यूपीएससी तैयारी - भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत तत्व - व्याख्यान - 2

SHARE:

सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!

SHARE:

भारत में आर्थिक नियोजन

[Read in English]


1.0 प्रस्तावना

आज भारत दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हाल के दिनों में, देश की विकास दर में भारी वृद्धि के वर्ष देखे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास मोटे तौर पर नीचे सूचीबद्ध चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक काल से पहले (1770 तक)
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक काल के दौरान (1947 तक)
  3. भारतीय अर्थव्यवस्था उदारीकरण से पहले (1991 तक)
  4. भारतीय अर्थव्यवस्था उदारीकरण के बाद

1.1 माल्थस का जनसंख्या का सिद्धांत 

थॉमस रॉबर्ट माल्थस पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘एस्से ऑन द प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन‘‘ (जनसंख्या के सिद्धांत पर निबंध) में जनसंख्या का एक व्यवस्थित सिद्धांत प्रतिपादित किया था। इस पुस्तक में उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि मानव जनसंख्या घातांकीय दर से (अर्थात प्रत्येक चक्र के साथ दुगनी होती है) बढती है जबकि खाद्यान्न का उत्पादन अंकगणितीय दर से (अर्थात समय के एक समान अंतर में लगातार एकसमान वृद्धि का योग) बढ़ता है। 

इस परिदृश्य ने एक ऐसे विपत्तिपूर्ण भविष्य की भविष्यवाणी की थी जहाँ मनुष्य के पास जीवित रहने के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं होगा। उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि 21 वीं सदी तक जनसंख्या बढकर 256 अरब हो जाएगी जबकि उपलब्ध खाद्यान्न केवल 9 अरब लोगों के लिए पर्याप्त होंगे। 

माल्थस द्वारा प्रस्तावित प्रमुख निवारक उपाय था नैतिक संयम परंतु साथ ही वे विवाह के अंदर संतति नियंत्रण के घोर विरोधी थे और उन्होंने यह सुझाव कभी नहीं दिया कि विवाह के बाद दंपत्तियों को उन्हें पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नियंत्रित करनी चाहिए। 

इस प्रकार माल्थस के विचारों से जो कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं उनके निश्चित रूप से राजनीतिक संकेतार्थ थे और यह आंशिक रूप से उनके लेखन के लिए जिम्मेदार थे, और संभवतः प्रसिद्द प्रारंभिक इंग्लिश रूढिवादी कॉबेट जैसे कुछ लेखकों द्वारा उनके कुछ विचारों की मिथ्या प्रस्तुति भी इसके लिए जिम्मेदार थी। 

बाद के कुछ लेखकों ने उनके विचारों को यह सुझाव देते हुए संशोधित किया जैसे देर से विवाह को सुनिश्चित करने के लिए कठोर शासकीय कार्रवाई। अन्य लेखकों ने इस विचार को स्वीकार नहीं किया कि विवाह के बाद संतति नियंत्रण को निषिद्ध किया जाए, और विशेष रूप से एक समूह, जिसे माल्थसवादी लीग कहा जाता था, ने संतति नियंत्रण के पक्ष में जोरदार तर्क दिए, हालांकि यह आचरण के उन सिद्धांतों का विरोधी था जिसकी पैरवी स्वयं माल्थस ने की थी। 

1.2 औपनिवेशिक काल से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था

स्पष्ट रूप से प्राचीनतम ज्ञात सभ्यता जो भारत की धरती पर विकसित हुई वह सिंधु घाटी सभ्यता थी। इतिहासकार इस सभ्यता का समय 2800 ईसा पूर्व और 1800 ईसा पूर्व के बीच विकास के चरम पर हुआ मानते हैं। यह खुदाई के शहरों से और संरचनाआें से विदित है कि सिंधु घाटी के निवासी कृषि, पशु-पालन का अभ्यास किया करते थे और उन्होनें विभिन्न शहरों के बीच व्यापार संबंधों को विकसित किया था। उन्हें बाट और माप की एक समान प्रणाली विकसित करने के लिए भी जाना जाता है। साथ ही सिन्धु घाटी के निवासी शहरी नियोजन के अपने  अनुप्रयोग के साथ शहरों का एक नेटवर्क विकसित करने वाले प्रथम कुछ लोगों में एक थे। ये सुनियोजित शहर दुनिया की पहली शहरी स्वच्छता प्रणालियों से लैस थे। काफी महत्वपूर्ण बात है!

भारत पहली शताब्दी ई.पू. के बाद से अंतरराष्ट्रीय व्यापार को विकसित करने में सफल हो गया था। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार कोरोमंडल, मालाबार, सौराष्ट्र और बंगाल का अधिकाधिक उपयोग समुद्र मार्गों से माल की आवाजाही भारत से, और भारत की ओर, करने हेतु हुआ। प्राचीन समय में भारत मुख्य रूप से मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप और अफ्रीका के कुछ हिस्सों के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता था। खैबर दर्रे के माध्यम से आयोजित थलचर अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्राचीन भी भारत में प्रचलित था।

बाद में, मध्ययुगीन काल में मुगल साम्राज्य ने एक केन्द्रीय-प्रशासित एकरूप राजस्व नीति और राजनीतिक स्थिरता के लिए रास्ता बनाया, जिसके फलस्वरुप व्यापार का आगे विकास हुआ और ‘राष्ट्र‘ एकीकृत हुआ। इस युग के दौरान भारत की मुख्य रूप से एक कृषि-प्रधान आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था थी जो मुख्य रूप से कृषि की आदिम तरीकों पर निर्भर थी। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भारत की अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से मराठा साम्राज्य द्वारा नियंत्रित किया गया था जिसका भारत के ज्यादातर हिस्सों में शासन था। बाद में, पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठा हार से, भारत कई मराठा-संघीय राज्यों में में विघटित हो गया जिसने एक व्यापक राजनीतिक उथलपुथल को जन्म दिया। इस दौरान देश के अधिकांश भागों में भारत की अर्थव्यवस्था काफी बुरी थी लेकिन कुछ भागों को स्थानीय समृद्धि मिली। बाद में, अठारहवीं सदी के अंत तक, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, भारतीय राजनीतिक तंत्र का एक हिस्सा छीनने में सफल रही थी, जिसके बाद देश की आर्थिक गतिविधियों और भारत की धरती से आयोजित व्यापार में भारी मात्रा में परिवर्तन आया था।

1.3 औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान देश भर में आयोजित आर्थिक गतिविधियों में एक बड़ा बदलाव आया। कृषि के व्यवसायीकरण पर अधिक ज़ोर दिया गया था। इससे देश भर में कृषि पद्धति में बदलाव हुआ था। भारतीय अर्थव्यवस्था के इस चरण के दौरान बड़े पैमाने पर खाद्यान्नों के उत्पादन में लगातार गिरावट आई थी जिसके फलस्वरूप देश में दरिद्रता और किसानों का अभावग्रस्त जीवन शुरू हुआ। इसके अलावा, प्रतिमान में इस बदलाव के बाद, एक छोटी सी अवधि में देश में कई अकाल आये थे। 

