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अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी
1.0 प्रस्तावना
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत 1962 में हुई थी। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के तीव्र गति से विकास और उसके अनुप्रयोग के उद्दे
श्य से 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय बेंगलुरू में है। 1972 में अंतरिक्ष आयोग (Space Commission) स्थापित किया गया। 1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, स्थापित किया और इस प्रकार देश ने अंतरिक्ष युग में प्रवेश किया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और देश की विकास आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुप्रयोग कार्यक्रम विकसित करना।पिछले ढ़ाई दशकों की अवधि के दौरान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने सुव्यवस्थित ढंग से एकीकृत और आत्मनिर्भर कार्यक्रमों के माध्यम से प्रभावशाली प्रगति की है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नानुसार हैंः (1) उपग्रह के माध्यम से जनसंचार और शिक्षा, (2) सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी (remote sensing) के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण और प्रबंधन, पर्यावरणीय निगरानी और मौसम संबंधी भविष्यवाणियां, और (3) स्वदेशी उपग्रहों और उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों का विकास।
2.0 संगठनात्मक रूपरेखा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनः 1969 में अहमदाबाद में प्रोफेसर विक्रम साराभाई की अध्यक्षता में गठित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति को दिशानिर्देश देने वाला, इसके लिए नीतियों का निर्माण करने वाला और इसके क्रियान्वयन पर निगरानी रखने वाला सर्वोच्च निकाय है।
2.1 अन्य संगठन
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) : तिरुवनंतपुरम स्थित वीएसएससी उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों (launch venhicles) और इससे संबंधित प्रौद्योगिकी के विकास का प्रधान केंद्र है।
- इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी): बैंगलोर स्थित आईएसएसी उपग्रह प्रौद्योगिकी विकास और वैज्ञानिक प्रौद्योगिकीय और अनुप्रयोग मिशंस के लिए क्रियान्वयन का मुख्य केंद्र है।
- सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसड़ीएससी) श्रीहरिकोटा (एसएचएआर): एसडीएससी श्रीहरिकोटा इसरो का मुख्य प्रक्षेपण केंद्र है और इसमें ठोस प्रणोदक ढुलाई (solid propellant casting), ठोस मोटर्स के स्थिर परीक्षण, प्रक्षेपण वाहनों के एकीकरण और प्रक्षेपण परिचालन, दूरमिति ट्रैकिंग (telemetry tracking) और कमांड नेटवर्क सहित श्रृंखला संचालन और मिशन नियंत्रण केंद्र की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
- तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी): एलपीएससी प्रक्षेपण वाहनों और उपग्रहों के लिए तरल और क्रायोजेनिक प्रणोदन के विकास का मुख्य केंद्र है।
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी): अहमदाबाद स्थित एसएसी संचार, मौसम विज्ञान संबंधी और सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए विस्फोटक शक्ति विकसित करने में संलग्न है।
- विकास एवं शैक्षणिक संप्रेषण इकाई (डीईसीयू): अहमदाबाद स्थित डीईसीयू अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिए अभिनव विन्यासों के अवधारण, परिभाषा, नियोजन, क्रियान्वयन और सामाजिक आर्थिक मूल्यांकन के कार्य में संलग्न है।
- इसरो दूरमिति, ट्रैकिंग और कमांड़ संजाल (आईएसटीआरएसी): आईएसटीआरएसी कम ऊँचाई पृथ्वी कक्षा उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहन अभियानों के लिए अभियान सहायता प्रदान करने का कार्य करता है।
- मुख्य नियंत्रण सुविधाः कर्नाटक के हासन और मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित एमसीएफ इसरो के सभी भू-स्थिर उपग्रहों की निगरानी और नियंत्रण करते हैं।
- इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई (आईआईएसयू): तिरुवनंतपुरम स्थित आईआईएसयू जड़त्वीय संवेदकों और प्रणालियों में संसाधनों और विकास का कार्य करता है।
- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन अभिकरण (एनआरएसए): हैदराबाद स्थित एनआरएसए अंतरिक्ष विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्था है। यह अभिकरण उपग्रह आंकड़ों के अधिग्रहण और डेटा प्रसार के प्रक्रियाकरण, हवाई सुदूर संवेदन और आपदा प्रबंधन में निर्णय सहायता प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है।
- भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला (पीआरएल): अहमदाबाद स्थित पीआरएल एक स्वायत्त संस्था है जिसे मुख्य रूप से अंतरिक्ष विभाग से सहायता प्राप्त है। यह संस्था खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी, पृथ्वी विज्ञानों, नक्षत्रीय विज्ञानों, अंतरिक्ष विज्ञानों और प्राथमिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों में बहु-संकाय अनुसंधान की प्रमुख संस्था है।
- राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला (एनएआरएल): तिरुपति के निकट गडंकी में स्थित एनएआरएल अंतरिक्ष विभाग द्वारा समर्थित एक स्वायत्त संस्था है। यह संस्था वायुमंडलीय अनुसंधान सुविधाओं का प्रमुख केंद्र है, जैसे मध्यमण्डल, समतापमंडल, क्षोभमंडल रडार, इत्यादि।
- क्षेत्रीय सुदूर संवेदन सेवा केंद्र (आरआरएसएससी): अंतरिक्ष विभाग द्वारा बैंगलोर, जोधपुर, खडगपुर, देहरादून और नागपुर में पांच आरआरएसएससी की स्थापना की गई है। ये आरआरएसएससी उनके विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित, ही राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न सुदूर संवेदन कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं।
- उत्तर पूर्वी - अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एनई एसएसी): शिलांग दथित एनई एसएसी अंतरिक्ष विभाग और उत्तर पूर्वी परिषद की संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उत्तर पूर्वी क्षेत्र के विकास में सहायता प्रदान करना है।
- एंट्रिक्स (अंतरिक्ष) निगम लिमिटेडः बैंगलोर का एंट्रिक्स निगम लिमिटेड अंतरिक्ष विभाग के तहत कार्य करने वाला सर्वोच्च विपणन अभिकरण है, जिसकी पहुंच अंतरिक्ष विभाग के संसाधनों के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष उद्योगों के संसाधनों तक भी है।
- अर्धचालक प्रयोगशाला (एससीएल): एससीएल को बहुत बडे़ पैमाने पर समाकलन उपकरणों की बनावट और विकास, और दूरसंचार और अंतरिक्ष क्षेत्रों के लिए प्रणालियों के विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
