यूपीएससी तैयारी - नैतिकता और मौलिकता - व्याख्यान - 19

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सार्वजनिक धनराशि का उपयोग भाग -1

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1.0 प्रस्तावना 

सार्वजनिक व्यय प्रबंधन सुधार के क्षेत्र में संस्थागत व्यवस्थाओं की तीन क्षेत्रों में बजट के परिणामों को प्रभावित करने में भूमिका होती हैः सकल वित्तीय अनुशासन में, संसाधनों के रणनीतिक आवंटन में और परिचालन संबंधी क्षमता में। निष्पादन पर ध्यान केंद्रित करना, नीति निर्माण, नियोजन और आयव्यय पत्रक के बीच संबंध, व्यवस्थित रूप से परिचालित होने वाली लेखांकन और वित्तीय प्रबंधन व्यवस्थाएं और आयव्यय पत्रक और सरकार की अन्य व्यवस्थाओं के बीच उचित संबंध सार्वजनिक धन के कुशल उपयोग की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।

केंद्रीय और राज्य सरकारों के सार्वजनिक व्यय के अंतिम उपयोग में सुधार की दिशा में परिणाम बजट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हालांकि अनेक ऐसी कमियां रही हैं जो परिणाम आधारित बजट प्रक्रिया के व्यापक और व्यावहारिक उपयोग के लिए बाधक रही हैं। इनमें व्यय का योजना और गैर-योजना व्यय में वर्गीकरण करना, कठोर बजट विवशता का अभाव, संसाधनों के पुनः आवंटन के लिए मंत्रालयों को प्रलोभना का अभाव, सेवाओं के लागत-निर्धारण पर जानकारी कीअनुपलब्धता, बजट और लेखांकन वर्गीकरण में समस्याएं, राज्यों को संसाधन हस्तांतरण पर अपर्याप्त सूचना व्यवस्थाएं और मजबूत वित्तीय प्रबंधन सूचना व्यवस्थाओं का अभाव शामिल हैं। ग्यारहवीं योजना (2007-2012) के योजना मसौदे में योजना के वित्तपोषण की चर्चाओं के दौरान इनमें से कई मुद्दों को उठाया गया था। एक उच्च-स्तरीय समिति को कुछ विशिष्ट मुद्दों का परीक्षण करके सिफारिशें करने के लिए कहा गया था।

2.0 योजना और गैर-योजना के बीच भेद (Plan and Non-plan distinction)

भारत में नियोजन की प्रक्रिया के विकास का परिणाम व्यय के योजना व्यय और गैर-योजना व्यय के वर्गीकरण में हुआ। नियोजन के प्रारंभिक वर्षों के दौरान प्रत्येक योजना की प्राथमिकताओं के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी निवेश को निर्देशित करने पर अधिक जोर दिया गया था। अधिकांश योजना व्यय पूंजीगत व्यय था, और इसका उद्देश्य था अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता में वृद्धि करना। हालांकि जैसे-जैसे समय बीतता गया, केंद्र और राज्यों में योजना व्यय का संयोजन बदलता गया, क्योंकि अब अधिकांश योजना व्यय राजस्व व्यय बन गया है। समय के साथ योजना व्यय और गैर-योजना व्यय के बीच भेद के कारण अनेक मुद्दे उभरे। 

2.1 व्यय के वर्गीकरण की वर्तमान व्यवस्था 

सरकार के व्यय को कार्यात्मक शीर्षकों में वर्गीकृत किया जाता है। कार्यात्मक वर्गीकरण मोटे तौर पर सरकार के उन कार्यों को दर्शाता है जिनपर व्यय किया गया है और उस गतिविधि को दर्शाता है जिसपर व्यय किया गया है। वर्तमान में अपनाया जाने वाला कार्यात्मक वर्गीकरण एक छह-स्तरीय संरचना है जिसमें प्रधान, उप-प्रधान, अप्रधान, उप-शीर्ष, विस्तृत शीर्ष और अभिप्राय शीर्ष की क्रमवार रचना है। कार्यात्मक वर्गीकरण का पहला स्तर, जिसे प्रधान शीर्षक कहा जाता है, सरकार के उन कार्यों को दर्शाता है जो व्यय के माध्यम से किये गए हैं। कार्यात्मक वर्गीकरण का दूसरा स्तर उप-कार्यों का वर्णन प्रदान करता है।  