हालांकि, इसके बाद और इस चरण के दौरान, देश की आर्थिक संरचना में तेजी से गिरावट आई थी, लेकिन कुछ प्रमुख और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण विकास हुए। इन विकासों में रेल, तार, आम कानून और कानूनी प्रणाली की स्थापना शामिल हैं। इसके अलावा, इस युग में एक लोक सेवा (प्रषासनिक सेवा) को स्थापित किया गया था जिसका उद्देश्य अनिवार्य रूप से राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होना था।

1947 तक का चरण इस विवरण के अंतर्गत आता है। बहरहाल जैसे ही भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की और अपने आर्थिक भाग्य को तैयार करने लगा, कई नए प्रयोग किये गए, जिनमें  सबसे महत्वपूर्ण थे केंद्रीय योजना और पंचवर्षीय योजनाएं। 1947 से अब तक की अवधि को ‘‘उदारीकरण से पहले 1991 तक’‘ और ‘‘उदारीकरण के बाद - 11995 के बाद से आज तक’‘ में मोटे तौर पर बांटा जा सकता है। अब हम इन पर एक नज़र डालते हैं।

1.4 भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

एक उद्देश्य के बिना योजना शायद एक मानचित्र के बिना नौकायन की तरह है, या किसी भी गंतव्य के बिना गाड़ी चलाने की तरह है। आम तौर पर योजना के उद्देश्यों के दो समूह होते हैं, अर्थात् अल्पकालिक उद्देष्य और दीर्घकालिक उद्देष्य। अल्पकालिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था की तत्काल समस्याओं के आधार पर, योजना से योजना के लिए अलग अलग होते हैं। योजना बनाने की प्रक्रिया कुछ लंबी अवधि के उद्देश्यों से प्रेरित होती है। हमारी पंचवर्षीय योजनाओं के मामले में, दीर्घकालिक उद्देश्य इस प्रकार हैंः

  1. जीवन स्तर में सुधार करने की दृष्टि से विकास की एक उच्च दर,
  2. आर्थिक आत्मनिर्भरता,
  3. सामाजिक न्याय,
  4. अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण, और
  5. आर्थिक स्थिरता।

विकास की उच्च दरः सभी भारतीय पंचवर्षीय योजनाओं ने वास्तविक राष्ट्रीय आय की उच्च विकास दर को प्राथमिक महत्व दिया है। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था वृद्धिहीन थी और लोग घोर गरीबी की हालत में रह रहे थे। अंग्रेजों ने विदेश व्यापार और औपनिवेशिक प्रशासन, के दोनों माध्यम से अर्थव्यवस्था का फायदा उठाया। जब यूरोपीय उद्योग विकास के चरम पर थे, भारतीय अर्थव्यवस्था गरीबी के दुष्चक्र में फंसी थी। व्यापक गरीबी और दुख, पंचवर्षीय योजना के माध्यम से सुलझाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण समस्याएं थीं। 

नियोजन के प्रथम तीन दशकों के दौरान, हमारी अर्थव्यवस्था मे आर्थिक विकास की दर बहुत उत्साहजनक नहीं थी। 1980 तक, सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि दर, आबादी की औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.5 प्रतिशत के सापेक्ष 3.73 प्रतिशत थी। इसलिए प्रति व्यक्ति आय (पर कैपिटा इनकम) में केवल लगभग 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। लेकिन छठी योजना के बाद से, भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव आया है। छठी, सातवीं और आठवीं योजनाओं में विकास दरें क्रमशः 5.4 प्रतिशत, 5.8 प्रतिशत और 6.8 प्रतिशत थीं। 1997 में शुरू हुई नौवीं योजना ने, प्रति वर्ष 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर को लक्ष्य बनाया था और वास्तविक विकास दर 1998-99 में 6.8 प्रतिशत और 1999-2000 में 6.4 प्रतिशत थी। विकास की इस उच्च दर वृद्धि को एक हिंदू विकास दर की अवधारणा के खिलाफ भारतीय योजना की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है।

आर्थिक आत्मनिर्भरताः आत्म-निर्भरता का मतलब अपने पैरों पर खड़ा होना है। भारतीय संदर्भ में, इसका मतलब विदेशी सहायता पर निर्भरता कम से कम होना है। योजना की शुरुआत में, हमें अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए अमेरीका से खाद्यान्न आयात करना पड़ा था। इसी तरह, औद्योगीकरण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए, हमने भारी मशीनरी और तकनीकी ज्ञान के रूप में पूंजीगत वस्तुओं का आयात किया था। सड़कों, रेलवे, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाने के लिए, हमें अपने निवेश की दर को बढ़ाने के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर होना पडा था। चूंकि विदेशी क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता आर्थिक उपनिवेशवाद की ओर ले जा सकती थी, योजनाकारों ने ठीक तीसरी ही योजना के बाद से आत्मनिर्भरता के उद्देश्य का उल्लेख किया। चौथी योजना में आत्म-निर्भरता और विशेष रूप से, खाद्यान्न के उत्पादन के लिए, ज़्यादा जोर दिया गया था। पांचवीं योजना में, हमारा उद्देश्य निर्यात संवर्धन और आयात प्रतिस्थापन के माध्यम से पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित करना था। 

पांचवीं योजना के अंत तक भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया। 1999-2000 में, हमारा खाद्यान्न उत्पादन 205.91 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसके अलावा, औद्योगीकरण के क्षेत्र में, अब हमारे पास बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) के आधार पर मजबूत पूंजीगत उद्योग हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले में हमारी उपलब्धियां कम उल्लेखनीय नहीं हैं। हमारी योजना परिव्यय में विदेशी सहायता के अनुपात में दूसरी योजना में 28.1 प्रतिशत से आठवीं योजना में 5.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि, इन सब उपलब्धियों के बावजूद, हमें यह याद रखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि ने आत्मनिर्भरता को एक सुदूर संभावना बना दिया है।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान (2007-12) भारत ने 9 प्रतिशत के लक्ष्य की तुलना में 8 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की। 12 वीं योजना अवधि के दौरान राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा 8 प्रतिशत वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया था। 

सामाजिक न्यायः सामाजिक न्याय का मतलब समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समरूपी पद्धति से देश का धन और आय वितरित करना है। भारत में, हम लोगों की एक बड़ी संख्या को गरीब पाते हैं जबकि कुछ लोग अति-विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। इसलिए, विकास का एक और उद्देश्य यह है कि सामाजिक न्याय को सुनिश्चित किया जाये और समाज के गरीब और कमज़ोर वर्गों  की देखभाल की जाये। पंचवर्षीय योजनाओं ने सामाजिक न्याय के चार पहलुओं पर प्रकाश डाला है। वे हैंः

  1. देश की राजनीतिक संरचना में लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग,
  2. सामाजिक और आर्थिक समानता की स्थापना और क्षेत्रीय असमानता को हटाना,
  3. आर्थिक शक्ति के केंद्रीकरण की प्रक्रिया का अंत करना, और
  4. पिछड़े और दलित वर्गों की हालत में सुधार के लिए प्रयास।

