामाजिक अभिवृत्तियां दूसरे में से अनेक ‘‘वाद‘‘ के प्रकार की होती हैं।
इसके अतिरिक्त यूंग अमूर्त अभिवृत्तियों की भी चर्चा करते हैं। अमूर्तता को रचनात्मकता के साथ विरोधाभासी किया गया है। ‘‘रचनात्मकता का अर्थ है विचारों और भावनाओं की एक विशिष्टता जो अमूर्तता की प्रतिपक्षी है।‘‘
2.0 अभिवृत्तियांः सामग्री और संरचना
अभिवृत्तियों का सबसे अधिक प्रभावी मॉड़ल बहु घटक मॉड़ल है। इस परिपेक्ष्य के अनुसार अभिवृत्तियां किसी वस्तु का संक्षिप्त मूल्यांकन हैं जिनमें संज्ञानात्मक, भावात्मक और व्यवहारात्मक घटक विद्यमान होते हैं। हम इनका विचार एक टैक्सी कैब के सदृश करते हैं, जो हमें वहीं ले जाएगी जहां हम जाना चाहते हैं। अनेक अनुसंधानकर्ताओं ने कैब घटकों का विचार किया है कि वे किस प्रकार अभिवृत्तियों की अभिव्यक्ति का निर्माण करते हैं।
अभिवृत्तियों के संज्ञानात्मक घटकों का संबंध उन विश्वासों, विचारों और विशेषताओं से है जो हम किसी वस्तु के साथ जोड़ते हैं। अनेक मामलों में किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति मूल रूप से किसी वस्तु की सकारात्मक या नकारात्मक विशेषताओं से संबंधित होती है। उदाहरणार्थ, जब व्यक्ति एक नई कार खरीदता है, तो उस समय विभिन्न वाहनों के सुरक्षा रिकॉर्ड़, गैस लाभ, और मरम्मत लागतों पर काफी विचार किया जाता है। कार के विषय में व्यक्ति की अभिवृत्ति विभिन्न कारों की सकारात्मक और नकारात्मक विशेषताओं के व्यवस्थित विचार के आधार पर ही निर्मित होती है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति की किसी विशिष्ट राजनेता के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति इस विश्वास पर आधारित हो सकती है कि वह राजनेता करिश्माई है, बुद्धिमान है, और उसकी आर्थिक नीतियां ऐसी हैं जो सामाजिक समानता को प्रोत्साहित करती हैं।
अभिवृत्तियों के भावात्मक घटक का संबंध उन भावनाओं से हैं जो किसी वस्तु के साथ जुड़ी हुई हैं। भावात्मक प्रतिक्रियाएं अभिवृत्तियों को अनेक प्रकार से प्रभावित करती हैं। उदाहरणार्थ, बहुत से लोग कहते हैं कि मकड़ियां उन्हें डराती हैं। यह नकारात्मक भावात्मक प्रतिक्रिया मकड़ियों के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति निर्मित कर सकती है।
अभिवृत्तियों का व्यवहारात्मक घटक किसी अभिवृत्ति वस्तु के संबंध में हुए पुराने व्यवहार या अनुभव से संबंधित हो सकता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी व्यक्ति ने पशुओं के विरुद्ध अनैतिक व्यवहार की एक याचिका पर हस्ताक्षर किये हैं, तो वह यह अंदाज लगा सकता है कि कारखाना खेती के विषय में उसकी अभिवृत्ति नकारात्मक ही होनी चाहिए। यह विचार कि लोग अपने पुराने कार्यों के आधार पर अपनी अभिवृत्ति को आधारित करेंगे, डेरिल बेम द्वारा सबसे अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है। बेम (1972) के आत्मसंकल्पना के सिद्धांत के अनुसार व्यक्तियों को हमेशा विभिन्न वस्तुओं के बारे में राय बनाने का मार्ग नहीं मिलता, और ऐसे समय वे उस व्यवहार के बारे में सोचते हैं जो उन्होंने पहले कभी उस अभिवृत्ति वस्तु के संबंध में किया है, और इसी विचार के आधार पर उस वस्तु के विषय में अपनी अभिवृत्ति आधारित करते हैं।
3.0 अभिवृत्ति का मापन