तीसरा स्तर, जो अप्रधान शीर्षक द्वारा दर्शाया जाता है, उस विशिष्ट व्यय के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त किये गए उद्देश्यों को दर्शाता है। अप्रधान शीर्षक के नीचे उप-शीर्षकों के दो स्तर (चौथा स्तर) और विस्तृत स्तर (पांचवा स्तर) होते हैं। 

उप-शीर्षक सरकार की विशिष्ट योजनाओं या गतिविधियों को दर्शाते हैं जिनके तहत व्यय किया गया है, और विस्तृत शीर्षक योजनाओं या उप-योजनाओं के विभिन्न घटकों को दर्शाते हैं। अभिप्राय शीर्षक का छठा स्तर व्यय के उद्देश्य के विवरण को दर्शाता है। इस प्रकार, यह एक दो आयामी वर्गीकरण बन जाता है, जहां व्यय को प्रत्येक कार्यात्मक शीर्षक के लिए अभिप्राय शीर्षक में वर्गीकृत किया जाता है। योजना व्यय और गैर-योजना व्यय द्वारा प्रदान किये गए विभाजन को कार्यात्मक और अभिप्राय वर्गीकरण के ऊपर रखा जाता है। यह विभाजन संपूर्ण वर्गीकरण पदक्रम को दो स्तंभों में विभक्त कर देता है।

2.2 योजना और बजट 

यह विभाजन बजट प्रक्रिया से शुरू होता है जहां गैर-योजना व्यय को पहले प्राक्कलित किया जाता है। चूंकि गैर-योजना व्यय प्रतिबद्धता प्रकार का होता है, अतः इसका निर्धारण अधिकांशतः ऐतिहासिक मानदंडों के आधार पर किया जाता है। गैर-योजना व्यय के आकलन के बाद संसाधनों (कर संसाधनों और गैर कर संसाधनों, दोनों) का आकलन किया जाता है। गैर योजना व्यय की पूर्ति करने के बाद बचे हुए संसाधनों को वर्तमान राजस्व का अधिशेष कहा जाता है, और यह गैर-उधार संसाधनों का भाग होता है जो योजना व्यय के लिए उपलब्ध होता है। गैर-उधार संसाधनों के दूसरे भाग को प्रकीर्ण पूंजी प्राप्तियां कहते हैं जिन्हें आधार पर स्वीकार किया जाता है। इन गैर उधार संसाधनों को नियोजित शुद्ध उधार के साथ जोड़ा जाता है, जो मिलकर योजना व्यय के लिए उपलब्ध संसाधनों की कुल धन राशि का निर्धारण करते हैं। इस राशि को योजना के लिए सकल बजटीय समर्थन कहा जाता है। इस सकल बजटीय समर्थन को फिर विभिन्न क्षेत्रों में, फिर विकास शीर्षकों में और अंत में योजना की विभिन्न योजनाओं में आवंटित किया जाता है। इन आवंटनों को फिर बजटीय वर्गीकरणों में प्रारूपित किया जाता है। योजना बजट और गैर-योजना बजट मिलकर सरकार के व्यय बजट का निर्माण करते हैं। इस बजटीय प्रथा का प्राकृतिक परिणाम यह होता है कि जबकि गैर योजना व्यय का आधार आमतौर पर विभागों के प्रतिबद्ध व्ययों के मदों की आवश्यकताओं पर निर्भर होता है वहीं मोटे तौर पर योजना व्यय का आधार संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर होता है।

2.3 योजना के रूप में वर्गीकृत किया गया व्यय 

सरकार में योजना व्यय का अर्थ आमतौर पर उस व्यय को दर्शाता है जो एक विशिष्ट पंचवर्षीय योजना के दौरान विकास योजनाओं के तहत किया जाता है। हालांकि, इनमें से कुछ योजनाएं पिछली योजना से चली आ रही हो सकती हैं, और इनमें से कुछ योजनाएं ‘‘प्लवन योजनाएं‘‘ (spill-overs) हो सकती हैं। पंचवर्षीय-योजना की तैयारी के प्रारंभिक चरणों में योजना आयोग किन व्ययों को ‘‘योजना व्यय‘‘ के रूप में वर्गीकृत किया जाना है इस सम्बन्ध में विस्तृत दिशानिर्देश जारी करता है। अधिकांश पंचवर्षीय-योजना के तहत आने वाली योजनाओं की अवधि उस विशिष्ट पंचवर्षीय योजना अवधि तक सीमित मानी जाती है। परंतु उनके ऐसे प्रभाव हो सकते हैं जिनका विस्तार योजना अवधि से अधिक लंबा हो सकता है। 

