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भारतीय वायुसेना
1.0 प्रस्तावना
प्रौद्योगिकी के परिवर्तनों ने हवाई शक्ति को एक नए युग में प्रवेश दिया है जो उसे प्रभुत्व की स्थिति की ओर ले जा कर पारंपरिक युद्ध का स्वभाव बदल रहा है। यह द्वितीय युद्ध से ही काफी स्पष्ट हो गया था जिसमें हवाई वर्चस्व ने ज़मीन पर और समुद्र में विजयों की नींव रखी। अतः कोई भी देश जो अपने प्रभाव को अपनी सीमाओं से पार बढ़ाना चाहता है उसे एक सशक्त और व्यवहार्य वायुसेना रखना आवश्यक है।
शाही भारतीय वायुसेना (आरआईएएफ) की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को हुई थी, जिसकी प्रमुख जिम्मेदारी थी वायु आधारित युद्ध को संचालित करना और भारतीय वायु सीमा को सुरक्षित रखना। क्रमांक 1 स्क्वाड्रन की पहली उड़ान वापिती विमान के साथ द्रिघ रोड कराची से 1 अप्रैल 1933 को हुई थी। अंतर-युद्ध काल के दौरान आरआईएएफ एक स्थायी विस्तार के चरण से गुजरी, और लडाकू स्क्वाड्रनों की संख्या नौ तक बढ़ गई, जिनकी प्राथमिक भूमिका ‘‘थलसेना सहयोग‘‘ की थी।
वर्ष 2000 में भारतीय नेतृत्व ने एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की जिसमें यह लक्ष्य रखा गया कि 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्रों के समुदाय में मान्यता प्राप्त हो। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय वायुसेना (आईएएफ) अपनी दूरदृष्टि को प्रस्तावित योजना के तहत परिभाषित करती है।
प्रस्तावित योजना में अधिक उन्नत लडाकू विमान, परिष्कृत रक्षा प्रणाली और फुर्तीले दीर्घ मारक क्षमता वाले हथियार प्राप्त करना शामिल है, जिनके लिए आईएएफ को अगले कुछ दशकों के दौरान विशाल वित्तपोषण की आवश्यकता होगी। हालांकि, हद से अधिक व्यय के अतिरिक्त आईएएफ को इसे बनाये रखने के लिए एक अत्याधुनिक एयरोस्पेस उद्योग और अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठानों की भी आवश्यकता होगी। आईएएफ इन लक्ष्यों को 2020 तक पूरा करना चाहता है। इन सैद्धांतिक परिवर्तनों और विकासात्मक योजनाओं को हमारे पड़ोसी और कट्टर शत्रु बहुत ही संदेह की नजर से देखते हैं; पीएलएएएफ और पीएएफ (चीन और पाकिस्तान की वायु सेनाएं) अगले दशक के दौरान दक्षिण एशियाई क्षेत्र मे अपनी-अपनी सामरिक क्षमताओं में सुधार के साथ-साथ उच्च तकनीक की हथियार प्रणालियों और उपकरणों के प्रेरण को अनुभव करने के लिए मंच लगभग तैयार हो गया है।
2.0 संरचना एवं कमान
एयर चीफ मार्शल की रैंक के साथ वायुसेना प्रमुख भारतीय वायुसेना के सेनापति हैं। उनकी सहायता के लिए एयर मार्शल रैंक के छह अधिकारी हैं।
भारतीय वायुसेना पांच परिचालनात्मक और दो कार्यात्मक कमानों में विभाजित है। एक परिचालनात्मक कमान का उद्देश्य अपने दायित्व वाले क्षेत्र के अंदर विमानों का उपयोग करते हुए सैन्य अभियान संचालित करना है, जबकि कार्यात्मक कमान की जिम्मेदारी युद्ध मुस्तैदी को बनाये रखने की है। प्रत्येक कमान का नेतृत्व एयर मार्शल के साथ एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ द्वारा किया जाता है। बैंगलोर की प्रशिक्षण कमान के अलावा प्राथमिक उडान प्रशिक्षण केंद्र आंध्र प्रदेश के हैदराबाद की वायुसेना अकादमी में स्थित है। कमान पदों के लिए उन्नत अधिकारी प्रशिक्षण रक्षा सेवाएं कर्मचारी प्रशिक्षण महाविद्यालय में भी संचालित की जाती हैं। विशेषज्ञ उडान प्रशिक्षण विद्यालय कर्नाटक के बीदर और हकीमपेट (यहां हेलीकॉप्टर प्रशिक्षण केंद्र भी है) में स्थित हैं। तकनीकी विद्यालय अन्य अनेक स्थानों पर भी स्थित हैं।
परिचालनात्मक कमानें
- मध्य क्षेत्र वायु कमान (सीएसी), इसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है
- पूर्वी वायु कमान (ईएसी), इसका मुख्यालय मेघालय के शिलांग में स्थित है
- दक्षिणी वायु कमान (एसएसी), इसका मुख्यालय केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित है
- दक्षिण पश्चिमी वायु कमान (एसडब्लूएसी), इसका मुख्यालय गुजरात के गांधीनगर में स्थित है
- पश्चिमी वायु कमान (डब्लूएसी), इसका मुख्यालय दिल्ली के सुब्रोतो पार्क में स्थित है
कार्यात्मक कमानें
- प्रशिक्षण कमान (टीसी), इसका मुख्यालय कर्नाटक के बैंगलोर में स्थित है
- रखरखाव कमान (एमसी), इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में स्थित है
भारतीय वायुसेना के अन्य प्रतिष्ठानों में गरूड़ कमांडो बल, एकीकृत अंतरिक्ष कक्ष और अन्य अनेक प्रदर्शन टीमें शामिल हैं।
3.0 प्रमुख अभियान
3.1 प्रथम काश्मीर युद्ध
