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बोधगम्यता अभ्यास
निर्देशः नीचे कुछ गद्यांश दिये गये हैं, जिनके पश्चात् उन पर आधारित प्रश्न पूछे गये हैं। आप से आशा की जाती है इन गद्यांशों को सावधानी पूर्वक पढ़ने के पश्चात् आप प्रश्नों के उत्तर देंगे।
गद्यांश 1
किसी ने एक बार कहा था कि एक विद्यालय, एक अस्पताल और एक कारावास एक सी शैली में बनाये गये हैं। वे लोगों को अवरोधित कर उन की मानसिकता पर प्रभाव डालते हैं। विद्यालयों के बारे में मैं सोच कर हैरान हो जाता हूँ कि इसके अंदर के कुछ सहवासी आखिर यहाँ आये ही कैसे।
मुझे जैसे निर्देश दिए गए थे वैसा मैंने किया। मैंने अपने काम पूर्ण किये। विश्वसनीय लोगों के साथ बरामदे में मैंने घंटों केवल प्राचार्यों की एक झलक पाने की उम्मीद में बिताये। मैंने बुद्धिमान, पढ़े-लिखे व्यावसायिक लोगों को लाइन में खडे-खडे घबराहट के मारे अपनी हथेलियों से पसीना पोंछते हुए पूरी तरह से टूटी हुई स्थिति में देखा है। सामूहिक प्रायश्चित, परंतु हमारे पाप क्या थे? अफवाहें वातावरण में व्याप्त थीं। हमने अपनी टिप्पणियाँ एक दूसरे के साथ बदलीं, क्या करना है क्या नहीं करना है इन पर चर्चाएँ हुईं। मुझे ‘‘प्रबुद्ध प्राचार्यों के बारे में, ‘अनौपचारिक और खुशनुमा विद्यालयों’’ के बारे में बताया जाने लगा, और मैं उन रास्तों पर चल पड़ती थी। दिन भर की दौड़ धूप के बाद मैं थकी-हारी दिन की समाप्ति पर घर वापस लौटती थी। वे सारे के सारे बिलकुल एक जैसे ही थे। भारत! तुम्हें शर्म आनी चाहिए।
हाँ, इस देश में बहुत ही ज्यादा लोग हैं। हाँ, ‘‘अच्छे विद्यालय” गिने-चुने ही हैं। हाँ, प्राचार्य अत्यधिक दबाव में हैं। परंतु क्या इससे अशिष्ट, मनमाने व्यवहार का औचित्य साबित होता है? मुझे मिलने का समय दिया गया था, मैं तब तक इंतजार करता रही जब तक मैं अपने वहाँ आने का मूल कारण ही भूल गया, और किसी ने भी माफी नहीं मांगी। एक नर्सरी स्कूल ने मुझे काफी गर्व के साथ बताया, कि वे अपने बच्चों को शिष्टाचार सिखाते हैं। शायद उन्हें अपने कर्मचारियों के लिए शाम की कक्षाएँ शुरू करनी चाहिए थीं। कुछ स्कूलों में प्रक्रिया हथियार बंद सुरक्षा रक्षकों के साथ शुरू होती है, जो आपको प्रवेश द्वार पर ही रोक देते हैं। एक अवसर पर, सुरक्षा रक्षक ने ही मुझे पूछा कि मैं किस कक्षा के लिए आवेदन करना चाहता हूँ। वसंत विहार के एक अपेक्षाकृत अच्छे स्कूल में प्राचार्य ने अदघ्श्य रह कर अपना रहस्य कायम रखा। मुझे जालीदार दरवाजों के माध्यम से अपने नोट्स उन तक पहुंचाने पड़े।
एक बार सुरक्षा रक्षकों से पीछा छुड़ाने के बाद आप कार्यालय के अंदर प्रविष्ट हो जाते हैं, जहाँ आपका सामना ऐसे लोगों से होता है जिन्हें, ‘जन्म तारीख’, ‘हासिल किया हुआ प्रतिशत’ और ‘पिता का व्यवसाय’ इसके अलावा कोई भी बात समझने में परेशानी होती है। यदि आपका ‘मामला’ अलग है, तो लोग आपको सपाट, नासमझ नजरों से घूरते नजर आएंगे। शायद विद्यालयों को अपनी फीस, दान की रकम, रिश्वत की रकम, या उसे वे चाहे जो भी कहते हों, उसका एक भाग पड़े-लिखे समझदार कार्यालय कर्मचारियों की नियुक्ति पर निवेश करना चाहिए। आप अपने गुस्से पर काबू में रख कर शांति से, धीरे-धीरे हो सके उतनी आसान भाषा में फिर से अपनी बात समझाते हैं।
अंत में, आप हताश हो जाते हैं और जो भी मिल रहा है-केवल खड़े रहने की जगह, यदि कोई प्रवेश रद्द होता है तो उसकी जगह इस प्रकार की कोई भी जगह-स्वीकार करने को तैयार हो जाते हैं। निष्कर्ष क्या है, कि दरवाजा आपके मुँह पर बंद होने के पहले आप अपना पैर अंदर सुरक्षित करना चाहते हैं।
यदि आप कहेंगे की आप एक बार अंदर की सारी व्यवस्थाओं को देखना चाहेंगे, तो स्कूलवाले सुरक्षात्मक हो जाते हैं (अर्थात, जेल से इसकी तुलना गलत नहीं है) यदि मेरी साख की जाँच सुरक्षा रक्षक से लेकर बोर्ड ऑफ गवर्नर्स तक सारे लोग कर सकते हैं, तो मुझे भी यह अधिकार है, कि मैं सारी चीजों की जाँच-पड़ताल कर लूँ। एक स्कूल तो मुझसे स्कूल दिखाने की अनुमति प्रदान करने के लिए लिखित आवेदन की माँग कर रहा था। हालाँकि, मुझे कक्षाएँ नहीं दिखाई जायेंगी। क्यों? मैं किसी संयुक्त राष्ट्र हथियार जाँच दाल की सदस्य तो नहीं था। मैं तो केवल एक अदना सा पालक था, जो देखना चाहता था की उसकी बेटी किस प्रकार के वातावरण में पढ़नेवाली है। क्या यह कोई अनुचित माँग है कि स्कूल समय-समय पर एक खुला दिन रखें ताकि पालकों को चुनने में आसानी हो?
हालाँकि, इस विषय में हमें चुनाव का अधिकार ही नहीं है। हम साक्षात्कार की मूर्खता के आगे भी झुक जाते हैं, क्योंकि हमें झुकना पढ़ता है। हम अपने बच्चों को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए फटकारते हैं क्योंकि उन्हें अच्छा प्रदर्शन करना पढ़ता है। वसंत कुँज के एक स्कूल में जब मैं साक्षात्कार के लिए अंदर पहुंचा तो मेरा सामना एक सन्नाटे से हुआ। किसी ने मुझे अभिवादन नहीं किया, किसी ने अपना परिचय नहीं दिया। कई बेकार के सवालों-जवाबों के बाद मुझे मेरी आर्थिक स्थिति के बारे में पूछा गया, यह भी पूछा गया कि मेरा बच्चा मेरा अपना है या गोद लिया हुआ है, जैसे कि इन सारी बातों से कोई फर्क पढ़नेवाला था। जब मैं विदेश में था तो मुझे बार-बार यह बताया गया था कि भारतीय पद्धति बहुत ही अच्छी थी, ‘हम साढ़े’ तीन वर्ष की उम्र में शुरू कर देते हैं। हमारे बच्चों को कितना कुछ आता है। शायद होगा, परंतु यूरोप में, जहाँ बच्चे काफी बड़े हो जाने के बाद स्कूल जाना शुरू करते हैं, फिर भी वे किसी भी दृष्टि से अपंग, मूर्ख या अज्ञानी नहीं होते। भारत का लेखकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और नोबेल पुरस्कार विजेताओं पर एकाधिकार नहीं है। दूसरे देशों ने भी यह एहसान किया है।
हम कब तक कुँए के मेंढक बने रहेंगे? यूरोप में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया रिफॉर्मेशन के बाद शुरू हो गई थी। उसका एक मुख्य तत्व था, परीक्षाओं से आजादी और महत्वपूर्ण सोच। हम भारतीय केवल हमारे प्राचीन को पुनर्चित्रित करते रहते हैं। ऑक्टेविओ पाज़ इसे ‘मनोवैज्ञानिक टीका’ कहते हैं, जो आलोचना से हमारी सुरक्षा करता है। और इसीलिए हम परिवर्तन का विरोध करते हैं। यदि आप सुधारों, वैकल्पिक पद्धतियों की बात करने लगेंगे तो आप के विचारों की तोड़ के रूप में वेदों, पुराणों के उदाहरण प्रस्तुत किये जाएंगे। भगवान के लिए भारत अब तो जाग जाओ! जिस प्रकार एक एकल विश्वास नहीं है, एकल भाषा नहीं है उसी प्रकार पद्धति भी एकल नहीं हो सकती।
जर्मनी के हैडेलबर्ग विश्वविद्यालय में मुख्य इमारत पर घोषवाक्य है ‘‘जीवित भावना को समर्पित’’ हमें अभी बहुत-बहुत लंबा रास्ता तय करना है।
- गद्यांश में प्रयुक्त ‘‘व्याप्त’’ शब्द का विशिष्ट अर्थ क्या है?
- बुरा
- बड़े पैमाने पर
- सरगर्मी
- जीर्ण-शीर्ण
- दूसरा पैराग्राफ विशद करता है कि
- लेखिका कई विद्यालयों में गयी और हर बार उसके हाथ निराशा ही लगी।
- कष्टों को कम करने के लिए अच्छे प्राचार्य भी थे।
- विद्यालय व्यवस्थापन को नए प्रवेशों की आवश्यकता नहीं है।
- इनमें से कोई नहीं।
- लेखक कहना चाहता है कि
- विद्यालय का प्रत्येक कर्मचारी त्रस्त है, और सुनता ही नहीं है।
- प्राचार्यों का व्यवहार काफी घमंड़ी था।
- अधिकांशतः उसका सामना अच्छे खुशनुमा व्यवहार से नहीं हुआ।
- इनमें से कोई नहीं
- इस गद्यांश की मुख्य विषयवस्तु क्या है जो लेखक बताना चाहता है?
- भारत के स्कूल, स्कूल और बच्चों को पढ़ानेवाली संस्थाएँ कहलाने के लायक नहीं हैं, और हालाँकि अधिकांश पालक यह जानते हैं, फिर भी इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सकता।
- अधिकांश स्कूलों में सुरक्षा रक्षक से लेकर प्राचार्य तक सभी कर्मचारी पालकों के साथ खराब व्यवहार करते हैं।
- अधिकांश स्कूल इस विचार से सहमत नहीं हैं कि पालकों को उनके स्कूल परिसर को देखने दें।
- उनकी पद्धतियों में कई खामियाँ होने के बावजूद भारतीय लोग परिवर्तन के प्रति सहमतिपूर्ण दृष्टिकोण नहीं रखते।
- गद्यांश के स्वर का सर्वोत्कृष्ट वर्णन किस रूप में किया जा सकता है?
- हताशा प्रदर्शित करनेवाला
- आश्चर्य प्रदर्शित करनेवाला
- आलोचनात्मक
- खौफनाक
गद्यांश 2
एक जमाने में एक बच्चा था जो काफी घूमता-फिरता था, और काफी चीजों के बारे में सोचता था। उसकी एक बहन थी, वो भी बच्ची थी, और हमेशा उसके साथ रहती थी। ये दोनों पूरे दिन इधर-उधर भटकते रहते थे। वे फूलों की खूबसूरती में घुमते थे, वे आसमान की ऊंचाइयों और नीलेपन में घुमते थे, वे चमकदार पानी की गहराइयों में घुमते थे, वे ईश्वर की अच्छाइयों और शक्तियों में घूमते थे, जिसने इस सुंदर विश्व का निर्माण किया था।
कभी-कभी वे एक दूसरे से कहते थे, मान लो यदि दुनिया के सभी बच्चे मर जाते हैं, तो क्या फूलों, पानी, और आसमान को उनके लिए दुःख होगा? उनका विश्वास था कि उन्हें दुःख होगा। क्योंकि, वे कहते थे, कलियाँ फूलों के बच्चे थीं, और छोटे-छोटे खिलखिलाते झरने जो पहाड़ियों के नीचे कलरव करते हुए बहते हैं, वे पानी के बच्चे हैं, और छोटे-छोटे चमकदार धब्बे, जो रात-भर आसमान में लुका-छिपी खेलते हैं, वे निश्चित रूप से तारों के बच्चे होंगे, और वे सभी मनुष्य के बच्चों के रूप में उनके साथी खिलाड़ियों के निधन से दुखी होंगे।
एक चमकदार तारा था जो अन्य सभी तारों से पहले आसमान में, चर्च के शिखर के पास कब्रों के ऊपर दिखाई देता था। वे सोचते थे कि वह अन्य तारों की अपेक्षा अधिक बड़ा और ज्यादा सुन्दर था, और वे दोनों खिड़की के पास हाथ में हाथ डालकर रोज उसकी राह देखते थे। जो भी उसे पहले देखता था, चिल्ला पघ्ता था ‘‘मुझे वो तारा दिख रहा है!‘‘ और यह जानते हुए कि वह कब और कहाँ उगेगा, वे दोनों अक्सर इकट्ठे चिल्लाते थे। इस प्रकार उन दोनों की उसके साथ इतनी दोस्ती हो गई थी, कि बिस्तेर में सोने से पहले वे एक बार फिर से उसे देखते थे, मानों उसे शुभ रात्रि कहने के लिए और जब वे सोने के लिए जाते थे, तो प्रार्थना करते थे ‘‘ईश्वर तारे का भला करे!‘‘
लेकिन जब वह जवान थी, ओह बहुत-बहुत जवान, तो अचानक बहन मुरझाने लगी, और इतनी कमजोर हो गई, कि अब वह रात को खिड़की के पास खड़ी नहीं रह पाती थी और फिर वह बच्चा दुखी मन से अकेला ही देखता था, और जब उसे तारा दिखाई देता था, तो बिस्तर की ओर मुड़कर फीके चेहरे के साथ बिस्तर में पड़ी अपनी बहन से कहता था ‘‘मुझे तारा दिख रहा है!‘‘ और फिर उस सूखे चेहरे पर एक मुस्कान आती थी और एक कमजोर आवाज कहती थी, ‘‘ईश्वर मेरे भाई और तारे का भला करे!‘‘
और फिर समय आ गया, बहुत ही जल्दी! जब बच्चा अकेला ही बाहर देखता था, और जब बिस्तर में कोई चेहरा नहीं था, और जब कब्रों के बीच एक छोटी सी कब्र थी, जो पहले नहीं थी, और तब तारे की लंबी-लंबी किरणें उसकी ओर आती थीं, जिन्हें वह अपनी आँसुओं भरी आँखों से देखता था।
अब ये किरणें इतनी चमकदार थीं, और वे धरती से स्वर्ग तक एक इतना चमकदार रास्ता बनाती थीं, कि जब बच्चा अकेला अपने बिस्तर में सोता था, तो वह उस तारे के सपने देखता था, अपनी जगह पड़े-पड़े सपने में लोगों को उस चमकदार रास्ते से परियों द्वारा ले जाई जा रही एक रेल गाडी देखता था। और वह तारा खुलते हुए, प्रकाश की एक सुन्दर दुनिया दिखता था, जहाँ और कई सुन्दर परियां उनकी अगवानी के लिए प्रतीक्षारत होती थीं।
ये सभी परियां जो प्रतीक्षा कर रही होती थीं, अपनी दमकती हुई आँखें उन लोगों पर गड़ा देती थीं जिन्हे तारे के अंदर ले जाया गया है और उनमें से कई उन कतारों में से बाहर आकर, जिनमें वे प्रतीक्षा कर रही थीं, उन लोगों की गर्दनों पर गिर जाती थीं, और उन्हें बहुत कोमलता से चूमती थीं, और उनके साथ प्रकाश के रास्ते पर चली जाती थीं, और उनके लिए इतनी खुश होती थीं, कि वह अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े खुशी के मारे रो पड़ता था।
पर ऐसी कई परियां थीं, जो उनके साथ नहीं जाती थीं, और उनमें से एक को वह जानता था। वह बीमार चेहरा जो कभी बिस्तर पर पघ रहता था, महिमामंडित और चमकदार था, परंतु उसका दिल उन सभी मेजबानों में से अपनी बहन को ढूंढ लेता था।
उसकी बहन की परी तारे के प्रवेश के पास रुकी रहती थी, और जो उन्हें वहाँ ले कर गईं थीं उनकी नेता से पूछती थी -
‘‘क्या मेरा भाई आया है?‘‘
और वह कहता था, ‘‘नहीं‘‘।
वह आशान्वित नजरों से वापस मुड़ रही थी, जब बच्चा अपनी बाँहें फैलाकर चिल्लाया, ‘‘ओह बहन, मैं यहाँ हूँ! मुझे ले चलो!‘‘ और फिर वह अपनी दमकती हुई आँखें उसकी ओर मोड़ती थी और रात हो जाती थी, और तारा कमरा में चमक रहा होता था, अपनी लंबी किरणें उसकी ओर फैंकता था, जिन्हें वह अपनी आँसुओं से भरी आँखों से देखता रहता था।
उस घड़ी से वह बच्चा उस तारे की ओर उस घर के रूप में देखता था जहाँ, उसका समय आने के बाद, उसे जाना है और वह सोचता था,कि वह केवल धरती का ही नहीं था, बल्कि तारे का भी था,जहाँ उसकी बहन की परी पहले चली गई थी।
- बच्चों को लगा कि यदि उनकी मृत्यु हो गई तो प्रकृति पर इसका प्रभाव पड़ेगा। उन्हें ऐसा लगने का क्या कारण था?
- पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने के लिए प्रकृति को मनुष्यों की आवश्यकता होती है।
- वे प्रकृति की सारी चीजों को अपने मित्रों के रूप में देखते थे, और उन्हें ऐसा लगता था कि प्रकृति में भी ऐसा ही होगा।
- वे बच्चे थे जो हर एक चीज को अपने सहचरों के रूप में मानते थे।
- वे जानते थे कि प्रकृति में हर चीज का एक जीवन होता है, और वे अपने आप को इस जीवन से जोड़ पाने में सक्षम थे।
- उन भाई बहन के उस अनुष्ठान का क्या महत्त्व है (एक विशेष तारे को हर रात देखने के)?
- यह दिखाता है कि वे हमेशा साथ-साथ रहते थे और इसलिए एक दुसरे के बेहद करीब थे।
- यह दिखाता है कि वह तारा अन्य तारों की अपेक्षा अधिक चमकदार और विशिष्ट था।
- यह दिखाता है कि उन भाई-बहन के पास ऐसी बातें थीं जो केवल वे आपस में साझा करते थे, और चूंकि वे पूरे समय साथ-साथ रहते थे अतः एक दूसरे के काफी करीब थे।
- उन भाई-बहन के, उन्हें छोड़ कर, और कोई साथी नहीं थे और इसलिए वे आपस में काफी करीब थे, ऐसा विशेष रूप से इसलिए था क्योंकि वे हमेशा साथ-साथ रहते थे।
- गद्यांश के बाद के भाग में ऐसा कहा गया है कि लड़का अकेला खिड़की पर खड़ा है। इसका अर्थ है कि
- वह और उसकी बहन अब एक दूसरे से बातचीत नहीं करते थे।
- उसकी बहन कहीं और पढ़ने के लिए चली गई थी।
- उसकी बहन की मृत्यु हो चुकी थी।
- वे अब बढ़े हो चुके थे और उसकी शादी हो चुकी थी।
- लड़का स्वप्न देखता है कि उसकी बहन एक परी बन गई थी और उस तारे में रहती थी जिसे वे साझा करते थे। इसका यह मह्त्व है कि
- लड़का सोचता था कि जिस जगह का महत्त्व उसकी बहन के जीवन में जितना था उतना ही उसके अपने जीवन में, तो वह जगह थी वह तारा।
- लड़के को लगता था कि उसकी बहन इतनी अच्छी थी कि वह एक परी ही हो सकती थी और उसकी उपस्थिति के लिए जो सबसे उपयुक्त तारा हो सकता था वह वाही तारा था जिसे वे साझा करते थे।
- लड़के को लगता था कि उसकी बहन इतनी अच्छी थी कि वह एक परी ही हो सकती थी और ऐसे अच्छे लोगों की उपस्थिति के लिए जो सबसे उपयुक्त जगह हो सकती थी वह वाही थी जो वे आपस में साझा करते थे।
- लड़का सोचता था कि उसकी बहन एक परी होने की दृष्टि से पर्याप्त अच्छी थी, उसके लिए बेचौन रहती होगी जैसा वह अपनी बहन के लिए बेचौन रहता था और वह एक ऐसी विशेष जगह पर ही रह सकती थी जो वे आपस में साझा करते थे।
- गद्यांश का अंतिम पैराग्राफ इस बात के बारे में कहता है कि वह लडका अपनी बहन के साथ रहना चाहता था, इसलिए उस तारे में जाना चाहता था, और सोचता था जैसे वह इस दुनिया के लिए बना ही नहीं था। इसका क्या अर्थ है?
- यह कि लड़का मरना चाहता था।
- यह कि लड़का अंतरिक्ष यात्री बनना चाहता था और अपनी बहन से मिलने उस तारे में जाना था।
- यह कि लड़के को धरती पर अपने जीवन के प्रति अपनेपन की भावना नहीं बची थी।
- यह कि लड़के को मृत्यु के महत्व का एहसास नहीं था और अपनी बहन के साथ होना चाहता था, चाहे वह कहीं भी क्यों ना हो।
गद्यांश 3
भारत हर दो महीनों में एक सिंगापुर पैदा करता है। एक वर्ष के दौरान छह। यह बात उस छोटे से देश के प्रधानमंत्री ने पिछले मंगलवार को भारत के चुनिंदा उद्योगपतियों को बताई। उस समय वहाँ सब लोगो ने खूब हँसी के ठहाके मारे और खूब तालियाँ बजी। गोह चोक टोंग शायद आश्चर्य चकित रह गए क्योंकि वे यह बात एक प्रशंसा के रूप में नहीं कह रहे थे। यह देश जो सिंगापुर पैदा करता है वे छोटे आशियाई शेर नहीं हैं-वे अर्थव्यवस्थाएं जो दुनिया को तंग छोटे वसंत में टक्कर देने के लिए तैयार हैं। उनका आशय तो इस देश की अराजक रूप से बढ़ती हुई जनसँख्या से था, जो सिंगापुर से तीनसौ गुना तो हो ही चुकी थी।
भारतीय उद्योग परिसंघ में गोह द्वारा शालीनता से की गई इन प्रारंभिक टिप्पणियों ने, देश के आर्थिक विकास और उदारीकरण के बारे में उद्योगों और सरकार के प्रतिनिधियों के दिमाग में जो भी खुशफहमियाँ थीं, उनकी धज्जियाँ उड़ा दीं। सुनने वालों में जो अधिक संवेदनशील थे वे कसमसा कर रह गए।
उन्होंने, जिसे दोनों देशों के बीच विरोधाभास कहा, उनसे अपनी बात शुरू की। केवल आकार और जनसँख्या जैसे वे विरोधाभास नहीं जो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे, बल्कि उनका विस्तार महत्वपूर्ण सूचकांकों तक किया जो दोनों देशों के मानस के बीच के अंतरों को संक्षेप में स्पष्ट करते हैं। भारत के लोग और भारत एक देश के रूप में अंतर्मुखी है, जो अपने स्वयं के बाजार को ही बहुत बड़ी चुनौती मानते हैं, विश्व बाजार से स्वदेशी के सिद्धांतों की आड़ में अपने आप को सुरक्षित रखने की कोशिश में लगे हुए। ‘‘हमारे तीन मिलियन लोग विश्व बाजार के लिए उत्पादन करते हैं आपके 870 मिलियन लोग मुख्य रूप से अपने लिए ही उत्पादन करते हैं।‘‘
इसलिए, यह छोटा सा देश, जिसके पास कोई प्राकृतिक साधन भी नहीं हैं, वह विश्व के निर्यात का 1.7 प्रतिशत का भागीदार है, जबकि भारत एक प्रतिशत के भी आधे पर ही अटका हुआ है। यदि जनसँख्या के आंकड़ों को 20 मिलियन से कम बता कर गोह कोई दया दिखाने की चेष्टा कर रहे थे, तो इसमें भी वे सफल नहीं हुए। और भी कई कष्टदायक उदाहरण थे। सिंगापुर एयरलाइन्स भारत की एयर इंडिया की तुलना में अधिक गंतव्यों को उघनें भरती है, और वह देश भारत की अपेक्षा छह गुना अधिक पर्यटकों को आकर्षित करता है। और यह तब,जबकि ‘‘भारत में कहीं अधिक पर्यटन संभावित केंद्र, महान ऐतिहासिक स्मारक और एक अत्यंत प्राचीन सभ्यता है।‘‘
एक ऐसी स्थिति जिसमें प्रधानमंत्री के अनुसार, सुधार की बहुत ही कम संभावना है। वे सिंगापुर एयरलाइन्स का एक प्रस्ताव लेकर आये थे, जिसके द्वारा वह एयरलाइन्स विभिन्न गंतव्यों से भारत में बड़ी संख्या में पर्यटक ले कर आ सकती है। जैसा कि उन्होंने अपनी एक हफ्ते की यात्रा के दौरान विभिन्न मंचों से स्पष्ट किया,यह तेज गति से विदेशी मुद्रा कमाने का सबसे अच्छा तरीका है। शायद इससे एयर इंडिया को नुकसान उठाना पड़ सकता है, परंतु देश की अर्थव्यवस्था देश के राष्ट्रीय विमानन पोत को आगे बड़ाने से अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए,हालाँकि ‘‘प्रधानमंत्री राव अधिक ग्रहणशील थे, नागर विमानन मंत्री इतने अधिक ग्रहणशील और उत्साही नहीं थे।‘‘ शायद गोह को यहाँ की छिपी प्रवृत्ति के बारे में अच्छी तरह से समझाईश दी गई थी। उनका कहना था कि संरक्षण की माँग समझी जा सकती है, सिंगापुर एयरलाइन्स ने भी संरक्षण चाहा है। परंतु अंततः इस प्रकार का संरक्षण अर्थव्यवस्था के लिए मददगार साबित नहीं होता। आज उनकी एयरलाइन्स सिंगापुर की, दुनिया को टक्कर देने की क्षमता का प्रतीक थी। लेकिन उनके इस सन्देश से भारतीय व्यवसायी बहुत संतुष्ट और उत्साही नहीं प्रतीत हुए। श्रोताओं के एक वर्ग की ओर से असहमति का एक स्वर उठता दिखाई दे रहा था। यह स्पष्ट रूप से व्यावसायिकों का अभिजात्य वर्ग था, जिसका मानना था कि यहाँ की परिस्थितियाँ भिन्न थीं।
यह स्पष्ट विरोधाभास ही था, जिसने श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया था। इतनी अनुकूल स्थिति होते हुए भी यह देश इतनी बुरी तरह से विफल क्यों हुआ था? गोह को विशाल भारतीय बाजार,वैज्ञानिक मानवशक्ति का विशाल भण्डार, और विस्तृत औद्योगिक आधार में काफी संभावनाएं नजर आयीं, जबकि सिंगापुर विशाल संसाधनों के बिना भी अत्यंत अल्प अवधि में इतना सफल हो गया था। जैसे कि सीआयआय के अध्यक्ष जमशेद एन. गोदरेज ने आश्चर्यचकित स्वर में कहा, ‘‘बीस वर्ष पूर्व सिंगापुर की एक अलग ही छवि थी।‘‘ तो आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे?
बाद के प्रश्नोत्तर के सत्र में, हताश उद्योगपतियों की सिंगापुर की सफलता की जानकारी प्राप्त करने की चाहत की अभिव्यक्ति साफ दिखाई दे रही थीः उसका अनुशासित श्रमिकवर्ग, सुव्यवस्थित यातायात, नए बाजारों तक पहुँचने की उसकी क्षमता, और उसकी शानदार सफलता, वे इन सभी की जानकारी चाहते थे। आदर्श यातायात व्यवस्था, यह एक ही विषय था जिसका गोह ने विस्तार से वर्णन किया, जिसने स्पष्ट कर दिया कि सिंगापुर की स्वप्नवत सफलता को भारत में दोहराया क्यों नहीं जा सकता। पहले हम थोड़ी सिंगापुर के संदर्भ में बात करते हैं। बहुवाद को यहाँ आचार और विचार, दोनों में, गैर‘-कानूनी घोषित किया गया है। राजनीतिक और सामाजिक नियंत्रण दुष्कर गाँठ से भी अधिक कठोर हैं। जो देश अपने नागरिकों को उनके बाल सही राजनीतिक लंबाई तक रखने, स्टार टीवी पर लगाम कसने और देश में आनेवाले विदेशी पत्रकारों की संख्या को 3,500 तक सीमित रखने जैसे निर्बंध लागू कर सकता है, उसके लिए यह आसान है। पिछले दो वर्षों से च्युइंगगम के आयात पर केवल इसलिए प्रतिबंध है, क्योंकि इसे साफ करना काफी कठिन काम है। जहाँ तक इसकी यातायात व्यवस्था का प्रश्न है, यह ऐसा है, जिसका सान फ्रांसिस्को से लेकर टोक्यो तक के नगर नियोजक एक खाका भी बनाने का विचार नहीं कर सकते। शुरुआत करनेवालों के लिए 640 वर्ग किलोमीटर के इस द्वीप में मोटर वाहनों की संख्या भी सावधानीपूर्वक विनियमित की गई है। जो कार लेना चाहते हैं, उन्हें, गोह के अनुसार, एक कागज की चिट्ठी के लिए नीलामी में भाग लेना पड़ता है। वर्तमान में नीलामी की बोली है 40,000 अमरीकी डॉलर्स। यदि फिर भी एक नागरिक कार खरीदना चाहता है, तो यह तो आगे के अन्य बंधनों की शुरुआत मात्र हैः व्यस्त मार्गों के उपयोग के लिए, व्यापार जिलों इत्यादि के उपयोग के लिए अलग से पथकर देना होता है। और जैसा कि गोह ने बताया, यदि फुटपाथ भी भीड़-भाड़ भरे हो जाते हैं, तो पैदल राहगीरों पर भी पथकर लगाया जायेगा। हरयाणा सरकार के जिन अधिकारियों ने यह जानकारी चाही थी, वे भी यह सब सुनकर निराश हो गए। भारत में कडे नियमों को बहुत सौहार्द से नहीं लिया जाताय यहाँ हर नियम से बचने के लिए काफी रास्ते (जिन्हें हम भारतीय ‘‘गलियाँ‘‘ कहते हैं) उपलब्ध होना आवश्यक है। उसी प्रकार, यहाँ दैनिक जीवन में सुव्यवस्था को मान्यता प्राप्त नहीं है। यहाँ के रास्ते, विशेष रूप से राजधानी के रास्ते, यहाँ के लोगों की मानसिकता के प्रतीक हैं। जैसा कि एक बड़े उद्योजक ने बड़ी उदासी से कहा, ‘‘यह बहुत दुःख की बात है कि हम सिंगापूर को भारत में नहीं ला सकते।‘‘
- भारत के विकास के प्रति भारतीय उद्योगपतियों की धारणा को इस प्रकार माना जा सकता है
- वैज्ञानिक
- विश्लेषणात्मक
- आत्मसंतुष्ट
- सही
- सिंगापुर में च्युइंगगम के आयात पर विशेष रूप से इसलिए प्रतिबंध लगाया गया, क्योंकि
- इससे अनावश्यक विदेशी विनिमय का बहिर्वाह होता है।
- यह चबाते रहने की एक बुरी आदत पैदा करती है।
- यह साघ् करने के लिए काफी कठिन है।
- समाज गलत पश्चिमी धारणाओं को अंगीकृत करना शुरू कर देगा।
- सिंगापुर विदेशी पत्रकारों को आने की अनुमति देने के मामले में उदार है।
- सही
- गलत
- अप्रासंगिक
- अनिर्धारित
- इस गद्यांश की केंद्रीय विषयवस्तु क्या है?
