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मूल्य सृजन में परिवार, समाज व शिक्षा की भूमिका भाग - 2
3.0 मूल्यों के विकास में माता-पिता की भूमिका
माता-पिता या घर की बच्चे की शिक्षा में एक प्रमुख भूमिका होती है।
वयस्क व्यवहारः बच्चे अपने व्यवहार का अनुसरण अपने माता-पिता और घर के अन्य वयस्क व्यक्तियों के व्यवहार के अनुसार करते हैं, जिनके वे नियमित रूप से संपर्क में आते हैं। उदाहरणार्थ, ईमानदारी और झूठ बोलना बच्चों के ऐसे व्यवहार हैं जो आमतौर पर उनके माता-पिता के व्यवहार द्वारा प्रभावित होते हैं, यह कहना है एरिज़ोना राज्य विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के अध्यापकों नैंसी इसेनबर्ग और कार्लोस वालिएन्ते का। यह हम सामान्य अंतज्र्ञान से भी जानते हैं। यदि एक बच्चा हर समय अपने पिता को झूठ बोलते हुए देखता है, तो वह यह मानना शुरू कर देता है कि यही सामान्य व्यवहार है। यदि माता-पिता समानुभूति, सहानुभूति और साझा करने जैसे सकारात्मक सामाजिक व्यवहार और नैतिक निर्णय का पालन करते हैं तो बच्चे और किशोर भी अपने व्यवहार में इनका पालन करना प्रदर्शित करने की अधिक संभावना है। अन्यथा उनके लिए ऐसा करना बहुत ही कठिन होगा।
भाई बहनों का प्रभावः भाई बहनों का व्यवहार कैसा है, और माता-पिता की उनके व्यवहार के प्रति क्या प्रतिक्रिया होती है, इसका भी छोटे बच्चों के नैतिक विकास पर काफी प्रभाव होता है। एक बड़ा भाई या बहन अच्छे और उच्च नैतिक मानकों को बनाये रखता/रखती है और अपने छोटे भाइयों और बहनों को भी इसकी सलाह देता/देती है, तो वह उनके लिए अच्छे उदाहरण साबित हो सकते हैं। भाई-बहन एक दूसरे के साथ किस प्रकार संवाद करते हैं इसका भी बच्चों की नैतिकता और सकारात्मक सामाजिक व्यवहार पर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि वे उन्हें बता सकते हैं कि सामाजिक संबंधों में किस प्रकार से संवाद करना चाहिए। इस प्रकार का संवाद बच्चे को साझेदारी, समस्या सुलझाने की तकनीक, संवाद का तरीका, और विवाद निवारण का ऐसा कौशल सिखा सकता है जो दूसरों को हानि नहीं पहुंचाता हो।
4.0 नैतिक विकास में समाज की भूमिका
आधुनिक समाजों ने राजनीतिक क्षेत्रों को नैतिक क्षेत्रों से काफी हद तक अलग कर दिया है, और बाह्य रूप से नैतिकता मुक्त राजनीतिक व्यवहारवाद के क्षेत्र विकसित किये हैं। यह प्रचलित ‘‘राजनीतिक‘‘ और ‘‘नैतिक‘‘ प्रश्नों के बीच के अंतर से प्रतिबिंबित होता हैः व्यवहारवादी समझौता राजनीति में तो स्वीकार्य है परंतु नैतिकता में यह पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है। राजनीति के इन सापेक्ष नैतिकता मुक्त क्षेत्रों के निर्माण का एक प्रमुख तंत्र है मुद्दों को निरंतर चरों की दृष्टि से निर्मित करना, जिनमें पहला है धन। निरंतर चर समझौते को आमंत्रित करते हैं, और मुद्दों में से नैतिक डंक को निकाल देते हैं। 2 से 4 प्रतिशत वैकल्पिक कर वृद्धि प्रस्तावों के बीच नैतिक अंतर स्पष्ट नहीं है, और ऐसे समय एक समझौता स्वागतयोग्य हो जाता है। हालांकि सत्ता के खेल और सौदेबाजी के राजनीतिक क्षेत्रों में विशिष्ट नैतिकता का अभाव केवल व्यापक रूप से साझा और निर्विवाद पृष्ठभूमि के विश्वास के आधार पर ही संभव है कि इस प्रकार की राजनीति दिए गए मापदंडों के अंदर न्यायोचित है।
4.1 कोलबर्ग के नैतिकता के चरण
पूर्व परंपरागत काल (नैतिक चरण 1 और 2) प्रारंभिक शिशु काल में शुरू होता है, और यह प्रारंभिक शिक्षा तक जाता है। नैतिक चरण 1 और 2 में लोग दंड़ से बचने के लिए और पुरस्कार प्राप्ति की आशा से कार्यों को न्यायोचित ठहराने का प्रयास करते हैं। इन चरणों के दौरान लोग विशिष्ट व्यक्ति होते हैं (‘‘मैं स्वयं‘‘ या ‘‘मेरे माता-पिता‘‘), जो विशिष्ट चीजें करते हैं (‘‘यदि मैंने अपना वादा नहीं निभाया तो मेरे माता-पिता आगे से मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे‘‘)। हालांकि वयस्क व्यक्ति इस काल के नैतिक तर्क को अपर्याप्त मानते है।
परंपरागत काल (नैतिक चरण 3 और 4) की शुरुआत प्राथमिक शिक्षा के बाद के समय से होती है, और जनसंख्या के एक छोटे से भाग को छोड़ कर अन्य लोगों के संपूर्ण जीवन भर तक चलती है। यह काल वयस्कता के परंपरागत मापदंडों की निर्मिति करता है। इस काल के प्रत्येक चरण के तर्क में पर्याप्त तार्किकता होती है जिसकी विस्तृत अभिव्यक्ति कुछ वर्तमान वयस्क दर्शन शास्त्र में दिखाई देती है।
