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निगमित शासन भाग - 2
4.0 तंत्ररचना और नियंत्रण
एक निगमित शासन संरचना में नियंत्रण, नीतियों और दिशानिर्देशों का समावेश होता है जो संगठन को उसके उद्देश्यों की ओर ले जाने में सहायक होने के साथ-साथ हितधारकों की आवश्यकताओं को भी संतुष्ट करता है। आमतौर पर एक निगमित शासन संरचना विभिन्न तंत्रों का संचय होती है। इन तंत्रों और नियंत्रणों की रचना नैतिक आपदाओं और विपरीत चयन से उठने वाली अकुशलताओं को कम करने की दृष्टि से की जाती है।
4.1 आतंरिक तंत्ररचना (Internal mechanism)
किसी निगम के लिए सबसे महत्वपूर्ण नियंत्रणों के समुच्चय आतंरिक तंत्रों से प्राप्त होते हैं। ये नियंत्रण संगठन की प्रगति और गतिविधियों का अनुश्रवण करते हैं और जब व्यापार अपने उद्देश्यों से भटकता हुआ प्रतीत होता है तो सुधारात्मक कार्रवाई करते हैं। निगम के विशाल आतंरिक नियंत्रण के तंत्र को बनाये रखते हुए वे निगम के आतंरिक उद्देश्यों और उसके आतंरिक हितधारकों, जिनमें कर्मचारी, प्रबंधक और मालिक शामिल हैं, की सेवा करते हैं। इन उद्देश्यों में सुचारू परिचालन, स्पष्ट रूप से परिभाषित रिपोर्टिंग रेखाएं और निष्पादन मापन व्यवस्थाएं शामिल हैं। आतंरिक तंत्ररचना में व्यवस्थापन, स्वतंत्र आतंरिक लेखपरीक्षणों, जिम्मेदारी के स्तरों में निदेशक मंडल की संरचना, नियंत्रण और नीति विकास के पृथक्करण की निगरानी शामिल है।
4.2 बाह्य तंत्ररचना (External mechanism)
प्रबंधकों के व्यवहार की बाह्य निगरानी तब होती है जब एक स्वतंत्र तृतीय पक्ष (उदाहरणार्थ एक बाह्य लेखापरीक्षक) प्रबंधन द्वारा निवेशकों को प्रदान की गई जानकारी की सटीकता को सत्यापित करता है। बाह्य नियंत्रण तंत्रों को संगठन के बाहर के लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, और ये तंत्र नियामकों, सरकारों, श्रम संगठनों और वित्तीय संस्थाओं जैसे निकायों के उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इन उद्देश्यों में पर्याप्त ऋण प्रबंधन और कानूनी अनुपालन शामिल हैं। आमतौर पर बाह्य तंत्ररचना संगठनों पर बाह्य हितधारकों द्वारा श्रम संगठनों के अनुबंधों या नियामक दिशानिर्देशों के रूप में अधिरोपित की जाती है। उद्योग संघों जैसे बाह्य संगठन श्रेष्ठ पद्धतियों के लिए दिशानिर्देशों के सुझाव प्रदान कर सकते हैं, और व्यापारों को यह स्वतंत्रता होती है कि वे चाहें तो इन सुझावों का पालन कर सकते हैं, या उन्हें नजरअंदाज भी कर सकते हैं। आमतौर पर कंपनियां बाह्य निगमित शासन तंत्रों की स्थिति और अनुपालन की सूचना बाह्य हितधारकों को प्रदान करती हैं। शेयर विश्लेषक और ऋण धारक भी इस प्रकार की बाह्य निगरानी कर सकते हैं। एक आदर्श निगरानी और नियंत्रण व्यवस्था को अभिप्रेरण और क्षमता, दोनों को विनियमित करना चाहिए, साथ ही निगम के उद्देश्यों और लक्ष्यों की दिशा में प्रोत्साहन संरेखण भी प्रदान करना चाहिए। यह सावधानी रखनी चाहिए कि प्रोत्साहन इतने मजबूत नहीं होने चाहिये कि जिनके कारण कुछ व्यक्ति नैतिक व्यवहार की लक्ष्मण रेखा को पार करने के लिए प्रेरित हो जाएँ, जैसे कंपनी के शेयरों के मूल्य बढ़ाने के लिए राजस्व और लाभ के आंकड़ों में हेराफेरी करना।
4.3 वित्तीय प्रतिवेदन और स्वतंत्र लेखा परीक्षण (Financial reporting and the independent auditor)
