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तटीय भूगोल भाग - 2
7.0 तटों का मानव जीवन पर प्रभाव
हाल के वर्षों में तटीय प्रभावों पर बड़ी संख्या में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, उप-राष्ट्रीय अध्ययन किये गए हैं। ये अध्ययन समुद्र स्तर के अनावरण, चरम जल स्तर और बाढ़, आप्लावन और अपक्षरण पर केंद्रित रहे हैं।
तटीय बाढ़ के खतरे के प्रति अधिक अनावरणः जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक संवृद्धि और शहरीकरण का परिणाम सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बाढ़ के बढ़ते खतरे में हुआ है। ऐसा अनुमान किया गया है कि 100 वर्ष में एक बार आने वाली तटीय बाढ़ के प्रति अनावृत्त जनसंख्या की संख्या 2010 की 270 मिलियन जनसंख्या से बढ़ कर 2050 में 350 मिलियन हो जाएगी, और यह वृद्धि केवल सामाजिक-आर्थिक विकास के कारण होगी। 1 मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले 136 शहरों के लिए 100 वर्ष में एक बार की चरम समुद्र स्तर वृद्धि को अनावृत्त जनसंख्या 2005 की 39 मिलियन से बढ़ कर 2070 में 59 मिलियन होने का अनुमान किया गया है जो केवल 0.5 मीटर जीएमएसएल वृद्धि के कारण होगा और समाजैक-आर्थिक विकास के कारण 148 मिलियन जनसंख्या अनावृत्त हो जाएगी। सामाजिक-आर्थिक विकास के कारण एशिया में सबसे अधिक जनसंख्या अनावृत्त बनी रहेगी, जबकि उप सहरायी अफ्रीका की अनावृत्ति में सबसे अधिक वृद्धि होगी।
उद्योग, अधोसंरचना, परिवहन और नेटवर्क उद्योगः जो उद्योग तटीय क्षेत्रों में संवर्धित होते हैं और उनकी सहायक अधोसंरचना जैसे परिवहन (बंदरगाह, सड़कें, रेल, हवाईअड्डे), विद्युत और जल आपूर्ति, तूफानी जल और मलनिस्सारण चरम मौसम और जलवायु घटनाओं की बड़ी श्रृंखला के प्रति अति संवेदनशील हैं जिनमें स्थाई और अस्थाई बाढ़ की घटनाएं भी शामिल हैं। तटीय विकास के कारण इन उद्योगों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता बढ़ जाएगी। जलवायु विविधता और जलवायु परिवर्तन उत्प्रेरकों को उद्योगों, अधोसंरचना, परिवहन और नेटवर्क उद्योगों के जीवन चक्र आकलन में उचित महत्त्व प्रदान करना अनिवार्य है। तटीय उद्योगों और अधोसंरचना पर जलवायु के प्रभाव भौगोलिक स्थिति, संबंधित मौसम और जलवायु और उद्योगों का विशिष्ट संयोजन विशिष्ट तटीय क्षेत्रों में भी काफी भिन्न होता है।
कटरीना जैसे तूफान (2005), जिसने मिसीसिपी के बंदरगाहों को 100 मिलियन डॉलर की क्षति पहुंचाई है, आइरीन (2011) और सैंडी (2012), जिनके कारण न्यूयॉर्क का बंदरगाह एक हते तक बंद रखना पड़ा था। इसका परिणाम 50 बिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति में हुआ।
समुद्री जलस्तर में होने वाली वृद्धि के कारण निचले क्षेत्रों में स्थित रेलमार्गों, बोगदों, बंदरगाहों, सडकों और औद्योगिक सुविधाओं की भेद्यता और अधिक विकत होती जाएगी। समुद्री जलस्तर में होने वाली वृद्धि के कारण चरम बाढ के वापस आने की आवृत्ति में कमी आएगी और यह अधोसंरचना की रचना के दृष्टि से महत्वपूर्ण ऊँचाई को कम कर देगी जैसे हवाईअड्डे, बोगदे, तटीय संरक्षण और जहाज टर्मिनल। अल्बामा और हॉस्टन के बीच के खाड़ी तट क्षेत्र में सापेक्ष समुद्री जलस्तर में अगले 50 से 100 वर्षों के दौरान एक काल्पनिक 1 मीटर की वृद्धि इस क्षेत्र की एक तिहाई सड़कों को स्थाई रूप से जलमग्न कर देगी, साथ ही क्षेत्र के लगभग 70 प्रतिशत बंदरगाह खतरे में आ जायेंगे। तटीय अधोसंरचना की अस्थिरता का कारण बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण भू-जलस्तर जनित परिवर्तनों के कारण निर्मित प्राकृतिक आपदाएं हो सकता है।