अधिकारियों द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद, असमानता की समस्या हमेशा की तरह विकराल है। जनगणना 2011 के आंकडे़ं दर्शाते हैं कि देश की केवल 4.6 प्रतिशत जनसंख्या के पास ये चारों परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं, अर्थात, टेलीविजन, कंप्यूटर, वाहन और मोबाइल फोन। सामाजिक संकेतकों पर 2014 में प्रकाशित एक ओईसीडी रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार द्वारा कम सामाजिक व्यय और परिसंपत्तियों का विषम स्वामित्व उच्च आय और सामाजिक असमानताओं के प्रमुख कारण रहे हैं। इस प्रकार सामाजिक न्याय प्राप्त करने के क्षेत्र में प्रगति धीमी है और संतोषजनक नहीं है।

इस प्रकार पंचवर्षीय योजनाओं ने अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए लक्ष्य-आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की आर्थिक स्थिति के उत्थान को लक्षित किया है। जमीनी संपत्ति के वितरण में असमानता को कम करने के लिए, भूमि सुधारों को अपनाया गया है। इसके अलावा, क्षेत्रीय असमानता को कम करने के लिए, देश के पिछड़े क्षेत्रों में विशिष्ट कार्यक्रमों को अपनाया गया है। 

अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरणः स्वतंत्रता से पहले, हमारी अर्थव्यवस्था पिछड़ी और चरित्र में सामंती थी। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद, योजनाकारों और नीति निर्माताओं ने देश के संरचनात्मक और संस्थागत ढाँचे को बदलकर अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने की कोशिश की। आधुनिकीकरण का लक्ष्य उत्पादन की बेहतर वैज्ञानिक तकनीकें अपनाकर, पारंपरिक रूप से पिछड़े विचारों की जगह तर्क से, और ग्रामीण संरचना और संस्थानों में बदलाव लाकर, लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है।

इन परिवर्तनों का उद्देश्य, राष्ट्रीय आय में औद्योगिक उत्पादन की हिस्सेदारी बढ़ाना, उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार और भारतीय उद्योगों में विविधता लाना है। इसके अलावा, आधुनिकीकरण में कृषि और उद्योगों के लिए बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों का विस्तार भी शामिल है। यह भूमि सुधार सहित कृषि के आधुनिकीकरण की परिकल्पना करता है।

आर्थिक स्थिरताः आर्थिक स्थिरता का मतलब मुद्रास्फीति और बेरोजगारी को नियंत्रित करना है। दूसरी योजना के बाद, मूल्य स्तर ने एक लंबी अवधि के लिए बढ़ना शुरू कर दिया। इसलिए, योजनाकारों ने ठीक से मूल्य स्तर की बढ़ती प्रवृत्ति को नियंत्रित करके अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की कोशिश की है। हालांकि, इस दिशा में प्रगति संतोषजनक नहीं है।

इस प्रकार भारत की योजनाओं का व्यापक उद्देश्य सामाजिक न्याय के साथ एक गैर-मुद्रास्फीति आत्मनिर्भर वृद्धि रहा है।

1.5 भारतीय रोजगार बाजार की समस्याएं 

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार भारत में वर्ष 2016 के रोजगार रुझान काफी सकारात्मक प्रतीत होते हैं। हालांकि अधिकांश आशावाद संगठित क्षेत्र के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो संपूर्ण रोजगार बाजार का मात्र 7 प्रतिशत है। भारत के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार भारत के कुल श्रम बल में 48.5 करोड़ लोग हैं। इनमें से 93 प्रतिशत लोग उस क्षेत्र में कार्यरत हैं जिसे ‘‘अनौपचारिक क्षेत्र‘‘ कहा जाता है। 

प्रति वर्ष 1 करोड़ से 1.20 करोड़ भारतीय श्रम बल में नये शामिल होते हैं। और चूंकि एक औसत भारतीय आज 27 वर्ष आयु का अत्यंत युवा है अतः यह संख्या निरंतर बढ़ती ही जाएगी। भारत के राष्ट्रीय कौशल विकास अभियान के अनुसार, भारतीय श्रम बल में से केवल 2.3 प्रतिशत श्रमिकों को ही किसी प्रकार का औचारिक प्रशिक्षण प्राप्त है। इसकी अमेरिका (52 प्रतिशत), यूके (68 प्रतिशत), जर्मनी (75 प्रतिशत), जापान (80 प्रतिशत) या दक्षिण कोरिया (95 प्रतिशत) से तुलना कीजिये। 

PT's IAS Academy, PT education, IAS, CSE, UPSC, Prelims, Mains, exam coaching, exam prep, Civil Services test

अतः हम आसानी से यह कह सकते हैं कि भारत के लिए चुनौती की मात्रा बहुत बड़ी है। भारत को सच्चे अर्थों में अपने जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ उठाने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है कौशल विकास। भारतीय राष्ट्रीय कौशल विकास निगम का गठन अपने प्रकार के एकमात्र सार्वजनिक निजी भागीदारी कंपनी के रूप में किया गया है जिसकी प्रमुख अनिवार्यता है भारत के कौशल भूश्य को उत्प्रेरित करना। 

भारत में कौशल विकास को उन लोगों के लिए अंतिम आश्रय के रूप में देखा जाता है जिन्हें औचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला है। इस मानसिक अवरोध ने केवल इस खाई को अधिक चौड़ा किया है कि उद्योगों की आवश्यकता क्या है और वर्तमान में क्या उपलब्ध है। शिक्षा व्यवस्था में 10,000 से अधिक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) हैं, जिनमें बड़ी संख्या में प्रशिक्षकों की नियुक्तियां की गई हैं परंतु इन प्रशिक्षकों का ज्ञान और कौशल आज की उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। शिक्षण व्यवस्था भी प्रभावी कौशल निर्माण करने में विफल रही है। 

भारत में बीते अनेक दशकों से रोजगार निर्माण और रोजगार की मांग के बीच अंतर रहा है। अतः रोजगार के नए अवसर न केवल उन्हें प्रदान किये जाने चाहिए जो वर्तमान वर्ष में व्यवस्था में शामिल हो रहे हैं बल्कि उन्हें भी प्रदान किये जाने चाहिये जो बड़ी संख्या में अभी तक बेरोजगार हैं और जिनके पास आवश्यक कौशल भी नहीं है। 

भारतीय रोजगार बाजार में निरंतर जारी एक अन्य समस्या है भारत की स्पष्ट धारणा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए मजदूरी को कम रखना चाहिए। फिर भी चीन, जिसकी प्रचलित मजदूरी भारत में प्रचलित मजदूरी से ढाई गुना अधिक है, फिर भी वह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी बना हुआ है। मजदूरी लागत कुल उत्पादन लागत का एक बहुत छोटा हिस्सा है, और इस अनुपात में वर्ष 1981 से निरंतर गिरावट आई है। अब भारत के लिए इस तथ्य का सामना करने का समय आ गया है कि श्रम लागत में बचत और शक्तिहीन श्रमिक पैदा करना विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धी बनने की कुंजी नहीं है। 

भारत का लगभग 80 प्रतिशत विनिर्माण उत्पादन ऐसे उपक्रमों से आता है जो औपचारिक क्षेत्र में हैं जबकि इसी अनुपात का विनिर्माण रोजगार अनौपचारिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा पैदा किया जाता है। यह एक बुनियादी बेमेल हैः उपक्रमों का एक समूह अधिकांश उत्पादन के लिए जिम्मेदार है जबकि उपक्रमों का एक अन्य समूह अधिकांश रोजगार के लिए जिम्मेदार है। सरकार को ऐसी स्थितियां निर्मित करनी चाहिये जो बडे़ उपक्रमों को अधिक श्रमिक लेने के लिए प्रोत्साहित करें साथ ही अनौपचारिक उद्यमों को अपने विस्तार में वृद्धि करने में आसानी हो।