इन घटकों को मापने के लिए अभिवृत्ति अनुसंधानकर्ताओं ने अनेक तकनीकों का उपयोग किया है।
3.1 अर्थ-संबंधी उपाय (Semantic measures)
अभिवृत्ति घटकों के मापन के हम जिस पहले उपाय की चर्चा करना चाहते हैं वह है अभिवृत्ति घटकों का अर्थ संबंधी अंतर दृष्टिकोण। हमनें यह पहले ही जान लिया है कि अभिवृत्तियों के समग्र मापन के लिए अनुसंधानकर्ता आमतौर पर सकारात्मक-नकारात्मक और अच्छे-बुरे जैसे अर्थ संबंधी अंतर पैमानों का उपयोग करते हैं। इस रूपरेखा का उपयोग अभिवृत्ति के संज्ञानात्मक और भावात्मक घटकों के मापन के लिए भी किया जा सकता है। अक्सर अर्थ संबंधी अंतर पैमानों का उपयोग करने वाले अनुसंधानकर्ता संज्ञान और भाव के आकलन के लिए या तो ‘‘सामान्य अथवा व्यापक‘‘ अर्थ संबंधी अंतर आयाम विकसित कर लेते हैं जिनका उपयोग किसी अभिवृत्ति वस्तु की संज्ञानात्मक या भावात्मक जानकारी के आकलन के लिए किया जा सकता है, या वे संज्ञानात्मक और भावात्मक, दोनों प्रकार की प्रतिक्रियाओं के आकलन के लिए एक ही अर्थ संबंधी अंतर आयाम का उपयोग करते हैं (ऐसे समय वे अपने निर्देशों को इस प्रकार परिवर्तित कर देते हैं जिससे वे या तो संज्ञान या भाव पर प्रकाश डालते हैं)।
सामान्य अथवा व्यापक दृष्टिकोण के संबंध में क्रिटस, फॅब्रिगार और पेटी (1994) ने अभिवृत्तियों के संज्ञानात्मक और भावात्मक अर्थ संबंधी अंतर उपाय विकसित किये हैं। संज्ञानात्मक घटक के मापन में निम्न आयामों को शामिल किया गया है, उपयोगी-अनुपयोगी, बुद्धिमान-मूर्ख, लाभदायक-हानिकारक, मूल्यवान-बेकार, पूर्ण-अपूर्ण, पौष्टिक-अस्वास्थ्यकर, जबकि भावात्मक घटक में निम्न आयामों को सम्मिलित किया गया है प्रेम-घृणास्पद, शांत-प्रसन्न-उदास, खुश-नाराज, शांत-तनावपूर्ण, उत्तेजित-अनमना, शिथिलीकृत-नाराज, स्वीकृति-निराश, और आनंद-दुःख। इन उपायों का लाभ यह है कि ये विश्वसनीय और वैध हैं, और इनका उपयोग विभिन्न अभिवृत्ति वस्तुओं के संदर्भ में किया जा सकता है। उसी प्रकार दोनों घटकों के लिए शब्द जोड़ियां व्यापक मूल्यांकन किये जा सकने वाले अर्थ संबंधी आयामों (अच्छा-बुरा, पसंद-नापसंद) की तुलना में अधिक विशिष्ट हैं जिनका उपयोग समग्र अभिवृत्तियों के मापन के लिए किया जाता है।
जातिगत दृष्टिकोण के विपरीत ब्रेकलर और विग्गिंस (1989) ने किसी विशिष्ट वस्तु के संज्ञान और भाव के आकलन के लिए समान अर्थ संबंधी अंतर पैमाने का उपयोग किया है, परंतु उन्होंने पैमाने की रूपरेखा अलग प्रकार से बनाई है। उदाहरणार्थ, रक्त दान के प्रति संज्ञानात्मक और भावात्मक प्रतिक्रियाओं का आकलन करते हुए ब्रेकलर और विग्गिंस ने संज्ञान का मापन इस प्रकार किया कि उन्होंने प्रतिभागियों से इस पर प्रतिक्रिया देने को कहा कि शब्द ‘‘रक्तदान है‘‘, इसके लिए आयाम रखे गए अच्छा-बुरा, बुद्धिमान-मूर्ख, उपयोगी-अनुपयोगी, और महत्वपूर्ण-महत्वहीन। इसी वस्तु के प्रति भावात्मक प्रतिक्रियाओं का आकलन इस प्रकार किया गया कि प्रतिभागियों से निम्न पर प्रतिक्रिया देने को कहा गया ‘‘रक्तदान मुझे महसूस कराता है‘‘, इसके लिए भी वे ही अर्थ संबंधी अंतर पैमाने रखे गए।