2.4 योजना/गैर-योजना भेद से संबंधित मुख्य समस्याएं 

गठबंधन की राजनीति की मजबूरी और निहित स्वार्थों के कारण किन व्ययों को योजना व्यय के रूप में वर्गीकृत करना है और किन व्ययों को गैर-योजना व्ययों के रूप में वर्गीकृत किया जाना है इसकी स्पष्टता समाप्त होती जा रही है। इसके अतिरिक्त, नीति निर्माताओं और सभी स्तरों के अधिकारियों के बीच एक ऐसी धारणा व्यापक रूप से घर करती जा रही है कि योजना व्यय अच्छा होता है और गैर-योजना व्यय अच्छा नहीं होता। योजना व्यय के पक्ष में और गैर-योजना व्यय के विरुद्ध इस पक्षपात के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हो गई है जिसमें परिसंपत्तियों के रखरखाव जैसे अनिवार्य व्यय को भी नज़रअंदाज किया जा रहा है। इसके कारण केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर अधिक योजना व्यय और अधिक योजना आकार दर्शाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। साथ ही, योजना के केंद्रबिंदु में पूंजीगत व्यय से राजस्व व्यय के रूप में परिवर्तन, और प्रत्येक पंचवर्षीय योजना के अंत में पुरानी योजनाओं के व्यय को गैर-योजना व्यय में हस्तांतरित करने की प्रक्रिया का अर्थ यह होता है कि योजना व्यय और विकास व्यय के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता। 

बजट में योजना और गैर-योजना का भेद न तो सरकारी व्यय के विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय का संतोषजनक वर्गीकरण प्रदान कर पाता है और न ही एक उपयुक्त बजटीय रूपरेखा प्रदान कर पाता है। अतः यह एक दुष्क्रियाशील अंग बन कर रह गया है।

अतः यह सिफारिश की गई थी कि बजट में योजना और गैर-योजना के भेद को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार के स्तर पर सरकार की समग्र विकासात्मक प्राथमिकताओं को निर्देशित करने के लिए, परिणाम लक्ष्यों को निर्धारित करने और मंत्रालयों/विभागों के निष्पादन की समीक्षा के लिए सुविधा और प्रक्षेत्र ज्ञान की खातिर, योजना आयोग जिम्मेदार हो सकता है। वित्त मंत्रालय वित्तीय नीति को निर्देशित करने, बजट के निर्माण और वित्तीय निर्णयों के लिए जिम्मेदार हो सकता है। योजना आयोग, सभी सेवाओं का समावेश करके वित्त मंत्रालय से प्राप्त निविष्टियों के आधार पर, पंचवर्षीय योजनाओं के सुदृढ़ीकरण के लिए जिम्मेदार हो सकता है। शायद बहु-वर्षीय रूपरेखा के अंदर उत्पादन और परिणाम आधारित बजटीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए वार्षिक बजटीय प्रक्रिया में सुधार करने की आवश्यकता हो सकती है। 

3.0 राज्यों को हस्तांतरण की विस्तृत रूपरेखा 

संसाधन केंद्र से राज्यों की ओर समनुदेशन और हस्तांतरणों के माध्यम से प्रवाहित होते हैं। केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी (कर हस्तांतरण) एक समनुदेशन है। केंद्र से राज्यों को होने वाले हस्तांतरणों में गैर-योजना और योजना हस्तांतरण, दोनों शामिल होते हैं। गैर-योजना हस्तांतरणों में वित्त आयोग द्वारा दिए गए अनुदान, और अन्य गैर-योजना अनुदान शामिल होते हैं। केंद्र से राज्यों को हस्तांतरित किये जाने वाले महत्वपूर्ण योजना अनुदान चार प्रकार के होते हैंः