1947 में ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद जम्मू एवं काश्मीर के शाही राज्य पर नियंत्रण को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू हो गया। पाकिस्तानी बलों के राज्य में घुसने के साथ ही वहां के महाराजा ने सैन्य सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत में सम्मिलित होने का निर्णय लिया। परिग्रहण संधि के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होने के एक दिन बाद ही आरआईएएफ को फौजी टुकड़ियों को युद्ध क्षेत्र में ले जाने के लिए बुलाया गया। और इस समय एक कुशल रसद तंत्र सहायक सिद्ध हुआ। इसका परिणाम भारत और पाकिस्तान के बीच एक पूर्ण युद्ध में हुआ, हालांकि युद्ध की किसी प्रकार की औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी। युद्ध के दौरान आरआईएएफ पाकिस्तानी वायुसेना के साथ हवा से हवा के युद्ध में शामिल नहीं हुआ; हालांकि इसने भारतीय टुकड़ियों को महत्वपूर्ण प्रभावी परिवहन और ज़मीनी सैनिकों को निकट हवाई सहायता उपलब्ध कराई।
3.2 गोवा मुक्ति
1961 में, वार्ताओं की असफलता के बाद, भारत सरकार ने पुर्तगालियों को गोवा, दमन और दिउ से निष्काषित करने के प्रयास के लिए सशस्त्र बलों को तैनात करने का निर्णय लिया। भारतीय वायुसेना से अनुरोध किया गया कि वह, जिसे ऑपरेशन विजय कहा गया, उस अभियान में थलसेना को सहायता तत्व प्रदान करे। कुछ लड़ाकों और बमवर्षकों ने 8 से 18 दिसंबर के बीच पुर्तगाली वायुसेना को बाहर निकालने के लिए लगातार चक्कर काटे, परंतु इनका कोई परिणाम नहीं निकला। 18 दिसंबर को कैनबेरा बमवर्षकों की दो टोलियों ने दाबोलिम की हवाई पट्टी पर बमवर्षा की, किंतु उन्होंने इस बात का ख्याल रखा कि टर्मिनल और हवाई यातायात नियंत्रण टॉवर को किसी प्रकार की क्षति ना पहुंचे। हवाई पट्टी पर मिले दो पुर्तगाली परिवहन विमान (एक सुपर कॉन्स्टलेशन और एक डीसी-6) वैसे ही छोड़ दिए गए ताकि बाद में उनपर सही-सलामत अवस्था में कब्जा किया जा सके। हालांकि पुर्तगाली विमान चालकों ने क्षतिग्रस्त हवाई पट्टी से भी विमान उड़ा कर ले जाने में सफलता प्राप्त की, और वे पुर्तगाल भाग जाने में सफल हुए। इस अभियान में हंटर, वैम्पायर, मीसटेरे और औरंगन (जिन्हें आईएएफ में तूफानी कहा जाता था) की तैनाती की गई थी।
3.3 1971 का बांग्लादेश युद्ध
पीएएफ द्वारा श्रीनगर, अम्बाला, सिरसा, हलवारा और जोधपुर के भारतीय वायुसेना के प्रतिष्ठानों पर भयंकर पूर्वक्रमिक हमलों के बाद 3 दिसंबर 1971 को भारत ने औपचारिक रूप से पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। हालांकि इन हमलों में कोई विशेष क्षति नहीं हुई, क्योंकि भारतीय वायुसेना को इस प्रकार की कार्रवाई का पूर्वानुमान था। आईएएफ ने त्वरित प्रतिक्रिया दी और पहले दो हफ्तों में ही उसने पूर्वी पाकिस्तान पर लगभग 2000 हवाई हमले किये। उसने आगे बढ़ती थलसेना को निकट हवाई सहायता भी प्रदान की। आईएएफ ने भारतीय नौसेना को भी उसके पाकिस्तानी नौसेना और अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की समुद्री सुरक्षा एजेंसी के विरुद्ध चल रहे अभियानों में सहायता की। पश्चिमी मोर्चे पर लोंगेवाला की लड़ाई के दौरान आईएएफ ने 29 से भी अधिक पाकिस्तानी टैंकरों, 40 एपीसी और एक रेलगाड़ी को नष्ट किया।
युद्ध का अंत होते-होते आईएएफ के परिवहन विमानों ने ढ़ाका पर ऊपर से पर्चे गिराये जिनमें पाकिस्तानी बलों को आत्मसमर्पण करने का आग्रह किया गया था। इस कार्रवाई से पूर्वी पाकिस्तान में विद्यमान पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूट गया।
3.4 1999 का कारगिल युद्ध
11 मई 1999 को जब कारगिल युद्ध अपने चरम पर था, उस समय भारतीय वायुसेना को हेलिकॉप्टर्स के उपयोग से भारतीय थलसेना को निकट हवाई सहायता देने के लिए बुलाया गया। आईएएफ के हमले का कूट नाम ऑपरेशन सफेद सागर रखा गया था। पहला हमला 26 मई को किया गया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने लडाकू विमानों और हेलीकॉप्टर गनशिप्स के साथ घुसपैठियों के ठिकानों को निशाना बनाया। शुरुआती हमलों में मिग-27 द्वारा मिग-21 के साथ आक्रामक उड़ानें भरी गईं, जिन्हें मिग-29 लड़ाकू विमानों ने संरक्षण प्रदान किया। आईएएफ ने सीमा पार पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में अपने रडार और मिग-29 लड़ाकू विमान भी तैनात किये। श्रीनगर हवाई अड्डा इस समय नागरिक हवाई यातायात के लिए बंद कर दिया गया था, और पूर्ण रूप से भारतीय वायुसेना को समर्पित कर दिया गया था।
27 मई को भारतीय वायुसेना को अपनी पहली क्षति सहन करनी पड़ी जब उसे एक के बाद एक अपना एक मिग-21 विमान और एक मिग-29 विमान खोना पड़ा। मिराज 2000 को लड़ाकू सहयोग प्रदान करने के लिए मिग-29 का व्यापक पैमाने पर उपयोग किया गया था। मिराज विमानों ने सफलतापूर्वक कारगिल क्षेत्र में शत्रु की छावनियों और रसद ठिकानों को निशाना बनाया और उनकी आपूर्ति पंक्तियों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया। मिराज 2000 का उपयोग मुन्थो ढ़ालो और उच्च सुरक्षायुक्त टाइगर हिल पर हमलों के लिए किया गया, और उनपर शीघ्र कब्जा करने का मार्ग साफ किया। लड़ाई के चरम पर आईएएफ कारगिल क्षेत्र पर प्रतिदिन चालीस से भी अधिक आक्रामक उड़ानों का संचालन कर रहा था। 26 जुलाई तक भारतीय फौजों ने सफलतापूर्वक पाकिस्तानी फौजों को कारगिल से खदेड़ दिया था।
