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सार्वजनिक धनराशि का उपयोग भाग - 2
4.0 सीधे हस्तांतरण से निर्मित होने वाली जवाबदेही संबंधी चिंताएं
4.1 राज्यों को संसाधन हस्तांतरण करने की पद्धतियां
भारत सरकार सीएसएस के तहत दो पद्धतियों के माध्यम से धनराशि जारी करती हैः राजकोष मार्ग और प्रत्यक्ष हस्तांतरण मार्ग। राजकोष मार्ग में केंद्र सरकार के संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय/वित्त मंत्रालय द्वारा राशि मंजूर किये जाने के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक को राज्य सरकार को धनराशि हस्तांतरित करने के लिए सूचित किया जाता है। यह व्यय राजकोष के माध्यम से किया जाता है और इसके लिए प्राप्त रसीद के माध्यम से संबंधित व्यय को महालेखाकार द्वारा दर्ज किया जाता है। अनेक राज्यों के कोषागारों और महालेखाकार कार्यालयों में उपलब्ध सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की उपलब्धता के कारण इन धनराशियों पर तब तक नजर रखी जा सकती है जब तक राज्य सरकार इन धनराशियों को राज्य के विभिन्न विभागों के माध्यम से या क्रियान्वयन अभिकरणों (अधिकतर स्थानीय निकाय) को हस्तांतरण के माध्यम से व्यय नहीं कर देतीं। इन धनराशियों का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा लेखापरीक्षण किया जाता है। प्रत्यक्ष हस्तांतरण पद्धति में धनराशियां संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों द्वारा स्वीकृत की जाती हैं और उन्हीं के द्वारा जारी की जाती हैं। ये धनराशियां सीधे राज्यों के क्रियान्वयन अभिकरणों के बैंक खातों में जमा की जाती हैं। इन धनराशियों को बाद में इन प्रथम स्तर के प्राप्तकर्ताओं द्वारा जिला, तालुका या ग्राम स्तर के उनके घटकों को जारी किया जाता है। क्रियान्वयन अभिकरणों द्वारा प्रदान किये गए उपयोग प्रमाणपत्रों के माध्यम से इन धनराशियों के व्यय पर संबंधित केंद्रीय प्रशासनिक मंत्रालयों/विभागों द्वारा निगरानी रखी जाती है। ऐसे निकायों का लेखापरीक्षण सनदी लेखाकारों द्वारा किया जाता है।
भारत सरकार द्वारा योजना राशियों के प्रत्यक्ष हस्तांतरण का परिमाण पिछले कुछ वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ा है, और वर्ष 2010 -11 के दौरान इसकी मात्रा 1.22 लाख करोड़ रुपये थी, जो भारत के कुल योजना व्यय के लगभग 31 प्रतिशत थी।
4.2 मुद्दे और चिंताएं
धनराशि हस्तांतरण की राजकोष पद्धति के अनेक लाभ हैं - यह पद्धति काफी सुदृढ़ है, किया गया व्यय वाउचर आधारित होता है, जिसकी प्रतिपुष्टि महालेखाकार द्वारा की जाती है और इसका लेखापरीक्षण नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किया जाता है। नजर रखने, नकदी प्रबंधन और बैंक समायोजन की एक सुपरिभाषित प्रणाली विद्यमान है जो किसी भी समय नकदी प्रवाह की सूचना प्रदान करती है। हालांकि इस पद्धति की भी अनेक कमियां हैं। केंद्र द्वारा राज्यों को किये गए हस्तांतरण और राज्यों द्वारा क्रियान्वयन अभिकरणों को किये गए हस्तांतरण (यदि वे राजकोष नेटवर्क के अंदर नहीं आते) को तुरंत अंतिम व्यय के रूप में दर्ज कर लिया जाता है चाहे धनराशियों का वास्तविक उपयोग हुआ हो अथवा नहीं हुआ हो।
सभी योजनाओं के लिए एक धनराशि हस्तांतरण शीर्षक, राज्यों के बजट शीर्षकों और शब्दावलियों में भिन्नता और राज्यों द्वारा प्रत्यायोजन की भिन्न-भिन्न व्यवस्थाओं जैसे विभिन्न कारकों की दृष्टि से केंद्र द्वारा जारी की गई राशियों पर नज़र रखने में भी कठिनाइयां पैदा होती हैं।