3.0 क्रम विकास
पिछले तीन दशकों के दौरान अंतरिक्ष कार्यक्रम ने अपने उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। दो प्रमुख परिचालनात्मक अंतरिक्ष प्रणालियां स्थापित की गई हैं- दूरसंचार, टेलीविजन प्रक्षेपण और मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं के लिए भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट), और संसाधन निगरानी और प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह (आईआरएस) प्रणाली।
दो प्रक्षेपण वाहन, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी), मुख्य रूप से सुदूर संवेदी उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षाओं में प्रक्षेपित करने के लिए, और 3600 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित भू-समकालिक हस्तांतरण कक्षा में संचार और मौसम विज्ञान संबंधी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जीएसएलवी), परिचालित किये जा चुके हैं। उपयोकर्ता अभिकरणों की सहभागिता के साथ अंतरिक्ष अनुप्रयोग कार्यक्रमों ने समाज के जमीनी स्तर तक अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लाभ पहुंचाने को सक्षम बनाया है। अंतरिक्ष विज्ञान में किये गए अनुसंधान ने ज्ञान में वृद्धि करने और विभिन्न वैज्ञानिक घटनाओं को समझने के कार्य में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। अंतरिक्ष हार्डवेयर और सेवाओं के अंतर्राष्ट्रीय विपणन के माध्यम से अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत निर्मित क्षमताओं का उपयोग वाणिज्यिक लाभों के लिए किया जा रहा है।
4.0 उपयोग की गई प्रौद्योगिकियां
4.1 भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इनसैट) एशिया प्रशांत क्षेत्र की सबसे बड़ी घरेलू दूरसंचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है। 1980 के दशक में इसने भारत के दूरसंचार क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण क्रांति की शुरुआत की, और बाद में भी उसे निरंतर बनाये रखा।
इनसैट प्रणाली के जो उपग्रह आज सेवा में हैं वे हैं इनसैट - 2 ई, इनसैट - 3 ए, इनसैट - 3 बी, इनसैट - 3 सी, इनसैट - 3 ई, कल्पना - 1, जीएसएटी - 2, एडुसैट और इनसैट -4 ए, जो अभी हाल ही में प्रक्षेपित किया गया है। यह प्रणाली सी, विस्तारित सी और केयू-बैंड्स में कुल लगभग 175 प्रेषानुकर (ट्रांसपोंडर) प्रदान करती है। एक बहुउद्देशीय उपग्रह प्रणाली होने के कारण इनसैट प्रणाली दूरसंचार, टेलीविजन प्रक्षेपण, मौसम संबंधी भविष्यवाणी, आपदा चेतावनी और खोज और बचाव के क्षेत्रों को सेवाएं प्रदान करती है। इनसैट प्रणाली भारतीय अर्थव्यवस्था के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों सेवाएं प्रदान करती है। इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है दूरसंचार क्षेत्र जिसमें इनसैट प्रणाली वीसैट सेवाएं प्रदान करने के अतिरिक्त मोबाइल उपग्रह सेवा भी प्रदान करती है। आज 25,000 से भी अधिक अत्यंत छोटे छेद वाले टर्मिनल (वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल - वीएसएटी) परिचालन में हैं।
इसी प्रकार टेलीविजन प्रसारण और पुनर्वितरण को भी इनसैट के कारण काफी लाभ हुआ है। हमें इनसैट को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि आज भारत में 90 करोड़ से अधिक लोगों की 1400 स्थलीय पुनर्प्रसारण ट्रांसमीटरों के माध्यम से टेलीविजन तक पहुंच है। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण और विकासात्मक शिक्षा के लिए अनन्य चौनलों के माध्यम से सामाजिक विकास इन्सैट के माध्यम से ही संभव हो पाया है। और एक टेली-मेडिसिन संजाल के माध्यम से अत्यधिक विशेषज्ञ चिकित्सा सेवाएं दूरस्थ और ग्रामीण जनसंख्या तक पहुंचाना वास्तविकता बन चुका है। यह संजाल अब 152 अस्पतालों को समाविष्ट करता है - 120 ग्रामीण अस्पताल और प्रमुख शहरों में 32 अत्यधिक विशेषज्ञता अस्पताल। भारत के प्रथम विषयगत उपग्रह एडुसैट के प्रक्षेपण ने, जो अनन्य रूप से शैक्षणिक सेवाओं के प्रति समर्पित है, इन्सैट प्रणाली द्वारा प्रदान की जा रही शैक्षणिक सेवाओं को और अधिक प्रोत्साहन प्रदान किया है। इसके कुछ अंतरिक्ष यानों पर लगाये गए अत्यधिक उच्च वियोजन विकिरणमापी (वीएचआरआर) और सीसीडी कैमरों के माध्यम से इनसैट मौसम विज्ञान संबंधी सेवाएं भी प्रदान कर रहा है। इसके अतिरिक्त, मौसम विज्ञान संबंधी इमेजिंग के माध्यम से मौसमविज्ञान संबंधी निगरानी और आपदा चेतावनी रिसीवर के माध्यम से आसन्न चक्रवातों की चेतावनी जारी करने का कार्य भी शुरू किया जा चुका है। इस कार्य के लिए भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर 350 रिसीवर स्थापित किये गए हैं।
4.2 भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह प्रणाली और उसका महत्त्व
भारत के पास विश्व का सबसे बड़ा सुरूर संवेदी उपग्रहों का समूह है, जो राष्ट्रीय के साथ सन्तर्राष्ट्रीय स्तर भी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रहों से विभिन्न स्थानिक प्रस्तावों पर आंकडे़ं प्राप्त हो रहे हैं, जिनमें 360 मीटर से शुरू होकर सर्वाधिक ऊंचा प्रस्ताव 2.5 मीटर का है। इसके अतिरिक्त, आईआरएस अंतरिक्ष यान में लगाये गए अत्याधुनिक कैमरे पृथ्वी के विभिन्न वर्ण क्रमों में चित्र लेते हैं। भविष्य में इसरो की बेहतर स्थानिक प्रस्तावों के साथ और दिन और रात चित्र प्रदान करने वाले आईआरएस अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित करने की इच्छा है। आईआरएस प्रणाली के जो उपग्रह आज सेवा में हैं वे हैं आईआरएस - 1 सी, आईआरएस - 1 डी, आईआरएस - पी 3, ओसियनसैट - 1, और प्रौद्योगिकी प्रायोगिक उपग्रह (टीईएस) रिसोर्ससैट -1 और हाल ही में प्रक्षेपित किया गया कार्टोसैट - 1 स्टीरियो चित्र लेने में भी सक्षम हैं। इसके आगे के संस्करणों के आने वाले सुदूर संवेदी उपग्रह हैं कार्टोस्टैट - 2, रीसैट (रडार चित्रीकरण उपग्रह) और ओसियनसैट - 2।
आईआरएस द्वारा भेजे गए चित्रों का विभिन्न प्रकार उपयोग किया जा रहा है, जिनमें से इसके सबसे महत्वपूर्ण उपयोग हैं कृषि फसल रकबा और उत्पादन मूल्यांकन। इसके अतररिक्त इन चित्रों का उपयोग पानी के उपयोग को इष्टतम बनाने के लिए भूजल और सतही जल पुनर्भरण, जलाशयों और सिंचाई विशिष्ट क्षेत्रों की निगरानी के कार्यों के लिए भी किया जा रहा है। वन सर्वेक्षण और प्रबंधन और बंजर भूमि चिन्हीकरण और पुनर्प्राप्ति इस प्रणाली द्वारा किये जाने वाले कुछ अन्य कार्य हैं। इसके अतिरिक्त आईआरएस चित्रों का उपयोग खनिजों की संभावनाएं पता लगाने और संभावित मत्स्यपालन क्षेत्रों की भविष्यवाणी करने के कार्यों के लिए भी किया जा रहा है।