निगमों के वित्तीय विवरण का प्रतिवेदन मुख्य रूप से निदेशक मंडल की जिम्मेदारी है। इस प्रक्रिया में मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मुख्य वित्त अधिकारी महत्वपूर्ण भागीदार हैं और अधिकांश निदेशक मंडल सत्यनिष्ठा और लेखाकर्म जानकारी की आपूर्ति की दृष्टि से इनपर अत्यधिक विश्वास करते हैं। वे आतंरिक लेखाकर्म व्यवस्था की देखरेख करते हैं और निगम के लेखपालों और आतंरिक लेखपरीक्षकों पर निर्भर रहते हैं।
निगम के वित्तीय विवरणों का स्वतंत्र बाह्य लेखापरीक्षण समग्र निगमित शासन संरचना का एक भाग है। कंपनी के वित्तीय विवरण का लेखापरीक्षण एक ही समय आतंरिक और बाह्य हितधारकों के लिए कार्य करता है। अंकेक्षित वित्तीय विवरण और कंपनी के लेखापरीक्षक का प्रतिवेदन निवेशकों, कर्मचारियों, अंश भागधारकों और नियामकों को निगम के वित्तीय निष्पादन को निर्धारित करने में सहायता प्रदान करता है। यह प्रयास संगठन के आतंरिक कार्य तंत्रों और भविष्य के दृष्टिकोण का एक समग्र किंतु सीमित अवलोकन प्रदान करता है।
अंतर्राष्ट्रीय लेखाकरण मानकों और अमेरिकी जीएएपी के तहत वर्तमान लेखांकन नियम विभिन्न वित्तीय प्रतिवेदन घटकों की मान्यता के लिए मापन और मापदंड की पद्धतियाँ निर्धारित करने में कुछ विकल्प प्रदान करते हैं। आभासी निष्पादन को सुधारने में इस विकल्प का संभाव्य प्रयोग, जैसा कि एनरॉन मामले से स्पष्ट है, उपयोगकर्ताओं के लिए जानकारी की जोखिम को बढ़ा देता है। वित्तीय प्रतिवेदन धोखाधडी, जिसमें गैर प्रकारीकरण और जानबूझ कर मूल्यों की गलत जानकारी प्रदान करना शामिल है, भी उपयोगकर्ताओं की जोखिम में वृद्धि करती है। इस जोखिम को कम करने के लिए और प्रतिवेदनों की कथित सत्यनिष्ठा में वृद्धि करने के लिए निगम के वित्तीय प्रतिवेदनों का स्वतंत्र बाह्य लेखपरीक्षकों द्वारा लेखापरीक्षण अनिवार्य है, जो एक प्रतिवेदन जारी करता है जो कंपनी के वित्तीय विवरण के साथ संलग्न किया जाता है।
चिंता का एक क्षेत्र तब निर्मित हो जाता है जब लेखापरीक्षण फर्म एक ही समय पर स्वतंत्र बाह्य लेखापरीक्षक के रूप में और जिस कंपनी का वे लेखापरीक्षण कर रहे हैं उसी कंपनी के प्रबंधन के लिए वित्तीय सलाहकार के रूप में भी कार्य करती है। इसका ख्परिणाम हितों के टकराव में होता है जो प्रबंधन को खुश करने के ग्राहक के दबाव के कारण वित्तीय प्रतिवेदनों की सत्यनिष्ठा को संदिग्ध बना देते हैं। निगमित ग्राहक के प्रबंधन सलाहकार सेवाओं को शुरू करने और समाप्त करने के अधिकार, और अधिक बुनियादी रूप से लेखांकन फर्मों के चयन या बर्खास्तगी के अधिकार स्वतंत्र लेखापरीक्षक की मूल अवधारणा के विरोधाभासी है। अमेरिका में सर्बनेस ऑक्सले अधिनियम के रूप में अधिनियमित किये गए परिवर्तन (असंख्य निगम घोटालों के परिणामस्वरूप, जिनकी समाप्ति एनरॉन घोटाले के साथ हुई) लेखापरीक्षण फर्मों को एकसाथ लेखापरीक्षण और प्रबंधन सलाहकार सेवाएं प्रदान करने से प्रतिबंधित करते हैं। भारत में भी मानक सूचीकरण समझौते के अनुच्छेद 49 के तहत इसी प्रकार के प्रावधान मौजूद हैं।
5.0 निगमित शासन के प्रमुख मुद्दे
निगमित शासन प्रतिवेदनों के प्रमुख मुद्दों में निदेशक मंडलों की भूमिका, वित्तीय प्रतिवेदनों और लेखपरीक्षणों की गुणवत्ता, निदेशकों के वेतन, जोखिम प्रबंधन और निगमित सामाजिक जिम्मेदारी को शामिल किया गया है। उपरोक्त कथन को स्पष्ट करने के लिए मुझे इन मुद्दों को बाद के लेख में विस्तार से बताने की आवश्यकता है, परंतु अभी हम निगमित शासन द्वारा प्रभावित प्रमुख क्षेत्रों का परीक्षण करते हैं।
5.1 निदेशकों के कर्तव्य