मत्स्य पालनजलीय कृषि और कषिः मत्स्य पालन और जलीय कृषि और सम्बंधित कटाई के बाद की गतिविधियाँ वैश्विक स्तर पर करोड़ों रोजगारों का निर्माण करती हैं, साथ ही करोड़ों लोगों के लिए और विश्व वस्तु व्यापार के पशु प्रोटीन आहार में भारी योगदान प्रदान करती हैं। लघु क्षेत्र के मत्स्य पालन और जलीय कृषि, जो खाद्य सुरक्षा और तटीय समुदायों की अर्थव्यवस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, तटीय क्षेत्र काफी कृषि गतिविधियों को भी सहायता प्रदान करते हैं, जैसे एशिया के निचले इलाके के डेल्टा क्षेत्रों का चांवल उत्पादन।
जलवायु परिवर्तनीयता और परिवर्तन मछली उत्पादन को प्रभावित करते हैं, जो मछुआरों के लिए प्रमुख आय का साधन है। कई बार इसका परिणाम मछलियों की बढ़ती वितरण श्रृंखलाओं और उपलब्ध मछलियों की प्रजातियों के परिवर्तन में होता है। 2011 में ऑस्ट्रेलिया में यह पाया गया था कि गर्म शीतोष्ण उत्पत्ति की कुछ मछलियों की उपलब्धता में काफी वृद्धि हुई थी जबकि कुछ अन्य मछलियों की उपलब्धता में कमी आई थी। बांग्लादेश में और कुछ अन्य निचले इलाके के द्वीपीय देशों में समुद्री जल का आप्लावन पारंपरिक कृषि के लिए प्रमुख समस्या बन गया था।
ऊँचाई, स्थिति और जलवायु कारकों के अनुसार मत्स्यपालन पर या तो नकारात्मक प्रभाव हो सकता है या सकारात्मक। जलवायु परिवर्तन समुद्री जैवविविधता के स्वरुप को प्रभावित कर सकता है, जिनमें प्रजाति वितरण में परिवर्तन हो सकता है, और इसका परिणाम क्षेत्र के अनुसार वैश्विक पकड के पुनर्वितरण के रूप में हो सकता है। ऐसा अनुमान है महासागरीय अम्लीकरण के कारण मोलस्क के वैश्विक उत्पादन लागत की हानि 2100 तक 100 बिलियन डॉलर से अधिक की हो सकती है। समुद्री तापमान में वृद्धि के कारण प्रवाल और उससे संबंधित मत्स्यपालन उत्पादन के आच्छादन में कमी का परिणाम कैरेबियाई बेसिन में 2015 में शुद्ध राजस्व हानि में होगा।
महासागरों के बढ़ते तापमान के नकारात्मक प्रभाव समशीतोष्ण क्षेत्रों में महसूस किये जायेंगे, जबकि इसके सकारात्मक प्रभाव उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में महसूस किये जायेंगे। प्रशांत के द्वीप देशों के वायुमंडल-महासागर परिवर्तन प्रवाल चट्टानों के मत्स्यपालन को प्रभावित करने की संभावना है, जिनमें 2050 तक 20 प्रतिशत की कमी आ सकती है, और तटीय जलीय कृषि अपेक्षाकृत कम कार्यकुशल रहने की सभावना है।
तटीय पर्यटन और मनोरंजनः तटीय पर्यटन विश्व के पर्यटन उद्योग का सबसे बड़ा घटक है। 60 प्रतिशत से अधिक यूरोपीय लोग समुद्र तटीय छुट्टियों के विकल्प का चयन करते हैं, और अमेरिका की कुल पर्यटन उद्योग प्राप्तियों में तटीय पर्यटन का योगदान 80 प्रतिशत है। विश्व के लगभग 100 देशों को उनकी प्रवाल भित्तियों द्वारा प्रदान किये गए मनोरंजन मूल्य का लाभ प्राप्त होता है, जिसने विश्व पर्यटन उद्योग को 11.5 बिलियन डॉलर का योगदान प्रदान किया है।
चरम घटनाओं ने तटीय पर्यटन और पर्यटन अधोसंरचना को काफी प्रभावित किया है। ग्रेट बैरियर रीफ पर हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में 1997-98, 2001 -02 और 2005-06 में हुआ प्रवाल विरंचन शामिल है, और बाढ़ों और चक्रवातों सहित चरम घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन विषयक चिंताओं में काफी वृद्धि कर दी है और ग्रेट बैरियर रीफ समुद्री पार्क प्राधिकरण द्वारा अनेक प्रतिरोधी पहलें प्रस्तावित और विकसित की गई हैं। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार समशीतोष्ण मध्य अक्षांश देशों में तापमान वृद्धि और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बढ़ते चक्रवातों के कारण पर्यटकों का प्रवाह मध्य अक्षांश देशों से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की ओर अनुप्रेषित हो सकता है।
