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मानवीय मूल्य भाग - 1
1.0 प्रस्तावना
समाज-विज्ञान के आरम्भ से ही, ’मूल्य’ केन्द्रीय तत्व रहे हैं। ’मूल्य’ हमेशा बहुआयामी होते हैं और समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मानव विज्ञान और संबंधित ज्ञान शाखाओं में इनका उपयोग होता रहा है। इस व्यापक प्रयोग के कारण, इसकी कई भिन्न-भिन्न अवधारणाओं का उदय हुआ है। आधारभूत मूल्यों की एकमत अवधारणा के अभाव में, विभिन्न समाज विज्ञानों में, इसके अनुप्रयोगों को लेकर बहुत बाधाएं हैं। जब हम हमारे मूल्यों के बारे में सोचते हैं तो वास्तव में हम यह सोचते हैं कि हमारे लिए क्या महत्वपूर्ण हो सकता है। हम अनेक मूल्य महत्वपूर्ण मानते हैं, जैसे कि सुरक्षा, परोपकार, उपलब्धि आदि।
1.1 मूल्यों की प्रकृति
(1) मूल्य वे विश्वास हैं जो प्रभाव के साथ गुंथे हुए हैं। जब मूल्य सक्रिय होते हैं तो वे भावनाओं के साथ मिल जाते हैं। वो लोग जिनके लिए स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण मूल्य है, तब उत्तेजित हो जाते हैं जब उनकी स्वतंत्रता खतरे में होती है। वे निराश हो जाते हैं जब वे इसकी रक्षा नहीं कर पाते, और खुश होते हैं जब वे इसका आनंद लेते हैं।
(2) मूल्यों से आशय उन इच्छित लक्ष्यों से हैं जो कार्य को प्रेरित करते हैं। वे लोग जिनके लिए सामाजिक व्यवस्था, न्याय और सहायतापूर्ण व्यवहार महत्वपूर्ण है, इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरित होते हैं।
(3) मूल्य विशिष्ट क्रियाओं व परिस्थितियों से श्रेष्ठ होते हैं। उदाहरण के लिए, आज्ञाकारी और ईमानदार होना, कार्यस्थल पर, स्कूल में, खेल के मैदान में, व्यापार में, परिवार, दोस्तों या अजनबियों के साथ तर्क-संगत हो सकता है। ये गुणधर्म मूल्यों को उन पैमानों या व्यवहार से अलग करते हैं जो विशिष्ट क्रियाओं, उद्देश्यों या परिस्थितियों से जुड़े होते हैं।
(4) मूल्य ’मानक’ होते है। मूल्य क्रियाओं, नीतियां, लोगों और घटनाओं को चुनने या विकास करने का दिशा-निर्देशन करते हैं। लोग उनके मूल्यों के आधार पर निर्णय लेते है कि क्या अच्छा है या क्या गलत है, न्यायोचित है या अवैध है, करने योग्य है या छोड़ने योग्य है। किन्तु मूल्यों का प्रभाव रोजमर्रा के कामों में सामान्यतः नहीं होता है। जब किसी को लगता है कि उसका कोई काम या निर्णय उसके मूल्यों के साथ मेल नहीं खाता है तो मूल्य, चेतना में प्रवेश करते हैं।
(5) मूल्यों का क्रम सापेक्षिक महत्व से निर्धारित होता है। लोग अपने मूल्यों का क्रम उनकी प्राथमिकता के आधार पर तय करते हैं, जो उन्हें ’व्यक्तिगत’ तौर पर लक्षित करती है। वे किसे ज्यादा महत्व देगें, उपलब्धि को या न्याय को, नवीनता को या परम्परा को? यह क्रमागत विशेषता मूल्यों को पैमानों या व्यवहार से अलग करती है।
(6) एकाधिक मूल्यों का सापेक्षित महत्व कार्य को प्रभावित करता है। कोई भी व्यवहार एक से ज्यादा मूल्यों पर लागू होता है। उदाहरण के लिए, चर्च या मंदिर जाना परम्परा, निश्चितता और सुरक्षात्मक मूल्यों को (भोगवाद या उत्तेजना मूल्यों की कीमत पर) अभिव्यक्त करता है। दो विपरीत मूल्यों के बीच संतुलन बनाना ही व्यवहार व स्वभाव बनता है। मूल्य उस हद तक कार्य को प्रभावित करते हैं जहां तक वे अदाकार (व्यक्ति) के लिए प्रासंगिक होते हैं।