- भारत और सिंगापुर के बीच विरोधाभासों को वर्णित करना और उनके कारणों को समझना।
- एक शहर राज्य के रूप में सिंगापूर जिन कड़े अनुशासनों को लागू करता है, उन्हें समझाना।
- भारतीय उद्योजकों को उनकी आत्मसंतुष्टि से जगाना।
- प्राकृतिक संसाधनों की अपार संपदा की उपलब्धता के बावजूद भारत की विकसनशील स्थिति में रहने के कारणों की खोज करना।
- भारत की जनसँख्या सिंगापुर की से कितनी अधिक है?
- 870 मिलियन
- 857 मिलियन
- 867 मिलियन
- 3 मिलियन
गद्यांश 4
शारीरिक आकर्षण लोगों की दैनिक सामाजिक भागीदारी को प्रभावित करता है, हालाँकि पुरुषों और स्त्रियों में इसका प्रभाव कुछ हद तक भिन्न हो सकता है। हैरी रेइस और लाड्ड व्हीलर ने एक श्रृंखलाबद्ध अध्ययन किया, जिसमें महाविद्यायलीन छात्रों से कहा गया था कि वे किसी भी 10 मिनट या उससे अधिक काल हुई बातचीत का एक दैनिक ब्यौरा रिकॉर्ड करें। पुरुषों में, जैसे जैसे शारीरिक आकर्षण बढ़ता है, वैसे-वैसे उनका स्त्रियों से सामाजिक संवाद बढ़ता है, जबकि उनका अन्य पुरुषों के साथ सामाजिक संवाद कम होता जाता है। स्त्रियों के लिए, आकर्षणशीलता का सामाजिक संपर्कों से कोई संबंध नहीं होता। स्त्रियों और पुरुषों, दोनों के लिए, आकर्षणशीलता से सामाजिक अनुभवों की गुणवत्ता प्रभावित होती है। आम तौर पर आकर्षक विद्यार्थियों ने अधिक अंतरंग और खुलासेवार संवाद का ब्यौरा दिया।
ऐसा देखा गया है, कि अनाकर्षक समकक्षों की तुलना में शारीरिक रूप से आकर्षक व्यक्तियों को कई अंतर्वैयक्तिक लाभ होते हैं। अनुसंधान साहित्य कई उदाहरण प्रस्तुत करता है। शारीरिक रूप से आकर्षक व्यक्तियों को, उनके कार्य निष्पादन की कथित गुणवत्ता के संदर्भ में, उनकी नौकरी की मार्केटिंग क्षमता के संदर्भ में, उनकी संभावित राजनीतिक सफलता के संदर्भ में, और उनकी कथित प्रबोधकता के संदर्भ में लाभ मिलता है। यहाँ तक कि नकली निर्णायक मंडल, जब एक अपराध की सजा सुनाते हैं, तो शारीरिक रूप से आकर्षक प्रतिवादियों को अपेक्षाकृत कम कठोर सजा देते हैं।
आकर्षणशीलता के जबरदस्त प्रभाव शायद व्यक्तित्व के सांस्कृतिक रूप से साझा किए गए अंतर्निहित सिद्धांत के कारण हो सकते हैं। जिस प्रकार ‘‘शारीरिक रूप से आकर्षक‘‘ श्रेणी कई अन्य लक्षणों द्वारा भी जुडी हुई है, वैसा ‘‘शारीरिक रूप से अनाकर्षक‘‘ श्रेणी के बारे में नहीं है। इस प्रकार से, किसी को आकर्षक की श्रेणी में मानने वाला व्यक्ति अपने आप ही यह मान लेता है कि उसमें कई अन्य वांछनीय विशेषताएँ हैं। इस प्रभाव का असर इसलिए भी अधिक बढ़ सकता है क्योंकि दृष्टिकोण के विपरीत, संभावित साथी की आकर्षणशीलता की जानकारी तुरंत उपलब्ध हो जाती है, और इसे प्राप्त करने के लिए किसी प्रकार की सतत बातचीत या संपर्क की आवश्यकता नहीं पड़ती। मार्क्स और मिलर ने यह दिखा दिया है कि अनुयायी अपने अनाकर्षक साथियों के साथ अपनी स्वयं की जितनी विशेषतायें जोडेंगे उनकी तुलना में अपने आकर्षक साथियों के साथ ये विशेषतायें कहीं अधिक मात्रा में जोड़ेंगे। अपने साथियों के दृष्टिकोण के संदर्भ में वास्तविक ज्ञान के अभाव में, अनुयाइयों की उच्च दृष्टिकोण समानता की कल्पना का भी शारीरिक रूप से आकर्षक साथियों को लाभ मिला। साथ ही साथ, हमारा आकर्षक साथी दूसरों की नघ्रों में हमारा कद बड़ा कर परोक्ष रूप से, हमें भी फायदा पहुंचाएगा। सिगल और लैंडी ने पाया कि एक ही पुरुष में सकारात्मकता की भावना तब अधिक पायी गई जब वह एक आकर्षक युवती के साथ था, बजाय तब, जब वह एक अनाकर्षक युवती के साथ था। शायद, ‘‘एक आकर्षक साथी के साथ व्यक्ति‘‘ की श्रेणी अन्य सकारात्मक लक्षणों के साथ जुडी हुई है।
हालाँकि शारीरिक आकर्षणशीलता के महत्वपूर्ण प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता, फिर भी हम में से कई लोगों को यह जान कर संतोष होगा कि इस एक लक्षण का प्रभाव समय के साथ रिश्ते में प्रगाघ्ता आने पर कम होता जाता है। निरंतर संपर्क और संवाद के माध्यम से, लाभ के अन्य स्रोत भी उजागर होने लगते हैं, जो आकर्षण के इस सतही निर्धारक पर निर्भरता को अंततः कम कर देते हैं।
- गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक चुनें।
- पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक आकर्षक बनने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
- पुरुष शुक्र ग्रह से हैं जबकि स्त्रियाँ मंगल ग्रह से हैं।
- शारीरिक आकर्षणरू एक विश्लेषण
- सुंदर शरीर, सुंदर मन।
- गद्यांश के अनुसार, निम्नलिखित में से किन्हें सही माना जा सकता है?
- अनाकर्षक स्त्रियों में भी सामाजिक संवाद का वही गुण था,जो आकर्षक स्त्रियों में था।
- आकर्षक पुरुष महिलाओं में अधिक लोकप्रिय होते हैं,जबकि पुरुषों में अत्यधिक अलोकप्रिय होते हैं।
- मनुष्य के जीवन की गुणवत्ता आवश्यक रूप से उसकी शारीरिक आकर्षणशीलता द्वारा निर्धारित होती है।
- जो पुरुष शारीरिक रूप से आकर्षक होते हैं, उनका स्त्रियों के साथ सामाजिक संवाद अधिक होता है।
- शारीरिक आकर्षणशीलता को एक सद्गुण माना जाता है, क्योंकि
- समाज का दृष्टिकोण शारीरिक रूप से आकर्षक व्यक्तिओं के प्रति पक्षपाती होता है।
- ऐसा माना जाता है की बाहरी सौंदर्य आतंरिक सौंदर्य के साथ ही आता है, और दोनों परस्पर अनन्य नहीं हैं।
- वह व्यक्ति में अच्छाई का दबाव बघ्ता है और बुराई को कम करता है।
- यह ऐसा इकलौता गुण है जो रिश्तों की गहराई को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- व्यक्ति के दृष्टिकोण को प्रभावित करने में निम्न में से कौन सा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है?
- वे साथी जो आकर्षक हों।
- वे साथी जिनके सहयोगी अनाकर्षक हों।
- वे साथी जिनके सहयोगी आकर्षक हों।
- वे साथी जो अनाकर्षक हों।
गद्यांश 5
मेरे जीवन के कुछ रोमांचक दिन मैंने पूर्वी केन्या के तुर्काना सरोवर के तटों पर हमारे प्रारंभिक पूर्वजों के जीवाश्मीकृत अवशेषों की खोज में बिताये हैं। हमें हमेशा वह नहीं मिला जो हम चाहते थे, परंतु हर रोज खोजने के लिए हमारे अपने पूर्वजों के अंशों के आलावा बहुत कुछ था। ये जीवाश्म, जिनमें से कई पूर्ण थे, और कई के केवल कुछ टुकडे़ मिलते थे, एक ऐसी दुनिया की कहानी कहते थे, जिसमें आज के अफ्रीकन स्तनधारियों के पूर्वज आज से 1.5 से 2 मिलियन वर्ष पूर्व समृद्ध घास के मैदानों में विचरण करते थे। तब का पर्यावरण आज के अफ्रीका के नम घास के मैदानों से बहुत भिन्न नहीं था, परंतु यह कई अद्भुत जानवरों से भरा पड़ा था, जो आज से कई वर्ष पूर्व लुप्त हो चुके हैं।
इनमें से विशेष रूप से एक, जिसे मैं जीवित देखना पसंद करता, वह था छोटी गर्दनवाला एक जिराफ प्रजाति का सदस्य जिसके विशाल सींग थे, जिनमें कहीं-कहीं दो सींगों के बीच की दूरी लगभग 8 फुट (लगभग 3 मीटर) थी। यहाँ भैंस के आकार के हिरण थे जिनके विशाल मुड़े हुए सींग थे, मांसाहारी जीव थे जो तलवार जैसे धारदार दाँतो वाले शेरों की तरह दिखाई देते, दो विशिष्ट प्रजातियों के हिप्पो थे और कम से कम दो प्रकार के हाथी थे, जिनमें से एक के दाँत नीचे के जबड़े से नीचे की ओर फैले हुए होते थे। शायद हम इन अविश्वसनीय स्तनधारियों को पूरी सीमा तक कभी जान भी नहीं पाएंगे, परंतु आज से दस लाख वर्ष पूर्व, आज की तुलना में दुगनी प्रजातियां रही होंगी।
और यह केवल अफ्रीका के लिए ही सच नहीं था। जीवाश्मों का ब्यौरा हमे सभी जगहों की यही कहानी बताता है। जीवन के अधिकाँश प्रयोग लुप्तता में ही समाप्त हुए हैं। ऐसा अनुमान है कि आज से 600 मिलियन वर्ष पूर्व जितनी प्रजातियां अस्तित्व में थीं उनमें से 95 प्रतिशत लुप्त हो चुकी हैं।
तो क्या हमें वर्त्तमान लुप्तता की ऐंठन से चिंतित होना चाहिए, जिसकी गति अनवरत कृषि के विस्तार और लुप्तता के कारणों के कारण बहुत अधिक बढ़ गई है? क्या यह आवश्यक है कि एक प्रक्रिया, जो अनंत काल से चली आ रही है, उसे धीमा करने के प्रयास किये जाने चाहिए?
मेरा मानना है कि ऐसा करना चाहिए। हम जानते हैं कि मनुष्य जाति का कल्याण कई अन्य प्रजातियों के कल्याण के साथ जुड़ा हुआ है, और हम यह विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि हमारे अस्तित्व के लिए कौन सी प्रजातियां सबसे महत्वपूर्ण हैं।
लेकिन लुप्तता के मामले से निपटना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि विश्व की अधिकांश जैवविविधता एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के सर्वाधिक गरीब देशों में पायी जाती है। क्या ऐसे देश ऐसे राष्ट्रीय उद्यानों और प्राकृतिक संरक्षण केन्द्रों को अलग रखने के औचित्य को सिद्ध कर पाएंगे जहाँ मानव अतिक्रमण और यहाँ तक कि मनुष्य की पहुँच भी प्रतिबंधित है? क्या कुछ प्रजातियों के संरक्षण के लिए बड़ी रकमें खर्च करना न्यायोचित है-चाहे वह हाथी है या एक आर्किड-और वह भी एक ऐसे देश में जहाँ उनकी जनसंख्या का महत्वपूर्ण प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने के लिए मजबूर है?
साधनहीन देशों में वन्यजीव संरक्षण को प्रोत्साहित करने के प्रश्न मुझे असहज कर देते हैं। फिर भी, मेरा मानना है कि हम काफी कुछ कर सकते हैं, और हमें करना भी चाहिए। प्रश्न केवल अपनी प्राथमिकताओं को बदलने का है। लुप्तप्राय प्रजातियों पर वैज्ञानिक क्षेत्र के अध्ययनों और सम्मेलनों पर खर्च करने के लिए पर्याप्त राशि उपलब्ध है। परंतु उद्यानों में कार्यरत उन कर्मचारियों के लिए जूतों और वाहनों की क्या व्यवस्था है, जो वन्यजीवों की शिकारियों से रक्षा करते हैं? उस विकास सहायता राशि की क्या व्यवस्था है जो स्थानीय लोगों को पर्यायी आर्थिक व्यवस्था के रूप में दी जा सकती है ताकि वे जंगलों को काट कर उन्हें खेत बनाकर जोतने के लिए मजबूर ना हों? इस प्रकार की निधियां आना मुश्किल है। गरीब देशों के लोगों को उनके अल्पकालीन अस्तित्व और दीर्घकालीन पर्यावरणीय आवश्यकताओं के बीच चुनने के लिए ना कहा जाय। यदि उनकी सरकारें पर्यावरण की रक्षा करना चाहती हैं, तो आवश्यक निधियां अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से आनी चाहिए। मेरे लिए विकल्प साफ है। या तो दुनिया के अधिक समृद्ध देश अभी मदद करें, या पूरा विश्व समग्र रूप से नुकसान उठाएगा।
हाँ यह जरूर है कि हमें अवैध राजनीतिक कारणों के लिए इकट्ठी की गई निधियों, और अल्पकालीन बेतरतीब प्रोत्साहन सामग्री से बचना चाहिए, क्योंकि वह शायद बेकार सिद्ध होंगे। हमें वन्यजीव संरक्षण के लिए एक स्थायी वैश्विक अक्षयनिधि की आवश्यकता है, जिसमे प्राथमिक रूप से औद्योगिक राष्ट्रों की सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठनों का योगदान हो। मूलधन चाहे निधि प्रदान करने वाले देशों के पास ही सुरक्षित रहे, लेकिन इस निधि का ब्याज सतत प्रक्रिया के तहत संरक्षण कार्यों के लिए प्राप्त होता रहे। इन निधियों का उपयोग किस प्रकार किया जाय, यह चर्चा कभी समाप्त नहीं होनेवाला मामला है। क्या संरक्षण के विषय तय करने की जिम्मेदारी स्थानीय समुदायों को सौंप दी जाये, या बाहरी विशेषज्ञों को नियंत्रण सौंप दिया जाये? क्या उद्यानों में शिकार की सीमाएँ निर्धारित की जाएँ या इसे पूर्ण प्रतिबंधित किया जाये? गलतियाँ होंगी, पर्यावरण का परिदृश्य बदलेगा, और प्रजातियाँ फिर भी नष्ट होंगीं, परंतु कार्य की कठिनाइयाँ हमें हतोत्साहित करके कार्य के प्रति हमारा विश्वास ना डिगा दें। दुनिया के कई प्राकृतिक निवास सदा के लिए लुप्त हो चुके हैं, किंतु कई अन्य को लुप्त होने से बचाया जा सकता है और आनेवाले समय में उन्हें फिर से पुनरुज्जीवित किया जा सकता है।
21 वीं सदी के सामने मुख्य चुनौती हमारी प्राकृतिक धरोहर में से जितनी संभव हो उतनी की रक्षा करने की है। क्यों ना हम अपने सम्पूर्ण प्रयासों के साथ उन सभी गतिविधियों का विरोध करें जो वन्य प्रजातियों के लिए उपलब्ध वनभूमि को कम करने का प्रयास कर रही हैं। और इसे संभव बनाने के लिए हम विश्व के संपन्न देशों से आग्रह करें कि वे इस कार्य के लिए आवश्यक वित्तीय साधनों की व्यवस्था करें। यह धर्मार्थ दान में योगदान नहीं होगा, बल्कि यह मानवता के भविष्य के लिए निवेश होगा-और केवल मानवता के लिए ही क्यों, यह इस पृथ्वी के सभी जीवों के भविष्य के लिये होगा।
- लेखक किस बात के लिए विषयवस्तु तैयार करने का प्रयास कर रहा है?
