यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 5

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उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट)

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1.0 परिचय

भारतीय कानून व्यवस्था को भारतीय संविधान द्वारा अधिकार प्रदत्त किए गए हैं। न्यायपालिका को भारतीय प्रजातंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माना जाता है, कार्यपालिका और विधायिका इसके अन्य दो स्तंभ हैं। एक स्वतंत्र न्यायतंत्र की उपस्थिति अधिकारों के बंटवारे की अवधारणा को पुख्ता करती है। यह नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा भी करती है और यह सुनिश्चित करती है कि प्रजातंत्र के अन्य अंग संविधान का उल्लंघन न करें। किसी भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था की सफलता और राष्ट्र के विकास का दायित्व न्यायपालिका के सफल संचालन पर निर्भर करता है।

2.0 संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 124 - उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन 

1.    भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, और जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती है तब तक, अधिकतम सात अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा।  

2.    उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायधीश तब तक पद धारण करेगा जब क वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता हैः

परंन्तु मुख्य न्यायामूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायामूर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगाः

परन्तु यह और कि -

(क)    कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

(ख)    किसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।

2क.    उच्चतम न्यायालय के न्यायाशीध की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे।


3.    कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और

(क)    किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पांच वर्ष तक 

न्यायाधीश रहा है; या 

(ख)    किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है; या

(ग)राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है।

स्पष्टीकरण 1 - इस खंड में, ’’उच्च न्यायालय’’ से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जो भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग में अधिकारिता का प्रयोग करता है, या इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय प्रयोग करता था।

स्पष्टीकरण 2 - इस खंड के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान उस व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात ऐसा न्यायिक पद धारण किया है जो जिला न्यायाधीश के पद से नीचे नहीं है।

4.    उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।

5.    संसद खंड (4) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।

6.    उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्ति व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

7.    कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण किया है, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन या कार्य नहीं करेगा।

अनुच्छेद 125 - न्यायाधीशों के वेतन आदि 

  1. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट है।
  2. प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे विशेषाधिकारों और भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का, जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएं और जब तक इस प्रकार अवधारित किए जाते हैं तब तक ऐसे विशेषाधिकारों, भत्तों और अधिकारों का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगाः

परन्तु किसी न्यायाधीश के विशेषाधिकारों और भत्तों में तथा अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 126 - कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति 

जब भारत के मुख्य न्यायामूर्ति का पद रिक्त है या जब मुख्य न्यायमूर्ति, अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है, तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश, जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्ति करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

अनुच्छेद 127 - तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति

  1. यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो भारत का मुख्य न्यायामूर्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायामूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्, किसी उच्च न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक् रूप से अर्हित है और जिसे भारत का मुख्य न्यायामूर्ति नामोदिष्ट करे, न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, तदर्थ न्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूप से अनुरोध कर सकेगा।
  2. इस प्रकार नामोदिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए, जिसके लिए उसकी उपस्थित अपेक्ष्ति है, उच्चतम न्यायालय की बैठकों में, उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।

अनुच्छेद 128 - उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति 

इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति से, जो उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है (या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक् रूप से अर्हित है)। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिसमें इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होगें, किन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगाः

परन्तु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता है तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी।

अनुच्छेद 129 - उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना 

उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होगी।

अनुच्छेद 130 - उच्चतम न्यायालय का स्थान

उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान पर स्थानों में अधिविष्ट होगा जिन्हें भारत का मुख्य न्यायामूर्ति, राष्ट्रपति के अनुमोदन के समय-समय पर, नियत करे।

अनुच्छेद 131 - उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता

इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए 

  • भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच, या
  • एक ओर भारत सरकार किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक अधिक अन्य राज्यों के बीच, या 
  • दो या अधिक राज्यों के बीच, किसी विवाद में, यदि और जहां तक उस विवाद में (विधि का तथ्य का) ऐसा कोई प्रश्न अंतर्वलित है जिस पर किसी विधिक अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर है तो और वहां तक अन्य न्यायालयों का अपर्वजन करके उच्चतम न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता होगीः

परन्तु उक्त अधिकारिता का विस्तार उस विवाद पर नहीं होगा जो किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से उत्पन्न हुआ है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी और ऐसे प्रारंभ के पश्चात प्रवर्तन में है या जो यह उपबंध करती है कि उक्त अधिकारिता का विस्तार ऐसे विवाद पर नहीं होगा।

अनुच्छेद 131क - केन्द्रीय विधियों की सांविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों के बारे में उच्चतम न्यायालय की अनन्य अधिकारिता  

संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 4 द्वारा (13-4-1978) से निरसित।

अनुच्छेद 132 - कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालयों की अपीलीय अधिकारिता 

  1. भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दंडिक या अन्य कार्यवाही मे ंदिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी (यदि वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134 क के अधीन प्रमाणित कर देता है) कि उस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है। 
  2. जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे दिया गया है वहां उस मामले में कोई पक्षकार इस आधार पर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा कि पूर्वोक्त किसी भी प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है ।

स्पष्टीकरण इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, ’’अंतिम आदेश’’ पद के अंतर्गत ऐसे विवाद्यक का विनिश्चय करने वाला आदेश है जो, यदि अपीलार्थी के पक्ष में विनिश्चित किया जाता है तो, उस मामले में अंतिम निपटारे के लिए पर्याप्त होगा।

अनुच्छेद 133 - उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता

  • भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी (यदि उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134 क के अधीन प्रमाणित कर देता है कि)

  1. उस मामले में विधि का व्यापक महत्व का कोई प्रश्न अंतर्वलित है; और
  2. उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है।

  • अनुच्छेद 132 में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय में खंड (1) के अधीन अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधारों में यह आधार भी बता सकेगा कि इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है । 
  • इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे।

अनुच्छेद 134 - आपराधिक विषयों में उच्चतम न्यायालय का अपीलीय अधिकार-क्षेत्र (अधिकारिता)

  • भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की आपराधिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यदि -
  1. उस उच्च न्यायालय ने अपील में किसी अभियुक्त व्यक्ति की दोषमुक्ति के आदेश को उलट दिया है और उसको मृत्यु दंडादेश दिया है; या
  2. उस उच्च न्यायालय ने अपने प्राधिकार के अधीनस्थ किसी न्यायालय से किसी मामले को विचारण के लिए अपने पास मंगा लिया है और ऐसे विचारण में अभियुक्त व्यक्ति को सिद्धदोष ठाहराया है और उसको मृत्यु दंडादेश दिया है; या
  3. वह उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 134-क के अधीन प्रमाणित कर देता है) कि मामला उच्चतम न्यायालय में अपील किए जाने योग्य हैः

  • संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की आपराधिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील ऐसी शर्तो और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट की जाएं, ग्रहण करने और सुनने की अतिरिक्त शक्ति दे सकेगी।

अनुच्छेद 134क - उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाण पत्र 

प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो अनुच्छेद 132 के खंड (1) या अनुच्छेद 133 के खंड (1) या अनुच्छेद 134 के खंड (1) या अनुच्छेद 134 के खंड (1) में निर्दिष्ट निर्णय, डिक्री, अंतिम ओदश या दंडादेश पारित करता है या देता है, इस प्रकार पारित किए जाने या दिए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, इस प्रश्न का अवधारण कि उस मामले के संबंध में, यथास्थिति, अनुच्छेद 132 के खंड (1) या अनुच्छेद 133 के खंड (1) या अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट प्रकृति का प्रमाणपत्र दिया जाए या नहीं, 

  1. यदि वह ऐसा करना ठीक समझता है तो स्वप्रेरणा से कर सकेगा; और
  2. यदि ऐसा निर्णय, डिक्री, अंतिम ओदश या दंडादेश पारित किए जाने या दिए जाने के ठीक पश्चात् व्यथित पक्षकार द्वारा या उसकी ओर से मौखिक आवेदन किया जाता है तो करेगा।

अनुच्छेद 135 - विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना

जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक उच्च न्यायालय को भी किसी ऐसे विषय के संबंध में, जिसको अनुच्छेद 133 या अनुच्छेद 134 के उपबंध लागू नहीं होते हैं, अधिकारिता और शक्तियां होगी यदि उस विषय के के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी विद्यमान विधि के अधीन अधिकारिता और शक्तियां फेडरल न्यायालय द्वार प्रयोक्तव्य थीं।

अनुच्छेद 136 - अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत

  1. इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री, अवधारण, दंडादेश या आदेश की अपील के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा।
  2. खंड (1) की कोई बात सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, अवधारण, दंडादेश या आदेश को लागू नहीं होगी।

अनुच्छेद 137 - निर्णयों या आदेषों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन 

संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति होगी।

अनुच्छेद 138 - उच्चतम न्यायालय के अधिकार-क्षेत्र में वृद्धि 

  1. उच्चतम न्यायालय को संघ सूची के विषयों में से किसी के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियां होगी जो संसद् विधि द्वारा प्रदान करें।
  2. यदि संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अधिकारिता और शक्तियों के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को किसी भी विषय के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियां होगी जो भारत सरकार और किसी राज्य की सरकार विशेष करार द्वारा प्रदान करे।

अनुच्छेद 139 - कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना

संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 32 के खंड (2) में वर्णित प्रयोजनों से भिन्न किन्हीं प्रयोजनों के लिए ऐसे निर्देश, आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छ और उत्प्रेषण रिट हैं, या उनमें से कोई निकालने की शक्ति प्रदान कर सकेगी।

अनुच्छेद 139क - कुछ मामलों का अंतरण 

  • यदि ऐसे मामले, जिनमें विधि के समान या सारतः समान प्रश्न अंतर्वलित है, उच्चतम न्यायालय के और एक या अधिक उच्च न्यायालयों के अथवा दो या अधिक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित है ओर उच्चतम न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवादी द्वारा या ऐसे किसी मामले के किसी पक्षकार द्वारा किए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है कि ऐसे प्रश्न व्यापक महत्व के सारवान् प्रश्न हैं तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित मामलों या मालों को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी मामलों को स्वयं निपटा सकेगाः

परंतु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उच्च विधि के प्रश्नों का अवधारण करने के प्रश्चात् ऐसे प्रश्नों पर अपने निर्णय या प्रतिलिपि सहित उस उच्च न्यायालय को, जिससे मामला मंगा लिया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे निर्णय के अनुरूप निपटाने के लिए आगे कार्यवाही करेगा।  

  • यदि उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसा करना उचित समझता है तो वह किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले, अपील या अन्य कार्यवाही का अंतरण किसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा।

अनुच्छेद 140 - उच्चतम न्यायालय की आनुषांगिक शक्तियां

संसद् विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को ऐसी अनुपूरक शक्तियां प्रदान करने के लिए उपबंध कर सकेगी जो इस संविधान के उपबंधों में से किसी से असंगत न हों और जो उस न्यायालय को इस संविधान द्वारा या इसके अधीन प्रदत्त अधिकारिता का अधिक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों।

अनुच्छेद 141 - उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना

उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी।

अनुच्छेद 142 - उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश

  1. उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।
  2. संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्हीं दस्तावेजों के प्रकटीकरण या पेश कराने को अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दंड देने के प्रयोजनो के लिए कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी।  

अनुच्छेद 143 - उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति 

  1. यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसे प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और वह नयायालय, ऐसी सुनवाई क पश्चातृ जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।
  2. राष्ट्रपति अनुच्छेद 131 के परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के विवाद को, जो उक्त परन्तुक में वर्णित है, राय देने के लिये उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा।

अनुच्छेद 144 - सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य किया जाना

भारत के राज्यक्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे।

144क - विधियों की सांविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों के निपटारे के बारे में विशेष उपबंध। संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 5 द्वारा (13.4.1978 से) निरासित।

अनुच्छेद 145 - न्यायालय के नियम आदि

  • संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया के, साधारणतया, विनियमन के लिये नियम बना सकेगा जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात - 

  1. उस न्यायालय में विधि-व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम;
  2. अपीलें सुनने के लिये प्रक्रिया के बारे में और अपीलां संबंधी अन्य विषयों के बारे में, जिनके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर अपीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी हैं, नियम;
  3. भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी का प्रवर्तन कराने के लिये उस न्यायालय में कार्यवाहियां के बारे में नियम;
  4. उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तों के अधीन रहते हुए पुनर्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारे में आर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रिया क ेबारे मं, जिसके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने हैं, नियम;
  5. उस न्यायालय में किन्हीं कार्यवाहियां के और उनके आनुषंगिक खर्चे के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों के संबंध में प्रभारित की जाने वाली फीसों के बारे में नियम;
  6. जमानत मंजूर करने के बारे में नियम;
  7. कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम;
  8. जिस अपील के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है ि कवह तुच्छ या तंग करने वाली है अथवा विलंब करने के प्रयोजन से की गई है, उसके संक्षिप्त अवधारणा के लिये उपबंध करने वाले नियम;
  9. अनुच्छेद 317 के खंड (1) में निर्दिष्ट जांचों के लिये प्रक्रिया के बारे में नियम