प्रत्यक्ष हस्तांतरण पद्धति में राजकोषीय हस्तांतरण की तुलना में अधिक दोष हैं। राज्यों को जारी की गई धनराशियों को सीधे राज्यों के संबंधित कार्यात्मक विभागों के मुख्य शीर्षकों के तहत अंतिम व्यय के रूप में दर्ज कर लिया जाता है। राजकोषीय हस्तांतरण के विपरीत, इस मामले में धनराशियों के जारी होने और उपयोग किये जाने का मार्ग यहीं समाप्त हो जाता है। केंद्रीय मंत्रालय धनराशियों के बजट की समय सीमा समाप्त होने के विषय में ही चिंतित रहती हैं जो उन्हें व्यय करने (धनराशि जारी करने) के लिए प्रेरणा का कार्य करता है, उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि क्रियान्वयन अभिकरण उक्त राशियों का उपयोग कर रहे हैं अथवा नहीं। इन क्रियान्वयन अभिकरणों के लेखांकन के लिए कोई औपचारिक रूपरेखा विद्यमान नहीं है।
इस बात की भी कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं होती कि उक्त धनराशि का संबंधित क्रियान्वयन अभिकरण द्वारा योजनाओं के लिए उपयोग किया गया है या नहीं। किसी भी वित्तीय विवरण में व्यय पर केंद्रीकृत आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं। सीपीएसएमएस परियोजना शुरू किये जाने तक भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा जारी की गई राशियों के बारे में कोई भी केंद्रीकृत जानकारी उपलब्ध नहीं थी। चूंकि क्रियान्वयन अभिकरणों द्वारा जारी की गई संपूर्ण राशि का उपयोग उसी वित्तीय वर्ष में नहीं किया जाता, अतः उनके बैंक खातों में बड़ी मात्रा में खर्च नहीं की गई राशि पड़ी रहती है। क्रियान्वयन अभिकरणों के पास जमा बिना खर्च की गई राशियां बाहर एक फ्लोट का निर्माण करती हैं और इस फ्लोट को बनाये रखने की लागत भी काफी अधिक होती है। मासिक व्यय के आंकडे़ प्राप्त करने की कोई औपचारिक/नियमित व्यवस्था नहीं है।
क्रियान्वयन अभिकरणों का लेखापरीक्षण स्थानीय स्तर की सहकारी संस्थाओं या जिला स्तर के क्रियान्वयन अभिकरणों द्वारा नियुक्त किये गए सनदी लेखाकारों द्वारा जाता है। पंचायती राज संस्थाओं/यूएलबी के मामले में यह जिम्मेदारी आमतौर पर स्थानीय कोष निदेशक की होती है जो राज्य सरकार का पदाधिकारी होता है। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का लेखापरीक्षण का क्षेत्राधिकार सभी उप-गॅरंटीज पर व्यापक रूप से नहीं होता, अर्थात निचले स्तर के क्रियान्वयन प्राधिकरणों पर, जिन्हें राज्य स्तर के प्रथम-स्तरीय क्रियान्वयन अभिकरणों से राशियां प्राप्त होती हैं।
4.3 केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन के दोष
कैग ने केंद्र द्वारा प्रायोजित अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन का अध्ययन किया है और इनके क्रियान्वयन में समान प्रकार के दोष पाये हैं। काफी पहले, 1999 की कैग की केंद्र की लेखापरीक्षण रिपोर्ट में ही केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में अनेक दोष दर्शाये गए थे। विभिन्न मंत्रालय वितरण के गुणात्मक और मात्रात्मक मूल्यांकन के बिना ही कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करते हैं। धनराशियां यंत्रवत् जारी कर दी जाती हैं, जिन्हें जारी करते समय राज्यों की उपयोग करने की क्षमता या पूर्व में जारी की गई धनराशियों के प्रभावी उपयोग का विचार नहीं किया जाता। विभिन्न मंत्रालय राज्य सरकारों द्वारा प्रदान किये गए आंकड़ों या तथ्यों की सत्यता को सुनिश्चित करने में भी असमर्थ थे। परियोजना का क्रियान्वयन करने वाले विभागों और सहकारी संस्थाओं का आतंरिक लेखापरीक्षण कार्य अपर्याप्त था या लगभग अस्तित्व में ही नहीं था। राज्य सरकारों का जोर व्यय की गुणवत्ता सुनिश्चित करने या उद्देश्यों की प्राप्ति के बजाय केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा राशियां जारी करने पर अधिक था। केंद्रीय मंत्रालय और राज्य सरकारें धन राशियों के दुरूपयोग को रोकने के प्रति गंभीर नहीं थे-उनकी दृष्टि से खातों में व्यय का दर्ज होना व्यय की प्रमाणिकता और प्राथमिकता से अधिक महत्वपूर्ण था। अतः, समग्र रूप से कहा जा सकता है कि किये जाने वाले व्यय की जानकारी विश्वसनीय नहीं है।