- विलुप्त होने के लिए
- संरक्षण के लिए
- गरीब अर्थव्यवस्थाओं के लिए
- अंतर्राष्ट्रीय निधि इकट्ठा करने के लिए
- इनमें से किसका उल्लेख गद्यांश में नहीं किया गया है?
- हाथी
- हिप्पो
- डायनासोर
- हिरण
- दरिद्र राष्ट्रों में संरक्षण किससे ग्रस्त है?
- स्थानीय आबादी से समर्थन का अभाव।
- प्रयासों के समर्थन के लिए पर्याप्त धन का अभाव।
- राष्ट्रीय उद्यानों और प्राकृतिक संरक्षण का अभाव।
- इन राष्ट्रों में संरक्षण उपायों के बारे में समझ का अभाव।
- लेखक का सबसे संभावित व्यवसाय क्या हो सकता है?
- शौकिया खगोल विज्ञानी
- जान-हितैषी
- मानव विज्ञानी
- पुरातत्वविद
- दरिद्र देशों में संरक्षण प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए लेखक ने क्या उपाय सुझाये हैं?
- अल्प काल के लिए अंतर्राष्ट्रीय निधि निर्माण करना।
- वन्यजीव संताक्षं के लिए एक स्थायी वैश्विक अक्षय निधि का निर्माण।
- दरिद्री राष्ट्रों के लिए नरम ऋण का प्रावधान
- इनमें से कोई नहीं।
- गद्यांश के अनुसार, निम्न में से कौन सा गलत है?
- विलुप्तता पृथ्वी के अस्तित्व का एक अवश्यम्भावी भाग है।
- विश्व की अधिकाँश जैवविविधता सबसे गरीब देशों में निवास करती है।
- हमे केवल उन प्रजातियों का संरक्षण करना चाहिए जो हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।
- इनमें से कोई नहीं।
गद्यांश 6
लगभग निरपवाद रूप से, सभी मानवी भाषाओं ने अपनी ध्रुवीयता एक दायीं ओर के झुकाव की ओर निर्मित की है। ‘‘राइट’’ का संदर्भ है न्यायप्रियता, सही व्यवहार, उच्च नैतिक सिद्धांत, दृढ़ता, और पौरुष सेय और ‘लेफ्ट‘ से तात्पर्य है कमजोरी, कायरता, उद्देश्य कि व्यापकता, बुराई और स्त्रीत्व से। उदाहरणार्थ, अंग्रेजी में, ‘इंसाफ’, ‘सुधार’, ‘धर्मी’, ‘दाहिना हाथ’, ‘निपुणता’, ‘दक्ष’ (फ्रेंच ‘एक नैतिक मूल्य’ से) ‘अधिकार’, जैसे ‘मनुष्य के अधिकार में’, ये सारे शब्द, और यह वाक्यांश ‘अपने सही दिमाग से।’ और यहाँ तक कि ‘सव्यसाची’ का भी अंततः अर्थ है, दो दाँयें हाथ।
दूसरी ओर, (शाब्दिक अर्थों में) हैं, ‘अशुभ’ (लगभग बिल्कुल लैटिन शब्द ‘बाएँ’ के लिए), ‘फूहड़’ (लगभग बिल्कुल फ्रेंच शब्द ‘लेफ्ट’ के लिए), ‘बेढ़ब’, ‘मूर्ख’ और ‘व्याजनिन्दा।‘ ‘‘लेफ्ट‘‘ के लिए रशियन ‘दंसमअव’ का अर्थ भी ‘छल’ है। ‘लेफ्ट’ के लिए इटालियन ‘उंदबपदव’ का अर्थ है, ‘धोखेबाज‘। ‘बचे हुए का कोई बिल’ नहीं, भी है।
एक व्युत्पत्ति में, ‘लेफ्ट’ की उत्पत्ति ‘लिफ्ट’ से हुई है, एंग्लो सैक्सन मे जिसका अर्थ कमजोर या बेकार है। न्यायिक अर्थों में ‘‘राइट’’ (समाज के नियमों के अनुसार किया गया कार्य) और तार्किक अर्थों मे ‘‘राइट’’ (गलत के विरुद्धार्थी के रूप में) कई भाषाओं में आम तौर पर इस्तेमाल किये जाते हैं। राइट और लेफ्ट का राजनीतिक प्रयोग शायद तब शुरु हुआ होगा जब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति कुलीनों के विरुद्ध एक समबल के रूप में पैदा हुई। कुलीनों को राजा के दायीं ओर रखा गया और कट्टरपंथी नवोदयों-पूंजीपतियों को उसकी बाईं ओर रखा गया। निश्चित ही कुलीन शाही दायीं ओर थे, क्योँकि राजा भी कुलीन थाय और उसका दायां हिस्सा उसके पसंदीदा पदों पर आसीन लोगों का था और राजनीति की ही तरह धर्मशास्त्र में भी, ‘ईश्वर के दाएँ हाथ पर।’
‘सही’ और ‘सीधे’ के बीच संबंध के भी कई उदाहरण मिलते हैं। मेक्सिकन और स्पॅनिश मे आप सीधे (आगे) को ‘राइट राइट’ कह कर इंगित करते हैं। ब्लैक अमेरिकन अंग्रेजी मे ‘राइट ऑन’ का प्रयोग अक्सर एक वाकपटुता या चतुराईपूर्ण भावना के लिए वाक्यांश के रुप में सहमति की अभिव्यक्ति के लिये किया जाता है। आज की बोलचाल की अंग्रेजी भाषा में ‘सीधा’ का, परंपरागत, सही या उचित इन अर्थो के लिये प्रयोग आम है। रशियन में सही के लिए ‘प्रावो’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो ‘प्रावदा’ का सजातीय है, जिसका अर्थ है ‘‘सच्चा’’, और कई अन्य भाषाओं में भी ष्सच्चाष् का एक अतिरिक्त अर्थ है ‘‘सीधा’’ या ‘‘सटीक’’ जैसे हम कहते हैं ‘‘उसका उद्देश्य सच्चा था’’
स्टैनफोर्ड बिनेट बुद्धि परीक्षण बाएँ और दाएँ दोनों गोलार्द्ध कार्य की जांच करने के कुछ प्रयास करता है। दाएँ गोलार्द्ध कार्य के लिये कुछ परीक्षण हैं जिनमें अधीन को एक कई बार मोड़े हुए और उसके एक हिस्से को कैंची से काटे गये कागज के खुले हुए विन्यास का अनुमान लगाने के लिये कहा जाता है, या एक ढेर मे उपलब्ध खंघें की सही संख्या का अनुमान करने के लिये कहा जाता है, जबकि कुछ खण्ड नजरों से ओझल रखे जाते हैं। हालाँकि स्टैनफोर्डबिनेट परीक्षण के बनाने वाले निर्माताओं का मानना है, कि ज्यामितीय आशय के ऐसे प्रश्न बच्चों की बुद्धिमत्ता की परीक्षा में काफी उपयोगी होते हैं, परंतु किशोरों और वयस्कों की बुद्धिमत्ता की परीक्षा में इनकी उपयोगिता कम होने के उदाहरण बढ़ते हुए दिखाई देते हैं। सहज ज्ञान युक्त छलांगों की परीक्षा में ऐसे परीक्षणों के लिये काफी कम जगह उपलब्ध है। जान कर आश्चर्य नहीं होता कि बुद्धि परीक्षण बायेँ गोलार्द्ध की ओर मजबूती से झुके हुए लगते हैं।
बाएँ गोलार्द्ध और दाहिने हाथ के पक्ष में पूर्वाग्रहों की तीव्रता मुझे एक युद्ध की याद दिलाती है जिसमें जो पक्ष बहादुरी से लघ और जीता, वह विवादित दलों और मुद्दों के नाम बदल देता है, ताकि भविष्य की पीढ़ियों को यह निर्णय करने में परेशानी ना हो कि विवेकपूर्ण वफादारी किस ओर होनी चाहिये। जब लेनिन की पार्टी रूस के समाजवाद में एक छोटी किरच समूह थी, तब उसने उसे बोल्शेविक पार्टी नाम दिया था,जिसका रूसी में अर्थ है बहुमत पार्टी। विपक्ष ने मेहरबानी से और कमाल की मूर्खता के साथ, नरदलीय रुसी साम्यवादी,मतलब अल्पसंख्यक पार्टी का पद स्वीकार किया। और डेढ़ दशक में वे अल्पसंख्यक पार्टी बन गए। उसी प्रकार, शब्दों के जागतिक संगठन, में प्रारंभिक मानवजाति के इतिहास में, ‘दायें’ और ‘बाएँ’ के बीच शत्रुतापूर्ण संघर्ष के उदाहरण मिलते हैं। इस प्रकार की शक्तिशाली भावनाएँ उठने का क्या कारण हो सकता है?
भौंकनेवाले और काटनेवाले हथियारों के युद्ध में, और मुष्टियुद्ध, बेसबॉल और टेनिस जैसे खेलों में, एक खिलाड़ी जिसे दाहिने हाथ के उपयोग का प्रशिक्षण दिया गया है, अपने आपको तब मुश्किल स्थिति में पायेगा जब उसका सामना अनपेक्षित रूप से एक बाएं हाथ के खिलाड़ी से होगा। उसी प्रकार, एक दुष्ट बाएं हाथ का तलवारबाज अपने भाररहित दायें हाथ के साथ निरस्त्रीकरण और शांति का इशारा लगने वाले इरादे के साथ अपने प्रतिद्वंद्वी के काफी नजदीक आ सकता है। परंतु ये स्थितियाँ बाएं हाथ के प्रति विद्वेष और ही महिलाओं के लिए दाएँ वर्चस्व-जो पारम्परिक रूप से अयोद्धा हैं, को समझाने में असमर्थ दिखती हैं।
एक बहुत ही दूर की संभावना औद्योगिक पूर्व समाजों में टॉयलेट पेपर के अभाव से संबंधित हो सकती है। क्योंकि अधिकतर मानव इतिहास में और आज भी कई समाजों में, खाली हाथ का उपयोग शौच के बाद व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए किया जाता है, जीवन का एक ऐसा सत्य जो प्रौद्योगिकी पूर्व संस्कृतियों में प्रचलित था। इससे यह अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए, कि जो इस इस रिवाज का पालन करते हैं, वे इसे पसंद भी करते हैं। और ना ही यह सौंदर्यात्मक ढंग से कम लुभावना है। सबसे सरल एहतियात यह है, कि खाना और अभिवादन दूसरे हाथ से किया जाय। प्रौद्योगिकीपूर्व समाजों में बिना किसी अपवाद के, बायाँ हाथ ही इसप्रकार के शौच के कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता था और दायां हाथ खाने और अभिवादन के लिए उपयोग किया जाता था। इस परंपरा की कभी-कभार की गलतियों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। हाथों के उपयोग की परम्पराओं में छोटी-छोटी गलतियों के लिए छोटे बच्चों को कठोर दंड दिए जाने की घटनाएं आम थीं और पश्चिमी देशों के कई उम्रदराज व्यक्तियों को आज भी याद है कि बाएं हाथ से वस्तुओं को उठाने पर भी कठोर बंधन थे। मुझे लगता है कि हमारे दायें हाथ उन्मुख समाज में यह वर्णन बाएँ हाथ के साथ हमारे अलगाव और दायें के साथ सहयोग से जुडी स्वयं प्रशंसा के प्रचलन को सही ढंग से समझाता है। हालाँकि यह स्पष्टीकरण इस बात को स्पष्ट नहीं करता कि दायें और बाएं हाथों को इन विशिष्ट कार्यों के लिए क्यों चुना गया। यह तर्क दिया जा सकता है, कि सांख्यिकीय दृष्टि से प्रत्येक दो में से एक अवसर ऐसा हो सकता है जब शौच के कार्य बाएं हाथ को सौंपे होंगे, परंतु उस स्थिति में हम यह अपेक्षा करेंगे कि दो समाजों में से एक समाज वामधर्मी होना चाहिए। जबकि वास्तविकता यह है, कि ऐसा कोई समाज है ही नहीं। एक ऐसे समाज में, जहाँ अधिकांश लोग दायें हाथवाले हों, खाने और झगडे जैसे सटीक कार्य पसंदीदा हाथ को सौंपे जाना लाजमी है, और फिर शौच जैसे बचे हुए कार्य अपने आप तुच्छ हाथ को स्वीकार करने होंगे। हालाँकि यह इस बात को स्पष्ट नहीं करता कि समाज दायें हाथवाला क्यों है। मूलभूत भावना में इसका स्पष्टीकरण कहीं और होना चाहिए।
आप अधिकांश कार्य जिस हाथ से करना पसंद करते हैं उसमें और आप के भाषण को नियंत्रित करनेवाले मस्तिष्क गोलार्द्ध के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, और अधिकांश वामहस्त लोगों में भी भाषण केंद्र बाएं गोलार्द्ध में हो सकता है। हालाँकि यह बिंदु विवादास्पद है। फिर भी ऐसा माना जाता है, कि आप वामहस्त हैं या दायें हस्त, इस बात का संबंध मस्तिष्क उदारीकरण से है। कुछ उदाहरण इस बात को साबित करते हैं, कि वामहस्त लोगों को पढ़ने, लिखने, बोलने, और गणित जैसे बाएं गोलार्द्ध के कार्यों को करने में समस्याऐं हो सकती हैं; और ये लोग मनन, पैटर्न्स की पहचान और सामान्य रचनात्मकता जैसे दायें गोलार्ध के कार्यों में अधिक निपुण हो सकते हैं। कुछ डेटा यह भी बताता है कि, मनुष्य दायें हस्त के प्रति पक्षपाती होते हैं। उदाहरणार्थ, गर्भ के तीसरे और चौथे महीने के दौरान भरूण की उंगलियों के निशान पर लकीरों की संख्या बाएं हाथ की तुलना में दाहिने हाथ में अधिक होती है, और यह प्रमुखता पूरी अवधि में और जन्म के बाद भी जारी रहती है।
ऑस्ट्रलोपिथेकस प्रजाति के हस्त के संबंध में जानकारी उन लंगूरों की खोपघ्यिं के जीवाश्मों के विश्लेषण द्वारा प्राप्त हुई है, जिन्हें हड्डी या लकड़ी के प्रहार से मनुष्य के इन पूर्वजों द्वारा तोडा गया था। ऑस्ट्रलोपिथेकस जीवाश्मों के आविष्कारक रेमंड डार्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे उनमें से 20 प्रतिशत वामहस्त थे, जो प्रमाण आधुनिक मनुष्य में भी विद्यमान है। इसके विपरीत, अन्य पशु काफी हद तक पंजों की वरीयता प्रदर्शित करते हैं, और पसंदीदा पंजे के बाएं होने की संभावना उतनी ही है जितनी इसके दायें होने की है।
बाएं और दायें की यह भिन्नता हमारी प्रजाति के इतिहास की गहराई तक पहुंची हुई है। मुझे आश्चर्य है, कि तर्कसंगत और समझदार के बीच, मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों के बीचलड़ाई का कुछ मामूली एहसास दायें और बाएं इन शब्दों के बीच ध्रुवाभिसारिता में सामने ना उभरी हो। हमारा मौखिक गोलार्द्ध हमारे दायें अंग को नियंत्रित करता है। शायद दायें अंग में अधिक निपुणता चाहे ना हो, किंतु इसमें बेहतर दबाव निश्चित है। हमारा बायां गोलार्द्ध दायें गोलार्द्ध के समक्ष तुलनात्मक रूप से सुरक्षात्मक, या यूं कहें कि असुरक्षित महसूस करता हैय और यदि ऐसा वास्तव में है, तो सहज ज्ञान युक्त सोच की मौखिक आलोचना मकसद की दृष्टि से संदिग्ध हो जाती है। दुर्भाग्यवश, ऐसा मानने के काफी आधार हैं कि हमारा दायां गोलार्द्ध बाएं गोलार्द्ध के बारे में कई गैर मौखिक संदेह प्रदर्शित करता है।
- गद्यांश में ‘वीर’ शब्द का उपयोग विशेष रूप से किस संदर्भ में किया गया है?
