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औद्योगिक क्रांति
1.0 औद्योगिक क्रांति के कारण
अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में इंग्लैण्ड के निवासियों का आजीविका का प्राथमिक साधन कृषि था। लगभग 75 प्रतिशत लोग भूमि पर अन्न उगाकर अपना जीवन-यापन करते थे। सर्दियों के दिनों में अधिकांश अंग्रेज परिवारों के पास कोई काम नहीं होता था क्योंकि सारी धरती बर्फ से ढंकी रहती थी। इन महीनों में उन्हें खाली बैठकर बचे-खुचे भोजन का सावधानी से इस्तेमाल करना होता था, और किसी वर्ष यदि फसल अनुमान से कम हुई, या कोई अन्य अनावश्यक खर्चे सामने आ गए, तो उस समय सर्दियां और अधिक लंबी, ठंडी और भूख से बेहाल बन जाया करती थीं। कुटीर उद्योग किसानों के खाली समय का उपयोग करने, और कम कीमत में अच्छा कपड़ा बनाने के उद्देश्य से शुरु किए गए थे।
1.1 इंग्लैंड में कुटीर उद्योग
शहरों के कपड़ा व्यापारियों को गांवों में घूम-घूमकर भेड की ऊन एकत्रित करने के लिए काफी धन की जरुरत होती थी। उसके बाद वह यह कच्चा माल अनेक परिवारों को कपड़ा बनाने के लिये देता था। औरतें और लडकियां पहले ऊन को धोकर उसका मैल और तेल निकालती थीं, फिर उसे मनचाहे रंगों में रंगा जाता था। वे ऊन के सारे रेशों को एक ही दिशा में करने के लिए उसे अपनी उंगलियों द्वारा सुलझाती थीं। उसके बाद इस ऊन को चरखे द्वारा धागे में बुना जाता था और उसके गोले बनाए जाते थे। यह काम अक्सर अनब्याही लड़कियां किया करती थीं, अतः अब भी अनब्याही लड़कियों के लिए ‘स्पिंस्टर’ शब्द का उपयोग किया जाता है। ऊन के इन धागों को करघे पर बुना जाता था जो कि हाथ और पैरों द्वारा चलाया जाता था। इस काम में शक्ति लगती थी, अतः इस काम को पुरूषों द्वारा ही किया जाता था। धागा बनाने से कपड़ा बुनने तक का सारा काम एक ही परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता था, या धागे की कताई एक परिवार में होती थी और कताई दूसरे परिवार में। व्यापारी नियमित अंतराल से इन घरों में आकर कपड़ा ले जाता था, जिसे वह शहर में लाकर बेचता था और कच्चे माल की नई खेप किसान के घर पहुंचती थी।
कुटीर उद्योग वास्तव में इन व्यापारियों के लिए फायदे का सौदा साबित होता था क्योंकि किसान को कपडा बुनने के लिए वे जितना धन देते थे, उससे अधिक धन उस कपड़े को बेचकर कमाते थे। कुटीर उद्योगों ने व्यापार बढ़ाकर देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने और औद्योगिक क्रांति लाने में बड़ी भूमिका निभाई, चूंकि देश बाहरी दुनिया में अपने अच्छे स्तर और कम दामों वाले माल के निर्यातक के रूप में पहचाना जाने लगा था। पहले व्यापारी सारे माल का निर्माण स्वयं ही किया करते थे, अतः इस कार्य को अलग-अलग लोगों के सहयोग से करवाना बड़ा ही नया और आकर्षक विचार था। कपड़ा उद्योग गांव के लोगों के लिए भी अतिरिक्त धन कमाने का वैकल्पिक साधन था, हालांकि धीरे - धीरे कई किसान परिवार इस व्यापार पर ही निर्भर रहने लगे थे। इसीलिए जब औद्योगिक क्रांति और फिर कृषि-क्रांति से खेतों में जब मजदूरों की मांग कम होने लगी, कई लोगों को गांव छोड़कर शहर का रुख करना पड़ा।
1.2 खेत संलग्नता कानून (फार्म एन्क्लोज़र लॉज़)
हालांकि सत्रहवीं सदी के अंत तक इंग्लैंड से दास प्रथा समाप्त हो गई थी मगर अधिकांश खेत सामान्य खुली जमीनों पर ही विकसित किए गए थे और इन जमीनों पर इलाके के धनी लोगों का अधिकार था। ये खेत स्थानीय किसानों को किराए पर दिए जाते थे। चूंकि ऐसा कानून था कि कोई भी मकान मालिक अपने किराएदार को बगैर कारण जबरन बाहर नहीं निकाल सकता, अतः इन खेतों में किसानों की पीढ़ियां दर पीढ़ियां निवास करती रहीं। पीढ़ियां बीतने के साथ साथ वह जमीन छोटे-छोटे पट्टों में बंटती जाती थी।
