सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
विभिन्न पदों के लिये नियुक्तियां
1.0 प्रस्तावना
एक विशाल और विविधताओं वाले देश के प्रशासन को चलाने के लिए प्राकृतिक, आर्थिक और मानवी संसाधनों के कुशल प्रबंधन की आवश्यकता होती है। यह लोक सेवकों की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है। भारत में लोक सेवाओं की शुरुआत ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के तहत अठारहवीं शताब्दी में हुई थी। आज भारत की लोक सेवाओं में तीन प्रकार की सेवाएं शामिल हैंः
- अखिल भारतीय सेवाएं
- केंद्रीय लोक सेवाएं - समूह ए/केंद्रीय लोक सेवाएं - समूह बी
- लोक सेवाएं
संविधान में संघ और राज्यों के लिए समान अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय प्रशासनिक सेवा) की निर्मिति का प्रावधान किया गया है। अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को विनियमित करने के लिए नियम बना सकती है। वर्तमान में केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा का ही अखिल भारतीय सेवाओं के रूप में गठन किया गया है।
इन सेवाओं में नियुक्ति तदनुसार अखिल भारतीय सेवा नियुक्ति नियमों के तहत की जाती है और यह नियुक्ति सीधी भर्ती (प्रतियोगी परीक्षाओं माध्यम से) और राज्य सेवाओं से पदोन्नति (संघ लोक सेवा आयोग द्वारा गठित समिति के माध्यम से) से की जा सकती है।
अखिल भारतीय सेवा शाखा नियुक्ति की दूसरी पद्धति से संबंधित है, जो संबंधित भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा/भारतीय वन सेवा पदोन्नति विनियमों द्वारा शासित होती है।
2.0 अखिल भारतीय सेवा शाखा (All India Services)
अखिल भारतीय सेवा शाखा मुख्य रूप से तीन अखिल भारतीय सेवाओं, अर्थात भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFS) में पदोन्नतियों से संबंधित है।
अखिल भारतीय सेवा शाखा द्वारा संभाली जाने वाली मुख्य जिम्मेदारियां निम्नानुसार हैंः
- राज्य सेवा के अधिकारियों की भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा में पदोन्नति
- भारतीय प्रशासनिक सेवा विनियम, 1997 के तहत भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए गैर-राज्य लोक सेवा अधिकारियों की नियुक्ति के लिए चयन
- अखिल भारतीय सेवा पदोन्नतियों/चयन के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले न्यायालयीन मामलों को संभालना
- अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित नीतिगत मामलों और पदोन्नति विनियमों में संशोधन से संबंधित मामले
अखिल भारतीय सेवा कैडर नियमों में यह प्रावधान किया गया है कि गैर-कैडर राज्य सेवा अधिकारियों की भारतीय प्रशासनिक सेवा के पदों पर नियुक्तियों के मामले में आयोग से सलाह प्राप्त की जाए, यदि ऐसी नियुक्ति छह महीने से अधिक अवधि के लिए की गई है।
2.1 रिक्त पदों का निर्धारण
किसी भी राज्य/कैडर के किसी भी नियुक्ति वर्ष के लिए अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्तियों की चयन प्रक्रिया केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार की सलाह के साथ पदोन्नति के लिए रिक्त पदों की संख्या के निर्धारण के साथ शुरू होती है। 31 दिसंबर 1997 से चयन सूची के आकार में प्रकार से संशोधन किया गया ताकि वह जिस वर्ष के लिए सूची तैयार की जा रही है उस वर्ष की 1 जनवरी को विद्यमान रिक्त पदों की संख्या से अधिक न हो। विचार का क्षेत्र चयन सूची में शामिल किये जाने वाले अधिकारियों की संख्या के तिगुने के बराबर होता है। संबंधित अखिलभारतीय सेवा विनियमों का संकलन परिशिष्टों में दिया गया है।