  • खंड (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस अनुच्छेद के अधीन बनाए गए नियम, उस न्यायाधीशें की न्यूनतम संख्या नियत कर सकेंगी जो किसी प्रयोजन के लिये बैठंगे तथा एकल न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों की श्क्ति के लिये उपबंध कर सकेंगे।
  • जिस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए या इस संविधान के अनुच्छेद 143 के अधीन निर्देश की सुनवाई करने के प्रयोजन के लिये बैठने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पांच होगी :

परंतु जहां अनुच्छेद 132 से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों के अधीन अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायधीशों से मिलकर बना है और अपील की सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है कि अपील में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का ऐसा सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है जिसका अवधारण अपील के निपटारे के लिये आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अंतर्वलित करने वाले किसी मामले के विनिश्चय के लिए इस खंड की अपेक्षानुसार गठित किया जाता है, उसकी राय के लिये निर्देशित करेगा और ऐसी राय की प्राप्ति पर उस अपील को उस राय के अनुरूप  निपटाएगा। 

  • उच्चतम न्यायालय प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाएगा, अन्यथा नहीं और अनुछेद 143 के अधीन प्रत्येक प्रतिवेदन खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं। 
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक निर्णय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमति से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, किन्तु इस खंड की कोई बात किसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नहीं है, अपना विसम्मत निर्णय या राय देने से निवारित नहीं करेगी। 

अनुच्छेद 146 - उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्यय 

1.    उच्चतम न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियां भारत का मुख्य न्यायमूर्ति करेगा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधिकारी करेगा जिसे वह निदिष्ट करे :

परंतु राष्ट्रपति नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं दशाओं में, जो नियम में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं है, न्यायालय से संबंधित किसी पद पर संघ लोक सेवा आयोग से परामर्श करके ही नियुक्त किया जाएगा, अन्यथा नहीं। 

2.    संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें ऐसी हांगी जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा, जिसे भारत के मुख्य न्यायमूर्ति ने इस प्रयोजन के लिये नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया है, बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएंः

परंतु इस खंड के अधीन बनाए गए नियमों के लिये, जहां तक वे वेतनों, भत्ततों, छुट्टी या पेंशनों से संबंधित हैं, राष्ट्रपति के अनुमोदन की अपेक्षा होगी। 

3.    उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनराशियां उस निधि का भाग होंगी। 

अनुच्छेद 147 - निर्वचन 

इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद् आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देश है।

3.0 न्यायपालिका का संगठन और पदक्रम

भारत हालांकि अर्ध-संघीय तंत्र है फिर भी भारतीय संविधान में केन्द्र और राज्यों के लिए भिन्न अदालतों की व्यवस्था नहीं की गई है। यहां एक ही न्यायतंत्र केन्द्र और राज्य दोनों की व्यवस्था को संचालित करता है। अधीनस्थ न्यायव्यवस्था की प्रणाली हरेक राज्य में भिन्न होती है। निचले स्तर पर न्याय व्यवस्था को दो भागों-नागरिक और अपराधिक - में बांटा जाता है। 

ग्राम स्व-शासन कानूनों के अंतर्गत संघीय अदालत और न्यायपीठ का गठन हुआ जिनके द्वारा निम्न नागरिक और अपराधिक अदालतों का गठन हुआ। इन्हें पश्चात संविधान राज्य विधान के अंतर्गत पंचायत अदालतों द्वारा विस्थापित किया गया। पंचायत अदालतें भी नागरिक और अपराधिक क्षेत्रों में कई नामों जैसे न्याय पंचायत, पंचायत अदालत, ग्राम कचहरी आदि नामों से जानी जाती हैं। कुछ राज्यों में, छोटे मामलों में पंचायती न्यायालय आपराधिक अदालतों का पहला क्षेत्राधिकार स्तर बनाती हैं। मुंसिफ कोर्ट अगली श्रेणी के नागरिक न्यायालय होते हैं जो कि 1000 रु. से 5000 रु. तक के दावों पर सुनवाई का अधिकार रखते हैं। मुंसिफ से ऊपर अधीनस्थ न्यायाधीश होते हैं। जिला न्यायाधीश अधीनस्थ न्यायाधीश और मुंसिफ अदालत के मुकदमों की अगली सुनवाई करता है और उसे नागरिक और अपराधिक मामलों में हर तरह के निर्णय का अधिकार होता है। छोटे और मामूली विवादों को प्रांतीय अदालतों में भी सुलझाया जाता है। 

सन् 1973 में दंड प्रक्रिया संहिता लागू होने के बाद से जिला न्यायाधीश जिले का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी (दीवानी व आपराधिक) होता है। आपराधिक मामलों की सुनवाई जिला अदालत में ही होती है, केवल नागालैंड और जम्मू-कश्मीर में यह व्यवस्था लागू नहीं होती। प्रमुख न्यायिक अधिकारी जिले की आपराधिक अदालतों का प्रमुख होता है। महानगरीय क्षेत्रों में महानगरीय न्यायाधीश होते हैं। हाईकोर्ट राज्य का सर्वोच्च न्याय संस्थान होता है जहां मौलिक और अपीलीय, दोनों क्षेत्राधिकार के मुकदमे सुनवाई के लिए आते हैं। सामान्यतः हर राज्य में एक उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) होता है मगर मेघालय, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड इसके अपवाद है क्योंकि इनका एकमात्र उच्च न्यायालय असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित है। हरियाणा और पंजाब का सम्मिलित उच्च न्यायालय चंडीगढ़ में और गोवा का मुंबई में है। सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च न्यायिक संस्थान है जो सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों पर अपीलीय क्षेत्राधिकार रखता है।  

4.0 सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) 

भारत के संपूर्ण गणराज्य घोषित होने (26 जनवरी 1950) के ठीक दो दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया। यह न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च स्तंभ है और भारत में अपील के लिए अंतिम अदालत। इसका उद्घाटन संसद भवन में प्रिंसेस कक्ष में हुआ। यह कक्ष सन 1937 से 1950 तक 12 वर्षों तक संघ न्यायालय का संचालन स्थल था। सुप्रीम कोर्ट को स्व परिसर मिलने अर्थात् 1958 तक सुप्रीम कोर्ट इसी कक्ष में संचालित होता रहा।