किसान अपनी जमीन का पूर्ण उपयोग कर सके इसके लिए उनके पास जितनी भी जमीन थी उसका ही उन्हें कुशल प्रबंधन करना पड़ता था। यह प्रचलित तंत्र में, जिसमें अंग्रेजी और यूरोपीय तरीके की खेती सदियों से की जाती थी, किसानों के लिए ऐसा कर पाना असंभव था। चूंकि छोटे और बडे़ सभी किसानों की जमीन लंबी पट्टियों के रूप में ही थी; अतः उन्हें भी फसल बोने के उन्हीं नियमों का पालन करना होता था जिन्हें अन्य स्थानीय किसान अपनाते थे। स्थानीय ग्राम तय करता था कि क्या बोना/उगाना है। फसल के चक्रीकरण की खुली मैदान प्रणाली भी खेती की उत्पादकता बढ़ाने में बडा अवरोध थी। इसका एक ही उपाय था कि खेतों को जोड़-जोड़ कर जमीनों को बड़ा करना, परंतु इसका अर्थ था सारे गांव का एक चारदीवारी के अंदर कैद हो जाना। जमीन के मालिक जानते थे कि किसान अपनी जमीनें स्वेच्छा से नहीं देंगे, इसलिए उन्होंने संसद में अर्जी लगाने का साहसिक और महंगा कदम उठाया। इस संबंध में पहला संलग्नता नियम 1710 में पारित हुआ, किंतु 1750 के दशक तक उस पर अमल नहीं हो सका। इसके बाद 1750 से 60 के बीच 150 से अधिक कानून और 1800 से 1810 के बीच लगभग 900 एन्क्लोजर कानून पारित हुए। अठारहवीं सदी में जब जनसंख्या पहले से लगभग दोगुनी हो गई और एन्क्लोजर को उपज बढ़ाने के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा तो इससे गांव के लोगों पर मानो कहर टूट पड़ा। उन्हें उनके खेतों से बेदखल कर दिया गया और उन्हें मजबूरी में कस्बों और शहरों में स्थापित हो रहे कारखानों में काम ढूंढना पड़ा।
1.3 ब्रिटिशों की श्रेष्ठता के कारण
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के लिए परिस्थितियां अनुकूल थीं। कोयले की जगह लकड़ी का इस्तेमाल करने के कारण ब्रिटेन के पास बड़ी मात्रा में कोयले का भंडार था। और ऐसा कच्चा माल जो उसके पास नहीं था, उसे वह अपने अधीन देशों (उपनिवेशों) से आसानी से प्राप्त कर सकता था। ये अधीनस्थ देश ब्रिटेन में बने माल को बाजार भी उपलब्ध करवाते थे।
ब्रिटेन को शिक्षा, काम करने का आधुनिक तरीका और आधुनिक सरकार, इन तीन प्रमुख बातों ने सबसे भिन्न बना दिया। ब्रिटेन में पढे़-लिखे लोगों की ऐसी फौज तैयार थी जो न केवल मशीन और कागजी कार्य करने को तैयार थी, वरन उनके पास काम के नए विचारों की भरमार थी। ब्रिटेन की जनता अपने शहर से बाहर किसी भी स्थान पर जाने को तैयार थी, ब्रिटेन के पास मध्य वर्ग बड़ी संख्या में था, और एक लचीला व्यापारिक वर्ग भी था। अंग्रेज समाज को अन्य देशों की तरह ‘नए धन’ से एतराज़ नहीं था और वे नव धनाइयों और उनके नए विचारों को स्वीकारने को तैयार थे।
ब्रिटेन की सरकार, जो कि लंबे समय से संवैधानिक राजतंत्र बनी हुई थी, इस स्थिति के लिए एकदम उपयुक्त थी। सरकार नए तरीकों को स्वीकारने और एडम स्मिथ के पूंजीवादी अदृश्य हाथ को भी एक हद तक अपनाने को तैयार थी। पहले डच लोग आर्थिक रूप से सबसे सक्षम थे पंरतु 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना से उनकी सक्षमता को चुनौती दी गई। सरकार और बैंक ने नए विचारों को अद्भुत आधार दिया था जो कि जल्दी ही धन में बदल गया।
1.4 नवीन बैंकिंग व्यवस्था
ब्रिटेन में विस्तार ने, नई मौद्रिक अर्थव्यवस्था, निजी बैंकिंग, हंसिएटिक लीग जैसी व्यापार संस्थाओं को जन्म दिया। आधुनिक कर्ज की सुविधाओं ने भी जन्म लिया जैसे स्टेट बैंक, शेयर बाजार, हुंडी और ऐसे ही कुछ अन्य साधन। इससे आर्थव्यवस्था उत्प्रेरित हुई जिससे लोगों को खर्च करने के लिए धन मिला।
