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निगमित शासन भाग - 1
1.0 प्रस्तावना
एक अवधारणा के रूप में निगमित शासन (Corporate Governance) उस व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करता है जिसके द्वारा निगमों को निर्देशित और नियंत्रित किया जाता है, और यह विभिन्न हितधारकों के बीच अधिकारों और जिम्मेदारियों के वितरण का निर्धारण करती है। यह वह संरचना प्रदान करती है जिसके माध्यम से निगम सामाजिक परिपेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अपने उद्देश्यों को निर्धारित करते हैं और उनकी प्राप्ति के प्रयास करते हैं।
निगमित अमेरिका में हुए विभिन्न घोटालों के परिणामस्वरूप आधुनिक निगमों में निगमित शासन की पद्धतियों के बारे में, विशेष रूप से जवाबदेही के संबंध में पुनः एक रूचि निर्माण हुई। विभिन्न प्रकार के निगम घोटालों ने निगमित शासन के विनियमन में जनता और राजनीतिक रूचि को बनाये रखा है। अमेरिका के एनरॉन कॉर्पोरेशन और एम.आई.सी.इंक. (पूर्व में जिसे वर्ल्ड़कॉम कहा जाता था) के पतन के परिणामस्वरूप संघीय सरकार ने 2002 में सार्बेन्स्-ऑक्सले अधिनियम पारित किया जिसका उद्देश्य था निगमित शासन में जनता के विश्वास को पुनः स्थापित करना। ऑस्ट्रेलिया में हुई तुलनीय विफलताओं का संबंध सीएलईआरपी 9 सुधारों के पारित होने से जोड़ा जाता है। अन्य देशों में हुई इसी प्रकार की निगमित विफलताओं ने विनियामक रूचि को उत्प्रेरित किया।
2.0 निगमित शासन के सिद्धांत
निगमित शासन के सिद्धांतों को पहली बार कैडबरी रिपोर्ट (यू.के. 1992), निगमित शासन सिद्धांतों (ओईसीडी, 1998 और 2004), और 2002 के सार्बेन्स्-ऑक्सले अधिनियम (अमेरिका, 2002) में उठाया गया था। कैडबरी और ओईसीडी रिपोर्ट्स उन सामान्य सिद्धांतों को प्रदर्शित करती हैं जिनके इर्दगिर्द उचित शासन के लिए व्यवसायों से परिचालित होने की उम्मीद की जाती है। सार्बेन्स्-ऑक्सले अधिनियम, जिसे अनौपचारिक रूप से सर्बोक्स या सॉक्स के रूप संदर्भित किया जाता है, अमेरिका की संघीय सरकार द्वारा कैडबरी और ओईसीडी रिपोर्ट्स में सिफारिश किये गए अनेक सिद्धांतों को कानूनी रूप प्रदान करने का एक प्रयास है। स्थापित किये गए कुछ सिद्धांत निम्नानुसार हैंः
- अंश भागधारकों के अधिकार और उनके साथ किया जाने वाला समान व्यवहारः संगठनों को अंश भागधारकों (shareholders) के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, और अंश भागधारकों को उन अधिकारों का उपयोग करने में सहायता प्रदान करनी चाहिए। वे अंश भागधारकों को उनके अधिकारों का उपयोग करने में सूचनाओं के खुले और प्रभावी संचार के माध्यम से और अंश भागधारकों को सामान्य सभाओं में सहभागी होने के लिए प्रोत्साहित करके सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- अन्य हितधारकों के हितः संगठनों को यह मान्य करना चाहिए कि उनके गैर-अंश भागधारक हितधारकों के प्रति कानूनी, संविदात्मक, (contractual) सामाजिक और बाज़ार-जनित दायित्व हैं, जिनमें कर्मचारी, निवेशक, लेनदार, आपूर्तिकर्ता, समुदाय, ग्राहक और नीति-निर्माता शामिल हैं।
- निदेशक मंड़ल की भूमिका और ज़िम्मेदारियांः निदेशक मंडल के पास व्यवस्थापन के निष्पादन की समीक्षा करने और उसे चुनौती देने की दृष्टि से पर्याप्त प्रासंगिक कौशल और समझ होना आवश्यक है। निदेशक मंडल का आकार उचित होना चाहिए और उसके पास उचित स्तर की स्वतंत्रता और प्रतिबद्धता का होना भी आवश्यक है।