सुप्रीम कोर्ट के गठन से संघीय न्याय व्यवस्था और निजी परिषद दोनों का विस्थापन हो गया। सुप्रीम कोर्ट देश की शीर्ष संस्था है। सुप्रीम कोर्ट के क्रियान्वयन की नीतियों को संविधान के भाग 4-5 की धारा 124 से 147 में विस्तार से बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट की संरचना, गठन, अधिकार क्षेत्र और शक्तियों के नियमन का अधिकार संसद को होता है।

4.1 सुप्रीम कोर्ट की संरचना (धारा 124)

धारा 124 स्पष्ट करती है कि भारत में एक उच्चतम न्यायालय होगा जिसमें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश होंगे। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। पहले सुप्रीम कोर्ट में एक मुख्य न्यायाधीश और सात अन्य न्यायाधीश हुआ करते थे। कतिपय सुधारों के बाद 1956 में इनकी संख्या 13, 1977 में 17, 1985 में 25 और 2008 में 30 की गई। न्यायाधीशों की नियुक्ति, राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह से ही करते हैं।

संविधान की धारा 125 में न्यायाधीशों के वेतन और भत्तों आदि के प्रावधान दिए हुए हैं। वेतन और भत्तों का नियमन संसद करती है और इन पदों की स्वायत्तता, कुशलता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए इनके वेतन और भत्ते सामान्यतः अधिक रखे जाते हैं। इन्हें देश के बजट में आवश्यक खर्चे के रूप में रखा जाता है जिसमें सामान्यतः बदलाव नहीं किया जा सकता, व केवल आर्थिक आपतकाल के दौरान ही इनमें बदलाव संभव है। 

मुख्य न्यायाधीश के कार्यशील न होने की स्थिति में उनका कार्यभार अन्य न्यायाधीश द्वारा संभाला जाता है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। स्थायी न्यायाधीशों की अनुपस्थिति में गणपूर्ति न होने पर कुछ अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है जो कि राष्ट्रपति की अनुमति से होती है। इस पद के लिए हाईकोर्ट का न्यायाधीश जिसे मुख्य न्यायाधीश द्वारा सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनने योग्य समझा जाए, ही चुना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान सेवा-निवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति के भी कई प्रावधान रखे गए हैं। सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में स्थित एक अभिलेख न्यायालय है। 

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए न तो कम से कम आयु निर्धारित है न ही कोई निश्चित कार्यकाल। एक बार न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पाने के बाद कार्यकाल की समाप्ति ऐसे होगी - 

  1. उनकी उम्र 65 वर्ष की हो जाए
  2. राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए लिखित में इस्तीफा देने पर
  3. संसद के दोनों सदनों के बहुमत द्वारा उन्हे हटाए जाने पर सहमति देने पर। इस तरह पदच्युत किया जाना तभी संभव होता है जब वह ‘अयोग्य‘ या किसी ‘दुर्व्यवहार के लिए दोषी‘ पाये जांए।

4.1.1 आवश्यक योग्यताएं

उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए निम्न योग्यताएं आवश्यक हैं

  1. उसे भारत का नागरिक होना चाहिए
  2. कम से कम पांच वर्षों तक लगातार हाईकोर्ट या उसके समान दर्जे वाले कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में काम करने का अनुभव
  3. हाईकोर्ट या समकक्ष कोर्टों के वकील के रूप में दस वर्षों तक सतत् काम करने का अनुभव, या
  4. राष्ट्रपति द्वारा उसे प्रतिष्ठित विधिवेत्ता माना जाना। 

हाईकोर्ट का न्यायाधीश, या सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का सेवानिवृत्त न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होनेवाला व्यक्ति अपना कार्यभार संभालने से पहले राष्ट्रपति के सामने पद और गोपनीयता की शपथ लेता है। अपनी शपथ में वह वचन देता है कि वह 

  1. भारत के संविधान में आस्था और विस्श्वास रखेगा
  2. भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखेगा
  3. अपनी पूर्ण क्षमता और योग्यता, ज्ञान तथा निर्णय शक्ति से वह बिना किसी लालच, भय और स्वार्थ के अपने कर्तव्य का निर्वाह करेगा, और 
  4. संविधान और नियमों का पालन करेगा।

संविधान की धारा 125 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, छुट्टियां, पेंशन आदि का निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा। जो भी हो, एक बार न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के बाद संसद वेतन और भत्ते में किसी तरह का बदलाव नहीं कर सकती। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को 90,000 रू. और मुख्य न्यायाधीश को एक लाख रुपए वेतन मिलता है। 

4.1.2 महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व

उच्चतम न्यायालय में हमेशा ही प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का ध्यान रखा गया है। इसमें न्यायाधीशों के रूप में हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की नियुक्ति की जाती रही है। 1987 में फातिमा बीबी पहली महिला न्यायाधीश बनीं। इसके बाद न्यायाधीश सुजाता मनोहर, रुमा पाल और ज्ञान सुधा मिश्रा इस पद पर कार्यरत रहीं। न्यायाधीश रंजना देसाई हाल ही में हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत की गई। इस समय सुप्रीम कोर्ट में दो महिला न्यायाधीश हैं। 

सन 2000 में जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन दलित वर्ग के पहले न्यायाधीश बने। 2007 में वे दलित वर्ग के पहले मुख्य न्यायाधीश भी बने। सन 2010 में जस्टिस एस.एच.कपाड़िया पारसी अल्प-संख्यक वर्ग के थे जो भारत के मुख्य न्यायाधीश बने।  मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पी. सदाशिवम ने 19 जुलाई 2013 को शपथ ली और वे 26 अप्रैल 2014 तक इस पद पर रहे। तत्पश्चात न्यायाधीश श्री राजेंद्र मल लोढ़ा इस पद पर 27 अप्रैल से 27 सितंबर तक रहे। वर्तमान 42 वें मुख्य न्यायाधीश हैं न्यायमूर्ति  श्री ए.एल. दत्तू (28 सितंबर 2014) से।

संविधान की धारा 124-4 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को अवांछित व्यवहार या अयोग्यता के चलते राष्ट्रपति की सहमति से संसद के दोनों सदनों की सहमति से और बहुमत प्रस्ताव के पारित होने पर ही पद से हटाया जा सकता है। 


4.1.3 राय की स्वतंत्रता

संविधान ने कई तरीकों से न्यायाधीशों की स्वायतत्ता को कायम रखने का प्रयास किया है।

