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मानवीय कार्यों में नैतिकता के सार, निर्धारक और परिणाम भाग - 2
2.0 महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ
2.1 नैतिक यथार्थवाद (Moral realism)
नैतिक यथार्थवाद इस धारणा पर आधारित है कि ब्रम्हांड में यथार्थ एवं वस्तुनिष्ठ नैतिक तथ्य या सच्चाईयाँ प्रचलित हैं। नैतिक कथन उन सच्चाईयों के बारे में तथ्यपूर्ण जानकारी देते हैं।
शायद मैं नैतिक तथ्य के बारे में प्रतिवेदन करता हूँ
‘‘हत्या करना गलत है’’
यह नैतिक यथार्थवाद है
2.2 आत्मनिष्ठावाद (Subjectivism)
यह सिखाता है कि नैतिक निर्णय किसी व्यक्ति की भावनाओं या रवैये से संबंधित कथन होते हैं और नीतिशास्त्र के कथन अच्छाई या बुराई के बारे में लक्ष्यपूर्ण सच्चाई नहीं है। आत्मनिष्ठावाद के अनुसार नैतिकता के कथन, भावनाओं, रवैयों एवं अनुभवों के प्रति उनके कथन है जो उसमें विश्वास करते हैं। यदि एक व्यक्ति कहता है कि कोई वस्तु अच्छी या बुरी है, तो वह उसके बारे में उनके सकारात्मक या नकारात्मक भावनाओं के बारे में बताता है।
शायद मैं अपनी भावनाओं के बारे में एक कथन कर रहा हूँ
‘‘मैं हत्या को स्वीकृति नहीं देता’’
यह आत्मनिष्ठावाद हैं
यह इस विचार धारा पर आधारित है कि नैतिक दावे तो स्वीकृति या अस्वीकृति से संबंधित कथन हैं। यह आत्मनिष्ठावाद के समान प्रतीत होता है पर इस विचारधारा में हमें कथाकार की उस विषय के बारे में भावनाओं से संबंधित जानकारी नहीं मिलती है किंतु केवल उन भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। अतः जब कोई एक नैतिक निर्णय लेता है तो वह उस पर उनकी भावनाएं प्रदर्शित करता है। कुछ विचारधारकों का सोचना है कि जब व्यक्ति अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है, तो वह दूसरों को अनुदेश देता है कि उस विषय में उन्हें कैसे कार्य करना चाहिए।
शायद मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा हूँ
‘‘हत्या का विनाश हो’’
यह भावना से परिपूर्ण है
निर्देशात्मक तत्वों से परिपूर्ण विचारधारा के लोग यह सोचते हैं कि नीतिशास्त्र संबंधी कथन निर्देश या अनुशंसाएं हैं। यदि मैं कहूँ कि कुछ अच्छा है, तो मैं आपको उसे करने की अनुशंसा करता हूँ। यदि मैं कहूँ कि कुछ खराब है, मैं उसे न करने की अनुशंसा करता हॅूँ। अतः किसी भी सांसारिक कथन में एक निर्देशात्मक या रूढ़िगत तत्व अंतर्निहित होता ही है। उदाहरणार्थ ‘‘झूठ बोलना गलत है’’ को दूसरे प्रकार से लिखा जा सकता है कि ‘‘लोगों को झूठ नहीं बोलना चाहिए’’।
मैं एक प्रतिबंधन या अनुदेश दे रहा हूँ
‘‘ हत्या मत करो’’
यह निर्देशात्मक है
2.5 अलौकिकतावाद (भगवान पर आधारित नीतिशास्त्र)
यह नीतिशास्त्र को धर्म से जोड़ता है। यह सिखाता है कि नैतिक नियमों का एकमात्र स्त्रोत भगवान हैं। यदि कोई भी चीज अच्छी है तो वह इसलिये क्योंकि भगवान ने ऐसा कहा है, और एक अच्छी जिंदगी जीने की यह विधि है कि हम वह करें जो भगवान चाहते हैं।
2.6 अंतर्ज्ञानवाद (अंतर्बोधवाद) (Intuitionism)