पुरातन श्रम कानून एक अन्य समस्या है जो संभवतः भारत में निवेश को कठिन बनाती है और इसके परिणामस्वरूप होने वाले रोजगार निर्माण को बाधित करती है। हालांकि वर्तमान सरकार इन कानूनों में सुधार करने और उन्हें अधिक लचीला बनाने के लिए जी जान से प्रयत्नशील है फिर भी इस विषय पर राजनीतिक आमसहमति बना पाना कठिन साबित हो रहा है। 


2.0 भारत में सांख्यिकी गणना की संरचना 

ब्रिटिश प्रशासन ने भारत में सांख्यिकी व्यवस्था की आधारशिला रखी। प्रांतीय सरकारों के लिए संबंधित सांख्यिकी आंकड़ों को अपनी वार्षिक प्रशासनिक रिपोर्ट में प्रकाशित करना होता था, जो इसके लिए जिला कार्यालयों पर निर्भर रहते थे। स्वतंत्रता-पूर्व काल की पहली प्रमुख घटना थी सांख्यिकी समिति (1862) का गठन। यह गठन विभिन्न विषय क्षेत्रों पर सांख्यिकी जानकारी एकत्रित करने के लिए प्रपत्रों के प्रारूप के निर्माण के लिए किया गया था इसका परिणाम 1868 में ब्रिटिश भारत के सांख्यिकी सारांश शीर्षक के प्रकाशन में हुआ। यह प्रकाशन स्थानीय प्रशासनों द्वारा प्रदान की गई सांख्यिकी जानकारी के आधार था जिसमें सभी ब्रिटिश प्रांतों के लिए उपयोगी जानकारी उपलब्ध थी, और यह वर्ष 1923 तक एक वार्षिक प्रकाशन बना रहा। 

भारतीय अकाल आयोग की सिफारिशों के बाद वर्ष 1881 में विभिन्न प्रांतों में कृषि संबंधी आंकडे़ं एकत्रित करने के लिए कृषि विभाग शुरू किये गए, जबकि प्रांतों द्वारा कृषि संबंधी आंकड़ों के एकत्रीकरण में समन्वय का कार्य कृषि विभाग के अधीन किया गया। इस विषय पर पहला प्रकाशन, ब्रिटिश भारत की कृषि सांख्यिकी, वर्ष 1886 में प्रकाशित हुआ। 

वर्ष 1862 में भारत सरकार के तत्कालीन कृषि विभाग में एक सांख्यिकी शाखा स्थापित की गई। वर्ष 1895 में सांख्यिकी शाखा को पूर्ण सांख्यिकी ब्यूरो में परिवर्तित कर दिया गया, जिसके कार्यों में बाद में 1905 में वाणिज्यिक खुफिया जानकारी के प्रचार-प्रसार का कार्य शामिल किया गया। इस ब्यूरो के कार्य और गतिविधियाँ दो अच्छी तरह से परिभाषित शाखाओं द्वारा किया जाता था जिनके नाम थे वाणिज्यिक खुफिया जानकारी और सांख्यिकीय, इन दोनों को महानिदेशक की अध्यक्षता वाले वाणिज्यिक खुफिया जानकारी एवं सांख्यिकीय विभाग नामक संगठन के तहत रखा गया। 

वर्ष 1914 तक वाणिज्यिक खुफिया जानकारी एवं सांख्यिकी महानिदेशक जनसांख्यिकी, फसल उत्पादन एवं मूल्य, वर्षा, औद्योगिक उत्पादन, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, खनन, सडकें एवं संचार और अन्य मामलों जैसी सभी प्रमुख सांख्यिकी जानकारी के प्रकाशन के लिए जिम्मेदार थे। अप्रैल 1914 में एक स्वतंत्र सांख्यिकी निदेशालय की स्थापना हुई, और सांख्यिकीय निदेशालय एवं वाणिज्यिक खुफिया जानकारी विभाग का एक ही संगठन में विलय किया गया जिसका नाम जनवरी 1925 में वाणिज्यिक खुफिया जानकारी एवं सांख्यिकी निदेशालय के रूप में परिवर्तित किया गया। 

1939 में युद्ध शुरू होने के बाद सरकार द्वारा एक अधिक सटीक और सघन जानकारी की आवश्यकता महसूस हुई। 1945 में भारत सरकार ने एक अंतर-विभागीय समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार को बनाया गया जिनका कार्य उपलब्ध सांख्यिकीय जानकारी पर विचार करना और अंतरों को भरने और विद्यमान संगठनों में सुधार के लिए सरकार को सिफारिशें करना था। इसकी सिफारिशों में से एक सिफारिश थी एक स्वतंत्र केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय का निर्माण करना। 

स्वतंत्रता और नियोजित अर्थव्यवस्था की अवधारणा के उदय के साथ भारत में सांख्यिकीय क्षेत्र को काफी बल प्राप्त हुआ। इस घटनाक्रम के महत्वपूर्ण चरण निम्नानुसार हैंः

  1. वर्ष 1949 में केंद्र के मंत्रिमंडल सचिवालय में एक नाभिकीय सांख्यिकी इकाई का गठन हुआ। बाद में वर्ष 1951 में यह इकाई केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) के रूप में विकसित हुई। 
  2. राष्ट्रीय आय के विश्वसनीय आकलन के लिए एक तंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 1949 में एक राष्ट्रीय आय समिति की नियुक्ति की गई। 
  3. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की स्थापना वर्ष 1950 में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर नमूना सर्वेक्षणों के माध्यम से जानकारी एकत्रित करने के लिए की गई। 
  4. वर्ष 1954 में राष्ट्रीय आय इकाई को वित्ती मंत्रालय से निकालकर केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय को स्थानांतरित कर दिया गया और साथ ही योजना सांख्यिकी के लिए एक नई इकाई का गठन किया गया। 
  5. वर्ष 1957 में औद्योगिक सांख्यिकी का विषय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय को स्थानांतरित कर दिया गया। 
  6. अप्रैल 1961 में मंत्रिमंडल सचिवालय में सांख्यिकी विभाग का गठन हुआ और केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय उसका एक हिस्सा बन गया। 
  7. वर्ष 1972 में तत्कालीन सांख्यिकी विभाग में एक कंप्यूटर केंद्र स्थापित किया गया। 
  8. वर्ष 1973 में सांख्यिकी विभाग योजना मंत्रालय का हिस्सा बन गया। 
  9. फरवरी 1999 में सांख्यिकी विभाग और कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग का विलय किया गया और इसका नाम सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग रखा गया। 
  10. अक्टूबर 1999 में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के रूप में घोषित किया गया। 

भारतीय राजनीति की संघीय संरचना ने सांख्यिकी व्यवस्था के संगठन को प्रभावित किया है। आमतौर पर किसी भी विषय पर आंकडें एकत्रित करने का कार्य उस प्राधिकरण (केंद्रीय मंत्रालय या विभाग या राज्य सरकार का विभाग) में निहित होता है जो केंद्र, राज्य या समवर्ती सूचियों में उस विषय के दर्जे के अनुसार जिम्मेदार है। आमतौर पर केवल उन विषयों को छोड़कर जहां राज्य-स्तरीय परिचालन केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के अभिन्न अंग हैं या राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षणों से आंकडे एकत्र किये जाते हैं, सांख्यिकीय जानकारी राज्यों से निकलकर केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। 