  1. राज्यों की नियोजित योजनाएं जिनमें सामान्य केंद्रीय सहायता (एनसीए) और अन्य योजना आधारित केंद्रीय सहायता (सीए) शामिल हैं, जिन्हें एसीए योजनाएं भी कहा जाता है।
  2. केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस), जिनके लिए धनराशि राज्यों के संचित कोषों के माध्यम से प्रदान की जाती हैं।
  3. केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस), जिनके लिए धनराशि का हस्तांतरण सीधे राज्य/जिला स्तरीय स्वायत्त निकायों/क्रियान्वयन अभिकरणों को किया जाता है, और 
  4. वित्त आयोग अनुदानों का एक छोटा भाग, जिसे योजना अनुदान के रूप में माना जाता है।

वित्त आयोग के अनुदानों और अन्य गैर-योजना अनुदानों जैसे गैर-योजना हस्तांतरण राज्यों को राजकोष मार्ग से प्रदान किये जाते हैं। जहां तक नियोजन योजनाओं का प्रश्न है, संसाधन या तो राजकोष मार्ग से या सीधे हस्तांतरण/या सोसायटी मार्ग से हस्तांतरित किये जाते हैं। 

3.1 वर्तमान व्यवस्था की समस्याएं 

वर्तमान व्यवस्था की सबसे प्रमुख समस्या है योजनाओं और लेखा शीर्षकों के बीच सीधे सामंजस्य के अभाव के कारण लेखा वर्गीकरण से योजनावार जानकारी प्राप्त करना। वर्तमान छह स्तरीय बजट और लेखांकन वर्गीकरण में अनेक समस्याएं हैं। 

राजस्व, पूंजीगत और ऋण वर्गों में कार्यों के बीच दोहराव है। संघीय सरकार के व्यय का एक बड़ा भाग राज्यों को किये जाने वाले हस्तांतरण के रूप में होता है। इन लेनदेनों को प्रमुख शीर्षकों 3601 और 3602 के तहत दर्ज किया जाता है। इन शीर्षकों के तहत का उप-वर्गीकरण योजना सहायता की बदलती प्रकृति के साथ सुसंगत नहीं हो पाया है। साथ ही, ऐसे हस्तांतरणों का राज्य-वार ब्यौरा रखने का भी कोई प्रावधान नहीं है। इसी के साथ राज्यों को किये गए हस्तांतरणों के स्वतंत्र शीर्षक (जो प्रयोजन शीर्षक होना चाहिए) और कार्यात्मक वर्गीकरण के तहत उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों के लिए रखे गए संसाधनों (भौगोलिक विशेषताएं) का परिणाम इनके वास्तविक कार्यात्मक नहीं होने में होता है। 

अप्रधान शीर्षक एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तर है और इसकी विस्तृत समीक्षा आवश्यक है। बजटीकरण और लेखांकन का ऐसा स्तर होना आवश्यक है जो दिए गए कार्यों के साथ सरकार के व्यापक उद्देश्यों को जोड़ता हो, जिसके साथ अंततः परिणामों को जोड़ा जा सके।

इसके कारण सरकार द्वारा एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए विभिन्न मदों पर व्यय की गई लागत की जानकारी प्रदान करना भी सुविधाजनक हो जायेगा। इससे संबंधित एक और मुद्दा है राज्यों की संचित निधि के बाहर केंद्र द्वारा सीधे प्रदान की गई सहायता के माध्यम से जो संसाधन राज्यों को भारी मात्रा में हस्तांतरित किये जाते हैं उनकी जानकारी राज्यों के खातों में उपलब्ध नहीं हो पाती। विभिन्न राज्यों में नियोजित योजनाओं के एकसमान कूट लेखन के अभाव के कारण समस्या और भी जटिल हो जाती है। 

3.2 केंद्रीय नियोजन योजना निगरानी व्यवस्था (सीपीएसएमएस)