अभिवृत्ति घटकों के मापन के अर्थ संबंधी अंतर दृष्टिकोणों के अनेक लाभ हैं। पहला, वे अनुप्रयोग की दृष्टि से आसान हैं और परिपूर्ण हैं। दूसरा, जब विभिन्न अभिवृत्ति वस्तुओं (जैसे क्रिटस और साथियों के तरीके में) के संबंध में जब समान आयामों का उपयोग किया जाता है तो उनका उपयोग विभिन्न अभिवृत्ति वस्तुओं पर मिलने वाली प्रतिक्रियाओं की तुलना के लिए भी किया जा सकता है। इतना कहने के बाद यह भी कहना पडे़गा कि इस प्रकार के मापन में कुछ समस्याएं भी हैं। सबसे महत्वपूर्ण, जो ध्यान पूर्वक पढ़ने वाले विद्यार्थी ने महसूस भी किया होगा, कि अर्थ संबंधी अंतर पैमाने केवल संज्ञानात्मक और भावात्मक घटकों का उल्लेख करते हैं। व्यवहार के बिखरे हुए स्वरुप ने अनुसंधानकर्ताओं के लिए इस घटक के वैध अर्थ संबंधी अंतर पैमानों के विचार को कठिन बना दिया है।
3.2 खुले उपाय (Open ended measures)
एक दूसरे प्रकार का उपाय सभी तीनों घटकों के मापन के लिए खुले प्रश्नों का उपयोग करता है। इस तकनीक में प्रतिभागियों को किसी अभिवृत्ति वस्तु के संबंध में उनके विचार, भावनाएं, और व्यवहारात्मक अनुभव लिखने के लिए कहा जाता है।
जबकि खुले उपायों के अनेक सकारात्मक पहलू हैं, फिर भी इस प्रकार के उपाय की अपनी कुछ कठिनाइयां भी हैं। उदाहरणार्थ, प्रतिभागियों के लिए किसी अभिवृत्ति वस्तु के विषय में विचारों, भावनाओं और पुराने अनुभवों को व्यक्त करना कठिन हो सकता है, इसका अर्थ यह होगा कि ऐसे एक या अधिक घटकों के लिए वे किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे। साथ ही नई उपायों के लिए प्रतिभागियों के पास अधिक समय और प्रयास होना आवश्यक है। यदि अनुसंधानकर्ताओं की रूचि अनेक अभिवृत्ति वस्तुओं के बारे में संज्ञानात्मक, भावात्मक प्रतिक्रियाओं और पिछले अनुभवों के मापन में है, तो शायद खुला दृष्टिकोण अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होगा। भावात्मक, संज्ञानात्मक और व्यवहारात्मक घटकों के अतिरिक्त अभिवृत्तियों में अन्य विशेषतायें और घटक भी होते हैं। अभिवृत्तियों की चार महत्वपूर्ण विशेषतायें हैंः संयुजता (सकारात्मकता या नकारात्मकता), चरमता, सरलता या जटिलता (बहुलता), और केंद्रीयता।
संयुजता (सकारात्मकता या नकारात्मकता) (Valence): किसी अभिवृत्ति की संयुजता हमें बताती है कि किसी अभिवृत्ति वस्तु के प्रति अभिवृत्ति सकारात्मक है या नकारात्मक है। मान लिया जाए कि एक अभिवृत्ति (माना कि परमाणु अनुसंधान के प्रति) को 5 बिंदुओं के पैमाने पर अभिव्यक्त करना है, जो हैं 1 (अत्यंत बुरा), 2 (बुरा), 3 (तटस्थ-ना अच्छा ना बुरा), 4 (अच्छा) और 5 (बहुत अच्छा) यदि कोई व्यक्ति परमाणु अनुसंधान के प्रति अपनी अभिवृत्ति 4 या 5 के रूप में व्यक्त करता है, तो यह स्पष्ट रूप से एक सकारात्मक अभिवृत्ति है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को परमाणु अनुसंधान पसंद है, और वह सोचता है कि यह कुछ अच्छी चीज है। दूसरी ओर, यदि उसकी अभिव्यक्ति 1 या 2 है, तो उसकी अभिवृत्ति नकारात्मक है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को परमाणु अनुसंधान पसंद नहीं है, और वह सोचता है कि यह बुरी चीज है। हम तटस्थ अभिवृत्तियों की भी अनुमति देते हैं। इसी उदाहरण में परमाणु अनुसंधान के प्रति तटस्थ अभिवृत्ति उसी पैमाने पर 3 होगी। अर्थात तटस्थ अभिवृत्ति की संयुजता न तो सकारात्मक होगी और न ही नकारात्मक होगी।