नियोजन और प्रबंधन के क्षेत्रों में अनुप्रयोग के संबंध में, आईआरएस द्वारा प्रेषित आंकड़ों का उपयोग शहरी नियोजन, बाढ़ प्रवण क्षेत्रों का पता लगाने, और इसके परिणामस्वरूप होने वाली क्षति के शमन के उपायों के सुझावों के लिए भी किया जाता है। इस अनुभव के आधार पर विकास के लिए एकीकृत अभियान का विकास किया गया है, जिसमें अंतरिक्ष यान द्वारा भेजे गए आंकड़ों को पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त सामाजिक आर्थिक आंकड़ों के साथ एकीकृत है ताकि धारणीय विकास प्राप्त किया जा सके।
4.3 भारत का उपग्रह प्रक्षेपण वाहन कार्यक्रम
1980 में पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण वाहन एसएलवी - 3 के सफल परीक्षण के बाद इसरो ने अगली पीढ़ी के संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (एएसएलवी) का निर्माण किया। इसरो के प्रक्षेपण वाहन कार्यक्रम ने अक्टूबर 1994 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन पर अधिरोपित आईआरएस - 2 अंतरिक्ष यान के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण करने के बाद लंबी छलांग लगाईं। 18 अप्रैल 2001 को भारत ने सफलतापूर्वक अपनी भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन प्रणाली (जीएसएलवी) का प्रक्षेपण किया। इसी वर्ष पराध्वनिक प्रदाह रामजेट (स्क्रैमजेट) में एक महत्वपूर्ण खोज उपलब्ध हुई जिसे वायु श्वसन इंजन में उपयोग किया गया। यह प्रक्षेपण वाहन प्रौद्योगिकी विकास में एक महत्वपूर्ण तत्व था। पुनउर्पयोग प्रक्षेपण वाहन की संकल्पना पर भी अध्ययन किया जा रहा है।
4.4 पी. एस. एल. वी. (PSLV)
चार चरणों वाला पीएसएलवी 1,600 किलोग्राम वजन के उपग्रह को 620 किलोमीटर ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है। इसमें 100 किलोग्राम अंतरिक्ष उपकरणों से सूक्ष्म उपग्रह या विभिन्न संयोजनों में मिनी या छोटे उपग्रह प्रक्षेपित करने का भी प्रावधान है। यह एक टन वर्ग के अंतरिक्ष उपकरणों को भी भू-समकालिक हस्तांतरण कक्षाओं (जीटीओ) में प्रक्षेपित कर सकता है। अभी तक इसने बीस अभियान निष्पादित किये हैं, जिनमें से उन्नीस लगातार सफल रहे हैं।
पीएसएलवी की नवीनतम सफलताएं
- 26 अप्रैल 2012 को पीएसएलवी - सी 19 ने 1858 किलोग्राम वजन वाले रिसेट - 1 (रडार चित्रीकरण उपग्रह) को 480 किलोमीटर ध्रुवीय कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया है।
- 12 अक्टूबर 2011 को पीएसएलवी - वी 18 ने मेघा - ट्रापिक्स, एसआरएमएसएटी, जुगनू, वेसलसैट उपग्रहों को स्थापित किया है।
- 15 जुलाई 2011 को पीएसएलवी - सी 17 ने जीएसएटी - 12 (दूरसंचार उपग्रह) को 36,000 किलोमीटर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित किया।
4.5 जी. एस. एल. वी. (GSLV)
जीएसएलवी अपनी पहली ही परीक्षण उड़ान में सफल हुआ था। मई 2003 में इसकी दूसरी सफल उड़ान के बाद इसे अधिकृत किया गया। इसके बाद 2004 में इसकी तीसरी सफल उड़ान हुई। जीएसएलवी में 2,000 किलोग्राम वर्ग के उपग्रहों को भू-समकालिक हस्तांतरण कक्षा में प्रक्षेपित करने की क्षमता है। जीएसएलवी के तृतीय चरण के रूप में उपयोग किये जाने वाले स्वदेशी तुषार-जनिक चरण के विकास में भी आगे काफी प्रगति हुई है। इस चरण का भाग बनने वाला तुषार-जनिक इंजन पहले ही सफलतापूर्वक योग्यता प्राप्त कर चुका है। जीएसएलवी का नया संस्करण जीएसएलवी - एमके -3, जिसकी क्षमता 4 टन तक के वजन वाले अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करने की है, उसका भी विकास किया जा रहा है।
5.0 प्रक्षेपण अधोसंरचना
भारत के पूर्वी तट पर चेन्नई से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) शार में प्रक्षेपण की व्यापक अधोसंरचना उपलब्ध है। श्रीहरिकोटा 13 अंश उत्तर अक्षांश पर स्थित है। यहां से 18 अंश से शुरू होकर 99 अंश तक के विभिन्न कक्षीय झुकावों में उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जा सकता है। उपग्रह एकीकरण, कोडांतरण और प्रक्षेपण की संपूर्ण सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। श्रीहरिकोटा में उपग्रहों पर नजर रखने, और उनकी खोजबीन करने के लिए और उनकी निगरानी करने के लिए एक दूरमिति भी है। विद्यमान प्रक्षेपण मंच के एक अतिरेकता प्रक्षेपण मंच के रूप में उपयोग करने के लिए, और जीएसएलवी - एमके 3 और भविष्य के सभी प्रक्षेपण वाहनों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एसपीएससी शार में हाल ही में निर्मित दूसरा प्रक्षेपण मंच को पीएसएलवी - सी 6 के सफल प्रक्षेपण के बाद मई 2005 में अधिकृत किया गया था।
5.1 कार्टोसैट - 1 (Cartosat - 1)
इस उपग्रह का उद्देश्य मूल रूप से उन्नत मानचित्रीकरण अनुप्रयोगों के उपयोग के लिए था। इसका प्रक्षेपण मई 2005 में किया गया था।
अंतरिक्ष उपकरणः दो वर्णक्रम के समस्त रंगों के लिए समान रूप से संवेदनशील कैमरे जिनका स्थानिक प्रस्ताव 2.5 मीटर है और प्रत्येक की पट्टी 30 किलोमीटर की है।
उपयोग की गई नई प्रौद्योगिकियांः स्टार संवेदकों का सुधारित संस्करण, नियंत्रण प्रणाली को जोड़ने वाला बस अंतराफलक, उपग्रह स्थिति प्रणाली और आंकडे़ं संचालन।
5.2 कार्टोसैट - 2 (Cartosat - 2)
यह एक उन्नत सुदूर संवेदी उपग्रह है जिसमें एक वर्णक्रम के समस्त रंगों के लिए समान रूप से संवेदनशील कैमरा लगा हुआ है जिसकी मानचित्रीकरण अनुप्रयोगों के दृश्य विशिष्ट बिंदु चित्रीकरण करने की क्षमता है। इस कैमरे में एक मीटर की स्थानिक स्थिर मति और 10 मीटर की पट्टी है।
उपयोग की गई नई प्रौद्योगिकियांः एकल धुरी कैमरे पर दो दर्पण, कार्बन संरचना द्वारा सुदृढ़ की गई प्लास्टिक आधारित विद्युत चाक्षुष संरचना, उन्नत ठोस अवस्था अभिलेखी, उच्च कंठी प्रतिक्रिया वाले पहिये, हलके वजन के बडे़ आकार के दर्पण। इसका प्रक्षेपण 2007 में किया गया था।
5.3 रडार चित्रीकरण उपग्रह (रीसैट) (Radar Imaging Satellite RISAT)
रीसैट, जिसमें दिन और रात को चित्रीकरण करने और मेघाच्छादित स्थितियों में भी चित्रीकरण करने की क्षमता है, आईआरएस प्रणाली पर स्थापित विद्युत चाक्षुष संवेदकों के अनुपूरक बैंड की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रणाली होगी।
रीसैट में बहु पद्धति, बहु-ध्रुवीकरण, सी बैंड में परिचालित होने वाला और 3.50 मीटर स्थानिक स्थिरता प्रदान करने वाला चुस्त संश्लेषित द्वारक रडार (एसएआर) होगा। यह स्वयं में कलन विधि और उपयोगकर्ता समुदाय को सेवा प्रदान करने वाले आंकडे उत्पाद समाहित करेगा।
5.4 ओसियनसैट - 2 (OCEANSAT - 2)
इसका उद्देश्य ओसियनसैट - 1 को निरंतरता प्रदान करना है। यह अपने साथ ओसीएम और कू-बैंड पेंसिल किरण प्रसार मीटर लिए होगा और इसमें 8 बैंड का वर्ण क्रम संबंधी कैमरा लगा होगा। प्रसार मीटर महासागर की सतह पर वायु की गति मापने के लिए एक सूक्ष्म तरंग रडार है। इसका प्रक्षेपण पीएसएलवी द्वारा 720 किलोमीटर की ऊँचाई पर पीएसएस कक्षा में किया जायेगा।