राज्यों की सांख्यिकी व्यवस्था केंद्र की व्यवस्था के ही समान है। इसे आमतौर पर राज्य सरकारों के विभागों में पार्श्वतः विकेन्द्री.त किया जाता है, जहां कृषि या स्वास्थ्य जैसे प्रमुख विभागों के पास विभागीय सांख्यिकी के लिए बडे सांख्यिकी प्रभाग होते हैं। शीर्ष स्तर पर अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी निदेशालय (DES) (पूर्व में ब्यूरो) होता है जो राज्य में सांख्यिकी गतिविधियों के समन्वय के लिए जिम्मेदार होता है।

3.0 सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणनाः कुछ अवधारणाएं 

3.1 क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity – PPP)

विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण के कारण जीडीपी की गणना के लिए एक समान आधार तैयार करना अनिवार्य है। अतः एक समान पैमाने पर अर्थव्यवस्थाओं के मापन और विभिन्न देशों में आय के स्तरों की तुलना करने के लिए क्रय शक्ति समता की पद्धति तैयार की गई।

क्रय शक्ति समता की अवधारणा हमें इस बात का अनुमान लगाने की अनुमति देती है कि दो देशों की मुद्राओं के बीच की विनिमय दर क्या होनी चाहिए ताकि दोनों देशों की मुद्राओं की क्रय शक्ति परस्पर विनिमय की समता पर हो। उदाहरणार्थ, यदि किसी वस्तु की लागत भारत में 2800 रुपये है, और मान लें कि विनिमय दर 1 डॉलर बराबर 70 रुपये है, तो अमेरिका में उसकी लागत 40 डॉलर होनी चाहिए। इसके विपरीत, यह भी कह सकते हैं कि यदि वही वस्तु अमेरिका में 4 डॉलर की है तो क्रय शक्ति समता के अनुसार विनिमय दर 1 डॉलर बराबर 70 रुपये है। 

जहां तक विभिन्न अर्थव्यवथाओं के बीच तुलना का संबंध है, तो मुद्रास्फीति, भिन्न-भिन्न जीवन-यापन की लागत, जनसंख्या इत्यादि जैसे कारकों के कारण इनमें अनेक विविधताएं होंगी। पहली समस्या को हल करने के लिए अर्थशास्त्री सांकेतिक जीडीपी की तुलना करने के बजाय वास्तविक जीडीपी की तुलना करने को अधिक प्रधानता देते हैं। 

हालांकि चीन की सांकेतिक जीडीपी की तुलना आयरलैंड की सांकेतिक जीडीपी से करने से कुछ हासिल नहीं होगा। हमें यह ध्यान में रखना होगा कि चीन की जनसंख्या आयरलैंड की जनसंख्या की तुलना में 300 गुना अधिक है। अतः अर्थशास्त्री प्रति व्यक्ति जीडीपी की तुलना को अधिक प्रधानता देते हैं। अब मान लें कि चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 500 डॉलर है, जबकि आयरलैंड की प्रति व्यक्ति जीडीपी 15,000 डॉलर है। इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ नहीं है कि एक औसत आयरलैंड वासी एक औसत चीन वासी की तुलना में 10 गुना बेहतर स्थिति में है। 

प्रति व्यक्ति जीडीपी ये यह पता नहीं चलता कि किसी देश में रहना कितना महंगा है। क्रय शक्ति समता इस समस्या का हल निकालने का प्रयास इस प्रकार करती है कि वस्तुओं की एक समान टोकरी में से एक अमेरिकी डॉलर कितनी वस्तुएं क्रय कर सकता है। 

3.2 तीन दृष्टिकोण 

उत्पादन अनुमान अर्थव्यवस्था में हुए अंतिम उत्पादन के मूल्य में से उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग की गई निविष्टियों को घटाने पर प्राप्त मूल्य पर आधारित है। अंतिम उत्पादन में कार जैसे उत्पाद शामिल हैं जबकि मध्यवर्ती वस्तुएं वे होती हैं जो किसी अन्य वस्तु या सेवा के उत्पादन में उपयोग की जाती हैं, जैसे कार के टायर, बिजली, और विज्ञापन। चूंकि अंतिम वस्तु का मूल्य (कार की कीमत) उसकी निविष्टियों (टायर) और विनिर्माता की अभियांत्रिकी विशेषज्ञता, दोनों को प्रतिबिंबित करता है, अतः टायर विनिर्माता के अंतिम उत्पादन को कार के अंतिम उत्पादन में जोडने से जीडीपी का अनुमान अतिप्राक्कलन हो जायेगा। इस प्रकार के दोहरे लेखांकन से बचने के लिए उत्पादन के प्रत्येक चरण पर संवर्धित मूल्य की गणना की जाती है और इसका कुल योग किया जाता है। इसे सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) कहते हैं, जिसे आगे जीडीपी अनुमान निर्माण करने के लिए उत्पादों के करों और अनुवृत्तियों से समायोजित किया जाता है। 

व्यय अनुमान दिए गए वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में उत्पादित मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं को छोडकर, वस्तुओं और सेवाओं के कुल व्यय के मूल्य पर आधारित है। जबकि उत्पादन दृष्टिकोण उत्पादन के मूल्य को पकडता है, वहीं व्यय दृष्टिकोण वस्तुओं और सेवाओं पर निगमों, उपभोक्ताओं, विदेशी क्रेताओं और सरकार के व्यय के मूल्य को प्रतिबिंबित करता है। इस गणना के लिए प्राथमिक आंकडे परिवारों और व्यापारों के, और साथ ही सरकारी व्यय के आंकडों के व्यय सर्वेक्षणों से प्राप्त किये जाते हैं। विशेष रूप से उत्पादकों और उपभोक्ता मूल्यों के आंकड़ों के साथ जीवन यापन लागतों और खाद्य सर्वेक्षण, सेवाओं में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सर्वेक्षण, और खुदरा बिक्री पूछताछ  से प्राप्त जानकारी का उपयोग किया जाता है। 

आय अनुमान उत्पादन से सीधे (वस्तुओं और सेवाओं के) व्यक्तियों (उदाहरणार्थ मजदूरी और वेतन) और निगमों (उदाहरणार्थ लाभ) द्वारा अर्जित आय की गणना करता है। जीडीपी की गणना के लिए इस दृष्टिकोण के मुख्य आंकडे़ं त्रैमासिक परिचालन लाभों, औसत साप्ताहिक अर्जन और नियोक्ता सर्वेक्षणों के साथ ही प्रशासनिक आंकडे राजस्व एवं सीमा शुल्क से प्राप्त किये जाते हैं। 