चरमता (Extremeness): किसी अभिवृत्ति की चरमता दर्शाती है कि एक अभिवृत्ति कितनी सकारात्मक या नकारात्मक है। ऊपर दिया गया परमाणु अनुसंधान का उदाहरण लेते हुए, 1 मूल्यांकन भी उतना ही चरम है जितना कि 5 मूल्यांकनः इनमें अंतर केवल इतना ही है कि ये दोनों विरोधी दिशाओं (संयुजताओं) में हैं। मूल्यांकन 2 और 4 अपेक्षाकृत कम चरम हैं और हाँ, के तटस्थ अभिवृत्ति चरमता की दृष्टि से सबसे कम है।
सरलता या जटिलता (बहुलता): इस विशेषता का संबंध इस बात से है कि समग्र अभिवृत्ति में कितनी अभिवृत्तियां हैं। किसी अभिवृत्ति का विचार इस रूप में करें कि यह अनेक अभिवृत्ति ‘‘सदस्यों‘‘ वाला एक परिवार है। स्वास्थ्य और विश्व शांति जैसे अनेक विषयों पर लोगों की एक अभिवृत्ति नहीं होती, बल्कि अनेक अभिवृत्तियां होती हैं।
एक अभिवृत्ति प्रणाली को तब ‘‘सरल‘‘ कहा जाता है, जब इसमें केवल एक या सीमित अभिवृत्तियां होती हैं, और इसे ‘‘जटिल‘‘ तब कहा जाता है जब यह अनेक अभिवृत्तियों से मिलकर बनी होती है। स्वास्थ्य या कल्याण से संबंधित अभिवृत्ति का विचार करें। इस अभिवृद्धि प्रणाली में अनेक ‘‘सदस्य‘‘ अभिवृत्तियां हो सकती हैं, जैसे किसी की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की संकल्पना, सुख और कल्याण के बारे में विचार, और ये मान्यताएं कि व्यक्ति स्वास्थ्य और सुख कैसे प्राप्त कर सकता है। इसके विपरीत, किसी व्यक्ति के विषय में आपकी मुख्य रूप से केवल एक ही अभिवृत्ति हो सकती है। एक अभिवृत्ति प्रणाली के अंदर की बहु सदस्यीय अभिवृत्तियों को ऊपर दिए गए घटकों के साथ विभ्रमित नहीं करना चाहिए। किसी अभिवृत्ति परिवार की प्रत्येक सदस्य अभिवृत्ति के भी ए-बी-और सी जैसे घटक होते हैं।
केंद्रीयता (Centrality): इसका संबंध अभिवृत्ति प्रणाली में किसी विशिष्ट अभिवृत्ति की भूमिका से है। अधिक केंद्रीयता वाली अभिवृत्ति अभिवृत्ति प्रणाली की अन्य अभिवृत्तियों को गैर केंद्रीयता वाली अभिवृत्ति की तुलना में अधिक प्रभावित करेगी। उदाहरणार्थ, विश्व शांति के प्रति अभिवृत्ति में उच्च सैन्य व्यय के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति केंद्रीय अभिवृत्ति हो सकती है, जो बहुलता अभिवृत्ति प्रणाली की अन्य सभी अभिवृत्तियों को प्रभावित करेगी।
अभिवृत्तियों का दो अन्य निकट संबंध वाली संकल्पनाओं से भेद करना होगा, जो हैं विश्वास या मान्यताएं और मूल्य। विश्वासों का संबंध अभिवृत्तियों के संज्ञानात्मक घटक के साथ होता है, और वे ही उस आधार का निर्माण करते हैं जिनपर अभिवृत्तियां टिकी हुई हैं, जैसे ईश्वर में विश्वास, या एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में लोकतंत्र में विश्वास। मूल्य वे अभिवृत्तियां या विश्वास होते हैं जिनमें ‘‘चाहिए‘‘ पहलू समाविष्ट होता है, जैसे नैतिकता या नैतिक मूल्य। मूल्यों का एक उदाहरण यह विचार है कि व्यक्ति को कठोर परिश्रम करना चाहिए, या व्यक्ति को सदा ईमानदार रहना चाहिए, क्योंकि ईमानदारी ही सर्वोत्तम नीति है। मूल्य तब निर्मित होते हैं जब अभिवृत्ति व्यक्ति के जीवन के प्रति दृष्टिकोण का अभिन्न अंग बन जाती है। परिणामस्वरूप मूल्यों में परिवर्तन करना असंभव जितना कठिन है।
4.0 अभिवृत्ति के कार्य
मानव अभिवृत्तियों के चार प्रमुख कार्यक्षेत्र निम्नानुसार हैंः