2.0 प्रमुख नवप्रवर्तन (नई खोजें व आविष्कार)
2.1 कृषि नवप्रवर्तन
1600 ईस्वी के बाद खेती के क्षेत्र में बडे़ परिवर्तन हुए। खुली खेती प्रणाली के अंतर्गत फैले साझे के खेत, अब घने मगर बड़े खेतों में बदल गए। खुली खेती के साथ कई परेशानियां जुडी हुई थीं - जानवरों द्वारा अधिक चराई, बदलाव के लिए आम सहमति न होना, पशुओं के लिए एक ही स्थान जिससे बीमारियां फैलना, और पशुओं की बढती जनसंख्या इन सभी को हल कर लिया गया था। किसानों ने फसल के चक्रीकरण की खोज की जिससे वे चाहें तो आधी जमीन को हर फसल के बाद बिना जोते छोड़ सकते थे। पशु पालन भी आम हो चला था। यह तो बदलाव की शुरुआत थी। कई नवाचारियों ने इस क्षेत्र में बहुत से नए तरीके खोजे जिन्होंने खेती के सारे तौर तरीके ही बदल डाले।
2.1.1 जेथ्रो टल (1674-1741)
जेथ्रो टल को कृषि क्रांति में उसके दो महत्वपूर्ण नवाचारों के लिए जाना जाता है - सीड ड्रिल और हार्स हो। सीड ड्रिल के द्वारा बीज जमीन में गहरे तक बोए जा सकते थे और उनके सतह पर रहने और नष्ट हो जाने का खतरा नहीं रहता था। यह मशीन घोड़ों द्वारा खींची जाती थी और एक घूमनेवाले पहिए द्वारा बीज गहराई में बो दिए जाते थे। हार्स हो में हल को एक घोडे द्वारा खींचा जाता था जिससे बोने के कार्य जल्दी और प्रभावशाली रूप से किया जा सके।
2.1.2 लॉर्ड टाउनशेंड
लॉर्ड टाउनशेंड शलजम और तिपतिया घास की खेती के लिए नार्फोक में प्रसिद्ध था और उसे लार्ड टर्निप के नाम से भी जाना जाता था। उसने चार-फसल चक्रीकरण के तरीके बताए जिनके उपयोग से वर्षभर जमीन को अच्छी स्थिति में रखा ज सकता था। इस चक्र में गेहूं, शलजम, जई या जौ और तिपतिया घास शामिल थी।
2.1.3 रॉबर्ट बेकवेल (1725-1795)
कुछ विशेष लक्षणोंवाले जानवरों में प्रजनन द्वारा रॉबर्ट बेकवेल ने जानवरों की अच्छी संख्या बनाने में सफलता प्राप्त की। बेकवेल ने अपने जानवरों के प्रजनन संबंधी सारे रिकार्ड रखे और उनकी देखभाल सावधानी से की। उसे भेड़ों के प्रजनन में सफलता के लिए जाना जाने लगा। अठारहवी सदी के अंत तक उसके पशु प्रजनन के नियमों को सर्वत्र प्रयोग में लाया जाने लगा।
कृषि क्रांति के दौरान इंग्लैंड के उत्पादन में साढे तीन गुना वृद्धि हुई जिसने परिवर्तन और औद्योगिक नवप्रवर्तनों को नया आधार दिया। अच्छी उत्पादन क्षमता और कम परिश्रम वाले खेत होने से लोग खेत छोड़कर शहर जाने को तैयार थे। कामगारों की इस बड़ी संख्या ने औद्योगिक क्रांति को नई ज्योति दी। और तो और, इंग्लैंड के सामने बढ़ती हुई जनसंख्या की पूर्ति करने के लिए उत्पादन बढ़ाने का दबाव था क्योंकि सदी के अंत तक जनसंख्या लगभग दोगुनी हो चुकी थी। और इंग्लैंड का एक औद्योगीकृत देश के रूप में उठने हेतु सबसे महत्वपूर्ण उद्योग कपड़ा उद्योग ही था।
2.2 प्रमुख औद्योगिक नवप्रर्वतन और खोजें
औद्योगिक क्रांति में तकनीक का निर्विवाद रूप से बडा हाथ रहा। इस तकनीकी उदय को कुछ नई खोजों, आविष्कारों व आविष्कारकों के संदर्भ में देखा जा सकता है, जो एक ही उत्पाद से प्रेरित थे। कुटीर उद्योग से मशीनी युग की ‘‘क्रांति’’ मे जाने वाला पहला उत्पाद कपास था। उस समय ब्रिटेन में ऊन का बडा बाजार था। 1760 में ऊन का निर्यात कपडे की तुलना में तीस गुना अधिक था। उच्च वर्ग के फैशन में बदलाव आने से ब्रिटेन ने कपास का उत्पादन बढ़ाने का निश्चय किया। जल्दी ही वह अवस्था आई कि मांग के अनुसार कपास का उत्पादन संभव नहीं हो पा रहा था। यह मांग आगे आनेवाले कई नवाचारों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी।