जहां तक तटीय पर्यटन पर होने वाले भविष्य कालीन प्रभावों का प्रश्न है, चरम घटनाओं और समुद्र सतह में वृद्धि के प्रभाव, जिनके कारण तटीय अपक्षरण में वृद्धि हो रही है, अत्यंत विनाशकारी साबित हो सकते हैं। 2100 तक समुद्र सतह में 1 मीटर की वृद्धि का परि.श्य कैरेबियाई पर्यटन के लिए एक संभावित खतरा है। 2050 से 2100 तक कम से कम 2 अंश सेल्सियस के परिदृश्य के तहत कार्बोनेट रीफ संरचनाएं अवक्रमित हो जाएँगी जिसके ऑस्ट्रेलिया, कैरेबियाई और अन्य छोटे द्वीपीय देशों के पर्यटन गंतव्यों पर गंभीर परिणाम होंगे।
भविष्य कालीन जलवायु परिवर्तन के तटीय पर्यटन पर प्रभाव भयानक हैं। उदाहरणार्थ, कैरेबियाई समुदाय देशों में पर्यटन स्थलों की पुनर्निर्माण लागतें 2050 में 10 से 23.3 बिलियन डॉलर रहने का अनुमान है। एक काल्पनिक 1 मीटर समुद्र सतह वृद्धि के परिणामस्वरुप 21 हवाईअड्डों, और 35 बंदरगाहों के आसपास की भूमि के आप्लावन से क्षति या नुकसान होने की संभावना है और तटीय क्षेत्रों के अपक्षरण से कम से कम 149 बहु मिलियन डॉलर पर्यटन स्थलों की क्षति होगी या वे नष्ट हो जायेंगे।
8.0 तटीय प्रबंधन की तकनीकें
प्राकृतिक वास और व्यवसायों के संरक्षण में सहायता की दृष्टि से तटरेखा का प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसने सरकारों को तटीय प्रबंधन के लिए प्रेरित किया है, हालांकि यह काफी खर्चीला माना जाता है। तटीय प्रबंधन में कठोर और सौम्य, दोनों प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया जाता है। कठोर तकनीकें उच्च प्रौद्योगिकी, उच्च लागत, और मानव निर्मित समाधानों का उपयोग करती हैं जबकि सौम्य तकनीकें न्यून प्रौद्योगिकी, न्यून लागत समाधानों का उपयोग करती हैं, जो अपक्षरण को कम करने के लिए प्र.ति के साथ मिलकर कार्य करती हैं।
8.1 कठोर अभियांत्रिकी तकनीकें (Hard Engineering Techniques)
समुद्री दीवारेंः समुद्री दीवारें विशाल दीवारें होती हैं जो संपूर्ण तटरेखा को समाविष्ट करती हैं और अपक्षरण को कम करने और इस प्रक्रिया के दौरान बाढ़ को रोकने का प्रयास करती हैं। वे बहुत ही खर्चीली हैं और इन्हें निरंतर रखरखाव की आवश्यकता होती है वे समुद्री दीवारों को काटने वाली लहरों में तीव्र प्रतिक्रिया भी निर्मित करती हैं जो उनकी दीर्घकालीन धरणीयता पर प्रश्न खडे करती हैं। पारंपरिक रूप से समुद्री दीवारें विशाल समतल दीवारें होती थीं हालांकि अधिक आधुनिक समुद्री दीवारों की संरचना वक्री होती है जो लहरों को अंदर आती लहरों की ओर परावर्तित कर देती हैं, जो उनको तोड़ देती हैं, और इस प्रकार अपक्षरण को और भी कम कर देती हैं।
जलतोड़ः जलतोड़ (Groynes) नीची लकड़ी की दीवारें होती हैं जो समुद्र तक फैली होती हैं। जलतोड़ के पीछे की कल्पना यह है कि लंबे तट कटाव के माध्यम तट के नीचे जाने वाली रेत को रोका जाए और उस क्षेत्र के सामने तट का एक बडा भाग तैयार किया जाए जो अपक्षरण का अनुभव कर रहा है। यह नया तट उस अंतर को बढा देगा जो लहरों को तट तक आने के लिए काटना है, और इस प्रक्रिया के दौरान वे अपनी अधिकांश ऊर्जा खो देंगी, जिससे उनका प्रभाव कम हो जायेगा। जलतोड काफी प्रभावी होते हैं परंतु वे तट के नीचे की काफी मात्रा में रेत को हटा देते हैं, जिसके कारण समुद्र पर एक पतला तट ही रह जाता है। इसका अर्थ यह है कि जलतोड़ के नीचे का तटीय क्षेत्र अपक्षरण के प्रति अधिक अनावृत्त हो जायेगा, जो तटीय प्रबंधन के लिए नई समस्याएं पैदा कर सकता है।