2.2 चयन समिति की बैठकें आयोजित करने के प्रस्ताव
अखिल भारतीय सेवाओं में पदोन्नति के लिए राज्य सरकार चयन समिति की बैठकें आयोजित करने से संबंधित प्रस्ताव प्रेषित करती है। इस प्रस्ताव में अनेक दस्तावेज संलग्न किये जाते हैं, जैसे ज्येष्ठता सूची, अहर्ता सूची, वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट, सत्यनिष्ठता प्रमाणपत्र, संबंधित अधिकारी के विरुद्ध लंबित अनुशासनात्मक/अपराधिक कार्यवाही संबंधी ब्यौरा, अधिरोपित दंड़ का ब्यौरा, इत्यादि। आयोग द्वारा प्रस्ताव का परीक्षण किया जाता है, और अधिकारियों की अहर्ता विनियमों के प्रावधानों के रूबरू सत्यापित की जाती है। जब प्रस्ताव सभी दृष्टि से परिपूर्ण हो जाता है, तब आयोग चयन समिति की बैठक आयोजित करता है। राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव के साथ प्रेषित किये जाने वाले दस्तावेजों की जांच सूची शामिल की गई है।
2.3 चयन समिति की बैठकें और उनकी प्रक्रियाएं
चयन समिति की बैठकों की अध्यक्षता संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या इसके किसी सदस्य द्वारा की जाती है, और ये बैठकें प्रति वर्ष राज्य प्रशासनिक/पुलिस या वन सेवा के अधिकारियों की भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा/भारतीय वन सेवा में पदोन्नति के लिए आयोजित की जाती हैं। गैर-राज्य लोक सेवा अधिकारियों के भारतीय प्रशासनिक सेवा (चयन द्वारा नियुक्ति) विनियम, 1997 के तहत भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्ति के लिए चयन भी चयन समिति द्वारा किया जाता है। सभी तीनो सेवाओं के लिए चयन समिति का गठन विनियमों में निर्दिष्ट किया गया है और इसमें भारत सरकार द्वारा मनोनीत ऐसे व्यक्ति भी शामिल किये जाते हैं, जिनका पद कम से कम संयुक्त सचिव के पद से कम का नहीं होता। इसके अतिरिक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष/सदस्य के अलावा चयन समिति के अन्य सदस्य अखिल भारतीय सेवाओं से होने चाहिए। यदि चयन समिति के आधे से अधिक सदस्यों ने बैठक में भाग लिया हो तो संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य के अलावा चयन समिति के किसी अन्य सदस्य की अनुपस्थिति चयन समिति की प्रक्रिया को निरस्त नहीं करती।
अहर्ता प्राप्त अधिकारियों के सेवा रिकॉर्ड़ के समग्र सापेक्ष मूल्यांकन के आधार पर चयन समिति अहर्ता प्राप्त अधिकारियों को उत्कृष्ट, बहुत अच्छा, अच्छा या अयोग्य की श्रेणियों में वर्गीकृत करती है। चयन समिति वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में दी गई टिप्पणियों/श्रेणीकरण से निर्देशित नहीं होती बल्कि विभिन्न विशेषताओं में दर्ज प्रविष्टियों के आधार पर अपना स्वतंत्र मूल्यांकन करती है; और जिस प्रक्रिया का पालन किया जाता है वह आयोग के अंगभूत दिशानिर्देशों के अनुसार होती है जो चयन के मामले में समानता और सुसंगति सुनिश्चित करती है। सूची तैयार करते समय आवश्यक संख्या में नामों को शामिल किया जाता है, पहले उन अधिकारियों में से जिन्हे उत्कृष्ट दर्जा दिया गया है, फिर जिन अधिकारियों को ‘‘बहुत अच्छा‘‘ की श्रेणी में रखा गया है, और फिर उन अधिकारियों के नामों को शामिल किया जाता है जिन्हें ‘‘अच्छा‘‘ की श्रेणी में रखा गया है, और प्रत्येक श्रेणी में से नामों का अनुक्रम उनकी राज्य नागरिक/पुलिस/वन सेवा में सेवा ज्येष्ठता के अनुसार तय किया जाता है।