5.5 टीडब्लूएसएटी (TWSAT)
90 किलोग्राम भार वाला टीडब्लूएसएटी एक सुदूर संवेदी सूक्ष्म उपग्रह है, जिसका प्रस्ताव तृतीय विश्व देशों के लिए किया गया है। इसके अंतरिक्ष उपकरण होंगे 2 बैंड वाला सीसीडी कैमरा, जिसमें एकल प्रकाशिकी और किरण विभाजक होगा। इसके 50 उपयोगकर्ता टर्मिनल, जो अंतरिक्ष उपकरण आंकडों को प्राप्त करने में सक्षम हैं, भारतीय विश्वविद्यालयों में, और चुने हुए तृतीय देशों में स्थापित किये जाने हैं।
6.0 वैज्ञानिक अभियान
भारत के पास एक जीवंत अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम है, जिसमें खगोलशास्त्र, खगोलभौतिकशास्त्र, भू-मंडलीय और पृथ्वी विज्ञकं समाविष्ट हैं। इनकी गतिविधियाँ मुख्य रूप से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद, अंतरिक्ष भौतिकशास्त्र प्रयोगशाला, त्रिवेंद्रम, इसरो उपग्रह केंद्र, बैंगलोर से संचालित की जाती हैं। विज्ञान विभाग द्वारा जमीन आधारित सुविधाएं स्थापित की गई हैं, जैसे उदयपुर सौर वेधशाला, मध्यमण्डल - समतापमण्डल - क्षोभमण्डल, रडार, इत्यादि। गुब्बारे, आवाज करने वाले रॉकेट्स। विज्ञान विभाग मोनेक्स, आईजीबीपी, एसटीईपी और इंडोएक्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अभियानों में भी सहभागी होता है।
6.1 चंद्रयान प्रथम
चंद्रमा पर भारत के पहले अभियान चंद्रयान - 1 को एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से 22 अक्टूबर 2008 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। यह अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा के रासायनिक, खनिजीय और चित्र भू-गर्भिक मानचित्रीकरण के उद्देश्य से चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। यह अंतरिक्ष यान अपने साथ भारत, अमेरिका, यू के, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण लिए हुए है।
अभियान के सभी प्रमुख उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के बाद मई 2009 में इसकी कक्षा को 200 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया है।
वैज्ञानिक उद्देश्य
- चंद्रमा के दृश्य, अवरक्त के निकट, न्यून ऊर्जा × किरण और उच्च ऊर्जा × किरण क्षेत्रों में 3-डी एटलस के वैज्ञानिक रूचि के क्षेत्रों के लिए तैयार करने के लिए उच्च संकल्प दूरसंवेदी।
- मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, लोहा, टाइटेनियम और यूरेनियम जैसे तत्वों के लिए संपूर्ण चंद्र सतह का रासायनिक मानचित्रीकरण। पीएसएलवी ने इस अंतरिक्ष यान को जीटीओ में प्रक्षेपित किया है।
अंतरिक्ष उपकरण (Payload)
- स्टीरियो चित्रीकरण सुविधा के साथ भू-भाग मानचित्रीकरण कैमरा, जो 5 मीटर मीटर स्थानिक संकल्प और 20 किलोमीटर पट्टी के साथ वर्ण पैट के समस्त रंगों के लिए समान रूप से संवेदनशील है
- 15 एनएम वर्णक्रमीय संकल्प के साथ अति वर्णक्रमीय चित्रक
- 5 मीटर ऊर्ध्वाधर संकल्प के साथ चंद्रमा तक जाने वाला उपकरण
- न्यून ऊर्जा × किरण स्पेक्ट्रोमीटर
- उच्च ऊर्जा × किरण स्पेक्ट्रोमीटर
6.2 भारत का मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान (मंगलयान)
मंगल ग्रह पर भारत के पहले अभियान के मुख्य उद्देश्यों में से एक उद्देश्य है एक अंतरग्रहीय अभियान की रचना, नियोजन, प्रबंधन और परिचालन करना। इस अभियान के प्रमुख उद्देश्य निम्नानुसार हैंः
6.2.1 प्रौद्योगिकी उद्देश्य
- 300 दिन के क्रूज चरण पर उपस्थित रहकर पृथ्वी संबंधी युक्तिचालन की क्षमता वाले मंगल ग्रह परिक्रमा यान की रचना करना और उसे प्राप्त करना।
- मंगल ग्रह की कक्षा में प्रविष्टि/कब्जा और मंगल ग्रह के चारों ओर परिक्रमा चरण को प्राप्त करना।
- गहरा अंतरिक्ष संचार, अंतरिक्ष यान संचालन, अभियान का नियोजन और प्रबंधन। आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए स्वदेशी विशेषताएं सन्निहित करना।
6.2.2 वैज्ञानिक उद्देश्य
- मंगल ग्रह की सतह, आकृति विज्ञान, खनिज विज्ञान की विशेषताओं की खोज, और
- स्वदेशी वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से मंगल ग्रह के वायुमंडल का ज्ञान।
परिचय
कुल वजन (किलोग्राम में) 1,350
वैज्ञानिक अंतरिक्ष उपकरणों का वजन (किलोग्राम में) 14.49
ईंधन का वजन (किलोग्राम में) 850
प्रक्षेपण का दिनांक 5 नवंबर, 2013
मंगल ग्रह के पर प्रवेश 1 दिसंबर, 2013
नियोजित मंगल ग्रह की परिक्रमा निकटतम परिक्रमाः 365 किलोमीटर,
दूरतम परिक्रमाः 80,000 किलोमीटर, परिक्रमा अवधिः लगभग 77 घंटे
इसरो ने 1350 किलोग्राम वजन वाले मंगल ग्रह परिक्रमा यान अभियान मंगलयान का प्रक्षेपण प्रक्षेपक के एक एक्स.एल. संस्करण पीएसएलवी-सी 25 का उपयोग करते हुए श्रीहरिकोटा से 5 नवंबर 2013 को दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर किया ताकि ग्रह की नवंबर 2013 की खिड़की को प्राप्त किया जा सके। पहले इस अभियान के प्रक्षेपण की तारीख 28 अक्टूबर, 2013 तय की गई थी, परंतु खराब मौसम के कारण अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण पर नजर रखने के लिए उपयोग किये जाने वाले दो में से एक एससीआई जहाज के दक्षिण प्रशांत में पहुंचने में हुई देरी के चलते इसे स्थगित करना पड़ा।
इसरो ने इस अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा से मंगल ग्रह अवरोधन पथ पर 1 दिसंबर की रात 12 बजकर 42 मिनट पर टकराने का लक्ष्य रखा था। मंगलयान को मंगल ग्रह के चारों ओर की 372 गुणा 80,000 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया जाएगा और, इसमें 14.49 किलोग्राम वैज्ञानिक अंतरिक्ष उपकरण ले जाने का प्रावधान होगा। इससे पहले इसरो ने जीएसएलवी का उपयोग करते हुए 500 किलोग्राम वजन वाले मंगलयान को प्रक्षेपित करने की योजना बनाई थी, जिसमें 25 किलोग्राम वजन वाले वैज्ञानिक अंतरिक्ष उपकरण ले जाने की क्षमता होगी, परंतु प्रक्षेपक की 2010 में हुई एक के बाद एक, दो असफलताओं के कारण इसरो को अपनी योजना में कटौती करनी पड़ी।
भारत सरकार ने अभियान के लिए उपयुक्त प्रयोगों पर अध्ययन करने के लिए अगस्त 2009 में 10 करोड़ रुपये की प्रारंभिक राशि मंजूर की थी। वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में मंगल अभियान के लिए वित्त वर्ष के दौरान 125 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस परियोजना को शुक्रवार, दिनांक 3 अगस्त, 2012 को मंजूरी प्रदान की।
मंगलयान अभियान की टीमः अक्टूबर 2012 में इसरो ने मंगलयान अभियान के कार्यक्रम निदेशक के रूप में डॉ एम अन्नादुराई के नाम की घोषणा की। एस के शिवकुमार मंगलयान की रचना और विकास का कार्य देखने वाले थे।