ज्ञानः अभिवृत्तियां जीवन को अर्थ (ज्ञान) प्रदान करती हैं। अभिवृत्तियों के ज्ञान कार्य का संबंध हमारी ऐसे विश्व की आवश्यकता से है जो सुसंगत और अपेक्षाकृत स्थिर है। यह हमें इसका अनुमान लगाने की अनुमति प्रदान करता है कि क्या होना संभव है, और इस प्रकार हमें के नियंत्रण की भवन प्रदान करता है। अभिवृत्तियां हमें हमारे अनुभवों को संगठित करने और उनकी रचना करने में सहायक हो सकती हैं। किसी व्यक्ति की अभिवृत्तियों के विषय में जानकारी हमें उसके व्यवहार का अनुमान करने में सहायक होती है। उदाहरणार्थ, यदि हम यह जानते हैं कि कोई व्यक्ति धार्मिक है, तो हम यह अनुमान कर सकते हैं कि वह मंदिर जायेगा।
स्व/अहंकार अभिव्यक्ति रूजिन अभिवृत्तियों की हम अभिव्यक्ति करते हैं
1. वे हमें यह बताने में सहायता प्रदान करती हैं कि हम कौन हैं, और
2. वे शायद हमें संतुष्ट प्रदान कर सकें क्योंकि हमने अपनी पहचान स्थापित कर ली है।
अभिवृत्तियों की आत्म अभिव्यक्ति गैर मौखिक भी हो सकती हैः बंपर स्टिकर, टोपी या टी-शर्ट के नारे के बारे में विचार करें। अतः हमारी अभिवृत्तियां हमारी पहचान का एक भाग हैं, और वे हमारी भावनाओं, विश्वासों और मूल्यों की अभिव्यक्ति के संबंध में हमें सचेत करती हैं।
अनुकूलक (Adaptive): यदि किसी व्यक्ति के पास सामाजिक दृष्टि से स्वीकार्य अभिवृत्तियां हैं, और वह उनकी अभिव्यक्ति करता है, तो अन्य लोग उन्हें स्वीकृति और सामाजिक मान्यता प्रदान करके सम्मानित करेंगे। उदाहरणार्थ, जब व्यक्ति प्रशासन या संगठन में अपने वरिष्ठों की चापलूसी करता है (और उसमें विश्वास करता है) या यदि वह सोचता है कि एक अभिवृत्ति लोकप्रिय नहीं है तो खामोश रहता है। साथ है अभिव्यक्ति भी गैर मौखिक हो सकती है (किसी राजनेता द्वारा किसी बच्चे का चुंबन लेने की कल्पना कीजिये)। अर्थात अभिवृत्ति का संबंध किसी सामाजिक समूह का भाग होने से है, और इसका अनुकूलक कार्य हमें उस सामाजिक समूह के भाग के रूप में बनाये रखने में सहायक होता है। लोग ऐसे व्यक्तियों की तलाश में रहते हैं, जो उनकी अभिवृत्तियों को साझा करते हैं, और जिन व्यक्तियों को वे पसंद करते हैं, उनके जैसी अभिवृत्तियां विकसित करने का प्रयास करते हैं।
अहंकार रक्षात्मक कार्यः अहंकार रक्षात्मक कार्य का संबंध उन अभिवृत्तियों को बनाये रखने से है जो हमारे आत्मसम्मान की रक्षा करती हैं, या जो उन कार्यों को न्यायोचित बनाती हैं जो हमें अपराधी होने की अनुभूति कराते हैं। उदाहरणार्थ खेल में पराजित होने के कारण स्वाभिमान को ठेस लगे हुए व्यक्ति शायद एक रक्षात्मक अभिवृत्ति विकसित कर लेंगे। ‘‘मुझे कोई चिंता नहीं है, वैसे भी में परीक्षाओं से तंग आ चुका हूँ।‘‘ इस कार्य के मनोचिकित्सकीय अधिस्वर हैं। उदाहरणार्थ, स्वयं के प्रति सकारात्मक अभिवृत्तियों का एक सुरक्षात्मक कार्य होता है (अर्थात, अहंकार प्रतिरोधी भूमिका) जो हमें हमारी आत्मछवि को बनाये रखने में सहायक होता है। कार्यात्मक दृष्टिकोण के पीछे का मूल विचार यह है कि अभिवृत्तियां व्यक्ति को उसकी अपनी इच्छाओं (अभिव्यक्ति, रक्षा) और बाह्य विश्व (अनुकूलक और ज्ञान) के बीच मध्यस्थता करने में सहायक होती हैं।
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