- दृढ़ता
- परिवर्तन
- अनिच्छा
- विनिवेश
- गद्यांश में वाक्यांश ‘‘व्याजनिंदा’’ का उपयोग किस विशेषता को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है?
- स्त्रीत्व
- धमकी
- विरक्ति
- इनमें से कोई नहीं
‘‘राइट‘‘ शब्द इस विशेषता को प्रदर्शित नहीं करता
- सत्यता
- पौरुषत्व
- वैधता
- संतुलन
- लेखक के अनुसार, बुद्धि परीक्षण शक्तिशाली रूप से बाएं गोलार्द्ध की ओर पक्षपाती होते हैं।
- सही है
- गलत है
- अप्रासंगिक है
- कुछ हद तक गलत है
- गद्यांश की केंद्रीय विषयवस्तु क्या है?
- यह इस बात का विश्लेषण करने का प्रयास है कि ‘दायां’ और ‘बायाँ’ जिन अर्थों के साथ संबंधित हैं, वे उन अर्थों के साथ संबंधित क्यों हैं।
- यह कि सभी संस्कृतियों और समाजों में भाषा ‘दाएँ’ की ओर अधिक संवेदनशील है।
- ‘बाएँ’ को अशुभ इस लिए माना गया है क्योंकि अधिकाँश औद्योगिक पूर्व समाजों की टॉयलेट पेपर तक पहुँच नहीं थी।
- मनुष्य अनुवांशिक रूप से दाएँ की ओर अधिक संवेदनशील रहा है।
अपठित गद्यांश
गृह कार्य
यह हिस्सा भाषा सत्र के पश्चात् गृह कार्य है
गद्यांश 1
जैविक विकास बढ़ती जटिलता साथ किया गया है। दो सौ मिलियन वर्ष पूर्व के अधिकाँश जटिल जीवों की तुलना में आज की पृथ्वी के जटिल जीवों में अधिक आनुवंशिक और अतिरिक्तआनुवंशिक जानकारी संग्रहित है, जो इस ग्रह के ब्रह्माण्डीय कैलेंडर के पांच दिवस पूर्व जीवन के इतिहास की केवल पाँच प्रतिशत है। आज पृथ्वी के सबसे सामान्य जीवों की उत्पत्ति का इतिहास उतना ही पुरातन है जितना सर्वाधिक जटिल जीवों का, और संभव है कि समकालीन बैक्टीरिया के आंतरिक जैव रसायन तीन अरब साल पहले के बैक्टीरिया के आंतरिक जैव रसायन की तुलना में अधिक कुशल है। परंतु आज के बैक्टीरिया में संग्रहित आनुवांशिक जानकारी उनके पुरातन बैक्टीरियल पूर्वजों की तुलना में बहुत अधिक नहीं है। जानकारी की मात्रा और उस जानकारी की गुणवत्ता में भेद करना आवश्यक है।
विभिन्न जैविक स्वरूपों को टाक्सा (एकल टैक्सोन) कहा जाता है। सर्वाधिक वर्गीकरण प्रभाग पौधों और पशुओं में विभेद करते हैं, या उन जीवों में भेद करते हैं जिनकी कोशिकाओं में अल्पविकसित नाभिक होते हैं (जैसे कि बैक्टीरिया और नीली हरी शैवाल) और वे जिनमें स्पष्ट रूप से सीमांकित और विस्तारपूर्वक प्राथिमीक नाभिक हैं (जैसे जीवगण या लोग) इस पृथ्वी ग्रह के सभी जीवाणुओं में, चाहे उनमे स्पष्ट परिभाषित नाभिक हैं या नहीं हैं, उनमे गुणसूत्र होते हैं जिनमें एक वंश से दुसरे वंश को हस्तांतरित अनुवांशिक सामग्री होती है। सभी जीवाणुओं में वंशानुगत अणु नाभिक अम्ल होते हैं। कुछ महत्वहीन अपवादों को छोड़ दिया जाय, तो वंशानुगत नाभिक अम्ल हमेशा वह अनु होता है जिसे डीएनए (डीऑक्सी रीबोनुक्लेइक एसिड) कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के पौधों, और पशुओं में प्रजातियों, उप प्रजातियों और नस्लों में अधिक महीन प्रभागों को अलग टाक्सा के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
एक प्रजाति एक ऐसा समूह है, जो अपनी प्रजाति के अंदर प्रजननक्षमता संतति पैदा कर सकता है, परंतु अपनी प्रजाति के बाहर नहीं। कुत्तों की विभिन्न नस्लों के समागम से ऐसे पिल्ले पैदा होते हैं, जो पूर्ण विकसित होने पर प्रजनन सक्षम कुत्ते बनेंगे। परंतु प्रजातिबाह्य समागम, यहाँ तक कि घोड़े और गधे जैसी समान प्रजातियों के समागम से अप्रजननक्षम संतति पैदा होगी (इस मामले में खच्चर) इसीलिए गधों और घोड़ों को अलग प्रजाति श्रेणी में रखा गया है। कभी-कभी व्यापक रूप से अलग प्रजातियों के बीच व्यवहार्य किंतु अप्रजननक्षम समागम भी अनुभव किया जा सकता है, जैसे बाघों और शेरों के बीच, और ऐसी स्थिति में बहुत ही दुर्लभ मामलों में संतति प्रजननक्षमता भी हो सकती है। इसका तात्पर्य यही है कि प्रजातियों की व्याख्या अस्पष्ट है। सभी मनुष्य एक ही, मानव-जाति प्रजाति के सदस्य है, जिसका आशावादी लैटिन में अर्थ है, ‘‘बुद्धिमान मनुष्य।‘‘ हमारे संभाव्य पूर्वज, होमो इरेक्टस और होमो हैबिलिस, जो अब लुप्त हो चुके हैं, उन्हें समान वंश (होमो) किंतु एक अलग प्रजाति में वर्गीकृत किया गया है, हालाँकि किसीने भी (कम से कम हाल में तो नहीं) इन दोनों के समागम से प्रजननक्षम संतति की उत्पत्ति की जा सकती है अथवा नहीं इस बारे में प्रयोग नहीं किये हैं।
पुरातन काल में यह बृहद रूप से माना जाता था कि बेहद अलग जीवों के संकर से संतति पैदा की जा सकती थी। ऐसा माना जाता है की मिनोटॉर जिसे थेसेउस ने मार दिया था, एक बैल और एक स्त्री के समागम से पैदा हुआ था। रोमन इतिहासकार प्लिनी का कहना था कि, तभी खोजा गया शतुरमुर्ग एक जिराफ और पिस्सू के संकर से पैदा हुआ था (मेरे हिसाब से यह मादा जिराफ और नर पिस्सू का संकर होना चाहिए) व्यवहार में ऐसे कई संकर हुए होंगे जिनके लिए प्रयास शायद जाहिरा तौर पर प्रोत्साहन के आभाव में नहीं किये गए होंगे।
एक जीव की जटिलता के विषय में धारणाएँ शायद उसके व्यवहार से, अर्थात, जीव को अपने जीवन काल में जितने विविध प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं, उनसे बनी होंगी। लेकिन इस जटिलता को जीव की वंश सामग्री में उपलब्ध न्यूनतम जानकाती की मात्रा के द्वारा भी आँका जा सकता है। एक विशिष्ठ मुनष्य गुणसूत्र में एक बहुत लंबा डीएनए अणु होता है, जो कुंडली के रूप में मुड़ी हुई अवस्थाओं में होता है, जिससे उसके द्वारा व्याप्त जगह इस अवस्था में बहुत कम हो जाती है इस तुलना में कि यदि वह अपनी विस्तृत अवस्था में होता। यह डीएनए अणु एक रस्सी की सीढ़ी के पायदान और पक्षों की तरह कई छोटे खण्डों से बना हुआ होता है। इन खण्डों को न्यूक्लियोटाइड कहा जाता है, और ये चार प्रकारों में पाये जाते हैं। हमारे जीवन की भाषा, हमारी वंशानुगत जानकारी चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लियोटाइड द्वारा निर्धारित होती है। हम कह सकते हैं कि, हमारी वंशानुगत जीवन भाषा चार वर्णाक्षरों के शब्दों द्वारा बनी होती है।
किंतु जीवन की पुस्तक बहुत ही समृद्ध होती है मनुष्य में एक विशिष्ठ डीएनए गुणसूत्र अणु लगभग पचास लाख न्यूक्लियोटाइड जोड़ियों से बना होता है। पृथ्वी के सभी टाक्सा के वंशानुगत निर्देश सामान भाषा और सामान कोड पुस्तक द्वारा लिखे होते हैं। यह साझा की गई वंशानुगत भाषा इस बात को इंगित करती है कि इस पृथ्वी के सभी जीव एक ही पूर्वज से उपजे हुए हैं, जीवन की इस एक उत्पत्ति की शुरुआत लगभग चार बिलियन वर्ष पूर्व हुई।
किसी भी सन्देश की जानकारी की सामग्री बिट्स नामक इकाई द्वारा वर्णित की जाती है , जो ‘‘द्विपदीय अंकों‘‘ का संक्षेप है। सबसे आसान गणितीय प्रणाली दस अंकों का इस्तेमाल नहीं करती (जैसा कि हम करते हैं, क्योंकि विकासवादी दुर्घटना से हमारी दस उँगलियाँ हैं) यह केवल दो अंकों का प्रयोग करती है, वे हैं शून्य और एक, हाँ या ना। यदि वंशानुगत कोड चार अक्षरों के बजाय दो अक्षरों से लिखी होती तो एक डीएनए अणु में उपस्थित बिट्स की संख्या उपस्थित न्यूक्लियोटाइड जोड़ियों की संख्या से दुगनी होती। परंतु चूंकि चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लियोटाइड होते हैं, अतः डीएनए में जानकारी के बिट्स की संख्या न्यूक्लियोटाइड जोड़ियों की संख्या से चौगुनी होती है। इस प्रकार, एक एकल गुणसूत्र में 5 बिलियन (5 × 109) न्यूक्लियोटाइड हैं, तो इसमें जानकारी के 20 बिलियन बिट्स (2 × 1010) उपस्थित हैं। 109 जैसा प्रतीक यह इंगित करता है की 1 के बाद एक विशिष्ठ संख्या में शून्य हैं, यहाँ वह संख्या 9 है,
20 बिलियन बिट्स मतलब कितनी जानकारी है? यदि इसे आधुनिक मानवीय भाषा में एक सामान्य मुद्रित पुस्तक में लिखा गया हो, तो इसके समकक्ष क्या है? वर्णक्रमानुसारी मानवीय भाषा में विशेषता बीस से चालीस अक्षर और एक से दो दर्जन अंक और विराम चिन्ह होते हैं। इस प्रकार ऐसी अधिकांश भाषाओं में चौंसठ वैकल्पिक वर्ण काफी होने चाहिये। चूंकि 26 का अर्थ है 64 (2×2×2×2×2×2) तो एक वर्ण को दर्शाने के लिए छह बिट्स से अधिक की आवश्यकता नहीं होगी। इसे हम ‘‘बीस प्रश्नों के एक खेल‘‘ के रूप में हुआ मान सकते हैं, जिसमें प्रत्येक उत्तर एक बिट के हाँ अथवा ना के उत्तर से मेल खाता है। मान लो कि संबंधित प्रश्न का वर्ण जे है, तो हम इसे निम्न प्रक्रिया द्वारा बता सकते हैंः
पहला प्रश्नः क्या यह एक वर्ण (ओ) है या कोई अंक (1) है?
उत्तरः एक वर्ण (ओ) है
दूसरा प्रश्नः क्या यह पूर्वार्ध (ओ) में है या उत्तरार्ध (1) में?
उत्तरः पूर्वार्ध (ओ) में
तीसरा प्रश्नः पूर्वार्ध के तेरह वर्णों में से क्या यह पहले सात में है (ओ) या दुसरे छह में (1)?
उत्तरः बाद के छह (1) में
चौथा प्रश्नः बाद के छह वर्णों में (एच आय जे के एल एम) क्या यह पूर्वार्ध (ओ) में है या उत्तरार्ध (1) में?
उत्तरः पूर्वार्ध (ओ) में
पांचवाँ प्रश्नः इन वर्णों एच आय जे में से क्या यह एच (ओ) है, या यह आय या जे में से (1) एक है?
उत्तरः यह आय और जे में से (1) एक है।
छठवाँ प्रश्नः क्या यह आय (ओ) है या जे (1) है?