- सत्यनिष्ठता और नैतिक व्यवहारः निगमित अधिकारियों और निदेशक मंडल के सदस्यों का चयन करते समय सत्यनिष्ठा मूलभूत अनिवार्यता होनी चाहिए। संगठनों को उनके निदेशक मंडल के सदस्यों और कार्यकारियों के लिए एक नैतिक आचरण की संहिता विकसित करनी चाहिए, साथ ही उन्हें नैतिक और जिम्मेदार निर्णय प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- प्रकटीकरण और पारदर्शिता (Disclosure and transparency) : संगठनों को निदेशक मंडल और व्यवस्थापन की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को जनता के समक्ष खुला रखना चाहिए और उन्हें इनके प्रति जनता को खुला स्पष्टीकरण प्रदान करना चाहिए ताकि हितधारकों को जवाबदेही का स्तर प्रदान किया जा सके। साथ ही उन्हें ऐसी प्रक्रियाएं क्रियान्वित करनी चाहियें ताकि कंपनी की वित्तीय सूचनाओं का स्वतंत्र मूल्यांकन और उनकी सत्यनिष्ठा की सुरक्षा की जा सके। संगठन के सामग्री मामलों (material matters) संबंधी प्रकटीकरण समय से और संतुलित होने चाहिए ताकि सभी निवेशकों की स्पष्ट, और वास्तविक जानकारी तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
संगठनों को विशिष्ट क्षेत्राधिकार के कानूनों और विनियमों के अनुसार न्यायिक व्यक्तियों (legal persons) का दर्जा प्रदान किया जाता है। विभिन्न देशों के बीच इनमें विभिन्न प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं, परंतु एक निगम का न्यायिक व्यक्ति का दर्जा सभी क्षेत्राधिकारों की दृष्टि से मूलभूत होता है, और इसे कानून द्वारा अंतर्निहित किया जाता है। यह उस निकाय को किसी भी विशिष्ट वास्तविक व्यक्ति का संदर्भ दिए बिना अपने अधिकार क्षेत्र में संपत्ति को बनाये रखने में सहायता प्रदान करता है। साथ ही यह उस अनवरत अस्तित्व में भी परिणामित होती है जो आधुनिक निगम की एक विशेषता है। कानून द्वारा निगमित अस्तित्व प्रदान करना सामान्य प्रयोजन कानून (जो सामान्यतः होता है) से निर्मित हो सकता है या एक विशिष्ट निगम निर्माण करने वाले कानून से उभर सकता है, जो 19 वीं सदी से पहले इकलौता निगम निर्मिति का प्रकार था। हालांकि निगम और व्यवस्थापक के इस भेद का अक्सर दुरूपयोग हुआ है, जहां व्यवस्थापक आर्थिक रूप से संपन्न हो जाते हैं जबकि निगम गरीब बने रहते हैं, जो मंदी के कठोर झटकों से उबर पाने में असमर्थ होते हैं।
3.0 निगमित शासन के लिए कानून
3.1 कैडबरी समिति की सिफारिशें
निगमित शासन समिति का गठन वित्तीय प्रतिवेदन परिषद, लंदन स्टॉक एक्सचेंज और लेखाकर्म व्यवसाय द्वारा मई 1991 में वित्तीय प्रतिवेदन और जवाबदेही के मानकों के संबंध में चिंताओं के प्रतिक्रियास्वरूप किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था निगमित शासन के वित्तीय पहलुओं को संबोधित करना। इसके अन्य उद्देश्यों में निम्न उद्देश्य शामिल हैंः
- कंपनी के प्रतिवेदनों के उपयोगकर्ताओं द्वारा जिस प्रकार की जानकारी की मांग की जाती है और उससे उन्हें जो अपेक्षाएं होती हैं उस संदर्भ में वित्तीय प्रतिवेदन और लेखा परीक्षकों की सुरक्षा उपाय प्रदान करने की क्षमता के विषय में विश्वास के न्यून स्तर को ऊपर उठाना;
- निदेशकों, अंश भागधारकों और लेखापरीक्षकों को और अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाकर उनके अधिकारों और भूमिकाओं की, और संरचना की समीक्षा करना;
- लेखाकर्म व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करना और जहां आवश्यक हो वहां उचित सिफारिशें करना;