इससे पहले श्री अन्नादुराई चंद्रयान 1 के परियोजना निदेशक भी रह चुके हैं। श्री शिवकुमार, जिन्होंने चंद्रयान 1 के जमीनी भाग को सफल बनाने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी, इसरो के बेंगलुरु स्थित उपग्रह केंद्र के निदेशक हैं, जो मंगलयान के अंतरिक्ष उपकरणों और उपग्रहों की रचना, विकास, निर्मिति और परीक्षण के लिए मुख्य केंद्र होगा। श्री एस. अरुणन मंगलयान अभियान के परियोजना निदेशक हैं।
7.0 महत्वपूर्ण शब्दावलियां
7.1 ग्लोनास (वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली) (GLONASS)
रेडियो उपग्रह नौवहन प्रणाली अमेरिका के जीपीएस और यूरोप के गैलिलियो की रूसी समकक्ष है। इसका परिचालन रूसी अंतरिक्ष बलों द्वारा रूसी सरकार के लिए किया जाता है। जीपीएस की ही तरह संपूर्ण संज्ञात्मक ग्लोनास में 24 उपग्रह, 21 परिचालनात्मक और तीन परिक्रमा के दौरान के ‘‘रक्षित‘‘ हैं, जिन्हें तीन कक्षीय समतलों में स्थापित किया गया है। ग्लोनास तारामंडल 19,100 किलोमीटर की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है, जो जीपीएस से थोड़ी ही कम है।
पहले तीन परीक्षण उपग्रह अक्टूबर 1982 में कक्षा में स्थापित किये गए थे। इस प्रणाली को सितंबर 1993 में परिचालनात्मक घोषित किया गया था, परंतु तारामंडल दिसंबर 1995 में पूरा हो पाया।
रूस की आर्थिक स्थिति के कारण अप्रैल 2002 में केवल 8 उपग्रह ही परिचालनात्मक थे, जिसने नौवहन सहायता की दृष्टि से इसके उपयोग को लगभग बेकार बना दिए था। चूंकि अब रूस की आर्थिक स्थिति में सुधार हो गया है, अतः मार्च 2004 तक 11 उपग्रह परिचालनात्मक हो चुके थे। 7 वर्ष की परिचालन जीवन अवधि के साथ ग्लोनास - एम नामक एक उन्नत ग्लोनास का भी विकास किया गया है। ए - 3 उपग्रह खंड दिसंबर 2004 में प्रक्षेपित किया गया था।
इससे भी आगे सुधारित ग्लोनास - के का विकास किया गया है, जिसका वजन कम है और इसकी परिचालन जीवन अवधि 10 से 12 वर्ष की है।
7.2 गैलिलियो (GALILEO)
गैलिलियो एक उपग्रह नौवहन प्रणाली है, जो यूरोपीय आयोग और यूरोपीय अंतरिक्ष अभिकरण की संयुक्त पहल है, जिसका समझौता मार्च 2002 में किया गया था, ताकि वे जीपीएस के लिए अपना स्वयं का विकल्प प्रदान कर सकें। लगभग 2.5 बिलियन डॉलर की लागत वाले आवश्यक उपग्रह 2006 और 2008 के दौरान प्रक्षेपित गए थे, और यह प्रणाली 2008 से असैनिक नियंत्रण में कार्य कर रही है। पहला उपग्रह 28 दिसंबर 2005 को प्रक्षेपित किया गया था। गैलिलियो अगली पीढ़ी की जीपीएस प्रणाली से सुसंगत है जो 2012 में परिचालनात्मक हो गई है। इसके रिसीवर 30 गैलिलियो और 28 जीपीएस उपग्रहों से संकेतों का संयोजन करते हैं।
23,222 किलोमीटर की ऊँचाई पर पृथ्वी की मध्य कक्षा में तीस नए उपग्रह स्थापित किये गए हैं।
8.0 अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में इसरो का अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
इसकी स्थापना के दिनों से ही इसरो का अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है। इसके पास 26 देशों/अंतरिक्ष अभिकरणों के साथ मसौदा समझौते/समझौते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित और भारत में स्थापित एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा केंद्र (सीएसएसटीई-एपी) ने एशिया प्रशांत क्षेत्र के 400 से अधिक कर्मियों को प्रशिक्षित किया है। वर्ष के दौरान सीएसएसटीई-एपी ने अपनी स्थापना के दस वर्ष पूरे कर लिए हैं। इसके अतिरिक्त इसरो अपने अंतरिक्ष में अनुभव साझा कार्यक्रम (शेयर्स) के माध्यम से विकसनशील देशों के कर्मियों को अंतरिक्ष अनुप्रयोगों में प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
इसरो ने अन्य अंतरिक्ष अभिकरणों के वैज्ञानिक अंतरिक्ष उपकरणों को भी प्रक्षेपित किया है, जैसे डीएलआर, जर्मनी का प्रमापीय प्रकाशीय इलेक्ट्रॉनिक सूक्ष्मवीक्षक, जिसका प्रक्षेपण आईआरएस - पी 3 अंतरिक्ष यान पर किया था, और इससे प्राप्त आंकडे डीएलआर, भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा साझा किये जाते हैं। भारत का नासा ओएए के साथ उन अभिकरणों द्वारा इन्सैट अंतरिक्ष यान से प्राप्त मौसम विज्ञान संबंधी आंकडे प्राप्त करने के लिए सहयोग समझौता है।
मेघा -ट्रापिक्स वायुमंडलीय अध्ययनों के लिए इसरो और फ्रेंच अंतरिक्ष अभिकरण सीएनईएस का संयुक्त उपग्रह अभियान है। इस उपग्रह का निर्माण और प्रक्षेपण इसरो द्वारा किया जायेगा और सीएनईएस इसके दो अंतरिक्ष उपकरणों का विकास करेगा, जबकि तीसरे अंतरिक्ष उपकरण का विकास इसरो के साथ संयुक्त रूप से किया जायेगा। उसी समय भारत के चंद्रयान - 1 अंतरिक्ष यान पर अमेरिका, जर्मनी, स्वीडन, यू.के. और बुल्गारिया में विकसित वैज्ञानिक उपकरणों का प्रक्षेपण भी किया गया था। इसके अतिरिक्त, इटालियन वैज्ञानिक उपकरण को भारत के ओसियनसैट - 2 उपग्रह पर शामिल किया जायेगा। खगोलीय खोजों के लिए इसराइल और कनाड़ा के साथ संयुक्त रूप से विकसित उपकरणों को भारत के क्रमशः जीएसएटी- 4 और रीसैट उपग्रहों पर प्रक्षेपित किया जायेगा। साथ ही, सौर भौतिकशास्त्र और सौर पृथ्वी संबंधी विज्ञानों के अध्ययन के लिए एक भारतीय वैज्ञानिक उपकरण का प्रक्षेपण रूस के कोरोनस - फोटोन उपग्रह के माध्यम से किया जायेगा।
भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कोसपस/सरसैट कार्यक्रम के लिए तीन स्थानीय उपयोगकर्ता टर्मिनल और अभियान नियंत्रण केंद्र भी स्थापित किये गए हैं, जिनके माध्यम से आपदा चेतावनी और स्थिति स्थान सेवा प्रदान की जाती है। इन्सैट - 3 ए अंतरिक्ष यान में एक खोज और बचाव ट्रांसपोंडर भी शामिल किया गया है। भारत आपदा प्रबंधन में अंतर्राष्ट्रीय अधिकारपत्र का एक हस्ताक्षरकर्ता है, और इसके लिए सुदूर संवेदी आंकडे प्रदान कर रहा है।
9.0 भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी - नवीनतम घटनाक्रम
9.1 बजटीय आवंटन
वित्त वर्ष 2016-17 के बजट में अंतरिक्ष विभाग (DoS) के लिए 7509 करोड़ रुपये की राशि निश्चित की गई थी, जो इस अभिकरण के पिछले वर्ष के वित्तपोषण के समान है। 2015-16 के दौरान हालांकि अंतरिक्ष विभाग को प्रारंभ में 7388 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे, उस आवंटन में बाद में 6959 करोड़ रुपये कर दिया गया था।
हाल ही में, अंतरिक्ष विभाग ने अनेक लंबी छलाँगें लगाईं हैं, जब इसने देश की पहली अंतरग्रहीय परियोजना की शुरुआत की, मंगल ग्रह परिक्रमा परियोजना और भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जीएसएलवी - डी 5) का प्रक्षेपण किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण ‘‘हमारे मेधावी वैज्ञानिकों‘‘ द्वारा विकसित भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं का ‘‘वैश्विक अनुमोदन‘‘ है। यह देखते हुए कि भारत के पास इस क्षेत्र में एक ‘‘विशाल सेवा प्रदाता‘‘ बनने की क्षमता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि अधिक भारी वजन वाले उपग्रहों के प्रक्षेपण को संभव बनाने के लिए नई अधोसंरचना का निर्माण करने और विद्यमान संरचना के उन्नयन के प्रयास किये जाने चाहिये।