उत्तरः यह जे (1) है।
- लेखक को निश्चित रूप से लगता है कि
- जैविक विकास जटिलता को पहले ही रोक देता है।
- जैविक विकास जटिलता को प्रोत्साहित करता है।
- जानकारी अधिभार को जैविक विकास से रोका जा सकता है।
- आम तौर पर जैविक विकास ने जटिलता को बघया है।
- 2.गद्यांश से हम एक ब्रह्माण्डीय कैलेंडर दिन की अनुमानित लंबाई का अनुमान लगा सकते हैं।
- हाँ
- नहीं
- कुछ हद तक गलत है
- प्रासंगिक नहीं है
- मनुष्य में प्रोटोजुआ से अधिक स्पष्ट रूप से और विस्तारपूर्वक नाभिक प्राथिमीक है। उपरोक्त कथन गद्यांश से स्पष्ट किया जा सकता है।
- हाँ
- नहीं
- आंशिक रूप से गलत है
- पहलू निकलने योग्य नहीं है।
- प्रजाति एक ऐसा समूह है, जो अपनी प्रजाति के अंदर प्रजननक्षम संतति पैदा कर सकता है। इससे लेखक
- सहमत होगा
- असहमत होगा
- लेखक के मतभेद हो सकते हैं
- कथन की आलोचना करेगा
- एक जीव में जटिलता का अनुमान जीव की वंशानुगत सामग्री में उपस्थित जानकाती की सामग्री से लगाया जा सकता है। लेखक इस कथन से सहमत नहीं है
- सही है
- गलत है
- निगम्य नहीं है
- पैसेज में वर्णित नहीं है
गद्यांश 2
जैविक अनुसंधानों के पिछले 150 वर्षों के काल पर नजर डालें (विशेष रूप से आनुवंशिकी) तो यह स्पष्ट है कि सफलता प्रायोगिक प्रणाली के चयन से आम तौर पर प्रासंगिक है। मेंडेल के मटर (पिसम) पर किये गए प्रजनन प्रयोगों, जिन्होंने प्रारंभिक रूप से अनुवांशिकी की व्याख्या की, को शायद ही नजीर के रूप में स्वीकार किया गया है। उंसक मटर का चयन, हालाँकि मौलिक नहीं था,-उनसे पहले डार्विन और अन्य ने बगीचे के मटर का प्रजनन किया था-उनकी सफलता का मुख्य कारण था। मटर के साथ, मेंडेल परागण को नियंत्रित कर सकते थे, और अत्यधिक सहज किस्मों का विकास कर सकते थे, जो ऐसी नस्लें पैदा करती थीं, जिनके सही और अच्छी तरह से परिभाषित लक्षण थे (फेनोटाइप)। सही जीवों के चयन का महत्त्व इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि मेंडेल हॉक वीड पौधों के साथ सामान परिणाम प्राप्त नहीं कर पाये। (हैरासियम) यह असफलता इसलिए नहीं थी क्योंकि उन्होंने मटर के साथ वंशानुक्रम के जो मौलिक सिद्धांत निगमित किये थे,उनमें सामान्यता का अभाव था। बल्कि ये इसलिए हुआ क्योंकि उनके परिणाम हॉकवीड की विशिष्टताओं में उलझे हुए थे जिनका पता कई दशकों के बाद चल सकाय बीज अक्सर निषेचन के बिना द्विगुणित कोशिकाओं से विकसित होते हैं।
सदी की समाप्ति के समय मेंडेल के काम की खोज का श्रेय पौध प्रजनकों को जाता है। मेंडेल से प्रेरित नेब्रास्का विश्वविद्यालय के एक अमेरिकी आर ए एमर्सन ने अपने प्रयोग जीव के रूप में भारतीय मकई (मक्का) को चुना। एक मकई सिल पर प्रत्येक गुठली एक अलग निषेचन का परिणाम है, जो कई संततियों का परीक्षण संभव बनाता है, जिससे डेटा का सांख्यिकीय महत्त्व बड़ जाता है। मक्के का उपयोग करके एमर्सन और ई एम ईस्ट ने यह नवीन विचार स्थापित किया कि ‘‘संख्यात्मक लक्षण‘‘ विभिन्न जीन की कई स्वतंत्र आनुवांशिकताओं और उनके विकल्प युग्म और परिणामी एक के दुसरे पर प्रभाव का परिणाम हैं। और इस प्रकार, एमर्सन और 1914 में कॉर्नेल में उनके द्वारा स्थापित वैज्ञानिक साम्राज्य ने, जिसमें एम डेमेरेक, जी एफ स्प्रागुए, बी म्क्कि्लंटॉक, जी डब्लू बेडले और एम एम रहोडस शामिल थे, मेंडेल के विचारों के विस्तार और व्यापकीकरण और अमेरिका के मक्का उद्योग के विकास में योगदान दिया।
1914 तक ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर, जिसे सामान्य भाषा में फल मक्खी कहा जाता है, ने अधिक लाभदायक जीव के रूप में जैविक अनुसंधान के बारे मे मक्के की जगह ले ली। उसकी अपेक्षाकृत छोटी प्रजनन अवधि (लगभग 10 दिन) प्रचुर मात्रा में उत्पत्ति (प्रत्येक समागम मे 100 से लेकर 400 तक) और पुरुषों में अर्धसूत्रीविभाजन कि आकस्मिक संपत्ति गुणसूत्र खंडों के सामान्य विनिमय के साथ नहीं होती, जिसके कारण समागम के नतीजे तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय में टी एच मॉर्गन और उनके सहयोगी ए एच स्टुर्टेवंत, सी बी ब्रिड्जस, एच जे मूलर और उनकें विद्यार्थियो ने इन लाभों का फायदा आनुवंशिकी में खोज की सबसे तीव्र अवधि के आरंभ के लिए उठाया। उन्हें यह स्थापित करने के लिये केवल पांच वर्षों का समय लगा कि जीन प्रत्येक गुणसूत्र के साथ रेखीय सरणियों में होते हैं, समरूपी क्रोमोसोम के जोड़े अंडे की परिपक्वता के दौरान अर्धसूत्री विभाजन में भागों का आदान-प्रदान (पार करना) करते हैं, और कई जीन व्यक्तिगत गुणसूत्रों को आवंटित किये जा सकते हैं, और उनकी स्थिति एक दूसरे के सापेक्ष प्रतिचित्रित की जा सकती है।
1935 तक विकास में जीन्स की भूमिका का अन्वेषण एक उपयुक्त प्रयोगात्मक जीव के अभाव मे बाधित था, एक ऐसा जीव जिसके आनुवंशिकी और भ्रूणविज्ञान सही प्रकार से समझे जा चुके हों। उसके बाद पॅरिस के इंस्टिट्यूट दे बिओलोगी में जी डब्ल्यू बेडले और बी एफ्रुस्सी ने आनुवंशिक रूप से परिभाषित भ्रूण ऊतकों के विकास के भाग्य की जांच के लिए ड्रोसोफिला का उपयोग करने के लिए एक तरीका ईजाद किया। इस प्रयोग ने उन्हें इस खोज तक पहुंचाया कि मक्खी की आंख के पिगमेंट ऐसे रास्तों से बने होते हैं जिनके व्यक्तिगत चरण जीन द्वारा नियंत्रित होते हैं। लेकिन ड्रोसोफिला उस रास्ते को आगे बढ़ाने के लिए अपर्याप्त साबित हुआ। इसके बजाय, आम ब्रेड मोल्ड नेउरोस्पोरा क्रासा पुल प्रदान करेगा। न्यूयॉर्क के वनस्पति उद्यान मे एक प्रायोगिक उपकरण के रूप मे बी ओ डॉज द्वारा अपनायी इस आनुवंशिकी को मॉर्गन के एक विद्यार्थी सी लिंडग्रेन द्वारा खोजा गया था। बेडले और ई टैटूम ने यह पता लगाया कि नेउरोस्पोरा को यह निर्धारित करने के लिये उपयोग में लाया जा सकता है कि क्या प्रेरित उत्परिवर्तन विशिष्ट पोषक तत्वों की कमी निर्मित कर सकते हैं। यह एक प्रेरित चयन था। स्टैनफोर्ड की तलघर की प्रयोगशालाओं मे काम करते करते उन्होंने वास्तव मे सैकड़ों उत्परिवर्ती प्राप्त किये, जो प्रत्येक उत्परिवर्ती एक पौषक आवश्यकता के साथ जोड़ा जा सकता था। उन्होंने अनुमान लगाया और बाद में स्थपित किया कि प्रत्येक जीन एक विशेष सेलुलर घटक के संश्लेषण के लिए आवश्यक एक एंजाइम के लिए जिम्मेदार था। 1940 के दशक की ये प्रारंभिक खोजें एक जीन एक एंजाइम परिकल्पना, या आज जिसे एक जीन एक पॉलीपेप्टाइड प्रतिमान का आधार बनीं।
फिर भी जीन-एंजाइम संबंध 30 वर्ष पहले ही ब्रिटिश चिकित्सक आर्चिबाल्ड गर्रोड द्वारा अनुमानित किया जा चुका था, जिन्होंने 1902 में यह पाया कि अलकाप्टोनूरिआ, एक मानवी दोष जिसमें काला मूत्र विसर्जन होता है, उसकी अनुवांशिकी का एक अलग पैटर्न है। विलियम बाट्सों, जिन्होंने 1900 के आसपास अपने पुनरन्वेषण के तुरंत बाद मेंडेल के काम को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और ‘‘जेनेटिक्स‘‘ शब्द को प्रचलित किया। उन्होंने माना कि अलकाप्टोनूरिआ एक अप्रभावी मेंडेलियन लक्षण की तरह विरासत में मिला था। अगले दस वर्षों में गर्रोर्ड ने मेंडेलियन प्रतिमान को मानव चयापचय विकृतियों के लक्षण वर्णन तक विस्तारित किया।
अंत में उनका कहना था कि यह प्रत्येक शायद किसी विशिष्ट एंजाइम की कमी के कारण एक अलग चयापचय चरण का परिणाम था। परंतु मानवी अस्वस्थता मूल रूप से चिकत्सकों और चिकित्साविज्ञानियों का क्षेत्र था, जिन्होंने गर्रोड की अन्तर्दृष्टि के महत्त्व को नहीं पहचाना और फिर आनुवंशिकी विज्ञानी आम तौर पर चिकित्सा साहित्य से अनभिज्ञ थे। इसका परिणाम यह हुआ कि गर्रोद के विचार कई दशकों तक यूं ही पडे़ रहे, जब तक कि नेउरोस्पोरा ने बेडले और टैटूम को गर्रोद के निष्कर्षों को सत्यापनीय प्रमाण तक पहुंचाने के लिए एक उपयुक्त मॉडल उपलब्ध नहीं करवाया।
1940 के दशक के अंत तक, टैटूम ने जीन और कोशिकीय कार्यों के बीच संबंधों का परीक्षण करने के लिए एक अधिक आकर्षक प्रणाली विकसित की। सामान्य आंत के बेक्टीरिया एस्चेरीच्या कोली की पोषकीय आवश्यकताएं अत्यंत सामान्य हैं और यह प्रत्येक 20 से 60 मिनट में विभाजित होती है और प्रति मिलीलीटर करोघें विकसन माध्यम की कोशिकाएं निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, बड़ी संख्या में आसानी से मापनीय शारीरिक विशेषतायें नियंत्रित करते हैं, जिससे विशिष्ट सेलुलर कार्यों में दोषपूर्ण म्यूटेंट के अलगाव और लक्षण वर्णन के लिए अनुमति प्राप्त हो जाती है। जब जे लेडरबर्ग और टैटूम ने यह खोज की कि एस्चेरीच्या कोली तनाव यौन विनिमय में भाग ले सकते हैं, तो उन्होंने एक अधिक औपचारिक आनुवंशिक विश्लेषण और बैक्टीरिया के एकल परिपत्र गुणसूत्र के निर्माण के लिए राह आसान बनाई। एस्चेरीच्या कोली के व्यापक आनुवंशिक लक्षण वर्णन ने आनुवंशिक कोड और जीन अभिव्यक्ति और विनियमन शासी सिद्धांतों को विस्तार से समझाने के लिए आदर्श स्थिति बनाई।
- गद्यांश की केंद्रीय विषयवस्तु है
- वैज्ञानिक विचारों की सार्वभौमिकता स्थापित करने के लिए उनका विभिन्न जीवों पर प्रयोग किया जाना आवश्यक है।
- विज्ञानं में सफलता आम तौर पर प्रयोग की प्रणाली के चयन पर निर्भर करती है।
- विज्ञानं की यह आवश्यकता है कि स्थापित तथ्यों और विचारों को सम्पूर्ण सूक्ष्मजगत में बिना किसी अस्पष्टता के प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- मेंडेल के काल के प्रारंभिक काल से वैज्ञानिक खोजों की कार्यप्रणाली में तेजी से उत्क्रांति हुई है।
- इनमें से मेंडेल के हैरासियम पर प्रेक्षणों की असफलता का परिणाम कौन सा था?
- मटर के विपरीत, हॉकवीड पौधे मेंडेल द्वारा सुझाये वंशवाद के नियमों का पालन नहीं करते।
- मेंडेल द्वारा बगीचे के मटर पर किये गए प्रेक्षण और उसके परिणामस्वरूप निकाले गए निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण थे।
- मेंडेल यह समझने में विफल रहा कि हैरासियम बीज अलैंगिक रूप से विकसित होते हैं।
- उपरोक्त में से कोई नहीं।
- कौन सा तथ्य ड्रोसोफिला मेलनोगास्टर को आनुवंशिक जांच के लिए एक लाभदायक जीव बनाता है?
- आनुवंशिक रूप से परिभाषित भ्रूण ऊतकों का विकासात्मक भाग्य।
- पौधों की वंशानुगत विशेषताएँ।
- पुरुषों में अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान गुणसूत्रीय खण्डों का कोई आदान-प्रदान ना होना।
- इनमें से कोई नहीं।
- इनमें से किस जीव ने एक जीन एक एंजाइम सिद्धांत की प्रतिस्थापना में योगदान दिया?
- ड्रोसोफिला
- हैरासियम
- नेउरोस्पोरा
- अलकाप्टोनूरिआ
- वैज्ञानिक विचारों के अध्ययन में प्रयोग की गयी प्रचलित प्रणालियों को कालक्रम (प्रारंभिक से शुरू करके बाद की ओर) के अनुसार बतायें।
- ड्रोसोफिला - मेलानोगास्टर - नेउरोस्पोरा - एस्चेरीच्या कोली
- मटर - ड्रोसोफिला - नेउरोस्पोरा - एस्चेरीच्या कोली
- एस्चेरीच्या कोली - ड्रोसोफिला - नेउरोस्पोरा - मटर
- इनमें से कोई नहीं
गद्यांश 3
उपयोग की हुई पुस्तकें एक कुशल बाजार का प्रतिरूप हैं-प्रतिवर्ष लाखों विद्यार्थी महंगी पुस्तकें खरीदते हैं, और चूंकि उनका उपयोग उन्हें केवल एक सेमेस्टर के लिए ही है, वापस बेच देते हैं। पुनर्विक्रय के मूल्य के पुस्तकों के सेट का निर्धारण मूल कक्षाओं के प्रकाशित पाठ्यक्रम के अनुसार होता है उनकी कीमत का निर्धारण कैंपस पुस्तक विक्रेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा के अनुसार निर्धारित होता है और आपूर्ति की प्रतिपूर्ति वर्ष में दो बार होती है।
प्रकाशक इससे अधिक चिंतित नहीं होते, क्योंकि उन्हें पता है कि वे नयी प्रतियों की अधिक कीमत वसूल कर सकते है, चूंकि खरीददारों को मालूम है कि उनका एक पुनर्कथनीय पुनर्विक्रय मूल्य है। इस प्रक्रिया में जो आर्थिक तंत्र काम कर रहा है वह क्रय की अपेक्षा किराए पर अधिक आधारित है। आम तौर पर विक्रेता पुस्तक के कवर मूल्य के 50 प्रतिशत पर पुस्तक का पुनः क्रय करते हैं, और 75 प्रतिशत पर पुनर्विक्रय करते हैं। ‘‘किराया शुल्क‘‘ का निर्धारण सूची मूल्य के आधे से एक चौथाई, इस बात पर निर्भर करता है कि विद्यार्थी नयी पुस्तक खरीद रहा है या उपयोग की गई पुस्तक ले रहा है। यह व्यवस्था इतनी सुगम रीति से कार्यरत है कि अमेरिका में उपयोग की गई पुस्तकों का बाजार आज लगभग 1.7 बिलियन डॉलर का उद्यम है, जो सभी कॉलेज स्टोर्स के कुल विक्रय का 16 प्रतिशत है।
प्रकाशक यह सुनिश्चित करते हैं कि उपयोग की गई पुस्तकें हमेशा के लिए परिचालित नहीं होती, क्योंकि यह उनकी नयी पुस्तकों के विक्रय को प्रतिकूल प्रभावित करेगा। इसके लिए वे अलग पृष्ठ क्रमांकों के साथ नए संस्करण जारी करते हैं (ताकि पुराने संस्करण उपयोग में ना लाये जाएँ) यह प्रक्रिया बाजार से समय-समय पर पुरानी इन्वेंट्री को साफ करती रहती है।