जब कोई रिक्त पद उपलब्ध नहीं की स्थिति को छोड़कर किसी कारणवश किसी वर्ष चयन समिति की कोई बैठक आयोजित नहीं हो पाई है, तो जब भी समिति की अगली बैठक आयोजित की जाती है तो ऐसे प्रत्येक वर्ष के लिए स्वतंत्र सूची निर्मित की जाएगी जब समिति की बैठक नहीं हो पाई है। यह प्रावधान भारतीय प्रशासनिक सेवा (राज्य प्रशासनिक सेवा), भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा पर लागू होता है।
2.4 अनंतिम समावेश (Provisional Inclusion)
सूची में शामिल किये गए अधिकारी का नाम तब अनंतिम माना जाता है यदि राज्य सरकार सत्यनिष्ठता प्रमाणपत्र या उसके विरुद्ध चल रही किसी विभागीय या आपराधिक जांच की कार्यवाही को रोक कर रखती है। पदोन्नति विनियम निर्दिष्ट करते हैं कि इस प्रकार अनंतिम रूप से शामिल किये गए अधिकारी चयन सूची की वैधता अवधि के दौरान बिना शर्त बनाये जा सकते हैं जो विनियम 7(4) में निर्दिष्ट किया गया है। इसके लिए राज्य सरकार को वैधता अवधि के दौरान आयोग को प्रस्ताव भेजना पड़ता है, जिसमें यह उल्लेख किया जाता है कि वे स्थितियां जिनके तहत किसी अधिकारी का नाम अनंतिम के रूप में शामिल किया गया था, अब अस्तित्व में नहीं हैं और राज्य सरकार यह सिफारिश करती है कि वे इस मत के हैं कि अधिकारी का नाम अप्रतिबंधित किया जाए। हालांकि विनियमों में यह प्रावधान नहीं किया गया है कि चयन सूची की वैधता अवधि समाप्त होने के बाद किसी अधिकारी का नाम अप्रतिबंधित किया जा सकता है।
चयन विनियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत गैर राज्य लोक सेवा अधिकारियों को अनंतिम के रूप में शामिल किया जा सकता है। वास्तव में जैसे केंद्र सरकार द्वारा स्पष्ट किया गया है कि ऐसे गैर राज्य लोक सेवा अधिकारी जिनके विरुद्ध विभागीय जांच जारी है या जिनका सत्यनिष्ठता प्रमाणपत्र राज्य सरकार द्वारा रोक कर रखा गया है, वे चयन समिति द्वारा चयन के लिए विचार किये जाने के योग्य नहीं माने जाते।
2.5 आयोग द्वारा चयन सूची का अनुमोदन और इसकी वैधता
चयन समिति द्वारा तैयार की गई सूची राज्य सरकार द्वारा आयोग को उसके अनुमोदन के लिए प्रेषित की जाती है। केंद्र सरकार भी चयन समिति की सिफारिशों पर अपने विचार प्रदान करती है। आयोग द्वारा अनुमोदित की गई सूची वह चयन सूची बनाती है जो उस वर्ष के 31 दिसंबर तक लागू मानी जाएगी जिस वर्ष चयन समिति की बैठक आयोजित की गई थी, या आयोग के अनुमोदन के बाद साथ दिनों तक इनमें से जो भी तिथि बाद में हो। जहां तक चयन प्रक्रिया का प्रश्न है, चयन सूची के अनुमोदन के बाद संघ लोक सेवा आयोग की भूमिका समाप्त हो जाती है।
2.6 अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्तियां
