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सिविल सेवाओं के मूलभूत मूल्य भाग 1
1.0 प्रस्तावना
धार्मिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के मिश्रण का परिणाम सार्वभौमिक मूल्यों के एक समुच्चय की निर्मिति में हुआ है। इन सार्वभौमिक मूल्यों का सम्मान विश्व के सभी समाजों द्वारा किया गया है, और ये मूल्य धर्म, नस्ल, रंग या लोगों की सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के पार जाकर सभी लोगों के व्यवहार को मार्गदर्शित करते हैं। इनमें से कुछ पोषित मूल्य नीचे सूचीबद्ध किये गए हैंः
- सत्य
- ईमानदारी
- काम के प्रति समर्पण
- अहिंसा
- करुणा
- साहस
- दृढ़ता
- आत्म अनुशासन
- निष्ठा
- विश्वास
लोक सेवकों को अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी और कार्यकुशलता से करने के लिए और सच्चे अर्थों में लोगों की सेवा के साधन बनने के लिए उनमें उपरोल्लिखित मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक है। उनमें विशेष रूप से निम्न आधारभूत मूल्यों का होना तो अत्यंत आवश्यक हैः
- कार्य के प्रति समर्पण
- ध्येय और ध्यान केंद्रित करने की भावना
- सत्यनिष्ठा और ईमानदारी
- निर्भीकता और साहस
- सेवा और त्याग की भावना
प्रतिबद्धता और कार्य के प्रति समर्पणः प्रतिबद्धता और कार्य के प्रति समर्पण के संबंध में पांचवें वेतन आयोग का यह कहना था, ‘‘आज सरकारी कार्यालय की ओर एक धूल से भरे, कीटों द्वारा खाए हुए, मैले, कागज़ों से भरे हुए बाबुओं से ठसाठस भरे झोपडे के रूप में देखा जाता है, जिसका दृष्टिकोण सामंती है, जो संरचना में अधिश्रेणीक है, जो अपनी प्रक्रियाओं में प्राक्कालीन है, जो मुद्दों के परीक्षण में विलम्बकारी है और जो अपने ग्राहकों के साथ व्यवहार में मौनावलंबी है। सबसे बडे़ सेवा प्रदाता होने के बावजूद विभिन्न सरकारी विभागों में ग्राहक उन्मुखीकरण का पूर्णतः अभाव है।‘‘
हमें लोक सेवाओं की विद्यमान विद्यमान कार्य संस्कृति को बदलना होगा और इनमें हमारे प्राचीन ग्रंथों द्वारा प्रतिपादित निष्काम कर्म के दर्शन को अंतर्निविष्ट करना होगा। भगवद गीता कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः की संकल्पना को अर्थप्रतिपादित करती है। लोक सेवकों को कार्यकुशल बनने के लिए उच्च प्रकार की प्रतिबद्धता अनिवार्य है। हालांकि केंद्रबिंदु प्रक्रियाओं पर है, फिर भी उसे साधन बनाम साध्य के सर्वश्रेष्ठ सम्भाव्य मिश्रण का मूल्यांकन करना होगा।
ध्येय की भावनाः कार्य केवल कार्य पूर्ण करने की दृष्टि से नहीं करना चाहिए। हम क्या कर रहे हैं इसके विषय में एक स्पष्ट केंद्रबिंदु और दिशा होनी चाहिए अन्यथा यह कार्य उत्पादक भी नहीं होगा और इच्छित परिणाम भी नहीं देगा। आज अधिकांश कॉर्पोरेट्स का एक ध्येय कथन और दूरदृष्टि कथन होता है। यह किये जाने वाले कार्यों और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों के संबंध में एक स्पष्टता प्रदान करता है। परंतु चूंकि शासन में गतिविधियों का एक व्यापक क्षेत्र होता है, अतः एक विकासशील सरकार के संसाधन अत्यंत सूक्ष्म खिंचे होते हैं। अतः घोषित उद्देश्यों की प्राप्ति लिए ध्येय की एक स्पष्ट भावना होना अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। यह ध्येय की एक स्पष्ट भावना का ही परिणाम था जिसके फलस्वरूप हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम सफल हो पाया, या दुग्ध क्रांति, जिसने देश के दूध उत्पादन में क्रांति ला दी। आज वित्त मंत्री विभिन्न विभागों को बजटीय आवंटन करते समय परिणाम बजट