3.5 संयुक्त राष्ट्र के अभियान
आईएएफ को संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए बुलाया जा चुका है। इसके कुछ प्रमुख सहयोग काँगो और सिएरा लेओन में थे।
4.0 आज की भारतीय वायुसेना
आज आईएएफ विश्व की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना है। रक्षा व्यय की दृष्टि से यह विश्व के दस बडे़ देशों में, और रक्षा सामग्री आयात की दृष्टि से तीन सबसे बडे़ देशों में समाविष्ट है। आईएएफ का वर्तमान लक्ष्य दीर्घ मारक क्षमता, घातक और सटीक निर्देशित युद्ध सामग्री, टोही, निगरानी और लक्ष्य प्राप्ति प्रणालियां हासिल करने का है। भारत का रक्षा व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2 प्रतिशत है, और उसका रक्षा बजट प्रतिवर्ष 7 प्रतिशत से बढ़ने की संभावना है। 1990 के दशक के उत्तरार्ध से इसके आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में, पुराने विमानों की सेवा निवृत्ति के कारण आईएएफ के आकार में कमी आई है, और आईएएफ का वर्तमान संख्या बल इसके सर्वकालीन न्यून स्तर 29 स्क्वार्ड्न (बेड़ों) पर है, जबकि इसका अधिकृत स्तर 39 स्क्वाड्रन है।
हालांकि अब भी आईएएफ के पास 800 से अधिक लडाकू विमान है, जिनमें आक्रामक और रक्षात्मक क्षमता का संतुलित मिश्रण है, जिसकी क्षमता हवाई परिचालन के समस्त कार्य संचालित करने की है। सुखोई एसयू-30एमकेआई आईएएफ का मुख्य आधार है, जिसकी बहु-भूमिका क्षमता है। आईएएफ ने कुल 272 एसयू-30एमकेआई के आदेश दिए हैं जिनमें से 159 जून 2011 तक सेवा में थे।
भारतीय वायुसेना में विमान एवं उपकरण रूसी (तत्कालीन सोवियत संघ), ब्रिटिश, फ्रेंच, इसराइली, अमेरिकी बनावट के और स्वदेशी निर्मित हैं, जबकि इसकी फेहरिस्त में रूसी विमानों का वर्चस्व है। एचएएल अनुज्ञप्ति (लायसेंस) के तहत कुछ रूसी और ब्रिटिश विमानों का उत्पादन भारत में करता है। भारयीय वायुसेना की सेवा में विद्यमान विमानों की सटीक संख्या खुले स्त्रोतों से निर्धारित नहीं की जा सकती। विभिन्न विश्वस्त सूत्र उच्च दृश्यता वाले विमानों के लिए भिन्न-भिन्न अनुमान बताते हैं।
4.1 हवाई पूर्व चेतावनी विमान (AEWC)
वर्तमान में आईएएफ ईएल/डब्लू - 2090 फालकन एईडब्लू एवं सी परिचालित करता है। वर्तमान में इस प्रकार की कुल तीन प्रणालियां सेवा में हैं, और शायद और दो का आदेश दिया हुआ है। हवाई पूर्व चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली (एईडब्लूएसीएस) भारत की वायुसेना के लिए एडब्लूएसीएस प्रणाली विकसित करने के लिए डीआरडीओ की परियोजना है। डीआरडीओ के एईडब्लूएसीएस कार्यक्रम का लक्ष्य भारतीय वायुसेना को तीन रडार से लैस निगरानी विमान प्रदान करने का है। इसके लिए चयन किया गया विमान प्लेटफार्म था एम्ब्राएर ईआरजे 145 एम्ब्राएर से तीन ईआरजे 145 खरीदे गए थे, जिनकी लागत 300 मिलियन डॉलर इसमें एयरफ्रेम में अनुबंधित परिवर्तन भी शामिल थे। इन उपकरणों के तीन की पहली बैच 2015 तक मिलने की संभावना है।
4.2 बहु-भूमिका लड़ाकू और आक्रमण विमान
भारतीय वायुसेना का वायु श्रेष्ठता के लिए लडाकू विमान, जिसमें हवा से ज़मीन पर मार करने की अतिरिक्त क्षमता हो, है सुखोई एसयू-30 एमकेआई। आईएएफ ने कुल 272 विमानों के लिए आदेश दिए हैं, जिनमें से 170 विमान 2013 तक सेवा में आ चुके थे। मीकोयन मिग-29, जिसे बाज़ कहा जाता है, एक समर्पित वायु श्रेष्ठता लड़ाकू विमान है, और सुखोई एसयू-30 एमकेआई के बाद यह भारतीय वायुसेना की दूसरी रक्षा पंक्ति है। 66 मिग-29 वर्तमान में सेवा में हैं, जिनमें से सभी का मिग-29 यूपीजी मानक में उन्नयन किया जा रहा है। दसॉल्ट मिराज 2000 जिसे भारतीय सेवा में वज्र कहा जाता है, वह बुनियादी बहु-भूमिका लड़ाकू विमान है। वर्तमान में आईएएफ 51 मिराज 2000एच परिचालित कर रहा है, जिनका वर्तमान में मिराज 2000-5 एमके2 मानक में उन्नयन किया जा रहा है। मीकोयन गुरेविच मिग-21 भारतीय वायुसेना में एक रोधी विमान की भूमिका निभाता है। भारतीय वायुसेना ने चरणबद्ध रूप से अपने अधिकांश मिग-21 विमानों को बाहर किया है, और उसकी योजना केवल 125 वे विमान रखने की है, जिनका मिग-21 बाइसन मानक में उन्नयन किया गया है। इन विमानों को 2014 से 2017 के बीच धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से बाहर किया जायेगा। ऐसी योजना है कि इन मिग-21 विमानों को एचएएल द्वारा निर्मित स्वदेशी तेजस विमानों द्वारा प्रतिस्थापित किया जायेगा।