चयन सूची के अनुमोदन बाद केंद्र सरकार इसकी अधिसूचना जारी करती है, और चयन सूची में शामिल अधिकारियों को अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्त करने के लिए कदम उठाती है। केंद्र सरकार अखिल भारतीय सेवाओं के नियमों और विनियमों को बनाने, उनकी व्याख्या करने और उनके क्रियान्वयन के लिए भी जिम्मेदार है।
2.7 भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय सेवा/भारतीय वन सेवा में स्थानापन्न नियुक्तियां
(Officiating Appointments)
गैर-कैडर राज्य सेवा अधिकारियों की भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा/भारतीय वन सेवा के कैडर पदों पर स्थानापन्न नियुक्तियां भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा (कैडर) नियम, 1954 और भारतीय वन सेवा (कैडर) नियम, 1956 के नियम 9 के तहत की जाती हैं। इन नियुक्तियों का अनुमोदन करते समय सुनिश्चित किया जाता है कि निम्न शर्तों का पालन किया जा रहा हैः
- यह की इस पद के लिए कोई भी कैडर अधिकारी उपलब्ध नहीं है।
- स्थानापन्न नियुक्तियां उसी अनुक्रम में की जा रही हैं जिस अनुक्रम में अधिकारी का नाम भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय सेवा/भारतीय वन सेवा (पदोन्नति द्वारा पदस्थापना) विनियम के अनुसार तैयार की गई चयन सूची में शामिल किया गया है।
- जहां ऐसी कोई सूची अस्तित्व में नहीं है, या किसी गैर-चयन सूची अधिकारी की नियुक्ति का प्रस्ताव है, तो राज्य सरकार तुरंत केंद्र सरकार को ऐसा प्रस्ताव बना कर भेजेगी जिसमें उन कारणों का स्पष्टीकरण दिया जायेगा जिनके कारण यह नियुक्ति आवश्यक मानी जा रही है और ऐसी नियुक्ति केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के पश्चात ही की जाएगी।
भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा (कैडर) नियम, 1954 और भारतीय वन सेवा (कैडर) नियम, 1966 के अनुसार जहां किसी रिक्त पद पर किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाएगी जो छह महीने की अवधि से अधिक के लिए कैडर अधिकारी नहीं रहा है, तो केंद्र सरकार संघ लोक सेवा आयोग को सभी तथ्यों से अवगत कराएगी और उस व्यक्ति को इस पद पर बनाये रखने के कारणों का भी खुलासा करेगी कि उस पद को संभालने के लिए अन्य कोई उपयुक्त अधिकारी उपलब्ध नहीं है, और संघ लोक सेवा द्वारा दी गई सलाह के आधार पर संबंधित राज्य सरकार को उचित दिशानिर्देश देगी।
2.8 न्यायालयीन मामलों को संभालने की प्रक्रिया
अखिल भारतीय सेवा शाखा में वर्ष के दौरान औसत लगभग 200 मामले आते हैं। कैट/उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय से नोटिस प्राप्त होने के बाद आवेदन/याचिका का परीक्षण किया जाता है और जहां कहीं भी विवाद ऐसे कार्यों से जुडे़ होते हैं जहां संघ लोक सेवा आयोग सीधे काफी संबंधित है, तो इनके उत्तर तैयार किये जाते हैं और दायर किये जाते हैं। बचे हुए मामलों में संबंधित राज्य सरकारों/भारत सरकार से अनुरोध किया जाता है कि वे संघ लोक सेवा आयोग की ओर से बचाव करें, या इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा अधिकारी विवादित आदेश के लिए जिम्मेदार है।