की बात करते हैं, जिसका निहितार्थ है कि सार्वजनिक सेवाओं को लोगों को उपलब्ध वास्तविक सेवाओं के रूप में परिमाण निर्धारण योग्य परिणाम देने चाहियें, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सडकें और बिजली। यदि लोक सेवक इस विषय में केंद्रित होंगे कि उन्हें क्या परिणाम प्राप्त करने हैं, और यदि वे इस बात से प्रेरित हैं कि वे राष्ट्र हित के लिए कार्य कर रहे हैं, तो सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में उल्लेखनीय सुधार हो जायेगा।
सत्यनिष्ठता और ईमानदारीः एक लोक सेवक का पद दो सिद्धांतों के आधार पर स्वीकार किया जाता है य वे सार्वजनिक पद का उपयोग अपने निजी लाभ के लिए नहीं करेंगे, और वे निष्पक्षता से कार्य करेंगे और किसी निजी संगठन या व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का अधिमान्य व्यवहार नहीं करेंगे। आज लोक सेवकों के बीच भ्रष्टाचार एक व्यापक घटना बन गई है क्योंकि वे खुलेआम अपने पद और अधिकार का उपयोग स्वयं को व्यक्तिगत रूप से संपन्न बनाने के लिए करते हैं। भ्रष्टाचार को किस प्रकार से नियंत्रित किया जाए यह आज सरकार के समक्ष उपस्थित सबसे बड़ी चुनौती है।
लोक सेवकों को हितों के टकराव की स्थितियों से भी बचना चाहिए। हालांकि हितों का टकराव तथ्यतः भ्रष्टाचार नहीं है फिर भी इस बात की मान्यता बढ़ती जा रही है कि यदि निजी हितों और सार्वजनिक दायित्वों के बीच टकराव हुआ, और यदि इसे पर्याप्त रूप से प्रबंधित नहीं किया गया तो इसका परिणाम भ्रष्टाचार में हो सकता है। इसीलिए उदाहरणार्थ किसी लोक सेवक द्वारा किसी निजी फर्म के साथ, जिसके साथ एक लोक सेवक के रूप में उसका काफी काम पड़ा है, सार्वजनिक पद छोड़ने से पहले भविष्य में नौकरी की बातचीत को व्यापक रूप से हितों के टकराव की स्थिति माना जाता है। यही कारण है कि अनेक संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के मामले में सेवा निवृत्ति के बाद नौकरी करने की अनुमति नहीं है।
हालांकि अधिकारियों के भ्रष्टाचार करते हुए पकडे़ जाने पर कठोर सजा के नियम और कानून बने हुए हैं, फिर भी वे प्रभावी अवरोध के रूप में कार्य नहीं कर पाते, क्योंकि नियमों में ही बचने की कई धाराएं प्रदान की होती हैं। केवल जब लोक सेवक अपने अंदर सत्यनिष्ठता और ईमानदारी के नेक मूल्य अंतर्निविष्ट कर लेंगे तभी देश के समक्ष उपस्थित भ्रष्टाचार की विशाल समस्या को हिलाया जा सकेगा।
निर्भीकता और साहसः अक्सर यह देखा जाता है कि अनेक लोक सेवक, जो स्वयं इनामदार होते हैं, वे या तो उनके राजनीतिक मालिकों या अपने स्वयं के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुचित मांगों के सम्मुख नतमस्तक हो जाते हैं, शायद इस ड़र के कारण कि उनकी गोपनीय रिपोर्ट खराब कर दी जाएगी या उन्हें असुविधाजनक स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जायेगा, या उनकी पदोन्नति मुश्किल में पड़ जाएगी। अधिकांश मामलों में यह कमजोर चरित्र के कारण होता है या फिर इस दृढ़ विश्वास के अभाव के कारण होता है कि वे एक ईमानदार कार्य कर रहे हैं।
शाह आयोग, जिसने आपातकाल के दौरान (1975-77) की गई ‘‘ज्यादतियों‘‘ की जांच की थी, उसने पाया कि लोक सेवकों ने अपने राजनीतिक आकाओं के ड़र के कारण अनुचित और अवैध काम किये थे जिनके कारण आम जनता को भयंकर यातनाएं सहन करनी पड़ी थीं। आयोग ने टिप्पणी की थी कि ‘‘जब उन्हें झुकने के लिए कहा जाता था तो वे रेंगने लगते थे।‘‘ न्यूरेमबर्ग मुकदमे के दौरान उच्च पदस्थ जर्मन सेनापतियों ने युद्ध अपराध न्यायाधिकरण को बताया कि उन्होंने यहूदियों के विरुद्ध अत्याचार शीर्ष नाजी अधिकारियों के डर के कारण किये।
राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के निदेशक पी.एस. अप्पू ने दृढ़ विश्वास के विशाल साहस का प्रदर्शन किया और अपने सिद्धांतों पर कायम रहे, और जब उन्होंने पाया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अनुशासनहीन और आपराधिक व्यवहार में लिप्त प्रशिक्षु की सेवा समाप्त करने की उनकी मांग पर राजनीतिक आका हस्तक्षेप कर रहे थे तो उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। नौकरशाहों के विरुद्ध लगने वाला एक आरोप यह है कि वे सुरक्षित रहना चाहते हैं और कठोर निर्णय लेने से ड़रते हैं। आज के जटिल और तकनीकज्ञ विश्व में लोक सेवकों के लिए आवश्यक है कि वे त्वरित और अभिनय निर्णय लें, जिसके लिए साहस की आवश्यकता है। अरस्तू ने कहा था, ‘‘हम साहसी कार्य करने से ही साहसी बनते हैं।‘‘
सेवा और त्याग की भावनाः सेवा और त्याग की भावना लोक सेवाओं का एक अनिवार्य अंग है, और लोक सेवकों को इस बात से प्रेरित महसूस होना चाहिए कि वे राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए कार्य कर रहे हैं। आज यह एक आम शिकायत है कि निजी क्षेत्र की तुलना में सर्वोच्च लोक सेवा में वेतन के स्तर बहुत कम हैं। हालांकि लोक सेवाओं में काम करने वाले व्यक्तयों को उचित वेतन प्रदान किये जाने आवश्यक हैं, फिर भी उनके वेतन और परिलब्धियों की तुलना निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों के साथ नही की जा सकती। जो युवा सेना में शामिल होते हैं, और जो युद्ध के दौरान अपनी जान का बलिदान करने के लिए तैयार होते हैं, या जिनकी पदस्थापना सियाचिन हिमनद की कठोर और विश्वासघात की मौसम की स्थितियों में होती है और वे उन कठिनाइयों का साहस के साथ सामना करते हैं क्योंकि वे इस महान ध्येय से प्रेरित होते हैं कि वे देश की सेवा कर रहे हैं। वे जिन कठिनाइयों और बलिदानों का सामना करते हैं उनकी क्षतिपूर्ति कितने भी बहुमूल्य मौद्रिक प्रलोभन द्वारा नहीं की जा सकती।
3.0 शिक्षा का महत्त्व और भूमिका
समाज के प्रत्येक आयु समूह, वर्ग या भाग में नैतिक मूल्यों के हृस को आसानी से हमारे समय की सबसे महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम देने वाली समस्याओं में से एक माना जा सकता है। अतः किसी भी भ्रष्टाचार विरोधी रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक है भ्रष्टाचार विरोधी शिक्षा। एक अवगत नागरिकत्व शायद एक अत्युच्च परिष्कृत आचार संहिता और भ्रष्ट और अनैतिक व्यवहार को रोकने वाले कानूनों और विनियमों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। आखिर भ्रष्टाचार विरोधी कानून और संस्थाएं अंततः उतनी ही अच्छी और प्रभावी होंगी जितने उनके आधारभूत सिद्धांतों की मर्यादा रखने वाले लोग होंगे, और वे लोग होंगे जो अपनी आवश्यकताओं का पालन करते हैं और जो गैर अनुपालन की घटनाओं की सूचना देते हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा का कोई अन्य विकल्प नहीं है, और सत्यनिष्ठा की यह भावना देश के लोगों के बीच उनके जीवन के विभिन्न चरणों के दौरान पैदा करने की आवश्यकता है।
शिक्षा एक नैतिक दृष्टि से समृद्ध समाज की नीवं है क्योंकि विद्यार्थी ही सार्वजनिक जीवन से जुडे पदों पर आसीन होते हैं। शिक्षा भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागरूकता का प्रसार करती है, और इस प्रकार समाज के नैतिक और नीतिपरक मूल्यों को दृढ़ करने में सहायक होती है। जनसंख्या के बीच जागरूकता के सामान्य स्तर में वृद्धि करना आवश्यक है क्योंकि यही नागरिकों में जवाबदेही मांग को प्रस्थापित करती है, और नैतिक आचरण पर जोर देकर, और इस आचरण की आवश्यकता के निर्माण द्वारा शिक्षा ही जवाबदेही की संस्कृति का निर्माण करती है।