- निगमित शासन के मानकों को उच्च स्तर पर बनाये रखना; इत्यादि। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए समिति ने अपना अंतिम प्रतिवेदन 1 दिसंबर 1992 को प्रकाशित किया।
इस समिति की अध्यक्षता सर एड्रियन कैडबरी द्वारा की गई थी और इसे निगमित शासन के वित्तीय प्रतिवेदन और जवाबदेही से संबंधित पहलुओं पर विचार करना था, और उनकी समीक्षा करनी थी। अंतिम प्रतिवेदन ‘‘निगमित शासन के वित्तीय पहलू’’ (जिसे आमतौर पर कैडबरी प्रतिवेदन कहा जाता है) का प्रकाशन दिसंबर 1992 में किया गया था और इसमें निगमित शासन के स्तर को ऊपर उठाने की दृष्टि से विभिन्न सिफारिशें की गई थीं।
3.2 2002 का सर्बनेस ऑक्सले अधिनियम (अमेरिका)
2002 का सर्बनेस ऑक्सले अधिनियम (जिसे अक्सर संक्षेप में सॉक्स कहा जाता है) को उच्च दर्जे के एनरॉन और वर्लडकॉम वित्तीय घोटालों के प्रतिक्रियास्वरूप उद्यम में अंश भागधारकों और सामान्य जनता को लेखा त्रुटियों और धोखाधडीपूर्ण पद्धतियों से संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से एक कानून के रूप में अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम को प्रतिभूति एवं विनियम आयोग द्वारा प्रशासित किया जाता है, जो अनुपालन के लिए समयसीमा निर्धारित करता है, साथ ही अनिवार्यताओं पर नियमों को प्रकाशित करता है। सर्बनेस ऑक्सले व्यापार पद्धतियों का समुच्चय नहीं है, और न ही यह इस बात को निर्धारित करता है कि व्यापारों को अपने दस्तावेज किस प्रकार रखने चाहियें; बल्कि यह उन दस्तावेजों को परिभाषित करता है जिन्हें बनाये रखना आवश्यक है, और किस दस्तावेज को कितने समय तक बनाये रखना आवश्यक है।
यह कानून न केवल निगमों के वित्तीय पक्ष को प्रभावित करता है, बल्कि यह सूचना प्रौद्योगिकी विभागों को भी प्रभावित करता है, जिनका काम है निगम के दस्तावेजों को इलेक्ट्रॉनिक स्वरुप में बनाये रखना। सर्बनेस ऑक्सले अधिनियम कहता है कि सभी व्यापारी दस्तावेज, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक संदेश भी शामिल हैं, ‘‘न्यूनतम पांच वर्षों तक‘‘ सुरक्षित रखे जाने चाहियें। अनुपालन नहीं करने के परिणाम जुर्माना, कैद, या दोनों हो सकते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभागों के समक्ष निगमित दस्तावेजों के लागत प्रभावी पुरालेख बनाने की बढ़ती चुनौती है जो इस कानून द्वारा निर्धारित अनिवार्यताओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं। अन्य अनेक घटकों के साथ ही इस कानून के अनुपालन की निम्न अनिवार्यताएं हैंः
- लेखाकर्म व्यवसाय (auditing profession) को विनियमित करने के लिए सार्वजनिक कंपनी लेखा पर्यवेक्षण बोर्ड (पीसीएओबी) की स्थापना की जाए, जो इस कानून के अधिनियमित होने से पहले स्वयं शासित था। निगमों के वित्तीय विवरण की समीक्षा करके उनकी विश्वसनीयता के संबंध में राय जारी करने की जिम्मेदारी लेखपरीक्षकों की होगी।
- मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और मुख्य वित्त अधिकारी (CFO) वित्तीय विवरण का सत्यापन करेंगे। कानून पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारियों ने न्यायालयों में अपने बचाव के एक भाग के रूप में यह दावा किया था कि उन्होंने जानकारी की समीक्षा नहीं की थी।
- निदेशक मंडल लेखांकन समिति में स्वतंत्र सदस्य होने चाहियें और उन्हें यह जानकारी उजागर करनी है कि उनमें से कम से कम एक सदस्य वित्तीय विशेषज्ञ है, और यदि समिति में ऐसा कोई वित्तीय विशेषज्ञ सदस्य नहीं लिया गया है, तो ऐसा नहीं करने के स्पस्ट कारणों का उल्लेख करना अनिवार्य है।