2.2.1 जॉन के की ‘‘फ्लाइंग शटल’’
जॉन के लंकाशायर का एक मिस्त्री था जिसने फ्लाइंग शटल को पेटेंट किया। एक पैकिंग खूंटी से जुडी रस्सी की सहायता से एक व्यक्ति अकेला ही शटल को एक हाथ से लूम पर चला सकता था। इस आविष्कार के बाद चार स्पिनर एक कपडे की मशीन पर काम कर सकते थे और दस लोगों को एक बुनकर के लिए ऊन का धागा तैयार करना होता था। इसलिए जब स्पिनर अक्सर व्यस्त होते थे, बुनकर हमेशा ऊन का इंतजार किया करते थे। इस तरह से फ्लाइंग शटल ने प्रभावी रूप से बुनकरों के कपडे़ के उत्पादन को दुगना कर दिया।
2.2.2 जेम्स हारग्रीव्स की ‘‘स्पिनिंग जैनी’’
1764 में जेम्स हारग्रीवस् ने स्पिनिंग जैनी का आविष्कार किया जिससे एक व्यक्ति एक समय में कई धागे बुन सकता था और इसी के साथ अच्छे कपडे़ का उत्पादन भी संभव हुआ। केवल एक पहिया घुमाने से ही एक व्यक्ति एक बार में आठ धागे बुन सकता था। यही संख्या आगे जाकर अस्सी धागों तक हो गई। मगर यह धागा मोटा और कच्चा होता था एवं कमज़ोर भी। इस कमी के बावजूद 1778 तक ब्रिटेन में इस तरह की बीस हजार मशीनें लगाई गईं।
2.2.3 रिचर्ड आर्कराइट् का ‘‘वॉटर फ्रेम’’
1764 में ही रिचर्ड आर्कराइट् ने धागे को तेजी से बनाने के लिए ‘वॉटर फ्रेम’ का आविष्कार किया। इसका पहला नाम ‘स्पिनिंग फ्रेम’ था, जो कि हाथ से चलाने के लिए बहुत विशाल था। ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों के साथ प्रयोग के बाद उसने पानी की शक्ति का प्रयोग करने का विचार किया और इस मशीन को ‘वॉटर फ्रेम’ के नाम से जाना जाने लगा। रोलर्स सही मोटाई का धागा बनाते थे, जबकि बुने हुए धागे एक तकली में लिपटते जाते थे। यह मशीन उस समय सबसे पक्का धागा बनानेवाली मशीन बन गई थी।
2.2.4 सैमुअल क्रॉम्पटन का ‘‘क्रॉम्पटन म्यूल’’
1779 में सैमुअल क्रॉम्पटन ने स्पिनिंग जैनी और वॉटर फ्रेम को एकत्रित करके एक मशीन बनाई जिसे ‘क्रॉम्पतन म्यूल’ नाम दिया गया। इससे अधिक महीन और पक्का धागा बनाना संभव था।
इन आविष्कारों के बाद धागे का औद्योगिकीकरण हो गया। 1812 तक सूती धागा बनाने की लागत 9/10 के अनुपात में घटी और इसके लिए आवश्यक कर्मचारियों की संख्या 4/5 के अनुपात में घटी। इन मशीनों के आविष्कारों ने उत्पादन का तनाव कच्चे कपास की ओर मोड़ दिया। अगले 35 वर्षों में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में एक लाख लूम और तिरानवे लाख तीस हजार स्पिंडल लगाए गए। ब्रिटेन ने अमेरिका में उत्पादित कपास का उपयोग अपने देश की मांग की पूर्ति में किया। 1830 तक कच्चे कपास का आयात आठ गुना बढ़ चुका था और ब्रिटेन का आधे से अधिक निर्यात परिष्कृत कपास ही था। इस समय, बढ़ती मांग ने ही एक नए आविष्कार भाप इंजन की अवधारणा को जन्म दिया।
2.2.5 जेम्स वॉट का ‘‘भाप इंजन’’
हालांकि स्पिनिंग जैनी और वॉटर फ्रेम द्वारा कपास उत्पादन में खासी वृद्धि हुई थी, मगर इस क्षेत्र में खासा उछाल तब आया जब भाप की शक्ति पर प्रयोग किए जाने लगे। पहले थॉमस सेवरी (1698) और थामस न्यूकमन (1705) ने इंग्लैंड में भाप इंजन का आविष्कार किया, मगर इसका उपयोग कोयले की खदानों से पानी बाहर निकालने के लिए होता था। 1760 में एक स्कॉटिश इंजीनियर जेम्स वाट ने (1736-1819) एक इंजन बनाया, जो पिछले इंजन से तीन गुना अधिक गति से पानी बाहर निकाल सकता था। 1782 में वॉट ने एक घूमनेवाला इंजन बनाया जो किसी शाफ्ट को घुमाकर मशीन को गति दे सकता था, जिससे मशीन धागा कात और बुन सकती थी। चूंकि वॉट का इंजन पानी से नही,ं कोयले से चलता था, अतः स्पिनिंग व्हील उद्योग कहीं भी स्थापित किए जा सकते थे।