आयोग के न्यायालयीन मामलों को संभालने के लिए अधिवक्ताओं की नियुक्तिः देश के विभिन्न भागों में आयोग से संबंधित विभिन्न न्यायालयीन मामलों का समन्वय करने के लिए आयोग ने एक नोडल न्यायिक विभाग का गठन किया है। न्यायालयीन मामलों में बचाव के लिए आयोग विभिन्न न्यायालयों में नियुक्त केंद्र सरकार के स्थाई अधिवक्ताओं की सेवाएं प्राप्त कर सकता है। आयोग के न्यायालयीन मामलों को संभालने वाले अधिवक्ताओं को न्यायालयीन मामलों के सुचारू रूप से संचालन के लिए आयोग के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित करना होता है।
3.0 संवैधानिक प्रावधान
3.1 अनुच्छेद 309
संविधान का अनुच्छेद 309 नीचे उद्धृत किया गया हैः संविधान का अनुच्छेद 309 कहता है कि ‘‘संघ या राज्य की सेवाओं में सेवारत व्यक्तियों की नियुक्ति और सेवा शर्तें इस संविधान, उपयुक्त विधायिका द्वारा निर्मित अधिनियमों के अधीन, संघ और किसी भी राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में या पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को विनियमित कर सकता हैः बशर्ते कि संघ के कार्यों से संबंधित सेवाओं और पदों के मामले में इसके लिए राष्ट्रपति या उनके द्वारा निर्देशित व्यक्ति सक्षम अधिकारी माने जाएंगे और राज्यों से संबंधित सेवाओं और पदों के मामलों में राज्य के राज्यपाल या उनके द्वारा निर्देशित व्यक्ति सक्षम अधिकारी होंगे, जिन्हें इन सेवाओं के लिए नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्तियों, और सेवा शर्तों के विनियमन के लिए नियम बनाने के अधिकार तब तक प्राप्त होंगे जब तक कि इस अनुच्छेद के तहत इस कार्य के लिए उचित विधायिका द्वारा निर्मित अधिनियम का प्रावधान नहीं किया गया है, और इस प्रकार से निर्मित सभी नियम उसी प्रकार से प्रभावी माने जाएंगे जो इस प्रकार के अधिनियम द्वारा निर्मित किये जाते हैं।‘‘
यह अनुच्छेद संसद या राज्य की विधानसभा को यह अधिकार प्रदान करता है कि वे संबंधित संघ या राज्य की लोक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को विनियमित करने वाले कानून निर्मित कर सकते हैं। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति या राज्यपाल को भी यह अधिकार प्रदान करता है कि वे उपरोक्त विषय से संबंधित नियमों का निर्माण उस समय तक करने में सक्षम हैं जब तक कि इस प्रयोजन के लिए संसद या राज्य की विधायिका द्वारा अधिनियम के रूप में उचित प्रावधान नहीं किया जाता।
संबंधित नियम और अधिनियम निम्नानुसार हैंः
- आंध्र प्रदेश लोक सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1991
- आंध्र प्रदेश लोक सेवा (आचरण), नियम, 1964
- आंध्र प्रदेश लोक सेवा (अनुशासनात्मक कार्यवाही न्यायाधिकरण) अधिनियम, 1960
- आंध्र प्रदेश लोक सेवा (अनुशासनात्मक कार्यवाही न्यायाधिकरण) नियम, 1989
- अखिल भारतीय सेवाएं (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1969
- अखिल भारतीय सेवाएं (आचरण) नियम, 1968
आंध्र प्रदेश लोक सेवा (आचरण) नियम और आंध्र प्रदेश लोक सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम राज्य सेवाओं एवं राज्य की अधीनस्थ सेवाओं को अधिशसित करते हैं और इनका निर्माण राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत प्रदत्त अधिकारों के तहत किया गया है। आंध्र प्रदेश लोक सेवा (अनुशासनात्मक कार्यवाही न्यायाधिकरण) अधिनियम का अधिनियमन राज्य की विधायिका द्वारा किया गया है और आंध्र प्रदेश लोक सेवा (अनुशासनात्मक कार्यवाही न्यायाधिकरण) नियम का निर्माण अधिनियम द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत किया गया है।
