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नैतिक और राजनीतिक अभिवृत्तियां भाग - 2
4.0 राजनीतिक अभिवृत्तियां
राजनीतिक सम्भाषणों में कट्टरपंथी, उदारवादी, नरमपंथी, परंपरावादी और प्रतिक्रियावादी जैसे शब्दों का अक्सर उपयोग किया जाता है। कट्टरपंथ वे लोग होते हैं जो हमेशा अपने आप को जैसे थे स्थिति से असंतुष्ट मानते हैं। परिणामस्वरूप, वे विद्यमान व्यवस्था में तात्कालिक और गहन परिवर्तन चाहते हैं, और समाज के लिए किसी नई और अलग संकल्पना की पैरवी करते हैं। कट्टरपंथियों की तुलना में उदारवादियों में असंतोष की भावना कम होती है, परंतु फिर भी वे व्यवस्था में भारी परिवर्तन की चाह रखते हैं उदारवादी लोग लोगों की समानता, बुद्धि और योग्यता में विश्वास। हालांकि नरमपंथियों के लिए वर्तमान समाज में गलत बहुत ही कम है। अतः वे सद्य स्थिति में परिवर्तन के प्रति कुछ हद तक उदासीन होते हैं। वे अधिकांश मामलों में उदारवादियों से मतभिन्नता रखते हैं। परंपरावादी विश्व को सुधारने के साहसिक प्रयासों के प्रति संदिग्ध होते हैं। उन्हें इस बात का भय होता है कि अयोग्य हस्तक्षेप स्थिति को और कठिन बना देगा। प्रतिक्रियावादी वर्तमान संस्थाओं और आधुनिक मूल्यों को पूर्ण रूप से अस्वीकार करते हैं। ये समाज को अपने कदम पीछे खींचते हुए देखना चाहते हैं, और चाहते हैं कि समाज पिछले राजनीतिक मानदंड़ों और नीतियों का ही पालन करे।
4.1 कट्टरपंथ
कट्टरपंथ की नींव समाज और विद्यमान स्थिति के साथ चरम असंतोष में पड़ती है। कट्टरपंथ इसमें परिवर्तन के लिए चरम से कम कदमों के प्रति व्यग्र और अधीर होता है। अतः सभी कट्टरपंथी समाज में तत्काल और बुनियादी परिवर्तन चाहते हैं। कट्टरपंथ क्रन्तिकारी परिवर्तन के समर्थक होते हैं। दो कट्टरपंथी गुटों को एक दूसरे से स्पष्ट रूप से अलग करने वाला निकष है इस परिवर्तन को उनके द्वारा अपनाये गए मार्ग और साधन। कट्टरपंथियों के अंदर भी कुछ गुट परिवर्तन के लिए हिंसा को एक वैध हथियार मानते हैं, जबकि कुछ अन्य कट्टरपंथी गुट अपने साध्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं।
मोहनदास गांधी, डॉ. मार्टिन लूथर किंग कनिष्ठ, और श्रमिक नेता सीज़र चावेज कट्टरपंथ के भीतर अहिंसा के उल्लेखनीय उदाहरण हैं। इनमें से प्रत्येक नेता ने तत्काल और गहन परिवर्तन की मांग करने महान आंदोलनों का आयोजन किया, परन्तु प्रत्येक ने अपने सत्योपण को प्राप्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेने से इंकार किया। कट्टरवाद हमें यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि क्या हम सफल हुए हैं, या एक परिपूर्ण से कम विश्व को स्वीकार करने के लिए इसलिए बाध्य हो गए हैं कि यह आसान है। यह बाकी सभी को सुरक्षात्मक बना देता है, अतः गैर कट्टरपंथियों की ओर से इसपर अधिक तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है। विचारधारा और तरीकों के आधार पर भारत में वामपंथी उगवाद को हिंसक कट्टरवाद के रूप में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे नेताओं को भी हिंसक कट्टरपंथी कहा जा सकता है।
कट्टरपंथियों के विषय में अक्सर जो ड़र बना रहता है वह उनके द्वारा पेष की गई चुनौतियों से पर्याप्त रूप से निपटने के लिए आवश्यकता से अधिक होता है। इस प्रकार हालांकि उनकी संख्या और प्रभाव इस प्रकार की गंभीर कार्रवाई की मांग नहीं करते, फिर भी कट्टरपंथी आंदोलनों का निर्दयतापूर्वक दमन कर दिया जाता है। 1950 और 1960 के दशकों के दौरान अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन के नेताओं की आधिकारिक निगरानी और उत्पीड़न इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण होगा।
4.2 उदारवाद