1807 में रॉबर्ट फुल्टन ने भाप की शक्ति का उपयोग करते हुए एक ‘स्टीम बोट’ बनाई जिसके द्वारा ब्रिटेन के उपनिवेशों में सामान का आवागमन आसानी से हो सकता था। शुरुआत में जहाज वाहिकाओं की तुलना में सामान को लाने ले जाने की दृष्टि से बहुत खर्चीले साबित होते थे मगर स्टीम बोट के कुछ लाभ थे। वह अपनी स्वयं की शक्ति से चल सकती थी और तूफान में भी गतिमान रह सकती थी।
2.2.7 स्टीफेन्सन की ‘‘भाप चलित ट्रेन‘‘
अंत में 1814 में स्टीफेन्सन ने भाप की शक्ति के उपयोग से एक ट्रेन बनाई जिससे उन स्थानों के बीच आवागमन सुलभ हो गया जो पहले बहुत दूर प्रतीत हुआ करते थे। जल्दी ही भाप की शक्ति से चलनेवाली यह ट्रेन सारी दुनिया में सफलता का निशान बन गई। ब्रिटेन ने यूरोप के अन्य देशों में भी रेल की पटरियां बिछाने के काम को प्रोत्साहित किया और इसके लिए अपने धन, तकनीक और उपकरणों का उपयोग भी किया। जल्दी ही रेल ब्रिटिश निर्यात का मानक उत्पाद बन गई।
इस सदी में हुए ढे़रों आविष्कारों ने व्यापार और उत्पादन के अन्य क्षेत्रों को भी औद्योगिकीकरण की ओर प्रवृत्त किया। इन नवाचारों ने कृषि, ऊर्जा, परिवहन, कपड़ा और संचार उद्योगों को प्रभावित किया।
2.3 कपड़ा उद्योग में नवप्रर्वतन
कपड़ा उद्योग में उन्नति ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में प्रमुख विकास था। यह पहला उद्योग था जिसने कारखाने प्रणाली को जन्म दिया। इन उद्योगों में कच्चा माल पहले की तरह ही उपयोग होता था मगर अब उन्हें उत्पाद में बदलने का काम मशीनें करने लगी थी। मशीनों और असेंबली लाईन प्रणाली से कम समय और कम पैसों में बडे़ पैमाने पर कपड़ा बनाया जा सकता था। इस सदी की प्रमुख खोजें थीं
1733 फ्लाइंग शटल - जॉन के द्वारा आविष्कार किया गया यह कार्य करने का उन्नत रूप था जिससे बुनकरों को जल्दी कपड़ा बुनने में मदद मिली
1742 इंग्लैंड में कपास मिलें सर्व प्रथम खुलीं
1764 स्पिनिंग जैनी - जेम्स हारग्रीव्स स्पिनिंग व्हील को उन्नत बनाने वाली पहली मशीन
1764 वाटर फ्रेम - रिचर्ड आर्कराइट पहली शक्तिशाली कपड़ा मशीन
1769 आकराइट द्वारा वाटर फ्रेम को पेटेंट करवाना
1770 हारग्रीव्स ने स्पिनिंग जैनी को पेटेंट करवाया
1773 पहली बार कपड़ा कारखानों में बनाया गया
1779 क्रॉम्पटन ने स्पिनिंग म्यूल बनाया जिसने बुनाई की विधि को नियंत्रित किया
1785 कार्टराइट ने पावर लूम को पेटेंट करवाया। इसे बाद में विलियम हेरॉक्स द्वारा उन्नत बनाया गया जो कि 1813 की वैरिएबल स्पीड बैटन के जनक बने।
1787 कपडे़ का उत्पादन 1770 की तुलना में दस गुना बढ़ा
1789 सैमुअल स्लेटर अमेरिका में कपडा मशीन का डिजाइन लेकर आए
1719 आर्कराइट ने नॉटिंघम में पहली कपड़ा फैक्ट्री लगाई
1792 इली व्हिरनी ने कॉटन जिन मशीन बनाई जिससे कपास के बीजों से कपास अलग करना आसान हो गया
1804 जोसेफ मैरी जेकार्ड ने जेकार्ड लूम बनाया जो जटिल डिजाइन भी बना सकता था जेकार्ड ने कार्डस के एक धागे में छेदों के पैटर्न रिकॉर्ड करके स्वचालित रूप से एक रेशम करधे पर ताने और बाने के धागे को नियंत्रित करने के एक उपाय का आविष्कार किया।
1813 विलियम हेरॉक ने वैरिअबल स्पीड बैटन बनाया जिसे पावर लूम में इस्तेमाल किया गया
1856 विलियम पर्किन ने पहले सिन्थेटिक डाई का आविष्कार किया