केंद्रीय नियोजन योजना निगरानी व्यवस्था को वर्तमान में लेखा महानियंत्रक द्वारा योजना आयोग के सहयोग से स्थापित किया जा रहा है, ताकि यह सरकार की नियोजित योजनाओं की निगरानी के लिए एक विस्तृत सूचना प्रबंधन और निर्णय सहायक तंत्र के रूप में कार्य कर सके। सीपीएसएमएस के समक्ष एक समान व्यवस्था के माध्यम से हजारों की संख्या में कार्यरत क्रियान्वयन अभिकरणों के एकीकरण का चुनौतीपूर्ण कार्य है, ताकि केंद्र द्वारा शुरू में धनराशि जारी किये जाने से लेकर यह धनराशि वास्तव में अंतिम लाभार्थियों तक पहुंचने तक की धनराशि की प्रत्येक अगले स्तर की गतिशीलता पर नज़र रखी जा सके। सीपीएसएमएस पोर्टल अब क्रियान्वित कर दिया गया है। भारत सरकार की 1000 से अधिक नियोजित योजनाओं को इसमें शामिल किया जा चुका है। इस तंत्र के साथ लगभग 20,000 कार्यक्रम क्रियान्वयन अभिकरणों का पंजीकरण किया जा चुका है। अब भारत सरकार द्वारा जारी की गई धनराशियों के मंत्रालय- वार, योजना-वार, राज्य-वार, जिला-वार, गैर-सरकारी संगठन वार, व्यक्ति-वार आंकडें केंद्रीय स्तर पर सीपीएसएमएस पर वास्तविक समयावधि के आधार पर उपलब्ध हैं। 

सीपीएसएमएस की एक विशिष्ट विशेषता है बैंकों द्वारा वास्तविक समयावधि के आधार पर धनराशियों की एक स्तर से दूसरे स्तर, और एक अभिकरण से दूसरे अभिकरण तक गतिशीलता की जानकारी प्राप्त करने के लिए इसका व्यक्तिगत बैंकों के कोर बैंकिंग समाधान के साथ निकटस्थ अंतराफलक। यह विशेषता कुशल एवं प्रभावी नकद प्रबंधन की दृष्टि से काफी सहायक होगी। देश की अनेक प्रमुख बैंकों ने सीपीएसएमएस अंतराफलक के साथ जुड़ने के लिए सहमति प्रदान की है और यह उम्मीद जताई जा रही है कि देश की सभी बैंकें इस संजाल का भाग बनेंगी। सीपीएसएमएस का राज्यों के राजकोषों और महालेखाकारों के साथ भी अंतराफलक स्थापित करने का प्रयास है, ताकि केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा जिन योजनाओं के लिए राज्यों के संचित कोषों में धनराशियां हस्तांतरित की गई हैं उनके वास्तविक समयावधि के आधार पर किये गए व्यय की जानकारी प्राप्त की जा सके। पूर्ण क्रियान्वयन के बाद यह तंत्र एक ऐसा मंच प्रदान करेगा जिसके आधार पर प्रत्येक स्तर का प्रबंधन विभिन्न विकास योजनाओं के तहत राजकोष मार्ग के माध्यम से या सहकारी संस्था के मार्ग से जारी की गई धनराशि के उपयोग की निगरानी करने में सक्षम होगा। उम्मीद है कि सीपीएसएमएस कार्यक्रम प्रबंधकों को प्रत्येक योजना के तहत धनराशियों के परिनियोजन और उपयोग की ऊर्ध्वाधरजानकारी प्रदान करेगा और वरिष्ठ प्रबंधकों और राजनीतिक पदाधिकारियों को विभिन्न योजनाओं के तहत एक भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी प्रदान करेगा। इस तंत्र द्वारा प्रदान की गई निविष्टियां कार्यक्रम प्रबंधन और नीति नियोजन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगी। नीति निर्माण और क्रियान्वयन में अधिक जन जागरण, और जन भागीदारी की दृष्टि से धनराशियों के उपयोग की जानकारी को जनता के समक्ष रखने की भी योजना है, ताकि सरकारी गतिविधियों की पारदर्शिता में वृद्धि की जा सके। 

3.3 बजट और खातों के वर्गीकरण में परिवर्तन 

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने खातों के मुख्य और अप्रधान शीर्षकों की सूची में संशोधन के लिए लेखा महानियंत्रक की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। नियोजन योजनाओं के लेखांकन से संबंधित मुद्दे और राज्यों को किये जाने वाले हस्तांतरणों का समग्र दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता इस समिति के विचाराधीन है, जो वर्तमान व्यवस्था की संरचनात्मक त्रुटियों को संबोधित करेगी और एक नई संरचना विकसित करेगी जो कंप्यूटर अनुकूल होगी, साथ ही यह व्यवस्था व्यय के आंकड़ों के लचीले बहुआयामी दृष्टिकोण और राज्यों को किये जाने वाले हस्तांतरणों के समग्र दृष्टिकोण को सुविधाजनक बनाएगी।

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