- बाहरी लेखापरीक्षण फर्मों को कुछ विशिष्ट प्रकार की सलाहकारी सेवाएं प्रदान करने से प्रतिबंधित किया गया है, साथ ही उन्हें अपने प्रमुख भागीदार को प्रत्येक पांच वर्षों में परिवर्तित करना अनिवार्य है। साथ ही, कोई ऐसी लेखापरीक्षण फर्म किसी कंपनी का लेखापरीक्षण नहीं कर सकती जिसमें कंपनी के कुछ विशिष्ट वरिष्ठ व्यवस्थापन पदाधिकारी उससे पिछले वर्ष काम कर चुके हैं। कानून अधिनियमित होने से पहले जब वही फर्म निगम को कुछ अन्य आकर्षक सलाहकारी सेवाएं प्रदान कर रही होती थी तो वित्तीय विवरण की सटीकता और विश्वसनीयता के संबंध में एक स्वतंत्र राय प्रदान करने के मामले में हितों के टकराव की वास्तविक या कथित संभावना थी।
3.3 ओईसीडी सिद्धांत (OECD Principles)
27-28 अप्रैल 1998 को मंत्री स्तरीय ओईसीडी परिषद की बैठक के दौरान यह मांग उठी थी कि राष्ट्रीय सरकारों, अन्य प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र के संयोजन में निगमित शासन मानकों और दिशानिर्देशों को विकसित किया जाना चाहिए। प्रारंभ में निगमित शासन के ओईसीडी सिद्धांतों का विकास इस मांग के प्रतिक्रियास्वरुप हुआ था। 1999 में स्वीकृत किये गए इन सिद्धांतों ने ओईसीडी और गैर ओईसीडी देशों में भी निगमित शासन के आधार का निर्माण किया। साथ ही, वित्तीय स्थिरता मंच द्वारा भी इन सिद्धांतों को मजबूत वित्तीय व्यवस्था के बारह मुख्य मानकों के रूप में अपनाया गया है।
न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और अन्य स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध कंपनियों को कुछ विशिष्ट शासन मानकों की पूर्ति करना अनिवार्य है। अप्रैल 2004 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने निगमित शासन के परिशोधित ओईसीडी सिद्धांतों को सार्वजनिक रूप से जारी किया।
ये सिद्धांत गैर बंधनकारक हैं, और इनका उद्देश्य सदस्य और गैर-सदस्य सरकारों को अपने देशों में निगमित शासन की न्यायिक, संस्थागत और विनियामक रूपरेखा के मूल्यांकन और सुधार के प्रयासों में सहायता प्रदान करना, और शेयर बाजारों, निवेशकों, निगमों और अन्य ऐसे पक्षों को, जिनकी इस संपूर्ण प्रक्रिया में भूमिका है, एक अच्छे निगमित शासन को विकसित करने में मार्गदर्शन और सुझाव प्रदान करना था। इस प्रकार, इन सिद्धांतों का उद्देश्य एक प्रभावी निगमित शासन रूपरेखा के क्रियान्वयन के लिए दिशानिर्देशों का एक समुच्चय प्रदान करना था; न केवल स्वयं कंपनियों के लिए बल्कि कानून, विनियम और दिशानिर्देशों की एक संपूर्ण व्यवस्था के लिए भी। इसमें जिन मूलभूत विचारों को संबोधित किया गया है वे निम्नानुसार हैंः अंश भकगधारकों के अधिकार और स्वामित्व के महत्वपूर्ण कार्य; अंश भागधारकों के साथ समान व्यवहार य निगमित शासन में हितधारकों की भूमिका य प्रकटीकरण और पारदर्शिता; और निदेशक मंडल की जिम्मेदारियां। इनमें से कुछ सिद्धांत निम्नानुसार हैंः
- निदेशक मंडल के सदस्य जानकार होने चाहिये और उन्हें सद्भावना के साथ, यथोचित परिश्रम और सावधानी से, और कंपनी और उसके अंश भागधारकों के सर्वश्रेष्ठ हित में कार्य करना चाहिए।
- कंपनी की रणनीति, उद्देश्य निर्धारण, प्रमुख कार्य योजनाओं, जोखिम नीति, पूंजी योजनाओं, और वार्षिक बजट का मार्गदर्शन और समीक्षा करना।
- प्रमुख अधिग्रहणों और अनावरणों की देखरेख करना।
- प्रमुख पदाधिकारियों का चयन, उनकी क्षतिपूर्ति, निगरानी, और प्रतिस्थापना की देखरेख करना और उत्तराधिकारी नियोजन की देखरेख करना।