गैर-शैक्षणिक उपयोग की गई पुस्तकों के बाजार के संदर्भ में इनमें से कुछ ही कौशल्य दिखाई देते हैं। विशिष्ट उपयोग की गई पुस्तकों के विक्रेताओं की पुरानी पुस्तकों तक पहुँच केवल ऐसे स्थानीय संग्रहकर्ताओं तक सीमित रहती है, जो अपने संग्रह में से कोई पुस्तक विक्रय करने के इच्छुक हैं। परिणामस्वरूप, इन स्टोर्स पर चयन, पुस्तक बाजार के किसी व्यापक भाग की अपेक्षा, विक्रेता की रूचि और पुस्तक चाहने वाले के भाग्य पर निर्भर करता है, और काफी बेतरतीब होता है।उपयोग की गई पुस्तकों के संरक्षकों के लिए यह बेतरतीबी एक आकस्मिक अन्वेषण और खोज के लिए प्रोत्साहन का एक हिस्सा है। लेकिन यदि आप किसी विशिष्ठ पुस्तक को ढूंढ़ रहे हैं, तो अलमारियों की उठापटक और खोज की प्रक्रिया अर्थहीन हो सकती है।
आर्थिक दृष्टि से, जो बात पाठ्यपुस्तक के बाज़ार को लाभदायक बनाती है वह है तरलता का आधिक्य। एक छोटे से व्यापार क्षेत्र में व्यापारित माल के इतने क्रेता और विक्रेता होते हैं कि सही जगह पर आपकी अपेक्षित वास्तु के मिलने की संभावनाएं काफी अधिक होती हैं। इसके विपरीत, गैर पाठ्यपुस्तकों के उपयोग की गई पुस्तकों के बाजार की बीमारी है तरलता की कमी-अजिल्द माल के ना तो क्रेता अधिक हैं और ना ही विक्रेता। अपेक्षित पुस्तकों के बहुत कम विक्रेता होने का परिणाम यह होता है कि आपको जो पुस्तक चाहिए उसके मिलने की संभावनाएं अत्यंत क्षीण हैं। इसलिए इन पुस्तकों के क्रेता जब किसी विशिष्ट पुस्तक की खोज करते हैं, तो वे उपयोग की गई पुस्तकों के ऐसे बाजार के बारे में विचार भी नहीं करते हैं।
वेदरफोर्ड ने यह महसूस किया, कि व्यक्तिगत दुकान के अर्थशास्त्र का कोई खास मतलब नहीं होता, लेकिन ऐसी दुकानों के बाजार का संयुक्त रूप से (जब सभी दुकाने एकत्रित हों या आपस में जुडी हुई हों) उपयोग की गई पुस्तकों के बाजार के समग्र रूप में काफी अर्थ होता है। उपयोग की गई लगभग 12,000 पुस्तकों का भण्डार विश्व के एक अच्छे खासे पुस्तकालय का पुनरुत्थान करने में सक्षम है। व्यक्तिगत विक्रेताओं ने इन पुस्स्तकों की अपनी इन्वेंट्री को अपलोड किया और अलिब्रिस ने उसे एकत्रित रूप से संगृहीत किया, और यह सुनिश्चित किया कि अलिब्रिस का डेटा उपयोग करने वाले ऑनलाइन पुस्तक भंडारों में उपयोग की गई पुस्तकें नई पुस्तकों के ठीक बगल में प्रदर्शित की गई हैं।
इसने एमेजॉन और बीएन डॉट कॉम जैसे ऑनलाइन पुस्तक विक्रेताओं के लिए यह डेटाबेस उपलब्ध कराया, जिन्होंने उपयोग की गई पुस्तकों के इस डेटाबेस को एकीकृत किया और नई पुस्तकों के साथ प्रदर्शित किया और ‘‘मुद्रण के बाहर‘‘ संकल्पना को बेकार कर दिया, और नयी पुस्तकों के लिए एक सस्ता विकल्प उपलब्ध कराया। लाखों उपयोग की गई पुस्तकों के ग्राहकों को ऑनलाइन पुस्तक दुकानों तक लाकर, इसने उपयोग की गई पुस्तकों के बाजार को अपनी इन्वेंट्री को अधिक से अधिक कम्प्यूटरीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसने परिणामस्वरूप अलिब्रिस को (और इसके विस्तारित ऑनलाइन सहयोगियों को) विक्रय के लिए और अधिक इन्वेंट्री उपलब्ध कराई। यह एक उत्कृष्ट सदाचारी समूह था, जिसका परिणाम उपयोग की गई पुस्तकों की बिक्री की वृद्धि में हुआ। सालों की गतिहीनता के बाद, 2.2 बिलियन डॉलर्स का यह बाजार आज दोहरे अंकों की गति से विकसित हो रहा है, और यह सारा विकास, पुस्तक उद्योग के एक अध्ययन समूह के अनुसार, 600 मिलियन के ऑनलाइन पुस्तक बाजार के कारण हो रहा है, जो स्वयं 30 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से विकास कर रहा है।
- इस सुझाव से, कि पुरानी पुस्तकों के बाजार की समय-समय पर सफाई की जाती है, लेखक यह बताना चाहता है कि, इस साफ-सफाई से
- नयी पुस्तकों का बाजार स्वस्थ्य रहता है।
- प्रकाशक नयी पुस्तकों की अधिक कीमत वसूल कर पाते हैं।
- यह सुनिश्चित किया जाता है कि नए संस्करण अलग पृष्ठ संख्याओं के साथ प्रकाशित किये जाते हैं।
- प्रकाशकों को नुकसान भरपाई करने में मदद मिलती है।
- उपरोक्त सभी लाभ हैं।
- यह तथ्य, कि गैर-पाठ्यक्रम पुरानी पुस्तकों के बाजार के संरक्षक दुकानो में खोज का आनंद अनुभव करते हैं।
- इससे दुकान मालिकों को तरलता को सुधारने में मदद मिलती है।
- यह दुकान के मालिक की रूचि और पकड़ के भाग्य को प्रतिबिंबित करता है।
- यह किसी विशिष्ट प्रति के इच्छुक व्यक्ति के लिए कोई खास मददगार नहीं होता।
- यह इस बेतरतीबी को चाहत का एक हिस्सा बना देता है।
- दिखाता है कि पुरानी गैर पाठ्यक्रम पुस्तकों का भी एक विशाल बाजार है।
- वह कारण जो ठेठ पुरानी पुस्तकों के बाजार को एक अकुशल बाजार बनाता है
- नयी प्रतियों के लिए अधिक कीमत वसूल करने में प्रकाशकों की अक्षमता।
- आपको जो चाहिए वह सही स्थान पर प्राप्त होने की अधिक संभावनाएं।
- विक्रेता पर संग्रह की निर्भरता।
- जब आवश्यक है तब शीर्षकों की अनुपलब्धता।
- उपरोक्त सभी कारण।
पुरानी पाठ्यक्रम पुस्तकों के बाजार की तुलना में गैर पाठ्यक्रम पुस्तकों का बाजार असफल होता है क्योंकि
- कम क्रेता, कई सारे विक्रेता और प्रचुर माल।
- कम क्रेता, कम विक्रेता और कम माल।
- कई सारे क्रेता, कई सारे विक्रेता और कम माल।
- कम क्रेता, कम विक्रेता और प्रचुर माल।
- कई सारे क्रेता, कम विक्रेता और प्रचुर माल।
- वेदरफोर्ड ने समग्र रूप से पुरानी पुस्तकों के बाजार के अर्थ की पुष्टि किस प्रकार की?
- एमेजॉन और बीएन डॉट कॉम जैसे बड़े ऑनलाइन पुस्तक विक्रेताओं को पुरानी पुस्तकों के बाजार में निवेश के लिए आश्वस्त करके।
- नयी और पुरानी पुस्तकों के बाजारों का तुलनात्मक अध्ययन करके।
- पुरानी पुस्तकों की दुकानों को नयी पुस्तकों की दुकानों के साथ एकीकृत होने के लिए प्रोत्साहित करके।
- कम पुस्तकों के लिए अधिक क्रेताओं की संख्या की स्थिति निर्माण करके।
- पुराने शीर्षकों और नयी पुस्तकों के एक ही स्थान पर विक्रय का विकल्प उपलब्ध कराके।
गद्यांश 4
जो कथन पुस्तकालयों के लिए सत्य है वह खेरची दुकानों के लिए दुगना सत्य है। पुस्तकालयों में कम से कम एक तयशुदा श्रेणीकरण की योजना होती है-कोई पुस्तक खोजने के लिए कार्ड सूची उपलब्ध रहती है, पुस्तकालयाध्यक्षों को उनके यहाँ उपलब्ध माल की अच्छी जानकारी होती है। हालाँकि, एक अपरिचित सुपरमार्केट में आपको जो चाहिए वो आसानी से और तुरंत मिल जाय यह बहुत भाग्य की बात होती है। वस्तुओं का कामचलाऊ वर्गीकरण और शेल्फों पर मनमाने ढ़ंग से जमे हुए सामानों का परिणाम होता है निराश ग्राहक, अन-बिका माल और ग्राहकों की जाने पहचाने ब्रैंड और उत्पादों की ओर दौड़, मात्र इसलिए कि कम से कम वे खोजने में तो आसान हैं। यही बात हार्डवेयर से लेकर कपड़ों तक, अन्य प्रकार की दुकानों के बारे में भी सही है।
एक उदाहरण के तौर पर, मैं हाल ही में अपने स्थानीय ब्लॉकबस्टर के पास अकीरा खोजने के लिए गया था, जो एक जापानीएनीमेशन एक्शन क्लासिक है। किस भाग में खोजूं? विज्ञान कल्पना? एनीमेशन? विदेशी? मारधाड़? हालाँकि बाद में यह पता चला यह फिजूल था, क्योंकि उनके पास वो फिल्म थी ही नहीं। भौतिक दुकानों के तुरंत संतुष्टि के फायदे बेमतलब हैं यदि आपको वह मिलता ही नहीं है जो आपको चाहिए।
हालाँकि, एमेजॉन में यह केवल खोज पट्टी पर ‘‘अकीराष्टाइप करने जितना आसान है (और देखिये, इसमें पहले शब्द को कैपिटल में लिखना या इसकी सही स्पैलिंग लिखना भी आवश्यक नहीं है) फिल्म तुरंत सामने आ गई, और साथ में इसके दो अन्य संस्करण भी (और तीनो की उपयोग की हुई और नई प्रतियां भी) यदि मैं श्रेणी अनुसार ब्राउज करना चाहता, तो उपरोक्त में से कोई भी काम आ सकता था फिल्म सभी में श्रेणीबद्ध थी। एक ललचाने वाले पैकेज डील में, साथ में ‘‘घोस्ट इन द डार्क‘‘ की पेशकश भी थी, यह गतिशील विपणन और पोजीशनिंग का एक और गुण है। इसी प्रकार एमेजॉन ने दो और फिल्मों की सिफारिश भी की थी, जो उन्हें लगा शायद मुझे पसंद आयेंः प्रिंसेस मोनोनोके और घोस्ट इन द शेल भाग दो। और हाँ, ये दोनों भी उपलब्ध थीं और ब्लॉकबस्टर से सस्ती थीं। इन दो दुकानों में मुझे जो अनुभव हुआ वह शायद इससे और अलग हो भी नहीं सकता था।
एक प्रकार से, जैसे गूगल पुस्तकालय के लिए है, उसी प्रकार एक इंटरनेट खेरची विक्रेता ईंट गारे से बनी दुकान के लिए है। भौतिक अलमारियों की बाध्यता के चलते वास्तविक दुकानों के लिए वर्गीकरण करना और सारी चीजें उन्हें सौंप देना एक मजबूरी है। मुझे यह सोचकर ही कंपकंपी छूट जाती है, कि पता नहीं डेवी दशमलव प्रणाली उस किताब को कहाँ रखेगी, जो आप अभी पढ़ रहे हैं। प्रौद्योगिकी? अर्थशास्त्र? व्यवसाय? संस्कृति? इनमें से कोई भी विकल्प अपने आप में सही नहीं है। दुर्भाग्य से ‘‘उपरोक्त सभी‘‘ नाम की कोई श्रेणी नहीं है।
इसके विपरीत गूगल इसे किसी भी श्रेणी में रखेगा ही नहीं। दुनिया में पुस्तक का स्वाभाविक स्थान प्राप्त आने वाले लिंक्स के मान से मापने के बाद तथ्य उत्स्फूर्त रूप से सामने आ जायेगा। मेरा प्रकाशक शायद इसे ‘‘व्यवसाय पुस्तक‘‘ कह सकता है, लेकिन दुनिया यदि तय करती है कि यह एक ‘‘लोकप्रिय अर्थशास्त्र‘‘ अधिक लगती है, और इसे उसी संदर्भ में लिंक करती है, तो यह वही है, और वही रहेगी, और वह भी उस वर्णन के साथ जो किसी अन्य को यथार्थ लगता होगा। गूगल की दुनिया में अर्थ और तत्वमीमांसा पूरी तरह से प्रेक्षक के नजरिये में हैं। एक ही वस्तु को अनेक लोग अनेक प्रकार से देख सकते हैं। इसलिए, जनता की बुद्धिमत्ता मापने के लिए गूगल की एल्गोरिदम तो केवल खोजने वाले ने कौनसे मुख्य शब्द टाइप किये हैं इसकी गणना पर ही तय हो जाती है।
वैसे ही एमेजॉन इस पुस्तक को पांच या छह श्रेणी गंतव्य देने के साथ शुरू करेगा, और उसके बाद ग्राहक इसे ‘‘टैग‘‘ करके अपना अभिप्राय व्यक्त करेंगे, इसका मतलब यह है, कि वे अपने अपने हिसाब से अलग-अलग शब्द टाइप करके इसे अपनी स्वयं की व्यक्तिगत श्रेणियाँ दे देंगे (‘‘इंटरनेट‘‘, ‘‘ब्लॉगर‘‘, ‘‘बाद में पढ़ने के लिए‘‘, ‘‘परेटा‘‘, ‘‘अच्छा गीक उपहार‘‘, इत्यादि) क्या-क्या टैग दिए गए हैं ये अन्य लोग देखेंगे, जो इस पुस्तक को दुनिया में अपनी जगह बनाने में एक कारगर संदर्भ साबित होगा। टैगिंग की यह प्रक्रिया, जिसे ‘‘लोगों का नजरिया‘‘ कहते हैं, निर्माण होगी-अर्थात तथ्य के बाद का वर्गीकरण, जो पूरे तौर पर इस बात पर आधारित होगा कि किसी चीज के अर्थ के बारे में लोग वास्तव में क्या सोचते हैं। मजे की बात यह है कि अमेघेन इन टैग्स को इतना महत्वपूर्ण मानता है कि ये उसकी अपनी पूर्व निर्धारित श्रेणियों से भी पहले दिखाई देती हैं।
यह तो, इन असीम पुस्तक भण्डारों में क्या-क्या हो सकता है इसकी जानकारी प्राप्त करने की बहुआयामी प्रक्रिया को छेड़ने की शुरुआत भर है। अमेजॉन का सॉफ्टवेयर इस पुस्तक की विषयवस्तु के प्रत्येक शब्द को पचायेगा और ‘‘सांख्यिकीय दृष्टी से असम्भाव्य वाक्यांश‘‘ निर्धारित करेगा, जो ऐसे शब्दयुग्म हैं जो अन्य कई या किसी भी पुस्तक में शायद ही मिलें। एक दृष्टी से, ये मेरी पुस्तक की एक अलग ही छाप छोड़ेंगे। साथ ही यह अनेक विलक्षण विचारों और विषयवस्तुओं की ओर भी दिशानिर्देश करते हैं जो अपने आप में अत्यंत उपयोगी तथ्य है। सॉफ्टवेयर अनोखे विशेष शब्दों की सूची भी बनाएगा, जो मेरी पुस्तक के वस्तुनिष्ठ आधार को परिभाषित करेंगे। फिर अमेजॉन अपने हमेशा के सहयोगात्मक छलनी सिफारिशी उपकरण उन पुस्तकों का पता लगाने के लिए लगाएगा जो ग्राहकों ने मेरी पुस्तक के साथ देखी हैं या ली हैं, जो इस पुस्तक को सहयोगी समूह के साथ परिभाषित करेंगे।
- गद्यांश सुझाव देता है कि खेरची दुकानों की तुलना में पुस्तकालय
- कम मात्रा में असंतुष्ट ग्राहक और अनबिके उत्पाद पैदा करते हैं।
- तदर्थ वर्गीकरण और बेतरतीब शेल्फिकरण में लिप्त नहीं होते।
- ढूंढने में आसान होते हैं।
- वगी करण की एक प्रभावी तकनीक अपनाते हैं।
- उपरोक्त सभी
- जब कोई एमेजॉन डॉट कॉम जैसे एक ऑनलाइन डेटाबेस को सर्च करता है तो एक भौतिक दुकान की अपेक्षा अनुभव बहुत ही अलग होता है क्योंकि
- एक ऑनलाइन व्यवस्था में वर्गीकरण के लिए कई सर्च विकल्प उपलब्ध होते हैं।
- फिल्म सभी श्रेणियों में सूचीबद्ध होती है।
- गतिशील विपणन व्यवस्था और स्थिति निर्धारण प्रस्तुत किये जाते हैं।
- अधिकाँश सर्च व्यवस्थाएं ग्राहक के अनुकूल होती हैं।
- उपरोक्त सभी
- एमेजॉन की एक पुस्तक की वर्गीकरण की प्रक्रिया
- एक भौतिक खेरची दुकान की तुलना में वर्गीकरण की कठिनाइयों को दूर करती है।
- अपने स्वयं के वर्गीकरण की अपेक्षा टैगिंग पर अधिक बल देकर गलती करती है।
- असंतुष्ट ग्राहकों और अनबिके उत्पादों की समस्या से छुटकारा दिलाती है।
- हर उत्पाद को एक विशिष्ट पहचान देती है।
- किसी भी अन्य ऑनलाइन वर्गीकरण तकनीक से अधिक श्रेष्ठ है।
- पैसेज में शब्द ‘‘बेतरतीब’’ का संदर्भ इनमें से किससे है?