कपड़ा उद्योग में आया यह उत्कर्ष अर्थव्यवस्था के लिए बडा ही लाभदायक साबित हुआ और इससे बडे लाभ की स्थिति निर्मित हुई। हालांकि कारखानों को चलाने की अपनी दिक्कतें थीं। उन कारखानों में बच्चों को काम पर रखा जाता था और उन्हें बहुत कम वेतन दिया जाता था। उन्हें खतरनाक स्थिति में भी तय घंटों से अधिक समय तक काम करने को विवश किया जाता था और इसके लिए उनसे मारपीट भी की जाती थी। 1820 के अंत तक आलोचकों ने कारखानों की इस कार्यशैली पर सवाल उठाने शुरु किए और अंत में 1832 में माइकल थामस सैडलर ने एक संसदीय समिति (सैड़लर कमेटी) के द्वारा बच्चों से काम करवाने पर रोक लगाने के लिए एक कानून बनाया। मगर कानून बनने के बाद ही इसका पालन शायद ही हो सका। अखिरकार मालिकों के अत्याचारों से तंग आकर मजदूरों ने स्वयं ही यूनियन बनाकर लाभ के भूखे मालिकों से लड़ने का रास्ता निकाला।
2.4 कारखाना व्यवस्था
3.0 औद्योगिक क्रांति के प्रभाव
3.1 सामाजिक संरचना में बदलाव
औद्योगिक क्रांति के दौरान सामाजिक संरचना में बहुत बड़ा बदलाव आया। औद्योगिक क्रांति के पहले लोग अपना जीवन सरलता और सादगी से बिताते थे, गांवों में रहते थे, किसानी या कारीगरी का काम करते थे। वे एक साथ मिलजुलकर किसी परिवार की तरह रहते थे, सारा काम अपने हाथ से करते थे। ब्रिटेन की एक चौथाई जनता गांवों में रहती थी और खेती ही उनका मुख्य व्यवसाय था। मगर ‘‘संलग्नता कानून (एनक्लोज़र लॉ)’’ बनने के बाद कई लोगों को खेती छोड़कर काम ढूंढ़ने कारखानों में जाना पड़़ा, व कुछ लोगों को कारखानों में काम करने के लिए बाध्य किया गया। इसका अर्थ यह भी था कि वे लोग अधिक समय तक काम करके कम धन कमा रहे थे। और शहर में रहने के खर्चे बढ़ने के कारण कई परिवारों को संसाधन बढ़ाने की जरुरत पड़ी।
इसके परिणामस्वरूप, महिलाएं और बच्चे भी काम पर जाने लगे, जिनकी संख्या कुल श्रमबल लगभग 75 प्रतिशत थी। परिवारों को धन की सख्त जरुरत थी और कारखाने के मालिक कुछ विशेष कारणों से महिलाओं और बच्चों को काम पर रखने में रुचि रखते थें। उन्हें कम वेतन पर रखा जा सकता था और बच्चों को वयस्कों की तुलना में आसानी से नियंत्रण में लाया जा सकता था। बच्चों के छोटे छोटे हाथ मशीन के अम्दरुनी भागों तक आसानी से जा सकते थे। आगे जाकर मालिकों को यह भी महसूस हुआ कि बच्चे किसी भी कार्यशैली में आसानी से ढ़ल जाते हैं। बाद में बच्चों को कोयले की खदानों में गहरे और खतरनाक गड्ढों में घुसकर कोयला और अयस्क बीनने को भेजा जाता था। उनसे अठारह घंटों तक काम करवाया जाता था। इसी कारण से आठ साल के बच्चों को उन कारखानों में काम के लिए भेजा जाता था जो कपड़ा बनाते थे और एक मुनाफेवाले व्यापार का हिस्सा बनते थे।
यह अभूतपूर्व वृद्धि और मुनाफे की लालसा भी एक ऐसा सामाजिक परिवर्तन था जो औद्योगिक क्रांति के कारण ही आया था। पूंजीवाद फलने-फूलने लगा और अहस्तक्षेप नीति का वातावरण व्याप्त हो गया। सरकार की ओर से कारखानों के लिए कोई नियम-कानून नहीं बनाए गए थे अतः इससे धनवान मध्यवर्गीय मालिकों को वह रास्ता चुनने की छूट मिल गई जो सबसे ज्यादा मुनाफे का था। उन्हें अपने कर्मचारियों की सुरक्षा और सुविधाओं से कोई लेना देना नहीं था। धन की इस लगातार लालसा ने परिवारों को विभाजित करने का भी काम किया।
चूंकि हरेक परिवार के बच्चे और महिलाएं भी कारखानों में अठारह घंटों तक काम किया करते थे तो उनके पास इतना समय ही नहीं होता था कि आपस में कुछ बातचीत की जा सके। वे घर केवल सोने के लिए ही जाते थे। लोगों को अपने घर भी साझा करने होते थे जिसने आगे जाकर परिवार नामक संस्था को तोड़ने का काम किया। परिणामस्वरूप बच्चे शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए, शरीर की वृद्धि नहीं हो पाई और वे कमजोर और बीमार रहने लगे। वे असभ्यों की तरह ही बड़े होने लगे जिन्हें व्यवहार की कोई समझ नहीं थी। जीने की परिस्थितियां भयावह थी। मजदूरों के परिवार गंदी बस्तियों में रहते थे जहां साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं थी और शिशु मृत्युदर आसमान को छू रही थी। औद्योगिकीकरण की इन प्रक्रिया में पचास प्रतिशत से अधिक बच्चे वे थे जो दो वर्ष से कम की आयु में ही मौत के शिकार बन जाते थे।