9.2 इसरो की प्रमुख उपलब्धियां
हाल के वर्ष, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऐतिहासिक उपलब्धियों का वर्ष रहे जब उसने भारत के पहले अंतरग्रहीय मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान का प्रक्षेपण किया और जीएसएलवी- 7 के साथ स्वदेशी तुषार-जनिक ऊपरी चरण की सफलतापूर्वक परीक्षण उडान की। इनके अतिरिक्त, पहले आईआरएनएसएस-प्रणाली का भी प्रक्षेपण; एंट्रिक्स निगम के साथ अनुबंध के तहत दूरसंचार उपग्रह जीएसएटी - 7 का भी प्रक्षेपण, और साथ ही एक उन्नत मौसम उपग्रह इन्सैट - 3डी का भी प्रक्षेपण भी इसी वर्ष के दौरान की उपलब्धियों में शामिल हैं।
- मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान, जो भारत का पहला अंतरग्रहीय अंतरिक्ष यान अभियान है, का सफल प्रक्षेपण पीएसएलवी - सी 25 द्वारा 5 नवंबर 2013 को अण्डाकार पृथ्वी पार्किंग कक्षा में किया गया। यह पीएसएलवी का पच्चीसवां प्रक्षेपण होने के साथ ही इसका चौबीसवां लगातार सफल अभियान भी था। पार मंगल ग्रह प्रवेश प्रयास 1 दिसंबर 2013 को प्राप्त किया गया, जिसके द्वारा अंतरिक्ष यान पृथ्वी के प्रभाव के क्षेत्र से बचते हुए मंगल ग्रह की ओर की अपनी यात्रा की ओर अग्रसर हुआ। इस अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितंबर 2014 को योजना के अनुसार प्रविष्ट किया गया। इसके साथ ही भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन गया जिसने पहले ही प्रयास में मंगल अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
- स्वदेशी तुषार-जनिक ऊपरी चरण के साथ जीएसएलवी- डी 5 ने जीएसएटी-14 नामक दूरसंचार अंतरिक्ष यान को भू-समकालिक हस्तांतरण कक्षा में अत्यंत सटीकता के साथ 5 जनवरी, 2014 को प्रक्षेपित किया। इसीके साथ भारत उन पांच विशिष्ट देशों के समूह में छठे सदस्य के रूप में शामिल हो गया जिनके पास भू-समकालिक हस्तांतरण कक्षा में उपग्रह प्रक्षेपित करने की क्षमता है।
- भारतीय क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली (आईआरएनएसएस) तारामंडल के सात उपग्रहों में से पहले उपग्रह आईआरएनएसएस-1 ए को पीएसएलवी-सी 22 के साथ सफलतापूर्वक उप भू-समकालिक हस्तांतरण कक्षा में 1 जुलाई 2013 को प्रक्षेपित किया गया। आईआरएनएसएस तारामंडल उपग्रह आधारित स्थिति की शुरुआत करने की क्षमता प्रदान करेगा, साथ ही देश के और आसपास के क्षेत्रों के उपयोगकर्ताओं के एक स्पेक्ट्रम के लिए समय और गति की सेवाएं प्रदान करेगा।
- एक बहु बैंड दूरसंचार उपग्रह जीएसएटी- 7, जो एंट्रिक्स निगम के साथ अनुबंध के तहत प्राप्त किया गया है, का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण एरियन - 5 प्रक्षेपण वाहन पर फ्रेंच गयाना के कोउरू से 30 अगस्त 2013 को किया गया।
- 26 जुलाई, 2013 को फ्रेंच गयाना के कोउरू से एरियन - 5 प्रक्षेपण वाहन पर इन्सैट - 3डी का प्रक्षेपण किया गया। यह एक उन्नत मौसम संबंधी उपग्रह है जिसमें सुधार की गई चित्रीकरण प्रणाली और वायुमंडलीय ध्वनित्र थाहमापी लगाये गए हैं। इन्सैट -3 डी में डेटा रिले ट्रांसपोंडर और उपग्रह सहायता प्राप्त खोज और बचाव ट्रांसपोंडर भी लगे हुए हैं।
- अेस्ट्रोसेट (ASTROSAT) अंतरिक्ष में वर्ष सितंबर 2015 में पहली भारतीय अंतरिक्ष वेधशाला के रूप में प्रक्षेपित हो गया।
(इसरो की वार्षिक रिपोर्ट से प्राप्त की गई जानकारी)
10.0 इसरो उपग्रह
कई वर्षों में इसरो ने विभिन्न प्रकार के उपग्रह विकसित किए हैं, जिसका वर्णन इस व्याख्यान में पहले बताई गई एक तालिका में किया गया है।
- संचार उपग्रह : दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण, उपग्रह समाचार एकत्रीकरण, सामाजिक अनुप्रयोग, मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी और खोज एवं बचाव अभियान सेवाओं में मदद करते हैं।
- पृथ्वी अवलोकन उपग्रह : दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक दूरस्थ संवेदी उपग्रह मंडल - भूमि और जल संसाधनों के क्षेत्रों, मानचित्रीकरण तथा सामुद्रिक एवं पर्यावरणीय क्षेत्रों में मदद करने वाले उपग्रहों की विषयगत श्रृंखला।
- वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान : खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रह एवं पृथ्वी विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान एवं सैद्धांतिक भौतिकी जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए अंतरिक्ष यान।
- नेविगेशन उपग्रह : नागरिक उड्डयन की उभरती मांगों को पूरा करने के लिए और स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन प्रणाली के आधार पर उपयोगकर्ताओं की स्थिति, नेविगेशन एवं समय-निर्धारण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए।
- प्रायोगिक उपग्रह : मुख्य रूप से प्रयोगात्मक उद्देश्यों के लिए छोटे उपग्रहों का एक समूह। इन प्रयोगों में रिमोट सेंसिंग, वायुमंडलीय अध्ययन, पेलोड विकास, कक्षा नियंत्रण, पुनर्प्राप्ति प्रौद्योगिकी आदि शामिल हैं।
- छोटे उपग्रह : छोटे 500 किलोग्राम वर्ग के उपग्रह - पृथ्वी इमेजिंग और विज्ञान मिशन के लिए स्टैंड-अलोन पेलोड के रूप में तैयार ऐसे उपग्रह जो त्वरित समय में तैयार हो जाते हैं।
- छात्र उपग्रह : इसरो के स्टूडेंट उपग्रह प्रोग्राम में विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों को प्रोत्साहित करने के लिए नैनो/पिको सैटलाइट्स के विकास की परिकल्पना की गई है।
10.1 संचार उपग्रह
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसेट) प्रणाली एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़े घरेलू संचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है, जिसमें नौ परिचालन संचार उपग्रह पृथ्वी-स्थिर कक्षा में रखे गए हैं। 1983 में, इनसेट-1बी की कमीशनिंग के साथ, इसने भारत के संचार क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति की शुरुआत की जो बाद तक बनी रही। जीसैट-17, 15 परिचालन उपग्रहों जैसे - इनसैट-3ए, 3सी, 4ए, 4बी, 4सीआर एवं जीसैट - 6, 7, 8, 9, 10, 12, 14, 15, 16, 18 के साथ इनसैट प्रणाली के समूह में शामिल है।
सी, 200सी और केयू-बैंड में 200 से अधिक ट्रांसपोंडर के साथ इनसैट प्रणाली दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण, उपग्रह समाचार प्रसारण, सामाजिक अनुप्रयोग, मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी तथा खोज एवं बचाव कार्यों के लिए सेवाएं प्रदान करती है।
पूर्ण तालिका यहां देखें - http://civils.pteducation.com/p/spacetechnology.html
10.2 पृथ्वी अवलोकन उपग्रह