इस प्रकार दो ऐसे मौलिक मार्ग हैं जिनके माध्यम से शिक्षा सहायता करती है - शिक्षा के माध्यम से जिम्मेदार नागरिकों का विकास करके और शिक्षा व्यवस्था के बीच मूल्यों और नैतिकता को प्रोत्साहित करके और लोगों में जागरूकता की भावना विकसित करके, ताकि जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग में वृद्धि हो। माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में नैतिकता और भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दों का समावेश किया जाना चाहिए।
इस प्रकार की पहल के उदाहरण हांगकांग में देखा जा सकता है जहाँ 1980 के दशक के प्रारंभ में भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्वतंत्र आयोग ने अत्यंत सफल ‘‘नैतिक शिक्षा कार्यक्रम‘‘ की शुरुआत की थी, जिसका गठन सत्यनिष्ठा और सकारात्मक आचरण के मानकों को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था जिनका निर्माण हांगकांग के विद्यालयों और शिक्षक महाविद्यालयों में शिक्षकों, पालकों और विद्यार्थियों को लक्षित करके उत्पादों की व्यापक श्रृंखला के माध्यम से किया गया था। मेक्सिको के भ्रष्टाचार अभियान में एक अलग दृष्टिकोण अपनाया गया था, जहां युवा जनसंख्या तक पहुंचने के लिए इंटरनेट का व्यापक उपयोग किया गया था। बच्चों को ‘‘शून्य-शून्य भ्रष्टाचार‘‘ प्रतिनिधियों के रूप में अहर्ता प्राप्त करने के लिए और विभिन्न प्रकार के खेलों और वास्तविक जीवन के अभ्यासों के माध्यम से पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। भारत में लोक सेवकों को शिक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर द्वारा किया गया था, जिसने लोक नीति प्रबंधन पर एक पाठ्यक्रम की शुरुआत की थी।
4.0 संस्कृति और मूल्य
संस्कृति शब्द का संबंध हमारी सामाजिक और नैतिक व्यवस्थाओं से है, और उन सभी गतिविधियों से है जो पीढ़ियों से जारी हैं, और जिनमें हमारी मान्यताएं, मूल्य, धर्म और व्यवहार शामिल हैं। संस्कृति सभ्यता का उत्पाद है, या जीवन का एक मार्ग है और विभिन्न समाजों में परंपराएं और मानक स्थापित करती है। भ्रष्टाचार संस्कृति के विरुद्ध है, जिसमें समाजों की सांस्कृतिक अखंड़ता और नैतिक व्यवस्थाओं को नष्ट करने की क्षमता है। इस प्रकार इसका मानव समाज के विकास पर एक गहरा और दूरगामी प्रभाव होता है। विभिन्न आधुनिक सांस्कृतिक अक्भिव्यक्तियों का भ्रष्टाचार वे कदाचार होंगे जो शिक्षा व्यवस्थाओं, मनोरंजन और मास मीड़िया में प्रविष्ट हो चुके हैं, उसी तरह वे व्यापार और पर्यावरण में भी प्रविष्ट हो चुके हैं।
कुछ कालों के दौरान सांस्कृतिक परिवर्तन अनिवार्य हो जाते हैं, परंतु भ्रष्टाचार इन परिवर्तनों को नकारात्मक दिशा में मोड़ता है और समाज के सरकारों, निगमों, मीडिया, मनोरंजन और शिक्षा से लेकर सभी सांस्कृतिक उत्पादों पर भ्रष्टाचार का प्रभाव पड़ता है, और बदले में ये सभी उत्पाद भ्रष्टाचार को प्रभावित करते हैं। संस्कृति के सच्चे मूल्य को समझने के लिए हमें भ्रष्टाचार के दूरगामी परिणामों को भी समझना पडे़गा जो आधुनिक समाज के सभी पहलुओं में रिस गए हैं।