जो भी हो, सामाजिक परिवर्तन हमेशा ही नकारात्मक नहीं थे। औद्योगिक क्रांति से हुए मुनाफे से अधिकांश वर्गों को अंततः लाभ ही हुआ था और 1820 तक सभी मजदूरों को मजदूरी के रूप में उचित धन मिलने लगा था। गरीबी और भूखमरी कम हुई थी जिससे सामान्य स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति में खासा सुधार हुआ। सरकार भी बच्चों को मजदूरी से दूर करने के लिए बीच-बीच में हस्तक्षेप करती रहती थी।
3.2 इंग्लैंड में विरोध
3.2.1 ल्युडाईटस्
ल्युडाईटस् 19 वी सदी के कपडा कारीगर थे जिन्होंने 1811 से 1817 तक श्रम बचाने वाली मशीनरी का विरोध किया। स्टॉकिंग फ्रेम, स्पिनिंग फ्रेम और पावर लूम के आविष्कार ने कारीगरों से उनका काम छीन लिया और उनके स्थान पर कम गुणवत्तावाले, कम मजदूरीवाले कामगारों को ला खड़ा किया। जो भी हो ल्युडाईटस् का यह नाम अचानक ही पड़ा था नेड लुड नामक युवक के नाम पर, जिसने 1779 में दो स्टाकिंग फ्रेम तोड दी थी। उसका नाम मशीनों की तोड़-फोड़ करनेवालों का पर्यायवाची हो गया। यह नाम शेर्वुड के जंगल में रहनेवाले रॉबिन हुड की तरह किसी काल्पनिक जनरल या राजा के नाम की तरह प्रसिद्ध हो गया।
लुड़िज़्म के प्रति सरकार का रुख त्वरित और दमनकारी था। ल्युडाईटस् के बारे मे सूचना देनेवाले को 50 पाऊंडस् का इनाम देने की घोषणा की गई। फरवरी 1812 में एक कानून बनाया गया जिसमें मशीनों को तोड़ना मृत्युदंड पात्र जुर्म की श्रेणी में रखा गया। नॉटिंघम और अन्य स्थानों के कारखानों की सुरक्षा के लिए बारह हजार सैनिक भेजे गए। कम से कम 23 लोगों को कारखानों पर हमला करने के आरोप में पकड़ा गया और कई लोगों को आस्ट्रेलिया में निर्वासित किया गया। कुछ हिंसा की घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो इंग्लैंड में ल्युडाईटस् का आंदोलन 1817 तक समाप्त कर दिया गया।
3.2.2 पीटरलू
भले ही ल्युडाईटस् का अंदोलन काबू में कर लिया गया था मगर इंग्लैंड में फैलता हुआ असंतोष अधिकारीगण कम न कर पाए। पहली बार मजदूर राजनीति में रुचि लेते हुए काम करने की बेहतर स्थितियां, भ्रष्टाचार में कमी और सार्वभौम मताधिकार की मांग करने लगे। 16 अगस्त 1819 को मेनचेस्टर में एक ‘सुधार सभा’ रखी गई जिसमें दो कटटरपंथियों हेनरी ओरेटर हंट और रिचर्ड कार्ली के भाषण रखे गए थे। सेंट पीटर मैदान में हुई सभा में करीब पचास हजार लोग जम हो गए और शहर के महापौर ने दंगों की आशंका के चलते सेना को बुला लिया। कैप्टन ह्यूज बर्ले के नेतृत्व में सेना ने निरपराध भीड़ पर आक्रमण किया जिससे 11 लोग मारे गए और 400 लोग घायल हुए। बाद में यह कहा गया कि सिपाहियों ने शराब पी रखी थी। मगर सरकार ने सेना का ही साथ दिया और इस सभा के कई आयोजकों को आरोपी बनाकर जेल में भेजा गया। यह घटना नेपोलियन की वाटरलू में पराजय की तर्ज पर पीटरलू कत्लेआम के नाम से जानी जाती है।
3.3 सामाजिक परिस्थितियों के कारण क्रियांवित हुए सुधार
1833 में सैडलर रिपोर्ट के आने तक निर्धन लोगों की स्थिति को शासक वर्ग लगातार अनदेखा करता आ रहा था। 1832 में कमीशन का गठन हुआ और इसके बाद इस कमीशन ने मजदूर वर्ग की समस्याओं को सुनकर उनके बारे में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। उन्हें धीरे-धीरे कई ऐसे मामले मिले जिनमें मानविधाकारों का हनन और काम के कष्टकर घंटों की बात सामने आई। इससे उन्हें अहसास हुआ कि सामाजिक अशांति और उद्वेग को रोकने के लिए सुधारों को तुरंत लागू करना होगा।