अस्तित्व के लिए तीन सार्वभौमिक आवश्यकताएँ होती है। व्यक्तियों की आवश्यकताएँ जैविक इकाई के रुप में, सामाजिक अन्तंर्सबंधां की आवश्यकता, और समूह के कल्याण एवं उत्तरजीविता के लिए होती है। मूल्यों से संबंधित सारी अवधारणाएं इन तीन आवश्यकताओं पर निर्भर होती हैं।
1.2 दस मूल्य और उनके अर्थ
(1) आत्म-निर्देशन (Self-Direction)
उद्देश्यः स्वतंत्र विचार एवं कार्य
आत्मनिर्देशंन किसी व्यक्ति की नियंत्रण और स्वतंत्रता की अन्तर्क्रियात्मक आवश्यकता को संतुष्ट करता है
गुणधर्मः रचनात्मक, चयनात्मक, शोध-प्रवृति
(2) उत्तेजना (Stimulation)
उद्देश्यः जीवन में उत्साह, नवीनता और आक्रामक उत्तेजना, जीवन में वैविध्य की पूर्ति करती है। यह आवश्यकता आत्म-निर्देशन मूल्यों की व्याख्या करती है
गुणधर्मः एक विविधतापूर्ण, उत्तेजित एवं रोचक जीवन
(3) भोगवाद (Hedonism)
उद्देश्यः स्वयं के लिए आनंद या इन्द्रीय सुख
भोगवाद के मूल्य, किसी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और सुखों से संबंधित होते हैं जो उसे संतुष्ट कर सकें
गुणधर्मः आनंद, मौज-मस्ती का जीवन, स्वयं का सुख
(4) उपलब्धि (Achievement)
उद्देश्यः सामाजिक स्तर के अनुसार क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए व्यक्गित सफलता
उचित प्रदर्शन, जिसके द्वारा व्यक्तिगत उत्तरजीविता के लिए जरुरी संसाधन जुटाये जा सकें, तथा समूहां या संस्थानों के लिए कि वे अपने लक्ष्य हासिल कर सकें। उपलब्धि मूल्यों की प्रदर्शनकारी क्षमता, जिसे सांस्कृतिक मानकों के रुप में, सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करने के रुप में परिभाषित किया जा सकता है
गुणधर्मः महत्वाकांक्षी, सफल, सक्षम, प्रभावशाली
(5) शक्ति (Power)
उद्देश्यः सामाजिक दर्जा व सम्मान। लोगों और संसाधनों पर नियंत्ऱण। सामाजिक संस्थानों के सहज संचालन के लिए किसी हद तक स्तरों में अन्तर होना आवश्यक है। इससे आन्तरिक और अन्तरसांस्कृतिक, दोनों ही स्तरों पर नेतृत्व या समर्पण का विकास होता है। सामाजिक जीवन के इस तथ्य को न्यायोचित सिद्ध करने के लिए और समूह के सदस्यों को इसे स्वीकारने, प्रेरित करने के लिए, शक्ति को एक मूल्य के रुप में स्थापित करना होता है। शक्ति-मूल्य, नेतृत्व एवं नियंत्रण के लिए किसी की व्यक्तिगत आवश्यकता भी हो सकते हैं। चिन्तकों ने शक्ति मूल्यों पर भी ध्यान दिया है
गुणधर्मः अधिकार, सम्पत्ति, सामाजिक-शक्ति
शक्ति और उपलब्धि मूल्य सामाजिक प्रचलन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। हालांकि उपलब्धि मूल्य, जैसे कि महत्वकांक्षा, सफलता के सक्रिय प्रदर्शन पर जोर देते हैं। शक्ति मूल्य मजबूत अन्तर्संबधों में जैसे कि अधिकार, सम्पत्ति, एक सामाजिक परम्परा में उपलब्धि या संरक्षण की महती भूमिका पर जोर देते हैं
(6) सुरक्षा (Security)उद्देश्यः सुरक्षा, शांति और सामाजिक संबंधां एवं स्वयं का स्थायित्व