तीन विभिन्न पद्धतियों का उपयोग एक स्रोत पर निर्भरता से बचाता है और समग्र अनुमान प्रक्रिया में अधिक विश्वास पैदा करता है। जीडीपी की गणना त्रैमासिक आधार पर की जाती है और यदि सही आंकडे उपलब्ध हुए हों तो ये तीनो ही दृष्टिकोण समान अनुमान देंगे। हालांकि चूंकि एकत्रित किये गए आंकडें़ और सीएसओ द्वारा प्रसंस्कृत किये गए आंकडें़ विविध सांख्यिकी सर्वेक्षणों और प्रशासनिक आंकडे़ं समूहों पर आधारित होते हैं, अतः तीनो अनुमान भिन्न भी हो सकते हैं। जीडीपी के सर्वश्रेष्ठ अनुमान प्राप्त करने के लिए सभी तीनो दृष्टिकोणों के अनुमानों का समायोजन किया जाता है। 

3.3 जीडीपी अपस्फीतिकारक (GDP deflator) 

जीडीपी अपस्फीतिकारक (अंतर्निहित मूल्य अपस्फीतिकारक) किसी अर्थव्यवस्था में घरेलू आधार पर उत्पादित सभी नई अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य स्तर की गणना है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक की ही तरह जीडीपी अपस्फीतिकारक विशिष्ट आधार वर्ष के संदर्भ में मूल्य मुद्रास्फीति/अपस्फीति की गणना है; स्वयं आधार वर्ष का जीडीपी अपस्फीतिकारक 100 के बराबर होता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के विपरीत जीडीपी अपस्फीतिकारक वस्तुओं और सेवाओं के एक निश्चित ‘‘समूह (बास्केट)‘‘ पर निर्भर नहीं होता; जीडीपी अपस्फीतिकारक की इस ‘‘टोकरी‘‘ को लोगों के उपभोग और निवेश की प्रवृत्तियों के अनुसार वर्ष दर वर्ष परिवर्तित होने दिया जाता है। अतः जीडीपी अपस्फीतिकारक का अर्थव्यवस्था में प्रचलित मुद्रास्फीति की दर के साथ प्रत्यक्ष संबंध होता है। यदि मुद्रास्फीति की दर में गिरावट होती है तो जीडीपी अपस्फीतिकारक भी कम होगा। भारत में जीडीपी अपस्फीतिकारक की सूचना सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा दी जाती है। 

व्यवहार में अपस्फीतिकारक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जैसे मूल्य सूचकांकों के बीच का अंतर बहुत थोड़ा होता है। चूंकि अपस्फीतिकारक अर्थव्यवस्था में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं की श्रृंखला को शामिल करता है - थोक या उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों की सीमित वस्तु टोकरियों के विपरीत - अतः इसे मुद्रास्फीति की गणना की अधिक सघन पद्धति माना जाता है। 

हाल ही में 2016 में, जीवीए अपस्फीतिकारक (GVA deflator) की गणना की पद्धति के विषय में एक विवाद हुआ है। इस अपस्फीतिकारक की गणना में थोक मूल्य सूचकांक का उपयोग किया जाता है जबकि जीवीए में शामिल लगभग 60 प्रतिशत सेवाओं में अपस्फीतिकारक में शामिल नहीं किया जाता है। इसीलिए हालाँकि जीडीपी/जीवीए अपस्फीतिकारक को अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की गणना का सबसे व्यापक तरीका माना जाता है, फिर भी जिस प्रकार इसका निर्माण किया जाता है उसके कारण भारत में ऐसा नहीं है। दूसरे शब्दों में जीडीपी/जीवीए अपस्फीतिकारक में हुई तीव्र गिरावट इसलिए है क्योंकि इसमें थोक मूल्य सूचकांक का वजन काफी अधिक है। सेवा क्षेत्र में जीवीए अपस्फीतिकारक के अनुसार वित्त वर्ष 2016 की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति ऋण 0.6 प्रतिशत थी। उत्पादन के अनुमानों को वर्तमान मूल्य पर लेकर स्थिर मूल्य अनुमान की गणना करने के लिए जीवीए अपस्फीतिकारक का उपयोग करने से भ्रामक निष्कर्ष निकलेंगे।

4.0 पी.सी. महालनोबिस मॉडल

दूसरी पंचवर्षीय योजना में महालनोबिस मॉडल के आधार पर कार्य किया गया। महालनोबिस मॉडल वर्ष 1953 में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रशांत चंद्र महालनोबिस द्वारा प्रतिपादित किया गया था। उनके मॉडल ने आर्थिक विकास से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित किया।

महालनोबिस मॉडल की धारणाएं

1. इस मॉडल के अनुसार यह माना जाता है कि, अर्थव्यवस्था बंद (सीमित) है और इसके दो क्षेत्र हैंः

  • उपभोग की वस्तुओं का खंड
  • पूंजीगत वस्तुओं का खंड।

2. पूंजीगत माल अचल है या गैर-स्थानान्तरीय है

3. उत्पादन अपने चरम पर है

4. निवेश का फैसला, पूंजीगत वस्तुओं की उपलब्धता पर निर्भर करता है

5. पूंजी दुर्लभ घटक है

6. पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन से प्रभावित नहीं है

महालनोबिस मॉडल का अनुसरण करके, तब की सरकार चाहती थी कि विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादकों के बीच निधि का अनुकूलतम आवंटन होना चाहिए। यह एक लंबी अवधि के आधार पर अधिकतम प्रतिफल हासिल करने की दृष्टि से किया गया था।





5.0 नीति आयोग

1 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति) आयोग के गठन की घोषणा की, और 5 दशक पुराने योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया। प्रधानमंत्री नीति आयोग के अध्यक्ष होंगे। नीति आयोग का एक महत्वपूर्ण अधिदेश है सहयोगी प्रतिस्पर्धी संघीयवाद लाना। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मुख्यमंत्रियों के तीन उप-समूह नियुक्त किये गए हैं। वे तीन महत्वपूर्ण विषयों (केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाएं, कौशल विकास और स्वच्छ भारत) पर सिफारिशें करेंगे। भारत की राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के आर्थिक हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नीति आयोग वे अवसर प्रदान करेगा जिन्हें प्रदान करने में पिछला योजना आयोग असफल रहा। 

नीति आयोग में निम्न सदस्य होंगेः

  1. अध्यक्ष के रूप में भारत के प्रधानमंत्री 
  2. संचालन परिषद जिसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल शामिल हैं 
  3. एक से अधिक राज्यों या क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले मुद्दों और आकस्मिताओं को संबोधित करने के लिए क्षेत्रीय परिषदों का गठन किया जायेगा। यह विशिष्ट कार्यकाल के लिए गठित होंगी। क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों का आयोजन प्रधानमंत्री द्वारा किया जायेगा जिनमें संबंधित क्षेत्र के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल शामिल होंगे। इनकी अध्यक्षता नीति आयोग के अध्यक्ष या उनके द्वारा नामित व्यक्ति द्वारा की जाएगी। 
  4. संबंधित ज्ञानक्षेत्र के ज्ञान प्राप्त निपुण व्यक्ति, विशेषज्ञ, और अभ्यासी (व्यवसायी) प्रधानमंत्री द्वारा विशेष आमंत्रितों के रूप में नामित किये जायेंगे 
  5. अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री के अतिरिक्त पूर्ण-कालिक संगठनात्मक रूपरेखा में निम्न शामिल होंगेः
  • उपाध्यक्षः प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त 
  • सदस्यः पूर्ण-कालिक 
  • अंश-कालिक सदस्यः शीर्ष विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और अन्य प्रासंगिक संस्थानों से अधिकतम 2, पदेन के रूप में। अंश-कालिक सदस्य रोटेशन के आधार पर होंगे 
  • पदेन सदस्यः प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री परिषद के अधिकतम 4 सदस्य 
  • मुख्य कार्यकारी अधिकारीः भारत सरकार के सचिव स्तर के व्यक्ति निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त 
  • आवश्यकता के अनुसार सचिव 