एसईपीईकैट जगुआर जिसे शमशेर कहा जाता है, और मीकोयन मिग-27 जिसे बहादुर कहा जाता है, ये दोनों विमान भारतीय वायुसेना के बुनियादी जमीनी आक्रमण बल बनाते हैं। वर्तमान में आईएएफ 139 जगुआर विमानों का और 100 से अधिक मिग-27 विमानों का परिचालन करता है।
4.3 टैंकर और परिवहन विमान
वर्तमान में आईएएफ 6 इल्युशिन 2-78 एमकेआई विमानों को आयुध ईंधन पुनर्भरण (टैंकर) की भूमिका में परिचालित कर रहा है। सामरिक सैन्य परिवहन के लिए आईएएफ इल्युशिन इल-76 का उपयोग भारतीय सेवा में करता है, जिन्हें गजराज़ कहा जाता है। वर्तमान में आईएएफ 17 इल-76 विमानों का परिचालन कर रहा है जिन्हें निकट भविष्य में अनेक सी-17 ग्लोबमास्टर-3 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना है। जुलाई 2014 तक छः ग्लोबमास्टर सेवा में आ चुके थे।
आईएएफ के सी-130जे विमानों का उपयोग विशिष्ट बलों द्वारा संयुक्त थलसेना-वायुसेना अभियानों के लिए किया जाता है। वर्तमान में 6 सी-130जे विमान सेवा में हैं। आईएएफ में सतलज नामक एंटोनोव एएन-32 विमान एक मध्यम परिवहन विमान के रूप में सेवाएं प्रदान करते हैं। यह विमान बमबारी भूमिका और हवाई छतरी से सैनिकों को उतारने की भूमिका में भी सेवा प्रदान करता है। वर्तमान में आईएएफ 105 एएन-32 विमानों को परिचालित कर रहा है, जिन सभी को उन्नत किया जा रहा है। आईएएफ में डोनियर डीओ 228 विमान का एक हल्के परिवहन विमान के रूप में उपयोग किया जाता है। आईएएफ बोइंग 737 और एम्ब्रायर ईसीजे-135 विरासत विमानों का उपयोग अति-विशिष्ट व्यक्तियों के परिवहन विमान, और सैन्य टुकड़ियों के यात्रियों के रूप में परिवहन के लिए किया जाता है। अन्य अति विशिष्ट व्यक्ति विमानों का उपयोग आमंत्रण चिन्ह एयर इंडिया वन के तहत भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए किया जाता है।
हॉकर सिडले एचएस 748 किसी ज़माने में आईएएफ के परिवहन बेडे़ की रीढ़ हुआ करते थे, परंतु वर्तमान में इनका उपयोग मुख्य रूप से केवल प्रशिक्षण और संचार कार्यों के लिए किया जाता है। इनका प्रतिस्थापन भी विचाराधीन है।
4.4 प्रशिक्षक विमान
छात्र सैनिकों के लिए एचएएल एचपीटी-32 दीपक आईएएफ का प्राथमिक उडान प्रशिक्षण विमान है। एचपीटी-32 को जुलाई 2009 में रोक दिया गया था। इसका कारण था इससे पहले हुई दुर्घटना जिसमें दो वरिष्ठ उड़ान प्रशिक्षकों की मृत्यु हुई थी, परंतु मई 2010 में इसे वापस सेवा में ले लिया गया, और इसमें एक पैराशूट रिकवरी प्रणाली लगाई जाने वाली है, ताकि हवा में होने वाली किसी भी आपदा के समय जीवित रहने की संभावनाएं बढ़ाई जा सकें, और प्रशिक्षक को सही सलामत नीचे लाया जा सके। एचपीटी-32 को शीघ्र ही चरणबद्ध तरीके से बाहर किया जाने वाला है। मध्यवर्ती उड़ान प्रशिक्षण के लिए आईएएफ एचएएल एचजेटी-16 किरण एमके1 का उपयोग कर रहा है, जबकि एचएएल एचजेटी-16 किरण एमके2 उन्नत प्रशिक्षण और आयुध प्रशिक्षण प्रदान करता है। एचएएल एचजेटी-16 किरण एमके2 का उपयोग आईएएफ की सूर्यकिरण एरोबेटिक टीम भी करती है। किरण को एचएएल एचजेटी-36 सितारा द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना है। बीएई हॉक एमके 132 आईएएफ में उन्नत जेट प्रशिक्षण विमान के रूम में उपयोग किया जाता है, और यह धीरे-धीरे किरण एमके2 का स्थान लेता जा रहा है। आईएएफ ने सूर्यकिरण प्रदर्शन टीम को हॉक में परिवर्तित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। आईएएफ द्वारा कुल 106 बीएई हॉक प्रशिक्षक विमानों का आदेश दिया गया है, जिनमें से 39 जुलाई 2010 तक सेवा में आ चुके थे।
75 पिलाटस पीसी-7 एमके-2 विमान की खरीद को मंत्रिमंडल समिति की मंजूरी मिल है। यह निर्णय प्राथमिक प्रशिक्षक विमानों की गंभीर कमी के चलते लिया गया। 24 मई 2012 को आईएएफ ने 75 पीसी-7 विमानों की खरीद के लिए पिलाटस कंपनी के साथ 2800 करोड़ रुपये के एक सौदे पर हस्ताक्षर किये। इनमें से और 37 विमानों का आदेश अनुवर्ती-पर अनुबंध के तहत दिया गया है, जो आईएएफ के पास इन विमानों की संख्या को बढ़ा कर 112 कर देगा।
4.5 हेलीकॉप्टर