उदारवाद कट्टरवाद के साथ एक समान विचार साझा करता है, क्योंकि उदारवाद में भी सद्य स्थिति के बारे में असंतोष है। हालांकि उदारवादियों का असंतोष कट्टरपंथियों के असंतोष की तुलना में काफी सौम्य होता है। कभी-कभी उदारवाद के विचार का वर्णन करने के लिए प्रगतिवाद शब्द का भी उपयोग किया जाता है। कट्टरपंथियों के विपरीत उदारवादी कानून की संकल्पना को मान्यता देते हैं, हालांकि वे हुच विशिष्ट परिवर्तन चाहते हैं। कानून का उल्लंघन करने के बजाय वे न्यायिक प्रक्रियाओं की सहायता से कानून में परिवर्तन करने को प्राथमिकता देते हैं। उदारवादी समाज के दोष देखने में बहुत कुशल होते हैं, और इसलिए व्यवस्था में सुधार के प्रति उत्सुक होते हैं, जिसके लिए वे सापेक्ष रूप से दूरगामी प्रगतिशील परिवर्तनों को प्राथमिकता देते हैं। असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद कांग्रेस के गैर परिवर्तनशील और परिवर्तन समर्थक नेता अलग हो गए थे। इसे अहिंसावादी कट्टरपंथ और उदारवाद के बीच के विघटन के रूप में देखा जा सकता है।
उदारवाद वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रबोधन और अंततः औद्योगिक क्रांति का एक प्रतिफल है। कोपरनिकस, गैलिलियो और न्यूटन जैसे जिज्ञासु व्यक्तियों की खोजों ने उनके प्रति और जीवन में उनके कार्यों के प्रति लोगों की अभ्वृत्तियों को क्रन्तिकारी बना दिया था। एक नया विचार उभरा कि यदि मानव तर्क की सहायता से भौतिक कठिनाइयां हल की जा सकती हैं, तो शायद सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के लिए भी वही किया जा सकता था। संपत्ति के संकेन्द्रण ने उन लोगों को विशाल शक्तियां प्रदान कर दी थीं जो उत्पादन, वितरण और विनिमय के साधनों को नियंत्रित करते थे, और वे सोचते थे कि जिन व्यक्तियों के पास आर्थिक शक्तियां हैं वे उनका उपयोग करेंगे, कुछ हद तक अपने हाथ में रहने वाली शक्तियों को बनाये रखने के लिए और उसमें वृद्धि करने के लिए, और इस प्रकार उन लोगों को एक हानि की स्थिति में रख देंगे जिनके पास आर्थिक शक्ति नहीं है। उदारवाद इस बात में विश्वास करता है कि आर्थिक शक्ति का संकेन्द्रण उतना ही दमनकारी है जितना राजनीतिक संकेन्द्रण समकालीन उदारवादियों का यह विश्वास था कि सरकार का उपयोग आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों द्वारा स्वयं को आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली लोगों से संरक्षण के लिए किया जा सकता है। वे अपने दृष्टिकोण में सामंतवादी होने का प्रयास करते हैं।
4.3 नरमवाद
नरमवादी बुनियादी रूप से समाज से संतुष्ट होते हैं, हालांकि वे हैं कि सुधार और संशोधन की दृष्टि से आवश्यकता वाले कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में सुधार की गुंजाईश है। हालांकि वे इस बात पर जोर देते हैं कि व्यवस्था में परिवर्तन धीमी गति से किये जाने चाहियें, और कोई भी परिवर्तन इतना चरम नहीं होना चाहिए कि वह समाज का नाश ही कर दे।
चूंकि नरमपंथी मुद्दों पर नरम रुख अपनाते हैं अतः यह अवधारणा बन गई है कि नरमपंथी होना समस्या से अलग होने का एक आसान रास्ता है। हालांकि यह अवधारणा भ्रामक है। किसी मुद्दे पर नरमपंथी होना, जो दूसरों की ओर से उच्च स्तर की भावनात्मक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करती हैं, काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उदाहरणार्थ, विषय पर नरम रुख अपनाना कि गर्भपात वैध होना चाहिए या नहीं, समस्या पैदा कर सकता है। अमेरिका में सकारात्मक कार्रवाई, मृत्युदंड, नारीवाद, और अफगानिस्तान का युद्ध कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनकी काफी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं, और ये समय के साथ और कठोर होती गई हैं। इन मुद्दों पर नरम रुख को कमजोर हृदयी, द्वैधवृत्तिक और अप्रतिबद्ध माना जा सकता है। भारत में निर्भया बलात्कार मुद्दे ने लोगों में उच्च भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का प्रदर्शन किया था। हाल का भारत-पाकिस्तान सीमा पर नियंत्रण रेखा का उल्लंघन भी एक ऐसा मुद्दा है जो लोगों की ओर से उच्च भावनात्मक प्रतिक्रियाएं उभारता है। इस प्रकार के मुद्दों पर नरम रुख अपनाना उपहास और जगहंसाई को आमंत्रण देता है।
जैसा कि अनुभवी फ्रेंच राजनीतिज्ञ जोर्गेस क्लेमेंको ने कहा है कि राजनीती ‘‘संभव की कला है‘‘ यराजनीति में आदर्शवादी आमतौर पर संभव नहीं होता।
4.4 परंपरावाद
परंपरावादी यथास्थिति के सबसे बडे़ समर्थक होते हैं, अतः वे इसमें परिवर्तन होता हुआ नहीं देखना चाहते। चीजें जैसी हैं उनमें ही संतुष्ट रहने के कारण ऐसा नहीं है कि परंपरावादी वर्तमान स्थिति से खुश हैं। हालांकि, परंपरावादी यथास्थिति का समर्थन इसलिए नहीं करते कि यह उन्हें पसंद है, बल्कि वे इसका समर्थन इसलिए करते हैं कि उनके विचार से वर्तमान में यही स्थिति प्राप्त करने की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।
परंपरावाद और उदारवाद में अंतर इस कारण नहीं है कि उदारतावाद एक बेहतर विश्व के सपने देखता है, जबकि परंपरावाद सोचता है कि यथास्थिति ही सबसे बोधगम्य अस्तित्व है। वास्तव में परंपरावादी भी एक ऐसे भविष्य की इच्छा कर सकते हैं, जो उदारवादियों के विश्व से जरा भी कम सुन्दर न हो - एक ऐसा भविष्य जो मानव संघर्ष और पीड़ा से मुक्त हो। इन दोनों में आवश्यक अंतर विचारधारा के इस विश्वास पर आधारित है कि आदर्श को खूब प्राप्त किया जा सकता है। परंपरावादियों में समाज की इस क्षमता के प्रति विश्वास की कमी होती है कि वह साहसिक कदमों के माध्यम से सुधारों को प्राप्त कर सकता है। अधिकांश परंपरावादी व्यवस्था में केवल अत्यंत धीमे, वृद्धिशील और सतही परिवर्तन का समर्थन करते हैं। उनमें से अधिक सतर्क अक्सर गौण प्रतीत होते हुए परिवर्तन का भी विरोध करते हैं। वे विद्यमान संस्थाओं में एक निहित मूल्य देखते हुए प्रतीत होते हैं, और उनके साथ छेड़छाड़ करना नहीं चाहते, और सोचते हैं कि ऐसा करने से उस मान्यता की गहरी क्षति होगी जिसे परंपरा ने सिद्ध किया है। इसके पीछे का मुख्य तर्क यह है कि परंपरावादी मानते हैं कि मानव तर्क इतना शक्तिशाली नहीं है कि केवल उसे समझ भी सके, समाज की समस्याओं को हल करने की बात तो छोड़ ही दीजिये क्योंकि मनुष्य एक जटिल व्यक्ति है जो नैतिक और अनैतिक, तार्किक और अतार्किक आवेगों से बना हुआ है। परम्परावादी समाज में कानून व्यवस्था के पैरोकार होते हैं। वे मानते हैं कि लोगों के मन में अपराध के बारे में भय निर्माण करने के लिए कठोर कानून आवश्यक हैं, जो उन्हें अप्रद करने से परावृत्त करेंगे। उदारवादियों के विपरीत परंपरावादी मानते हैं कि हालांकि मनुष्य जैविक दृष्टि से समान हैं, फिर भी लोगों के गुणों में विशाल अंतर हैं, जो जैविक समानताओं की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।
4.5 प्रतिक्रियावाद
प्रतिक्रियावाद प्रतिगामी परिवर्तन की पैरवी करता है; अर्थात प्रतिक्रियावादी ऐसी नीति चाहते हैं जो समाज को प्राचीन स्थिति, या यहां तक कि पुरानी मूल्य व्यवस्था में ले जा सके। उदाहरणार्थ, 1979 में ईरान के शाह के तख्तापलट के साथ हमने एक प्रतिक्रियावादी क्रांति का अनुभव किया था। अयातुल्ला खोमैनी की व्यवस्था को कुरान के प्राचीन नियमों के हिसाब से पूर्ण रूप से परिवर्तित करने की हिमायत स्पष्ट रूप से एक प्रतिक्रियादि कानूनी रुख कही जा सकती है। भूतपूर्व ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेज़ाद की नीतियां, 1990 के दशक में अफगानिस्तान में तालिबान का उदय और आईएसआईएस भी प्रतिक्रियावादी आंदोलन हैं।