1988 में आईआरएस-1 के साथ शुरू, इसरो ने कई परिचालन रिमोट सेंसिंग उपग्रह लॉन्च किए हैं। आज, भारत के पास संचालन में सुदूर संवेदन उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह है। वर्तमान में, ‘तेरह’ परिचालन उपग्रह सूर्य-समकालिक कक्षा में हैं - रिर्सोससेट-1, 2, 2ए, कार्टोसैट -1, 2, 2ए, 2बी, रीसेट-1 एवं 2, ऑशनसेट-2, मेघा-ट्रॉपिक, सरल एवं स्केटसेट-1, तथा ‘चार’ जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में- इनसेट -3 डी, कल्पना एवं इनसैट 3 ए, इनसेट -3 डीआर। देश एवं विश्व की की विभ्निन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन उपग्रहों में, विविध स्थानिक, वर्णक्रमीय और लौकिक संकल्पों के साथ आवश्यक डेटा प्रदान करने के लिए, विभिन्न प्रकार के उपकरणों को जोड़ा गया है। इन उपग्रहों के डेटा का उपयोग .षि, जल संसाधन, शहरी नियोजन, ग्रामीण विकास, खनिज पूर्वेक्षण, पर्यावरण, वानिकी, महासागर संसाधनों और आपदा प्रबंधन को कवर करने वाले कई अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।
पूर्ण तालिका यहां देखें - http://civils.pteducation.com/p/spacetechnology.html
10.3 अंतरिक्ष विज्ञान और अन्वेषण
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रह और पृथ्वी विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और सैद्धांतिक भौतिकी जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को शामिल करता है। गुब्बारे, साउंडिंग रॉकेट, स्पेस प्लेटफॉर्म और ग्राउंड-आधारित सुविधाएं इन शोध प्रयासों में अमदद करती हैं। अच्छे रॉकेटों की एक पूरी श्रृंखला वायुमंडलीय प्रयोगों के लिए उपलब्ध है। कई वैज्ञानिक उपकरण विशेष रूप से आकाशीय एक्स एवं गामा किरणों को डिटेक्ट एवं अध्ययन करने के लिए लगाए गए हैं।
- एस्ट्रोसैट - एस्ट्रोटैट पहला भारतीय खगोल विज्ञान मिशन है जिसका उद्देश्य एक्सरे, ऑप्टिकल और यूवी स्पेक्ट्रल बैंड में आकाशीय स्रोतों का अध्ययन करना है। इस पर लगाए गए उपकरण पराबैंगनी (निकट और दूर), सीमित ऑप्टिकल और एक्स-रे रिज़ाईम (0.3 केईवी से 100 केईवी) के ऊर्जा बैंड को कवर करते हैं। एस्ट्रोसैट मिशन की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह विभिन्न खगोलीय पिंडों के अनेंको तरंगदैर्ध्यो को अकेले ही अवलोकन करने में सक्षम है। 1515 किग्रा भार के एस्ट्रोसैट को 28 सितंबर, 2015 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी30 द्वारा भूमध्य रेखा से 6 डिग्री के कोण पर 650 किमी की कक्षा में लॉन्च किया गया था। एस्ट्रोसैट मिशन का न्यूनतम उपयोगी जीवन 5 वर्ष होने की उम्मीद है।
- मार्स ऑर्बिटर मिशन - मार्स ऑर्बिटर मिशन मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला इसरो का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है, जिसे ऑर्बिटर क्राट से बनाया गया है, जो 80,000 किमी गुणा 372 किमी की अण्डाकार कक्षा में मंगल की परिक्रमा करता है। मिशन संचालन, अंतरिक्ष यान के संचार, संचार और अन्य बस प्रणालियों की कठिन आवश्यकताओं को देखते हुए, मार्स ऑर्बिटर मिशन को एक चुनौतीपूर्ण एवं महत्वपूर्ण विज्ञान मिशन कहा जा सकता है। मिशन का प्राथमिक तकनीकी उद्देश्य अर्थ बाऊँड मेनोवर (ईबीएम), मार्शियन ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी (एमटीटी), मार्स ऑर्बिट इंसर्शन (एमओआई) चरणों एवं संबंधित गहरे अंतरिक्ष मिशन योजना और संचार करने की क्षमता के साथ एक अंतरिक्ष यान को डिजाइन करना था। लगभग 400 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर प्रबंधन, स्वयं अपनी गलती का पता लगाना एवं उसे ठीक करना भी मिशन के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
- चंद्रयान -1 - चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन चंद्रयान - 1, 22 अक्टूबर, 2008 को एसडीएससी, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। यह, चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊँचाई पर इसके रासायनिक, खनिज एवं फोटो-भू-मानचित्रण के लिए परिक्रमा कर रहा है। अंतरिक्ष यान अपने साथ भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन एवं बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरणों को भी ले गया है।
- चंद्रयान -2 - चंद्रयान -2 चंद्रमा के लिए पिछले चंद्रयान -1 मिशन का एक उन्नत संस्करण होगा। चंद्रयान -2 को एक ऑर्बिटर क्राट मॉड्यूल (ओसी) और लैंडर क्राट मॉड्यूल (एलसी), जिसमें इसरो द्वारा विकसित रोवर भी जाना है, के रूप में तैयार किया गया है ) ।
10.4 सैटेलाइट नेविगेशन (उपग्रह)
सैटेलाइट नेविगेशन सेवा वाणिज्यिक एवं रणनीतिक उपयोगों के लिए एक उभरती हुई उपग्रह आधारित प्रणाली है। इसरो नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं की उभरती मांगों को पूरा करने के लिए एवं उपयोगकर्ताओं की स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन प्रणाली पर आधारित स्थिति, नेविगेशन और समय-निर्धारण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपग्रह आधारित नेविगेशन सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, इसरो जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (जीएजीएएन) प्रणाली की स्थापना में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के साथ मिलकर काम कर रहा है। स्वदेशी प्रणाली पर आधारित स्थिति, नेविगेशन और समय सेवाओं की उपयोगकर्ता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, इसरो भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) नामक एक क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली स्थापित कर रहा है।
- जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (जीएजीएएन) - यह एक सैटेलाइट आधारित ऑगमेंटेशन सिस्टम (एसबीएएस) है जिसे एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के साथ संयुक्त रूप से लागू किया गया है। जीएजीएएन का मुख्य उद्देश्य नागरिक उड्डयन अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक सटीकता और अखंडता के साथ सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सेवाएं प्रदान करना और भारतीय वायु क्षेत्र पर बेहतर वायु यातायात प्रबंधन प्रदान करना है। यह प्रणाली अन्य अंतर्राष्ट्रीय एसबीएएस प्रणालियों के साथ परस्पर क्रियाशील होगी और क्षेत्रीय सीमाओं के पार निर्बाध नेविगेशन प्रदान करेगी। जीएजीएएन सिग्नल-इन-स्पेस (एसआइएस) जीसेट-8 और जीसेट-10 के माध्यम से उपलब्ध है।
- भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) - नाविक - यह महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अनुप्रयोगों के लिए एक स्वतंत्र भारतीय उपग्रह आधारित स्थिति प्रणाली है। इसको मुख्य उद्देश्य भारत और इसके पड़ोसी देशों को, नेविगेशन एवं समय सेवाएं प्रदान करना है, ताकि उपयोगकर्ता को काफी अच्छी सटीकता प्रदान की जा सके। आईआरएनएसएस मूल रूप से दो प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है -