एचएएल ध्रुव मुख्य रूप से भारतीय वायुसेना में एक हल्के उपयोगिता वाहन का कार्य करता है। परिवहन और उपयोगिता भूमिकाओं के अलावा नए संस्करण के ध्रुव हेलीकॉप्टरों का उपयोग आक्रमण हेलीकॉप्टरों के रूप में भी किया जा रहा है। 4 ध्रुव हेलीकॉप्टरों का संचालन भारतीय वायुसेना सारंग हेलीकॉप्टर प्रदर्शन टीम द्वारा भी किया जा रहा है। एचएएल चेतक भी एक हल्का उपयोगिता हेलीकॉप्टर है और भारतीय वायुसेना में इसका उपयोग प्रमुख रूप से प्रशिक्षण, बचाव कार्य और हल्के परिवहन कार्यों के लिए किया जाता है। एचएएल चेतक को धीरे-धीरे एचएएल ध्रुव से प्रतिस्थापित किया जा रहा है। एचएएल चीता एक हल्का उपयोगिता हेलीकॉप्टर है, जिसका उपयोग उच्च ऊंचाईयों के अभियानों के लिए किया जाता है। भारतीय वायुसेना में इसका उपयोग परिवहन और खोज और बचाव अभियानों के लिए किया जाता है। मिल एमआई-8 और मिल एमआई-17 का उपयोग भारतीय वायुसेना द्वारा मध्यम उपयोगिता भूमिकाओं के लिए किया जाता है। एमआई-8 हेलीकॉप्टरों को धीरे-धीरे एमआई-17 द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। भारतीय वायुसेना ने 80 एमआई-17वी-5 हेलीकॉप्टरों के लिए आर्डर दिया हुआ है, ताकि उसके पास मौजूद एमआई-8 और एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के बेडे़ को प्रतिस्थापित किया जा सके, इसके बाद जल्द ही 59 अतिरिक्त हेलीकॉप्टरों के लिए भी आर्डर दिया जाने वाला है। मिल एमआई-26 को भारतीय वायुसेना द्वारा एक भारी उत्थापक हेलीकॉप्टर के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। इसका उपयोग सैन्य टुकड़ियों के परिवहन के लिए और एक उडन रुग्ण यान के रूप में भी किया जाता है। भारतीय वायुसेना वर्तमान में 4 एमआई-26 हेलीकॉप्टर परिचालित कर रहा है।
भारतीय वायुसेना के मिल एमआई-35 हेलीकॉप्टर मुख्य रूप से एक आक्रमण हेलीकॉप्टर के रूप में सेवा प्रदान कर रहे हैं। मिल एमआई-35 हेलीकॉप्टर का उपयोग एक कम क्षमता वाले सैन्य टुकड़ी परिवहन वाहन के रूप में भी किया जा सकता है। भारतीय वायुसेना वर्तमान में एमआई-25/35 हेलीकॉप्टरों की दो स्क्वार्ड्नों का (क्रमांक 104 फायरबर्ड और क्रमांक 125 ग्लैडिएटर) परिचालन कर रही है।
4.6 मानवरहित हवाई वाहन
वर्तमान में भारतीय वायुसेना आईएआई सर्चर 2 और आईएआई हेरॉन का उपयोग टोही और निगरानी कार्यों के लिए कर रही है। आईएआई हार्पी एक मानवरहित लडाकू हवाई वाहन के रूप में सेवा प्रदान करता है, जिसकी रचना रडार प्रणाली पर आक्रमण करने की दृष्टि से की गई है। भारतीय वायुसेना डीआरडीओ लक्ष्य का भी परिचालन करती है जो जीवंत युद्ध प्रशिक्षण के लिए एक वास्तविक खींचे जाने वाले हवाई उप-लक्ष्यों के रूप में सेवा प्रदान करते हैं।
4.7 भू-आधारित मिसाइल प्रणालियां
जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालीः भारतीय वायुसेना वर्तमान में एस-125 पेचोरा और 9के33 ओसा का परिचालन जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों के रूप में कर रही है। वर्तमान में भारतीय वायुसेना आकाश नामक मध्यम दूरी की जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली को भी शामिल कर चुकी है। अभी तक 8 स्क्वाड्रनों का आदेश दिया जा चुका है।
बैलिस्टिक मिसाइलः भारतीय वायुसेना वर्तमान में पृथ्वी-2 अल्प-दूरी बैलिस्टिक मिसाइल (SRBM) का परिचालन कर रही है। पृथ्वी-2 मिसाइल पृथ्वी बैलिस्टिक मिसाइल का भारतीय वायुसेना विशिष्ट संस्करण है।
5.0 2020 के लिए भारतीय वायुसेना की आधुनिकीकरण योजना
परमाणुकृत क्षेत्र में भारतवासी चीन और पाकिस्तान की ओर से बडे़ आश्चर्यजनक आक्रमणों की उम्मीद नहीं कर रहे हैं, बल्कि केवल ‘‘सीमित‘‘ संघर्षों की उम्मीद की जा रही है, जिनमें भारतीय वायुसेना की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है। इस प्रकार के परिदृश्य में भारतीय आयुसेना को तीन उद्देश्यों की पूर्ति करना है। प्रथमतः सभी दी गई जिम्मेदारियों को पूर्ण करना, दूसरा, शत्रु जो भी करता है उसे निष्फल करना, और अंत में, अन्य सभी सशस्त्र बलों को प्रभावी सहायता प्रदान करना। ‘‘यदि संभाव्य आक्रमण की स्थिति निर्मित होती है तो इस प्रकार की रणनीति के सफल क्रियान्वयन के लिए भारतीय वायुसेना के लिए अनिवार्य है कि वह पाकिस्तान के विरुद्ध संख्यात्मक और गुणात्मक श्रेष्ठता बनाये रखे, और चीन के विरुद्ध पर्याप्त प्रत्यादेशक शक्ति - जो तकनीकी और परिचलात्मक श्रेष्ठता से प्रवाहित होती है - बनाये रखे।‘‘
स्वयं को आधुनिक बनाने के भारतीय वायुसेना के अभियान को स्वयं ही गति और समर्थन कारगिल युद्ध के परिणाम से प्राप्त हुआ। एक ऐसे युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना का नेतृत्व हवाई शक्ति की प्रभावकारिता को सिद्ध करने में सक्षम रहा, जिसमें हवाई गतिविधियाँ समय के साथ-साथ और अधिक विकसित होती गईं। अतः कारगिल समीक्षा समिति द्वारा की गई सिफारिशों ने 15-वर्षीय रक्षा योजना में से भारतीय वायुसेना को सबसे अधिक हिस्सा प्रदान करने की धारणा की नींव रखी, अर्थात, इच्छित प्रेरण और उन्नयन के लिए लगभग 30 बिलियन डॉलर।
5.1 विमान और हथियार प्रणालियां
भारतीय वायुसेना ने अपने ‘‘हवाई वर्चस्व लडाकू जेट्स‘‘ एसयू 30एमकेआई की संख्या को पर्याप्त 272 तक बढ़ाने की योजना बनाई है। यह सौदा 1968 में सोवियत संघ के साथ किये गए मिग 21 के सौदे के बाद का रूस के साथ किया गया सबसे बड़ा विमान सौदा है। भारतीय वायुसेना पहले ही अपने पुराने हो चुके रूसी मिग 29 लड़ाकू विमानों और आईएल 76 हवाई उत्थापकों के उन्नयन के लिए रूस के साथ कार्य करती रही है, जबकि भारतीय नौसेना ने 45 मिग 29के के नौसैनिक संस्करण के विमानों की मांग की है।