  1. भले ही सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति मंत्री परिषद की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा होती है मगर इसमें किसी भी तरह का राजनीतिक दखल नहीं होता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति को मुख्य न्यायाधीश से सलाह लेनी ही होती है।
  2. इस बात को स्पष्ट करके कि जब तक किसी न्यायाधीश के खिलाफ गंभीर अवांछनीय व्यवहार के प्रमाण न मिले, उसे राष्ट्रपति भी पद से हटा नहीं सकते।
  3. भले ही न्यायाधीशों के वेतन-भत्ते संसद द्वारा तय किए गए नियमानुसार निर्धारित होते हों, मगर संविधान में इनकी वेतन सीमा निर्धारित की गई है और इसे किसी भी अवस्था में बदला नहीं जा सकता। हां आर्थिक आपातकाल की अवस्था में राष्ट्रपति द्वारा इनमें परिवर्तन किया जा सकता है। 
  4. संविधान में यह उल्लेख करके कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते और अन्य खर्च भारत के राजस्व के अंतर्गत माने जाएंगे।
  5. यह स्पष्ट रूप से लिखकर कि राष्ट्रपति द्वारा किसी न्यायाधीश के खिलाफ अवांछित व्यवहार के बारे में उसे पदमुक्त करने के प्रस्ताव के अलावा संसद में न्यायाधीश के बारे में किसी भी तरह की वार्ता/चर्चा करना निषेध है।
  6. यह प्रावधान कर कि सेवानिवृत्ति के बाद, भारत के किसी भी कोर्ट में या अधिकारी के सामने, सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश वकालत नहीं करेगा।

4.1.4 कोर्ट की अवहेलना

सुप्रीम कोर्ट, स्वयं की अवहेलना के लिए किसी भी व्यक्ति को सजा दे सकता है। इसके निर्णय व कार्यवाही की कोई भी आलोचना नहीं कर सकता। अपनी शक्ति, अधिकार और सम्मान को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार दिया गया है। 

संसद को सुप्रीम कोर्ट के अधिकार और शक्तियों में कटौती करने का कोई अधिकार नहीं है। संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को अनेको क्षेत्राधिकार दिए हैं और संसद चाहे तो इन्हें विस्तारित अवश्य कर सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट एक संघीय व्यवस्था है। इस कोर्ट में अपील की जा सकती है। यह संवैधानिक मूल्यों की सुरक्षा करता है और इसके द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय देश की सभी अदालतों पर बाध्य है। 

4.2 उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार

4.2.1 मूल क्षेत्राधिकार

सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार संघीय स्वरूप का है। इसे वे सारे अधिकार प्राप्त हैं जिनके बल पर यह भारत सरकार और अन्य राज्य सरकारों के बीच नियम और कानून को लेकर किसी भी तरह के विवादों पर निर्णय ले सकता है। संविधान की धारा 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट को ये मौलिक और विशिष्ट क्षेत्राधिकार दिया गया है कि वह किसी भी ऐसे विवाद पर निर्णय दे सकता है जो

  1. केन्द्र सरकार और किसी राज्य सरकार के बीच हो
  2. केन्द्र सरकार और किसी एक राज्य बनाम अनेक राज्यों की सरकारों के बीच के विवाद हो, या
  3. दो या दो से अधिक राज्यों के बीच के विवाद

सुप्रीम कोर्ट अपने मूल क्षेत्राधिकार के अनुसार किसी भी ऐसे विवाद पर निर्णय देने हेतु योग्य नहीं है जहां दोनों पक्ष संघीय ढांचे में न आते हो। यदि किसी राज्य सरकार या केन्द्र सरकार के खिलाफ किसी निजी संस्था या व्यक्ति ने शिकायत दर्ज की है तो इसकी सुनवाई किसी अन्य अदालत में सामान्य नियमों के तहत ही होगी, सुप्रीम कोर्ट में नहीं।  

किसी संधि, समझौते, प्रतिज्ञापत्र, सनद या इसी तरह के अन्य विवादों को सुनना और उनपर निर्णय देना जो संविधान-निर्माण के पहले से ही लागू हैं, संविधान के अनुसार किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, मगर राष्ट्रपति के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट किसी विशेष मामले पर निर्णय या राय दे सकता है। 

संविधान में कुछ ऐसे प्रावधान भी रखे गए हैं जो सुप्रीम कोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र से कुछ विवादों को बाहर रखते हैं। इन विवादों की सुनवाई अन्य प्राधिकरणों के अंतर्गत होती है, जैसे-

  1. धारा 360(1) में उल्लेखित प्रावधान के अनुसार विवाद
  2. धारा 262 के अंतर्गत कानूनी प्राधिकरणों मे अंतर्राज्यीय जल विवाद का निदान करना (1956 में बने कानून के अनुसार)
  3. धारा 280 के अनुसार वित्त आयोग के मसले
  4. केन्द्र और राज्य के बीच कुछ खर्चों पर समझौते।

4.2.2 अपीलीय क्षेत्राधिकार

धारा 132 के अनुसार उच्च न्यायालय में लिए गए किसी भी निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है यदि हाईकोर्ट यह प्रमाणित करे कि वह मामला संविधान में लिखित किसी कानून पर पर्याप्त सवाल उठाता हो (एवं अपील के लिए सुप्रीम कोर्ट अनुमति दे)। 

इस धारा को संविधान में 44वें संशोधन, 1978 के अंतर्गत धारा 134(ए) के साथ पढ़ना होगा जिसमें कहा गया है कि यदि 

संविधान के नियमों पर कोई सवाल है तो हाईकोर्ट को इसे प्रमाणित करना होगा।

धारा 133 में दीवानी मामलों की हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की बात कही गई है। 1972 के संविधान के 30वें संशोधन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के उन मामलों की सुनवाई कर सकता है जिनमें

  1. कानून पर पर्याप्त सवाल उठाए गए हां, एवं
  2. हाईकोर्ट के मतानुसार उन प्रश्नों पर सुप्रीमकोर्ट का मत जानना जरुरी हो।

इस बात का प्रमाणपत्र धारा 134(ए) के अंतर्गत दिया जाता है।  

धारा 134 (1) के अनुसार हाईकोर्ट के कुछ आपराधिक मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है। अनुच्छेद (a) और (b) के अनुसार मृत्युदंड भी शामिल है। धारा 134 (1)(c) के अनुसार यदि हाईकोर्ट धारा 134(ए) के तहत किसी मामले में पुनः विचार हो सकता है यह प्रमाणित करता है, तो उसपर सुनवाई हो सकती है।

अपीलीय अदालतों की श्रेणी में सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च अदालत है। इसमें दो तरह के मामलों की अपील की जा सकती है। पहलाः आपराधिक जिसमें किसी विशेष तरह की आपराधिक गतिविधियां शामिल हों, व दूसरे नागरिक दीवानी मामले जिनमें सामान्य विवाद जैसे संपत्ति विवाद आदि हों। सुप्रीम कोर्ट में अपील के क्षेत्राधिकार तीन भागों में बांटे गए हैंः