स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस (एसपीएस) प्रतिबंधित सेवा (आरएस) : आज तक, इसरो ने, आईआरएनएसएस श्रृंखला में कुल नौ उपग्रह बनाए हैं, इनमें से आठ वर्तमान में कक्षाओं में हैं। इनमें से तीन उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा (जीईओ) में हैं जबकि शेष भू-समकालिक कक्षाओं (जीएसओ) में हैं जो भूमध्यरेखीय तल पर 29° का झुकाव बनाए रखते हैं। आईआएनएसएस समूह को माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा एनएवीएलसी (भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन) के रूप में नामित किया गया एवं आईआरएनएसएस - 1 जी उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के अवसर पर राष्ट्र को समर्पित किया गया। आईआरएनएसएस श्रृंखला में आठ परिचालन उपग्रह, अर्थात् आईआरएनएसएस- 1ए, 1बी, 1सी, 1डी, 1ई, 1एफ, 1जी एवं 1आई को 02 जुलाई 2013 को क्रमशः अप्रैल 04, 2014, अक्टूबर 16, 2014, 2, मार्च 2015, 20 जनवरी 2016, मार्च 10, 2016, अप्रैल 28, 2016, एवं 12 अप्रैल, 2018 को लॉन्च किया गया था। पीएसएलवी-39 / आईआरएनएसएस-1एच उपग्रह असफल रहा (कक्षा तक नहीं पहुंच सका)।
10.5 प्रायोगिक उपग्रह
इसरो ने मुख्य रूप से प्रायोगिक उद्देश्यों के लिए कई छोटे उपग्रह लॉन्च किए हैं। इन प्रयोगो में रिमोट सेंसिंग, वायुमंडलीय अध्ययन, पेलोड विकास, कक्षा नियंत्रण, पुनर्प्राप्ति प्रौद्योगिकी आदि शामिल हैं।
छोटे उपग्रह : छोटे 500 किलोग्राम वर्ग के उपग्रह - पृथ्वी इमेजिंग और विज्ञान मिशन के लिए स्टैंड-अलोन पेलोड के रूप में तैयार ऐसे उपग्रह जो त्वरित समय में तैयार हो जाते हैं। विभिन्न प्रकार के पेलोड के लिए, दो प्रकार की बसों को कॉन्फिगर और विकसित किया गया है।
भारतीय मिनी सैटेलाइट -1 (आईएमएस-1) : आईएमएस-1 बस को 100 किग्रा वर्ग की बहुमुखी बस के रूप में विकसित किया गया है जिसमें लगभग 30 किग्रा की पेलोड क्षमता शामिल है। बस को विभिन्न लघुकरण तकनीकों का उपयोग करके विकसित किया गया है। आईएमएस -1 श्रृंखला का पहला मिशन 28 अप्रैल 2008 को कार्टोसैट 2 ए के सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। यूथसैट इस श्रृंखला में दूसरा मिशन है और 20 अप्रैल 2011 को रिसोर्ससैट 2 के साथ सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।
भारतीय मिनी सैटेलाइट -2 (आईएमएस-2) बस : आईएमएस-2 बस 400 किलोग्राम वर्ग की एक मानक बस के रूप में विकसित की गई है जिसमें लगभग 200 किग्रा की पेलोड क्षमता शामिल है। आईएमएस-2 का विकास एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि इसके विभिन्न प्रकार के दूरस्थ संवेदी अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक होने की परिकल्पना की गई है। आईएमए -2 का पहला मिशन सरल है। सरल इसरो और सीएनईएस के बीच एक सहकारी मिशन है जिसमें सीएनईएस के पेलोड और इसरो से अंतरिक्ष यान बस शामिल हैं।
10.6 एफ. छोटे उपग्रह
छोटे 500 किलोग्राम वर्ग के उपग्रह - पृथ्वी इमेजिंग और विज्ञान मिशन के लिए स्टैंड-अलोन पेलोड के रूप में तैयार ऐसे उपग्रह जो त्वरित समय में तैयार हो जाते हैं। विभिन्न प्रकार के पेलोड के लिए, दो प्रकार की बसों को कॉन्फिगर और विकसित किया गया है।
भारतीय मिनी सैटेलाइट -1 (आईएमएस-1)
आईएमएस-1 बस को 100 किग्रा वर्ग की बहुमुखी बस के रूप में विकसित किया गया है जिसमें लगभग 30 किग्रा की पेलोड क्षमता शामिल है। बस को विभिन्न लघुकरण तकनीकों का उपयोग करके विकसित किया गया है। आईएमएस -1 श्रृंखला का पहला मिशन 28 अप्रैल 2008 को कार्टोसैट 2 ए के सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। यूथसैट इस श्रृंखला में दूसरा मिशन है और 20 अप्रैल 2011 को रिसोर्ससैट 2 के साथ सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।
भारतीय मिनी सैटेलाइट -2 (आईएमएस-2) बस
आईएमएस-2 बस 400 किलोग्राम वर्ग की एक मानक बस के रूप में विकसित की गई है जिसमें लगभग 200 किग्रा की पेलोड क्षमता शामिल है। आईएमएस-2 का विकास एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि इसके विभिन्न प्रकार के दूरस्थ संवेदी अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक होने की परिकल्पना की गई है। आईएमए -2 का पहला मिशन सरल है। सरल इसरो और सीएनईएस के बीच एक सहकारी मिशन है जिसमें सीएनईएस के पेलोड और इसरो से अंतरिक्ष यान बस शामिल हैं।
इसरो - स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन और स्टेज
क्रायोजेनिक रॉकेट स्टेज अधिक कुशल है और यह ठोस और पृथ्वी-स्थिर तरल प्रणोदक रॉकेट स्टेजों की तुलना में हर किलोग्राम प्रणोदक के लिए अधिक थ्रस्ट प्रदान करता है। क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट (तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन) के साथ प्राप्त विशिष्ट आवेग (दक्षता का एक उपाय) पृथ्वी के तरल और ठोस प्रणोदक की तुलना में बहुत अधिक है, जिससे इसे पर्याप्त पेलोड लाभ मिलता है। लेकिन क्रायोजेनिक चरण तकनीकी रूप से बहुत कम तापमान और संबद्ध थर्मल और संरचनात्मक समस्याओं पर इसके प्रणोदक के उपयोग के कारण ठोस या पृथ्वी-स्थिर तरल प्रणोदक चरणों की तुलना में एक बहुत ही जटिल प्रणाली है। ऑक्सीजन -183 डिग्री सेल्सियस और हाइड्रोजन -253 डिग्री सेल्सियस पर तरल हो जाता है। इन कम तापमान पर प्रणोदकों को लगभग 40,000 आरपीएम पर चलने वाले टर्बो पंपों का उपयोग करके पंप किया जाता है। यह प्रोपेलेंट स्टोरेज और फिलिंग सिस्टम, क्रायो इंजन और स्टेज टेस्ट सुविधाओं, क्रायो तरल पदार्थों के परिवहन और हैंडलिंग और संबंधित सुरक्षा पहलुओं जैसे जटिल प्रणालियों को भी पूर्ण करता है। इसरो के क्रायोजेनिक अपर स्टेज प्रोजेक्ट (सीयुएसपी) ने स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज के डिजाइन और विकास की परिकल्पना की जिन्हें रूस से खरीदे गए एवं जीएसएलवी उड़ानों में इस्तेमाल होने वाले स्टेज की जगह इस्तेमाल किया गया। सीयुएस का मुख्य इंजन और दो छोटे स्टीयरिंग इंजन मिलकर वैक्यूम में 73.55 केएन नाममात्र का थ्रस्ट विकसित करते हैं। उड़ान के दौरान, सीयुएस 720 सेकंड की मामूली अवधि के लिए जलता है। लिक्विड ऑक्सीजन (एलओएक्स) और लिक्विड हाइड्रोजन (एलएचटू) संबंधित टैंकों से अलग-अलग बूस्टर पंपों द्वारा मुख्य टर्बोप्रूफ तक पहुँचाया जाता है ताकि दहन कक्ष में प्रणोदकों के उच्च प्रवाह दर को सुनिश्चित किया जा सके। थ्रस्ट नियंत्रण और मिश्रण अनुपात नियंत्रण दो स्वतंत्र नियामकों द्वारा प्राप्त किया जाता है। दो गिमबोल्ड स्टीयरिंग इंजन, थ्रस्टिंग चरण के दौरान स्टेज के नियंत्रण के लिए प्रदान किए गए हैं।
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