निगमित शासन प्रतिवेदनों का लक्ष्य निदेशकों के कर्तव्यों की निर्मिति पर है जैसा कि इन्हें निदेशकों के वैधानिक और मामले कानून कर्तव्यों के रूप में परिभाषित किया गया है। इनमें कंपनी के सर्वोच्च हित में कार्य करने के वैश्वासिक कर्तव्य, विशिष्ट प्रयोजन के लिए उनके अधिकारों का उपयोग करना, हितों के बचना और सावधानीपूर्वक कर्तव्य का पालन करना शामिल है।
5.2 निदेशक मंडल की रचना और संतुलन
अनेक निगमित शासन घोटालों की विशेषता रही है एक वरिष्ठ कार्यकारी का निदेशक मंडल पर वर्चस्व या एक छोटा गुप्त सलाहकार समूह, जिसमें अन्य निदेशकों की भूमिका एक खिलौने रोबोट से अधिक नहीं है। यह भी संभव है कि एक अकेला व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हितों के लिए निदेशक मंडल के निद्रेशों की अनदेखी करे। यू के गिनेस मामले पर प्रतिवेदन बताता है कि अर्नेस्ट सॉन्डर्स के मुख्य कार्यकारी ने अन्य निदेशकों की सहमति के बिना स्वयं को 3 मिलियन पौंड के पुरस्कार का भुगतान किया था।
ऐसे मामले में जहां संगठन पर किसी अकेले व्यक्ति का वर्चस्व नहीं है, वहां निदेशक मंडल के गठन में अन्य समस्याएं हो सकती हैं। हो सकता है कि संगठन का संपूर्ण कार्य मुख्य कार्यकारी अधिकारी या मुख्य वित्तीय अधिकारी के इर्द-गिर्द रहने वाले अल्पसंख्य समूह द्वारा किया जा रहा हो, और नियुक्तियां और भर्तियां एक औचारिक व्यवस्था के बजाय व्यक्तिगत सिफारिशों के आधार पर की जा रही हों। अतः एक साफ सुथरा और सुचारू व्यापार चलाने के लिए निदेशक मंडल को संगठन की स्थिति से संबंधित अनेक विशेषज्ञताओं से प्रतिभा, कौशल और योग्यता की दृष्टि से, साथ ही आयु की दृष्टि से भी (जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वरिष्ठ निदेशक उत्तराधिकार के नियोजन में सहायता की दृष्टि से नए सदस्यों को ला रहे हैं)।
5.3 निदेशकों के वेतन और पुरस्कार
चूंकि निदेशकों को अत्यधिक अधिलाभ और वेतन प्रदान किये जाते हैं, इसे भी अनेक वर्षों से एक महत्वपूर्ण निगमित दुरूपयोग के रूप में देखा जाता है। हालांकि यह अपरिहार्य है कि निगमित शासन संहिताओं ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को लक्षित किया है।
5.4 वित्तीय प्रतिवेदन और बाह्य लेखपरीक्षकों की विश्वसनीयता
प्रबंधन की जवाबदेही को सुनिश्चित करने की उनकी मुख्य चिंता की दृष्टि से निवेशकों द्वारा वित्तीय प्रतिवेदन और पेखापरीक्षण को निगमित शासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि इन विषयों को लेकर काफी बहस हुई है और वे गंभीर मुकदमेबाजी के भी केंद्र में रहे हैं। निगमित शासन की बहस का विचार करते समय केवल प्रतिवेदन और लेखांकन के विषयों पर ही बहस करना अपर्याप्त है, क्योंकि तुलनपत्र के बाहर वित्तपोषण जैसी पद्धतियों पर अधिक विनियमन ने अधिक पारदर्शिता को बढ़ावा दिया है और ऐसे विनियमों ने निवेशकों की जोखिम को भी कम किया है।
शायद बाह्य लेखपरीक्षकों द्वारा वरिष्ठ प्रबंधन से आवश्यक प्रश्न नहीं पूछे जाते होंगे क्योंकि लेखपरीक्षकों को अपनी लेखापरीक्षण नियुक्ति रद्द होने का खतरा हो सकता है। उसी प्रकार आतंरिक लेखापरीक्षक भी वरिष्ठ सदस्यों से कोई प्रतिकूल प्रश्न नहीं पूछ सकते क्योंकि उनके रोजगार के मामले मुख्य वित्तीय अधिकारी द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। परंतु आमतौर पर बाह्य लेखापरीक्षक ही निगमों के पतन का कारण बनते हैं, उदाहरणार्थ, बार्लो क्लोव्स के मामले में जहां लेखापरीक्षण का ध्यान ठीक तरह से केंद्रित और नियोजित नहीं था और यह ग्राहकों से लिए गए पैसे का अवैध उपयोग निर्धारित नहीं कर पाया।