5.0 सार्वजनिक क्षेत्र की योजना का कार्यक्षेत्र
सरकार की योजना की प्रक्रिया की शुरुआत पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुआत से हुई। वार्षिक योजनाएं पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियाशील चरण हैं। बीते वर्षों के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की योजना का कार्यक्षेत्र और इसमें शामिल प्रशासनिक तंत्र, दोनों में काफी परिवर्तन हुए हैं।
5.1 केंद्र की वार्षिक योजना
प्रथा के अनुसार, वार्षिक योजना बजट का योजना घटक और साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के आतंरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधन होती है, जिसका निर्माण योजना आयोग द्वारा संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के परामर्श से किया जाता है। बीसीआर, एमसीआर और वित्तीय घाटा मिलकर योजना की सकल बजटीय सहायता का निर्धारण करते हैं। कुल सकल बजटीय सहायता में से कुछ भाग राज्यों को राज्य योजना के लिए केंद्रीय सहायता के रूप में प्रदान किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी आतंरिक संसाधनों और अतिरिक्त बजटीय सहायता के रूप में कुछ संसाधनों का निर्माण करते हैं जिन्हें आमतौर पर आईईबीआर कहा जाता है। सकल बजटीय सहायता (राज्यों की योजना के लिए प्रदान की गई सहायता को छोड़कर) और आईईबीआर मिलकर केंद्र के योजना संसाधनों का निर्माण करते हैं।
5.2 राज्यों की वार्षिक योजनाएं
राज्यों की वार्षिक योजना राज्य के बजट में योजना परिव्यय होता है, और इसमें राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का आईईबीआर और स्थानीय निकायों के संसाधन शामिल होते हैं। योजना के बजटीय संसाधनों में राज्य के स्वयं के संसाधन (बीसीआर और एमसीआर सहित), शुद्ध बजटीय उधार और राज्य की योजना के लिए केंद्रीय सहायता शामिल होते हैं। दोहरे लेखांकन से बचने के लिए केंद्रीय योजना से हस्तांतरित संसाधनों को राज्य योजना का भाग नहीं माना जाता।
5.3 सार्वजनिक क्षेत्र की योजना से जुडे़ मुद्दे
केंद्र और राज्यों की सार्वजनिक क्षेत्र की योजना के कार्यक्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे निम्न से संबंधित हैंः
- केंद्र और राज्यों की बजटीय योजना
- केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की योजना
- ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों की योजना
- क्रियान्वयन अभिकरणों/विशेष प्रयोजन वाहनों की योजना
- सार्वजनिक-निजी भागीदारियां
5.4 केंद्र और राज्यों की बजटीय योजना
केंद्र और राज्यों की बजटीय योजना पंचवर्षीय या वार्षिक योजनाओं का प्रमुख घटक होती है। जैसे कि इस समिति ने सिफारिश की है कि योजना और गैर-योजना बजट के बीच के भेद को समाप्त कर दिया जाना चाहिए, अतः पंचवर्षीय योजना का बजटीय घटक केंद्र और राज्य सरकारों का पांच वर्षों का अनुमानित कुल व्यय होगा। केंद्र या किसी राज्य की योजना के वार्षिक बजटीय घटक का सीधा संबंध केंद्र या संबंधित राज्य के सरकारी बजट से होगा, योजना का वर्गीकरण/विकास के शीर्षक और बजट वर्गीकरण/व्यय के शीर्षक समान हो जाने चाहियें। इसके परिणामस्वरूप, किसी अन्य योजना-बजट संबंध दस्तावेज की आवश्यकता नहीं रह जाएगी।
5.5 केंद्र और राज्यों के उपक्रमों की योजना