सुरक्षा मूल्य व्यक्तिगत और सामूहिक आवश्यकताओं, दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ सुरक्षा मूल्य व्यक्तिगत हितों का ध्यान रखते हैं, जबकि कुछ वृहद्तर सामूहिक हितों का। यहाँ तक कि सामूहिक हितों में भी व्यक्तिगत सुरक्षा का भाव ही अभिव्यक्त होता है। दोनों ही प्रकारों को एक सुघढ़ मूल्य के रुप में एकीकृत किया जाता है
गुणधर्मः सामाजिक क्रम, पारिवारिक सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, अपनत्व व जुड़ाव की भावना
(7) सामाजिक प्रतिबद्धता/संलग्नता (Conformity)
उद्देश्यः ऐसे कार्यों, विचारों एवं भावनाओं को रोकना, जो सामाजिक मूल्यों व लोकाचार का उल्लघन करें
व्यक्तियों की मूल प्रवृति होती है कि वे सहज अन्तर्संबंधां और सामूहिक कार्यों में खलल डालते हैं। अतः सारे मूल्य संलग्नता की बात करते हैं। संलग्नता मूल्य, दैनिक अन्तर्संबंधों में आत्म नियंत्रण पर जोर देते हैं
गुणधर्मः आज्ञाकारी, आत्मसंयमी, विन्रमता, माता-पिता और बुजुर्गों का सम्मान
(8) परम्परा (Tradition)
उद्देश्यः उन परम्पराओं और विचारों का, जो संस्कृति या धर्म प्रदत्त होती है, को समर्पित होना, और सम्मान करना
समूह ऐसी परंपराओं, प्रतीकों, विचारों और विश्वासों का विकास कर लेते हैं जो उनके सामूहिक अनुभवों व भाग्य को अभिव्यक्त करें। इन्हें सामूहिक मूल्य व परम्परा कहा जाता है। वे समूह की दृढ़ता का प्रतीक होती हैं, व इनकी अद्वितीय योग्यता को अभिव्यक्त करती हैं। इनकी उत्तरजीविता व दीर्घायु में मदद करती हैं। धार्मिक रीति रिवाज और परम्पराएं इसके उदाहरण हैं
गुणधर्मः परम्परा का सम्मान, विनम्र, समर्पित, जीवन मे स्वयं के हिस्से को स्वीकार करने वाले
(9) कल्याणकारी (Benevolence)
उद्देश्यः उन लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना जिनसे आपका सतत व्यक्तिगत सम्पर्क होता है
प्रगति की आवश्यक शर्त यह है कि किसी भी समूह का संचालन सहज होना चाहिए। कल्यणाकारी मूल्य इस पक्ष को सुनिश्चित करते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं परिवार और अन्य प्राथमिक समूहों में संबंध। कल्याणकारी मूल्य दूसरे के भले के लिए स्वेच्छा पर जोर देते हैं
गुणधर्मः ईमानदार, मददगार, क्षमाशील, जिम्मेदार, वफादार, सच्ची मित्रता, परिपक्व प्यार
(10) वैश्विकवाद (Universalism)उद्देश्यः सभी लोगों और प्रकृति के कल्याण के लिए समझ, सहनशीलता, प्रशंसा और संरक्षण
वैश्विक मूल्य, व्यक्तिगत और सामूहिक उत्तरजीविता की आवश्यकताओं को सतुंष्ट करने के लिए आवश्यक हैं। लोग इन मूल्यों का महत्व तब तक नहीं समझते जब तक कि उनका सामना विस्तारित प्राथमिक समूहों की सीमा से परे, दूसरों से नहीं होता है, या जब तक कि वे प्राकृतिक संसाधनों की कमी महसूस नहीं करते हैं। जब ऐसे अन्तर्सबंध घटित होते हैं, दूसरों को स्वीकार कर पाने की असफलता भयानक संघर्ष की ओर ले जाती है। साथ ही, प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा की असफलता उन संसाधनों का विनाश कर देगी जो जीवन के लिए आवश्यक हैं
गुणधर्मः उदारवादी विचार, सहिष्णु
स्वार्टज्स् मूल्य सर्वेक्षण (Schwartz Value Survey)