चूंकि सामान्य रूप से स्वीकृत सामाजिक और सांस्कृतिक नियम व्यवहार को परिभाषित करते हैं और सीमित करते हैं अतः आज भारत में लोग यह भी मान सकते हैं कि व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से कार्य करना अनिवार्य है। यह लोगों को रिश्वत प्रस्तावित करने या देने के लिए और ऐसे ही अन्य बेईमानी के कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा, और अधिकारियों को यह रिश्वत की मांग करने और रिश्वत स्वीकार करने के लिए प्रेरित कर सकता है। एक बार भ्रष्ट प्रतिमान स्थापित हो जाते हैं तो उनकी प्रवृत्ति स्थाई बनने की हो जाती है, क्योंकि प्रतिमानों को तोड़ कर बाहर आने का अर्थ होगा अनिश्चितता का निर्माण करना। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण अपने साथ संस्कृति के लिए खतरे के रूप में समस्याओं और चुनौतियों की एक श्रृंखला लेकर आया है।
अतः एक प्रभावी भ्रष्टाचार विरोधी रणनीति के लिए भ्रष्टाचार के इस ‘‘सांस्कृतिक‘‘ पहलू से निपटना और धीरे-धीरे प्रचलित उन मानकों को परिवर्तित करना भी आवश्यक है जिनके कारण भ्रष्ट कार्यों को स्वीकृति मिली है और इनका प्रचार-प्रसार हुआ है।
5.0 सिफारिशें
विभिन्न विशेषज्ञों, रिपोर्टों और सिफारिशों के अनुसार एक भ्रष्टाचार विरोधी रणनीति को निम्न बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिएः
- नैतिक शिक्षाः इसका उद्देश्य व्यक्तियों को उनकी नैतिक निर्णय प्रक्रिया में बल प्रदान करना है। मूल्य संघर्ष और नैतिक दुविधा अक्सर लोगों के दैनिक जीवन में उत्पन्न होते हैं, उदाहरणार्थ जब निष्ठा जैसे पारिवारिक मूल्यों का निष्पक्षता जैसी कार्यात्मक नैतिकता से संघर्ष होता है, तो शिक्षा को वह कौशल प्रदान करना चाहिए जो इन संघर्षों की पहचान कर सके, और उन्हें सर्वोत्कृष्ट हितों की दृष्टि से सुलझाने के लिए प्रेरणा प्रदान कर सके।
- चरित्र शिक्षा एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण है जिसमें नागरिक शिक्षा शामिल है और यह विद्यार्थियों के जीवन के साथ शिक्षा के नैतिक आयामों को जोड़ती है। एक लोकतंत्र में सामाजिक दृष्टि से जिम्मेदार नागरिकों की विशेषताओं पर कक्षा आधारित पाठों और सामुदायिक गतिविधियों, दोनों में जोर दिया जाना चाहिए।
- नागरिकता और लोकतंत्र की शिक्षा का उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के सशक्तिकरण और राजनीति में सहभाग का होना चाहिए, और इसे प्रतिनिधित्व, एकजुटता, सहभाग, जिम्मेदारी और बहुवाद जैसे मूल्यों को बढ़ावा देना चाहिए। मतदाता शिक्षा को नागरिकों में मतदान की प्रक्रियाओं के प्रति जागरूकता निर्माण करना चाहिए, इसे भ्रष्टाचार विरोधी शिक्षा के रूप में भी माना जाना चाहिए। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के आचारशास्त्र और संगठनात्मक आचारशास्त्र में मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी घटक होते हैं, क्योंकि वे जवाबदेही, न्यायसंगति, निष्पक्षता और विधिसंगतता जैसे मूल्यों पर निर्मित होते हैं।
- युवाओं की भ्रष्टाचार विरोधी शिक्षा को विद्यालयों के विषयों में शामिल किया जाना चाहिए, जैसे नागरिकशास्त्र या नागरिकता की शिक्षा। पाठ्यक्रम को अनिवार्य रूप से नैतिक मुद्दों से जोड़ने के लिए समाविष्ट किया जाना चाहिए, और इसे सार्वजनिक कल्याण और सामाजिक न्याय जैसी संकल्पनाएँ प्रदान करना चाहिए, जो भ्रष्टाचार से लड़ने की आवश्यकता को समझने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इसे विद्यालय व्यवस्था के अंतर्गत शुरू करने से संपूर्ण अभियान सुदृढ होगा। युवा भ्रष्टाचार विरोधी शिक्षा को ऐसी विषयवस्तुओं के साथ जोडा जाना चाहिए जो युवाओं के लिए विशेष रूप से रोचक हों, उदाहरणार्थ आचारशास्त्र को खेलों के साथ जोड़ने से खेलों में भ्रष्टाचार के परिणाम, न्यायसंगति के मूल्य का अपमान इत्यादि संकल्पनाएँ छोटे बच्चों के लिए भी स्पष्ट हो जाएँगी। शिक्षा वास्तविक जीवन के उदाहरणों पर आधारित होनी चाहिए, ताकि विद्यार्थी उन्हें नैतिक दुविधाओं के साथ पहचान सकें। विद्यार्थियों के मूल्यों और अधिकारों का सम्मान करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, और भावना के बिना नैतिक निर्णयों के लिए उनकी क्षमताओं को सशक्त बनाना चाहिए।