एलसीए एक छोटा, हल्का, पराध्वनिक, बहु-भूमिका, एकल सीटर लड़ाकू विमान है, जिसकी रचना एक अग्रिम पंक्ति, बहु अभियानी रणनीतिक विमान के रूप में कार्य करने की दृष्टि से की गई है। हल्का लडाकू विमान (एलसीए) भारत में ही निर्मित किया जा रहा है, और इसका प्राथमिक उद्देश्य पुराने हो चुके मिग 21 विमानों के बेडे़ को प्रतिस्थापित करना है। भारतीय वायुसेना की अनुमानित आवश्यकता 220 विमानों की है। एलसीए के प्रेरण में हो रहे विलंब और मिग 21 को चरणबद्ध तरीके से बाहर करने की समय सीमा के कारण घटती शक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए भारतीय वायुसेना को 126-200 लड़ाकू विमान शामिल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। भारतीय वायुसेना ने अपनी भविष्यकालीन मध्यम बहुभूमिका लड़ाकू विमानों के लिए योग्यता आवश्यकताएं ग्रिपेन, राफेल, मिग-35, यूरो फाइटर और एफ-16/18 के विनिर्माताओं के समक्ष रख दी हैं। भारतीय वायुसेना का नेतृत्व इन विकल्पों का मूल्यांकन एक दशक से अधिक समय से करता रहा है, परंतु मूल्यांकन और निर्णय प्रक्रिया अत्यंत धीमी रही है। भारत बहुभूमिका परिवहन विमान और रूस के पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों में सहयोग और विकास के प्रति प्रतिबद्ध है। यह प्रतिबद्धता उनके परिचलात्मक होने के बाद उन्हें खरीदने तक विस्तारित है।
5.2 बल गुणक
1996 से भारतीय वायुसेना ने सफलतापूर्वक आईएल-78 को हवा से हवा में ईंधन पुनर्भरण विमानों के रूप में शामिल किया है, और अपने कुछ जगुआर, मिराज और सी हैरियर को इस कार्य के लिए संशोधित किया है। मध्यम उत्थापक हेलीकॉप्टरों सहित वायुसेना के सभी विमानों में उड़ान के दौरान ईंधन पुनर्भरण की क्षमता है, और सामरिक वायुयान परिसंपत्तियों को संवर्धित किया जायेगा। आईएल-78 टैंकर परिवहन बल ने भारतीय वायुसेना को अविश्वसनीय बल गुणक क्षमता प्रदान की है, जबकि आईएल-76 सवार फालकन एईडब्लू एवं सी प्रणाली अभूतपूर्व लंबी दूरी की लक्ष्य अधिग्रहण और पहचान प्रदान करेगी, जिससे हवाई और जमीनी युद्ध प्रबंधन कार्यों की एक बड़ी श्रंखला एकसाथ निष्पादित करने की क्षमता प्राप्त होगी।
भारतीय वायुसेना की बल गुणकों की खोज़ ने ईडब्लू और टोही में भी महत्वपूर्ण पैठ बनाई है। भारतीय वायुसेना की इन्वेंट्री में विशाल इलेक्ट्रॉनिक खुफिया तंत्र (एलिंट) जमावडा और टोही परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं। अधिकांश एलिंट विमान (बी-707, एएन-32 और बी-737) का परिचालन विमानन अनुसंधान केंद्र के तत्वावधान में किया जाता है और फोटोग्राफिक टोही परिसंपत्तियों का परिचालन सीधे भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाता है। हाल ही में शुरू किये गए उच्च ऊँचाई मानवरहित हवाई वाहनों ने भारतीय वायुसेना को लगभग वास्तविक समय टोही क्षमता का अपना पहला महत्वपूर्ण अनुभव प्रदान किया है। ऐसी संभावना है कि 2020 तक रक्षा बल अपनी खुफिया संग्रहण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए समर्पित उपग्रह तैनात कर देंगे।
जहां तक हवा में पूर्व चेतावनी (एईडब्लू) क्षमता का संबंध है, भारतीय वायुसेना अपने बेडे़ में एक एईडब्लू और नियंत्रण विमान शामिल करने के लिए 1990 के दशक से ही बेतहाशा प्रयास करती रही है। रूसी ए-50 एईडब्लू एवं सी एक समय में 100 तक लक्ष्यों को उठा सकता है, और एक लड़ाकू विमान के आकार के विरुद्ध इसकी पता लगाने सीमा 230 किलो मीटर है। इस्राइली फालकन एईडब्लू प्रणाली की क्षमता 333 किलोमीटर है, और जब यह स्कैन अवस्था में रहता है, तो यह एक समय में मार्ग के 500 लक्ष्यों से निपट सकता है।
5.3 प्रशिक्षण
भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की योजना में सबसे बडी चुनौती है शामिल की जा रहीं परिष्कृत प्रणालियों को परिचालित करने के लिए आवश्यक बल को इतने विशाल क्षेत्र में इतनी कम अवधि के दौरान तैनात करना, अनुकूलित करना, और बनाये रखना। अत्याधुनिक विमान, स्मार्ट हथियार प्रणालियां, जटिल सेंसर, अंतरिक्ष आधारित निगरानी और टोही प्रणालियां, नेटवर्क उन्मुख वातावरण, इन सभी के लिए एक उतनी ही उन्नत प्रशिक्षण वातावरण के समर्थन की आवश्यकता है। कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षण प्रणालियां, सभी संकायों के लिए विस्तृत अनुकरण उपकरण, स्वचालित दूरस्थ शिक्षा और मूल्यांकन प्रणालियां, इन सभी को अब व्यवस्था का भाग बनाना अत्यंत आवश्यक होता जा रहा है, और यह केवल अधिकारी वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि ऑपरेटरों और नेतृत्व के स्तर तक भी।