अखिल भारतीय सेवाएं (अनुशासन एवं अपील) नियम और अखिल भारतीय सेवाएं (आचरण) नियम का निर्माण केंद्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 के अनुच्छेद 3 के उप-अनुच्छेद (1) के तहत प्रदत्त अधिकारों के तहत किया गया है, जिसका अधिनियमन संविधान के अनुच्छेद 312 के तहत किया गया था। अब तक निर्मित तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा।
3.2 अनुच्छेद 311
संविधान का अनुच्छेद 311 संघ लोक सेवा या राज्य लोक सेवा के तहत लोक सेवाओं में कार्यरत व्यक्तियों की पदच्युति, निष्कासन या पदावनति से संबंधित मामलों के लिए है। इसके प्रावधान निम्नानुसार हैंः
- कोई भी व्यक्ति जो संघ की लोक सेवा, अखिल भारतीय लोक सेवा या राज्य लोक सेवा के तहत लोक सेवा का सदस्य है, या जो संघ या राज्य की लोक सेवा के किसी पद पर आसीन है उसका निष्कासन किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता जो उस प्राधिकरण के अधीनस्थ है जिसने उस व्यक्ति की नियुक्ति की है।
- उपरोल्लिखित किसी भी व्यक्ति की पदच्युति, निष्कासन या पदावनति बिना जांच के तब तक नहीं की जा सकती, जब तक ऐसी जांच के दौरान उसे उसपर लगे आरोपों की जानकारी प्रदान नहीं की गई है, साथ ही उसे अपने विरुद्ध लगे आरोपों के विषय उचित सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया है य बशर्ते कि ऐसी जांच के बाद यह प्रस्तावित किया जाता है कि इस व्यक्ति पर इस प्रकार का दंड अधिरोपित किया जाए, तो इस प्रकार का दंड जांच के दौरान प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर अधिरोपित किया जायेगा, और ऐसे समय यह आवश्यक नहीं है कि संबंधित व्यक्ति को प्रस्तावित दंड पर किसी प्रकार का अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाए रू साथ ही आगे यह भी शर्त लगाई गई है कि यह उपधारा निम्न मामलों में लागू नहीं होगी -
- जहां किसी व्यक्ति की पदच्युति, निष्कासन या पदावनति किसी ऐसे आचरण के आधार पर की गई है जिसके कारण उसपर लगे आपराधिक मामले में दोषसिद्धि हुई है; या
- जहां उस व्यक्ति को पदच्युत, निष्कासित या पदावनत करने वाला सक्षम प्राधिकरण इस बात से संतुष्ट है कि किसी कारणवश इस प्रकार की जांच करना युक्तियुक्त रूप से व्यावहारिक नहीं है, हालांकि संबंधित प्राधिकरण को यह तथ्य लिखित में दर्ज करना आवश्यक है य या
- जहां राष्ट्रपति या राज्यपाल संतुष्ट हैं कि राज्य के हित में इस प्रकार की जांच करना उचित नहीं है।
- यदि किसी भी उपरोल्लिखित व्यक्ति के संबंध में यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या ऐसी जांच करना युक्तियुक्त रूप से व्यवहार्य है, जैसा कि उपधारा (2) में संदर्भित किया गया है, तो ऐसे मामले में व्यक्ति को पदच्युत, निष्कासित या पदावनत करने के लिए नियुक्त सक्षम प्राधिकारी का निर्णय अंतिम होगा।