  1. संवैधानिकः ऐसे मामले जिनमें किसी तरह से संविधान में उल्लेखित नियम-कानून पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठा हो, व उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करे। यदि हाईकोर्ट किसी मामले के लिए ऐसा प्रमाणित करने से इनकार करता है पर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि वह मामला संविधान पर प्रश्न खडे़ करता है तो वह स्वेच्छा से उस मामले पर अपील के लिए विशेष इज़ाजत दे सकता है।
  2. दीवानीः दीवानी मामलों में यदि किसी विवाद की राशि बीस हजार रुपए से अधिक है और हाई कोर्ट ऐसा प्रमाणपत्र जारी करता है तो सुप्रीम कोर्ट में उस मामले की अपील की जा सकती है। यदि इस बीच संसद इस संबंध में कोई कानून पारित करती है, तो अपील का अधिकार क्षेत्र बढ़ाया भी जा सकता है। 
  3. आपराधिक मामलेः अपराधिक मामलों में किसी मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में तभी हो सकती है जब हाई कोर्ट में अपीलीय सुनवाई के दौरान, आरोपी को दोषमुक्त करने के निर्णय को उलट कर मृत्युदंड दे दिया गया हो, या निचली अदालत से मामला स्वयं तक बुलाकर आरोपी को मृत्युदंड दिया हो।

सुप्रीम कोर्ट धारा 136 के अंतर्गत किसी भी अन्य कोर्ट या प्राधिकरण (सिवाय कोर्ट मार्शल के) में चल रहे किसी मुकदमे के निर्णय, आदेश, डिक्री आदि के खिलाफ अपील के लिए विशेष इजाज़त देने का अधिकार रखता है। 

4.2.3 रिट क्षेत्राधिकार

धारा 32 सुप्रीम कोर्ट को कहती है कि वह मौलिक अधिकारों की सुरक्षा मुस्तैदी से करे। इस धारा के अनुसार कोई नागरिक सीधे ही सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है यदि उसके मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा हो। रिट क्षेत्राधिकार को अक्सर सुप्रीम कोर्ट के मूल (मौलिक) क्षेत्राधिकार के रूप में समझा जाता है मगर वास्तविक रूप से सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार संविधान के संघीय ढ़ांचे को कायम रखना है। सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों का संरक्षक होता है और इन अधिकारों के संरक्षण का उसके पास गैर-विशिष्ट मूल क्षेत्राधिकार होता है। यह अनेक महत्वपूर्ण रिट जारी कर सकता है जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण, अधिकार-पृच्छा, निषेध, उत्प्रेषण-लेख, एवं परमादेश। इन रिट को जारी करने के साथ इनके क्रियान्वयन हेतु सुप्रीम कोर्ट निर्देश और आदेश पारित कर सकता है।

4.2.4 सलाहकार क्षेत्राधिकार

सुप्रीम कोर्ट को सलाहकार क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है जिसके अंतर्गत वह जनहित से जुडे़ किसी कानून पर राष्ट्रपति की सहमति से अपनी राय दे सकता है। संविधान के बनने के पूर्व की अन्य संधियों, समझौतों और विवादों पर भी सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी जा सकती है। हां, इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट को केवल राय देने का काम कर सकता है, निर्णय नहीं ले सकता। ऐसे मामलों में सरकार सुप्रीम कोर्ट की राय को मानने हेतु बाध्य नहीं होती और इसकी राय को आदेश नहीं माना जाता।

4.2.5 संशोधित क्षेत्राधिकार

धारा 137 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट यह अधिकार रखता है कि वह अपने द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को पुनः जांच सके, किसी भूल या गलती को सुधार सके। इसका अर्थ है सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए सारे निर्णय भारत की सभी अदालतों को अंतिम मानना जरुरी है मगर स्वयं सुप्रीम कोर्ट ऐसा करने को बाध्य नहीं है।

4.2.6 संविधान के संरक्षक के रूप में

भले ही हमारे संविधान में अदालतों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा गया है जिसके द्वारा वे किसी नियम-कानून को खारिज कर सकें, फिर भी संविधान में हरेक नियम-कानून के साथ कई सीमाएं लागू की गई हैं और यदि किसी भी सूरत में उन सीमाओं का उल्लंघन होता पाया जाता है तो वह नियम खारिज माना जाता है। यह निर्णय करना कोर्ट के हाथ में होता है कि किसी नियम को लागू करने में संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। कोर्ट को यह अधिकार होता है कि यदि कोई कानून किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रहा हो तो वह उस नियम को अमान्य कर सके। इसी तरह से यदि केन्द्र और राज्य के किसी नियम में विसंगति होता है तो राज्य के नियम खारिज समझे जाते हैं। 

5.0 संविधान का 42 वां संशोधन और सुप्रीम कोर्ट

संविधान के 42 वें संशोधन (1976) ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को कई तरह से कम किया है। मगर इनमें से कई बदलाव 1977 के 43 वें सुधार द्वारा खारिज कर दिए गए। मगर फिर भी 42 वें संशोधन में दिए गए कई प्रावधान खत्म नहीं किए जा सके।

5.1 प्रशासनिक न्यायाधिकरण

धारा 323 ए-बी के अंतर्गत आशय यह था कि अनु. 32 के तहत उच्चतम न्यायालय को मिले अधिकार कि वह प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के आदेशों व निर्णयों को समीक्षा करे, को समाप्त किया जाए। इस हेतु, प्रशासनिक न्यायाधिकरण कानून, 1985 के तहत् अनु. 323 ए लाया गया। इसके चलते हाईकोर्ट व अन्य निचली अदालतों के पास केन्द्र सरकार के प्रशासनिक कर्मचारियों की नियुक्ति व अन्य सेवाओं संबंधित मामलों की सुनवाई का अधिकार नहीं रह गया चाहे वह मूल मामला हो या कोई अपील। हां, सुप्रीम कोर्ट को धारा 136 के अंतर्गत व रिट क्षेत्राधिकार धारा 32 के तहत, इस तरह के मामलों की अपील पर विशेष सुनवाई करने का अधिकार दिया गया है। 