झाबाः झाबा (Gabion) एक धातु की जाली में बंधी चट्टानों का संग्रह होता है। इन्हें चट्टान पर लहरों के होने वाले प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से चट्टान के आधार में रखा जाता है ताकि चट्टान के आतंरिक कटाव को रोका जा सके। ये तटीय प्रबंधन का एक महंगा तरीका है परंतु यह उतना अधिक प्रभावी नहीं है।
मुखावरणः मुखावरण (Revetments) कांक्रीट से बनी (कई मामलों में लकड़ी से बनी) संरचनाएं होती हैं जो चट्टान के आधार के आसपास निर्मित की जाती हैं। वे लहरों की ऊर्जा को अवशोषित कर लेती हैं, और इस प्रकार चट्टान के अपक्षरण को प्रतिबंधित करती हैं। कभी-कभी उनकी सतहें लहरदार होती हैं, जो लहरों की ऊर्जा को नष्ट करने में और अधिक सहायक होती हैं। मुखावरण आमतौर पर तटीय अपक्षरण को रोकने में सफल साबित हुए हैं परंतु इनका निर्माण काफी खर्चीला होता है। हालांकि एक बार निर्माण कर दिए जाने के बाद उन्हें समुद्री दीवारों जैसे रखरखाव और मरम्मत की आवश्यकता नहीं पड़ती।
रोड़ीः रोड़ी चट्टानों के टुकडे़ और पत्थर होते हैं जो चट्टान के आधार पर रखे जाते हैं। प्रयोजन में वे मुखावरण के समान ही होते हैं परंतु उन्हें जाली में बांध कर नहीं रखा जाता। हालांकि रोड़ी के बारे में यह संभावना हमेशा बनी रहती है कि वे समुद्र द्वारा बहा कर ले जाये जा सकते हैं।
तरंग रोधः तरंग रोध (Breakwaters) अपतटीय कांक्रीट की दीवारें होती हैं जो समुद्र में ही आने वाली लहरों को तोड़ देती हैं जिससे कि तट तक पहुंचते-पहुंचते उनकी अपक्षरण क्षमता कम हो जाती है। तरंग रोध प्रभावी तो होते हैं परंतु चक्रवातों के दौरान वे नष्ट हो सकते हैं।
8.2 सौम्य अभियांत्रिकी तकनीकें (Soft Engineering Techniques)
तट पोषणः इस तकनीक में तट को चौड़ा करने के लिए इसमें रेत और रोडे़ मिलाये जाते हैं। इस प्रक्रिया से लहरों का तट पर पहुंचने का अंतर बढ़ जाता है, जिससे लहर की अधिकांश ऊर्जा नष्ट हो जाती है और चट्टान तक पहुंचते-पहुंचते उनकी अपक्षरण क्षमता भी कम हो जाती है। इसमें प्रयुक्त रेत और रोडे अन्यत्र से लाने पडते हैं, अतः वे निकर्षण से प्राप्त किये जाते हैं।
भूमि प्रबंधनः भूमि प्रबंधन की तकनीक का उपयोग आमतौर पर टीलों के संरक्षण और उनके पुनर्निर्माण के लिए किया जाता है। रेत के टीले तटीय बाढ़ और अपक्षरण के विरुद्ध अच्छी बाधाएं साबित होते हैं, और ये समुद्र के विरुद्ध प्राकृतिक सुरक्षा के साधन हैं। हालांकि यह आवश्यक है कि इन टीलों को अबाधित छोड़़ दिया जाना चाहिए अतः बोर्डवॉक बनाये जाते हैं और रेत के कुछ क्षेत्र आम जनता के लिए निषिद्ध क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिए जाते हैं ताकि इन टीलों का मनुष्य द्वारा अपक्षरण नहीं हो सके।
दलदली भूमि निर्माणः दलदली भूमि का उपयोग लहरों को तोड़ने और उनकी गति को कम करके उनकी अपक्षरण क्षमता को कम करने के लिए किया जा सकता है। दलदली भूमि उन क्षेत्रों को भी सीमित कर सकती है जहां तक लहरें पहुंचती हैं, और इस प्रकार बाढ़ को प्रतिबंधित किया जा सकता है। दलदली भूमि का निर्माण दलदली भूमि की ग्लासस्वोर्ट जैसी वनस्पति को प्रोत्साहित करके भी किया जा सकता है।
तट स्थिरीकरणः तट पोषण की ही तरह तट स्थिरीकरण (beach stabilization) का उद्देश्य भी तट को चौड़ा करने का है, ताकि तट तक पहुंचने से पहले ही अधिक से अधिक लहर ऊर्जा को नष्ट किया जा सके। तट स्थिरीकरण की प्रक्रिया में रेत में निर्जीव पौधों की रोपाई शामिल है ताकि रेत को स्थिर किया जा सके, और तट को चौडा करने के साथ-साथ तट की रचना को भी कम किया जा सके।
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