जहां तक विमान चालकदल प्रशिक्षण का संबंध है, भारतीय वायुसेना अपने वैमानिकों को कठोर प्रशिक्षण प्रदान करता है। हालांकि यह एक ऐसी समस्या है जिसका अनेक अध्ययनों और प्रस्तावों के बावजूद भारतीय वायुसेना का नेतृत्व समाधान ढूंढ़ने में असफल रहा है। समस्या उन्नत लडाकू विमान प्रशिक्षण स्तर पर और भी गंभीर है, क्योंकि मिग उडान प्रशिक्षण इकाइयों के विमान अब लगभग 30 वर्ष पुराने हो चुके हैं, और मरम्मत की दृष्टि से भी इनकी स्थिति काफी गंभीर है। भारतीय वायुसेना कई वर्षों से उन्नत जेट प्रशिक्षक खरीदने के लिए प्रयासरत है, ताकि उच्च निष्पादन विमानों में संक्रमण आसान हो सके। अब भारतीय वायुसेना ने 66 हॉक उन्नत प्रशिक्षक प्राप्त किये हैं, जो बहुत ही अपर्याप्त हैं। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स द्वारा निर्मित एचपीटी-32 प्रकार के प्रशिक्षण विमानों का वर्तमान बेडा दुर्घटनाओं की बडी श्रृंखला के कारण 2009 से ही बाहर किया जा चुका है।
5.4 अंतरिक्ष कार्यक्रम
भारतीय वायुसेना की एक अन्य आकांक्षा है, और वह है ‘‘अंतरिक्ष‘‘। उसने पहले ही एक एयरोस्पेस समूह गठित कर लिया है, जो एयरोस्पेस कमान की नींव रखेगा। ‘‘जबकि अंतरिक्ष आधारित घातक हथियार प्रणालियों के उपयोग की अवधारणा अभी काल्पनिक ही प्रतीत होती है, फिर भी प्रकाशीय, रड़ार और आईआर सेंसरों का उपयोग करते हुए अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से संचार और निगरानी के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है।‘‘ हालांकि भारतीयों की एक महत्वाकांक्षी योजना है, 2020 तक चंद्रमा पर एक मनुष्य को भेजना।
भारतीय वायुसेना इस समय जिस चुनौती का सामना कर रही है वह है अपने आपको एक ‘‘अंतरिक्ष शक्ति‘‘ में बदलना, क्योंकि अंतरिक्ष से संबंधित मामलों से निपटने के लिए देश में कई संगठन हैं। रक्षा इमेजरी प्रसंस्करण और विश्लेषण केंद्र (डीआईपीएसी) भारतीय उपग्रह आधारित चित्र अधिग्रहण को नियंत्रित करता है और केवल खुफिया, निगरानी और टोही कार्यों को परिचालित करता है। जबकि नौपरिवहन, संचार, खोज और बचाव, पूर्व चेतावनी, अंतरिक्ष नियंत्रण और बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा जैसे अन्य अंतरिक्ष अनुप्रयोगों को हवाई शक्ति के साथ एकी.त किया जाना आवश्यक है, ताकि इसकी क्षमता में बडे पैमाने पर वृद्धि की जा सके। हाल ही में गठित एयरोस्पेस समूह को अंतरिक्ष से संबंधित अन्य विभागों और संगठनों से बातचीत करने का कार्य सौंपा गया है, ताकि भारतीय वायुसेना की समग्र युद्ध शक्ति में वृद्धि की जा सके, और अब यह इन संगठनों के विशाल नेटवर्क की जिम्मेदारी होगी कि वे भारतीय वायुसेना को वास्तव में एक एयरोस्पेस शक्ति बनने में सहायता प्रदान करें।
भारतीय नेतृत्व ने स्पष्ट रूप से अपने इन उद्देश्यों की रूप रेखा बना ली है कि 2020 तक भारत को एशिया में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभारना चाहिए। वास्तव में, भारत के पास वह सब कुछ है जो इतिहास के किसी भी कालखण्ड के दौरान किसी भी महान देश के पास रहा है; मानव शक्ति, प्राकृतिक संसाधन और सबसे ऊपर उसकी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा, जो पश्चिमी विश्व को स्वीकार्य है। अपनी भूमिका को प्रभावी ढ़ंग से निभाने के लिए भारत उपयुक्त स्थिति में है और सुविधाजनक स्थान पर स्थित है, भौगोलिक दृष्टि से, सांस्कृतिक दृष्टि से, और अन्य दृष्टि से भी।
अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु, ‘‘भारतीय वायुसेना ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। एक उपमहाद्वीपीय बल की अपनी स्थिति से वह अपने आपको महाद्वीपीय पहुँच और प्रभाव बनाने वाली शक्ति बनने की दृष्टि से परिवर्तित कर रही है।‘‘ भारतीय वायुसेना ने अपना अब तक का पहला वायु शक्ति सिद्धांत (एपीडी) 1995 में निर्मित किया, जो हवाई युद्ध के बदलते स्वरुप, और एक परमाणु वातावरण में परिचालन की चुनौतियों की आवश्यकताओं के अनुरूप है।
6.0 पाकिस्तान वायुसेना (पीएएफ)
अगस्त 1947 में उपमहाद्वीप के हुए विभाजन के तुरंत बाद शाही पाकिस्तान वायुसेना (आरपीएएफ) की स्थापना हुई। विभाजन के इस क्षेत्र में बहुत ही अल्प ब्रिटिश अधोसंरचना का भाग अस्तित्व में था जो उस देश के उत्तर पश्चिमी जनजातीय पट्टे के स्थानीय कबायली विद्रोहियों के विरुद्ध लड़ने में सक्रिय रहा। ब्रिटिश साम्राज्य की जाती हुई फौज द्वारा अपने अल्प हिस्से के सौंपे गए विमानों के साथ आरपीएएफ ने विनम्र शुरुआत की। उपसर्ग शाही को 23 मार्च 1956 को हटा दिया गया और तभी से इसे पाकिस्तान वायुसेना (पीएएफ) कहा जाता है। अपनी शुरुआत से ही पीएएफ ने सक्रिय युद्ध भी लडे हैं और भारत के साथ उच्च तनाव के कई दौर भी देखे।