वर्तमान में यह अनिवार्य रूप से एक यह एक विशेषज्ञ समूह है जो सिफारिशें कर सकता है परंतु जिसे निधि आवंटन के अधिकार नहीं हैं। वित्तपोषण के भाग को वित्त मंत्रालय में अंतर्निहित किया गया है। 

हाल ही में आयोग के कृषि क्षेत्र पर बने कार्य दल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें सुझाव दिया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया जाना चाहिए और उसके स्थान पर ‘‘मूल्य अपूर्णता भुगतान‘‘ तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। इसमें फसलों का मूल्य निर्धारण पिछले तीन वर्षों के उनके औसत बाजार मूल्य के आधार करना और इन दरों को प्राप्त करने में कृषकों को होने वाली कमी की क्षतिपूर्ति प्रदान करना शामिल है। आयोग के अन्य सुझावों में यूरिया अनुवृत्ति को सीधे कृषकों के बैंक खाते में हस्तांतरित करना और भूमि पट्टेदारी बाजार का उदारीकरण करना ताकि भू-स्वामियों को कृषि क्षेत्र को छोड़ने की सुविधा प्राप्त हो सके। इसने दालों और तेल बीजों में आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी के उपयोग और आवश्यक वस्तु अधिनियम के बेहतर उपयोग के संबंध में भी सुझाव दिए हैं ताकि भंडारण में निजी निवेश को प्रोत्साहन प्राप्त हो सके।