नैतिक चरण 3 पर, जिसे समूह चरण कहा जाता है, कार्य का औचित्य समूहों या व्यक्तियों की प्रतिष्ठा या चरित्र-चित्रण पर सिद्ध होता है। उदाहरणार्थ, समूह या व्यक्ति अच्छे या बुरे हो सकते हैं। कार्य का निर्णय आमतौर पर व्यक्तियों या समूहों की आधारभूत भावनाओं या उद्देश्यों पर आधारित होता है। भूमिका या व्यक्ति में भ्रम हो सकता है।
नैतिक चरण 3/4 पर, जिसे नौकरशाही चरण कहते हैं, किसी कार्य पर निष्पक्ष और अच्छे का ठप्पा लगाने के जो कारण दिए जाते हैं वे तार्किक या निराकार हो सकते हैं। नौकरशाही मापदंड़, कानून, नियम और विनियम व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं, और इन्हें ‘‘होना ही है‘‘ माना जाता है; इन्हें विशिष्ट स्थिति या व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार सटीक बैठने की दृष्टि से परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यहां व्यक्ति या भूमिका में कोई भ्रम नहीं होता, जैसा कि पिछले चरण में था।
नैतिक चरण 4 पर, संस्थागत चरण, किसी कार्य की नैतिकता के मूल्यांकन का पैमाना है किसी व्यवस्था या समाज का संरक्षण (या उसका नाश) मानक, कानून, नियम और विनियम अब एक तार्किक दृष्टि से सुसंगत व्यवस्था की निर्मिति करते हैं। सामाजिक कानून को व्यक्तियों या समूहों के अधिकारों या कर्तव्यों को विनियमित करने के सार्थक मार्ग माना जाता है। इस चरण पर लोग यह तर्क करते हैं कि एक विशिष्ट क्रिया व्यवस्था में उनकी व्यक्तिगत भूमिका और प्रतिष्ठा को किस प्रकार से प्रभावित करेगी, या यह व्यवस्था के कार्य करने की क्षमता को किस प्रकार से प्रभावित करेगी। अतः यहां सामाजिक और व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक और व्यक्तिगत कर्तव्यों के बीच तनाव उत्पन्न हो जाते हैं।
परंपरा पश्चात के काल (नैतिक चरण 5 और 6) की शुरुआत किशोरावस्था के कुछ समय बाद शुरू होती है; हालांकि पूर्णतः परंपरा पश्चात काल के विचार और क्रियाएँ प्रारंभिक वयस्कता के बाद ही प्रकट होते हैं (कोल्बी और कोहलबर्ग, 1987)। कुछ समकालीन दर्शन परंपरा पश्चात के तर्कों का उपयोग करते हैं। किसी भी ज्ञात समाज में, सदस्यों का एक छोटा भाग ही परंपरा पश्चात चरण की तार्किकता को प्राप्त कर पाता है।
नैतिक चरण 5 पर, जिसे सार्वभौमिकता चरण कहते हैं, सार्वभौम निराकार सिद्धांत नैतिक और राजनैतिक कार्यों का आधार बनते हैं। वे सार्वभौमिक मानवाधिकारों और प्रतिष्ठा की अवधारणाओं से उत्पन्न होते हैं। ये सिद्धांत आधुनिक समाज के अनेक सदस्य द्वारा व्यक्त किये गए हैं। उनकी सम्पूर्ण अभिव्यक्ति दार्शनिक, राजनीतिक और धार्मिक विचारकों की रचनाओं में मिलती है। उदाहरणार्थ, रॉल के न्याय के सिद्धांत में एक सिद्धांत दर्शाता है कि किसी कार्य द्वारा न्यूनतम सुविधाप्राप्त लोगों की स्थिति में और अधिक गिरावट नहीं होनी चाहिए।
नैतिक चरण 5 के सिद्धांत सार्वभौमिक होते हैं, और इनका अनुप्रयोग सामान्य होता है, चाहे फिर प्रभावित व्यक्ति कोई भी क्यों न हो। इस चरण पर समाज को पहले व्यक्तियों की एक निर्मिति के रूप में माना जाता है, और और बाद में इसे एक ऐसे वातावरण के रूप में माना जाता हैं जिसमें लोगों का विकास होता है। व्यक्तियों और समाज के बीच की परस्पर निर्भरता निर्भरता के रुख, और पिछले चरण के स्वतंत्रता रुख को समायोजित कर देती है। चरण 5 के सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत हितों की पूर्ति करते हैं, बल्कि ये समाज के हितों की भी पूर्ति करते हैं। एक विकासशील चरण की दृष्टि से ये सिद्धांत व्यक्तियों के अधिकारों और कर्तव्यों का समाज के अधिकारों और कर्तव्यों के साथ समन्वय करते हैं। निर्णय प्रक्रिया की पद्धतियाँ विशिष्ट प्रक्रियाएं होती हैं, जो लॉटरी से लेकर मतदान तक विस्तारित हो सकती हैं, जिनमें संयुक्त निर्णय प्रक्रिया को प्रमुखता प्रदान की जाती है। गैर परंपरागत निर्णयों को तब तक मंजूर किया जा सकता है जब तक वे अधिक उच्च सिद्धांतों के परिपेक्ष्य में उचित प्रतीत होते हैं।
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