केंद्र सरकार ने निरंतर रूप से अपने वार्षिक बजट में केंद्रीय योजना परिव्यय के रूप में बड़ी संख्या में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की निवेश योजना को शामिल करने की प्रक्रिया को अपनाया है। यह काफी तार्किक भी प्रतीत होता है कि किसी एक वर्ष के वार्षिक बजट के योजना परिव्यय में सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को शामिल नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें केवल उन्हीं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को शामिल किया जाना है जिनकी उस वर्ष के दौरान निवेश की योजनाएं हैं। घाटे में चलने वाले केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, या ऐसे उपक्रम जो संसाधनों का उत्पादन नहीं कर रहे हैं, वे न तो योजना के संसाधनों में योगदान देंगे और न ही योजना परिव्ययों में।
राज्यों के स्तर पर, विभिन्न राज्यों द्वारा एकसमान रूप से राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की योजनाओं को राज्य की वार्षिक योजनाओं में शामिल करने की पद्धति को नहीं अपनाया गया है। जबकि कई राज्य उनकी वार्षिक योजनाओं में राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की योजनाओं को शामिल करते हैं, वहीं अनेक राज्य ऐसे भी हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की योजनाओं को अपनी वार्षिक योजनाओं के दायरे से बाहर रखते हैं। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के योजना निवेश और संसाधन हमेशा से केंद्रीय योजना के महत्वपूर्ण घटक रहे हैं। साथ ही, अनेक आर्थिक और यहां तक कि कुछ सामाजिक सेवाओं में भी सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश किये जाते हैं, और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के माध्यम से सेवाएं वितरित की जाती हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि कार्यों/सेवाओं के वितरण के माध्यम या स्वरुप के संबंध में सार्वजनिक क्षेत्र की योजना का आकार निष्पक्ष होना चाहिए।
राज्यों के लिए भी आवश्यक है कि राज्य द्वारा आईईबीआर के माध्यम से वित्तपोषित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निवेश के नियोजन की संकल्पना को समान रूप से अपनाया जाना चाहिए।
5.6 स्थानीय निकायों की योजना
योजना आयोग द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार कुछ राज्य स्पष्ट रूप से राज्य की वार्षिक योजना और वार्षिक बजट में भी स्थानीय निकायों के योजना संसाधनों को स्वतंत्र रूप से दर्शाते हैं। परंतु सामान्यतः राज्य बजट से स्थानीय निकायों को आवंटित किये गए सभी विकास संसाधन राज्य के वार्षिक बजट में सम्मिलित किये जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप राज्यों के वार्षिक बजट में से स्थानीय निकायों के व्ययों और विकासात्मक कार्यक्रमों को निर्धारित करना कठिन हो जाता है।
स्थानीय निकाय संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त कानूनी संस्थाएं हैं, अतः स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए उन्हें वित्तीय प्रत्यायोजन और स्वायत्तता प्रदान करना आवश्यक है। उनके लिए उनके अपने स्वतंत्र बजट और योजनाएं होना आवश्यक है। हालांकि इस विचार में काफी तथ्य है कि स्थानीय निकाय राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के विभिन्न अंग मात्र हैं, और राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की वार्षिक योजनाओं में सभी अंगों के संसाधन और व्यय प्रतिबिंबित होने चाहियें, जिनमें स्थानीय निकाय भी समग्र रूप से शामिल हैं।
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