5.2 संशोधनों की न्यायिक समीक्षा

अनु. 368 के अंतर्गत धारा 4 व 5 को जोड़ा गया था ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान के ‘बुनियादी ढांचा-सिद्धांत‘ के अनुसार उसमें किए गए संशोधनों को खारिज करने का अधिकार समाप्त किया जाए। किंतु इन प्रावधानों को स्वयं उच्चतम न्यायालय ने ही अनेक मामलों में अमान्य करार दे दिया जैसे कि मिनर्वा मिल मामला, और ऐसा करते वक्त न्यायालय ने कहा कि वे ‘मूल ढ़ांचे’ के दो तत्वों का हनन कर रहे थे, जो थे, न्यायायिक समीक्षा अधिकार, व अनु. 368 के तहत मिले संशोधन अधिकार की सीमाएं। 

five landmark judgments of  supreme court of india – 2018

Lifting ban on entry of women (aged 10-50) inside Sabarimala Temple 

Saying that "Devotion cannot be subjected to gender discrimination", the Supreme Court termed as unconstitutional a ban that prevented women between 10 and 50 years of age (menstrual age) from entering Kerala's Sabarimala temple. Chief Justice Dipak Misra, Justice AM Khanwilkar, Justices RF Nariman and Dhananjaya Y Chandrachud concurred with each other, while J Indu Malhotra dissented saying that courts shouldn't determine which religious practices should be struck down or not.
Aadhaar Act is constitutional but some restrictions apply

A five-judge bench of Supreme Court on September 26, 2018 ruled that the concept of Aadhaar was constitutional. Making it mandatory for availing all government services was, however, unconstitutional. While Aadhaar-PAN linking is mandatory, banks and telecom companies cannot ask people to link their bank accounts and mobile numbers with Aadhaar. This is unconstitutional.
The bench termed the Prevention of Money Laundering Act (PMLA) Rules as well as the notification issued by Department of Telecommunications (DoT) in this regard as unconstitutional. The government tried to bring an ordinance later to bypass this new restriction.


Decriminalistion of Gay Sex - Section 377 partly struck down

The Supreme Court, in a landmark judgment in Sept. 2018, decriminalised gay sex stating that consensual sex between two adults was covered under the right to privacy. A five-judge bench of the Supreme Court headed by CJI Dipak Misra partly struck down Section 377 of Indian Penal Code (IPC) holding it violative of the fundamental right to privacy. However, the Supreme Court said that Section 377 would continue to be in force in cases of unnatural sex with animals and children. Any kind of sexual activity with animals and children remains a penal offence. The Supreme Court held that Section 377 of IPC was a weapon to harass members of LGBTQ-plus community resulting in discrimination against them.

Adultery not a crime anymore

The Supreme Court unanimously struck down a 150-year-old law that considered adultery to be an offence committed against a married man by another man. Defined under Section 497 of the IPC, adultery law came under sharp criticism for treating women as possessions rather than human beings.
The Supreme Court declared Section 497 as unconstitutional. Adultery is no longer a crime but if it leads to someone committing suicide, the act will be treated as a crime - abetment to suicide.


Live-streaming of Supreme Court proceedings

"Sunlight is the best disinfectant," said the Supreme Court bench headed by Chief Justice Dipak Misra that ordered live-streaming and video recording of the court proceedings on September 26, 2018.
Chief Justice Dipak Misra and Justice AM Khanwilkar delivered a common judgment. Justice DY Chandrachud gave a separate but concurring judgment. The Supreme Court said that live streaming would bring in more transparency in judicial proceedings and effectuate the "public’s right to know".