अनुच्छेद 311 में निर्दिष्ट प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सर्व प्रथम, अनुच्छेद में शामिल किये गए सरकारी कर्मचारियों को पदावधि की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके, और दूसरा, सरकारी कर्मचारियों की मनमानी पदच्युति, निष्कासन या पदावनति के संबंध में एक प्रकार का सुरक्षा उपाय प्रदान किया जा सके। ये प्रावधान न्यायालय में प्रवर्तनीय हैं। जहां कहीं अनुच्छेद 311 का उल्लंघन होता है वहां अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा जारी आदेश प्रारंभ से ही शून्य हो जाते हैं और यह माना जाएगा कि संबंधित सरकारी कर्मचारी की सेवा जारी है, या यदि उसकी पदावनति की गई है, तो उसे उसके पूर्व के पद पर निरंतर जारी माना जायेगा।
3.2.1 न्यायिक मामले
अनुच्छेद 311 के प्रावधानों के निहितार्थों का विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूक्ष्म परीक्षण किया गया है। विशेष रूप से निम्न मामलों मेंः
- पुरुषोत्तम लाल ढींगरा बनाम भारत संघराज्य, ऑल इंडिया रिपोर्टर 1958, सर्वोच्च न्यायालय 36;
- खेम चंद बनाम भारत संघराज्य, ऑल इंडिया रिपोर्टर 1958, सर्वोच्च न्यायालय 300; और
- भारत संघराज्य एवं अन्य बनाम तुलसीराम पटेल, 1958(2) एसएलआर सर्वोच्च न्यायालय 576, सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें शामिल विभिन्न पहलुओं की विस्तृत व्याख्या की है और यह व्याख्या प्रशासनिक अधिकारियों को अनुशासनात्मक मामलों से निपटने के लिए प्रामाणिक दिशानिर्देश प्रदान करती है।
अनुच्छेद 310 और 311 शासकीय सेवकों पर लागू होते हैं, जो चाहे स्थायी हों, अस्थायी हों, स्थानापन्न हों या परिवीक्षा पर हों (पुरुषोत्तम लाल ढींगरा बनाम भारत संघराज्य, ऑल इंडिया रिपोर्टर 1958, सर्वोच्च न्यायालय 36)।
4.0 लोक सेवाओं का विकास
लोक सेवाओं का गठन सर्व प्रथम ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान माननीय ईस्ट इंडिया कंपनी लोक सेवकों के रूप में हुआ था। इस चरण के दौरान लोक सेवकों के दो समूह थेः प्रतिवचनबद्ध (जो कंपनी में प्रतिज्ञापत्र के साथ प्रवेश करते थे) और किसी वादे, इकरारनामे के साथ। प्रतिवचनबद्ध लोक सेवक अनुक्रम में उच्च पदों पर आसीन होते थे जबकि वादे, इकरारनामे के साथ प्रविष्ट लोक सेवक अधीनस्थ स्तरों पर आसीन होते थे। यह सेवा विकसित होकर भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) बनी, जो बाद में स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के रूप में विकसित हुई। लोक सेवा आयोग 1886-87 (आईटचीसन आयोग), का गठन नागरिक सेवाओं के विकास को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए किया गया था। आईटचीसन आयोग की सिफारिशों में निम्न सिफारिशें शामिल थींः
- प्रतिवचनबद्ध और वादे, इकरारनामे के साथ के द्विस्तरीय वर्गीकरण को त्रिस्तरीय वर्गीकरण द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए - शाही नागरिक सेवा, प्रांतीय नागरिक सेवा और अधीनस्थ नागरिक सेवा
- प्रवेश की उच्चतम आयु 23 वर्ष हो
- भर्ती की सांविधिक व्यवस्था का उन्मूलन किया जाए
- प्रतियोगी परीक्षा इंग्लैंड और भारत में एकसाथ आयोजित नहीं की जाए
- शाही नागरिक सेवा के कुछ प्रतिशत पदों पर पूर्ति प्रांतीय नागरिक सेवा से पदोन्नति के आधार पर की जाए
- नागरिक सेवाओं में कैडर व्यवस्था की मूलभूत पद्धति की स्थापना आईटचीसन आयोग द्वारा की गई थी
1912 में इस्लिंगटन आयोग की नियुक्ति की गई थी, हालांकि उसकी सिफारिशों पर विचार नहीं किया गया। 1934 तक एक व्यवस्था विकसित हो चुकी थी जिसमें सात अखिल भारतीय सेवाएं शामिल थीं। भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय थे 1905 में गुरुसादय दत्त।