सभी प्रतिक्रियावादी मानवी समानता के दावों को अस्वीकार करते हैं, और चाहते हैं कि संपत्ति और शक्ति का वितरण जाति, सामाजिक दर्जे, बुद्धि या किसी अन्य मापदंड़ के आधार पर होना चाहिए। परिभाषा के अनुसार प्रतिक्रियावादी सामाजिक प्रगति की समकालीन विचारकों की परिभाषा को अस्वीकार करते हैं और पूर्व में स्थापित मानदंड़ों और मूल्यों की ओर देखते हैं। नव नाजी, कू क्लक्स क्लान और ईसाई पहचान आंदोलन जैसे चरम ईसाई कट्टरपंथी पंथ प्रतिक्रियावाद के शक्तिशाली उदाहरण हैं।
5.0 उपसंहार
नैतिकता व्यक्तिगत होती है। व्यक्ति अपनी नैतिकता के अनुसार व्यवहार करता है, और अपने कार्यों के माध्यम से वह दूसरों को प्रभावित करता है, और इस प्रकार राजनीतिक है। राजनीति जनता का क्षेत्र है। लोगों की संयुक्त राय नीतियों का निर्धारण करती है, और इन नीतियों के माध्यम से व्यक्ति प्रभावित होता है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि नैतिकता व्यक्ति को राजनीति के साथ जोड़ती है। यह व्यक्ति को जनता की राय में योगदान देने के लिए प्रेरित करती है, ऐसी राय जो घूम फिर कर नीतियों के अम्ध्यम से पुनः व्यक्ति को ही प्रभावित करती है। और निश्चित तौर पर हाल के राजनीतिक मुद्दों की चर्चा में नैतिकता का वर्चस्व होता है।
पहले ‘‘नैतिक-दृष्टि से हल्के‘‘ क्षेत्र, जैसे विदेशी मामले, स्वास्थ्य सुविधाएँ, अर्थशास्त्र, और विशेष रूप से उच्च-स्तरीय कर कटौतियां, अब पारंपरिक नैतिक मुद्दों के साथ जुड़ रही हैं, जैसे गर्भपात, जैविक अनुसंधान, और समलैंगिकों के अधिकार। ये मुद्दे और अन्य मुद्दे, इन सभी को नैतिकता की दृष्टि से देखा जाता है, या कम से कम वे अंतर्निहित नैतिक अंतर्धाराओं को अपील तो करती ही हैं।
प्रश्न उठाये जाते हैं। क्या नैतिकता केंद्रित दृष्टिकोण कोई नई बात है? हाल के राजनीतिक वक्तव्यों को किस प्रकार की नैतिक भाषा संतृप्त कर रही है? नैतिकता केंद्रित चर्चाएं असंबद्ध प्रतीत होते क्षेत्रों पर ही क्यों हो रही हैं? क्या यह नैतिकता प्रेरित विनिमय राजनीति के स्वास्थ्यवर्धक है?
नैतिकता कोई नया राजनीतिक तत्व नहीं है, हालांकि नैतिकता का अर्थ पूर्ण रूप से व्यक्तिगत नैतिकता से सापेक्ष सामाजिक नैतिकता के बीच घूमता रहा है। हाल के राजनीतिक वक्तव्यों में प्रभावी मुहावरे प्रमुख राजनीतिक दलों के अनुरूप हैं, इनमें टकराव के अर्थ निहित होते हैं, जो शायद दो बेमेल परिवार मॉड़ल्स से उत्पन्न होते हैं, साथ ही इनमें वह सादगी होती है जो नैतिकता की चर्चाओं में विरोध को स्वीकार करती है, जो नैतिक विचारों में विरोध के रूप में फंस जाती है। नैतिकता अनेक मुद्दों की चर्चा में प्रमुख बन सकती है, क्योंकि हर कोई नैतिक तर्कों को समझ सकता है, और उन्हें स्वयं से जोड़ सकता है, जबकि सामाजिक-आर्थिक तर्कों को केवल विशेषज्ञ ही पढ़ सकते हैं।
नैतिकता व्यापक नैतिक विभाजन को जन्म देती है, जो सरकार की प्रभावशीलता को बाधित करती है, साथ ही यह अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए नैतिकता के वाद-विवाद के दुरूपयोग के लिए दुर्जन नेताओं को आमंत्रित करती है। दूसरी ओर, नैतिकता की चर्चा के अंतर्निहित सामान्य नैतिक सिद्धांत नैतिक विभाजन को कम करने के अवसर प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त नैतिकता के वर्चस्व वाली राजनीति का परिणाम प्रभावशाली सरकारों में हो सकता है, जो दूरगामी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं, साथ ही यह राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि भी कर सकती है और उसे अधिक संतुलित भी बना सकती है।
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