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01-01-2020,1,04-08-2021,1,05-08-2021,1,06-08-2021,1,28-06-2021,1,Abrahamic religions,6,Afganistan,1,Afghanistan,35,Afghanitan,1,Afghansitan,1,Africa,2,Agri tech,2,Agriculture,150,Ancient and Medieval History,51,Ancient History,4,Ancient sciences,1,April 2020,25,April 2021,22,Architecture and Literature of India,11,Armed forces,1,Art Culture and Literature,1,Art Culture Entertainment,2,Art Culture Languages,3,Art Culture Literature,10,Art Literature Entertainment,1,Artforms and Artists,1,Article 370,1,Arts,11,Athletes and Sportspersons,2,August 2020,24,August 2021,239,August-2021,3,Authorities and Commissions,4,Aviation,3,Awards and Honours,26,Awards and HonoursHuman Rights,1,Banking,1,Banking credit finance,13,Banking-credit-finance,19,Basic of Comprehension,2,Best Editorials,4,Biodiversity,46,Biotechnology,47,Biotechology,1,Centre State relations,19,CentreState relations,1,China,81,Citizenship and immigration,24,Civils Tapasya - English,92,Climage Change,3,Climate and weather,44,Climate change,60,Climate Chantge,1,Colonialism and imperialism,3,Commission and Authorities,1,Commissions and Authorities,27,Constitution and Law,467,Constitution and laws,1,Constitutional and statutory roles,19,Constitutional issues,128,Constitutonal Issues,1,Cooperative,1,Cooperative Federalism,10,Coronavirus variants,7,Corporates,3,Corporates Infrastructure,1,Corporations,1,Corruption and transparency,16,Costitutional issues,1,Covid,104,Covid Pandemic,1,COVID VIRUS NEW STRAIN DEC 2020,1,Crimes against women,15,Crops,10,Cryptocurrencies,2,Cryptocurrency,7,Crytocurrency,1,Currencies,5,Daily Current Affairs,453,Daily MCQ,32,Daily MCQ Practice,573,Daily MCQ Practice - 01-01-2022,1,Daily MCQ Practice - 17-03-2020,1,DCA-CS,286,December 2020,26,Decision Making,2,Defence and Militar,2,Defence and Military,281,Defence forces,9,Demography and Prosperity,36,Demonetisation,2,Destitution and poverty,7,Discoveries and Inventions,8,Discovery and Inventions,1,Disoveries and Inventions,1,Eastern religions,2,Economic & Social Development,2,Economic Bodies,1,Economic treaties,5,Ecosystems,3,Education,119,Education and employment,5,Educational institutions,3,Elections,37,Elections in India,16,Energy,134,Energy laws,3,English Comprehension,3,Entertainment Games and Sport,1,Entertainment Games and Sports,33,Entertainment Games and Sports – Athletes and sportspersons,1,Entrepreneurship and startups,1,Entrepreneurships and startups,1,Enviroment and Ecology,2,Environment and Ecology,228,Environment destruction,1,Environment Ecology and Climage Change,1,Environment Ecology and Climate Change,458,Environment Ecology Climate Change,5,Environment protection,12,Environmental protection,1,Essay paper,643,Ethics and Values,26,EU,27,Europe,1,Europeans in India and important personalities,6,Evolution,4,Facts and Charts,4,Facts and numbers,1,Features of Indian economy,31,February 2020,25,February 2021,23,Federalism,2,Flora and fauna,6,Foreign affairs,507,Foreign exchange,9,Formal and informal economy,13,Fossil fuels,14,Fundamentals of the Indian Economy,10,Games SportsEntertainment,1,GDP GNP PPP etc,12,GDP-GNP PPP etc,1,GDP-GNP-PPP etc,20,Gender inequality,9,Geography,10,Geography and Geology,2,Global trade,22,Global treaties,2,Global warming,146,Goverment decisions,4,Governance and Institution,2,Governance and Institutions,773,Governance and Schemes,221,Governane and Institutions,1,Government decisions,226,Government Finances,2,Government Politics,1,Government schemes,358,GS I,93,GS II,66,GS III,38,GS IV,23,GST,8,Habitat destruction,5,Headlines,22,Health and medicine,1,Health and medicine,56,Healtha and Medicine,1,Healthcare,1,Healthcare and Medicine,98,Higher education,12,Hindu individual editorials,54,Hinduism,9,History,216,Honours and Awards,1,Human rights,249,IMF-WB-WTO-WHO-UNSC etc,2,Immigration,6,Immigration and citizenship,1,Important Concepts,68,Important Concepts.UPSC Mains GS III,3,Important Dates,1,Important Days,35,Important exam concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati Raj,1,Institutionsandbodies,1,Instiutions and Bodies,1,Intelligence and security,1,International Institutions,10,international relations,2,Internet,11,Inventions and discoveries,10,Irrigation Agriculture Crops,1,Issues on Environmental Ecology,3,IT and Computers,23,Italy,1,January 2020,26,January 2021,25,July 2020,5,July 2021,207,June,1,June 2020,45,June 2021,369,June-2021,1,Juridprudence,2,Jurisprudence,91,Jurisprudence Governance and Institutions,1,Land reforms and productivity,15,Latest Current Affairs,1136,Law and order,45,Legislature,1,Logical Reasoning,9,Major events in World History,16,March 2020,24,March 2021,23,Markets,182,Maths Theory Booklet,14,May 2020,24,May 2021,25,Meetings and Summits,27,Mercantilism,1,Military and defence alliances,5,Military technology,8,Miscellaneous,454,Modern History,15,Modern historym,1,Modern technologies,42,Monetary and financial policies,20,monsoon and climate change,1,Myanmar,1,Nanotechnology,2,Nationalism and protectionism,17,Natural disasters,13,New Laws and amendments,57,News media,3,November 2020,22,Nuclear technology,11,Nuclear techology,1,Nuclear weapons,10,October 2020,24,Oil economies,1,Organisations and treaties,1,Organizations and treaties,2,Pakistan,2,Panchayati Raj,1,Pandemic,137,Parks reserves sanctuaries,1,Parliament and Assemblies,18,People and Persoalities,1,People and Persoanalities,2,People and Personalites,1,People and Personalities,189,Personalities,46,Persons and achievements,1,Pillars of science,1,Planning and management,1,Political bodies,2,Political parties and leaders,26,Political philosophies,23,Political treaties,3,Polity,485,Pollution,62,Post independence India,21,Post-Governance in India,17,post-Independence India,46,Post-independent India,1,Poverty,46,Poverty and hunger,1,Prelims,2054,Prelims CSAT,30,Prelims GS I,7,Prelims Paper I,189,Primary and middle education,10,Private bodies,1,Products and innovations,7,Professional sports,1,Protectionism and Nationalism,26,Racism,1,Rainfall,1,Rainfall and Monsoon,5,RBI,73,Reformers,3,Regional conflicts,1,Regional Conflicts,79,Regional Economy,16,Regional leaders,43,Regional leaders.UPSC Mains GS II,1,Regional Politics,149,Regional Politics – Regional leaders,1,Regionalism and nationalism,1,Regulator bodies,1,Regulatory bodies,63,Religion,44,Religion – Hinduism,1,Renewable energy,4,Reports,102,Reports and Rankings,119,Reservations and affirmative,1,Reservations and affirmative action,42,Revolutionaries,1,Rights and duties,12,Roads and Railways,5,Russia,3,schemes,1,Science and Techmology,1,Science and Technlogy,1,Science and Technology,819,Science and Tehcnology,1,Sciene and Technology,1,Scientists and thinkers,1,Separatism and insurgencies,2,September 2020,26,September 2021,444,SociaI Issues,1,Social Issue,2,Social issues,1308,Social media,3,South Asia,10,Space technology,70,Startups and entrepreneurship,1,Statistics,7,Study material,280,Super powers,7,Super-powers,24,TAP 2020-21 Sessions,3,Taxation,39,Taxation and revenues,23,Technology and environmental issues in India,16,Telecom,3,Terroris,1,Terrorism,103,Terrorist organisations and leaders,1,Terrorist acts,10,Terrorist acts and leaders,1,Terrorist organisations and leaders,14,Terrorist organizations and leaders,1,The Hindu editorials analysis,58,Tournaments,1,Tournaments and competitions,5,Trade barriers,3,Trade blocs,2,Treaties and Alliances,1,Treaties and Protocols,43,Trivia and Miscalleneous,1,Trivia and miscellaneous,43,UK,1,UN,114,Union budget,20,United Nations,6,UPSC Mains GS I,584,UPSC Mains GS II,3969,UPSC Mains GS III,3071,UPSC Mains GS IV,191,US,63,USA,3,Warfare,20,World and Indian Geography,24,World Economy,404,World figures,39,World Geography,23,World History,21,World Poilitics,1,World Politics,612,World Politics.UPSC Mains GS II,1,WTO,1,WTO and regional pacts,4,अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं,10,गणित सिद्धान्त पुस्तिका,13,तार्किक कौशल,10,निर्णय क्षमता,2,नैतिकता और मौलिकता,24,प्रौद्योगिकी पर्यावरण मुद्दे,15,बोधगम्यता के मूल तत्व,2,भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास,47,भारत का स्वतंत्रता संघर्ष,19,भारत में कला वास्तुकला एवं साहित्य,11,भारत में शासन,18,भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें,10,भारतीय संविधान,14,महत्वपूर्ण हस्तियां,6,यूपीएससी मुख्य परीक्षा,91,यूपीएससी मुख्य परीक्षा जीएस,117,यूरोपीय,6,विश्व इतिहास की मुख्य घटनाएं,16,विश्व एवं भारतीय भूगोल,24,स्टडी मटेरियल,266,स्वतंत्रता-पश्चात् भारत,15,
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PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 5
यूपीएससी तैयारी - भारत में शासन - व्याख्यान - 5
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
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