- कंपनी और उसके अंश भागधारकों के दीर्घ कालीन हितों के साथ प्रमुख पदाधिकारियों और निदेशक मंडल के पारिश्रमिक को संरेखित करना।
- एक औपचारिक और पारदर्शी निदेशक मंडल सदस्य नामांकन और निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
- निगमों की लेखांकन और वित्तीय रिपोर्टिंग व्यवस्था की सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करना और उनके स्वतंत्र लेखापरीक्षण को सुनिश्चित करना।
- उपयुक्त आतंरिक नियंत्रण व्यवस्थाएं स्थापित की गई हैं यह सुनिश्चित करना।
- प्रकटीकरण और संचार की प्रक्रिया की देखरेख करना।
- जहां निदेशक मंडल की समितियां स्थापित की गई हैं, तो उनके अधिदेश, गठन और कार्य प्रक्रियाएं अच्छी तरह से परिभाषित और खुली होनी चाहियें।
3.4 अन्य दिशानिर्देश
निवेशक चलित संगठन, अंतर्राष्ट्रीय निगमित शासन नेटवर्क (आईसीजीएन) का गठन 1995 में दस सबसे बडे़ पेंशन कोषों के आसपास केंद्रित व्यक्तियों द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य है वैश्विक निगमित शासन मानकों को प्रोत्साहित करना। इस नेटवर्क का नेतृत्व ऐसे निवेशकों द्वारा किया जाता है जो 18 ट्रिलियन डॉलर का प्रबंधन करते हैं, और इसके सदस्य विश्व के पचास अलग-अलग देशों में स्थित हैं। आईसीजीएन ने अंश भागधारकों के अधिकारों से लेकर व्यापारिक नैतिकता तक वैश्विक दिशानिर्देशों का समूह विकसित किया है।
टिकाऊ विकास के लिए विश्व व्यापार परिषद (डब्लूबीसीएसडी) ने भी निगमित शासन पर काम किया है, विशेष रूप से जवाबदेही और रिपोर्टिंग पर, और 2004 में इसने समस्या प्रबंधन उपाय जारी किये हैंः निगमित जिम्मेदारी संहिता, मानकों और रूपरेखाओं के उपयोग में व्यापार के लिए सामरिक चुनौतियाँ । यह दस्तावेज संधारणीयता कार्यावली से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण संहिताओं, मानकों और रूपरेखाओं के विषय में व्यापार संघ विचार मंच की ओर से सामान्य जानकारी और परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।
2009 में, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम और संयुक्त राष्ट्र वैश्विक कॉम्पैक्ट ने एक रिपोर्ट जारी थी, निगमित शासन - निगमित नागरिकता और टिकाऊ व्यापार के लिए आधारस्तंभ, जो कंपनी के वित्तीय निष्पादन और दूरगामी संधारणीयता को पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन संबंधी जिम्मेदारियों के साथ जोडती है।
अधिकांश संहिताएं (codes) व्यापक रूप से स्वैच्छिक हैं। अमेरिका में 2005 के डिज्नी निर्णय के समय से उठाया जाने वाला एक मुद्दा वह स्तर है जहां तक कंपनियां अपनी शासन जिम्मेदारियों को प्रबंधित करती हैं; दूसरे शब्दों में, क्या वे केवल न्यायिक चौखट का उल्लंघन करने का प्रयास करती हैं, या उन्हें ऐसे शासन दिशानिर्देश निर्मित करने चाहिये जो श्रेष्ठ पद्धतियों के स्तर तक ऊपर उठते हों। उदाहरणार्थ, निदेशकों के संघों, निगमित प्रबंधकों और व्यक्तिगत कंपनियों द्वारा जारी दिशानिर्देश अधिकांशतः पूर्ण रूप से स्वैच्छिक होते हैं, परंतु ऐसे दस्तावेजों का अन्य कंपनियों को इसी प्रकार की पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित करके एक व्यापक प्रभाव भी हो सकता है।
निगमित शासन के मुख्य मुद्दे हैं हितधारकों के हित, नियंत्रण और स्वामित्व संरचनाएं, और पारिवारिक नियंत्रण से उठने वाले मुद्दे।
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