5.5 जोखिम प्रबंधन और आतंरिक नियंत्रण के लिए निदेशक मंडल की जिम्मेदारी
यदि संगठन की गतिविधियों पर व्यवस्थित रूप से ध्यान देने के लिए निदेशक मंडल नियमित बैठकें आयोजित नहीं करता तो यह दर्शाता है कि निदेशक मंडल अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर रहा है। परंतु ऐसी स्थिति तब भी हो सकती है जब निदेशक मंडल को संगठन की व्यापारिक गतिविधियों के विषय में संपूर्ण जानकारी प्रदान ही नहीं की जाती। यह संपूर्ण अव्यवस्था एक खराब व्यवस्था की ओर इशारा करती है, जो शायद व्यापार से संबंधित जोखिम को मापने और उसकी सूचना प्रदान करने में असमर्थ हो।
5.6 अंश भागधारकों के अधिकार एवं जिम्मेदारियां
अंश भागधारकों की भूमिका और उनके अधिकार विशेष महत्त्व के विषय हैं। उन्हें उन सभी बातों की सूचना दी जानी चाहिए जो उनकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही जानकारी उनके निवेश की मात्रा को प्रभावित कर सकती है। संगठन के शासन को प्रभावित करने वाली नीतियों पर उन्हें मतदान करने का अधिकार भी प्रदान किया जाना चाहिए।
5.7 निगमित सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) और व्यापारिक नैतिकता
व्यापारों और हितधारकों के लिए परस्पर निर्णय और जिम्मेदारी की भावना के अभाव ने अपरिहार्य रूप से व्यापारिक नैतिकता और निगमित सामाजिक जिम्मेदारी को निगमित शासन की बहसों में प्रमुख और बड़ा स्थान प्रदान किया है।
6.0 भारत में निगमित शासन की आवश्यकता
1991 से भारत आर्थिक नीतियों की संपूर्ण रूप से उदारवादी नीति पर चलने लगा है। इसके कारण तेज गति से संवृद्धि हुई और अस्पष्ट और अपारदर्शी नीति निर्माण या अनुचित नीति क्रियान्वयन के कारण देश में अनेक घोटाले हुए। जैसे ही भ्रष्टाचारी घोटालों की एक श्रृंखला ने विभिन्न संस्थाओं को हिलाकर रख दिया, वैसे ही लोगों का राजनीतिक और व्यापारी संस्थाओं पर से विश्वास कम होना शुरू हो गया। विश्वास का संकट नियामक अभिकरणों के लिए एक दुर्जेय चुनौती प्रतीत हो सकता है, लेकिन जो इस स्थिति को लेकर समझदार हैं उनके लिए यह सुधारों की दृष्टि से एक अवसर के रूप में भी परिवर्तित हो सकता है।
भारतीय शेयर बाजार के प्रहरी भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा सूचीबद्ध कंपनियों के निगमित शासन मानकों में सुधार के लिए हाल में उठाये कदमों को इसीलिए सुधार की दिशा में उठाये गए एक स्वागतयोग्य कदम के रूप में देखना होगा। फिर भी अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। हाल में संशोधित किये गए कंपनी कानून के बाद, जो निगमित शासन के मुद्दों को सुर्खियों में लाया है, सेबी के सबसे ताजा निर्देश भारत में निगमित शासन के महत्त्व को बढ़ा देंगे, यदि नियामक, शेयर बाजारों को साथ लेकर अपने कठोर वचनों का पालन करे और दोषी कंपनियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करे।
इस बार के चिन्ह अधिक आशादायक दिखाई दे रहे हैं। अब अधिक कंपनियां निधियों के लिए विदेशी शेयर बाजारों की ओर मुड रही हैं और उनके अधिक उच्च शासन मानकों का लाभ उठाने का प्रबंध कर रही हैं। भारत में सक्रिय अंश भागधारकों का एक छोटा परंतु बढ़ता हुआ गुट उभर कर आया है जो अधिक निगमित पारदर्शिता की लड़ाई में और अधिक योगदान प्रदान करेगा। यदि हाल के कंपनियों के कानून के प्रावधानों को गंभीरता से लिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि कंपनी मामलों का मंत्रालय निगमित शासन की दिशा में अब काफी आगे बढ़ा है।
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