मूल्यों के मापन की पहली प्रविधि स्वार्ट्ज्स् वैल्व्यू सर्वे (एस. वी. एस.) सिद्धांत पर आधारित है। एस. वी. एस. मूल्यों की दो सूचियाँ प्रस्तुत करता है। पहली सूची में 30 मद हैं, जो प्रसंभाव्य इच्छित लक्ष्यों को संज्ञा देती है, और दूसरी सूची में 26 या 27 कार्य करने की प्रसंभाव्य इच्छित पद्धतियों का चित्रण विशेषण रुप में किया गया है। प्रत्येक मद एक मूल्य के प्रेरित लक्ष्य को अभिव्यक्त करता है। सूची की प्रत्येक वस्तु के अनुलग्न में व्याख्यात्मक वाक्यांश भी दिये गये है। उदाहरण के तौर पर ’समानता’ (सभी के लिए समान अवसर) एक वैश्विक वस्तु है; ’सुख (इच्छाओं की संतुष्टि)’ एक भोगवादी मूल्य है। प्रतिक्रिया देने वाला व्यक्ति प्रत्येक मूल्य के महत्व की दर निर्धारित करता है। ’प्रतिवादी अपने जीवन में निर्देशन सिद्धांत का आकलन एक 9 अंकीय स्केल पर करता है। 7 अंक सर्वोच्च महत्वपूर्ण, 6 बहुत महत्वपूर्ण, 5,4, मूल्यहीनता, 3 महत्वपूर्ण 2,1 मूल्यहीनता 0 महत्वपूर्ण नहीं, - 1 मेरे मूल्यों के विपरीत। (मूल्यहीनता - unlabeled)
पोट्रेट मूल्य प्रश्नावली (Portrait Value Questionnaire)
पोट्रेट मूल्य प्रश्नावली (पी.वी.क्यू.) एस.वी.एस के विकल्प के तौर पर तैयार किया गया है। इसका उपयोग 11 वर्ष से बड़े बच्चों और उन व्यक्तियों, जो पश्चिमी विद्यालयों में शिक्षित नहीं है, में 10 आधारभूत मूल्यों के मापन के लिए किया जाता है। एस.वी.एस. इस प्रकार के परीक्षणों में सफल नहीं हुआ है।
पी.वी.क्यू. में 40 विभिन्न लोगों के संक्षिप्त शब्द चित्र होते हैं जो परीक्षित होने वाले के समान लिंग के ही होते है। प्रत्येक शब्द चित्र एक व्यक्ति के उन लक्ष्यों, इच्छाओं या आकांक्षाओं को दर्शाता है जो मूल्यों की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। उदाहरण के तौर पर : ’नये विचारों के बारे में सोचना और रचनात्मक होना उसके लिए महत्वपूर्ण है। वह अपने मौलिक तरीके से काम करना पंसद करता है।’ उस व्यक्ति का चित्रण करता है जिसके लिए आत्म-निदर्शन मूल्यों का महत्व है। ’उसके लिए धनवान होना महत्वपूर्ण है। वह बहुत सारा धन और आलीशान वस्तुएँ चाहता है’ ऐसे व्यक्ति को चित्रित करता है जिसके लिए शक्ति मूल्य ही सब कुछ है।
यूरोपीय सामाजिक सर्वेक्षण
यूरोपीय सामाजिक सर्वेक्षण (इ.एस.एस.) के रचनाकारों ने सिद्धांत को चुना और पी.वी.क्यू. को सर्वे में शामिल कर मानवीय मूल्य पैमाना विकसित करने का आधार बनाया। ई.एस.एस. संस्करण में पी.वी.क्यू. की 21 चीजें समाहित कर ली गईं और कुछ को, 10 भिन्न-भिन्न मूल्यों को शामिल करने के लिए, संपादित भी किया गया। लगभग 20 राष्ट्रीय स्तर के नमूनों को इस संस्करण में .56 औसत अंक प्रदान किये गये। इनका औसत .36 (परम्परा) से .70 (उपलब्धि) तक है। इनसे पता चला कि केवल दो वस्तुएं प्रत्येक मूल्य का पैमाना होती हैं (वैश्विकवाद के लिये तीन)। उतना ही महत्वपूर्ण है मदों की कम संख्या। मुद्दो को चुनने का निर्णायक तत्व उसका विभिन्न मूल्यों में अधिकतम विस्तार होना था। इनकी कम विश्वसनीयता के बावजूद इन मूल्यों से व्यवहार व कार्यप्रणाली की व्यवस्थित व्याख्या होती हैं।
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