- परिवर्तनीय
- आवेशपूर्ण
- काल्पनिक
- विनोदपूर्ण
- वांछनीय
- गद्यांश के अनुसार इनमे से कौनसा कथन असत्य है?
- गूगल के वर्गीकरण के मानक सर्च करनेवाली जमसंख्या द्वारा निर्देशित होते हैं।
- ऑनलाइन दुकानें तदर्थ वर्गीकरण निर्माण करते हैं और सब कुछ उन्हें सौंप देते हैं।
- उत्पादों को वर्गीकृत करने के लिए एमेजॉन बहुविध मानदण्डों का उपयोग करता है।
- एक ही चीज के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं।
- गूगल के अनुसार एक ही चीज के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए अल
विस्तृत समाधान
- उत्तर (2) विकल्प (2) सही उत्तर है, क्योंकि यह दिए गए शब्द का सीधा अर्थ है।
- उत्तर (1) इसका स्पष्ट उत्तर विकल्प (1) है। यह स्पष्ट रूप से दुसरे पैराग्राफ में दिया गया है।
- उत्तर (3) तीसरे पैराग्राफ की शुरूआती कुछ पंक्तियाँ कहती हैं कि स्कूल में लेखिका के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया। इसलिए सही उत्तर विकल्प (3) है। अन्य विकल्प अप्रासंगिक हैं।
- उत्तर (1) इस पैसेज की केंद्र विषयवस्तु अपने बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलवाते समय पालकों को आनेवाली समस्याओं और कठिनाइयों से संबंधित है। विकल्प (1) में यही अर्थ सन्निहित है। अन्य किसी भी विकल्प में सारी बातें निर्देशित नहीं हैं।
- उत्तर (2) आश्चर्य व्यक्त करना, विकल्प (2) ही सही विकल्प होना चाहिए, क्योंकि लेखिका भारतीय स्कूलों के बारे में अपने सदमे और मोहभंग को व्यक्त कर रही है।
- उत्तर (2) विकल्प (1) और (4) पैसेज में कहीं नहीं दिए गए हैं, अतः गलत हैं। विकल्प (3) सही है, परंतु अधूरा है। विकल्प (2) सही और पूर्ण उत्तर है।
- उत्तर (3) विकल्प (1) पूर्ण नहीं है, क्योंकि यह उनके साथ समय बिताने के परिणामों के बारे में कुछ नहीं कहता। विकल्प (2) पैसेज की विषयवस्तु से सुसंगत नहीं है। विकल्प (4) सही है, किन्तु पैसेज के संदर्भ में उनके अलावा अन्य सहयोगी सही नहीं है। अतः केवल विकल्प (3) सही उत्तर है।
- उत्तर (3) पैराग्राफ (4) और (5) पढ़ने से यह स्पष्ट होता है, कि बहन बीमार थी और अब उसका देहांत हो चुका है। अन्य कोई भी विकल्प पैसेज में उल्लिखित नहीं हैं, अतः केवल विकल्प (3) सही उत्तर है।
- उत्तर (4) विकल्प (1) अपूर्ण है, अतः गलत है, यह उसकी बहन के एक परी होने के बारे में विचार नहीं करता। विकल्प (2) दोनों धारणाओं को सम्मिलित करता है, परंतु यह उसके, उसकी बहन के और तारे के महत्त्व के बारे में खामोश है। विकल्प (3) भी इन्ही कारणों से गलत है, क्योंकि यह उसे छोघ् कर सभी अच्छे लोगों, तारे और उसकी बहन के बीच संबंध स्थापित करता है। यह पैसेज के संदर्भ के अनुसार गलत है। केवल विकल्प (4) सभी दृष्टि से सही और पूर्ण है।
- उत्तर (4) विकल्प (1) और (2) पैसेज में कहीं नहीं दिए गए हैं। विकल्प (3) केवल प्रश्न की संक्षिप्त व्याख्या करता है, अतः गलत है। विकल्प (4) पैसेज की विषयवस्तु से संदर्भित है, अतः सही उत्तर है।
- उत्तर (3) भारत द्वारा प्रदर्शित सुस्त और मंदे विकास के लिए भारतीयों की आत्ममुग्धता ही कारण है। यह तथ्य पैसेज में स्पष्ट रूप से विशद किया गया है, जो कि दुसरे पैराग्राफ में दिया गया है।
- उत्तर (3) सही विकल्प (3) है। सार्वजनिक स्वच्छता और स्वास्थ्य की दृष्टी से जो एक व्यक्तिगत आदत होनी चाहिये थी, वह उच्च उपद्रव मूल्य बन जाती है। सिंगापूर का प्रशासन अत्यंत कठोर, कड़ा, मताग्रही है, क्योंकि उस चिपचिपे पदार्थ को साघ् करने में कई कठिनाइयाँ आती हैं, इसीलिए च्युइंग गम पर प्रतिबंध लगाया है।
- उत्तर (2) इसका उत्तर है ष्गलतष् अंतिम पैराग्राफ में उल्लेख किया गया है कि विदेशी पत्रकारों की सीमित संख्या 3500 है। अतः प्रवेश मुक्त नहीं है, बल्कि सीमित है। सही विकल्प (2) है।
- उत्तर (1) पैसेज सिंगापूर और भारत के जीवन पर है। यह उस छोटे से द्वीप द्वारा अल्प संसाधनों के साथ की गई प्रगति से संबंधित है। यह यह वहां के लोगों द्वारा राष्ट्रीयता और देश हित में काम करने के आदर्शों को बनाये रखने की प्रतिबद्धता के लिए राष्ट्रीयता की भावना, अनुशासन, सरकारी निर्बंधों के पालन की तुलना करता है। यह सार्वजनिक स्वच्छता और स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी निर्बंधों की तुलना करने से संबंधित है वाहनों की खरीद की संख्या को सीमित करके प्रदूषण को नियंत्रित किया गया है, यह भारतीय स्थिति से एकदम विपरीत है। प्रिंट और दृश्य मीडिआ पर सख्त नियंत्रण,सही यातायात व्यवस्था, भीघ्भाघ् वाले मार्गों पर उपयुक्त टोल व्यवस्था, ये सभी सिंगापूर के प्रशासन की दक्षता को प्रदर्शित करते हैं। अतः विकल्प (1) सही उत्तर है।
- उत्तर (3) सही उत्तर विकल्प (3) है। तीसरे पैराग्राफ में यह विशद किया गया है। भारत की 870 मिलियन की तुलना में सिंगापूर की जनसँख्या 3 मिलियन है अतः भारत की जनसँख्या सिंगापूर की जनसँख्या से 870 मिलियन - 3 मिलियन = 867 मिलियन अधिक है।
- उत्तर (3) सटीक उत्तर विकल्प (3) है, क्योंकि पैसेज ष्शारीरिक आकर्षणष् और सामजिक संवाद में इसकी भूमिका का विश्लेषण करने का प्रयास करता है। विकल्प (1), (2) और (4) के लिए पैसेज की विषयवस्तु में जगह नहीं है, अतः वे सही नहीं हैं।
- उत्तर (4) केवल विकल्प (4) को पैसेज से स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है, जैसा कि पहले पैराग्राफ के तीसरे वाक्य से स्पष्ट है। विकल्प (1), (2) और (3) अनावश्यक हैं क्योंकि वे लेखक के विचारों से मेल नहीं खाते।
- उत्तर (1) जैसा कि तीसरे पैराग्राफ के पहले भाग से स्पष्ट होता है, विकल्प (1) सही उत्तर है। विकल्प (2), (3) और (4) विसंगत हैं।
- उत्तर (1) एक व्यक्ति के दृष्टिकोण को प्रभावित करने में आकर्षक साथियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह बात तीसरे पैराग्राफ की छठी पंक्ति में बताई गई है, अतः अन्य सभी विकल्प गलत हैं, और विकल्प (1) सही उत्तर है।
- उत्तर (2) लेखक वन्यजीवन के संरक्षण के लिए आग्रह कर रहा है। हमें संरक्षण के लिए कुछ प्रयास करने चाहियें विलुप्ति चयन से बाहर है। विकल्प (3) और (4) अप्रासंगिक हैं।
- उत्तर (3) विकल्प (1), (2) और (4) स्पष्ट रूप से दुसरे पैराग्राफ में दिए गए हैं। विकल्प (3) का उल्लेख कहीं भी नहीं है।
- उत्तर (2) विकल्प (1), (3) और (4) कपस्सगे में कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। संदर्भ की दृष्टि से विकल्प (2) सही उत्तर है। पैराग्राफ ७ इसे सिद्ध करता है।
- उत्तर (3) यह पहले पैराग्राफ की पहली तीन पंक्तियों से स्पष्ट होता है। विकल्प (1) और (4) स्पष्ट रूप से अप्रासंगिक हैं। विकल्प (2) में वर्णित जनहितैषी मनुष्यों के बारे में बात करेंगे, पशुओं के बारे में इतनी गंभीरता से बात नहीं करेंगे।
- उत्तर (2) विकल्प (1) को लेखक द्वारा नकार दिया गया है। विकल्प (2) की चर्चा ९वे पैराग्राफ की तीसरी पंक्ति में की गई है।
- उत्तर (3) विकल्प (2) छठे पैराग्राफ की पहली पंक्ति में दिया गया है। विकल्प (1) तीसरे पैराग्राफ में दिया गया है। विकल्प (3) लेखक द्वारा नकार दिया गया है, क्योंकि केवल कुछ प्रजातियों को ही महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि सभी को दिया जाना चाहिए, यह पांचवें पैराग्राफ में दिया गया है।
- उत्तर (2) ‘‘वीर‘‘ शब्द से तात्पर्य ‘‘परिवर्तन‘‘ से है, जैसा कि विकल्प (2) में बताया गया है।
- उत्तर (4) मुहावरे ‘‘व्याजनिन्दा‘‘ का अर्थ है ‘‘निष्ठाहीन प्रशंसा‘‘ कोई भी विकल्प इस अर्थ को विशद नहीं करते। अतः विकल्प (4) सही उत्तर है।
- उत्तर (4) पसागर के पहले पैराग्राफ में विकल्पों (1), (2) और (3) का उल्लेख किया गया है। ‘‘राइट‘‘ की व्याख्या में ‘‘संतुलन‘‘ समाविष्ट नहीं है, अतः यह बेमेल है।
- उत्तर (1) पांचवे पैराग्राफ का अंतिम कथन प्रश्न कथन को हूबहू व्यक्त करता है, अतः विकल्प (1) सही उत्तर है।
- उत्तर (1) पैसेज को ध्यान से पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है,कि विकल्प (1) समग्र रूप से पैसेज की विषयवस्तु को प्रतिपादित करता है। अन्य कोई भी विकल्प पैसेज का संक्षिप्त पूर्णतः और स्पष्ट रूप से नहीं देता है।
समाधान
- उत्तर (4) जैसा कि पैसेज की शुरुवाती पंक्ति में कहा गया है, विकल्प (4) सटीक उत्तर है।
- उत्तर (1) पहले पैराग्राफ का दूसरा कथन स्पष्ट रूप से 5 दिन की अनुमानित लंबाई बताता है, अतः एक दिन की अनुमानित लंबाई की गणना की जा सकती है। अतः उत्तर है विकल्प (1)
- उत्तर (2) उपरोक्त कथन को दुसरे पैराग्राफ की शुरुआत में ही नकारा गया है। अयाह सही उत्तर विकल्प (2) है।
- उत्तर (1) लेखक ने इसका उल्लेख तीसरे पैराग्राफ की पहली पंक्ति में किया है। अतः विकल्प (1) सही है।
- उत्तर (2) लेखक उपरोक्त कथन से सहमत है और इसका उल्लेख पांचवे पैराग्राफ की दूसरी पंक्ति में मिलता है। अतः विकल्प (2) ही इसका उत्तर है।
- उत्तर (2) विकल्प (2) पैसेज की केंद्रीय विषयवस्तु को बेहतर ढं़ग से प्रतिपादित करता है समग्र रूप से पैसेज से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। चूंकि अन्य कोई भी विकल्प (2) जितना व्यापक नहीं है, इसलिए उन्हें गलत माना जा सकता है।
- उत्तर (3) पहले पैराग्राफ के अंतिम भाग से स्पष्ट होता है कि विकल्प (3) सही विकल्प है।
- उत्तर (3) चूंकि विकल्प (3) तीसरे पैराग्राफ की तीसरी पंक्ति में दिया गया है, अतः वही सही उत्तर है। पैसेज से अन्य किसी भी विकल्प को निर्णीत नहीं किया जा सकता।
- उत्तर (3) चौथे पैराग्राफ के अंतिम कथन से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विकल्प (3) सही उत्तर है, अतः अन्य विकल्पों को गलत माना जा सकता है।
- उत्तर (2) पैसेज से स्पष्ट है कि वैज्ञानिक विचारों के अध्ययन के लिए लोकप्रिय प्रायोगिक प्रणाली का विकल्प (2) में दिया गया क्रम ही सही है।
- उत्तर (1) विकल्प (2) इसलिये होता है, क्योंकि उपयोग की गई पुस्तकों के लिए ,क स्वस्थ्य पुनर्विक्रय बाजार उपलब्ध है। यह साफ-सफाई का परिणाम नहीं है। विकल्प (3) साफ-सफाई का समर्थन करता है, इसका उल्टा नहीं है। केवल विकल्प (3) कार देता है।
- उत्तर (3) पैराग्राफ चार कहता है कि पुरानी पुस्तकों की दुकानों के संक्षकों के लिए यह बेतरतीबी आमं त्रज का एक भाग है, जो उन्हें जाँच-पड़ताल और खोज एक-एक आत्मिक सुख प्रदान करता है किंतु एक विशिष्ट पुस्तक की तलाश शायद परिणाम ना दे। विकल्प (3) इस बारे में कहता है, इसलिए विकल्प (3) एक मजबूत आधार बनाता है।
- उत्तर (3) संदर्भ के हिसाब से विकल्प (3) ही उपयुक्त उत्तर है।
- उत्तर (4) विकल्प (4) ही उपयुक्त उत्तर है।
- उत्तर (3) हालाँकि विकल्प (1) और (3) तार्किक घटनाएं लगती हैं, विकल्प (3) के अलावा अन्य कोई भी विकल्प पैसेज में स्पष्ट संबंध नहीं देता, अतः विकल्प (3) सही उत्तर है।
- उत्तर (3) पैसेज विकल्प (1) और (2) के लिए कोई ठोस आधार नहीं प्रदान करता वास्तव में पैसेज कहता है कि, यही बात पुस्तकालयों के लिए सही है, वह खेरची दुकानों के लिए दोहरा सत्य है, अतः खेरची प्रणाली की अकुशलताएँ, हालाँकि छोटे पैमाने पर, फिर भी पुस्तकालयों पर भी लागू होती हैं। हालाँकि जब वह कहता है कि ‘‘कार्ड सूची खोज के लि, उपलब्ध है‘‘, तो यह खोजने में आसानी की ओर संकेत करता है।
- उत्तर (1) विकल्प (2) और (3) भ्रामक हैं, क्योंकि फिल्में सभी श्रेणियों में दिखाई नहीं देतीं और ‘‘गतिशील विपणान‘‘ और ‘‘स्थिति निर्धारण‘‘ शब्दों का प्रयोग कंपनी की, अपने उत्पाद की विपणन की रणनीतियों के लिए प्रयुक्त हुए हैं, ना कि किसी वास्तु के लिए जो उपभोक्ता को प्रस्तुत की गई है। केवल विकल्प (1) ही एक मजबूत आधार बनाता है।
- उत्तर (4) केवल विकल्प (4) एक अनूठी विशेषता है, जो अंतिम पैराग्राफ में वर्णित है अन्य विकल्पों को लेखक के सुझावों के रूप में अंतिम रूप से नहीं कहा जा सकता।
- उत्तर (2) ‘‘आवेणी‘‘ (ठोस विचार या नियोजन के बिना) इस संदर्भ में उपयुक्त अर्थ है।
- उत्तर (2) जैसा कि पहले पैराग्राफ में उकृत है, भौतिक दुकानें तदर्थ वर्गीकरण निर्माता करती हैं। अतः विकल्प (2) सही उत्तर है।
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