पीएएफ को उसके दुश्मनों द्वारा और उसके सहयोगियों द्वारा भी एक उच्च व्यावसायिक बल माना जाता है। शीत युद्ध के युग के दौरान, और बाद में भी, पश्चिमी मित्र राष्ट्रों का एक भाग होने के कारण पीएएफ को अत्याधुनिक विमानों और साज़ो-सामान को परिचालित करने का अवसर प्राप्त हुआ है, जिनमें अमेरिकी एफ-86, एफ-104 जैसी प्रणालियां शामिल हैं। हालांकि, सोवियत संघ के अफगानिस्तान छोड़ने के तुरंत बाद अमेरिका द्वारा कठोर आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाये गए, जिनके कारण समग्र रूप से पाकिस्तानी सेना को, और विशेष रूप से पीएएफ को नई युद्ध सामग्री खरीदने से, विद्यमान सामग्री में उन्नयन करने से और अपने पुराने पड चुके सामान के प्रतिस्थापन से वंचित रहना पड़ा। इसलिए 1990 का संपूर्ण दशक उसे अपेक्षाकृत पुरानी सामग्री के रखरखाव, प्रशिक्षण और परिचालन पर निर्भर रहना पड़ा। 9/11 के बाद ही अमेरिका की इस क्षेत्र में रूचि विकसित हुई और एक बार फिर से पाकिस्तान से अफगानिस्तान में चलाये जा रहे अमेरिकी और नाटो अभियानों में समर्थन और सहायता का अनुरोध किया गया, और इस प्रकार धन और साज़ो-सामान का प्रवाह एक बार फिर से बहाल हुआ।
7.0 उपसंहार
युद्ध कौशल के स्वरुप पर आरएमए प्रौद्योगिकियों का प्रभाव भविष्य की वायु शक्ति के समक्ष अभिनव और सर्वव्यापक बनने की चुनौतीपूर्ण मांग प्रस्तुत करता है। भविष्यकालीन युद्ध दीर्घ मारक क्षमता वाले सटीक आक्रमण, सामरिक निगरानी और अन्य आरएमए तकनीकों के चयनात्मक उपयोग के माध्यम से इसकी आक्रामक और निवारक क्षमता के कारण हवाई शक्ति के निर्णायक और अधिक निरंतर उपयोग का अनुभव करेंगे। हवाई श्रेष्ठता या हवाई वर्चस्व हवाई शक्ति का मुख्य उद्देश्य होगा, हालाँकि मानव युक्त विमानों और मिसाइलों को सु.ढ करने के लिए यूएवी, यूसीवीए, उपग्रह, और क्रूज मिसाइलों की अधिक तैनाती की जा सकती है। इसीलिए केवल भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए ही नहीं बल्कि 2020 तक इस क्षेत्र की सबसे प्रभावी हवाई शक्ति बनने के लिए भी आईएएफ स्वयं को तैयार कर रही है। परंतु इस स्वप्न को वास्तविकता में बदलने के लिए, सबसे पहले उसे अनुसंधान और विकास, और स्वदेशी रचना और विनिर्माण पर अधिक ठोस प्रयास करने आवश्यक होंगे, और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि उसे देश में ही अत्याधुनिक विमानों और युद्ध सामग्री के विनिर्माण पर अधिक ध्यान देना होगा। भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान एलसीए जैसी परियोजनाओं में आ रही समस्याओं पर काबू पाने के लिए प्रयासरत हैं, हालांकि वे इन प्रयासों को समर्थन करने और उन्हें जारी रखने के प्रति कृतसंकल्प हैं। दूसरे, पीएलएएएफ के रूप में उन्हें शायद एक बहुत ही शक्तिशाली और प्रबल बल का सामना करना पड़ सकता है, जो, कहीं अधिक सैन्य और मशीनी संख्या बल के साथ यही सब कुछ हासिल करने का प्रयास कर रहा है। अतः यह आवश्यक है कि भारत चीन के रुबरु अधिक सावधानी से आगे बढे़, ताकि किसी संभावित संघर्ष को टाला जा सके, विशेष रूप से आईएएफ बनाम पीएलएएएफ।
भारत का स्वदेशी हल्का लडाकू विमान - तेजस
यह एक इंजन वाला, वजन में हल्का, अत्यंत फुर्तीला, बहु-भूमिका वाला पराध्वनिक (सुपरसॉनिक) लडाकू विमान है। तेजस एक 4.5 पीढ़ी विमान है जिसमें सभी ऊंचाइयों पर पराध्वनिक क्षमता है। भारतीय वायुसेना के लडाकू बेडे में काफी पुराने हो चुके मिग-21 विमानों को प्रतिस्थापित करने के लिए वर्ष 1983 में एलसीए कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी परंतु भिन्न-भिन्न कारणों से इसकी अनेक समय सीमाएं समाप्त हो चुकी थीं। ऐसा अनुमान है कि इस विमान की पहली स्क्वाड्रन बनाने के लिए वर्ष 2017-2018 तक 20 विमानों का निर्माण किया जाएगा। स्वदेशी हल्के लडाकू विमान तेजस का संपूर्ण पैमनने पर उत्पादन वर्ष 2017 तक शुरू होगा और अन्य देशों ने भी इस विमान में रूचि दिखाई है। भारतीय वायुसेना की 120 तेजस विमान प्राप्त करने की योजना है, जिनमें से 100 विमानों में प्रमुख परिवर्तन होने हैं। उसे बेहतर राडार, नई इलेक्ट्रॉनिक युद्ध पोशाख, ईंधन पुनर्भरण क्षमता और सुधारित मिसाइलों की आवश्यकता है। हालांकि डीआरडीओ ने तेजस का एक नौसैनिक संस्करण विकसित किया है, फिर भी नौसेना, अन्य परिवर्तनों के अतिरिक्त अधिक शक्तिशाली इंजन चाहती है। चूंकि भारत का लक्ष्य तेजस का विपणन करना है, उसे चीन के सहयोग से निर्मित पाकिस्तान के जेएफ 17 विमान से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पडेगा। इस विमान को पहले ही खुले बाजार में रख दिया गया है और यह अनुमान लगाया जा रहा है की एक एशियाई देश ने इसमें काफी रूचि दिखाई है।
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