5.0 केंद्रीय और राज्य लोक सेवाएं
5.1 केंद्रीय लोक सेवाएं (Central Civil Services)
केंद्रीय लोक सेवाएं केंद्र सरकार के तहत कार्य करती हैं। केंद्रीय सेवाओं को दो वर्गों में वर्गी.त किया गया हैः वर्ग ए और वर्ग बी। वर्ग ए में 30 से अधिक केंद्रीय सेवाएं हैं। केंद्रीय लोक सेवा वर्ग ए के तहत आने वाली प्रमुख सेवाएं निम्नानुसार हैंः
- भारतीय विदेश सेवा (IFS)
- भारतीय राजस्व सेवा (IRS)
- भारतीय डाक सेवा
- भारतीय आर्थिक सेवा
- भारतीय लेखा परीक्षण एवं लेखा सेवा (IA & AS)
- सैन्य अभियांत्रिकी सेवा
- भारतीय सर्वेक्षण सेवा
- केंद्रीय सचिवालय सेवा
केंद्रीय लोक सेवा वर्ग बी में तीन सेवाएं शामिल हैं
- रक्षा सचिवालय सेवा
- केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनिक सेवा
- केंद्र शासित प्रदेश पुलिस सेवा
5.2 राज्य लोक सेवाएं
प्रत्येक राज्य की अपनी लोक सेवा है। राज्य लोक सेवाओं में निम्न सेवाएं शामिल हैं
- राज्य नागरिक/प्रशासनिक सेवा
- राज्य पुलिस सेवा
- राज्य वन सेवा
- लोक निर्माण विभाग
6.0 संघ लोक सेवा आयोग
(Union Public Service Commission - UPSC)
संघ लोक सेवा आयोग लोक सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करने के लिए अधिकृत एक संवैधानिक निकाय है। इसकी स्थापना संविधान के खंड 14 के तहत की गई थी। संविधान में संघराज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए लोक सेवा आयोगों का प्रावधान किया गया है। लोक सेवाओं के भारतीयकरण के उद्देश्य से प्रथम लोक सेवा आयोग का गठन 1926 में किया गया था। भारत शासन अधिनियम, 1935 में संघीय लोक सेवा आयोग और प्रांतीय लोक सेवा आयोगों की स्थापना का प्रावधान किया गया था।
6.1 आयोग की सदस्यता
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनमें से कम से कम आधे सदस्य ऐसे लोक सेवक होते हैं जिन्हें केंद्रीय या राज्य सेवा में कार्य करने का कम से कम 10 वर्ष का अनुभव है। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, इन दोनों में से जो भी पहले हो, का होता है। संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों को दुर्व्यवहार के आरोपों के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा निष्कासित किया जा सकता है, बशर्ते कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन आरोपों को मान्य किया गया हो।
6.2 संघ लोक सेवा आयोग के कार्य
संघ लोक सेवा आयोग के निम्नलिखित कार्य हैंः
- प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन के माध्यम से संघीय सरकार की सेवाओं में और पदों पर भर्तियां करना
- सीधे चयन के माध्यम से संघीय सरकार की सेवाओं में और पदों पर भर्तियां करना। इस प्रकार की भर्तियां तात्कालिक/अनियमित रिक्तियों की पूर्ति के लिए की जाती हैं।
- अधिकारियों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण की उपयुक्तता के संबंध में सलाह प्रदान करना
- विभिन्न पदों पर और सेवाओं में भर्तियों से संबंधित सभी मामलों में सरकार को सलाह प्रदान करना
- विभिन्न लोक सेवाओं से संबंधित अनुशासनात्मक मामलों का निपटारा करना
COMMENTS