इस रिपोर्ट के प्रकाशन से पहले सरकार इन सुधारों के प्रति उदासीन थी और उसने कारखानों के मालिकों को स्वतंत्रता देने की अपनी नीति अहस्तक्षेप को ही पवित्र मान लिया था। मगर इस रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद सरकार पर सुधारों को लागू करने का दबाव बना। ब्रिटेन की सामाजिक और कार्यकारी व्यवस्थाओं में किस तरह के सुधार हुए उनकी सूची लंबी है।
3.4 औद्योगिक क्रांति का राजनैतिक प्रभाव
हालांकि ब्रिटेन एक सदी पहले ही संवैधानिक राजतंत्र घोषित हो चुका था, मगर जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अब तक चुनाव के अधिकार से दूर था। औद्योगिक क्षमता बढ़ने और मध्य वर्ग की स्थिति समाज में मजबूत होने से नए समाज के शक्ति समीकरणों को संतुलित करने के लिए चुनावी सुधार आवश्यक हो गए।
1832 तक मध्य वर्ग के करखानों के मालिकों ने अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए राजनीतिक शक्ति की मांग की जिससे 1832 में सुधार विधेयक पेश हुआ जिसके बाद पुरुषों की लगभग 20 प्रतिशत संख्या को मताधिकार प्रदान किया गया। इस विधेयक द्वारा चुनाव क्षेत्रों का भी पुनर्निर्धारण किया गया जिससे अधिकांश जनता को लाभ पहुंचाया जा सके। पहले अधिकांश चुनाव क्षेत्र देहात में थे जहां अमीरों की जमीनें हुआ करती थी। इस सुधार के बाद मध्य वर्ग तो थोड़ा-बहुत संतुष्ट हो गया मगर मजदूरों को अभी भी चुनाव में मत देने से दूर रखा गया था। 1838 में विलियम लावेट और लंडन वर्किंग मेन असोसिएशन के अन्य सदस्यों ने ‘जनता दस्तावेज़ - पीपल्स् र्चाटर’ नामक एक द्स्तावेज लिखा जिसने उस वर्ष अगस्त में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में जारी किया गया। इस दस्तावेज में संसदीय व्यवस्था में निम्न सुधारों की बात की गई थी।
सभी पुरुषों को एक सा मताधिकार - वार्षिक संसद
मतपत्रों द्वारा मतदान - संसद सदस्य बनने हेतु संपत्ति योग्यता को खत्म करना
संसद सदस्यों का वेतन - समान चुनावी क्षेत्र बनाना (चार्टिस्रवाद-बहुत अधिक बहुत कम कार्यवाही)
3.5 दुनिया के अन्य भागों पर औद्योगिक क्रांति का प्रभाव
19 वीं सदी में यूरोप में तेजी से हुई औद्योगिक प्रगति ने तैयार माल को बढ़ाया, और कच्चे माल की जरुरत भी बढ़ी। इस मांग के साथ, बढ़ते राष्ट्रीय गौरव ने इस बात की जरुरत उत्पन्न कर दी कि वे अपने देश से बाहर जाकर उपनिवेश बनाएं जिनमें इस माल को बनाया व खपाया जा सके। यूरोप के उपनिवेशों का सबसे अधिक प्रसार अफ्रीका में हुआ। 1914 तक लाइबेरिया और अबीसिनिया को छोड़कर सारा महाद्वीप यूरोपीय देशों के नियंत्रण में आ चुका था। इस विस्तारवादी समय में इंग्लैंड ने भी हांगकांग और भारत पर नियंत्रण कर लिया था। प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारंभ होने के समय इंग्लैंड का साम्राज्य दुनिया के हर महाद्वीप तक पहुंच चुका था। इन उपनिवेशों से भारी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा था जिससे ब्रिटिश समृद्धि तो बढ़ी मगर बाकी उपनिवेश कंगाल होते गए। संक्षेप में कहा जाए तो यूरोप की औद्योगिक क्रांति दुनिया के अन्य देशों के लिए बडे़ दुष्परिणाम लेकर आई। इसने ब्रिटेन को दुनिया में सबसे ताकतवर सिद्ध किया मगर इससे शुरु हुए विवाद, झगडे़ और अंदरुनी संघर्ष आज तक जारी हैं।
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