World GDP breakup 2017




COMMENTS

Name

01-01-2020,1,04-08-2021,1,05-08-2021,1,06-08-2021,1,28-06-2021,1,Abrahamic religions,6,Afganistan,1,Afghanistan,35,Afghanitan,1,Afghansitan,1,Africa,2,Agri tech,2,Agriculture,150,Ancient and Medieval History,51,Ancient History,4,Ancient sciences,1,April 2020,25,April 2021,22,Architecture and Literature of India,11,Armed forces,1,Art Culture and Literature,1,Art Culture Entertainment,2,Art Culture Languages,3,Art Culture Literature,10,Art Literature Entertainment,1,Artforms and Artists,1,Article 370,1,Arts,11,Athletes and Sportspersons,2,August 2020,24,August 2021,239,August-2021,3,Authorities and Commissions,4,Aviation,3,Awards and Honours,26,Awards and HonoursHuman Rights,1,Banking,1,Banking credit finance,13,Banking-credit-finance,19,Basic of Comprehension,2,Best Editorials,4,Biodiversity,46,Biotechnology,47,Biotechology,1,Centre State relations,19,CentreState relations,1,China,81,Citizenship and immigration,24,Civils Tapasya - English,92,Climage Change,3,Climate and weather,44,Climate change,60,Climate Chantge,1,Colonialism and imperialism,3,Commission and Authorities,1,Commissions and Authorities,27,Constitution and Law,467,Constitution and laws,1,Constitutional and statutory roles,19,Constitutional issues,128,Constitutonal Issues,1,Cooperative,1,Cooperative Federalism,10,Coronavirus variants,7,Corporates,3,Corporates Infrastructure,1,Corporations,1,Corruption and transparency,16,Costitutional issues,1,Covid,104,Covid Pandemic,1,COVID VIRUS NEW STRAIN DEC 2020,1,Crimes against women,15,Crops,10,Cryptocurrencies,2,Cryptocurrency,7,Crytocurrency,1,Currencies,5,Daily Current Affairs,453,Daily MCQ,32,Daily MCQ Practice,573,Daily MCQ Practice - 01-01-2022,1,Daily MCQ Practice - 17-03-2020,1,DCA-CS,286,December 2020,26,Decision Making,2,Defence and Militar,2,Defence and Military,281,Defence forces,9,Demography and Prosperity,36,Demonetisation,2,Destitution and poverty,7,Discoveries and Inventions,8,Discovery and Inventions,1,Disoveries and Inventions,1,Eastern religions,2,Economic & Social Development,2,Economic Bodies,1,Economic treaties,5,Ecosystems,3,Education,119,Education and employment,5,Educational institutions,3,Elections,37,Elections in India,16,Energy,134,Energy laws,3,English Comprehension,3,Entertainment Games and Sport,1,Entertainment Games and Sports,33,Entertainment Games and Sports – Athletes and sportspersons,1,Entrepreneurship and startups,1,Entrepreneurships and startups,1,Enviroment and Ecology,2,Environment and Ecology,228,Environment destruction,1,Environment Ecology and Climage Change,1,Environment Ecology and Climate Change,458,Environment Ecology Climate Change,5,Environment protection,12,Environmental protection,1,Essay paper,643,Ethics and Values,26,EU,27,Europe,1,Europeans in India and important personalities,6,Evolution,4,Facts and Charts,4,Facts and numbers,1,Features of Indian economy,31,February 2020,25,February 2021,23,Federalism,2,Flora and fauna,6,Foreign affairs,507,Foreign exchange,9,Formal and informal economy,13,Fossil fuels,14,Fundamentals of the Indian Economy,10,Games SportsEntertainment,1,GDP GNP PPP etc,12,GDP-GNP PPP etc,1,GDP-GNP-PPP etc,20,Gender inequality,9,Geography,10,Geography and Geology,2,Global trade,22,Global treaties,2,Global warming,146,Goverment decisions,4,Governance and Institution,2,Governance and Institutions,773,Governance and Schemes,221,Governane and Institutions,1,Government decisions,226,Government Finances,2,Government Politics,1,Government schemes,358,GS I,93,GS II,66,GS III,38,GS IV,23,GST,8,Habitat destruction,5,Headlines,22,Health and medicine,1,Health and medicine,56,Healtha and Medicine,1,Healthcare,1,Healthcare and Medicine,98,Higher education,12,Hindu individual editorials,54,Hinduism,9,History,216,Honours and Awards,1,Human rights,249,IMF-WB-WTO-WHO-UNSC etc,2,Immigration,6,Immigration and citizenship,1,Important Concepts,68,Important Concepts.UPSC Mains GS III,3,Important Dates,1,Important Days,35,Important exam concepts,11,Inda,1,India,29,India Agriculture and related issues,1,India Economy,1,India's Constitution,14,India's independence struggle,19,India's international relations,4,India’s international relations,7,Indian Agriculture and related issues,9,Indian and world media,5,Indian Economy,1248,Indian Economy – Banking credit finance,1,Indian Economy – Corporates,1,Indian Economy.GDP-GNP-PPP etc,1,Indian Geography,1,Indian history,33,Indian judiciary,119,Indian Politcs,1,Indian Politics,637,Indian Politics – Post-independence India,1,Indian Polity,1,Indian Polity and Governance,2,Indian Society,1,Indias,1,Indias international affairs,1,Indias international relations,30,Indices and Statistics,98,Indices and Statstics,1,Industries and services,32,Industry and services,1,Inequalities,2,Inequality,103,Inflation,33,Infra projects and financing,6,Infrastructure,252,Infrastruture,1,Institutions,1,Institutions and bodies,267,Institutions and bodies Panchayati Raj,1,Institutionsandbodies,1,Instiutions and Bodies,1,Intelligence and security,1,International Institutions,10,international relations,2,Internet,11,Inventions and discoveries,10,Irrigation Agriculture Crops,1,Issues on Environmental Ecology,3,IT and Computers,23,Italy,1,January 2020,26,January 2021,25,July 2020,5,July 2021,207,June,1,June 2020,45,June 2021,369,June-2021,1,Juridprudence,2,Jurisprudence,91,Jurisprudence Governance and Institutions,1,Land reforms and productivity,15,Latest Current Affairs,1136,Law and order,45,Legislature,1,Logical Reasoning,9,Major events in World History,16,March 2020,24,March 2021,23,Markets,182,Maths Theory Booklet,14,May 2020,24,May 2021,25,Meetings and Summits,27,Mercantilism,1,Military and defence alliances,5,Military technology,8,Miscellaneous,454,Modern History,15,Modern historym,1,Modern technologies,42,Monetary and financial policies,20,monsoon and climate change,1,Myanmar,1,Nanotechnology,2,Nationalism and protectionism,17,Natural disasters,13,New Laws and amendments,57,News media,3,November 2020,22,Nuclear technology,11,Nuclear techology,1,Nuclear weapons,10,October 2020,24,Oil economies,1,Organisations and treaties,1,Organizations and treaties,2,Pakistan,2,Panchayati Raj,1,Pandemic,137,Parks reserves sanctuaries,1,Parliament and Assemblies,18,People and Persoalities,1,People and Persoanalities,2,People and Personalites,1,People and Personalities,189,Personalities,46,Persons and achievements,1,Pillars of science,1,Planning and management,1,Political bodies,2,Political parties and leaders,26,Political philosophies,23,Political treaties,3,Polity,485,Pollution,62,Post independence India,21,Post-Governance in India,17,post-Independence India,46,Post-independent India,1,Poverty,46,Poverty and hunger,1,Prelims,2054,Prelims CSAT,30,Prelims GS I,7,Prelims Paper I,189,Primary and middle education,10,Private bodies,1,Products and innovations,7,Professional sports,1,Protectionism and Nationalism,26,Racism,1,Rainfall,1,Rainfall and Monsoon,5,RBI,73,Reformers,3,Regional conflicts,1,Regional Conflicts,79,Regional Economy,16,Regional leaders,43,Regional leaders.UPSC Mains GS II,1,Regional Politics,149,Regional Politics – Regional leaders,1,Regionalism and nationalism,1,Regulator bodies,1,Regulatory bodies,63,Religion,44,Religion – Hinduism,1,Renewable energy,4,Reports,102,Reports and Rankings,119,Reservations and affirmative,1,Reservations and affirmative action,42,Revolutionaries,1,Rights and duties,12,Roads and Railways,5,Russia,3,schemes,1,Science and Techmology,1,Science and Technlogy,1,Science and Technology,819,Science and Tehcnology,1,Sciene and Technology,1,Scientists and thinkers,1,Separatism and insurgencies,2,September 2020,26,September 2021,444,SociaI Issues,1,Social Issue,2,Social issues,1308,Social media,3,South Asia,10,Space technology,70,Startups and entrepreneurship,1,Statistics,7,Study material,280,Super powers,7,Super-powers,24,TAP 2020-21 Sessions,3,Taxation,39,Taxation and revenues,23,Technology and environmental issues in India,16,Telecom,3,Terroris,1,Terrorism,103,Terrorist organisations and leaders,1,Terrorist acts,10,Terrorist acts and leaders,1,Terrorist organisations and leaders,14,Terrorist organizations and leaders,1,The Hindu editorials analysis,58,Tournaments,1,Tournaments and competitions,5,Trade barriers,3,Trade blocs,2,Treaties and Alliances,1,Treaties and Protocols,43,Trivia and Miscalleneous,1,Trivia and miscellaneous,43,UK,1,UN,114,Union budget,20,United Nations,6,UPSC Mains GS I,584,UPSC Mains GS II,3969,UPSC Mains GS III,3071,UPSC Mains GS IV,191,US,63,USA,3,Warfare,20,World and Indian Geography,24,World Economy,404,World figures,39,World Geography,23,World History,21,World Poilitics,1,World Politics,612,World Politics.UPSC Mains GS II,1,WTO,1,WTO and regional pacts,4,अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं,10,गणित सिद्धान्त पुस्तिका,13,तार्किक कौशल,10,निर्णय क्षमता,2,नैतिकता और मौलिकता,24,प्रौद्योगिकी पर्यावरण मुद्दे,15,बोधगम्यता के मूल तत्व,2,भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास,47,भारत का स्वतंत्रता संघर्ष,19,भारत में कला वास्तुकला एवं साहित्य,11,भारत में शासन,18,भारतीय कृषि एवं संबंधित मुद्दें,10,भारतीय संविधान,14,महत्वपूर्ण हस्तियां,6,यूपीएससी मुख्य परीक्षा,91,यूपीएससी मुख्य परीक्षा जीएस,117,यूरोपीय,6,विश्व इतिहास की मुख्य घटनाएं,16,विश्व एवं भारतीय भूगोल,24,स्टडी मटेरियल,266,स्वतंत्रता-पश्चात् भारत,15,
ltr
item
PT's IAS Academy: यूपीएससी तैयारी - भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत तत्व - व्याख्यान - 2
यूपीएससी तैयारी - भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत तत्व - व्याख्यान - 2
सभी सिविल सर्विस अभ्यर्थियों हेतु श्रेष्ठ स्टडी मटेरियल - पढाई शुरू करें - कर के दिखाएंगे!
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZ6XMhkhFv3WERWGBynoNv70sf45JbKX58D42XSAB-WiKHGkJff21S34aNEqrYpE_EA7v637wQz6gegwfJ-W957_6ALGBIFQ6bruzu-Wk2ULxxl2GxWTiNWcafpVw5fJwl8m3G_ZV5s-jiuvTulBtoWXQkgRrTbNp3clGgQed8RtedDpcG_TdHke9E9Q/s16000/1.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZ6XMhkhFv3WERWGBynoNv70sf45JbKX58D42XSAB-WiKHGkJff21S34aNEqrYpE_EA7v637wQz6gegwfJ-W957_6ALGBIFQ6bruzu-Wk2ULxxl2GxWTiNWcafpVw5fJwl8m3G_ZV5s-jiuvTulBtoWXQkgRrTbNp3clGgQed8RtedDpcG_TdHke9E9Q/s72-c/1.jpg
PT's IAS Academy
https://civils.pteducation.com/2021/09/UPSC-IAS-exam-preparation-Fundamentals-of-the-Indian-Economy-Lecture-2-Hindi.html
https://civils.pteducation.com/
https://civils.pteducation.com/
https://civils.pteducation.com/2021/09/UPSC-IAS-exam-preparation-Fundamentals-of-the-Indian-Economy-Lecture-2-Hindi.html
true
8166813609053539671
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow TO READ FULL BODHI... Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy