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मानवीय कार्यों में नैतिकता के सार, निर्धारक और परिणाम भाग - 1
1.0 नैतिकता (आचार) क्या होती है?
इसकी सरलतम परिभाषा है; ‘नैतिकता नैतिक सिद्धांतों की एक प्रणाली या व्यवस्था हैं। इसका असर लोगों के निर्णय लेने की क्षमता, और वे किस तरह जीवन यापन करते है; इस पर पड़ता है। नैतिकता इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करती है, या इशारा करती है जो इस समाज और इसमें रहने वाले लोगों के लिए उपयोगी और लाभदायक हो, इसलिए इसे नैतिक दर्शन भी कहा जाता है।
नैतिकता में निम्नलिखित दुविधाओं को शामिल किया गया है
- एक अच्छा जीवन कैसे व्यतीत किया जाए?
- हमारे अधिकार या हक और जिम्मेदारियाँ क्या हैं?
- सही और गलत क्या है?
- नैतिक निर्णय - क्या सही और क्या गलत है?
नैतिकता के बारे में हमारी अवधारणाएँ धर्म, दर्शन और संस्कृतियों से निकाली गई हैं।
1.1 नैतिकता के दृष्टिकोण
आज के दार्शनिक नैतिकता के सिद्धांतों को तीन क्षेत्रों में विभाजित करने की ओर प्रवृत्त हैं - मेटा (लक्ष्य) नैतिकता, मानक आचार संहिता और आवेदित (अप्लाईड) नैतिकता।
मेटा (लक्ष्य) नैतिकता विश्लेषणात्मक दर्शन की एक शाखा है, जो पड़ताल करती है, स्थिति (दर्जा), आधारशिला (नींव) और नैतिक मूल्यों के दायरे और गुणों की। नैतिकता क्या है इसी बात की ओर मेटा (लक्ष्य) नैतिकता केंद्रित हैं। मेटा नैतिकता को ‘‘दूसरे-क्रम’’ का नैतिक सिद्धांत भी कहा जाता है, जिससे कि उसमें और पहले-क्रम की मानक आचार संहिता में अंतर किया जा सके।
मानक आचार संहिता का केन्द्रीय प्रश्न यह पता लगाना है कि किस तरह से नैतिक मानकों पर पहुँचा जा सके और उन्हें उचित या न्यायोचित माना जा सके। इस प्रश्न के उत्तर दो व्यापक श्रेणियों में आते हैं - आचार-विषयक और बंधनकारक। उनमें मुख्य अंतर यह है कि नीतिशास्त्र से संबधित सिद्धांत अंतर्निहित मूल्यों की सोच पर आधारित मापदंड की स्थापना करने हेतु नहीं है, जबकि चरमकारणवादी सिद्धांत अच्छाई और मूल्य, जो कि क्रियाओं द्धारा प्रदर्शित है, उनके नैतिक मूल्य के प्रमुख आधार के बारे में सोचते हैं। दूसरे शब्दो में, नीतिशास्त्र रवैया कुछ कार्य करने प्रेरित करती है, कुछ मूल्य के कारण या वे अंतर्निहित सही है, जबकि चरमकारणवादी सिद्धांत कुछ प्रकार के कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं क्योकि उनके परिणाम अच्छे रहेंगे। अतः नीतिशास्त्र का सिद्धांत दायित्व, कर्तव्य, सही या गलत से संबंधित सोच पर जोर ड़ालता है जबकि चरमकारणवादी सिद्धांत अच्छी, मूल्यवान एवं वांछनीय बातों पर जोर ड़ालता है। नीतिशास्त्र सिद्धांत औपचारिक अथवा संबधी मापदंड़ को निर्धारित करता है जैसे समानता अथवा निष्पक्षता। चरमकारणवादी सिद्धांत विरोधाभास द्वारा ऐसी बातों पर जोर ड़ालता है जिसका मापदंड़ निष्पक्षता हो जैसे हर्ष अथवा आनंद।
व्यावहारिक नीतिशास्त्र एक दार्शनिक परीक्षण है जो एक नैतिक आधार से जुड़ा है, उन विशेष मुद्दों को लेकर जो निजी एवं सार्वजनिक जीवन से जुडे़ हैं, जो कि नैतिक निर्णय के अधीन है। मानव जीवन के अनेक क्षेत्रों में नीतिगत सही प्रकार की क्रिया को पहचानने हेतु उपयोग में लाए दार्शनिक विधियों का प्रयास है। उदाहरणार्थ, जैवनीतिशास्त्र कुछ क्षेत्र में सही तरीका पहचानने से जुड़ा हुआ है जैसे इच्छा मृत्यु, सीमित संख्या में उपलब्घ स्वास्थ्य संसाधनों का आंवटन, या शोध में मानव अविकसित भ्रूण का उपयोग करना। पर्यावरणीय नीतिशास्त्र ऐसे प्रश्नों से जुड़ा हुआ है जैसे मुखबिर के जनता के प्रति कर्तव्य बनाम उनके नियोक्ताओं के प्रति वफादारी। अतः यह व्यावसायिक दर्शन का एक क्षेत्र है जहां अच्छा पारिश्रमिक दिया जाता है, और जिसे उच्च समान दिया जाता है।
व्यवहारिक नीतिशास्त्र, निदेशात्मक शास्त्र से भिन्न है, जो इस बात पर ध्यान देती है कि लोगों को क्या सही और क्या गलत के बारे में मानना चाहिए, और मेटा नीतिशास्त्र से भिन्न है, जो नैतिक कथनों के वृत्ति से जुडी हुई है।
व्यवहारिक नीतिशास्त्र का एक उभरता हुआ अध्ययन (पोर्टर 2006) छः विषयों का उपयोग करता है जिसके तहत राष्ट्रीय एंव वैश्विक स्तर पर संस्थाओं एवं सामाजिक विषयों पर सुधार होना हैं।
- निर्णय नीतिशास्त्र, या नैतिक सिद्धांत और नैतिक निर्णय प्रक्रियाएं
- व्यावसायिक नीतिशस्त्र, या व्यावसायिकता में सुधार करने का नीतिशास्त्र
- स्वास्थ्य नीति शास्त्र, या हमारे मूलभूत स्वास्थ्य में सुधार का नीतिशास्त्र
- व्यापार नीतिशास्त्र, या व्यक्ति आधारित नैतिकता, ताकि संगठन की नैतिकता में सुधार किया जा सके
- संगठनात्मक नीतिशास्त्र, या संगठनों के बीच का नीतिशास्त्र
- सामाजिक नीतिशास्त्र, या विभिन्न देशों और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में नैतिकता
व्यावहारिक नीतिशास्त्र अनेक विवादास्पद विषयों जैसे युद्ध, प्राणी अधिकार, और सख्त सजा पर विचार करता है।
1.2 नीतिशास्त्र का उपयोग
नीतिशास्त्र अनेक प्रश्नों का समाधान करता है। यदि नीतिशास्त्र के सिद्धांतों को आचरण में लाभदायक होना है, तो उन्हें मनुष्य के व्यवहार को निर्धारित करना पड़ेगा। कुछ दार्शनिकों का सोचना है कि नीति शास्त्र यही करता है। वे तर्क देते हैं कि यदि मनुष्य को इस बात का एहसास होता है कि कोई भी कार्य, नैतिक रूप से अच्छा है, उस कार्य को ना करना, उस व्यक्ति के लिये तर्क के विपरीत है। परन्तु मनुष्य अक्सर तर्कहीन रूप से व्यवहार करते हैं। जब उन्हे विशेष रूप से कार्य करना होता है, उस रास्ते पर न जाकर अपने मन के अनुसार चलते हैं।
यद्यपि नीतिशास्त्र, नैतिक विषयों पर सोचने हेतु अच्छे साधन प्रदान करता है। नीतिशास्त्र हमें एक नैतिक नक्शा देता है, एक ढांचा, एक माध्यम, जिसके द्वारा जटिल विषयों से हम अपना रास्ता ढूँढ़ निकाल सकते हैं।
नीतिशास्त्र के माध्यम से एक नैतिक मुद्दे पर बहस कर रहे दो व्यक्ति, इस बात पर पहुंच सकते है कि जिस तथ्य पर उनका मतभेद है वह उस विषय का एक छोटा सा भाग है और बाकि सभी भागों पर वह सामान्यतः सहमत हैं। अतः इस द्वारा बहस से उत्पन्न हुई अप्रियता से बचा जा सकता है, और समस्या के निराकरण हेतु रास्ता भी निकाला जा सकता है।
1.3 नैतिकता की सीमाएँ
कभी-कभी नीतिशास्त्र मनुष्य को वह सहायता नही देता जो वह सही में चाहता है। नीतिशास्त्र हमेशा नैतिक समस्याओं का एक मात्र सही उत्तर नही दे पाता हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि नीतिशास्त्र संबधी समस्याओं का एकल सही उत्तर नही हो सकता है, पर कुछ नियमों का संग्रहण हो सकता है, जो उन समस्याआें पर लागू हो सकता है ताकि उनसे ग्रसित व्यक्तियों को कुछ ठोस विकल्प मिल सके। कुछ दार्शनिकों का यह सोचना है कि नीतिशास्त्र केवल दुविधा को मिटा सकता है और मुद्दों पर स्पष्टीकरण ला सकता है। हांलाकि हर व्यक्ति पर ही निर्भर है कि वह अपने-अपने निष्कर्ष पर पहुंच सके।
एक समस्या नीति शास्त्र के साथ यह है कि उसका किस तरह से एक शस्त्र के रूप में उपयोग किया जाता है। यदि एक समूह एक विशेष क्रिया को ”गलत” मानता है, तो वो नैतिकता को न्यायसंगत का आधार मानकर उन व्यक्तियों पर आक्रमण करता है जो उस क्रिया को आचरण में लाते हैं।
1.4 नीतिशास्त्र और जनता
नीतिशास्त्र के केन्द्र में उस व्यक्ति या तथ्य पर चिंता है जो हमसे और हमारी इच्छाओं और स्वंय के स्वार्थ से परे हो। नीतिशास्त्र अन्य लोगों की भलाई, समाज की भलाई, भगवान की भलाई, बहुत अच्छी भलाई, इत्यादि से जुडा हुआ है। नीतिशास्त्र ना केवल किसी क्रिया की नैतिकता के बारे में है, बल्कि जिदंगी जीना क्या होता है, के बारे में भी है। गुण नीतिशास्त्र विशेषकर मनुष्य के नैतिक चरित्र के बारे मे है। पूर्व में कुछ लोग यह सोचते थे कि नीतिशास्त्र से संबधित समस्याओं का हल निम्नलिखित में से एक तरीके से होना थाः
- यह जानना कि भगवान मनुष्य से क्या करवाना चाहते थे
- नैतिक मसलों एवं समस्याओं के बारे में गहन चिंतन करना
यदि मनुष्य ऐसा ही करता है तो वह सही निष्कर्ष की और बढ़ता है। पर वर्तमान में दार्शनिक भी इस बात से आश्वस्त हैं कि नीतिशास्त्र से संबधित एक संतोषजनक और संपूर्ण सिद्धांत का निर्माण हो जो कि निष्कर्ष तक पहुँचने हेतु सहायक बने। अपितु, वर्तमान में दार्शनिक यह शिक्षा देते है कि नीतिशास्त्र मनुष्य को निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए नही बना है, बल्कि निर्णय लेने के लिए बना है।
दर्शनशास्त्र हमें उन नैतिक तरीकों, वार्तालापों, एवं मूल्य प्रणालियों को पहचानने में सहायक होता है जिन्हें किसी समस्या पर उपयोग में लाया जा सके। किंतु अंततः हर मनुष्य को परिस्थिति पहचान कर स्वयं के निर्णय लेने होते हैं।
1.5 नीतिशास्त्र संबंधी प्रतिवेदनों की विशेषताएं
नीतिशास्त्र संबंधी यथार्थवादियों का यह सोचना है कि मनुष्य उन नीति शास्त्र संबधित सत्य को खोज निकालते हैं जो पहले से ही मौजूद होते हैं। नीतिशास्त्र संबधी गैर यथार्थवादियों का सोचना है कि मनुष्य नीतिशास्त्र संबधित तथ्यों का निर्माण कर लेते हैं। नीतिशास्त्र संबधी यथार्थवादियों की यह समस्या है कि मनुष्य विविध प्रकार के व्यक्तिगत आचरणों एवं नैतिक धारणाओं का अनुसरण करते हैं। अतः यदि नीति शास्त्र संबधित कुछ सही तथ्य हैं, तो उन्हें ढूंढ निकालना बहुत मुश्किल है।
नीति शास्त्र संबधित यथार्थवाद का यह अभिप्राय है कि नैतिकता के मापदंड, जैसे त्रुटिपूर्ण होना, और उसके समान नैतिक तथ्य जैसे ‘वह क्रिया जो गलत थी’, दोनों प्रचलित हैं, ताकि जब यह कहा जाए कि एक निश्चित क्रिया गलत थी, तब यह कहा जा रहा है कि कहीं न कहीं यह ‘गलत’ मौज़ूद रहा है, और ऐसा होना ही अगर उस क्रिया को गलत होना है तो।
1.6 नीतिशास्त्र और विचारधारा
कुछ दार्शनिकों के अनुसार नीतिशास्त्र एक राजनैतिक विचारधारा का संहिताकरण है और नीतिशास्त्र का कार्य उन्हें व्यक्त करना, अमल में लाना एवं विशिष्ट राजनैतिक मान्यताओं का अभिरक्षण करना है। इनके अनुसार नीतिशास्त्र एक साधन है जो प्रभावी राजनैतिक समूह द्वारा उपयोग में लाया जाता है ताकि सभी नियंत्रित रहें। कुछ लेखक यह सुझाव देते हैं कि सत्ता से परिपूर्ण गुट नीतिशास्त्र दूसरे लोगों पर थोपते हैं जिसके द्वारा उन पर नियंत्रण हो जाता है, परंतु अपने निजी आचरण पर यह नीतिशास्त्र संहिता लागू नहीं करते।
दार्शानिक नैतिकता के चार स्त्रोत बताते हैं।
1. भगवान और धर्म
2. मानवीय अंतःकरण और अंतर्बोध
3. तार्किक व नैतिक लागत-लाभ से क्रियाओं और उनके प्रभाव का विश्लेषण (अच्छे मनुष्यों का उदाहरण)
4. प्रत्येक स्थिति में लोगों के लिए सबसे अच्छा हो ऐसी इच्छा
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