इनका यह सोचना है कि अच्छाई और बुराई यथार्थ वस्तुनिष्ठ वस्तुएं हैं जो भागों में तोड़ी नहीं जा सकती हैं। यदि कोई भी चीज अच्छी है तो वह इसलिये क्योंकि वह अच्छी है। उसकी अच्छाईयों को सिद्ध करना आवश्यक नहीं है। अंतर्बोधियों का सोचना है कि अच्छाई या बुराई वयस्क द्वारा पहचानी जा सकती है - वह कहते हैं कि मनुष्य के पास अंतर्बोधी नैतिक इंद्रियां हैं, जिसके द्वारा वे यथार्थ नैतिक सच्चाईयों के बारे में जान सकते हैं। उनके अनुसार ‘क्या अच्छा व क्या बुरा’ से
संबंधित मौलिक व नैतिक सच्चाईयां उस व्यक्ति के लिये सुस्पष्ट है जो नैतिक विषयों के प्रति अपना मन केंद्रित करता है। अतः अच्छी चीज एक समझदार व्यक्ति समझ सकता है, यदि वह कुछ समय उस पर चिंतन हेतु देता है।
एक अंतर्ज्ञानी (अंतर्बोधी) के लिए
नैतिक सच्चाईयां तार्किक बहस द्वारा नहीं खोजी जा सकती।
नैतिक सच्चाईयां अंतर्ज्ञान द्वारा नहीं खोजी जा सकती।
नैतिक सच्चाईयां भावनाओं द्वारा नहीं खोजी जा सकती।
2.7 परिणामवाद (Consequentialism)
यह एक नैतिक विचारधारा है जो काफी सारे गैर-धार्मिक लोग सोचते है कि वे प्रतिदिन उपयोग करते हैं। यह नैतिकता का आधार मनुष्यों की क्रियाओं के परिणाम पर मानती है न कि उनकी क्रियाओं पर। परिणामवाद यह सिखाता है कि मनुष्य को वह करना चाहिए जिससे सर्वाधिक मात्रा में अच्छे परिणाम उत्पन्न हों। इस विचारधारा को लोकप्रिय तरीके से यह व्यक्त करता है ‘‘सर्वाधिक लोगों के लिये सर्वाधिक सुख’’। परिणामवाद का सबसे सामान्य रूप उपयोगितावाद के विभिन्न रूप हैं, जो वह कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करती है जो सर्वाधिक आनंद प्रदान करें।
परिणामवाद की दो समस्याएं हैंः
- यह इस निष्कर्ष पर पहुंचा सकती है कि कुछ भयानक कार्य अच्छे होते हैं, एवं
- क्रियाओं के परिणामों का पूर्वानुमान एवं आकलन बहुत कठिन है।
2.8 गैरपरिणामवाद (deontological ethics)
नीतिशास्त्र संबंधी यह तथ्य क्रियाओं से संबंधित है न कि परिणामों से। यह वह विचारधारा है जिसका उपयोग लोगों द्वारा होता है जब वे ‘‘किसी चीज के नियम का संदर्भ लेते हैं’’। यह सिखाता है कि कुछ क्रियाएं स्वतः सही और गलत है, चाहे उनके परिणाम कुछ भी हों, और मनुष्य को उसी अनुसार कार्य करना चाहिए।
2.9 गुण नीतिशास्त्र (Virtue ethics)
यह नैतिक चरित्र पर ध्यान देता है न कि नैतिक कर्तव्य और नियम या क्रियाओं के परिणाम पर - इस विचारधारा के कुछ दार्शनिक सर्वव्याप्त नीतिशास्त्र संबंधी नियमों को नहीं मानते हैं। गुण नीतिशास्त्र विशेषकर व्यक्ति के जीवन जीने के तरीके से संबंधित है और उनका संबंध किसी विशेष क्रिया के आकलन से कम ही है।
यह अच्छे कार्य की विचारधारा को तब विकसित करता है, जब वह गुणी लोगों के अच्छे कामों के ज़रिये प्रदर्शित अच्छाईयों पर ध्यान देता है। सरल शब्दों में, गुण नीतिशास्त्र हमें सिखाता है कि कोई भी क्रिया सही है यदि वही क्रिया एक गुणी व्यक्ति समान परिस्थितियों में करें, और एक गुणी व्यक्ति वह है जिसके पास एक अच्छा चरित्र है।
2.10 परिस्थिति संबंधित नीतिशास्त्र (Situation ethics)
यह निर्देशात्मक शास्त्र को नहीं मानता है और तर्क करता है कि व्यक्तिगत निर्णय यथा विशेष परिस्थिति में तय होना चाहिए। नीतियों का अनुपालन करने के बजाय, निर्णयकर्ता को जनहित में सबसे उत्तम पथ ढूंढ़ने की आकांक्षा रखना चाहिए। यहां कोई नैतिक नीतियां या अधिकार नहीं हैं - प्रत्येक प्रकरण विशेष है और इसका विशेष समाधान होना चाहिए।