- अभ्यास सिद्धांत से बेहतर हैः साधनों में विद्यार्थियों के सर्वेक्षणों और चुनावों का समावेश किया जाना चाहिए, भिन्न हितों की समझ को सुविधाजनक बनाने के लिए और संघर्ष निराकरण की क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए भूमिका नाटकों की मदद ली जानी चाहिए, लोकतंत्र किस प्रकार कार्य करता है यह समझने के लिए संसद सत्रों में सहभागी होना चाहिए, सार्वजनिक वाद-विवाद का आयोजन किया जाना चाहिए, और सार्वजनिक संस्थाओं के दौरे आयोजित किये जाने चाहियें। मूल्यों के संचरण के लिए विद्यालय अभ्यास भी एक महत्वपूर्ण साधन है। वह संदर्भ जिसमें सत्यनिष्ठा और आचारशास्त्र की शिक्षा दी जाती है उसे दमन और डर से मुक्त होना चाहिए। जो लोग पढ़ाते हैं उन्हें स्वयं पढ़ाये जाने वाले मूल्यों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए।
- उच्च शिक्षा की कार्यावलीः विश्वविद्यालयों को उनके शासन और आचारशास्त्र की कक्षाओं में भ्रष्टाचार विरोध का समावेश करना चाहिए। लोक प्रशासन, व्यापार, कानून और अर्थशास्त्र के विद्यालयों से लेकर तकनीकी और अभियांत्रिकी व्यवसायों तक भ्रष्टाचार विरोध पाठ्यक्रमों का एक अनिवार्य अंग होना चाहिए।
- व्यावसायिक शिक्षाः एक बार एक नागरिक बाल्यावस्था, विद्यालयीन शिक्षा, और उच्च शिक्षा के चरणों से गुजर कर व्यावसायिक जीवन में प्रवेश करता है तो यह आवश्यक है कि विभिन्न माध्यमों से उसमें भ्रष्टाचार विरोधी शिक्षा निरंतर आत्मसात होना जारी रहना चाहिए। वास्तव में यह भ्रष्टाचार विरोधी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण चरण है। क्योंकि व्यावसायिक जीवन ही वह स्थान है जहां व्यक्ति की सत्यनिष्ठा का नियमित परीक्षण होता है। चाहे व्यक्ति का व्यवसाय कोई भी क्यों न हो फिर भी व्यावसायिक शिक्षा महत्वपूर्ण है, और इसकी रचना इस प्रकार की जानी चाहिए यह विभिन्न क्षेत्रों के कार्यों की विशिष्ट दुविधाओं के समाधान प्रदान करने में सक्षम हो।
- जन जागरण अभियानों का आयोजन करना, भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागरूकता बढाने के लिए मीडिया, गैर सरकारी संगठनों, सामुदायिक संगठनों, विद्यालयों इत्यादि की संपूर्ण शक्ति का दोहन करना, साथ ही इस बात की सावधानी भी बरतना आवश्यक है कि उनके दुरुपयोग को रोका जा सके। (उदाहरणार्थ राजनीतिक सदस्यों के लिए, सामान्य निंदा के लिए इत्यादि)
- नागरिकों को भ्रष्टाचार से संबंधित नियमों और विनियमों की सूचना के लिए सुधारित अभिगम प्रदान करना ताकि उन्हें इस बात के लिए सशक्त बनाया जा सके कि वे लोक सेवकों से अधिक उच्च स्तरकी जवाबदेही की मांग करने में सक्षम बन सकें, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे स्वयं इसका पालन कर रहे हैं।
- भ्रष्टाचार संस्कृति के प्रति ‘‘शून्य सहनशीलता‘‘ को प्रोत्साहित करना भ्रष्टाचार विरोधी रणनीति का अनिवार्य घटक है। इसके लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करना आवश्यक है।
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