3.0 निरपेक्षवाद (Absolutism) और सापेक्षवाद
3.1 नैतिक निरपेक्षवाद (Moral absolutism)
कुछ लोगों का सोचना है कि कुछ इस प्रकार सर्वव्याप्त नियम हैं जो सभी लोगों पर लागू हैं। इस प्रकार की सोच नैतिक निरपेक्षवाद कहलाता है। नैतिक निरपेक्षवाद यह तर्क रखता है कि कुछ नैतिक नियम हैं जो सदैव सही हैं, एवं यह नियम खोजे जा सकते हैं और सभी पर लागू होते हैं। अनैतिक क्रियाएं - जो इन नैतिक नियमों का उल्लघंन करती हैं - अपने आप में गलत हैं, परिस्थितयों या उन क्रियाओं के परिणामों को न लेते हुए। निरपेक्षवाद मानवता के प्रति सर्वव्यापी विचारधारा लेता है - सभी के लिये नियमों का एक संग्रह - जिसके द्वारा सर्वव्यापी नियमों का निर्धारण हो सकता है। उदाहरणार्थ ‘मानवाधिकारों की घोषणा’। नीतिशास्त्र की धार्मिक विचारधारा की वृत्ति निरपेक्षवाद से परिपूर्ण होती हैं।
नैतिक निरपेक्षवाद से जुड़ी समस्याएंः बहुत से लोगों का यह मानना है कि किसी क्रिया के परिणाम या परिस्थितियां जिनमें यह किया गया हो, उस क्रिया को अच्छा या बुरा में वर्गीकृत करने हेतु महत्वपूर्ण होती है। विविधता एवं परंपरा के संदर्भ में निरपेक्षवाद तालमेल नहीं रख पाता है।
3.2 नैतिक सापेक्षवाद (Moral relativism)
नैतिक सापेक्षवादियों का यह कथन है कि इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं या विभिन्न अवधियों को देखा जाये, तो अनेक नैतिक नियम दिखाई पड़ते हैं। अतः जो ‘‘अच्छा’’ है वह उन बातों से संबंधित है जिन्हें एक विशिष्ट लोगों का समूह एक विशिष्ट समय में स्वीकारता हो। नैतिक सापेक्षवादियों का यह सोचना है कि विश्व में कुछ वस्तुनिष्ठ और खोजनीय ‘‘महान नियम’’ हैं जो सभी सभ्यताओं द्वारा अनुपालित है, ऐसे तथ्य का अस्तित्व नहीं है। उनका यह मानना है कि सापेक्षवाद मानव समाज की विविधता को स्वीकार करता है और मानव क्रियाओं की विभिन्न परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया करता हैं।
नैतिक सापेक्षवाद से संबंधित समस्याएंः बहुत से लोगों का यह मानना है कि नैतिक नियम लोगों के एक समूह के सामान्य समर्थन से ऊपर हैं - नैतिकता शिष्टाचार का बड़ा रूप है। हम में से बहुत से लोगों का यह सोचना है कि समाज के नियमों का अनुपालन किये बगैर भी हम अच्छे बन सकते है। नैतिक सापेक्षवाद की एक समस्या यह है कि यह स्थापित विचारधारा के प्रति तर्क रखती है। यदि समाज के अधिकतर लोग कुछ विशेष नियमों से सहमत हैं, तो वह प्रकरण वहीं समाप्त हो जाता है। विश्व में अधिकतम सुधार लोगों का स्थापित नीतिशास्त्र संबंधित प्रणाली के विरूद्ध जाने से हुआ है - नैतिक सापेक्षवादियों को इस प्रकार के लोगों का ‘‘दुर्व्यवहार’’ करना, पसंद नहीं है।
सामाजिक समूह का चयन नीतिशास्त्र का आधार होना स्वेच्छाचारी है। नैतिक सापेक्षवाद समाज में उत्पन्न हुये नैतिक मतभेदों को सुलझाने हेतु कोई रास्ता प्रदान नहीं करता है।
अतः, कुछ नीतिशास्त्र संबंधी नियम परिपूर्ण हैं, परंतु कई नियम संस्कृति पर निर्भर होते हैं।
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